Friday, February 11, 2022

विश्व स्वास्थ्य दिवस पर जान लीजिए आजीवन स्वस्थ रहने के नियम

07 अप्रैल 2021

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आजकल पाये जाने वाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है। हम अपनी दिनचर्या शरीर की जैविक घड़ी के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगों की सक्रियता का हमें अनायास ही लाभ मिलेगा। इस प्रकार थोड़ी-सी सजगता हमें स्वस्थ जीवन की प्राप्ति करा देगी।



जविक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या ऐसे बनाएं...


★ प्रातः 3 से 5 – इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से फेफड़ो में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना चाहिए । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु ( ऑक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहनेवालो का जीवन निस्तेज हो जाता है ।


★ प्रातः 5 से 7 – इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से आंत में होती है। प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल-त्याग एवं स्नान कर लेना चाहिए । सुबह 7 के बाद जो मल – त्याग करते हैं, उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।


★ सुबह 7 से 9 – इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से आमाशय में होती है। यह समय भोजन के लिए उपर्युक्त है । इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं। भोजन के बीच –बीच में गुनगुना पानी (अनुकूलता अनुसार ) घूँट-घूँट पिये।


★ सुबह 11 से 1 – इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से हृदय में होती है। दोपहर 12 बजे के आस–पास मध्याह्न – संध्या (आराम ) करने की हमारी संस्कृति में विधान है। इसीलिए भोजन वर्जित है । इस समय तरल पदार्थ ले सकते हैं। जैसे मट्ठा पी सकते हैं।  दही खा सकते हैं।


★ दोपहर 1 से 3 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से छोटी आंत में होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्त्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर धकेलना है। भोजन के बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए । इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो जाता है ।


★ दोपहर 3 से 5 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से मूत्राशय में होती है । 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृति होती है।


★ शाम 5 से 7 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से गुर्दे में होती है । इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए । शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल) भोजन नही करना चाहिए। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते हैं । देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है।


★ रात्रि 7 से 9 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से मस्तिष्क में होती है । इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है । अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है । आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टि हुई है।


★ रात्रि 9 से 11 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु में होती है। इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है । इस समय का जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है । यदि इस समय भोजन किया जाय तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।


★ रात्री 11 से 1 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से पित्ताशय में होती है । इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा , नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है । इस समय नई कोशिकाएं बनती हैं ।


★ रात्रि 1 से 3 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से लीवर में होती है । अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है। इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन-तंत्र को बिगाड़ देता है । इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता हैं, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएं मंद होती हैं। अतः इस समय सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती हैं।


नोट :-- ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखे, जिससे ऊपर बताए भोजन के समय में खुलकर भूख लगे। जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें। इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। कुर्सी पर बैठकर भोजन करने में पाचनशक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो बिल्कुल नहींवत् हो जाती है। इसलिए ʹबुफे डिनरʹ से बचना चाहिए।


पथ्वी चुम्बकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही सोयें, अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती हैं।


शरीर की जैविक घड़ी को ठीक ढंग से चलाने हेतु रात्रि को बत्ती बंद करके सोयें। इस संदर्भ में हुए शोध चौंकाने वाले हैं। देर रात तक कार्य या अध्ययन करने से और बत्ती चालू रख के सोने से जैविक घड़ी निष्क्रिय होकर भयंकर स्वास्थ्य-संबंधी हानियाँ होती हैं। अँधेरे में अथवा कम प्रकाश में सोने से यह जैविक घड़ी ठीक ढंग से चलती है।


आप अपना जीवन नियमित बनाएं और स्वस्थ रहें।


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अमेरिका जो करोड़ो डॉलर खर्च के नही समज पाया वह एक संत ने चुटकी में बता दिया

06 अप्रैल 2021

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किसी भी देश की सच्ची संपत्ति संतजन ही होते हैं। वे जिस समय प्रगट होते हैं उस समय के जन-समुदाय के लिए उनका जीवन ही सच्चा मार्गदर्शक होता है। उत्तर भारत में तपस्यामय जीवन बिताकर पूज्य श्री लीलाशाहजी बापू नयी शक्ति, नयी ज्योति एवं अंतर की दिव्य प्रेरणा प्राप्त कर, लोगों को सच्चा मार्ग बताने, गरीब एवं दुःखी लोगों को ऊँचा उठाने तथा सतशिष्यों एवं जिज्ञासुओं को ज्ञानामृत पिलाने के लिए कई वर्षों के बाद सिंध देश में आये।



पज्य संत श्री लीलाशाहजी बापू ने धार्मिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक हर क्षेत्र में उन्होंने कार्य शुरू किया। वे मानो स्वयं एक चलती-फिरती संस्था थे, जिनके द्वारा अनेक कार्य होते थे।


चन्द्र लोक में कुछ नही बनेगा


एक बार गुजरात के मेहसाणा से पाटन ट्रेन में लीलाशाहजी के साथ डॉ. शोभसिंह नामक एक सज्जन 'टाइम्स आफ इन्डिया' अखबार पढ़कर खुश होते-होते लीलाशाहजी बापू से कहने लगेः 'बापू ! बापू ! देखो, आज वैज्ञानिकों ने कितनी सारी प्रगति कर ली है ! वैज्ञानिक रॉकेट में बैठकर चन्द्रलोक तक घूम आये, वहाँ से मिट्टी भी ले आये। अब वे लोग एक वर्ष में वहाँ हॉटल बनानेवाले हैं, जिससे धनवान लोग वहाँ छुट्टियों में रह सकेंगे।"


लीलाशाहजी बापू ने एक मिनट अन्तरात्मा के ध्यान में डुबकी लगाकर कहाः *"अभी कुछ नहीं होने वाला है। होटल-वोटल कुछ नहीं बनेगा। सब चुप होकर बैठ जायेंगे।"


 आज उस बात को लगभग सैकंडो वर्ष हो गये हैं। करोड़ों डॉलर खर्च हो गये, फिर भी आज तक चन्द्रलोक पर कोई हॉटल नहीं बना, दुनिया जानती है।


उस समय विश्व के तमाम समाचारपत्रों में पहले पृष्ठ पर समाचार छपे थे कि "वैज्ञानिक चन्द्रलोक तक पहुँच गये हैं। वहाँ जीवन की संभावना है और अब एकाध वर्ष में वहाँ होटल बनेगा।' परन्तु वहाँ चन्द्रलोक पर होटल तो क्या आज तक कुछ भी नहीं बना, यह आप सभी जानते ही हो।


कसा होगा उन महापुरुषों का चित्त ! चलती ट्रेन में ही अन्तर्मुख होकर ऐसा सत्य संदेश सुना दिया कि जो आज तक सत्य साबित हो रहा है। धन्य है भारत और धन्य है भारत के आत्मारामी संत!


नीम का पेड चला


सिंध में किसी जमीन की बात में हिन्दू और मुसलमानों का झगड़ा चल रहा था। उस जमीन पर नीम का एक पेड़ खड़ा था, जिससे उस जमीन की सीमा-निर्धारण के बारे में कुछ विवाद था। हिन्दू और मुसलमान कोर्ट-कचहरी के धक्के खा-खाकर थके। आखिर दोनों पक्षों ने यह तय किया कि यह धार्मिक स्थान है। दोनों पक्षों में से जिस पक्ष का कोई पीर-फकीर उस स्थान पर अपना कोई विशेष तेज, बल या चमत्कार दिखा दे, वह जमीन उसी पक्ष की हो जायेगी।

 

पज्य लीलाशाहजी बापू का नाम पहले ‘लीलाराम’ था। हिंदू लोग पूज्य लीलारामजी के पास पहुँचे और बोले: “हमारे तो आप ही एकमात्र संत हैं। हमसे जो हो सकता था वह हमने किया, परन्तु असफल रहे। अब समग्र हिन्दू समाज की प्रतिष्ठा आपश्री के चरणों में है ।


पज्य लीलारामजी उनकी बात मानकर उस स्थान पर जाकर भूमि पर दोनों घुटनों के बीच सिर नीचा किये हुए शांत भाव से बैठ गये।

 

मसलमान लोगों ने उन्हें ऐसी सरल और सहज अवस्था में बैठे हुए देखा तो समझ लिया कि ये लोग इस साधु को व्यर्थ में ही लाये हैं। यह साधु क्या करेगा …? जीत हमारी होगी।

 

पहले मुस्लिम लोगों द्वारा आमंत्रित पीर-फकीरों ने जादू-मंत्र, टोने-टोटके आदि किये। ‘अला बाँधूँ बला बाँधूँ… पृथ्वी बाँधूँ…तेज बाँधूँ… वायू बाँधूँ… आकाश बाँधूँ… फूऽऽऽ‘ आदि-आदि किया पर कुछ हुआ नही फिर पूज्य लीलाराम जी की बारी आई।

 

जब लोगों ने पूज्य लीलारामजी से आग्रह किया तो उन्होंने धीरे से अपना सिर ऊपर की ओर उठाया। सामने ही नीम का पेड़ खड़ा था। उस पर दृष्टि डालकर गर्जना करते हुए आदेशात्मक भाव से बोल उठे : “ऐ नीम ! इधर क्या खड़ा है ? जा उधर हटकर खड़ा रह।”

 

बस उनका कहना ही था कि नीम का पेड ‘सर्रर्र… सर्रर्र…’ करता हुआ दूर जाकर पूर्ववत् खड़ा हो गया।

 

लोग तो यह देखकर आवाक रह गये ! आज तक किसी ने ऐसा चमत्कार नहीं देखा था। अब विपक्षी लोग भी उनके पैरों पड़ने लगे। वे भी समझ गये कि ये कोई सिद्ध महापुरुष हैं।

 

व हिन्दुओं से बोले : “ये आपके  ही पीर नहीं हैं बल्कि आपके और हमारे सबके पीर हैं। अब से ये ‘लीलाराम’ नहीं किंतु ‘लीलाशाह’ हैं। तब से लोग उनका ‘लीलाराम’ नाम भूल ही गये और उन्हें ‘लीलाशाह’ नाम से ही पुकारने लगे। लोगों ने उनके जीवन में ऐसे-ऐसे और भी कई चमत्कार देखे।


ऐसे उनके द्वारा अनेकों चमत्कार हुआ, लीलाशाहजी महाराज ने अपना सम्पूर्ण जीवन देश, धर्म व समाज की सेवा में लगा दिया।


हमारे भारत देश मे ऐसे अनेकों महान संत हो गए और अभी है पर हमें उनकी महत्ता पता नही है इसलिए आज हम दुःखी, चिंतित, परेशान हैं। जिस दिन हम सच्चे संतों के मार्गदर्शन के अनुसार जीवनं गे उसदिन हम विश्व मे सबसे उन्नत होंगे।


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एक ऐसे संत जिन्होंने देश विभाजन के समय किये ऐसे कार्य जो सोच से परे है

05 अप्रैल 2021

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15 अगस्त 1947 के दिन संत-महात्माओं के शुभ संकल्पों क्रांतिकारियों के बलिदान 

एवं भारतवासियों के पुरुषार्थ से, भारत अंग्रेजों की दासता से मुक्त हुआ। देशभक्तों का स्वप्न साकार हुआ। देश में चारों ओर प्रसन्नता की लहर छा गयी.... परन्तु दूसरी ओर इसी के साथ दुःखद घटना भी बनी।



भारत छोड़ते समय अंग्रेज भारत एवं पाकिस्तान ये दो भाग करके, देश के टुकड़े करके भारत के लिए अशांति, दुःख एवं मुसीबतों की आग जलाते गये। मलिन वृत्ति वाले मुसलमान हिन्दुओं पर खूब जुल्म ढाने लगे। वे लोग हिन्दू एवं सिक्खों को लूटते, बेईज्जती करते, मारपीट करते, खून-खराबा करते, बच्चियों एवं स्त्रियों की इज्जत लूटते, उन्हें उठा ले जाते।


हिन्दुओं की माल-मिल्कियत, इज्जत एवं धर्म की रक्षा का कोई उपाय न रहा। ऐसी खराब हालत में हिन्दुओं को पाकिस्तान छोड़कर भारत में आना पड़ा। पूर्व बंगाल के हिन्दू लोगों ने पश्चिम बंगाल एवं पश्चिम पंजाब के हिन्दुओं ने पूर्व पंजाब में आकर फिर से नयी जिंदगी शुरू की। उत्तर एवं दक्षिण की सीमा में रहने वाले लोग भी पूर्व पंजाब एवं दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में आकर रहने लगे। खास करके बलूचिस्तान एवं सिंध के हिन्दुओं को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। पूर्व पंजाब, बिहार एवं दूसरे शहरों में से मुसलमानों ने सिंध एवं बलूचिस्तान पर चढ़ाई करके हिन्दुओं की जमीन-जायदाद पर कब्जा कर लिया। इसलिए विवश होकर ये लोग भी निराश्रित बन कर भारत में आश्रय लेने के लिए आये।


इन लोगों के रहने के लिए भारत सरकार ने अलग-अलग जगहों पर केम्प बना दिये जिससे  वे निश्चिंतता की साँस ले सकें। अपनी जान बचाने के लिये, डर के मारे एक ही कुटुंब के व्यक्ति अलग-अलग जगह बँटकर दूर हो गये। अनजान भारत में भागकर आये हुए हिन्दुओं के पास रहने के लिए मकान नहीं, खाने के लिए अन्न का दाना नहीं, कमाने के लिए नौकरी-धंधा नहीं.... ऐसी स्थिति में इन लोगों को प्रेम, स्नेह, हमदर्दी एवं सहारे की सख्त जरूरत थी।


ऐसी विकट परिस्थिति में पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज उन लोगों के रक्षणहार, तारणहार एवं दिव्य प्रकाश के स्तंभरूप बने। पूज्यश्री लीलाशाहजी महाराज उन लोगों को समझाते कि 'दुःख एवं मुसीबत कसौटी करने के लिए ही आते हैं। ऐसे समय में धैर्य एवं शान्ति से काम लेना चाहिए।'


लोगों की दया जनक स्थिति देखकर, उन्होंने रात-दिन देखे बिना तत्परता से लोकसेवा शुरू कर दी। कभी दिल्ली, जयपुर, अलवर, खेड़थल, जोधपुर तो कभी अजमेर, अमदावाद, मुंबई, बड़ौदा, पाटण वगैरह स्थलों पर जाकर वे निःसहाय, दुःखी लोगों के मददगार बने। दुःखियों के दुःख दूर करने, उन्हें नये सिरे से जिंदगी शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने एवं उन्हें जीवनोपयोगी वस्तुएँ दिलाने में उन्होंने अपनी जरा भी परवाह नहीं की।


महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, राजस्थान के राजाओं एवं काँग्रेस के आगेवानों के साथ उनका खूब अच्छा संबंध था। पहले से ही पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज उन लोगों के पूजनीय एवं आदरणीय बन गये थे अतः वे लोग भी सिंध से आये हुए हिन्दुओं के लिए सहायक बने। पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज राजस्थान, गुजरात, उत्तर भारत एवं जहाँ-जहाँ सिंध तथा बलूचिस्तान के हिन्दू सिक्ख बसे थे वहाँ-वहाँ जाकर उन लोगों के साथ बैठकर सारी जानकारी लेते थे एवं जरूरत के मुताबिक उन लोगों को मकान, कपड़े, पैसे, नौकरी एवं अन्य जीवनोपयोगी वस्तओं की व्यवस्था करवा देते थे।

 

शायद सिंधी अपना धर्म न भूल बैठें एवं अपनी संस्कृति को न छोड़ दें, इसलिए पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज बारंबार धर्म के अनुसार जीवन जीने का उपदेश देते। आलस्य छोड़कर, पुरुषार्थी बनने का, अपनी अक्ल-होशियारी से स्वावलंबी बनने का एवं उन्नत जीवन बनाने का मार्गदर्शन देते। भीख माँगकर रहने या सरकार के भरोसे रहने की जगह पर स्वाश्रयी बनकर लोगों को नौकरी-धंधा करने की सलाह देते। किसी को नौकरी, किसी को खेती-बाड़ी तो किसी को धंधा करने का प्रोत्साहन देते। कई जगहों पर बच्चों के लिए स्कूल भी बनवा देते। लोगों के जीवन को उन्नत बनाने के लिए केवल सत्संग की भाषा ही नहीं, वरन् वीरता, सदाचार, संयम, निर्भयता जैसे सदगुणों को बढ़ाने का भी संकेत करते। इस विषय की धार्मिक पुस्तकें सिंधी लोगों में बाँटते। उस समय उन्होंने स्वामी श्री रामतीर्थ के प्रमुख शिष्य नारायण स्वामी की लिखी हुई पुस्तक 'उन्नति के लिए दुःख की जरूरत' को सिंधी भाषा में छपवाकर, उसे सिंधी लोगों में बाँटकर लोगों के मनोबल एवं आत्मबल को जागृत करते।


इस प्रकार पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज के अथक परिश्रम एवं करूणा-कृपा के फलस्वरूप सिंधी लोग पुरुषार्थी बनकर, अपने पैरों पर खड़े रहकर, प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए, इज्जत एवं स्वाभिमान से रहने लगे। आज सिंधी लोग भारत एवं विदेशों के


ने-कोने में रहकर मान-प्रतिष्ठा एवं समाज में उच्च स्थान रखते हैं। यह पूरा शानदार गौरव, प्रेम एवं करूणा की साक्षात् प्रतिमास्वरूप पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज को जाता है ऐसा कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं है।


पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज को हमेशा यही फिक्र रहती कि अपने देशवासियों को किस प्रकार सुखी एवं उन्नत बनाऊँ? इसके लिए उन्होंने बहुत मेहनत करके मकानों के साथ स्कूलें, रात्रि पाठशालाएँ, पुस्तकालय एवं व्यायामशालाएँ स्थापित करवायीं। जहाँ-जहाँ वे जाते वहाँ-वहाँ कसरत सिखाते। शरीर स्वस्थ रखने के लिए यौगिक क्रियाओं के साथ प्राकृतिक उपचार बताते। यदि कोई बीमार व्यक्ति उनके पास जाता तो उसे दवा तो नाममात्र की देते, बाकी तो उनके आशीर्वाद से ही सब अच्छे हो जाते। जब राह भूले नवयुवान अपने यौवन का नाश करके उनके पास मदद माँगते तब वे उन्हें सत्संग सुनाते, प्राचीन भक्तों एवं वीर पुरुषों का वार्ताएँ कहते। उन लोगों को कसरत एवं यौगिक क्रियाओं के साथ प्राकृतिक इलाज बताते। सदाचारी बनने के लिए पुस्तकें भी देते। उन्होंने ऐसे हजारों नवयुवानों का जीवन स्नेह की छाया एवं उच्च मार्गदर्शन देकर सुधारा था।


सिंध से अपना घर-बार, जमीन-जागीर खोकर जो लोग भारत में स्थायी हुए थे उनके लिए पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज का उद्देश्य था उन लोगों के धर्म, संस्कृति, संस्कार एवं इज्जत की रक्षा करें।


आपको ये भी बता दें कि ऐसे महान संत के शिष्य संत आशारामजी बापू थे, पूज्य लीलाशाहजी बापू ने देश, धर्म व संस्कृति और समाज उत्थान के कार्य करने के लिए आज्ञा दी और वे उसी अनुसार पुरजोर से कार्य कर रहे थे पर राष्ट्र विरोधी ताकते ने उनको झूठे केस में फंसाकर जेल भेज दिया, अब देखते हैं उनको न्याय कब मिलता हैं।


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जानिए महिलाओं कौन से अत्याचार से त्राहित है? क्या कर रही है मांग ?

 

04 अप्रैल 2021

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भारत मे बोला जाता है कानून के हाथ लंबे होते है और कानून सबके लिए समान होता है लेकिन कई बार इससे विपरीत होता है ये हमने देखा है निर्दोष को जेल हो जाती है और कानून द्वारा निर्दोष को जेल भेजा जाता है और सालों से उनको जमानत हासिल नही हो पाती है वही दूसरी ओर बड़े-बड़े अपराधियों को बेल मिल जाती है पर एक निर्दोष को जमानत तक नही मिल पाती है ऐसे कइ उदाहर भी हमारे देश में है।



ऐसे ही एक उदाहरण है हिंदू संत आशारामजी बापू, उनके सत्संग-मार्गदर्शन से देश-विदेश की लाखों-करोडों महिलाओं का जीवन उन्नत हुआ है। बापू आशारामजी के अतुलनीय देश व समाजोत्थान के कार्यों व उनके उज्ज्वल, महान चरित्र को देखते हुए और उनके ऊपर हो रहे अत्याचारों से त्राहित महिलाओं ने उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं। ‘महिला उत्थान मंडल’ व विभिन्न महिला संगठनों द्वारा देशभर में अनेकानेक स्थानों पर राष्ट्रपति के नाम संबंधित अधिकारियों को ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं । कई स्थानों पर धरना-प्रदर्शनों, ‘संत एवं संस्कृति रक्षा यात्राओं’ तथा जगह-जगह ‘संत एवं संस्कृति रक्षा संकल्प कार्यक्रमों’ का आयोजन प्रारम्भ हो गया है । देश के कई महिला संगठन ‘महिला उत्थान मंडल’ की माँग के समर्थन में उतरते जा रहे हैं एवं बापू आशारामजी की रिहाई की माँग को बुलंद कर रहे हैं ।

https://youtu.be/b3Xp90AJH74


आज ट्वीटर पर 2 टॉप में ट्रेड चल रहे थे 

#त्राहित_महिलाओं_की_पुकार और

Women Stand For Bapuji

इन हैशटेग जरिये महिलाएं बता रही थी कि

हिंदु संत आशारामजी बापू की उम्र 85 साल हो गई है, वे 8 साल से जेल में है उनको निर्दोष होने व षडयंत्र के तहत फसाने के कई प्रमाण भी है फिर भी उसको एक दिन भी जमानत नही मिलना एक बड़ा अन्याय ही है, कानून में लिखा है कि 100 दोषी भले छूट जाए पर एक निर्दोष को सजा नही मिलनी चाहिए लेकिन यहाँ विपरत हो रहा है उसको आहत होकर महिलाओं ने सोशल मीडिया पर भी आवाज बुलंद किया था।


महिला उत्थान मंडल के ट्वीटर हैन्डल से लिखा गया कि कानून के भयंकर दुरुपयोग के खिलाफ उठाई नारियों ने आवाज़। 

POCSO का दुरुपयोग हमें नहीं स्वीकार❗️

#त्राहित_महिलाओं_की_पुकार 

Innocent Sant Shri Asharamji Bapu की शीघ्र हो रिहाई।

Women Stand For Bapuji 

https://t.co/cqc1L3FgXY


दूसरी एक ट्वीट में बताया कि #त्राहित_महिलाओं_की_पुकार पवित्र Sant Shri Asharamji Bapu ने हमेशा 'नारी तू नारायणी है', इसका ज्ञान सभी महिलाओं को समझाया है। महिला उत्थान मंडल की प्रेरणा दे कर नारियों को कल्याण का मार्ग बतलाया है


करोडो Women Stand For Bapuji बात सिद्ध करती है कि #Bapuji के साथ अन्याय हो रहा है https://t.co/jub56azDZU


इस तरीके हजारों ट्वीट हुई उसके जरिये बताया जा रहा था कि बापू आशारामजी ने धर्मांतरण के खिलाफ व राष्ट्र व समाज व संस्कृति के उत्थान के अनेक कार्य किये इसलिए उनको षडयंत्र के तहत जेल भेजा गया है अब उनको शीघ्र रिहा करना चाहिए।


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हिंदुओं की आबादी 34% तो मुस्लिम आबादी 73% से बढ़ोतरी हो रही है

03 अप्रैल 2021

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आज दुनिया सिकुड़ती और आबादी बढ़ती ही जा रही है, लोग जनसंख्या विस्फोट से त्रस्त हैं, इसके कारण समस्याएँ खड़ी होने लगी हैं। लेकिन कुछ हैं, जो आँखें मूँदे हुए हैं। इस्लामिक जगत पूरे विश्व में अन्य समुदायों की तुलना में 150% ज्यादा प्रजनन कर रहा है। यह हम नहीं, दुनिया के सबसे ‘लिबरल’ देश अमेरिका का fact-tank प्यू रिसर्च सेंटर कह रहा है। अपनी इस रिपोर्ट में उसने चेतावनी दी है कि जहाँ दुनिया के बाकी बड़े मज़हब महज 11% (स्थानीय उपासना पद्धतियाँ) से लेकर 34-35% (ईसाई और हिंदुत्व) तक की दर से बढ़ रहे हैं, और बौद्ध मतावलंबी तो 0.3% से घट रहे हैं, वहीं इस्लाम 73% से ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है- वह भी ज्यादा बच्चे पैदा करके। दुनिया की जरूरतों के लिए वैसे ही कम पड़ रहे संसाधनों के बीच यह खबर अत्यंत निराशाजनक है।



★ 2050 तक 9 अरब हो जाएगी दुनिया की आबादी


पयू के शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि दुनिया की आबादी आने वाले 30 वर्षों में बढ़ कर 930 करोड़ के करीब होगी। यह 2010 के आँकड़े से 35% अधिक होगा।


रिपोर्ट के आँकड़ों पर नज़र डालें तो कुछ मज़हब (यहूदी, बहाई आदि) दुनिया की औसत आबादी वृद्धि दर की आधी दर से अपनी आबादी बढ़ा रहे हैं। जबकि हिन्दू-ईसाई की आबादी औसत दर से ही बढ़ रही है। इसके उलट या यूँ कहें कि चिंताजनक स्थिति मुस्लिम समुदाय की है, जिनकी आबादी औसत दर की दोगुनी तेजी से बढ़ रही है।


परतिशत के अलावा संख्या की बात करें तो भी ईसाई साल 2010 के 216 करोड़ से बढ़कर 2050 में 290 करोड़ हो जाएँगे। वहीं हिन्दू 2010 में 103 करोड़ से 2050 में 138 करोड़ तक पहुँचेंगे। जबकि मुस्लिम 2010 में महज 159 करोड़ की जनसंख्या के मुकाबले 2050 में 276 करोड़ के आस-पास होंगे।


★ क्या दुनिया इतनी आबादी झेल पाएगी?


पयू के अनुसार दुनिया की औसत fertility rate 2.5 के करीब है। fertility rate का अर्थ है किसी भी समुदाय या समूह में प्रति महिला कितने बच्चे पैदा होते हैं। दुनिया की आबादी स्थिर रखने के लिए ज्यादातर समाज शास्त्री मानते हैं कि आदर्श स्थिति में fertility rate 2.1 (2 के हल्का सा ऊपर) होना चाहिए- ताकि वे दो बच्चे आने वाले समय में अपने माँ-बाप की मृत्यु के उपरांत उनका स्थान लें और लम्बे समय में दुनिया पर अतिरिक्त बोझ न पड़े।

पूरे विश्व की औसत fertility rate 2.5 है। जो बढ़ती हुई आबादी को देखते हुए आदर्श दर से तो ज्यादा है, पर चिंताजनक स्तर पर नहीं है। यदि जनजागरण अभियान चला कर लोगों को बढ़ी आबादी के नुकसान के बारे में बताया जाए, और कुछ प्रतिशत युगलों (खासकर महिलाओं) को बच्चे पैदा न करने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाए, तो कुछ दशकों में 2.5 को 2.1 के पास तक खींच सकने की उम्मीद की जा सकती है। हिन्दुओं की fertility rate 2.4 है, यानी हिन्दू आबादी रोकथाम की ओर अग्रसर दिख रही है।

अब इस्लाम की ओर देखें तो मुस्लिमों की fertility rate 3.1 है- यानी दुनिया की जरूरत का 150%!! मतलब हर एक मुस्लिम युगल (पति-पत्नी) अपने बाद दो के बजाय तीन इंसान का बोझ दुनिया को दे जाता है।


(यहाँ गणितीय सरलता के लिए हम मुस्लिमों के बहु-विवाह सिद्धांत, जिसके अंतर्गत हर मुस्लिम पुरुष को इस्लाम 4 बीवियाँ तक रखने की इजाज़त देता है, को शामिल नहीं कर रहे। अगर करते तो गणितीय तौर पर यह आँकड़ा कहता कि एक मुस्लिम पुरुष और उसकी 4 पत्नियों की मृत्यु के बाद औसत तौर पर उनके 12 वंशज होते यानी मरे 5 और आए 12)

https://twitter.com/OpIndia_in/status/1378169129157468164?s=19


हिंदुओं के लिए ये चेतावनी है अगर नहीं संभले तो क्या हाल होगा इन आंकड़ों से देख सकते हैं, हर हिंदू को कम से कम 4 बच्चे तो पैदा करना चाहिए नहीं तो आगे जाकर अस्तित्व बचाना ही मुश्किल हो जायेगा।


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Thursday, February 10, 2022

जिहाद फैलाने वाली कुरान की आयतें हटाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर

02 अप्रैल 2021

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शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन सैयद वसीम रिजवी द्वारा उच्चतम न्यायालय में दी गई याचिका चर्चा में है। इसमें कुरान से 26 आयतें हटाने का निवेदन है। रिजवी के अनुसार इनका इस्तेमाल ‘आतंकवाद, हिंसा और जिहाद फैलाने में होता है।’ रिजवी के अनुसार, प्रोफेट मुहम्मद की मृत्यु के बाद पहले तीन खलीफा ने कुरान संकलित करने में कई आयतें जोड़ दीं, ताकि उन्हें ‘युद्ध द्वारा इस्लाम के विस्तार में सहूलियत हो।’ यह चिंता पहली बार या भारत में ही नहीं है। गत वर्षों में तुर्की, सऊदी अरब और इराक में भी कुरान को लेकर संशोधन-सुधार की मांगें उठी थीं। तुर्की के अधिकारियों को सूचना मिली कि सामान्य स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र कुरान पढ़कर इस्लाम से उदासीन होने लगते हैं। सऊदी अरब में सुझाव आया कि कुरान की कुछ बातों की जांच-परख कर समयानुकूल संशोधन किया जाए।



●•• कुरान का ‘मानवीय हस्तक्षेप’

सऊदी लेखक अहमद हाशिम के अनुसार प्रचलित कुरान खलीफा उस्मान द्वारा तैयार कराए जाने के कारण उसके निर्माण में ‘मानवीय हस्तक्षेप’ हो चुका है, अत: उसे अपरिवर्तनीय मानना अनुपयुक्त है। यह भी तथ्य है कि कुछ वर्ष पहले ऑस्ट्रिया में कुरान का सार्वजनिक रूप से वितरण प्रतिबंधित कर दिया गया था। स्विट्जरलैंड के सुरक्षा विभाग ने भी यही अनुशंसा की थी। चीन में मुसलमानों को कुरान से विमुख करने की कोशिश होती है। रूस की एक अदालत ने कुरान के एक विशेष अनुवाद को प्रतिबंधित किया था। अनेक जाने-माने मुस्लिम लेखक-लेखिकाओं ने भी वैसी चिंता जताई है, जैसी रिजवी ने प्रकट की है। यही काम अतीत में यूरोपीय नेताओं और विद्वानों द्वारा भी किया जा चुका है।

●•• इस्लामिक स्टेट के झंडे पर लिखे शब्द कुरान से लिए गए 

इराक में अमेरिकी कर्मचारी निक बर्ग का कत्ल करने वालों ने भी कुरान का हवाला दिया था। यूरोप में जिहादी प्रदर्शन करने वाले कुरान की आयतों का उल्लेख करते हैं। जुलाई 2016 में बांग्लादेश में जिहादियों ने 20 विदेशियों का गला रेत कर कत्ल किया था, यह कहते हुए कि जो कुरान नहीं जानते, वे कत्ल होने लायक हैं। इस्लामिक स्टेट के झंडे पर लिखे शब्द कुरान से लिए गए हैं। वह कुरान और सुन्ना के ही हिसाब से चलने का दावा करता है।

●•• भारत में कुरान को लेकर दो मुकदमे चल चुके हैं; पहला 1985 में, दूसरा 1986 में

भारत में कुरान को लेकर दो मुकदमे चल चुके हैं। 1985 में कलकत्ता उच्च न्यायालय में चांदमल चोपड़ा ने एक याचिका दायर की थी। इसमें कुरान से कुछ उदाहरण का हवाला देकर हिंसा और सामाजिक विद्वेष फैलने की शिकायत की गई थी। उस याचिका को न्यायमूर्ति बिमल चंद्र बसाक ने यह कहकर खारिज किया था कि किसी समुदाय द्वारा पवित्र मानी जाने वाली किताब पर न्यायालय फैसला नहीं दे सकता। इस मुकदमे का विवरण सीताराम गोयल की पुस्तक ‘कलकत्ता कुरान पिटीशन’ में है। दूसरी बार, कुरान का मामला 1986 में दिल्ली में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट जेड एस लोहाट की अदालत में आया। इंद्रसेन शर्मा नामक एक व्यक्ति ने कुरान की 24 आयतें उद्धृत करते हुए पोस्टर प्रकाशित किया। उसमें लिखा था कि ‘ऐसी अनेक आयतें कुरान में हैं जो दुश्मनी, विद्वेष, हिंसा और घृणा आदि को बढ़ावा देती हैं। अदालत से ऐसी आयतों को हटाने की मांग की गई। इस पोस्टर के प्रकाशन के बाद दिल्ली पुलिस ने इंद्रसेन को गिरफ्तार कर लिया। दंड संहिता की धारा 153 ए और 295 ए के तहत उनकी पेशी हुई। मजिस्ट्रेट ने पाया कि पोस्टर वाली आयतें एक बड़े इस्लामी प्रकाशन से हू-ब-हू उद्धृत थीं। मजिस्ट्रेट ने पोस्टर लगाने को सामान्य विचार माना, जिसे व्यक्त करना अपराधिक मामला नहीं। यह फैसला 31 जुलाई 1986 को दिया गया था। नोट करने की बात है कि इस फैसले के विरुद्ध कोई अपील नहीं हुई।

●•• तीसरी बार सुप्रीम कोर्ट में कुरान पर याचिका मुस्लिम नेता ने की दायर

अब तीसरी बार सुप्रीम कोर्ट में कुरान पर याचिका आई है। इस बार एक मुस्लिम नेता ने इसे दायर किया है। शिकायत वही है कि कुरान की कई आयतें सामाजिक सद्भाव को चोट पहुंचाती हैं। पिछले दोनों मामलों में न्यायाधीशों ने कुरान के प्रति सम्मान दिखाते हुए भी ऐसे आरोप खारिज करने से इन्कार किया था। बीते तीन दशकों में दुनिया भर का भरपूर व्यावहारिक अनुभव भी जुड़ गया है। अनेक मुस्लिम देशों में भी वह चिंता व्यक्त हो रही है, जो रिजवी ने जताई है। इस वैश्विक अनुभव के मद्देनजर रिजवी के आरोप की पक्की परख हो सकती है।

●•• सदियों पुरानी किसी किताब को यथावत रहने का अधिकार है

हालांकि प्रसिद्ध पुस्तकों को संशोधित या प्रतिबंधित करना अनुचित है। जाने-माने चिंतक रामस्वरूप के अनुसार, ‘सदियों पुरानी किसी किताब को यथावत रहने का अधिकार है। जो किसी किताब से असहमत हैं, वे अपनी बात लिखें। नए नियम और प्रस्ताव दें, वह उपयुक्त होगा।’ अत: पुस्तकों की खुली समालोचना होनी चाहिए, ताकि अंधविश्वास और सत्य का अंतर साफ रहे। कुरान से कुछ आयतों को हटा या संशोधित कर देना जरूरी नहीं है। केवल यह मान लिया जाए कि ऐसी चीजें उसमें हैं, जो हानिकारक संदेश देती हैं। मुस्लिम समाज द्वारा यह स्वीकार कर लेना वही बड़ा कार्य होगा, जो अपनी पवित्र पुस्तकों के बारे में यहूदी, ईसाई लोग पहले कर चुके हैं।


●•• बाइबल में कई बातें हिंसात्मक हैं

इस पर अमेरिकी बिशप और हार्वर्ड में व्याख्याता रहे जॉन शेल्बी स्पॉन्ग ने ‘द सिंस ऑफ स्क्रिप्चर’ (पवित्र पुस्तक के पाप) नामक पुस्तक ही लिखी है। उन्होंने विश्लेषण किया कि बाइबल विशेषकर ओल्ड टेस्टामेंट में कई बातें हिंसात्मक हैं। यदि मुस्लिम भी ऐसी ही कोई पहल करें तो यह एक बड़ा रचनात्मक कदम होगा। इससे दुनिया समझेगी कि मुसलमान भी विवेकपूर्ण ढंग से सोच-विचार कर सकते हैं। इससे उनका दूसरे समुदायों के साथ विश्वास का पुल बनना शुरू हो सकेगा।

- शंकर शरण साभार -दैनिक जागरण

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जानिये क्या शराब अधिक बिकने से देश की आय बढ़ती है या नुकसान होता है?

01 अप्रैल 2021

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दिल्ली सरकार ने शराब पीने की आयु आधिकारिक रूप से घटाकर 25 से 21 करने का निर्णय लिया है। देश के किसी भी प्रान्त में चाहे किसी की भी सरकार हो। शराब पीने को प्रोत्साहन देना गलत है। सरकार के लिए यह आय का प्रमुख साधन है परन्तु निष्पक्षता से अगर सोचा जाये तो यह आय नहीं बर्बादी का साधन है।  कुछ लोग कुतर्क करेंगे कि थोड़ी सी पीने में क्या हानि है। लेकिन आज जो थोड़ी सी पी रहा है। वही कल दिन-रात पीने वाला शराबी बनेगा। आरम्भ में चोर छोटी चोरी ही करता है, अपराधी छोटा अपराध ही करता है, अधिकारी छोटी रिश्वत ही लेता है। क्या इन सभी को आप प्रोत्साहन देते हैं? नहीं। तो फिर एक युवा को शराबी बनाने के लिए प्रोत्साहित क्यों किया जा रहा है?



शराब पीने से कितनी हानि?

1★ स्वास्थ्य हानि - शराब पीने से होने शारीरिक हानियों के विषय में सब परिचित है। अनेक लोग अपने जवानी में अस्पतालों के चक्कर शराब पीने से लीवर ख़राब होने के कारण लगाते देखे जाते हैं। अगर शराब जैसा नशा नहीं होता तो इन शराबियों के परिवार कितने सुखी होते। 

2★ सामाजिक हानि- जिस परिवार में शराबी आदमी होता है। उस परिवार का नाश हो जाता है। उसकी पत्नी अपना सम्मान खो देती है। उसकी संतान अनपढ़ या अशिक्षित रह जाती है। घरेलू हिंसा, शारीरिक शोषण आदि आम बात है। शराबी खुद तो बर्बाद होता ही है। उसकी संतान भी बर्बाद हो जाती है। इससे समाज की कितनी हानि होती है। अपराध कितने बढ़ते हैं। राष्ट्र के लिए उत्तम नागरिक बनने के स्थान पर अपराधी जन्म लेते हैं।  इस पर कोई चिंतन नहीं होता। शासक के लिए प्रजा संतान के समान होती है। क्या कोई अपनी संतान को ऐसे गर्त में केवल टैक्स के लिए धकेलता है? 

3★ सरकार की आय बढ़ाने का दावा सदा खोखला दिखता है। यह कुछ ऐसा है आप पहले गड्डा खोदते है। फिर उसमें लोगों को गिरने देते है। फिर उसे बचाने के लिए रस्सी, सीढ़ी और क्रेन खरीदते है। ताकि निकाल सके। शराबी व्यक्ति के कारण अपराध बढ़ते हैं। उसके लिए आपको पुलिस, कोर्ट, जेल आदि को विस्तार देना पड़ता है।  स्वास्थ्य सेवाओं की अतिरिक्त आवश्यकता पढ़ती है। उसके लिए आपको अस्पताल, डॉक्टर आदि रखने पड़ते है। सड़कों पर दुर्घटना अधिक होती है। उससे हानि होती है वो अलग।  इस सबसे क्या सरकार की आय बढ़ती हैं? नहीं अपितु खर्च बढ़ता है। यह साधारण सा तर्क किसी को क्यों समझ नहीं आता।  

4★ भ्रष्टाचार को बढ़ावा। इस पर टिप्पणी करने की आवश्यकता ही नहीं है। सरकारी या गैर सरकारी क्षेत्र में यह प्रचलित हो चला है कि जो काम विनती से नहीं बनता।  वह बोतल से बन जाता है। यह गिरावट का लक्षण है। क्या पहले शराबी बनाने और फिर भ्रष्टाचारी बनाने में परोक्ष रूप से यह सरकार का समर्थन नहीं हैं। 

5★ धार्मिक कारण। धर्म सदाचार रूपी आचरण का नाम है। शराबी आदमी सदाचारी नहीं अपितु दुराचारी हो जाता है। इसीलिए वेदों में किसी के नशे का निषेध है। 

वद मन्त्रों के उदाहरण देखिये-

1★ ऋग्वेद 10/5/6 के अनुसार वेद में मनुष्य को सात प्रकार की मर्यादा का पालन करने का निर्देश दिया गया हैं।   यह सात अमर्यादा  हैं- चोरी, व्यभिचार, ब्रह्म हत्या, गर्भपात, असत्य भाषण, बार बार बुरा कर्म करना और शराब पीना।

2★ ऋग्वेद 8/2/12  सुरापान से दुर्मद उत्पन्न होते हैं। सुरापान बल नाशक तथा बुद्धि कुण्ठित करने वाला है। 

3★ ऋग्वेद 7/86/6 के अनुसार सुरा और जुए से व्यक्ति अधर्म में प्रवृत होता है। 

4★ अथर्ववेद 6/70/1 के अनुसार मांस, शराब और जुआ ये तीनों निंदनीय और वर्जित हैं।

5★ मनुस्मृति का सन्दर्भ देकर स्वामी दयानंद किसी भी प्रकार के नशे से बुद्धि का नाश होना लिखते हैं।

वर्जयेन्मधु मानसं च – मनु जैसे अनेक प्रकार के मद्य, गांजा, भांग, अफीम आदि – बुद्धिं लुम्पति यद् द्रव्यम मद्कारी तदुच्यते।। जो-जो बुद्धि का नाश करने वाले पदार्थ हैं। उनका सेवन कभी न करें।

इस विषय में बहुत विस्तार से न लिखकर यही है कि शराब पर रोक की तुरंत आवश्यकता है। शराबबंदी पूरे देश में लागु होनी चाहिये। ताकि आने वाली पीढ़ी का भविष्य बचाया जा सके। -डॉ. विवेक आर्य


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