Friday, February 11, 2022

कोरोना वायरस खत्म करने का एक अमोघ साधन...

23 अप्रैल 2021

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कोरोना वायरस का प्रकोप हुआ है तबसे मीडिया, सोशल मीडिया में उसीकी खबरें चलाई जाती है। लेकिन क्या कोरोना वायरस से भी अनंतगुना शक्तिशाली ईश्वर नहीं है? कोरोना से सावधानी रखनी जरूरी है लेकिन 24 घन्टे वही खबर दिखाकर लोगों को भयभीत किया जाता है उसकी जगह सृष्टिकर्ता ईश्वर की खबरें दिखाई जाएं और ईश्वर के नाम का गुणगान किया जाए, प्रार्थनाएं की जायें तो बहुत लाभ होगा और कोरोना रूपी राक्षस का भी नाश होगा।



भगवान सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान हैं, समस्त प्राणियों के हृदय में विराजमान आत्मा हैं। उनकी लीला अमोघ है। उनकी शक्ति और उनका पराक्रम अनन्त है।


🚩महर्षि व्यासजी ने 'श्रीमद्भागवत' के माहात्म्य तथा  प्रथम स्कंध के प्रथम अध्याय के प्रारम्भ में मंगलाचरण के रुप में भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति इस प्रकार से की हैः


सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे।

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः।।


'सच्चिदानंद भगवान श्रीकृष्ण को हम नमस्कार करते हैं, जो जगत की उत्पत्ति, स्थिति एवं प्रलय के हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक – इन तीनों प्रकार के तापों का नाश करने वाले हैं।'

(श्रीमद्भागवत मा. 1.1)


★ भगवान की प्रार्थना में कितना बल है ये जान लीजिए...


वह परमात्मा कैसा समर्थ है! वह ‘कर्तुं अकर्तुं अन्यथाकर्तुं समर्थः’ है। असम्भव भी उसके लिए सम्भव है।


1970 की एक घटना अमेरिका के विज्ञान जगत में चिरस्मरणीय रहेगी।

अमेरिका ने 11 अप्रैल, 1970 को अपोलो-13 नामक अंतिरक्षयान चन्द्रमा पर भेजा। दो दिन बाद वह चन्द्रमा पर पहुँचा और जैसे ही कार्यरत हुआ कि उसके प्रथम युनिट ऑडीसी (सी.एस.एम.) के ऑक्सीजन की टंकी में विद्युत तार में स्पार्किंग होने के कारण अचानक विस्फोट हुआ जिससे युनिट में ऑक्सीजन खत्म हो गयी और विद्युत आपूर्ति बंद हो गयी।


उस युनिट में तीन अंतरिक्षयात्री थेः जेम्स ए. लोवेल, जॉन एल. स्वीगर्ट और फ्रेड वोलेस हेईज। इन अंतरिक्षयात्रियों ने विस्फोट होने पर सी.एस.एम. युनिट की सब प्रणालियाँ बंद कर दीं एवं वे तीनों उस युनिट को छोड़कर एक्वेरियस (एल.एम.) युनिट में चले गये।


अब असीम अंतरिक्ष में केवल एल.एम. युनिट ही उनके लिए लाइफ बोट के समान था। परंतु बाहर की प्रचंड गर्मी से रक्षा करने के लिए उस युनिट में गर्मी रक्षा कवच नहीं था। अतः पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रविष्ट होकर पुनः पृथ्वी पर वापस लौटने में उसका उपयोग कर सकना सम्भव नहीं था।

पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार पृथ्वी पर वापस लौटने में अभी चार दिन बाकी थे। इतना लम्बा समय चले उतना ऑक्सीजन एवं पानी का संग्रह नहीं बचा था। इसके अतिरिक्त इस युनिट के अंदर बर्फ की तरह जमा दे ऐसा ठंडा वातावरण एवं अत्यधिक कार्बन डाईऑक्साइड था। जीवन बचने की कोई गुंजाइश नहीं थी।

अंतरिक्षयात्री पृथ्वी के नियंत्रणकक्ष के निरंतर सम्पर्क में थे। उन्होंने कहाः “अंतरिक्षयान में धमाका हुआ है… अब हम गये…”

लाखों मील ऊँचाई पर अंतरिक्ष में मानवीय सहायता पहुँचाना सम्भव नहीं था। अंतरिक्षयान गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से भी ऊपर था। इस विकट परिस्थिति में सब निःसहाय हो गये। कोई मानवीय ताकत अंतरिक्षयात्रियों को सहायता पहुँचा सके- यह सम्भव नहीं था।

नीचे नियंत्रण कक्ष से कहा गयाः

“अब हम तो कुछ नहीं कर सकते। हम केवल प्रार्थना कर सकते हैं। जिसके हाथों में यह सारी सृष्टि है उस ईश्वर से हम केवल प्रार्थना कर सकते हैं... May God help you! We too shall pray to God. God will help you.” और देशवासियों ने भी प्रार्थना की।

युवान अंतरिक्षयात्रियों ने हिम्मत की। उन्होंने ईश्वर के भरोसे पर एक साहस किया। चंद्र पर अवरोहण करने के लिए एल.एम. युनिट के जिस इन्जन का उपयोग करना था उस इन्जन की गति एवं दिशा बदलकर एवं स्वयं गर्मी-रक्षक कवचरहित उस एल.एम. युनिट में बैठकर अपोलो – 13 को पृथ्वी की ओर मोड़ दिया। …और आश्चर्य ! तमाम जीवनघातक जोखिमों से पार होकर अंतरिक्षयान ने सही सलामत 17 अप्रैल, 1970 के दिन प्रशान्त महासागर में सफल अवरोहण किया।


उन अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने बाद में वर्णन करते हुए कहाः “अंतरिक्ष में लाखों मील दूर से एवं एल.एम. जैसे गर्मी-रक्षक कवच से रहित युनिट में बैठकर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश करना और प्रचण्ड गर्मी से बच जाना, हम तीनों का जीवित रहना असम्भव था… किसी भी मनुष्य का जीवित रहना असम्भव था। यह तो आप सबकी प्रार्थना ने काम किया है एवं अदृश्य सत्ता ने ही हमें जीवनदान दिया है।”

सष्टि में चाहे कितनी भी उथल-पुथल मच जाय लेकिन जब अदृश्य सत्ता किसी की रक्षा करना चाहती है तो वातावरण में कैसी भी व्यवस्था करके उसकी रक्षा कर देती है। ऐसे तो कई उदाहरण हैं।


★ प्रार्थना का प्रभाव


सन् 1956 में मद्रास इलाके में अकाल पड़ा। पीने का पानी मिलना भी दुर्लभ हो गया।


वहाँ का तालाब 'रेड स्टोन लेक' भी सूख गया। लोग त्राहिमाम् पुकार उठे। उस समय के मुख्यमंत्री श्री राजगोपालाचारी ने धार्मिक जनता से अपील की कि 'सभी लोग दरिया के किनारे एकत्रित होकर प्रार्थना करें।' सभी समुद्र तट पर एकत्रित हुए। किसी ने जप किया तो किसी ने गीता का पाठ, किसी ने रामायण की चौपाइयाँ गुंजायी तो किसी ने अपनी भावना के अनुसार अपने इष्टदेव से प्रार्थना की। मुख्यमंत्री ने सच्चे हृदय से, गदगद कंठ से वरुणदेव, इन्द्रदेव और सबमें बसे हुए आदिनारायण विष्णुदेव की प्रार्थना की। लोग प्रार्थना करके शाम को घर पहुँचे। वर्षा का मौसम तो कब का बीत चुका था। बारिश का कोई नामोनिशान नहीं दिखाई दे रहा था। 'आकाश मे बादल तो रोज आते और चले जाते हैं।'– ऐसा सोचते-सोचते सब लोग सो गये। रात को दो बजे मूसलाधार बरसात ऐसी बरसी, ऐसी बरसी कि 'रेड स्टोन लेक' पानी से छलक उठा। बारिश तो चलती ही रही। यहाँ तक कि मद्रास सरकार को शहर की सड़कों पर नावें चलानी पड़ीं।


दढ़ विश्वास, शुद्ध भाव, भगवन्नाम, भगवत्प्रार्थना छोटे-से-छोटे व्यक्ति को भी उन्नत करने में सक्षम है।


आज से हमें कोरोना रूपी राक्षस से सावधान रहना है पर भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। हम सर्वसमर्थ ईश्वर का नाम लेंगे, उनकी चर्चा, उनका ध्यान और उनकी प्रार्थना करेंगे तो कोरोना तो दूर होगा, साथ में हमारी चिंताएं, विध्न-बाधायें दूर होंगी और देश में सुंदर वातावरण बनेगा। मीडिया के बंधुओं से भी अपील है कि टीआरपी के लिए कोरोना की अधिक खबरें नहीं चलाकर ईश्वर के सामर्थ्यवाली खबरें चलाकर देश में सुखमय वातावरण बनाने में सहयोग देना चाहिए।


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ईश्वर और हिंदू संस्कृति की उपेक्षा करनेवाले सब समझ गए...

22 अप्रैल 2021

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सनातन हिंदू धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है पर हिन्दू संस्कृति को मिटाने के लिए अनेक षडयंत्र चले और चल रहे हैं; साथ ही हिंदू संस्कृति, साधु-संत एवं देवी-देवताओं का मजाक उड़ाया जाने लगा था, दूसरी बात दुनियाभर में काफी लोग नास्तिक बन गए थे और ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानते थे। ये लोग अपने को ही सर्वश्रेष्ठ मानते थे और पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करने लगे थे, लेकिन वर्तमान समय में कोरोना वायरस ने एक झटके में बता दिया कि सृष्टिकर्ता ईश्वर ही है और उनकी बनाई हुई सनातन हिंदू संस्कृति महान है।



पहले...


■ जब हिन्दू एक दूसरे को हाथ जोड़ कर नमस्ते कर रहे थे तो दुनिया उनपर हंस रही थी।


■ जब हिन्दू हाथ पैर धोकर घर में घुसते था तो दुनिया उनपर हंसती थी।


■ जब हिन्दू गाय माता आदि पशुओं की पूजा कर रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू पीपल, तुलसी और जंगलों को पूज रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू मुख्यतः शाकाहार पर बल दे रहे थे तब पूरी दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू योग, प्राणायाम कर रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिंदू शास्त्र और साधु-संतों के बताये अनुसार चल रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू ध्यान-भजन , पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन कर रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू श्मशान और अस्पताल से आकर स्नान करते थे तब दुनिया हंसती थी।


लकिन... ???


अब कोई हिंदू पर नही हंस रहा, बल्कि सब यही अपना रहे हैं।


सच ही कहा गया है सनातन हिन्दू धर्म की जो महानता है वह किसी भी पंथ-मजहब में नहीं है। हिंदू धर्म एक जीवन पद्धति भी है; अभी भी इस बात को जितना जल्दी समझ लें तो अच्छा है।


सबकुछ पालनकर्ता परब्रह्म परमात्मा ईश्वर ही है और उनकी बनाई हुई सनातन हिंदू संस्कृति महान है, क्योंकि यही संस्कृति हमारा जीवन उन्नत, बेहतरीन और सुरक्षित रख सकती है बाकी पाश्चात्य संस्कृति में कोई दम नहीं है। वे हमें सिर्फ चिंता, बीमारियां ही दे सकती है। इसलिए हमें अपनी मूल जड़ सनातन संस्कृति की ओर शीघ्र लौटना चाहिए, तभी सुरक्षित रहेंगे।


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कोरोना से बचने में मदद करता है- पीपल के दो पत्तों का सेवन

21 अप्रैल 2021

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भारतीय संस्कृति इतनी महान है कि इसका वर्णन करना किसी के बस की बात नहीं है और अगर आज हम उसका पालन करते तो कोरोना जैसी महामारी से आसानी से बच जाते। पहले हम पानी नहीं बेचते थे तब कोई बोलता कि पानी भी बिकेगा तब मजाक समझते थे; आज ऑक्सीजन भी बिकने लगा जबकि यह कुदरत ने हमें मुफ्त दिया है लेकिन आज हम इनका इतना दुरुपयोग कर रहे हैं कि पानी व ऑक्सीजन की कमी पड़ रही है। पहले के जमाने में पीपल, तुलसी, बरगद, नीम व बेल आदि के इतने पेड़ होते थे कि भरपूर ऑक्सीजन रहता था व उसके शुद्ध हवा से हम स्वस्थ रहते थे, क्योंकि भोजन तो हम दिन में 1-2 किलो ग्रहण करते हैं पर हवा हम 13 किलो ग्रहण करते हैं; तो जितनी शुद्ध हवा होती है उतना ही व्यक्ति स्वस्थ रहता है। आज फिर से समय आ गया है कि पीपल, तुलसी, नीम आदि के पेड़ चारों तरफ लगाये जायें।



पीपल के पत्तों की महत्ता...


कोरोना की वर्तमान स्थिति में आयुर्वेद से जुड़े सलाहकार रोगियों को शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए नए सुझावों का उपयोग करने के लिए कह रहे हैं। पूरे देश में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। फिर लोग घर पर रहते हैं और कोरोना से बचने के लिए घरेलू नुस्खों का उपयोग करते हैं। अगर आप भी इन टिप्स का इस्तेमाल करेंगे तो आपकी सेहत बेहतर रहेगी। आयुर्वेद के अनुसार हर दिन दो पीपल के पत्तों का सेवन करने से शरीर का ऑक्सीजन स्तर बढ़ेगा।


पीपल के पत्तों में नमी, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, फाइबर, कैल्शियम, आर्सेनिक, तांबा और मैग्नीशियम जैसे तत्व होते हैं। यह आपके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। यदि आप फेफड़ों में सूजन और तनाव महसूस करते हैं, सांस लेने में कठिनाई, सीने में दर्द के साथ खांसी है तो प्रतिदिन पीपल पत्ती का सेवन करने से इन सभी में आपको आराम मिलेगा। 



पीपल के पत्तों से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। 


यदि आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति कोरोना महामारी की अवधि के दौरान अच्छी है, तो यह आपको कोरोना के खिलाफ सुरक्षा प्राप्त करने में मदद करेगा। गिलोय को पीपल के पत्तों के साथ मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करना चाहिए। इससे शरीर में रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है।



बहुत अधिक शराब पीने से आपके लीवर पर असर पड़ सकता है। ऐसे समय में लीवर को स्वस्थ रखने के लिए पीपल का सेवन करना आवश्यक है ताकि लीवर को नुकसान न पहुंच सके। डॉक्टर लीवर की बीमारी वाले लोगों को हर दिन पीपल के पत्ते लेने की सलाह देते हैं। 


अगर आपको कफ की समस्या है तो टेंशन लेने की आवश्यकता नहीं है, पीपल की पत्तियां आपके लिए अच्छा विकल्प हैं; जिससे कि आपको जल्द ही कफ से राहत मिलेगी। पीपल के पत्तों का सूप बनाकर पीने से कफ नष्ट होता है ।

https://www.akilanews.com/Gujarat_news/Detail/17-04-2021/164395


पीपल का वृक्ष दमानाशक, हृदयपोषक, ऋण-आयनों का खजाना, रोगनाशक, आह्लाद व मानसिक प्रसन्नता का खजाना तथा रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ानेवाला है। बुद्धू बालकों तथा हताश-निराश लोगों को भी पीपल के स्पर्श एवं उसकी छाया में बैठने से अमिट स्वास्थ्य-लाभ व पुण्य-लाभ होता है। पीपल की जितनी महिमा गाएं, उतनी कम है।


मनुष्य सोचता था कि हमारा ही अधिकार है- पृथ्वी पर और जल तथा वायु को प्रदूषित कर दिया, इसका परिणाम खुद मनुष्य ही भुगत रहा है। कई शहरों में हवा जहरीली हो गई, ऑक्सीजन की कमी पड़ रही है।


सबसे पहले हमें स्वदेशी पारम्परिक जड़ी बूटियों की पहचान करनी होगी और तुलसी, पीपल, नीम, गिलोय आदि कुदरती वृक्षों और पौधों को लगाना होगा और उसकी औषधियां लगानी होगी जिससे हमारे देश में आ रही अरबों-खरबों रुपयों की दवाई आनी बंद होगी और हमारी दवाइयां विदेशों में निर्यात होंगी। इससे आमदनी बढ़ेगी जिससे देश आत्मनिर्भर बनेगा और कोरोना जैसी महामारी से बचा जा सकेगा।


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भगवान श्री राम की लोकप्रियता इन कारणों से आज भी अमर है !!

20 अप्रैल 2021

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भगवान श्री राम का जन्म त्रेता युग में माना जाता है। धर्मशास्त्रों में, विशेषतः पौराणिक साहित्य में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एक चतुर्युगी में 43,20,000 वर्ष होते हैं, जिनमें कलियुग के 4,32,000 वर्ष तथा द्वापर के 8,64,000 वर्ष होते हैं। श्री रामजी का जन्म त्रेता युग में अर्थात द्वापर युग से पहले हुआ था। चूंकि कलियुग का अभी प्रारंभ ही हुआ है (लगभग 5,100 वर्ष ही बीते हैं) और श्री रामजी का जन्म त्रेता के अंत में हुआ तथा अवतार लेकर धरती पर उनके वर्तमान रहने का समय परंपरागत रूप से 11,000 वर्ष माना गया है। अतः द्वापर युग के 8,64,000 वर्ष + श्री रामजी की वर्तमानता के 11,000 वर्ष + द्वापर युग के अंत से अबतक बीते 5,100 वर्ष= कुल 8,80,100 वर्ष। अतएव परंपरागत रूप से भगवान श्री रामजी का जन्म आज से लगभग 8,80,100 वर्ष पहले माना जाता है।



एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श पिता, आदर्श शिष्य, आदर्श योद्धा और आदर्श राजा के रूप में यदि किसीका नाम लेना हो तो भगवान श्रीरामजी का ही नाम सबकी जुबान पर आता है। इसलिए राम-राज्य की महिमा आज लाखों-लाखों वर्षों के बाद भी गायी जाती है।


भगवान श्रीरामजी के सद्गुण ऐसे विलक्षण थे कि पृथ्वी के प्रत्येक धर्म, सम्प्रदाय और जाति के लोग उन सद्गुणों को अपनाकर लाभान्वित हो सकते हैं ।


भगवान श्रीरामजी सारगर्भित बोलते थे। उनसे कोई मिलने आता तो वे यह नहीं सोचते थे कि पहले वह बात शुरू करे या मुझे प्रणाम करे। सामनेवाले को संकोच न हो इसलिए श्रीरामजी अपनी तरफ से ही बात शुरू कर देते थे।


रामजी प्रसंगोचित बोलते थे। जब उनके राजदरबार में धर्म की किसी बात पर निर्णय लेते समय दो पक्ष हो जाते थे, तब जो पक्ष उचित होता श्रीरामजी उसके समर्थन में इतिहास, पुराण और पूर्वजों के निर्णय उदाहरण रूप में कहते, जिससे अनुचित बात का समर्थन करनेवाले पक्ष को भी लगे कि दूसरे पक्ष की बात सही है ।


शरीरामजी दूसरों की बात बड़े ध्यान व आदर से सुनते थे। बोलनेवाला जब तक स्वयं तथा औरों के अहित की बात नहीं कहता, तब तक वे उसकी बात सुन लेते थे। जब वह किसी की निंदा आदि की बात करता तब देखते कि इससे इसका अहित होगा या इसके चित्त का क्षोभ बढ़ जाएगा या किसी दूसरे की हानि होगी, तो वे सामनेवाले को सुनते-सुनते इस ढंग से बात मोड़ देते कि बोलनेवाले का अपमान नहीं होता था। श्रीरामजी तो शत्रुओं के प्रति भी कटु वचन नहीं बोलते थे ।


यद्ध के मैदान में श्रीरामजी एक बाण से रावण के रथ को जला देते, दूसरा बाण मारकर उसके हथियार उड़ा देते फिर भी उनका चित्त शांत और सम रहता था। वे रावण से कहते : ‘लंकेश! जाओ, कल फिर तैयार होकर आना। ऐसा करते-करते काफी समय बीत गया तो देवताओं को चिंता हुई कि रामजी को क्रोध नहीं आता है, वे तो समता-साम्राज्य में स्थिर हैं, फिर रावण का नाश कैसे होगा? लक्ष्मणजी, हनुमानजी आदि को भी चिंता हुई, तब दोनों ने मिलकर प्रार्थना की: ‘प्रभु ! थोड़े कोपायमान होईए। तब श्रीरामजी ने क्रोध का आह्वान किया: क्रोधं आवाहयामि। ‘क्रोध! अब आ जा।'


शरीरामजी क्रोध का उपयोग तो करते थे, किंतु क्रोध के हाथों में नहीं आते थे। श्रीरामजी को जिस समय जिस साधन की आवश्यकता होती थी, वे उसका उपयोग कर लेते थे। श्रीरामजी का अपने मन पर बड़ा विलक्षण नियंत्रण था। चाहे कोई सौ अपराध कर दे फिर भी रामजी अपने चित्त को क्षुब्ध नहीं होने देते थे।


शरीरामजी अर्थव्यवस्था में भी निपुण थे। "शुक्रनीति" और "मनुस्मृति" में भी आया है कि जो धर्म, संग्रह, परिजन और अपने लिए- इन चार भागों में अर्थ की ठीक से व्यवस्था करता है वह आदमी इस लोक और परलोक में सुख-आराम पाता है।


शरीरामजी धन के उपार्जन में भी कुशल थे और उपयोग में भी। जैसे मधुमक्खी पुष्पों को हानि पहुँचाए बिना उनसे परागकण ले लेती है, ऐसे ही श्रीरामजी प्रजा से ऐसे ढंग से कर (टैक्स) लेते कि प्रजा पर बोझ नहीं पड़ता था। वे प्रजा के हित का चिंतन तथा उनके भविष्य का सोच-विचार करके ही कर लेते थे।


परजा के संतोष तथा विश्वास-सम्पादन के लिए श्रीरामजी राज्यसुख, गृहस्थसुख और राज्यवैभव का त्याग करने में भी संकोच नहीं करते थे। इसलिए श्रीरामजी का राज्य आदर्श राज्य माना जाता है।


राम-राज्य का वर्णन करते हुए ‘श्री रामचरितमानस में आता है :

बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग ।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग।।


‘राम-राज्य में सब लोग अपने-अपने वर्ण और आश्रम के अनुकूल धर्म में तत्पर रहते हुए सदा वेद-मार्ग पर चलते हैं और सुख पाते हैं। उन्हें न किसी बात का भय है, न शोक और न कोई रोग ही सताता है।'


राम-राज्य में किसीको आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं ।


धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान) से जगत में परिपूर्ण हो रहा है, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है। पुरुष और स्त्री सभी रामभक्ति के परायण हैं और सभी परम गति (मोक्ष) के अधिकारी हैं।

स्रोत: ऋषि प्रसाद पत्रिका: मार्च, 2010


दश के नेता भी भगवान श्री रामजी से कुछ गुण ले लें तो प्रजा के साथ-साथ उन नेताओं का भी कितना कल्याण होगा, यह अवर्णनीय है और सदियों तक यश भी फैला रहेगा।


रामनवमी को रामराज्य की स्थापना का संकल्प करेंगे...


रामराज्य में प्रजा धर्माचरणी थी इसीलिए उनको भगवान श्रीराम जैसे सात्त्विक राज्यकर्ता मिले और वे आदर्श रामराज्य का उपभोग कर पाए।

इसके साथ यदि हम भी धर्माचरणी और ईश्‍वर का भक्त बनें, तो पहले के समान ही रामराज्य (धर्माधिष्ठित हिन्दूराष्ट्र) अब भी अवतरित होगा।


नित्य धर्माचरण और धर्माधिष्ठित राज्यकार्य भार से आदर्श राज्यकार्य करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम अर्थात प्रभु श्रीराम। प्रजा का जीवन संपन्न करनेवालेे, अपराध भ्रष्टाचार आदि के लिए कोई स्थान नहीं- ऐसे रामराज्य की ख्याति थी। ऐसे आदर्श राज्य "हिन्दूराष्ट्र" स्थापना का निर्धारण (निश्‍चय) करेंगे!!


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ऐसा तो क्या है रामायण में कि लाखों वर्ष के बाद भी मांग है?

19 अप्रैल 2021

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रामायण को लाखों वर्ष हो गये लेकिन जनता के हृदयपटल से विलुप्त नहीं हुई,  क्योंकि ‘रामायण’ में वर्णित आदर्श चरित्र विश्वसाहित्य में मिलना दुर्लभ है ।



भगवान श्री राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो भगवान श्री राम की धर्मपत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया। परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मणजी कैसे रामजी से दूर हो जाते? माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की... परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, परन्तु अपनी धर्म पत्नी उर्मिला को कैसे समझाऊंगा? क्या कहूंगा?


यही सोच विचार करके लक्ष्मणजी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिलाजी आरती का थाल लेकर खड़ी थीं और बोलीं- "आप मेरी चिंता छोड़िये, प्रभु श्री राम की सेवा में वन को जाइए। मैं आपको नहीं रोकूँगी। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।"


लक्ष्मणजी को कहने में संकोच हो रहा था। परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिलाजी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया। वास्तव में यही पत्नी का धर्म है। पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही धर्मपत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!!


लक्ष्मणजी चले गये, परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिलाजी ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया। वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मणजी कभी सोये नहीं, परन्तु उर्मिलाजी ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग-जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया।


मघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मणजी को शक्ति लग जाती है और श्री हनुमानजी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या में भरतजी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमानजी गिर जाते हैं। तब हनुमानजी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि माता सीताजी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं।


यह सुनते ही कौशल्याजी कहती हैं कि श्री राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे। माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है। मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। माताओं का प्रेम देखकर श्री हनुमानजी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिलाजी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं??


हनुमानजी पूछते हैं- हे देवी, आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा। उर्मिलाजी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा।


उर्मिला बोलीं- "मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता। आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता। यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं। मेरे पति जब से वन गये हैं, तब से सोये नहीं हैं। उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। वे उठ जायेंगे। और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं, शक्ति तो रामजी को लगी है। मेरे पतिदेव की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम-रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद-बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में सिर्फ राम ही हैं, तो शक्ति रामजी को ही लगी, दर्द रामजी को ही हो रहा है। इसलिये हनुमानजी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।"


रामायण का दूसरा प्रसंग


भरतजी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्नजी  उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं।


एक रात की बात है, माता कौशिल्याजी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। नींद खुल गई । पूछा कौन है?


मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं। नीचे बुलाया गया ।


श्रुतिकीर्तिजी, जो सबसे छोटी हैं, आकर चरणों में प्रणाम कर खड़ी हो गईं।


माता कौशिल्याजी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया? क्या नींद नहीं आ रही?

शत्रुघ्न कहाँ है?

श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं; बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।


उफ ! कौशल्या जी का हृदय काँप गया।


तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए। आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्नजी की खोज होगी, माँ चली ।


आपको मालूम है, शत्रुघ्नजी जी कहाँ मिले ?


अयोध्याजी के जिस दरवाजे के बाहर भरतजी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।


माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी ने आँखें खोलीं, माँ ! उठे, चरणों में गिरे।  माँ ! आपने क्यों कष्ट किया? मुझे बुलवा लिया होता।


माँ ने कहा, शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?


शत्रुघ्नजी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया श्री रामजी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्ष्मणजी उनके पीछे चले गए, भैया भरतजी भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं?


माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।


दखो यह रामकथा है...।


यह भोग की नहीं त्याग की कथा है, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही है और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा!


चारों भाइयों का प्रेम और त्याग एक-दूसरे के प्रति अद्भुत, अभिनव और अलौकिक है।

रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती है।


भगवान श्रीराम के वनवास का मुख्य कारण मंथरा के लिए भी श्रीराम के हृदय में विशाल प्रेम है। रामायण का कोई भी पात्र तुच्छ नहीं है, हेय नहीं है। श्रीराम की दृष्टि में तो रीछ और बंदर भी तुच्छ नहीं हैं। जामवंत, हनुमान, सुग्रीव, अंगदादि सेवक भी उन्हें उतने ही प्रिय हैं जितने भरत, शत्रुघ्न, लखन और माँ सीता। माँ कौशल्या, कैकयी एवं सुमित्रा जितनी प्रिय हैं, उतनी ही शबरी श्रीराम को प्यारी लगती हैं।


राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण , बलिदान से ही आया। हमें भी अपने परिवार के साथ रामायण पढ़कर, देखकर घर से रामराज्य की शुरूआत करनी चाहिए।


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100 वर्ष पहले भी यही घटना घटी थी, जागो भारतवासी !

18 अप्रैल 2021

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यति स्वामी नरसिंहानंदजी के विरुद्ध मौलवी-मौलाना फतवे जारी कर रहे हैं।  कोई उनका सर कलम करने की मांग करता है, कोई सर कलम करनेवाले को लाखों देने की इच्छा प्रकट करता है। आज से ठीक 100 वर्ष पहले भी ऐसे ही फतवे स्वामी श्रद्धानन्द के विरुद्ध दिल्ली से लेकर लाहौर की मस्जिदों से दिए गये थे। कारण था- स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा चलाया गया हिन्दू संगठन और शुद्धि आंदोलन। 



आधुनिक भारत में "शुद्धि" के सर्वप्रथम प्रचारक स्वामी दयानंद थे तो उसे आंदोलन के रूप में स्थापित कर सम्पूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करने वाले स्वामी श्रद्धानन्द थे। सबसे पहली शुद्धि स्वामी दयानंद ने अपने देहरादून प्रवास के समय एक मुसलमान युवक की की थी जिसका नाम अलखधारी रखा गया था। स्वामीजी के निधन के पश्चात पंजाब में विशेष रूप से मेघ, ओड और रहतिये जैसी निम्न और पिछड़ी समझी जानेवाली जातियों का शुद्धिकरण किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य उनकी पतित, तुच्छ और निकृष्ट अवस्था में सामाजिक एवं धार्मिक सुधार करना था।


आर्यसमाज द्वारा चलाये गए शुद्धि आंदोलन का व्यापक स्तर पर विरोध हुआ क्योंकि हिन्दू जाति सदियों से कूपमण्डूक मानसिकता के चलते सोते रहना अधिक पसंद करती थी। आगरा और मथुरा के समीप मलकाने राजपूतों का निवास था जिनके पूर्वजों ने एकाध शताब्दी पहले ही इस्लाम की दीक्षा ली थी। मलकानों के रीति-रिवाज़ अधिकतर हिन्दू थे और चौहान, राठौड़ आदि गोत्र के नाम से जाने जाते थे। 1922 में क्षत्रिय सभा मलकानों को राजपूत बनाने का आवाहन कर सो गई मगर मुसलमानों में इससे पर्याप्त चेतना हुई एवं उनके प्रचारक गांव-गांव घूमने लगे। यह निष्क्रियता स्वामी श्रद्धानन्द की आँखों से छिपी नहीं रही। 11 फरवरी 1923 को भारतीय शुद्धि सभा की स्थापना करते समय स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा शुद्धि आंदोलन आरम्भ किया गया। स्वामीजी द्वारा इस अवसर पर कहा गया कि जिस धार्मिक अधिकार से मुसलमानों को तब्लीग़ और तंज़ीम का हक है उसी अधिकार से उन्हें अपने बिछुड़े भाइयों को वापिस अपने घरों में लौटाने का हक है। आर्यसमाज ने 1923 के अंत तक 30 हजार मलकानों को शुद्ध कर दिया।

 

मसलमानों में इस आंदोलन के विरुद्ध प्रचंड प्रतिकिया हुई। जमायत-उल-उलेमा ने बम्बई में 18 मार्च, 1923 को मीटिंग कर स्वामी श्रद्धानन्द एवं शुद्धि आंदोलन की आलोचना कर निंदा प्रस्ताव पारित किया। स्वामीजी की जान को खतरा बताया गया मगर उन्होंने "परमपिता ही मेरे रक्षक हैं, मुझे किसी अन्य रखवाले की जरुरत नहीं है" कहकर निर्भीक सन्यासी होने का प्रमाण दिया। कांग्रेस के श्री राजगोपालाचारी, मोतीलाल नेहरू एवं पंडित जवाहरलाल नेहरू ने धर्मपरिवर्तन को व्यक्ति का मौलिक अधिकार मानते हुए तथा शुद्धि के औचित्य पर प्रश्न करते हुए तत्कालीन राष्ट्रीय आंदोलन के सन्दर्भ में उसे असामयिक बताया। शुद्धि सभा गठित करने एवं हिन्दुओं को संगठित करने पर स्वामीजी का ध्यान 1912 में उनके कलकत्ता प्रवास के समय आकर्षित हुआ था जब कर्नल यू. मुखर्जी ने 1911 की जनगणना के आधार पर यह सिद्ध किया कि अगले 420 वर्षों में हिन्दुओं की अगर इसी प्रकार से जनसँख्या कम होती गई तो उनका अस्तित्व मिट जायेगा। इस समस्या से निपटने के लिए हिन्दुओं का संगठित होना आवश्यक था और संगठित होने के लिए स्वामीजी का मानना था कि हिन्दू समाज को अपनी दुर्बलताओं को दूर करना चाहिए। सामाजिक विषमता, जातिवाद, दलितों से घृणा, नारी उत्पीड़न आदि से जब तक हिन्दू समाज मुक्ति नहीं पा लेगा तब तक हिन्दू समाज संगठित नहीं हो सकता।

       

इस बीच हिन्दू और मुसलमानों के मध्य खाई बराबर बढ़ती गई। 1920 के दशक में भारत में भयंकर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए। केरल के मोपला, पंजाब के मुल्तान, कोहाट, अमृतसर, सहारनपुर आदि दंगों ने अंतर को और बढ़ा दिया। इस समस्या पर विचार करने के लिए 1923 में दिल्ली में कांग्रेस ने एक बैठक का आयोजन किया जिसकी अध्यक्षता स्वामीजी को करनी पड़ी। मुसलमान नेताओं ने इस वैमनस्य का कारण स्वामीजी द्वारा चलाये गए शुद्धि आंदोलन और हिन्दू संगठन को बताया। स्वामीजी ने सांप्रदायिक समस्या का गंभीर और तथ्यात्मक विश्लेषण करते हुए दंगों का कारण मुसलमानों की संकीर्ण सांप्रदायिक सोच को बताया। इसके पश्चात भी स्वामीजी ने कहा कि मैं आगरा से शुद्धि प्रचारकों को हटाने को तैयार हूँ अगर मुस्लिम उलेमा अपने तब्लीग के मौलवियों को हटा दें। परन्तु मुस्लिम उलेमा नहीं माने।


इसी बीच स्वामीजी को ख्वाजा हसन निज़ामी द्वारा लिखी पुस्तक 'दाइए-इस्लाम' पढ़कर हैरानी हुई। इस पुस्तक को चोरी छिपे केवल मुसलमानों में उपलब्ध करवाया गया था। स्वामीजी के एक शिष्य ने अफ्रीका से इसकी प्रति स्वामीजी को भेजी थी। इस पुस्तक में मुसलमानों को हर अच्छे-बुरे तरीके से हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की अपील निकाली गई थी। हिन्दुओं


घर-मुहल्लों में जाकर औरतों को चूड़ी बेचने से, वैश्याओं को ग्राहकों में, नाई द्वारा बाल काटते हुए इस्लाम का प्रचार करने एवं मुसलमान बनाने के लिए कहा गया था। विशेष रूप से 6 करोड़ दलितों को मुसलमान बनाने के लिए कहा गया था जिससे मुसलमान जनसँख्या में हिन्दुओं के बराबर हो जाएं और उससे राजनैतिक अधिकारों की अधिक माँग की जा सके। स्वामीजी ने निज़ामी की पुस्तक का पहले "हिन्दुओं सावधान, तुम्हारे धर्म दुर्ग पर रात्रि में छिपकर धावा बोला गया है" के नाम से अनुवाद प्रकाशित किया एवं इसका उत्तर "अलार्म बेल अर्थात खतरे का घंटा" के नाम से प्रकाशित किया।  इस पुस्तक में स्वामीजी ने हिन्दुओं को छुआछूत का दमन करने और समान अधिकार देने को कहा जिससे मुसलमान लोग दलितों को लालच भरी निगाहों से न देखें। इस बीच कांग्रेस के काकीनाड़ा के अध्यक्षीय भाषण में मुहम्मद अली ने 6 करोड़ अछूतों को आधा-आधा हिन्दू और मुसलमान के बीच बाँटने की बात कहकर आग में घी डालने का काम किया।


महात्मा गांधी भी स्वामीजी के गंभीर एवं तार्किक चिंतन को समझने में असमर्थ रहे एवं उन्होंने यंग इंडिया के 29 मई, 1925 के अंक में 'हिन्दू-मुस्लिम तनाव: कारण और निवारण' शीर्षक से एक लेख में स्वामीजी पर अनुचित टिप्पणी कर डाली। उन्होंने लिखा "स्वामी श्रद्धानन्दजी भी अब अविश्वास के पात्र बन गये हैं। मैं जानता हूँ कि उनके भाषण प्राय: भड़काने वाले होते हैं। दुर्भाग्यवश वे यह मानते हैं कि प्रत्येक मुसलमान को आर्य धर्म में दीक्षित किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार अधिकांश मुसलमान सोचते हैं कि किसी-न-किसी दिन हर गैरमुस्लिम इस्लाम को स्वीकार कर लेगा। श्रद्धानन्दजी निडर और बहादुर हैं। उन्होंने अकेले ही पवित्र गंगातट पर एक शानदार ब्रह्मचर्य आश्रम (गुरुकुल) खड़ा कर दिया है।" 


सवामीजी सधे क़दमों से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। एक ओर मौलाना अब्दुल बारी द्वारा दिए गए बयान जिसमें इस्लाम को न मानने वालो को मारने की वकालत की गई थी के विरुद्ध महात्मा गांधीजी की प्रतिक्रिया पक्षपातपूर्ण थी। गांधीजी अब्दुल बारी को 'ईश्वर का सीधा-सादा बच्चा' और 'एक दोस्त' के रूप में सम्बोधित करते थे जबकि स्वामीजी द्वारा की गई इस्लामी कट्टरता की आलोचना उन्हें अखरती थी। गांधीजी ने कभी भी मुसलमानों की कट्टरता की आलोचना नहीं की और न ही उनके दोषों को उजागर किया। इसके चलते कट्टरवादी सोचवाले मुसलमानों का मनोबल बढ़ता गया एवं सत्य और असत्य के मध्य वे भेद करने में असफल हो गए। मुसलमानों में स्वामीजी के विरुद्ध तीव्र प्रचार का यह फल निकला कि एक मतान्ध व्यक्ति अब्दुल रशीद ने बीमार स्वामी श्रद्धानन्द को गोली मार दी और उनका तत्काल देहांत हो गया।


सवामीजी का उद्देश्य विशुद्ध धार्मिक था ना कि राजनीतिक। हिन्दू समाज में समानता उनका लक्ष्य था। अछूतोद्धार, शिक्षा एवं नारी जाति में जागरण कर वह एक महान समाज की स्थापना करना चाहते थे। आज समस्त हिन्दू समाज का यह कर्तव्य है कि उनके द्वारा छोड़े गए शुद्धि चक्र को पुन: चलाये। यह तभी संभव होगा जब हम मन से दृढ़ निश्चय करें कि आज हमें जातिवाद को मिटाना है और हिन्दू जाति को संगठित करना है।

इन 100 वर्षों में अपने महान पूर्वजों के बलिदान से हमने क्या सीखा? यह यक्ष प्रश्न है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर स्वामी नरसिंहानंदजी के बयान के बाद से हम क्यों मौन हैं? हमारा कर्तव्य हमें क्या स्मरण करवा रहा है? यह आपको सोचना होगा। माँ भारती की पुकार सुनो, हे वीर महारथियों के पुत्रों। - डॉ.विवेक आर्य

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भारत का ऐसा कानून कि नेता को बेल, संत को जेल

17 अप्रैल 2021

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भारत में समाज, संस्कृति व राष्ट्र उत्थान के लिए कार्य करना गुनाह है- ऐसा जनता को लग रहा है, क्योंकि बड़े-बड़े अपराधियों को जमानत हासिल हो जाती है लेकिन कोई राष्ट्रहित के कार्य कर रहा है और उसपर षड्यंत्र के तहत जूठे आरोप लगे हैं फिर भी उनको बेल नहीं, जेल ही मिलती है। ऐसे कई उदाहरण हैं।



आपने देखा होगा कि बेजुबान पशुओं का चारा घोटाला 950 करोड़ का हुआ था, उस केस में नेता लालू प्रसाद यादव को सजा भी हुई है, लेकिन उनको न्यायालय जमानत दे देता है और भी कई घोटाले किये, उसमें भी जमानत मिल गई; और भी ऐसे कई नेता हैं जिन्होंने अरबों रुपये के घोटाले किये हैं और उनको आसानी से जमानत मिल गई है, दूसरी ओर जिन्होंने पूरा जीवन तपस्या व समाज, देश और संस्कृति के उत्थान के कार्य में बिताये, धर्मांतरण पर रोक लगाई- ऐसे 85 वर्षीय हिन्दू संत आशारामजी बापू 8 साल से जेल में हैं लेकिन उनको एक दिन के लिए भी जमानत नहीं मिल पाई। इसको लेकर जनता सोच रही है कि राष्ट्र व धर्म की सेवा करने की बजाय घोटाले करो तो पैसे भी मिलेंगे और आसानी से जमानत भी मिल जाएगी।


देशभर में कोरोना फैलानेवाले मौलाना साद को जमानत मिल गई, देश के 'टुकड़े' करने का नारा लगाने वाले उमर खालिद और कन्हैया कुमार को जमानत मिल गई, बलात्कार आरोपी बिशप फ्रेंको व तरुण तेजपाल को जमानत मिल गई, 65 गैर जमानती वारंट होने के बाद भी दिल्ली के इमाम बुखारी को आज तक अरेस्ट नहीं कर पाए, सोये हुए गरीबों को कुचलनेवाले सलमान खान को जमानत मिल गई, लेकिन भारतीय संस्कृति के उत्थान का कार्य करनेवाले 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू को 8 साल से आज तक न्यायालय जमानत नहीं दे पाया।


आपको बता दें कि जिस केस में हिंदू संत आशारामजी बापू को सेशन कोर्ट ने सजा सुनाई है जब उनके केस को पढ़ते हैं तो उसमें साफ है कि जिस समय की तथाकथित घटना आरोप लगाने वाली लड़की ने बताई है वह उस समय अपने मित्र से फोन पर बात कर थी जिसकी कॉल डिटेल भी है और आशारामजी बापू एक कार्यक्रम में थे, जहां पर 50-60 लोग भी मौजूद थे जिन्होंने गवाही भी दी है; मेडिकल रिपोर्ट में भी लड़की को एक खरोंच तक नहीं आने का प्रमाण है और एफआईआर में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं है, केवल छेड़छाड़ का आरोप है।


आपको ये भी बता दें कि बापू आशारामजी आश्रम में एक फैक्स भी आया था, जिसमें भेजनेवाले ने साफ लिखा था कि 50 करोड़ दो नहीं तो लड़की के केस में जेल जाने के लिए तैयार रहो।

https://twitter.com/SanganiUday/status/1053870700585377792?s=19


बता दें कि स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद शिकागो में विश्व धर्मपरिषद में भारत का नेतृत्व हिंदू संत आसाराम बापू ने किया था। बच्चों को भारतीय संस्कृति के दिव्य संस्कार देने के लिए देश में 17000 बाल संस्कार खोल दिये थे, वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन शुरू करवाया, क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन शुरू करवाया, वैदिक गुरुकुल खोले, करोड़ों लोगों को व्यसनमुक्त किया, ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं। इसके कारण आज वे जेल में हैं और उन्हें जमानत हासिल नहीं हो पा रही है। अब हिन्दू समाज को जागरूक होकर उनकी रिहाई करवानी चाहिए।


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