Friday, February 11, 2022

आशारामजी बापू जेल में क्यों हैं? सवाल आपका- जवाब हमारा...

25 अप्रैल 2021

azaadbharat.org


पिछले 8 साल से 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। आजतक उनको 1 दिन की भी जमानत नहीं दी गई, जबकि बड़े बड़े अपराधियों व आतंकवादियों को भी जमानत मिल जाती है; फिर आशारामजी बापू को क्यों नहीं मिली- आज आपको सच्चाई बताते हैं।



आइये सबसे पहले नजर डालते हैं- उन सेवाकार्यों पर जिनकी शुरूआत  आशारामजी बापू द्वारा हुई:


1.) स्वदेशी अभियान आंदोलन-

इसके अंतर्गत आशारामजी बापू आयुर्वेद विज्ञान को लोगों की जीवनशैली में वापस लाए और उन्होंने गरीबों को उच्च गुणवत्तावाली और सस्ती दवाइयां उपलब्ध करवाई।


2.) 50 से भी ज्यादा सनातन धर्म शैली के गुरुकुलों की शुरूआत की जिससे छोटी उम्र में ही बच्चे वैदिक संस्कृति से जुड़ने लगे। इनके गुरुकुल इतने लोकप्रिय हो गए हैं कि सभी स्थानीय कॉन्वेंट स्कूलों में प्रवेश में गिरावट आने लगी ।


3.) 10,000 से ज्यादा गायों को कत्लखाने जाने से बचाकर स्व-निर्भर गौशालाओं की शुरूआत की, जो बिना किसी बाहरी दान के चलाये जाते हैं; जहाँ गौ सेवा अंतरराष्ट्रीय मानकों पर की जा रही है। इनके गौमूत्र से बने अर्क, गौवटी और गोधूप इतने लोकप्रिय हो गए हैं कि अन्य बाहरी स्रोतों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं पड़ी और इससे 100 से ज्यादा स्थानीय आदिवासी परिवारों को रोजगार मिलने लगा।


4.) जो लोग उनके सत्संग को सुनते और उनके संपर्क में आने लगे, वे गर्व से कहने लगे कि हिंदू होने पर वे अपने आपको बहुत भाग्यशाली मानते हैं।


5.) आशारामजी बापू ने कई संस्थाओं का मार्गदर्शक बनकर उन्हें भी प्रेरित किया और खुद भी जनजातीय क्षेत्रों में बहुत-से सेवा और रोजगार के अवसरों का नेतृत्व किया और सनातन धर्म के मार्ग को खोनेवाले लाखों धर्मान्तरित हिंदुओं की घरवापसी करवाई । 


6.) आशारामजी बापू के प्रत्येक आश्रम (कुल 450 आश्रम) को एक आत्मनिर्भर ईकाई के रूप में बनाया गया ताकि उन्हें किसीके सामने धनराशि के लिए प्रार्थना न करनी पड़े और वे आसानी से व्यसनमुक्ति अभियान, मातृपितृ पूजन दिवस, संस्कार सिंचन अभियान, वैदिक मंत्र विज्ञान प्रचार, संस्कृति रक्षक सम्मेलन, संकीर्तन यात्राएं और सत्संग जैसे सेवाकार्यों द्वारा समाज में जागृति लायें।


7.) किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी युवा होते हैं। आशारामजी बापू ने युवाधन सुरक्षा अभियान (दिव्य प्रेरणा प्रकाश) द्वारा युवाओं को संयमित जीवन का महत्व समझाया। आज आशारामजी बापू के कारण आधुनिक अश्लीलता भरे वातावरण में भी करोड़ों युवा ब्रह्मचर्य का महत्व समझ रहे हैं और अपनी प्राचीन विरासत पर गर्व करने लगे हैं।


8.) आशारामजी बापू ने देश विदेश में 17,000 से भी अधिक बाल संस्कार केंद्र शुरू करवाये जहां बच्चों को अपने माता-पिता का आदर करने, स्मृति क्षमता में वृद्धि करने और जीवन को ऊर्जावान बनाये जाने की शिक्षा दी जाने लगी; उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति, पराक्रम जैसे सद्गुणों से बच्चे विद्यार्थी जीवन से ही उन्नत, विचारवान और संस्कृति प्रेमी बनने लगे।


9.) हमारी खोई हुई गरिमा और संस्कृति की महिमा को जनमानस के हृदय में पुनः स्थापित करने के लिए समाज में वैश्विक आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया गया, जैसे- 14 फरवरी वेलेंटाइन डे को "मातृपितृ पूजन दिवस" और  25 दिसंबर क्रिसमस डे को "तुलसी पूजन दिवस"।


आपको बता दें कि आशारामजी बापू द्वारा 50 सालों से समाज उत्थान के कार्य किए जा रहे हैं। उन्होंने सत्संग के द्वारा देश व समाज को तोड़नेवाली ताकतों से देशवासियों को बचाया। लाखों लोगों को धर्मान्तरण से बचाया व लाखों धर्मान्तरित  हिंदुओं को अपने धर्म में वापसी कराई। गरीब आदिवासी क्षेत्रों में जहाँ खाने की सुविधा तक नहीं थी वहाँ "भोजन करो, भजन करो, दक्षिणा पाओ" अभियान चलाया जाता है; गरीबों में राशन कार्ड के द्वारा अनाज का वितरण, कपड़े, बर्तन व जीवनोपयोगी सामग्री एवं मकान आदि का वितरण किया जाता है।

 

पराकृतिक आपदाओं में जहाँ प्रशासन भी नहीं पहुँच सका वहाँ आशारामजी बापू के शिष्यों द्वारा कई सेवाकार्य (निःशुल्क भोजन भंडार, कम्बल, कपड़े का वितरण व स्वास्थ्य शिविर के आयोजन) होते हैं। इसके अलावा आशारामजी बापू ने महिला सुरक्षा (WOMEN SAFETY & EMPOWERMENT) के कई अभियान चलाए, नारी जाति के सम्मान व उनमें पूज्यभाव के लिए सबको प्रोत्साहित किया, बड़ी कंपनियों में काम कर रही महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई, महिला संगठन बनाया।


World's Religions' Parliament, शिकागो अमेरिका में 1993 में स्वामी विवेकानन्दजी के बाद यदि कोई दूसरे संत ने प्रतिनिधित्व किया है तो वे आशारामजी बापू हैं, जिन्होंने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कर सनातन संस्कृति का परचम लहराया। 


इन सेवाकार्यों से देश-विदेश के करोड़ों लोग किसी भी तरह के धर्म- जाति - पंथ -सम्प्रदाय-राज्य व लिंग के हो भेदभाव के बिना लाभान्वित हो रहे हैं ।


इन सभी गतिविधियों को आम व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा शुरू नहीं किया जा सकता है। यह केवल महान संत द्वारा किया जा सकता है जो आत्मनिर्भर और दिव्य हैं। ऐसे संतों से लाभान्वित होना, न होना- ये समाज पर निर्भर करता है। विकल्प आपका है क्योंकि आत्मरामी संतों को आपसे किसी चीज की आवश्यकता नहीं है और न ही उनको कोई घाटा है पर उनकी उपेक्षा करने से समाज को आनेवाले समय में बहुत बड़े नुकसान का सामना करना पड़ेगा।


तो अब सवाल यह है कि पिछले पचास सालों से देश और संस्कृति की सेवा करनेवाले आशारामजी बापू को जेल क्यों भेजा गया?


सब जानते हैं कि भारत को 1947 में आजादी मिली पर पर्दे के पीछे का सत्य कोई नहीं जानता। केजीबी जासूस के मुताबिक़ अंतर्राष्ट्रीय मिशनरियों के पास भारत की संस्कृति को ध्वस्त करने का लक्ष्य है। असल में वे दुनिया पर शासन करना चाहते हैं पर किसी भी देश को नष्ट करने के लिए सबसे पहले उस देश की संस्कृति को नष्ट करना होता है और इसलिए वे उस देश की संस्कृति को नष्ट करने के लिए देश के प्रति वफादार नेताओं और संतों पर हमला करते हैं।


जसे सुभाष चन्द्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, राजीव दीक्षित और संत लक्ष्मणानंदजी आदि-आदि की कैसे मृत्यु हुई, आजतक पता नहीं चला।


अब यह स्पष्ट होना चाहिए कि आशारामजी बापू अभी भी जेल में क्यों हैं?

कुछ लोग कहते हैं- कांग्रेस (विशेष रूप से सोनिया गांधी का षड्यंत्र) आशारामजी बापू पर बनाये गये मामले के पीछे छिपी हुई है लेकिन अब जब मोदी सत्ता में हैं, तब भी आशारामजी बापू जेल में हैं।


वास्तविक सत्य यह है: यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साजिश है। बड़े शक्तिशाली लोग जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों और मिशनरियों से जुड़े हुए हैं, उन्होंने पूरी भारतीय मीडिया को खरीद रखा है। यहां भारतीय मीडिया पूरी तरह से दूषित है और खरीदने में मुश्किल नहीं है, वे भ्रष्ट अधिकारी और राजनेता को खरीदते हैं। वे हमेशा किसी भी चेहरे के पीछे काम करते हैं, जैसे उन्होंने सोनिया गांधी के चेहरे के पीछे किया था। भारतीय लोगों को मीडिया द्वारा आसानी से बेवकूफ़ बना दिया जाता है और बाकि भ्रष्ट राजनेता और अधिकारी केस को लंबा बनाते हैं।

जब हम आशारामजी बापू पर की गई FIR पढ़ते हैं तो सबकुछ स्पष्ट होता है। 

5 दिन पहले जोधपुर मामले की दिल्ली में FIR ! 

और लडकी शाहजहांपुर (यूपी ) से है। बाकि FIR में कोई बलात्कार का जिक्र नहीं है, लेकिन मीडिया ब्रेकिंग न्यूज 24X7 में "रेप" शब्द बोलता है। क्यूं ???


अगर देश को बचाना चाहते हैं तो भारतीयों को एकजुट होना चाहिए। निर्दोष संत की रिहाई के लिए आगे आना चाहिए।


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अप्रैल 25, जिस दिन सत्य और मानवता ने न्यायालय में दम तोड़ा

24 अप्रैल 2021

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परम सत्य है कि कानून का दुरुपयोग चरम सीमा पर है। हिन्दू सन्तों को झूठे मुकदमों में फंसाना और मीडिया द्वारा बदनाम करवाना फैशन बन गया है।



25 अप्रैल 2018 को जोधपुर सेशन कोर्ट का एक फैसला आया जिससे सारी मानवता शर्मसार हुई। एक लड़की की झूठी गवाही के चलते देशहित, समाजहित और प्राणिमात्र के हित में जिन्होंने अपने जीवन के 55 साल दे दिए, जिनके आश्रम में आज भी सैकड़ों महिलाएं संयमी जीवन व्यतीत कर रही हैं और करोड़ों महिला समर्थक जिनके लिए सड़कों पर उतरीं, ऐसे संत आशाराम बापूजी को उम्रकैद और शरद व शिल्पी को 20-20 साल की सजा सुनाई गई। 


अगर ऐसे ही हिन्दू संस्कृतिरक्षक संतों पर अत्याचार होता रहा और हिन्दू मूकदर्शक बन सब देखता रहा तो आनेवाले समय में हिन्दू संस्कृति का नामोनिशान नहीं रहेगा।


अब आईये, आपको इस झूठे केस के मुख्य पहलुओं से अवगत करायें। आप सबसे अनुरोध है कि इस केस को समझने के लिए आप अपनी बुद्धि का उपयोग जरूर कीजियेगा तभी आपके सामने सारी परतें खुलती नजर आएंगी।


19 अगस्त 2013 की मध्यरात्रि 2:45 को दिल्ली के कमला मार्किट पुलिस थाने में जोधपुर (राजस्थान) में हुई घटना की शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) के परिवार द्वारा Zero FIR दर्ज होती है। आपको लगता है कि भारत देश की पुलिस व्यवस्था इतनी अच्छी है, इतनी मददगार है कि जोधपुर (राजस्थान) की घटना, उत्तर प्रदेश की लड़की और उसकी FIR दर्ज करेगी दिल्ली में??


पिछले 7 सालों से दीपक चौरसिया पर पॉक्सो एक्ट के तहत केस के लिए गुरुग्राम के एक माता-पिता की चपलें घिस गईं, कई हिन्दू संगठन FIR करवाने के लिए आगे आये पर आज तक पुलिस ने दीपक चौरसिया के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया।


ऐसे प्रशासन से ये उम्मीद की जा सकती है कि वो इतनी आसानी से कहीं का केस और कहीं की लड़की की FIR इतनी आसानी से दर्ज कर लेगी??


अच्छा आगे देखिए...


फिर FIR की Video Recording जो Zero FIR में अनिवार्य प्रावधान है वो संदेहास्पद परिस्थितियों में गायब कर दी गई या मिटा दी गई। संबंधित पुलिस अधिकारी भी अपने बयान में इस बात की पुष्टि करती है कि वीडियो रिकॉर्डिंग हुई थी।

वीडियो रिकॉर्डिंग का कोर्ट में साक्ष्य के तौर पर पेश न होना क्या किसी षड़यंत्र की तरफ इशारा तो नहीं??


आगे बढ़ते हैं- कोर्ट में खुद लड़की, उसकी माँ और उसके पिता ने गवाही दी कि आशारामजी बापू ने 15 अगस्त 2013 की रात को जोधपुर के मणाई गांव में हरिओम कृषि फार्म में अपने कमरे में लड़की को बुलाकर 60 से 90 मिनट तक लड़की के साथ छेड़छाड़ की। लड़की ने अपने बयान में कहा कि मैं जोर से चिल्लाई और रोती रही। उसकी माँ ने अपने बयान में कहा कि वो कमरे के बाहर बैठी थी। लेकिन बाहर बैठी माँ को लड़की के चिल्लाने और रोने की आवाज नहीं आई रात के सन्नाटे में। क्या ऐसा संभव है? 


दूसरी ओर कोर्ट में पेश हुए बचाव पक्ष के 5 गवाहों ने और लड़की के पक्ष के 2 गवाहों ने अपने बयानों में कहा कि आशारामजी बापू ने उस रात पहले सत्संग किया फिर सगाई समारोह के निमित भगवान झूलेलाल की झांकी निकाली गई जो रात 11:45 तक चली; उस समय के कई फोटो भी न्यायालय के सामने 2014 से हैं। मदनसिंह जो वहाँ चौकीदार था, उसने भी गवाही दी कि उस रात बापू अपनी कुटिया में रात 12:00 बजे आये। आखिर क्यों जज साहब ने इन सभी तथ्यों को नजरअंदाज किया ???


चारुल अरोड़ा, मेघा शर्मा (लड़की की दोस्त), कुमारी प्रिया सिंह, कुमारी रीना, कुमारी विद्या (वार्डन) ने कोर्ट में गवाही दी कि लड़की 15 अगस्त 2013 को बालिग थी और उसका चाल चलन ठीक नहीं था पर कोर्ट के लिए ये पांचों लड़कियां झूठी थीं और वो अकेली सती सावित्री हो गयी।


राहुल के सचान, महेंद्र चावला ने बापू के खिलाफ गवाही दी पर योगेश भाटी, जिज्ञासा भावसार, अंग्रेज़ सिंह (J&K Police ASI) ने कोर्ट में हुए अपने बयान में कहा कि अमृत प्रजापति, कर्मवीर सिंह (लड़की का पिता), राहुल के सचान, महेंद्र चावला ने योग वेदांत सेवा समिति, अहमदाबाद को Fax करके 50 करोड़ की फिरौती मांगी थी, जिसमें ये भी कहा कि अगर 50 करोड़ नहीं दिए तो झूठी लड़कियां तैयार करके झूठे केस में फंसा देंगे और वो कभी बाहर नहीं आ पाएंगे, पर कोर्ट ने इनके ऊपर कोई एक्शन नहीं लिया।


शिल्पा अग्रवाल जो कि Psychologist हैं, उन्होंने बापूजी का कई बार इंटरव्यू लिया है। उन्होंने अपने बयान में कहा कि बापू का मन, बुद्धि और आत्मा एकाग्र है। उनकी भगवान में गहरी आस्था है और मानवता की सेवा करने की सुदृढ़ इच्छाशक्ति है, वो किसी से दुष्कर्म के विषय में सोच भी नहीं सकते... करने की तो बात ही अलग है। उनकी रिपोर्ट भी कोर्ट के सामने होने के बावजूद उस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।


लड़की की उम्र के संबंध में कई ऐसे दस्तावेज बचाव पक्ष द्वारा साबित करवाए गए (जैसे- राशन कार्ड, पोषाहार रजिस्टर प्रति, शिशु पंजीकरण, टीकाकरण रजिस्टर में प्रविष्टियां, सर्वे रजिस्टर आदि) जिनमें लड़की बालिग साबित हो रही है,

उन सभी तथ्यों को नजरअंदाज करके एक ऐसे ( Matriculation Certificate) सर्टिफिकेट के आधार पर बापू आशारामजी को सजा सुनाई गई जिसमें लड़की के वकील ने खुद 311 की एप्लीकेशन लगाकर कहा था कि हम इसे साबित नहीं करवा पाए हैं।


POCSO Act और Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act 2000 में सजा सुनाना कहाँ का न्याय है?


जिन 3 धाराओं में बापू आसारामजी को उम्रकैद की सजा सुनाई अब उनके बारे में बात करते हैं:

भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 370 (4) जो कि Trafficking of Persons के अपराध से संबंधित है। 9 अगस्त 2013 को लड़की का पिता खुद छुट्टी का आवेदन पत्र देकर लड़की को अपने साथ घर ले जाता है (आवेदन पत्र चार्जशीट में संलग्न है); 9 तारीख के बाद से लड़की अपने माता-पिता की कस्टडी में रही, तब कैसे आसारामजी बापू ने उसका अपहरण या Trafficking किया ???


भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 376 (2) (f)  जो Relative, Guardian, Teacher द्वारा बलात्कार करने से संबंधित है; पर बलात्कार हुआ ही नहीं है, लड़की ने खुद FIR में बलात्कार का जिक्र नहीं किया और न ही Medical Report  में छेड़छाड़ तक की पुष्टि हुई है। फिर भी आशारामजी बापू सजा के हकदार हैं।


वाह री, न्याय व्यवस्था!

अजब तेरे खेल !!

निर्दोषों को भेजती जेल!

अपराधियों को देती बेल !!


हिन्दू संतों को कानून के दुरुपयोग से प्रताड़ित करना और निचली अदालत में दोषी साबित होना कोई नई बात नहीं। 

साध्वी प्रज्ञा, जयेंद्र सरस्वती शंकराचार्यजी, स्वामी असीमानंदजी, कर्नल पुरोहित, केशवानन्दजी महाराज को निचली अदालत ने दोषी ही करार दिया था पर वो ऊपरी अदालत से बरी होकर आए।

राष्ट्र, सनातन धर्म व समाज सेवा में 55 वर्षों से रत संत आशारामजी बापू भी निर्दोष बरी होंगे- ऐसी जनता बता रही है।


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कोरोना वायरस खत्म करने का एक अमोघ साधन...

23 अप्रैल 2021

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कोरोना वायरस का प्रकोप हुआ है तबसे मीडिया, सोशल मीडिया में उसीकी खबरें चलाई जाती है। लेकिन क्या कोरोना वायरस से भी अनंतगुना शक्तिशाली ईश्वर नहीं है? कोरोना से सावधानी रखनी जरूरी है लेकिन 24 घन्टे वही खबर दिखाकर लोगों को भयभीत किया जाता है उसकी जगह सृष्टिकर्ता ईश्वर की खबरें दिखाई जाएं और ईश्वर के नाम का गुणगान किया जाए, प्रार्थनाएं की जायें तो बहुत लाभ होगा और कोरोना रूपी राक्षस का भी नाश होगा।



भगवान सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान हैं, समस्त प्राणियों के हृदय में विराजमान आत्मा हैं। उनकी लीला अमोघ है। उनकी शक्ति और उनका पराक्रम अनन्त है।


🚩महर्षि व्यासजी ने 'श्रीमद्भागवत' के माहात्म्य तथा  प्रथम स्कंध के प्रथम अध्याय के प्रारम्भ में मंगलाचरण के रुप में भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति इस प्रकार से की हैः


सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे।

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः।।


'सच्चिदानंद भगवान श्रीकृष्ण को हम नमस्कार करते हैं, जो जगत की उत्पत्ति, स्थिति एवं प्रलय के हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक – इन तीनों प्रकार के तापों का नाश करने वाले हैं।'

(श्रीमद्भागवत मा. 1.1)


★ भगवान की प्रार्थना में कितना बल है ये जान लीजिए...


वह परमात्मा कैसा समर्थ है! वह ‘कर्तुं अकर्तुं अन्यथाकर्तुं समर्थः’ है। असम्भव भी उसके लिए सम्भव है।


1970 की एक घटना अमेरिका के विज्ञान जगत में चिरस्मरणीय रहेगी।

अमेरिका ने 11 अप्रैल, 1970 को अपोलो-13 नामक अंतिरक्षयान चन्द्रमा पर भेजा। दो दिन बाद वह चन्द्रमा पर पहुँचा और जैसे ही कार्यरत हुआ कि उसके प्रथम युनिट ऑडीसी (सी.एस.एम.) के ऑक्सीजन की टंकी में विद्युत तार में स्पार्किंग होने के कारण अचानक विस्फोट हुआ जिससे युनिट में ऑक्सीजन खत्म हो गयी और विद्युत आपूर्ति बंद हो गयी।


उस युनिट में तीन अंतरिक्षयात्री थेः जेम्स ए. लोवेल, जॉन एल. स्वीगर्ट और फ्रेड वोलेस हेईज। इन अंतरिक्षयात्रियों ने विस्फोट होने पर सी.एस.एम. युनिट की सब प्रणालियाँ बंद कर दीं एवं वे तीनों उस युनिट को छोड़कर एक्वेरियस (एल.एम.) युनिट में चले गये।


अब असीम अंतरिक्ष में केवल एल.एम. युनिट ही उनके लिए लाइफ बोट के समान था। परंतु बाहर की प्रचंड गर्मी से रक्षा करने के लिए उस युनिट में गर्मी रक्षा कवच नहीं था। अतः पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रविष्ट होकर पुनः पृथ्वी पर वापस लौटने में उसका उपयोग कर सकना सम्भव नहीं था।

पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार पृथ्वी पर वापस लौटने में अभी चार दिन बाकी थे। इतना लम्बा समय चले उतना ऑक्सीजन एवं पानी का संग्रह नहीं बचा था। इसके अतिरिक्त इस युनिट के अंदर बर्फ की तरह जमा दे ऐसा ठंडा वातावरण एवं अत्यधिक कार्बन डाईऑक्साइड था। जीवन बचने की कोई गुंजाइश नहीं थी।

अंतरिक्षयात्री पृथ्वी के नियंत्रणकक्ष के निरंतर सम्पर्क में थे। उन्होंने कहाः “अंतरिक्षयान में धमाका हुआ है… अब हम गये…”

लाखों मील ऊँचाई पर अंतरिक्ष में मानवीय सहायता पहुँचाना सम्भव नहीं था। अंतरिक्षयान गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से भी ऊपर था। इस विकट परिस्थिति में सब निःसहाय हो गये। कोई मानवीय ताकत अंतरिक्षयात्रियों को सहायता पहुँचा सके- यह सम्भव नहीं था।

नीचे नियंत्रण कक्ष से कहा गयाः

“अब हम तो कुछ नहीं कर सकते। हम केवल प्रार्थना कर सकते हैं। जिसके हाथों में यह सारी सृष्टि है उस ईश्वर से हम केवल प्रार्थना कर सकते हैं... May God help you! We too shall pray to God. God will help you.” और देशवासियों ने भी प्रार्थना की।

युवान अंतरिक्षयात्रियों ने हिम्मत की। उन्होंने ईश्वर के भरोसे पर एक साहस किया। चंद्र पर अवरोहण करने के लिए एल.एम. युनिट के जिस इन्जन का उपयोग करना था उस इन्जन की गति एवं दिशा बदलकर एवं स्वयं गर्मी-रक्षक कवचरहित उस एल.एम. युनिट में बैठकर अपोलो – 13 को पृथ्वी की ओर मोड़ दिया। …और आश्चर्य ! तमाम जीवनघातक जोखिमों से पार होकर अंतरिक्षयान ने सही सलामत 17 अप्रैल, 1970 के दिन प्रशान्त महासागर में सफल अवरोहण किया।


उन अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने बाद में वर्णन करते हुए कहाः “अंतरिक्ष में लाखों मील दूर से एवं एल.एम. जैसे गर्मी-रक्षक कवच से रहित युनिट में बैठकर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश करना और प्रचण्ड गर्मी से बच जाना, हम तीनों का जीवित रहना असम्भव था… किसी भी मनुष्य का जीवित रहना असम्भव था। यह तो आप सबकी प्रार्थना ने काम किया है एवं अदृश्य सत्ता ने ही हमें जीवनदान दिया है।”

सष्टि में चाहे कितनी भी उथल-पुथल मच जाय लेकिन जब अदृश्य सत्ता किसी की रक्षा करना चाहती है तो वातावरण में कैसी भी व्यवस्था करके उसकी रक्षा कर देती है। ऐसे तो कई उदाहरण हैं।


★ प्रार्थना का प्रभाव


सन् 1956 में मद्रास इलाके में अकाल पड़ा। पीने का पानी मिलना भी दुर्लभ हो गया।


वहाँ का तालाब 'रेड स्टोन लेक' भी सूख गया। लोग त्राहिमाम् पुकार उठे। उस समय के मुख्यमंत्री श्री राजगोपालाचारी ने धार्मिक जनता से अपील की कि 'सभी लोग दरिया के किनारे एकत्रित होकर प्रार्थना करें।' सभी समुद्र तट पर एकत्रित हुए। किसी ने जप किया तो किसी ने गीता का पाठ, किसी ने रामायण की चौपाइयाँ गुंजायी तो किसी ने अपनी भावना के अनुसार अपने इष्टदेव से प्रार्थना की। मुख्यमंत्री ने सच्चे हृदय से, गदगद कंठ से वरुणदेव, इन्द्रदेव और सबमें बसे हुए आदिनारायण विष्णुदेव की प्रार्थना की। लोग प्रार्थना करके शाम को घर पहुँचे। वर्षा का मौसम तो कब का बीत चुका था। बारिश का कोई नामोनिशान नहीं दिखाई दे रहा था। 'आकाश मे बादल तो रोज आते और चले जाते हैं।'– ऐसा सोचते-सोचते सब लोग सो गये। रात को दो बजे मूसलाधार बरसात ऐसी बरसी, ऐसी बरसी कि 'रेड स्टोन लेक' पानी से छलक उठा। बारिश तो चलती ही रही। यहाँ तक कि मद्रास सरकार को शहर की सड़कों पर नावें चलानी पड़ीं।


दढ़ विश्वास, शुद्ध भाव, भगवन्नाम, भगवत्प्रार्थना छोटे-से-छोटे व्यक्ति को भी उन्नत करने में सक्षम है।


आज से हमें कोरोना रूपी राक्षस से सावधान रहना है पर भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। हम सर्वसमर्थ ईश्वर का नाम लेंगे, उनकी चर्चा, उनका ध्यान और उनकी प्रार्थना करेंगे तो कोरोना तो दूर होगा, साथ में हमारी चिंताएं, विध्न-बाधायें दूर होंगी और देश में सुंदर वातावरण बनेगा। मीडिया के बंधुओं से भी अपील है कि टीआरपी के लिए कोरोना की अधिक खबरें नहीं चलाकर ईश्वर के सामर्थ्यवाली खबरें चलाकर देश में सुखमय वातावरण बनाने में सहयोग देना चाहिए।


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ईश्वर और हिंदू संस्कृति की उपेक्षा करनेवाले सब समझ गए...

22 अप्रैल 2021

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सनातन हिंदू धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है पर हिन्दू संस्कृति को मिटाने के लिए अनेक षडयंत्र चले और चल रहे हैं; साथ ही हिंदू संस्कृति, साधु-संत एवं देवी-देवताओं का मजाक उड़ाया जाने लगा था, दूसरी बात दुनियाभर में काफी लोग नास्तिक बन गए थे और ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानते थे। ये लोग अपने को ही सर्वश्रेष्ठ मानते थे और पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करने लगे थे, लेकिन वर्तमान समय में कोरोना वायरस ने एक झटके में बता दिया कि सृष्टिकर्ता ईश्वर ही है और उनकी बनाई हुई सनातन हिंदू संस्कृति महान है।



पहले...


■ जब हिन्दू एक दूसरे को हाथ जोड़ कर नमस्ते कर रहे थे तो दुनिया उनपर हंस रही थी।


■ जब हिन्दू हाथ पैर धोकर घर में घुसते था तो दुनिया उनपर हंसती थी।


■ जब हिन्दू गाय माता आदि पशुओं की पूजा कर रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू पीपल, तुलसी और जंगलों को पूज रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू मुख्यतः शाकाहार पर बल दे रहे थे तब पूरी दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू योग, प्राणायाम कर रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिंदू शास्त्र और साधु-संतों के बताये अनुसार चल रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू ध्यान-भजन , पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन कर रहे थे तब दुनिया हंस रही थी।


■ जब हिन्दू श्मशान और अस्पताल से आकर स्नान करते थे तब दुनिया हंसती थी।


लकिन... ???


अब कोई हिंदू पर नही हंस रहा, बल्कि सब यही अपना रहे हैं।


सच ही कहा गया है सनातन हिन्दू धर्म की जो महानता है वह किसी भी पंथ-मजहब में नहीं है। हिंदू धर्म एक जीवन पद्धति भी है; अभी भी इस बात को जितना जल्दी समझ लें तो अच्छा है।


सबकुछ पालनकर्ता परब्रह्म परमात्मा ईश्वर ही है और उनकी बनाई हुई सनातन हिंदू संस्कृति महान है, क्योंकि यही संस्कृति हमारा जीवन उन्नत, बेहतरीन और सुरक्षित रख सकती है बाकी पाश्चात्य संस्कृति में कोई दम नहीं है। वे हमें सिर्फ चिंता, बीमारियां ही दे सकती है। इसलिए हमें अपनी मूल जड़ सनातन संस्कृति की ओर शीघ्र लौटना चाहिए, तभी सुरक्षित रहेंगे।


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कोरोना से बचने में मदद करता है- पीपल के दो पत्तों का सेवन

21 अप्रैल 2021

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भारतीय संस्कृति इतनी महान है कि इसका वर्णन करना किसी के बस की बात नहीं है और अगर आज हम उसका पालन करते तो कोरोना जैसी महामारी से आसानी से बच जाते। पहले हम पानी नहीं बेचते थे तब कोई बोलता कि पानी भी बिकेगा तब मजाक समझते थे; आज ऑक्सीजन भी बिकने लगा जबकि यह कुदरत ने हमें मुफ्त दिया है लेकिन आज हम इनका इतना दुरुपयोग कर रहे हैं कि पानी व ऑक्सीजन की कमी पड़ रही है। पहले के जमाने में पीपल, तुलसी, बरगद, नीम व बेल आदि के इतने पेड़ होते थे कि भरपूर ऑक्सीजन रहता था व उसके शुद्ध हवा से हम स्वस्थ रहते थे, क्योंकि भोजन तो हम दिन में 1-2 किलो ग्रहण करते हैं पर हवा हम 13 किलो ग्रहण करते हैं; तो जितनी शुद्ध हवा होती है उतना ही व्यक्ति स्वस्थ रहता है। आज फिर से समय आ गया है कि पीपल, तुलसी, नीम आदि के पेड़ चारों तरफ लगाये जायें।



पीपल के पत्तों की महत्ता...


कोरोना की वर्तमान स्थिति में आयुर्वेद से जुड़े सलाहकार रोगियों को शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए नए सुझावों का उपयोग करने के लिए कह रहे हैं। पूरे देश में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। फिर लोग घर पर रहते हैं और कोरोना से बचने के लिए घरेलू नुस्खों का उपयोग करते हैं। अगर आप भी इन टिप्स का इस्तेमाल करेंगे तो आपकी सेहत बेहतर रहेगी। आयुर्वेद के अनुसार हर दिन दो पीपल के पत्तों का सेवन करने से शरीर का ऑक्सीजन स्तर बढ़ेगा।


पीपल के पत्तों में नमी, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, फाइबर, कैल्शियम, आर्सेनिक, तांबा और मैग्नीशियम जैसे तत्व होते हैं। यह आपके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। यदि आप फेफड़ों में सूजन और तनाव महसूस करते हैं, सांस लेने में कठिनाई, सीने में दर्द के साथ खांसी है तो प्रतिदिन पीपल पत्ती का सेवन करने से इन सभी में आपको आराम मिलेगा। 



पीपल के पत्तों से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। 


यदि आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति कोरोना महामारी की अवधि के दौरान अच्छी है, तो यह आपको कोरोना के खिलाफ सुरक्षा प्राप्त करने में मदद करेगा। गिलोय को पीपल के पत्तों के साथ मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करना चाहिए। इससे शरीर में रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है।



बहुत अधिक शराब पीने से आपके लीवर पर असर पड़ सकता है। ऐसे समय में लीवर को स्वस्थ रखने के लिए पीपल का सेवन करना आवश्यक है ताकि लीवर को नुकसान न पहुंच सके। डॉक्टर लीवर की बीमारी वाले लोगों को हर दिन पीपल के पत्ते लेने की सलाह देते हैं। 


अगर आपको कफ की समस्या है तो टेंशन लेने की आवश्यकता नहीं है, पीपल की पत्तियां आपके लिए अच्छा विकल्प हैं; जिससे कि आपको जल्द ही कफ से राहत मिलेगी। पीपल के पत्तों का सूप बनाकर पीने से कफ नष्ट होता है ।

https://www.akilanews.com/Gujarat_news/Detail/17-04-2021/164395


पीपल का वृक्ष दमानाशक, हृदयपोषक, ऋण-आयनों का खजाना, रोगनाशक, आह्लाद व मानसिक प्रसन्नता का खजाना तथा रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ानेवाला है। बुद्धू बालकों तथा हताश-निराश लोगों को भी पीपल के स्पर्श एवं उसकी छाया में बैठने से अमिट स्वास्थ्य-लाभ व पुण्य-लाभ होता है। पीपल की जितनी महिमा गाएं, उतनी कम है।


मनुष्य सोचता था कि हमारा ही अधिकार है- पृथ्वी पर और जल तथा वायु को प्रदूषित कर दिया, इसका परिणाम खुद मनुष्य ही भुगत रहा है। कई शहरों में हवा जहरीली हो गई, ऑक्सीजन की कमी पड़ रही है।


सबसे पहले हमें स्वदेशी पारम्परिक जड़ी बूटियों की पहचान करनी होगी और तुलसी, पीपल, नीम, गिलोय आदि कुदरती वृक्षों और पौधों को लगाना होगा और उसकी औषधियां लगानी होगी जिससे हमारे देश में आ रही अरबों-खरबों रुपयों की दवाई आनी बंद होगी और हमारी दवाइयां विदेशों में निर्यात होंगी। इससे आमदनी बढ़ेगी जिससे देश आत्मनिर्भर बनेगा और कोरोना जैसी महामारी से बचा जा सकेगा।


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भगवान श्री राम की लोकप्रियता इन कारणों से आज भी अमर है !!

20 अप्रैल 2021

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भगवान श्री राम का जन्म त्रेता युग में माना जाता है। धर्मशास्त्रों में, विशेषतः पौराणिक साहित्य में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एक चतुर्युगी में 43,20,000 वर्ष होते हैं, जिनमें कलियुग के 4,32,000 वर्ष तथा द्वापर के 8,64,000 वर्ष होते हैं। श्री रामजी का जन्म त्रेता युग में अर्थात द्वापर युग से पहले हुआ था। चूंकि कलियुग का अभी प्रारंभ ही हुआ है (लगभग 5,100 वर्ष ही बीते हैं) और श्री रामजी का जन्म त्रेता के अंत में हुआ तथा अवतार लेकर धरती पर उनके वर्तमान रहने का समय परंपरागत रूप से 11,000 वर्ष माना गया है। अतः द्वापर युग के 8,64,000 वर्ष + श्री रामजी की वर्तमानता के 11,000 वर्ष + द्वापर युग के अंत से अबतक बीते 5,100 वर्ष= कुल 8,80,100 वर्ष। अतएव परंपरागत रूप से भगवान श्री रामजी का जन्म आज से लगभग 8,80,100 वर्ष पहले माना जाता है।



एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श पिता, आदर्श शिष्य, आदर्श योद्धा और आदर्श राजा के रूप में यदि किसीका नाम लेना हो तो भगवान श्रीरामजी का ही नाम सबकी जुबान पर आता है। इसलिए राम-राज्य की महिमा आज लाखों-लाखों वर्षों के बाद भी गायी जाती है।


भगवान श्रीरामजी के सद्गुण ऐसे विलक्षण थे कि पृथ्वी के प्रत्येक धर्म, सम्प्रदाय और जाति के लोग उन सद्गुणों को अपनाकर लाभान्वित हो सकते हैं ।


भगवान श्रीरामजी सारगर्भित बोलते थे। उनसे कोई मिलने आता तो वे यह नहीं सोचते थे कि पहले वह बात शुरू करे या मुझे प्रणाम करे। सामनेवाले को संकोच न हो इसलिए श्रीरामजी अपनी तरफ से ही बात शुरू कर देते थे।


रामजी प्रसंगोचित बोलते थे। जब उनके राजदरबार में धर्म की किसी बात पर निर्णय लेते समय दो पक्ष हो जाते थे, तब जो पक्ष उचित होता श्रीरामजी उसके समर्थन में इतिहास, पुराण और पूर्वजों के निर्णय उदाहरण रूप में कहते, जिससे अनुचित बात का समर्थन करनेवाले पक्ष को भी लगे कि दूसरे पक्ष की बात सही है ।


शरीरामजी दूसरों की बात बड़े ध्यान व आदर से सुनते थे। बोलनेवाला जब तक स्वयं तथा औरों के अहित की बात नहीं कहता, तब तक वे उसकी बात सुन लेते थे। जब वह किसी की निंदा आदि की बात करता तब देखते कि इससे इसका अहित होगा या इसके चित्त का क्षोभ बढ़ जाएगा या किसी दूसरे की हानि होगी, तो वे सामनेवाले को सुनते-सुनते इस ढंग से बात मोड़ देते कि बोलनेवाले का अपमान नहीं होता था। श्रीरामजी तो शत्रुओं के प्रति भी कटु वचन नहीं बोलते थे ।


यद्ध के मैदान में श्रीरामजी एक बाण से रावण के रथ को जला देते, दूसरा बाण मारकर उसके हथियार उड़ा देते फिर भी उनका चित्त शांत और सम रहता था। वे रावण से कहते : ‘लंकेश! जाओ, कल फिर तैयार होकर आना। ऐसा करते-करते काफी समय बीत गया तो देवताओं को चिंता हुई कि रामजी को क्रोध नहीं आता है, वे तो समता-साम्राज्य में स्थिर हैं, फिर रावण का नाश कैसे होगा? लक्ष्मणजी, हनुमानजी आदि को भी चिंता हुई, तब दोनों ने मिलकर प्रार्थना की: ‘प्रभु ! थोड़े कोपायमान होईए। तब श्रीरामजी ने क्रोध का आह्वान किया: क्रोधं आवाहयामि। ‘क्रोध! अब आ जा।'


शरीरामजी क्रोध का उपयोग तो करते थे, किंतु क्रोध के हाथों में नहीं आते थे। श्रीरामजी को जिस समय जिस साधन की आवश्यकता होती थी, वे उसका उपयोग कर लेते थे। श्रीरामजी का अपने मन पर बड़ा विलक्षण नियंत्रण था। चाहे कोई सौ अपराध कर दे फिर भी रामजी अपने चित्त को क्षुब्ध नहीं होने देते थे।


शरीरामजी अर्थव्यवस्था में भी निपुण थे। "शुक्रनीति" और "मनुस्मृति" में भी आया है कि जो धर्म, संग्रह, परिजन और अपने लिए- इन चार भागों में अर्थ की ठीक से व्यवस्था करता है वह आदमी इस लोक और परलोक में सुख-आराम पाता है।


शरीरामजी धन के उपार्जन में भी कुशल थे और उपयोग में भी। जैसे मधुमक्खी पुष्पों को हानि पहुँचाए बिना उनसे परागकण ले लेती है, ऐसे ही श्रीरामजी प्रजा से ऐसे ढंग से कर (टैक्स) लेते कि प्रजा पर बोझ नहीं पड़ता था। वे प्रजा के हित का चिंतन तथा उनके भविष्य का सोच-विचार करके ही कर लेते थे।


परजा के संतोष तथा विश्वास-सम्पादन के लिए श्रीरामजी राज्यसुख, गृहस्थसुख और राज्यवैभव का त्याग करने में भी संकोच नहीं करते थे। इसलिए श्रीरामजी का राज्य आदर्श राज्य माना जाता है।


राम-राज्य का वर्णन करते हुए ‘श्री रामचरितमानस में आता है :

बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग ।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग।।


‘राम-राज्य में सब लोग अपने-अपने वर्ण और आश्रम के अनुकूल धर्म में तत्पर रहते हुए सदा वेद-मार्ग पर चलते हैं और सुख पाते हैं। उन्हें न किसी बात का भय है, न शोक और न कोई रोग ही सताता है।'


राम-राज्य में किसीको आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं ।


धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान) से जगत में परिपूर्ण हो रहा है, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है। पुरुष और स्त्री सभी रामभक्ति के परायण हैं और सभी परम गति (मोक्ष) के अधिकारी हैं।

स्रोत: ऋषि प्रसाद पत्रिका: मार्च, 2010


दश के नेता भी भगवान श्री रामजी से कुछ गुण ले लें तो प्रजा के साथ-साथ उन नेताओं का भी कितना कल्याण होगा, यह अवर्णनीय है और सदियों तक यश भी फैला रहेगा।


रामनवमी को रामराज्य की स्थापना का संकल्प करेंगे...


रामराज्य में प्रजा धर्माचरणी थी इसीलिए उनको भगवान श्रीराम जैसे सात्त्विक राज्यकर्ता मिले और वे आदर्श रामराज्य का उपभोग कर पाए।

इसके साथ यदि हम भी धर्माचरणी और ईश्‍वर का भक्त बनें, तो पहले के समान ही रामराज्य (धर्माधिष्ठित हिन्दूराष्ट्र) अब भी अवतरित होगा।


नित्य धर्माचरण और धर्माधिष्ठित राज्यकार्य भार से आदर्श राज्यकार्य करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम अर्थात प्रभु श्रीराम। प्रजा का जीवन संपन्न करनेवालेे, अपराध भ्रष्टाचार आदि के लिए कोई स्थान नहीं- ऐसे रामराज्य की ख्याति थी। ऐसे आदर्श राज्य "हिन्दूराष्ट्र" स्थापना का निर्धारण (निश्‍चय) करेंगे!!


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ऐसा तो क्या है रामायण में कि लाखों वर्ष के बाद भी मांग है?

19 अप्रैल 2021

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रामायण को लाखों वर्ष हो गये लेकिन जनता के हृदयपटल से विलुप्त नहीं हुई,  क्योंकि ‘रामायण’ में वर्णित आदर्श चरित्र विश्वसाहित्य में मिलना दुर्लभ है ।



भगवान श्री राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो भगवान श्री राम की धर्मपत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया। परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मणजी कैसे रामजी से दूर हो जाते? माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की... परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, परन्तु अपनी धर्म पत्नी उर्मिला को कैसे समझाऊंगा? क्या कहूंगा?


यही सोच विचार करके लक्ष्मणजी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिलाजी आरती का थाल लेकर खड़ी थीं और बोलीं- "आप मेरी चिंता छोड़िये, प्रभु श्री राम की सेवा में वन को जाइए। मैं आपको नहीं रोकूँगी। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।"


लक्ष्मणजी को कहने में संकोच हो रहा था। परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिलाजी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया। वास्तव में यही पत्नी का धर्म है। पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही धर्मपत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!!


लक्ष्मणजी चले गये, परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिलाजी ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया। वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मणजी कभी सोये नहीं, परन्तु उर्मिलाजी ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग-जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया।


मघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मणजी को शक्ति लग जाती है और श्री हनुमानजी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या में भरतजी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमानजी गिर जाते हैं। तब हनुमानजी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि माता सीताजी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं।


यह सुनते ही कौशल्याजी कहती हैं कि श्री राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे। माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है। मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। माताओं का प्रेम देखकर श्री हनुमानजी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिलाजी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं??


हनुमानजी पूछते हैं- हे देवी, आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा। उर्मिलाजी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा।


उर्मिला बोलीं- "मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता। आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता। यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं। मेरे पति जब से वन गये हैं, तब से सोये नहीं हैं। उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। वे उठ जायेंगे। और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं, शक्ति तो रामजी को लगी है। मेरे पतिदेव की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम-रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद-बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में सिर्फ राम ही हैं, तो शक्ति रामजी को ही लगी, दर्द रामजी को ही हो रहा है। इसलिये हनुमानजी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।"


रामायण का दूसरा प्रसंग


भरतजी नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्नजी  उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं।


एक रात की बात है, माता कौशिल्याजी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। नींद खुल गई । पूछा कौन है?


मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं। नीचे बुलाया गया ।


श्रुतिकीर्तिजी, जो सबसे छोटी हैं, आकर चरणों में प्रणाम कर खड़ी हो गईं।


माता कौशिल्याजी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया? क्या नींद नहीं आ रही?

शत्रुघ्न कहाँ है?

श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं; बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।


उफ ! कौशल्या जी का हृदय काँप गया।


तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए। आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्नजी की खोज होगी, माँ चली ।


आपको मालूम है, शत्रुघ्नजी जी कहाँ मिले ?


अयोध्याजी के जिस दरवाजे के बाहर भरतजी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।


माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी ने आँखें खोलीं, माँ ! उठे, चरणों में गिरे।  माँ ! आपने क्यों कष्ट किया? मुझे बुलवा लिया होता।


माँ ने कहा, शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?


शत्रुघ्नजी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया श्री रामजी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्ष्मणजी उनके पीछे चले गए, भैया भरतजी भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं?


माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।


दखो यह रामकथा है...।


यह भोग की नहीं त्याग की कथा है, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही है और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा!


चारों भाइयों का प्रेम और त्याग एक-दूसरे के प्रति अद्भुत, अभिनव और अलौकिक है।

रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती है।


भगवान श्रीराम के वनवास का मुख्य कारण मंथरा के लिए भी श्रीराम के हृदय में विशाल प्रेम है। रामायण का कोई भी पात्र तुच्छ नहीं है, हेय नहीं है। श्रीराम की दृष्टि में तो रीछ और बंदर भी तुच्छ नहीं हैं। जामवंत, हनुमान, सुग्रीव, अंगदादि सेवक भी उन्हें उतने ही प्रिय हैं जितने भरत, शत्रुघ्न, लखन और माँ सीता। माँ कौशल्या, कैकयी एवं सुमित्रा जितनी प्रिय हैं, उतनी ही शबरी श्रीराम को प्यारी लगती हैं।


राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण , बलिदान से ही आया। हमें भी अपने परिवार के साथ रामायण पढ़कर, देखकर घर से रामराज्य की शुरूआत करनी चाहिए।


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