Wednesday, November 18, 2020

मुम्बई में उल्हासनगर बन रहा है ईसाई नगर, 2 लाख हिन्दू बनाये गए ईसाई

18 नवंबर 2020


हिन्दू बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं का इस प्रकार से खुलेआम धर्मांतरित होना, यह अभीतक के शासनकर्ताओं द्वारा हिन्दुओं को धर्मशिक्षा न देने का ही गंभीर परिणाम है ! यह अबतक के शासनकर्ताओं के लिए लज्जाप्रद है ! इस स्थिति को बदलने के लिए अब हिन्दू राष्ट्र ही चाहिए ।




जिस सिंधी समुदाय ने अखंड हिन्दुस्तान के विभाजन के समय हिन्दू धर्म जीवित रहे; इसके लिए पाकिस्तान में स्थित अपनी भूमि, संपत्ति और सबकुछ त्याग दिया, वही सिंधी समुदाय अब ईसाईयों के लालच की बलि चढ़ रहा है और उच्चवर्गीय सिंधीवर्ग अब मिशनरियों का प्रचार कर रहा है, यह दुर्भाग्यजनक स्थिति बन गई है ।

उल्हासनगर में धर्मांतरण की घटनाओं को रोकना अब स्थानीय हिन्दुओं के नियंत्रण के बाहर जा चुका है । यदि ऐसी ही स्थिति बनी रही, तो आनेवाले कुछ वर्षों में यहां के सिंधी अर्थात हिन्दू नष्ट होकर उल्हासनगर को महाराष्ट्र के पहले ईसाई नगर के रूप में घोषित होने में समय नहीं लगेगा ।

मुंबई : ठाणे जनपद का उल्हासनगर अब ईसाई मिशनरियों के लिए धर्मांतरण का अड्डा बन गया है । विगत 5-6 वर्षों से षड्यंत्र के अंतर्गत यहां के लाखों हिन्दुओं का धर्मांतरण किया गया है । स्थानीय सिंधी संगठन और प्रतिनिधियों ने यह चौंका देनेवाली जानकारी दी है कि मिशनरियों ने यहां के बहुसंख्यक सिंधी समुदाय को अपना लक्ष्य बनाया है और विगत 5-6 वर्षों में यहां के 28 हजार परिवारों के डेढ़ लाख से भी अधिक सिंधी लोगों का धर्मांतरण किया गया है । यहां के सिंधी समुदाय के इस धर्मांतरण को अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र कहा जा रहा है ।

स्थानीय लोगों ने यह जानकारी दी कि, उल्हासनगर में जमीन के भाव बहुत अधिक होते हुए भी इस परिसर में 18 बड़े चर्चों का निर्माण किया गया है । नगर में ईसाई मिशनरियों ने अपना इतना बड़ा जाल बनाया है कि इस क्षेत्र में कुल 25 से भी अधिक छोटे-बड़े चर्च और 100 से भी अधिक प्रार्थनास्थल बनाए गए हैं । वर्ष 1947 में देश के विभाजन के समय, इसके लिए सिंधी समुदाय भारत में आ गया । ईसाई मिशनरियों द्वारा विगत कुछ वर्षों से सिंधी समुदाय का अत्यंत नियोजनतापूर्वक तथा गुप्त पद्धति से धर्मांतरण किया जा रहा है । इस विषय में यहां के पत्रकार और सूचना अधिकार कार्यकर्ता श्री. सत्यम पुरी ने यहां की भयावह वास्तविकता बताते हुए कहा कि, उल्हासनगर के अधिकांश परिवार का न्यूनतम एक तो व्यक्ति ईसाई बन ही गया है ।

ईसाईयों द्वारा बांटी गई पत्रिकाएं-

1. यहां के अनेक लोगों ने यह बताया कि ये धर्मांतरित सिंधी लोग अपने समुदाय के अन्य लोगों को भी धर्मांतरित होने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं । यहां के जो व्यापारी और उनके परिवार ईसाई बन गए हैं, वे ईसाई पंथ के प्रचार हेतु अपने प्लैट, जमीन, साथ ही अपनी गाड़ियाँ भी ईसाई मिशनरियों को उपलब्ध करा रहे हैं ।

2. धर्मांतरित सिंधी व्यापारी वर्ग और उच्चस्तर के सिंधी लोग अपने परिजन और समुदाय के अन्य लोगों को भी धर्मांतरण के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं ।

3. स्थानीय हिन्दू इन धर्मांतरण की घटनाओं के विरुद्ध वैधानिक पद्धति से संघर्ष कर रहे हैं; परंतु उनके प्रयास कम पड़ रहे हैं ।

धर्मांतरित सिंधी स्वयं का नाम न बदलकर सिंधी लड़कियों से विवाह कर उनसे कर रहे हैं धोखाधड़ी-

श्री. सत्यम पुरी ने बताया कि सिंधी समुदाय में लड़कियों की संख्या लड़कों की संख्या की अपेक्षा कम है । ये लड़कियां इन धर्मांतरित सिंधी लड़कों के साथ विवाह करने राजी नहीं होती; इसलिए ईसाई प्रिस्ट इन धर्मांतरित सिंधी युवकों को अपना पहले का ही नाम चालू रखने के लिए कहते हैं । उसके कारण उनसे विवाह करनेवाली लड़कियों को विवाह के पश्‍चात उसके पति द्वारा ईसाई पंथ का स्वीकार करने की बात ज्ञात होती है । तत्पश्‍चात ये धर्मांतरित युवक अपनी पत्नी पर धर्मांतरण के लिए दबाव बनाते हैं । इस प्रकार की घटनाएं आज घर-घर में हो रही हैं।

झूठे चमत्कार बताकर किया जाता है धर्मांतरण-
उल्हासनगर के निकट ही ताबोर आश्रम नामक एक ईसाई संस्था की स्थापना की गई है । यह तथाकथित आश्रम धर्मांतरण का बड़ा केंद्र बन गया है । साथ ही, नगर के विविध स्थानोंपर अंधविश्‍वास फैलानेवाले कार्यक्रम निरंतर चालू रहते हैं । ऐसे कार्यक्रमों के प्रचार के अंतर्गत विविध स्थानों पर ‘अपाहिज व्यक्ति चल सकेगा, अंधा देख पाएगा और इसके लिए ईसा मसीह के शरण में आएं’, ऐसे वाक्य छपे हुए पोस्टर्स लगाए हुए दिखाई देते हैं । (क्या महाराष्ट्र की अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति को यह अंधश्रद्धा नहीं दिखाई देती ?  या उन्हें ईसाईयों के विरुद्ध कुछ बोलना नहीं है ? – संपादक) ऐसा होते हुए भी प्रशासन की ओर से ऐसे अंधविश्‍वास फैलानेवाले कार्यक्रमों के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्यवाही होते हुए नहीं दिखाई देती । विविध चैनलों से इन कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण भी किया जाता है ।

धर्मांतरित धनवान लोगों द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण का मिशनरियों का षड्यंत्र-

 मिशनरियों द्वारा धनवान सिंधी लोगों का धर्मांतरण कर उन्हें आसपास के गांवों में वहां के आदिवासी और निर्धन लोगों के धर्मांतरण के लिए भेजा जाता है । उल्हासनगर के धनवान लोगों द्वारा किए गए धर्मांतरण का उदाहरण प्रस्तुत कर ये धर्मांतरित सिंधी लोग निर्धन लोगों का धर्मांतरण करते हैं ।

धर्मांतरण का विरोध करनेवालों को झूठे अपराधों के प्रकरणों में फंसाया जा रहा है-

जानकारी के लिए बता दें कि यहां के एक बस्ती में जब धर्मान्तरण चल रहा था, तब वहां के स्थानीय हिन्दुओं ने उसका वैधानिक पद्धति से विरोध किया । तब ईसाई लोगों ने पुलिस थाने में हिन्दुओं के विरुद्ध उनका कार्यक्रम बिखेर देने का तथा हिन्दुओं द्वारा गालीगलोच किए जाने का झूठा परिवाद प्रविष्ट कर हिन्दुओं पर दबाव बनाने का प्रयास किया ।

विविध हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन यहां के धर्मांतरण की इन गंभीर घटनाओं का वैधानिक पद्धति से विरोध कर रहे हैं । स्थानीय हिन्दुत्वनिष्ठ धर्मांतरण के कार्यक्रम के विषय में पुलिस थाने में परिवाद प्रविष्ट करना, जिस स्थानपर ये कार्यक्रम किए जाते हैं, उस स्थान के मालिकों का उद्बोधन करना जैसे प्रयास कर रहे हैं; परंतु उसकी अनदेखी कर धर्मांतरण की घटनाएं चल ही रही हैं । आज इस समस्या ने अत्यंत गंभीर रूप धारण किया है ।

सरकार का इसपर ध्यान न देना मतलब खुद का भी वोट बैंक कम करना हुआ, ईसाई बन जायेंगे तो हिंदू पार्टी को ही वोट कम जाएंगे।

 स्वामी विवेकानंद कहते थे कि एक हिंदू अगर धर्मान्तरित होता है तो एक हिंदू कम हुआ नही बल्कि हिंदू समाज का एक दुश्मन बढ़ा इसलिए सरकार इस पर सख्त कमद उठाना चाहिये और ईसाई मिशनरियों का गोरखधंधा बंद करवा देना चाहिए ।

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Tuesday, November 17, 2020

"आश्रम" वेब सीरीज बनाने के पीछे के षड्यंत्र का पर्दाफाश…

 

17 नवंबर 2020


वैसे तो ये कोई नई बात नहीं है कि बॉलीवुड द्वारा हिंदू विरोधी पहली फ़िल्म बनाई गयी हो, यह सिलसिला पिछले कई दशकों से चल रहा है और समाज को सबसे ज्यादा अगर गुमराह किया हो तो वह बॉलीबुड ने किया है। बॉलीवुड ने समाज को यही दिया कि शादी करती हुई लड़की को मंडप से उठा लेना, बलात्कार, चोरी, डकैती, अधनंगे कपड़े पहनना, मां-बाप को वृद्धाश्रम छोड़ देना, लव जिहाद को बढ़ावा देना, भारतीय संस्कृति को हीन बताना, साधु-संतों, देवी देवताओं मदिरों और पंडितों का मजाक उड़ाना ओर पाश्चात्य संस्कृति को महान बताना यही तो ये लोग करते आये हैं।




आश्रम वेब सीरीज फ़िल्म निर्माता प्रकाश झा ने बनाई है लेकिन उसके पीछे बड़ा रहस्य है, प्रकाश झा की इतनी हैसियत नहीं है कि वे करोड़ो रूपये की फ़िल्म बना ले फिर करोड़ो रूपये खर्च करके उसका प्रोमोशन करे क्योंकि विज्ञापन से कुछ लाख रुपये ही आयेंगे लेकिन उसको जिस तरह प्रमोट किया जा रहा है उससे लग रहा है कि उसमे कई करोड रुपये खर्च किये है इसके पीछे कही न कही राष्ट्र व भारतीय संस्कृति को तोडने वाली ताकते लगी हुई है। क्योंकि "आश्रम" नाम पवित्र शब्द है उस पर करोडों लोग श्रद्धा करते है, वहाँ पर जाकर शांति पाते हैं इसके कारण धर्मांतरण कराने वाली मिशनरी और विदेशी प्रोडक्ट बेचने वाली कंपनियों को भारी नुकसान हो रहा है क्योंकि साधु-संतों के प्रति श्रद्धा रखने वाले आश्रम में जाते है और वहाँ उनको भारतीय संस्कृति के अनुसार जीने का सही तरीका मिलता है फिर वे अपने धर्म के प्रति आस्थावान हो जाते हैं जिसके कारण वे ईसाई मिशनरियों के चुंगल में नहीं आते हैं औऱ वे विदेशी प्रोडक्ट भी नहीं खरीदते जिसके कारण ईसाई मिशनरियों का जो लक्ष्य है भारत में धर्मांतरण करके अपनी वोटबैंक बढ़ाकर सत्ता हासिल करना ओर जो विदेशी कंपनियों के सामान नहीं बिकने पर उनको अरबो-खबरों रूपये का घाटा होता इसके कारण ये लोग अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचकर हिंदुओं की आश्रम व साधु-संतों के प्रति आस्था को नष्ट करने के लिए साज़िशें रच रहे हैं और प्रकाश झा जैसे जयचंद गद्दारी करके अपने ही धर्म के खिलाफ फिल्में बनाते है असली कारण यही है।

देखा जाए तो चर्चो में बलात्कार के हजारों किस्से आ चुके हैं, मदरसों में भी यौन शोषण के कई किस्से आ चुके है पर अभी तक उस पर फ़िल्म कोई न बनाता है और न ही कोई हिम्मत करता है क्योंकि उसके लिए न फंडिंग मिलेगी और उपर से कमलेश तिवारी की तरह हत्या हो जाएगी इसलिए वास्तविक में जहाँ पर गड़बड़ी हो रही है उस पर वे ध्यान नहीं देते है पर हिंदी सहिष्णु है और उनके खिलाफ षड्यंत्र रचने के लिए भारी फंडिंग मिलती है इसके कारण प्रकाश झा जैसे जयचंद हिंदू विरोधी फिल्में बनाते हैं।

प्रकाश झा के खिलाफ शिकायत दर्ज

करणी सेना की तरफ से वेब सीरीज को बैन करने की मांग की है। सेना के लोगों का कहना है कि सीरीज के जरिए, साधु संतों को बदनाम करने की कोशिश की गई है। उनकी छवि खराब करने की कोशिश की गई है। करणी सेना के महामंत्री सुरजीत सिंह ने इस मामले पर कहा कि हमने प्रकाश झा के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है। हमें सीरीज के टाइटल को लेकर अपनी आपत्ति जताई है। हम चाहते है कि इसे लेकर पुलिस उचित करवाई करे। करनी सेना की हिंदुनिष्ठ लोग सरहाना कर रहे हैं क्योंकि अब इसके पीछे का षड्यंत्र हिंदुस्तानी लोग समझने लगें हैं।

वास्तविकता तो यह है कि कितने साधु-संतों ने घोर तपस्या की है फिर वे समाज में आकर उनको सही मार्ग दिखाते हैं, समाज को व्यसनमुक्त बनाने का प्रयास करते हैं, संयमी और सदाचारी समाज को बनाते हैं, गरीबों-आदिवासियों को सहायता करते हैं। गौ माता की रक्षा करते हैं। बच्चों, युवाओं व महिलाओं के उत्थान के लिए केंद्र खोलते हैं। धर्मान्तरण पर रोक लगाते हैं। चिंता, टेंशन में रह रहे लोगों को शांति देते हैं, स्वदेशी का प्रचार करते हैं, सभी को स्वस्थ, सुखी और सम्मानित जीवन जीने की कला सिखाते हैं। राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं।

वैसे आपको बता दें कि ऐसी फिल्में देखकर श्रद्धालुओं में तो तनिक भी फर्क नही पड़ा है उपर से हिंदू लोग प्रकाश झा के खिलाफ हो गए हैं।

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Monday, November 16, 2020

मीडिया ने आसाराम बापू की इस बड़ी खबर को कर दिया गायब, जानिए कोनसी खबर है

16 नवंबर 2020


 टीआरपी और पैसे की अंधीदौड़ में अधिकितर मीडिया कई बार झूठी खबरें दिखा देती है और सहीं खबरें छुपा देती है। इसके कारण आज मीडिया ने विश्वसनीयता खो दी है।




 दीपावली के पावन पर्व पर एक तरफ हम मिठाई खाते हैं, नये कपड़े पहनते हैं, खुशियां मनाते हैं, लेकिन उन गरीबों का क्या जिनके पास पैसे नहीं हैं वो कैसे दीपावली मनायेंगे? गरीब भी अच्छी दिवाली मना जा सकें इस निमित्त हिंदू संत आशाराम बापू के अनुयाइयों ने देशभर में आदिवासी क्षेत्रों में जाकर मिठाई, कपड़े, खजूर, चप्पल, बर्तन आदि जीवनोपयोगी सामग्री एवं नगद पैसे और शिरा पुलाव आदि का
 इस अभियान से आदिवासी लोगों की दीपावली अच्छी मनी और दूसरा कि जो मिशनरियां धर्मांतरण करवाती थीं उनका धंधा चौपट हो गया और आदिवासियों की हिंदू धर्म के प्रति आस्था बढ़ी, लेकिन खेद की बात है कि जो मीडिया चिल्ला चिल्लाकर हिंदू संत आशाराम बापू के खिलाफ झूठी कहानियां बनाकर बदनाम कर रही थी उसने यह खबर कहीं भी नहीं दिखाई।

 आपको बता दें कि बापू आशारामजी द्वारा 50 सालों से समाज उत्थान के कार्य कर रहे हैं । उन्होंने सत्संग के द्वारा देश व समाज को तोड़ने वाली ताकतों से देशवासियों को बचाया। कत्लखाने जा रही हजारों गायों को कटने से बचाया, कई गौशालाओं की व्यवस्था की। लाखों लोगो को धर्मान्तरण से बचाया व धर्मान्तरित लाखों हिंदुओं को अपने धर्म में वापसी कराई । गरीब आदिवासी क्षेत्रों में जहाँ खाने की सुविधा तक नहीं थी वहाँ "भोजन करो, भजन करो दक्षिणा पाओ", गरीबों में राशन कार्ड के द्वारा अनाज का वितरण, कपड़े, बर्तन व जीवन उपयोगी सामग्री एवं मकान आदि का वितरण किया जाता है ।
 
 प्राकृतिक आपदाओं में जहाँ प्रशासन भी नहीं पहुँच सका वहाँ बापू आशारामजी की के शिष्यों द्वारा कई सेवाकार्य (निःशुल्क भोजन भंडार, कम्बल, कपड़े का वितरण व स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं) होते हैं । इसके अलावा महिला सुरक्षा (WOMEN SAFETY & EMPOWERMENT) के कई अभियान चलाए, नारी जाति के सम्मान व उनमें पूज्यभाव के लिए सबको प्रोत्साहित किया, बड़ी कंपनीयों में काम कर रही महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई, महिला संगठन बनाया।

 परिवार में सुख-शांति व परस्पर सद्भाव से जीना सिखाया, पारिवारिक झगड़ों से मुक्ति दिलायी, महिलाओं के मार्गदर्शन व सर्वांगीण विकास हेतु देशभर में ‘महिला उत्थान मंडलों’ की स्थापना की तथा नारी उत्थान हेतु कई अभियान चलाये। बापू आसारामजी ने बाल व युवा पीढ़ी में नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के सिंचन हेतु हजारों बाल संस्कार केन्द्रों, युवा सेवा संघों व गुरुकुलों की स्थापना की, आज की युवापीढ़ी को माता पिता का सम्मान सिखाकर वैलेंटाइन के बदले में मातृ-पितृ पूजन दिवस मानना सिखाया । 25 दिसम्बर को संस्कृति की रक्षा के लिए तुलसी पूजन दिवस अभियान एक नई पहल की। केमिकल रंगों से बचा कर प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की पहल की, जिससे पानी व स्वास्थ्य की रक्षा हो। व्यसन मुक्ति के अभियान चलाकर करोड़ों लोगों को व्यसन मुक्त कराया। बच्चों, युवाओं व महिलाओं में अच्छे संस्कार के लिए ढेरों अभियान चलाये जाते हैं । World's Religions Parliament, शिकागो अमेरिका में 1993 में स्वामी विवेकानन्दजी के बाद यदि कोई दूसरे संत ने प्रतिनिधित्व किया है तो वे बापू आसारामजी, जिन्होंने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कर सनातन संस्कृति का परचम लहराया। इन सेवाकार्यों से देश-विदेश के करोड़ों लोग किसी भी तरह के धर्म- जाति -मत - पंथ -सम्प्रदाय-राज्य व लिंग के हो भेदभाव के बिना लाभान्वित हो रहे हैं ।

 मीडिया ने हिंदू संत आशारामजी बापू द्वारा देश व धर्म के हित में हो रहे अनेक सेवाकार्य को नहीं दिखाया, पर उनके खिलाफ अनेक झूठी कहानियां बनाकर जनता को गुमराह किया ।

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Sunday, November 15, 2020

जानिए भाईदूज का इतिहास, इस दिन भाई को यमपाश से कैसे छुड़ाये?

15 नवंबर 2020


भाई दूज महत्वपूर्ण पर्व है जो भारत और नेपाल में मनाया जाता है। दीपावली के पर्व का पांचवां दिन भाईदूज भाइयों की बहनों के लिए और बहनों की भाइयों के लिए सदभावना बढ़ाने का दिन है। इस साल 16 नवंबर को भाईदूज पर्व मनाया जायेगा।

भाईदूज का इतिहास




यमराज, यमुना, तापी और शनि ये भगवान सूर्य की संताने कही जाती हैं। किसी कारण से यमराज अपनी बहन यमुना से वर्षों दूर रहे। एक बार यमराज के मन में हुआ कि 'बहन यमुना को देखे हुए बहुत वर्ष हो गये हैं।' अतः उन्होंने अपने दूतों को आज्ञा दीः "जाओ जा कर जाँच करो कि यमुना आजकल कहाँ स्थित है।"

यमदूत विचरण करते-करते धरती पर आये तो सही किंतु उन्हें कहीं यमुना जी का पता नहीं लगा। फिर यमराज स्वयं विचरण करते हुए मथुरा आये और विश्रामघाट पर बने हुए यमुना के महल में पहुँचे।

बहुत वर्षों के बाद अपने भाई को पाकर बहन यमुना ने बड़े प्रेम से यमराज का स्वागत-सत्कार किया और यमराज ने भी उसकी सेवा सुश्रुषा के लिए याचना करते हुए कहाः "बहन ! तू क्या चाहती है? मुझे अपनी प्रिय बहन की सेवा का मौका चाहिए।"

यमुना जी ने कहाः ''भैया ! आज नववर्ष की द्वितीया है। आज के दिन भाई बहन के यहाँ आये या बहन भाई के यहाँ पहुँचे और जो कोई भाई बहन से स्नेह से मिले, ऐसे भाई को यमपुरी के पाश से मुक्त करने का वचन को तुम दे सकते हो।"

यमराज प्रसन्न हुए और बोलेः "बहन ! ऐसा ही होगा।"

पौराणिक दृष्टि से आज भी लोग बहन यमुना और भाई यम के इस शुभ प्रसंग का स्मरण करके आशीर्वाद पाते हैं व यम के पाश से छूटने का संकल्प करते हैं।

यह पर्व भाई-बहन के स्नेह का द्योतक है। कोई बहन नहीं चाहती कि उसका भाई दीन-हीन, तुच्छ हो, सामान्य जीवन जीने वाला हो, ज्ञानरहित, प्रभावरहित हो। इस दिन भाई को अपने घर पाकर बहन अत्यन्त प्रसन्न होती है अथवा किसी कारण से भाई नहीं आ पाता तो स्वयं उसके घर चली जाती है।

बहन भाई को इस शुभ भाव से तिलक करती है कि 'मेरा भैया त्रिनेत्र बने। बहन तिलक करके अपने भाई को प्रेम से भोजन कराती है और बदले में भाई उसको वस्त्र-अलंकार, दक्षिणादि देता है। बहन निश्चिंत होती है कि 'मैं अकेली नहीं हूँ.... मेरे साथ मेरा भैया है।'

दीपावली के तीसरे दिन आने वाला भाईदूज का यह पर्व, भाई की बहन के संरक्षण की याद दिलाने वाला और बहन द्वारा भाई के लिए शुभ कामनाएँ करने का पर्व है।

इस दिन बहन को चाहिए कि अपने भाई की दीर्घायु के लिए यमराज से अर्चना करे और इन अष्ट चिरंजीवीयों के नामों का स्मरण करेः मार्कण्डेय, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा और परशुराम। 'मेरा भाई चिरंजीवी हो' ऐसी उनसे प्रार्थना करे तथा मार्कण्डेय जी से इस प्रकार प्रार्थना करेः
मार्कण्डेय महाभाग सप्तकल्पजीवितः।
चिरंजीवी यथा त्वं तथा मे भ्रातारं कुरुः।।

'हे महाभाग मार्कण्डेय ! आप सात कल्पों के अन्त तक जीने वाले चिरंजीवी हैं। जैसे आप चिरंजीवी हैं, वैसे मेरा भाई भी दीर्घायु हो।' (पद्मपुराण)

इस प्रकार भाई के लिए मंगल कामना करने का तथा भाई-बहन के पवित्र स्नेह का पर्व है भाईदूज।
(स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य "पर्वो का पुंज दीपावली")

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Saturday, November 14, 2020

दीपावली के दूसरे दिन नूतन वर्ष, बलि प्रतिपदा, गोवर्धन पूजन में क्या करें?

14 अक्टूबर 2020


दीपावली वर्ष का आखिरी दिन है और नूतन वर्ष प्रथम दिन है। यह दिन आपके जीवन की डायरी का पन्ना बदलने का दिन है।

दीपावली का दूसरा दिन अर्थात् नूतन वर्ष का प्रथम दिन (गुजराती पंचांग अनुसार) जो वर्ष के प्रथम दिन हर्ष, दैन्य आदि जिस भाव में रहता है, उसका संपूर्ण वर्ष उसी भाव में बीतता है। 'महाभारत' में पितामह भीष्म महाराज युधिष्ठिर से कहते है-




यो यादृशेन भावेन तिष्ठत्यस्यां युधिष्ठिर।
हर्षदैन्यादिरूपेण तस्य वर्षं प्रयाति वै।।

'हे युधिष्ठिर ! आज नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है उसका पूरा वर्ष हर्ष में जाता है और जो शोक में रहता है, उसका पूरा वर्ष शोक में ही व्यतीत होता है।'

अतः वर्ष का प्रथम दिन हर्ष में बीते, ऐसा प्रयत्न करें। वर्ष का प्रथम दिन दीनता-हीनता अथवा पाप-ताप में न बीते वरन् शुभ चिंतन में, सत्कर्मों में प्रसन्नता में बीते ऐसा यत्न करें।

आज के दिन से हमारे नूतन वर्ष का प्रारंभ भी होता है। इसलिए भी हमें अपने इस नूतन वर्ष में कुछ ऊँची उड़ान भरने का संकल्प करना चाहिए।

बलि प्रतिपदा:-

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बलि प्रतिपदा के रूप में मनाई जाती है । इस दिन भगवान श्री विष्णु ने दैत्यराज बलि को पाताल में भेजकर बलि की अतिदानशीलता के कारण होनेवाली सृष्टि की हानि रोकी । बलिराजा की अतिउदारता के परिणामस्वरूप अपात्र लोगों के हाथों में संपत्ति जाने से सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई । तब वामन अवतार लेकर भगवान श्रीविष्णु ने बलिराजा से त्रिपाद भूमिका दान मांगा । उपरांत वामनदेव ने विराट रूप धारण कर दो पग में ही संपूर्ण पृथ्वी एवं अंतरिक्ष व्याप लिया । तब तीसरा पग रखने के लिए बलिराजा ने उन्हें अपना सिर दिया । वामनदेव ने बलि को पाताल में भेजते समय वर मांगने के लिए कहा । उस समय बलि ने वर्ष में तीन दिन पृथ्वी पर बलिराज्य होने का वर मांगा । वे तीन दिन हैं – नरक चतुर्दशी, दीपावली की अमावस्या एवं बलिप्रतिपदा । तब से इन तीन दिनों को ‘बलिराज्य’ कहते हैं ।

गोवर्धनपूजन

इस दिन गोवर्धनपूजा करने की प्रथा है । भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इस दिन इंद्रपूजन के स्थान पर गोवर्धनपूजन आरंभ किए जाने के स्मरण में गोवर्धन पूजन करते हैं । इसके लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा की तिथि पर प्रात:काल घर के मुख्य द्वार के सामने गौ के गोबर का गोवर्धन पर्वत बना कर उसपर दूर्वा एवं पुष्प डालते हैं । शास्त्र में बताया है कि, इस दिन गोवर्धन पर्वत का शिखर बनाएं । वृक्ष-शाखादि और फूलों से उसे सुशोभित करें । इनके समीप कृष्ण, इंद्र, गाएं, बछड़ों के चित्र सजाकर उनकी भी पूजा करते हैं एवं झांकियां निकालते हैं । परंतु अनेक स्थानों पर इसे मनुष्य के रूप में बनाते हैं और फूल इत्यादि से सजाते  हैं ।  चंदन, फूल इत्यादि से  उसका पूजन करते हैं और प्रार्थना करते हैं,

_गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक ।_
_विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव ।। – धर्मसिंधु_

इसका अर्थ है, पृथ्वी को धारण करनेवाले गोवर्धन ! आप गोकुलके रक्षक हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने आपको भुजाओं में उठाया था । आप मुझे करोड़ों गौएं प्रदान करें । गोवर्धन पूजन के उपरांत गौओं एवं बैलों को वस्त्राभूषणों तथा मालाओं से सजाते हैं । गौओं का पूजन करते हैं । गौमाता साक्षात धरतीमाता की प्रतीकस्वरूपा हैं । उनमें सर्व देवतातत्त्व समाए रहते हैं । उनके द्वारा पंचरस प्राप्त होते हैं, जो जीवों को पुष्ट और सात्त्विक बनाते हैं । ऐसी गौमाताको साक्षात श्री लक्ष्मी मानते हैं । उनका पूजन करने के उपरांत अपने पापनाश के लिए उनसे प्रार्थना करते हैं । धर्मसिंधु में इस श्लोक द्वारा गौमाता से  प्रार्थना की है,

_लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता ।_
_घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु ।। – धर्मसिंधु_

इसका अर्थ है, धेनुरूप में विद्यमान जो लोकपालों की साक्षात लक्ष्मी हैं तथा जो यज्ञ के लिए घी देती हैं, वह गौमाता मेरे पापों का नाश करें । पूजन के उपरांत गौओं को विशेष भोजन खिलाते हैं । कुछ स्थानों पर गोवर्धन के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण, गोपाल, इंद्र तथा सवत्स गौओं के चित्र सजाकर उनका पूजन करते हैं और उनकी शोभायात्रा भी निकालते हैं ।

बता दें की दीपावली की रात्रि में वर्षभर के कृत्यों का सिंहावलोकन करके आनेवाले नूतन वर्ष के लिए शुभ संकल्प करके सोयें। उस संकल्प को पूर्ण करने के लिए नववर्ष के प्रभात में अपने माता-पिता, गुरुजनों, सज्जनों, साधु-संतों को प्रणाम करके तथा अपने सदगुरु के श्रीचरणों में और मंदिर में जाकर नूतन वर्ष के नये प्रकाश, नये उत्साह और नयी प्रेरणा के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। जीवन में नित्य-निरंतर नवीन रस, आत्म रस, आत्मानंद मिलता रहे, ऐसा अवसर जुटाने का दिन है 'नूतन वर्ष।'
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’ एवं संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य ऋषि प्रसाद से)

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Friday, November 13, 2020

दीपावली का पर्व कबसे मनाया जाता है? इसदिन लक्ष्मी प्राप्ति के लिए क्या करें?

13 नवम्बर 2020


दीपावली हिन्दू समाज में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार है। दीपावली को मनाने का उद्देश्य भारतीय संस्कृति के उस प्राचीन सत्य का आदर करना है, जिसकी महक से आज भी लाखों लोग अपने जीवन को सुवासित कर रहे हैं। दिवाली का उत्सव पर्वों का पुंज है। भारत में इस उत्सव को मनाने की परंपरा कब से चली, इस विषय में बहुत सारे अनुमान किये जाते हैं। 




बताया जाता है कि भगवान श्रीराम जी का राज्याभिषेक इसी अमावस के दिन हुआ था और राज्याभिषेक के उत्सव में दीप जलाये गये थे, घर-बाजार सजाये गये थे, गलियाँ साफ-सुथरी की गयी थीं, मिठाइयाँ बाँटी गयीं थीं, तबसे दिवाली मनायी जा रही है।

यह भी बताया जाता है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण करके राजा बलि से दान में तीन कदम भूमि माँग ली और विराट रूप लेकर तीनों लोक ले लिए तथा सुतल का राज्य बलि को प्रदान किया। सुतल का राज्य जब बलि को मिला और उत्सव हुआ, तबसे दिवाली चली आ रही है।

कही ये भी बताया जाता है कि सागर मंथन के समय क्षीरसागर से महालक्ष्मी उत्पन्न हुईं तथा भगवान नारायण और लक्ष्मी जी का विवाह-प्रसंग था, तबसे यह दिवाली मनायी जा रही है।

यह भी पुराणों में आता है कि श्रीकृष्ण ने आसुरी वृत्ति के नरकासुर का वध कर जनता को भोगवृत्ति, लालसा, अनाचार एवं दुष्टप्रवृत्ति से मुक्त किया एवं प्रभुविचार (दैवी विचार) देकर सुखी किया तबसे ‘दीपावली’ मनाई जाती है।

सिखों का कहना है कि गुरु गोविन्दसिंह इस दिन से विजययात्रा पर निकले थे। तबसे सिक्खों ने इस उत्सव को अपना मानकर प्रेम से मनाना शुरू किया।

जैनी बताते है कि 'महावीर ने अंदर का अँधेरा मिटाकर उजाला किया था। उसकी स्मृति में दिवाली के दिन बाहर दीये जलाते हैं। महावीर ने अपने जीवन में तीर्थंकरत्व को पाया था, अतः उनके आत्म उजाले की स्मृति कराने वाला यह त्यौहार हमारे लिए विशेष आदरणीय है।

इस प्रकार पौराणिक काल में जो भिन्न-भिन्न प्रथाएँ थीं, वे प्रथाएँ देवताओं के साथ जुड़ गयीं और दिवाली का उत्सव बन गया।

यह उत्सव कब से मनाया जा रहा है, इसका कोई ठोस दावा नहीं कर सकता, लेकिन है यह रंग-बिरंगे उत्सवों का गुच्छ..... यह केवल सामाजिक, आर्थिक और नैतिक उत्सव ही नहीं वरन् आत्मप्रकाश की ओर जाने का संकेत करने वाला, आत्मोन्नति कराने वाला उत्सव है।

किसी अंग्रेज ने आज से 900 वर्ष पहले भारत की दिवाली देखकर अपनी यात्रा-संस्मरणों में इसका बड़ा सुन्दर वर्णन किया है तो दिवाली उसके पहले भी होगी।

संसार की सभी जातियाँ अपने-अपने उत्सव मनाती हैं। प्रत्येक समाज के अपने उत्सव होते हैं जो अन्य समाजों से भिन्न होते हैं, परंतु हिंदू पर्वों और उत्सवों में कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं, जो किसी अन्य जाति के उत्सवों में नहीं हैं। हम लोग वर्षभर उत्सव मनाते रहते हैं। एक त्यौहार मनाते ही अगला त्यौहार सामने दिखाई देता है। इस प्रकार पूरा वर्ष आनन्द से बीतता है।

 दीपावली टिप्स

1. दिवाली की रात कुबेर भगवान ने लक्ष्मी जी की आराधना की थी जिससे वे धनाढ्यपतियों के भी धनाढ्य कुबेर भंडारी के नाम से प्रसिद्ध हुए , ऐसा इस काल का महत्व है ।

दीपावली की रात का लाख गुना फलदायी होता है । ये सिद्ध रात्रियाँ कहलाती हैं व भाग्य की रेखा बदलने वाली रात्रियाँ हैं । अधिक से अधिक जप करके इन रात्रियों का लाभ उठाना चाहिए ।

दीपावली की रात्रि जप करने योग्य लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र "रात्रि को दीया जलाकर इस सरल मंत्र का यथाशक्ति जप करें : ' ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा"

2. घर के बाहर हल्दी और चावल के मिश्रण या केवल हल्दी से स्वस्तिक अथवा ॐकार बना दें । यह घर को बाधाओं से सुरक्षित रखने में मदद करता है । द्वार पर अशोक और नीम के पत्तों का तोरण ( बंदनवार ) बाँध दें | उससे पसार होनेवाले की रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी ।


3. लक्ष्मी प्रात्ति हेतु दीपावली की संध्या को तुलसी जी के निकट दीया जलाएँ , इससे लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने में मदद मिलती है ।

4. लक्ष्मी प्राप्ति की साधना :- दीपावली के दिनघर के मुख्य दरवाजे के दायीं और बायीं ओर गेहूँ की छोटी-छोटी ढेरी लगाकर उस पर दो दीपक जला दें । हो सके तो वे रात भर जलते रहें, इससे आपके घर में सुख - सम्पति की वृद्धि होगी ।

5. लक्ष्मी प्राप्ति हेतु गुरुदेव के श्रीचित्र पर विशेष तिलक :- दीपावली के दिन लौंग और इलायची को जलाकर राख कर दें और उससे भगवान अथवा गुरुदेव (श्रीचित्र) को तिलक करें । ऐसा करने से लक्ष्मी प्राप्ति में मदद मिलती है और काम - धंधे में बरकत आती है ।

6. आनंद व प्रसन्नतावर्धक नारियल - खीर प्रयोग :- दीपावली के रात्रि को थोड़ी खीर को कटोरी में डालकर और नारियल लेकर घूमना और मन में 'लक्ष्मी-नारायण' जप करना ; स्वीर ऐसी जगह रखना जहाँ किसीका पैर ना पड़े और गाय, कौए आदि स्वा जाएँ । नारियल अपने घर के मुख्य दरवाजे पर फोड़ देना और उसकी प्रसादी बांटना । इससे घर में आनंद और सुख-शांति रहेगी ।

7. परिवार की तीनों तापों से रक्षा के लिए-कपूर :- दीपावली के दिन चाँदी की कटोरी में अगर कपूर को जलाएँ, तो परिवार में तीनों तापों से रक्षा होती है ।

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Thursday, November 12, 2020

चांदी के वर्क वाली मिठाई का सच जानकर आप भी खाना छोड़ देंगे..

12 नवंबर 2020


 हिन्दू त्यौहार में मिठाईयां खूब खाई जाती हैं, उसमें भी मेहमानों को आकर्षित करने के लिए चांदी के वर्क वाली मिठाईयां ख़रीद के खाई जाती हैं और खिलाई जाती हैं।




 देशभर में दीपावली की धूम मची है, उसमे भी वर्क वाली मिठाईयों का खूब उपयोग किया जा रहा है, लेकिन ये मिठाई खाने जैसी है कि नहीं, क्या भगवान को वर्क वाली मिठाई का भोग लगाना उचित है या नहीं, ये जानना बेहद जरूरी है।

कुछ लोग खूबसूरती के लिए ये मिठाईयां घर लाते हैं तो कुछ लोग सेहत के लिए फायदेमंद समझकर खरीदते हैं।

 मिठाईयों पर लगे चाँदी के वर्क का सच जानने के बाद आप मिठाई खाने से पहले सौ बार सोचेंगे। हो सकता है खाना ही छोड़ दें। क्या आपको पता है कि आपको वर्क के नाम पर मांसाहारी मिठाई परोसी जा रही है ?

चांदी के वर्क वाली मिठाई दिखने में जितनी सुंदर है। उसी चांदी के वर्क के बनने की कहानी बेहद ही घिनौनी है। सालों से लोग वर्क लगी मिठाई को शाकाहारी समझ कर खा रहे हैं, लेकिन सजावट के लिए लगाया जाने वाला चांदी का वर्क असलियत में जानवर की खाल से बनता है।

बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि यह वर्क गाय-बैल की आंतों से तैयार किया जाता है ।

जिस चांदी के वर्क लगी मिठाई को शाकाहारी समझ कर आप बरसों से खा रहे हैं, वो दरअसल शाकाहारी नहीं है जानवर के अंश का इस्तेमाल करके चांदी का वर्क बनाया जाता है ।

बता दें कि देश में चांदी के वर्क की सालाना मांग करीब 275 टन की है । चांदी के वर्क का कारोबार फिलहाल भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में है जो कि पूरी तरह असंगठित क्षेत्र के हाथ में है । यही वजह है कि इसके कारोबार का सही-सही आंकड़ा किसी के पास नहीं है ।

 चांदी का बाजार !!

परंपरागत रूप से देश में चांदी का वर्क बूचड़खानों से ली गई जानवरों की खालों और उनकी आंतों को हथौड़ों से पीटकर तैयार किया जाता है ।

इसके अलावा विदेशी मशीनों से भी चांदी का वर्क तैयार होता है, इसमें एक स्पेशल पेपर और पॉलिएस्टर कोटेड शीट के बीच चांदी को रखकर उसके वर्क का पत्ता तैयार होता है । इसमें जानवर के अंश का इस्तेमाल नहीं किया जाता । चूंकि ये मशीनें महंगी हैं और देश में गिनी चुनी कंपनियों के पास ही हैं, ऐसे में इनका चांदी का वर्क महंगा भी पड़ता है और कम भी । एक अनुमान के मुताबिक भारत में अधिकतर चांदी का वर्क पुराने तरीके से, जानवरों के अंश का इस्तेमाल करके बनता है।

सरकारी आदेश का असर !!

सरकार ने कुछ साल पहले चांदी के वर्क को बनाने में जानवर के अंश का इस्तेमाल नहीं करने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया है । फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व सदस्य और फूड एक्सपर्ट बिजॉन मिश्रा का भी कहना है कि चांदी के वर्क बेचते समय बताना चाहिए कि ये मांसाहारी है या शाकाहारी । इसके पैकेट पर हरा और लाल निशान होना चाहिए ।

आपको बता दें कि पैकेट पर हरा निशान मतलब की शाकाहारी है और लाल निशान मतलब की वो वस्तु मांसाहारी है ।

 दो साल पहले मेनका गांधी ने मीडिया को बताया कि मिठाई व पान ही नहीं सेब जैसे फल को आकर्षक बनाने के लिए उनके ऊपर जो चांदी का वर्क लगाया जाता है वह मांसाहार की श्रेणी में आता है।

उनका कहना है कि यह वर्क जिंदा बैलों का कत्ल कर उनकी आंत के सहारे तैयार किया जाता है । वर्क लगी मिठाइयों के बढ़ते आकर्षण के कारण प्रति वर्ष हजारों गौवंशीय पशुओं की हत्या की जाती है।

उन्होंने बताया कि गौवंशीय पशु की आंत से बनी वर्क में चांदी, एल्यूमिनियम अथवा उस जैसी धातु का बड़ा टुकड़ा डाला जाता है । फिर उसे लकड़ी के हथौड़े से पीट कर पतला करके आकार दिया जाता है ।

बैल की आंत पीटते रहने से फटती नहीं है । चांदी के वर्क के चक्कर में कुछ लोग एल्यूमिनियम भी बेच देते हैं।

मेनका गाँधी का कहना है कि इस कारोबार से जुड़े लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पशु हत्या, गाय की हत्या में भी संलिप्त कहे जा सकते हैं । 'पांच साल पहले इंडियन एयरलाइंस ने यह महसूस किया कि चांदी वर्क मांसाहार है, और अपने कैटरर को विमान में परोसी जाने वाली मिठाइयों पर वर्क न लगाने के निर्देश दिए थे । साथ ही पत्र भेज कर बैल की आंतों के सहारे तैयार कराए जाने वाले वर्क पर रोक लगाने को कहा था ।

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कराई गई जांच में भी वर्क के मांसाहार होने की पुष्टि हुई ।

केंद्र अब कानून के जरिये इस पर प्रतिबंध की तैयारी में है ।

इस आशय का 19 अप्रैल 2016 को राजपत्र भी आम राय के लिए वेबसाइट पर डाला था ।

आप गाय के दूध से बनी घरेलू मिठाई ही खायें और बैल के वर्क से बनी मिठाइयों, सुपारी, लडडू, इलायची आदि से सावधान रहें ।

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