Sunday, May 20, 2018

जानिए गौहत्या का इतिहास, भारत मे गौमाता कि रक्षा कब होगी?

🚩संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत जी ने बयान दिया है कि गौहत्या पर सारे देश में प्रतिबन्ध लगना चाहिए। हम उनके बयान का सम्मान करते है और आशा करते है कि वह मोदी जी पर इस अति आवश्यक कार्य के लिए दवाब बनाएंगे।
Know the history of cow slaughter, Gumata in India
 when will be the protection?

🚩भारतीय इतिहास में गौ हत्या को लेकर कई आंदोलन हुए हैं और कई आज भी जारी हैं। लेकिन अभी तक गौहत्या पर प्रतिबन्ध नहीं लग सका है। इसका सबसे बड़ा कारण राजनितिक इच्छा शक्ति कि कमी होना है। आप कल्पना कीजिये हर रोज जब आप सोकर उठते है तब तक हज़ारों गौओं के गलों पर छूरी चल चुकी होती है। गौ हत्या से सबसे बड़ा फ़ायदा तस्करों एवं गाय के चमड़े का कारोबार करने वालों को होता है। इनके दबाव के कारण ही सरकार गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने से पीछे हट रही है। वरना जिस देश में गाय को माता के रूप में पूजा जाता हो वहां सरकार गौ हत्या रोकने में नाकाम है। आज हमारे देश कि जनता ने नरेन्द्र मोदी जी को सरकार चुनी है। सेक्युलरवाद और अल्पसंख्यकवाद के नाम पर पिछले अनेक दशकों से बहुसंख्यक हिन्दुओं के अधिकारों का दमन होता आया है। उसी के प्रतिरोध में हिन्दू प्रजा ने संगठित होकर जात-पात से ऊपर उठकर एक सशक्त सरकार को चुना है। इसलिए यह इस सरकार का कर्त्तव्य बनता है कि वह बदले में हिन्दुओं कि शताब्दियों से चली आ रही गौरक्षा कि मांग को पूरा करे और गौ हत्या पर पूर्णत प्रतिबन्ध लगाए।
🚩अक्सर देखने में आता है कि बिकाऊ मीडिया और पक्षपाती पत्रकारों के प्रभाव से हम यह आंकलन निकाल लेते है कि सारे देशवासियों कि भी यही राय होगी जो इन पत्रकारों, बुद्धिजीवियों कि होती है। मगर देश कि जनता ने चुनावों में मोदी जी को जीत दिलाकर यह सिद्ध कर दिया कि नहीं यह केवल आसमानी किले है। इसलिए सरकार को चंद उछल कूद करने वालों कि संभावित प्रतिक्रिया से प्रभावित होकर गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगाने से पीछे नहीं हटना चाहिए। ध्यान दीजिये मुस्लिम शासनकाल में गौ हत्या पर रोक थी। भारत में मुस्लिम शासन के दौरान कहीं भी गौकशी को लेकर हिंदू और मुसलमानों में टकराव देखने को नहीं मिलता। बाबर से लेकर अकबर ने गोहत्या पर रोक लगाई थी। औरंगजेब ने इस नियम को तोड़ा तो उसका साम्राज्य तबाह हो गया। आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र ने भी 28 जुलाई 1857 को बकरीद के मौक़े पर गाय कि क़ुर्बानी न करने का फ़रमान जारी किया था। साथ ही चेतावनी दी थी कि जो भी गौ वध करने या कराने का दोषी पाया जाएगा उसे मौत कि सज़ा दी जाएगी।
🚩भारत में गौ हत्या को बढ़ावा देने में अंग्रेज़ों ने अहम भूमिका निभाई। जब 1700 ई. में अंग्रेज़ भारत आए थे उस वक़्त यहां गाय और सुअर का वध नहीं किया जाता था। हिंदू गाय को पूजनीय मानते थे और मुसलमान सुअर का नाम तक लेना पसंद नहीं करते थे। अंग्रेजों ने मुसलमानों को भड़काया कि क़ुरान में कहीं भी नहीं लिखा है कि गाय कि क़ुर्बानी हराम है। इसलिए उन्हें गाय कि क़ुर्बानी करनी चाहिए। उन्होंने मुसलमानों को लालच भी दिया और कुछ लोग उनके झांसे में आ गए। इसी तरह उन्होंने दलित हिंदुओं को सुअर के मांस कि बिक्री कर मोटी रकम कमाने का झांसा दिया। 18वीं सदी के आख़िर तक बड़े पैमाने पर गौ हत्या होने लगी। अंग्रेज़ों कि बंगाल, मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी सेना के रसद विभागों ने देश भर में कसाईखाने बनवाए। जैसे-जैसे यहां अंग्रेज़ी सेना और अधिकारियों कि तादाद बढ़ने लगी वैसे-वैसे गौ हत्या में भी बढ़ोत्तरी होती गई।
🚩गौ हत्या और सुअर हत्या कि आड़ में अंग्रेज़ों को हिंदू और मुसलमानों में फूट डालने का भी मौक़ा मिल गया। इस दौरान हिंदू संगठनों ने गौ हत्या के ख़िला़फ मुहिम छेड़ दी। नामधारी सिखों का कूका आंदोलन कि नींव गौरक्षा के विचार से जुड़ी थी। हरियाणा प्रान्त में हरफूल जाट जुलानी ने अनेक कसाईखानों को बर्बाद कर कसाइयों को यमलोक पंहुचा दिया। हरफूल जाट ने बलिदान दे दिया मगर पीछे नहीं हटें। 1857 कि क्रांति मंगल पांडेय का बलिदान इसी गौरक्षा अभियान के महान बलिदानों से सम्बंधित है। आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द ने गौरक्षा के लिए आधुनिक भारत में सबसे व्यापक प्रयास आरम्भ किये। उन्होंने गौरक्षा एवं खेती करने वाले किसानों के लिए गौ करुणा निधि पुस्तक कि रचना कर सप्रमाण यह सिद्ध किया कि गौ रक्षा क्यों आवश्यक है। स्वामी जी यहाँ तक नहीं रुके। उन्होंने भारत कि पहली गौशाला रिवाड़ी में राव युधिष्ठिर के सहयोग से स्थापित की, जिससे गौरक्षा हो सके। इसके अतिरिक्त उन्होंने पांच करोड़ भारतियों के हस्ताक्षर करवाकर उन्हें महारानी विक्टोरिया के नाम गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रस्ताव भेजने का अभियान भी चलाया। यह अभियान उनकी असमय मृत्यु के कारण पूरा न हुआ। मगर इससे भारत वर्ष में हज़ारों गौशाला कि स्थापना हुई एवं गौरक्षा अभियान को लोगों ने अपने प्रबंध से चलाया। भारत में गौरक्षा अभियान के समाचार लंदन भी पहुंचे। आख़िरकार महारानी विक्टोरिया ने वायसराय लैंस डाउन को पत्र लिखा। महारानी ने कहा, हालांकि मुसलमानों द्वारा कि जा रही गौ हत्या आंदोलन का कारण बनी है लेकिन हक़ीक़त में यह हमारे ख़िलाफ़ है क्योंकि मुसलमानों से कहीं ज़्यादा गौ वध हम कराते हैं। इसके ज़रिए ही हमारे सैनिकों को गौ मांस मुहैया हो पाता है। इसके बाद 1892 में देश के विभिन्न हिस्सों से सरकार को हस्ताक्षरयुक्त पत्र भेजकर गौ वध पर रोक लगाने कि मांग की जाने लगी। इन पत्रों पर हिंदुओं के साथ मुसलमानों के भी हस्ताक्षर होते थे। 1947 के पश्चात भी गौरक्षा के लिए अनेक अभियान चले। 1966 में हिन्दू संगठनों ने देशव्यापी अभियान चलाया। हज़ारों गौभक्तों ने गोली खाई मगर पीछे नहीं हटे। राजनितिक इच्छा शक्ति कि कमी के चलते यह अभियान सफल नहीं हुआ।
🚩इस समय भी देशव्यापी अभियान चलाया जा रहा है। जिसमें केंद्र सरकार से गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने और भारतीय गौवंश कि रक्षा के लिए कठोर क़ानून बनाए जाने कि मांग की जा रही है। गाय कि रक्षा के लिए अपनी जान देने में भारतीय मुसलमान किसी से पीछे नहीं हैं. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले के गांव नंगला झंडा निवासी डॉ. राशिद अली ने गौ तस्करों के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ रखी थी जिसके चलते 20 अक्टूबर 2003 को उन पर जानलेवा हमला किया गया और उनकी मौत हो गई. उन्होंने 1998 में गौ रक्षा का संकल्प लिया था और तभी से डॉक्टरी का पेशा छोड़कर वह अपनी मुहिम में जुट गए थे गौ वध को रोकने के लिए विभिन्न मुस्लिम संगठन भी सामने आए हैं दारूल उलूम देवबंद ने एक फ़तवा जारी करके मुसलमानों से गौ वध न करने कि अपील की है. दारूल उलूम देवबंद के फतवा विभाग के अध्यक्ष मुती हबीबुर्रहमान का कहना है कि भारत में गाय को माता के रूप में पूजा जाता है। इसलिए मुसलमानों को उनकी धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए गौ वध से ख़ुद को दूर रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि शरीयत किसी देश के क़ानून को तोड़ने का समर्थन नहीं करती। क़ाबिले ग़ौर है कि इस फ़तवे कि पाकिस्तान में कड़ी आलोचना की गई थी। इसके बाद भारत में भी इस फ़तवे को लेकर ख़ामोशी अख्तियार कर ली गई।
🚩गाय भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अहम भाग है। यहां गाय कि पूजा की जाती है। यह भारतीय संस्कृति से जुड़ी है। महात्मा गांधी कहते थे कि अगर निस्वार्थ भाव से सेवा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण कहीं देखने को मिलता है तो वह गौ माता है। गाय का ज़िक्र करते हुए वह लिखते है-
"गौ माता जन्म देने वाली माता से श्रेष्ठ है। हमारी माता हमें दो वर्ष दुग्धपान कराती है और यह आशा करती है कि हम बड़े होकर उसकी सेवा करेंगे। गाय हमसे चारे और दाने के अलावा किसी और चीज़ कि आशा नहीं करती। हमारी मां प्राय: रूग्ण हो जाती है और हमसे सेवा कि अपेक्षा करती है। गौ माता शायद ही कभी बीमार पड़ती है। वह हमारी सेवा आजीवन ही नहीं करती अपितु मृत्यु के बाद भी करती है। अपनी मां कि मृत्यु होने पर हमें उसका दाह संस्कार करने पर भी धनराशि व्यय करनी पड़ती है। गौ माता मर जाने पर भी उतनी ही उपयोगी सिद्ध होती है जितनी अपने जीवनकाल में थी। हम उसके शरीर के हर अंग-मांस, अस्थियां, आंतों, सींग और चर्म का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह बात जन्म देने वाली मां कि निंदा के विचार से नहीं कह रहा हूं बल्कि यह दिखाने के लिए कह रहा हूं कि मैं गाय कि पूजा क्यों करता हूं।"- महात्मा गाँधी
🚩महात्मा गाँधी का नाम लेकर पूर्व में अनेक सरकारें बनी मगर गौहत्या पर प्रतिबन्ध नहीं लगा। आज इस देश कि सरकार से हम प्रार्थना करते है कि समस्त देश कि भवनाओं का सम्मान करते हुए गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाए एवं गौहत्या करने वाले को कठोर से कठोर दंड मिले। - डॉ विवेक आर्य
#गौरक्षा_राष्ट्रधर्म_है
#SaveGauRakshaks
🚩(1966 में गौहत्या पर प्रतिबन्ध के समर्थन में संसद का खेराव करते महान गौरक्षक। उनके तप और बलिदान के लिए कोटि कोटि नमन)
🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻
🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk
🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt
🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf
🔺Google+ : https://goo.gl/Nqo5IX
🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG
🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

No comments:

Post a Comment