23 August 2024
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श्रीकृष्ण की 16 कलाएं: एक दिव्य व्यक्तित्व का आदर्श
श्रीकृष्ण को सनातन धर्म में पूर्ण अवतार माना गया है, जिनकी 16 कलाएं विशेष रूप से वर्णित है। इन कलाओं के माध्यम से उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में आदर्श स्थापित किए और धर्म, कर्म, प्रेम और भक्ति का मर्म समझाया। श्रीकृष्ण की 16 कलाओं का विस्तार से वर्णन करते हुए, हम उनके जीवन और उनके व्यक्तित्व की महिमा का दर्शन कर सकते है।
1. धृति (धैर्य): धृति का अर्थ है कठिनाइयों का सामना करते हुए भी मन को स्थिर रखना। श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को धृति की शिक्षा दी, जब अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया था। कृष्ण ने उसे अपने कर्तव्यों का पालन करने का उपदेश दिया और बताया कि हर परिस्थिति में धैर्य रखना ही सच्चा धर्म है।
2. मति (बुद्धि): मति का अर्थ है बुद्धि या विवेक, जिससे व्यक्ति सही और गलत का निर्णय कर सके। श्रीकृष्ण की बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा उदाहरण भगवतगीता में मिलता है, जहाँ उन्होंने अर्जुन को ज्ञान का उपदेश दिया और उसे जीवन के गूढ़ रहस्यों से अवगत कराया। उनकी मति का ही प्रभाव था कि वे हर समस्या का समाधान खोज निकालते थे।
3. उमा (लक्ष्मी/समृद्धि): उमा, जिन्हें लक्ष्मी भी कहा जाता है, समृद्धि और वैभव की देवी है। श्रीकृष्ण का जीवन समृद्धि का प्रतीक था। उनके जीवन में कभी भी कोई कमी नहीं रही, चाहे वह धन की हो या प्रेम और मित्रता की। वे सभी के लिए सुख और समृद्धि का आशीर्वाद लेकर आए थे
4. करुणा (दया): करुणा का अर्थ है सभी प्राणियों के प्रति दया और सहानुभूति रखना। श्रीकृष्ण का हृदय करुणा से भरा हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में कई बार अपने शत्रुओं के प्रति भी दया दिखाई। उदाहरण के लिए, जब कंस की मृत्यु का समय आया, तब भी श्रीकृष्ण ने उसे मोक्ष का मार्ग दिखाया।
5. वीर्य (शक्ति): वीर्य का अर्थ है शक्ति और साहस। श्रीकृष्ण ने बचपन में ही पूतना, शकटासुर और कालिया नाग जैसे असुरों का संहार किया। उनकी शक्ति का यह गुण महाभारत के युद्ध में भी दिखाई दिया, जब उन्होंने अर्जुन का सारथी बनकर कौरवों की पूरी सेना का सामना किया।
6. अहिंसा (अहिंसा): श्रीकृष्ण का जीवन अहिंसा का आदर्श उदाहरण है। उन्होंने सदैव शांति और प्रेम का संदेश दिया। हालांकि महाभारत के युद्ध में वे शामिल थे, परंतु उनका उद्देश्य धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करना था, जो अहिंसा की उच्चतम अवस्था मानी जाती है।
7. विनय (विनम्रता): श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व विनम्रता से भरा हुआ था। वे राजा होते हुए भी गोपियों और ग्वालों के साथ सामान्य जीवन व्यतीत करते थे। उन्होंने कभी भी अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग नहीं किया और सदैव अपने भक्तों के साथ विनम्र रहे।
8. कान्ति (आकर्षण): श्रीकृष्ण का आकर्षण केवल उनके शारीरिक सौंदर्य तक सीमित नहीं था, बल्कि उनके व्यक्तित्व का आकर्षण था। उनके आकर्षण से ही वे गोपियों के प्रिय थे और उनके अनुयायी उनके प्रेम और भक्ति में मग्न रहते थे।
9. विद्या (ज्ञान): श्रीकृष्ण को सर्वज्ञ माना जाता है। वे चारों वेदों और सभी शास्त्रों के ज्ञाता थे। भगवतगीता में दिया गया उनका उपदेश आज भी विश्वभर में ज्ञान का अद्वितीय स्रोत माना जाता है। उनका ज्ञान न केवल आध्यात्मिक था बल्कि उन्होंने राजनीति, धर्म और समाज के विभिन्न पहलुओं पर भी महत्वपूर्ण शिक्षा दी।
10. वितर्क (तर्क): श्रीकृष्ण की तर्कशक्ति अद्वितीय थी। उन्होंने अपने जीवन में हर समस्या का समाधान तर्क और विवेक से किया। उनका तर्कशक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करना और उसे धर्म का वास्तविक अर्थ समझाना है।
11. सत्य (सत्यता): श्रीकृष्ण ने सदैव सत्य का पालन किया। उनका जीवन सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने का उदाहरण है। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए कई बार कठिन निर्णय लिए परंतु सत्य के मार्ग से कभी विचलित नहीं हुए।
12. श्री (लक्ष्मी/वैभव): श्रीकृष्ण को लक्ष्मी का वरदान प्राप्त था। वे स्वयं धन और वैभव के अधिष्ठाता थे। उनके जीवन में कोई भी भौतिक सुख-सुविधा की कमी नहीं थी और उन्होंने अपने भक्तों को भी इसी प्रकार का आशीर्वाद दिया।
13. शोभा (सौंदर्य): श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में अनोखा सौंदर्य था। उनका रूप तो आकर्षक था ही, परंतु उनका आंतरिक सौंदर्य और अधिक मोहक था। उनके आचरण और विचारों की शोभा से वे सभी के प्रिय बने।
14. गाम्भीर्य (गंभीरता): श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में एक गम्भीरता थी, जो उन्हें अन्य सभी से अलग बनाती थी। वे हमेशा सोच-समझकर निर्णय लेते थे और हर परिस्थिति में स्थिर और गंभीर बने रहते थे। उनकी गंभीरता का यह गुण उनकी महानता का प्रतीक था।
15. धैर्य (धीरज): धैर्य श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व का मुख्य गुण था। उन्होंने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया परंतु वे कभी विचलित नहीं हुए। उनका धैर्य उन्हें हर परिस्थिति में अडिग बनाए रखता था और उन्होंने अपने भक्तों को भी धैर्य का महत्व समझाया।
16. तेज (तेजस्विता): श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में एक अद्वितीय तेज था। यह तेज उनके ज्ञान, शक्ति और भक्ति से उत्पन्न हुआ था। उनके तेज से ही उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि सभी उनकी ओर आकर्षित हो जाते थे और उनके मार्गदर्शन में धर्म का पालन करते थे।
निष्कर्ष
श्रीकृष्ण की 16 कलाएं उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करती है और हमें यह सिखाती है कि एक संपूर्ण और संतुलित जीवन कैसे जिया जाए। उनकी शिक्षाएं और उनका जीवन आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। इन कलाओं के माध्यम से श्रीकृष्ण ने यह दिखाया कि कैसे व्यक्ति जीवन में धैर्य, सत्य, विनम्रता और करुणा जैसे गुणों को अपनाकर धर्म, प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चल सकता है। उनका जीवन और उनके आदर्श हमें सदैव सही मार्ग पर चलने और धर्म की रक्षा करने की प्रेरणा देते है।
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