मुम्बई कत्लखाने को आधुनिकीकरण करने के लिए सरकार ने किया 1,066 करोड़ निवेश!!
मुम्बई स्थित "देवनार" देश के सबसे बड़े कत्लखानों में से एक है ।
भूमि डूब, पुअर मीट चिलिंग और अवैज्ञानिक ढंग से ऐनिमल वेस्ट निपटान को देखते हुए पर्यावरणविद् और PETA संस्था ने आपत्ति जताई है।
BMC (बृहन्मुंबई महानगर पालिका ) ने देवनार को नया रूप देने के लिए 1,066 करोड़ निवेश करेगी ।
Azaad Bharat 1,066 Crore Investment in the modernization of Slaughter Houses
BMC अधिकारी ने कहा है कि "नगर निकाय के नेताओं के संयोग से दोनार को इंटर्नेशनल स्टैण्डर्ड से लैस से किया जायेगा और नगरपालिका ने 1,066 करोड़ की मंजूरी दे दी है। इसके सुधार का उत्तरदायित्व BMC ने अपने हाथों में लिया है।
दोनार को 1971 में स्थापित किया गया था और यह आधे शहर के मीट की मांग की पूर्ति करता है।
इसे सोलर एनर्जी यूटिलाइजेशन, वर्षा जल संचयन, हाई एन्ड मशीनरी के द्वारा जानवरों को रैंप द्वारा लोड और अनलोड करने जैसी सुविधाएं दी जायँगी । नगर-निगम के अधिकारियों को डिस्प्नेसरी और ऑफिसर्स को रहने के लिए जगह अलॉट की जायेगी।
इसके साथ साथ बकर-ईद जैसे त्याहारों पर बाजार लगाये जायेंगे तथा खरीददारों के लिए रेस्ट रूम भी होंगे ।
ऐनिमल वेस्ट का निपटान बेहतर तरीके से किया जायेगा, इस कत्लखाने में 6000 जानवरों को एक यूनिट में निपटाने की क्षमता होंगी।
BMC अधिकारी ने कहा है इसका रूपांतरण कुछ भागों में किया जायेगा जिससे खरीददारों को कोई दिक्कत न आये ।
अब एक सवाल उठता है कि पहले की सरकार तो निर्दोष पशु और गौ-हत्या करने में मानती थी पर वर्तमान सरकार जो गौ-हत्या बन्द करवाने और हिंदुत्ववादी के नाम से चुनकर आई है ।
वो भी आज कत्लखानों में पैसा निवेश करती है लेकिन गौ-शाला के लिए एक रुपया भी निवेश क्यों नही होता है???
भाजपा सरकार द्वारा मुंबई देवनार कत्लखाने को और भी क्रियान्वित करने के लिये टेंडर निकाला है जिसमें हररोज लगभग 20 हजार गोवंश का वध किया जायेगा ।
जिन चमड़ा कम्पनियों को गेंद, पर्स, जूते आदि सामान बनाने के लिये जो चमड़ा चाहिये वो अधिकतर गोमाता के चमड़े का प्रयोग किया जाता है ।
वर्तमान सरकार आने के बाद पहला बजट पास किया गया जिसमें कत्लखाने खोलने के लिए 15 करोड़ सब्सिडी प्रदान की जाती है ।
2014 में 4.8 अरब डॉलर का बीफ एक्सपोर्ट हुआ था । 2015 में भी भारत, 2.4 मिलियन टन बीफ एक्सपोर्ट कर दुनिया में नंबर वन बन गया।
गाय के नाम पर वोट पाने वाली सरकार गाय के लिए क्या कर ही है ये उपर्युक्त आँकड़े से स्पष्ट है ।
भारत में प्रतिदिन लगभग 50 हजार से अधिक गायें बड़ी बेरहमी से काटी जा रही हैं । 1947 में गोवंश की जहाँ 60 नस्लें थी,वहीं आज उनकी संख्या घटकर 33 ही रह गयी है । हमारी अर्थव्यवस्था का आधार गाय है और जब तक यह बात हमारी समझ में नहीं आयेगी तबतक भारत की गरीबी मिटनेवाली नहीं है । गोमांस विक्रय जैसे जघन्य पाप के द्वारा दरिद्रता हटेगी नहीं बल्कि बढ़ती चली जायेगी ।
गौवध को रोकें और गोपालन कर गोमूत्ररूपी विषरहित कीटनाशक तथा गौ दुग्ध का प्रयोग करें । गोवंश का संवर्धन कर देश को मजबूत करें ।
देश का दुर्भाग्य है कि कसाईघरों के आधुनिकीकरण पर हजारों करोड़ खर्च किये जा रहे हैं, मगर गायों के संरक्षण के वास्ते सरकार के खजाने में पैसे नहीं हैं।
कसाईघरों के मालिकों को देखो तो बड़े ठाठ से जीते हैं और बड़े-बड़े महलों में रहते हैं वहीं दूसरी ओर गौ-पालक को देखो तो गरीब और छोटे घरों में रहते है आखिर ऐसा क्यों???
क्योंकि सरकार गौ-शालाओं में पैसा निवेश करने की जगह पर कसाईघरों में कर रही है ।
अभी जनता की एक ही मांग है कि सरकार जल्द से जल्द कत्लखानों का बजट बंद करके गौ-शालाओं में बजट को निवेश करें जिससे हमारी पवित्र गौ-माता की रक्षा हो और फिर से भारत विश्वगुरु पद पर आसीन हो ।
स्वास्थ्य मंत्रालय अधिकारी दीपकराज ने दैनिक भास्कर का किया पर्दोफाश!!
एक निजी चैनल में अपना इंटरव्यू देते हुए भारत सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय अधिकारी दीपकराज पौनिकरजी ने बताया कि बापू आसारामजी के खिलाफ जो दैनिक भास्कर ने बटर ब्रेड वाली खबर छापी थी वो बिलकुल ही झूठी है ।
बापू आसारामजी के पास कोई नर्स गई ही नहीं थी क्योंकि उनके पास एक पैनल बना हुआ था ।
स्वास्थ्य मंत्रालय अधिकारी दीपकराज ने दैनिक भास्कर का किया पर्दोफाश!!
उनको बदनाम किया जाए ये मीडिया का रोल है । ओथोरिटीस ने ये बताया कि ऐसी कोई घटना घटी ही नहीं है।
दीपक जी ने आगे बताया कि एक कर्मचारी के ऊपर कोई आक्षेप करता हैं, या कोई बात बताता है, तो उस कर्मचारी का कर्तव्य बनता है कि वो सबसे पहले मुख्य अधिकारी को रिपोर्ट करें । परंतु ऐसी कोई भी जानकारी AIMS के प्रशासन में नहीं हैं ।
मैं AIIMS के PRO से मिला इस मेटर में, उनको कहा कि एक प्रतिष्ठित अखबार है दैनिक भास्कर और वो इस प्रकार की बातें करें मुझे ये खबर (बापू आसारामजी ने नर्स को बटर जैसा बोला) झूठी लग रही है।
मुझे सत्य पता चले,समाज को सत्य पता चले इसके लिए क्या प्रोसेस है..??? मेरी प्रजंटेशन देने के बाद जो कार्यवाही चली, AIMS की टीम बैठी और टीम की ओथोरिटी ने बताया ऐसी कोई घटना ही नहीं घटी है।
दीपक जी ने आगे कहा कि दूसरी बात बापू आसारामजी बटर और ब्रेड खाते ही नहीं हैं । बापूजी तो क्या बापूजी के साधक भी नहीं खाते तो बापूजी कैसे बोल सकते हैं ब्रेड बटर चाहिए..???
जाँच कॉमेटी ने भी हमें उत्तर दिया ऐसी कोई घटना ही नहीं घटी । बापूजी के पास कोई नर्स ही नहीं गई क्योंकि उनका एक पेनल था ।
वो उपचार के लिए एक टेस्ट के लिए आए थे । बापूजी के पानी और नाश्ते की व्यवस्था आश्रम से ही की गई थी ।
बापू आसारामजी के प्रति मीडिया का रोल...
दीपक जी ने बताया कि मीडिया का रोल संत आसारामजी बापू के केस में एकदम नेगिटिव है। बापूजी के सेवाकार्यो को दिखाना नहीं है, समाज में संतो को किस प्रकार बदनाम किया जाए और साधक आपस में इतनी मजबूती से खड़े हैं उनका कैसे बिखराव किया जाय ये उनका षड़यंत्र है ।
गुरु शिष्य परंपरा को विश्व में कैसे बदनाम किया जाय ये मीडिया का रोल है ।
बापू आसारामजी जेल जाने के बाद धर्मान्तरण में गति आई!!
जब से बापूजी को गिरफ्तार करके जेल में रखा है । तब से हिन्दूओं को क्रिश्चन बनाने की मात्रा अधिक बढ़ी है।
ये सरकार को भी सोचना चाहिए और समाज के प्रतिष्ठित आदमी को भी सोचना चाहिए ।
इस बारे में साधु-संत और अखाड़ो को भी सोचना चाहिए कि बापूजी को जेल में भेजने से समाज किस ओर जा रहा है..???
आसारामजी बापू का इलाज !!
स्वास्थ्य अधिकारी दीपक जी ने आगे बताया कि कोई भी ट्रीटमेन्ट, कोई भी दवाई, किसी भी प्रकार की हो, किसी भी क्षेत्र की हो । वहाँ की व्यवस्था वहाँ के गांव/शहर के तापमान,किसके शरीर पर कितना प्रभाव होता है, वैसा डिपेन्ट होता है । दिल्ली का तापमान और जोधपुर के तापमान में डिफरंट हैं अगर जोधपुर में कोई आर्युवैदिक ट्रीटमेन्ट होता है क्या उसे शरीर Accept करता है ? इस पर प्रश्न चिन्ह् है ।
बापूजी केरल इसलिए पसंद कर रहें हैं कि ये उनका मूलभूत अधिकार है कि केरल में वैसा वातावरण मिलता है । केरल में ऐसी ट्रीटमेन्ट की व्यवस्था है और उनका शरीर उस ट्रीटमेन्ट को Accept कर सकता है ये उनका मूलभूत अधिकार है ।
जोधपुर का जो वातावरण है आर्युवैदिक ट्रीटमेन्ट के लिए । चाहे आप उनको ट्रीटमेन्ट दें दीजिए पर उनका शरीर भी ट्रीटमेन्ट को Accept करना चाहिए । वहाँ का जो तापमान होता हैं वो शरीर को भी सुटेबल बैठना चाहिए । बापू आसारामजी को पता है आर्युवैदिक की महिमा कितनी है । बापूजी जानते हैं शरीर के साथ मानस की भी कितनी शुद्धि रहती है ।
मेरे मूलभूत अधिकार हैं मुझे कैसी ट्रीटमेन्ट चाहिए । बापूजी के भी मूलभूत अधिकार हैं उनको जो ट्रीटमेन्ट चाहिए उनका जो शरीर Accept करता है वो उनको मिलना ही चाहिए इसके लिए बकायता मंत्रालय है ।
गौरतलब है कि कुछ समय पूर्व बापू आसारामजी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश अनुसार चेकअप के लिए एम्स दिल्ली में गये थे तो दैनिक भास्कर से बापू आसारामजी को बदनाम करने के लिए एक खबर छापी गई थी और उसके बाद लगभग सभी मीडिया में दिखाया गया था कि एम्स में बापू आसारामजी के पास एक नर्स नाश्ते में ब्रेड और बटर लेकर आई तो उन्होने बताया कि तुम मक्खन जैसी लग रही हो लेकिन बाद में एम्स ने अपना प्रेसनॉट जारी करते हुए लिखा कि बापू आसारामजी के पास कोई नर्स गई ही नही दैनिक भास्कर द्वारा छापी गई खबर बिलकुल झूठी है ।
शाहरुख खान की नई फिल्म ‘रईस’ के रिलीज होने की तारीख जैसे-जैसे करीब आ रही है, इसे लेकर विवाद भी तेज होते जा रहे हैं।
दरअसल यह फिल्म गुजरात के कुख्यात अपराधी और शराब तस्कर अब्दुल लतीफ की जिंदगी पर आधारित बताई जा रही है। 90 के दशक में पूरे गुजरात में अब्दुल लतीफ का आतंक हुआ करता था। उसके टारगेट पर ज्यादातर हिंदू ही हुआ करते थे, लिहाजा वो मुसलमानों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था।
अब सवाल यह उठता है कि ऐसे अपराधी पर फिल्म बनाकर शाहरुख खान उसका महिमामंडन क्यों करना चाहता है..?
रईस के ट्रेलर को देखकर ऐसा लग रहा है कि इस सड़कछाप गुंडे को किसी एक्शन हीरो और व्यापारी की तरह दिखाया गया है।
आइये अब जानते हैं कि कौन था अब्दुल लतीफ..!!!
"रईस" के पीछे ये है शाहरुख खान का असली खेल!
लतीफ बचपन से ही अपराध की दुनिया में उतर चुका था। पहले वो अहमदाबाद में जुए के अड्डों पर शराब पिलाने का काम किया करता था। इसके बाद उसने नकली शराब सप्लायर का धंधा स्टार्ट कर दिया।
इस धंधे में रहते हुए उस पर मर्डर, अवैध वसूली जैसे तमाम केस दर्ज हो चुके थे। इसी दौरान उसने राज्य में सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी का आशीर्वाद हासिल कर लिया।
सियासी शह मिलने के बाद उसने अपना कारोबार पूरे गुजरात में फैला लिया। अब वो हवाला, सुपारी लेकर हत्या करने और जमीन हड़पने जैसे धंधों में भी उतर गया।
लतीफ गुजरात के पश्चिमी तट पाकिस्तान से हथियार और गोला-बारूद मंगाया करता था। 1995 में जब लतीफ के घर पर छापा मारा गया था तो करीब 100 एके 47 राइफलें और 50 हजार के करीब ग्रेनेड बरामद हुए थे।
वो गुजरात में दाऊद इब्राहिम के सबसे भरोसेमंद आदमी के तौर पर जाना जाता था। उसे करीब से जानने वालों के मुताबिक लतीफ की सारी ताकत सियासी शह के कारण थी, वरना निजी जिंदगी में वो बेहद डरपोक किस्म का आदमी था।
‘मुसलमानों के मसीहा’ की इमेज!!
गुजरात के मुसलमानों के बीच लतीफ ने अपनी इमेज रॉबिनहुड की तरह बनाई थी। आज भी गुजरात में कहानियां चलती हैं कि लतीफ गरीब मुस्लिम नौजवानों को नौकरी दिलाया करता था। इसके अलावा गरीबों को खाना, घर और दूसरी मदद करता था। उस दौरान वो बाकायदा कोर्ट भी लगाता था और लोगों के आपसी झगड़े और विवाद सुलझाया करता था। इन सब कामों के कारण पूरे गुजरात के मुसलमानों के बीच उसे मसीहा के तौर पर देखा जाने लगा। कोई दिक्कत होने पर लोग पुलिस की बजाय लतीफ के पास जाना पसंद करते थे।
हिंदुओं के लिए आतंक का दूसरा नाम!!
अब्दुल लतीफ का कहर खास तौर पर हिंदू समुदाय पर टूटा। उसका डर ऐसा था कि अहमदाबाद के कई इलाकों से हिंदू अपना घर-बार छोड़कर भाग गए थे। लतीफ ने ऐसे कई लोगों के घरों पर मुस्लिम परिवारों से अवैध कब्जे तक करवाए।
कहा जाता है कि उसने हिंदू कारोबारियों को लूटा, उनकी महिलाओं का बलात्कार किया और करवाया। उसकी गैंग में सारे मुसलमान ही थे। लतीफ पर अपराध के 97 केस दर्ज थे, जिनमें 10 हत्या के और कुछ केस टाडा के तहत थे।
अब्दुल लतीफ और ‘सेकुलर सियासत’!!
1990 से 1995 के बीच चिमनभाई पटेल की अगुवाई वाली जनता दल और कांग्रेस की सरकारों में अब्दुल लतीफ को खूब सरकारी शह मिली। इस दौरान उसका काला कारोबार खूब फला-फूला। इस दौरान चुनावों में कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के लिए लतीफ दंगे भी भड़काया करता था। लेकिन 1995 में गुजरात में केशुभाई पटेल की अगुवाई में बीजेपी की सरकार बन गई। इसी दौरान लतीफ पाकिस्तान भाग गया।
बीजेपी की सरकार बनने के बाद लतीफ के कारोबार पर बंदिश लगनी शुरू हो गई। इसी दौरान यह बात सामने आई कि किस तरह से अब्दुल लतीफ का धंधा दाऊद और कांग्रेस की मदद से इतने साल तक चलता रहा। कहते हैं कि अब्दुल लतीफ की अगुवाई में मुस्लिम आतंक का ही नतीजा था कि गुजरात में हिंदू समुदाय बीजेपी के साथ आने लगा। क्योंकि लोगों को लगने लगा था कि कांग्रेस पार्टी अब्दुल लतीफ की कारगुजारियों को बढ़ावा दे रही है।
कैसे हुआ अब्दुल लतीफ का अंत..???
कुछ महीने पाकिस्तान में रहने के बाद अब्दुल लतीफ भारत लौट आया। यहां वो दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में छिपकर रहने लगा। यहां से वो एक पीसीओ से रोज फोन करके अपने गुर्गों से बात किया करता था। लेकिन एक दिन पुलिस ने जाल बिछाकर उसे पकड़ लिया। जब लतीफ को पुलिस ने गिरफ्तार किया तो पूरे गुजरात में हिंदू आबादी वाले इलाकों में आतिशबाजी हुई थी। उसके बाद जगह-जगह मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के लिए सम्मान और धन्यवाद समारोह आयोजित किए गए थे।
गिरफ्तारी के बाद लतीफ को साबरमती सेंट्रल जेल में रखा गया। 29 नवंबर 1997 को लतीफ ने जेल से भागने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस ने उसे मार गिराया। उस वक्त शंकर सिंह वाघेला गुजरात के सीएम बन चुके थे। कांग्रेस और लतीफ के हितैषी कहते हैं कि ये फेंक एनकाउंटर था।
किसको धोखा दे रहे हैं शाहरुख...???
‘रईस’ के निर्माता कह रहे हैं कि इस फिल्म का लतीफ से कोई लेना-देना नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि शाहरुख कम से कम दो बार लतीफ के परिवार से मिले थे, ताकि वो उसकी स्टाइल और बातचीत करने के तरीकों के बारे में जान सकें। रईस में अपने किरदार की रिसर्च के दौरान शाहरुख ने अब्दुल लतीफ से जुड़ी बहुत सारी जानकारियां भी मंगाई थी। लेकिन जैसे ही यह एहसास हुआ कि मामला हिंदू-मुस्लिम का रंग ले सकता है और इसका असर फिल्म पर भी पड़ सकता है, शाहरुख ने पलटी मार दी और उन्होंने लतीफ के परिवार के सदस्यों और उसके बेटे मुश्ताक से मिलना बंद कर दिया।
लतीफ के बेटे से विवाद का ड्रामा!!
बताते हैं कि शाहरुख ने लतीफ के बेटे मुश्ताक से खुद के खिलाफ 101 करोड़ रुपये का केस भी दर्ज करवाया। ताकि लोगों में यह इंप्रेशन जाए कि फिल्म रईस का लतीफ से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि मुश्ताक की शिकायत फिल्म के डायरेक्टर राहुल ढोलकिया से ज्यादा है। क्योंकि ‘रईस’ में उन्होंने लतीफ को कोठे चलाते और औरतों से शराब बिकवाते दिखाया है। मुश्ताक का दावा है कि उसने ये काम कभी नहीं किया। फिल्म में ऐसा दिखाने से उनके परिवार की ‘इज्जत’ पर बुरा असर पड़ेगा। हालांकि उस दौर के पुलिस अफसरों की मानें तो अब्दुल लतीफ कोठे चलाने और औरतों के इस्तेमाल ही नहीं, बल्कि इससे भी घटिया किस्म के अपराधों में शामिल था।
आपको बता दें कि रईस 25 जनवरी को रिलीज होने वाली है। यह तय है कि शाहरुख खान की नीयत एक सड़क छाप गुंडे को मुसलमानों का हीरो बनाने की है।
बॉलीवुड किस तरह हिंदू प्रतीकों का अपमान करता है और छुटभैये मुस्लिम गुंडों को भी रॉबिनहुड के तौर पर दिखाता है ।
सिर्फ हिंदुओं को निशाना बनाने वाले लतीफ पर फिल्म बनाने के पीछे शाहरुख की नीयत सवालों में है!!
"रईस" में पाकिस्तानी कलाकार हैं । जिस पाकिस्तान ने हमारे 19 जवान मारें हैं । क्या ऐसे कलाकारों की तथा हिन्दू विरोधी रईस फिल्म को आप खुद के 200 रुपये खर्च करके देखना चाहोगे...???
अगर इतना सब कुछ जानने के बाद भी हिन्दू इस फिल्म को देखते हैं तो हिन्दू खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम करेंगे !!
अगर पाकिस्तानी मुसलमान हीरो हिंदुस्तान में रहकर भी अपने देश के लिए इतना कट्टर है तो हिन्दू को तो अपने देश के प्रति कितना कट्टर होना चाहिए!!
अतः सावधान रहें !!
कहीं आपके पैसों से देखी फिल्म से कमाया गया पैसा आपके ही हिंदुस्तान को तोड़ने में उपयोगी न हो!!
जम्मू-कश्मीर में हिन्दुआें के ऐतिहासिक स्थानों के नाम परिवर्तित किए जा रहे हैं । यहां पहले ऐसी स्थिति नहीं थी; परंतु कुछ महीनों से बहुत कुछ हो रहा है ।
आइये जाने कि कश्मीर में क्या-क्या परिवर्तित हुआ और क्या-क्या परिवर्तित होनेवाला है!!
कश्मीर के एेतिहासिक हिन्दू वास्तुआें के हो रहे इस्लामीकरण पर कब तक सोता रहेगा हिन्दू..???
1. श्रीनगर में गोपाद्री पहाड़ी है । कश्मीर यात्रा के समय आदि शंकराचार्यजी ने इस पहाड़ी पर अनेक वर्ष तपस्या की थी । इसलिए सैकड़ों वर्ष पहले ही लोगों ने इस पहाड़ी का नाम शंकराचार्य पहाड़ी रखा था । ऐसी जानकारी सरकारी दस्तावेजों में भी
है; परंतु अब इसका नाम ‘सुलेमान टापू’ रखा गया है । विशेष बात तो यह है कि भारत सरकार के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भी यहां सुलेमान टापू नाम का फलक लगाया है ।
2. श्रीनगर में हरि पर्वत है । अब उसका नाम परिवर्तित कर कोह महारन अर्थात दुष्टों का पर्वत रखा गया है ।
3. कश्मीर के अनंतनाग को वहां के लोग इस्लामाबाद कहने लगे हैं । अनंतनाग का नाम हटाने के लिए लोगों ने आंदोलन आरंभ किया है।
4. अनंतनाग में उमानगरी नामक विख्यात तीर्थस्थान है। इसका नाम भी परिवर्तित कर शेखपुरा किया गया है ।
5. यहां की सरकार अब श्रीनगर नाम भी नहीं चाहती है । इस नगर का नाम शहर-ए-खास रखने के लिए राज्य सरकार ने कई बार चर्चा भी की है ।
6. श्रीनगर के जिस चौराहे में जामा मस्जिद है, उस चौराहे का हिन्दू नाम परिवर्तित कर मदिना चौराहा रखा गया है ।
7. कश्मीर घाटी में बहनेवाली किशनगंगा नदी को अब दरिया-ए-नीलम कहा जा रहा है ।
मीडिया यह सब दिखाने के लिए तैयार नहीं है । केवल कश्मीरी पंडित (हिन्दू) ही यह लड़ाई लड़ रहे हैं ।
अनेक वर्षों से यहां विद्यमान हिन्दू संस्कृति नष्ट की जा रही है । यदि देशवासी अब जागृत नहीं हुए, तो भविष्य में उन्हें माता रानी के दर्शन के लिए अनुज्ञप्तिपत्र और पारपत्र (पासपोर्ट) लेकर आना )पड़ेगा
क्या वैष्णोदेवी का नाम परिवर्तित होने पर ही आप जागृत होनेवाले हैं..???
पहले भी भारत में मुगल शासन काल में शहरों, गांव आदि के नाम बदले गये उसके बाद अंग्रेज आये उन्होंने भी कई शहरों, गाँव आदि के नाम बदले ।
जब तक भारत गुलाम था तब तक तो ठीक था लेकिन बड़ी विडंबना तो यह है कि भारत आजाद होने के बाद भी हमारे पुराने नाम वापिस नही बदले गये । आजादी को 70 साल हो गए लेकिन आज भी वही नाम चल रहे हैं,बदले नही जा रहे । जिन क्रूर मुगलों ने हमारी बहनों-बेटियों का बलात्कार किया । तलवार की नोंक पर धर्मपरिवर्तन करवाया उन्हीं के नाम से शहरों के नाम रखे गए।
आज कश्मीर में भी वही चल रहा है हमारे प्राचीन नाम बदले जा रहे है और हिन्दू चुप चाप बैठा है ।
पहले भी ऐसा हुआ और आज भी वही हो रहा है हिन्दू सहनशीलता के नाम से पलायनवादी हो गया है सोचता है कि बाजू के घर में आग लगी है मुझे क्या?
अरे भाई बाजू के घर की आग नहीं बुझाएगा तो वो आग तेरे घर को भी जला सकती है।
पहले कश्मीर पंडित पलायन हुए, आज उत्तर प्रदेश के कई इलाकों से हिन्दू पलायन हो रहे है, हिन्दू संतों को जेल में भेजा जा रहा है, हिन्दुओं का ईसाई मिशनरियों द्वारा लालच देकर और मुसलमानों द्वारा दहशत फैलाकर धर्म परिवर्तन किया जा रहा है।
क्या हिन्दू इसी तरह से अन्याय को चुप-चाप देखता रहेगा..???
ऐसे ही अगर देखता रहा तो फिर हिन्दू को मिटने में देर नही लगेगी और हिन्दू मिटा तो सनातन संस्कृति मिटी और सनातन संस्कृति मिटी तो फिर पृथ्वी पर हा-हा कार मच सकता है ।
क्योंकि सनातन संस्कृति ही एक ऐसी संस्कृति है जो पूरी दुनिया में सुख-शांति भाईचारा का संदेश देती ही नही है बल्कि चरितार्थ करके भी दिखा देती है ।
आज दुनिया में जो सुख शांति है वो केवल सनातन संस्कृति का कुछ अंश लेकर ही है अतः हिन्दू संस्कृति को बचाना अत्यंत जरूरी है ।
आशा है कि भारतवासी जागृत होंगे ।
इस स्थिति में समस्त हिन्दू बंधु जागृत होकर वैध मार्ग अपना मिलकर विरोध करें ।
आज सोशल मीडिया पर लाखों लोगों ने श्रीमद्भगवद्गीता की भूरी-भूरी प्रशंसा की!!
गीता मात्र हिन्दुओं का ही धर्मग्रंथ नहीं है, बल्कि मानवमात्र का धर्मग्रंथ है ।
गीता ने किसी मत, पंथ की सराहना या निंदा नहीं की अपितु मनुष्यमात्र की उन्नति की बात कही ।
ऐसे अद्भुत ग्रन्थ की केवल भारत के ही नही अपितु विदेश के बुद्धिजीवी लोगों ने भी भूरी-भूरी प्रशंसा की है । केवल प्रशंसा ही नही की, उन्होंने गीता का ज्ञान जीवन में उतारकर अपने को धन्य-धन्य किया है ।
आज भी ऐसा ही अद्भुत नजारा ट्वीटर पर देखने को मिला ।
लाखों लोग गीता जयंती निमित्त #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ हैशटैग के साथ ट्वीट कर रहे थे जो दिनभर टॉप में बना रहा ।
आइये देखते हैं कि लोग क्या लिख रहे थे ट्वीटस में...
ये तो आपको केवल कुछ ट्वीट्स बताई गई हैं ऐसे लाखों लोग ट्वीटस करके श्रीमद्भगवद्गीता की भूरी-भूरी प्रशंसा कर, बताना चाह रहे थे कि उनको गीता के ज्ञान से कितना अद्भुत लाभ हुआ है।
और बड़े आश्चर्य की बात ये थी कि ट्रेंड में देखा गया तो बापू आसारामजी के अनुयायी ही दिनभर ट्वीट कर रहे थे जिससे ट्रेंड भारत में टॉप पर बना रहा ।
और उनकी कुछ ट्वीट देखने पर पता चला कि वो केवल सोशल मीडिया पर ट्वीट्स ही नही कर रहे थे बल्कि विद्यालयों में और घर-घर जाकर निःशुल्क गीता भी बाँट रहे थे और गीता की महिमा भी बता रहे थे ।
भोग, मोक्ष, निर्लेपता, निर्भयता आदि तमाम दिव्य गुणों का विकसित करनेवाला यह गीताग्रंथ विश्व में अद्वितीय है ।
गीता में 18 अध्याय, 700 श्लोक, 94569 शब्द हैं और 578 से अधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है ।
संसारिक दुनिया में दुख, क्रोध, अंहकार ईर्ष्या आदि से पीड़ित आत्माओं को गीता सत्य और अध्यात्म का मार्ग दिखाती है।
ऐसा 'वसुधैव कुटुम्बकं' की सीख देता #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ को शत्-शत् नमन।
‘यह मेरा हृदय है’- ऐसा अगर किसी ग्रंथ के लिए भगवान ने कहा है तो वह गीता जी है । गीता मे हृदयं पार्थ । ‘गीता मेरा हृदय है ।’
गीता ने गजब कर दिया - धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे... युद्ध के मैदान को भी धर्मक्षेत्र बना दिया । युद्ध के मैदान में गीता ने योग प्रकटाया । हाथी चिंघाड़ रहे हैं, घोड़े हिनहिना रहे हैं, दोनों सेनाओं के योद्धा प्रतिशोध की आग में तप रहे हैं । किंकर्तव्यविमूढ़ता से उदास बैठे हुए अर्जुन को भगावन श्री कृष्ण ज्ञान का उपदेश दे रहे हैं ।
‘गीता’ में 18 अध्याय हैं, 700 श्लोक हैं, 94569 शब्द हैं । विश्व की 578 से भी अधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है ।
आजादी के समय स्वतंत्रता सेनानियों को जब फाँसी की सजा दी जाती थी, तब ‘गीता’ के श्लोक बोलते हुए वे हँसते-हँसते फाँसी पर लटक जाते थे।
श्रीमद्भगवद्गीता जयंती : 10 दिसम्बर
गीता पढ़कर 1985-86 में गीताकार की भूमि को प्रणाम करने के लिए कनाडा के प्रधानमंत्री मि. पीअर ट्रुडो भारत आये थे ।
जीवन की शाम हो जाय और देह को दफनाया जाय उससे पहले अज्ञानता को दफनाने के लिए उन्होंने अपने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया और एकांत में चले गये । वे अपने शारीरिक पोषण के लिए एक दुधारू गाय और आध्यात्मिक पोषण के लिए उपनिषद् और गीता साथ में ले गये।
ट्रुडो ने कहा है : ‘‘मैंने बाइबिल पढ़ी, एंजिल पढ़ी और अन्य धर्मग्रंथ पढ़े । सब ग्रंथ अपने-अपने स्थान पर ठीक हैं किंतु हिन्दुओं का यह ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ ग्रंथ तो अद्भुत है । इसमें किसी मत-मजहब, पंथ या सम्प्रदाय की निंदा-स्तुति नहीं है वरन् इसमें तो मनुष्यमात्र के विकास की बातें हैं । गीता मात्र हिन्दुओं का ही धर्मग्रंथ नहीं है बल्कि मानवमात्र का धर्मग्रंथ है ।’’
गीता ने किसी मत, पंथ की सराहना या निंदा नहीं की अपितु मनुष्यमात्र की उन्नति की बात कही ।
ख्वाजा दिल मुहम्मद ने लिखा : ‘‘रूहानी गुलों से बना यह गुलदस्ता हजारों वर्ष बीत जाने पर भी दिन दूना और रात चौगुना महकता जा रहा है । यह गुलदस्ता जिसके हाथ में भी गया, उसका जीवन महक उठा । ऐसे गीतारूपी गुलदस्ते को मेरा प्रणाम है । सात सौ श्लोकरूपी फूलों से सुवासित यह गुलदस्ता करोड़ों लोगों के हाथ गया, फिर भी मुरझाया नहीं ।’’
कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रुडो एवं ख्वाजा-दिल-मुहम्मद ही इसकी प्रशंसा करते हैं ऐसी बात नहीं, कट्टर मुसलमान की बच्ची और अकबर की रानी ताज भी इस गीताकार के गीत गाये बिना नहीं रहती ।
"सुनो दिलजानी मेरे दिल की कहानी तुम ।
दस्त ही बिकानी, बदनामी भी सहूँगी मैं ।।
देवपूजा ठानी मैं, नमाज हूँ भुलानी ।
तजे कलमा कुरान सारे गुनन गहूँगी मैं ।।
साँवला सलोना सिरताज सिर कुल्ले दिये ।
तेरे नेह दाग में, निदाग हो रहूँगी मैं ।।
नन्द के कुमार कुरबान तेरी सूरत पै ।
हूँ तो मुगलानी, हिन्दुआनी ह्वै रहूँगी मैं ।।"
अकबर की रानी ताज अकबर को लेकर आगरा से वृंदावन आयी । कृष्ण के मंदिर में आठ दिन तक कीर्तन करते-करते जब आखिरी घड़ियाँ आयीं, तब ‘हे कृष्ण ! मैं तेरी हूँ, तू मेरा है...’ कहकर उसने सदा के लिए माथा टेका और कृष्ण के चरणों में समा गयी । अकबर बोलता है : ‘‘जो चीज जिसकी थी, उसने उसको पा लिया । हम रह गये...’’
इतना ही नहीं महात्मा थोरो भी गीता के ज्ञान से प्रभावित हो के अपना सब कुछ छोड़कर अरण्यवास करते हुए एकांत में कुटिया बनाकर जीवन्मुक्ति का आनंद लेते थे ।
श्रीमद्भगवद्गीता के विषय में संतों एवं विद्वानों के विचार!!
जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए गीताग्रंथ अद्भुत है । विश्व की 578 भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है । हर भाषा में कई चिन्तकों, विद्वानों एवं भक्तों ने मीमांसाएँ की हैं और अभी भी हो रही हैं, होती रहेंगी क्योंकि इस ग्रंथ में सभी देश, जाति, पंथ के सभी मनुष्यों के कल्याण की अलौकिक सामग्री भरी हुई है ।
अतः हम सबको गीताज्ञान में अवगाहन करना चाहिए। भोग, मोक्ष, निर्लेपता, निर्भयता आदि तमाम दिव्य गुणों का विकास करानेवाला यह गीताग्रंथ विश्व में अद्वितीय है ।
- ब्रह्मनिष्ठ स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज
विरागी जिसकी इच्छा करते हैं, संत जिसका प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं और पूर्ण ब्रह्मज्ञानी जिसमें ‘अहमेव ब्रह्मास्मि’ की भावना रखकर रमण करते हैं, भक्त जिसका श्रवण करते हैं, जिसकी त्रिभुवन में सबसे पहले वन्दना होती है, उसे लोग ‘भगवद्गीता’ कहते हैं । - संत ज्ञानेश्वरजी
भगवद्गीता कचिदधीता गंगाजललवकणिका पीता। येनाकारिमुरारेरर्र्चा तस्य यमै क्रियते चर्चा ।।
जिस मनुष्य ने श्रीमद्भगवद्गीता का थोड़ा भी अध्ययन किया हो, श्रीगंगाजल का एक बिन्दु भी पान किया हो अथवा भगवान श्रीविष्णु का सप्रेम पूजन किया हो, उसे यमराज नजर उठाकर देख भी नहीं सकते । अर्थात् वह संसार-बंधन से मुक्त होकर आत्यन्तिक आनन्द का अधिकारी हो जाता है ।
- जगद्गुरु श्री शंकराचार्यजी
गीता के ज्ञानामृत के पान से मनुष्य के जीवन में साहस, समता, सरलता, स्नेह, शांति, धर्म आदि दैवी गुण सहज ही विकसित हो उठते हैं । अधर्म, अन्याय एवं शोषकों का मुकाबला करने का सामर्थ्य आ जाता है । निर्भयता आदि दैवी गुणों को विकसित करनेवाला, भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करनेवाला यह ग्रंथ पूरे विश्व में अद्वितीय है ।
- संत आसारामजी बापू
‘गीता’ शास्त्र एक परम रहस्यमय ग्रंथ है । इसका प्रचारक भगवान को अत्यंत प्रिय है । भगवान ने स्वयं कहा है :
‘मनुष्यों में उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करनेवाला कोई भी नहीं है तथा पृथ्वी भर में उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई भविष्य में होगा भी नहीं जो गीता-ज्ञान का प्रचार करता है ।’
- स्वामी रामसुखदासजी
‘भगवद्गीता’ के उपदेश पर कोई शंका नहीं कर सकता क्योंकि वह मानों ठीक मर्मस्थल को स्पर्श करता है । वह सब आवश्यकताओं की समान रूप से पूर्ति करता है, उसमें विकास की प्रत्येक श्रेणी पर विचार किया गया है । यह एक ही ग्रंथ है, जिसमें छोटे-से-छोटा और बड़े-से-बड़ा मनुष्य, अतिशय प्रखर बुद्धि का विचारक, सभीको कुछ-न-कुछ जानने तथा सीखने की सामग्री मिल जाती है, मार्ग सीखने के लिए कोई-न-कोई ध्रुव तारा मिल जाता है । वे धन्य हैं जो गीता को पढ़ते हैं, सुनते हैं, सुनाते हैं ।
- रेवरेंड आर्थर
‘गीता’ के संदेश का प्रभाव आचार-विचारों के क्षेत्र में भी सदैव जीता-जागता प्रतीत होता है।
- श्री अरविन्द घोष
जीवन का दृष्टिकोण उन्नत बनाने की कला सिखाती है गीता !
युद्ध जैसे घोर कर्मों में भी निर्लेप रहने की कला सिखाती है गीता !
कर्तव्यबुद्धि से ईश्वर की पूजारूप कर्म करना सिखाती है गीता !
मरने के बाद नहीं, जीते-जी मुक्ति का स्वाद दिलाती है गीता !
कोर्ट ने रेप का 6 साल पुराना केस में किया बरी, क्या 12 साल पुराना केस बरी करेगा???
दिल्ली की एक त्वरित अदालत ने 2010 में 30 वर्षीय एक विवाहित महिला को नशीला पेय पदार्थ पिलाकर कथित रूप से उससे बलात्कार करने के आरोपी एक व्यक्ति को यह कहकर बरी कर दिया कि आरोपी व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने में छह साल की देरी की कोई वैध वजह नहीं बताई गई।
कोर्ट ने रेप का 6 साल पुराना केस में किया बरी, क्या 12 साल पुराना केस बरी करेगा???
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रवीण कुमार ने दिल्ली निवासी व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 376, 506 और 323 के तहत दर्ज मामलों को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की कि शिकायतकर्ता ने न तो शोर मचाया और न ही उसने इस कथित अपराध के लिए आरोपी के खिलाफ छह साल तक शिकायत ही दर्ज कराई।
न्यायाधीश ने कहा, 27 मई 2016 तक महिला ने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई, जबकि 16 जून 2010 को उसके साथ पहली बार कथित रूप से बलात्कार हुआ था।
शिकायतकर्ता के अनुसार अंतिम बार उसके साथ 21 मई 2016 को बलात्कार किया गया। लेकिन प्राथमिकी दर्ज कराने में देरी को लेकर कोई वैध वजह नहीं बताई गई।
कहा गया कि प्राथमिकी दर्ज कराने में एक या दो दिन की देरी तथ्यात्मक रूप से और निर्दिष्ट मामले की परिस्थितियों में यथार्थ, उचित, तर्कसंगत हो सकती है।
बहरहाल, मौजूदा मामले में प्राथमिकी दर्ज कराने में छह साल से अधिक समय की देरी हुई। शिकायतकर्ता ने ना तो कभी चीख पुकार मचाई और ना ही कथित जबरन यौन संबंध के लिए तत्काल पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज कराई।
जांच के दौरान पुलिस को ऐसे किसी भी तरह के आपत्तिजनक वीडियो नहीं मिलने का हवाला देते हुए अदालत ने व्यक्ति द्वारा इन वर्षों में महिला को इन वीडियो के जरिए उसे धमकाने और ब्लैकमेल किए जाने के महिला के दावे को भी अस्वीकार कर दिया ।
तो आपने देखा कि कुछ महिलाएं कपटपूर्ण तरीके से कैसे महिला कानून का अंधाधुन दुरूपयोग कर रही है!!
इसी प्रकार का मामला सामने आया है बापू आसारामजी और उनके बेटे नारायण साईं का उनपर अक्टूबर 2013 में प्राथमिकी दर्ज की गई की उनकेे ऊपर आश्रम में रहने वाली सूरत गुजरात की 2 महिलायें, जो सगी बहनें हैं, उनमें से बड़ी बहन ने बापू आसारामजी के ऊपर 2001 में और छोटी बहन ने नारायण साईं जी पर 2003 में बलात्कार हुआ , ऐसा आरोप लगाया है ।
किसके दबाव में आकर 12/11 साल पुराना केस दर्ज किया गया । बड़ी बहन FIR में लिखती है कि 2001 में मेरे साथ बापू आसारामजी ने दुष्कर्म किया लेकिन जरा सोचिए कि अगर किसी लड़की के साथ दुष्कर्म होता है तो क्या वो अपनी सगी बहन को बाद में आश्रम में समर्पित कर सकती है..???
लेकिन बड़ी बहन ने छोटी बहन को 2002 में संत आसारामजी बापू आश्रम में सपर्पित करवाया था। उसके बाद छोटी बहन 2005 और बड़ी बहन 2007 तक आश्रम में रही । दोंनो बहनों की 2010 में उनकी शादी हो गई । जनवरी 2013 तक बापू आसारामजी और नारायण साईं के कार्य्रकम में आती रहती हैं, सत्संग सुनती हैं, कीर्तन करती हैं।
लेकिन अचानक क्या होता है कि अक्टूबर 2013 में बलात्कार का आरोप लगाती है ।
पुलिस ने भी दोनों लड़कियों का 5 से 6 बार बयान लिया उसमे हरबार बयान विरोधाभासी आये और हर बार बयान बदल देती थी । इससे पता चलता है कि ये केस किसी द्वारा उपजावु है ।
इससे बड़ी विडंबना देखिये कि दिसम्बर 2014 में लड़की केस वापिस लेना चाहती है लेकिन सरकार द्वारा विरोध किया जाता है और न्यायालय उसको केस वापिस लेने को मना कर देता है ।
यहाँ तक कि केस 12 साल पुराना होते हुए भी, कोई सबूत न होते हुये भी, बापू आसारामजी की वृद्धावस्था को देखते हुए भी, 80 वर्ष की उम्र में चलना-फिरना मुश्किल होते हुए भी, जमानत तक नही दी जा रही है ।
लगातार मीडिया द्वारा बापू आसारामजी की छवि को धूमिल करने का प्रयास करना, सरकार द्वारा जमानत तक का विरोध करना और न्यायालय का जमानत देने से इंकार करना...क्या एक हिन्दू संत को जबरदस्ती साजिश कर फंसाने की बू नहीं आ रही है..???
और वो भी ऐसे संत जिन्होंने हिन्दू संस्कृति का परचम विश्व में लहराया..!!!
जिन्होंने देश और संस्कृति के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया...!!!
जिन्होंने पाश्चात्य कल्चर से युवाओं को बचाकर,वेलेंटाइन डे की गन्दगी से मातृ पितृ पूजन दिवस शुरू करवा युवाओं को संयमी जीवन की ओर अग्रसर किया..!!!
जब दिल्ली में 6 साल पुराना बलात्कार का केस दर्ज करवाने पर न्यायालय ये बोलकर खारिज करता है कि केस 6 साल पुराना है और कोई सबूत नही है लेकिन वही न्यायालय सूरत की 2 लड़कियाँ 12 साल पुराना केस दर्ज करवाती है लेकिन उसको खारिज करना तो दूर की बात, जमानत तक नही देता।
ये सब देखकर क्या आपको नहीं लगता कि सुनियोजित षड़यंत्र करके केस दर्ज हुआ है..???
आज सुप्रसिद्ध हस्तियाँ और संतों को फंसाने में महिला कानून का अंधाधुन दुरूपयोग किया जा रहा है जैसे कि गुजरात द्वारका के केशवानंदजी पर कुछ समय पूर्व एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया और कोर्ट ने सजा भी सुना दी लेकिन जब दूसरे जज की बदली हुई तब देखा कि ये मामला झूठा है तब उनको 7 साल के बाद निर्दोष बरी किया ।
ऐसे ही दक्षिण भारत के स्वामी नित्यानन्द जी के ऊपर भी सेक्स सीडी मिलने का आरोप लगाया गया और उनको जेल भेज दिया गया बाद में उनको कोर्ट ने क्लीनचिट देकर बरी कर दिया ।
ऐसे ही हाल ही में शिवमोगा और बैंगलोर मठ के शंकराचार्य राघवेश्वर भारती स्वामीजी पर एक गायिका को 3 करोड़ नही देने पर 167 बार बलात्कार करने का आरोप लगाया था ।
उनको भी कोर्ट ने निर्दोष बरी कर दिया ।
आपको बता दें कि दिल्ली में बीते छह महीनों में 45 फीसदी ऐसे मामले अदालत में आएं जिनमें महिलाएँ हकीकत में पीड़िता नहीं थी,बल्कि अपनी माँगें पूरी न होने पर बलात्कार का केस दर्ज करा रही थी ।
छह जिला अदालतों के रिकॉर्ड से ये बात सामने आई है कि बलात्कार के 70 फीसदी मामले अदालतों में साबित ही नहीं हो पाते हैं ।
बलात्कार कानून की आड़ में महिलाएं आम नागरिक से लेकर सुप्रसिद्ध हस्तियों, संत-महापुरुषों को भी ब्लैकमेल कर झूठे बलात्कार आरोप लगाकर जेल में डलवा रही हैं ।
बलात्कार निरोधक कानूनों की खामियों को दूर करना होगा। तभी समाज के साथ न्याय हो पायेगा अन्यथा एक के बाद एक निर्दोष सजा भुगतने के लिए मजबूर होते रहेंगे ।
दिल्ली की एक त्वरित अदालत ने 2010 में 30 वर्षीय एक विवाहित महिला को नशीला पेय पदार्थ पिलाकर कथित रूप से उससे बलात्कार करने के आरोपी एक व्यक्ति को यह कहकर बरी कर दिया कि आरोपी व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने में छह साल की देरी की कोई वैध वजह नहीं बताई गई।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रवीण कुमार ने दिल्ली निवासी व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 376, 506 और 323 के तहत दर्ज मामलों को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की कि शिकायतकर्ता ने न तो शोर मचाया और न ही उसने इस कथित अपराध के लिए आरोपी के खिलाफ छह साल तक शिकायत ही दर्ज कराई।
न्यायाधीश ने कहा, 27 मई 2016 तक महिला ने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई, जबकि 16 जून 2010 को उसके साथ पहली बार कथित रूप से बलात्कार हुआ था।
शिकायतकर्ता के अनुसार अंतिम बार उसके साथ 21 मई 2016 को बलात्कार किया गया। लेकिन प्राथमिकी दर्ज कराने में देरी को लेकर कोई वैध वजह नहीं बताई गई।
कहा गया कि प्राथमिकी दर्ज कराने में एक या दो दिन की देरी तथ्यात्मक रूप से और निर्दिष्ट मामले की परिस्थितियों में यथार्थ, उचित, तर्कसंगत हो सकती है।
बहरहाल, मौजूदा मामले में प्राथमिकी दर्ज कराने में छह साल से अधिक समय की देरी हुई। शिकायतकर्ता ने ना तो कभी चीख पुकार मचाई और ना ही कथित जबरन यौन संबंध के लिए तत्काल पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज कराई।
जांच के दौरान पुलिस को ऐसे किसी भी तरह के आपत्तिजनक वीडियो नहीं मिलने का हवाला देते हुए अदालत ने व्यक्ति द्वारा इन वर्षों में महिला को इन वीडियो के जरिए उसे धमकाने और ब्लैकमेल किए जाने के महिला के दावे को भी अस्वीकार कर दिया ।
तो आपने देखा कि कुछ महिलाएं कपटपूर्ण तरीके से कैसे महिला कानून का अंधाधुन दुरूपयोग कर रही है!!
इसी प्रकार का मामला सामने आया है बापू आसारामजी और उनके बेटे नारायण साईं पर अक्टूबर 2013 में प्राथमिकी दर्ज की गई की उनकेे ऊपर आश्रम में रहने वाली सूरत गुजरात की 2 महिलायें, जो सगी बहनें हैं, उनमें से बड़ी बहन ने बापू आसारामजी के ऊपर 2001 में और छोटी बहन ने नारायण साईं जी पर 2003 में बलात्कार हुआ , ऐसा आरोप लगाया है ।
किसके दबाव में आकर 12/11 साल पुराना केस दर्ज किया गया । बड़ी बहन FIR में लिखती है कि 2001 में मेरे साथ बापू आसारामजी ने दुष्कर्म किया लेकिन जरा सोचिए कि अगर किसी लड़की के साथ दुष्कर्म होता है तो क्या वो अपनी सगी बहन को बाद में आश्रम में समर्पित कर सकती है..???
लेकिन बड़ी बहन ने छोटी बहन को 2002 में संत आसारामजी बापू आश्रम में सपर्पित करवाया था। उसके बाद छोटी बहन 2005 और बड़ी बहन 2007 तक आश्रम में रही । दोंनो बहनें 2007 में 2010 में उनकी शादी हो गई । आश्रम छोड़कर चली जाती हैं और जनवरी 2013 तक वो बापू आसारामजी और नारायण साईं के कार्य्रकम में आती रहती हैं, सत्संग सुनती हैं, कीर्तन करती हैं।
लेकिन अचानक क्या होता है कि अक्टूबर 2013 में बलात्कार का आरोप लगाती है ।
पुलिस ने भी दोनों लड़कियों का 5 से 6 बार बयान लिया उसमे हरबार बयान विरोधाभासी आये और हर बार बयान बदल देती थी । इससे पता चलता है कि ये केस किसी द्वारा उपजावु है ।
इससे बड़ी विडंबना देखिये कि दिसम्बर 2014 में लड़की केस वापिस लेना चाहती है लेकिन सरकार द्वारा विरोध किया जाता है और न्यायालय उसको केस वापिस लेने को मना कर देता है ।
यहाँ तक कि केस 12 साल पुराना होते हुए भी, कोई सबूत न होते हुये भी, बापू आसारामजी की वृद्धावस्था को देखते हुए भी, 80 वर्ष की उम्र में चलना-फिरना मुश्किल होते हुए भी, जमानत तक नही दी जा रही है ।
लगातार मीडिया द्वारा बापू आसारामजी की छवि को धूमिल करने का प्रयास करना, सरकार द्वारा जमानत तक का विरोध करना और न्यायालय का जमानत देने से इंकार करना...क्या एक हिन्दू संत को जबरदस्ती साजिश कर फंसाने की बू नहीं आ रही है..???
और वो भी ऐसे संत जिन्होंने हिन्दू संस्कृति का परचम विश्व में लहराया..!!!
जिन्होंने देश और संस्कृति के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया...!!!
जिन्होंने पाश्चात्य कल्चर से युवाओं को बचाकर,वेलेंटाइन डे की गन्दगी से मातृ पितृ पूजन दिवस शुरू करवा युवाओं को संयमी जीवन की ओर अग्रसर किया..!!!
जब दिल्ली में 6 साल पुराना बलात्कार का केस दर्ज करवाने पर न्यायालय ये बोलकर खारिज करता है कि केस 6 साल पुराना है और कोई सबूत नही है लेकिन वही न्यायालय सूरत की 2 लड़कियाँ 12 साल पुराना केस दर्ज करवाती है लेकिन उसको खारिज करना तो दूर की बात, जमानत तक नही देता।
ये सब देखकर क्या आपको नहीं लगता कि सुनियोजित षड़यंत्र करके केस दर्ज हुआ है..???
आज सुप्रसिद्ध हस्तियाँ और संतों को फंसाने में महिला कानून का अंधाधुन दुरूपयोग किया जा रहा है जैसे कि गुजरात द्वारका के केशवानंदजी पर कुछ समय पूर्व एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया और कोर्ट ने सजा भी सुना दी लेकिन जब दूसरे जज की बदली हुई तब देखा कि ये मामला झूठा है तब उनको 7 साल के बाद निर्दोष बरी किया ।
ऐसे ही दक्षिण भारत के स्वामी नित्यानन्द जी के ऊपर भी सेक्स सीडी मिलने का आरोप लगाया गया और उनको जेल भेज दिया गया बाद में उनको कोर्ट ने क्लीनचिट देकर बरी कर दिया ।
ऐसे ही हाल ही में शिवमोगा और बैंगलोर मठ के शंकराचार्य राघवेश्वर भारती स्वामीजी पर एक गायिका को 3 करोड़ नही देने पर 167 बार बलात्कार करने का आरोप लगाया था ।
उनको भी कोर्ट ने निर्दोष बरी कर दिया ।
आपको बता दें कि दिल्ली में बीते छह महीनों में 45 फीसदी ऐसे मामले अदालत में आएं जिनमें महिलाएँ हकीकत में पीड़िता नहीं थी,बल्कि अपनी माँगें पूरी न होने पर बलात्कार का केस दर्ज करा रही थी ।
छह जिला अदालतों के रिकॉर्ड से ये बात सामने आई है कि बलात्कार के 70 फीसदी मामले अदालतों में साबित ही नहीं हो पाते हैं ।
बलात्कार कानून की आड़ में महिलाएं आम नागरिक से लेकर सुप्रसिद्ध हस्तियों, संत-महापुरुषों को भी ब्लैकमेल कर झूठे बलात्कार आरोप लगाकर जेल में डलवा रही हैं ।
बलात्कार निरोधक कानूनों की खामियों को दूर करना होगा। तभी समाज के साथ न्याय हो पायेगा अन्यथा एक के बाद एक निर्दोष सजा भुगतने के लिए मजबूर होते रहेंगे ।