Thursday, April 13, 2017

एक और हिन्दुनिष्ठ कानून की चपेट में ...!!!

🚩जब पत्रकारिता में स्वतंत्रता है तो फिर सुदर्शन न्यूज के सुरेश चव्हाणके की क्यों हुई गिरफ्तारी?
🚩हमारे संविधान में लिखा है और हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी कहा है कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है और उसे स्वतंत्रता का पूरा अधिकार है। तो फिर क्यों सुदर्शन न्यूज के प्रधान संपादक पर ये कार्रवाई की गई है ?

SURESH CHAWANKE, SUDARSHAN NEWS

🚩जबकि कई पत्रकार बरखा दत्त, राजसर देसाई आदि खुल्ले आम पाकिस्तान और आतंकवादियों का समर्थन करते दिखे हैं लेकिन उनकी न ही आजतक गिरफ्तारी हुई है और न ही कोई भी FIR हुई है।
🚩आखिर ऐसा क्यों..???
🚩सुदर्शन न्यूज पर की गई कार्रवाई से तो साफ जाहिर है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता पर हमला किया जा रहा है, क्योंकि सुदर्शन न्यूज के प्रधान संपादक ने कहा था कि वो एक पत्रकार की हैसियत से संभल जाएंगे। जबकि संसद में राज्यसभा के सासंद ने संभल मामले को ऐसे पेश किया, जैसे सुरेश चव्हाणके जी अपने साथ हिंदुओं की सेना लेकर जा रहे हैं।
🚩अपनी गिरफ्तारी पर प्रतिक्रिया देते हुए सुरेश चव्हाणके जी ने कहा कि, "मुझ पर निराधार एफआईआर दर्ज की गई है।"
🚩पत्थरबाजों का खुला समर्थन करने वाला कोई एक भी आज तक छुआ नहीं गया । मैंने पत्थरबाजों का विरोध किया तो मुझे मिली ये सजा - सुरेश चाव्हाणके
🚩उत्तर प्रदेश पुलिस ने सुदर्शन न्यूज के संपादक और सीएमडी सुरेश चव्हाणके को लखनऊ एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया है। आज संभल में उनका कार्यक्रम था ।
🚩एक मुल्ले के आगे देश की सत्ता झुकती है ,यह सिद्ध हो गया ।
🚩सुदर्शन न्यूज के मुख्य एडिटर सुरेश चव्हाणके को मौलाना बाबर द्वारा धमकी मिली कि सम्भल में सुरेश चव्हाणके शिव मंदिर में मत्था टेकने आते हैं तो उनका सर धड़ से अलग कर दिया जाएगा और पैर काट देगे । वे सम्भल न आये, और तो और अगर वह मत्था टेकना चाहते हैं तो उन्हें इस्लाम स्वीकार करना पड़ेगा और नमाज पढ़नी पड़ेगी तभी उन्हें मंदिर में प्रवेश मिलेगा । यह मुसलमान शिव मंदिर को जामा मस्जिद कहते हैं ।
यह वही मन्दिर है जहाँ मुसलमानों ने पिछले 35 वर्षों से पूजा पाठ बन्द करवा दिया है ।
🚩दरअसल यह जितने भी मुल्ले धमकी दे रहे हैं वह वर्तमान सरकार के मुँह पर थूक रहे हैं । जिन्होंने चुनाव से पहले हिन्दू हितकारी बहुत बड़ी-बड़ी बातें की पर करके कुछ नहीं दिखाया ।
🚩सुरेश चव्हाणके जी के साथ-साथ देश के लिए ये बेहद पीड़ा का विषय है ।
🚩श्री सुरेश चव्हाणके जी का कहना है कि "कश्मीर में सेना प्रमुख तक को गुंडा बोलने वालों के विरुद्ध  जिस समाजवादी सांसद जावेद अली ने आज तक आवाज नहीं उठाई उसे सम्भल के पत्थरबाजों का विरोध करने वाले सुरेश चव्हाणके से इतनी पीड़ा क्यों और किस बात की हो गयी ?"
🚩उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने सेना , राष्ट्र , धर्म आदि के सम्मान से ना ही कभी समझौता किया है और ना ही आगे कभी करेंगे।
🚩समाजवादी पार्टी के सांसद जावेद अली के लिए उन्होंने कहा कि बेहतर होगा कि वो सम्भल के साथ साथ कश्मीर के पत्थरबाजों के विरोध में अपनी आवाज बुलंद करके उनका समर्थन करने वाले नेताओं के खिलाफ ठीक वैसी ही आवाज उठायें जैसी उन्होंने राष्ट्र , धर्म , न्याय और नीति की बात करने वाले सुदर्शन न्यूज के विरुद्ध उठाई है ।
🚩श्री सुरेश चव्हाणके जी के अनुसार उन्हें किसी भी प्रकार से,किसी भी दबाव द्वारा,चाहे वो शारीरिक हो या मानसिक दबाया नहीं जा सकता है। वो अपने राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए छेड़े गए अभियान को सदा गति देते रहेंगे भले ही इसके लिए उन्हें अपने प्राणों का बलिदान ही क्यों ना देना पड़े ।
🚩एक और हिंदुत्वनिष्ठ कानून की चपेट में !!
🚩अगर आप पिछले कुछ वर्षों पर ध्यानदेंगे तो आपको देखने को मिलेगा कि जो भी हिन्दू संस्कृति की सेवा के लिए आगे आता है चाहे वो हिन्दू संत हो या हिन्दू कार्यकर्त्ता उनको किसी न किसी निमित्त जेल ही भेजा जा रहा है ।
🚩जिसके कई उदाहरण हैं जैसे शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, स्वामी असीमानंद, संत आसारामजी बापू, नारायण साईं, धनंजय देसाई, और अब हिन्दू धर्म में निष्ठा रखने वाले सुरेश चव्हाणके !!
🚩इन सबके जीवन पर दृष्टि डाले तो इन्होंने हिन्दू संस्कृति के उत्थानार्थ वो कार्य किये हैं कि जिनकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है ।
🚩पर इसका परतोषिक क्या मिला इन्हें ???
जेल!!
🚩और वहां भी जमानत जैसे मौलिक अधिकार से वंचित !!
🚩आखिर क्या चाहती है हिंदुत्ववादी कहलाने वाली सरकार ???
🚩क्यों एक के बाद एक हिंदुत्वनिष्ठ जेल में ???
🚩अब समय आ गया है जब हिंदुओं को आपसी मनमुटाव छोड़कर एकजुट होना होगा और हिंदुत्वनिष्ठों के साथ हो रहे अन्याय के विरुद्ध आंदोलन छेड़ना होगा नहीं तो एक दिन ऐसा आएगा जब कोई हिन्दू संस्कृति के लिए आगे नहीं आयेगा,आवाज नहीं उठाएगा ।
🚩जागो हिन्दू !!

Wednesday, April 12, 2017

जलियाँवाला बाग हत्याकांड स्मृतिदिन - 13 अप्रैल

🚩 जलियाँवाला बाग हत्याकांड स्मृतिदिन - 13 अप्रैल

🚩यह हत्याकांड भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 (बैसाखी के दिन) हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दी । जिसमें 1000 से अधिक व्यक्ति मरे और 2000 से अधिक घायल हुए।
jallianwala bagh, samriti diwas, 13 april,

🚩अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6 सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।

🚩यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य #हत्याकाण्ड ही था। माना जाता है कि यह घटना ही भारत में #ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी।

🚩1997 में महारानी एलिजाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी।  2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि "ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।"
घटनाक्रम !!

ऐतिहासिक दिवस..

🚩13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का दिन था। बैसाखी वैसे तो पूरे भारत का एक प्रमुख त्यौहार है परंतु विशेषकर पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की रबी की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियाँ मनाते हैं। इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें और अंतिम गुरु गुरुगोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसीलिए बैसाखी पंजाब और आस-पास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्यौहार है और सिख इसे सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। अमृतसर में उस दिन एक मेला सैकड़ों साल से लगता चला आ रहा था जिसमें उस दिन भी हजारों लोग दूर-दूर से आए थे।

अंग्रेजों की मंशा..

🚩प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) में भारतीय नेताओं और जनता ने खुल कर ब्रिटिशों का साथ दिया था। 13 लाख भारतीय सैनिक और सेवक यूरोप, अफ्रीका और मिडल ईस्ट में ब्रिटिशों की तरफ से तैनात किए गए थे जिनमें से 43,000 भारतीय सैनिक युद्ध में शहीद हुए थे। युद्ध समाप्त होने पर भारतीय नेता और जनता ब्रिटिश सरकार से सहयोग और नरमी के रवैये की आशा कर रहे थे परंतु ब्रिटिश सरकार ने मॉण्टेगू-चेम्सफोर्ड सुधार लागू कर दिए जो इस भावना के विपरीत थे।

🚩लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पंजाब के क्षेत्र में ब्रिटिशों का विरोध कुछ अधिक बढ़ गया था जिसे भारत प्रतिरक्षा विधान (1915) लागू कर के कुचल दिया गया था। उसके बाद 1918 में एक ब्रिटिश जज सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक सेडीशन समिति नियुक्त की गई थी जिसकी जिम्मेदारी ये अध्ययन करना था कि भारत में, विशेषकर पंजाब और बंगाल में ब्रिटिशों का विरोध किन विदेशी शक्तियों की सहायता से हो रहा था। इस समिति के सुझावों के अनुसार भारत प्रतिरक्षा विधान (1915) का विस्तार कर के भारत में रॉलट एक्ट लागू किया गया था, जो आजादी के लिए चल रहे आंदोलन पर रोक लगाने के लिए था, जिसके अंतर्गत ब्रिटिश सरकार को और अधिक अधिकार दिए गए थे जिससे वह प्रेस पर सेंसरशिप लगा सकती थी, नेताओं को बिना मुकदमें के जेल में रख सकती थी, लोगों को बिना वॉरण्ट के गिरफ्तार कर सकती थी, उन पर विशेष ट्रिब्यूनलों और बंद कमरों में बिना जवाबदेही दिए हुए मुकदमा चला सकती थी आदि। इसके विरोध में पूरा भारत उठ खड़ा हुआ और देश भर में लोग गिरफ्तारियां दे रहे थे।

गाँधीजी ने रोलेट एक्ट का किया विरोध..

🚩गांधी तब तक दक्षिण अफ्रीका से भारत आ चुके थे और धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता बढ़ रही थी। उन्होंने रोलेट एक्ट का विरोध करने का आह्वान किया जिसे कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार ने और अधिक नेताओं और जनता को रोलेट एक्ट के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया और कड़ी सजाएँ दी। इससे जनता का आक्रोश बढ़ा और लोगों ने रेल और डाक-तार-संचार सेवाओं को बाधित किया। आंदोलन अप्रैल के पहले सप्ताह में अपने चरम पर पहुँच रहा था। लाहौर और अमृतसर की सड़कें लोगों से भरी रहती थी। करीब 5,000 लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठे थे। ब्रिटिश सरकार के कई अधिकारियों को यह 1857 के गदर की पुनरावृत्ति जैसी परिस्थिति लग रही थी जिसे न होने देने के लिए और कुचलने के लिए वो कुछ भी करने के लिए तैयार थे।

अंग्रेजों के अत्याचार..

🚩आंदोलन के दो नेताओं सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर कालापानी की सजा दे दी गई। 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर के उप कमिश्नर के घर पर इन दोनों नेताओं को रिहा करने की माँग पेश की गई। परंतु ब्रिटिशों ने शांतिप्रिय और सभ्य तरीके से विरोध प्रकट कर रही जनता पर गोलियाँ चलवा दी। जिससे तनाव बहुत बढ़ गया और उस दिन कई बैंकों, सरकारी भवनों, टाउन हॉल, रेलवे स्टेशन में आगजनी की गई। इस प्रकार हुई हिंसा में 5 यूरोपीय नागरिकों की हत्या हुई। इसके विरोध में ब्रिटिश सिपाही भारतीय जनता पर जहाँ-तहाँ गोलियाँ चलाते रहे जिसमें 8 से 20 भारतीयों की मृत्यु हुई। अगले दो दिनों में अमृतसर तो शाँत रहा पर हिंसा पंजाब के कई क्षेत्रों में फैल गई और 3 अन्य यूरोपीय नागरिकों की हत्या हुई। इसे कुचलने के लिए ब्रिटिशों ने पंजाब के अधिकतर भाग पर मार्शल लॉ लागू कर दिया।

#जलियाँवाला_बाग_काण्ड का विवरण..

🚩बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर #जनरल रेजीनॉल्ड #डायर 90 ब्रिटिश #सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया। उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थी। नेताओं ने #सैनिकों को देखा, तो उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शांत बैठे रहने के लिए कहा।

गोलीबारी..

🚩सैनिकों ने बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दी।10  मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गई । जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहाँ तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया। जलियांवाला बाग कभी जलली नामक आदमी की सम्पति थी।

शहीदी कुआं..

🚩बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो सिर्फ कुए से ही मिले। शहर में क‌र्फ्यू लगा था जिससे घायलों को इलाज के लिए भी कहीं ले जाया नहीं जा सका। लोगों ने तड़प-तड़प कर वहीं दम तोड़ दिया। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी।

करतूत बयानी..

🚩मुख्यालय वापस पहुँच कर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को टेलीग्राम किया कि उस पर भारतीयों की एक फौज ने हमला किया था जिससे बचने के लिए उसको गोलियाँ चलानी पड़ी। ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने इसके उत्तर में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को टेलीग्राम किया कि तुमने सही कदम उठाया। मैं तुम्हारे निर्णय को अनुमोदित करता हूँ। फिर ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने अमृतसर और अन्य क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाने की माँग की जिसे वायसरॉय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने स्वीकृत कर दिया।

जाँच..

🚩इस हत्याकाण्ड की विश्वव्यापी निंदा हुई जिसके दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एडविन मॉण्टेगू ने 1919 के अंत में इसकी जाँच के लिए हंटर कमीशन नियुक्त किया। कमीशन के सामने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने स्वीकार किया कि वह गोली चला कर लोगों को मार देने का निर्णय पहले से ही ले कर वहाँ गया था और वह उन लोगों पर चलाने के लिए दो तोपें भी ले गया था जो कि उस संकरे रास्ते से नहीं जा पाई थी। हंटर कमीशन की रिपोर्ट आने पर 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को पदावनत कर के कर्नल बना दिया गया और अक्रिय सूचि में रख दिया गया। उसे भारत में पोस्ट न देने का निर्णय लिया गया और उसे स्वास्थ्य कारणों से ब्रिटेन वापस भेज दिया गया। हाउस ऑफ कॉमन्स ने उसका निंदा प्रस्ताव पारित किया परंतु हाउस ऑफ लॉर्ड ने इस हत्याकाण्ड की प्रशंसा करते हुये उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया। विश्वव्यापी निंदा के दबाव में ब्रिटिश सरकार ने उसका निंदा प्रस्ताव पारित किया और 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को इस्तीफा देना पड़ा। 1927 में प्राकृतिक कारणों से उसकी मृत्यु हुई।

🚩रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध-स्वरूप अपनी नाइटहुड को वापस कर दिया। आजादी के लिए लोगों का हौंसला ऐसी भयावह घटना के बाद भी पस्त नहीं हुआ। बल्कि सच तो यह है कि इस घटना के बाद आजादी हासिल करने की चाहत लोगों में और जोर से उफान मारने लगी। हालांकि उन दिनों संचार और आपसी संवाद के वर्तमान साधनों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, फिर भी यह खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई। आजादी की चाह न केवल पंजाब, बल्कि पूरे देश के बच्चे-बच्चे के सिर चढ़ कर बोलने लगी। उस दौर के हजारों भारतीयों ने जलियांवाला बाग की मिट्टी को माथे से लगाकर देश को आजाद कराने का दृढ़ संकल्प लिया। पंजाब तब तक मुख्य भारत से कुछ अलग चला करता था परंतु इस घटना से पंजाब पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित हो गया। इसके फलस्वरूप गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया।

प्रतिघात..

🚩जब जलियांवाला बाग में यह हत्याकांड हो रहा था, उस समय उधमसिंह वहीं मौजूद थे और उन्हें भी गोली लगी थी। उन्होंने तय किया कि वह इसका बदला लेंगे। 13 मार्च 1940 को उन्होंने लंदन के कैक्सटन हॉल में इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर माइकल ओ डायर को गोली चला के मार डाला। 

🚩ऊधमसिंह को 31 जुलाई 1940 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने ऊधमसिंह द्वारा की गई इस हत्या की निंदा करी थी। 

🚩इस हत्याकांड ने तब 12 वर्ष की उम्र के भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जालियावाला बाग पहुंच गए थे।

🚩हमारे देश को पहले मुगल और बाद में अंग्रेजो ने गुलाम बनाकर रखा था, भारत को खूब लूटा, संस्कृति नष्ट करने का प्रयत्न किया लेकिन फिर भी वीर हिंदुस्तानियों ने लोहा लिया अपने प्राणों की बलि देकर क्रूर मुगलों और अंग्रेजो को भगा दिया।

🚩लेकिन हम उनके इन बलिदानों का क्या उपयोग कर रहे हैं ?

🚩क्या केवल तिथि अनुसार उन शहीदों को श्रंद्धांजलि देना ही काफी है या जो आजादी वो देखना चाहते थे उस आजादी की ओर हमें आगे बढ़ना है ?

🚩आजादी के 70 साल बीत गए पर आज भी हम अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता की गरिमा को भूलते हुए मानसिक रूप से तो अंग्रेजों के गुलाम ही है । 

🚩आओ अपने महान शहीदों को सच्ची श्रंद्धांजलि दे अपनी संस्कृति की ओर कदम बढ़ाते हुए...!!