December 24, 2017
'जज कब बना रहे हो??'.. बोलो ना डियर, 'जज कब बना रहे हो'...???
आगे साहब ने जो भी उत्तर दिया था वह सारा का सारा उस सेक्स-सीडी में रिकॉर्ड हो गया... और यही सीडी कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी के राजनीतिक पतन का कारण बनी।
पिछले 70 सालों से जजों की नियुक्ति में सेक्स, पैसा, ब्लैक मेल एवं दलाली के जरिए जजों को चुना जाता रहा।
अजीब विडंबना है कि हररोज औरों को सुधारने की नसीहत देने वाले लोकतंत्र के दोनों स्तंभ मीडिया और न्यायपालिका खुद सुधरने को तैयार नहीं।
Pakistan is going to become the Supreme Court of India, declining credibility |
जब देश आजाद हुआ तब जजों की नियुक्ति के लिए ब्रिटिश काल से चली आ रही 'कॉलेजियम प्रणाली' भारत सरकार ने अपनाई.... यानी सीनियर जज अपने से छोटे अदालतों के जजों की नियुक्ति करते हैं। इस कॉलेजियम में जज और कुछ वरिष्ठ वकील भी शामिल होते हैं। जैसे सुप्रीम कोर्ट के जज हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति करते हैं और हाईकोर्ट के जज जिला अदालत की जजों की नियुक्ति करते हैं।
इस प्रणाली में कितना भ्रष्टाचार है वह लोगों ने अभिषेक मनु सिंघवी की सेक्स सीडी में देखा... अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम के सदस्य और उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट के लिए जजों की नियुक्ति करने का अधिकार था.. उस सेक्स सीडी में वो वरिष्ठ वकील अनुसुइया सालवान को जज बनाने का लालच देकर उसके साथ इलू इलू करते पाए गए थे, वो भी कोर्ट परिसर के ही किसी खोपचे में।
कॉलेजियम सिस्टम से कैसे लोगों को जज बनाया जाता है और उसके द्वारा राजनीतिक साजिश से कैसे की जाती है उसके दो उदाहरण देखिए..
पहला उदाहरण-- किसी भी राज्य के हाईकोर्ट में जज बनने की सिर्फ दो योग्यता होती है.. वो भारत का नागरिक हो और 10 साल से किसी हाईकोर्ट में वकालत कर रहा हो..या किसी राज्य का महाधिवक्ता हो।
वीरभद्र सिंह जब हिमाचल में मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने सारे नियम कायदों को ताक पर रखकर अपनी बेटी अभिलाषा कुमारी को हिमाचल का महाधिवक्ता नियुक्त कर दिया। फिर कुछ दिनों बाद सुप्रीम कोर्ट के जजों के कॉलेजियम में उन्हें हाई कोर्ट का जज नियुक्त कर दिया और उन्हें गुजरात हाई कोर्ट में जज बना कर भेज दिया।
तब कांग्रेस गुजरात दंगों के बहाने मोदी को फंसाना चाहती थी और अभिलाषा कुमारी ने जज की हैसियत से कई निर्णय मोदी के खिलाफ दिए.. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बाद में उसे बदल दिया था।
दूसरा उदाहरण -- 1990 में जब लालूप्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री थे तब कट्टरपंथी मुस्लिम आफताब आलम को हाई कोर्ट का जज बनाया गया.. बाद में उन्हें प्रमोशन देकर सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया.. उनकी नरेंद्र मोदी से इतनी दुश्मनी थी कि तीस्ता सीतलवाड़ और मुकुल सिन्हा गुजरात के हर मामले को इनकी बेंच में अपील करते थे.. इन्होंने नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिए अपना एक मिशन बना लिया था।
बाद में आठ रिटायर्ड जजों ने जस्टिस एम बी सोनी की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से मिलकर आफताब आलम को गुजरात दंगों के किसी भी मामलें की सुनवाई से दूर रखने की अपील की थी.. जस्टिस सोनी ने आफताब आलम के लिए 12 फैसलों का डिटेल में अध्ययन करके उसे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को दिया था और साबित किया था कि आफताब आलम चूँकि मुस्लिम है इसलिए उनके हर फैसले में भेदभाव स्पष्ट नजर आ रहा है।
फिर सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस आफताब आलम को गुजरात दंगों से किसी भी केस की सुनवाई से दूर कर दिया।
जजों के चुनाव के लिए कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक नई विशेष प्रणाली की जरूरत महसूस की जा रही थी। जब मोदी की सरकार आई तो 3 महीने बाद ही संविधान के संशोधन (99 वाँ संशोधन )करके एक कमीशन बनाया गया जिसका नाम दिया गया National Judicial Appointments Commission (NJAC).
इस कमीशन के तहत कुल छः लोग मिलकर जजों की नियुक्ति कर सकते थे।
1. इसमें एक सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश,
2. सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर जज जो मुख्य न्यायाधीश से ठीक नीचे हो,
3. भारत सरकार का कानून एवं न्याय मंत्री,
4. और दो ऐसे चयनित व्यक्ति जिसे 3 लोग मिलकर चुनेंगे। (प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश एवं लोकसभा में विपक्ष का नेता)।
परंतु एक बड़ी बात तब हो गई जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कमीशन को रद्द कर दिया, वैसे इसकी उम्मीद भी की जा रही थी।
इस वाक्य को न्यायपालिका एवं संसद के बीच टकराव के रूप में देखा , जाने लगा .... भारतीय लोकतंत्र पर सुप्रीम कोर्ट के कुठाराघात के रूप में इसे लिया गया।
यह कानून संसद के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पारित किया गया था जिसे 20 राज्यों की विधानसभा ने भी अपनी मंजूरी दी थी।
सुप्रीम कोर्ट यह भूल गई थी कि जिस सरकार ने इस कानून को पारित करवाया है उसे देश की जनता ने पूर्ण बहुमत से चुना है।
सिर्फ चार जज बैठकर करोड़ों की इच्छाओं का दमन कैसे कर सकते है ? क्या सुप्रीम कोर्ट इतना ताकतवर हो सकता है कि वह लोकतंत्र में जनमानस की आकांक्षाओं पर पानी फेर सकता है ?
जब संविधान की खामियों देश की जनता पतिमार्जित कर सकती है तो न्यायपालिका की खामियों को क्यों नहीं कर सकती?
यदि NJAC को सुप्रीम कोर्ट असंवैधानिक कह सकता है तो इससे ज्यादा असंवैधानिक तो कॉलेजियम सिस्टम है जिसमें ना तो पारदर्शिता है और ना ही ईमानदारी?
कांग्रेसी सरकार को इस कॉलेजियम से कोई दिक्कत नहीं रही क्योंकि उन्हें पारदर्शिता की आवश्कता थी ही नहीं।
मोदी सरकार ने एक कोशिश की थी परंतु सुप्रीम कोर्ट ने उस कमीशन को रद्दी की टोकरी में डाल दिया ।
शुचिता एवं पारदर्शिता का दम्भ भरने वाले सुप्रीम कोर्ट को तो यह कहना चाहिए था कि इस नए कानून (NJAC) को कुछ समय तक चलने देना चाहिए ... ताकि इसके लाभ हानि का पता चले, खामियां यदि होती तो उसे दूर किया जा सकता था परंतु ऐसा नहीं हुआ।
जज अपनी नियुक्ति खुद करे ऐसा विश्व में कही नहीं होता है सिवाय भारत के।
क्या कुछ सीनियर IAS ऑफिसर मिलकर नये IAS की नियुक्ति कर सकते है? क्या कुछ सीनियर प्रोफेसर मिलकर नये प्रोफेसर की नियुक्ति कर सकते है ?
यदि नहीं तो जजो की नियुक्ति जजो द्वारा क्यों की जानी चाहिए ? आज सुप्रीम कोर्ट एक धर्म विशेष का हिमायती बना हुआ है....
सुप्रीम कोर्ट गौरक्षकों को बैन करता है ।
सुप्रीम कोर्ट जल्लिकटु को बैन करता है ।
सुप्रीम कोर्ट दही हांडी के खिलाफ निर्णय देता है । सुप्रीम कोर्ट दस बजे रात के बाद डांडिया बंद करवाता है ।
सुप्रीम कोर्ट दीपावली में देर रात पटाखे को बैन करता है ।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट आतंकवादी की सुनवाई के लिए रात 2 बजे अदालत खुलवाता है ।
सुप्रीम कोर्ट पत्थर बाजी को बैन नहीं करता है । सुप्रीम कोर्ट गौमांस खाने वालों पर बैन नहीं लगता है ।
ईद - बकरीद पर कुर्बानी को बैन नहीं करता ।
मुस्लिम महिलाओं के शोषण के खिलाफ तीन तलाक को बैन नहीं करता है ।
और कल तो सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक कह दिया कि तीन तलाक का मुद्दा यदि मजहब का है तो वह हस्तक्षेप नहीं करेगा।
ये बात हुई ? आधी मुस्लिम आबादी की जिंदगी नर्क बनी हुई है और आपको यह मुद्दा मजहबी दिखता है ? धिक्कार है आपके ऊपर ।
अभिषेक मनु सिंधवी के वीडियो को सोशल मीडिया, यु ट्यूब से हटाने का आदेश देते हो कि न्यायपालिका की बदनामी ना हो ? पर क्यों ऐसा ... ?
क्यों छुपाते हो अपनी कमजोरी ...?
जस्टिस कार्नर जैसे पागल और टुच्चे जजो को नियुक्त करके एवं बाद में 6 माह के लिए कैद की सजा सुनाने की सुप्रीम कोर्ट को आवश्कता क्यों पड़नी चाहिए ..?
अभिषेक मनु सिंघवी जैसे अय्याशों को जजो को नियुक्त करने का अधिकार क्यों मिलना चाहिए?
क्या सुप्रीम कोर्ट जवाब देगा ... ?
लोग अब तक सुप्रीम कोर्ट की इज्जत करते आये है, कहीं ऐसा न हो कि जनता न्यायपालिका के विरुद्ध अपना उग्र रूप धारण कर लें उसके पहले उसे अपनी समझ दुरुस्त कर लेनी चाहिए । सत्तर सालों से चल रही दादागिरी अब बंद करनी पड़ेगी ... यह 'लोकतंत्र' है और 'जनता' ही इसकी 'मालिक' है।
कांग्रेस की सरकार लगातार 10 साल थी। लेकिन उस समय सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के किसी भी फैसले में चूं तक नहीं की, ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस ने अपनी पसंद के लोगो को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया था।
इसलिए वे चुपचाप पड़े रहते थे लेकिन जैसे ही देश में मोदी सरकार आई, सुप्रीम कोर्ट के जज नींद से जाग उठे, मोदी सरकार के सभी फैसले में हस्तक्षेप करने लगे, वर्तमान में ऐसा लग रहा है कि देश मोदी सरकार नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के जज चला रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के हर फैसले में दखल दे रहा है, हर फैसले में रोक लगा रहा है, हिन्दू समाज के सभी त्यौहारों पर बैन लगा रहा है, पहले सुप्रीम कोर्ट ने जन्माष्टमी पर गोविंदा पर बैन लगाया और अब दीवाली पर पटाखा जलाने पर बैन लगा दिया।
आप खुद देखिये, भारत सरकार राम मंदिर बनाना चाहती है, देश के 80 फीसदी हिन्दू भी अयोध्या में राम मंदिर चाहते है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट बार-बार तारीख बढ़ाकर सुनवाई टाल रहा है।
इसके बाद रोहिंग्या का मामला सामने आया, केंद्र सरकार ने साफ साफ कह दिया कि रोहिंग्या देश की शांति के लिए खतरा है, इनके आतंकियों से संबंध रहे हैं। ये लोग म्यांमार में भी आतंकी गतिविधियों में शामिल है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की बात नहीं मानी और आज तुग़लकी फरमान देते हुए उन्हें भागने पर रोक लगा दी ।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश में केंद्र सरकार से कहा कि जब तक इस मामले की सुनवाई हो रही है तब तब उन्हें जबरदस्ती भगाया न जाये क्योंकि अगर देश की सुरक्षा महत्वपूर्ण है तो मानव अधिकार भी महत्वपूर्ण है।
आपको पता ही है कि राम मंदिर मामले की 30 वर्षो से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है, लेकिन आज तक सुनवाई ही चल रही है।
इस तरह रोहिंग्या मामले की सुनवाई होती तो आराम से 40-50 वर्ष लग जाएंगे, मतलब अब रोहिंग्या 40-50 वर्षो तक भारत में रहेंगे, बच्चे पैदा करेंगे, देश का लोकतांत्रिक ढांचा व संतुलन नष्ट करेंगे, जिहाद करेंगे, हिंसा और आतंकवाद करेंगे और सुप्रीम कोर्ट में तारीख पर तारीख चलती रहेगी।
अब आप देखिये:
'सुप्रीम कोर्ट ना तो राम मंदिर बनाने दे रहा है',
'ना रोहिंग्या को भगाने दे रहा है',
'ना हिंदुओं को पटाखे जलाने दे रहा है',
'कश्मीरी हिंदुओं की सुनवाई नहीं कर रहा।'
'आतंकवादियों के सहायकों पर पैलेट गन प्रयोग नहीं करने दे रहा!'
'सुरक्षा व बलों व सेना पर अंकुश लगाने का प्रयास कर रहा है!'
'देश के लाखों लोगों के मामले पड़े है पैंडिंग! उन पर तो ध्यान नहीं, पर अफजल गुरु जैसे आतंकवादियों को बचाने के प्रयास में रात को भी दरबार लगा रहा है !'
एक तरह से सुप्रीम कोर्ट भारत के लिए पाकिस्तान बन रहा है।
भारत की सरकार और हिंदुस्तान के नागरिकों को अपने हक के लिए सुप्रीम कोर्ट से ही लड़ना पड़ रहा है।
यह बहुत ही खतरनाक ट्रेंड व संकेत है देश के लिए।
स्त्रोत : हिन्दू वॉइस (नवंबर 2017)