Thursday, January 11, 2018

जानिए स्वामी विवेकानंद जी का इतिहास, कैसे बने इतने महान

January 11, 2018
12 जनवरी स्वामी विवेकानन्द जयंती पर विशेष
🚩स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी सन 1863  (विद्वानों के अनुसार #मकर संक्रान्ति संवत 1920) को #कलकत्ता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम #नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे।
🚩दुर्गाचरण दत्ता, (नरेंद्र के दादा) संस्कृत और फारसी के विद्वान थे उन्होंने अपने #परिवार को 25 वर्ष की उम्र में छोड़ दिया और साधु बन गए।

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🚩उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थी। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेंद्र के पिता और उनकी माँ के धार्मिक, #प्रगतिशील व तर्कसंगत रवैये ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में मदद की ।
🚩बचपन से ही #नरेन्द्र अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के तो थे ही नटखट भी थे। अपने साथी बच्चों के साथ वे खूब शरारत करते और मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे। उनके घर में नियमपूर्वक रोज पूजा-पाठ होता था धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण माता भुवनेश्वरी देवी को पुराण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था। संत इनके घर आते रहते थे। नियमित रूप से #भजन-कीर्तन भी होता रहता था। #परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से #बालक नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे होते गये। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही #ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखायी देने लगी थी। ईश्वर के बारे में जानने की उत्सुकता में कभी-कभी वे ऐसे प्रश्न पूछ बैठते थे कि इनके माता-पिता और कथावाचक पण्डितजी तक चक्कर में पड़ जाते थे।
🚩स्वामी विवेकानन्द जी की शिक्षा..!!
🚩सन् 1871 में, आठ साल की उम्र में नरेंद्रनाथ ने #ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया जहाँ वे स्कूल गए। 1877 में उनका परिवार रायपुर चला गया। 1879 में कलकत्ता में अपने परिवार की वापसी के बाद, वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन अंक प्राप्त किये ।
🚩वे दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य सहित विषयों के एक #उत्साही पाठक थे।इनकी वेद, उपनिषद, भगवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू शास्त्रों में गहन रूचि थी। नरेंद्र को #भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित किया गया था और ये नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम में व खेलों में भाग लिया करते थे। नरेंद्र ने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेंबली इंस्टिटूशन (अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में किया। 1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी कर ली।


🚩नरेंद्र ने डेविड ह्यूम, इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच, बारूक स्पिनोजा, जोर्ज डब्लू एच हेजेल, आर्थर स्कूपइन्हार , ऑगस्ट कॉम्टे, जॉन स्टुअर्ट मिल और चार्ल्स डार्विन के कामों का अध्यन किया। उन्होंने स्पेंसर की किताब एजुकेशन (1861) का बंगाली में अनुवाद किया।  ये हर्बर्ट स्पेंसर के विकासवाद से काफी मोहित थे।  #पश्चिम दार्शनिकों के अध्यन के साथ ही इन्होंने संस्कृत ग्रंथों और बंगाली साहित्य को भी सीखा।विलियम हेस्टी (महासभा संस्था के प्रिंसिपल) ने लिखा, "नरेंद्र वास्तव में एक जीनियस है। मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाकों में यात्रा की है लेकिन उनकी जैसी प्रतिभा वाला एक भी बालक कहीं नहीं देखा यहाँ तक कि जर्मन #विश्वविद्यालयों के दार्शनिक छात्रों में भी नहीं।" अनेक बार इन्हें श्रुतिधर( विलक्षण स्मृति वाला एक व्यक्ति) भी कहा गया है।
🚩स्वामी विवेकानन्द जी की आध्यात्मिक शिक्षुता - ब्रह्म समाज का प्रभाव!!
🚩1880 में नरेंद्र ईसाई से हिन्दू धर्म में रामकृष्ण के प्रभाव से परिवर्तित केशव चंद्र सेन की नव विधान में शामिल हुए, नरेंद्र 1884 से पहले कुछ बिंदु पर, एक फ्री मसोनरी लॉज और साधारण #ब्रह्म समाज जो ब्रह्म समाज का ही एक अलग गुट था और जो केशव चंद्र सेन और देवेंद्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में था। 1881-1884 के दौरान ये सेन्स बैंड ऑफ़ होप में भी सक्रीय रहे जो धूम्रपान और शराब पीने से युवाओं को हतोत्साहित करता था।
🚩यह नरेंद्र के परिवेश के कारण पश्चिमी आध्यात्मिकता के साथ परिचित हो गया था। उनके प्रारंभिक विश्वासों को ब्रह्म समाज ने (जो एक निराकार ईश्वर में विश्वास और मूर्ति पूजा का प्रतिवाद करते थे) ने प्रभावित किया और सुव्यवस्थित, युक्तिसंगत, अद्वैतवादी अवधारणाओं , धर्मशास्त्र ,वेदांत और उपनिषदों के एक चयनात्मक और आधुनिक ढंग से अध्ययन पर प्रोत्साहित किया।
🚩स्वामी विवेकानन्द जी की निष्ठा..!!
🚩एक बार किसी #शिष्य ने #गुरुदेव की #सेवा में घृणा और निष्क्रियता दिखाते हुए नाक-भौं सिकोड़ीं। यह देखकर विवेकानन्द को क्रोध आ गया। वे अपने उस गुरु भाई को सेवा का पाठ पढ़ाते और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर पी गये । #गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे अपने गुरु के शरीर और उनके दिव्यतम आदर्शों की उत्तम सेवा कर सके। गुरुदेव को समझ सके और स्वयं के अस्तित्व को गुरुदेव के स्वरूप में विलीन कर सके। और आगे चलकर समग्र विश्व में #भारत के अमूल्य आध्यात्मिक भण्डार की महक फैला सके।
🚩ऐसी थी उनके इस #महान व्यक्तित्व की नींव में गुरुभक्ति, गुरुसेवा और गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा जिसका परिणाम सारे संसार ने देखा।
🚩स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने #गुरुदेव #रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। उनके गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और #कुटुम्ब की नाजुक हालत व स्वयं के भोजन की चिन्ता किये बिना वे गुरु की सेवा में सतत संलग्न रहे।
🚩विवेकानन्द बड़े स्‍वप्न‍दृष्‍टा थे। #उन्‍होंने एक ऐसे समाज की कल्‍पना की थी जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्‍य-मनुष्‍य में कोई भेद न रहे। उन्‍होंने वेदान्त के सिद्धान्तों को इसी रूप में रखा। अध्‍यात्‍मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धान्त का जो आधार विवेकानन्‍द ने दिया उससे सबल बौद्धिक आधार शायद ही ढूँढा जा सके। #विवेकानन्‍द को युवकों से बड़ी आशाएँ थी।
आज के युवकों के लिये इस ओजस्‍वी सन्‍यासी का जीवन एक आदर्श है।
🚩स्वामी विवेकानन्द जी यात्राएँ!!
🚩25 वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया था । तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे #भारतवर्ष की यात्रा की। सन्‌ 1893 में शिकागो (अमरीका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानन्द उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे। यूरोप-अमरीका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे।
🚩वहाँ लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानन्द को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। परन्तु एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला। उस परिषद् में उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गये। फिर तो अमरीका में उनका अत्यधिक स्वागत हुआ। वहाँ उनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय बन गया। तीन वर्ष वे #अमरीका में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान की। उनकी वक्तृत्व-शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया।
🚩"अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा" यह स्वामी विवेकानन्द का दृढ़ विश्वास था। अमरीका में उन्होंने #रामकृष्ण मिशन की अनेक #शाखाएँ स्थापित कीं। अनेक अमरीकी विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। वे सदा अपने को 'गरीबों का सेवक' कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशान्तरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया।
🚩स्वामी विवेकानन्दजी का योगदान !!
🚩39 वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी #विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
🚩तीस वर्ष की आयु में स्वामी #विवेकानन्द ने #शिकागो, अमेरिका के #विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिक पहचान दिलवायी।
🚩 गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था-"यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।"
🚩रोमारोला ने उनके बारे में कहा था-"उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असम्भव है, वे जहाँ भी गये, सर्वप्रथम ही रहे। हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता था। वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी।
🚩हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देख ठिठक कर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा-‘शिव!’ यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के #आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे पर लिख दिया हो।"
🚩वे केवल सन्त ही नहीं, एक #महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। अमेरिका से लौटकर उन्होंने #देशवासियों को आह्वान करते हुए कहा था-"नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूँजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पडे झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से।" और जनता ने स्वामीजी की पुकार का उत्तर दिया। वह गर्व के साथ निकल पड़ी। #गान्धीजी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानन्द के आह्वान का ही फल था।
🚩इस प्रकार वे #भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के भी एक प्रमुख प्रेरणा-स्रोत बने। उनका विश्वास था कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है। यहीं बड़े-बड़े महात्माओं व ऋषियों का जन्म हुआ, यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहीं-केवल यहीं-आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिये जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है।
🚩उनके कथन-"‘उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।"
🚩उन्नीसवीं सदी के आखिरी वर्षोँ में विवेकानन्द लगभग सशस्त्र या हिंसक क्रान्ति के जरिये भी देश को आजाद करना चाहते थे। परन्तु उन्हें जल्द ही यह विश्वास हो गया था कि परिस्थितियाँ उन इरादों के लिये अभी परिपक्व नहीं हैं। इसके बाद ही विवेकानन्द जी ने ‘एकला चलो‘ की नीति का पालन करते हुए एक परिव्राजक के रूप में भारत और दुनिया को खंगाल डाला।
🚩उन्होंने कहा था कि #मुझे बहुत से युवा संन्यासी चाहिये जो भारत के ग्रामों में फैलकर देशवासियों की सेवा में खप जायें।  विवेकानन्दजी पुरोहितवाद, धार्मिक आडम्बरों, कठमुल्लापन और रूढ़ियों के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने धर्म को मनुष्य की सेवा के केन्द्र में रखकर ही आध्यात्मिक चिंतन किया था। उनका हिन्दू धर्म अटपटा, लिजलिजा और वायवीय नहीं था।
🚩विवेकानन्द जी इस बात से आश्वस्त थे कि #धरती की गोद में यदि ऐसा कोई देश है जिसने मनुष्य की हर तरह की बेहतरी के लिए ईमानदार कोशिशें की हैं, तो वह भारत ही है।
🚩उन्होंने पुरोहितवाद, ब्राह्मणवाद, धार्मिक कर्मकाण्ड और रूढ़ियों की खिल्ली भी उड़ायी और लगभग आक्रमणकारी भाषा में ऐसी विसंगतियों के खिलाफ युद्ध भी किया। उनकी दृष्टि में हिन्दू धर्म के #सर्वश्रेष्ठ चिन्तकों के विचारों का निचोड़ पूरी दुनिया के लिए अब भी ईर्ष्या का विषय है। #स्वामीजी ने संकेत दिया था कि विदेशों में भौतिक समृद्धि तो है और उसकी भारत को जरूरत भी है लेकिन हमें याचक नहीं बनना चाहिये। हमारे पास उससे ज्यादा बहुत कुछ है जो हम पश्चिम को दे सकते हैं और पश्चिम को उसकी बेसाख्ता जरूरत है।
🚩यह स्वामी विवेकानन्द का अपने देश की धरोहर के लिये दम्भ या बड़बोलापन नहीं था। यह एक वेदान्ती #साधु की भारतीय सभ्यता और संस्कृति की तटस्थ, वस्तुपरक और मूल्यगत आलोचना थी। बीसवीं सदी के इतिहास ने बाद में उसी पर मुहर लगायी।
🚩स्वामी विवेकानन्द जी की महासमाधि!!
🚩विवेकानंद #ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि #विश्व भर में है। जीवन के अन्तिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा-"एक और विवेकानन्द चाहिये, यह समझने के लिये कि इस #विवेकानन्द ने अब तक क्या किया है।" उनके शिष्यों के अनुसार जीवन के अन्तिम दिन 4 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो तीन घण्टे ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर #महासमाधि ले ली। बेलूर में #गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गयी। #इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था।
🚩उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक #मन्दिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु #रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार के लिये 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की।
🚩स्वामी विवेकानन्द जी की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ!!
🚩12 जनवरी 1863 -- कलकत्ता में जन्म
🚩1879 -- प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश
🚩1880 -- जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश
🚩नवंबर 1881 -- रामकृष्ण परमहंस से प्रथम भेंट
🚩1882-86 -- रामकृष्ण परमहंस से सम्बद्ध
🚩1884 -- स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण; पिता का स्वर्गवास
🚩1885 -- रामकृष्ण परमहंस की अन्तिम बीमारी
🚩16 अगस्त 1886 -- रामकृष्ण परमहंस का निधन
🚩1886 -- वराहनगर मठ की स्थापना
🚩जनवरी 1887 -- वराह नगर मठ में संन्यास की औपचारिक प्रतिज्ञा
🚩1890-93 -- परिव्राजक के रूप में भारत-भ्रमण
🚩25 दिसम्बर 1892 -- कन्याकुमारी में
🚩13 फ़रवरी 1893 -- प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान सिकन्दराबाद में
🚩31 मई 1893 -- मुम्बई से अमरीका रवाना
🚩25 जुलाई 1893 -- वैंकूवर, कनाडा पहुँचे
🚩30 जुलाई 1893 -- शिकागो आगमन
🚩अगस्त 1893 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो॰ जॉन राइट से भेंट
🚩11 सितम्बर 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान
🚩27 सितम्बर 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अन्तिम व्याख्यान
🚩16 मई 1894 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण
🚩नवंबर 1894 -- न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना
🚩जनवरी 1895 -- न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरम्भ
🚩अगस्त 1895 -- पेरिस में
🚩अक्टूबर 1895 -- लन्दन में व्याख्यान
🚩6 दिसम्बर 1895 -- वापस न्यूयॉर्क
🚩22-25 मार्च 1896 -- फिर लन्दन
🚩मई-जुलाई 1896 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान
🚩15 अप्रैल 1896 -- वापस लन्दन
🚩मई-जुलाई 1896 -- लंदन में धार्मिक कक्षाएँ
🚩28 मई 1896 -- ऑक्सफोर्ड में मैक्समूलर से भेंट
🚩30 दिसम्बर 1896 -- नेपाल से भारत की ओर रवाना
🚩15 जनवरी 1897 -- कोलम्बो, श्रीलंका आगमन
🚩जनवरी, 1897 -- रामनाथपुरम् (रामेश्वरम) में जोरदार स्वागत एवं भाषण
🚩6-15 फ़रवरी 1897 -- मद्रास में
🚩19 फ़रवरी 1897 -- कलकत्ता आगमन
🚩1 मई 1897 -- रामकृष्ण मिशन की स्थापना
🚩मई-दिसम्बर 1897 -- उत्तर भारत की यात्रा
🚩जनवरी 1898 -- कलकत्ता वापसी
🚩19 मार्च 1899 -- मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना
🚩20 जून 1899 -- पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा
🚩31 जुलाई 1899 -- न्यूयॉर्क आगमन
🚩22 फरवरी 1900 -- सैन फ्रांसिस्को में वेदान्त समिति की स्थापना
🚩जून 1900 -- न्यूयॉर्क में अन्तिम कक्षा
🚩26 जुलाई 1900 -- यूरोप रवाना
🚩24 अक्टूबर 1900 -- विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र आदि देशों की यात्रा
🚩26 नवम्बर 1900 -- भारत रवाना
🚩9 दिसम्बर 1900 -- बेलूर मठ आगमन
🚩10 जनवरी 1901 -- मायावती की यात्रा
🚩मार्च-मई 1901 -- पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थयात्रा
🚩जनवरी-फरवरी 1902 -- बोध गया और वाराणसी की यात्रा
🚩मार्च 1902 -- बेलूर मठ में वापसी
🚩4 जुलाई 1902 -- महासमाधि!!
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Wednesday, January 10, 2018

भारतीय अपना राष्ट्रभाषा दिवस भूल गये, आज था विश्व हिन्दी दिवस, जानिये इतिहास

January 10, 2018

हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में नही हैं। #हिंदी भाषा संसार की उन्नत भाषाओं में सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।
Indians forgot their National Language Day, Today was World Hindi Day, Know History

आज (10 जनवरी) विश्व हिंदी दिवस है , ये हमारी वो राष्ट्रभाषा है जिसका मूल देवनागरी लिपि माना जाता है।

दुनिया में पहला विश्व हिंदी दिवस भारत में नहीं बल्कि नार्वे में मनाया गया था । नार्वे में पहला विश्व हिन्दी दिवस भारतीय दूतावास ने तथा दूसरा और तीसरा विश्व हिन्दी दिवस भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वाधान में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ला की अध्यक्षता में बहुत धूमधाम से मनाया गया था।

इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र के सभागार में, रविवार 10 जनवरी 2010 को, विश्व हिन्दी सचिवालय, शिक्षा, संस्कृति एवं मानव संसाधन मन्त्रालय, भारतीय उच्चायोग, इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र तथा हिन्दी संगठन के मिले-जुले सहयोग से विश्व हिन्दी दिवस 2010 मनाया गया।

जिसमें मुख्य अतिथि हंगरी के भारोपीय शिक्षा विभाग से आई हुई डॉ. मारिया नेज्यैशी थी इस उपलक्ष्य पर विश्व हिन्दी सचिवालय की एक रचना (एक विश्व हिन्दी पत्रिका) का भी लोकार्पण गणराज्य के राष्ट्रपति माननीय सर अनिरुद्ध जगन्नाथ जी के कर-कमलों द्वारा हुआ। इस अवसर पर भारतीय उच्चायोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर पर कविता-प्रतियोगिता के विजेताओं को भी सम्मानित किया गया, सम्मान उन सभी नवोदित कवियों का वास्तव में रहा जिनको अपनी कलात्मकता प्रेषित करने का एक मंच प्राप्त हुआ।

विश्व में हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था। इसीलिए इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

अपने अधिकतर भाषण अंग्रेजी में ही देने वाले भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी, 2006 को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद से भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिन्दी दिवस मनाया था। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं।

हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जा रही है

दुनिया में हिंदी बोलने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2015 के आंकड़ों के अनुसार #हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली #भाषा बन चुकी है।

2005 में #दुनिया के 160 #देशों में हिंदी बोलने वालों की अनुमानित संख्या 1,10,29,96,447 थी। उस समय चीन की मंदारिन भाषा बोलने वालों की संख्या इससे कुछ अधिक थी। लेकिन 2015 में दुनिया के 206 देशों में करीब 1,30,00,00,000 (एक अरब तीस करोड़) लोग हिंदी बोल रहे हैं और अब #हिंदी बोलने वालों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा हो चुकी है। चीन के 20 विश्वविद्यालयों में भी हिंदी पढ़ाई जा रही है।

भारत देश में 78 फीसद लोग बोलते हैं, हिंदी के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा चीन की मंदारिन है। लेकिन मंदारिन बोलने वालों की संख्या चीन में ही भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या से काफी कम है।

चीनी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की एक #रिपोर्ट के अनुसार केवल 70 फीसद चीनी ही मंदारिन बोलते हैं। जबकि भारत में #हिंदी बोलने वालों की संख्या करीब 78 फीसद है। दुनिया में 64 करोड़ लोगों की #मातृभाषा हिंदी है। जबकि 20 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा, एवं 44 करोड़ लोगों की तीसरी, चौथी या पांचवीं भाषा हिंदी है।

भारत के अलावा मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, गयाना, ट्रिनिडाड और टोबैगो आदि देशों में हिंदी बहुप्रयुक्त भाषा है। भारत के बाहर फिजी ऐसा देश है, जहां हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।

हिंदी को वहां की संसद में प्रयुक्त करने की मान्यता प्राप्त है। मॉरीशस में तो बाकायदा "विश्व हिंदी सचिवालय" की स्थापना हुई है, जिसका उद्देश्य ही हिंदी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित करना है।

आपको बता दें कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने अपनी सिफारिशों में #सरकारी और निजी दोनों संस्थानों में से धीरे-धीरे अंग्रेजी को हटाने और भारतीय भाषाओं को शिक्षा के सभी स्तरों पर शामिल करने पर जोर दिया है। साथ ही आईआईटी, आईआईएम और एनआईटी जैसे अंग्रेजी भाषाओं में पढ़ाई कराने वाले संस्थानों में भी #भारतीय भाषाओं में शिक्षा देने की सुविधा देने पर जोर दिया गया है।

हिंदी भाषा इसलिये दुनिया में प्रिय बन रही है क्योंकि #इस भाषा को देवभाषा #संस्कृत से लिया गया है जिसमें मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक है। जबकि अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द केवल 10,000 ही हैं ।

हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में नही हैं। #हिंदी भाषा संसार की उन्नत भाषाओं में सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।

इंटरनेट पर अंग्रेजी को पछाड़कर राज करेगी हिंदी

#गूगल और #केपीएमजी की एक संयुक्त रिपोर्ट में यह अनुमान व्यक्त किया गया है कि वर्ष 2021 तक इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का राज होगा । हिंदी, बांग्ला, मराठी, तमिल और तेलुगु आदि #भारतीय भाषाओं के यूजर्स तेजी से बढ़ेंगे और अंग्रेजी के दबदबे को #खत्म कर देंगे ।

विदेशों में हिन्दी भाषा का उपयोग बढ़ रहा है लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि हमारे देश में ही कुछ आधुनिकता प्रेमी बोलने में संकोच करते हैं, कुछ वकील और संसद  हिंदी नहीं बोलना जानते हैं।

आज मैकाले की वजह से ही हमने मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । लेकिन आज दुनिया में हिंदी भाषा का महत्व जितना बढ़ रहा है उसको देखकर समझकर हमें भी हिंदी भाषा का उपयोग अवश्य करना चाहिए ।

अपनी राष्ट्र एवं मातृभाषा की गरिमा को पहचानें ।
सरकारी विभाग, एवं इंटरनेट आदि सभी स्तर पर हिंदी का उपयोग करना चाहिए एवं #अपने बच्चों को अंग्रेजी (कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा (गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुँमुखी विकास में सहभागी बनें ।

Tuesday, January 9, 2018

ऐतिहासिक फैसला: 14 फरवरी को 50 हजार स्कूलों में होगा मातृ-पितृ पूजन

January 9, 2018
भारत देश को तोड़ने के लिए विदेशी ताकतें अलग-अलग प्रकार से हथकंडे अपना रही हैं, कभी स्कूलों में गलत इतिहास पढ़ाया जाना तो कभी मीडिया द्वारा भारतीय संस्कृति विरोधी एजेंडे चलना, कभी जातिवाद के नाम पर तोड़ना तो कभी विदेशी त्यौहारों को मनाकर भारतीय संस्कृति को तोड़ने का प्रयास करना ।

हाल ही में गए विदेशी त्यौहार क्रिसमस में केवल दिल्ली में 31 दिसम्बर की रात को शराब की खपत 30 करोड़ तक पहुँची ।  इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि देशभर में हुई मात्र शराब की खपत से  विदेशी कंपनियों ने कितने अरबों रुपये कमा लिये होंगे। मीडिया ने भी खूब जमकर प्रचार-प्रसार किया, जिसके कारण बलात्कार की घटनाएं बढ़ी, प्रदूषण का स्तर भी बढ़ा और युवावर्ग का जो चारित्रिक पतन हुआ उसकी भरपाई तो कौन कर सकता है ???
Historical Decision: On February 14, 50 thousand schools will be in the maternal grandfathers

इसी तरह अभी एक और बड़ा विदेशी त्यौहार आने वाला है वेलेंटाइन-डे । जिसमें युवक-युवतियां एक दूसरे को फूल देंगे, महंगे गिफ्ट देंगे, ग्रीटिंग कार्ड देंगे, शराब पीयेंगे, मांस खाएंगे, व्यभिचार करेंगे, पार्टियों करेंगे । जिससे देश के युवावर्ग की तबाही होगी और देश के अरबो-खबरों रुपये फिर पहुँच जाएंगे विदेशी कम्पनियों के पास ।

पश्चात संस्कृति के इस त्यौहार वेलेंटाइन-डे को रोकने के लिए झारखंड सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है जिसमें सभी गवर्नमेंट स्कूलों में 14 फरवरी को वेलेंटाइन-डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जायेगा ।

झारखंड राज्य के लगभग 50 हजार सरकारी स्कूलों में मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम का आयोजन होगा। बच्चों को सांस्कारिक बनाने तथा उनमें अपने माता-पिता को भगवान तुल्य मानने की समझ विकसित करने को लेकर सभी स्कूलों में यह कार्यक्रम आयोजित होगा। स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की मंत्री नीरा यादव ने विभाग के प्रधान सचिव अमरेंद्र प्रताप सिंह को पत्र लिखकर इस कार्यक्रम के आयोजन का निर्देश दिया है।

बकौल मंत्री, इस कार्यक्रम का आयोजन साल में एक दिन सभी स्कूलों में होगा। विभाग चाहे तो सुविधानुसार अलग-अलग दिनों में भी स्कूलों में यह कार्यक्रम आयोजित किया जा सकता है। लेकिन अवकाश के दिन ही इस कार्यक्रम के आयोजन का निर्देश दिया गया है, ताकि माता-पिता बिना किसी परेशानी के उसमें शामिल हो सकें। कार्यक्रम में छात्र-छात्राएं अपने-अपने माता-पिता के पैर धोएंगे, उनकी आरती उतारेंगे तथा उन्हें अपने गले से लगाएंगे। मंत्री के अनुसार, जिस तरह की पूजा मंदिरों में भगवान की होती है। उसी भाव से बच्चे अपने माता-पिता की भी पूजा करेंगे। कार्यक्रम के दौरान माता-पिता से संबंधित गीत भी बजाए जाएंगे।

दो स्कूलों के कार्यक्रम से प्रभावित हुई मंत्री

दरअसल, रांची के धुर्वा स्थित सरस्वती शिशु मंदिर तथा कोडरमा के स्वर्गीय लाटो नायक उच्च विद्यालय, नवाचट्टी-मरकच्चो में आयोजित इस तरह के कार्यक्रम में मंत्री शामिल हुई थी। इसी से प्रभावित होकर मंत्री ने इसे सरकारी स्कूलों में भी लागू करने का निर्णय लिया। बताया जाता है कि मरकच्चो के स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में मंत्री भावुक होकर रो पड़ी थी, जिससे कुछ देर के लिए कार्यक्रम रोक देना पड़ा था। 

झारखंड सरकार का फैसला सराहा गया, पूरे देश में लोग भूरी-भूरी प्रशंसा कर रहे हैं ।

आपको बता दे कि छत्तीसगढ़ सरकार ने तो पिछले कई साल से पूरे राज्य के स्कूलों में 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन लागू कर दिया है और हर साल 14 फरवरी को माता-पिता का पूजन किया जाता है ।

गौरतलब है कि पाश्चात्य सभ्यता की गन्दगी से युवावर्ग का चारित्रिक पतन होते देखकर हिन्दू संत आसारामजी बापू ने वर्ष 2007 से 14 फरवरी को वैलेंटाइन-डे की जगह "मातृ-पितृ पूजन दिवस" की अनूठी पहल की । जिसे उनके करोड़ो समर्थकों द्वारा देशभर में बड़े धूमधाम से स्कूलों, कॉलेजों, घरों,मंदिरों, पूजा स्थलों आदि पर मनाया जाने लगा । धीरे-धीरे इसमें कई हिन्दू संगठन जुड़ते चले गए और आज ये विश्वव्यापी अभियान के रूप में देखने को मिल रहा है ।

भारत में ही नहीं अमेरिका, दुबई, केनेडा आदि अनेक देशों में भी 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जाने लगा है ।  इस विश्वव्यापी अभियान से लाखों युवावर्ग पतन से बचे हैं एवं उनके जीवन में संयम व सदाचार के पुष्प खिले हैं ।

आज हम सभी का कर्तव्य बनता है कि पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण न करके अपनी महान संस्कृति की महानता समझे और दूसरों तक भी अपनी संस्कृति की सुवास पहुचाएं तथा उन्हें भी वैंलेंटाइन डे के दिन ‘मातृ-पितृ दिवस’ मनाने की सलाह दें।

Monday, January 8, 2018

महाराष्ट्र में जातीय दंगे एक भयंकर षड्यंत्र के तहत, कवि ने लिखी कविता

January 8, 2018
भारतीय संस्कृति इतनी महान है कि अगर कोई भी मनुष्य उसकी एक बार महिमा जान ले तो फिर दूसरे धर्म में जाने की कभी इच्छा नही करेगा, इसलिए कुछ मत-पंथ सम्प्रदाय के ठेकेदार सोचते हैं कि उनके धर्म में ही सब रहेंगे तो हमारी तरफ कोई नही आयेगा इसलिए वे राष्ट्र विरोधी लोग षडयंत्र करके भारत के ही कुछ जयचन्दों को मोहरा बनाकर जाति-पाति में बांटकर आपस में लड़ाकर अपना मकसद सिद्ध करते हैं ।
Ethnic riots in Maharashtra, under a fierce conspiracy, poet poem written by
महाराष्ट्र पुणे में जातीय विद्वेष पैदा करती दलित रैली में,जिग्नेश-खालिद के दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर हिन्दू दलित भाइयों से अपील करती एक कवि ने कविता लिखी है
आइये जाने क्या लिखा है कवि ने...
रे मूरख हिन्दू जाग ज़रा,पहचान सत्य खो जायेगी,
ये धरा इन्हीं षड्यंत्रों से,हिन्दू विहीन हो जायेगी,
बेवजह नही मैं कहता हूँ,तस्वीर सरासर सम्मुख है,
खंडित भारत का स्वप्न लिए,पापी हमलावर सम्मुख है,
भगवान् ! वाह री दलित सोच!अंग्रेज विजय  पर ताम झाम?
पेशवा,महारों ने मारे?है जश्न इसी का?राम राम!
ये नीच सियासत है जिसका जिग्नेश मोहरा बन बैठा,
मौका पाकर वो जेहादी खालिद भी हम पर तन बैठा,
वामन,राजपूत,बनीटों के मटके फोड़े,क्या मतलब है?
दलितों का मंच बना,उसमें मुस्लिम जोड़े, क्या मतलब है?
खालिद का ख्वाब नही भूलो,इस्लाम समूचा करना है,
जिग्नेश कहे मोदी घटिया,राहुल को ऊंचा करना है,
दुर्भाग्य देश का देखो तो,अभिव्यक्ति बनी आजादी है,
अब दलित-मुस्लिमों के मुंह पर बस भारत की बर्बादी है,
अब तुर्क और मंगोलों से,केवट ने यारी कर डाली,
शबरी ने खाकर राजभोग,भगवान राम को दी गाली,
यह तेवर दलित समूहों के,गहरी साजिश के हिस्से हैं,
नफरत की खुली किताबों में,अलगाववाद के किस्से हैं,
हम आज़ादी के साथ चले,हाथों में लेकर हाथ चले,
बाबा का संविधान माना,लेकर उनके जज़्बात चले,
हमने ही छोड़ जमीदारी,भू हीनों  को भू दान दिए,
ज्योतिबा फुले को पूजा है,जगजीवन को सम्मान दिए,
हमने कुरीतियों के पन्ने अपने हाथों से फाड़े हैं,
पुरखों के पाप धुलाये हैं,समता के झंडे गाढ़े है,
दलितों की उन्नति बनी रहे,वंचित पिछड़ों को मान दिया,
आरक्षण नीति असमता की,रख मौन,सदा सम्मान दिया,
आरक्षण को स्वीकार किया,भाईचारे का भाव रखा,
हड़ताल,रैलियां,आगजनी,ऐसा कोई ना चाव रखा,
हम झुके तभी तुम उठ पाये,ये समरसता की धारा है,
मीरा कुमार,कोविंद राम,जय मायावती,पुकारा है,
कुछ एक बुराई के बदले,गौरव गाथा को मत कोसो,
मोदी से नफरत खूब करो,भारत माता को मत कोसो,
कब माँ अपने ही बेटो में अंतर का भाव सजाती हैं,
अपनी छाती से दुग्धपान सबको इक साथ कराती है,
मैं कोई नेता,पक्ष नही,भारत का आम निवासी हूँ,
मैं कवि गौरव चौहान यहाँ हर बेटे का अभिलाषी हूँ,
हम जैसे कितने लाख युवा,समरसता के परिचायक हैं,
इक थाली में खाने वाले,इक सुर में गाते गायक हैं,
ना ऊंच नीच की सोच रखें,पढ़ते लिखते हैं साथ यहाँ,
होटल,दफ्तर,मंदिर,राहों में सब दिखते हैं साथ यहाँ,
दो चार घटी घटनाओं को,यूं अत्याचार नही बोलो,
बहुवर्ग तुम्हारे साथ खड़ा,तुम तिल का ताड़ नही बोलो,
तुम कुछ लोगों की बातों में संस्कृति सम्मान भुला बैठे,
कुछ पंडों की मक्कारी में,अपने भगवान भुला बैठे,
हम दलित नही कहते तुमको,ये शब्द सियासत वाले हैं,
हम तुमको हिन्दू कहते हैं,हम सारे भारत वाले हैं,
गर हमने खींची तलवारें,तो ख्वाब सफल हो जाएंगे,
कासिम गजनी गौरी बाबर तब घर घर में घुस आएंगे,
जो खालिद तुम्हे सगे लगते,वो इक दिन रूप दिखाएंगे,
जेहादी कभी नही सुधरे,तुम पर भी छुरी चलाएंगे,
जिग्नेश भीम के बेटे ने,खालिद की भुजा संभाली है,
ये कीचड भीम नाम पर है,भगवान् बुद्ध को गाली है,
आओ मिलकर संकल्प करें,अस्तित्व न खोने देना है,
षड्यंत्र आधुनिक मुगलों के अब पूर्ण न होने देना है,
हम एक रहें,हम नेक रहे,हर मन गूंजे फरियादों से,
श्री राम-बुध्द न हारेंगे इन बाबर की औलादों से,
-कवि गौरव चौहान (इटावा उ.प्र)
हमारे देश में एक देशविरोधी गिरोह सक्रिय हैं।  जो कभी जाति के नाम पर, कभी आरक्षण के नाम पर, कभी इतिहास के नाम पर, कभी परम्परा के नाम पर देश को तोड़ने की साज़िश रचता रहता हैं।  इसके अनेक चेहरे हैं। नेता, चिंतक, लेखक, मीडिया, बुद्धिजीवी, पत्रकार, शिक्षक, शोधकर्ता, मानवअधिकार कार्यकर्ता, NGO, सेक्युलर, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील आदि आदि।  इस जमात का केवल एक ही कार्य होता है। इस देश की एकता ,अखंडता और सम्प्रभुता को कैसे बर्बाद किया जाये। इस विषय में षड़यंत्र करना।  यह जमात हर देशहित और देश को उन्नत करने वाले विचार का पुरजोर विरोध करती हैं। इस जमात की जड़े बहुत गहरी है। आज़ादी से पहले यह अंगेजों द्वारा पोषित थी। आज यह विदेशी ताकतों और राजनीतिक पार्टियों द्वारा पोषित हैं।
देशवासी इन षड़यंत्रों से सावधान रहें जाती,पाती मे नही बंटकर एक बने रहें।