उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने बताया कि माता पिता के बिना अपना अस्तित्व ही नही है, माता पिता ही भगवान है, जिन्होंने 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन शुरू किया है वो बधाई के पात्र है उनकी मैं भारी प्रशंसा करता हूँ ।
उत्तरप्रदेश इलाहाबाद के भाजपा सांसद श्याम चरण गुप्ताजी ने बताया कि 14 फरवरी को जो मातृ-पितृ पूजन मनाया जा रहा है उसको मैं शुभकामनाएं देता हूँ और सभी बच्चों को कहना चाहता हूँ कि आप अपने माता-पिता के ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकते हैं इसलिए 14 फरवरी को अपने माता-पिता की पूजा करें ।
Deputy Chief Minister, MP, MLA, Education Minister,
said, Valentine will not be mother-goddess worship
उत्तरप्रदेश इलाहाबाद के भजापा विधायक संजय कुमार ने कहा कि माता-पिता ही अपने को दुनिया मे लाने वाले हैं मैं देशवासियों का आवाहन करता हूँ कि 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस ही मनाये क्योंकि हम गणेश भगवान की पूजा करते हैं लेकिन गणेश भगवान भी माता-पिता की पूजा से ही प्रथम पूज्य बने हैं इसलिए मातृ-पितृ पूजन करना चाहिए ।
राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेवजी ने बताया कि अपनी संस्कृति में मातृ-पितृ पूजन एक अमूल्य संस्कार है जो कि बच्चों में बचपन से चाहिए ।
संस्कारों के केवल दो ही केंद्र हैं एक केंद्र है घर और एक केंद्र स्कूल। धीरे-धीरे दोनों कमजोर होते गए और आज घरों में भी मैं देखता हूँ कि हम सब केवल पैसा कमाने में अधिक ध्यान देते हैं बच्चे की ओर जितना ध्यान और समय दिया जाना चाहिए वह हम नहीं दे पाते और इसके कारण से जो दूसरा संस्कार केंद्र था स्कूल यह ठीक है कि किसी जमाने में अपने गुरु के घर जा करके और गुरुकुल पद्धति थी पर समय के अनुसार परिवर्तित हुई लेकिन स्कूलों के अंदर भी उस संस्कार वाला वातावरण कई बार दिखाई नहीं देता आखिर बच्चे को संस्कार कहां मिले और जब बच्चे बड़े हो जाते हैं उसके बाद मां बाप कहते हैं कि कहना नहीं मानता या उसके बाद हमको पूछता नहीं है अरे इसके जिम्मेदार तो अपन ही है बच्चा तो क्लीन स्लेट है लेकिन दुर्भाग्य से हमने विदेशी संस्कृति पे अधिक ध्यान दिया गया जिसके कारण बच्चें बिगड़ गये ।
मैं बच्चों को कहूंगा कि आज एक दिन तो हमने मां बाप की पूजा की स्कूल में, यहां से एक संकल्प ले करके जाए हम जीवन भर उनकी सेवा करेंगे । मां-बाप के कर्ज का एक उदाहरण स्वामी विवेकानंद ने देते हुए कहा है कि "मां बाप का जो बच्चों पर कर्ज है वह जिंदगी भर भी आप चुका नहीं सकते चाहे कई जन्म ले ले" यह एक भाव बना होना चाहिए और अपना जीवन है उसके बाद जीवन में आगे एक परिवार होगा जनरेशन होगी बच्चे होंगे सबकुछ होगा आगे जनरेशन तो बढ़ेगी लेकिन जिस मां बाप ने पैदा किया उसको हम जीवन भर नहीं भूलेंगे।
आइए हम सब लोग इस भारतीय संस्कृति पर गर्व की अनुभूति करते हुए मेरा भारत महान है मेरे संस्कृति महान है मेरे मां-बाप महान है इसकी अनुभूति करते हुए हम जीवन में आगे बढ़ें तब आप देखेंगे आशीर्वाद दुनिया में सबसे बड़ी चीज है।
आपको बता दें कि पाश्चात्य सभ्यता की गन्दगी से युवावर्ग का चारित्रिक पतन होते देखकर हिन्दू संत आसाराम बापू ने 2006 से वैलेंटाइन डे की जगह "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का आवाहन कर समाज को दी एक अनोखी दिशा दी ।
हिन्दू संत आसाराम बापू की प्रेरणा से पिछले 12 वर्षों से देश-विदेश में करोड़ो लोग "वेलेंटाइन डे" मनाने के बदले "मातृ-पितृ पूजन दिवस" मना रहे हैं। इस विश्वव्यापी अभियान से लाखों युवावर्ग पतन से बचे हैं एवं उनके जीवन में संयम व सदाचार के पुष्प खिले हैं ।
हम सबका भी फ़र्ज़ बनता है क़ि पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण न करके अपनी महान संस्कृति की महानता समझे और दूसरों तक भी अपनी संस्कृति की सुवास पहुचाएं तथा उन्हें भी वैंलेंटाइन डे के दिन ‘मातृ-पितृ दिवस’ मनाने की सलाह दें।
संस्कृत का अध्ययन मनुष्य को सूक्ष्म विचारशक्ति प्रदान करता है । मन स्वाभाविक ही अंतर्मुख होने लगता है । इसका अध्ययन मौलिक चिंतन को जन्म देता है । संस्कृत भाषा के पहले की कोई अन्य भाषा, संस्कृत वर्णमाला के पहले की कोई अन्य वर्णमाला देखने-सुनने में नहीं आती । इसका व्याकरण भी अद्भुत है । ऐसा सर्वांगपूर्ण व्याकरण जगत की किसी भी अन्य भाषा में देखने में नहीं आता । यह संसार भर की भाषाओं में प्राचीनतम और समृद्धतम है ।
Muslim school students are studying Sanskrit leaving Urdu, when will Hindus understand its importance?
गुजरात वडोदरा के याकूतपुरा एरिया के एमईएस
विद्यालय के पास से होकर गुजरेंगे तो आपको संस्कृत के श्लोकों की आवाज सुनाई देगी ।
एमईएस विद्यालय के ज्यादातर छात्र मुस्लिम हैं परंतु यहां संस्कृत पढाई जाती है । विद्यालय का नाम एमईएस बॉयज हाई विद्यालय है जिसे मुस्लिम एजुकेशन सोसायटी (एमईएस) चलाती है । विद्यालय के प्रिंसिपल एम.एम. मालिक ने बताया कि विद्यालय की स्थापना के समय से ही छात्रों को संस्कृत पढाई जाती है । हाल ही में विद्यालय में लडकियों को भी दाखिला दिया गया है ।
मालिक ने बताया, ‘9 और 10 क्लास में छात्रों को फारसी, उर्दू, अरबी और संस्कृत में से किसी एक भाषा को चुनने का विकल्प होता है । परंतु दिलचस्प बात यह है कि क्लास 9 के 40 प्रतिशत से ज्यादा छात्रों ने संस्कृत चुना है । इस वर्ष कुल 348 छात्रों में से 146 छात्रों ने संस्कृत चुना है । इन 146 छात्रों में से केवल 6 हिन्दू हैं बाकि सभी मुस्लिम हैं । इनमें से ज्यादातर छात्र 10वीं और 12वीं बोर्ड एग्जाम में भी संस्कृत रखेंगे !’
एक और बात जो हैरान करनेवाली है, वह यह है कि संस्कृत यहां मुस्लिम शिक्षकों द्वारा ही पढाई जाती है ! आबिद अली सैयद और मोइनुद्दीन काजी वर्ष 1998 से यहां क्लास ले रहे हैं । आबिद अली बताते हैं कि विद्यालय में संस्कृत काफी समर्पण के साथ पढाई जाती है । आबिद ने बताया, ‘अन्य भाषाओं के मुकाबले संस्कृत का व्याकरण और उच्चारण मुश्किल होता है, उसके बावजूद हमारे छात्र संस्कृत में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं ।’
छात्रों को भी संस्कृत से काफी लगाव है । 10वीं क्लास की एक छात्रा पठान उजमा बानो अय्यूब खान संस्कृत का शिक्षक बनने का सपना देखती है । उजमा ने बताया, ‘संस्कृत से हमें अपने देश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के बारे में पता चलता है । मुझे वेद पढ़ने, श्लोक का उच्चारण करने और अपने इतिहास को समझने में आनंद आता है । हर छात्र को इस भाषा को सीखना चाहिए और इस पर गर्व करना चाहिए । जब मैं बडी होंगी तो शिक्षक के तौर पर इसे लोकप्रिय बनाने की कोशिश करूंगी !’ स्त्रोत : नवभारत टाईम्स
संस्कृत भाषा का अभी इतना महत्व बढ़ रहा है कि
उत्तराखंड में मुस्लिम लोग मदरसों और इस्लामिक स्कूलों में संस्कृत पढ़ाने की योजना बनाई है । इस योजना को अगले एकेडमिक सेशन में शुरू किया जा सकता है। मदरसा वेलफेयर सोसाइटी उत्तराखंड के करीब 207 मदरसों का संचालन करती है। इन मदरसों में करीब 25 हजार से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं।
संस्कृत को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर सोसाइटी के चेयरमैन सिब्ते नबी का कहना है कि हम अंग्रेजी अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं, जो कि एक विदेशी जुबान है तो फिर पुरानी भारतीय भाषा को क्यों ना पढ़ाया जाए।
अभी हाल ही में डॉ. जेम्स हार्टजेल नाम के न्यूरो साइंटिस्ट ने शोध किया है कि संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से अद्भुत स्मरणशक्ति बढ़ती है ।
भारतवासियों को पता है कि संस्कृत हमारी प्राचीन भाषा है, फिर भी उसके त्याग करके इंग्लिश पढ़ रहे है बड़ा आश्चर्य है । हिन्दुआें के धर्मग्रंथ भी इसी भाषा में है । संस्कृत को हम देववाणी भी कहते है । प्राचीन काल में शिक्षा इसी भाषा में दी जाती थी । इसलिए प्राचीन काल के लोग संस्कारी, चारित्र्यवान, शीलवान, धर्मपरायण, कर्तव्यनिष्ठ थे। परंतु जैसे ही मेकॉले की शिक्षा पद्धति भारत में आर्इ, अपनी महान संस्कृत को भारतवासी भूल गए ।
मेकाॅले की मॉडर्न शिक्षाप्रणाली से भारत में समाज अधोगति की आेर जाता दिखार्इ दे रहा है। जिसके परिणाम आज सभी आेर भ्रष्टाचार, बलात्कार, व्यभिचार, घोटाले पनप रहे हैं। यह किसकी देन है ? आज जहां भारतीय अपनी प्राचीन संस्कृति तथा संस्कृत भाषा को पिछडापन मानकर पश्चमी सभ्यता को चुन रहे हैं, वहीं पश्चिमी लोग भारत की महान संस्कृति तथा संस्कृत भाषा की आेर आकर्षित हो रहे हैं ।
विदेशी संस्कृत भाषा पर पढ़ा रहे हैं और संशोधन भी कर रहे हैं एवं भारतीय संस्कृति की महानता विश्व के सामने ला रहे हैं । लेकिन भारतवासियों का पाश्चात्य संस्कृति की ओर रुझान होने के कारण अपनी संस्कृति का महत्व नही समझ रहे हैं । अगर भारतवासी संस्कृत भाषा का महत्व समझ ले और उसको बढ़ावा देना शुरू कर दे तोजो सेक्युलर लोग भारत में रहकर भारत को तोड़ने की साजिश रच रहे हैं वो बन्द हो जाएगा ।
भारतवासियों अब समय आ गया है कि हम अपनी संस्कृति की ओर लौटे नही तो विदेशी ताकतें राह देख रही हैं कि कैसे भी करके भारत के टुकड़े-टुकड़े कर दे उनका साथ कुछ यहाँ बैठे जयचंद दे रहे हैं जो देश के लिए भारी खतरा है इसलिए सावधान रहें और अपनी संस्कृति को अपनाए ।
भारतीय संस्कृति की सुरक्षा, चरित्रवान नागरिकों के निर्माण, प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति एवं विश्वशांति हेतु संस्कृत का अध्ययन अवश्य होना चाहिए ।
अनुसूचित जाति जनजाति अदालत के पीठासीन अधिकारी मधुसुदन शर्मा आरएचजेएस की अदालत में हिन्दू संत आसारामजी बापू के केस में बचाव पक्ष की अंतिम बहस जारी रही। जिसमें अधिवक्ता सज्जनराज सुराणा जी ने इस बार ऐसे खुलासे किए जिससे षडयंत्र की परतें खुल गई हैं ।
Big disclosure in Bapu Asaramji case: 50 crores for not sent to jail
अधिवक्ता सुराणा जी ने न्यायालय में चल रही बहस के कुछ अंश मीडिया के सामने उजागर करते हुए बताया कि DW-12 गुड़िया नाम की लड़की के बयान कोर्ट में रीड किये गए । जिसमें उसने खुलासा किया कि बापू आसारामजी को फंसाने वाले राहुल सचान, महेंद्र चावला आदि अन्य गवाह कितने निम्न चरित्र के हैं, जुआ खेलना, शराब पीना, घर को गिरवी रख देना,बेच देना आदि दुर्गुणों से ग्रस्त ये लोग महिलाओं के साथ छेड़खानी के कारण कई बार पीटे भी गये हैं ।
इसके अलावा इस मामले में DW-13 योगेश भाटी नाम के व्यक्ति के बयान भी पढ़े गए । अपने बयानों में योगेश भाटी ने बताया कि बापू आसारामजी एक सच्चरित्र व्यक्ति हैं। उनके समाजहित के अतुलनीय कार्यों के कारण उन्हें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल आदि के द्वारा प्रशस्ति पत्र भी दिए गए हैं । प्रशस्ति पत्र इस बात के दिये गए कि उस जमाने में जब ओपन शौचालय थे तो बापू आसारामजी द्वारा जगह-जगह पर शौचालय बनवाये गए थे, जिसकी तत्कालीन गवर्नर ने भी भूरि-भूरि प्रशंसा की थी ।
राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद जी द्वारा दिये गए प्रशस्ति पत्र में उन्होंने कहा कि संत आसाराम बापू एक बहुत ही उच्च विचारों के व्यक्ति हैं, वो सदैव समाज सेवा में जुटे हुए हैं । इसके अलावा बापू आसारामजी ने वृक्ष लगाने के लिए अभियान छेड़ा, धर्म परिवर्तन पर रोक लगवाई, वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस जैसी अनोखी पहल शुरू की, जिसका हाल ही में सरकार द्वारा भी समर्थन किया गया । इस प्रकार से 142 से 154 तक डॉक्युमेंट्स मौजूद हैं जिनमें बड़ी-बड़ी हस्तियों ने संत आसारामजी बापू द्वारा हुए सेवाकार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है । यहाँ तक कि कमलनाथ जी का भी नाम उसमें शामिल है और उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत व अन्य मुख्यमंत्रियों आदि के प्रशस्ति पत्र भी मौजूद हैं ।
समाज में बापू आसारामजी की छवि धूमिल करने के लिए और चरित्र हनन करने के लिए एवं उनके बेटे नारायण और बेटी भारती को बदनाम करने के लिए झूठी कहानी गढ़ी गई है ।
50 करोड़ की फिरौती के लिए रचा गया षड्यंत्र..
वरिष्ठ अधिवक्ता सज्जनराज सुराणा ने साजिश का खुलासा करते हुए आगे बताया कि Prosecution Witness PW-06 मणाई फार्म हाउस के मालिक रामकिशोर ने ये कहीं नहीं कहा कि 15/08/2013 को लड़की या उसके माता-पिता रात्रि को 10 बजे कुटिया या कुटिया के आस-पास गए तो फिर जो रेप कमिट हुआ क्या वो हवा में रेप कमिट हुआ ? इन्होंने उसके existence को ही नकार दिया ।
अब question ये पैदा होता है कि ये लड़की आखिर आरोप क्यों लगा रही है ? इसके लिए हमने जिज्ञासा भावसर का स्टेटमेंट रीड किया । इसमें अमृत प्रजापति, कर्मवीर, राहुल सचान, महेंद्र चावला आदि जो बहुत से गवाह थे उन्होंने मिलकर conspiracy (षड़यंत्र) की । योग वेदान्त सेवा समिति अहमदाबाद को एक फैक्स भेजा था जिसमें अमृत प्रजापति व उनके साथियों के द्वारा ये कहा गया था कि 50 करोड़ रुपये दो वर्ना उसके परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो जाओ । हम झूठी लड़कियां तैयार करेंगे, प्लांट करेंगे जिसके कारण बापूजी जिंदगी भर तक जेल में रहेंगे कभी बाहर नहीं आ सकेंगे ।
इस बात के लिए conspiracy वडोदरा (गुजरात) में की गई थी | जिसमें दीपक चौरसिया (इंडिया न्यूज़) भी शामिल था जो मीडिया के ऊपर प्रचार प्रसार कर रहा था, कर्मवीर (परिवादिया का पिता) भी शामिल था । सबने मिलकर जो conspiracy की थी वो जिज्ञासा भावसार के सामने की थी | इन सबका जो एक motive था, वो 50 करोड़ की ब्लैकमेलिंग का था । 50 करोड़ नहीं देने के कारण से मणाई गाँव का पूरा घटनाक्रम बनाया गया है ।
गौरतलब है कि न्यायालय में सज्जनराज सुराणा ने पहले भी कई बार खुलासे किये हैं।
डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने भी कई बार खुलासा किया है कि बापू आसारामजी को धर्मपरिवर्तन पर रोक लगाने और लाखों हिन्दुओं की घरवापसी कराने के कारण जेल भिजवाया गया है ।
अब देखना ये है कि देशहित, समाजहित, प्राणिमात्र के हित में सेवारत रहने वाले संत आसाराम जी बापू को कब मिलता है न्याय ???
ईसाई धर्म ऊपर से देखने पर एक सभ्य, सुशिक्षित, शांतिप्रिय समाज लगता हैं। जिसका उद्देश्य ईसा मसीह की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार एवं निर्धनों व दीनों की सेवा-सहायता करना हैं। इस मान्यता का कारण ईसाई समाज द्वारा बनाई गई छवि है।
यह कटु सत्य है कि ईसाई मिशनरियां विश्व के जिस किसी देश में गई, उस देश के निवासियों को उनके मूल धर्म में खामियां बताकर अपने धर्म मे जोड़ने की कोशिश करती रही । इस सुनियोजित नीति के बल पर वे अपने आपको श्रेष्ठ, सभ्य तथा दूसरों को निकृष्ट एवं असभ्य सिद्ध करते रहे हैं। इस लेख के माध्यम से हम ईसाई मत की तीन सबसे प्रसिद्ध मान्यताओं की समीक्षा करेंगे, जिससे पाठकों के भ्रम का निवारण हो जाये।
1. प्रार्थना से चंगाई
2. पापों का क्षमा होना
3. गैर ईसाईयों को ईसाई मत में धर्मान्तरित करना
1. प्रार्थना से चंगाई [i]
If you know the truth of Christian beliefs, you will be open eyes
ईसाई समाज में ईसा मसीह अथवा चर्च द्वारा घोषित किसी भी संत की प्रार्थना करने से बिमारियों का ठीक होने की मान्यता पर अत्यधिक बल दिया जाता है । आप किसी भी ईसाई पत्रिका, किसी भी गिरिजाघर की दीवारों आदि में जाकर ऐसे विवरण (Testimonials) देख सकते हैं। आपको दिखाया जायेगा कि एक गरीब आदमी था। जो वर्षों से किसी लाईलाज बीमारी से पीड़ित था। बहुत उपचार करवाया मगर बीमारी ठीक नहीं हुई। अंत में प्रभु ईशु अथवा मरियम अथवा किसी ईसाई संत की प्रार्थना से चमत्कार हुआ और उसकी यह बीमारी सदा सदा के लिए ठीक हो गई। सबसे अधिक निर्धनों और गैर ईसाईयों को प्रार्थना से चंगा (ठीक) होता दिखाया जाता हैं। यह चमत्कार की दुकान सदा चलती रहे इसलिए समय समय पर अनेक ईसाईयों को मृत्यु उपरांत संत घोषित किया जाता हैं। हाल ही में भारत से मदर टेरेसा और सिस्टर अलफोंसो को संत घोषित किया गया हैं और विदेश में दिवंगत पोप जॉन पॉल को संत घोषित किया गया है। यह संत बनाने की प्रक्रिया भी सुनियोजीत होती हैं। पहले किसी गरीब व्यक्ति का चयन किया जाता हैं जिसके पास इलाज करवाने के लिए पैसे नहीं होते।
प्रार्थना से चंगाई में विश्वास रखने वाली मदर टेरेसा खुद विदेश जाकर तीन बार आँखों एवं दिल की शल्य चिकित्सा करवा चुकी थी ।[ii]
संभवत हिन्दुओं को प्रार्थना का सन्देश देने वाली मदर टेरेसा को क्या उनको प्रभु ईसा मसीह अथवा अन्य ईसाई संतो की प्रार्थना द्वारा चंगा होने में विश्वास नहीं था जो वे शल्य चिकित्सा करवाने विदेश जाती थी?
सिस्टर अलफोंसो केरल की रहने वाली थी। अपने जीवन के तीन दशकों में से करीब 20 वर्ष तक अनेक रोगों से ग्रस्त रही थी ।[iii]
केरल एवं दक्षिण भारत में निर्धन हिन्दुओं को ईसाई बनाने की प्रक्रिया को गति देने के लिए संभवत उन्हें भी संत का दर्जा दे दिया गया और यह प्रचारित कर दिया गया कि उनकी प्रार्थना से भी चंगाई हो जाती हैं।
दिवंगत पोप जॉन पॉल स्वयं पार्किन्सन रोग से पीड़ित थे और चलने फिरने से भी असमर्थ थे। यहाँ तक कि उन्होंने अपना पद अपनी बीमारी के चलते छोड़ा था । [iv]
कोस्टा रिका की एक महिला के मस्तिष्क की व्याधि जिसका ईलाज करने से चिकित्सकों ने मना कर दिया था। वह पोप जॉन पॉल के चमत्कार से ठीक हो गई। इस चमत्कार के चलते उन्हें भी चर्च द्वारा संत का दर्ज दिया गया हैं।
पाठक देखेगे कि तीनों के मध्य एक समानता थी। जीवन भर ये तीनों अनेक बिमारियों से पीड़ित रहे थे। मरने के बाद अन्यों की बीमारियां ठीक करने का चमत्कार करने लगे। अपने मंच से कैंसर, एड्स जैसे रोगों को ठीक करने का दावा करने वाले बैनी हिन्न (Benny Hinn) नामक प्रसिद्ध ईसाई प्रचारक हाल ही में अपने दिल की बीमारी के चलते ईलाज के लिए अस्पताल में भर्ती हुए थे । [v]
वह atrial fibrillation नामक दिल के रोग से पिछले 20 वर्षों से पीड़ित है। तर्क और विज्ञान की कसौटी पर प्रार्थना से चंगाई का कोई अस्तित्व नहीं हैं। अपने आपको आधुनिक एवं सभ्य दिखाने वाला ईसाई समाज प्रार्थना से चंगाई जैसी रूढ़िवादी एवं अवैज्ञानिक सोच में विश्वास रखता हैं। यह केवल मात्र अंधविश्वास नहीं अपितु एक षड़यंत्र है। गरीब गैर ईसाईयों को प्रभावित कर उनका धर्म परिवर्तन करने की सुनियोजित साजिश हैं।
2. पापों का क्षमा होना
ईसाई मत की दूसरी सबसे प्रसिद्ध मान्यता है पापों का क्षमा होना। इस मान्यता के अनुसार कोई भी व्यक्ति कितना भी बड़ा पापी हो। उसने जीवन में कितने भी पाप किये हो। अगर वो प्रभु ईशु मसीह की शरण में आता है तो ईशु उसके सम्पूर्ण पापों को क्षमा कर देते हैं। यह मान्यता व्यवहारिकता,तर्क और सत्यता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। व्यवहारिक रूप से आप देखेगे कि संसार में सभी ईसाई देशों में किसी भी अपराध के लिए दंड व्यवस्था का प्रावधान हैं। क्यों? कोई ईसाई मत में विश्वास रखने वाला अपराधी अपराध करे तो उसे चर्च ले जाकर उसके पाप स्वीकार (confess) करवा दिए जाये। स्वीकार करने पर उसे छोड़ दिया जाये। इसका क्या परिणाम निकलेगा? अगले दिन वही अपराधी और बड़ा अपराध करेगा क्यूंकि उसे मालूम है कि उसके सभी पाप क्षमा हो जायेगे। अगर समाज में पापों को इस प्रकार से क्षमा करने लग जाये तो उसका अंतिम परिणाम क्या होगा? जरा विचार करें ।
महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश [vi] में ईश्वर द्वारा अपने भक्तों के पाप क्षमा होने पर ज्ञानवर्धक एवं तर्कपूर्ण उत्तर दिया हैं। स्वामी जी लिखते हैं । - "नहीं, ईश्वर किसी के पाप क्षमा नहीं करता। क्योंकि जो ईश्वर पाप क्षमा करे तो उसका न्याय नष्ट हो जाये और सब मनुष्य महापापी हो जायें। इसलिए कि क्षमा की बात सुन कर ही पाप करने वालों को पाप करने में निभर्यता और उत्साह हो जाये। जैसे राजा यदि अपराधियों के अपराध को क्षमा कर दे तो वे उत्साहपूर्वक अधिक अधिक बड़े-बड़े पाप करें। क्योंकि राजा अपना अपराध क्षमा कर देगा और उनको भी भरोसा हो जायेगा कि राजा से हम हाथ जोड़ने आदि चेष्टा कर अपने अपराध छुड़ा लेंगे और जो अपराध नहीं करते, वे भी अपराध करने में न डरकर पाप करने में प्रवृत्त हो जायेंगे। इसलिए सब कर्मों का फल यथावत् देना ही ईश्वर का काम है, क्षमा करना नहीं"
वैदिक विचारधारा में ईश्वर को न्यायकारी एवं दयालु बताया गया हैं। परमेश्वर न्यायकारी है,क्यूंकि ईश्वर जीव के कर्मों के अनुपात से ही उनका फल देता है कम या ज्यादा नहीं। परमेश्वर दयालु है, क्यूंकि कर्मों का फल देने की व्यवस्था इस प्रकार की है जिससे जीव का हित हो सके। शुभ कर्मों का अच्छा फल देने में भी जीव का कल्याण है और अशुभ कर्मों का दंड देने में भी जीव का ही कल्याण है। दया का अर्थ है जीव का हित चिंतन और न्याय का अर्थ है, उस हितचिंतन की ऐसी व्यवस्था करना कि उसमें तनिक भी न्यूनता या अधिकता न हो।
ईसाई मत में प्रचलित पापों को क्षमा करना ईश्वर के न्यायप्रियता और दयालुता गुण के विपरीत हैं। अव्यवहारिक एवं असंगत होने के कारण अन्धविश्वास मात्र हैं।
3. गैर ईसाईयों को ईसाई मत में धर्मान्तरित करना
ईसाई मत को मानने वालो में गैर ईसाईयों को ईसाई मत में धर्मान्तरित कर शामिल करने की सदा चेष्टा बनी रहती हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता हैं कि जैसे वही ईसाई सच्चा ईसाई तभी माना जायेगा जो गैर ईसाईयों को ईसाई नहीं बना लेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि ईसाईयों में आचरण और पवित्र व्यवहार से अधिक धर्मान्तरण महत्वपूर्ण हो चला हैं। धर्मांतरण के लिए ईसाई समाज हिंसा करने से भी पीछे नहीं हटता। अपनी बात को मैं उदहारण देकर सिद्ध करना चाहता हूँ। ईसाई प्रभुत्व वाले पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम से वैष्णव हिन्दू रीति को मानने वाली रियांग जनजाति को धर्मान्तरण कर ईसाई न बनने पर चर्च द्वारा समर्थित असामाजिक लोगों ने हिंसा द्वारा राज्य से निकाल दिया[vii]।
हिंसा के चलते रियांग लोग दूसरे राज्यों में शरणार्थी के रूप में रहने को बाधित हैं। सरकार द्वारा बनाई गई नियोगी कमेटी के ईसाईयों द्वारा धर्मांतरण के लिए अपनाये गए प्रावधानों को पढ़कर धर्मान्तरण के इस कुचक्र का पता चलता हैं[viii]।
चर्च समर्थित धर्मान्तरण एक ऐसा कार्य हैं जिससे देश की अखंडता और एकता को बाधा पहुँचती हैं।
इसीलिए हमारे देश के संभवत शायद ही कोई चिंतक ऐसे हुए हो जिन्होंने प्रलोभन द्वारा धर्मान्तरण करने की निंदा न की हो। महान चिंतक एवं समाज सुधारक स्वामी दयानंद का एक ईसाई पादरी से शास्त्रार्थ हो रहा था। स्वामी जी ने पादरी से कहा कि हिन्दुओं का धर्मांतरण करने के तीन तरीके है। पहला जैसा मुसलमानों के राज में गर्दन पर तलवार रखकर जोर जबरदस्ती से बनाया जाता था। दूसरा बाढ़, भूकम्प, प्लेग आदि प्राकृतिक आपदा जिसमें हज़ारों लोग निराश्रित होकर ईसाईयों द्वारा संचालित अनाथाश्रम एवं विधवाश्रम आदि में लोभ-प्रलोभन के चलते भर्ती हो जाते थे और इस कारण से आप लोग प्राकृतिक आपदाओं के देश पर बार बार आने की अपने ईश्वर से प्रार्थना करते है और तीसरा बाइबिल की शिक्षाओं के जोर शोर से प्रचार-प्रसार करके। मेरे विचार से इन तीनों में सबसे उचित अंतिम तरीका मानता हूँ। स्वामी दयानंद की स्पष्टवादिता सुनकर पादरी के मुख से कोई शब्द न निकला। स्वामी जी ने कुछ ही पंक्तियों में धर्मान्तरण के पीछे की विकृत मानसिकता को उजागर कर दिया[ix]।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ईसाई धर्मान्तरण के सबसे बड़े आलोचको में से एक थे। अपनी आत्मकथा में महात्मा गांधी लिखते है "उन दिनों ईसाई मिशनरी हाई स्कूल के पास नुक्कड़ पर खड़े हो हिन्दुओं तथा देवी देवताओं पर गलियां उड़ेलते हुए अपने मत का प्रचार करते थे। यह भी सुना है कि एक नया कन्वर्ट (मतांतरित) अपने पूर्वजों के धर्म को, उनके रहन-सहन को तथा उनके गलियां देने लगता है। इन सबसे मुझमें ईसाइयत के प्रति नापसंदगी पैदा हो गई।" इतना ही नहीं गांधी जी से मई, 1935 में एक ईसाई मिशनरी नर्स ने पूछा कि क्या आप मिशनरियों के भारत आगमन पर रोक लगाना चाहते है तो जवाब में गांधी जी ने कहा था,' अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं तो मैं धर्मांतरण का यह सारा धंधा ही बंद करा दूँ। मिशनरियों के प्रवेश से उन हिन्दू परिवारों में जहाँ मिशनरी पैठे है, वेशभूषा, रीतिरिवाज एवं खानपान तक में अंतर आ गया है[x]।
समाज सुधारक एवं देशभक्त लाला लाजपत राय द्वारा प्राकृतिक आपदाओं में अनाथ बच्चों एवं विधवा स्त्रियों को मिशनरी द्वारा धर्मान्तरित करने का पुरजोर विरोध किया गया जिसके कारण यह मामला अदालत तक पहुंच गया। ईसाई मिशनरी द्वारा किये गए कोर्ट केस में लाला जी की विजय हुई एवं एक आयोग के माध्यम से लाला जी ने यह प्रस्ताव पास करवाया कि जब तक कोई भी स्थानीय संस्था निराश्रितों को आश्रय देने से मना न कर दे तब तक ईसाई मिशनरी उन्हें अपना नहीं सकती[xi]।
समाज सुधारक डॉ अम्बेडकर को ईसाई समाज द्वारा अनेक प्रलोभन ईसाई मत अपनाने के लिए दिए गए । मगर यह जमीनी हकीकत से परिचित थे कि ईसाई मत ग्रहण कर लेने से भी दलित समाज अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित ही रहेगा। डॉ अम्बेडकर का चिंतन कितना व्यवहारिक था यह आज देखने को मिलता है।''जनवरी 1988 में अपनी वार्षिक बैठक में तमिलनाडु के बिशपों ने इस बात पर ध्यान दिया कि धर्मांतरण के बाद भी अनुसूचित जाति के ईसाई परंपरागत अछूत प्रथा से उत्पन्न सामाजिक व शैक्षिक और आर्थिक अति पिछड़ेपन का शिकार बने हुए हैं। फरवरी 1988 में जारी एक भावपूर्ण पत्र में तमिलनाडु के कैथलिक बिशपों ने स्वीकार किया 'जातिगत विभेद और उनके परिणामस्वरूप होने वाला अन्याय और हिंसा ईसाई सामाजिक जीवन और व्यवहार में अब भी जारी है। हम इस स्थिति को जानते हैं और गहरी पीड़ा के साथ इसे स्वीकार करते हैं।' भारतीय चर्च अब यह स्वीकार करता है कि एक करोड़ 90 लाख भारतीय ईसाइयों का लगभग 60 प्रतिशत भाग भेदभावपूर्ण व्यवहार का शिकार है। उसके साथ दूसरे दर्जे के ईसाई जैसा अथवा उससे भी बुरा व्यवहार किया जाता है। दक्षिण में अनुसूचित जातियों से ईसाई बनने वालों को अपनी बस्तियों तथा गिरिजाघर दोनों जगह अलग रखा जाता है। उनकी 'चेरी' या बस्ती मुख्य बस्ती से कुछ दूरी पर होती है और दूसरों को उपलब्ध नागरिक सुविधओं से वंचित रखी जाती है। चर्च में उन्हें दाहिनी ओर अलग कर दिया जाता है। उपासना (सर्विस) के समय उन्हें पवित्र पाठ पढऩे की अथवा पादरी की सहायता करने की अनुमति नहीं होती। बपतिस्मा, दृढि़करण अथवा विवाह संस्कार के समय उनकी बारी सबसे बाद में आती है। नीची जातियों से ईसाई बनने वालों के विवाह और अंतिम संस्कार के जुलूस मुख्य बस्ती के मार्गों से नहीं गुजर सकते। अनुसूचित जातियों से ईसाई बनने वालों के कब्रिस्तान अलग हैं। उनके मृतकों के लिए गिरजाघर की घंटियां नहीं बजतीं, न ही अंतिम प्रार्थना के लिए पादरी मृतक के घर जाता है। अंतिम संस्कार के लिए शव को गिरजाघर के भीतर नहीं ले जाया जा सकता। स्पष्ट है कि 'उच्च जाति' और 'निम्न जाति' के ईसाइयों के बीच अंतर्विवाह नहीं होते और अंतर्भोज भी नगण्य हैं। उनके बीच झड़पें आम हैं। नीची जाति के ईसाई अपनी स्थिति सुधारने के लिए संघर्ष छेड़ रहे हैं, गिरजाघर अनुकूल प्रतिक्रिया भी कर रहा है लेकिन अब तक कोई सार्थक बदलाव नहीं आया है। ऊंची जाति के ईसाइयों में भी जातिगत मूल याद किए जाते हैं और प्रछन्न रूप से ही सही लेकिन सामाजिक संबंधोंं में उनका रंग दिखाई देता है[xii]।
महान विचारक वीर सावरकर धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण मानते थे। आप कहते थे "यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के धर्म में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है।
इस प्रकार से प्राय: सभी देशभक्त नेता ईसाई धर्मान्तरण के विरोधी रहे है एवं उसे राष्ट्र एवं समाज के लिए हानिकारक मानते है। लेखक : डॉ विवेक आर्य
देश में वामपंथियों ने जो इतिहास लिखा है उसमें से अधिकतर असली इतिहास गायब कर दिया है और क्रूर आक्रमणकारी, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों का और देश की संपत्ति लूट ले जाने वाले अंग्रेजो का महिमामण्डन किया है लेकिन देश की आज़ादी में उनके खिलाफ लड़कर अपने प्राणों का बलिदान देने वालों का इतिहास लिखा ही नही गया ।
रानी चेन्नम्मा भारत की स्वतंत्रता हेतु सक्रिय होनेवाली पहली महिला थी । सर्वथा अकेली होते हुए भी उसने ब्रिटिश साम्राज्य पर कड़ा धाक जमाए रखा । अंग्रेंजों को भगाने में रानी चेन्नम्मा को सफलता तो नहीं मिली, किंतु ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध खडा होने हेतु रानी चेन्नम्मा ने अनेक स्त्रियों को प्रेरित किया । कर्नाटक के कित्तूर संस्थान की वह चेन्नम्मा रानी थी । आज वह कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के नाम से जानी जाती है । आइए, इतिहास में थोड़ा झांककर उनके विषय में अधिक जान लेते हैं ।
रानी चेन्नम्मा का बचपन
The mighty Hindu Rani Chennamma, who started the first war against the British,
रानी चेन्नम्मा का जन्म ककती गांव में (कर्नाटक के उत्तर बेलगांव के एक देहात में ) 1778 में , झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लगभग 56 वर्ष पूर्व हुआ । बचपन से ही उसे घोडेपर बैठना, तलवार चलाना तथा तीर चलाना इत्यादि का प्रशिक्षण प्राप्त हुआ । पूरे गांव में अपने वीरतापूर्ण कृत्यों के कारण से वह परिचित थी ।
रानी चेन्नम्मा का विवाह कित्तूर के शासक मल्लसारजा देसाई से 15 वर्ष की आयु में हुआ । उनका विवाहोत्तर जीवन 1816 में उनके पति की मृत्यु के पश्चात एक दुखभरी कहानी बनकर रह गया । उनका एक पुत्र था, किंतु दुर्भाग्य उनका पीछा कर रहा था । 1824 में उनके पुत्र ने अंतिम सांस ली, तथा उस अकेली को ब्रिटिश सत्ता से लडने हेतु छोडकर चला गया ।
रानी चेन्नम्मा एवं ब्रिटिश सत्ता
ब्रिटिशों ने स्थानिक संस्थानों पर ‘व्यय समाप्ति का नियम’ (डॉक्ट्रीन ऑफ लॅप्स) लगाया । इस घोषणानुसार, स्थानिक शासनकर्ताओं को यदि अपनी संतान न हो तो, बच्चा गोद लेने की अनुमति नहीं थी । इससे उनका संस्थान ब्रिटिश साम्राज्य में अपने आप समाविष्ट हो जाता था ।
अब कित्तूर संस्थान धारवाड जिलाधिकारी श्री. ठाकरे के प्रशासन में आ गया । श्री. चॅपलीन उस क्षेत्र के कमिश्नर थे । दोनों ने नए शासनकर्ता को नहीं माना, तथा सूचित किया कि कित्तूर को ब्रिटिशों का शासन स्वीकार करना होगा ।
ब्रिटिशों के विरुद्ध युद्ध
ब्रिटिशों के मनमाने व्यवहार का रानी चेन्नम्मा तथा स्थानीय लोगों ने कड़ा विरोध किया । ठाकरे ने कित्तूर पर आक्रमण किया । इस युद्ध में सैंकडों ब्रिटिश सैनिकों के साथ ठाकरे मारा गया । एक छोटे शासक के हाथों अवमानजनक हार स्वीकार करना ब्रिटिशों के लिए बडा कठिन था । म्हैसूर तथा सोलापुर से प्रचंड सेना लाकर उन्होंने कित्तूर को घेर लिया ।
रानी चेन्नम्मा ने युद्ध टालने का अंत तक प्रयास किया, उसने चॅपलीन तथा बॉम्बे प्रेसिडेन्सी के गवर्नर से बातचीत की, जिनके प्रशासन में कित्तूर था । उसका कुछ परिणाम नहीं निकला । युद्ध घोषित करना चेन्नम्मा को अनिवार्य किया गया । 12 दिनों तक पराक्रमी रानी तथा उनके सैनिकों ने उनके किले की रक्षा की, किंतु अपनी आदत के अनुसार इस बार भी देशद्रोहियों ने तोपों के बारुद में कीचड एवं गोबर भर दिया । 1824 में रानी की हार हुई ।
उन्हे बंदी बनाकर जीवनभर के लिए बैलहोंगल के किले में रखा गया । रानी चेन्नम्मा ने अपने बचे हुए दिन पवित्र ग्रंथ पढने में तथा पूजा-पाठ करने में बिताए । 1829 में उनकी मृत्यु हुई ।
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ब्रिटिशों के विरुद्ध युद्ध भले ही न जीत सकी, किंतु विश्व के इतिहास में कई शताब्दियों तक उसका नाम अजरामर हो गया । ओंके ओबवा, अब्बक्का रानी तथा केलदी चेन्नम्मा के साथ कर्नाटक में उसका नाम शौर्य की देवी के रुप में बडे आदरपूर्वक लिया जाता है ।
रानी चेन्नम्मा एक दिव्य चरित्र बन गई है । स्वतंत्रता आंदोलन में, जिस धैर्यसे उसने ब्रिटिशों का विरोध किया, वह कई नाटक, लंबी कहानियां तथा गानों के लिए एक विषय बन गया । लोकगीत एवं लावनी गानवाले कवी, शाहीर जो पूरे क्षेत्र में घूमते थे, स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में जोश भर देते थे ।
एक आनंद की बात है कि, कित्तूर की चेन्नम्मा का पुतला नई देहली के संसद भवन के परिसर में 11 सितंबर 2007 को स्थापित किया गया । एक पराक्रमी रानी को यही खरी श्रद्धांजलि है । भारत में ब्रिटिशों के विरुद्ध सबसे पहले युद्धका आरंभ करनेवाले शासकों में से वह एक थी । स्तोत्र : हिन्दू जन जागृति
आपने पराक्रमी हिन्दू रानी चेन्नम्मा के बारे में पढ़ा, पति और पुत्र का स्वर्गवास हो गया, सामने अंग्रेजो की बड़ी सेना थी उसके बाद भी वो अंग्रेजो से लडी भले किसी ने गद्दारी की और वो हार गई लेकिन वे मन से कभी नही हारी आखिरी समय जेल में बिताना पड़ा फिर भी दुःखी नही हुई और सनातन हिन्दू धर्मग्रंथों का पठन करती रही । यही भारतीय संस्कृति है कि सामने कितनी भी विकट परिस्थिति आ जाये लेकिन हारना नही है धैर्य पूर्वक सामना करते रहना चाहिए ।
रानी चेन्नम्मा से हर भारतवासी को प्रेरणा लेनी चाहिए "अत्याचार करना तो पाप है लेकिन अत्याचार सहन करना दुगना पाप है" इस सूत्र को ध्यान में लेकर जहां भी देश, संस्कृति के खिलाफ कोई कार्य हो रहा है उसका विरोध करना चाहिए ।
भारत की रीढ़ की हड्डी युवापीढ़ी मानी जाती है अगर युवाओं को कमजोर कर दिया जाये तो देश भी कमजोर हो जाता है, देश के युवाओं को गुमराह करने के लिये अंग्रेज अनेक विदेशी त्यौहार रखकर गये हैं जिसके कारण देश के युवाओं का नैतिक पतक हो रहा है ।
भारत में युवाओं की तबाही करने का मुख्य त्यौहार वेलेंटाइन-डे है जो 7 से 14 फरवरी तक सात दिन तक मनाया जाने लगा है, फूल, गिफ्ट, चॉकलेट देकर युवक-युवतियां एक दूसरे से मिलते हैं,इस प्रकार देश की युवा पीढ़ी पतन की खाई में गिरती जा रही है ।
Chief ministers of many states said that will not be Valentine's day, maternal grandfathers will be worshiped
भारत में भले युवाओं का पतन करने वाला वेलेंटाइन डे कुछ एक वर्ग मना रहे हों लेकिन दूसरी ओर एक अच्छी खबर सुनने में ये आ रही है कि भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को छिंदवाड़ा के समाजिक कार्यकर्ता भगवद्दीन शाहू ने एक पत्र लिखा था कि वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जाये जो हिन्दू धर्मगुरु आसारामजी बापू ने 2006 से शुरू किया है, राष्ट्रपति भवन से शिक्षा विभाग को लेटर भेज दिया गया कि पूरे देशभर की स्कूलों-कॉलेजों में 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस लागू किया जाये और माता-पिता की पूजा की जाए ।
असम मुख्यमंत्री ने की सरहाना
असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने पत्र के माध्यम से बताया कि मुझे यह जानकर अत्यधिक हर्ष हो रहा है कि "श्री योग वेदांत सेवा समिति" भारतीय संस्कृति से एक तान होकर मातृ-पितृ पूजन दिवस मना रही है । इस आयोजन के साथ-साथ मातृ-पितृ पूजन पुस्तिका भी प्रकाशित की गई है ।
माता-पिता के प्रति हमारे हृदयस्पर्शी भावों को प्रकट करने हेतु मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने के सराहनीय निर्णय के लिए "श्री योग वेदांत सेवा समिति" को मेरी ओर से हार्दिक बधाई ।
मैं इसके आयोजक और संपादकीय समूह को उनके इस प्रयास की सफलता के लिए अपनी शुभ कामनाएँ प्रेषित करता हूँ ।
गुजरात मुख्यमंत्री ने भी की भूरी-भूरी प्रशंसा..
गुजरात के मुख्यमंत्री श्री विजय रुपाणी ने पत्र द्वारा बताया कि दुनिया में श्रेष्ठ अनुभूति यह है कि आपके माता-पिता की मुस्कुराहट की वजह आप हो।
रुपाणी ने आगे लिखा है कि भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही माता-पिता का आदर करने की महिमा बताई गई है। माता-पिता के सम्मान के बारे में एक पौराणिक कथा है श्रवण कुमार की, जिसने अपने अन्धे माता-पिता को तीर्थ यात्रा करवाई थी एक कावड़ में। माता-पिता बनना जीवन का अद्भुत दौर है, जिसमें वे अपनी पूर्ण इच्छाएं अपने बच्चों की खुशी में पाते हैं।
गुजरात मुख्यमंत्री ने आगे बताया कि मैं यह जानकर बहुत प्रसन्न हूँ कि "श्री योग वेदांत समिति" 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मना रही है देश तथा विदेश में। मैं अपनी शुभकामनाएं देता हूँ समिति व उनके स्वयं सेवक को, सम्मलित स्कूलों तथा कॉलेजों को जो इस धार्मिक कार्यक्रम का हिस्सा बन रहें हैं। मुझे विश्वास है कि इस कार्यक्रम में सहभागी होने वाले बच्चे व युवा माता-पिता के महिमा से अवगत होंगे।
झारखंड में भी मनाया जायेगा मातृ-पितृ पूजन
पश्चात संस्कृति के इस त्यौहार वेलेंटाइन-डे को रोकने के लिए झारखंड सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है । सभी गवर्नमेंट करीब 50 हजार स्कूलों में 14 फरवरी को वेलेंटाइन-डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जायेगा ।
छत्तीसगढ़ स्कूलों-कॉलेजों में भी मनाया जाता है
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ड़ॉ.रमन सिंह छत्तीसगढ़ राज्य में पिछले कई सालों से वैलेंटाइन डे’ यानि 14 फरवरी के दिन मातृ-पितृ दिवस मना रहे हैं, इसके लिए सरकार ने सभी शासकीय एवं अशासकीय स्कूलों व कालेजों में 14 फ़रवरी को ‘मातृ-पितृ दिवस’ मनाने के लिए परिपत्र जारी किये हैं ।
सरस्वती विद्या मंदिर में मनाया जाएगा मातृ-पितृ पूजन दिवस
विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान द्वारा सम्बंधित हिमाचल शिक्षा समिति ने भी एक पत्र जारी करके सभी सरस्वती विद्या मंदिर में 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने के निर्देश दिए हैं ।
आपको बता दें कि कई राज्यों के गवर्नर, कलेक्टर, शिक्षा समितियों द्वारा मातृ-पितृ दिवस मनाने का आदेश भी जारी किया हुआ है पर कभी मीडिया ने इस न्यूज़ को कवरेज नहीं दिया ।
गौरतलब है कि हिन्दू संत आसारामजी बापू की यह अनोखी पहल थी जिसे आज विश्व स्तर पर मनाया जा रहा है ।
संत आसारामजी ने सन् 2006 से 14 फरवरी को ‘वेलेन्टाइन डे की जगह ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाना शुरु करवाया । इसका ऐसा प्रचार हुआ कि मानो ‘वेलेन्टाइन डे को उखाडने का ताँडव शुरु हो गया हो । मलेशिया, ईरान, सउदी अरब, इंडोनेशिया, जापान, आदि देशों ने वेलेन्टाइन डे पर प्रतिबंध लगा दिया। ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस विश्वव्यापी हो गया है जिससे ईसाई जगत में बहुत बड़ी खलबली मची है ।
बापू आशारामजी ने 2006 में एक संकल्प करके बोला था "14 फरवरी ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ को अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनायेंगे। ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ में पाँच भूत, देवी-देवता और मेरे साधक, मुसलमान, हिन्दू, ईसाई, पारसी सभी जुड़ जायें, ऐसा मैं संकल्प आकाश में फैला रहा हूँ। देवता सुन लें, यक्ष सुन लें, गंधर्व सुन लें, पितर सुन लें कि भारत और विश्व में मातृ-पितृ पूजन दिवस का कार्यक्रम मैं व्यापक करना चाहता हूँ।"
सुदर्शन न्यूज के मुख्य सम्पादक श्री सुरेश चव्हाणके ने तो यहाँ तक कहा है कि कई सालों से वेलेंटाइन डे को ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाने से तमाम महँगे-महँगे गिफ्ट्स, ग्रीटिंग कार्ड्स बेचनेवाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के व्यापार पर इसका भारी असर हुआ है । ये भी एक बड़ा कारण है बापू आशारामजी षड्यंत्र के तहत फंसाने का ।
सिकंदर लोदी के शासनकाल की बात है । सदना पीर उन दिनों एक जाना-माना पीर था । सिकंदर लोदी के दरबार में भी उसकी प्रसिद्धि हो चुकी थी । परंतु हिन्दू समाज में संत रविदास की बहुत प्रतिष्ठा थी ।
एक दिन सदना पीर ने सोचा कि ‘आजकल रविदास का बड़ा नाम हो रहा है... मीराबाई जैसी रानी भी इनको मानती हैैै । मैं इनको समझाऊँ कि काफिरों की परंपरा छोड़ दें और कुरानशरीफ पढ़ें, कलमा पढ़ें । यदि ये मान गये तो सिकंदर लोदी से इनका बहुमान करा दूँगा । फिर इनको माननेवाले हजारों हिन्दू मुसलमान बन जायेंगे, जिससे हमारी जमात बढ़ जायेगी ।’
ऐसा सोचकर वह संत रविदास के पास गया और बोला : ‘‘आप काफिरों की तरह यह क्या बुतपरस्ती (मूर्तिपूजा) करते हैं ? पत्थर की मूर्ति के आगे बैठकर ‘राम-राम’ रटते रहते हैं ? आप हमारे साथ चलिये, कुरानशरीफ पढ़कर उसका फायदा उठाइये । हम आपको सुलतान से पीर की पदवी दिलवायेंगे ।’’
Sadan Peer Sant Ravidas came to make Muslims, himself became Hindu
सदना पीर ने हिन्दू धर्म की निन्दा में कुछ और भी बातें कहीं । जब वह कह चुका तब रविदासजी ने कहा : ‘‘मैंने तेरी सारी बातें सुनीं, सदना पीर ! अगर तेरे में साधुताई है, पीरपना है तो तुझे मेरी बात सुननी ही चाहिए ।
किसी व्यक्ति, किसी पीर-पैगंंबर या ईश्वर के बेटे द्वारा बनाया हुआ धर्म, धर्म नहीं एक संप्रदाय है । किंतु सनातन धर्म कोई संप्रदाय नहीं है । इसमें सभी मनुष्यों की भलाई के सिवाय कोई बात नहीं है ।
खुदा कलाम कुरान बताओ, फिर क्यों जीव मारकर खाओ?
खुदा नाम बलिदान चढ़ाओ, सो अल्लाह को दोष लगाओ ?
दिनभर रोजा नमाज गुजारें, संध्या समय पुनः मुर्गी मारें ?
आप कहते हैं कि ‘हिन्दू बुतपरस्ती करते हैं, मूर्तिपूजक हैं, मूर्ख हैं । खुदाताला निराकार है ।’ तो भाई ! सुन लो :
निराकार तुम खुदा बताओ, कुरान खुदा का कलाम ठहराओ ।
कलाम कहै तो बनै साकारा, फिर कहाँ रहा खुदा निराकारा ?
कलमा को खुदाताला के वचन कहते हो तो ये वचन तो साकार के हैं । निराकार क्या बोलेगा ?’’
सदना पीर व रविदास के बीच इसलाम धर्म और सनातन धर्म की चर्चा लम्बे समय तक होती रही । सदना पीर की समझ में रविदास की बात आ गयी कि जीते-जी मुक्ति और अपना आत्मा-परमात्मा ही सार है । जिस सार को मंसूर समझ गये, उन्हें अनलहक की अनुभूति हुई, वही सनातन धर्म सर्वोपरि सत्य है ।
संत रविदास की रहस्यमयी बातें सुनकर सदना पीर को सद्बुद्धि प्राप्त हुई । सदना पीर ने कहा : ‘‘मरने के बाद कोई हमारी खुशामद करेगा और बाद में हमें मुक्ति मिलेगी, यह हम मान बैठे थे । हम सदा मुक्तात्मा हैं, इस बात का हमें पता ही नहीं था । अब आप हमें सनातन धर्म की दीक्षा दीजिये ।’’
उसने संत रविदास से दीक्षा ली और उसका नाम रखा गया - रामदास ।
सिकंदर लोदी को जब इस बात का पता चला तो उसने संत रविदास को बुलवाकर पहले तो खूब डाँटा, फिर प्रलोभन देते हुए कहा : ‘‘अभी भी रामदास को फिर से सदना पीर बना दो तो हम आपको ‘रविदास पीर’ की ऊँची पदवी दे देंगे । सदना पीर आपका चेला और आप उनके गुरु । मेरे दरबार में आप दोनों का सम्मान होगा और हम आपको मुख्य पीर का दर्जा देंगे ।’’
‘‘मुख्य पीर का दर्जा तुम दोगे तो हमें तो तुम्हारी अधीनता स्वीकारनी पड़ेगी । जो सारे विश्व को बना-बनाके, नचा-नचाके मिटा देता है उस परमेश्वर से तुम्हारा प्रताप ज्यादा मानना पड़ेगा तो यह मुक्ति हुई कि गुलामी ? सुन ले भैया !
वेद धर्म है पूरन धर्मा, वेद अतिरिक्त और सब भर्मा ।
वेद धर्म की सच्ची रीता, और सब धर्म कपोल प्रतीता ।।
वेदवाक्य उत्तम धरम, निर्मल वाका ज्ञान ।
यह सच्चा मत छोड़कर, मैं क्यों पढ़ूँ कुरान ?
और धर्म तो पीर-पैगंबरों ने बनाये हैं लेकिन वैदिक धर्म सनातन है । ऐसा धर्म छोड़कर मैं तुम्हारी खुशामद क्यों करूँगा ?
तुम मुझे मुसलमान बनाना चाहते हो लेकिन मैं मनुष्य का बनाया हुआ मुसलमान क्यों बनूँ ? ईश्वर द्वारा बनाया हुआ मैं जन्मजात सनातन हिन्दू हूँ । ईश्वर के बनाये पद को छोड़कर मैं इंसान के बनाये पद पर क्यों गिरूँ ? नश्वर के लिए शाश्वत को क्यों छोड़ूँ ?
श्रुति शास्त्र स्मृति गाई, प्राण जायँ पुनि धर्म न जाई ।
कुरान बहिश्त न चाहिए, मुझको हूर हजार ।।
वेद धर्म त्यागूँ नहीं, जो गल चलै कटार ।
वेद धर्म है पूरण धर्मा, करि कल्याण मिटावै भर्मा ।।
सत्य सनातन वेद हैं, ज्ञान धर्म मर्याद ।
जो ना जाने वेद को, वृथा करै बकवाद ।।
तुम चाहो तो मेरा सिर कटवा दो, पत्थर बाँधकर मुझे यमुनाजी में फिंकवा दो । ऐसा करोगे तो यह शरीर मरेगा लेकिन मेरा आत्मा-परमात्मा तो अमर है ।’’
यह सुन सिकंदर लोदी आगबबूला होकर बोलाः ‘‘हद हो गयी, फकीर ! अब आखिरी निर्णय कर । या तो गला कटवाकर तेरा कीमा बनवा दूँ या तो मुसलमान बन जा तो पूजवा दूँ । सिकंदर तेरे भाग्य का विधाता है ।’’
‘‘मैंने तुम्हारी बातें सुनीं, अब तुम मेरी बात भी सुनो : तुम्हारी धमकियों से मैं डरनेवाला नहीं हूँ ।
मैं नहीं दब्बू बाल गँवारा, गंगत्याग महूँ ताल किनारा ।।
प्राण तजूँ पर धर्म न देऊँ । तुमसे शाह सत्य कह देऊँ ।।
चोटी शिखा कबहुँ नहीं त्यागूँ । वस्त्र समान देह भल त्यागूँ ।।
तुम भले मुझे गंगा में डलवा दो या पत्थर बाँधकर तालाब में फिंकवा दो ।’’
‘‘इतना बेपरवाह ! इतना निर्भीक ! तू मौत को बुला रहा है ? सिपाहियो ! इसके पैरों में जंजीरें और हाथों में हथकड़ियाँ डालकर इसे कैदखाने में ले जाओ । इसका कीमा बनवायें या जल में डुबवायें, इसका निर्णय बाद में करेंगे ।’’
रविदासजी को कैद किया गया पर उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी । वे तो हरिनाम जपते रहे, अपने अमर आत्मा के भाव में मस्त रहे और सब कुछ प्रभु के भरोसे छोड़ते हुए बोले : ‘प्रभु ! यदि तेरी यही मर्जी है तो तेरी मर्जी पूरण हो ।’ शरीर तो उनका कैदखाने में है लेकिन मन है प्रभु में !
भगवान ने सोचा कि ‘जिसने मेरी मर्जी में अपनी मर्जी को मिला दिया है, उसको अगर सिकंदर लोदी कुछ कष्ट पहुँचायेगा तो सृष्टि के नियम में गड़बड़ हो जायेगी ।’
सिकंदर लोदी सुबह-सुबह नमाज पढ़ने गया तो उसने देखा कि सामने रविदास खड़े हैं । वह बोला : ‘ऐ काफिर ! तू यहाँ कहाँ से आ गया ?’ उसने मुड़कर देखा तो रविदास ! दो-दो रूप ! फिर तीसरी ओर देखा तो वहाँ भी रविदास ! जिस भी दिशा में देखता, रविदास-ही-रविदास दिखायी देते । वह घबरा गया ।
उसने आदेश दिया : ‘‘सिपाहियो ! संत रविदास को बाइज्जत ले आओ ।’’
संत रविदास की जंजीरें खोल दी गयीं । सिकंदर उनके चरणों में गिरकर, गिड़गिड़ाकर माफी माँगने लगा : ‘‘ऐ फकीर ! गुस्ताखी माफ करो । अल्लाह ने आपको बचाने के लिए अनेकों रूप ले लिये थे । मैं आपको नहीं पहचान पाया, मैंने बड़ी गलती की । आप मुझे बख्श दें ।’’
संत रविदास : ‘‘कोई बात नहीं, भैया ! ईश्वर की ऐसी ही मर्जी होगी ।’’
जिसने जंजीरों में जकड़कर कैदखाने में डाल दिया, उसीके प्रति महापुरुष के हृदय से आशीर्वाद निकल पड़े कि ‘भगवान तुम्हारा भला करे ।’
कैसे हैं सनातन हिन्दू धर्म के संत !
(स्त्रोत: संत श्री आशारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से )
आज जो राष्ट्रविरोधी ताकतों द्वारा राजनीति फायदा के लिए जो नये नेता उभर रहे है और दलितों के मसीहा बोलते है और संत रविदास के नाम लेकर दलितों को हिन्दू धर्म से दूर कर रहे है उनको संत रविदास की आत्मा धिक्कार दे रही होगी, संत रविदास जी की आत्मा बोल रही होगी कि हमनें तो सनातन हिन्दू धर्म को बचाने के लिए अनेक यातनाएं सही लेकिन हिन्दू धर्म का त्याग नही किया लेकिन आज कुछ नेता अपने फायदे के लिए जो हिन्दू धर्म में बंटवारा करके देश के टुकड़े करना चाहते है उनको तो नर्क में भी जगा नही मिल पायेंगी।
दलित समाज से विनंती है कि आप किसी भी नेता के बहकावे न आवे महान संत रविदास जी के मार्ग पर चलकर अपना कल्याण करें और देश की अखंडता बनाये रखें यही बड़ी सेवा है ।