Wednesday, May 16, 2018

70 सालों से जजों कि नियुक्ति में सेक्स, पैसा , ब्लैक मेल होता है : जनार्दन मिश्रा

🚩अभिषेक मनु सिंघवी का हाथ जैसे ही उस अर्द्धनग्न महिला के कमर के उपर पहुँचा उस महिला ने चिहुँकते हुए बड़े प्यार से पूछा- "जज कब बना रहे हो?" .....बोलो ना डियर "जज कब बना रहे हो" ...???
🚩अब साहब ने जो भी उत्तर दिया था वह सारा का सारा सीन उस सेक्स-सीडी में रिकॉर्ड हो गया .....
🚩और यही सीडी कांग्रेस के उस बड़े नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी के राजनीतिक पतन का कारण बना।
🚩पिछले 70 सालों से जजों कि नियुक्ति में सेक्स, पैसा , ब्लैक मेल एवं दलाली के जरिए जजों को चुना जाता रहा है।
🚩अजीब बिडम्बना है कि हर रोज दुसरों को सुधरने कि नसीहत देने वाले लोकतंत्र के दोनों स्तम्भ मीडिया और न्यायपालिका खुद सुधरने को तैयार नही हैं।
Sex, money, black mail in the appointment
of judges for 70 years: Janardhan Mishra

🚩जब देश आज़ाद हुआ तब जजों कि नियुक्ति के लिए ब्रिटिश काल से चली आ रही "कोलेजियम प्रणाली" भारत सरकार ने अपनाई.... यानी सीनियर जज अपने से छोटे अदालतों के जजों कि नियुक्ति करते है।
🚩इस कोलेजियम में जज और कुछ वरिष्ठ वकील भी शामिल होते है। जैसे सुप्रीमकोर्ट के जज हाईकोर्ट के जज कि नियुक्ति करते है और हाईकोर्ट के जज जिला अदालतों के जजों कि नियुक्ति करते है ।
🚩इस प्रणाली में कितना भ्रष्टाचार है उनलोगों ने अभिषेक मनु सिंघवी कि सेक्स सीडी में देखी थी.... अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीमकोर्ट कि कोलेजियम के सदस्य थे और उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट के लिए जजों कि नियुक्ति करने का अधिकार था...
🚩उस सेक्स सीडी में वो वरिष्ठ वकील अनुसुइया सालवान को जज बनाने का लालच देकर उसके साथ इलू इलू करते पाए गए थे वो भी कोर्ट परिसर के ही किसी खोपचे में।
🚩कोलेजियम सिस्टम से कैसे लोगो को जज बनाया जाता है और उसके द्वारा राजनितिक साजिशें कैसे कि जाती है उसके दो उदाहरण देखिये .......
*पहला उदाहरण ....*
🚩किसी भी राज्य के हाईकोर्ट में जज बनने कि सिर्फ दो योग्यता होती है, वो भारत का नागरिक हो और 10 साल से किसी हाईकोर्ट में वकालत कर रहा हो या किसी राज्य का महाधिवक्ता हो ।
🚩वीरभद्र सिंह जब हिमाचल में मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने सारे नियम कायदों को ताक पर रखकर अपनी बेटी अभिलाषा कुमारी को हिमाचल का महाधिवक्ता नियुक्त कर दिया फिर कुछ दिनों बाद सुप्रीमकोर्ट के जजों के कोलेजियम में उन्हें हाईकोर्ट के जज कि नियुक्ति कर दी और उन्हें गुजरात हाईकोर्ट में जज बनाकर भेज दिया गया।
🚩तब कांग्रेस, गुजरात दंगो के बहाने मोदी को फंसाना चाहती थी और अभिलाषा कुमारी ने जज कि हैसियत से कई निर्णय मोदी के खिलाफ दिया ... हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने बाद में उसे बदल दिया था।
*दूसरा उदाहरण....*
🚩1990 में जब लालूप्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री थे तब कट्टरपंथी मुस्लिम आफ़ताब आलम को हाईकोर्ट का जज बनाया गया....बाद में उन्हे प्रोमोशन देकर सुप्रीमकोर्ट का जज बनाया गया... उनकी नरेंद्र मोदी से इतनी दुश्मनी थी कि तीस्ता शीतलवाड़ और मुकुल सिन्हा गुजरात के हर मामले को इनकी ही बेंच में अपील करते थे...इन्होने नरेद्र मोदी को फँसाने के लिए अपना एक मिशन बना लिया था।
🚩बाद में आठ रिटायर जजों ने जस्टिस एम बी सोनी कि अध्यक्षता में सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस से मिलकर आफ़ताब आलम को गुजरात दंगो के किसी भी मामलो कि सुनवाई से दूर रखने कि अपील की थी
🚩जस्टिस सोनी ने आफ़ताब आलम के दिए 12 फैसलों का डिटेल में अध्ययन करके उसे सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस को दिया था और साबित किया था कि आफ़ताब आलम चूँकि मुस्लिम है इसलिए उनके हर फैसले में भेदभाव स्पष्ट नजर आ रहा है।
🚩फिर सुप्रीमकोर्ट ने जस्टिस आफ़ताब आलम को गुजरात दंगो से किसी भी केस कि सुनवाई से दूर कर दिया।
🚩जजों के चुनाव के लिए कोलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक नई विशेष प्रणाली कि जरूरत महसूस कि जा रही थी।
🚩जब वर्तमान सरकार आई तो तीन महीने बाद ही संविधान का संशोधन ( 99 वाँ संशोधन) करके एक कमीशन बनाया गया जिसका नाम दिया गया NationalJudicial Appointments Commission (NJAC)
🚩इस कमीशन के तहत कुल छः लोग मिलकर जजों की नियुक्ति कर सकते थे।
*🚩A.* इसमें एक सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश ,
*B.* सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर जज जो मुख्य न्यायाधीश से ठीक नीचे हों ,
*C.* भारत सरकार का कानून एवं न्याय मंत्री ,
*D.* और दो ऐसे चयनित व्यक्ति जिसे तीन लोग मिलकर चुनेंगे।( प्रधानमंत्री , मुख्य न्यायाधीश एवं लोकसभा में विपक्ष का नेता) ।
🚩परंतु एक बड़ी बात तब हो गई जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कमीशन को रद्द कर दिया  वैसे इसकी उम्मीद भी कि जा रही थी।
🚩इस वाकये को न्यायपालिका एवं संसद के बीच टकराव के रूप में देखा जाने लगा...भारतीय लोकतंत्र पर सुप्रीम कोर्ट के कुठाराघात के रूप में इसे लिया गया।
🚩यह कानून संसद के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पारित किया गया था जिसे 20 राज्यों कि विधानसभा ने भी अपनी मंजूरी दी थी।
🚩सुप्रीम कोर्ट यह भूल गया थी कि जिस सरकार ने इस कानून को पारित करवाया है उसे देश कि जनता ने पूर्ण बहुमत से चुना है।
🚩सिर्फ चार जज बैठकर करोड़ों लोगों कि इच्छाओं का दमन कैसे कर सकते हैं ?
🚩क्या सुप्रीम कोर्ट इतना ताकतवर हो सकता है कि वह लोकतंत्र में जनमानस कि आकांक्षाओं पर पानी फेर सकता है ?
🚩जब संविधान कि खामियों को देश कि जनता परिमार्जित कर सकती है तो न्यायपालिका कि खामियों को क्यों नहीं कर सकती ?
🚩यदि NJAC को सुप्रीम कोर्ट असंवैधानिक कह सकता है तो इससे ज्यादा असंवैधानिक तो कोलेजियम सिस्टम है जिसमें ना तो पारदर्शिता है और ना ही ईमानदारी ?
🚩कांग्रेसी सरकारों को इस कोलेजियम से कोई दिक्कत नहीं रही क्योंकि उन्हें पारदर्शिता कि आवश्यकता थी ही नहीं।
🚩मोदी सरकार ने एक कोशिश की थी परंतु सुप्रीम कोर्ट ने उस कमीशन को रद्दी कि टोकरी में डाल दिया।
🚩शूचिता एवं पारदर्शिता का दंभ भरने वाले सुप्रीम कोर्ट को तो यह करना चाहिए था कि इस नये कानून (NJAC) को कुछ समय तक चलने देना चाहिए था...ताकि इसके लाभ हानि का पता चलता । खामियाँ यदि होती तो उसे दूर किया जा सकता था ...परंतु ऐसा नहीं हुआ।
🚩जज अपनी नियुक्ति खुद करे ऐसा विश्व में कहीं नहीं होता है सिवाय भारत के।
🚩क्या कुछ सीनियर IAS आॅफिसर मिलकर नये IAS कि नियुक्ति कर सकते हैं?
🚩क्या कुछ सीनियर प्रोफेसर मिलकर नये प्रोफेसर कि नियुक्ति कर सकते हैं ?
🚩यदि नहीं तो जजों कि नियुक्ति जजों द्वारा क्यों कि जानी चाहिए ?
🚩आज सुप्रीम कोर्ट एक धर्म विशेष का हिमायती बना हुआ है
🚩सुप्रीम कोर्ट गौरक्षकों को बैन करता है ...सुप्रीम कोर्ट जल्लीकट्टू को बैन करता है ...सुप्रीम कोर्ट दही हांडी के खिलाफ निर्णय देता है ....सुप्रीम कोर्ट दस बजे रात के बाद डांडिया बंद करवाता है .....सुप्रीम कोर्ट दीपावली में देर रात पटाखे को बैन करता है।
लेकिन ....
🚩सुप्रीम कोर्ट आतंकियों  कि सुनवाई के रात दो बजे अदालत खुलवाता है ....सुप्रीम कोर्ट पत्थरबाजी को बैन नहीं करता है....सुप्रीम कोर्ट गोमांश खाने वालों पर बैन नहीं लगाता है ....ईद - बकरीद पर कुर्बानी को बैन नहीं करता है .....मुस्लिम महिलाओं के शोषण के खिलाफ तीन तलाक को बैन नहीं करता है।
🚩और कल तो सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक कह दिया कि तीन तलाक का मुद्दा यदि मजहब का है तो वह हस्तक्षेप नहीं करेगा। ये क्या बात हुई ?
🚩आधी मुस्लिम आबादी कि जिंदगी नर्क बनी हुई है और आपको यह मुद्दा मजहबी दिखता है ? धिक्कार है आपके उपर ....।
🚩अभिषेक मनु सिंघवी के विडियो को सोशल मीडिया , यू ट्यूब से हटाने का आदेश देते हो कि न्यायपालिका कि बदनामी ना हो ? ....पर क्यों ऐसा ? ...क्यों छुपाते हो अपनी कमजोरी ?
🚩जस्टिस कर्णन जैसे पागल और टूच्चे जजों को नियुक्त करके  एवं बाद में छः माह के लिए कैद कि सजा सुनाने कि सुप्रीम कोर्ट को आवश्यकता क्यों पड़नी चाहिए ?
अभिषेक मनु सिंघवी जैसे अय्याशों को जजों की नियुक्ति का अधिकार क्यों मिलना चाहिए ?
🚩क्या सुप्रीम कोर्ट जवाब देगा ..?????
https://goo.gl/RVMSYw
🚩लोग अब तक सुप्रीम कोर्ट कि इज्जत करते आए हैं कहीं ऐसा ना हो कि जनता न्यायपालिका के विरुद्ध अपना उग्र रूप धारण कर लें उसके पहले उसे अपनी समझ दुरुस्त कर लेनी चाहिए। सत्तर सालों से चल रही दादागीरी अब बंद करनी पड़ेगी .. यह "लोकतंत्र" है और "जनता"  ही इसका "मालिक" है। संदर्भ : जनार्दन मिश्रा
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Tuesday, May 15, 2018

जानिए, मां गंगा की उत्पति कैसे हुई और पृथ्वी पर क्यों लाई गई

गंगा दशहरा प्रारम्भ : 16 मई, समाप्त 24 मई
🚩गंगा नदी उत्तर भारतकी केवल जीवनरेखा नहीं, अपितु हिंदू धर्मका सर्वोत्तम तीर्थ है । ‘आर्य सनातन वैदिक संस्कृति’ गंगाके तटपर विकसित हुई, इसलिए गंगा हिंदुस्थानकी राष्ट्ररूपी अस्मिता है एवं भारतीय संस्कृतिका मूलाधार है । इस कलियुगमें श्रद्धालुओंके पाप-ताप नष्ट हों, इसलिए ईश्वरने उन्हें इस धरापर भेजा है । वे प्रकृतिका बहता जल नहीं; अपितु सुरसरिता (देवनदी) हैं । उनके प्रति हिंदुओंकी आस्था गौरीशंकरकी भांति सर्वोच्च है । गंगाजी मोक्षदायिनी हैं; इसीलिए उन्हें गौरवान्वित करते हुए पद्मपुराणमें (खण्ड ५, अध्याय ६०, श्लोक ३९) कहा गया है, ‘सहज उपलब्ध एवं मोक्षदायिनी गंगाजीके रहते विपुल धनराशि व्यय (खर्च) करनेवाले यज्ञ एवं कठिन तपस्याका क्या लाभ ?’ नारदपुराणमें तो कहा गया है, ‘अष्टांग योग, तप एवं यज्ञ, इन सबकी अपेक्षा गंगाजीका निवास उत्तम है । गंगाजी भारतकी पवित्रताकी सर्वश्रेष्ठ केंद्रबिंदु हैं, उनकी महिमा अवर्णनीय है ।’
🚩मां गंगा का #ब्रह्मांड में उत्पत्ति
Know how the mother Ganga originated
and brought it to the earth

🚩‘वामनावतारमें श्रीविष्णुने दानवीर बलीराजासे भिक्षाके रूपमें तीन पग भूमिका दान मांगा । राजा इस बातसे अनभिज्ञ था कि श्रीविष्णु ही वामनके रूपमें आए हैं, उसने उसी क्षण वामनको तीन पग भूमि दान की । वामनने विराट रूप धारण कर पहले पगमें संपूर्ण पृथ्वी तथा दूसरे पगमें अंतरिक्ष व्याप लिया । दूसरा पग उठाते समय वामनके ( #श्रीविष्णुके) बाएं पैरके अंगूठेके धक्केसे ब्रह्मांडका सूक्ष्म-जलीय कवच (टिप्पणी १) टूट गया । उस छिद्रसे गर्भोदककी भांति ‘ब्रह्मांडके बाहरके सूक्ष्म-जलनेब्रह्मांडमें प्रवेश किया । यह सूक्ष्म-जल ही गंगा है ! गंगाजीका यह प्रवाह सर्वप्रथम सत्यलोकमें गया ।ब्रह्मदेवने उसे अपने कमंडलु में धारण किया । तदुपरांत सत्यलोकमें ब्रह्माजीने अपने कमंडलुके जलसे श्रीविष्णुके चरणकमल धोए । उस जलसे गंगाजीकी उत्पत्ति हुई । तत्पश्चात गंगाजी की यात्रा सत्यलोकसे क्रमशः #तपोलोक, #जनलोक, #महर्लोक, इस मार्गसे #स्वर्गलोक तक हुई ।
🚩पृथ्वी पर उत्पत्ति
🚩 #सूर्यवंशके राजा सगरने #अश्वमेध यज्ञ आरंभ किया । उन्होंने दिग्विजयके लिए यज्ञीय अश्व भेजा एवं अपने 60 सहस्त्र (हजार) पुत्रोंको भी उस अश्वकी रक्षा हेतु भेजा । इस यज्ञसे भयभीत इंद्रदेवने यज्ञीय अश्वको कपिलमुनिके आश्रमके निकट बांध दिया । जब सगरपुत्रोंको वह अश्व कपिलमुनिके आश्रमके निकट प्राप्त हुआ, तब उन्हें लगा, ‘कपिलमुनिने ही अश्व चुराया है ।’ इसलिए सगरपुत्रोंने ध्यानस्थ कपिलमुनिपर आक्रमण करनेकी सोची । कपिलमुनिको अंतर्ज्ञानसे यह बात ज्ञात हो गई तथा अपने नेत्र खोले । उसी क्षण उनके नेत्रोंसे प्रक्षेपित तेजसे सभी सगरपुत्र भस्म हो गए । कुछ समय पश्चात सगरके प्रपौत्र राजा अंशुमनने सगरपुत्रोंकी मृत्युका कारण खोजा एवं उनके उद्धारका मार्ग पूछा । कपिलमुनिने अंशुमनसे कहा, ‘`गंगाजीको स्वर्गसे भूतलपर लाना होगा । सगरपुत्रोंकी अस्थियोंपर जब गंगाजल प्रवाहित होगा, तभी उनका उद्धार होगा !’’ मुनिवरके बताए अनुसार गंगाको पृथ्वीपर लाने हेतु अंशुमनने तप आरंभ किया ।’  ‘अंशुमनकी मृत्युके पश्चात उसके सुपुत्र राजा दिलीपने भी गंगावतरणके लिए तपस्या की । #अंशुमन एवं दिलीपके सहस्त्र वर्ष तप करनेपर भी गंगावतरण नहीं हुआ; परंतु तपस्याके कारण उन दोनोंको स्वर्गलोक प्राप्त हुआ ।’ (वाल्मीकिरामायण, काण्ड १, अध्याय ४१, २०-२१)
🚩‘राजा दिलीपकी #मृत्युके पश्चात उनके पुत्र राजा भगीरथने कठोर तपस्या की । उनकी इस तपस्यासे प्रसन्न होकर गंगामाताने भगीरथसे कहा, ‘‘मेरे इस प्रचंड प्रवाहको सहना पृथ्वीके लिए कठिन होगा । अतः तुम भगवान शंकरको प्रसन्न करो ।’’ आगे भगीरथकी घोर तपस्यासे भगवान शंकर प्रसन्न हुए तथा भगवान शंकरने गंगाजीके प्रवाहको जटामें धारण कर उसे पृथ्वीपर छोडा । इस प्रकार हिमालयमें अवतीर्ण गंगाजी भगीरथके पीछे-पीछे #हरद्वार, प्रयाग आदि स्थानोंको पवित्र करते हुए बंगालके उपसागरमें (खाडीमें) लुप्त हुईं ।’
🚩ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, भौमवार (मंगलवार) एवं हस्त नक्षत्रके शुभ योगपर #गंगाजी स्वर्गसे धरतीपर अवतरित हुईं ।  जिस दिन #गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईं वह दिन ‘गंगा दशहरा’ के नाम से जाना जाता है ।
🚩जगद्गुरु आद्य शंकराचार्यजी, जिन्होंने कहा है : एको ब्रह्म द्वितियोनास्ति । द्वितियाद्वैत भयं भवति ।। उन्होंने भी ‘गंगाष्टक’ लिखा है, गंगा की महिमा गायी है । रामानुजाचार्य, रामानंद स्वामी, चैतन्य महाप्रभु और स्वामी रामतीर्थ ने भी गंगाजी की बड़ी महिमा गायी है । कई साधु-संतों, अवधूत-मंडलेश्वरों और जती-जोगियों ने गंगा माता की कृपा का अनुभव किया है, कर रहे हैं तथा बाद में भी करते रहेंगे ।
🚩अब तो विश्व के #वैज्ञानिक भी गंगाजल का परीक्षण कर दाँतों तले उँगली दबा रहे हैं ! उन्होंने दुनिया की तमाम नदियों के जल का परीक्षण किया परंतु गंगाजल में रोगाणुओं को नष्ट करने तथा आनंद और सात्त्विकता देने का जो अद्भुत गुण है, उसे देखकर वे भी आश्चर्यचकित हो उठे ।
🚩 #हृषिकेश में स्वास्थ्य-अधिकारियों ने पुछवाया कि यहाँ से हैजे की कोई खबर नहीं आती, क्या कारण है ? उनको बताया गया कि यहाँ यदि किसीको हैजा हो जाता है तो उसको गंगाजल पिलाते हैं । इससे उसे दस्त होने लगते हैं तथा हैजे के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और वह स्वस्थ हो जाता है । वैसे तो हैजे के समय घोषणा कर दी जाती है कि पानी उबालकर ही पियें । किंतु गंगाजल के पान से तो यह रोग मिट जाता है और केवल हैजे का रोग ही मिटता है ऐसी बात नहीं है, अन्य कई रोग भी मिट जाते हैं । तीव्र व दृढ़ श्रद्धा-भक्ति हो तो गंगास्नान व गंगाजल के पान से जन्म-मरण का रोग भी मिट सकता है ।
🚩सन् 1947 में जलतत्त्व विशेषज्ञ कोहीमान भारत आया था । उसने वाराणसी से #गंगाजल लिया । उस पर अनेक परीक्षण करके उसने विस्तृत लेख लिखा, जिसका सार है - ‘इस जल में कीटाणु-रोगाणुनाशक विलक्षण शक्ति है ।’
🚩दुनिया की तमाम #नदियों के जल का विश्लेषण करनेवाले बर्लिन के डॉ. जे. ओ. लीवर ने सन् 1924 में ही गंगाजल को विश्व का सर्वाधिक स्वच्छ और #कीटाणु-रोगाणुनाशक जल घोषित कर दिया था ।
🚩‘आइने अकबरी’ में लिखा है कि ‘अकबर गंगाजल मँगवाकर आदरसहित उसका पान करते थे । वे गंगाजल को अमृत मानते थे ।’ औरंगजेब और मुहम्मद तुगलक भी गंगाजल का पान करते थे । शाहनवर के नवाब केवल गंगाजल ही पिया करते थे ।
🚩कलकत्ता के हुगली जिले में पहुँचते-पहुँचते तो बहुत सारी नदियाँ, झरने और नाले गंगाजी में मिल चुके होते हैं । अंग्रेज यह देखकर हैरान रह गये कि हुगली जिले से भरा हुआ गंगाजल दरियाई मार्ग से यूरोप ले जाया जाता है तो भी कई-कई दिनों तक वह बिगड़ता नहीं है । जबकि यूरोप की कई बर्फीली नदियों का पानी हिन्दुस्तान लेकर आने तक खराब हो जाता है ।
🚩अभी रुड़की विश्वविद्यालय के #वैज्ञानिक कहते हैं कि ‘गंगाजल में जीवाणुनाशक और हैजे के कीटाणुनाशक तत्त्व विद्यमान हैं ।’
🚩फ्रांसीसी चिकित्सक हेरल ने देखा कि गंगाजल से कई रोगाणु नष्ट हो जाते हैं । फिर उसने गंगाजल को कीटाणुनाशक औषधि मानकर उसके इंजेक्शन बनाये और जिस रोग में उसे समझ न आता था कि इस रोग का कारण कौन-से कीटाणु हैं, उसमें गंगाजल के वे इंजेक्शन रोगियों को दिये तो उन्हें लाभ होने लगा !
🚩संत #तुलसीदासजी कहते हैं :
गंग सकल मुद मंगल मूला । सब सुख करनि हरनि सब सूला ।।
(श्रीरामचरित. अयो. कां. : 86.2)
🚩सभी सुखों को देनेवाली और सभी शोक व दुःखों को हरनेवाली माँ गंगा के तट पर स्थित तीर्थों में पाँच तीर्थ विशेष आनंद-उल्लास का अनुभव कराते हैं : गंगोत्री, हर की पौड़ी (हरिद्वार),  #प्रयागराज त्रिवेणी, काशी और #गंगासागर । #गंगादशहरे के दिन गंगा में गोता मारने से सात्त्विकता, प्रसन्नता और विशेष पुण्यलाभ होता है ।
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Monday, May 14, 2018

राष्ट्र एवं धर्मके लिए आत्मबलिदान करनेवाले संभाजी महाराज का महान इतिहास जानिए

14 May 2018

संभाजीराजाने अपनी अल्पायुमें जो अलौकिक कार्य किए, उससे पूरा हिंदुस्थान प्रभावित हुआ । इसलिए प्रत्येक हिंदुको उनके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए । उन्होंने साहस एवं निडरताके साथ औरंगजेबकी आठ लाख सेनाका सामना किया तथा अधिकांश मुगल सरदारोंको युद्धमें पराजित कर उन्हें भागनेके लिए विवश कर दिया । २४ से ३२ वर्षकी आयुतक शंभूराजाने मुगलोंकी पाश्विक शक्तिसे लडाई की एवं एक बार भी यह योद्धा पराजित नहीं हुआ । इसलिए औरंगजेब दीर्घकाल तक महाराष्ट्रमें युद्ध करता रहा । उसके दबावसे संपूर्ण उत्तर हिंदुस्थान मुक्त रहा । इसे संभाजी महाराजका सबसे बडा कार्य कहना पडेगा । यदि उन्होंने औरंगजेबके साथ समझौता किया होता अथवा उसका आधिपत्य स्वीकार किया होता तो,  वह दो-तीन वर्षोंमें ही पुन: उत्तर हिंदुस्थानमें आ धमकता; परंतु संभाजी राजाके संघर्षके कारण औरंगजेबको २७ वर्ष दक्षिण भारतमें ही रुकना पडा । इससे उत्तरमें बुंदेलखंड, पंजाब और राजस्थानमें हिंदुओंकी नई सत्ताएं स्थापित होकर हिंदु समाजको सुरक्षा मिली ।

 स्वराज्यका दूसरा छत्रपति 
Know the great history of Sambhaji Maharaj
who sacrificed himself for nation and religion

ज्येष्ठ शुद्ध १२ शके १५७९, गुरुवार दि. १४ मई १६५७ को पुरंदरगढपर स्वराज्यके दूसरे छत्रपतिका जन्म हुआ । शंभूराजाके जन्मके दो वर्ष पश्चात सईबाईकी मृत्यु हो गई एवं राजा मातृसुखसे वंचित हो गए । परंतु जिजाऊने इस अभावकी पूर्ति की । जिस जिजाऊने शिवबाको तैयार किया, उसी जिजाऊने संभाजी राजापर भी संस्कार किए । संभाजीराजे शक्तिसंपन्नता एवं रूपसौंदर्यकी प्रत्यक्ष प्रतिमा ही थे !

विश्वके प्रथम बालसाहित्यकार !

१४ वर्षकी आयुतक बुधभूषणम् (संस्कृत), नायिकाभेद, सातसतक, नखशिख (हिंदी) इत्यादि ग्रंथोंकी रचना करनेवाले संभाजीराजे विश्वके प्रथम बालसाहित्यकार थे । मराठी, हिंदी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, कन्नड आदि भाषाओंपर उनका प्रभुत्व था । जिस तडपसे उन्होंने लेखनी चलाई, उसी तडपसे उन्होंने तलवार भी चलाई ।

धर्मपरिवर्तनके विरोधमें छत्रपति संभाजी महाराजकी कठोर नीति !

‘मराठों एवं अंग्रेजोंमें १६८४ में जो समझौता हुआ, उसमें छत्रपति संभाजी महाराजने एक ऐसी शर्त रखी थी कि अंग्रेजोंको मेरे राज्यमें दास(गुलाम) बनाने अथवा ईसाई धर्ममें कलंकित करने हेतु लोगोंका क्रय करनेकी अनुज्ञा नहीं मिलेगी’ (संदर्भ : ‘शिवपुत्र संभाजी’, लेखिका – डॉ. (श्रीमती) कमल गोखले)

हिंदुओंके शुद्धीकरणके लिए निरंतर सजग रहनेवाले संभाजीराजा

संभाजी महाराजजीने ‘शुद्धीकरणके लिए’ अपने राज्यमें स्वतंत्र विभागकी स्थापना की थी । छत्रपति संभाजी महाराज एवं कवि कलशने बलपूर्वक धर्मपरिवर्तन कर मुसलमान बनाए गए हरसुलके ब्राह्मण गंगाधर कुलकर्णीको शुद्ध कर पुनः हिंदु धर्ममें परिवर्तित करनेका साहस दिखाया । (यह एक साहस ही था; क्योंकि उस समय ऐसे हिंदुओंको पुनः अपने धर्ममें  लेनेके लिए हिंदुओंद्वारा ही अत्यधिक विरोध होता था । इसलिए गंगाधरको त्र्यंबकेश्वर भेजकर वहांकी प्रायश्चित्त विधि पूरी करा ली गई । उसे  शुद्धिपत्र देकर अपनी पंक्तिमें भोजनके लिए बिठाकर पुनर्प्रवेश करा लिया गया ।)’ संभाजीराजाजीकी इस उदारताके कारण बहुतसे हिंदु पुनः स्वधर्ममें आ गए !

पोर्तुगीजोंकी नाकमें दम करनेवाले छत्रपति संभाजी महाराज !

फोंडाका गढ पोर्तुगीज-मराठा सीमापर था । गोवाकी पोर्तुगीज सत्ताको उकसाने तथा उस सत्ताको पूरी तरहसे उखाडनेके लिए घेरा देनेका जो प्रयास छत्रपति शिवाजी महाराजने किया था, उसमें फोंडा गढ एक महत्त्वपूर्ण दुवा था । उसका नाम था ‘मर्दनगढ’ । पोर्तुगीजोंने मर्दनगढके तटपर तोपोंका वर्षाव  चालू रखा । तटमें और एक दरार पडी । ९ नवंबरको पोर्तुगीजोंने घाटीसे अंदर प्रवेश करनेका षडयंत्र रचा । उस समय संभाजी महाराज राजापुरमें थे । उनका ध्यान इस लडाईपर केंद्रित था । महाराजने फोंडाके मोरचेपर स्वयं उपस्थित रहनेका निश्चय किया । वे शीघ्रतासे फोंडा पहुंचे । उनका हठ एवं ईर्ष्या इतनी दुर्दम्य थी कि उन्होंने ८०० सवारोंकी सुरक्षामें ६०० पैदल सैनिकोंको भली-भांति किलेमें पहुंचाया । पोर्तुगीज उनके धैर्य एवं निडर मानसिकताको देखते ही रह गए । उन्हें उनपर आक्रमण करनेका भान भी नहीं रहा ।

संभाजी महाराज युद्धमें सम्मिलित हुए, यह देखते ही वाइसरॉयने अपने मनमें ऐसा पक्का निश्चय किया कि यह युद्ध उसे बहुत महंगा पडेगा । महाराजकी उपस्थिति देखकर मराठोंको होश आया । किल्लेदार येसाजी कंक छत्रपति शिवाजी महाराजके समयका योद्धा था । अब वह वृद्ध हो चुका था; परंतु उसमें युवकको हटानेकी शूरता, धीरता एवं सुदृढता थी । इस वृद्ध युवकने पराक्रमकी पराकाष्ठा की । उसने अपने लडके कृष्णाजीके साथ चुनिंदे सिपाहियोंको साथ लेकर गढके बाहर जाकर पोर्तुगीजोंसे लडाई की । जिनके साथ वे लडे, उनको उन्होंने पूरी तरह पराजित किया; परंतु इस मुठभेडमें येसाजी एवं उनके सुपुत्र कृष्णाजीको भयानक चोट लगी ।  १० नवंबरको पोर्तुगीजोंने लौटना आरंभ किया । मराठोंने उनपर छापे मारकर उन्हें अत्यधिक परेशान किया । तोप तथा बंदूकोंको पीछे छोडकर उन्हें पलायन करना पडा । उन्होंने चावलके ३०० बोरे एवं २०० गधोंपर रखने जितना साहित्य पीछे छोडा ।

पोर्तुगीज-मराठा संघर्ष अंततक चालू ही रहा !

छत्रपति संभाजीराजाकी मृत्युतक पोर्तुगीज एवं छत्रपति संभाजीराजे दोनोंमें युद्ध चालू रहा । तबतक मराठोंने पोर्तुगीजके नियंत्रणमें रहनेवाला जो प्रदेश जीत लिया था, उसका बहुतसा अंश मराठोंके नियंत्रणमें था । गोवाके गवर्नर द रुद्रिगु द कॉश्त २४.१.१६८८ को पोर्तुगालके राजाको लिखते हैं : ‘…छत्रपति संभाजीराजासे चल रहा युद्ध अबतक समाप्त नहीं हुआ । यह युद्ध वाइसरॉय कॉट द आल्वेरके राज्यकालमें आरंभ हुआ था ।’

 

बहनोई गणोजी शिर्के की बेईमानी एवं मुगलोंद्वारा संभाजीराजाका घेराव !

येसुबाईके वरिष्ठ बंधु अर्थात शंभूराजाके बहनोई, गणोजी शिर्के हिंदवी स्वराज्यसे बेईमान हो गए । जुल्पिकार खान रायगढपर आक्रमण करने आ रहा है यह समाचार मिलते ही शंभूराजा सातारा-वाई-महाड मार्गसे होते हुए रायगढ लौटनेवाले थे; परंतु मुकर्रबखान कोल्हापुरतक आ पहुंचा । इसलिए शंभूराजाने संगमेश्वर मार्गके चिपलन-खेड मार्गसे रायगढ जानेका निश्चय किया । शंभूराजेके स्वयं संगमेश्वर आनेकी वार्ता आसपासके क्षेत्रमें हवासमान फैल गई । शिर्केके दंगोंके कारण उद्ध्वस्त लोग अपने परिवाद लेकर संभाजीराजाके पास आने लगे । जनताके परिवादको समझकर उनका समाधान करनेमें उनका समय व्यय हो गया एवं संगमेश्वरमें ४-५ दिनतक निवास करना पडा । उधर राजाको पता चला कि कोल्हापुरसे मुकर्रबखान निकलकर आ रहा है । कोल्हापुर से संगमेश्वरकी दूरी ९० मीलकी तथा वह भी सह्याद्रिकी घाटीसे व्याप्त कठिन मार्ग था ! इसलिए न्यूनतम ८-१० दिनके अंतरवाले संगमेश्वरको बेईमान गणोजी शिर्केने मुकर्रबखानको समीपके मार्गसे केवल ४-५ दिनमें ही लाया । संभाजीसे प्रतिशोध लेनेके उद्देश्यसे शिर्केने बेईमानी की थी तथा अपनी जागीर प्राप्त करने हेतु यह कुकर्म किया । अतः १ फरवरी १६८९ को मुकर्रबखानने अपनी ३ हजार सेनाकी सहायतासे शंभूराजाको घेर लिया ।

संभाजीराजाका घेरा तोडनेका असफल प्रयास !

जब शंभूराजेके ध्यानमें आया कि संगमेश्वरमें जिस सरदेसाईके बाडेमें वे निवासके लिए रुके थे, उस बाडेको खानने घेर लिया, तो उनको आश्चर्य हुआ, क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि इतने अल्प दिनोंमें खानका वहां आना असंभव था; परंतु यह चमत्कार केवल बेईमानीका था, यह भी उनके ध्यानमें आया । शंभूराजाने पूर्वसे ही अपनी फौज रायगढके लिए रवाना की थी तथा केवल ४००-५०० सैन्य ही अपने पास रखे थे । अब खानका घेराव तोडकर रायगढकी ओर प्रयाण करना राजाके समक्ष एकमात्र यही पर्याय शेष रह गया था; इसलिए राजाने अपने सैनिकोंको शत्रुओंपर आक्रमण करनेका आदेश दिया । इस स्थितिमें भी शंभुराजे, संताजी घोरपडे एवं खंडोबल्लाळ बिना डगमगाए शत्रुका घेराव तोडकर रायगढकी दिशामें गतिसे निकले । दुर्भाग्यवश इस घमासान युद्धमें मालोजी घोरपडेकी मृत्यु हो गई; परंतु संभाजीराजे एवं कवि कलश घेरावमें फंसगए । इस स्थितिमें भी संभाजीराजाने अपना घोडा घेरावके बाहर निकाला था; परंतु पीछे रहनेवाले कवि कलशके दाहिने हाथमें मुकर्रबखानका बाण लगनेसे वे नीचे गिरे एवं उन्हें बचाने हेतु राजा पुनः पीछे मुडे तथा घेरावमें फंस गए ।

अपनोंकी बेइमानीके कारण राजका घात !

इस अवसरपर अनेक सैनिकोंके मारे जानेके कारण उनके घोडे इधर-उधर भाग रहे थे । सर्वत्र धूल उड रही थी । किसीको भी  स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था । इसका लाभ उठाकर शंभूराजाने पुनः सरदेसाईके बाडेमें प्रवेश किया । वहांपर मात्र उनका घोडा था । धूल स्थिर होनेपर गणोजी शिर्केने शंभूराजाके घोडेको पहचान लिया; क्योंकि राजाओंके घोडेके पांवमें सोनेका तोडा रहता था, यह शिर्केको ज्ञात था; इसलिए उन्होंने खानकी सेनाको समीपमें ही संभाजीको ढूंढनेकी सूचना की । अंततोगत्वा मुकर्रबखानके लडकेने अर्थात इरवलासखानने शंभूराजाको नियंत्रणमें ले लिया । अपनोंकी बेईमानीके कारण अंतमें सिंहका शावक शत्रुके हाथ लग ही गया । जंग जंग पछाडकर भी निरंतर ९ वर्षोंतक जो सात लाख सेनाके हाथ नहीं लगा, जिसने बादशाहको कभी स्वस्थ नहीं बैठने दिया, ऐसा पराक्रमी योद्धा अपने लोगोंकी बेईमानीके कारण मुगलोंके जालमें फंस गया ।

शंभुराजाको देखनेके लिए मुगलसेना आतुर !

संगमेश्वर से बहादुरगढकी दूरी लगभग २५० मीलकी है; परंतु मुकर्रबखानने मराठोंके भयसे केवल १३ दिनोंमें यह दूरी पार की एवं १५ फरवरी १६८९ को शंभूराजे तथा कवि कलशको लेकर वह बहादुरगढमें प्रवेश किया । पकडे गए संभाजीराजा कैसे दिखाई देते हैं, यह देखनेके लिए मुगल सेना उत्सुक हो गई थी । औरंगजेबकी छावनी अर्थात बाजार बुणगोंका विशाल नगर ही था । छावनीका घेरा ३० मीलका था, जिसमें ६० सहस्र घोडे, ४ लाख पैदल, ५० सहस्र ऊंट, ३ सहस्र हाथी, २५० बाजारपेठ तथा जानवर कुल मिलाकर ७ लाख अर्थात बहुत बडी सेना थी । इसके पश्चात भी आयुके २४ वें से ३२ वें वर्षतक शंभुराजाने मुगलोंकी पाश्विक शक्तिसे लडाई की तथा यह योद्धा एक बार भी पराजित न होनेवाला था ।

प्रखर हिंदु धर्माभिमानी छत्रपति संभाजीराजा

शंभुराजाको जेरबंद किए जानेपर अनादर सहन करना

मुकर्रबखानने शंभुराजा एवं कवि कलशको जेरबंद कर हाथीपर बांधा । संभाजीराजाजीका, विदुषककी वेश-भूषामें, उस समय चित्रकारद्वारा बनाया गया चित्र हाथ पैरोंको लकडीमें फंसाकर रक्तरंजित अवस्थामें, अहमदनगरके संग्रहालयमें आज भी देखा जा सकता है । असंख्य यातनाएं सहनेवाले यह हिंदु राजा चित्रमें अत्यंत क्रोधित दिखाई देते हैं । संभाजीराजाजीके स्वाभिमानका परिचय इस क्रोधित भाव भंगिमासे ज्ञात होता है ।

परिणामोंकी चिंता न करते हुए बादशाहके समक्ष नतमस्तक न होना

जिस समय धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज एवं कवि कलशको लेकर मुकर्रबखान छावनीके पास आया, उस समय औरंगजेबने उसके स्वागतके लिए सरदारखानको भेजा । संभाजी महाराज वास्तवमें पकडे गए, यह देखकर बादशाहको अत्यानंद हुआ । अल्लाके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु बादशहा तख्तसे नीचे उतरा एवं घुटने टेककर ‘रूकता’ कहने लगा । कवि कलश बाजूमें ही खडे थे । यह दृष्य देखकर शीघ्र ही कवि कलशने एक काव्य कहा,

यावन रावन की सभा संभू बंध्यो बजरंग ।
लहू लसत सिंदूरसम खुब खेल्यो रनरंग ।।
जो रवि छवि लछत ही खद्योत होत बदरंग ।
त्यो तुव तेज निहारी ते तखत त्यज्यो अवरंग ।।

अर्थ : जिस प्रकार रावणकी सभामें हनुमानजीको लाया गया था, उसीप्रकार संभाजीराजाको औरंगजेबके समक्ष उपस्थित किया गया है । जैसे हनुमानजीकी देहपर सिंदुर शोभित होता है, वैसे ही भीषण युद्धमें देह रक्तसे सन गई है । इसलिए हे राजन, तुझे यह सुशोभित कर रहा है । जिसप्रकार सूरजको देखते ही जुगनूका प्रकाश नष्ट होता है, उसीप्रकार तेरा तेज देखकर औरंगजेबने अपने सिंहासनका त्याग किया है । इस कवितासे अपमानित होकर औरंगजेबने कवि कलशकी जीभ काटनेकी आज्ञा दी ।

बादशाहके समक्ष खडा करनेपर इखलासखानद्वारा बार बार अभिवादन करनेको कहनेपर भी शंभु राजाने तनिक भी गर्दन नहीं हिलाई एवं बादशहाको थोडा भी महत्त्व नहीं दिया । इसके विपरीत वे संतप्त होकर बादशाहकी ओर देख रहे थे । संतप्त बादशाहने उन्हें उसी अवस्थामें कारागृहमें डालनेका आदेश दिया ।

शंभुराजा एवं कवि कलशद्वारा शारीरिक एवं मानसिक यातनाएं सहन करना

शंभूराजा एवं कवि कलशकी आंखोंमें तपती सलाखें घुमाकर उनकी आंखें फोडी गई । तत्पश्चात दोनोकी जिह्वाएं काटी गई । उस दिनसे दोनोंने अन्न-जलका त्याग किया । मुसलमानी सत्ताओंकी परंपराके अनुसार यह कोई नई बात नहीं थी । उनको अत्यंत क्रूरता एवं निर्दयतासे शत्रुका नाश करनेकी धर्माज्ञा ही है; परंतु एक स्वतंत्र राजाको ऐसी ही क्रूर पद्धतिसे हलाहल करना अमानवीयताकी चरमसीमा है । यह घटना १७.२.१६८९ को घटी ।

तदुपरांत कविराजाके हाथ, पांव ऐसे एकएक अवयव तोडे गए एवं वे रक्तमांस नदीके किनारेपर फेंके गए । पंधरा मैलकी परिधिमें फैले इस बादशाहके तलपर अत्यधिक सन्नाटा फैला था । कवि कलशको हलाहल कर मारे जानेका समाचार सर्वत्र फैल गया था । मानों कवि कलशपर होनेवाले अत्याचार शंभुराजापर किए जानेवाले प्रत्येक अत्याचारका पूर्व प्रयोग ही होता था !

शंभुराजाको पक्के खंबेसे बांधा गया । दो बलवान राक्षसोंने शंभुराजाके शरीरमें बाघनख घुसाकर उनकी त्वचा टरटर फाड दी । चमडी छिली जा रही थी तथा टूटने लगी थी । शंभुराजाने प्राण बचानेके लिए क्रंदन नहीं किया; परंतु दांतसे दांत दबाकर वे उस अत्याचारको सहन करनेका प्रयास कर रहे थे । राजाका फाडा गया जीवित शरीर स्थानपर ही थडथड उड रहा था ।

अत्यधिक छल सहन कर इस्लाम न स्वीकारते

हुए आत्मबलिदान करनेवाले संभाजीराजाका अलौकिक सामर्थ्य !

संभाजीराजाने धर्मपरिवर्तन करना अस्वीकार किया; इसलिए औरंगजेबने संभाजी राजाके साथ अनगिनत छल किए । उनकी आंखोंमें मिर्च डाली । एकएक अवयव तोडे, उसमें नमक डाला, तो भी संभाजीराजाने हिंदु धर्मका त्याग नहीं किया । संभाजीराजामें मृत्युको भी लज्जा आने समान अत्यंत अलौकिक सामर्थ्य उस्फूर्त रूपसे अभिव्यक्त हुआ ।

 इतिहासमें धर्मके लिए अमर होनेवाले संभाजीराजा

अंतमें औरंगजेबने राजाजीकी आंखें फोड डालीं, जीभ काट दी, फिर भी राजाजीको मृत्यु स्पर्श न कर सकी । दुष्ट मुगल सरदारोंने उनको कठोर यातनाएं दीं । उनके अद्वितीय धर्माभिमानके कारण यह सब सहन करना पडा । १२ मार्च १६८९को गुढी पाडवा (नववर्षारंभ) था । हिंदुओंके त्यौहारके दिन उनका अपमान करनेके लिए ११ मार्च फाल्गुन अमावस्याके दिन संभाजीराजाजीकी हत्या कर दी गई । उनका मस्तक भालेकी नोकपर लटकाकर उसे सर्व ओर घुमाकर मुगलोंने उनका अत्यधिक अपमान किया । इस प्रकार पहली फरवरीसे ग्यारह मार्च तक ३९ दिन यमयातना सहन कर संभाजीराजाजीने हिंदुत्वके तेजको बढाया । धर्मके लिए अपने प्राणोंको न्योछावर करनेवाले, हिंदवी स्वराज्यका विस्तार कर पूरे हिंदुस्थानमें भगवा ध्वज फहरानेकी इच्छा रखनेवाले संभाजीराजा इतिहासमें अमर हो गए । औरंगजेब इतिहासमें राजधर्मको पैरों तले रौंदनेवाला अपराधी बन गया ।

संभाजीराजाजीके बलिदानके पश्चात महाराष्ट्रमें क्रांति हुई

संभाजीराजाजीके बलिदानके कारण महाराष्ट्र उत्तेजित हो उठा । पापी औरंगजेबके साथ मराठोंका निर्णायक संघर्ष आरंभ हुआ । ‘पत्ते-पत्तेकी तलवार बनी और घर-घर किला बन गया, घर-घरकी माताएं, बहनें अपने पतियोंको राजाजीके बलिदानका प्रतिशोध लेनेको कहने लगीं’ इसप्रकार उस कालका सत्य वर्णन किया गया है । संभाजीराजाजीके बलिदानके कारण मराठोंका स्वाभिमान पुन: जागृत हुआ, महारानी येसुबाई, तारारानी, संताजी घोरपडे, धनाजी जाधव, रामचंद्रपंत अमात्य, शंकराजी नारायण समान मराठा वीर-वीरांगनाओंका उदय हुआ । यह तीन सौ वर्ष पूर्वके राष्ट्रजीवनकी अत्यंत महत्त्वपूर्ण गाथा है । इससे इतिहासको एक नया मोड मिला । जनताकी सहायता और विश्वासके कारण मराठोंकी सेना बढने लगी और सेनाकी संख्या दो लाख तक पहुंच गई । सभी ओर प्रत्येक स्तरपर मुगलोंका घोर विरोध होने लगा । अंतमें २७ वर्षके निष्फल युद्धके उपरांत औरंगजेबका अंत हुआ और मुगलोंकी सत्ता शक्ति क्षीण होने लगी एवं हिंदुओंके शक्तिशाली साम्राज्यका उदय हुआ ।

शाहीर योगेशके शब्दोमें कहना है, तो…

‘देश धरमपर मिटनेवाला शेर शिवाका छावा था ।
महापराक्रमी परम प्रतापी एक ही शंभू राजा था ।।१।।

तेजःपुंज तेजस्वी आंखें निकल गई पर झुका नहीं ।
दृष्टि गई पर राष्ट्रोन्नतिका दिव्य स्वप्न तो मिटा नहीं ।।२।।

दोनों पैर कटे शंभूके ध्येय मार्गसे हटा नहीं ।
हाथ कटे तो क्या हुआ सत्कर्म कभी भी छूटा नहीं ।।३।।

जिह्वा काटी रक्त बहाया धरमका सौदा किया नहीं ।।
शिवाजीका ही बेटा था वह गलत राहपर चला नहीं ।।४।।

रामकृष्ण, शालिवाहनके पथसे विचलित हुआ नहीं ।।
गर्वसे हिंदु कहनेमें कभी किसीसे डरा नहीं ।।

वर्ष तीन सौ बीत गए अब शंभूके बलिदानको ।
कौन जीता कौन हारा पूछ लो संसारको ।।५।।

कोटि-कोटि कंठोंमें तेरा आज गौरवगान है ।
अमर शंभू तू अमर हो गया तेरी जयजयकार है ।।६।।

भारतभूमिके चरणकमलपर जीवन पुष्प चढाया था ।
है दूजा दुनियामें कोई, जैसा शंभू राजा था ।।७।।’
– शाहीर योगेश स्त्रोत : हिन्दू जनजागृति

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