Thursday, June 28, 2018

जानिए मांसाहार करने से कितनी होती है भयंकर हानी

🚩मांसाहार का सेवन करना हिंदू संस्कृति में वर्जित है क्योंकि यह मनुष्य का नहीं राक्षसी भोजन है। जो तरह-तरह के अमृत पूर्ण शाकाहारी उत्तम पदार्थों को छोड़ घृणित मांस आदि पदार्थों को खाते हैं ऐसे मनुष्य राक्षस के समान होते हैं। धार्मिक ग्रंथों में जीव हत्या को पाप बताया गया है इसलिए बहुत से लोग शाकाहार का अनुसरण करते हैं।
🚩सनातन संस्कृति में गौमांस को खाना पाप माना गया है क्योंकि जब भगवान विष्णु कृष्ण रूप में धरती पर अवतरीत हुए तो उन्होंने गौ प्रेम से लेकर गौ भक्ति तक बहुत सी लीलाएं की जिससे पृथ्वी वासियों को गौ धन की महिमा से अवगत करवाया जा सके। गाय का दूध, घी, गोबर और गोमूत्र अनेक रोगों की एक दवा है। माना जाता है कि गाय के इन बहुमूल्य द्रव्यों को खाने से शरीर में पापों का समावेश नहीं हो पाता। श्री कृष्ण अनेकों गायों को पालन-पोषण करते तथा उन्हें मां समान पूजते तभी तो उनको गोपाल कहा जाता है।
Know how terrible it is to eat meat
🚩ऋग्वेद में गाय को जगत माता का दर्जा दिया गया है। अनेकों पुराणों के रचियता वेद व्यास जी के अनुसार,  “गाय धरती की माता हैं और उनकी रक्षा में ही समाज कि उन्नति है। गाय की  देख-भाल करने वाले को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।”
🚩महाभारत में वर्णित है, “जो व्यक्ति सौ वर्षों तक लगातार अश्वमेघ यज्ञ करता है और जो व्यक्ति मांस नहीं खाता, उनमें से मांसाहार का त्यागी ही विशेष पुण्यवान माना जाता है।”
🚩मनुस्मृति में वर्णित है, “जो व्यक्ति अपने सुख के लिए निरपराध प्राणियों की हत्या करता है, वह इस लोक और परलोक में कहीं भी सुख प्राप्त नहीं करता। “
🚩इसके अतिरिक्त यदि चमड़े के पात्र में रखा घी, तेल, जल, हींग आदि खाते हैं तो भी आप शाकाहारी नहीं हैं।
🚩अब हम आपको मांसाहार के नुकसान का वैज्ञानिक दृष्टिकोण बताते हैं जिसके अनुसार मांस हमारे शरीर के लिए नुकसानदेय होता है।
*🚩1.* मांस खाने वाले ज्यादातर लोगों में चिडचिडापन और ज्यादा क्रोध होने के लक्षण पाए जाते हैं। ऐसे लोग स्वभाव से बहुत ज्यादा उग्र होते हैं। मांस खाने से आपके शरीर और मन दोनों अस्वस्थ बन जाते हैं।
*🚩2.* मांसाहारी खाने वाले लोग शाकाहारी की तुलना में गंभीर बिमारियों की चपेट में ज्यादा आते हैं। इन बीमारियों में हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटिज, दिल की बीमारी, कैंसर, गुर्दे का रोग, गठिया और अल्सर शामिल हैं।
*🚩3.* विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार मांसाहार का सेवन करना हमारे शरीर के लिए उतना ही नुकसानदायक होता है जितना कि धूम्रपान असर करता है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पका हुआ मांस खाने से कैंसर का खतरा बना रहता है।
*🚩4.* मांसाहार की तुलना में शाकाहारी भोजन सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। शाकाहारी भोजन करने से मनुष्य स्वस्थ, दीर्घायु, निरोग और तंदरुस्त बनाता है।
*🚩5.* आप सभी ने बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू का नाम सुना होगा। यह बीमारी मुर्गे और सुअरों के जरिए मनुष्यों तक पहुंचती है। यह बीमारी हमारे शरीर तक तभी पहुंचती है जब हम इस बीमारी से ग्रस्त जीव को खाते हैं। हर साल इसकी वजह से लाखों लोग मौत की चपेट में आ जाते हैं।
*🚩6.* दुनिया के एक चौथाई प्रदूषण का कारण मांस है। यदि विश्व के लोग मांस खाना छोड दें तो 70 प्रतिशत तक प्रदूषण कम हो सकता है।
*🚩7.* मांस खाने से मनुष्य की उम्र भी कम होती है।
*🚩8.* विज्ञान के अनुसार शाकाहारी लोग मासांहार करने वालों की तुलना में डिप्रेशन का शिकार कम बनते हैं।
*🚩9.* मांसाहारी भोजन में गरम मसालों को स्वाद बढ़ाने के लिए डाला जाता है। इसे पचाने के लिए शरीर के अंगों पर ज्यादा दबाव पड़ता है।
🚩अनजान फल, बहुत छोटा फल, जिस फल का स्वाद बदल गया हो, खट्टापन आ जाए, बासी दही, मट्ठा, वर्षा के साथ गिरने वाले ओले, द्विदल आदि शाकाहारी व्यक्ति को नहीं खाने चाहिए। इनके खाने से मांसाहार का दोष तो लगता ही है, उदर में पहुंच कर ये अनेक प्रकार के रोग पैदा कर देते हैं। हमारा धर्म हमें जो खाने की अनुमति देता है वो सब भक्ष्य है हमारे लिए शाकाहार है। चाहे वो दही हो या अंकुरित मूंग या दूध, ये सब खाकर भी आप यदि हिन्दू हैं तो शाकाहारी ही रहेंगें।
https://www.hindujagruti.org/hindi/hinduism/hindu-lifestyle/hindu-diet/harmful-effects-of-non-veg
🚩मनुष्य मूलतः शाकाहारी है। ज्यादा मांसाहार से चिड़चिड़ेपन के साथ स्वभाव उग्र होने लगता है। यह वस्तुतः तन के साथ मन को भी अस्वस्थ कर देता है। प्रकृति ने कितनी चीजें दी हैं जिन्हें खाकर हम स्वस्थ रह सकते हैं फिर मांस ही क्यों ?
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Wednesday, June 27, 2018

ईसाई पादरियों ने एक ही महिला का 380 बार किया बलात्कार, छाया सन्नाटा

🚩 कैथलिक चर्च कि दया, शांति और कल्याण कि असलियत दुनिया के सामने उजागर हो ही गयी है । मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता कि पोल खुल चुकी है । चर्च  कुकर्मो कि  पाठशाला व सेक्स स्कैंडल का अड्डा बन गया है । लेकिन फिर भी महान हिन्दूधर्म के मंदिरो एवं हिन्दू धर्मगुरुओं को ही मीडिया और सेक्युलर बदनाम करते है ।
🚩केरल के कोट्टयम से एक चर्च में पांच दुष्कर्मी पादरियों (फादर जीजो जे अब्राहम, फादर जॉब मैथ्यू, फादर जॉनसन वी मैथ्यू, फादर जेसे के जॉर्ज और फादर अब्राहम ) ने एक विवाहित महिला का कई साल तक यौन शोषण किया महिला के पति ने चर्च को चिट्ठी लिखकर आठ पादरियों के खिलाफ शिकायत की है हालांकि उसने सिर्फ पांच पादरियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। अपने शिकायत में पीड़िता के पति ने लिखा है कि पादरियों ने मिलकर उसकी पत्नी का 380 बार यौन शोषण किया।
🚩इंडियन एक्सप्रेस कि रिपोर्ट के मुताबिक पांचों दुष्कर्मी पादरी कोट्टयम में स्थिति मालंकारा ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च के धर्माधिकार में आने वाले देश के चार क्षेत्रों के विभिन्न इलाकों में काम कर रहे थे। एक दुष्कर्मी पादरी चर्च के दिल्ली अधिकार क्षेत्र के लिए काम करने वाली शाखा से जुड़ा था।
Christian pastors have done the same
 woman 380 times rape, shadow silence

🚩पीड़िता के पति कहा कि विवाह से पहले चर्च के एक पादरी ने उसकी पत्नी का यौन शोषण किया था।
🚩बाद में पीड़िता ने जब विवाह से पहले रहे प्रेम संबंधों को लेकर कन्फेशन किया तो कन्फेशन सुनने वाले पादरी ने भी उसका यौन शोषण किया। इसके लिए पादरी ने उसकी पत्नी को धमकी दी कि वह उसके पति को इस बारे में सबकुछ बता देगा।
🚩इतना ही नहीं इस पादरी ने कुछ तस्वीरों के जरिए पीड़िता को ब्लैकमेल कर उसे दूसरे पादरी को सौंप दिया। और दूसरे पादरी ने भी उसकी पत्नी का यौन शोषण किया। पीड़िता के पति का कहना है कि चर्च से जुड़े कुछ नामी-गिरामी लोगों ने उस पर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया।
🚩इतना ही नही है ईसाई पादरी अधिक्तर छोटे #बच्चे- बच्चियों के साथ भी #दुष्कर्म करते हैं ।
🚩आपको बता दें कि अभी हाल ही में #आस्ट्रेलिया की कैथोलिक चर्च ने #सेक्सुअल अब्यूज (बच्चों का यों शोषण) के मामले में करीब 21 करोड़ 20 लाख 90 हजार अमेरिकी डॉलर (1426 करोड़ रुपए) का हर्जाना दिया है।
🚩कन्नूर (केरल) के कैथोलिक चर्च की एक  नन सिस्टर मैरी चांडी  ने #पादरियों और #ननों का #चर्च और उनके शिक्षण संस्थानों में व्याप्त व्यभिचार का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘ननमा निरंजवले स्वस्ति’ में किया है कि ‘चर्च के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता के बजाय #वासना से भरी थी ।
🚩ईसाई पादरी धर्मगुरु बनकर बैठे हैं और बच्चों के साथ दुष्कर्म करते हैं जब #अदालत उन पर जुर्म लगाती है तब बयान देते हैं कि बच्चों का यौन शोषण करने कि धार्मिक स्वतंत्रता है ऐसे ईसाई के धर्मगुरु लोगों का क्या भला करेंगे?
🚩फिलॉसफर नित्शे ने लिखा है कि मैं ईसाई धर्म को एक अभिशाप मानता हूँ उसमें आंतरिक विकृति की पराकाष्ठा है । वह द्वेषभाव से भरपूर वृत्ति है । इस भयंकर विष का कोई मारण नहीं । ईसाईत गुलाम, क्षुद्र और चांडाल का पंथ है ।

🚩इतना सब कुछ होते हुए भी उनके खिलाफ #मीडिया कुछ नही बोलती बल्कि उनका पक्ष लेती है क्योंकि 90% मीडिया ईसाई मिशनरियों के फंड से चलती है ।
🚩लेकिन जब कोई पवित्र हिन्दू साधु-संत या हिन्दू संगठन या सरकार भोले-भाले #हिन्दुओं को #पैसा, #दवाई, कपड़े आदि देकर धर्मान्तरण के खिलाफ मुहिम चलाते हैं तो देशद्रोही और बिकाऊ मीडिया उनके खिलाफ देश में एक माहौल बनाकर उनकी छवि को धूमिल कर देती हैं ।
🚩सभी भारतवासी बलात्कारी पादरियों और विदेशी फंड से चलने वाली मीडिया से सावधान रहें ।
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Tuesday, June 26, 2018

आप भी जानिए ‘वंदे मातरम्’ की कैसे हुई थी रचना, रचनाकार की आज है जयंती

26 June 2018

🚩‘वंदे मातरम्’ इस वंदनीय गीतकी रचना अक्षयनवमी अर्थात् कार्तिक शुक्ल नवमी (७.११.१८७५) के दिन बंकिमचंद्र चटोपाध्यायजीने की । भारतीयोंको प्रेरित करनेवाल, स्वतंत्रता संग्राममें प्रेरणादायी बने ‘वंदे मातरम्’ के संदर्भमें जानकारी प्रस्तुत है !

🚩‘वंदे मातरम्’की उत्प्रेरणा और मार्गक्रमण
You also know how the 'Vande Mataram' was
composed, the creation of today is Jayanti

🚩अनेक प्रमाणोंद्वारा अब सिद्ध हुआ है कि, ‘वंदे मातरम्’ यह गीत नवंबर 1875 में रचा गया । ‘आमार दुर्गोत्सव’ तथा ‘एकटी गीत’, ये बंकिमचंद्रजीके दो लेख और ‘कमलाकान्तेर ऐसो ऐसो’ यह पूर्णचंद्र चटोपाध्यायजीका लेख, इन तीनों लेखोंके आधारपर वर्ष 1875 की दुर्गापूजामें अष्टमीकी रात्रि बंकिमचंद्रजीको भारतमाताके दर्शन हुए होंगे । उन्हींके शब्दोंमें उसे पढना चाहिए – मैं अपनी नौकामें विहार कर रहा था । मैंने क्षितिजके छोरपर अत्यंत दूर लहरोंपर देखा, तो मातृदेवताकी स्वर्णमूर्ति थी । हां, वही मेरी माता, मेरी मातृभूमि थी । भूमिके रूपमें माता, पृथ्वीके रूपमें असंख्य रत्नोंसे अलंकृत । उसकी रत्नजडित दशभुजाएं दसों दिशाओंमें फैली हुई थीं । उन दसों भुजाओंमें विविध शस्त्र और अस्त्र विभिन्न शक्तियोंके रूपमें चमक रहे थे । उसके पैरोंतले शत्रु छिन्न-भिन्न और हीन-दीन होकर कुचला गया था । उसका शक्तिशाली वाहन सिंह उसके चरणोंके समीप ही शत्रुको खींचकर नीचे गिराता हुआ दिखाई दे रहा था । अरिमर्दिनी, सिंहवाहिनी माते, तुम्हें मेरा प्रणाम ! वंदे मातरम् !!’

🚩मनकी ऐसी उन्नत भावावस्थामें बंकिमचंद्रजी ने यह गीत लिखकर पूरा तो किया, परंतु उस कालमें अधिकांश लोगोंको वह जंचा नहीं । बंकिमचंद्रजीके घर अनेक लेखकमित्र अपने- अपने नवीन लेखनके विषयमें चर्चा करने हेतु एकत्र आते थे । इस गीतपर भी भली चर्चा हुई । किसीने कहा कि, इसमें श्रुतिमाधुर्य नहीं, तो किसीने कहा, ‘‘इसका व्याकरण बिगड गया है । ‘सस्य शामलाम’, ‘भुजैधृत’, ‘द्वित्रिंशत्कोटी’ जैसे शब्द रसहानि कर रहे हैं । इतना अच्छा गीत है, परंतु आधा बंगाली और आधा संस्कृत भाषामें लिखकर पूरा बिगाड दिया है ।’’ बंकिमचंद्रजीने उनसे इतना ही कहा कि, आपको न भाया हो, तो मत पढिए । मुझे जो अच्छा लगा, वही मैंने लिखा है । लोगोंको क्या अच्छा लगता है, क्या भाता है, इसीका विचार कर क्या मैं लिखूं ? उसी कालावधिमें वे और उनके बडे बंधु संजीबचंद्र ‘बंगदर्शन’के संपादक थे । ‘बंगदर्शन’की नवीन पत्रिकाके मिलानका काम अंतिम स्तरपर था, तब उसमें कुछ स्थान शेष था । बंकिमचंद्रजीके पटलके खंडमें (दराजमें) रखी कविताकी व्यवस्थापकोंने परिशिष्टके रूपमें मांग की । कुछ रुष्ट होकर ही उन्होंने कविता देनेके लिए हां की । एक बार उनकी बेटीने भी बताया, ‘लोगोंको यह गीत कुछ भाया नहीं । मुझे भी अधिक नहीं भाया’ । उन्होंने कहा, ‘‘यह कविता अच्छी है अथवा नहीं, इसका पता अब नहीं चलेगा, कुछ समयोपरांत उसका महत्त्व लोगोंको समझमें आएगा । उस समय कदाचित मैं जीवित भी न रहूं; परंतु आप रहेंगे । एक दिन ऐसा आएगा कि पूरे देश और देशवासियोंके मुखमें यह गीत वेदमंत्रसमान होगा ।’’

🚩यथार्थमें वैसा ही होना था । केवल 56 वर्षकी आयुमें 14-15 उपन्यास, गद्य लेखनके कुछ ग्रंथ, कविता संग्रह और ‘वंदे मातरम्’ यह महामंत्र भारतवासियोंके लिए छोडकर बंकिमचंद्र स्वर्ग सिधार गए । उनकी पूरी आयुमें गीतकी धुन बनाने, स्वरलेखन करने जैसी बातें हुर्इं अवश्य; परंतु खरे अर्थमें वर्ष 1896 में कलकत्ता (आजका कोलकाता) में हुए कांग्रेसके अधिवेशनमें उनका कार्य लोगोंके सामने आया । खुले अधिवेशनमें गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोरजीने उसे गाया; परंतु उसके 9 वर्ष उपरांत ही बंगालके विभाजनके समय वह जनमानसमें घर करने लगा । प्रशासकीय सुविधाओंके लिए किया गया विभाजन इतना महंगा पडेगा, ऐसा लॉर्ड कर्जनने सोचा भी न था । वर्ष 1907 में अरविंद घोषने लिखा कि बंगालके लोग विभाजनके प्रति उदासीन थे । जब वे प्रेरणाके लिए यहां-वहां देख रहे थे, तब उसी मंगलक्षण किसीने ‘वंदे मातरम्’ कहा । लोगोंको मंत्र मिल गया और एक ही दिनमें पूरा राष्ट्र ‘देशभक्ति’ नामक धर्मका अनुयायी बन गया । ‘उत्तिष्ठ, जाग्रत’ (उठो, जागो) ऐसा संदेश ‘वंदे मातरम्’ने दिया । धार्मिक संकल्पनोंसे देशभक्ति, मांगल्य और मातृपूजनकी भावना जोडते हुए एक महान मंत्र बंकिमचंद्रजीने राष्ट्रको दिया ।

🚩भारतीयोंको प्रेरित करनेवाले ‘वंदे मातरम्’पर बंदी लानेवाला ब्रिटिश शासन

🚩‘वंदे मातरम्’ ये शब्द केवल बंगाली लोगोंके होंठोंपर ही नहीं, अपितु चूडियोंकी कलाकृतिमें (नक्काशीमें), कुर्ते और साडियोंके छोरोंपर (किनारोंपर) तथा दियासलाईके वेष्टनोंपर (कवरपर) भी दिखाई देने लगे । यह गीत राष्ट्रीय गीतके रूपमें सर्वत्र गाया जाने लगा । उसकी बढती लोकप्रियताके कारण वर्ष 1908 के आसपास ब्रिटिशने इस गीतके गायनपर बंदी लगा दी । विशेष बात तो यह थी कि ब्रिटिश और फ्रांसीसी ग्रामोफोनके आस्थापनोंने (कंपनियोंने) ही एवं उनके दलालोंने इस गीतका महत्त्व तथा लोकप्रियताको पहचानकर ग्रामोफोन ध्वनिमुद्रिकाएं (रेकॉर्ड्स्) बनाना आरंभ किया । आरक्षकोंने (पुलिसने) धावा बोलकर इन प्रतिष्ठानोंकी अधिकांश सामग्री नष्ट की । दुर्भाग्यसे रविंद्रनाथजीकी ध्वनिमुद्रिकाओंको छोडकर इस आरंभिक कालमें किया गया अन्य सर्व ध्वनिमुद्रण नष्ट हुआ है ।

🚩स्वतंत्रता संग्राममें प्रेरणादायी बने ‘वंदे मातरम्’पर लादी  गई बंदी देशवासियोंद्वारा नकारी जाना

🚩‘केवल दो ही शब्दोंवाले इन मंत्रवत् अक्षरोंकी जादू और मोहिनी इतनी थी कि सर्व प्रकारकी बंदी एवं बंधनोंको नकारकर यह गीत बंगालसे बाहर निकलकर देशभरमें सर्वत्र जन-जनके होठोंपर आया । सार्वजनिक सभाएं, सम्मेलन, आंदोलन और संग्राम, चलचित्रके गीत एवं नाट्यपद, एकल और वृंद गान, शास्त्रीय संगीतके कार्यक्रम (महफिलें), वाद्यवृंदका गायन जैसे अनेकानेक माध्यमोंद्वारा निरंतर लोगोंके बीच यह गीत गाता-बजता रहा । स्वतंत्रतापूर्व कालमें अनेकोंने यह गीत मुद्रित कर रखा । स्वतंत्रता संग्राममें ‘वंदे मातरम्’ यह प्रेरक घोषणा बनी, तो क्रांतिकारियोंके मुखमें वह सांकेतिक शब्द बन गया । मादाम कामाद्वारा बनाए गए कांग्रेसके प्रथम ध्वजपर ‘वंदे मातरम्’ अक्षर लिखे गए ।
संदर्भ : हिंदी मासिक सनातन प्रभात
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