Sunday, November 4, 2018

पर्वों के पुंज दीपावली में धनप्राप्ति एवं मंत्र सिद्धि कैसे करें..?

4 नवम्बर 2018 www.azaadbharat.org

🚩हमारी सनातन संस्कृति में व्रत, त्यौहार और उत्सव अपना विशेष महत्व रखते हैं । सनातन धर्म में पर्व और त्यौहारों का इतना बाहुल्य है कि यहाँ के लोगों में 'सात वार नौ त्यौहार' की कहावत प्रचलित हो गयी । इन पर्वों तथा त्यौहारों के रूप में हमारे ऋषियों ने जीवन को सरस और उल्लासपूर्ण बनाने की सुन्दर व्यवस्था की है । प्रत्येक पर्व और त्यौहार का अपना एक विशेष महत्व है, जो विशेष विचार तथा उद्देश्य को सामने रखकर निश्चित किया गया है ।

🚩ये पर्व और त्यौहार चाहे किसी भी श्रेणी के हों तथा उनका बाह्य रूप भले भिन्न-भिन्न हो, परन्तु उन्हें स्थापित करने के पीछे हमारे ऋषियों का उद्देश्य था – समाज को भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर लाना ।

🚩उत्तरायण, शिवरात्रि, होली, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, नवरात्रि, दशहरा आदि त्यौहारों को मनाते-मनाते आ जाती है, पर्वों की हारमाला-दीपावली । पर्वों के इस पुंज में 5 दिन मुख्य हैं- #धनतेरस, #काली चौदस, #दीपावली, #नूतन वर्ष और #भाईदूज । #धनतेरस से लेकर #भाईदूज तक के ये 5 दिन आनंद उत्सव मनाने के दिन हैं ।

🚩शरीर को रगड़-रगड़ कर स्नान करना, नए वस्त्र पहनना, मिठाइयाँ खाना, नूतन वर्ष का अभिनंदन देना-लेना । भाईयों के लिए बहनों में प्रेम और बहनों के प्रति भाइयों द्वारा अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करना – ऐसे मनाए जाने वाले 5 दिनों के #उत्सवों के नाम है '#दीपावली पर्व ।'
How to make money and earn mantra in
Deepavali, the festival of festivals ..?

🚩#धनतेरसः #धन्वंतरि महाराज खारे-खारे सागर में से औषधियों के द्वारा #शारीरिक स्वास्थ्य-संपदा से #समृद्ध हो सके, ऐसी स्मृति देता हुआ जो पर्व है, वही है #धनतेरस। यह पर्व #धन्वंतरि द्वारा प्रणीत आरोग्यता के सिद्धान्तों को अपने जीवन में अपना कर सदैव #स्वस्थ और प्रसन्न रहने का संकेत देता है ।

🚩#धनतेरस – #धनतेरस के दिन संध्या के समय घर के बाहर हाथ में जलता हुआ दिया लेकर भगवान यमराज की प्रसन्नता हेतु उन्हें इस मंत्र से #दीपदान करना चाहिए । इससे अकाल मृत्यु नहीं होती । 
#मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।।
(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड)
यमराज को दो दीपक दान करने चाहिए तथा #तुलसी के आगे #दीपक रखना चाहिए, इससे दरिद्रता मिटती है । 

🚩#काली चौदसः #धनतेरस के पश्चात आती है 'नरक चतुर्दशी (काली चौदस)'। भगवान #श्रीकृष्ण ने नरकासुर को क्रूर कर्म करने से रोका । उन्होंने #16 हजार कन्याओं को उस दुष्ट की कैद से छुड़ाकर अपनी शरण दी और नरकासुर को यमपुरी पहुँचाया । नरकासुर प्रतीक है – वासनाओं के समूह और अहंकार का। जैसे, #श्रीकृष्ण ने उन #कन्याओं को अपनी शरण देकर नरकासुर को यमपुरी पहुँचाया, वैसे ही आप भी अपने चित्त में विद्यमान नरकासुररूपी अहंकार और वासनाओं के समूह को #श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दो, ताकि आपका अहं यमपुरी पहुँच जाए और आपकी असंख्य वृत्तियाँ श्री #कृष्ण के अधीन हो जाएं । ऐसा स्मरण कराता हुआ पर्व है #नरक चतुर्दशी।

🚩#नरक चतुर्दशी (काली चौदस) के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर #तेल-मालिश (तैलाभ्यंग) करके स्नान करने का विधान है । 'सनत्कुमार संहिता' एवं 'धर्मसिंधु' ग्रंथ के अनुसार इससे नारकीय यातनाओं से रक्षा होती है ।

🚩#काली चौदस और #दीपावली की रात का मुहूर्त जप-तप  के लिए अत्यंत उत्तम माना जाता है । #नरक चतुर्दशी की रात्रि में मंत्रजप करने से #मंत्र सिद्ध होता है ।

🚩इस #रात्रि में #सरसों के तेल अथवा घी के दीये से काजल बनाना चाहिए । इस काजल को आँखों में आँजने से किसी की बुरी नजर नहीं लगती तथा आँखों का तेज बढ़ता है ।

🚩#दीपावलीः फिर आता है आता है #दीपों का #त्यौहार – दीपावली । दीपावली की रात्रि को मां सरस्वती और मां लक्ष्मी का #पूजन किया जाता है ।

🚩#लक्ष्मीप्राप्ति की साधना:-

🚩#दीपावली के दिन घर के मुख्य दरवाजे के दायीं और बायीं ओर गेहूँ की छोटी-छोटी ढेरी लगाकर उस पर दो दीपक जला दें । हो सके तो वे रात भर जलते रहें, इससे आपके #घर में #सुख-सम्पत्ति की वृद्धि होगी ।

🚩#मिट्टी के कोरे दीयों में कभी भी तेल-घी नहीं डालना चाहिए। दीये 6 घंटे पानी में भिगोकर रखें, फिर इस्तेमाल करें । नासमझ लोग कोरे दीयों में घी डालकर बिगाड़ करते हैं ।

🚩#लक्ष्मीप्राप्ति की साधना का एक अत्यंत सरल और केवल तीन दिन का प्रयोगः #दीपावली के दिन से तीन दिन तक अर्थात् #भाईदूज तक एक स्वच्छ कमरे में अगरबत्ती या धूप (केमिकल वाली नहीं-गोबर से बनी) करके #दीपक जलाकर, शरीर पर #पीले वस्त्र धारण करके, ललाट पर #केसर का तिलक कर, स्फटिक मोतियों से बनी माला द्वारा नित्य प्रातः काल निम्न मंत्र की मालाएं जपें ।

"ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद् महै।
अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।।"

🚩अशोक के वृक्ष और नीम के पत्ते में रोगप्रतिकारक शक्ति होती है । प्रवेशद्वार के ऊपर #नीम, #आम, अशोक आदि के पत्ते को #तोरण (#बंदनवार) बाँधना मंगलकारी है। 

 🚩#नूतन वर्षः #दीपावली वर्ष का आखिरी दिन है और #नूतन वर्ष प्रथम दिन है । यह दिन आपके जीवन की डायरी का पन्ना बदलने का दिन है ।

🚩#दीपावली की रात्रि में #वर्षभर के कृत्यों का सिंहावलोकन करके आनेवाले नूतन वर्ष के लिए #शुभ संकल्प करके सोयें । उस संकल्प को पूर्ण करने के लिए #नववर्ष के प्रभात में भगवान, अपने माता-पिता, गुरुजनों, सज्जनों, साधु-संतों को #प्रणाम करके तथा अपने सदगुरु के श्रीचरणों में जाकर #नूतन वर्ष के नये प्रकाश, नये उत्साह और नयी प्रेरणा के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। जीवन में नित्य-निरंतर नवीन रस, आत्म रस, आत्मानंद मिलता रहे, ऐसा अवसर जुटाने का दिन है '#नूतन वर्ष ।'

🚩 भाईदूजः उसके बाद आता है भाईदूज का पर्व । दीपावली के #पर्व का पाँचनाँ दिन । #भाईदूज भाइयों की बहनों के लिए और बहनों की भाइयों के लिए सदभावना बढ़ाने का दिन है ।

🚩हमारा मन एक #कल्पवृक्ष है। मन जहाँ से फुरता है, वह चिदघन चैतन्य सच्चिदानंद परमात्मा सत्यस्वरूप है। हमारे मन के संकल्प आज नहीं तो कल सत्य होंगे ही। किसी की बहन को देखकर यदि मन दुर्भाव आया हो तो #भाईदूज के दिन उस बहन को अपनी ही बहन माने और बहन भी पति के सिवाये 'सब पुरुष मेरे भाई हैं' यह भावना #विकसित करे और भाई का कल्याण हो – ऐसा #संकल्प करे। भाई भी बहन की उन्नति का संकल्प करे। इस प्रकार #भाई-बहन के परस्पर प्रेम और उन्नति की भावना को बढ़ाने का #अवसर देने वाला #पर्व है '#भाईदूज'।

🚩जिसके #जीवन में #उत्सव नहीं है, उसके जीवन में #विकास भी नहीं है । जिसके जीवन में उत्सव नहीं, उसके जीवन में नवीनता भी नहीं है और वह आत्मा के करीब भी नहीं है ।

🚩#भारतीय #संस्कृति के #निर्माता ऋषिजन कितनी दूरदृष्टिवाले रहे होंगे ! महीने में अथवा वर्ष में एक-दो दिन आदेश देकर कोई काम मनुष्य के द्वारा करवाया जाये तो उससे मनुष्य का विकास संभव नहीं है। परंतु #मनुष्य यदा कदा अपना विवेक जगाकर उल्लास, आनंद, प्रसन्नता, #स्वास्थ्य और #स्नेह का गुण विकसित करे तो उसका #जीवन विकसित हो सकता है ।

🚩अभी कोई भी ऐसा #धर्म नहीं है, जिसमें इतने सारे #उत्सव हों, एक साथ इतने सारे लोग #ध्यानमग्न हो जाते हों, भाव-समाधिस्थ हो जाते हों, #कीर्तन में झूम उठते हों। जैसे, स्तंभ के बगैर #पंडाल नहीं रह सकता, वैसे ही #उत्सव के बिना धर्म विकसित नहीं हो सकता। जिस धर्म में खूब-खूब अच्छे उत्सव हैं, वह धर्म है सनातन धर्म। #सनातन #धर्म के बालकों को अपनी सनातन वस्तु प्राप्त हो, उसके लिए उदार चरित्र बनाने का जो #काम है वह पर्वों, उत्सवों और सत्संगों के #आयोजन द्वारा हो रहा है।

🚩पाँच पर्वों के #पुंज इस #दीपावली महोत्सव को लौकिक रूप से मनाने के साथ-साथ हम उसके #आध्यात्मिक महत्त्व को भी समझें, यही लक्ष्य हमारे पूर्वज #ऋषि मुनियों का रहा है।

🚩इस पर्वपुंज के निमित्त ही सही, अपने #भगवान, #ऋषि-मुनियों के, संतों के दिव्य ज्ञान के आलोक में हम अपना अज्ञानांधकार मिटाने के मार्ग पर शीघ्रता से अग्रसर हों – यही इस #दीपमालाओं के पर्व #दीपावली का संदेश है।
( स्तोत्र : संत श्री #आसारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य "#पर्वो का पुंज दीपावली" से )

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Friday, November 2, 2018

कोई भी भारतीय चायनीज व देवी-देवताओं के चित्र वाले पटाखे न फोड़े..

2 नवम्बर 2018

🚩चीनी पटाखों के कारण होनेवाला वायुप्रदूषण एवं भारत के पैसे चीन में नही जाए और चीन की घुसपैठ को ध्यान में लेकर प्रशासन को स्वयं ही इन पटाखोंपर प्रतिबंध लगा देना चाहिए !

दीपावली में आकाशदीप लगाने का महत्त्व

🚩दीप आनंद का प्रतीक है । व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्रका जीवन आनंदमय हो, साथ ही सभी का जीवन आनंद से परिपूर्ण हो जाए; इसलिए हम आकाशदीप लगाते हैं । दीप लगाने से अंधकार का नाश होता है । ‘दीपावली के त्योहारद्वारा अन्योंको आनंद प्राप्त हो, क्या ऐसे कृत्य हम करते हैं’, हमें इसका चिंतन करना चाहिए । दुर्भाग्यवश इसका उत्तर ‘नहीं’ ही है । दीपावली के निमित्त हमारे किसी कृत्यद्वारा अन्यों को दुःख होगा, तो हम पाप के भागी होंगे । अतएव ये सब रोककर देवता की कृपा संपादन करें ।

पटाखों के माध्यम से होनेवाला
देवता का अनादर रोकने का निश्चय करें !

None of the Indian Chinese and fireworks with paintings of deities.

🚩दीपावली में कुछ लोग देवताओं के छायाचित्रवाले पटाखे फोडते हैं । देवता का छायाचित्र प्रत्यक्ष देवता ही हैं । जिस समय हम पटाखे फोडते हैं, उस समय उस छायाचित्र के टुकडे होते हैं, अर्थात हम उस देवता का अनादर ही करते हैं । श्रीलक्ष्मी के छायाचित्रवाले, साथ ही राष्ट्रभक्तों के छायाचित्रवाले पटाखे फोडना, इससे हमें पाप लगता है । इस दीपावली को हम ऐसे पटाखे खरीदेंगे ही नहीं। साथ ही ऐसे पटाखे खरीदनेवालों का प्रतिरोध कर उनका प्रबोधन करेंगे, वास्तव में यह देवता की भक्ति है । ऐसा करनेसे हमपर देवता की कृपा होगी । बच्चो, क्या हमारे माता-पिता के छायाचित्रवाले पटाखे हम फोडेंगे ? नहीं न ! देवता हम सभी की रक्षा करते हैं । हमें शक्ति एवं बुदि्ध प्रदान करते हैं; अतएव इस दीपावली को हम यह अनादर रोकने का निश्चय करें ।

दीवाली में ‘पटाखे फोडना’ इस
प्रथा के पीछे कोई भी शास्त्रीयआधार नहीं

🚩दीवाली को पटाखे फोडने के पीछे कोई भी शास्त्रीय आधार नहीं है । यह एक अनुचित किंतु प्रचलित प्रथा है । यह अनिष्ट एवं विकृत प्रथा हमें हर हाल में बंद करनी ही है । इसके विषय में हम चिंतन करेंगे । क्या पटाखे फोडने से अन्यों को आनंद की प्राप्ति होती है ? ऐसा बिल्कुल नहीं । तो ऐसी प्रथाओं का हम अनुकरण क्यों करें ? इसके विपरीत ऐसी प्रथाओं के कारण लोग अपने त्योहारों से त्रस्त हो गए हैं तथा त्योहार के विषय में भ्रांत धारणा बन गई है । उसे दूर करना, वास्तव में यही खरी दीपावली है । इसी कारण लोगों को धर्मशिक्षा प्रदान करनी चाहिए ।

पटाखे फोड़ने से होनेवाले हानिकारक परिणाम:-

🚩अ. शारीरिक चोट पहुंचना : पटाखे फोडने से अनेक व्यक्तियों को शारीरिक चोट पहुंचती हैं । आखों को चोट पहुंचना अथवा जलना इस प्रकार की अनेक घटनाएं घटती हैं । इससे अन्यों को दुःख होता हैं । तो क्या अन्यों को दुःख देकर हम दीपावली मनाएं ? कदापि नहीं, यह घोर पाप है ।

🚩आ. छोटे बच्चे एवं वृद्ध व्यक्तियों को कष्ट होना :बडे पटाखे फोडने से होनेवाले कर्णकर्कश / कर्णविदारक ध्वनि के कारण छोटे बच्चे डर जाते हैं । उनके मनपर हानिकारक परिणाम होते हैं । वृद्ध व्यक्तियों को भी इस ध्वनि से कष्ट होता है । क्या इस प्रकार अन्यों को कष्ट देकर हम दीपावली मनाएं ? हरएक में ईश्वर हैं । ऐसे आचरणद्वारा हम हर एकमें विद्यमान ईश्वरीय तत्त्व को कष्ट देते हैं । अतः इस बात का विचार कर इस कुप्रथा को रोककर हम दीपावली मना सकते हैं ।

🚩इ. पटाखों के धुएं के कारण श्वास लेने में कष्ट होना : पटाखों के धुएं के कारण श्वास लेने में कष्ट होता है । साथ ही जिन्हें श्वास लेने में कष्ट है, ऐसे लोगों के कष्ट में वृद्धि होती है तथा ऐसे लोग इस कालावधि में ऐसे स्थानसे कहीं अन्य रहने के लिए चले जाते हैं । अतः उन्हें कष्ट न हों; इसलिए हमें ये सब रोकना ही होगा ।

🚩ई. पर्यावरण पर होनेवाले प्रतिकूल परिणाम ! : हम ‘पर्यावरण’ विषय का अभ्यास करते हैं । हरएक को पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए, यह हमें ज्ञात है । दीपावली की कालावधि में वातावरण में प्राणवायु की मात्रा अल्प होकर ‘कार्बन-डाइ-ऑक्साईड’की मात्रा बढती है । अतएव लोगों को शुद्ध हवा नहीं मिलती एवं पर्यावरण का ह्रास होता है । तो क्या हम ‘पर्यावरण’ विषय केवल गुण प्राप्त करने हेतु ही सीखेंगे ?

🚩उ. धननाश होना : आज हमारे देश की जनता भ्रष्टाचार, कंगाली जैसी अनेक बातों से त्रस्त हैं । ऐसे समय अनुचित बातों के लिए क्या हम अपना धन व्यय करेंगे ? पटाखे फोडना, अर्थात हमारा ही धन जलाना है । यह धन हम हमारी शिक्षा के लिए व्यय कर सकते हैं । तो मित्रो, इस दीपावली से ‘पटाखे खरीद कर राष्ट्र की संपत्ति की हानि नहीं करेंगे’, आइए हम ऐसा निश्चय करें ।

🚩ऊ. पटाखों के धुएं के कारण वातावरण की सात्त्विकता नष्ट होकर रज-तम की मात्रा में वृद्धि होना :पटाखों के धुएं के कारण वातावरण की सात्त्विकता नष्ट होकर रज-तम की मात्रा में वृद्धि होती है । अतएव वातावरण से ईश्वर का चैतन्य नष्ट होता है । त्योहार के माध्यम से हमें सत्गुणों को बढाने का प्रयत्न करना चाहिए; समाज की सभी समस्याओं का मूल कारण रज-तम का प्राबल्य है, । हम इसे रोकने का निश्चय करेंगे । तो मित्रो, इस दीपावली को ‘पटाखे नहीं फोडेंगे’, ऐसा निश्चय करेंगे ।

लडकियों, चित्रविचित्र रंगोली
बनाने की अपेक्षा शास्त्रानुसार रंगोली बनाएं !

🚩दीपावली में हम घरों के सामने रंगोली बनाते हैं । रंगोली के माध्यम से हम देवता का आवाहन करते हैं । शास्त्रानुसार रंगोली किस प्रकार बना सकते हैं, यह सनातन के `सात्त्विक रंगोलियां’ नामक ग्रंथ में उल्लेखित है । हम शास्त्र से अपरिचित हैं, अतएव आधुनिक प्रथा अथवा परिवर्तित रूप में लडकियां चित्रविचित्र रंगोली बनाती हैं, इसे हमें रोकना ही चाहिए । लडकियों, हम इस दीपावली में शास्त्रानुसार रंगोली बनाने का निश्चय करेंगे ।

🚩दीपावली में बिजली का प्रकाश अथवा तमोगुणी
मोमबत्ती का उपयोग करने की अपेक्षा तेल के दीए का उपयोग करेंगे !

🚩दीपावली में वातावरण में ईश्वरीय चैतन्य अधिक मात्रा में होता है । तेल के दीए के माध्यम से हमारे घरों में उस चैतन्य का प्रक्षेपण होता है एवं हमारे घर का वातावरण आनंदी होता है । तेल का दीया रज-तम का नाश करता है एवं सत्त्वगुण की वृद्धि करता है, तो बिजली के प्रकाश एवं मोमबत्तीद्वारा वातावरण में रज-तम की वृद्धि होती है । ऐसा नहीं हो; अतः बच्चो, दीवाली में तेल का दीया जलाएं तथा बिजली के प्रकाश से घर को प्रकाशित ना करें !

भैयादूज के दिन बहन को
हिंदु संस्कृतिनुसार वस्त्रालंकार प्रदान करें !

🚩भैयादूज के दिन बहन भाई का औक्षण करती है, तब बहन को वस्त्रालंकार प्रदान करते समय भाई जीन्स पैंट एवं टी-शर्ट ऐसे ईसाईयों की वेशभूषावाले वस्त्र देते हैं । ऐसी भेंट देना, अर्थात अपनी बहन को हिंदु संस्कृति से दूर लेकर जाने के समान ही है । अतः हम अपनी बहन को घाघरा-चोली(परकर पोलके), सलवार-कमीज, साडी जैसे सात्त्विक वस्त्र प्रदान कर हिंदु संस्कृति की रक्षा करेंगे !

🚩मित्रो, अब हमें हर त्योहार के पीछे क्या शास्त्र है, यह ज्ञात करना आवश्यक है । हमें प्रत्येक त्योहार शास्त्रानुसार मनाना चाहिए । साथ ही हम धर्म एवं संस्कृति के विषय में जानकारी प्राप्त कर राष्ट्र एवं संस्कृति की रक्षा हेतु तत्पर रहें !

– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी), पनवेल

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Thursday, November 1, 2018

अयोध्या में बाबरी मस्जिद नहीं, राम मंदिर था : के.के. मुहम्मद (पुरातत्व सर्वेक्षण)

1 नवम्बर 2018

🚩भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के उत्तरी क्षेत्र के क्षेत्रीय निर्देशक रह चुके के.के. मुहम्मद ने अपनी किताब में लिखा है कि अयोध्या में राम जन्मभूमि के मालिकाना हक़ को लेकर 1990 में पहली बार पूरे देश में बहस ने जोर पकड़ा था । इसके पहले 1976-77 में पुरातात्विक अध्ययन के दौरान अयोध्या में होने वाली खुदाई में हिस्सा लेने के लिए मुझे भी भेजा गया । 

🚩प्रो. बी.बी. लाल की अगुवाई में अयोध्या में खुदाई करने वाली आर्कियोलॉजिस्ट टीम में दिल्ली स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी के 12 छात्रों में से एक मैं भी था । उस समय के उत्खनन में हमें मंदिर के स्तंभों के नीचे के भाग में ईंटों से बनाया हुआ आधार देखने को मिला । हमें हैरानी थी कि किसी ने इसे कभी पूरी तरह खोदकर देखने की जरूरत ही नहीं समझी । ऐसी खुदाइयों में हमें इतिहास के साथ-साथ एक पेशेवर नजरिया बनाए रखने की भी जरूरत होती है ।

🚩खुदाई के लिए जब मैं वहां पहुंचा तब बाबरी मस्जिद की दीवारों में मंदिर के खंभे साफ-साफ दिखाई देते थे । मंदिर के उन स्तंभों का निर्माण ‘ब्लैक बसाल्ट’ पत्थरों से किया गया था । स्तंभ के नीचले भाग में 11वीं और 12वीं सदी के मंदिरों में दिखने वाले पूर्ण कलश बनाए गए थे । मंदिर कला में पूर्ण कलश 8 ऐश्वर्य चिन्हों में एक माने जाते हैं ।
There was no Babri Masjid in Ayodhya
, Ram Temple: K.K. Muhammad (archaeological survey)

🚩1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के ठीक पहले इस तरह के एक या दो स्तंभ नहीं, बल्कि कुल 14 स्तंभों को हमने करीब से देखा । उस दौरान भी वहां पर कड़ी पुलिस सिक्योरिटी हुआ करती थी और मस्जिद में प्रवेश मना था। लेकिन खुदाई और रिसर्च से जुड़े होने के कारण हमारे लिए किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं था । खुदाई के लिए हम करीब दो महीने अयोध्या में रहे । यह समझना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था कि बाबर के सिपहसलार मीर बाकी ने कभी यहां रहे विशाल मंदिर को तुड़वाकर उसके टुकड़ों से ही बाबरी मस्जिद बनवाई होगी । 

🚩खुदाई से मिले सबूतों के आधार पर मैंने 15 दिसंबर 1990 को बयान दिया कि बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष को मैंने खुद देखा है । उस समय माहौल गरम था । हिंदू और मुसलमान दो गुटों में बंटे थे । कई नरमपंथियों ने समझौते की कोशिश की, लेकिन तब तक विश्व हिंदू परिषद का आंदोलन बढ़ चुका था । बाबरी मस्जिद हिंदुओं को देकर समस्या का समाधान करने के लिए उदारवादी मुसलमान तैयार थे, लेकिन इसे खुलकर कहने की किसी में हिम्मत नहीं थी ।

🚩बाबरी मस्जिद पर दावा छोड़ने से विश्व हिंदू परिषद के पास कोई मुद्दा नहीं रह जाएगा, कुछ मुसलमानों ने ऐसा भी सोचा । इस तरह के विचारों से समस्या के समाधान की संभावना पैदा होती । ऐसी स्थिति में इतिहास और पुरातात्विक खोजबीन समस्या सुलझाने में मददगार हो सकते थे । लेकिन खेद के साथ कहना पड़ेगा कि कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों की मदद करने के लिए कुछ #वामपंथी_इतिहासकार सामने आए और उन्होंने मुसलमानों को उकसाया कि वो किसी हाल में मस्जिद पर अपना दावा न छोड़ें । 

🚩उन्हें यह मालूम नहीं था कि वे कितना बड़ा पाप कर रहे हैं । जे.एन.यू. के एस. गोपाल, रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा जैसे इतिहासकारों ने कहा कि 19वीं सदी के पहले मंदिर तोड़ने का सुबूत नहीं है । यहां तक कि उन्होंने अयोध्या को ‘बौद्घ-जैन केंद्र’ तक कह डाला । उनका साथ देने के लिए आर.एस. शर्मा, अनवर अली, डी.एन. झा, सूरजभान, प्रो. इरफान हबीब जैसे ढेरों वामपंथी इतिहासकार भी सामने आ गए । इनमें केवल सूरजभान पुरातत्वविद् थे । प्रो आर.एस. शर्मा के साथ रहे कई इतिहासकारों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के विशेषज्ञ के रूप में कई बैठकों में भाग लिया । मतलब साफ है कि ये वामपंथी इतिहासकार समस्या सुलझाने के बजाय आग में घी डालने में जुटे थे ।

🚩बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की कई बैठकें भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) के अध्यक्ष प्रो. इरफान हबीब की अध्यक्षता में हुईं । कमेटी की बैठक परिषद के सरकारी दफ्तर में करने का तत्कालीन सदस्य सचिव और इतिहासकार प्रो एमजीएस नारायण ने कड़ा विरोध भी किया लेकिन प्रो. इरफान हबीब ने उसे नहीं माना । वामपंथी इतिहासकारों ने अयोध्या की वास्तविकता पर सवाल उठाते हुए लगातार लेख लिखे और उन्होंने जनता में भ्रम और असमंजस का माहौल पैदा किया ।

🚩वामपंथी इतिहासकार और उनका समर्थन करने वाली मीडिया ने समझौते के पक्ष में रहे मुस्लिम बुद्घिजीवियों को मजबूर कर दिया कि वो अपने विचार त्याग दें । वरना आज भी मुसलमानों की अच्छी-खासी आबादी मानती है कि अयोध्या के धार्मिक महत्व को देखते हुए अगर मुस्लिम अपने पैर पीछे खींच लें तो देश के इतिहास में यह मील का पत्थर होगा । इससे आगे के लिए हिंदू-मुस्लिम झगड़ों की एक बड़ी वजह खत्म हो जाएगी । दोनों समुदायों के बीच आपसी अविश्वास भी खत्म होगा, लेकिन #कॉमरेड_इतिहासकारों ने यह होने नहीं दिया ।

🚩इससे एक बात स्पष्ट हो जाती है कि हिंदू या मुस्लिम कट्टरपंथ से ज्यादा वामपंथी विचार देश के लिए खतरा हैं । सेकुलर नजरिए से समस्या को देखने के बजाय वामपंथियों की आंख से अयोध्या मामले का विश्लेषण एक बड़ी भूल साबित हुई । राष्ट्र को इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी, यह अंदाजा अभी लोगों को नहीं है। 

🚩इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) में समस्या का समाधान चाहने वाले कई लोग थे, लेकिन इरफान हबीब के सामने वो कुछ नहीं कर सके । इरफान हबीब ने आरएसएस की तुलना आईएस जैसे आतंकवादी संगठन से की थी। आई.सी.एच.आर. के ज्यादातर सदस्य उनसे सहमत नहीं थे, लेकिन विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं हुई । 

🚩अयोध्या मामले के पक्ष और विपक्ष में इतिहासकार और पुरातत्वविद् भी गुटों में बंटे हुए थे । बाबरी मस्जिद टूटने के बाद पड़े मलबे में जो सबसे महत्वपूर्ण अवशेष मिला था वो था-विष्णु हरिशिला पटल । इसमें 11वीं और 12वीं सदी की नागरी लिपि में संस्कृत भाषा में लिखा गया है कि यह मंदिर बाली और दस हाथों वाले (रावण) को मारने वाले विष्णु (श्रीराम विष्णु के अवतार माने जाते हैं) को समर्पित किया जाता है ।

🚩1992 में डॉ. वाई.डी. शर्मा और डॉ. के.एन. श्रीवास्तव के सर्वे में वैष्णव अवतारों और शिव-पार्वती के कुषाण जमाने (ईसा से 100-300 साल पहले) की मिट्टी की मूर्तियां मिली हैं । 2003 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच के आदेश से हुई खुदाई में करीब 50 मंदिर-स्तंभों के नीचे के भाग में ईंटों से बनाया चबूतरा मिला था । इसके अलावा मंदिर के ऊपर का आमलका और मंदिर के अभिषेक का जल बाहर निकालने वाली मकर प्रणाली भी उत्खनन में मिली थी । 

🚩यूपी में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के डायरेक्टर की रिपोर्ट में कहा गया है कि बाबरी मस्जिद के आगे के भाग को समतल करते समय मंदिर से जुड़े कुल 263 पुरातात्विक अवशेष मिले हुए । खुदाई से मिले इन तमाम सबूतों के आधार पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इस निर्णय पर पहुंचा कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक मंदिर दबा हुआ है। सीधे तौर पर कहें तो बाबरी मस्जिद इस मंदिर को तोड़कर उसके मलबे पर बनाई गई है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भी यही फैसला सुनाया था ।

🚩अयोध्या में हुई खुदाई में कुल 137 मजदूर लगाए गए थे, जिनमें से 52 मुसलमान थे । बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर सूरजभान मंडल, सुप्रिया वर्मा, जया मेनन आदि के अलावा इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक मजिस्ट्रेट भी इस पूरी खुदाई की निगरानी कर रहा था । जाहिर है इसके नतीजों पर सवाल उठाने का कोई आधार नहीं है । 

🚩ज्यादा हैरानी तो तब हुई जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया तो भी वामपंथी इतिहासकार गलती मानने को तैयार नहीं हुए । इसका बड़ा कारण यह था कि खुदाई के दौरान जिन इतिहासकारों को शामिल किया गया था वो दरअसल निष्पक्ष न होकर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे थे । इनमें से 3-4 को ही आर्कियोलॉजी की तकनीकी बातें पता थीं । सबसे बड़ी बात कि ये लोग नहीं चाहते थे कि अयोध्या का ये मसला कभी भी हल हो । शायद इसलिए क्योंकि वो चाहते हैं कि भारत के हिंदू और मुसलमान हमेशा ऐसे ही आपस में उलझे रहें। 


(लेखक के.के. मुहम्मद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के उत्तरी क्षेत्र के क्षेत्रीय निर्देशक रह चुके हैं । यह लेख उनकी किताब #मैं_भारतीय_हूं का एक संपादित हिस्सा है)

🚩करोड़ों लोगों के आस्था स्वरूप भगवान श्रीराम का मंदिर अयोध्या में था जिसे क्रूर, आक्रमणकारी, लुटेरे मुग़ल बाबर ने तोड़ दिया था, इसके सबूत भी हैं फिर भी सदियों हो गए लेकिन मन्दिर नहीं बन पा रहा है । यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिन्दू बाहुल्य देश में भी हिन्दुओं के आराध्य श्रीराम का मंदिर नहीं बन पा रहा है, तारीख पर तारीख मिलती जा रही है, सरकार को अब इस पर अध्यादेश लाकर तुरन्त मंदिर का निर्माण शुरू कर देना चाहिए ।

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