Saturday, November 24, 2018

हिन्दू महिलाओं ने ऐसा तो क्या किया जो उनके ऊपर दर्ज हुई FIR..

24 नवम्बर 2018

🚩देश में धर्म निरपेक्षता का ज्वर बढ़ता जा रहा है । धर्म निरपेक्षता के नाम पर सिर्फ हिंदुओं पर अत्याचार ही किया जा रहा है और आज हालात ऐसे हैं कि अपने ही देश में हिन्दू बेगाना हो गया है । 

🚩ऐसे तो हमने धर्म निरपेक्षता से सम्बंधित कई किस्से सुने हैं लेकिन समझ नहीं आता कि आखिर सिर्फ हिंदुओं को ही धर्म निरपेक्ष बनने की सलाह क्यों दी जाती है ? किसी अन्य धर्म के लोग यदि अपने धर्म पर अडिग हैं तो उन्हें धर्मनिष्ठ कहा जाता है, उनके कार्यों को सराहा जाता है लेकिन वहीं अगर कोई हिन्दू अपने धर्म के प्रति निष्ठा दिखाए तो उसे कट्टर या असहिष्णु कह दिया जाता है यही नहीं चारों ओर उसके कार्यों की निंदा भी होने लगती है, उसपर FIR तक दर्ज कर दिया जाता है ।

🚩अभी हाल ही एक घटना घटित हुई है जिसमें ताजमहल में कुछ मुस्लिम महिलाओं ने नमाज पढ़ी तो उनके कार्य को सराहा गया और इसे उनका हक बताया गया लेकिन वहीं हिन्दू संगठन की कुछ महिलाओं ने ताजमहल में पूजा कर ली तो देश का सेकुलरिज्म खतरे में आ गया और सेकुलरिज्म को इस खतरे से बाहर निकालने के लिए हिन्दू संगठन की महिलाओं के मौलिक अधिकारों को भी दरकिनार करते हुए उनपर FIR दर्ज कर दिया गया ।
What did the Hindu women do so that the FIRs recorded above them?

🚩खबर के मुताबिक़, आगरा के ताजगंज थाने में हिंदूवादी संगठन, अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद से ताल्लुक रखने वाली तीन महिलाओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है । बता दें कि 17 नवंबर को तीन महिलाओं ने ताजमहल में बनी करीब 400 साल पुरानी मस्जिद में पहुंचकर पूजा की थी । इन महिलाओं ने मस्जिद परिसर में धूपबत्ती जलाई और गंगाजल भी छिड़का था । सोशल मीडिया पर संगठन की अध्यक्ष मीना देवी ने वीडियो जारी किया था । मीना देवी के मुताबिक अगर मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की इजाजत है तो फिर हम भी ‘तेजोमहालय’ में पूजा कर सकते हैं ।

🚩कहा जाता है कि ताजमहल बनने से पहले यहां भगवान शिव का मंदिर ‘तेजोमहालय’ था, जिसे बाद में ताजमहल कर दिया गया । अब इस मामले पर अज्ञात 3 महिलाओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई है । जांच के लिए सीआईएसएफ से सीसीटीवी फुटेज मांगा गया है । वहीं अधिकारियों का कहना है कि सीआईएसएफ के जवानों को मस्जिद में प्रवेश करने की इजाजत नहीं है । इसलिए वे इस घटना के बारे में कुछ नहीं जानते हैं । 

🚩बता दें कि महिलाओं ने पूजा करने का पूरा वीडियो बनाया था और उसे वायरल भी कर दिया था । पिछले दिनों 14 तारीख यानी मंगलवार को मुस्लिम समुदाय के लोगों ने रोक के बाद भी ताज में नमाज पढ़ी थी । ताज में नमाज अदा करने के विरोध में राष्ट्रीय बजरंगदल ने ताजमहल में पूजा करने का ऐलान किया था तथा पूजा की थी जिसके बाद उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है ।  स्रोत :- सुदर्शन न्यूज़

🚩इस पूरी घटना से साफ पता चलता है कि यदि किसी अन्य धर्म का अनुयायी, नियमों के विरुद्ध जाकर भी अपने धर्म का पालन करे तो उसे कुछ कहा नहीं जाता लेकिन वहीं यदि हिन्दू धर्म का व्यक्ति अपने धर्म का पालन करे तो चारों ओर हल्ला मचा दिया जाता है ।

🚩कहाँ गए वो पत्रकार, वो अभिनेता और अभिनेत्री तथा नेता और लेखक तथा वो अवार्ड वापसी गैंग जो भारत को असहिष्णु बोला करते थे ? क्या हिन्दू संगठन की महिलाओं पर दर्ज किया गया FIR असहिष्णुता नहीं है ? क्या हिंदुओं को स्वतंत्रता का अधिकार नहीं है? क्या एक ही देश में कानून का पालन धर्म देख कर किया जाता है ? अगर नहीं तो क्यों इतने बड़े अंतर्राष्ट्रीय हिन्दू परिषद की महिलाओं पर FIR दर्ज किया गया ।

🚩जब इतने बड़े संगठन की महिलाओं के साथ ऐसा किया जा सकता है तो आम इंसान की बात ही क्या ?

🚩अब हिंदुओं को एकजुट होकर अपने धर्म के लिए खड़ा होना ही होगा अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब इतिहास के पन्नों से हिंदुओं का नामोनिशान मिट जाए।

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Friday, November 23, 2018

धर्म की रक्षा के लिए प्राणों का बलिदान दे दिया लेकिन धर्म नही छोड़ा

23 नवम्बर 2018
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🚩हिन्दुस्तान में मुगल बादशाह औरंगजेब का शासनकाल था । औरंगजेब ने यह हुक्म किया कि कोई हिन्दू राज्य के कार्य में किसी उच्च स्थान पर नियुक्त न किया जाय तथा हिन्दुओं पर जजिया (कर) लगा दिया जाय । उस समय अनेकों नये कर केवल हिन्दुओं पर लगाये गये । इस भय से अनेकों हिन्दू मुसलमान हो गये । हर ओर जुल्म का बोलबाला था । निरपराध लोग बंदी बनाये जा रहे थे । प्रजा को स्वधर्म-पालन को भी आजादी नहीं थी । जबरन धर्म-परिवर्तन कराया जा रहा था । किसी की भी धर्म, जीवन और सम्पत्ति सुरक्षित नहीं रह गयी थी । पाठशालाएँ बलात् बन्द कर दी गयीं।
🚩हिन्दुओं के पूजा-आरती तथा अन्य सभी धार्मिक कार्य बंद होने लगे । मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनवायी गयीं एवं अनेकों धर्मात्मा मरवा दिये गये । सिपाही यदि किसी के शरीर पर यज्ञोपवीत या किसी के मस्तक पर तिलक लगा हुआ देख लें तो शिकारी कुत्तों की तरह उन पर टूट पड़ते थे । उसी समय की उक्ति है कि रोजाना सवा मन यज्ञोपवीत उतरवाकर ही औरंगजेब रोटी खाता था...
उस समय कश्मीर के कुछ पंडित निराश्रितों के आश्रय, बेसहारों के सहारे गुरु तेगबहादुरजी के पास मदद की आशा और विश्वास से पहुँचे । 
Sacrificed life for protection of religion but did not leave religion

पंडित कृपाराम ने गुरु तेगबहादुरजी से कहा : ‘‘सद्गुरुदेव ! औरंगजेब हमारे ऊपर बड़े अत्याचार कर रहा है । जो उसके कहने पर मुसलमान नहीं हो रहा, उसका कत्ल किया जा रहा है । हम उससे छः माह की मोहलत लेकर हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए आपकी शरण आये हैं । ऐसा लगता है, हममें से कोई नहीं बचेगा । हमारे पास दो ही रास्ते हैं-‘धर्मांतरित होओ या सिर कटाओ ।’
🚩पंडित धर्मदास ने कहा : ‘‘सद्गुरुदेव ! हम समझ रहे हैं कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है । फिर भी हम चुप हैं और सब कुछ सह रहे हैं । कारण भी आप जानते हैं । हम भयभीत हैं, डरे हुए हैं । अन्याय के सामने कौन खड़ा हो?’’
‘‘जीवन की बाजी कौन लगाये ?’’ गुरु तेगबहादुर के मुँह से अस्फुट स्वर में निकला । फिर वे गुरुनानक की पंक्तियाँ दोहराने लगे ।
जे तउ प्रेम खेलण का चाउ । सिर धर तली गली मेरी आउ ।।
इत  मारग  पैर धरो जै ।  सिर  दीजै  कणि  न  कीजै ।।
गुरु तेगबहादुर का स्वर गंभीर होता जा रहा था । उनकी आँखों में एक दृढ़ निश्चय के साथ गहरा आश्वासन झाँक रहा था । वे बोले : ‘‘पंडितजी ! यह भय शासन का है । उसकी ताकत का है, पर इस बाहरी भय से कहीं अधिक भय हमारे मन का है । हमारी आत्मिक शक्ति दुर्बल हो गयी है । हमारा आत्मबल नष्ट हो गया है । इस बल को प्राप्त किये बिना यह समाज भयमुक्त नहीं होगा । बिना भयमुक्त हुए यह समाज अन्याय और अत्याचार का सामना नहीं कर सकेगा ।’’
पंडित कृपाराम : ‘‘परन्तु सद्गुरुदेव । सदियों से विदेशी पराधीनता और आन्तरिक कलह में डूबे हुए इस समाज को भय से छुटकारा किस तरह मिलेगा ?’’
गुरु तेगबहादुर : ‘‘हमारे साथ सदा बसनेवाला परमात्मा ही हमें वह शक्ति देगा कि हम निर्भय होकर अन्याय का सामना कर सकें ।’’
🚩उनके मुँह से शब्द फूटने लगे :
पतित उधारन भै हरन हरि अनाथ के नाथ । कहु नानक तिह जानिए सदा बसत तुम साथ ।।
इस बीच नौ वर्ष के बालक गोबिन्द भी पिता के पास आकर बैठ गये ।
🚩गुरु  तेगबहादुर  :  ‘‘अँधेरा  बहुत  घना  है  ।  प्रकाश  भी  उसी  मात्रा  में  चाहिए। एक दीपक से अनेक दीपक जलेंगे। एक जीवन की आहुति अनेक जीवनों को इस रास्ते पर लायेगी।
पं. कृपाराम : ‘‘आपने क्या निश्चय किया है, यह ठीक-ठीक हमारी समझ में नहीं आया । यह भी बताइये कि हमें क्या करना होगा ?’’
🚩गुरु तेगबहादुर मुस्कराये और बोले : ‘‘पंडितजी ! भयग्रस्त और पीड़ितों को जगाने के लिए आवश्यक है कि कोई ऐसा व्यक्ति अपने जीवन का बलिदान दे, जिसके बलिदान से लोग हिल उठें, जिससे उनके अंदर की आत्मा चीत्कार कर उठे । मैंने निश्चय किया है कि समाज की आत्मा को जगाने के लिए सबसे पहले मैं अपने प्राण दूँगा और फिर सिर देनेवालों की एक शृंखला बन जायेगी । लोग हँसते-हँसते मौत को गले लगा लेंगे । हमारे लहू से समाज की आत्मा पर चढ़ी कायरता और भय की काई धुल जायेगी और तब... ।’’
‘‘और तब शहीदों के लहू से नहाई हुई तलवारें अत्याचार का सामना करने के लिए तड़प उठेंगी ।’’
यह बात बालक गोबिंद के मुँह से निकली थी । उन सरल आँखों में भावी संघर्ष की चिनगारियाँ फूटने लगी थी ।
🚩तब गुरु तेगबहादुरजी का हृदय द्रवीभूत हो उठा । वे बोले : ‘‘जाओ, तुमलोग बादशाह से कहो कि हमारा पीर तेगबहादुर है । यदि वह मुसलमान हो जाय तो हम सभी इस्लाम स्वीकार कर लेंगे ।’’
पंडितों ने यह बात कश्मीर के सूबेदार शेर अफगन को कही । उसने यह बात औरंगजेब को लिख कर भेज दी। तब औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर को दिल्ली बुलाकर बंदी बना लिया । उनके शिष्य मतिदास, दयालदास और सतीदास से औरंगजेब ने कहा : ‘‘यदि तुम लोग इस्लाम धर्म कबूल नहीं करोगे तो कत्ल कर दिये जाओगे ।’’
🚩मतिदास : ‘‘शरीर तो नश्वर है और आत्मा का कभी कत्ल नहीं हो सकता।’’
तब औरंगजेब ने मतिदास को आरे से चीरने का हुक्म दे दिया । भाई मतिदास के सामने जल्लाद आरा लेकर खड़े दिखाई दे रहे थे । उधर काजी ने पूछा : ‘‘मतिदास तेरी अंतिम इच्छा क्या है ?’’
🚩मतिदास : ‘‘मेरा शरीर आरे से चीरते समय मेरा मुँह गुरुजी के पिंजरे की ओर होना चाहिए ।’’
काजी : ‘‘यह तो हमारा पहले से ही विचार है कि सब सिक्खों को गुरु के सामने ही कत्ल करें ।’’
भाई मतिदासजी को एक शिकंजे में दो तख्तों के बीच बाँध दिया गया । दो जल्लादों ने आरा सिर पर रखकर चीरना शुरू किया । उधर भाई मतिदासजी ने ‘श्री जपुजी साहिब’ का पाठ शुरू कर दिया । उनका शरीर दो टुकड़ों में कटने लगा। चौक को घेरकर खड़ी विशाल भीड़ फटी आँखों से यह दृश्य देखती रही ।
दयालदास बोले : ‘‘औरंगजेब ! तूने बाबरवंश को एवं अपनी बादशाहियत को चिरवाया है ।’’
यह सुनकर औरंगजेब ने दयालदास को गरम तेल में उबालने का हुक्म दिया । उनके हाथ-पैर बाँध दिये गये । फिर उन्हें उबलते हुए तेल के कड़ाह में डालकर उबाला गया । वे अंतिम श्वास तक ‘श्री जपुजी साहिब’ का पाठ करते रहे । जिस भीड़ ने यह नजारा देखा, उसकी आँखें पथरा-सी गयीं ।
तीसरे दिन काजी ने भाई सतीदास से पूछा : ‘‘क्या तुम्हारा भी वही फैसला है ?’’
🚩भाई सतीदास मुस्कराये : ‘‘मेरा फैसला तो मेरे सद्गुरु ने कब का सुना दिया है ।’’
औरंगजेब ने सतीदास को जिंदा जलाने का हुक्म दिया । भाई सतीदास के सारे शरीर को रूई से लपेट दिया गया और फिर उसमें आग लगा दी गयी । सतीदास निरन्तर ‘श्री जपुजी’ का पाठ करते रहे । शरीर धू-धूकर जलने लगा और उसीके साथ भीड़ की पथराई आँखें पिघल उठीं और वह चीत्कार कर उठी ।
अगले दिन मार्गशीर्ष पंचमी संवत् सत्रह सौ बत्तीस (22 नवम्बर सन् 1675) को काजी ने गुरु तेगबहादुर से कहा : ‘‘ऐ हिन्दुओं के पीर ! तीन बातें तुमको सुनाई जाती हैं । इनमें से कोई एक बात स्वीकार कर लो । वे बातें हैं :
🚩(1) इस्लाम कबूल कर लो ।
🚩(2) करामात दिखाओ ।
🚩(3) मरने के लिए तैयार हो जाओ ।’’
🚩गुरु तेगबहादुर बोले : ‘‘तीसरी बात स्वीकार है ।’’
बस, फिर क्या था ! जालिम और पत्थरदिल काजियों ने औरंगजेब की ओर से कत्ल का हुक्म दे दिया । चाँदनी चौक के खुले मैदान में विशाल वृक्ष के नीचे गुरु तेगबहादुर समाधि में बैठे हुए थे ।
जल्लाद जलालुद्दीन नंगी तलवार लेकर खड़ा था। कोतवाली के बाहर असंख्य भीड़ उमड़ रही थी । शाही सिपाही उस भीड़ को काबू में रखने के लिए डंडों की तीव्र बौछारें कर रहे थे । शाही घुड़सवार घोड़े दौड़ाकर भीड़ को रौंद रहे थे । काजी के इशारे पर गुरु तेगबहादुर का सिर धड़ से अलग कर दिया गया । चारों ओर कोहराम मच गया ।
तिलक जझू राखा प्रभ ताका । कीनों वडो कलू में साका ।।
धर्म हेत साका जिन काया । सीस दीया पर सिरड़ न दिया ।।
धर्म हेत इतनी जिन करी । सीस दिया पर सी न उचरी ।।
🚩धन्य हैं ऐसे महापुरुष जिन्होंने अपने धर्म में अडिग रहने के लिए एवं दूसरों को धर्मांतरण से बचाने के लिए हँसते-हँसते अपने प्राणों की भी बलि दे दी ।
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् । स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ।।
अच्छी प्रकार आचरण में लाये हुए दूसरे के धर्म से गुणरहित भी अपना धर्म अति उत्तम है । अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देनेवाला है । (श्रीमद्भगवद्गीता : 3.35)
🚩भगवत्प्राप्त महापुरुष परमात्मा के नित्य अवतार हैं । वे नश्वर संसार व शरीर की ममता को हटाकर शाश्वत परमात्मा में प्रीति कराते हैं । कामनाओं को मिटाते हैं। निर्भयता का दान देते हैं । साधकों-भक्तों को ईश्वरीय आनन्द व अनुभव में सराबोर करके जीवन्मुक्ति का पथ प्रशस्त करते हैं ।
🚩ऐसे उदार हृदय, करुणाशील, धैर्यवान सत्पुरुषों ने ही समय-समय पर समाज को संकटों से उबारा है । इसी शृंखला में गुरु तेगबहादुरजी हुए हैं। जिन्होंने बुझे हुए दीपकों में सत्य की ज्योति जगाने के लिए, धर्म की रक्षा के लिए, भारत को क्रूर, आततायी, धर्मान्ध राज्य-सत्ता की दासता की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों का भी बलिदान कर दिया ।
(संत श्री आशारामजी आश्रम से प्रकाशित ‘बाल संस्कार केन्द्र पाठ्यक्रम’ पुस्तक से)
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Thursday, November 22, 2018

अंग्रेजों का छक्का छुड़ाने वाली झलकारीबाई की है जयंती, भूल गए देशवासी

21 नवम्बर 2018

🚩महान वीरांगना झलकारीबाई को भी याद करने का दिन  22 नवम्बर है जिनकी वीरता किसी भी मायने में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से कम नहीं थी, पर अफसोस उन्हें इतिहास और हमारे हृदयों में वो स्थान नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिए था । ये महान वीरांगना थी, झलकारीबाई जो झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं । 22 नवंबर 1830 को झांसी के पास के भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में सदोवर सिंह और जमुना देवी के घर में जन्मी झलकारी को कोई औपचारिक शिक्षा तो प्राप्त नहीं हो पाई, लेकिन उन्होनें घुड़सवारी और हथियारों का प्रयोग करने में महारत हासिल करके खुद को एक अच्छे योद्धा के रूप में विकसित कर लिया । उनकी बहादुरी ही झाँसी की सेना के सिपाही पूरन कोरी से उनके विवाह का माध्यम बनी जो अपनी वीरता के लिए पूरे झाँसी में प्रसिद्ध थे । 
angrezon-ke chhkke-chhudane-waali-jhalkari-baai

 🚩एक बार गौरी पूजा के अवसर पर झलकारी गाँव की अन्य महिलाओं के साथ महारानी को सम्मान देने झाँसी के किले मे गयीं, वहाँ रानी लक्ष्मीबाई उन्हें देख कर अवाक रह गयी क्योंकि झलकारी बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखतीं थीं (दोनो के रूप में आलौकिक समानता थी)। अन्य औरतों से झलकारी की बहादुरी के किस्से सुनकर रानी लक्ष्मीबाई बहुत प्रभावित हुईं । रानी ने झलकारी को दुर्गा सेना में शामिल करने का आदेश दिया । झलकारी ने यहाँ अन्य महिलाओं के साथ बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी का प्रशिक्षण लिया ।

🚩यह वह समय था जब झांसी की सेना को किसी भी ब्रिटिश दुस्साहस का सामना करने के लिए मजबूत बनाया जा रहा था । चूँकि वे रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं । अपने अंतिम समय में भी वे रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गयीं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया । कहा जाता है कि झलकारी बाई का पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया लेकिन झलकारी ने बजाय अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के, ब्रिटिशों को धोखा देने की एक योजना बनाई ।

🚩जब किले का पतन निश्चित हो गया तो रानी के सेनापतियों और झलकारी बाई ने उन्हें कुछ सैनिकों के साथ किला छोड़कर भागने की सलाह दी । योजनानुसार महारानी लक्ष्मीबाई एवं झलकारी दोनों पृथक-पृथक द्वार से किले बाहर निकलीं । झलकारी ने तामझाम अधिक पहन रखा था जिस कारण शत्रु ने उन्हें ही रानी समझा और उन्हें ही घेरने का प्रयत्न किया । रानी अपने घोड़े पर बैठ अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झांसी से दूर निकल गईं । शत्रु सेना से घिरी झलकारी भयंकर युद्ध करने लगी । एक भेदिए ने पहचान लिया और उसने भेद खोलने का प्रयत्न किया । वह भेद खोले, इसके पूर्व ही झलकारी ने उसे अपनी गोली का निशाना बनाया । दुर्भाग्य से वह गोली एक ब्रिटिश सैनिक को लगी और वह गिरकर मर गया । वह भेदिया तो बच गया पर झलकारी घेर ली गई ।

🚩ब्रिटिश शिविर में पहँचने पर उसने चिल्लाकर कहा कि वो जनरल ह्यूग रोज़ से मिलना चाहती है । रोज़ और उसके सैनिक प्रसन्न थे कि न सिर्फ उन्होने झांसी पर कब्जा कर लिया है बल्कि जीवित रानी भी उनके कब्ज़े में है । जनरल ह्यूग रोज़, जो उसे रानी ही समझ रहा था, ने झलकारी बाई से पूछा कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए ? तो उसने दृढ़ता के साथ कहा,मुझे फाँसी दो । एक अन्य ब्रिटिश अफसर ने कहा--“मुझे तो यह स्त्री पगली मालूम पड़ती है ।” जनरल रोज ने इसका तत्काल उत्तर देते हुए कहा---“यदि भारत की एक प्रतिशत नारियाँ इसी प्रकार पागल हो जाएँ तो हम अंग्रेजों को सब कुछ छोड़कर यहाँ से चले जाना होगा।”

🚩उधर डोली में बैठी झलकारी बाई को देखकर फिरंगी दल भौंचक्का रह गया । रानी आ गई, झांसी की रानी ने समर्पण कर दिया है, जैसी चर्चा हर सैनिक कर रहा था। डोली जैसे ही सेना के बीच पहुंची, गद्दार दूल्हाजू ने शोर मचा दिया कि अरे यह रानी नहीं है झलकारी है ।उसके बताने पर पता चला कि यह रानी लक्ष्मी बाई नहीं बल्कि महिला सेना की सेनापति झलकारी बाई है जो अग्रेंजी सेना को धोखा देने के लिए रानी लक्ष्मीबाई बन कर लड़ रही है । ब्रिटिश सेनापति रोज ने झलकारी को डपटते हुए कहा कि-“आपने रानी बनकर हमको धोखा दिया है और महारानी लक्ष्मीबाई को यहाँ से निकालने में मदद की है। आपने हमारे एक सैनिक की भी जान ली है। मैं भी आपके प्राण लूँगा।”

🚩झलकारी ने गर्व से उत्तर देते हुए कहा-“मार दे गोली, मैं प्रस्तुत हूँ।” सैनिक डोली पर झपटे कि झलकारी तुरन्त घोड़े पर सवार हो गई । तलवार म्यान से बाहर निकाल कर मारकाट करने लगी । ह्यूरोज जमीन पर गिर पड़ा, घबराकर बोला बहादुर औरत शाबास । जिस रानी की नौकरानी इतनी बहादुर है वह रानी कैसी होगी । झलकारी बाई ने बढ़ती हुई अंग्रेज सेना को रोका और द्रुतगति से मारकाट करने लगी । काफी संघर्ष के बाद जनरल रोज ने झलकारी को एक तम्बु में कैद कर लिया । इसके आगे इस विषय पर कुछ मतभेद है कि झलकारी बाई का अंत कैसे हुआ ।

🚩वृंदावनलाल वर्मा, जिन्होने पहली बार झलकारीबाई का उल्लेख उनकी “झांसी की रानी” पुस्तक में किया था, के अनुसार रानी और झलकारीबाई के संभ्रम का खुलासा होने के बाद ह्यूरोज ने झलकारीबाई को मुक्त कर दिया था । उनके अनुसार झलकारी बाई का देहांत एक लंबी उम्र जीने के बाद हुआ था (उनके अनुसार उन्होने खुद झलकारीबाई के नाती से जानकारी ली थी)। बद्री नारायण अपनी Women heroes and Dalit assertion in north India: culture, identity and politics नाम की किताब में वर्मा जी से सहमत दिखते हैं । इस किंवदंती के अनुसार जनरल ह्यूरोज झलकारी का साहस और उसकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ, और झलकारी बाई को रिहा कर दिया था पर वो अंग्रेज जिन्होंने लाखों निर्दोष मनुष्यों और अनगिनत क्रांतिकारियों को कूर तरीकों से मारा था उनसे इस काम की आशा की ही नहीं जा सकती अतः यह केवल एक कयास मात्र लगता है ।

🚩दूसरे पक्ष के कुछ इतिहासकारों का कहना है कि उन्हें अंग्रेजों द्वारा फाँसी दे दी गई, वहीं कुछ का कहना है कि उनका अंग्रेजों की कैद में जीवन समाप्त हुआ । इसके विपरीत कुछ इतिहासकार मानते हैं कि झलकारी इस युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुई जो कि सहीं मालूम पड़ता है । श्रीकृष्ण सरल ने अपनी Indian revolutionaries: a comprehensive study, 1757-1961, Volume 1 पुस्तक में उनकी मृत्यु लड़ाई के दौरान हुई थी, ऐसा वर्णित किया है । अखिल भारतीय युवा कोली राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. नरेशचन्द्र कोली के अनुसार 4 अप्रैल 1857 को झलकारी बाई ने वीरगति प्राप्त की ।

🚩झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है । वीरांगना झलकारी बाई का सबसे पहले उल्लेख बुन्देलखण्ड के सुप्रसिद्ध साहित्यिक इतिहासकार वृन्दावन लाल वर्मा ने अपने उपन्यास लक्ष्मीबाई में किया था जिसके बाद में धीरे - धीरे अनेक विद्वानों, सहित्यकारों, इतिहासकारों ने झलकारी के स्वतन्त्रता संग्राम के योगदान का उदघाटित किया। अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल (21-10-1993 से 16-05-1999 तक) और श्री माता प्रसाद ने झलकारी बाई की जीवनी की रचना की है। इसके अलावा चोखेलाल वर्मा ने उनके जीवन पर एक वृहद काव्य लिखा है, मोहनदास नैमिशराय ने उनकी जीवनी को पुस्तकाकार दिया है और भवानी शंकर विषारद ने उनके जीवन परिचय को लिपिबद्ध किया है।

🚩झलकारी बाई का विस्तृत इतिहास भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण के प्रकाशन विभाग ने झलकारी बाई शीर्षक से ही प्रकाशित किया है । झांसी के इतिहासकारों में से अधिकतर ने वीरांगना झलकारी बाई को नियमित स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में सम्मिलित नहीं किया किन्तु बुन्देली के सुप्रसिद्ध गीतकार महाकवि अवधेश ने झलकारी बाई शीर्षक से एक नाटक लिखकर वीरांगना झलकारीबाई की ऐतिहासिकता प्रमाणित की है ।

🚩वीरांगना झलकारी बाई के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में दिये गये योगदान से देश का अधिकतर जनमानस तो परिचित नहीं है किन्तु एक नकारात्मक घटना ने उन्हें कम से कम बुंदेलखंड क्षेत्र में जन - जन से परिचित करा दिया। हुआ यों कि मार्च 2010 में आगरा के दो प्रकाशकों चेतना प्रकाशन और कुमार पाब्लिकेशन ने बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झांसी के पाठयक्रम के अनुसार एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें उन्होंने बहु विकल्पीय प्रश्नों में वीरांगना झलकारी को नर्तकी की श्रेणी में प्रकाशित कर वीरांगना को अपमानित करने का प्रयास किया ।

🚩इन दोनों प्रकाशनों का राजनैतिक व्यक्तियों, सामाजिक संगठनों, बुद्धजीवियों, साहित्यकारों, पत्रकारों ने कड़ा विरोध किया और प्रकाशक के विरोध में समाज के विभिन्न क्षेत्रों से व्यक्त किये गये आक्रोश से स्वयंसिद्ध हो गया कि राष्ट्र के लिए त्याग और बलिदान की मिसाल पेश करने वाली वीरांगना को नर्तकी की श्रेणी में रखना केवल वीरांगना झलकारीबाई का ही अपमान नहीं था बल्कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और देश की आजादी के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों का घोर अपमान था । लोगों का गुस्सा तब शान्त हुआ जब झांसी के मण्डलायुक्त के आदेश पर प्रकाशक के विरूद्ध मुकदमा पंजीकृत हो गया । वीरांगना झलकारी बाई के बारे में इस प्रकार की अपमान जनक टिप्पणी प्रकाशित करने के पहले भले ही आम जनमानस उनके योगदान को न जानता रहा हो किन्तु उस समय से समाज के सजग पाठक अवश्य परिचित हो गये है ।

🚩यूँ तो भारत सरकार ने 22 जुलाई 2001 में झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया है था परन्तु कड़वा सच यही है कि हम कृतघ्नों ने अपने इन महान पूर्वजों को बिसरा दिया और ख़ास तौर पर उन्हें जिनका सम्बन्ध तथाकथित उच्च वर्ग से नहीं था । हमें अपनी इस गलती को सुधारना चाहिए और इन महान आत्माओं को उचित स्थान देना चाहिए । त्याग और बलिदान की अनूठी मिसाल पेश करने वाली वीरांगना झलकारीबाई को शत शत नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि ।

🚩राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने झलकारी की बहादुरी को निम्न प्रकार पंक्तिबद्ध किया है -

जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झाँसी की झलकारी थी।
गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी।

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