Monday, December 10, 2018

रोंगटे खड़े करने वाली रिपोर्ट : पाकिस्तान के 90% हिंदू छोड़ चुके हैं देश

10 दिसंबर 2018

🚩पाकिस्तान दुनियाभर में एक मुस्लिम बाहुल्य देश के तौर पर जाना जाता है । करतारपुर कॉरिडोर का शिलान्यास किया गया है । इसे धर्म के मामले में पाकिस्तान की नरमी के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन इस देश में हिंदुओं की खराब स्थिति किसी से छिपी नहीं हैं, आए दिन हिन्दुओं पर अत्याचार की खबरें आती रहती हैं । वर्तमान में यहां हिंदू धर्म का अनुसरण करनेवालों की संख्या कुल जनसंख्या का 1.6 प्रतिशत है ! यानी केवल 36 लाख !

🚩एक ओर जहां भारत में अल्पसंख्यकों को आरक्षण के अलावा भी कई रियायतें दी जाती हैं, वहीं पाकिस्तान में हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर कोई ध्यान नहीं जाता । यहां आए दिन हिंदुओं पर अत्याचार किए जाते हैं, उनके घरों को हड़पा जाता है । वहीं अगर उनके धार्मिक स्थलों की बात करें तो वह भी सुरक्षित नहीं हैं । यहां कई हिंदू धार्मिक स्थलों पर हमले किए जाते हैं और जब शिकायतें दायर की जाती हैं, तो उनकी कोई सुनवाई नहीं होती ।
Hogging Report: 90% of Pakistan's Hindus have left the country

🚩90 प्रतिशत ने छोड़ा देश:-

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि बीते 50 सालों में पाकिस्तान में बसे 90 प्रतिशत हिंदू देश छोड़ चुके हैं । धीरे-धीरे उनके पूजा स्थल और मंदिर भी नष्ट किए जा रहे हैं । हिंदुओं की संपत्ति पर जबरन कब्जे के कई मामले  सामने आ रहे हैं 

🚩 हाल ही में एक महिला प्रोफेसर ने वीडियो संदेश के जरिए आरोप लगाया है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू बदइंतजामी, कुप्रबंधन और अराजकता का सामना कर रहे हैं । उन्होंने अपने वीडियो संदेश में कहा है कि भू-माफियाओं ने सिंध के विभिन्न इलाकों में अपनी जड़ें मजबूत कर ली हैं और लाड़काना में हिंदुओं को उनकी संपत्ति से जबरन बेदखल कर रहे हैं ।

🚩 उन्होंने कहा है कि सिंध के भू-माफिया हिंदुओं की संपत्ति को छीनने के लिए झूठे ‘पावर ऑफ अटॉर्नी’ बनाकर उनकी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं । हिंदुओं के धनों पर कब्जा करके वो उन्हें चुप रहने की धमकियां दे रहे हैं । इससे परेशान लाड़काना के कई हिंदू अपनी संपत्तियों को बेचकर जाने के लिए तैयार बैठे हैं । इनमें से कई तो ऐसे हैं, जो देश छोड़कर, अपनी संपत्तियों को छोड़कर जाना नहीं चाहते, लेकिन वो मजबूरी में रो-धोकर अपनी जमीनों को बेचकर दूसरे देशों में जा रहे हैं । सिंध के अधिकारी भी इसके खिलाफ कुछ नहीं बोल रहे हैं ।

🚩 95 प्रतिशत हिंदू मंदिरों को नष्ट किया गया:-

एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 के आंकड़ों में सामने आया है कि यहां 95 प्रतिशत हिंदू मंदिरों को नष्ट किया जा चुका है ! आंकड़ों के अनुसार साल 1990 के बाद से अल्पसंख्यकों के 428 पूजा स्थलों में से 408 को नष्ट कर, वहां समाधि, शौचायल, टॉय स्टोर, रेस्टोरेंट, सरकारी ऑफिस और स्कूल आदि बनाए गए हैं। केवल 20 ही पूजा स्थल ऐसे हैं जहां पूजा की जा रही है। अगर कहीं कोई मंदिर बचे भी हैं तो उनतक पहुंचने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं। ताकि वहां कोई पूजा करने न जा सके !

🚩 एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार डेरा इस्माइल खान में स्थित काली बाड़ी हिंदू मंदिर को एक मुस्लिम को किराए पर दिया गया है। वो लोग उस मंदिर का एक ताज होटल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। एक और हैरान करनेवाली बात ये है कि हिंदुओं में अगर किसी की मौत हो जाती है तो उन्हें मृतक को अंतिम संस्कार के लिए जलाने नहीं देते। उन्हें मृतक को दफनाने पर मजबूर किया जाता है !

🚩 1000 साल पुराने मंदिर को बनाया शौचालय :-

पाकिस्तान के कराची में स्थित वरुण मंदिर को अब शौचालय के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। यह मंदिर करीब 1000 साल पुराना है। यह मंदिर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पुराना और सबसे बड़ा हिंदू देवता को समर्पित मंदिर है !

🚩 यह मंदिर पाकिस्तान के लिए एक ऐतिहासिक धरोहर होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। डेली टाइम्स की साल 2008 में आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मंदिर का एक हिस्सा शौचालय के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है । यहां साल 1950 में हिंदुओं ने आखिरी बार लाल साईं वरुण देव का त्यौहार मनाया था। मंदिर की देखरेख करनेवाले जीवरीज का कहना है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों का यहां कोई सम्मान नहीं किया जाता। बाद में जब ये खबर दुनियाभर में फैली तो मंदिर की बहाली की खबरें सामने आई !।

🚩 कृष्ण द्वार मंदिर के स्थान पर समाधि बनी:-

किसी जमाने में पाकिस्तान के प्रांत खैबर पख्तूनख्वा जिले के कर्क में एक छोटे से गांव टेरी में कृष्ण द्वार नाम का मंदिर हुआ करता था। आज इस स्थान पर समाधि बन चुकी है। यहां मंदिर का कोई नामोनिशान नहीं बचा है। यह जगह चारों ओर से मकान से घिरी है और यहां पहुंचने के रास्ते भी बंद हैं !

🚩 कई हिंदू मंदिरों पर हमला :-

पाकिस्तान में केवल हिंदू मंदिरों को नष्ट कर उनके स्थान पर कारोबारी और अन्य तरह की गतिविधियां ही नहीं बढ़ाई जा रहीं बल्कि उनपर हमले भी हो रहे हैं ! आए दिन इन मंदिरों पर हमले किए जाते हैं। जिसका शिकार भी हिंदू ही बनते हैं। ऐसा ही एक मामला 28 मार्च, साल 2014 का है। उस दिन पाकिस्तान के हैदराबाद के एक कारोबारी इलाके फतेह चौक के प्रसिद्ध हिंदू मंदिर में तीन नकाबपोशों ने हमला किया था। इस इलाके के आसपास बड़ी तादाद में हिंदू रहते हैं। इस मंदिर में पेट्रोल फेंककर आग लगाई गई थी !

🚩 इसके अलावा सिंध में भी एक हिंदू मंदिर पर हमला हुआ था लेकिन वह घटना दो व्यक्तियों की निजी रंजिश का नतीजा बताई गई। इन घटनाओं के बाद हिंदुओं ने विरोध प्रदर्शन भी किए !

🚩 1400 से अधिक पवित्र स्थानों तक कोई पहुंच नहीं :-

पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के अनुसार इस समय देशभर में सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के ऐसे 1400 से अधिक पवित्र स्थान हैं, जिन तक उनकी पहुंच नहीं है। या फिर इन्हें समाप्त कर दुकानें, खाद्य गोदाम और पशु बाड़ों में बदला जा चुका है !

🚩 गुरुद्वारे को बनाया कपड़ों की दुकान :-

एबटाबाद में गुरुद्वारा गली कभी सिखों के लिए तीर्थ स्थल हुआ करती थी। लेकिन अब यहां कपड़ों की दुकानें खुल गई हैं। वहीं पेशावर में स्थित ऐतिहासिक हिंदू मंदिर को अब स्कूल में बदल दिया गया है। इस्लामाबाद में स्थित राम कुंड मंदिर को पिकनिट स्पॉट बनाया गया है। अगर किसी मंदिर में हिंदू पूजा करने जाते भी हैं तो वहां मुस्लिम लोग अपने सामान को रखने की जगह बना लेते हैं, वहां वह अपने जानवरों को खुला छोड़ देते हैं। शिकायत करने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती !

🚩 वो ऐतिहासिक मंदिर जो किस्मत से बचे हुए हैं :-

सरहद बंटने से इतिहास नहीं बदलता, ये बात साबित होती है पाकिस्तान में बचे कुछ हिंदू मंदिरों से ! यहां बेहद कम हिंदू मंदिर बचे हैं, जहां पूजा की जा रही है। कराची में 1500 साल पुराना पंचमुखी हनुमान मंदिर है। यहां आज भी लोग पूजा करने जाते हैं। पाकिस्तान में इकलौता राम मंदिर बचा है नागरपारकर के इस्लामकोठ में !

🚩 ब्लूचिस्तान प्रांत के दूरदराज इलाके में स्थित मां दुर्गा का हिंगलाज मंदिर है। यहां बड़ी मेहनत से ही लोग दर्शन करने पहुंच पाते हैं। सिंध के दलित हिंदुओं का प्रमुख धर्म स्थल है रामा पीर मंदिर, क्योंकि यहां मुस्लिम भी आते हैं, इसलिए इसकी भव्यता बरकरार है !

🚩 30 हजार पाकिस्तानियों को लंबी अवधि वीजा :-
2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार पैन, आधार कार्ड हासिल करने के साथ भारत में संपत्ति खरीदने के लिए वर्ष 2011 से अब तक लगभग 30,000 पाकिस्तानी नागरिकों को लंबी अवधि का वीजा दिया जा चुका है। इनमें से अधिकतर हिंदू हैं। गृह मंत्रालय के अनुसार मोदी सरकार के पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यकों की सहायता के लिए चलाई जा रही योजना के तहत साल 2018 में अब तक लगभग 6092 पाकिस्तानी लोगों को लंबी अवधि का वीजा दिया जा चुका है । फिलहाल 1500 आवेदनों पर विचार हो रहा है !

🚩 वर्ष 2011 से 2014 तक वीजा के लिए ऑफलाइन प्रक्रिया का इस्तेमाल होता था। इस दौरान कुल 14,726 पाकिस्तानी लोगों को वीजा दिया गया था। वहीं साल 2015 से ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया शुरू हुई। जिसके बाद साल 2015 में जहां 2,142, साल 2016 में 2,298 और साल 2017 में 4,712 पाकिस्तानी नागरिकों को वीजा दिया गया।

🚩 96,853 को मिला मेडिकल वीजा :-

क्योरा वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार भारत में मेडिकल टूरिजम के अंतर्गत बहुत से लोगों को मेडिकल वीजा दिया गया। साल 2016 में 96,856 लोगों को मेडिकल वीजा दिया गया। इसमें से 70,535 लोग चिकित्सा परिचर के तौर पर आए हैं। वहीं इलाज कराने के लिए आनेवाले अधिकतर लोगों में पाकिस्तानी शामिल हैं !

🚩 भारतीयों के लिए मुश्किल है पाकिस्तानी वीजा पाना:-

अगर कोई भारतीय पाकिस्तान जाना चाहे तो उसे वीजा मिलने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है ! पहली बात तो वीजा मिलने में ही महीनों लग जाते हैं और अगर वहां के लिए वीजा मिल भी जाए तो उनकी सुरक्षा को लेकर कोई ध्यान नहीं दिया जाता ! वहीं अगर पाकिस्तानियों की बात करें जो भारतीय वीजा पाने में अगर मुश्किलों का सामना करते हैं, तो वह भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को ट्वीटर पर अपनी मुश्किलें बतातें हैं, जिसके बाद उन्हें वीजा मिलने में आनेवाली दिक्कतें भी दूर हो जाती हैं।
स्त्रोत : अमर उजाला

भारत के किसी एक मुस्लिम को थप्पड़ भी मार दिया जाए तो बुद्धिजीवी, मीडिया हल्ला करने लगती है और सरकार ओर न्यायालय तुरंत कार्यवाही करते है पर बड़ी विडंबना है कि पाकिस्तान में लाखों हिन्दू भयंकर अत्याचार से गुजर रहे है पर किसी के पेट का पानी नही हिल रहा है।

भारत मे हिंदुओ की सारी सुविधाएं मुसलमानों को दी जा रही है फिर भी हिन्दू खामोश है, संविधान, सरकार, न्यायालय, मीडिया, वामपंथी, जिहादी, मिशनरियां ओर विदेशी कंपनियां सभी हिंदुओ के खिलाफ है हिंदुत्व को खत्म कर देना चाहते है और हिन्दू सेक्युलर बन रहा है बोले सर्वधर्म समान लेकिन जब हिन्दू अल्पसंख्यक हो जायेगा तब वे लोग नही बकसेगे नही , कश्मीर के पंडितों की तरह भगा दिया जायेगा या कत्ल कर दिया जायेगा ।

भारत के 8 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गये है पर उनको न कोई सुविधा मिलती है नही कोई योजना का लाभ मिलता है, भारत मे हिंदू कम होते जा रहे है और कुछ सेक्युलर बन रहे है जो चिंताजनक स्थिति है। अगर हिन्दू ने अधिक बच्चे पैदा नही किये और अपने धर्म और धर्मगुरुओं को नही बचाया तो फिर पाकिस्तान और कश्मीर के हिंदुओं जैसी हालत होगी ।

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Sunday, December 9, 2018

वीरांगना ताराबाई के पराक्रम के कारण औरंगजेब वापस जा न सका दिल्ली

09 दिसंबर 2018

🚩भारत की वीरांगना का इतिहास अगर आज की नारियों, बालिकाओं को पढ़ाया जाता तो यकीनन उन्हें ताराबाई बनने की प्रेरणा मिलती ।  साथ ही अगर इनके गौरवशाली इतिहास को पुरुष पढ़ते तो किसी नारी की तरफ कुदृष्टि करने की हिम्मत न करते, लेकिन कलम हमेशा उनके हाथों में रही जो क्रूर मतान्ध औरंगज़ेब के गुणगान को लिखती रही और इतिहासकार वो सम्मानित रहे जो आज कल अपनी सेल्फी ले कर शान से कहते हैं कि वो गौ मांस खा रहे हैं । कल्पना कीजिये कि क्या ऐसे लोगों के हाथों में इतिहास सुरक्षित रहा होगा और कम से कम हिन्दू वीर या वीरांगनाओं को उचित स्थान या उचित सम्मान मिला रहा होगा ? अरे जिन्होंने स्वयं हिंदवी सम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज को उचित स्थान नही दिया उनसे उनकी बहू के लिए स्थान या सम्मान की आशा निरर्थक है ।
Aurangzeb could not go back due to the bravery of Veerangana Tarabai

🚩भारत के इतिहास की पुस्तकों में अधिकांशतः हिन्दू राजाओं-रानियों एवं योद्धाओं को “पराजित” अथवा युद्धरत ही दर्शाया गया है । विजेता हिन्दू योद्धाओं के साम्राज्य, उनकी युद्ध रणनीति, उनके कौशल का उल्लेख या तो पुस्तकों में है ही नहीं  अथवा बहुत ही कम किया गया है । ज़ाहिर है कि यह जानबूझकर एवं व्यवस्थित रूप से इतिहास को विकृत करने का एक सोचा-समझा दुष्कृत्य है । जिस समय औरंगज़ेब लगभग समूचे उत्तर भारत को जीतने के पश्चात दक्षिण में भी अपने पैर जमा चुका था, उसकी इच्छा थी कि पश्चिमी भारत को भी जीतकर वह मुग़ल साम्राज्य को अखिल भारतीय बना दे । परन्तु उसके इस सपने को तोड़ने वाला योद्धा कोई और नहीं, बल्कि एक महिला थी, जिसका नाम था “ताराबाई” । ताराबाई के बारे में इतिहास की पुस्तकों में अधिक उल्लेख नहीं है, क्योंकि वास्तव में उसने छत्रपति शिवाजी की तरह कोई साम्राज्य खड़ा नहीं किया, परन्तु इस बात का श्रेय उसे अवश्य दिया जाएगा कि यदि ताराबाई नहीं होतीं तो न सिर्फ हिन्दू व मराठा साम्राज्य का इतिहास, बल्कि औरंगज़ेब द्वारा स्थापित मुग़ल साम्राज्य के बाद आधुनिक भारत का इतिहास भी कुछ और ही होता ।

🚩जिस समय मराठा साम्राज्य पश्चिमी भारत में लगातार कमज़ोर होता जा रहा था तथा औरंगजेब मराठाओं के किले-दर-किले पर अपना कब्ज़ा करता जा रहा था, उस समय ताराबाई (1675-1761) ने सारे सूत्र अपने हाथों में लेते हुए न सिर्फ मराठा साम्राज्य को खण्ड-खण्ड होने से बचाया, बल्कि औरंगज़ेब को हार मानने पर मजबूर कर दिया । छत्रपति शिवाजी के प्रमुख सेनापति हम्बीर राव मोहिते की कन्या ताराबाई का जन्म 1675 में हुआ, ताराबाई ने अपने पूरे जीवनकाल में मराठा साम्राज्य में शिवाजी के राज्याभिषेक से लेकर सन 1700 में औरंगजेब के हाथों कमज़ोर किए जाने तथा उसके बाद पुनः जोरदार वापसी करते हुए सन 1760 में लगभग पूरे भारत पर मराठा साम्राज्य की पताका फहराते देखा और अंत में सन 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली के हाथों मराठों की भीषण पराजय भी देखी । ताराबाई का विवाह आठ वर्ष की आयु में शिवाजी के छोटे पुत्र राजाराम के साथ किया गया । छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक के कुछ वर्ष बाद ही 1680 में शिवाजी की मृत्यु हो गई । यह खबर मिलते ही क्रूर औरंगज़ेब बहुत खुश हो गया । शिवाजी ने औरंगज़ेब को बहुत नुकसान पहुँचाया था, इसलिए औरंगज़ेब चिढ़कर उन्हें “पहाड़ी चूहा” कहकर बुलाता था । आगरा के किले से शिवाजी द्वारा चालाकी से फलों की टोकरी में बैठकर भाग निकलने को औरंगज़ेब अपनी भीषण पराजय मानता था, वह इस अपमान को कभी भूल नहीं पाया । इसलिए शिवाजी की मौत के पश्चात उसने सोचा कि अब यह सही मौका है जब दक्षिण में अपना आधार बनाकर समूचे पश्चिम भारत पर साम्राज्य स्थापित कर लिया जाए ।

🚩छत्रपति शिवाजी महराज के बलिदान के पश्चात उनके पुत्र संभाजी राजा बने और उन्होंने बीजापुर सहित मुगलों के अन्य ठिकानों पर हमले जारी रखे । 1682 में औरंगजेब ने दक्षिण में अपना ठिकाना बनाया, ताकि वहीं रहकर वह फ़ौज पर नियंत्रण रख सके और पूरे भारत पर साम्राज्य का सपना सच कर सके । उस बेचारे को क्या पता था कि अगले 25 साल वह दिल्ली वापस नहीं लौट सकेगा और दक्षिण भारत फतह करने का सपना उसकी मृत्यु के साथ ही दफ़न हो जाएगा । हालाँकि औरंगजेब की शुरुआत तो अच्छी हुई थी, और उसने 1686 और 1687 में बीजापुर तथा गोलकुण्डा पर अपना कब्ज़ा कर लिया था । इसके बाद उसने अपनी सारी शक्ति मराठाओं के खिलाफ झोंक दी, जो उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा बने हुए थे ।

🚩मुगलों की भारीभरकम सेना की पूरी शक्ति के आगे धीरे-धीरे मराठों के हाथों से एक-एक करके किले निकलने लगे और मराठों ने ऊँचे किलों और घने जंगलों को अपना ठिकाना बना लिया । औरंगजेब ने विपक्षी सेना में रिश्वत बाँटने का खेल शुरू किया और गद्दारों की वजह से संभाजी महाराज को संगमेश्वर के जंगलों के 1689 में औरंगजेब ने पकड़ लिया । औरंगजेब ने संभाजी से इस्लाम कबूल करने को कहा, संभाजी ने औरंगजेब से कहा कि यदि वह अपनी बेटी की शादी उनसे करवा दे तो वह इस्लाम कबूल कर लेंगे, यह सुनकर औरंगजेब आगबबूला हो उठा । उसने संभाजी की जीभ काट दी और आँखें फोड़ दीं, संभाजी को अत्यधिक यातनाएँ दी गईं, लेकिन उन्होंने अंत तक इस्लाम कबूल नहीं किया और फिर औरंगजेब ने संभाजी की हत्या कर दी ।

🚩औरंगजेब लगातार किले फतह करता जा रहा था । संभाजी का दुधमुंहे बच्चा “शिवाजी द्वितीय” अब आधिकारिक रूप से मराठा राज्य का उत्तराधिकारी था । औरंगजेब ने इस बच्चे का अपहरण करके उसे अपने हरम में रखने का फैसला किया ताकि भविष्य में सौदेबाजी की जा सके । चूँकि औरंगजेब “शिवाजी” नाम से ही चिढता था, इसलिए उसने इस बच्चे का नाम बदलकर शाहू रख दिया और अपनी पुत्री जीनतुन्निसा को सौंप दिया कि वह उसका पालन-पोषण करे । औरंगजेब यह सोचकर बेहद खुश था कि उसने लगभग मराठा साम्राज्य और उसके उत्तराधिकारियों को खत्म कर दिया है और बस अब उसकी विजय निश्चित ही है । लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं पाया ।

🚩संभाजी की मृत्यु और उनके पुत्र के अपहरण के बाद संभाजी का छोटा भाई राजाराम अर्थात ताराबाई के पति ने मराठा साम्राज्य के सूत्र अपने हाथ में लिए । उन्होंने महसूस किया कि इस क्षेत्र में रहकर मुगलों की इतनी बड़ी सेना से लगातार युद्ध करना संभव नहीं है, इसलिए उन्होंने अपने पिता शिवाजी से प्रेरणा लेकर, अपने विश्वस्त साथियों के साथ लिंगायत धार्मिक समूह का भेष बदला और गाते-बजाते आराम से सुदूर दक्षिण में जिंजी के किले में अपना डेरा डाल दिया । इसके बाद चमत्कारिक रूप से राजाराम ने जिंजी के किले से ही मुगलों के खिलाफ जमकर गुरिल्ला युद्ध की शुरुआत की । उस समय उनके सेनापति थे रामचंद्र नीलकंठ । राजाराम की सेना ने छिपकर वार करते हुए एक वर्ष के अंदर मुगलों की सेना के दस हजार सैनिक मार गिराए और उनका लाखों रूपए खर्च करा दिया । औरंगज़ेब बुरी तरह परेशान हो उठा । दक्षिण की रियासतों से औरंगज़ेब को मिलने वाली राजस्व की रकम सिर्फ दस प्रतिशत ही रह गई थी, क्योंकि राजाराम की सफलता को देखते हुए बहुत सी रियासतों ने उस गुरिल्ला युद्ध में राजाराम का साथ देने का फैसला किया । औरंगज़ेब के जनरल जुल्फिकार अली खान ने जिंजी के इस किले को चारों तरफ से घेर लिया था, परन्तु पता नहीं किन गुप्त मार्गों से फिर भी राजाराम अपना गुरिल्ला युद्ध लगातार जारी रखे हुए थे । यह सिलसिला लगभग आठ वर्ष तक चला । अंततः औरंगज़ेब का धैर्य जवाब दे गया और उसने जुल्फिकार से कह दिया कि यदि उसने जिंजी के किले पर विजय हासिल नहीं की तो गंभीर परिणाम होंगे । जुल्फिकार ने नई योजना बनाकर किले तक पहुँचने वाले अन्न और पानी को रोक दिया । राजाराम ने जुल्फिकार से एक समझौता किया कि यदि वह उन्हें और उनके परिजनों को सुरक्षित जाने दे तो वे जिंजी का किला समर्पण कर देंगे । ऐसा ही किया गया और राजाराम 1697 में अपने समस्त कुनबे और विश्वस्तों के साथ पुनः महाराष्ट्र पहुँचे और उन्होंने सातारा को अपनी राजधानी बनाया ।

🚩82 वर्ष की आयु तक पहुँच चुका औरंगज़ेब दक्षिण भारत में बुरी तरह उलझ गया था और थक भी गया था । अंततः सन 1700 में उसे यह खबर मिली की किसी बीमारी के कारण राजाराम की मृत्यु हो गई है । अब मराठाओं के पास राज्याभिषेक के नाम पर सिर्फ विधवाएँ और दो छोटे-छोटे बच्चे ही बचे थे । औरंगजेब पुनः प्रसन्न हुआ कि चलो अंततः मराठा साम्राज्य समाप्त होने को है । लेकिन वह फिर से गलत साबित हुआ… क्योंकि 25 वर्षीय रानी ताराबाई ने सत्ता के सारे सूत्र अपने हाथ में ले लिए और अपने अपने चार वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय को राजा घोषित कर दिया । अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए ताराबाई ने मराठा सरदारों को साम-दाम-दण्ड-भेद सभी पद्धतियाँ अपनाते हुए अपनी तरफ मिलाया और राजाराम की दूसरी रानी राजसबाई को जेल में डाल दिया । मुग़ल इतिहासकार खफी खान लिखते हैं – “राजाराम के साथ रहकर ताराबाई भी गुरिल्ला युद्ध और सेना की रणनीतियों से खासी परिचित हो गई थीं और उन्होंने अपनी बहादुरी से कई मराठा सरदारों को प्रभावित भी किया था” ।

🚩अगले सात वर्ष में, अर्थात सन 1700 से 1707 तक ताराबाई ने तत्कालीन सबसे शक्तिशाली बादशाह अर्थात औरंगजेब के खिलाफ अपना युद्ध जारी रखा । वह लगातार आक्रमण करतीं, अपनी सेना को उत्साहित करतीं और किले बदलती रहतीं । ताराबाई ने भी औरंगजेब की रिश्वत तकनीक अपना ली और विरोधी सेनाओं के कई गुप्त राज़ मालूम कर लिए । धीरे-धीरे ताराबाई ने अपनी सेना और जनता का विश्वास अर्जित कर लिया । औरंगजेब जो कि थक चुका था, उसके सामने मराठों की शक्ति पुनः दिनोंदिन बढ़ने लगी थी ।

🚩ताराबाई ने औरंगजेब को जिस रणनीति से सबसे अधिक चौंकाया और तकलीफ दी, वह थी गैर-मराठा क्षेत्रों में घुसपैठ । चूँकि औरंगजेब का सारा ध्यान दक्षिण और पश्चिमी घाटों पर लगा था, इसलिए मालवा और गुजरात में उसकी सेनाएँ कमज़ोर हो गई थीं । ताराबाई ने सूरत की तरफ से मुगलों के क्षेत्रों पर आक्रमण करना शुरू किया और धीरे-धीरे (आज के पश्चिमी मप्र) आगे बढ़ते हुए कई स्थानों पर अपनी वसूली चौकियां स्थापित कर लीं । ताराबाई ने इन सभी क्षेत्रों में अपने कमाण्डर स्थापित कर दिए और उन्हें सुबेदार, कमाविजदार, राहदार, चिटणीस जैसे विभिन्न पदानुक्रम में व्यवस्थित भी किया ।

🚩मराठाओं को खत्म नहीं कर पाने की कसक लिए हुए सन 1707 में 89 की आयु में औरंगजेब की मृत्यु हुई । वह बुरी तरह टूट और थक चुका था, अंतिम समय पर उसने औरंगाबाद में अपना ठिकाना बनाने का फैसला किया, जहाँ उसकी मौत भी हुई और आखिरकार अंत तक वह दिल्ली नहीं लौट सका । औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात मुगलों ने उसके द्वारा अपहृत किये हुए पुत्र शाहू को मुक्त कर दिया, ताकि सत्ता संघर्ष के बहाने मराठों में फूट डाली जा सके । यह पता चलते ही रानी ताराबाई ने शाहू को “गद्दार” घोषित कर दिया । ताराबाई ने विभिन्न स्थानों पर दरबार लगाकर जनता को यह बताया कि इतने वर्ष तक औरंगजेब की कैद में रहने और उसकी पुत्री द्वारा पाले जाने के कारण शाहू अब मुस्लिम बन चुका है, और वह मराठा साम्राज्य का राजा बनने लायक नहीं है । रानी ताराबाई के इस दावे की पुष्टि खुद शाहू ने की, जब वह औरंगजेब को श्रद्धांजलि अर्पित करने नंगे पैरों उसकी कब्र पर गया । ताराबाई के कई प्रयासों के बावजूद शाहू मुग़ल सेनाओं के समर्थन से लगातार जीतता गया और सन 1708 में उसने सातारा पर कब्ज़ा किया, जहाँ उसे राजा घोषित करना पड़ा, क्योंकि उसे मुगलों का भी समर्थन हासिल था ।

🚩ताराबाई हार मानने वालों में से नहीं थीं, उन्होंने अगले कुछ वर्ष के लिए अपने मराठा राज्य की नई राजधानी पन्हाला में स्थानांतरित कर दी । अगले पाँच-छह वर्ष शाहू और ताराबाई के बीच लगातार युद्ध चलते रहे । मजे की बात यह कि इन दोनों ने ही दक्षिण में मुगलों के किलों और उनके राजस्व वसूली को निशाना बनाया और चौथ वसूली की । आखिरकार शाहू भी ताराबाई से लड़ते-लड़ते थक गया और उसने एक अत्यंत वीर योद्धा बालाजी विश्वनाथ को अपना “पेशवा” (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया । बाजीराव पेशवा के नाम से मशहूर यह योद्धा युद्ध तकनीक और रणनीतियों का जबरदस्त ज्ञाता था । बाजीराव पेशवा ने कान्होजी आंग्रे के साथ मिलकर 1714 में ताराबाई को पराजित किया तथा उसे उसके पुत्र सहित पन्हाला किले में ही नजरबन्द कर दिया, जहाँ ताराबाई और अगले 16 वर्ष कैद रही ।

🚩1730 तक ताराबाई पन्हाला में कैद रही, लेकिन इतने वर्षों के पश्चात शाहू जो कि अब छत्रपति शाहूजी महाराज कहलाते थे उन्होंने विवादों को खत्म करते हुए सभी को क्षमादान करने का निर्णय लिया ताकि परिवार को एकत्रित रखा जा सके । हालाँकि उन्होंने ताराबाई के इतिहास को देखते हुए उन्हें सातारा में नजरबन्द रखा, लेकिन संभाजी द्वितीय को कोल्हापुर में छोटी सी रियासत देकर उन्हें वहाँ शान्ति से रहने के लिए भेज दिया । बालाजी विश्वनाथ उर्फ बाजीराव पेशवा प्रथम और द्वितीय की मदद से शाहूजी महाराज ने मराठा साम्राज्य को समूचे उत्तर भारत तक फैलाया । 1748 में शाहूजी अत्यधिक बीमार पड़े और लगभग मृत्यु शैय्या पर ही थे, उस समय ताराबाई 73 वर्ष की हो चुकी थीं लेकिन उनके दिमाग में मराठा साम्राज्य की रक्षा और सत्ता समीकरण घूम रहे थे । शाहूजी महाराज के बाद कौन?? यह सवाल ताराबाई के दिमाग में घूम रहा था । वह पेशवाओं को अपना साम्राज्य इतनी आसानी से देना नहीं चाहती थीं । तब ताराबाई ने एक फर्जी कहानी गढी और लोगों से बताया कि उसका एक पोता भी है, जिसे शाहूजी महाराज के डर से उसके बेटे ने एक गरीब ब्राह्मण परिवार में गोद दे दिया था, उसका नाम रामराजा है और अब वह 22 साल का हो चुका है, उसका राज्याभिषेक होना चाहिए । ताराबाई मजबूती से अपनी यह बात शाहूजी को मनवाने में सफल हो गईं और इस तरह 1750 में उस नकली राजकुमार रामराजा के बहाने ताराबाई पुनः मराठा साम्राज्य की सत्ता पर काबिज हो गई । रामाराजा को उसने कभी भी स्वतन्त्र रूप से काम नहीं करने दिया और सदैव परदे के पीछे से सत्ता के सूत्र अपने हाथ में रखे ।

🚩इस बीच मराठों का राज्य पंजाब की सीमा तक पहुँच चुका था । इतना बड़ा साम्राज्य संभालना ताराबाई और रामराजा के बस की बात नहीं थी, हालाँकि गायकवाड़, भोसले, शिंदे, होलकर जैसे कई सेनापति इसे संभालते थे, परन्तु इन सभी की वफादारी पेशवाओं के प्रति अधिक थी । अंततः ताराबाई को पेशवाओं से समझौता करना पड़ा । मराठा सेनापति, सूबेदार, और सैनिक सभी पेशवाओं के प्रति समर्पित थे अतः ताराबाई को सातारा पर ही संतुष्ट होना पड़ा और मराठाओं की वास्तविक शक्ति पूना में पेशवाओं के पास केंद्रित हो गई । ताराबाई 1761 तक जीवित रही । जब उन्होंने अब्दाली के हाथों पानीपत के युद्ध में लगभग दो लाख मराठों को मरते देखा तब उस धक्के को वह बर्दाश्त नहीं कर पाई और अंततः 86 की आयु में ताराबाई का निधन हुआ । परन्तु इतिहास गवाह है कि यदि 1701 में ताराबाई ने सत्ता और मराठा योद्धाओं के सूत्र अपने हाथ में नहीं लिए होते, औरंगज़ेब को स्थान-स्थान पर रणनीतिक मात नहीं दी होती और मालवा-गुजरात तक अपना युद्धक्षेत्र नहीं फैलाया होता तो निश्चित ही औरंगज़ेब समूचे पश्चिमी घाट पर कब्ज़ा कर लेता । मराठों का कोई नामलेवा नहीं बचता और आज की तारीख में इस देश का इतिहास कुछ और ही होता । समूचे भारत पर मुग़ल सल्तनत बनाने का औरंगज़ेब का सपना, सपना ही रह गया । इस वीर मराठा स्त्री ने औरंगज़ेब को वहीं युद्ध में उलझाए रखा, दिल्ली तक लौटने नहीं दिया । औरंगज़ेब के बाद मुग़ल सल्तनत वैसे ही कमज़ोर पड़ गई थी । इस वीरांगना ने अकेले दम पर जहाँ एक तरफ औरंगज़ेब जैसे शक्तिशाली मुगल बादशाह को बुरी तरह थकाया, हराया और परेशान किया, वहीं दूसरी तरफ धीरे-धीरे मराठा साम्राज्य को भी आगे बढाती रहीं…

🚩एक समय पर मराठों का साम्राज्य दक्षिण में तंजावूर से लेकर अटक (आज का अफगानिस्तान) तक था, लेकिन आपको अक्सर इस इतिहास से वंचित रखा जाता है और विदेशी हमलावरों तथा लुटेरों को विजेता, दयालु और महान बताया जाता है, सोचिए कि ऐसा क्यों है ? आज 9 दिसम्बर को भगवा ध्वज वाहिका, छत्रपति शिवजी महराज की बहू वीरांगना महारानी ताराबाई जी की पुण्यतिथि पर उनको बारम्बार नमन और वंदन करते है, जिन्होंने क्रूर, मतान्ध औरंगज़ेब को उस के अरमानों के साथ दक्षिण में ही दफन करते हुए अन्य सभी मत मज़हब वाले लोगों को प्रदान की निर्भयता ।
स्त्रोत : सुदर्शन न्यूज़

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Saturday, December 8, 2018

यीशु की कब्र पर उगा था तुलसी का पौधा, 25 दिसम्बर को तुलसी पूजन?

08 दिसंबर 2018

🚩 हिंदुस्तान में तुलसीदास भी प्रसिद्ध हैं और तुलसी का पौधा भी, बल्कि अगर यों कहें कि यहां जन जीवन में तुलसी का पौधा बहुत महत्वपूर्ण है । अधिकांश हिंदू घरों में तुलसी का पौधा पाया जाता है, जिसकी सभी पूजा भी करते हैं ।  ग्रामीण या आम भाषा में लोग इसे तुलसा भी कहते हैं ।

🚩इसी तुलसी के संबंध में विशेष बात यह है कि हिंदू धर्म में ही नहीं ईसाई धर्म में भी बहुत पवित्र माना गया है । अंग्रेजी में इसे "बेसिल" या "सेक्रेड बेसिल" यानी पवित्र तुलसी कहते हैं । और इसलिए पवित्रता का बोध कराने के लिए अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक नामकरण में जो कि लैटिन भाषा में होता है इसे "ओसीमम स्पेक्टम" कहा गया है ।अंग्रेजी का बेसिल शब्द ग्रीक भाषा के "बेसीलि कोन" शब्द से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है राजसी । से फ्रांस वाले इसलिए इसे 'ल प्लांती रॉयली' अर्थात रॉयल पौधा कहते हैं ईसाइयों में इसके पवित्र माने जाने का कारण यह है कि यही वह पौधा है जो ईसा मसीह यानी क्राइस्ट की कब्र पर ऊगा था तब से ईसाई द्वारा इसे पवित्र कहा जाने लगा ।

Tulsi plant was grown on the grave of Jesus,
Tulsi worship on 25th December?
🚩इटली और ग्रीस के लोगों को भी बहुत पहले इसके गुप्त लक्षण यानी औषधीय गुणों का पता था । इसलिए संत बेसिल दिवस को स्त्रियों द्वारा तुलसी की टहनियों को गिरजाघर में ले जाने और घर लौटने पर उन टहनियों को फर्श पर बिखरा देने की प्रथा रही है ताकि आने वाला वर्ष शुभकारी हो । इन टहनियों की कुछ पत्तियों को खा लेने और कुछ को अपने कबर्ड में चूहे व कीड़े भगाने के लिए प्रयुक्त करने की प्रथा भी है ।

🚩भारत में तुलसी की पत्ती व मंजरी को औषधी रूप में प्रयुक्त किया जाता है । छोटे बच्चे या शिशुओं को हिचकी आते समय इसकी पत्ती की एक बिंदी बच्चे के माथे पर लगा देते हैं । गंदे स्थानों या कीटाणुओं वाली जगहों से लौटने के बाद लोग तुलसी की पत्ती मुंह में रखकर चबा लिया करते हैं । चरणामृत के द्रव्यों में तुलसी की पत्ती एक प्रमुख अंश है । घरों में पूजा के जलपात्र में पानी के साथ तुलसीदल भी देवताओं को चढ़ाया जाता है हिंदू लोगों द्वारा अभी भी जनेऊ चूड़ी वगैरा टूटने पर पवित्र जगह यानि तुलसी के पास रख दिए जाते हैं । मरते समय आदमी के मुख में तुलसी की पत्ती रखे बिना संस्कार पूरा नहीं होता यह विधि वैज्ञानिक इसीलिए भी है कि मरते समय आदमी की साँस के किटाणु तुलसी से नष्ट हो जाए फैले नहीं और उधर कहते हैं कि तब तक प्राण पखेरू शांति से नहीं निकलते जब तक कि तुलसीदल न रखा जाए।

🚩बहुत पहले से ही भारतीय लोग इसके औषधीय महत्व को जानते रहे हैं । यह वातावरण की वायु शुद्ध रखती है और मच्छर कीट पतंगों आदि को दूर भगाती है । इसकी तेज सुगंध अनेक रोगों के कीटाणुओं को नष्ट कर देती है । खांसी,जुकाम,गले की बीमारियां,मलेरिया आदि में उबले पानी या चाय के साथ इसका सेवन लाभकारी होता हैं । इसीलिए स्त्रियों द्वारा इसकी पूजा का आरंभ हुआ होगा । इसके औषधीय और लाभकारी महत्व के कारण स्त्रियां इसे कठड़े, कनस्तर,गमले, बगीचा या घर आंगन के कोने में उगाने लगी होंगी । सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत होकर इसका सिंचन और देखभाल करना ही शनै-शनै पूजा बन गई। फिर लाभकारी वस्तु की पूजा तो भारत की परंपरा रही है । 

🚩स्त्रियां चूंकि धार्मिक अधिक होती है इसलिए धीरे-धीरे तुलसी के बिरवा की पूजा परिक्रमा करना,धूप दीप नैवेद्य रोली व अक्षत चढ़ाना तुलसी की शादी रचाना आदि अनेक बातें पूजा के अंतर्गत हो गई । कुछ लोग, जिनकी लड़कियां नहीं होती, तुलसी का विवाह रचाकर ही कन्यादान का पुण्य प्राप्त करते हैं । यदि यह माना जाए कि इससे और कुछ न मिलता है तो व्यस्त रहने के लिए धार्मिक और सामाजिक कर्म तो है ही यह । जो चीज मन को शांति दे, कितनी महान है वह चीज ।

🚩हिन्दू क्रिस्तानी या यूनानी लोगों के तुलसी वाले औषधि विश्वास को वैज्ञानिकों ने सच सिद्ध कर दिया है । इसकी एरोमा या सुगंध सचमुच #रोगाणुनाशक #संक्रमणहारी होती है । तुलसी के विभिन्न रासायनिक घटक और तत्व विभिन्न रोगों पर विविध प्रकार से प्रभाव डालते हैं । कुछ वर्ष पहले दिल्ली के अनुसंधान संस्थान ने इस बात को खोज निकाला कि तुलसी से जो तैलीय पदार्थ निकलता है वह टी.बी. या यक्षमा जैसे रोग का नाश कर डालता है । अभी इस क्षेत्र में अधिक अनुसंधान नहीं हुए हैं और उसके अनेक गुणों पर पर्दा पड़ा हुआ है, लेकिन आशा है कि वैज्ञानिक शीघ्र ही अन्य रहस्यों का पर्दाफाश करेंगे कि उनसे उत्तरोत्तर लाभान्वित हो सकें ।
(स्रोत्र : 10 वीं कक्षा, कक्षा इंग्लिश मीडियम, महाराष्ट्र)

🚩गौरतलब है कि #हिन्दू संत #आसारामजी #बापू ने वर्ष 2014 से #25 दिसम्बर को #‘तुलसी पूजन दिवस #शुरू #करवाया ।  करोड़ों की तादाद में जनता ने बापू आसारामजी के इस #अभियान को अपनाया है । इस पर्व की #लोकप्रियता विश्वस्तर पर देखी गयी ।

🚩25 दिसम्बर को क्यों मनायें 'तुलसी पूजन दिवस'?

इन दिनों में बीते वर्ष की विदाई पर #पाश्चात्य #अंधानुकरण से #नशाखोरी, #आत्महत्या आदि की #वृद्धि होती जा रही है । तुलसी उत्तम अवसादरोधक एवं उत्साह, स्फूर्ति, सात्त्विकता वर्धक होने से इन दिनों में यह पर्व मनाना वरदानतुल्य साबित होगा ।

🚩धनुर्मास में सभी सकाम कर्म वर्जित होते हैं परंतु भगवत्प्रीतिर्थ कर्म विशेष फलदायी व प्रसन्नता देने वाले होते हैं । 25 दिसम्बर धनुर्मास के बीच का समय होता है ।

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