8 अप्रैल 2019
आज भारत को आज़ादी मिले 71 वर्षों से भी अधिक समय हो चुका है, हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन लोगों में देशभक्ति देखने को मिलती है, देशभक्ति के गीत हर जगह गाए और बजाए जाते हैं, लेकिन जब बात अपनी मातृभाषा, अपनी हिंदी पर आती है तो बस एक ही लाइन सुनने में आती है और वो है "My hindi is weak" । ये लाइन बोलने वाला व्यक्ति आज एक सभ्य नागरिक माना जाता है और हिंदी बोलने वाला गांव का गंवार ।
क्या सच में ये हम हिंदुओं का हिंदुस्तान है, जहां की राष्ट्र भाषा हिंदी है ?
एक ओर जहां जर्मनी, जापान, चीन जैसे बड़े-बड़े देश अपनी मातृभाषा को सम्मान देकर, आपनी खुद की राष्ट्रभाषा का उपयोग कर उन्नति के शिखर पर पहुंच रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर हमारे अपने हिंदुस्तान में हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी को महत्व न देकर अंग्रेजी को महत्व दिया जा रहा है ।
यहां तक कि देश की सबसे बड़ी परीक्षा UPSC में भी हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी को महत्व दिया जा रहा है । वैसे तो सभी जगहों पर अंग्रेजी को महत्व दिया जाता है, लेकिन हम यहां UPSC को इसलिए उजागर कर रहे हैं क्योंकि यही वो परीक्षा है जो देश को बड़े-बड़े IAS, IPS जैसे अधिकारी देती है । देश की सेवा करने के इच्छुक विद्यार्थी इस परीक्षा को बड़े जतन से देते हैं, लेकिन अगर उन्हें सिर्फ इस बात से रोक दिया जाए कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती तो ये कितना उचित है ?
इस वर्ष UPSC के रिजल्ट ने हिन्दी भाषी छात्रों को पलायन पर मजबूर कर दिया है । परीक्षा में सम्मिलित 800 छात्रों में मात्र 20 छात्र सफल हुए जो मात्र 2.5% है ।
इसमें जो सफल भी हुए, उनका रैंक बहुत ही ज्यादा हो गया है। इस वर्ष जिसने हिन्दी भाषा से टॉप किया है, उसका रैंक 389 है, जो कॉपी मूल्यांकन पर बार बार सवाल खड़ा कर रहा है ।
इसमें जो सफल भी हुए, उनका रैंक बहुत ही ज्यादा हो गया है। इस वर्ष जिसने हिन्दी भाषा से टॉप किया है, उसका रैंक 389 है, जो कॉपी मूल्यांकन पर बार बार सवाल खड़ा कर रहा है ।
जी हां अभी हाल ही में ऐसा ही चौका देने वाला मामला सामने आया है, राज्य सभा में संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी की परीक्षाओं में क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव का मामला उठा। बीजेपी के उत्तर प्रदेश से सांसद हरनाथ सिंह यादव ने रिपोर्ट के हवाले से बताया कि यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले हिंदी माध्यम के छात्रों की संख्या साल दर साल कम होती जा रही है।
हिंदी मीडियम वालों के साथ भेदभाव:-
हरनाथ सिंह ने कहा कि हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों की संख्या में हो रही गिरावट गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने हिंदी मीडियम के अभ्यर्थियों के साथ होने वाली भेदभाव की ओर सदन का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि यूपीएससी की मुख्य परीक्षा की कॉपी चेक करने पर भी आरोप लग रहे हैं।
UPSC कॉपी की जांच JNU, BHU जैसे भारत के बड़े बड़े विश्वविद्यालय के प्रोफेसर करते हैं । ये अंग्रेजी माध्यम के जानकार रहते हैं और बहुत से हिन्दी अक्षरों को समझ भी नहीं पाते हैं। और कॉपी में औसत अंक देते जाते हैं।
हिन्दी माध्यम के इंटरव्यू में भी अंग्रेजी पर आधारित प्रश्न पूछे जाते है, जिसका खामियाजा हिन्दी भाषी छात्र को उठाना पर रहा है।
हिन्दी माध्यम के इंटरव्यू में भी अंग्रेजी पर आधारित प्रश्न पूछे जाते है, जिसका खामियाजा हिन्दी भाषी छात्र को उठाना पर रहा है।
वे हिंदी माध्यम के छात्रों के साथ भेदभाव करते हैं। तथा इंटरव्यू के दौरान हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ अपमानजनक व्यवहार भी किया जाता है ।
सवाल ही गलत तो जवाब का क्या :-
सांसद सिंह ने यूपीएससी के हिंदी के पेपर को लेकर भी सवाल खड़े किए । उन्होंने कहा कि इंग्लिश के पेपर का हिंदी में अनुवाद गूगल ट्रांसलेट की मदद से किया जाता है । मशीनी अनुवाद होने के कारण सवाल का सिर्फ पूरा ढांचा ही नहीं बदलता, बल्कि कई बार सवाल में काफी गलती होती है। ऐसे में किसी मेधावी छात्र के लिए भी उन सवालों का जवाब देना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा कि जब सवाल ही गलत होंगे, तो जवाब सहीं कैसे हो सकता है। :- इंडिया टाइम्स
ऊपर की खबरों को पढ़कर आपको पता चल ही गया होगा कि यूपीएससी जैसे एग्जाम में कितने गैरजिम्मेदाराना कार्य हो रहे हैं । देश की अच्छी तरह से सेवा कौन कर सकता ?
वो जो अपनी राष्ट्रभाषा बोलता हो, उसे सम्मान देता हो या वो जो अंग्रेजों की भाषा को अपनाकर, अपनी भाषा को कहीं दूर छोड़ आया हो ?
UPSC के गलत शिक्षा प्रणाली छात्रों पर भारी पड़ रही है, इसके बावजूद सरकार मौन है ।
माना आज का परिवेश ऐसा बन गया है कि अंग्रेजी को एक जरूरत की तरह देखा जाता है लेकिन इसे बनाने वाले कौन हैं ? क्या हम अपनी हिंदी भाषा बोलकर देश की सेवा नहीं कर सकते ?
सभी मौसियों का सम्मान करना चाहिए लेकिन प्रेम तो अपनी माँ से ही हो, ऐसे ही सभी भाषाओं को सम्मान की दृष्टि से देखो, लेकिन अपनी मातृभाषा, अपनी हिंदी को सर्वोपरि रखो ।
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