Saturday, April 13, 2019

जालियाँवाला बाग हत्याकांड को 100 वर्ष हो गए, पर नहीं गई गुलामी

https://youtu.be/hCyMvk427Iw

13 अप्रैल 2019 

🚩जालियाँवाला बाग हत्याकांड (Jalianwala Bagh Massacre) की कहानी सुनते ही आज भी हर भारतीय की रूह कांप जाती है । यह ऐसा बर्बर हत्याकांड अंग्रेजों ने हम भारतीयों पर किया था । जिसकी निंदा आज तक की जाती है । अंग्रेजो के द्वारा किये गए इस बर्बर हत्याकांड के लिए आज भी ब्रिटेन के उच्च अधिकारी शोक जताते हैं । आज इस हत्याकांड के 100 वर्ष पूरे हो चुके हैं । 

🚩यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य #हत्याकाण्ड ही था । माना जाता है कि यह घटना ही भारत में #ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी ।
ऐतिहासिक घटनाक्रम...

🚩13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का दिन थाव। बैसाखी वैसे तो पूरे भारत का एक प्रमुख त्यौहार है परंतु विशेषकर पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की रबी की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियाँ मनाते हैं । इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें और अंतिम गुरु गुरुगोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसीलिए बैसाखी पंजाब और आस-पास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्यौहार है और सिख इसे सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं । अमृतसर में उस दिन एक मेला सैकड़ों साल से लगता चला आ रहा था जिसमें उस दिन भी हजारों लोग दूर-दूर से आए थे ।

अंग्रेजों की मंशा..

🚩प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) में भारतीय नेताओं और जनता ने खुल कर ब्रिटिशों का साथ दिया था । 13 लाख भारतीय सैनिक और सेवक यूरोप, अफ्रीका और मिडल ईस्ट में ब्रिटिशों की तरफ से तैनात किए गए थे जिनमें से 43,000 भारतीय सैनिक युद्ध में शहीद हुए थे। युद्ध समाप्त होने पर भारतीय नेता और जनता ब्रिटिश सरकार से सहयोग और नरमी के रवैये की आशा कर रहे थे परंतु ब्रिटिश सरकार ने मॉण्टेगू-चेम्सफोर्ड सुधार लागू कर दिए जो इस भावना के विपरीत थे ।

🚩लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पंजाब के क्षेत्र में ब्रिटिशों का विरोध कुछ अधिक बढ़ गया था जिसे भारत प्रतिरक्षा विधान (1915) लागू कर के कुचल दिया गया था। उसके बाद 1918 में एक ब्रिटिश जज सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक सेडीशन समिति नियुक्त की गई थी जिसकी जिम्मेदारी ये अध्ययन करना था कि भारत में, विशेषकर पंजाब और बंगाल में ब्रिटिशों का विरोध किन विदेशी शक्तियों की सहायता से हो रहा था। इस समिति के सुझावों के अनुसार भारत प्रतिरक्षा विधान (1915) का विस्तार कर के भारत में रॉलट एक्ट लागू किया गया था, जो आजादी के लिए चल रहे आंदोलन पर रोक लगाने के लिए था, जिसके अंतर्गत ब्रिटिश सरकार को और अधिक अधिकार दिए गए थे जिससे वह प्रेस पर सेंसरशिप लगा सकती थी, नेताओं को बिना मुकदमें के जेल में रख सकती थी, लोगों को बिना वॉरण्ट के गिरफ्तार कर सकती थी, उन पर विशेष ट्रिब्यूनलों और बंद कमरों में बिना जवाबदेही दिए हुए मुकदमा चला सकती थी आदि। इसके विरोध में पूरा भारत उठ खड़ा हुआ और देश भर में लोग गिरफ्तारियां दे रहे थे।

गाँधीजी ने रोलेट एक्ट का किया विरोध..

🚩गांधी तब तक दक्षिण अफ्रीका से भारत आ चुके थे और धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता बढ़ रही थी । उन्होंने रोलेट एक्ट का विरोध करने का आह्वान किया जिसे कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार ने और अधिक नेताओं और जनता को रोलेट एक्ट के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया और कड़ी सजाएँ दी । इससे जनता का आक्रोश बढ़ा और लोगों ने रेल और डाक-तार-संचार सेवाओं को बाधित किया । आंदोलन अप्रैल के पहले सप्ताह में अपने चरम पर पहुँच रहा था । लाहौर और अमृतसर की सड़कें लोगों से भरी रहती थी । करीब 5,000 लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठे थे । ब्रिटिश सरकार के कई अधिकारियों को यह 1857 के गदर की पुनरावृत्ति जैसी परिस्थिति लग रही थी जिसे न होने देने के लिए और कुचलने के लिए वो कुछ भी करने के लिए तैयार थे ।

अंग्रेजों के अत्याचार..

🚩आंदोलन के दो नेताओं सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर कालापानी की सजा दे दी गई । 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर के उप कमिश्नर के घर पर इन दोनों नेताओं को रिहा करने की माँग पेश की गई। परंतु ब्रिटिशों ने शांतिप्रिय और सभ्य तरीके से विरोध प्रकट कर रही जनता पर गोलियाँ चलवा दी। जिससे तनाव बहुत बढ़ गया और उस दिन कई बैंकों, सरकारी भवनों, टाउन हॉल, रेलवे स्टेशन में आगजनी की गई । इस प्रकार हुई हिंसा में 5 यूरोपीय नागरिकों की हत्या हुई । इसके विरोध में ब्रिटिश सिपाही भारतीय जनता पर जहाँ-तहाँ गोलियाँ चलाते रहे जिसमें 8 से 20 भारतीयों की मृत्यु हुई । अगले दो दिनों में अमृतसर तो शाँत रहा पर हिंसा पंजाब के कई क्षेत्रों में फैल गई और 3 अन्य यूरोपीय नागरिकों की हत्या हुई। इसे कुचलने के लिए ब्रिटिशों ने पंजाब के अधिकतर भाग पर मार्शल लॉ लागू कर दिया ।

जलियाँवाला बाग काण्ड का विवरण..

🚩बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे । शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया । उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थी। नेताओं ने सैनिकों को देखा, तो उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शांत बैठे रहने के लिए कहा।

गोलीबारी..

🚩सैनिकों ने बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दी। 15 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गई । जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था । वहाँ तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे । भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया । जलियांवाला बाग कभी जलली नामक आदमी की सम्पति थी ।

शहीदी कुआं..

🚩बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो सिर्फ कुए से ही मिले । शहर में क‌र्फ्यू लगा था जिससे घायलों को इलाज के लिए भी कहीं ले जाया नहीं जा सका। लोगों ने तड़प-तड़प कर वहीं दम तोड़ दिया। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है । ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी ।

करतूत बयानी..

🚩मुख्यालय वापस पहुँच कर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को टेलीग्राम किया कि उस पर भारतीयों की एक फौज ने हमला किया था जिससे बचने के लिए उसको गोलियाँ चलानी पड़ी । ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने इसके उत्तर में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को टेलीग्राम किया कि तुमने सहीं कदम उठाया । मैं तुम्हारे निर्णय को अनुमोदित करता हूँ । फिर ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ डायर ने अमृतसर और अन्य क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाने की माँग की जिसे वायसरॉय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने स्वीकृत कर दिया ।

जाँच..

🚩इस हत्याकाण्ड की विश्वव्यापी निंदा हुई जिसके दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एडविन मॉण्टेगू ने 1919 के अंत में इसकी जाँच के लिए हंटर कमीशन नियुक्त किया। कमीशन के सामने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने स्वीकार किया कि वह गोली चला कर लोगों को मार देने का निर्णय पहले से ही ले कर वहाँ गया था और वह उन लोगों पर चलाने के लिए दो तोपें भी ले गया था जो कि उस संकरे रास्ते से नहीं जा पाई थी। हंटर कमीशन की रिपोर्ट आने पर 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को पदावनत कर के कर्नल बना दिया गया और अक्रिय सूचि में रख दिया गया। उसे भारत में पोस्ट न देने का निर्णय लिया गया और उसे स्वास्थ्य कारणों से ब्रिटेन वापस भेज दिया गया। हाउस ऑफ कॉमन्स ने उसका निंदा प्रस्ताव पारित किया परंतु हाउस ऑफ लॉर्ड ने इस हत्याकाण्ड की प्रशंसा करते हुये उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया। विश्वव्यापी निंदा के दबाव में ब्रिटिश सरकार ने उसका निंदा प्रस्ताव पारित किया और 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को इस्तीफा देना पड़ा । 1927 में बीमारी से ग्रस्त हो गया और तड़प-तड़पकर मर गया ।

🚩रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध-स्वरूप अपनी नाइटहुड को वापस कर दिया। आजादी के लिए लोगों का हौंसला ऐसी भयावह घटना के बाद भी पस्त नहीं हुआ। बल्कि सच तो यह है कि इस घटना के बाद आजादी हासिल करने की चाहत लोगों में और जोर से उफान मारने लगी। हालांकि उन दिनों संचार और आपसी संवाद के वर्तमान साधनों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, फिर भी यह खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई। आजादी की चाह न केवल पंजाब, बल्कि पूरे देश के बच्चे-बच्चे के सिर चढ़ कर बोलने लगी। उस दौर के हजारों भारतीयों ने जलियांवाला बाग की मिट्टी को माथे से लगाकर देश को आजाद कराने का दृढ़ संकल्प लिया। पंजाब तब तक मुख्य भारत से कुछ अलग चला करता था परंतु इस घटना से पंजाब पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित हो गया। इसके फलस्वरूप गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया।

🚩1997 में महारानी एलिजाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी।  2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि "ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।"

प्रतिघात..

🚩जब जलियांवाला बाग में यह हत्याकांड हो रहा था, उस समय उधमसिंह वहीं मौजूद थे और उन्हें भी गोली लगी थी। उन्होंने तय किया कि वह इसका बदला लेंगे। 13 मार्च 1940 को उन्होंने लंदन के कैक्सटन हॉल में इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर माइकल ओ डायर को गोली चला के मार डाला। क्रंतिकारी ऊधमसिंह को 31 जुलाई 1940 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। 

🚩इस हत्याकांड ने तब 12 वर्ष की उम्र के भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जालियावाला बाग पहुंच गए थे। बाद में वे भी आज़ादी के लिए फांसी के फंदे पर चढ़ गए।

🚩हमारे देश को पहले मुगल और बाद में अंग्रेजो ने गुलाम बनाकर रखा था, भारत को खूब लूटा, संस्कृति नष्ट करने का प्रयत्न किया लेकिन फिर भी वीर हिंदुस्तानियों ने लोहा लिया अपने प्राणों की बलि देकर क्रूर मुगलों और अंग्रेजो को भगा दिया।

🚩लेकिन हम उनके इन बलिदानों का क्या उपयोग कर रहे हैं ?

🚩क्या केवल उन शहीदों को श्रंद्धांजलि देना ही काफी है या जो आजादी वो देखना चाहते थे उस आजादी की ओर हमें आगे बढ़ना है ?

🚩आजादी के 71 साल बीत गए पर आज भी हम अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता की गरिमा को भूलते हुए मानसिक रूप से तो अंग्रेजों के गुलाम ही हैं । देश में आज भी अंग्रेजों के बनाए कानून चल रहे हैं । राष्ट्र भाषा हिंदी की जगह अंग्रेजी भाषा को महत्व दिया जा रहा है । गुरुकुलों की जगह कॉन्वेंट स्कूल चल रहे हैं । इन सबको रोकना होगा तबी उनको सच्ची श्रद्धांजलि मिलेगी ।

🚩आओ अपने महान शहीदों को सच्ची श्रंद्धांजलि दें अपनी संस्कृति की ओर कदम बढ़ाते हुए...!!

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Friday, April 12, 2019

श्री रामजी के अंदर ऐसा क्या था जिससे लाखों साल बाद भी उन्हें याद किया जाता है ?

12 अप्रैल 2019 

🚩भगवान श्रीरामजी का आदर्श जीवन, उनका आदर्श चरित्र हर मनुष्य के लिए अनुकरणीय है । "श्री रामचरितमानस" में वर्णित यह आदर्श चरित्र विश्वसाहित्य में मिलना दुर्लभ है ।

🚩एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श पिता, आदर्श शिष्य, आदर्श योद्धा और आदर्श राजा के रूप में यदि किसीका नाम लेना हो तो भगवान श्रीरामजी का ही नाम सबकी जुबान पर आता है । इसलिए राम-राज्य की महिमा आज लाखों-लाखों वर्षों के बाद भी गायी जाती है ।
🚩भगवान श्रीरामजी के सद्गुण ऐसे तो विलक्षण थे कि पृथ्वी के प्रत्येक धर्म, सम्प्रदाय और जाति के लोग उन सद्गुणों को अपनाकर लाभान्वित हो सकते हैं ।

🚩श्रीरामजी सारगर्भित बोलते थे । उनसे कोई मिलने आता तो वे यह नहीं सोचते थे कि पहले वह बात शुरू करे या मुझे प्रणाम करे । सामनेवाले को संकोच न हो इसलिए श्रीरामजी अपनी तरफ से ही बात शुरू कर देते थे ।

🚩श्रीरामजी प्रसंगोचित बोलते थे । जब उनके राजदरबार में धर्म की किसी बात पर निर्णय लेते समय दो पक्ष हो जाते थे, तब जो पक्ष उचित होता श्रीरामजी उसके समर्थन में इतिहास, पुराण और पूर्वजों के निर्णय उदाहरण रूप में कहते, जिससे अनुचित बात का समर्थन करनेवाले पक्ष को भी लगे कि दूसरे पक्ष की बात सहीं है ।

🚩श्रीरामजी दूसरों की बात बड़े ध्यान व आदर से सुनते थे । बोलनेवाला जब तक स्वयं तथा औरों के अहित की बात नहीं कहता, तब तक वे उसकी बात सुन लेते थे । जब वह किसीकी निंदा आदि की बात करता तब देखते कि इससे इसका अहित होगा या इसके चित्त का क्षोभ बढ़ जाएगा या किसी दूसरे की हानि होगी, तब वे सामनेवाले की बातों को सुनते-सुनते इस ढंग से बात मोड़ देते कि बोलनेवाले का अपमान नहीं होता था । श्रीरामजी तो शत्रुओं के प्रति भी कटु वचन नहीं बोलते थे ।

🚩युद्ध के मैदान में श्रीरामजी एक बाण से रावण के रथ को जला देते, दूसरा बाण मारकर उसके हथियार उड़ा देते फिर भी उनका चित्त शांत और सम रहता था । वे रावण से कहते : ‘लंकेश ! जाओ, कल फिर तैयार होकर आना ।

🚩ऐसा करते-करते काफी समय बीत गया तो देवताओं को चिंता हुई कि रामजी को क्रोध नहीं आता है, वे तो समता-साम्राज्य में स्थिर हैं, फिर रावण का नाश कैसे होगा ? लक्ष्मणजी, हनुमानजी आदि को भी चिंता हुई, तब दोनों ने मिलकर प्रार्थना की : ‘प्रभु ! थोड़े कोपायमान होइए ।
तब श्रीरामजी ने क्रोध का आवाह्न किया : क्रोधं आवाहयामि । ‘क्रोध ! अब आ जा ।

🚩श्रीरामजी क्रोध का उपयोग तो करते थे किंतु क्रोध के हाथों में नहीं आते थे । श्रीरामजी को जिस समय जिस साधन की आवश्यकता होती थी, वे उसका उपयोग कर लेते थे । श्रीरामजी का अपने मन पर बड़ा विलक्षण नियंत्रण था । चाहे कोई सौ अपराध कर दे फिर भी रामजी अपने चित्त को क्षुब्ध नहीं होने देते थे ।

🚩सामनेवाला व्यक्ति अपने ढंग से सोचता है, अपने ढंग से जीता है, अतः वह आपके साथ अनुचित व्यवहार कर सकता है परंतु उसके ऐसे व्यवहार से अशांत होना-न होना आपके हाथ की बात है । यह जरूरी नहीं है कि सब लोग आपके मन के अनुरूप ही जिएं ।

🚩 श्रीरामजी अर्थव्यवस्था में भी निपुण थे  । "शुक्रनीति" और "मनुस्मृति" में भी आया है कि जो धर्म, संग्रह, परिजन और अपने लिए - इन चार भागों में अर्थ की ठीक से व्यवस्था करता है वह आदमी इस लोक और परलोक में सुख-आराम पाता है ।

🚩श्रीरामजी धन के उपार्जन में भी कुशल थे और उपयोग में भी । जैसे मधुमक्खी पुष्पों को हानि पहुँचाए बिना उनसे परागकण ले लेती है, ऐसे ही श्रीरामजी प्रजा से ऐसे ढंग से कर (टैक्स) लेते कि प्रजा पर बोझ नहीं पड़ता था । वे प्रजा के हित का चिंतन तथा उनके भविष्य का सोच-विचार करके ही कर लेते थे ।

🚩 प्रजा के संतोष तथा विश्वास-सम्पादन के लिए श्रीरामजी राज्यसुख, गृहस्थसुख और राज्यवैभव का त्याग करने में भी संकोच नहीं करते थे । इसलिए श्रीरामजी का राज्य आदर्श राज्य माना जाता है ।

🚩 राम-राज्य का वर्णन करते हुए ‘श्री रामचरितमानस में आता है : 
बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग ।
चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग ।।... ...

🚩‘राम-राज्य में सब लोग अपने-अपने वर्ण और आश्रम के अनुकूल धर्म में तत्पर हुए सदा वेद-मार्ग पर चलते हैं और सुख पाते हैं । उन्हें न किसी बात का भय है, न शोक और न कोई रोग ही सताता है ।

🚩राम-राज्य में किसीको आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप नहीं व्यापते । सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं ।

🚩धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान) से जगत में परिपूर्ण हो रहा है, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है । पुरुष और स्त्री सभी रामभक्ति के परायण हैं और सभी परम गति (मोक्ष) के अधिकारी हैं । स्त्रोत : ऋषि प्रसाद : मार्च : 2010

🚩देश के नेता भी श्री रामजी से कुछ गुण ले लें तो प्रजा के साथ-साथ उन नेताओं का भी कितना कल्याण होगा यह अवर्णनीय है और सदियों तक यश भी फैला रहेगा ।

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Thursday, April 11, 2019

सुप्रीम कोर्ट का आदेश मंदिर का नियंत्रण भक्त करें, सरकार नहीं

11 अप्रैल 2019 

🚩देश में कांग्रेस सरकार ने पहले सरकारी खजाना खाली कर दिया और उसके बाद उनकी वक्रदृष्टि हिन्दू मंदिरों में श्रद्धालुआें के धन पर पड़ी । इस धन को हड़पने के लिए उन्होंने हिन्दुआें के मंदिरों का सरकारीकरण आरंभ किया । इसके द्वारा मंदिर के श्रद्धालुआें के करोड़ों रुपए लूटे तथा हज यात्रा एवं चर्च के विकास के लिए उस धन का उपयोग किया ।

🚩कर्नाटक में हुए चुनावों के समय भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में हिन्दुआें के सरकारीकरण हुए मंदिर हिन्दुआें को वापस करेंगे, ऐसी एक प्रमुख घोषणा की थी, परंतु महाराष्ट्र में यही भाजपा सरकार हिन्दुआें से मंदिर छीनकर उनका सरकारीकरण कर रही है ।  सरकार कोई भी आए, लेकिन हिन्दुओं के हित का कार्य कोई भी  जल्दी नहीं करता है ।

🚩सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार धर्मनिरपेक्ष सरकार को हिन्दुआें के मंदिर चलाने का अधिकार नहीं है । न्यायालय ने केवल प्रबंधन कि त्रुटियां दूर कर मंदिर पुनः उस समाज को लौटाने के निर्देश दिए हैं । ऐसा होते हुए भी सरकार ने कई मंदिरों का सरकारीकरण किया है, और अभी भी लगातार कर रहे हैं ।

🚩 ‘सरकार की ओर से मंदिरों का होनेवाला सरकारीकरण और सरकार अधिगृहीत मंदिरों की कुव्यवस्था पर तीव्र अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मंदिरों का नियंत्रण भक्तों के हाथों में हो, यह काम सरकार का नहीं है ।’ यही बात हिन्दू जनजागृति समिति पिछले 13 वर्षों से कह रही है । यही बात देश के हिंदू कह रहे हैं । वर्ष 2006 से इस विषय में जन जागृति समिति आंदोलन भी कर रही है । मंदिरों का सरकारीकरण और वहां के भ्रष्ट सरकारी कामकाज के कारण हिन्दू समाज और श्रद्धालुआें में बहुत रोष है । इसलिए, सब राजनैतिक दल श्रीराममंदिर निर्माण की ही भांति मंदिर सरकारीकरण के विषय में अपनी नीति लोकसभा चुनाव से पहले स्पष्ट करें, यह मांग हिन्दू जनजागृति समिति ने की है ।

🚩प्राचीन काल में राज्यकर्ता मंदिरों को दान करते थे, परंतु इस देश में धर्मनिरपेक्ष शासनव्यवस्था लागू होने के पश्‍चात यह परंपरा टूट गई । अब इस शासन में हिन्दुआें के केवल धनी मंदिरों को लूटने का एकसूत्री कार्यक्रम आरंभ हुआ है । मंदिरों में पुजारियों को बदलना, धार्मिक कृत्य, प्रथा-परंपरा बंद करने का कार्य भी सरकार करने लगी है । इस अन्याय के विरुद्ध लड़ने का निश्‍चय हिन्दू जनजागृति समिति ने वर्ष 2006 में किया । उसके पश्‍चात, सरकार अधिग्रहित मंदिरों में श्री सिद्धिविनायक मंदिर (प्रभादेवी), श्री विठ्ठल-रुख्मिणी मंदिर(पंढरपुर), श्री साई संस्थान (शिर्डी), श्री तुलजापुर मंदिर आदि सब प्रमुख मंदिर तथा 3067 मंदिरों की व्यवस्था देखनेवाली ‘पश्‍चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति’ में सरकारी भ्रष्टाचार तथा अनुचित कामकाज को हिन्दू जनजागृति समिति ने प्रमाण के साथ समय-समय पर उजागर किया है । उन भ्रष्टाचारों के विरुद्ध वैध मार्ग से अनेक आंदोलन और वैधानिक लड़ाई अभी भी जारी है । इस लड़ाई में समिति के साथ वारकरी संप्रदाय,हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन, मंदिरों के न्यासी, पुजारी मंडल और भक्त भी बड़ी संख्या में जुड़े हैं ।

🚩यदि मस्जिदों की व्यवस्था मुसलमानों के हाथ में है और चर्च की व्यवस्था ईसाई समाज के हाथ में है, तो मठों और मंदिरों की व्यवस्था हिन्दू समाज के हाथ में क्यों नहीं, उनपर सरकारी नियंत्रण क्यों होना चाहिए ? हमारे इस प्रश्‍न का उत्तर सरकार ने अभी तक नहीं दिया है ।

🚩हिन्दू मंदिरों की व्यवस्था नि:स्वार्थ भक्तों और धर्माचार्य के पास ही होनी चाहिए, यह मांग समिति बार-बार कर रही है । कर्नाटक राज्य के विधानसभा चुनाव के समय भाजपा सरकार ने मंदिरों को भक्तों को लौटाने का आश्‍वासन दिया था । अब देश में लोकसभा का चुनाव होनेवाला है । ऐसे समय सब राजनैतिक दल मंदिरों के सरकारीकरण के विषय में अपनी-अपनी नीति हिन्दू समाज के सामने स्पष्ट करें, यह आवाहन हिन्दू जनजागृति समिति करती है। - स्त्रोत : हिन्दू जनजागृति समिति

🚩सरकारी कामकाज में लगभग सभी जगह भ्रष्टाचार मिलता है अब वे हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक मंदिरों को भी सरकारीकरण करने लगे हैं तो फिर उसमें भ्रष्टाचार होना स्वाभाविक ही है ।

🚩हिन्दू कितना भी आर्थिक रूप से कमजोर हो, लेकिन फिर भी अपनी जिस देवस्थान में आस्था रखता है वहाँ कुछ न कुछ भेंट चढ़ाता ही है और इसलिए ताकि उन पैसों का सहीं इस्तेमाल होगा और सत्कर्म में लगेगा जिससे उसका और उसके परिवार का उद्धार होगा और ऐसे भी हिन्दू धर्म मे कमाई का दसवां हिस्सा दान करने का शास्त्र का नियम है तो लगभग सभी हिन्दू मंदिरों या आश्रमों में जाकर दान करते हैं और उन दान के पैसे से धर्म, राष्ट्र और समाज के उत्थान के लिये कार्य होते हैं ।

🚩सरकार अगर इन मंदिरों का सरकारी करण कर लेती है तो धर्म और राष्ट्र के हित के कार्य रुक जाएंगे और भ्रष्टाचार में पैसे चले जाएँगे इसलिए सरकार को मंदिरों को सरकारी तंत्र से मुक्त कर देना चाहिए ।

🚩सरकार कभी चर्च या मस्जिद को नियंत्रण में लेने के लिए विचार करती है ? अगर नहीं तो फिर मन्दिरों को ही  नियंत्रण में क्यों लेना चाहती है ? जबकि चर्चों और मस्जिदों में धर्मिक उन्माद बढ़ाया जाता है जो देश के लिए हानिकारक है और मंदिरों में शांति का पाठ पढ़ाया जाता है जो देश के लिए हितकारी है अतः अभी सरकार को शीघ्रातिशीघ्र मंदिरों को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त कर देना चाहिए ।

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Tuesday, April 9, 2019

वायनाड में हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने का इतिहास पढ़कर आपकी रूह भी कांप उठेगी

09 अप्रैल 2019 

🚩आजकल केरल का वायनाड चर्चा में है । उत्तर भारत में रहने वाले लोगों को यह संभवत प्रथम बार ज्ञात हुआ कि केरल में एक ऐसा भूभाग है जहाँ पर अहिन्दू (मुस्लिम +ईसाई) जनसंख्या हिन्दुओं से अधिक है । बहुत कम हिन्दुओं को यह ज्ञात होगा कि उत्तरी केरल के कोझिकोड, मल्लपुरम और वायनाड के इलाके दशकों पहले ही हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके थे । इस भूभाग में हिन्दू आबादी कैसे अल्पसंख्यक हुई ?  इसके लिए केरल के इतिहास को जानना आवश्यक हैं ।

🚩1. केरल में इस्लाम का आगमन अरब से आने वाले नाविकों के माध्यम से हुआ । केरल के राजपरिवार ने अरबी नाविकों की शारीरिक क्षमता और नाविक गुणों को देखते हुए उन्हें केरल में बसने के लिए प्रोत्साहित किया । यहाँ तक कि ज़मोरियन राजा ने स्थानीय मलयाली महिलाओं के उनके साथ विवाह करवाए । इन्हीं मुस्लिम नाविकों और स्थनीय महिलाओं की संतान मपिल्ला/ मापला/मोपला अर्थात भांजा कहलाई । ज़मोरियन राजा ने दरबार में अरबी नाविकों को यथोचित स्थान भी दिया । मुसलमानों ने बड़ी संख्या में राजा की सेना में नौकरी करना आरम्भ कर दिया । स्थानीय हिन्दू राजाओं द्वारा अरबी लोगों को हर प्रकार का सहयोग दिया गया । कालांतर में केरल के हिन्दू राजा चेरुमन ने भारत की पहले मस्जिद केरल में बनवाई । इस प्रकार से केरल के इस भूभाग में मुसलमानों की संख्या में वृद्धि का आरम्भ हुआ । उस काल में यह भूभाग समुद्री व्यापार का बड़ा केंद्र बन गया ।

🚩2. केरल के इस भूभाग पर जब वास्को डी गामा ने आक्रमण किया तो उसकी गरजती तोपों के समक्ष राजा ने उससे संधि कर ली । इससे समुद्री व्यापार पर पुर्तगालियों का कब्ज़ा हो गया और मोपला मुसलमानों का एकाधिकार समाप्त हो गया ।  स्थानीय राजा के द्वारा संरक्षित मोपला उनसे दूर होते चले गए । व्यापारी के स्थान पर छोटे मछुआरे आदि का कार्य करने लगे । उनका सामाजिक दर्जा भी कमतर हो गया । उनकी आबादी मूलतः तटीय और ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता में जीने लगी ।

🚩3. केरल के इस भूभाग पर जब टीपू सुल्तान की जिहादी फौजों ने आक्रमण किया तब स्थानीय मोपला मुसलमानों ने टीपू सुल्तान का साथ दिया । उन्होंने हिन्दुओं पर टीपू के साथ मिलकर कहर बरपाया । यह इस्लामिक साम्राज्यवाद की मूलभावना का पालन करना था । जिसके अंतर्गत एक मुसलमान का कर्त्तव्य दूसरे मुसलमान की इस्लाम के नाम पर सदा सहयोग करना नैतिक कर्त्तव्य हैं । चाहे वह किसी भी देश, भूभाग, स्थिति आदि में क्यों न हो । टीपू की फौजों ने बलात हिन्दुओं का कत्लेआम, मतांतरण, बलात्कार आदि किया । टीपू के दक्षिण के आलमगीर बनने के सपने को पूरा करने के लिए यह सब कवायद थी । इससे इस भूभाग में बड़ी संख्या में हिन्दुओं की जनसंख्या में गिरावट हुई । मुसलमानों के संख्या में भारी वृद्धि हुई क्यूंकि बड़ी संख्या में हिन्दू केरल के दूसरे भागों में विस्थापित हो गए ।

🚩4. अंग्रेजी काल में टीपू के हारने के बाद अंग्रेजों का इस क्षेत्र पर आधिपत्य हो गया । मोपला मुसलमान अशिक्षित और गरीब तो थे, पर उनकी इस्लाम के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य को वह भूले नहीं थे । 1919 में महात्मा गाँधी द्वारा तुर्की के खलीफा की सल्तनत को बचाने के लिए मुसलमानों के विशुद्ध आंदोलन को भारत के स्वाधीनता संग्राम के साथ नत्थी कर दिया गया । उनका मानना था कि इस सहयोग के बदले मुसलमान भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ उनका साथ देंगे ।  गाँधी जी के आह्वान पर हिन्दू सेठों ने दिल खोलकर धन दिया, हिन्दुओं ने जेलें भरी, लाठियां खाई । मगर खिलाफत के एक अन्य पक्ष को वह कभी देख नहीं पाए । इस आंदोलन ने मुसलमानों को पूरे देश में संगठित कर दिया । इसका परिणाम यह निकला कि इस्लामिक साम्राज्यवाद के लक्ष्य की पूर्ति में उन्हें अंग्रेजों के साथ-साथ हिन्दू भी रूकावट दिखने लगे ।

🚩1921 में इस मानसिकता की परिणीति मोपला दंगों के रूप में सामने आयी । मोपला मुसलमानों के एक अलीम ने यह घोषणा कर दी कि उसे जन्नत के दरवाजे खुले नजर आ रहे हैं । जो आज के दिन, दीन की खिदमत में शहीद होगा वह सीधा जन्नत जाएगा । जो काफ़िर को हलाक करेगा वह गाज़ी कहलाएगा । एक गाज़ी को कभी दोज़ख का मुख नहीं देखना पड़ेगा । उसके आहवान पर मोपला भूखे भेड़ियों के समान हिन्दुओं की बस्तियों पर टूट पड़े । टीपू सुल्तान के समय किये गए अत्याचार फिर से दोहराए गए । अनेक मंदिरों को भ्रष्ट किया गया । हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनाया गया, उनकी चोटियां काट दी गई । उनकी सुन्नत कर दी गई । मुस्लिम पोशाक पहना कर उन्हें कलमा जबरन पढ़वाया गया । जिसने इंकार किया उसकी गर्दन उतार दी गई । ध्यान दीजिये कि इस अत्याचार को इतिहासकारों ने अंग्रेजी राज के प्रति रोष के रूप में चित्रित किया हैं जबकि यह मज़हबी दंगा था । 2021 में इस दंगे के 100 वर्ष पूरे होंगे ।

🚩अंग्रेजों ने कालांतर में दोषियों को पकड़ कर दण्डित किया मगर तब तक हिन्दुओं की व्यापक क्षति हो चुकी । ऐसे में जब हिन्दु समाज की सुध लेने वाला कोई नहीं था । तब उत्तर भारत से उस काल की सबसे जीवंत संस्था आर्यसमाज के कार्यकर्ता लाहौर से उठकर केरल आए । उन्होंने सहायता डिपो खोलकर हिन्दुओं के लिए भोजन का प्रबंध किया । सैकड़ों की संख्या में बलात मुसलमान बनाये गए हिन्दुओं को शुद्ध किया गया । आर्यसमाज के कार्य को समस्त हिन्दू समाज ने सराहा । विडंबना देखिये अंग्रेजों की कार्यवाही में जो मोपला दंगाई मारे गए अथवा जेल गए थे उनके कालांतर में केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने क्रांतिकारी घोषित कर दिया । एक जिहादी दंगे को भारत के स्वाधीनता संग्राम के विरुद्ध संघर्ष के रूप में चित्रित कर मोपला दंगाइयों की पेंशन बांध दी गई। कम्युनिस्टों ने यह कुतर्क दिया कि मोपला मुसलमानों ने अंग्रेजों का साथ देने  वाले धनी हिन्दू जमींदारों और उनके निर्धन कर्मचारियों को दण्डित किया था । कम्युनिस्टों के इस कदम से मोपला मुसलमानों को 1947 के बाद खुली छूट मिली । मोपला 1947 के बाद अपनी शक्ति और संख्याबल को बढ़ाने  में लगे रहे । उन्होंने मुस्लिम लीग के नाम से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नाम से अपना राजनीतिक मंच बनाया ।

🚩5. 1960 से 1970 के दशक में विश्व में खाड़ी देशों के तेल निर्यात ने व्यापक प्रभाव डाला । केरल के इस भूभाग से बड़ी संख्या में मुस्लिम कामगार खाड़ी देशों में गए । उन कामगारों ने बड़ी संख्या में पेट्रो डॉलर खाड़ी देशों से भारत भेजे । उस पैसे के साथ-साथ इस्लामिक कट्टरवाद भी देश ने आयात किया । उस धन के बल पर बड़े पैमाने पर जमीनें खरीदी गईं । मस्जिदों और मदरसों का निर्माण हुआ । स्थानीय वेशभूषा छोड़कर मोपला मुसलमान भी इस्लामिक वेशभूषा अपनाने लगे । मज़हबी शिक्षा पर जोर दिया गया । जिसका परिणाम यह निकला कि इस इलाके का निर्धन हिन्दू अपनी जमीने बेच कर यहाँ से केरल के अन्य भागों में निकल गया। बड़ी संख्या में मुसलमानों ने हिन्दू लड़कियों से विवाह भी किये । इस्लामिक प्रचार के प्रभाव, धन आदि के प्रलोभन में अनेक हिन्दुओं ने स्वेच्छा से इस्लाम को स्वीकार भी किया । केरल से छपने वाले सालाना सरकारी गजट में हम ऐसे अनेक उदहारणों को पढ़ सकते हैं। इस धन के प्रभाव से संगठित ईसाई भी अछूते नहीं रहे । असंगठित हिन्दू समाज तो इस प्रभाव को कैसे ही प्रभावहीन करता । ऐसी अवस्था में इस भूभाग का मुस्लिम बहुल हो जाना स्वाभाविक ही तो है।

🚩वर्तमान  स्थिति यह है कि धीरे-धीरे इस इलाके में इस्लामिक कट्टरवाद बढ़ता गया । इन मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व मुस्लिम लीग करती हैं । जी हाँ वही मुस्लिम लीग जो 1947 से पहले पाकिस्तान के बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थी । हिन्दुओं का केरल में असंगठित होने के कारण कोई राजनीतिक रसूख नहीं हैं । वे कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के मध्य विभाजित हैं । जबकि ईसाई और मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि नेताओं से खूब मोल भाव कर वोट के बदले अपनी मांगें मनवाते हैं । इसलिए केरल की जनसँख्या में आज भी सबसे अधिक होने के बाद भी जाति, सामाजिक हैसियत, धार्मिक विचारों में विभाजित होने के कारण हिन्दु अपने ही प्रदेश में एक उपेक्षित है। यही कारण है कि शबरीमाला जैसे मुद्दों पर केरल की सरकार हिन्दुओं की उपेक्षा कर उनके धार्मिक मान्यताओं को भाव नहीं दे रही है । जिन अरबी मुसलमानों को केरल के हिन्दू राजा ने बसाया था । उन्हें हर प्रकार से संरक्षण दिया । उन्हीं मोपला की संतानों ने हिन्दुओं को अपने ही प्रदेश के इस भूभाग में अल्पसंख्यक बनाकर उपेक्षित कर दिया । समस्या यह है कि वर्तमान में इस बिगड़ते जनसँख्या समीकरण से निज़ात पाने के लिए हिन्दुओं की कोई दूरगामी नीति नहीं हैं ।  हिन्दुओं को अब क्या करना है ।  इस पर आत्मचिंतन करने की तत्काल आवश्यकता है। अन्यथा जैसा कश्मीर में हुआ वैसा ही केरल में न हो जाए । - डॉ विवेक आर्य

🚩आज भी हिंदू संस्कृति, हिंदू त्यौहार, हिंदू साधु-संतों, हिंदू कार्यकर्ताओं एवं हिंदू मंदिरों पर षडयंत्र हो रहा इसको रोकने के लिए हिंदुओ को संघठित होना पड़ेगा नहीं तो राष्ट्र विरोधी ताकते हमें गुलाम बनाकर हमारे पर राज करेंगी ।

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