Monday, May 13, 2019

हमारे राष्ट्र में ईसाई धर्मान्तरण विकराल रूप धारण करता जा रहा है ।

13 मई 2019
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🚩दिल्ली हाई कोर्ट ने कुछ समय पहले बयान दिया है कि ईसाई मिशनरी द्वारा किये जाने वाले कार्य भारतीय संविधान के अंतर्गत वैध है । डॉ क्रिस्टो थॉमस मूलरूप से भारत के रहने वाले हैं जो वर्षों पहले अमरीका चले गए थे। कुछ समय पहले वह भारत आकर चिकित्सा सेवा देने लगे। उन पर आरोप लगा कि वह सेवा की आड़ में ईसाई मिशनरी के धर्मान्तरण का कार्य कर रहे हैं। आपका वीजा निलंबित कर विदेश वापिस भेज दिया गया। आपने दिल्ली हाई कोर्ट में अपने निलंबन को चुनौती दी। कोर्ट ने आपके पक्ष में फैसला सुनाते हुआ कहा कि मिशनरी द्वारा किये जाने वाला कार्य संविधान के अंतर्गत आता हैं। संविधान में कोई धारा ऐसी नहीं है जो उन्हें अपने कार्यों को करने से रोकती हो।

🚩कोर्ट के फैसले से जहाँ ईसाई मिशनरियों की मानो लाटरी निकल गई मगर कोर्ट ने भारत देश की अखंडता और सुरक्षा की अनदेखी कर दी। कोर्ट ने धर्मान्तरण से होने वाले दूरगामी परिणामों की भी अनदेखी कर दी। कोर्ट ने वर्तमान एवं पूर्व में ईसाई मिशनरियों द्वारा देशविरुद्ध किये गए कार्यों को भी नहीं देखा। कोर्ट ने यह भी नहीं देखा कि तमिलनाडु के कुंडमकुलम के परमाणु संयंत्र का विरोध करने वालों में चर्च से सम्बंधित लोग संलिप्त पाए गए थे। कोर्ट ने यह भी नहीं देखा कि उड़ीसा में स्वामी लक्ष्मणानंद जी की हत्या में चर्च समर्थक आतंकवादियों का हाथ था। कोर्ट ने यह भी नहीं देखा कि उत्तरपूर्वी राज्यों में रियांग वनवासी चर्च समर्थित हिंसा के कारण ही निर्वासित जीवन जी रहे हैं। कोर्ट ने यह भी नहीं देखा कि देश में होने वाले चुनावों में चर्च सरकार के चयन के लिए एकतरफ़ा फतवे जारी कर ईसाई समाज को प्रभावित करता हैं। कोर्ट ने यह भी नहीं देखा कि किस प्रकार देश में ईसाई मिशनरी धर्मान्तरण के कार्यों को प्रलोभन देकर कर रहे हैं। धर्मान्तरण पर बनी नियोगी कमेटी की रिपोर्ट को भी कोर्ट ने संज्ञान में नहीं लिया। संसद में ओमप्रकाश त्यागी द्वारा धर्मान्तरण के विरोध में प्रस्तुत किये गए विधेयक पर आज तक दोबारा चर्चा न होना भी चिंता का विषय हैं।
🚩ईसाई धर्मान्तरण के विरुद्ध सबसे अधिक मुखर स्वर हमारे ही देश के गणमान्य व्यक्तियों ने उठाया हैं। महात्मा गाँधी, स्वामी दयानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द, स्वामी विवेकानंद, लाला लाजपत राय, डॉ अम्बेडकर, वीर सावरकर आदि ने चर्च द्वारा किये जाने वाले धर्मान्तरण के विरुद्ध अपना व्यक्तव्य दिया था।  उनका मानना था कि धर्मांतरण से आस्थाएं बदल जाती है, पूर्वजों के प्रति भाव बदल जाता है। जो पूर्वज पहले पूज्य होते थे, धर्मांतरण के बाद वही घृणा के पात्र बन जाते हैं। खान पान बदल जाता है, पहनावा बदल जाता है। नाम बदल जाते हैं, विदेशी नाम, जिसका अर्थ स्वयं उन्हें ही मालूम नहीं हो ऐसे नाम धर्मांतरण के बाद रखे जाते हैं। इसलिए धर्मांतरण का वास्तविक अर्थ राष्टांतरण है।
🚩धर्मांतरण के प्रति महात्मा गाँधी का भाव क्या था? यह उन्होंने अपनी आत्मकथा में उल्लेख किया है। यह तब की बात है जब वह विद्यालय में पढ़ते थे। उन्होंने लिखा कि “ उन्हीं दिनों मैने सुना कि एक मशहूर हिन्दू सज्जन अपना धर्म बदल कर ईसाई बन गये हैं। शहर में चर्चा थी कि बपतिस्मा लेते समय उन्हें गोमांस खाना पड़ा और शराब पीनी पड़ी । अपनी वेशभूषा भी बदलनी पड़ी तथा तब से हैट लगाने और यूरोपीय वेशभूषा धारण करने लगे। मैने सोचा जो धर्म किसी को गोमांस खाने शराब पीने और पहनावा बदलने के लिए विवश करे वह तो धर्म कहे जाने योग्य नहीं है। मैने यह भी सुना नया कन्वर्ट अपने पूर्वजों के धर्म को उनके रहन सहन को तथा उनके देश को गालियां देने लगा है। इस सबसे मुझसे ईसाईयत के प्रति नापसंदगी पैदा हो गई। ” ( एन आटोवाय़ोग्राफी आर द स्टोरी आफ माइं एक्सपेरिमेण्ट विद ट्रूथ, पृष्ठ -3-4 नवजीवन, अहमदाबाद)
🚩गांधी जी का स्पष्ट मानना था कि ईसाई मिशनरियों का मूल लक्ष्य उद्देश्य भारत की संस्कृति को समाप्त कर भारत का यूरोपीयकरण करना है। उनका कहना था कि भारत में आम तौर पर ईसाइयत का अर्थ है भारतीयों को राष्ट्रीयता से रहित बनाना और उसका यूरोपीयकरण करना।
🚩गांधीजी ने धर्मांतरण के लिए मिशनरी प्रयासों के सिद्धांतों का ही विरोध किया। गांधी जी मिशनरियों आध्यात्मिक शक्तिसंपन्न व्यक्ति नहीं मानते थे बल्कि उन्हें प्रोपगेण्डिस्ट मानते थे। गांधी जी ने एक जगह लिखा कि “ दूसरों के हृदय को केवल आध्यात्मिक शक्तिसंपन्न व्यक्ति ही प्रभावित कर सकता है। जबकि अधिकांश मिशनरी बाकपटु होते हैं, आध्यात्मिक शक्ति संपन्न व्यक्ति नहीं। “ ( संपूर्ण गांधी बाङ्मय, खंड-36, पृष्ठ -147)
🚩गांधी जी ने क्रिश्चियन मिशन पुस्तक में कहा है कि "भारत में ईसाईयत अराष्ट्रीयता एवं यूरोपीयकरण का पर्याय बन चुकी है।"(क्रिश्चियम मिशन्स, देयर प्लेस इंडिया, नवजीवन, पृष्ठ-32)। उन्होंने यह भी कहा कि ईसाई पादरी अभी जिस तरह से काम कर रहे हैं उस तरह से तो उनके लिए स्वतंत्र भारत में कोई भी स्थान नहीं होगा। वे तो अपना भी नुकसान कर रहे हैं। वे जिनके बीच काम करते हैं उन्हें हानि पहुंचाते हैं और जिनके बीच काम नहीं करते उन्हें भी हानि पहुंचाते हैं। सारे  देश को वे नुकसान पहुंचाते हैं। गाधीजी धर्मांतरण (कनवर्जन) को मानवता के लिए भयंकर विष मानते थे। गांधी जी ने बार -बार कहा कि धर्मांतरण महापाप है और यह बंद होना चाहिए।"
🚩उन्होंने कहा कि “मिशनरियों द्वारा बांटा जा रहा पैसा तो धन पिशाच का फैलाव है।“ उन्होंने कहा कि “ आप साफ साफ सुन लें मेरा यह निश्चित मत है, जो कि अनुभवों पर आधारित हैं, कि आध्यात्मिक विषयों पर धन का तनिक भी महत्व नहीं है। अतः आध्य़ात्मिक चेतना के प्रचार के नाम पर आप पैसे बांटना और सुविधाएं बांटना बंद करें।"
🚩1935 में एक मिशनरी नर्स ने गांधी जी से पूछा “क्या आप धर्मांतरण के लिए मिशनरियों के भारत आगमन पर रोक लगा देना चाहते है? गांधी जी ने उत्तर दिया “मैं रोक लगाने वाला कौन होता हूँ, अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं, तो मैं धर्मांतरण का यह सारा धंधा ही बंद करा दूँ । मिशनरियों के प्रवेश से उन हिन्दू परिवारों में, जहाँ मिशनरी बैठे हैं, वेशभूषा, रीति-रिवाज और खान-पान तक में परिवर्तन हो गया है । आज भी हिन्दू धर्म की निंदा जारी हैं ईसाई मिशनिरयों की दुकानों में मरडोक की पुस्तकें बिकती हैं। इन पुस्तकों में सिवाय हिन्दू धर्म की निंदा के और कुछ है ही नहीं। अभी कुछ ही दिन हुए, एक ईसाई मिशनरी एक दुर्भिक्ष-पीड़ित अंचल में खूब धन लेकर पहुँचा वहाँ अकाल-पीड़ितों को पैसा बाँटा व उन्हें ईसाई बनाया फिर उनका मंदिर हथिया लिया और उसे तुड़वा डाला। यह अत्याचार नहीं तो क्या है, जब उन लोगों ने ईसाई धर्म अपनाया तो तभी उनका मंदिर पर अधिकार समाप्त। वह हक उनका बचा ही नहीं। ईसाई मिशनरी का भी मंदिर पर कोई हक नहीं। पर वह मिशनरी का भी मंदिर पर कोई हक नहीं। पर वह मिशनरी वहाँ पहुँचकर उन्हीं लोगों से वह मंदिर तुडवाला है, जहाँ कुछ समय पहले तक वे ही लोग मानते थे कि वहाँ ईश्वर वास है। ‘‘ ( संपूर्ण गांधी बांङ्मय खंड-61 पृष्ठ-48-49)
🚩स्वामी दयानन्द ने एक बार कहा था कि देखो जयपुर आदि नगरों में गिरिजाघर बन  गए है जहाँ पर आर्यों के पुरोधा श्री राम और श्री कृष्ण की निंदा की जाती हैं। इस पर शासक वर्ग को ध्यान देना चाहिए। उन्होंने अपने जीवन में अनेक ईसाई पादरियों से शास्त्रार्थ कर वेदों के पक्ष को बाइबिल के सिद्धांतों से बेहतर सिद्ध किया। सत्यार्थ प्रकाश रूपी ग्रन्थ में उन्होंने 13 वें समुल्लास में ईसाई मत की तार्किक विवेचना कर हिन्दू समाज पर जो अप्रतिम उपकार किया। वह उसके लिए धन्य हैं।लाला लाजपत राय द्वारा प्राकृतिक आपदाओं में अनाथ बच्चों एवं विधवा स्त्रियों को मिशनरी द्वारा धर्मान्तरित करने का पुरजोर विरोध किया गया जिसके कारण यह मामला अदालत तक पहुंच गया। ईसाई मिशनरी द्वारा किये गए कोर्ट केस में लाला जी की विजय हुई एवं एक आयोग के माध्यम से लाला जी ने यह प्रस्ताव पास करवाया की जब तक कोई भी स्थानीय संस्था निराश्रितों को आश्रय देने से मना न कर दे तब तक ईसाई मिशनरी उन्हें अपना नहीं सकती। डॉ अम्बेडकर को ईसाई समाज द्वारा अनेक प्रलोभन ईसाई मत अपनाने के लिए दिए गए मगर यह जमीनी हकीकत से परिचित थे की ईसाई मत ग्रहण कर लेने से भी दलित समाज अपने मुलभुत अधिकारों से वंचित ही रहेगा। वीर सावरकर कहते थे “यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के धर्म में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है।
इस प्रकार से प्राय: सभी देशभक्त नेता ईसाई धर्मान्तरण के विरोधी रहे है एवं उसे राष्ट्र एवं समाज के लिए हानिकारक मानते है।
🚩भारत में वर्तमान में प्रत्येक राज्य में बड़े पैमाने पर ईसाई धर्मप्रचारक मौजूद है जो मूलत: ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय हैं। अरुणालच प्रदेश में वर्ष 1971 में ईसाई समुदाय की संख्या 1 प्रतिशत थी जो वर्ष 2011 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई है। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय राज्यों में ईसाई प्रचारक किस तरह से सक्रिय हैं। इसी तरह नगालैंड में ईसाई जनसंख्‍या 93 प्रतिशत, मिजोरम में 90 प्रतिशत, मणिपुर में 41 प्रतिशत और मेघालय में 70 प्रतिशत हो गई है। चंगाई सभा और धन के बल पर भारत में ईसाई धर्म तेजी से फैल रहा है।
🚩वर्ष 2011 में भारत की कुल आबादी 121.09 करोड़ है। जारी जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक देश में ईसाइयों की आबादी 2.78 करोड़ है। जो देश की कुल आबादी का 2.3% है। ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धि दर 15.5% रही, जबकि सिखों की 8.4%, बौद्धों की 6.1% और जैनियों की 5.4% है। ध्यान दीजिये ईसाईयों की वृद्धि दर का कारण केवल ईसाई समाज में बच्चे अधिक पैदा होना नहीं हैं। अपितु हिन्दुओं का ईसाई मत को स्वीकार करना भी हैं।
🚩इसलिए राष्ट्रहित को देखते हुए धर्मान्तरण पर लगाम देश में अवश्य लगनी चाहिए।- डॉ विवेक आर्य
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Sunday, May 12, 2019

जानिए भारत में सेक्युलरवाद से कितनी हो रही है हानि ?

12 मई 2019
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🚩लंबे काल में बनी सामाजिक मनोवृत्तियाँ आसानी से नहीं बदलतीं। 19 जून 1924 को लिखे अपने एक लेख में महात्मा गाँधी ने कहा थाः “तेरह सौ वर्षों के साम्राज्यवादी विस्तार ने मुसलमानों को एक वर्ग के रूप में योद्धा बना दिया है। इसलिए वे आक्रामक होते हैं। … हिन्दुओं की सभ्यता बहुत प्राचीन है। हिन्दू मूलतः स्वभाव से अहिंसक होता है । इस प्रवृत्ति के कारण उनमें हथियारों का प्रयोग करने वाले कुछ ही होते हैं । उनमें आम तौर पर हथियारों के प्रयोग की प्रवृत्ति नहीं होती, जिससे वे कायरता की हद तक भीरू होते हैं ।”

🚩गाँधी के इस अवलोकन की तुलना लगभग साठ वर्ष बाद के इस अनुभव से करें जो हमारे पूर्व विदेश सचिव जे. एन. दीक्षित को पाकिस्तान में भारतीय राजदूत के रूप में हुआ था। उन्होंने पाया कि पाकिस्तानियों की नजर में, “भारत एक दुर्बल देश है जहाँ हिन्दू लोकाचार व्याप्त है। इसलिए पाकिस्तान के सैन्य मनोबल के सामने इस की कोई बराबरी नहीं है।” स्वयं देश के अंदर सैयद शहाबुद्दीन जैसे प्रबुद्ध नेता ने कहा था कि "भारत का हिंदू सेक्यूलरिज्म का पालन इसलिए करता है क्योंकि वह मुस्लिम देशों से डरता है।” यह टिप्पणी 1983 में की गई थी ।
🚩लगभग सौ वर्ष की अवधि को समेटने वाली यह तीन टिप्पणियाँ एक ही बात का संकेत करती हैं। यह ऐसा सत्य है जिसे यहाँ सभी दलों के नेता, बुद्धिजीवी अनुभव करते हैं, किंतु चर्चा नहीं करते। इसी हीन स्थिति को अरबी शब्दावली में ‘जिम्मीवाद’ (dhimmitude) कहा गया है । उस तरह के यहूदी और ईसाई जिम्मी कहलाते थे, जिन्हें इस्लामी शासनों ने अपने राज्य में कुछ शर्तों पर जिंदा रहने दिया था। वास्तव में भारत में प्रचलित सेक्यूलरवाद की विशिष्टता उसी मानसिकता के संदर्भ में समझी जा सकती है। क्या कारण है कि इसी भारत से अलग हुए टुकड़ों, पाकिस्तान और बंगलादेश, में सेक्यूलरिज्म की कोई हैसियत नहीं, जबकि भारत में इसे किसी देवता की तरह पूजा जाता है? हमारी संपूर्ण राज्य व्यवस्था उस सेक्यूलरिज्म के सामने झुक-झुक कर सलाम करती है, जिसे पाकिस्तान में कोई पहचानता तक नहीं! एक ही देश के दो समुदायों के बीच ऐसा विभेद और किसी तरह नहीं समझा जा सकता। ऊपर उद्धृत गाँधीजी की बात फिर से पढ़ कर देखें।
🚩जिम्मीवाद को विश्व-विमर्श में चर्चित करने का श्रेय ईरानी मूल की ब्रिटिश लेखिका बात ये’ओर (Bat Y'eor) को जाता है। सदियों के इस्लामी साम्राज्यवाद के अधीन रहते हुए गैर-मुस्लिमों में जो एक स्थायी डर बैठ गया, यह उसी की संज्ञा है। यह डर तब भी बना रहता है जब संबंधित समाज पर इस्लामी शासन का अंत हो चुका हो। यहाँ हिन्दुओं पर इसी "जिम्मीवाद" की छाया है जिसने "सेक्यूलरिज्म" का रूप धारण कर लिया है। सैयद शहाबुद्दीन ने उसी को दूसरे शब्दों में रखा था। सोहेल अहमद सटीक कहते हैं, “इस्लामी शासन में केवल एकेश्वरवादी अर्थात ईसाई और यहूदी ही सामान्य रूप से रह सकते हैं। किंतु बहुदेववादी या मूर्ति-पूजक नहीं रह सकते। उन्हें जिहाद द्वारा खत्म करने का ही विधान है। लेकिन फिर भी, यदि विशाल संख्या या अन्य (आर्थिक आदि) कारणों से उन्हें खत्म करना संभव न हो तो उन्हें तरह-तरह के अंकुश में, दूसरे दर्जे की प्रजा के रूप में रखा जाता रहा। लंबे समय तक ऐसे इस्लामी शासन में रह कर इन दूसरे दर्जे के नागरिकों की डरू मानसिकता ही "जिम्मी" कहलाती है। वे मुसलमानों से आदतन सहमे रहते हैं।”
🚩यह अक्षरशः सत्य है। इस्लामी कानूनों का कोई भी ज्ञाता इसकी सोदाहरण पुष्टि करेगा कि इस्लामी शासन में जिम्मियों को किन प्रतिबंधों और हीन स्थितियों में रहना होता है। अभी कुछ ही वर्ष हुए जब अफगानिस्तान में तालिबान ने वहाँ सिखों और हिन्दुओं को पीला फीता बाँध कर चलने का आदेश दे रखा था। वह जिम्मियों वाले इस्लामी कायदों में ही एक था। याद रहे, उसी तालिबान को दुनिया भर के मुस्लिम नेता-बुद्धिजीवी भी ‘सबसे आदर्श इस्लामी शासन’ बताते थे। जब भारत पर इस्लामी राज था तो हिन्दुओं के लिए प्रायः वही स्थिति थी। प्रसिद्ध शायर अमीर खुसरो ने इस पर गहरा अफसोस भी व्यक्त किया था कि "यदि हनाफी कानूनों का चलन न रहा होता तो इस्लाम की तलवार ने भारत से कुफ्र का सफाया कर दिया होता।" खुसरो उस कानून से रंज व्यक्त कर रहे थे जिसने हिन्दुओं को यहूदियों-ईसाइयों की तरह "जिम्मी" का दर्जा देकर इस्लामी राज में भी जिंदा रहने देने की व्यवस्था दे दी!
🚩अतएव, यदि भारत का इतिहास देखें तो हजार वर्षों की पराधीनता के सामने पिछले साठ वर्षों की स्वतंत्रता एक अल्प अवधि है। इसलिए हीन मानसिकता के अवशेष यहाँ हिन्दू उच्च वर्ग में अब भी जमे हुए हैं। वह केवल अंग्रेजी या पश्चिम भक्ति में ही नहीं, इस्लामी आक्रामकता से नजरें चुराने में भी झलकती है। ईमाम बुखारी भी समय-समय पर अरब देशों से शिकायत करने और तेल की आपूर्ति बंद कराने जैसी धमकियाँ हमारे राजनेताओं को देते रहे हैं। और क्यों न दें? आखिर हमारे जिन सासंदों ने पोप के इस्लाम संबंधी बयान की निंदा की, उन्हीं ने कभी खुमैनी, अहमदीनेजाद जैसों के जिहादी बयानों पर कभी आपत्ति नहीं की। हमारे जो प्रकाशक एम.एफ. हुसैन द्वारा बनाई गई देवी सरस्वती, दुर्गा आदि की अश्लील पेंटिंगें छापते रहे हैं, उन्हीं ने मुहम्मद के कार्टूनों को समाचार रूप में भी दिखाने से परहेज किया। वाद-विवाद चलाना तो दूर, जो उन्होंने दीपा मेहता की हिंदू-द्वेषी फिल्मों ‘फायर’ और ‘वाटर’ पर चलाया था। इस डरू नीति को सब लोग खूब समझते हैं। कश्मीरी मुसलमानों के अलगाववाद को सांप्रदायिकता न कहना, आतंकवादियों को उग्रवादी भर कहना, दीनदार-अंजुमन, सिमी जैसे संगठनों की जिहादी और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों पर मौन रखना, गोधरा का नाम तक न लेना, जबकि उसके बाद हुए दंगों पर अंतहीन स्यापा करना, इस्लामी नेताओं की हिंसक बयानबाजियों पर बगलें झाँकना, आदि उसी जिम्मी मनोवृत्ति के लक्षण हैं। इसी को "सेक्यूलरिज्म" कह अपनी दास-मनोवृत्ति और कायरता छिपाई जाती है।
🚩भारतीय सेक्यूलरवाद वस्तुतः जिम्मीवाद है। इसीलिए वह हिन्दू और मुस्लिम नेताओं, संगठनों, क्षेत्रों, आबादियों के प्रति दो मानदंड रखता है। मुहम्मद अफजल और दारा सिंह, दीनदार अंजुमन और विश्व हिंदू परिषद्, उमा भारती और महबूबा मुफ्ती, जम्मू-कश्मीर और गुजरात, कश्मीरी हिन्दू और बोस्नियाई मुसलमान, मुहम्मद के कार्टूनकार और देवी सरस्वती के गंदे पेंटर, बेस्ट बेकरी और राधाबाई चाल, आदि प्रसंग निरंतर आते रहते हैं जब एक ही तरह के दो प्रसंगों पर निर्लज्ज दोहरापन स्पष्ट दिखता है। हिन्दू उच्च वर्ग और उस के प्रतिनिधि बुद्धिजीवियों का यह दोहरापन जिम्मी मानसिकता की अभिव्यक्तियाँ हैं। जो स्वभावतः मानती है कि इस्लाम का रुतबा ऊँचा और अधिकार अधिक हैं। हमारे सेक्यूलरवादियों का व्यवहार सदैव यही कहता है। यह उन की अलिखित, पर आधारभूत मान्यता है।
🚩किंतु समय के साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है। जिम्मी मानसिकता पर से सेक्यूलर आडंबर खुलने लगा है। अनेक बुद्धिजीवी सच देखने लगे हैं, इसलिए उन में से कइयों की प्रगल्भता कम हुई है, चाहे सच कहने का साहस नहीं आया। सेक्यूलरिज्म के नाम पर निरंतर मिथ्याचार का बचाव करते-करते वे भी अब संकोच महसूस करने लगे हैं। क्योंकि उस का पोलापन स्वतः उजागर होने लगा है। इसी को व्यक्त करते हुए हमारे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश कुलदीप सिंह ने एक बार कहा था, “भारत में सेक्यूलरिज्म को (इस्लामी) सांप्रदायिकता सहन करने में, उस का बचाव करने में बदल कर रख दिया गया है। अल्पसंख्यकों को समझना होगा कि वे उस संस्कृति, विरासत और इतिहास से नाता नहीं तोड़ सकते, जो हिन्दू जीवन शैली से मिलता-जुलता है।… अल्पसंख्यकवाद को राष्ट्र-विरोध का रूप लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”
🚩ऐसी सम्मतियाँ भारत के करोड़ों लोगों की भावना है, किंतु दुर्भाग्य से अब भी उन पर खुली चर्चा नहीं हो रही। दिनो-दिन जो हालात बन रहे हैं, उसमें यह मौन अच्छा नहीं। हिन्दुओं के प्रति जिस भेद-भाव, तज्जनित दुःख, आक्रोश और विवशता को जान-बूझ कर झुठलाया जाता है, वह समय पाकर विकृत रूप में फूटती है। हिन्दू सेक्यूलरवादियों के पाप का घड़ा भरता जा रहा है। सेक्यूलरवादी बुद्धिजीवी प्रशान्त भूषण के साथ हुई मार-पीट को इसी संदर्भ में समझा जा सकता है। ऐसे लोगों की चुनी हुई चुप्पियों और चुने हुए शोर-शराबे ने देश का वातावरण जितना बिगाड़ा है, उतना इस्लामी कट्टरपंथियों ने नहीं। लोग उन का अपराध समझने लगे हैं। अच्छा हो, हमारे नेता और संपादकगण भी समझें और आवश्यक सुधार करें।
🚩स्त्रोत्र : "भारत में प्रचलित सेक्यूलरवाद" पुस्तक से
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Friday, May 10, 2019

जानिए, मां गंगा नदी की उत्पति कैसे हुई और पृथ्वी पर क्यों लाई गई

10 मई 2019 

🚩 *गंगा नदी उत्तर भारतकी केवल जीवनरेखा नहीं, अपितु हिंदू धर्मका सर्वोत्तम तीर्थ है । ‘आर्य सनातन वैदिक संस्कृति’ गंगाके तटपर विकसित हुई, इसलिए गंगा हिंदुस्थानकी राष्ट्ररूपी अस्मिता है एवं भारतीय संस्कृतिका मूलाधार है । इस कलियुगमें श्रद्धालुओंके पाप-ताप नष्ट हों, इसलिए ईश्वरने उन्हें इस धरापर भेजा है । वे प्रकृतिका बहता जल नहीं; अपितु सुरसरिता (देवनदी) हैं । उनके प्रति हिंदुओंकी आस्था गौरीशंकरकी भांति सर्वोच्च है । गंगाजी मोक्षदायिनी हैं; इसीलिए उन्हें गौरवान्वित करते हुए पद्मपुराणमें (खण्ड ५, अध्याय ६०, श्लोक ३९) कहा गया है, ‘सहज उपलब्ध एवं मोक्षदायिनी गंगाजीके रहते विपुल धनराशि व्यय (खर्च) करनेवाले यज्ञ एवं कठिन तपस्याका क्या लाभ ?’ नारदपुराणमें तो कहा गया है, ‘अष्टांग योग, तप एवं यज्ञ, इन सबकी अपेक्षा गंगाजीका निवास उत्तम है । गंगाजी भारतकी पवित्रताकी सर्वश्रेष्ठ केंद्रबिंदु हैं, उनकी महिमा अवर्णनीय है ।’*

🚩 *मां गंगाजी का ब्रह्मांड में उत्पत्ति*:
 *‘वामनावतारमें श्रीविष्णुने दानवीर बलीराजासे भिक्षाके रूपमें तीन पग भूमिका दान मांगा । राजा इस बातसे अनभिज्ञ था कि श्रीविष्णु ही वामनके रूपमें आए हैं, उसने उसी क्षण वामनको तीन पग भूमि दान की । वामनने विराट रूप धारण कर पहले पगमें संपूर्ण पृथ्वी तथा दूसरे पगमें अंतरिक्ष व्याप लिया । दूसरा पग उठाते समय वामनके ( #श्रीविष्णुके) बाएं पैरके अंगूठेके धक्केसे ब्रह्मांडका सूक्ष्म-जलीय कवच (टिप्पणी १) टूट गया । उस छिद्रसे गर्भोदककी भांति ‘ब्रह्मांडके बाहरके सूक्ष्म-जलनेब्रह्मांडमें प्रवेश किया । यह सूक्ष्म-जल ही गंगा है ! गंगाजीका यह प्रवाह सर्वप्रथम सत्यलोकमें गया ।ब्रह्मदेवने उसे अपने कमंडलु में धारण किया । तदुपरांत सत्यलोकमें ब्रह्माजीने अपने कमंडलुके जलसे श्रीविष्णुके चरणकमल धोए । उस जलसे गंगाजीकी उत्पत्ति हुई । तत्पश्चात गंगाजी की यात्रा सत्यलोकसे क्रमशः तपोलोक, जनलोक, महर्लोक, इस मार्गसे स्वर्गलोक तक हुई । जिस दिन गंगाजी की उत्पत्ति हुई वह दिन ‘गंगा जयंती’ (वैशाख शुक्ल सप्तमी है ) इन दिनों में गंगाजी में गोता मारने से विशेष सात्विकता, प्रसन्नता और पुण्यलाभ होता है ।*

🚩 *पृथ्वी पर उत्पत्ति*:
*सूर्यवंशके राजा सगरने अश्वमेध यज्ञ आरंभ किया । उन्होंने दिग्विजयके लिए यज्ञीय अश्व भेजा एवं अपने 60 सहस्त्र (हजार) पुत्रोंको भी उस अश्वकी रक्षा हेतु भेजा । इस यज्ञसे भयभीत इंद्रदेवने यज्ञीय अश्वको कपिलमुनिके आश्रमके निकट बांध दिया । जब सगरपुत्रोंको वह अश्व कपिलमुनिके आश्रमके निकट प्राप्त हुआ, तब उन्हें लगा, ‘कपिलमुनिने ही अश्व चुराया है ।’ इसलिए सगरपुत्रोंने ध्यानस्थ कपिलमुनिपर आक्रमण करनेकी सोची । कपिलमुनिको अंतर्ज्ञानसे यह बात ज्ञात हो गई तथा अपने नेत्र खोले । उसी क्षण उनके नेत्रोंसे प्रक्षेपित तेजसे सभी सगरपुत्र भस्म हो गए । कुछ समय पश्चात सगरके प्रपौत्र राजा अंशुमनने सगरपुत्रोंकी मृत्युका कारण खोजा एवं उनके उद्धारका मार्ग पूछा । कपिलमुनिने अंशुमनसे कहा, ‘`गंगाजीको स्वर्गसे भूतलपर लाना होगा । सगरपुत्रोंकी अस्थियोंपर जब गंगाजल प्रवाहित होगा, तभी उनका उद्धार होगा !’’ मुनिवरके बताए अनुसार गंगाको पृथ्वीपर लाने हेतु अंशुमनने तप आरंभ किया ।’  ‘अंशुमनकी मृत्युके पश्चात उसके सुपुत्र राजा दिलीपने भी गंगावतरणके लिए तपस्या की । #अंशुमन एवं दिलीपके सहस्त्र वर्ष तप करनेपर भी गंगावतरण नहीं हुआ; परंतु तपस्याके कारण उन दोनोंको स्वर्गलोक प्राप्त हुआ ।’ (वाल्मीकिरामायण, काण्ड १, अध्याय ४१, २०-२१)*

🚩 *‘राजा दिलीपकी #मृत्युके पश्चात उनके पुत्र राजा भगीरथने कठोर तपस्या की । उनकी इस तपस्यासे प्रसन्न होकर गंगामाताने भगीरथसे कहा, ‘‘मेरे इस प्रचंड प्रवाहको सहना पृथ्वीके लिए कठिन होगा । अतः तुम भगवान शंकरको प्रसन्न करो ।’’ आगे भगीरथकी घोर तपस्यासे भगवान शंकर प्रसन्न हुए तथा भगवान शंकरने गंगाजीके प्रवाहको जटामें धारण कर उसे पृथ्वीपर छोडा । इस प्रकार हिमालयमें अवतीर्ण गंगाजी भगीरथके पीछे-पीछे #हरद्वार, प्रयाग आदि स्थानोंको पवित्र करते हुए बंगालके उपसागरमें (खाडीमें) लुप्त हुईं ।’*

🚩 *ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, भौमवार (मंगलवार) एवं हस्त नक्षत्रके शुभ योगपर गंगाजी स्वर्गसे धरतीपर अवतरित हुईं ।  जिस दिन गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईं वह दिन ‘गंगा दशहरा’ के नाम से जाना जाता है ।*

🚩 *जगद्गुरु आद्य शंकराचार्यजी, जिन्होंने कहा है : एको ब्रह्म द्वितियोनास्ति । द्वितियाद्वैत भयं भवति ।। उन्होंने भी ‘गंगाष्टक’ लिखा है, गंगा की महिमा गायी है । रामानुजाचार्य, रामानंद स्वामी, चैतन्य महाप्रभु और स्वामी रामतीर्थ ने भी गंगाजी की बड़ी महिमा गायी है । कई साधु-संतों, अवधूत-मंडलेश्वरों और जती-जोगियों ने गंगा माता की कृपा का अनुभव किया है, कर रहे हैं तथा बाद में भी करते रहेंगे ।*

🚩 *अब तो विश्व के #वैज्ञानिक भी गंगाजल का परीक्षण कर दाँतों तले उँगली दबा रहे हैं ! उन्होंने दुनिया की तमाम नदियों के जल का परीक्षण किया परंतु गंगाजल में रोगाणुओं को नष्ट करने तथा आनंद और सात्त्विकता देने का जो अद्भुत गुण है, उसे देखकर वे भी आश्चर्यचकित हो उठे ।*

🚩  *हृषिकेश में स्वास्थ्य-अधिकारियों ने पुछवाया कि यहाँ से हैजे की कोई खबर नहीं आती, क्या कारण है ? उनको बताया गया कि यहाँ यदि किसीको हैजा हो जाता है तो उसको गंगाजल पिलाते हैं । इससे उसे दस्त होने लगते हैं तथा हैजे के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और वह स्वस्थ हो जाता है । वैसे तो हैजे के समय घोषणा कर दी जाती है कि पानी उबालकर ही पियें । किंतु गंगाजल के पान से तो यह रोग मिट जाता है और केवल हैजे का रोग ही मिटता है ऐसी बात नहीं है, अन्य कई रोग भी मिट जाते हैं । तीव्र व दृढ़ श्रद्धा-भक्ति हो तो गंगास्नान व गंगाजल के पान से जन्म-मरण का रोग भी मिट सकता है ।*

🚩 *सन् 1947 में जलतत्त्व विशेषज्ञ कोहीमान भारत आया था । उसने वाराणसी से #गंगाजल लिया । उस पर अनेक परीक्षण करके उसने विस्तृत लेख लिखा, जिसका सार है - ‘इस जल में कीटाणु-रोगाणुनाशक विलक्षण शक्ति है ।’*

🚩 *दुनिया की तमाम #नदियों के जल का विश्लेषण करनेवाले बर्लिन के डॉ. जे. ओ. लीवर ने सन् 1924 में ही गंगाजल को विश्व का सर्वाधिक स्वच्छ और #कीटाणु-रोगाणुनाशक जल घोषित कर दिया था ।*

🚩 *‘आइने अकबरी’ में लिखा है कि ‘अकबर गंगाजल मँगवाकर आदरसहित उसका पान करते थे । वे गंगाजल को अमृत मानते थे ।’ औरंगजेब और मुहम्मद तुगलक भी गंगाजल का पान करते थे । शाहनवर के नवाब केवल गंगाजल ही पिया करते थे ।*

🚩 *कलकत्ता के हुगली जिले में पहुँचते-पहुँचते तो बहुत सारी नदियाँ, झरने और नाले गंगाजी में मिल चुके होते हैं । अंग्रेज यह देखकर हैरान रह गये कि हुगली जिले से भरा हुआ गंगाजल दरियाई मार्ग से यूरोप ले जाया जाता है तो भी कई-कई दिनों तक वह बिगड़ता नहीं है । जबकि यूरोप की कई बर्फीली नदियों का पानी हिन्दुस्तान लेकर आने तक खराब हो जाता है ।*

🚩 *अभी रुड़की विश्वविद्यालय के #वैज्ञानिक कहते हैं कि ‘गंगाजल में जीवाणुनाशक और हैजे के कीटाणुनाशक तत्त्व विद्यमान हैं ।’* 

🚩 *फ्रांसीसी चिकित्सक हेरल ने देखा कि गंगाजल से कई रोगाणु नष्ट हो जाते हैं । फिर उसने गंगाजल को कीटाणुनाशक औषधि मानकर उसके इंजेक्शन बनाये और जिस रोग में उसे समझ न आता था कि इस रोग का कारण कौन-से कीटाणु हैं, उसमें गंगाजल के वे इंजेक्शन रोगियों को दिये तो उन्हें लाभ होने लगा !*

🚩 *संत #तुलसीदासजी कहते हैं : गंग सकल मुद मंगल मूला । सब सुख करनि हरनि सब सूला ।।*
(श्रीरामचरित. अयो. कां. : 86.2)
 *सभी सुखों को देनेवाली और सभी शोक व दुःखों को हरनेवाली माँ गंगा के तट पर स्थित तीर्थों में पाँच तीर्थ विशेष आनंद-उल्लास का अनुभव कराते हैं : गंगोत्री, हर की पौड़ी (हरिद्वार),  प्रयागराज त्रिवेणी, काशी और #गंगासागर । #गंगादशहरे के दिन गंगा में गोता मारने से सात्त्विकता, प्रसन्नता और विशेष पुण्यलाभ होता है ।*

🚩 *गंगाजी की वंदना करते हुए कहा गया है :*

 *संसारविषनाशिन्यै जीवनायै नमोऽस्तु ते । तापत्रितयसंहन्त्र्यै प्राणेश्यै ते नमो नमः ।।*

*‘देवी गंगे ! आप संसाररूपी विष का नाश करनेवाली हैं । आप जीवनरूपा हैं । आप आधिभौतिक,आधिदैविक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार के तापों का संहार करनेवाली तथा प्राणों की स्वामिनी हैं । आपको बार-बार नमस्कार है ।’*

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Thursday, May 9, 2019

वही कहानी, वही तरीका केवल नाम भेद : हिन्दु कब सीखेंगे?-डॉ विवेक आर्य

09 मई 2019 

भारत में अधिकतर जगह-जगह पर स्थित कब्रें उन मुसलमानों की हैं, जो भारत पर आक्रमण करने आए थे और हमारे वीर हिन्दू पूर्वजों ने उन्हें अपनी तलवारों से परलोक पंहुचा दिया था। ऐसी ही एक कब्र गुजरात के उनावा में स्थित है। 

स्थान -हज़रत सैयद अली मीरा दातार दरगाह, उनावा ग्राम, जिला मेहसाणा, गुजरात 

पात्र -सय्यद अली उर्फ़ हज़रत सैयद अली मीरा दातार

पूर्वज -बुखारा से दादा और पिता भारत इस्लाम का प्रचार करने आये थे 

जन्म -रमजान महीने की 29 तारीख,अहमदाबाद  

कार्य -गुजरात के सुलतान अहमद की सेना में सिपाहसालार 

मृत्यु -हिन्दू राजा मेहंदी ने जो मांडगाव की छोटी से रियासत जिसके अंतर्गत 12 ग्राम थे से युद्ध में सय्यद अली का सर अपनी तलवार से काट दिया था। 
मृत्यु के पश्चात गुजरात के सुल्तान ने उनावा में उसकी दरगाह बनवा दी। 

चमत्कारों की सूची- 
1. सय्यद अली की माँ की अकाल मृत्यु हो गई। उसकी दूसरी माता को दूध नहीं था। सैयद अली ने चत्मकार किया। उससे दूध आने लगा। 
2. हिन्दू राजा के सर काटने के बाद भी उसका धड़ बिना सर के तलवार चलाता रहा और उसने राजा का काम तमाम कर दिया। 
3. इसकी दरगाह में मन्नत मांगने वालों को संतान पैदा हो जाती है। दूर दूर से लोग अपने पारवारिक मनोरोगी सदस्यों को दरगाह में लाते हैं। इसे भूत भगाने वाली दरगाह के नाम से भी जाना जाता है। दरगाह के चमत्कार से अनेकों के मनोरोग, पथरी, कोढ़ आदि बीमारियां दूर हो गई। 

दरगाह में मन्नत मांगने वाले अधिकांश हिन्दू है जो गुजरात के अनेक जिलों से प्रतिदिन आते हैं। साबरकांठा आदि जिलों से हिन्दू भील समुदाय के लोग भी आते हैं। दरगाह का संचालन मुस्लिम खादिमों द्वारा होता है।  जिनके परिवार इसी ग्राम में रहते हैं। 

वैसे तो वहाँ जितने भी लोग जाकर मन्नत मांगते है उनके जीवन मे कोई भी उन्नति देखी नही गई है, अगर उनावा के दरगाह में इतना ही शक्ति है तो उसके आसपास में हजारों मुसलमान गरीब व दुःखी है तो उनका दुःख और गरीबी आजतक दूर क्यों नही हुई? दरगाह के आसपास में कई पागल लोग भी रहते है फिर वे ठीक क्यों नही हो पा रहे है?

कुछ सामान्य से 10 प्रश्न उनसे है जो दरगाह पर सर पटकते है...

1 .क्या एक कब्र जिसमे मुर्दे की लाश मिट्टी में बदल चूँकि है वो किसी की मनोकामनापूरी कर सकती है?

2. सभी कब्र उन मुसलमानों की है जो हमारे पूर्वजो से लड़ते हुए मारे गए थे, उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या उन वीर पूर्वजो का अपमान नहीं है जिन्होंने अपने प्राण धर्म रक्षा करते की बलि वेदी पर समर्पित कर दियें थे?

3. क्या हिन्दुओ के राम, कृष्ण अथवा 33 कोटि देवी देवता शक्तिहीन हो चुकें है जो मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक है?

4. जब गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहाँ हैं की कर्म करने से ही सफलता प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या हासिल होगा?

5. भला किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरो की स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता है तो भला हमारे ही देश पर आक्रमण करने वालो की कब्र पर हम क्यों शीश झुकाते है?

6. क्या संसार में इससे बड़ी मुर्खता का प्रमाण आपको मिल सकता है?

7.. हिन्दू जाति कौन सी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति मुसलमानों की कब्रों की पूजा कर प्राप्त कर रहीं है जिसका वर्णन पहले से ही हमारे वेदों- उपनिषदों आदि में नहीं है?

8. कब्र पूजा को हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल और सेकुलरता की निशानी बताना हिन्दुओ को अँधेरे में रखना नहीं तो ओर क्या है?

9. इतिहास की पुस्तकों कें गौरी – गजनी का नाम तो आता हैं जिन्होंने हिन्दुओ को हरा दिया था पर मुसलमानों को हराने वाले राजा सोहेल देव पासी का नाम तक न मिलना क्या हिन्दुओं की सदा पराजय हुई थी ऐसी मानसिकता को बना कर उनमें आत्मविश्वास और स्वाभिमान की भावना को कम करने के समान नहीं है?

10. इस्लामिक देशों में पैदा हुए प्रचारकों का भारत की धरती पर आने का प्रयोजन समझने में हिन्दुओं को कितना समय लगेगा?
हिन्दुओं यह आपके लिए आत्मचिंतन का समय है। जागो।

🚩 आशा है इस लेख को पढ़ कर सेक्युलर हिंदूओं की बुद्धि में कुछ प्रकाश होगा । अगर आप भगवान श्री राम और श्री कृष्ण की संतान हैं, अपने भगवान के सामर्थ्य पर भरोसा है तो तत्काल इस मुर्खता पूर्ण अंधविश्वास को छोड़ दें और अन्य हिन्दुओं को भी इस बारे में प्रकाशित करें ।

🚩बुतों को समझा खुदा किसी ने, तो संग-ए असवद किसी ने चूमा। 
जबां पर तौहीद के हैं किस्से, पर अमल सब का है काफिराना।।
इन झूठे मजहबों ने झूठे किस्सों, को भी हकीकत बना दिया है। 
प्रभु के सत रूप को भुलाया, बनाया इसको है इक फसाना।।
बुतों, मजारों को पूजने का, बनाया मजहबों ने आशियाना। 
धर्म से गुमराह हुए हैं सब ही,मजहब का गाते हैं जो तराना।

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