Friday, July 19, 2019

रिपोर्ट : हिंदुओं को बदनाम करने की रची गई थी साजिश, तबरेज मामले में खुलासा

18 जुलाई 2019
http://azaadbharat.org
🚩आज से ही नहीं सदियों से हिंदुओं के खिलाफ षडयंत्र किया जा रहा है क्योंकि हिंदू सहनशील हैं, हिंदु मेहनती हैं, हिंदू धनी हैं, हिंदू एक नहीं हैं, इन सबका फायदा उठाकर कभी तो भगवा आतंकवाद तो कभी हिंदू साधु-संतों को बलात्कारी तो कभी हिंदू हिंसक इस तरीके से बदनाम किया जा रहा है ।
🚩जैसे भगवा आतंकवाद का नाम देकर पूरे विश्व में हिंदुओं को बदनाम किया गया वैसे ही अभी वर्तमान में जय श्री राम बोलकर मुसलमानों को पीटा गया ऐसा बोलकर बदनाम किया गया, तबरेज के मामले में भी ऐसे ही हिंदुओं को बदनाम किया गया गया पर रिपोर्ट देखकर, आप भी समझ जाएंगे कि हिंदुओं को बदनाम करने की बड़ी साजिस रची गई थी जिसमें मीडिया ने भी हिंदू विरोधी रोल बखूबी निभाया।
🚩आइए जानते है क्या है रिपोर्ट?
'जय श्रीराम' वाले मामलों पर रिपोर्ट
🚩उत्तर प्रदेश में कानपुर, उन्नाव समेत कई अन्य जिलों से सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वाली खबरें सामने आईं। कानपुर और उन्नाव में तो एक समुदाय के लोगों ने आरोप लगाया कि जय श्रीराम न बोलने पर उनकी पिटाई की गई। इन दावों ने प्रशासनिक अमले में हड़कंप मचा दिया। ऐसी कई घटनाओं को लेकर उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने कहा कि हाल ही में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनके जरिए सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश की गई है।
🚩यूपी के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने कहा, 'अलीगढ़ में एक शख्स ने दावा किया कि उसकी टोपी उतारी गई और उसे ट्रेन में प्रताड़ित किया गया। हमने इस मामले की जांच की, वह बरेली जिले में स्थित किसी मदरसे में पढ़ता था। हमने पाया कि जिस प्रकार की बातें वह कह रहा है, ऐसा कुछ हुआ ही नहीं।'
🚩कानपुर और उन्नाव की घटना का किया जिक्र-
ओपी सिंह ने कहा, 'इसी तर्ज पर कानपुर और हाल ही में उन्नाव से भी घटनाएं सामने आईं। जहां लोगों ने यह दावा करते हुए एफआईआर दर्ज कराई कि उनसे जय श्रीराम का नारा लगाने को कहा गया जबकि तथ्य इन बयानों के एकदम विपरीत थे।'
🚩क्या था उन्नाव का मामला?
बता दें कि हाल ही में उन्नाव से एक मामला सामने आया था, जिसमें मदरसे के छात्रों का कहना था कि उन्हें जय श्रीराम न बोलने पर कुछ युवकों ने बुरी तरह से पीटा। मामले की जांच के दौरान जय श्रीराम बोलने जैसी कोई बात सामने नहीं आई थी। इतना ही नहीं, मदरसे के मौलवी निसार अहमद ने जिन युवकों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज कराया था, पुलिस इन्वेस्टिगेशन में उनकी घटनास्थल पर मौजूदगी भी नहीं पाई गई थी।
स्त्रोत - नवभारतटाइम्स
🚩तबरेज मॉब लिंचिंग: SDM की रिपोर्ट
एसडीएम की एक विस्तृत रिपोर्ट में तबरेज की मौत के लिए डॉक्टर और पुलिसकर्मी जिम्मेदार बताए गए हैं।

🚩तबरेज मॉब लिचिंग मामले की बुधवार को रांची हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। हाईकोर्ट में सरायकेला के एसडीएम ने विस्तृत रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट के मुताबिक, तबरेज की मौत के जिम्मेदार डॉक्टर और पुलिसकर्मी हैं। दोनों ने स्वीकृति बयान को हल्के में लिया। इसके साथ ही एसडीएम ने अपनी रिपोर्ट में जिम्मेदारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की।
🚩मारपीट की घटना के एक हफ्ते बाद अंसारी की पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी। उनकी हत्या के मामले में 11 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट दो दिन पहले सरायकेला पुलिस को सौंपी गई। जांच के दौरान यह पाया गया है कि तबरेज अंसारी को बचाने के लिए दो थानों के प्रभारी अधिकारी ने समय पर प्रतिक्रिया नहीं दी।
🚩जिन डॉक्टरों ने तबरेज का इलाज किया, उन्होंने ठीक से नहीं जांचा। अंसारी की हत्या को लेकर झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी है। स्त्रोत : आजतक
🚩आपने ऊपर दी गई रिपोर्ट देखी जिससे ये साफ हो गया कि जहाँ हिन्दू-मुसलमान का कोई मसला ही नहीं है वहाँ पर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो सरकार और हिंदुओं को बदनाम करने की साजिश रच रहे थे, जानबूझकर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए ये सब किया जा रहा था और मीडिया उसका खुब साथ निभा रही थी।
🚩हिंदुओं को सजग व एक रहने की अत्यंत जरूरत है, सहिष्णु के नाम पर पलायनवादी नहीं बनना है, कोई भी हिंदुनिष्ठ या हिन्दू धर्मगुरु या हिंदू कहीं भी फसाया जाता है तो एकजुट होकर उसकी सहाय करिए अन्यथा जो राष्ट्र विरोधी ताकतें चाहती हैं कि हमारी एकता टूट जाये, उनकी मुरादें पूरी हो सकती है । हमारी एकता तोड़ने के लिए पहले हिंदुनिष्ठ नेता एवं हिंदू साधु-संतों को टारगेट करते है उनको बदनाम करते हैं, जेल भेजते हैं या हत्या करवा देते हैं इसलिए ऐसी घटना कहीं भी घटित होती दिखे तो मिलकर मुकाबला करना होगा तभी हिंदुओं का अस्तित्व बच सकेगा।
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कुरान बांटने का फैसला कोर्ट ने वापिस लिया पर हिंदुओं के साथ ऐसा क्यों?

17 जुलाई 2019
🚩न्यायालय का काम है सभी धर्म, मजहब, जाति-पंत से ऊपर उठ कर निष्पक्ष फैसले सुनाना, लेकिन अभी कुछ सालों से न्यायालय अपने अजीबोगरीब फैसलों के कारण सुर्खियों में रहा है । न्यायालय से दिन-प्रतिदिन हिंदुओं की भावनाएं आहत हो ऐसे फैसले आ रहे हैं । सबरीमाला, जलीकट्टू, दही हांडी, दीवाली पर पटाखे ऐसे कई मामले में जिसमें हमें न्यायालय का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है ।

🚩अब ऐसा ही एक मामला आ रहा है पिठोरिया से, जहाँ 19 वर्षीय ऋचा भारती को धार्मिक भावनाएं आहत करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया था । सोशल मीडिया पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार ऋचा भारती को रांची के व्यवहार न्यायालय से सोमवार को सशर्त जमानत मिल गई। अदालत ने आरोपी ऋचा को पांच कुरान सरकारी स्कूल, कॉलेज या विश्वविद्यालय में दान करने का निर्देश दिया था हांलाकि अब न्यायालय ने ये फैसला वापिस ले लिया है।
🚩कोर्ट के इस फैसले पर ऋचा ने टिप्पणी की है और कहा कि जब दूसरे समुदाय के लोग ऐसा करते हैं तो उन्हें हनुमान चालीसा बांटने को क्यों नहीं कहा जाता?
🚩ऋचा ने कहा कि मुझे जैसी सजा दी गई है क्या ऐसी ही सजा उन्हें दी जाती है जो हिंदू धर्म के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करते हैं या तस्वीरें पोस्ट करते हैं। बड़ा सवाल है कि क्या उन्हें हनुमान चालीसा पढ़ने या दुर्गा जी की पूजा करने को कहा जाएगा तो वे इसे मानेंगे।
🚩क्या है मामला ?
🚩टिक टोक पर एक मुस्लिम लड़के ने वीडियो बना कहा था कि अगर तबरेज अंसारी के बच्चे आतंकवादी बन जाएं तो न कहना, इसपर सवाल उठाते हुए ऋचा भारती ने कहा कि एक धर्म विशेष के मन में ही आतंकवादी बनने का विचार क्यों आता है ? कश्मीरी पंडितों के साथ इतना अन्याय हुआ लेकिन उनके बच्चे कभी नहीं कहते कि हम आतंकवादी बनने जा रहे हैं, सिर्फ मुस्लिम ही आतंकवादी बनने का क्यों सोचते हैं ?
🚩वैसे प्रश्न तो कोई गलत नहीं था, लेकिन इससे एक मुस्लिम महिला ने आहत हो शिकायत दर्ज की और हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाने वाले टिक टोक के लड़के को न पकड़ पाने वाली पुलिस नेमात्र 3 घण्टे के अंदर ही ऋचा को गिरफ्तार कर लिया ।
🚩भारत देश एक धर्म निरपेक्ष देश है ऐसी कहावत आज तक हम सुनते आए हैं, लेकिन आज के हालातों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता है ऊपर से न्यायालय द्वारा दिये जाने वाले कई फैसले हिन्दू विरोधी होते हैं ।  जज साहब भले खुद हिंदूवादी न कहलाये, हिंदुओं के पक्ष में फैसले न सुनाये, लेकिन संविधान को तो मानना चाहिए, यही संविधान कहता है कि लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता काअधिकार मिले । तो क्या हिंदुओं के लिए उनकी कोई धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है ? हजारों मुस्लिम हिंदुओं के देवी देवताओं, हिंदू धर्मगुरु, हिंदी धर्म पर गलत टिप्पणी करते हैं, क्या अदालत उन्हें श्रीमद्भगवद्गीता या रामायण बाँटने की सज़ा सुनाने की हिम्मत भी कर सकती है ?
🚩हमे बताया गया है कि हम एक लोकतांत्रिक देश मे रहते हैं जो भारतीय संविधान से चलता है, न कि किसी धार्मिक किताब से, और ऐसी किताब से तो बिल्कुल नही जिसका अनुसरण कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकी संगठन करते हों।
🚩संसद में एक मुस्लिम नेता खुलेआम कहता है कि मैं वंदे मातरम नहीं कहूंगा तब तो उसपर कोई कार्यवाही नहीं हुई, एक मुस्लिम युवक अकबरुद्दीन ओवैसी हिंदुओं को मारने धमकी देता है उसे कोई कुछ नहीं कहता, तब इनका जमीर कहाँ सो जाता है ? लेकिन हिंदुओं के समय पर ये तो जागरूक हो ऐसे फैसले सुनाते हैं ।
🚩अगर किसी अदालत ने गीता या रामयण बांटने के लिए कहा होता तो अब तक कितने पत्रकार, नेता और समाज  सुधारक के साथ साथ फिल्मी भांड कपड़े उतार के नंगे नाच रहे होते, लेकिन कुरान बाँटने का आदेश दिया तो ये सब चुप है।
🚩कोर्ट ने कुरान बांटने का जो निर्णय वापिस ले लिया ये भी हिन्दूओं की एकजुटता की ताकत है, लेकिन सिर्फ इसी से संतुष्ट होकर बैठना नहीं चाहिए।
🚩आज जरूरत है, समय की मांग है हिंदुओं को संगठित होने की वरना वो दिन दूर नहीं जब न्यायालय हिंदुओं के पक्ष में फैसला नहीं दे और हिंदू लाचार की नाई अपमान सहन करते हुए गुलाम बन जाये।
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Tuesday, July 16, 2019

ये है ईसाई मिशनरियों का धर्मान्तरण का और मीडिया का काला सच

16 जुलाई 2019
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🚩झारखण्ड से समाचार मिल रहे हैं कि मदर टेरेसा से सम्बंधित संगठन की ईसाई नन बच्चें बेचते पकड़ी गई और उन्होंने स्वीकार भी किया कि बच्चों को बेचा है। 280 बच्चों की गुमशुदगी की खबर है। कभी केरल से समाचार मिलता है कि पादरियों ने नन का यौन शोषण किया। कभी समाचार मिलता है कि ईसाई अनाथालय में बच्चों का यौन शोषण हुआ। कभी समाचार मिलता है कि तमिल नाडु में ईसाई संस्था अंगों को निकाल कर बेचती हैं। मीडिया इन ख़बरों को कभी प्रमुखता से नहीं दिखाता। इसके कुछ दिनों पहले तक गोवा और दिल्ली के ईसाई आर्कबिशप देश में भय के माहौल की बात कर रहे थे बड़ी प्रमुखता से दिखाते हैं।

🚩निष्पक्ष रूप से यह दोहरे मापदंड है। इनका प्रयोजन हिन्दू समाज से सम्बंधित किसी खबर को राई का पहाड़ बनाकर दिखाना होता है। और ईसाई या मुस्लिम समाज से सम्बंधित किसी भी खबर को जितना हो सके, उतना छुपाना होता है। ईसाई समाज हिन्दुओं का धर्मान्तरण व्यापक रूप से करता आया हैं। मानवता की सच्ची सेवा में प्रलोभन, लोभ, लालच, भय, दबाव से लेकर धर्मान्तरण का कोई स्थान नहीं है। इससे तो यही सिद्ध हुआ कि जो भी सेवा कार्य मिशनरी द्वारा किया जा रहा है। उसके मूल उद्देश्य ईसा मसीह के लिए भेड़ों की संख्या बढ़ाना है। मदर टेरेसा की संस्थाएं धर्मान्तरण के कार्य करने के लिए प्रसिद्द हैं। यही लोग मदर टेरेसा को संत मानते है। संत वही होता है जो पक्षपात रहित आचरण वाला हो एवं जिसका उद्देश्य केवल मानवता की भलाई है। ईसाई मिशनरीयों का पक्षपात इसी से समझ में आता है कि वह केवल उन्हीं गरीबों की सेवा करना चाहती है जो ईसाई मत को ग्रहण कर ले। विडंबना यह है कि ईसाईयों को पक्षपात रहित होकर सेवा करने का सन्देश देने के स्थान पर मीडिया हिन्दू संगठनों की आलोचना अधिक प्रचारित करता है।
🚩हमारे देश के संभवत शायद ही कोई चिंतक ऐसे हुए हो जिन्होंने प्रलोभन द्वारा धर्मान्तरण करने की निंदा न की हो। महान चिंतक स्वामी दयानंद का एक ईसाई पादरी से शास्त्रार्थ हो रहा था। स्वामी जी ने पादरी से कहा कि हिन्दुओं का धर्मांतरण करने के तीन तरीके है। पहला जैसा मुसलमानों के राज में गर्दन पर तलवार रखकर जोर जबरदस्ती से बनाया जाता था। दूसरा बाढ़, भूकम्प, प्लेग आदि प्राकृतिक आपदा जिसमें हज़ारों लोग निराश्रित होकर ईसाईयों द्वारा संचालित अनाथाश्रम एवं विधवाश्रम आदि में लोभ-प्रलोभन के चलते भर्ती हो जाते थे और इस कारण से आप लोग प्राकृतिक आपदाओं के देश पर बार-बार आने की अपने ईश्वर से प्रार्थना करते है और तीसरा बाइबिल की शिक्षाओं के जोर शोर से प्रचार-प्रसार करके। मेरे विचार से इन तीनों में सबसे उचित अंतिम तरीका मानता हूँ। स्वामी दयानंद की स्पष्टवादिता सुनकर पादरी के मुख से कोई शब्द न निकला। स्वामी जी ने कुछ ही पंक्तियों में धर्मान्तरण के कुचक्र का पर्दाफाश कर दिया। स्वामी जी ईसाई प्रचारकों द्वारा हिन्दू देवी देवताओं की निंदा करने के सख्त आलोचक थे।
🚩महात्मा गांधी ईसाई धर्मान्तरण के सबसे बड़े आलोचको में से एक थे। अपनी आत्मकथा में महात्मा गांधी लिखते है "उन दिनों ईसाई मिशनरी हाई स्कूल के पास नुक्कड़ पर खड़े हो हिन्दुओं तथा देवी देवताओं पर गलियां उड़ेलते हुए अपने मत का प्रचार करते थे। यह भी सुना है कि एक नया कन्वर्ट (मतांतरित) अपने पूर्वजों के धर्म को, उनके रहन-सहन को तथा उनके गलियां देने लगता है। इन सबसे मुझमें ईसाइयत के प्रति नापसंदगी पैदा हो गई।" इतना ही नहीं गांधी जी से मई, 1935 में एक ईसाई मिशनरी की नर्स ने पूछा कि क्या आप मिशनरियों के भारत आगमन पर रोक लगाना चाहते है तो जवाब में गांधी जी ने कहा था,' अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं तो मैं मतांतरण का यह सारा धंधा ही बंद करा दूँ। मिशनरियों के प्रवेश से उन हिन्दू परिवारों में जहाँ मिशनरी पैठे है, वेशभूषा, रीतिरिवाज एवं खानपान तक में अंतर आ गया है।
🚩समाज सुधारक एवं देशभक्त लाला लाजपत राय द्वारा प्राकृतिक आपदाओं में अनाथ बच्चों एवं विधवा स्त्रियों को मिशनरी द्वारा धर्मान्तरित करने का पुरजोर विरोध किया गया जिसके कारण यह मामला अदालत तक पहुंच गया। ईसाई मिशनरी द्वारा किये गए कोर्ट केस में लाला जी की विजय हुई एवं एक आयोग के माध्यम से लाला जी ने यह प्रस्ताव पास करवाया की जब तक कोई भी स्थानीय संस्था निराश्रितों को आश्रय देने से मना न कर दे तब तक ईसाई मिशनरी उन्हें अपना नहीं सकती।
🚩समाज सुधारक डॉ अम्बेडकर को ईसाई समाज द्वारा अनेक प्रलोभन ईसाई मत अपनाने के लिए दिए गए मगर यह जमीनी हकीकत से परिचित थे कि ईसाई मत ग्रहण कर लेने से भी दलित समाज अपने मुलभुत अधिकारों से वंचित ही रहेगा। डॉ आंबेडकर का चिंतन कितना व्यवहारिक था यह आज देखने को मिलता है।''जनवरी 1988 में अपनी वार्षिक बैठक में तमिलनाडु के बिशपों ने इस बात पर ध्यान दिया कि धर्मांतरण के बाद भी अनुसूचित जाति के ईसाई परंपरागत अछूत प्रथा से उत्पन्न सामाजिक व शैक्षिक और आर्थिक अति पिछड़ेपन का शिकार बने हुए हैं। फरवरी 1988 में जारी एक भावपूर्ण पत्र में तमिलनाडु के कैथलिक बिशपों ने स्वीकार किया 'जातिगत विभेद और उनके परिणामस्वरूप होने वाला अन्याय और हिंसा ईसाई सामाजिक जीवन और व्यवहार में अब भी जारी है। हम इस स्थिति को जानते हैं और गहरी पीड़ा के साथ इसे स्वीकार करते हैं।' भारतीय चर्च अब यह स्वीकार करता है कि एक करोड़ 90 लाख भारतीय ईसाइयों का लगभग 60 प्रतिशत भाग भेदभावपूर्ण व्यवहार का शिकार है। उसके साथ दूसरे दर्जे के ईसाई जैसा अथवा उससे भी बुरा व्यवहार किया जाता है। दक्षिण में अनुसूचित जातियों से ईसाई बनने वालों को अपनी बस्तियों तथा गिरिजाघर दोनों जगह अलग रखा जाता है। उनकी 'चेरी' या बस्ती मुख्य बस्ती से कुछ दूरी पर होती है और दूसरों को उपलब्ध नागरिक सुविधओं से वंचित रखी जाती है। चर्च में उन्हें दाहिनी ओर अलग कर दिया जाता है। उपासना (सर्विस) के समय उन्हें पवित्र पाठ पढऩे की अथवा पादरी की सहायता करने की अनुमति नहीं होती। बपतिस्मा, दृढि़करण अथवा विवाह संस्कार के समय उनकी बारी सबसे बाद में आती है। नीची जातियों से ईसाई बनने वालों के विवाह और अंतिम संस्कार के जुलूस मुख्य बस्ती के मार्गों से नहीं गुजर सकते। अनुसूचित जातियों से ईसाई बनने वालों के कब्रिस्तान अलग हैं। उनके मृतकों के लिए गिरजाघर की घंटियां नहीं बजतीं, न ही अंतिम प्रार्थना के लिए पादरी मृतक के घर जाता है। अंतिम संस्कार के लिए शव को गिरजाघर के भीतर नहीं ले जाया जा सकता। स्पष्ट है कि 'उच्च जाति' और 'निम्न जाति' के ईसाइयों के बीच अंतर्विवाह नहीं होते और अंतर्भोज भी नगण्य हैं। उनके बीच झड़पें आम हैं। नीची जाति के ईसाई अपनी स्थिति सुधारने के लिए संघर्ष छेड़ रहे हैं, गिरजाघर अनुकूल प्रतिक्रिया भी कर रहा है लेकिन अब तक कोई सार्थक बदलाव नहीं आया है। ऊंची जाति के ईसाइयों में भी जातिगत मूल याद किए जाते हैं और प्रछन्न रूप से ही सही लेकिन सामाजिक संबंधोंं में उनका रंग दिखाई देता है।
🚩महान विचारक वीर सावरकर धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण मानते थे। आप कहते थे "यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के धर्म में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है।
इस प्रकार से प्राय: सभी देशभक्त नेता ईसाई धर्मान्तरण के विरोधी रहे है एवं उसे राष्ट्र एवं समाज के लिए हानिकारक मानते है।
🚩अब भी मदर टेरेसा एवं अन्य ईसाई संस्थाओं के कटु उद्देश्य को जानकर मीडिया इन संस्थाओं का अगर समर्थन करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस करने के अतिरिक्त ओर कुछ नहीं किया जा सकता। हिन्दू समाज को संगठित होकर ईसाई धर्मान्तरण के विरुद्ध कार्य करना चाहिए। कहीं देर न हो जाये...। - डॉ विवेक आर्य
Source facebook.com/arya.samaj
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जानिए गुरुपूर्णिमा कब से और क्यों मनाई जाती है?

15 जुलाई 2019

🚩आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा एवं व्यासपूर्णिमा कहते हैं । गुरुपूर्णिमा गुरुपूजन का दिन है । गुरुपूर्णिमा का एक अनोखा महत्त्व भी है । अन्य दिनों की तुलना में इस तिथि पर गुरुतत्त्व सहस्र गुना कार्यरत रहता है । इसलिए इस दिन किसी भी व्यक्ति द्वारा जो कुछ भी अपनी साधना के रूप में किया जाता है, उसका फल भी उसे सहस्र गुना अधिक प्राप्त होता है । इस साल 16 जुलाई को गुरुपूर्णिमा है।

🚩भगवान वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया, 18 पुराणों और उपपुराणों की रचना की । ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाजभोग्य बना कर व्यवस्थित किया । पंचम वेद #'महाभारत' की रचना इसी पूर्णिमा के दिन पूर्ण की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्ष ग्रंथ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरंभ किया । तब देवताओं ने वेदव्यासजी का पूजन किया । तभी से व्यासपूर्णिमा मनायी जा रही है । इस दिन जो शिष्य ब्रह्मवेत्ता सदगुरु के श्रीचरणों में पहुँचकर संयम-श्रद्धा-भक्ति से उनका पूजन करता है उसे वर्षभर के पर्व मनाने का फल मिलता है ।

🚩भारत में अनादिकाल से आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा पर्व के रूप में मनाया जाता रहा है। गुरुपूर्णिमा का त्यौहार तो सभी के लिए है । भौतिक सुख-शांति के साथ-साथ ईश्वरीय आनंद, शांति और ज्ञान प्रदान करनेवाले महाभारत, ब्रह्मसूत्र, #श्रीमद्भागवत आदि महान ग्रंथों के रचयिता महापुरुष #वेदव्यासजी जैसे ब्रह्मवेत्ताओं का मानवऋणी है ।

🚩भारतीय संस्कृति में सद्गुरु का बड़ा ऊँचा स्थान है । भगवान स्वयं भी अवतार लेते हैं तो गुरु की शरण जाते हैं । भगवान श्रीकृष्ण गुरु सांदीपनिजी के आश्रम में सेवा तथा अभ्यास करते थे । भगवान श्रीराम गुरु वसिष्ठजी के चरणों में बैठकर सत्संग सुनते थे । ऐसे महापुरुषों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तथा उनकी शिक्षाओं का स्मरण करके उसे अपने जीवन मे लानेके लिए इस पवित्र पर्व ‘गुरुपूर्णिमा’ को मनाया जाता है ।

🚩गुरु का महत्त्व-

🚩गुरुदेव वे हैं, जो साधना बताते हैं, साधना करवाते हैं एवं आनंद की अनुभूति प्रदान करते हैं । गुरु का ध्यान शिष्य के भौतिक सुख की ओर नहीं, अपितु केवल उसकी आध्यात्मिक उन्नति पर होता है । गुरु ही शिष्य को साधना करने के लिए प्रेरित करते हैं, चरण दर चरण साधना करवाते हैं, साधना में उत्पन्न होनेवाली बाधाओं को दूर करते हैं, साधना में टिकाए रखते हैं एवं पूर्णत्व की ओर ले जाते हैं । गुरुके संकल्पके बिना इतना बडा एवं कठिन शिवधनुष उठा पाना असंभव है । इसके विपरीत गुरुकी प्राप्ति हो जाए, तो यह कर पाना सुलभ हो जाता है । श्री गुरुगीतामें ‘गुरु’ संज्ञाकी उत्पत्तिका वर्णन इस प्रकार किया गया है-

गुकारस्त्वन्धकारश्च रुकारस्तेज उच्यते ।
अज्ञानग्रासकं ब्रह्म गुरुरेव न संशयः ।। – श्री गुरुगीता

🚩अर्थ : ‘गु’ अर्थात अंधकार अथवा अज्ञान एवं ‘रु’ अर्थात तेज, प्रकाश अथवा ज्ञान । इस बातमें कोई संदेह नहीं कि गुरु ही ब्रह्म हैं जो अज्ञानके अंधकारको दूर करते हैं । इससे ज्ञात होगा कि साधकके जीवनमें गुरुका महत्त्व अनन्य है । इसलिए गुरुप्राप्ति ही साधकका प्रथम ध्येय है । गुरुप्राप्ति से ही ईश्वरप्राप्ति होती है अथवा यूं कहें कि गुरुप्राप्ति होना ही ईश्वरप्राप्ति है, ईश्वरप्राप्ति अर्थात मोक्षप्राप्ति- मोक्षप्राप्ति अर्थात निरंतर आनंदावस्था । गुरु हमें इस अवस्थातक पहुंचाते हैं । शिष्यको जीवनमुक्त करनेवाले गुरुके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेके लिए गुरुपूर्णिमा मनाई जाती है ।

🚩गुरुपूर्णिमा का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व-

इस दिन गुरुस्मरण करनेपर शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होनेमें सहायता होती है । इस दिन गुरुका तारक चैतन्य वायुमंडलमें कार्यरत रहता है । गुरुपूजन करनेवाले जीवको इस चैतन्यका लाभ मिलता है । गुरुपूर्णिमाको व्यासपूर्णिमा भी कहते हैं, गुरुपूर्णिमापर सर्वप्रथम व्यासपूजन किया जाता है । एक वचन है – व्यासोच्छिष्टम् जगत् सर्वंम् । इसका अर्थ है, विश्वका ऐसा कोई विषय नहीं, जो महर्षि व्यासजीका उच्छिष्ट अथवा जूठन नहीं है अर्थात कोई भी विषय महर्षि व्यासजीद्वारा अनछुआ नहीं है । महर्षि व्यासजीने चार वेदोंका वर्गीकरण किया । उन्होंने अठारह पुराण, महाभारत इत्यादि ग्रंथों की रचना की है । महर्षि व्यासजीके कारण ही समस्त ज्ञान सर्वप्रथम हमतक पहुंच पाया । इसीलिए महर्षि व्यासजीको ‘आदिगुरु’ कहा जाता है । ऐसी मान्यता है कि उन्हींसे गुरु-परंपरा आरंभ हुई । #आद्यशंकराचार्यजीको भी महर्षि व्यासजीका अवतार मानते हैं ।

🚩गुरुपूजन का पर्व-

गुरुपूर्णिमा अर्थात् गुरु के पूजन का पर्व ।
गुरुपूर्णिमा के दिन छत्रपति शिवाजी भी अपने गुरु का विधि-विधान से पूजन करते थे।

🚩वर्तमान में सब लोग अगर गुरु को नहलाने लग जायें, तिलक करने लग जायें, हार पहनाने लग जायें तो यह संभव नहीं है। लेकिन षोडशोपचार की पूजा से भी अधिक फल देने वाली मानस पूजा करने से तो भाई ! स्वयं गुरु भी नही रोक सकते। मानस पूजा का अधिकार तो सबके पास है।

🚩"गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर मन-ही-मन हम अपने गुरुदेव की पूजा करते हैं.... मन-ही-मन गुरुदेव को कलश भर-भरकर गंगाजल से स्नान कराते हैं.... मन-ही-मन उनके श्रीचरणों को पखारते हैं.... परब्रह्म परमात्मस्वरूप श्रीसद्गुरुदेव को वस्त्र पहनाते हैं.... सुगंधित चंदन का तिलक करते है.... सुगंधित गुलाब और मोगरे की माला पहनाते हैं.... मनभावन सात्विक प्रसाद का भोग लगाते हैं.... मन-ही-मन धूप-दीप से गुरु की आरती करते हैं...."

🚩इस प्रकार हर शिष्य मन-ही-मन अपने दिव्य भावों के अनुसार अपने सद्गुरुदेव का पूजन करके गुरुपूर्णिमा का पावन पर्व मना सकता है। करोड़ों जन्मों के माता-पिता, मित्र-सम्बंधी जो न से सके, सद्गुरुदेव वह हँसते-हँसते दे डा़लते हैं।

🚩'हे गुरुपूर्णिमा ! हे व्यासपूर्णिमा ! तु कृपा करना.... गुरुदेव के साथ मेरी श्रद्धा की डोर कभी टूटने न पाये.... मैं प्रार्थना करता हूँ गुरुवर ! आपके श्रीचरणों में मेरी श्रद्धा बनी रहे, जब तक है जिन्दगी.....

🚩आजकल के विद्यार्थी बडे़-बडे़ प्रमाणपत्रों के पीछे पड़ते हैं लेकिन प्राचीन काल में विद्यार्थी संयम-सदाचार का व्रत-नियम पाल कर वर्षों तक गुरु के सान्निध्य में रहकर बहुमुखी विद्या उपार्जित करते थे। भगवान श्रीराम वर्षों तक गुरुवर वशिष्ठजी के आश्रम में रहे थे। वर्त्तमान का विद्यार्थी अपनी पहचान बड़ी-बड़ी डिग्रियों से देता है जबकि पहले के शिष्यों में पहचान की महत्ता वह किसका शिष्य है इससे होती थी। आजकल तो संसार का कचरा खोपडी़ में भरने की आदत हो गयी है। यह कचरा ही मान्यताएँ, कृत्रिमता तथा राग-द्वेषादि बढा़ता है और अंत में ये मान्यताएँ ही दुःख में बढा़वा करती हैं। अतः मनुष्य को चाहिये कि वह सदैव जागृत रहकर सत्पुरुषों के सत्संग, सान्निध्य में रहकर परम तत्त्व परमात्मा को पाने का परम पुरुषार्थ करता रहे।

🚩संत गुलाबराव महाराजजी से किसी पश्चिमी व्यक्ति ने पूछा, ‘भारत की ऐसी कौनसी विशेषता है, जो न्यूनतम शब्दोंमें बताई जा सकती है ?’ तब महाराजजीने कहा, ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ । इससे हमें इस परंपराका महत्त्व समझमें आता है । ऐसी परंपराके दर्शन करवानेवाला पर्व युग-युगसे मनाया जा रहा है, तथा वह है, गुरुपूर्णिमा ! हमारे जीवनमें गुरुका क्या स्थान है, गुरुपूर्णिमा हमें इसका स्पष्ट पाठ पढ़ाती है ।

🚩आज भारत देश में देखा जाय तो महान संतों पर आघात किया जा रहा है, अत्याचार किया जा रहा है, जिन संतों ने हमेशा देश का मंगल चाहा है । जो भारत का उज्जवल भविष्य देखना चाहते हैं । लेकिन आज उन्ही संतों को टारगेट किया जा रहा है ।

🚩भारत में थोड़ी बहुत जो सुख-शांति, चैन- अमन और सुसंस्कार बचे हुए हैं तो वो संतों के कारण ही है और संतों, गुरुओं को चाहने और मानने वाले शिष्यों के कारण ही है ।

🚩लेकिन उन्ही संतों पर षड़यंत्र करके भारतवासियों की श्रद्धा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है ।

🚩"भारतवासियों को ही गुमराह करके संतों के प्रति भारतवासियों की आस्था को तोड़ा जा रहा है ।"

अतः देशविरोधी तत्वों से सावधान रहें ।

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