Tuesday, September 10, 2019

बांग्लादेश में हिंदुओं का हाल बेहाल, हो रहे हैं हमले, छोड़ रहे हैं बांग्लादेश

10 Sep 2019
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🚩बांग्लादेश माइनॉरिटी वॉच के अध्यक्ष अधिवक्ता श्री रवींद्र घोष ने कहा कि बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए हिन्दू लड़े । उसके बदले में उन्हें क्या मिला? यह प्रश्‍न उपस्थित हो रहा है । बांग्लादेश जब से स्वतंत्र हुआ है, तब से आज तक वहां 15 लाख से अधिक हिन्दुआें की हत्या की गई है । स्वतंत्रता के पश्‍चात वहां के शासन ने संविधान में इस्लाम धर्मानुसार आचरण करने की धारा घुसाई । तब से निरंतर वहां के हिन्दुआें की धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार नकारा जा रहा है। वहां के हिन्दुआें को किसी प्रकार का न्याय अथवा अधिकार नहीं मिलता, अपितु हिन्दुआें की भूमि बलपूर्वक दबा ली गई । हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर अत्याचार किए जाते हैं । अभी तक बांग्लादेश के 3 सहस्र 336 मंदिर तोड़े गए हैं । ऐसे विविध प्रकार से हिन्दुआें पर अत्याचार और अन्याय किया जाता है ।

🚩हिन्दू परिवार पर आक्रमण...
बांग्लादेश के पटुअलहाली जिले के दशमिना में 25 अगस्त 2019 के दिन जहीर बाहिनी संगठन के 50 से भी अधिक धर्मांध गुंडों ने हिन्दू परिवार पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में 10 से भी अधिक हिन्दू महिलाएं और बच्चे गंभीररूप से घायल हुए। उन्हें चिकित्सा हेतु विविध चिकित्सालयों में भरती किया गया है।
🚩बांग्लादेश के दैनिक ‘स्टार’ के अनुसार, इन आक्रमणकारियों के विरोध में दशमिना पुलिस थाने में परिवाद प्रविष्ट किया गया है। दशमिना पुलिस थाने के अधिकारियों ने बताया कि, इस प्रकरण में अभी तक 3 लोगों को बंदी बनाया गया है।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात
🚩हिंदुओं का पलायन...
🚩प्रोफेसर बरकत ने ढाका यूनिवर्सिटी में किताब के विमोचन के दौरान बताया कि 1964 से 2013 के बीच लगभग 1 करोड़ 13 लाख हिंदुओं ने धार्मिक भेदभाव और उत्पीड़न के कारण से बांग्लादेश छोड़ा । ये आंकड़ा औसतन हर दिन 632 का बैठता है । इसका अर्थ ये भी है कि हर वर्ष 2, 30, 612 हिंदू बांग्लादेश छोड़ रहे हैं ।
🚩प्रोफेसर बरकत ने अपने 30 वर्ष के शोध के दौरान पाया कि अधिकतर हिंदुओं ने 1971 में बांग्लादेश को आजादी मिलने के बाद फौजी हुकूमतों के दौरान पलायन किया ।
🚩बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दिनों में हर दिन हिंदुओं के पलायन का आंकड़ा 705 था । 1971-1981 के बीच ये आंकड़ा 512  रहा । वहीं 1981-1991 के बीच औसतन 438 हिंदुओं ने हर दिन पलायन किया । 1991-2001 के बीच ये आंकड़ा बढ़कर 767  हो गया । वहीं 2001-2012 में हिंदुओं के हर दिन पलायन का आंकड़ा 774 रहा ।
🚩ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अजय रॉय ने कहा कि बांग्लादेश बनने से पहले पाकिस्तान के शासन वाले दिनों में सरकार ने अनामी प्रॉपर्टी का नाम देकर हिंदुओं की संपत्ति को जब्त कर लिया । स्वतंत्रता मिलने के बाद भी निहित संपत्ति के तौर पर सरकार ने कब्जा जमाए रखा । इसी वजह से लगभग 60 प्रतिशत हिंदू भूमिहीन हो गए ।
🚩भारत में अल्पसंख्यक मुस्लिम पर कुछ होता है तो मीडिया दिन-रात खबरें दिखाती रहती है और सेक्युलर लोग उनके बचाव में टूट पड़ते है, लेकिन बांग्लादेश में हररोज इतना हिन्दुओं का पलायन होना व उनके ऊपर इतना अत्याचार होने पर मीडिया और  सेक्युलर लोगों ने चुप्पी क्यों साधी है ???
🚩भारत सरकार को पाकिस्तान व बांग्लादेश के हिंदुओं की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए।
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Monday, September 9, 2019

लव जिहाद में फंसी विधायक रूमी की दर्दनाशक कहानी

09 Sep 2019
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🚩आज आपको असम की विधायक रूमी नाथ की कहानी बताते हैं साथ ही ये भी समझने की कोशिश कीजियेगा कि जिस भी हिन्दू परिवार में मुसलमान बैठने लगेगा उस परिवार की महिलाओं का हश्र यही होता है ।

🚩असम में एक बड़े प्रतिष्ठित डॉक्टर थे राकेश कुमार सिंह इलाके के लोग उनका बहुत सम्मान करते थे क्योंकि वह क्षमतानुसार सब की सहायता करते थे, डॉक्टर साहब की पत्नी थी रूमी नाथ जिससे उन्हें 2 वर्ष की बेटी थी ।
🚩उन दिनों असम के एक मंत्री अहमद सिद्दीकी कि डॉक्टर साहब से जान पहचान हुई और अहमद सिद्दीकी का डॉक्टर साहब के घर आना जाना शुरु हुआ, अहमद सिद्दीकी ने डॉक्टर साहब की प्रतिष्ठा का राजनितिक लाभ उठाने हेतु उनकी पत्नी रूमी नाथ को टिकट दिलवाकर MLA का चुनाव लड़वाने का सुझाव दिया ।
🚩अहमद सिद्दीकी यह जानता था कि महिला होने के कारण और डॉ राकेश सिंह की प्रतिष्ठा और सम्मान के कारण क्षेत्र के अधिकांश वोट डॉक्टर राकेश सिंह की पत्नी रूमी नाथ को ही मिलेंगे और महिला उम्मीदवार होने के नाते महिला वोट तो रूमी नाथ को मिलने ही थे ।
🚩और जब चुनाव परिणाम आया तो आशानुरूप रूमी नाथ चुनाव जीत गई, अब इसके बाद अहमद सिद्दीकी का रूमी नाथ से प्रतिदिन से मिलना होता और धीरे धीरे अहमद सिद्दीकी ने रूमी नाथ का ब्रेनवाश करना शुरू किया ।
🚩अहमद सिद्दीकी ने रुमी का परिचय एक बांग्लादेशी मुस्लिम युवक जैकी ज़ाकिर से करवाया और उस युवक से रुमी को प्रेम जाल में फँसाने को कहा ।
🚩और अब ज़ाकिर ने रोज़ रूमी से मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू किया, कुछ समय बाद रूमी नाथ पूरी तरह से अहमद सिद्दीकी और जैकी ज़ाकिर के लव जेहाद के जाल में फंस गई, इसके बाद अहमद सिद्दीकी ने एक दिन रूमी नाथ को अपने बंगले पर बुलाया और वहां उसका धर्म परिवर्तन करवा कर उसे इस्लाम कबूल करवाया और उसका नया नाम रखा गया रबिया सुल्ताना और रूमी नाथ ने बिना डॉक्टर राकेश सिंह को कुछ बताये, बिना अपनी 2 वर्ष कि बेटी की चिंता किए, बिना डिवोर्स लिए उस बांग्लादेशी युवक ज़ाकिर से निकाह कर लिया ।
🚩अहमद सिद्दीकी जानता था कि मामला संवेदनशील है अतः उसने रूमी नाथ और और उस बांग्लादेशी युवक ज़ाकिर को बांग्लादेश भिजवा दिया ।
🚩रूमी नाथ के पिता और पति दोनों प्रतिष्ठित व्यक्ति थे उन्होंने इस विषय को उठाया भी किंतु रूमी नाथ खुद एक विधायक थी, अतः कुछ ना हो सका, रूमीनाथ के पिता और उसके पति डॉ राकेश सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अहमद सिद्दीकी का नाम लिया और लोगों से अपने बच्चों बहु बेटियों को जिहादियों से दूर रखने को कहा ।
🚩कुछ दिनों बाद अहमद सिद्दीकी ने बांग्लादेश स्थित भारतीय दूतावास को चिट्ठी लिखकर जैकी जाकिर को वीजा देने को कहा, जिसके बाद रूमीनाथ से रुबिया सुल्ताना बनी रूमी अपने नए मुस्लिम बंगलादेशी शौहर को साथ लेकर वापस भारत आ गई और अपने क्षेत्र में अलग घर लेकर रहने लगी ।
🚩डॉ राकेश सिंह इस अपमान को सहन नहीं कर पाए और अपनी 2 साल की बच्ची को लेकर उत्तर प्रदेश चले गए, और रूमी नाथ के घर वालों ने उससे सारे संबंध तोड़ लिए ।
🚩रूमीनाथ और जाकिर 2 साल तक साथ रहे जिससे रूमी को एक लड़की हुई, और फिर जैसा कि हमेशा से होता है शांतिदूत जाकिर ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया, रुमी के साथ रोज मार पिटाई होती, उसे प्रताड़ित किया जाता और जाकिर उससे उसके सारे पैसे छीन लेता, जिससे त्रस्त होकर रूमी नाथ ने ज़ाकिर के खिलाफ पुलिस में शिकायत करी और उसके बाद वो जाकिर से अलग हो गई ।
🚩अब रुमी को अपनी विधायकी और छवि का ख्याल आया और उसने इस्लाम को त्याग कर पुनः हिंदू धर्म स्वीकार किया, किंतु अब तक उसे जिहादियों की संगत में अपराध और गलत कामों की लत लग चुकी थी और अब वो सीधी साधी ग्रहणी रुमीनाथ पूरे भारत में सक्रिय एक कार चोरी करने वाले रैकेट की एक्टिव सदस्य बन चुकी थी, जो पूरे भारत से चोरी की जा रही महंगी गाड़ियां को अवैध रूप से असम में बेचने का गोरख धंधा चलाती थी ।
*🚩इन सबके बीच चुनाव आए और क्योंकि इस बार रूमी के साथ उसके पहले पति डॉ राकेश सिंह की प्रतिष्ठा नहीं थी और अपने पहले पति और 2 वर्षीय बेटी को छोड़कर इस्लाम कुबूल करने, जाकिर से निकाह कर उसके साथ भागने के कारण जिन लोगों ने उसे पिछली बार वोट देकर उसे विजयी बनाया था,
उन लोगों ने इस बार उससे अपना समर्थन वापस ले लिया और परिणाम स्वरुप रूमीनाथ बुरी तरह से चुनाव हार गई, रूमी नाथ अब ज़ाकिर से पैदा हुई अपनी बेटी को लेकर अपने पिता और घर वालों के पास गयी किंतु उन्होंने उसे स्वीकारने से मना कर दिया ।*
🚩और अब तक रुमी कार चोरी के रैकेट वाले केस में बुरी तरह से फंस चुकी थी, और उसके बाद उसे पुलिस द्वारा अरेस्ट कर लिया गया, ये थी कहानी एक हिन्दू ग्रहणी रूमी नाथ की जो जिहादी अहमद सिद्दीकी के इशारे पर विधायक बनी, फिर अपने पिता, घरवालों, अपने पति अपनी 2 वर्षीय बेटी को बिना बताए बिना डिवोर्स दिए उन्हें त्यागकर, अवैध सम्बन्धों और लव जिहाद में अंधी होकर राबिया सुल्ताना बनी और शांतिदूत ज़ाकिर की बीवी बन अपने घरवालों को छोड़कर बंग्लादेश भाग गई, बाद में उसके उसी प्रेमी जाकिर ने रोज़ उससे उसके पैसे छीनने शुरू किये प्रतिदिन उसकी पिटाई-कुटाई चालु की, उसके बाद रूमी उससे अलग होकर अपराध की दुनिया में घुस कार चोरी के रैकेट की सदस्य बनी फिर चुनाव भी हारी, घरवालों ने मुंह फेर लिया और आज जेल में है।
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🚩इस लेख को सोशल मीडिया में हर हिन्दू इतना प्रचारित करे कि हिन्दू समाज की लड़कियों को सच्चाई का पता चले। उनके जीवन की रक्षा करना हर हिन्दू का कर्त्तव्य हैं।
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Sunday, September 8, 2019

भारत मे ही नहीं विदेशों में भी गणोशोत्सव की धूम मची है

08 Sep 2019
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🚩जिस प्रकार अधिकांश वैदिक मंत्रों के आरम्भ में ‘ॐ’ लगाना आवश्यक माना गया है, वेदपाठ के आरम्भ में ‘हरि ॐ’ का उच्चारण अनिवार्य माना जाता है, उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर पर सर्वप्रथम श्री गणपतिजी का पूजन अनिवार्य है ।
🚩उपनयन, विवाह आदि सम्पूर्ण मांगलिक कार्यों के आरम्भ में जो श्री गणपतिजी का पूजन करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है । भगवान गणपति जी का अत्यंत महत्व होने के कारण भारत के साथ विदेश में भी गणोशोत्सव बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।

🚩गणेश चतुर्थी के बाद पूरे देश में गणेशोत्सव की धूम मची हुई है। लोग बड़े ही भक्ति भाव से गणेश की स्थापना कर रहे हैं । हिन्दुआें के साथ-साथ गैर हिन्दुआें में भी बप्पा के बहोत भक्त हैं । परंतु आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भगवान गणेश के जयकारे जिस तरह भारत में लगते हैं उसी तरह भारत से हजारों मील दूर अफ्रीकी देश घाना में भी गूंज रहे हैं। यहां गणपति की वैसी ही भक्ति, उतनी ही धूमधाम से पूजा और उतने ही उत्साह के साथ मूर्ति विसर्जन किया जाता है।
🚩अफ्रीकी देश घाना में गणपति बप्पा की पूजा यहां अफ्रीकी हिन्दू करते हैं। यहां हर साल भगवान गणेश  की पूजा धूमधाम से की जाती है और भारतीय हिन्दू की तरह ये भी गणेश मूर्ति का विसर्जन करते हैं।
🚩बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार यहां के लोगों का हिन्दुत्व से परिचय वर्ष 1970 में हुआ था। आज लगभग 12 हजार हिन्दू इस अफ्रीकी देश में रहते हैं।
🚩आरती के दौरान भगवान की शरण में माथा टेकना, शंख बजाना, फल या मोदक का भोग लगाना, आरती लेना या भजन कीर्तन करने जैसे सभी काम घाना में रहने वाले ये लोग करते हैं।
🚩घाना में रहने वाले हिन्दू समुदाय के लोगों का कहना है कि वे तीन दिन तक भगवान गणेश की पूजा करते हैं और फिर उनकी मूर्ति को समुद्र में विसर्जित कर देते हैं। समुद्र हर जगह फैला हुआ है, गणेश मूर्ति का विसर्जन समुद्र में करने से गणेश भगवान का आशीर्वाद पूरे विश्व में फैलता है इसलिए बड़े भक्ति भाव से गणेशजी का विसर्जन समुद्र में ही किया जाता है।
🚩यहां न केवल भगवान गणेश बल्कि श्रीकृष्ण और शिवभक्तों की भी कमी नहीं है। यहां हिन्दू धर्म के और भी कई देवी-देवताओं की पूजा होती है।
🚩यहां के लोगों का कहना है कि हर किसी का भगवान में विश्वास होना चाहिए। वो हमारी सभी मुश्किलों को दूर कर सकते हैं।
स्त्रोत : आज तक
🚩आपको बता दें कि केवल अफ्रीका में ही नहीं बल्कि यूरोप के शहर हॉलैंड में भी गणपति महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे अन्य देशों में भी गणपति जी का जन्मोत्सव मनाया जाता हैं।
🚩गणेशोत्सव की शुरूआत-
गणेशोत्सव के इतिहास पर गौर करें तो कहा जाता है है कि पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया था। शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना की थी।
🚩लेकिन सन 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत की। हालांकि तिलक के इस प्रयास से पहले गणेश पूजा सिर्फ परिवार तक ही सीमित थी। तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे एक बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। तिलक ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें एक ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहां से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सके।
🚩तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे महज धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने, समाज को संगठित करने के साथ ही उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया, जिसका ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा।
🚩तिलक द्वारा सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत करने से दो फायदे हुए एक तो वह अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचा पाए और दूसरा यह कि इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उन्हें जोश से भर दिया।
🚩इस तरह से हुई गणेशोत्सव की शुरूआत – बहरहाल आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस गणेशोत्सव को आज भी सभी भारतीय बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।
🚩इसलिए यह जरूरी है कि देशभर में आज भी उल्लास के साथ मनाया जाने वाला गणेशोत्सव में फ़िल्मी व पॉप आदि गाने नहीं लगाना चाहिए और ना ही दारू आदि का नशा करना चाहिए। यह केवल तड़क-भड़क और गीत-संगीत के खर्चीले आयोजनों के बीच मनुष्यता व सामाजिक दायित्व जगाने की अपनी मूल प्रेरणा को ना खोये इसका ध्यान रखना चाहिए।
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डीएनए में खुलासा : आर्य भारत के मूल निवासी हैं, बाहर से नहीं आए थे

07 Sep 2019
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🚩आर्य मूलतः भारत के ही निवासी हैं, लेकिन राष्ट्रविरोधी ताकतों के इशारे पर वामपंथियों ने इतिहास ही बदल दिया । वामपंथी विदेश लूट के लिए भारत में आये । स्वयं को मूल निवासी और मूल निवासी को विदेशी बताने लगे फिर ईसाई मिशनरियां जो विदेश से आईं वे भोले-भाले आदिवासियों को गुमराह करने लगीं कि आप भारत के मूलनिवासी है और आर्य बाहर से आये हैं ऐसा बोलकर भारतवासियों को आपस में भिड़ाने लग गए।
🚩आर्यों को लेकर कई दावे किए गए, लेकिन फिर भी सवाल ज्यों का त्यों रहा कि आर्य बाहर से आए थे या यहीं (भारत) के ही निवासी थे ? इस सवाल के जवाब में वामपंथियों ने कई दावे किए जिनका मकसद भारतीयों को शायद हीन साबित करना रहा हो, लेकिन अब इस सवाल का जवाब स्पष्ट नजर आने लगा है !

🚩राखीगढ़ी में हुई हड़प्पाकालीन सभ्यता की खुदाई-
दरअसल, हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी में हुई हड़प्पाकालीन सभ्यता की खोदाई में कई ऐतिहासिक राज का खुलासा गया है ! बता दें कि राखीगढ़ी में मिले 5000 साल पुराने कंकालों के डीएनए टेस्ट के बाद जारी की गई रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि आर्य कहीं बाहर से नहीं आए उलटे, यहीं अर्थात भारत के ही के मूल निवासी थे ! डीएनए स्टडी से यह भी खुलासा हुआ है कि, भारत के लोगों के जीन (पूर्वज) में पिछले हजारों सालों में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखने को मिला है।
🚩आर्य बाहरी और आक्रमणकारी थे ?
इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के एक अंश में यह दावा किया गया है कि, इस अध्ययन में सामने आया है कि, आर्य भारत के ही मूल निवासी थे ! इसे लेकर वैज्ञानिकों ने राखीगढी से प्राप्त नरकंकालों के अवशेषों का डीएनए टेस्ट किया था। डीएनए टेस्ट से स्पष्ट पता चला है कि, यह रिपोर्ट प्राचीन आर्यन्स की डीएनए रिपोर्ट से मेल नहीं खाती है ! ऐसे में जाहिर आर्यों के बाहर से आने की थ्योरी ही गलत साबित होती है ! वैसे पहले भी कई इतिहासकारों का कहना था कि, वामपंथियों की आर्यन थ्योरी मनगढंत कल्पना पर आधारित है, जिसकी परतें इस नए शोध से उधेडती नजर आ रही हैं !
🚩रिसर्च में यह भी सामने आया है कि 9000 साल पहले भारत के लोगों ने ही कृषि की शुरुआत की थी। इसके बाद ये ईरान व इराक होते हुए पूरी दुनिया में पहुँची। भारत के विकास में यहीं के लोगों का योगदान है !
🚩यहाँ यह ध्यान देनेवाली बात है कि इतिहास के लिए तथ्य महत्वपूर्ण होते हैं, इन तथ्यों में भी वैज्ञानिक सबूतों का ज्यादा महत्व होता है ! राखीगढ़ी में मिले 5000 साल पुराने कंकालों के अध्ययन के बाद जारी की गई रिपोर्ट में ऐसी कई बातें सामने आई है जिनके अभी तक कयास ही लगाए जा रहे थे !
🚩राखीगढ़ी से प्राप्त कंकाल-
बता दें कि, हिसार के राखीगढ़ी में हड़प्पा खोदाई का काम कर रहे पुणे के डेक्कन कॉलेज के पुरातत्वविदों के अनुसार, खोदाई के वक्त युवक (कंकाल) का मुँह युवती की तरफ था। और यह पहली बार है कि, जब हडप्पा सभ्यता की खुदाई के दौरान किसी युगल की कब्र मिली है !
🚩यहाँ हैरानी की बात यह भी है कि, अब तक हड़प्पा सभ्यता से संबंधित कई कब्रिस्तानों की जाँच की गई थी लेकिन आज तक किसी भी युगल के इस तरह दफनाने का मामला सामने नहीं आया था !
🚩राखीगढी में खोदाई करनेवाले पुरातत्वविदों के अनुसार, युगल कंकाल का मुँह, हाथ और पैर सभी एक समान है ! इससे साफ है कि, दोनों को जवानी में एक साथ दफनाया गया था। बता दें के ये निष्कर्ष हाल ही में अंतरराष्ट्रीय पत्रिका, एसीबी जर्नल ऑफ अनैटमी और सेल बायॉलजी में प्रकाशित किए गए थे।
🚩इस नए शोध और प्रमाणों के साये में इतिहास को देखने और समझने की एक नई दृष्टि मिलती है ! और वामपंथियों की हीनता भरे इतिहास को एक चपत भी लगती है ! स्त्रोत : ऑप इंडिया
🚩बता दे कि राखीगढ़ी साइट की रिसर्च टीम के सदस्य और पुणो स्थित डेक्कन कॉलेज डीम्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर प्रो. वसंत शदे और जेनेटिक साइंटिस्ट डॉ. नीरज राय ने बताया कि राखीगढ़ी हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े केंद्रों में से एक है। करीब 300 एकड़ में वर्ष-2015 में पुरातत्वविदों ने यहां खोदाई शुरू की थी।
🚩अध्ययन में पता चला कि अफगानिस्तान से अंडमान तक सभी का एक ही जीन है। करीब 12 हजार साल से संपूर्ण दक्षिण एशिया वासियों का एक ही जीन रहा है, यानी सबके एक ही पूर्वज रहे हैं। इससे आर्य के बाहर से आने की थ्योरी गलत साबित हो जाती है।
🚩शदे ने कहा, वह भारत सरकार से अनुरोध करेंगे कि इतिहास की पुस्तकों में इन नए तथ्यों को शामिल किया जाए।
🚩डॉ. नीरज राय ने बताया कि अगर आर्य बाहर से आए होते और नरसंहार किया होता तो वे अपनी संस्कृति लाते और हमारी संस्कृति को नष्ट कर देते। मानव कंकाल पर कहीं चोट या घाव के ऐसे निशान नहीं मिले हैं, जिनसे नरसंहार की बात साबित हो।
🚩प्रो. शदे ने बताया कि राखीगढ़ी में अलग-अलग आकार व आकृति के हवन कुंड व कोयले के अवशेष मिले हैं। इससे साबित होता है कि करीब पांच हजार साल पहले भी भारत में हवन होता था। सरस्वती नदी के किनारे भी हड़प्पा सभ्यता के निशान मिले हैं । https://www.youtube.com/watch?v=IMfVN97XQlM
🚩आर्य न तो विदेशी थे और न ही उन्होंने कभी भारत पर आक्रमण किया। आर्य भारत के मूल निवासी थे। बस वामपंथियों ने गलत इतिहास लिखा इसके कारण देशवासी गुमराह हुए।
🚩राष्ट्रविरोधी ताकतें शाम-दाम-दंड की नीति अपनाकर आपसी में गृहयुद्ध करवाना चाहती है और देश की सत्ता हथियाना चाहती है इससे सावधान रहना।
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