Wednesday, September 11, 2019

जाने श्राद्ध क्यों करना चाहिए? कैसे करें? नहीं करने से कितनी होगी हानि ?

11 September 2019
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🚩 भारतीय संस्कृति की एक बड़ी विशेषता है कि जीते-जी तो विभिन्न संस्कारों के द्वारा, धर्मपालन के द्वारा मानव को समुन्नत करने के उपाय बताती ही है, लेकिन मरने के बाद, अंत्येष्टि संस्कार के बाद भी जीव की सदगति के लिए किए जाने योग्य संस्कारों का वर्णन करती है ।

🚩 मरणोत्तर क्रियाओं-संस्कारों का वर्णन हमारे शास्त्र-पुराणों में आता है । आश्विन (गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) के कृष्ण पक्ष को हमारे हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के रूप में मनाया जाता है । श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में यथास्थान किया गया है । इस वर्ष श्राद्ध पक्ष : 13 सितम्बर से 28 सितंबर तक है।
🚩 दिव्य लोकवासी पितरों के पुनीत आशीर्वाद से आपके कुल में दिव्य आत्माएँ अवतरित हो सकती हैं । जिन्होंने जीवन भर खून-पसीना एक करके इतनी साधन-सामग्री व संस्कार देकर आपको सुयोग्य बनाया उनके प्रति सामाजिक कर्त्तव्य-पालन अथवा उन पूर्वजों की प्रसन्नता, ईश्वर की प्रसन्नता अथवा अपने हृदय की शुद्धि के लिए सकाम व निष्काम भाव से यह श्राद्धकर्म करना चाहिए ।
🚩हिन्दू धर्म में एक अत्यंत सुरभित पुष्प है कृतज्ञता की भावना, जो कि बालक में अपने माता-पिता के प्रति स्पष्ट परिलक्षित होती है । हिन्दू धर्म का व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता की सेवा तो करता ही है, उनके देहावसान के बाद भी उनके कल्याण की भावना करता है एवं उनके अधूरे शुभ कार्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न करता है । 'श्राद्ध-विधि' इसी भावना पर आधारित है ।
🚩 मृत्यु के बाद जीवात्मा को उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ कर्मानुसार स्वर्ग नरक में स्थान मिलता है । पाप-पुण्य क्षीण होने पर वह पुनः मृत्युलोक (पृथ्वी) में आता है । स्वर्ग में जाना यह पितृयान मार्ग है एवं जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना यह देवयान मार्ग है ।
🚩पितृयान मार्ग से जाने वाले जीव पितृलोक से होकर चन्द्रलोक में जाते हैं । चंद्रलोक में अमृतान्न का सेवन करके निर्वाह करते हैं । यह अमृतान्न कृष्ण पक्ष में चंद्र की कलाओं के साथ क्षीण होता रहता है । अतः कृष्ण पक्ष में वंशजों को उनके लिए आहार पहुँचाना चाहिए, इसलिए श्राद्ध एवं पिण्डदान की व्यवस्था की गयी है । शास्त्रों में आता है कि अमावस्या के दिन तो पितृतर्पण अवश्य करना चाहिए ।
🚩आधुनिक विचारधारा एवं नास्तिकता के समर्थक शंका कर सकते हैं किः "यहाँ दान किया गया अन्न पितरों तक कैसे पहुँच सकता है ?"
🚩 भारत की मुद्रा 'रुपया' अमेरिका में 'डॉलर' एवं लंदन में 'पाउण्ड' होकर मिल सकती है एवं अमेरिका के डॉलर जापान में येन एवं दुबई में दीनार होकर मिल सकते हैं । यदि इस विश्व की नन्हीं सी मानव रचित सरकारें इस प्रकार मुद्राओं का रुपान्तरण कर सकती हैं तो ईश्वर की सर्वसमर्थ सरकार आपके द्वारा श्राद्ध में अर्पित वस्तुओं को पितरों के योग्य करके उन तक पहुँचा दे, इसमें क्या आश्चर्य है ?
🚩मान लो, आपके पूर्वज अभी पितृलोक में नहीं, अपित मनुष्य रूप में हैं । आप उनके लिए श्राद्ध करते हो तो श्राद्ध के बल पर उस दिन वे जहाँ होंगे वहाँ उन्हें कुछ न कुछ लाभ होगा ।
🚩मान लो, आपके पिता की मुक्ति हो गयी हो तो उनके लिए किया गया #श्राद्ध कहाँ जाएगा ? जैसे, आप किसी को मनीआर्डर भेजते हो, वह व्यक्ति मकान या आफिस खाली करके चला गया हो तो वह मनीआर्डर आप ही को वापस मिलता है, वैसे ही श्राद्ध के निमित्त से किया गया दान आप ही को विशेष लाभ देगा।
🚩 दूरभाष और दूरदर्शन आदि यंत्र, हजारों किलोमीटर का अंतराल दूर करते हैं, यह प्रत्यक्ष है । इन यंत्रों से भी मंत्रों का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है ।
🚩 देवलोक एवं पितृलोक के वासियों का आयुष्य मानवीय आयुष्य से हजारों वर्ष ज्यादा होता है । इससे पितर एवं पितृलोक को मानकर उनका लाभ उठाना चाहिए तथा श्राद्ध करना चाहिए।
🚩भगवान श्रीरामचन्द्रजी भी श्राद्ध करते थे । पैठण के महान आत्मज्ञानी संत हो गये श्री एकनाथ जी महाराज, पैठण के निंदक ब्राह्मणों ने एकनाथ जी को जाति से बाहर कर दिया था एवं उनके श्राद्ध-भोज का बहिष्कार किया था । उन योगसंपन्न एकनाथ जी ने ब्राह्मणों के एवं अपने पितृलोक वासी पितरों को बुलाकर भोजन कराया । यह देखकर पैठण के ब्राह्मण चकित रह गये एवं उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमायाचना की ।
🚩जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान एवं धर्म के संस्कारों का सिंचन किया उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध से प्रसन्न करने के दिन ही हैं श्राद्धपक्ष । श्राद्धपक्ष आश्विन के (गुजरात-महाराष्ट्र में भाद्रपद के) कृष्ण पक्ष में की गयी श्राद्ध-विधि गया क्षेत्र में की गयी श्राद्ध-विधि के बराबर मानी जाती है । इस विधि में मृतात्मा की पूजा एवं उनकी इच्छा-तृप्ति का सिद्धान्त समाहित होता है ।
🚩प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर #देवऋण, #पितृऋण एवं #ऋषिऋण रहता  है। श्राद्धक्रिया द्वारा पितृऋण से मुक्त हुआ जाता है । देवताओं को यज्ञ-भाग देने पर देवऋण से मुक्त हुआ जाता है । ऋषि-मुनि-संतों के विचारों को, आदर्शों को अपने जीवन में उतारने से, उनका प्रचार-प्रसार करने से एवं उन्हें लक्ष्य मानकर आदरसहित आचरण करने से ऋषिऋण से मुक्त हुआ जाता है ।
🚩पुराणों में आता है कि आश्विन(गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) कृष्ण पक्ष की अमावस (पितृमोक्ष अमावस) के दिन सूर्य एवं चन्द्र की युति होती है । सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है । इस दिन हमारे पितर यमलोक से अपना निवास छोड़कर सूक्ष्म रूप से मृत्युलोक (पृथ्वीलोक) में अपने वंशजों के निवास स्थान में रहते हैं । अतः उस दिन उनके लिए विभिन्न श्राद्ध करने से वे तृप्त होते हैं ।
🚩 गरुड़ पुराण (10.57-59) में आता है कि ‘समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दु:खी नहीं रहता । पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशुधन, सुख, धन और धान्य प्राप्त करता है ।
🚩‘हारीत स्मृति’ में लिखा है :
न तत्र वीरा जायन्ते नारोग्यं न शतायुष: |
न च श्रेयोऽधिगच्छन्ति यंत्र श्राद्धं विवर्जितम ||
🚩‘जिनके घर में श्राद्ध नहीं होता उनके कुल-खानदान में वीर पुत्र उत्पन्न नहीं होते, कोई निरोग नहीं रहता । किसी की लम्बी आयु नहीं होती और उनका किसी तरह कल्याण नहीं प्राप्त होता ( किसी – न - किसी तरह की झंझट और खटपट बनी रहती है ) ।’
🚩महर्षि सुमन्तु ने कहा : “श्राद्ध जैसा कल्याण - मार्ग गृहस्थी के लिए और क्या हो सकता है । अत: बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए ।”
🚩अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें :
“हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगाएं ।
🚩 श्राद्ध पक्ष में रोज भगवदगीता के सातवें अध्याय का पाठ और 1 माला माला द्वादश मंत्र ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” और एक माला "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा" की करनी चाहिए और उस पाठ एवं माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए।
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Tuesday, September 10, 2019

बांग्लादेश में हिंदुओं का हाल बेहाल, हो रहे हैं हमले, छोड़ रहे हैं बांग्लादेश

10 Sep 2019
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🚩बांग्लादेश माइनॉरिटी वॉच के अध्यक्ष अधिवक्ता श्री रवींद्र घोष ने कहा कि बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए हिन्दू लड़े । उसके बदले में उन्हें क्या मिला? यह प्रश्‍न उपस्थित हो रहा है । बांग्लादेश जब से स्वतंत्र हुआ है, तब से आज तक वहां 15 लाख से अधिक हिन्दुआें की हत्या की गई है । स्वतंत्रता के पश्‍चात वहां के शासन ने संविधान में इस्लाम धर्मानुसार आचरण करने की धारा घुसाई । तब से निरंतर वहां के हिन्दुआें की धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार नकारा जा रहा है। वहां के हिन्दुआें को किसी प्रकार का न्याय अथवा अधिकार नहीं मिलता, अपितु हिन्दुआें की भूमि बलपूर्वक दबा ली गई । हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर अत्याचार किए जाते हैं । अभी तक बांग्लादेश के 3 सहस्र 336 मंदिर तोड़े गए हैं । ऐसे विविध प्रकार से हिन्दुआें पर अत्याचार और अन्याय किया जाता है ।

🚩हिन्दू परिवार पर आक्रमण...
बांग्लादेश के पटुअलहाली जिले के दशमिना में 25 अगस्त 2019 के दिन जहीर बाहिनी संगठन के 50 से भी अधिक धर्मांध गुंडों ने हिन्दू परिवार पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में 10 से भी अधिक हिन्दू महिलाएं और बच्चे गंभीररूप से घायल हुए। उन्हें चिकित्सा हेतु विविध चिकित्सालयों में भरती किया गया है।
🚩बांग्लादेश के दैनिक ‘स्टार’ के अनुसार, इन आक्रमणकारियों के विरोध में दशमिना पुलिस थाने में परिवाद प्रविष्ट किया गया है। दशमिना पुलिस थाने के अधिकारियों ने बताया कि, इस प्रकरण में अभी तक 3 लोगों को बंदी बनाया गया है।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात
🚩हिंदुओं का पलायन...
🚩प्रोफेसर बरकत ने ढाका यूनिवर्सिटी में किताब के विमोचन के दौरान बताया कि 1964 से 2013 के बीच लगभग 1 करोड़ 13 लाख हिंदुओं ने धार्मिक भेदभाव और उत्पीड़न के कारण से बांग्लादेश छोड़ा । ये आंकड़ा औसतन हर दिन 632 का बैठता है । इसका अर्थ ये भी है कि हर वर्ष 2, 30, 612 हिंदू बांग्लादेश छोड़ रहे हैं ।
🚩प्रोफेसर बरकत ने अपने 30 वर्ष के शोध के दौरान पाया कि अधिकतर हिंदुओं ने 1971 में बांग्लादेश को आजादी मिलने के बाद फौजी हुकूमतों के दौरान पलायन किया ।
🚩बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दिनों में हर दिन हिंदुओं के पलायन का आंकड़ा 705 था । 1971-1981 के बीच ये आंकड़ा 512  रहा । वहीं 1981-1991 के बीच औसतन 438 हिंदुओं ने हर दिन पलायन किया । 1991-2001 के बीच ये आंकड़ा बढ़कर 767  हो गया । वहीं 2001-2012 में हिंदुओं के हर दिन पलायन का आंकड़ा 774 रहा ।
🚩ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अजय रॉय ने कहा कि बांग्लादेश बनने से पहले पाकिस्तान के शासन वाले दिनों में सरकार ने अनामी प्रॉपर्टी का नाम देकर हिंदुओं की संपत्ति को जब्त कर लिया । स्वतंत्रता मिलने के बाद भी निहित संपत्ति के तौर पर सरकार ने कब्जा जमाए रखा । इसी वजह से लगभग 60 प्रतिशत हिंदू भूमिहीन हो गए ।
🚩भारत में अल्पसंख्यक मुस्लिम पर कुछ होता है तो मीडिया दिन-रात खबरें दिखाती रहती है और सेक्युलर लोग उनके बचाव में टूट पड़ते है, लेकिन बांग्लादेश में हररोज इतना हिन्दुओं का पलायन होना व उनके ऊपर इतना अत्याचार होने पर मीडिया और  सेक्युलर लोगों ने चुप्पी क्यों साधी है ???
🚩भारत सरकार को पाकिस्तान व बांग्लादेश के हिंदुओं की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए।
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Monday, September 9, 2019

लव जिहाद में फंसी विधायक रूमी की दर्दनाशक कहानी

09 Sep 2019
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🚩आज आपको असम की विधायक रूमी नाथ की कहानी बताते हैं साथ ही ये भी समझने की कोशिश कीजियेगा कि जिस भी हिन्दू परिवार में मुसलमान बैठने लगेगा उस परिवार की महिलाओं का हश्र यही होता है ।

🚩असम में एक बड़े प्रतिष्ठित डॉक्टर थे राकेश कुमार सिंह इलाके के लोग उनका बहुत सम्मान करते थे क्योंकि वह क्षमतानुसार सब की सहायता करते थे, डॉक्टर साहब की पत्नी थी रूमी नाथ जिससे उन्हें 2 वर्ष की बेटी थी ।
🚩उन दिनों असम के एक मंत्री अहमद सिद्दीकी कि डॉक्टर साहब से जान पहचान हुई और अहमद सिद्दीकी का डॉक्टर साहब के घर आना जाना शुरु हुआ, अहमद सिद्दीकी ने डॉक्टर साहब की प्रतिष्ठा का राजनितिक लाभ उठाने हेतु उनकी पत्नी रूमी नाथ को टिकट दिलवाकर MLA का चुनाव लड़वाने का सुझाव दिया ।
🚩अहमद सिद्दीकी यह जानता था कि महिला होने के कारण और डॉ राकेश सिंह की प्रतिष्ठा और सम्मान के कारण क्षेत्र के अधिकांश वोट डॉक्टर राकेश सिंह की पत्नी रूमी नाथ को ही मिलेंगे और महिला उम्मीदवार होने के नाते महिला वोट तो रूमी नाथ को मिलने ही थे ।
🚩और जब चुनाव परिणाम आया तो आशानुरूप रूमी नाथ चुनाव जीत गई, अब इसके बाद अहमद सिद्दीकी का रूमी नाथ से प्रतिदिन से मिलना होता और धीरे धीरे अहमद सिद्दीकी ने रूमी नाथ का ब्रेनवाश करना शुरू किया ।
🚩अहमद सिद्दीकी ने रुमी का परिचय एक बांग्लादेशी मुस्लिम युवक जैकी ज़ाकिर से करवाया और उस युवक से रुमी को प्रेम जाल में फँसाने को कहा ।
🚩और अब ज़ाकिर ने रोज़ रूमी से मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू किया, कुछ समय बाद रूमी नाथ पूरी तरह से अहमद सिद्दीकी और जैकी ज़ाकिर के लव जेहाद के जाल में फंस गई, इसके बाद अहमद सिद्दीकी ने एक दिन रूमी नाथ को अपने बंगले पर बुलाया और वहां उसका धर्म परिवर्तन करवा कर उसे इस्लाम कबूल करवाया और उसका नया नाम रखा गया रबिया सुल्ताना और रूमी नाथ ने बिना डॉक्टर राकेश सिंह को कुछ बताये, बिना अपनी 2 वर्ष कि बेटी की चिंता किए, बिना डिवोर्स लिए उस बांग्लादेशी युवक ज़ाकिर से निकाह कर लिया ।
🚩अहमद सिद्दीकी जानता था कि मामला संवेदनशील है अतः उसने रूमी नाथ और और उस बांग्लादेशी युवक ज़ाकिर को बांग्लादेश भिजवा दिया ।
🚩रूमी नाथ के पिता और पति दोनों प्रतिष्ठित व्यक्ति थे उन्होंने इस विषय को उठाया भी किंतु रूमी नाथ खुद एक विधायक थी, अतः कुछ ना हो सका, रूमीनाथ के पिता और उसके पति डॉ राकेश सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अहमद सिद्दीकी का नाम लिया और लोगों से अपने बच्चों बहु बेटियों को जिहादियों से दूर रखने को कहा ।
🚩कुछ दिनों बाद अहमद सिद्दीकी ने बांग्लादेश स्थित भारतीय दूतावास को चिट्ठी लिखकर जैकी जाकिर को वीजा देने को कहा, जिसके बाद रूमीनाथ से रुबिया सुल्ताना बनी रूमी अपने नए मुस्लिम बंगलादेशी शौहर को साथ लेकर वापस भारत आ गई और अपने क्षेत्र में अलग घर लेकर रहने लगी ।
🚩डॉ राकेश सिंह इस अपमान को सहन नहीं कर पाए और अपनी 2 साल की बच्ची को लेकर उत्तर प्रदेश चले गए, और रूमी नाथ के घर वालों ने उससे सारे संबंध तोड़ लिए ।
🚩रूमीनाथ और जाकिर 2 साल तक साथ रहे जिससे रूमी को एक लड़की हुई, और फिर जैसा कि हमेशा से होता है शांतिदूत जाकिर ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया, रुमी के साथ रोज मार पिटाई होती, उसे प्रताड़ित किया जाता और जाकिर उससे उसके सारे पैसे छीन लेता, जिससे त्रस्त होकर रूमी नाथ ने ज़ाकिर के खिलाफ पुलिस में शिकायत करी और उसके बाद वो जाकिर से अलग हो गई ।
🚩अब रुमी को अपनी विधायकी और छवि का ख्याल आया और उसने इस्लाम को त्याग कर पुनः हिंदू धर्म स्वीकार किया, किंतु अब तक उसे जिहादियों की संगत में अपराध और गलत कामों की लत लग चुकी थी और अब वो सीधी साधी ग्रहणी रुमीनाथ पूरे भारत में सक्रिय एक कार चोरी करने वाले रैकेट की एक्टिव सदस्य बन चुकी थी, जो पूरे भारत से चोरी की जा रही महंगी गाड़ियां को अवैध रूप से असम में बेचने का गोरख धंधा चलाती थी ।
*🚩इन सबके बीच चुनाव आए और क्योंकि इस बार रूमी के साथ उसके पहले पति डॉ राकेश सिंह की प्रतिष्ठा नहीं थी और अपने पहले पति और 2 वर्षीय बेटी को छोड़कर इस्लाम कुबूल करने, जाकिर से निकाह कर उसके साथ भागने के कारण जिन लोगों ने उसे पिछली बार वोट देकर उसे विजयी बनाया था,
उन लोगों ने इस बार उससे अपना समर्थन वापस ले लिया और परिणाम स्वरुप रूमीनाथ बुरी तरह से चुनाव हार गई, रूमी नाथ अब ज़ाकिर से पैदा हुई अपनी बेटी को लेकर अपने पिता और घर वालों के पास गयी किंतु उन्होंने उसे स्वीकारने से मना कर दिया ।*
🚩और अब तक रुमी कार चोरी के रैकेट वाले केस में बुरी तरह से फंस चुकी थी, और उसके बाद उसे पुलिस द्वारा अरेस्ट कर लिया गया, ये थी कहानी एक हिन्दू ग्रहणी रूमी नाथ की जो जिहादी अहमद सिद्दीकी के इशारे पर विधायक बनी, फिर अपने पिता, घरवालों, अपने पति अपनी 2 वर्षीय बेटी को बिना बताए बिना डिवोर्स दिए उन्हें त्यागकर, अवैध सम्बन्धों और लव जिहाद में अंधी होकर राबिया सुल्ताना बनी और शांतिदूत ज़ाकिर की बीवी बन अपने घरवालों को छोड़कर बंग्लादेश भाग गई, बाद में उसके उसी प्रेमी जाकिर ने रोज़ उससे उसके पैसे छीनने शुरू किये प्रतिदिन उसकी पिटाई-कुटाई चालु की, उसके बाद रूमी उससे अलग होकर अपराध की दुनिया में घुस कार चोरी के रैकेट की सदस्य बनी फिर चुनाव भी हारी, घरवालों ने मुंह फेर लिया और आज जेल में है।
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Sunday, September 8, 2019

भारत मे ही नहीं विदेशों में भी गणोशोत्सव की धूम मची है

08 Sep 2019
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🚩जिस प्रकार अधिकांश वैदिक मंत्रों के आरम्भ में ‘ॐ’ लगाना आवश्यक माना गया है, वेदपाठ के आरम्भ में ‘हरि ॐ’ का उच्चारण अनिवार्य माना जाता है, उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर पर सर्वप्रथम श्री गणपतिजी का पूजन अनिवार्य है ।
🚩उपनयन, विवाह आदि सम्पूर्ण मांगलिक कार्यों के आरम्भ में जो श्री गणपतिजी का पूजन करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है । भगवान गणपति जी का अत्यंत महत्व होने के कारण भारत के साथ विदेश में भी गणोशोत्सव बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।

🚩गणेश चतुर्थी के बाद पूरे देश में गणेशोत्सव की धूम मची हुई है। लोग बड़े ही भक्ति भाव से गणेश की स्थापना कर रहे हैं । हिन्दुआें के साथ-साथ गैर हिन्दुआें में भी बप्पा के बहोत भक्त हैं । परंतु आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भगवान गणेश के जयकारे जिस तरह भारत में लगते हैं उसी तरह भारत से हजारों मील दूर अफ्रीकी देश घाना में भी गूंज रहे हैं। यहां गणपति की वैसी ही भक्ति, उतनी ही धूमधाम से पूजा और उतने ही उत्साह के साथ मूर्ति विसर्जन किया जाता है।
🚩अफ्रीकी देश घाना में गणपति बप्पा की पूजा यहां अफ्रीकी हिन्दू करते हैं। यहां हर साल भगवान गणेश  की पूजा धूमधाम से की जाती है और भारतीय हिन्दू की तरह ये भी गणेश मूर्ति का विसर्जन करते हैं।
🚩बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार यहां के लोगों का हिन्दुत्व से परिचय वर्ष 1970 में हुआ था। आज लगभग 12 हजार हिन्दू इस अफ्रीकी देश में रहते हैं।
🚩आरती के दौरान भगवान की शरण में माथा टेकना, शंख बजाना, फल या मोदक का भोग लगाना, आरती लेना या भजन कीर्तन करने जैसे सभी काम घाना में रहने वाले ये लोग करते हैं।
🚩घाना में रहने वाले हिन्दू समुदाय के लोगों का कहना है कि वे तीन दिन तक भगवान गणेश की पूजा करते हैं और फिर उनकी मूर्ति को समुद्र में विसर्जित कर देते हैं। समुद्र हर जगह फैला हुआ है, गणेश मूर्ति का विसर्जन समुद्र में करने से गणेश भगवान का आशीर्वाद पूरे विश्व में फैलता है इसलिए बड़े भक्ति भाव से गणेशजी का विसर्जन समुद्र में ही किया जाता है।
🚩यहां न केवल भगवान गणेश बल्कि श्रीकृष्ण और शिवभक्तों की भी कमी नहीं है। यहां हिन्दू धर्म के और भी कई देवी-देवताओं की पूजा होती है।
🚩यहां के लोगों का कहना है कि हर किसी का भगवान में विश्वास होना चाहिए। वो हमारी सभी मुश्किलों को दूर कर सकते हैं।
स्त्रोत : आज तक
🚩आपको बता दें कि केवल अफ्रीका में ही नहीं बल्कि यूरोप के शहर हॉलैंड में भी गणपति महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे अन्य देशों में भी गणपति जी का जन्मोत्सव मनाया जाता हैं।
🚩गणेशोत्सव की शुरूआत-
गणेशोत्सव के इतिहास पर गौर करें तो कहा जाता है है कि पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया था। शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना की थी।
🚩लेकिन सन 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत की। हालांकि तिलक के इस प्रयास से पहले गणेश पूजा सिर्फ परिवार तक ही सीमित थी। तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे एक बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। तिलक ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें एक ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहां से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सके।
🚩तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे महज धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने, समाज को संगठित करने के साथ ही उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया, जिसका ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा।
🚩तिलक द्वारा सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत करने से दो फायदे हुए एक तो वह अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचा पाए और दूसरा यह कि इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उन्हें जोश से भर दिया।
🚩इस तरह से हुई गणेशोत्सव की शुरूआत – बहरहाल आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस गणेशोत्सव को आज भी सभी भारतीय बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।
🚩इसलिए यह जरूरी है कि देशभर में आज भी उल्लास के साथ मनाया जाने वाला गणेशोत्सव में फ़िल्मी व पॉप आदि गाने नहीं लगाना चाहिए और ना ही दारू आदि का नशा करना चाहिए। यह केवल तड़क-भड़क और गीत-संगीत के खर्चीले आयोजनों के बीच मनुष्यता व सामाजिक दायित्व जगाने की अपनी मूल प्रेरणा को ना खोये इसका ध्यान रखना चाहिए।
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