Saturday, October 19, 2019

के.के. मुहम्मद का खुलासा : अयोध्या में बाबरी मस्जिद नहीं, राम मंदिर था

18 अक्टूबर 2019

*🚩 भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के उत्तरी क्षेत्र के क्षेत्रीय निर्देशक रह चुके के.के. मुहम्मद ने अपनी किताब में लिखा है कि अयोध्या में राम जन्मभूमि के मालिकाना हक़ को लेकर 1990 में पूरे देश में बहस ने जोर पकड़ा था । इसके पहले 1976-77 में पुरातात्विक अध्ययन के दौरान अयोध्या में होने वाली खुदाई में हिस्सा लेने के लिए मुझे भी भेजा गया ।*

*🚩प्रो. बी.बी. लाल की अगुवाई में अयोध्या में खुदाई करने वाली आर्कियोलॉजिस्ट टीम में दिल्ली स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी के 12 छात्रों में से एक मैं भी था । उस समय के उत्खनन में हमें मंदिर के स्तंभों के नीचे के भाग में ईंटों से बनाया हुआ आधार देखने को मिला । हमें हैरानी थी कि किसी ने इसे कभी पूरी तरह खोदकर देखने की जरूरत ही नहीं समझी । ऐसी खुदाइयों में हमें इतिहास के साथ-साथ एक पेशेवर नजरिया बनाए रखने की भी जरूरत होती है ।*

*🚩खुदाई के लिए जब मैं वहां पहुंचा तब बाबरी मस्जिद की दीवारों में मंदिर के खंभे साफ-साफ दिखाई देते थे । मंदिर के उन स्तंभों का निर्माण ‘ब्लैक बसाल्ट’ पत्थरों से किया गया था । स्तंभ के नीचले भाग में 11वीं और 12वीं सदी के मंदिरों में दिखने वाले पूर्ण कलश बनाए गए थे । मंदिर कला में पूर्ण कलश 8 ऐश्वर्य चिन्हों में एक माने जाते हैं ।*

*🚩1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के ठीक पहले इस तरह के एक या दो स्तंभ नहीं, बल्कि कुल 14 स्तंभों को हमने करीब से देखा । उस दौरान भी वहां पर कड़ी पुलिस सिक्योरिटी हुआ करती थी और मस्जिद में प्रवेश मना था। लेकिन खुदाई और रिसर्च से जुड़े होने के कारण हमारे लिए किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं था । खुदाई के लिए हम करीब दो महीने अयोध्या में रहे । यह समझना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था कि बाबर के सिपहसलार मीर बाकी ने कभी यहां रहे विशाल मंदिर को तुड़वाकर उसके टुकड़ों से ही बाबरी मस्जिद बनवाई होगी ।*

*🚩खुदाई से मिले सबूतों के आधार पर मैंने 15 दिसंबर 1990 को बयान दिया कि बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष को मैंने खुद देखा है । उस समय माहौल गरम था । हिंदू और मुसलमान दो गुटों में बंटे थे । कई नरमपंथियों ने समझौते की कोशिश की, लेकिन तब तक विश्व हिंदू परिषद का आंदोलन बढ़ चुका था । बाबरी मस्जिद हिंदुओं को देकर समस्या का समाधान करने के लिए कुछ मुसलमान तैयार थे, लेकिन इसे खुलकर कहने की किसी में हिम्मत नहीं थी ।*

*🚩बाबरी मस्जिद पर दावा छोड़ने से विश्व हिंदू परिषद के पास कोई मुद्दा नहीं रह जाएगा, कुछ मुसलमानों ने ऐसा भी सोचा । इस तरह के विचारों से समस्या के समाधान की संभावना पैदा होती । ऐसी स्थिति में इतिहास और पुरातात्विक खोजबीन समस्या सुलझाने में मददगार हो सकते थे । लेकिन खेद के साथ कहना पड़ेगा कि कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों की मदद करने के लिए कुछ वामपंथी इतिहासकार सामने आए और उन्होंने मुसलमानों को उकसाया कि वो किसी हाल में मस्जिद पर अपना दावा न छोड़ें ।*

*🚩उन्हें यह मालूम नहीं था कि वे कितना बड़ा पाप कर रहे हैं । जे.एन.यू. के एस. गोपाल, रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा जैसे इतिहासकारों ने कहा कि 19वीं सदी के पहले मंदिर तोड़ने का सुबूत नहीं है । यहां तक कि उन्होंने अयोध्या को ‘बौद्घ-जैन केंद्र’ तक कह डाला । उनका साथ देने के लिए आर.एस. शर्मा, अनवर अली, डी.एन. झा, सूरजभान, प्रो. इरफान हबीब जैसे ढेरों वामपंथी इतिहासकार भी सामने आ गए । इनमें केवल सूरजभान पुरातत्वविद् थे । प्रो आर.एस. शर्मा के साथ रहे कई इतिहासकारों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के विशेषज्ञ के रूप में कई बैठकों में भाग लिया । मतलब साफ है कि ये वामपंथी इतिहासकार समस्या सुलझाने के बजाय आग में घी डालने में जुटे थे ।*

*🚩बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की कई बैठकें भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) के अध्यक्ष प्रो. इरफान हबीब की अध्यक्षता में हुईं । कमेटी की बैठक परिषद के सरकारी दफ्तर में करने का तत्कालीन सदस्य सचिव और इतिहासकार प्रो एमजीएस नारायण ने कड़ा विरोध भी किया लेकिन प्रो. इरफान हबीब ने उसे नहीं माना । वामपंथी इतिहासकारों ने अयोध्या की वास्तविकता पर सवाल उठाते हुए लगातार लेख लिखे और उन्होंने जनता में भ्रम और असमंजस का माहौल पैदा किया ।*

*🚩वामपंथी इतिहासकार और उनका समर्थन करने वाली मीडिया ने समझौते के पक्ष में रहे मुस्लिम बुद्घिजीवियों को मजबूर कर दिया कि वो अपने विचार त्याग दें । वरना आज भी मुसलमानों की अच्छी-खासी आबादी मानती है कि अयोध्या के धार्मिक महत्व को देखते हुए अगर मुस्लिम अपने पैर पीछे खींच लें तो देश के इतिहास में यह मील का पत्थर होगा । इससे आगे के लिए हिंदू-मुस्लिम झगड़ों की एक बड़ी वजह खत्म हो जाएगी । दोनों समुदायों के बीच आपसी अविश्वास भी खत्म होगा, लेकिन कॉमरेड इतिहासकारों ने यह होने नहीं दिया ।*

*🚩इससे एक बात स्पष्ट हो जाती है कि हिंदू या मुस्लिम कट्टरपंथ से ज्यादा वामपंथी विचार देश के लिए खतरा हैं । सेकुलर नजरिए से समस्या को देखने के बजाय वामपंथियों की आंख से अयोध्या मामले का विश्लेषण एक बड़ी भूल साबित हुई । राष्ट्र को इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी, यह अंदाजा अभी लोगों को नहीं है।*

*🚩इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) में समस्या का समाधान चाहने वाले कई लोग थे, लेकिन इरफान हबीब के सामने वो कुछ नहीं कर सके । इरफान हबीब ने आरएसएस की तुलना आईएस जैसे आतंकवादी संगठन से की थी। आई.सी.एच.आर. के ज्यादातर सदस्य उनसे सहमत नहीं थे, लेकिन विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं हुई ।*

*🚩अयोध्या मामले के पक्ष और विपक्ष में इतिहासकार और पुरातत्वविद् भी गुटों में बंटे हुए थे । बाबरी मस्जिद टूटने के बाद पड़े मलबे में जो सबसे महत्वपूर्ण अवशेष मिला था वो था-विष्णु हरिशिला पटल । इसमें 11वीं और 12वीं सदी की नागरी लिपि में संस्कृत भाषा में लिखा गया है कि यह मंदिर बाली और दस हाथों वाले (रावण) को मारने वाले विष्णु (श्रीराम विष्णु के अवतार माने जाते हैं) को समर्पित किया जाता है ।*

*🚩1992 में डॉ. वाई.डी. शर्मा और डॉ. के.एन. श्रीवास्तव के सर्वे में वैष्णव अवतारों और शिव-पार्वती के कुषाण जमाने (ईसा से 100-300 साल पहले) की मिट्टी की मूर्तियां मिली हैं । 2003 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच के आदेश से हुई खुदाई में करीब 50 मंदिर-स्तंभों के नीचे के भाग में ईंटों से बनाया चबूतरा मिला था । इसके अलावा मंदिर के ऊपर का आमलका और मंदिर के अभिषेक का जल बाहर निकालने वाली मकर प्रणाली भी उत्खनन में मिली थी ।*

*🚩यूपी में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के डायरेक्टर की रिपोर्ट में कहा गया है कि बाबरी मस्जिद के आगे के भाग को समतल करते समय मंदिर से जुड़े कुल 263 पुरातात्विक अवशेष मिले हुए । खुदाई से मिले इन तमाम सबूतों के आधार पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इस निर्णय पर पहुंचा कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक मंदिर दबा हुआ है। सीधे तौर पर कहें तो बाबरी मस्जिद इस मंदिर को तोड़कर उसके मलबे पर बनाई गई है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भी यही फैसला सुनाया था ।*

*🚩अयोध्या में हुई खुदाई में कुल 137 मजदूर लगाए गए थे, जिनमें से 52 मुसलमान थे । बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर सूरजभान मंडल, सुप्रिया वर्मा, जया मेनन आदि के अलावा इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक मजिस्ट्रेट भी इस पूरी खुदाई की निगरानी कर रहा था । जाहिर है इसके नतीजों पर सवाल उठाने का कोई आधार नहीं है ।*

*🚩ज्यादा हैरानी तो तब हुई जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया तो भी वामपंथी इतिहासकार गलती मानने को तैयार नहीं हुए । इसका बड़ा कारण यह था कि खुदाई के दौरान जिन इतिहासकारों को शामिल किया गया था वो दरअसल निष्पक्ष न होकर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे थे । इनमें से 3-4 को ही आर्कियोलॉजी की तकनीकी बातें पता थीं । सबसे बड़ी बात कि ये लोग नहीं चाहते थे कि अयोध्या का ये मसला कभी भी हल हो । शायद इसलिए क्योंकि वो चाहते हैं कि भारत के हिंदू और मुसलमान हमेशा ऐसे ही आपस में उलझे रहें।*

*(लेखक के.के. मुहम्मद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के उत्तरी क्षेत्र के क्षेत्रीय निर्देशक रह चुके हैं । यह लेख उनकी किताब मैं_भारतीय हूं का एक संपादित हिस्सा है)*

*करोड़ों लोगों के आस्था स्वरूप भगवान श्रीराम का मंदिर अयोध्या में था जिसे विदेशी क्रूर, आक्रमणकारी, लुटेरा, बलात्कारी मुग़ल बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तोड़ दिया था, इसके सबूत भी हैं फिर भी सदियों हो गए लेकिन मन्दिर नहीं बन पाया।*

*अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है करोड़ों हिंदुओं को अब आशा है कि अयोध्या में शीघ्र भव्य श्री राम मंदिर बनेगा और फिर से देश मे राम राज्य की स्थापना होगी।*

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Friday, October 18, 2019

बंगाल को 16 अक्टूबर को बांट दिया था, आज भी बना है खतरा

16 अक्टूबर 2019

क्रांतिकारियों से नफरत करने वाले एक अंग्रेज उच्च अधिकारी ने, सेवानिवृत्ति के बाद, कुछ अंग्रेज टाईप भारतीयों को लेकर 1885 में “इंडियन नेशनल कांग्रेस” की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य अर्द्ध अंग्रेज अर्द्ध भारतीय लोगों का सहारा लेकर, जनता के मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत कम करना था। ए. ओ. ह्युम की यह चाल कामयाब रही और लगभग बीस साल तक कोई क्रांतिकारी घटना नहीं हुई।

1905 में 16 अक्टूबर के दिन अंग्रेजों ने मुसलमानों को खुश करने के लिए, हिन्दू -मुस्लिम आबादी के घनत्व के आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया। यह बात देशभक्त हिन्दुओं को बर्दाश्त नहीं हुई और अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बनने लगा। बंग-भंग का बहुत बिरोध हुआ।*

हालांकि अंग्रेजों के खिलाफ बंगाल पहले ही जागने लगा था। 1902 से ही अनुशीलन समिति और युगांतर जैसी संस्थाए उभरने लगी थीं, जो सशत्र क्रान्ति के द्वारा अंग्रेजों को भगा देना चाहती थीं, लेकिन इनको जन समर्थन नही मिलता था। ए.ओ. ह्युम की कांग्रेस ने इतना बढ़िया काम किया था कि भारत की आम जनता भी अंग्रेजों के खिलाफ कुछ नहीं सुनती थी। बंग-भंग के बाद युगांतर और अनुशीलन समिति ने अंग्रेजों के खिलाफ कार्यवाहियां तीव्र कर दीं, इनका उद्घोष था “वन्देमातरम” बंगाल के समस्त लोग चाहे वो हिन्दू हों या मुस्लिम वन्देमातरम का उद्घोष करने लगे। ये लोग बम बनाने, युवाओं को पर्शिक्षण देने का काम करते थे और मौक़ा मिलने पर अंग्रेजों और उनके चापलूसों का बध करने से नहीं चूकते थे।*

उन दिनों हिन्दू और मुस्लिम सभी “वन्देमातरम” का उद्घोष करते थे। तब इन लोगों ने बड़ी चालाकी से मुसलमानों को समझाना शुरू किया कि-वन्देमातरम का उद्घोष इस्लाम बिरोधी है। उनकी यह चाल भी काफी हद तक कामयाब रही और मुस्लिम क्रान्ति से दूर हो गए, इसी लिए द्वितीय स्वाधीनता संग्राम में बहुत ढूँढने पर इक्का दुक्का मुस्लिम नाम दिखाई देंगे। मदनलाल धींगरा द्वारा कर्नल वायली का बध करने पर सावरकर की आलोचना की, कि युवाओं को आतंकवाद का गलत रास्ता दिखा रहे हैं। नाशिक के कलेक्टर जैक्सन के बध के लिए भी सावरकर को दोषी बताया।*

अंग्रेज अथवा अंग्रेज के चापलूस भारतीय के वध पर, यह लोग आलोचना करते थे लेकिन अंगेजों द्वारा किसी क्रांतिकारी की हत्या, फांसी अथवा कालापानी की सजा पर चुप्पी साध लिया करते थे। अंग्रेजों ने जैक्सन की हत्या का षड्यंत्र करने का आरोप लगाकर, 4 जुलाई 1911 को द्वितीय स्वाधीनता संग्राम के सूत्रधार सावरकर को कालापानी की सजा दे दी। जब 1905 में मजहबी आधार पर बंगाल का विभाजन किया गया तब मुसलमानों सहित समाज के सभी वर्गों के लोग जुड़ें, इस हेतु किसी प्रकार का तुष्टीकरण न करते हुए धरती व परम्परा के प्रति विशुद्ध प्रेम का आह्वान किया गया।*

दूसरी ओर बंग-भंग आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले लोगों का अदम्य विश्वास तथा अविचल निष्ठा थी। जिसकी झलक हमें तब दिखाई देती है जब बंग-भंग के जनक लार्ड कर्जन ने अहंकार से कहा “दि पार्टीशन आफ बंगाल इज ए सेटिल्ड फैक्ट”, (बंगाल का विभाजन एक निर्णायक तथ्य है) इस पर राष्ट्र ऋषि सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने कहा “आई विल अनसेटिल द सेटिल्ड फैक्ट” (मैं इस निर्णायक तथ्य को पलट कर रख दूंगा). यह विश्वास व विशुद्ध राष्ट्रवादी आह्वान ही इस कृत्रिम विभाजन को मिटाने का कारण बना।*

आज उस दिवस से सबको बड़ी शिक्षा लेते हुए भविष्य को सुधारने का संकल्प लेने का समय है। 16 अक्टूबर का भारत के इतिहास से रिश्ता बुरा ही सही पर बताना था पूर्ववर्ती लोगों को पर चाटुकारिता से लिखा गया कई पन्नो का इतिहास अक्सर वो अपराध कर देता है समाज के साथ जो बंगाल को बांटने वाले भी नहीं कर पाए। - सुदर्शन न्यूज*

अंग्रेज़ो ने बंगाल को बांट दिया लेकिन वामपंथी और ममता सरकार वोटबैंक के कारण देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया है , बंगलादेशी और आतंकी रोहिंग्याओं को बसाकर देश को खतरा पैदा किया है।*

आज बंगाल में हिंसा की जड़ में क्या है?*

आज पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या, आजादी से पहले के स्तर पर पहुंच रही है। 1941 में पश्चिम बंगाल में 29 प्रतिशत मुसलमान जनसंख्या थी। आज ये आंकडा 27 प्रतिशत पहुंच गया है। जबकि देश के बंटवारे के बाद 1951 में पश्चिम बंगाल में केवल 19.5 प्रतिशत मुसलमान थे। बंटवारे के बाद बडी तादाद में मुसलमान, पाकिस्तान चले गए थे।*

हम मुसलमानों की जनसंख्या में बढ़ोतरी के आंकडों पर गौर करें तो चौंकानेवाली बातें सामने आती हैं ! 2001 से 20111 के बीच पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 1.77 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ी। जबकि देश के बाकी हिस्सों में मुस्लिम जनसंख्या 0.88 प्रतिशत की दर से बढ़ी !*

यूं तो राजनीति में आंकड़ों की बहुत बात होती है। परंतु पश्चिम बंगाल की तेजी से बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या की आेर से सब ने आंखें मूंद रखी थीं। सियासी फायदे के लिए देशहित की कुर्बानी दे दी गई। अगर हम आंकड़ों पर ध्यान देते तो फौरन बात पकड़ में आ जाती कि जिस बंगाल में कारोबार ठप पड़ रहा था, उद्योग बंद हो रहे थे, वहां लोग रोजगार की नीयत से तो जा नहीं रहे थे !

आज की तारीख में हम घुसपैठ के सियासी असर की बात करें तो, पश्चिम बंगाल के तीन जिलों में मुसलमान बहुमत में हैं। लगभग 100 विधानसभा सीटों के नतीजे मुसलमानों के वोट तय करते हैं। यानी मुस्लिम वोट, पश्चिम बंगाल की सियासत के लिहाज से आज बेहद अहम हो गए हैं। इसीलिए राज्य में ममता बनर्जी जमकर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं। उनसे पहले वामपंथी दल यही कर रहे थे !*

*🚩तुष्टीकरण की गंदी सियासत का नमूना हमने 2007 के चुनावों में देखा था। उस समय अपनी तरक्कीपसंद राजनीति के बावजूद वामपंथी सरकार ने बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को कोलकाता से बाहर जाने पर मजबूर किया। इसकी वजह ये थी कि बंगाल के कट्टरपंथी मुसलमान, तस्लीमा के शहर में रहने का विरोध कर रहे थे। आज का पश्चिम बंगाल सांप्रदायिक रूप से और भी संवेदनशील हो गया है !*

*🚩ममता बनर्जी ने सांप्रदायिकता को अपना सबसे बडा सियासी हथियार बना लिया है। उनका आदर्शवाद सत्ता में रहते हुए उड़न-छू हो चुका है। राज्य के 27 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या को लुभाने के लिए ममता किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखती हैं। इसीलिए वो नूर-उल-रहमान बरकती जैसे मौलवियों को शह देती हैं !*

*🚩ये वही बरकती है जिसने पीएम मोदी के विरोध में फतवा दिया था। बरकती ने कई भड़काऊ बयान दिए। वो लालबत्ती पर रोक के बावजूद खुले तौर पर अपनी गाडी में लालबत्ती लगाकर चलता था। परंतु ममता ने उसके विरोध में कोई एक्शन नहीं लिया। बाद में कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के ट्रस्टियों ने बरकती को इमाम पद से जबरदस्ती हटाया।*

*🚩इसी तरह ममता बनर्जी ने मालदा के हरिश्चंद्रपुर कस्बे के मौलाना नासिर शेख की आेर से आंखें मूंद लीं। इस मौलाना ने टीवी, संगीत, फोटोग्राफी और गैर मुसलमानों से मुसलमानों के बात करने पर पाबंदी लगा दी थी। राज्य के धर्मनिरपेक्ष नियमों के विरोध में जाकर ममता ने इमामों और मौलवियों को उपाधियां और पुरस्कार दिए हैं !*

*🚩ममता ने मुस्लिम तुष्टीकरण की सारी हदें तोड दी हैं ! तभी तो दुर्गा पूजा के बाद 4 बजे के बाद मूर्ति विसर्जन पर, मुहर्रम का जुलूस निकालने के लिए रोक लगा देती हैं। उन्हें आम बंगालियों की धार्मिक भावनाओं का खयाल तक नहीं आता। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ममता बनर्जी सरकार के इस फैसले को अल्पसंख्यकों का अंधा तुष्टीकरण कहा था !*

*🚩क्या ममता बनर्जी को ये समझ में आएगा कि मुस्लिम तुष्टीकरण से बंगाल में अब काजी नजरुल इस्लाम जैसे लोग नहीं पैदा होगे। बल्कि इससे इमाम बरकती और नसीर शेख जैसे मौलवियों को ही ताकत मिलेगी ! ये वही लोग हैं जो मुसलमानों की नुमाइंदगी का दावा करते हैं, मगर उन्हीं के हितों को चोट पहुंचाते हैं। ये सांप्रदायिकता फैलाते हैं !*

*आज बंगाल में जो हो रहा है वो तुष्टीकरण की नीतियों का ही नतीजा है। कल यही हाल कोलकाता का भी हो सकता है !*

*🚩ममता बनर्जी सांप्रदायिकता की ऐसी आग से खेल रही हैं, जिस पर काबू पाना उनके बस में भी नहीं होगा ! स्त्रोत : फर्स्ट पोस्ट*

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Tuesday, October 15, 2019

पाकिस्तान ने केवल कराची में मार दिये 25000 अल्पसंख्यक, हजारों गायब

15 अक्टूबर 2019

*🚩पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर सदियों से अत्याचार होता आ रहा है, अल्पसंख्यक नरक जैसी जिंदगी जी रहे हैं पर मानव अधिकार, संयुक्त राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, विश्व की महा सत्तायें इसपर खामोश है कोई न इसपर बोल रहा है और ना ही पाकिस्तान पर कोई कड़ी कार्यवाही की है, पाकिस्तान बाहर से कितना भी अपने को अच्छा दिखाने का प्रयास करे, लेकिन उनकी पोल उनके ही मेयर द्वारा खोली जा रही है।*

*🚩बता दें कि कराची के पूर्व मेयर ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों और मुहाजिरों पर हो रहे अत्याचार पर चिंता जताई है। पूर्व मेयर वासे जलील के अनुसार दशकों से अलंपसंख्यकों पर पाकिस्तान में अत्याचार हो रहा है परंतु, सरकार आंखें मूंदे बैठी है। अकेले कराची में 25 हजार से ज्यादा अल्पसंख्यक  मारे जा चुके हैं।हजारों लोग लापता हैं। पाकिस्तान में अपने ही लोगों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में लोगों ने यूएन मुख्यालय के बाहर पोस्टर-बैनर और होर्डिंग्स के साथ प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि, वो पाकिस्तान की असल हकीकत दुनिया के सामने लाना चाहते हैं।*

*🚩महिला मुहाजिर कार्यकर्ता कहकशां हैदर ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से पाकिस्तानी सेना और ISI से अपने समुदाय को बचाने की अपील की है कहकशां हैदर ने कहा कि पाकिस्तान में जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं।*

*🚩इसी बीच बीते काफी समय से दुनियाभर के देशों के सामने कश्मीर मुद्दे का रोना रोने वाले पाकिस्तान के अंदर क्या हालात हैं, उसकी तस्वीर न्यूयॉर्क की सड़कों पर दिखाई दी। दरअसल, न्यूयॉर्क में कई ट्रक ऐसे देखे गए जिन पर डिजिटल विज्ञापन लगे थे। इन पर कराची में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के बारे में बताया जा रहा था। यह विज्ञापन एक संस्था ‘वॉइस ऑफ कराची’ ने निकाले थे।*

*🚩प्रदर्शनकारियों ने पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने की भी मांग की साथ ही सभी वित्तीय सहायता रोक देने की भी विश्व समुदाय से अपील की वैसे, पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार कोई नई बात नहीं है। सिंधी, मुहाजिर, बलूच, शिया, हिंदू, सिख और ईसाइयों पर सालों से जुल्म होता रहा है। यही कारण है कि, पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी तेजी से घटी है। औऱ लगभग ना के बराबर हो गई है।*

*🚩मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि बीते 50 सालों में पाकिस्तान में बसे 90 प्रतिशत हिंदू देश छोड़ चुके हैं । धीरे-धीरे उनके पूजा स्थल और मंदिर नष्ट किए जा रहे हैं । 95 प्रतिशत हिंदू मंदिर नष्ट कर दिए गए हैं । पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों को नष्ट कर उनके स्थान पर कारोबारी और अन्य तरह की गतिविधियां बढ़ाई जा रही हैं और हिंदुओं पर हमले भी हो रहे हैं । हिंदुओं की संपत्ति पर जबरन कब्जे के कई मामले सामने आ रहे हैं । हिंदुओं की नाबालिग लड़कियों को जबरदस्ती उठाकर शादी कर लेते हैं और उनका धर्म परिवर्तन करवा देते हैं ।*

*🚩एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में हर साल करीब 1000 हिंदू और ईसाई लड़कियों (ज्यादातर नाबालिग) को मुसलमान बनाकर शादी करा दी जाती है ।*

*🚩पाकिस्तान की प्रशासनिक व्यवस्था मे जाँचकर्ता से लेकर वकील और जज तक, अधिकतर बहुसंख्यक समुदाय यानी मुस्लिम हैं। इसलिए अल्पसंख्यक से जुड़े मुद्दों का कानूनी तौर पर कोई समधान मौजूद ही नहीं होता !*

*🚩अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार और न्यायलय को इसपर हस्तक्षेप करके अल्पसंख्यक लोगो की रक्षा करनी चाहिए। भारत की केंद्र सरकार को भी इसपर ठोस निर्णय लेना चाहिए।*

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Monday, October 14, 2019

इन दो घटनाएं से जानिए कैसे और क्यों लगाएं जाते हैं झूठे आरोप

14 अक्टूबर 2019

*🚩नोएडा की रहने वाली निशा शर्मा ने बारात को वापिस लौटा दिया था, दूल्हे पक्ष पर आरोप लगाया कि लड़के वाले दहेज मांग रहे थे इसलिए बारात लौटाई।*

*🚩पैसे और टीआरपी की भूखी मीडिया ने इस मामले को खूब उछाला। सड़कछाप परिवार तोड़ू बड़ी बिंदी गैंग की औरतों को दिन रात न्यूज़ चैनलों ने बिठाकर बहस कराई गई। निशा शर्मा को नारी शक्ति का अवार्ड दिया गया।*

*🚩स्त्री की उपासना करने वाले नेताओं, महिलावादियों ने निशा शर्मा को आदर्श नारी, दुर्गा, शक्ति इत्यादि न जाने क्या-क्या उपाधि दी। शत्रुघ्न सिन्हा ने निशा शर्मा को बीजेपी की तरफ से सम्मानित किया। महिला आयोग ने सम्मानित किया। रविश कुमार जैसे छटे हुये पत्रकारों ने निशा शर्मा की तारीफों के पुल बांध दिए। मीडिया का दवाब बढ़ने लगा। और दूल्हे यानी मुनीश दलाल को पुलिस ने दहेज मांगने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। जबकि शादी तो हुई ही नही थी।*

*🚩मुनीश के पूरे परिवार को पुलिस ने गिरफ्तार किया। कुछ दिन मुनीश और उनका परिवार जेल में थे। मीडिया औऱ भारत के सड़कछाप लोगों ने मुनीश और उनके परिवार को खूब खरी खोटी सुनाई। केस लम्बे समय तक चला। मुनीश की बदनामी इतनी हो गयी कि उसके साथ कोई लड़की शादी करने को तैयार न हुई। यह घटना 2003 की है।*

*🚩सन 2010 में अदालत ने इस केस में फैसला देते हुए कहा कि*

*"ये बेहद दुःखद है कि मुनीश और उनके परिवार को झूठे प्रकरण में फंसाया गया, इस झूठे केस के कारण मुनीश और उनके परिवार को लगभग 10 वर्ष तक की मानसिक यातनाएं झेलनी पड़ी, अफसोस इस बात का भी है कि मीडिया ने भी झूठे केस को खूब उछाला, ये मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल है। निशा शर्मा ने जो भी आरोप लगाये वो सब सिर्फ और सिर्फ सोची समझी साजिश थी ,क्योंकि निशा विवाह करना ही नही चाहती थी, क्योंकि उसका किसी और से अफेयर था। लिहाजा ये अदालत मुनीश और उनकी फैमिली को बाइज्जत बरी करती है"*

*🚩रोहतक की घटना:*

*घटना नवम्बर 2014 की है। रोहतक की एक बस में एक बुजुर्ग महिला एक सीट पर बैठी हुई थी। बाकी औरते और पुरुष भी उसी बस में बैठे थे।। अचानक वो बुजुर्ग महिला अपनी सीट से उठकर बस के बाहर चली गयी क्योंकि बस रुकी हुई थी। तभी दो लड़कियां जिनका नाम पूजा और आरती था, इन्होंने बस में प्रवेश किया और बुजुर्ग महिला की सीट पर बैठ गयी।*

*🚩तब दो लड़के जो भारतीय सेना में चयनित हुए थे उन्होंने इन दोनों लड़कियों से कहा कि इस सीट पर एक बूढ़ी अम्मा बैठी है जो अभी बस के बाहर खड़ी है। आप लोग उठ जाओ। तब इन दोनों बहनों ने उन लड़कों को न सिर्फ गाली बकी बल्कि उनके साथ मारा पीटी शुरू कर दी। चालाक लडकिया उन लड़कों पर हमला कर रही थी और एक लड़की वीडियो बना रही थी।।*

*🚩बिकाऊ मीडिया ने रातो रात इन दोनों बदतमीज लड़कियों को हीरो बना दिया। लच्छेदार भाषण शुरू हो चुके थे। हरियाणा महिला आयोग की विवेकहीन अध्यक्ष ने लड़कियों को अगले ही दिन नारी शक्ति अवार्ड देते हुए 36000/- रुपए नगद का इनाम दिया। और बेशर्म महिला आयोग वही नही रुका, 26 जनवरी 2015 के दिन इन दोनों बदचलन लड़कियो को सम्मानित करने हेतु मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से सिफारिश कर दी। आजतक,एबीपी न्यूज़, इंडियाTv, NDTV ,Times now, Zee न्यूज़, न्यूज़ 24...इत्यादि सभी न्यूज़ चैनल इन लड़कियों को हीरो के रूप में दिखाते रहे। लड़के बेचारे बेकसूर होकर भी विलेन बने रहे। दवाब बढ़ने लगा। लड़को के पक्ष में बस में बैठी हर महिला, हर लड़की बोल रही थी फिर भी अंजना ओम कश्यप, सुमित अवस्थी जैसे पत्रकारों ने पुरूष प्रधान समाज का विधवा विलाप किया।*

*🚩सेना में लड़के मेहनत करके चयनित हुए थे गरीब घर के थे सेना ने तुरंत लड़कों को सेना से निकाल दिया, पुलिस ने मीडिया, महिला आयोग इत्यादि के दवाब में दूसरे ही दिन लड़को पर धारा 354 के तहत मामला दर्ज कर लिया। लड़के गिरफ्तार, नौकरी गयी, बदनामी हुई...।*

*🚩घटना ने थोड़ा और तूल पकड़ा। हरियाणा के जाटों ने लड़को के पक्ष में आंदोलन किया। बस में बैठी महिलाएं,छात्राएं सब लड़को के पक्ष में खुलकर बोलने लगी...*

*🚩मगर मीडिया के कान में जू न रेगी। किन्तु मुख्यमंत्री मनोहर खट्टर ने लड़कियों का सम्मान समारोह रद्द कर दिया क्योंकि वो समझ चुके थे कि लड़कियां दोषी है।*

*🚩न्यायालय ने इस मामले में फैसला देते हुए कहा कि....*

*"दोनों लड़के पूर्णतः निर्दोष है, इन्हें एक षड्यंत्र के तहत इस मामले में फंसाया गया, मामला सीट विवाद का था मगर पुलिस ने जानबूझकर छेड़खानी का मामला दर्ज किया, लिहाजा ये अदालत दोनों लड़को को बाइज्जत बरी करती है"*

*🚩ये अदालत का "फैसला था"...न्याय नही.... न्याय तब होता जब इन दोनों लड़कियों और पूरे मीडिया जगत को सजा मिलती। न्याय तब होता जब सेना में दोनो लड़को की फिर से भर्ती होती। बरी होने के बाद किसी भी न्यूज़ चैनल ने माफी नही मांगी।*

*🚩फैसले के बाद भी मीडिया टस से मस न हुआ। अपनी गलती न मानते हुए बेशर्म , बिकाऊ मीडिया इस बात पर बहस कराने लगा कि क्या कोर्ट का फैसला सही है???*

*🚩भारत के कुछ मूर्ख लोग ऐसी न्यूज़ चैंनलों की हर खबर पर यकीन कर लेते है। बिना सोचे ये भी नही सोचते कि हम भी इसी तरह बदनाम हो सकते है।*

*🚩ज्वाला शक्ति संगठन की संयोजक काजल जादौन ने कहा है कि हर मामले में पुरुष ही गलत नहीं होते। कई बार महिलाएं कानून का दुरुपयोग कर वे पुरुषों के खिलाफ दहेज प्रताडऩा, बलात्कार आदि के मामले दर्ज करवा देती हैं।*

*🚩जनता का कहना है कि झूठे आरोप लगाने वाली लड़कियों को सजा मिलनी चाहिए और इसमें पुलिस भी साजिस में शामिल है तो उनको भी सजा होनी चाहिए, पैसे और टीआरपी के लिए मीडिया निर्दोष पुरषों को बदनाम करती है उनपर भी सख्त कार्यवाही होनी चाहिए।*

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