Tuesday, January 7, 2020

पड़ोस देश में दलित हिंदुओं की दुर्दशा जानकर रोंगटे खड़े हो जाएंगे

*🚩पड़ोस देश में दलित हिंदुओं की दुर्दशा जानकर रोंगटे खड़े हो जाएंगे*

07 जनवरी 2020

*🚩पड़ोस से भारत आने वालों में ज्यादातर दलित हिंदू हैं, फिर भी दलित नेता सीएए के विरोध में खड़े हैं इसके लिए आपको जानना जरूरी है कि वहां दलित हिंदू व सिखों की कैसा दुर्दशा हुई है।*

*🚩वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में अमेरिका पाकिस्तान का साथ दे रहा था, पर पूर्वी पाकिस्तान में पाक फौज द्वारा किए जा रहे जनसंहार ने ढाका में तैनात अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारियों को अंदर तक झकझोर दिया था। वे वाशिंगटन को भेजे जा रहे अपने खुफिया संदेशों में बांग्ला भाषियों और खास तौर से पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं के भीषण नरसंहार का आंखों देखा हाल लिख रहे थे। यूं तो झगड़ा पश्चिमी पाकिस्तान के उर्दू भाषी और पूर्वी पाकिस्तान के बांग्ला भाषी मुसलमानों के बीच था पर पाक फौज के जनरलों और जमात-ए-इस्लामी के मौलानाओं को लगता था कि बंगाली मुसलमान बंगाली हिंदुओं के सांस्कृतिक प्रभाव में आकर इस्लाम से भ्रष्ट हो चुके हैं और इसलिए पाकिस्तान से अलग होना चाहते हैं। इसी कारण हिंदुओं पर खास तौर पर जुल्म ढाया जा रहा था।*

*🚩जनसंहार के लिए भारत का हस्तक्षेप*

*★ हिंदुओं की मार-काट इतनी बर्बर थी कि ढाका में तैनात अमेरिकी राजनयिकों को अपनी सरकार की पाकिस्तान परस्त नीति की निंदा करते हुए एक विरोध पत्र वाशिंगटन को भेजना पड़ा। यह अमेरिका के इतिहास में राजनायिकों के द्वारा भेजा गया पहला ऐसा पत्र था। इस जनसंहार और उससे उपजे शरणार्थी संकट से निपटने के लिए भारत को हस्तक्षेप करना पड़ा और इसके चलते ही बांग्लादेश का जन्म हुआ।*

*🚩धर्मनिरपेक्ष देश इस्लामिक देश बन गया*

*★ शुरू में तो यह धर्मनिरपेक्ष देश था पर कुछ अर्से बाद ही वह 1975 में इस्लामिक देश में बदल गया और फिर वहां के इस्लामिक कट्टरपंथियों ने हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। इस अत्याचार के पहले शिकार दलित हिंदू बने, क्योंकि वही ज्यादा असहाय थे।*

*🚩बांग्लादेश में हिंदु 31% से 8% हो गए*

*★ 1947 में पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में हिंदुओं की जनसंख्या तकरीबन 31 प्रतिशत थी जो आज मात्र 8 प्रतिशत के करीब रह गई है। इस अवधि में बांग्लादेश की कुल आबादी तकरीबन सवा तीन गुना बढ़ चुकी है। न्यूयार्क स्टेट यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता शची दस्तीदार ने 2008 में किए गए अपने शोध में पाया था कि 4 करोड़ 90 लाख हिंदू बांग्लादेश से गायब हो चुके हैं। धार्मिक आधार पर उत्पीड़न की ऐसी दूसरी मिसाल नहीं है। जाहिर है या तो इन हिंदुओं को मार डाला गया या धर्म परिवर्तन या फिर पलायन के लिए मजबूर कर दिया गया।*

*🚩अफगानिस्तान में 2500 हिंदू बचे हैं*

*★ यही हाल अफगानिस्तान में हुआ, जहां 1970 के दशक में हिंदू और सिखों की जनसंख्या सात लाख हुआ करती थी। यह वर्तमान में घटकर मात्र 2500 रह गई है। पिछले तीन दशक में 90 फीसदी सिख और हिंदू अफगानिस्तान छोड़ कर भाग चुके हैं और बाकी इस्लामिक कट्टरपंथीयों का निशाना बन चुके हैं।*

*🚩पाक में हिंदू 15% से 1.5% हो गए*

*★ पाकिस्तान में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। 1947 में बंटवारे के समय वहां हिंदुओं की जनसंख्या 15 प्रतिशत थी जो आज मात्र डेढ़-दो प्रतिशत रह गई है। अब जरा इसकी तुलना भारत से कीजिए। 1951 से 2011 के बीच मुसलमानों की जनसंख्या में भागीदारी 9.6 प्रतिशत से बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गई, जबकि हिंदुओं की जनसंख्या का प्रतिशत 84.1 प्रतिशत से घटकर 78.6 हो गया।*

*🚩गैर-मुस्लिमों को देशों को छोड़कर भागने के अलावा कोई चारा नहीं था*

*★ आखिर नागरिकता कानून को भेदभाव भरा बताने वाले यह क्यों नहीं देख रहे कि पाकिस्तान, बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ ऐसा क्या किया जा रहा कि वे लाखों की संख्या में गायब होते जा रहे हैं? इसे बंटवारे के बाद पाकिस्तान के कश्मीर पर हुए हमले के दौरान उसके कब्जे में आए शहरों में हुए घटनाक्रम से आसानी से समझा जा सकता है। पीओके के मीरपुर जिले की हिंदू आबादी तकरीबन 10000 थी जो शरणार्थियों के आने के चलते 25000 तक बढ़ गई थी। इनमें से मात्र 2000 लोग ही जीवित भारत पहुंच पाए। सैकड़ों की संख्या में अपहृत हिंदू महिलाओं को झेलम, रावलपिंडी और पेशावर में बेच दिया गया। पाकिस्तान, बांग्लादेश में आज भी गैर-मुस्लिमों पर हमले बेहद आम हैं। स्थितियां ऐसी बन चुकी हैं कि गैर मुस्लिमों के पास इन देशों को छोड़कर भागने या इस्लाम को कुबूल करने या फिर जानवरों जैसा जीवन जीने और मारे जाने के अलावा कोई चारा नही। इसका एक प्रमाण पाकिस्तान के हिंदू क्रिकेटर दानिश कनेरिया हैं, जिनके बारे में शोएब अख्तर ने यह खुलासा कर चौंकाया कि साथी खिलाड़ी उनके साथ खाना खाना पसंद नहीं करते थे।*

*🚩पाक में हर साल 1000 हिंदू लड़कियों का अपहरण*

*★ मानवाधिकार संगठनों और पाक मीडिया की मानें तो पाकिस्तान में हर साल तकरीबन 1000 हिंदू लडकियों का अपहरण कर लिया जाता है और अपहरणकर्ता जबरन उनका धर्म बदलवा कर उनसे शादी कर लेते हैं। इनमें बड़ी तादाद नाबालिग लड़कियों की होती है। पाकिस्तानी महिला पत्रकार आयशा असगर की मानें तो पाकिस्तान में हर महीने 20-25 हिंदू और ईसाई लड़कियां बलात्कारियों का शिकार बनती हैं। स्थितियां इतनी विकट हैं कि पेशावर जैसे इलाकों में हिंदू और सिख शवों का दाहकर्म न कर पाने के कारण उन्हें दफनाने के लिए मजबूर हैं। हिंदू मंदिरों और गुरूद्वारों पर हमले होते ही रहते हैं।*

*🚩5000 हिंदू हर साल भारत पलायन कर रहे हैं*

*★ पाकिस्तान हिंदू कांउसिल की मानें तो धार्मिक उत्पीड़न के चलते 5000 हिंदू हर साल भारत पलायन कर रहे हैं। 1947 में बंटवारे के बाद पाकिस्तान में बचे हिंदुओं में से ज्यादातर दलित और आदिवासी हैं, जिन्हें पाकिस्तान सरकार ने भारत नहीं आने दिया था। पाकिस्तान में भारत के पहले उच्चायुक्त श्रीप्रकाश अपने संस्मरणों में लिखते हैं कि जब उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली से प्रार्थना की कि इन लोगों को भारत जाने दिया जाए तो लियाकत ने जवाब दिया कि अगर इन्हें जाने दिया तो कराची की गलियां और शौचालय कौन साफ करेगा?*

*🚩पाक के कानून मंत्री जोगेंद्रनाथ को भारत में शरण लेनी पड़ी थी*

*★ पाकिस्तान में दलितों की दुर्दशा का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बनने वाले दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल तक को भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी थी। पाकिस्तान से भारत भाग कर आ रहे हिंदुओं में ज्यादातर संख्या दलितों और आदिवासियों की है, लेकिन कई दलित नेता भी नागरिकता कानून के विरोध में जुटे हुए हैैं। आखिर इन्हें दलित हितैषी कैसे कहें?*


*🚩मुस्लिमों और गैर-मुस्लिमों से समानता का व्यवहार नहीं किया जा सकता*

*★ सीएए के जो आलोचक यह कहते हैं कि यह धर्म के आधार पर भेदभाव कर समानता के अधिकार का हनन करता है, वे यह भूल जाते हैं कि भारतीय संविधान युक्तियुक्त वर्गीकरण की अनुमति देता है। समानता का संवैधानिक सिद्धांत यह है कि असमान परिस्थिति वाले समूहों के साथ समानता का व्यवहार असमानता उत्पन्न करता है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में मुसलमानों का धर्म राज्य द्वारा संरक्षित है जबकि इस्लाम से इतर किसी धर्म को कोई संरक्षण नहीं है। इसीलिए वहां से आने वाले मुस्लिमों और गैर-मुस्लिमों से समानता का व्यवहार नहीं किया जा सकता।*
*लेखक - दिव्य कुमार सोती*

*🚩इन तथ्यों को जानकर भी अगर दलित हिंदू जातिवाद में लड़ते रहे तो फिर मुस्लिम और ईसाई लोग उनको अपना शिकार बना देंगे और फिर वे सदा के लिए मानसिक गुलाम बना दिया जाएगा अतः जाति-पाती में नहीं बंटकर एक बने रहें।*

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Monday, January 6, 2020

1125 विद्यालयों से सुप्रीम कोर्ट प्रार्थना हटा देगी ?



06 जनवरी 2020

*🚩सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ अब इस पर विचार करेगी कि केंद्रीय विद्यालयों में बच्चों को संस्कृत में प्रार्थना करना उचित है या नहीं ? असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय और कुछ अन्य प्रार्थनाओं पर आपत्ति जताने वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश आरएफ नरीमन ने कहा, चूंकि असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय जैसी प्रार्थना उपनिषद से ली गई है इसलिए उस पर आपत्ति की जा सकती है और इस पर संविधान पीठ विचार कर सकती है । क्या इसका यह मतलब है कि उपनिषद अपने आप में आपत्तिजनक स्रोत हैं और उनसे बच्चों को जोड़ना या पढ़ाना उपयुक्त नहीं है ? शोपेनहावर, मैक्स मूलर या टॉल्सटॉय जैसे महान विदेशी विद्वानों ने भी यह सुनकर अपना सिर पीट लिया होता कि भारत में असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय जैसी प्रार्थना पर आपत्ति की जा रही है । इस आपत्ति पर भारतीय मनीषियों का दुःखी और चकित होना स्वाभाविक है । उपनिषदों को मानवता की सर्वोच्च ज्ञान-धरोहर माना जाता है । वास्तविक विद्वत जगत में यह इतनी जानी-मानी बात है कि उसे लेकर दिखाई जा रही अज्ञानता पर हैरत होती है । मैक्स वेबर जैसे आधुनिक समाजशास्त्री ने म्यूनिख विश्वविद्यालय में अपने प्रसिद्ध व्याख्यान पॉलिटिक्स एज ए वोकेशन में कहा था कि राजनीति और नैतिकता के संबंध पर संपूर्ण विश्व साहित्य में उपनिषद जैसा व्यवस्थित चिंतन स्रोत नहीं है ।* 

*🚩आज यदि डॉ. भीमराव आंबेडकर होते तो उन्होंने भी माथा ठोक लिया होता । ध्यान रहे कि मूल संविधान के सभी अध्यायों की चित्र-सज्जा रामायण और महाभारत के विविध प्रसंगों से की गई थी । ठीक उन्हीं विषयों की पृष्ठभूमि में, जिन पर संविधान के विविध अध्याय लिखे गए । उस मूल संविधान पर संविधान सभा के 284 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं । दिल्ली के तीन-मूर्ति पुस्तकालय में उसे देखा जा सकता है । उपनिषद जैसे विशुद्ध ज्ञान-ग्रंथ तो छोड़िए, धर्म-ग्रंथ कहे जाने वाले रामायण और महाभारत को भी संविधान निर्माताओं ने त्याज्य या संदर्भहीन नहीं समझा था । उनके उपयोग से कराई गई सज्जा का आशय ही इन ग्रंथों को अपना आदर्श मानना था ।*

*🚩संविधान के भाग-3 यानी सबसे महत्वपूर्ण समझे जाने वाले मूल अधिकार वाले अध्याय की सज्जा भगवान राम, सीता और लक्ष्मण से की गई है । अगले महत्वपूर्ण अध्याय भाग-4 की सज्जा में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता का उपदेश दिए जाने का दृश्य है । यहां तक कि संविधान के भाग-5 की सज्जा ठीक उपनिषद के दृश्य से की गई है जिसमें ऋषि के पास शिष्य बैठकर ज्ञान ग्रहण करते दिख रहे हैं । यह सब महज सजावटी चित्र नहीं थे, बल्कि उन अध्यायों की मूल भावना (मोटिफ) के रूप में सोच-समझ कर दिए गए थे । इस पर कभी कोई मतभेद नहीं रहा ।*

*🚩शायद आज हमारे न्यायविदों को भी इस तथ्य की जानकारी नहीं है कि मूल संविधान हिंदू धर्मग्रंथों के मोटिफ से सजाया गया था । इसे उस समय के महान चित्रकार नंदलाल बोस ने बनाया था, जिन्होंने कविगुरु रबींद्रनाथ टैगोर से शिक्षा पाई थी । लगता है कि बहुतेरे वकील भी यह नहीं जानते कि संविधान की मूल प्रस्तावना में सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्द नहीं थे । इन्हें इंदिरा गांधी की ओर से थोपे गए आपातकाल के दौरान छल-बल पूर्वक घुसा दिया गया था ।*

*🚩हमारे अज्ञान का जैसा विकास हो रहा है, उसे देखते हुए  हैरत नहीं कि मूल संविधान की उस सज्जा पर भी आपत्ति सुनने को मिले और उस पर न्यायालय विचार करता दिखे । ऐसे तर्क दिए जा सकते हैं कि एक सेक्युलर संविधान में हिंदू धर्म-ग्रंथों का मोटिफ क्यों बने रहना चाहिए ? उन सबको हटाकर संविधान को सभी धर्म के नागरिकों के लिए सम-दर्शनीय किस्म की कानूनी किताब बना देना चाहिए । आखिर, जब उपनिषद को ही आपत्तिजनक माना जा रहा है तब राम और कृष्ण तो हिंदुओं के साक्षात् भगवान ही हैं । ऐसी स्थिति में संविधान में उनका चित्र होना सेक्युलरिज्म के आदर्श के लिए निहायत नाराजगी की बात हो सकती है । यह संपूर्ण प्रसंग हमारी भयंकर शैक्षिक दुर्गति को दिखाता है । स्कूल-कॉलेजों से लेकर विश्वविद्यालयों तक की शिक्षा में हमारी महान ज्ञान-परंपरा को बाहर रखने से ही यह स्थिति बनी है । हमारे बड़े-बड़े लोग भी भारत की विश्व प्रसिद्ध सांस्कृतिक विरासत से परिचित तक नहीं हैं । उपनिषद जैसे शुद्ध ज्ञान-ग्रंथ को मजहबी मानना अज्ञानता को दिखाता है । जबकि रामायण को भी मजहबी नहीं, वैश्विक सांस्कृतिक धरोहर माना जाता है । तभी इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देश रामलीला का नाट्य राष्ट्रीय उत्साह से करते हैं ।*

*🚩अभी जो स्थिति है उसमें संविधान पीठ इस आपत्ति को संभवत: खारिज कर देगी । इस पर देश-विदेश में होने वाली कड़ी प्रतिक्रियाओं से उन्हें समझ में आ जाएगा कि उन्होंने किस चीज पर हाथ डाला है । पर यह अपने आप में कोई संतोष की बात नहीं । यदि हमारी दुर्गति यह हो गई कि हमारे एलीट अपनी महान ज्ञान-परंपरा से ही नहीं, बल्कि अपने हालिया संविधान की भावना तक से लापरवाह हो गए हैं तो हमारी दिशा निश्चित रूप से गिरावट की ओर ही है । तब यह केवल समय की बात है कि संविधान, कानून और शिक्षा को और भी गिरा डाला जाएगा ।*

*🚩भारत में यहां के मूल धर्म-ज्ञान-संस्कृति परंपरा के विरोध का मूल कारण हिंदू-विरोध में है । इस प्रसंग को राष्ट्रवादी जितना ही भुला दें, उन्हें समझना चाहिए कि सदैव अपनी पार्टी, चुनाव और सत्ता के मद में डूबे रहने से भारतीय धर्म-संस्कृति और शिक्षा की कितनी गंभीर हानि होती गई है । उन्हें इसकी कभी परवाह नहीं रही । आज जो सरकारी स्कूलों में उपनिषद पढ़ाने पर आपत्ति कर रहे हैं, कल को वे रामायण, महाभारत और उपनिषद को सरकारी पुस्तकालयों से भी हटाने की मांग करने लगें तो हैरत नहीं । इस दुर्गति तक पहुंचनेे में हमारे सभी दलों का समान योगदान है । उनका भी जिन्होंने अज्ञान और वोट-बैंक के लालच में हिंदू-विरोधियों की मांगों को दिनोंदिन स्वीकार करते हुए संविधान तथा शिक्षा को हिंदू-विरोधी दिशा दी । साथ ही उनका भी जिन्होंने उतने ही अज्ञान और भयवश उसे चुपचाप स्वीकार किया । केवल सत्ताधारी को हटाकर स्वयं सत्ताधारी बनने की जुगत में लगे रहे । यही करते हुए पिछले छह-सात दशक बीते हैं, और हमारी शिक्षा-संस्कृति, कानून और राजनीति की दुर्गति होती गई है । केवल देश के आर्थिक विकास पर सारा ध्यान रखते हुए तमाम बौद्धिक विमर्श ने भी वही वामपंथी अंदाज अपनाए रखा ।*

*🚩इसी का लाभ उठाते हुए हिंदू-विरोधी मतवादों ने स्वतंत्र भारत में धीरे-धीरे सांस्कृतिक, शैक्षिक, वैचारिक क्षेत्र पर चतुराई पूर्वक अपना शिकंजा कसा । उन्होंने कभी गरीबी, विकास, बेरोजगारी, जैसे मुद्दों की परवाह नहीं की । अनुभवी और दूरदर्शी होने के कारण उन्होंने सदैव बुनियादी विषयों पर ध्यान रखा । यही कारण है कि आज भारत का मध्यवर्ग दिनोंदिन अपने से ही दूर होता जा रहा है । इसी को विकास व उन्नति मान रहा है। केवल समय की बात होगी कि विशाल ग्रामीण, कस्बाई समाज भी उन जैसा हो जाएगा, क्योंकि जिधर बड़े लोग जाएं, पथ वही होता है । जिन्हें इस पर चिंता हो उन्हें इसे दलीय नहीं, राष्ट्रीय विषय समझना चाहिए । तदनुरूप विचार करना चाहिए । अन्यथा वे इसके समाधान का मार्ग कभी नहीं खोज पाएंगे । दलीय पक्षधरता का दुष्चक्र उन्हें अंतत: दुर्गति दिशा को ही स्वीकार करने पर विवश करता रहेगा । जो अब तक होता रहा है और जिसका दुष्परिणाम यह दु:खद प्रसंग है। - डॉ. शंकर शरण*

*🚩केंद्रीय विद्यालयों में जो बच्चें प्रार्थना करते है वे केवल हिंदूओ के लिए ही नहीं बल्कि सभी मनुष्यों के लिए परम् हितकारी है ।*
*प्रार्थना है...*
*असतो मा सदगमय ॥*
*तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥*
*मृत्योर्मामृतम् गमय ॥*
*इसका हिन्दू में अर्थ है कि*
*हे प्रभु! हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥*

*अब ऐसा कौन मनुष्य होगा जो सत्य की तरफ, प्रकाश की तरफ ओर अमरता की तरफ नहीं जाना चाहता होगा ? फिर भी इन्हें इस संस्कृत प्रार्थना में हिन्दू धर्म का प्रचार दिखता है !*

*🚩ईसाइयों के कॉन्वेंट स्कूलों में जो उनकी की प्रार्थना करवाई जाती है उसपर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, मदरसों में कुरान पढ़ाई जाती है उसपर उनको कोई आपत्ति नही है। बस हिन्दू धर्म को नष्ट करने के सपने देखते रहते हैं ।*

*भारत को आजादी धर्म के बँटवारे से मिली है परन्तु आज यह लगता है भारत में हिन्दूओं को अभी आजादी  नहीं मिली है ।*

*🚩अपनी संस्कृति पर हो रहे कुठाराघात को रोकने के लिए हिंदुस्तानियों को संगठित होकर आवाज उठानी चाहिए ।*


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Saturday, January 4, 2020

4 जनवरी को हिंदुओं को कश्मीर छोड़ने का आदेश दिया...फिर भयंकर संहार

04 जनवरी 2020 

*🚩04 जनवरी 1990 को कश्मीर के एक स्थानीय अखबार ‘आफ़ताब’ ने हिज्बुल मुजाहिदीन द्वारा जारी एक विज्ञप्ति प्रकाशित की। इसमें सभी हिंदुओं को कश्मीर छोड़ने के लिये कहा गया था। एक और स्थानीय अखबार ‘अल-सफा’ में भी यही विज्ञप्ति प्रकाशित हुई। विदित हो कि हिज्बुल मुजाहिदीन का गठन जमात-ए-इस्लामी द्वारा जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी व जिहादी गतिविधियों को संचालित करने के मद्देनजर वर्ष 1989 में हुआ।*

*🚩आतंकियों के फरमान से जुड़ी खबरें प्रकाशित होने के बाद कश्मीर घाटी में अफरा-तफरी मच गयी। सड़कों पर बंदूकधारी आतंकी और कट्टरपंथी क़त्ल-ए-आम करते और भारत-विरोधी नारे लगाते खुलेआम घूमते रहे। अमन और ख़ूबसूरती की मिसाल कश्मीर घाटी जल उठी। जगह-जगह धमाके हो रहे थे, मस्जिदों से अज़ान की जगह भड़काऊ भाषण गूंज रहे थे। दीवारें पोस्टरों से भर गयीं, सभी कश्मीरी हिन्दुओं को आदेश था कि वह इस्लाम का कड़ाई से पालन करें। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला की सरकार इस भयावह स्थिति को नियन्त्रित करने में विफल रही।*

*🚩कश्मीरी हिन्दुओं के मकानों, दुकानों तथा अन्य प्रतिष्ठानों को चिह्नित कर उस पर नोटिस चस्पा कर दिया गया। नोटिसों में लिखा था कि वे या तो 24 घंटे के भीतर कश्मीर छोड़ दें या फिर मरने के लिये तैयार रहें। आतंकियों ने कश्मीरी हिन्दुओं को प्रताड़ित करने के लिए मानवता की सारी हदें पार कर दीं। यहां तक कि अंग-विच्छेदन जैसे हृदयविदारक तरीके भी अपनाए गये। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा यह थी कि किसी को मारने के बाद ये आतंकी जश्न मनाते थे। कई शवों का समुचित दाह-संस्कार भी नहीं करने दिया गया।*

*🚩19 जनवरी की रात निराशा और अवसाद से जूझते लाखों कश्मीरी हिन्दुओं का साहस टूट गया। उन्होंने अपनी जान बचाने के लिये अपने घर-बार तथा खेती-बाड़ी को छोड़ अपने जन्मस्थान से पलायन का निर्णय लिया। इस प्रकार लगभग 3,50,000 कश्मीरी हिन्दू विस्थापित हो गये।*

*🚩इससे पहले जेकेएलएफ ने भारतीय जनता पार्टी के नेता पंडित टीकालाल टपलू की श्रीनगर में 14 सितम्बर 1989 को दिन-दहाड़े हत्या कर दी। श्रीनगर के न्यायाधीश एन.के. गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गयी। इसके बाद क़रीब 320 कश्मीरी हिन्दुओं की नृशंस हत्या कर दी गयी जिसमें महिला, पुरूष और बच्चे शामिल थे।*

*🚩विस्थापन के पांच वर्ष बाद तक कश्मीरी हिंदुओं में से लगभग 5500 लोग विभिन्न शिविरों तथा अन्य स्थानों पर काल का ग्रास बन गये। इनमें से लगभग एक हजार से ज्यादा की मृत्यु ‘सनस्ट्रोक’ की वजह से हुई; क्योंकि कश्मीर की सर्द जलवायु के अभ्यस्त ये लोग देश में अन्य स्थानों पर पड़ने वाली भीषण गर्मी सहन नहीं कर सके। क़ई अन्य दुर्घटनाओं तथा हृदयाघात का शिकार हुए।*

*🚩घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी।*

*🚩- इसके बाद जस्टिस नील कांत गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई।*

*🚩- उस दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई।उसके बाद 300 से अधिक हिंदू-महिलाओं और पुरुषों की आतंकियों ने हत्या की।*

*🚩सरेआम हुए थे बलात्कार।*

*🚩- मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक कश्मीरी पंडित नर्स के साथ आतंकियों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद मार-मार कर उसकी हत्या कर दी।*

*🚩- घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। हालात बदतर हो गए।*

*🚩- एक स्थानीय उर्दू अखबार, हिज्ब - उल - मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की- 'सभी हिंदू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं'।*

*🚩- एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा, ने इस निष्कासन के आदेश को दोहराया।*

*🚩-मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे।सभी कश्मीरियों को कहा गया कि इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाएं। या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो।*

*🚩- कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया, जिसमें लिखा था 'या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो।*

*🚩- पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमों को भारत से अलग होने के लिए भड़काना शुरू कर दिया।*

*🚩- इस सबके बीच कश्मीर से पंडित रातों -रात अपना सबकुछ छोड़ने को मजबूर हो गए।*

*◆ - डोडा नरसंहार- अगस्त 14, 1993 को बस रोककर 15 हिंदुओं की हत्या कर दी गई।*

*◆ - संग्रामपुर नरसंहार- मार्च 21, 1997 घर में घुसकर 7 कश्मीरी पंडितों को किडनैप कर मार डाला गया।*

*◆ - वंधामा नरसंहार- जनवरी 25, 1998 को हथियारबंद आतंकियों ने 4 कश्मीरी परिवार के 23 लोगों को गोलियों से भून कर मार डाला।*

*◆ - प्रानकोट नरसंहार- अप्रैल 17, 1998 को उधमपुर जिले के प्रानकोट गांव में एक कश्मीरी हिन्दू परिवार के 27 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था, इसमें 11 बच्चे भी शामिल थे। इस नरसंहार के बाद डर से पौनी और रियासी के 1000 हिंदुओं ने पलायन किया था।*

*•• - 2000 में अनंतनाग के पहलगाम में 30 अमरनाथ यात्रियों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी।*

*•• - 20 मार्च 2000 चित्ती सिंघपोरा नरसंहार होला मना रहे 36 सिखों की गुरुद्वारे के सामने आतंकियों ने गोली मार कर हत्या कर दी।*

*•• - 2001 में डोडा में 6 हिंदुओं की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।*

*•• - 2001 जम्मू कश्मीर रेलवे स्टेशन नरसंहार*

*सेना के भेष में आतंकियों ने रेलवे स्टेशन पर गोलीबारी कर दी, इसमें 11 लोगों की मौत हो गई।*

*•• - 2002 में जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर आतंकियों ने दो बार हमला किया, पहला 30 मार्च और दूसरा 24 नवंबर को। इन दोनों हमलों में 15 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई।*

*•• - 2002 क्वासिम नगर नरसंहार, 29 हिन्दू मजदूरों को मारडाला गया। इनमें 13 महिलाएं और एक बच्चा शामिल था।*

*🚩आज जो CAA का विरोध कर रहे हैं, जब लाखों हिंदू पंडितों को प्रताड़ित किया जा रहा था तब सब चुप क्यों थे?*

*🚩कश्मीरी हिन्दू विश्वभर के जिहादी आतंकवाद के पहली बलि सिद्ध हुए। वर्ष 1990 के विस्थापन के पश्चात विगत 29 वर्ष से विविध राजनीतिक दलों के शासन सत्ता में रहे; परंतु मुसलमानों के तुष्टीकरण की राजनीति के कारण कश्मीर की स्थिति में कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ अत: कश्मीरी हिन्दू अपने घर नहीं लौट सके !*

*🚩अब मोदीजी की सरकार ने कश्मीर से 370 हटाने से कश्मीरी हिंदुओं को पुनः घाटी में बसने की उम्मीदे जागृत हुई हैं। अब शीघ्र ही सरकार कश्मीरी हिंदुओं का पुनर्वसन करें, ऐसी हिंदुओं की मांग है ।*

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