Friday, January 10, 2020

जानिए विश्व हिंदी दिवस क्यो मनाया जाता है? कितनी महान भाषा है

10 जनवरी 2020

🚩 *हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में नही हैं। हिंदी भाषा संसार की उन्नत भाषाओं में सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।*

🚩 *दुनिया में पहला विश्व हिंदी दिवस भारत में नहीं बल्कि नार्वे में मनाया गया था । नार्वे में पहला विश्व हिन्दी दिवस भारतीय दूतावास ने तथा दूसरा और तीसरा विश्व हिन्दी दिवस भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वाधान में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ला की अध्यक्षता में बहुत धूमधाम से मनाया गया था।*

🚩 *इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र के सभागार में, रविवार 10 जनवरी 2010 को, विश्व हिन्दी सचिवालय, शिक्षा, संस्कृति एवं मानव संसाधन मन्त्रालय, भारतीय उच्चायोग, इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र तथा हिन्दी संगठन के मिले-जुले सहयोग से विश्व हिन्दी दिवस 2010 मनाया गया।*

🚩 *जिसमें मुख्य अतिथि हंगरी के भारोपीय शिक्षा विभाग से आई हुई डॉ. मारिया नेज्यैशी थी इस उपलक्ष्य पर विश्व हिन्दी सचिवालय की एक रचना (एक विश्व हिन्दी पत्रिका) का भी लोकार्पण गणराज्य के राष्ट्रपति माननीय सर अनिरुद्ध जगन्नाथ जी के कर-कमलों द्वारा हुआ। इस अवसर पर भारतीय उच्चायोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर पर कविता-प्रतियोगिता के विजेताओं को भी सम्मानित किया गया, सम्मान उन सभी नवोदित कवियों का वास्तव में रहा जिनको अपनी कलात्मकता प्रेषित करने का एक मंच प्राप्त हुआ।*

🚩 *विश्व में हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था। इसीलिए इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।*

🚩 *अपने अधिकतर भाषण अंग्रेजी में ही देने वाले भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी, 2006 को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद से भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिन्दी दिवस मनाया था। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं।*

🚩 *हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जा रही है*

🚩 *दुनिया में हिंदी बोलने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2015 के आंकड़ों के अनुसार हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है।*

🚩 *2005 में दुनिया के 160 देशों में हिंदी बोलने वालों की अनुमानित संख्या 1,10,29,96,447 थी। उस समय चीन की मंदारिन भाषा बोलने वालों की संख्या इससे कुछ अधिक थी। लेकिन 2015 में दुनिया के 206 देशों में करीब 1,30,00,00,000 (एक अरब तीस करोड़) लोग हिंदी बोल रहे हैं और अब हिंदी बोलने वालों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा हो चुकी है। चीन के 20 विश्वविद्यालयों में भी हिंदी पढ़ाई जा रही है।*

🚩 *भारत देश में 78 फीसद लोग बोलते हैं, हिंदी के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा चीन की मंदारिन है। लेकिन मंदारिन बोलने वालों की संख्या चीन में ही भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या से काफी कम है।*

🚩 *चीनी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की एक रिपोर्ट के अनुसार केवल 70 फीसद चीनी ही मंदारिन बोलते हैं। जबकि भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या करीब 78 फीसद है। दुनिया में 64 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी है। जबकि 20 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा, एवं 44 करोड़ लोगों की तीसरी, चौथी या पांचवीं भाषा हिंदी है।*

🚩 *भारत के अलावा मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, गयाना, ट्रिनिडाड और टोबैगो आदि देशों में हिंदी बहुप्रयुक्त भाषा है। भारत के बाहर फिजी ऐसा देश है, जहां हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।*

🚩 *हिंदी को वहां की संसद में प्रयुक्त करने की मान्यता प्राप्त है। मॉरीशस में तो बाकायदा "विश्व हिंदी सचिवालय" की स्थापना हुई है, जिसका उद्देश्य ही हिंदी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित करना है।*

🚩 *आपको बता दें कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने अपनी सिफारिशों में सरकारी और निजी दोनों संस्थानों में से धीरे-धीरे अंग्रेजी को हटाने और भारतीय भाषाओं को शिक्षा के सभी स्तरों पर शामिल करने पर जोर दिया है। साथ ही आईआईटी, आईआईएम और एनआईटी जैसे अंग्रेजी भाषाओं में पढ़ाई कराने वाले संस्थानों में भी भारतीय भाषाओं में शिक्षा देने की सुविधा देने पर जोर दिया गया है।*

🚩 *हिंदी भाषा इसलिये दुनिया में प्रिय बन रही है क्योंकि इस भाषा को देवभाषा संस्कृत से लिया गया है जिसमें मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक है। जबकि अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द केवल 10,000 ही हैं ।*

🚩 *हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में नही हैं। हिंदी भाषा संसार की उन्नत भाषाओं में सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।*

🚩 *इंटरनेट पर अंग्रेजी को पछाड़कर राज करेगी हिंदी*

*गूगल और केपीएमजी की एक संयुक्त रिपोर्ट में यह अनुमान व्यक्त किया गया है कि वर्ष 2021 तक इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का राज होगा । हिंदी, बांग्ला, मराठी, तमिल और तेलुगु आदि भारतीय भाषाओं के यूजर्स तेजी से बढ़ेंगे और अंग्रेजी के दबदबे को खत्म कर देंगे । अभी हमें भी इंटरनेट पर अंग्रेजी नही बल्कि राष्ट्र भाषा का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए।*

🚩 *विदेशों में हिन्दी भाषा का उपयोग बढ़ रहा है लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि हमारे देश में ही कुछ आधुनिकता प्रेमी बोलने में संकोच करते हैं, कुछ वकील और संसद हिंदी नहीं बोलना जानते हैं।*

🚩 *आज मैकाले की वजह से ही हमने मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । लेकिन आज दुनिया में हिंदी भाषा का महत्व जितना बढ़ रहा है उसको देखकर समझकर हमें भी हिंदी भाषा का उपयोग अवश्य करना चाहिए ।*

🚩 *अपनी राष्ट्र एवं मातृभाषा की गरिमा को पहचानें ।*

*सरकारी विभाग, एवं इंटरनेट आदि सभी स्तर पर हिंदी का उपयोग करना चाहिए एवं अपने बच्चों को अंग्रेजी (कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा (गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुँमुखी विकास में सहभागी बनें ।*

🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻


🔺 facebook :




🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG

🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Thursday, January 9, 2020

हिंदुओं की ऐतिहासिक भूलें, जो हमारे विनाश का कारण बन सकती हैं

09 जनवरी 2020

*🚩श्री अरविन्द ने सौ साल पहले ही कहा था कि भारत की सब से बड़ी समस्या विदेशी शासन नहीं है। गरीबी भी नहीं है। सब से बड़ी समस्या है – सोचने-समझने की शक्ति का ह्रास! इसे उन्होंने ‘चिंतन-फोबिया’ कहा था। कि मानो हम सोचने-विचारने से डरते हैं। औने-पौने किसी मामले को निबटाने की कोशिश करते हैं। चाहे वह वैयक्तिक हो या सामाजिक या राष्ट्रीय। इस से कोई भी कार्य अच्छी तरह से तय नहीं होता, नतीजन समस्याएं बनी रहती हैं, बल्कि बिगड़ती जाती हैं।*

*🚩वह एक सटीक अवलोकन था। स्वामी विवेकानन्द ने भी उसी कमी को ‘आत्म-विस्मरण’ कहा था। स्वतंत्र भारत में वह दूर होने के बदले और बढ़ गया। आकर्षक लगने वाली विविध, विदेशी विचारधाराओं को हमारे शासकों, उच्च-वर्गीय लोगों, बुद्धिजीवियों ने बिना किसी जाँच-परख के अपना लिया। आज हिन्दू लोग अपना धर्म और इतिहास बहुत कम जानते हैं। इस से उनका आत्म-विस्मरण बढ़ता जाता है।*

*🚩हमारी असली दुर्बलता कहीं और है, जिस से सेना या सुरक्षा बलों का भी सही समय पर सही प्रयोग नहीं होता। अज्ञान और भय एक-दूसरे को बढ़ाते हैं। यह आज के हिन्दू समाज की कड़वी सच्चाई है। हिन्दू समाज अज्ञान में डूबा, विखंडित और दुर्बल है। यह देश की केंद्रीय समस्या है। इसे शिक्षा के माध्यम से सरलतापूर्वक एक पीढ़ी या बीस वर्षो में दूर कर लिया जा सकता था, पर हिन्दू-विरोधी वामपंथी नीतियों तथा विदेशी मतवादों के दबाव में उलटा ही किया गया। रोजगारपरक बनाने के नाम पर सार्वजनिक शिक्षा मूल्य-विहीन, इसलिए घोर अशिक्षा में बदल गई है। दूसरी ओर, देश में राज्य-कर्म मुख्यतः नगरपालिका जैसे काम करने, पार्टी-बंदी और मीठी झूठी बातें कहने, तरह-तरह के भाषण देने में बदल कर रह गया है।*

*🚩यह राष्ट्र की मानसिक क्षमता में ह्रास के उदाहरण हैं। इनमें पिछले सौ साल से कोई विशेष सुधार हुआ नहीं लगता। ऐसी ही स्थितियों में मुट्ठी भर शत्रु भी आक्रामक होकर बड़ी संख्या पर विजयी हो सकते हैं। सन् 1947 में देश-विभाजन और फिर निरंतर जगह-जगह हिन्दुओं के विस्थापन का यही कारण रहा है। इसका उपाय अच्छी सेना या युद्धक विमान मात्र नहीं हैं। क्योंकि शक्ति हथियारों में नहीं, उनका उपयोग करने और करवाने वालों के चरित्र और मानस में होती है।*

*🚩श्रीअरविन्द के शब्दों में, ‘हम ने शक्ति को छोड़ दिया है और इसलिए शक्ति ने भी हमें छोड़ दिया है। … कितने प्रयास हो चुके हैं। कितने धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक आंदोलन शुरू किए जा चुके। लेकिन सब का एक ही परिणाम रहा या होने को है। थोड़ी देर के लिए वे चमकते हैं, फिर प्रेरणा मंद पड़ जाती है, आग बुझ जाती है और अगर वे बचे भी रहें तो खाली सीपियों या छिलकों के रूप में रहते हैं, जिन में से ब्रह्म निकल गया है या वे तमस के वश में हैं।’ (भवानी मंदिर, 1905) इस दुरअवस्था से निकलने के लिए सब से पहले हमें अपना सच्चा इतिहास जानना चाहिए। ठीक है कि गत हजार साल से हिन्दुओं ने दो साम्राज्यवादों का प्रतिरोध किया। लेकिन जिस मर्मांतक शत्रु को वे पहचान चुके थे, उसके सामने सदियों तक विफलता भयावह पैमाने की थी। उन विफलताओं के सबक आज भी प्रासंगिक हैं।*

*🚩पहली, सैन्य-कला की विफलता। दूसरी, राजनीतिक। आरंभिक चरणों में शाहीया, चौहान, चंदेल, गहड़वाल और चालुक्य जैसे हिन्दू राज्य अरब, तुर्क इस्लामी हमलावरों की तुलना में वित्तीय संसाधन और मानव-बल, दोनों में श्रेष्ठ थे, किन्तु हिन्दू उनका ढंग से उपयोग कर पाने में विफल रहे। इसका बड़ा कारण था हिन्दुओं की आध्यात्मिक समझ में आई गिरावट। उस से पहले के युग में जब यूनानी आक्रमणकारी अलेक्जेंडर ने भारत के एक ब्राह्मण से पूछा था कि उन्होंने क्या सिखाया जिससे हिन्दू ऐसी ऊँची वीरता से भरे होते हैं, तो ब्राह्मण ने एक पंक्ति में उत्तर दिया था – ‘‘हम ने अपने लोगों को सम्मान के साथ जीना सिखाया है।’’ किन्तु पाँचवीं सदी के बाद स्थिति बदलने लगी। पहले के महाभारत, रामायण, पुराण और मनुस्मृति, आदि की तुलना में अब हिन्दू साहित्य बहुत हल्के होते गए।*

*🚩पहले का हिन्दू साहित्य मानव आत्मा की महान ऊँचाइयों में विचरता है, पर साथ ही पार्थिव जीवन के हरेक पक्ष पर भी पूरा ध्यान देता है। इस में किसी बुराई को सहने या बिना दंड के क्षमा करने का कहीं कोई स्थान नहीं था। लेकिन बाद के हमारे आध्यात्मिक और दार्शनिक साहित्य में धरती पर जिए जाने वाले जीवन के प्रति एक वितृष्णा का भाव आ गया। इस से पीठ मोड़ लेना सर्वोच्च मानवीय गुण कहा गया। धर्म वह व्यापक धारणा न रहा जो मानवीय संबंधों की पूरी समृद्धि को अपने घेरे में लेता है, बल्कि इसे वैयक्तिक मुक्ति के लक्ष्य में सीमित कर दिया गया। तीसरी विफलता थी, आस-पास के विश्व में घट रही घटनाओं के प्रति मानसिक सतर्कता का अभाव।*

*🚩इस प्रकार, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और मानसिक स्तरों पर तिहरी विफलता ने हिन्दू समाज को एक अभूतपूर्व स्थिति में आवश्यक नीतियाँ बनाने और लागू करने के अयोग्य बना दिया। वैसी नीतियाँ, जिस से वह अपने देश में एक कैंसरनुमा रोग की स्थाई उपस्थिति से मुक्त हो सकता था।*

*🚩हजार साल पहले का आक्रमणकारी इस्लामी साम्राज्यवाद ‘केवल-हम-सही’ होने के तेज बुखार से ग्रस्त था। उसे किसी कड़ी दवा की बड़ी जरूरत थी। यदि उन्हें बलपूर्वक समझाया जाता कि जो काम वे मार्त्तंड मंदिर या सोमनाथ के साथ करते हैं, वही उनके मक्का-मदीना के साथ भी किया जा सकता है, तो वे ठहर कर सोचते और सामान्य हो जाते। लेकिन हिन्दुओं ने उस मतवादी आवेश को ठंडा करने की कभी कोशिश नहीं की, जबकि उनमें वह सैनिक और वित्तीय शक्ति थी। यह बहुत बड़ी भूल हुई।*

*🚩तब से बहुत समय बीत चुका है। पर वह बुखार आज भी भारत में मौजूद है, और उसके प्रति वही गफलत भी। सेक्यूलरवादी, वामपंथी और राष्ट्रवादी भी हमारे इतिहास को विकृत करने में लगे हैं, कि इस्लाम ने कभी हिन्दुओं या हिन्दू धर्म को हानि पहँचाने की चाह नहीं रखी थी! क्या हिन्दू समाज को फिर इस आत्म-विस्मरण, गफलत की कीमत चुकानी होगी? पर अब कटिबद्ध इस्लामी प्रहार के समक्ष हिन्दू समाज नहीं बच सकेगा। इसका मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक स्वास्थ्य वैसा नहीं है। न भूलें कि सेना, प्रक्षेपास्त्र और परमाणु बम होते हुए भी कश्मीर से हिन्दुओं का सफाया हुआ है!*

*🚩भारत के सच्चे देशभक्त और धर्म-परायण लोग यदि पार्टी-बंदी से ऊपर उठकर राष्ट्रीय स्थिति पर विचार करें, तभी उन्हें वस्तु-स्थिति का सही आभास होगा। जो समाज आत्म-दया से ग्रस्त है, जो हर उत्पीड़क की ओर से बोलने में लग जाता है, जो पक्के दुश्मनों से अपने लिए अच्छे आचरण का प्रमाण-पत्र पाने की जरूरत महसूस करता है – ऐसे समाज के लिए ऐसी दुनिया में कोई आशा नहीं, जो दिनो-दिन अधिक हिंसक होती जा रही है। इसलिए, हमें शक्ति के साथ-साथ ज्ञान की आराधना भी करनी चाहिए। लेखक : डॉ. शंकर शरण*

🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻


🔺 facebook :




🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG

🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Wednesday, January 8, 2020

बॉलीवुड संस्कृति विरोधी था अब देश विरोधी भी बन गया है

08 जनवरी 2020

*🚩बॉलीवुड के कुछ सितारे CAA का विरोध कर रहे हैं, कुछ वामपंथी JNU के समर्थन में आये हद तो तब हो गई जब देश विरोधी लोगों का समर्थन देने के लिए अभिनेत्री दीपिका पादुकोण भी पहुँच गई*

*★लेकिन दीपिका कभी 1984 क़त्लेआम के पीड़ित परिवारों से क्यों नहीं मिली?*

*★मध्य प्रदेश में सिखों पर हुए अत्याचार पर कभी कुछ क्यों नहीं बोला?*

*★ननकाना साहिब में हुए Hate Attack पर क्यों एक ट्वीट तक भी नहीं किया?*

*★लाखों पंडितों को भगा दिया और सैकड़ों का कत्ल कर दिया तब क्यों कुछ नहीं बोला?*

*★और अब देश के गद्दारों के समर्थन में कैसे उतर आई?* 

*🚩इससे सिद्ध होता है कि इन लोगों ने हिंदू संस्कृति को नष्ट करने का प्रयत्न किया अब देश विरोध में भी आ गए हैं।*

*🚩हमारे युवा अपना आदर्श बॉलीवुड की इन नचनियों को मानते हैं, और ये भांड नचनियां अपनी फिल्मों के जरिये लवजिहाद, बलात्कार, मर्डर, गद्दारी और लूट के नए नए तरीके सिखाते हैं....ये सब हमारे संस्कृति और देश नष्ट करने के षड्यंत्र हैं।*

*🚩आपको बता दें कि हर शुक्रवार कोई न कोई फ़िल्म आ ही जाती है। अब आने वाले शुक्रवार (जनवरी 10, 2020) को ही ले लीजिए। दक्षिण के 70 वर्षीय महानायक रजनीकांत उस दिन ‘दरबार’ लेकर आ रहे हैं। इसमें वे सुनील शेट्टी से फाइट करते दिखेंगे। उसी दिन हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार अजय देवगन मराठा योद्धा पर बनी फ़िल्म ‘तानाजी’ लेकर आ रहे हैं। जहाँ रजनीकांत अपनी फ़िल्मों का प्रचार करने के लिए किसी शो वगैरह में जाते नहीं, अजय देवगन ने हर बड़े टीवी शो में जाकर अपनी फ़िल्म का प्रचार किया है। अजय देवगन आक्रामक प्रचार के लिए जाने भी जाते हैं।*

*🚩हालाँकि, यहाँ बात हम इन दो फ़िल्मों की नहीं करेंगे, क्योंकि इन दो बड़ी फ़िल्मों के साथ एक तीसरी फ़िल्म भी आ रही है। उसका नाम है- छपाक। फ़िल्म की कहानी वास्तविक बताई गई है। एसिड अटैक का सामना करने वाली हमारे देश की बेटी लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी इस फ़िल्म में दिखाई गई है। लक्ष्मी को क्या कुछ झेलना पड़ा, वो जान कर कोई भी रो पड़ेगा। उनका पूरा चेहरा जल गया। फिर भी वो लड़ीं, एक योद्धा की तरह। तमाम मुश्किलों का सामना कर वो महिला सशक्तिकरण की आवाज़ बन कर उभरीं।*

*🚩बायोपिक बॉलीवुड का फैशन रहा है और मात्र 1 रुपए में अपनी कहानी देने वाले मिल्खा सिंह पर बनी फिल्मों ने भी 100 करोड़ की कमाई की है। मेरीकॉम पर बनी फ़िल्म ने भी अच्छी-ख़ासी कमाई की। लेकिन, ठीक उसी तरह वास्तविकता पर फ़िल्में बनाने का दावा कर सच्चाई से छेड़छाड़ करना भी बॉलीवुड का फैशन रहा है। जब फ़िल्म के बारे में चर्चा नहीं हो रही हो तो जबरदस्ती उसे विवादों में घसीटने का भी एक ट्रेंड रहा है। जब टॉपिक कॉन्ट्रोवर्शियल होता है तो उस पर चर्चा होती है, वो लोगों तक पहुँचता है। ‘छपाक’ का सामना भी दो बड़ी फ़िल्मों से है।*

*🚩सबसे पहले ये जानते हैं कि लक्ष्मी अग्रवाल के साथ हुआ क्या था? किशोरावस्था में लक्ष्मी भी आम लड़की की तरह थी। घंटों ख़ुद को आईने में देखती थीं, क्योंकि उनका सपना था कि वो टी.वी पर आए। 32 वर्ष के नईम ख़ान ने 15 साल की लक्ष्मी पर सिर्फ़ इसीलिए तेज़ाब फेंक दिया क्योंकि उसने शादी से इंकार कर दिया था। नईम उर्फ़ गुड्डू लगातार एस.एम.एस कर लक्ष्मी को परेशान करता था। लक्ष्मी की माँ तक को यकीन नहीं हुआ कि नईम ने ऐसा किया है, क्योंकि नईम जान-पहचान वाला था। वो लक्ष्मी की दोस्त का भाई था। लक्ष्मी ने कविताएँ लिखीं, फैशन को लेकर दुनिया के नजरिए को बदला, टीवी पर आईं और एसिड अटैक पीड़ितों के लिए उन्होंने अभियान चलाया। जबकि ये खबर है कि एसिड फेंकने वाले नदीम खान का नाम बदलकर 'राजेश' हिंदू नाम कर दिया गया, यह फिल्म में एसिड फेंकने वाले का नाम बदलने के बहाने उसका धर्म बदला गया है और ये हिंदू धर्म को बदनाम करने की एक कोशिश है।*

*🚩जब फ़िल्म ‘छपाक’ के वास्तविकता से प्रेरित होने और सच्ची घटना पर आधारित होने की बात कही जाती है, तब ये तो पूछा जाएगा कि इस घटना के दोषियों को इसमें किस रूप में दिखाया गया है। सिनेमा वाले ऐसे किसी भी विवाद में नहीं पड़ना चाहते, जिससे उन्हें इस बात का ख़तरा हो कि उनके ख़िलाफ़ एक भी मुस्लिम सड़क पर निकल कर विरोध-प्रदर्शन कर सकता है। अभी हमने देखा कि फराह ख़ान, रवीना टंडन और भारती सिंह को रोमन कैथोलोक बिशप से मिल कर माफ़ी माँगनी पड़ी, क्योंकि ईसाई समुदाय उनके ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहा था। सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगने से भी काम नहीं चला तो उन्होंने लिखित में अलग-अलग माफ़ीनामा सौंपा। क्यों सौंपा? क्योंकि वो विवादों से दूर भागना चाहते थे। वो ऐसा क्यों चाहते थे?*

*🚩क्योंकि विवाद ईसाई समुदाय से जुड़ा था। लेकिन जैन मुनि तरुण सागर पर विवादित टिप्पणी करने वाला संगीतकार तब उनकी चौखट पर पहुॅंचा जब उसे पुलिसिया कार्रवाई का डर सताने लगा। लेकिन, जब मामला ईसाई या मुस्लिम धर्म से जुड़ा रहता है तो इन्हें माफी मांगने में सेकेंड भर देरी नहीं लगती। विवाद मुस्लिम अथवा ईसाई समुदाय से जुड़ा हो अथवा उनके विरोध का डर हो तो एक भी बॉलीवुड सितारा रिस्क नहीं लेना चाहता। वहीं जब बात बहुसंख्यक समुदाय की हो, तब लाख प्रदर्शनों के बावजूद वो माफ़ी नहीं माँगते और दिखाते हैं कि ‘देखो, हम उपद्रवियों के सामने नहीं झुक रहे।’ वो ऐसा क्यों करते हैं?*

*🚩जब विश्वरूपम में कमल हसन दिखाते हैं कि आतंकी इस्लामी टोपी पहने गोलियाँ चला रहे हैं तो उन्हें इतना परेशान किया जाता है कि वो देश छोड़ कर जाने की बातें करने लगते हैं। ‘चक दे इंडिया’ में मीर रंजन नेगी को कबीर ख़ान बना दिया जाता है। पूरा लब्बोलुआब ये है कि जब किसी ने अच्छा कार्य किया हो तो उसे हिन्दू से मुस्लिम बनाने में बॉलीवुड वालों को कोई समस्या नहीं होती। लेकिन, जब किसी ने कोई बुरा कार्य किया हो तो उसके किरदार को मुस्लिम से हिन्दू बना दिया जाता है। क्यों? क्योंकि मामला ‘उनका’ हो तो रिस्क नहीं लेना है।*

*🚩अगर आप सोच रहे हैं कि ये सब नया है तो शायद आप ग़लतफहमी में हैं। दरअसल, ये तो बॉलीवुड का ट्रेंड रहा है। सलीम ख़ान और जावेद अख्तर की कहानियों में ढोंगी, लालची, चाटुकार, लुटेरा और ठग जैसे किरदारों को पंडित दिखाया जाता था। ठीक इसके उलट, देश के लिए क़ुरबानी की बात करने वाले, वफ़ादार दोस्त, दूसरों का भला करने वाला और कुछ ज्यादा ही ईमानदार किरदारों को मुस्लिम दिखाया जाता था। ये ट्रेंड शुरू से चला आ रहा है। ‘पद्मावत’ में एक पंडित को चाटुकार और गद्दार दिखाया गया। ‘शोले’ में एक ‘बेचारा’ मौलवी, जो अपने बेटे को ‘कुर्बान कर देने’ की बात करता है। ‘वास्तव’ में परेश रावल का किरदार, एक ईमानदार दोस्त जो रघु के लिए जान दे देता है। लम्बा इतिहास रहा है ऐसा।*

*🚩जेएनयू में दीपिका पादुकोण ने जाकर उस कंट्रोवर्सी को जन्म दे दिया, जिससे फ़िल्म की चर्चा हो और जिस पर लाख विवादों के बावजूद माफ़ी न माँग कर ख़ुद की छवि और ‘मजबूत’ दिखाई जा सके।*

*🚩पीआर एजेंसियों के इशारों पर नाचने वाली बॉलीवुड सेलेब्रिटी होते ही ऐसे हैं। जब फलाँ मुद्दा ख़ूब चल रहा है तो उस पर उनसे बयान दिलवाया जाता है। विवाद में पड़े बिना जब पब्लिसिटी की जरूरत होती है तो यही अभिनेता या अभिनेत्री सोशल मीडिया में ’संविधान की प्रस्तावना’ को शेयर कर देते हैं। वैसे ही दीपिका ने सीएए, हैदराबाद एनकाउंटर, निर्भया फ़ैसला और मुस्लिमों के आतंक पर कुछ नहीं बोला। लेकिन चूँकि उनकी फ़िल्म का रिलीज डेट नजदीक है, जेएनयू में उनकी उपस्थिति ने वो काम कर दिया, जो उनके बयान देने से भी नहीं होता। यही बॉलीवुड की रीत है।*

*🚩बॉलीबुड द्वारा हमारी संस्कृति खत्म करने की कोशिश की जा रही है और अब कुछ देश विरोधियों का साथ देकर देश विरोधी भी बन गए हैं ।अतः इनका बहिष्कार करना ही एकमात्र विकल्प है।*

🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻


🔺 facebook :




🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG

🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ