Tuesday, April 28, 2020

आपातकाल किसको कहते है? कितने प्रकार का होता है? क्यों आता है?

28 अप्रैल 2020

🚩आपदा प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित कारणों का परिणाम है जो जान और माल की गंभीर क्षति करके अचानक सामान्य जीवन को उस सीमा तक अस्त व्यस्त करता है, जिसका सामना करने के लिए उपलब्ध सामाजिक तथा आर्थिक संरक्षण कार्यविधियां अपर्याप्त होती हैं अर्थात आशंकित विपत्ति का वास्तव में घटित होना आपदा है। इसमे एक साथ हजारों लोगों की जीव हानि होती है तथा अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की भी बडी मात्रा मे हानि होती है।

🚩आपदा ‘संतुलन’ का बिगडना है। आपदा आंतरिक और बाहरी कारकों के प्रभाव से उत्पन्न होती है, जो संयुक्त होकर घटना को भारी विनाशकारी घटना के रूप में परिवर्तित करती है ।

🚩आपदा का अंग्रेज़ी शब्द 'Disaster’ फ्रांसीसी शब्द है जो Desastre’ से आया है। यह दो शब्दों ‘Des’ एवं ‘Astre’ से बना है जिसका अर्थ है ‘खराब तारा’।

▪️१. आपातकाल का अर्थ ? आपदा क्या है ?

▪️अ. आपत् + काल = आपत्काल ।

🚩संस्कृतमें ‘आपत्’ का अर्थ है, ‘संकट’। अतः, ‘आपातकाल’ का अर्थ हुआ, ‘संकटकाल’ । इसे आपदा भी कहा जाता है ।


आपदाओं का वर्गीकरण

🚩उत्पत्ति के अनुसार आपदाएं प्राकृतिक और मानव निर्मित होती हैं ।

प्राकृतिक आपदा

🚩प्राकृतिक आपदाओं को निम्नलिखित विभिन्न प्रकारों के रूप में देखा जा सकता है –

▪️१. वायुजनित आपदा : तूफान, चक्रवाती पवन, चक्रवात, समुद्री तूफानी लहरें

▪️२. जलजनित आपदा : बाढ, बादल का फटना, सूखा, सुनामी

▪️३. धरती जनित आपदा  : भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन, हिमस्खलन

▪️४. संक्रामक रोग : प्लेग, डेंगु, चिकनगुनिया, स्वाईन फ्लू, मलेरिया आदि.

🚩इसमे कई बार एक आपदा के कारण भी दूसरी आपदा का प्रारंभ होता है, उदा. सागरतल मे भूकंप होने से सुनामी आने की संभावना रहती है, तथा सुनामी या बाढ के उपरांत महामारी आना संभव अधिक होता है ।

🚩प्राकृतिक आपदा मे मानवनिर्मित कारणों से संहारकता का प्रमाण अधिक होता है, उदा. उत्तराखंड में गंगानदी के जलमार्ग मे मानवनिर्मित घर तथा होटलों के कारण हानि अधिकमात्रा में हुई।

मानवनिर्मित आपदा

मानव निर्मित आपदाओं के अंतर्गत निम्नलिखित प्रकारों को देखा जा सकता है –

▪️१. औद्योगिक दुर्घटना

▪️२. पर्यावरणीय ह्रास,

▪️३. विभिन्न युद्ध, जिहाद के नाम पर आतंकी गतिविधियां

▪️४. जैविक युद्ध के लिए अनुकूल वातावरण में विभिन्न जीवाणु और विषाणुओं के साथ साथ घातक कीटों का संवर्धन कर उन्हें डिब्बो में बंद कर शत्रु कैम्पों पर विमान से छोड दिया जाता है जो अंततः पर्याप्त क्षेत्र में फैलकर महामारी का रूप ले लेता है ।

▪️५. रसायन युद्ध के तहत विषैली गैसों, बम और क्लस्टर बम को शत्रु कैम्पों पर छोडा जाता है ।

▪️६. कंपनियों के संयंत्रों में लापरवाही या दोषपूर्ण रख-रखाव के कारण होनेवाली आपदाएं । इन्हें पर्यावरणीय आपदा भी कहा जाता है, जैसे – भोपाल गैस आपदा, चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना, फुकुशिमा परमाणु आपदा आदि प्रमुख हैं ।

▪️७. जंगली आग तथा शहरी आग

▪️८. हवाई, सडक और रेल दुर्घटनाएं

▪️९. बडे भवनों का ढह जाना
आपात्काल से होनेवाली बडी हानि

🚩आपात्काल से होनेवाली हानि की कल्पना के लिए कुछ उदाहरण अभी हम देख सकते हैं ।

🚩२००४ मे हिंद महासागर में ९.३ परिमाण का तीव्र भूकंप आया था । यह आजतक के इतिहास का दूसरा सबसे बडा भूकंप है । इस भूकंप से आयी सुनामी के कारण २,२९,००० लोगों की मृत्यु हुई थी ।

🚩१९३१ में ‘हुआंग हे’ (पीली नदी) मे आई बाढ के कारण ४,२२,००० से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी ।

🚩१९०० में आए सूखे के कारण भारत मे २,५०,००० से ३,२५,००० लोगों की मृत्यु हुई थी ।

🚩१९१८ के स्पैनिश फ्लू के विश्‍वमारी के कारण दुनिया मे ५ करोड लोग मरने का अनुमान है ।

🚩१९५७ के एशियन फ्लू के विश्‍वमारी के कारण दुनिया मे १० लाख लोग मरने का अनुमान है ।

वर्तमानकाल की आपदाएं

🚩‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ के कारण विश्‍व मे सागर के जलस्तर का बढना

🚩आसान शब्दों में समझें तो ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ‘पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वालें परिवर्तन’ । पृथ्वी के तापमान में हो रही इस वृद्धि (जिसे १०० सालों के औसत तापमान पर १० फारेनहाईट आँका गया है।) के परिणाम स्वरूप बारिश के तरीकों में बदलाव, हिमखंडों और ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और वनस्पति तथा जंतु जगत पर प्रभावों के रूप के सामने आ सकते हैं।

🚩ग्रीन हाउस गैस वो गैस होती है जो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश कर यहां का तापमान बढाने में कारक बनती है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो २१वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान ३ डिग्री से ८ डिग्री सेल्सियस तक बढ सकता है । अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे । दुनिया के कई हिस्सों में बिछी बर्फ की चादरें पिघल सकती हैं, इससे समुद्र का जल स्तर कई फीट ऊपर बढ जाएगा । इससे दुनिया के कई हिस्से जलमग्न हो सकते हैं, भारी तबाही मच सकती है । यह तबाही किसी विश्‍वयुद्ध या किसी ‘ऐस्टेरॉइड’ के पृथ्वी से टकराने के बाद होने वाली तबाही से भी बढ़कर होगी । हमारे ग्रह पृथ्वी के लिये भी यह स्थिति बहुत हानिकारक होगी ।

🚩इस चेतावनी को गंभीरता से लेकर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विदोदोने २०१९ में ट्वीट कर कहा था ‘वर्तमान राजधानी जाकार्ता शहर पानी के नीचे जाने की संभावना होने से हमारे देश की राजधानी बोर्नियो द्वीपपर स्थानांतरित हो जाएगी ।’ किसी देश को अपनी राजधानी में बदलाव करना पडे, इससे हम परिस्थिति की गंभीरता समझ सकते हैं ।

‘कोरोना’ गुट के ‘कोविड-१९’ वायरस की विश्‍वमारी

🚩वर्तमानकाल में हम इसी महामारी के आपात्काल से गुजर रहे हैं । चीन से प्रारंभ हुए इस महामारी को आज २ महिने में ही विश्‍वमारी घोषित किया गया है । आज तक इसके प्रकोप से हजारों लोगों की मृत्यु हो चुकी है और लाखों लोग इसके चपेट में आ चुके हैं । अब यह आंकडा कहां तक जाता है, यह हम भविष्य मे देखेंगे, पर आज तक तो इस महामारी के पर कोई दवाई उपलब्ध नहीं है ।

आपात्काल क्यों आता है ?

🚩पिछले एक दशक से हम पूरे विश्‍व में प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता में वृद्धि होते देख रहे हैं । प्रकृति के इस भयावह सामर्थ्य को अनुभव कर रहे हैं । कुछ समय पूर्व दक्षिण-पूर्वी एशिया एवं जापान में आई त्सुनामी, पाकिस्तान, हैती तथा चीन में हुए भूकंप, साथ ही कटरिना एवं उत्तर और मध्य अमरीका में आई अन्य चक्रवात आदि द्वारा हुए प्राकृतिक संकट देखे हैं । इन की तीव्रता के कारण हुआ घोर विध्वंस तथा जन-हानि हमारे मन पर अंकित हो गई है । हमें समझना होगा कि प्रकृति के इस कोप का कारण क्या है ?

सेमेटिक विचारधारा के पंथ

🚩अन्य पंथों में पुण्य की कोई संकल्पना ही नहीं है । उनके पंथ निर्माता के मार्गपर चलना पुण्यकारक माना गया है, तथा उसके विरुद्ध कृति करना पाप माना गया है । इन पंथों की धारणा है कि मानव सर्वश्रेष्ठ है और सारी सृष्टि केवल भोग के लिए है । इस कारण प्रकृति को अलग मानकर उसका दोहन करने की प्रवृत्ती बढी है । दुर्भाग्य से भारत मे भी पश्‍चिमी देशों के लोगों द्वारा बनाई गई शिक्षा प्रणाली चल रही है । इसलिए भारत मे भी आज की पीढी की भी वही प्रवृत्ति हो गई है । इसी कारण पर्यावरण का प्रदूषण करना, जंगल का विनाश करना आदि प्रवृत्तियां बढ रही हैं । जंगल का नाश होगा, तो वन में रहनेवाले प्राणी नागरी बस्तियों मे प्रवेश करेंगे, वर्षा अनियंत्रित होगी तथा ग्लोबल वॉर्मिंग में बढोतरी होगी । इस प्रकार मानव आपदाओंको आमंत्रित कर रहा है ।

मानव का स्वार्थ

🚩मानव की अपने हित को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति भी बढ गई है । अपने स्वार्थ के लिए सागर तथा नदी के क्षेत्र पर अतिक्रमण करना, पशुओं की हत्या करना, रासायनिक तथा जैविक शस्त्र बनाना, वायु तथा जल का प्रदूषण करनेवाले केमिकल्स बनाना, ऊर्जा का अतिरिक्त उपयोग करना आदि इसके उदाहरण हैं । इनके कारण भी अनेक आपदाओं का सामना करना पड रहा है । वर्तमानकाल की कोरोना वायरस की महामारी भी इसी का एक उदाहरण है ।

🚩इसी स्वार्थ की प्रवृत्ति के कारण आज सागरतट पर खारे पानी में उगनेवाली तथा तट की प्राकृतिक सुरक्षा करनेवाली मँग्रोव के जंगल काटकर उस जमीन पर अतिक्रमण किया जा रहा है । इससे त्सुनामी के प्रकोप से मानव की सुरक्षा के लिए प्रकृति द्वारा दिया सुरक्षाकवच ही हम नष्ट कर रहे हैं । इसका भयंकर परिणाम हमने सुनामी के समय देखा भी है। https://www.sanatan.org/hindi/how-to-deal-with-coronavirus-spiritually

🚩अभी भी हमारे पास समय है कि हम इस आपदा से बचना है और आगे ऐसी आपदा न आये उसके लिए हमे ईश्वर द्वारा बनाई गई प्रकृति माता की रक्षा करनी होगी, अपना स्वार्थ छोड़ना होगा और  सनातन धर्म के अनुसार बताने वाले साधु-संतों के अनुसार हमरा जीवन का आचरण करना होगा तभी हम इससे बच सकते है दूसरा कोई उपाय काम नही आ सकता।

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Monday, April 27, 2020

सदियों पहले आद्य शंकराचार्य पर भी किये थे अनेक प्रहार जो आप नही जानते होंगे

27 अप्रैल 2020

🚩इस संसार में सज्जनों, सत्पुरुषों और संतों को जितना सहन करना पड़ता है उतना दुष्टों को नहीं। ऐसा मालूम होता है कि इस संसार ने सत्य और सत्त्व को संघर्ष में लाने का मानो ठेका ले रखा है। यदि ऐसा न होता तो मीरा को जहर नही दिया जाता, उड़िया बाबा की हत्या नही की जाती, स्वामी दयानन्द जी को जहर न दिया जाता और लिंकन व कैनेडी की हत्या न होती।

🚩आज भी कई सच्चे महापुरुष है जिन्होनें सनातन संस्कृति की रक्षा करके समाज को जगाने का कार्य किया, लेकिन उनके ऊपर षडयंत्र करके जेल भिजवा दिया गया या हत्या करवा दी।

🚩इस संसार का यह कोई विचित्र रवैया है कि इसका अज्ञान-अँधकार मिटाने के लिए जो अपने आपको जलाकर प्रकाश देता है, संसार की आँधियाँ उस प्रकाश को बुझाने के लिए दौड़ पड़ती हैं। टीका, टिप्पणी, निन्दा, गलत चर्चाएँ और अन्यायी व्यवहार की आँधी चारों ओर से उस पर टूट पड़ती है।

आद्य शंकराचार्यजी

🚩श्रीमद आदि गुरू शंकराचार्य का जन्म केरल के कालडी़ नामक ग्राम में हुआ था। वह अपने ब्राह्मण माता-पिता की एकमात्र सन्तान थे। बचपन में ही उनके पिता का देहान्त हो गया। बचपन का नाम शंकर था,  उनकी रुचि आरम्भ से ही संन्यास की तरफ थी।

🚩जिस समय इस देश में आद्य शंकराचार्यजी का आविर्भाव हुआ था उस समय असामाजिक तत्त्व अनीति, शोषण, भ्रम तथा अनाचार के द्वारा समाज को गलत दिशा में ले जा रहे थें। समाज में फैली इस अव्यवस्था को देखकर बालक शंकर का हृदय काँप उठा। उसने प्रतिज्ञा की कि ‘मैं राष्ट्र के धर्मोद्धार के लिए अपने सुख की तिलांजलि देता हूँ। अपने श्रम और ज्ञान की शक्ति से राष्ट्र की आध्यात्मिक शक्तियों को जागृत करूँगा। चाहे उसके लिए मुझे सारा जीवन साधना में लगाना पड़े, घर छोड़ना पड़े अथवा घोर-से-घोर कष्ट सहने पड़ें, मैं सदैव तैयार रहूँगा।’

🚩बालक शंकर माँ से आज्ञा लेकर चल पड़े अपने संकल्प को साधने। उन्होंने सद्गुरु स्वामी गोविंदपादाचार्यजी से दीक्षा ली। इसके बाद वे साधना एवं वेद-शास्त्रों के गहन अध्ययन से अपने ज्ञान को परिपक्व कर बालक शंकर से जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य बन गये। शंकराचार्यजी अपने गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्त कर देश में वेदांत का प्रचार करने चल पड़े। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण जैसों को भी दुष्टों के उत्पीड़न सहने पड़े तो आचार्य उससे कैसे बच पाते ? शंकराचार्यजी के धर्मकार्य में विधर्मी हर प्रकार से रुकावट डालने का प्रयास करने लगे, कई बार उन पर मर्मांतक प्रहार भी किये गयें।

🚩कपटवेशधारी उग्रभैरव नामक एक दुष्ट व्यक्ति ने आचार्य की हत्या के लिए शिष्यत्व ग्रहण किया। आचार्य को मारने की उसकी साजिश विफल हुई और अंततः वह भगवान नृसिंह के प्रवेश अवतार द्वारा मारा गया।

🚩कर्नाटक में बसनेवाली कापालिक जाति का मुखिया था क्रकच। वह मांस-शराब आदि अनेक दुराचारों में लिप्त था। कर्नाटक की जनता उसके अत्याचारों से त्रस्त थी। आचार्य शंकर के दर्शन, सत्संग एवं सान्निध्य के प्रभाव से लोग कापालिकों द्वारा प्रसारित दुर्गुणों को छोड़ने लगें और शुद्ध, सात्त्विक जीवन की ओर आकृष्ट होने लगें। सैकड़ों कापालिक भी मांस-शराब को छोड़कर शंकराचार्यजी के शिष्य बन गये। इस पर क्रकच घबराया। उसने शंकराचार्यजी का अपमान किया, गालियाँ दीं और वहाँ से भाग जाने को कहा। शंकराचार्यजी ने उसके विरोध की कोई परवाह नहीं की और अपनी संस्कृति का, अपने धर्म का प्रचार-प्रसार निष्ठापूर्वक करते रहे। इस पर क्रकच ने उन्हें मार डालने की धमकी दी। उसने बहुत-से दुष्ट शिष्यों को शराब पिलाकर शंकराचार्यजी को मारने हेतु भेजा। धर्मनिष्ठ राजा सुधन्वा को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी सेना को भेजा और युद्ध में सारे कापालिकों को मार गिराया।

🚩अभिनव गुप्त भी एक ऐसा ही महामूर्ख था जो आचार्य के लोक-जागरण के कार्यों को बंद कराना चाहता था। वह भी अपने शिष्यों सहित आचार्य से पराजित हुआ। वह दुराभिमानी, प्रतिक्रियावादी, ईर्ष्यालु स्वभाव का था। वह आचार्य के प्रति षड्यंत्र करने लगा। दैवयोग से उसे भगंदर का रोग हो गया और कुछ ही दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गयी।

🚩आद्य शंकराचार्यजी का इतना कुप्रचार किया गया कि उनकी माँ के अंतिम संस्कार के लिए उन्हें लकड़ियाँ तक नहीं मिल रही थीं।

🚩आद्य शंकराचार्य जी ने तत्कालीन भारत में व्याप्त धार्मिक कुरीतियों को दूर कर अद्वैत वेदान्त की ज्योति से देश को आलोकित किया। सनातन धर्म की रक्षा हेतु उन्होंने भारत में चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उस पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया।

🚩उन्होंने उत्तर में ज्योतिर्मठ, दक्षिण में श्रृंगेरी, पूर्व में गोवर्धन तथा पश्चिम में शारदा मठ नाम से देश में चार धामों की स्थापना की। 32 साल की अल्पायु में पवित्र केदार नाथ धाम में शरीर त्याग दिया। सारे देश में शंकराचा‍र्य को सम्मान सहित आदि गुरु के नाम से जाना जाता है।

🚩शंकराचार्य के विषय में कहा गया है-
अष्टवर्षेचतुर्वेदी, द्वादशेसर्वशास्त्रवित् षोडशेकृतवान्भाष्यम्द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात्

अर्थात् आठ वर्ष की आयु में चारों वेदों में निष्णात हो गए, बारह वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों में पारंगत, सोलह वर्ष की आयु में शांकरभाष्य लिखा तथा बत्तीस वर्ष की आयु में शरीर त्याग दिया। ब्रह्मसूत्र के ऊपर शांकरभाष्य की रचना कर विश्व को एक सूत्र में बांधने का प्रयास भी शंकराचार्य के द्वारा किया गया है।

🚩इस संसार में ईर्ष्या और द्वेषवश जिसने भी महापुरुषों का अनिष्ट करना चाहा, देर-सवेर दैवी विधान से उन्हीं का अनिष्ट हो जाता है। संतों-महापुरुषों की निंदा करना, उनके दैवी कार्य में विघ्न डालना यानी खुद ही अपने अनिष्ट को आमंत्रित करना है। उग्रभैरव, क्रकच व अभिनव गुप्त का जीवन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

🚩समाज जब किसी ज्ञानी संतपुरुष की शरण तथा सहारा लेने लगता है तब राष्ट्र, धर्म व संस्कृति को नष्ट करने के कुत्सित कार्यों में संलग्न असामाजिक तत्त्वों को अपने षडयन्त्रों का भंडाफोड़ हो जाने का एवं अपना अस्तित्व खतरे में पड़ने का भय होने लगता है, परिणामस्वरूप अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए वे उस दीये को ही बुझाने के लिए नफरत, निन्दा, कुप्रचार, असत्य, अमर्यादित व अनर्गल आक्षेपों व टीका-टिप्पणियों की आँधियों को अपने हाथों में लेकर दौड़ पड़ते हैं, जो समाज में व्याप्त अज्ञानांधकार को नष्ट करने के लिए महापुरुषों द्वारा प्रज्जवलित हुआ था।

🚩ये असामाजिक तत्त्व अपने विभिन्न षडयन्त्रों द्वारा संतों व महापुरुषों के भक्तों व सेवकों को भी गुमराह करने की कुचेष्टा करते हैं। समझदार लोग उनके षडयंत्रजाल में नहीं फँसते, महापुरुषों के दिव्य जीवन के प्रतिपल से परिचित उनके अनुयायी कभी भटकते नहीं, पथ से विचलित होते नहीं अपितु सश्रद्ध होकर उनके निष्काम सेवाकार्यों में अत्यधिक सक्रिय व गतिशील होकर सहभागी हो जाते हैं।

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Sunday, April 26, 2020

अमेरिका के विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने रामायण पढ़ने के लिए छोड दी अंग्रेजी

26 अप्रैल 2020

🚩पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण भले ही आज भारत में भगवान श्री राम और रामायण का महत्व कम समझ पा रहे हैं, लेकिन कई विदेशी बुद्धिजीवी लोगों ने गीता, रामायण आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया और आखिरी सार पर आये कि दुनिया में सबसे श्रेष्ठ हिन्दू धर्म ही है और बाद में उन्होंने हिन्दू धर्म भी अपना लिया।

🚩ऐसे ही अमेरिका के विश्वविद्यालय ऑफ हवॉई के प्राध्यापक रामदास ने बताया कि उन्होंने रामायण सीखने के लिए अंग्रेजी का भी त्याग कर दिया।

🚩जबलपुर : गुरु ने दो वर्ष तक अंग्रेजी न बोलने का संकल्प दिला दिया। फिर हिंदी बोलना सीखा। दो वर्ष तक लगातार अभ्यास किया और हिंदी सीख ली। अब भारत में सभी से हिंदी में ही बात करता हूँ । कुछ समय पहले यह बात चर्चा के दौरान अमेरिका के विश्वविद्यालय ऑफ हवॉई में धर्म विभाग के प्राध्यापक रामदास ने कही।

🚩उन्होंने बताया कि मां काफी गरीब थी, जो दूसरों के घरों में सफाई करने जाया करती थी । वहां से पुस्तकें ले आती थी। एक बार महात्मा गांधी की पुस्तक लेकर आईं, जिसे पढ़कर भारत आने का मन हुआ। लोगों के सहयोग से 20 साल की उम्र में पहली बार भारत आया। दूसरी बार 22 वर्ष की उम्र में भारत आया। उन्होंने बताया कि इसके बाद चित्रकूट में मानस महाआरती त्यागी महाराज के सानिध्य में आया और उनसे दीक्षा ले ली।

अमेरिका में रामलीला करती है स्टार्नफील्ड की टीम

🚩25 साल पहले विश्वविद्यालय में अचानक महर्षि वाल्मीकि का चित्र दिखा, इसमें उन्हें अपने पिता का चेहरा दिखार्इ दिया। उनके बारे में जानकारी एकत्रित की और वाल्मीकि रामायण पढा तभी से रामायण को विस्तृत जानने की प्रेरणा निर्माण हुई। यह बात विश्व रामायण परिषद में शामिल होने आए महर्षि विश्वविद्यालय ऑफ मैनेजमेंट पेयरफिल्ड, लोवा यूएसए के प्रोफसर माइकल स्टार्नफिल्ड ने कही। उन्होंने बताया कि उनकी 400 लोगों की एक टीम है, जिसमें बच्चे, युवा व बुजुर्ग शामिल हैं, जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित रामलीला करते हैं। उनकी ड्रेस भारतीय रामलीला से मिलती जुलती है।

थाईलैंड की प्राथमिक शिक्षा में शामिल है रामायण

🚩बैंकाक के सिल्पाकॉर्न विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्राध्यापक बूंमरूग खाम-ए ने बताया कि थाईलैंड में रामायण, लिटरेचर की तरह स्कूल और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल है। विश्वविद्यालय के खोन (नाट्य) विभाग के छात्र सबसे अधिक रामलीला को पसंद करते हैं। थाईलैंड में रामायण को रामाकेन और रामाकृति बोलते हैं। जो वाल्मीकि रामायण से मिलती जुलती है, किंतु इसमें थाई कल्चर का समावेश है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के अनेक विद्यार्थी रामायण पर पीएचडी कर रहे हैं। इसमें से कुछ वर्ल्ड रामायण कांफ्रेंस में शामिल होने जबलपुर आए हैं।

थाईलैंड की रामायण में हनुमानजी ब्रह्मचारी नहीं

प्राध्यापक बंमरूग खाम-ए ने बताया कि भारत की वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी को ब्रह्मचारी बताया गया है। जबकि थाईलैंड की रामायण (रामाकेन) में हनुमानजी की पत्नी और पुत्र का उल्लेख है।

हम हिंदी प्रेमी हैं

🚩कुछ वर्ष पहले थाईलैंड से आई चारिया धर्माबून हिंदी प्रेमी है। पढ़ाई के दौरान राम के चरित्र से प्रभावित होकर रामायण पर पीएचडी कर रही हैं। उन्होंने अपने इस प्रेम को टीशर्ट पर ‘हम हिंदी प्रेमी हैं’ के रूप में भी लिख रखा है। वर्ल्ड रामायण कांफ्रेंस में शामिल होने उनके साथ सुपापोर्न पलाइलेक, चोनलाफाट्सोर्न बिनिब्राहिम और पिबुल नकवानीच आए हैं। सभी शिल्पाकर्न विश्वविद्यालय से रामायण में पीएचडी कर रहे हैं। पीएचडी करने वाले विद्यार्थी रामायण पर आधारित पैंटिंग और रामलीला भी करते हैं।

भारत के मंदिरों का इतिहास खोज निकाला

🚩अमेरिका के डॉ. स्टीफन कनाप ने बताया कि उन्हें हर विषय की गहराई में जाना अच्छा लगता है। 1973-74 में रामायण के बारे में जानकारी मिली, जिसे पढ़ा और इसकी खोज में भारत आया। यहां रामायण के संबंध में काफी खोज की। अनेक किताबें लिख चुके डॉ. स्टीफन ने बताया कि उन्होंने भारत के मंदिरों के इतिहास की खोज कर उन पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं।

🚩हिन्दू पुराणों और शास्त्रों में इतना गूढ़ रहस्य है कि अगर मनुष्य उसको ठीक से पढ़कर समझे तो सुखी स्वस्थ और सम्मानित  जीवन जी सकता है । इस लोक में तो सुखी रह सकता और परलोक में भी सुखी रह सकता है ।

🚩जिसके जीवन में हिन्दू संस्कृति का ज्ञान नही है उसका जीवन तो धोबी के कुत्ते जैसा है न घर का न घाट का, इस लोक में भी दुःखी चिंतित और परेशान रहता है और परलोक में भी नर्क में जाकर दुःख ही पाता है ।

🚩अतः बुद्धिमान व्यक्ति को समय रहते रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता पढ़कर भारतीय संस्कृति के अनुसार अपने जीवन को ढाल लेना चाहिये।

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Saturday, April 25, 2020

‘कोरोना’ महासंकट क्यों आया और इससे निपटने के लिए क्या उपाय हैं?

25 अप्रैल 2020

🚩आज हम सभी जन ‘कोरोना’ नामक एक महासंकट का सामना कर रहे हैं। गत सदी में पोलिओ, प्लेग, मलेरिया जैसी भयंकर महामारी के कारण लाखों लोगों की मृत्यु हुई थी, ऐसा हमने केवल सुना था। उसके उपरांत शास्त्रज्ञों ने विभिन्न शोध कर उन पर टीका, दवाईयां खोज कर निकाली। इससे इन महामारीयों का उपाय भी मिला। विज्ञान की प्रगति की यह कहानियां सुनने के पश्‍चात सभी की ऐसी मानसिकता ही बन गई थी कि अब भविष्य में ऐसी स्थिति का निर्माण ही नहीं हो सकता। उसके साथ मानवी बुद्धि और प्रभुत्व के अहंकार के कारण हमे देवता-धर्म यह संकल्पना पिछडी, अंधश्रद्धा लगने लगी। ऐसे समय ही प्रकृति मानव को उसकी मर्यादा का भान करवाती है।

🚩अनेक संत-महापुरुष सतत स्वार्थ त्यागकर धर्म के मार्ग पर चलने का आह्वान कर रहे है, अन्यथा आगामी काल मे नैसर्गिक आपत्तियां तथा महामारी जैसा संकट आने की पूर्वसूचना वो दे रहे थे। हम सभी ने उनकी ओर ध्यान ही नहीं दिया। आज प्रत्यक्ष में ‘कोरोना’ (कोविड-१९) नामक एक वायरस के कारण मानव ने की हुई प्रगति, विज्ञान की आधुनिकता के अहंकार के चिथडे उड गए हैं।

🚩मानव द्वारा ही निर्मित इस आपत्ति के कारण आधुनिक हवाई जहाज भूमि पर उतर आए हैं, बुलेट ट्रेनें यार्ड में खडी हैं, कारें-बसें बंद हैं और इनका निर्माण करनेवाला मानव आज अपने ही घर में कैद हो बैठा है। इस वायरस का संसर्ग न हो इसलिए वह सारे प्रयास कर रहा है, क्योंकि आज के दिन तक तो इस भयंकर महामारी पर आधुनिक विज्ञान के पास भी कोई दवाई उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रकृति में विद्यमान दैवी शक्ति की शरण जाने के सिवाय हम मानवों के पास अन्य कोई पर्याय भी तो नहीं है।

🚩यह प्रकृति ईश्‍वर निर्मित माया है तथा उसका निर्माता ईश्‍वर, विश्‍व का चालक है। यद्यपि हम ईश्‍वर और प्रकृति को भिन्न मानते हैं, पर धर्म के अनुसार ईश्‍वर और प्रकृति एक ही है। इसलिए विश्‍व का यह संकट दूर होने के लिए हम सामान्य जन उस सर्वशक्तिमान ईश्‍वर की शरण तो निश्‍चितरूप से जा सकते हैं। ईश्‍वर सूक्ष्म, अर्थात आखों से दिखाई न पडनेवाला होने के कारण उसे हमसे नारियल, फूल, मिठाई, धन ऐसे किसी चीज की अपेक्षा नहीं होती। वह तो चाहता है कि हम अपने जीवन को जन्म-मृत्यु के फेर से मुक्त होने के लिए प्रयास करें ।

मनुष्य के स्वभाव में छुपा है, आपत्तियों का कारण !

🚩आज विश्‍व की आपत्तियों का कारण कहीं न कहीं हमारे अनुचित व्यवहार का यह परिणाम है। लोग पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों का बिना सोचे-समझे दुरुपयोग करते हैं। अनेकों को पता होते हुए भी वो अनुचित व्यवहार करते हैं, इसलिए कि उनका अहंकार और स्वार्थ उनको समाज का विचार नहीं करने देता। तीव्र अहंकार तथा स्वार्थी वृत्ति होने से, वें प्रकृति, मनुष्य तथा अन्य जीवों को कष्ट देकर अधिकतर समय केवल अपने लिए ही सुख जुटाने में लगे रहते हैं। सरकार कितना भी प्रयास करे, कानून बना ले, परंतु जब तक वह स्वयं अपने समाज ऋण को नहीं पहचानेगा, तब तक परिवर्तन असंभव है।

🚩समाज में चुनिंदा लोग ही प्रकृति और समाज का विचार करते हैं। यदि उनके जीवन में हम झांककर देखें, तो वें धर्माचरण करनेवाले, दयालु स्वभाव के और सभी के प्रति प्रेम रखनवाले हैं। उनके व्यवहार में व्यापकता है। उनका आचरण हम सबको लोककल्याण करने की प्रेरणा देता है। उन्हें अधर्म का परिणाम पता है। कानून के दंड से भी अधिक प्रभावी है, व्यक्ति का आत्मसंयम ! जो केवल धर्म को समझने से और उसको जीवन में उतारने से आ सकता है।


🚩कोरोना महामारी से हम बच जाए और आगे ऐसी आपदाएं न आये इसलिए हमें महापुरुषों द्वारा बताये गये सनातन धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए और ईश्वर की उपासना करनी चाहिए तभी हम ऐसी आपदाओं से बच सकते है नही तो आने वाले समय मे भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

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