Friday, May 1, 2020

तमिलनाडु सरकार का आदेश : मस्जिदों को 5450 टन फ्री चावल, मंदिर दे 10 करोड़ !

01 मई 2020

🚩हिंदुओं के मंदिर और उनकी सम्पदाओं को नियंत्रित करने के उद्देश से सन 1951 में एक कायदा बना – “The Hindu Religious and Charitable Endowment Act 1951” इस कायदे के अंतर्गत राज्य सरकारों को मंदिरों की मालमत्ता का पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है, जिसके अंतर्गत वे मंदिरों की जमीन, धन आदि मुल्यमान सामग्री को कभी भी कैसे भी बेच सकते हैं और जैसे भी चाहे उसका उपयोग कर सकते हैं। मंदिरों के पैसे से सरकारे हिंदुओं का ही दमन कर रही हैं।

🚩तमिलनाडु सरकार ने 47 मंदिरों को CM राहत कोष में 10 करोड़ रुपए देने का आदेश दिया है। इसके विपरीत राज्य सरकार ने 16 अप्रैल को रमजान के महीने में प्रदेश की 2,895 मस्जिदों को 5,450 टन मुफ्त चावल वितर‌ित करने आदेश दिया था, ताकि रोजेदारों को परेशानी ना हो। वास्तव में मदिरों को ऐसा आदेश देने के पीछे तमिलनाडु सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति जिम्मेदार है।
ऐसे समय में, जब मंदिर प्रशासन को सरकार के चंगुल से मुक्त कराने के लिए संघर्ष तेज हो रहा है, तमिलनाडु सरकार के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (HR and CE) ने 47 मंदिरों को गरीबों की देखभाल करने के लिए निर्धारित राशि के अलावा CM राहत कोष में 10 करोड़ रुपए अतिरिक्त देने का निर्देश दिया है।

🚩भाजपा ने लगाईं मंदिरों में भोजन करवाने की स्वीकृति की गुहार

🚩भाजपा की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष एल मुरुगन ने शनिवार को अन्नाद्रमुक सरकार से गरीबों और साधुओं को भोजन कराने के लिए राज्य में हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के रखरखाव वाले मंदिरों में अन्नदान (भूखों को भोजन परोसना) फिर से शुरू करने का आग्रह किया। मुरुगन ने कहा कि सरकार ने मुस्लिम समुदाय के लोगों की दलीलों का सम्मान किया है और रमज़ान के खाने के लिए मुफ्त चावल आवंटित किया है। तमिलनाडु सरकार के इस निर्देश की आलोचना की मुख्य वजह यह भी है कि इस प्रकार का निर्देश इसाई और मुस्लिम संस्थानों को नहीं दिया गया है, जिन्हें सालाना सरकारी अनुदान प्राप्त होते रहते हैं। इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने रमजान के महीने में मस्जिदों में मुफ्त चावल वित‌रित करने के तमिलनाडु सरकार के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया था। इसके लिए पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के उस बयान को नजीर बनाया जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि सरकार किसी भी समुदाय को तीर्थयात्रा के लिए मदद देने के विचार के ‌विरोध में नहीं है। उदाहरण के लिए सरकार द्वारा कुंभ का खर्च वहन करने और भारतीय नागरिकों को मानसरोवर तीर्थ यात्रा में मदद का जिक्र किया था। हालाँकि पीठ ने यह जिक्र नहीं किया कि कोरोना के दौरान बंद मंदिर ऐसी स्थिति में सरकार के फैसले का क्या करें?

HR और CE के नियंत्रण में हैं राज्य के 47 मंदिर

🚩HR और CE के प्रधान सचिव के पनिंद्र रेड्डी ने मदुरै, पलानी, थिरुचेंदुर, तिरुतनी, तिरुवन्नमलई, रामेश्वरम, मयलापुर सहित 47 मंदिरों में उनके अधीन काम करने वाले सभी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे लॉकडाउन के कारण गरीबों को भोजन खिलाने की दिशा में सरप्लस फंड से 35 लाख रुपए का योगदान दें। अन्य मंदिरों को 15 लाख रुपए से 25 लाख रूपए तक की राशि देने के लिए निर्देशित किया गया है। सभी 47 मंदिरों को दस करोड़ के अधिशेष कोष को सीएम कोरोना रिलीफ फंड में स्थानांतरित करना है। उल्लेखनीय है कि HR और CE तमिलनाडु में 36,612 मंदिरों का प्रबंधन करते हैं। ये संपन्न मंदिर अपने अधिशेष कोष से संरक्षण/ नवीकरण/बहाली करते हैं। लाखों पुजारी पूर्ण रूप से श्रद्दालुओं के दान पर निर्भर रहते हैं। कोरोना महामारी और देशव्यापी बंद के कारण अब वे असहाय हो चुके हैं और भुखमरी का सामना कर रहे हैं। इस पर तमिलनाडु राज्य सरकार ने उनकी मदद करने के बजाए अपनी तुष्टिकरण की राजनीति को साधने के लिए हिंदू मंदिरों की संपत्ति को निशाना बनाया है।

🚩मुस्लिमों में रमजान के पर्व की शुरुआत में ही, तमिलनाडु राज्य सरकार ने मुसलमानों को एक बड़ा लाभ देने की घोषणा की थी। दिवंगत सीएम जयललिता ने मुस्लिमों के दिलों और वोटों को जीतने के लिए इसे शुरू किया था। तमिलनाडु सरकार ने घोषणा की थी कि इस साल दलिया तैयार करने के लिए 2,895 मस्जिदों को 5,450 टन चावल दिया जाएगा, जो कि साधारण गणना के अनुसार 2,1,80,00,000 रुपए निकल आती है।

मुस्लिमों की तरह हिन्दुओं को नहीं मिलता है त्योहारों में कुछ भी

🚩जबकि इसी प्रकार की कोई मदद या योजना चित्रा और अनादि महीनों के दौरान हिंदुओं के ग्राम देवताओं को प्रसाद तैयार करने के लिए नहीं दी जाती हैं। सभी लोग इस बात को जानते हैं कि लॉकडाउन के कारण मंदिरों में उत्सव रद्द कर दिए गए हैं लेकिन ऐसा लगता है कि हिंदू मंदिर के पैसे की कीमत पर मुसलमानों का तुष्टिकरण सरकार के लिए महत्वपूर्ण है। वर्तमान तमिलनाडु सरकार की नीति से लगता है कि वह हिंदू मंदिरों को पूरी तरह से निचोड़ने का प्रयत्न कर रही है। तमिलनाडु सरकार हिंदुओं के मंदिरों से हंडी संग्रह, प्रसाद, विभिन्न दर्शन टिकट, विशेष कार्यक्रम शुल्क, आदि के माध्यम से प्रतिवर्ष 3000 करोड़ रुपए से अधिक वसूल करती है, जबकि केवल 4-6 करोड़ रुपए रखरखाव के लिए दिए जाते हैं। बाकी 2,995 करोड़ रुपए सरकार के पास रहते हैं।

🚩वहीं, श्रीविल्लिपुथुर वैष्णवित मठ प्रमुख सदगोपा रामानुज जियार ने तमिलनाडु सरकार से मंदिर के पैसे को पुजारी और सेवकों को देने के लिए खर्च करने का आग्रह किया है। पुथिया तमीजगम के प्रमुख डॉ. कृष्णस्वामी ने सीएम से मंदिरों से प्राप्त 10 करोड़ रुपए की राशि वापस करने की अपील की है।

🚩केंद्र सरकार को चाहिए कि इसमे बदलाव करें, मंदिरों के पैसे किसी भी धर्म को नही देने चाहिए और राज्य सरकार का नियंत्रण उसपर से हट जाना चाहिए।

🚩राज्य सरकार को चाहिए की मंदिरों के पैसे का उपयोग सिर्फ हिंदू संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए ही करना चाहिए जैसे कि वैदिक गुरुकुल, आर्युवेदिक हॉस्पिटल, मंदिर निर्माण, हिंदू धर्म ग्रँथ, मीडिया में हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार, गरीब हिंदुओं की सहायता, अन्नक्षेत्र, साधु-संतों को पगार आदि के लिए उपयोग करना चाहिए अगर ऐसा नही कर सकते है तो सरकार को अपना नियंत्रण हटा देना चाहिए खुद हिंदू अपने मंदिर संभाल लेंगे।

🚩हिंदू भी जिस मंदिर में अपना दान देते हैं उनके संचालकों से हिंदू धर्म के लिए पैसे उपयोग करने के लिए बताएं।

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Thursday, April 30, 2020

आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो वैश्‍विक संकट क्यों आता है? क्या इससे हम बच सकते हैं?

30 अप्रैल 2020

🚩कोरोना जैसी महामारी हो अथवा अन्य नैसर्गिक आपदा, हर कोई अपने ढंग से उसका कारण ढूंढता है। जैसे वैज्ञानिक हो, तो वह अपना तर्क बताते हैं कि यह आपदा क्यों आई और इसका परिणाम क्या होगा? जबकि पत्रकार अपना तर्क लगाते हैं। पर हमें आपदा का आध्यात्मिक परिपेक्ष्य देखना है। इसलिए कि बिना आध्यात्मिक परिपेक्ष्य समझे हम आपदाओं को समझ नहीं पाएंगे।

▪️आध्यात्मिक परिपेक्ष्य की विशेषता!

🚩क्योंकि सृष्टि का संचालन किसी सरकार या आर्थिक महासत्ता द्वारा नहीं होता। सृष्टि का संचालन परमात्मा द्वारा होता है। इस संचालन का विज्ञान यदि हम नहीं समझेंगे, तो वैश्‍विक संकट को और उसके समाधान को कैसे समझ पाएंगे? हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे धर्मग्रंथों में सृष्टि तथा उसके संचालन के विषय में स्थूल अध्ययन के साथ-साथ सूक्ष्म की भी स्पष्ट जानकारी दी गयी है।

🚩कौशिकपद्धति नामक ग्रंथ में आपातकाल के कारण का वर्णन है।

अतिवृष्टिः अनावृष्टिः शलभा मूषकाः शुकाः।
स्वचक्रं परचक्रं च सप्तैता ईतयः स्मृताः॥
इस श्‍लोक का अर्थ इस प्रकार है। राज्यकर्ता तथा प्रजा के धर्मपालन न करने से अतिवृष्टि, अनावृष्टि (अकाल), टिड्डियों का आक्रमण, चूहों अथवा तोतों (पोपट) का उपद्रव, एक-दूसरे में लडाइयां और शत्रु का आक्रमण, इस प्रकार के सात संकट राष्ट्र पर आते हैं।

🚩तात्पर्य : प्रजा एवं राजा, दोनों को धर्मपालन एवं साधना करनी चाहिए। तब ही आपातकाल की तीव्रता अल्प होकर आपातकाल सुसह्य होगा।

आध्यात्मिक परिपेक्ष्य के कुछ पहलु समझ लेते हैं।

▪️युगों का कालचक्र

🚩हमारे शास्त्रों में सतयुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और कलियुग, ऐसे चार युगों का स्पष्ट उल्लेख है। वर्तमान में कलियुग के अंतर्गत चल रहे पांचवें कलियुग के अंत का समय है। इसके बाद कलियुग के अंतर्गत एक छोटा सा सतयुग आएगा। अभी का समय छोटे कलियुग के अंत का है। कल्कि अवतार के समय के कलियुग का नहीं । वैसे कलियुग 432000 हजार वर्ष का होता है अभी करीब 5500 वर्ष हुए है इसलिए अभी चल रहे कलयुग में परिवर्तन आएगा फिर से सतयुग जैसा दिखाई देगा।

▪️उत्पत्ति, स्थिति एवं लय, यह कालचक्र का नियम

🚩युगपरिवर्तन, यह ईश्‍वरनिर्मित प्रकृति का एक नियम है। जो भी वस्तु उत्पन्न होती है, वह कुछ समय तक रहकर अंत में नष्ट हो जाती है। इसे उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का नियम कहते है। उदाहरण के रूप में, हिमालय पर्वत श्रृंखला की उत्पत्ति हुई, वह कुछ काल तक रहेगी और अंत में नष्ट हो जाएगी। इस का अर्थ यह है कि जब इस विश्‍व में किसी वस्तु की उत्पत्ति होती है, कुछ काल तक रहने के पश्‍चात वह अवश्य नष्ट होगी। केवल निर्माता अर्थात ईश्‍वर ही चिरंतन एवं अपरिवर्तनीय है।

🚩इस नियम के अनुसार अभी का समय कालचक्र में एक परिवर्तन का समय है। अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आपत्तियों से प्रकृति अपना संतुलन बना रही है।

🚩इसमें समझना होगा कि आपत्तियों से जो नष्ट हो रहा है उसके अनेक मार्ग हैं, इसमें एक मार्ग है प्राकृतिक आपदाएं। नाश की इस प्रक्रिया में मानवजाति भी व्यवहार एवं आचरण द्वारा अपना योगदान देती है, जो युद्ध के रूप में सर्वनाश लाता है। इसकी मात्रा 70% होती है।

🚩इसमें, उत्पत्ति-स्थिति-लय (विनाश) इस कालचक्र के नियमानुसार रजोगुणी और तमोगुणी (पापी) लोगों की सबसे अधिक प्राणहानि होगी। इससे, वातावरण की एक प्रकार से शुद्धि ही होती है। इस काल का उल्लेख अनेक भविष्यवेत्ताआें ने भी अपनी भविष्यवाणियों में किया है।

▪️मनुष्य के कर्म तथा समष्टि प्रारब्ध!

🚩वर्तमान कलियुग में मनुष्य का 65 प्रतिशत जीवन प्रारब्ध के अनुसार और 35 प्रतिशत क्रियमाण कर्म के अनुसार होता है। 35 प्रतिशत क्रियमाण द्वारा हुए अच्छे-बुरे कर्मों का फल प्रारब्ध (भाग्य) के रूप में उसे भोगना पडता है। वर्तमान में धर्मशिक्षा और धर्माचरण के अभाव में समाज के अधिकांश लोगों से स्वार्थ या बढते तमोगुण के कारण समाज, राष्ट्र और धर्म की हानि हो रही है। यह गलत कर्म संपूर्ण समाज को भुगतने पडते हैं, क्योंकि समाज उसकी ओर अनदेखी करता है। इसी प्रकार, समष्टि के बुरे कर्मों का फल भी उसे प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सहना पडता है। जैसे आग में सूखे के साथ गीला भी जल जाता है। उसी प्रकार यह है।

🚩इसके साथ ही समाज, धर्म और राष्ट्र का भी समष्टि प्रारब्ध होता है। 2023 तक के कालखंड में मनुष्यजाति को कठिन समष्टि प्रारब्ध भोगना पड सकता है।

▪️प्रकृति कैसे कार्य करती है?

🚩जिस प्रकार धूल तथा धुएं से स्थूल स्तर पर प्रदूषण होता है, उसी प्रकार बुद्धि अगम्य सूक्ष्म स्तर पर रज-तम का प्रदूषण होता है। समाज में सर्वत्र फैले अधर्म एवं साधना के अभाव के कारण मानव में रज-तम बढ जाने से वातावरण में भी रज-तम बढ गया है। इससे प्रकृति का ध्यान भी नहीं रखा जा रहा है।

🚩रज-तम बढने का अर्थ है, सूक्ष्म स्तर पर पूरे विश्‍व में बुद्धि अगम्य आध्यात्मिक प्रदूषण होना। जिस प्रकार हम जिस घर में रहते हैं, वहां की धूल-गंदगी समय-समय पर स्थूलरूप में निकालते रहते हैं, उसी प्रकार प्रकृति भी सूक्ष्म स्तर पर वातावरण में रज-तम के प्रदूषण को हटाने एवं स्वच्छ करने के लिए प्रतिसाद देती है।

🚩वास्तविकता यह है कि जब वातावरण में रज-तम का पलडा भारी होता है, तब यह अतिरिक्त रज-तम मूलभूत पांच वैश्‍विक तत्त्वों के माध्यम से (पंचमहाभूत) प्रभाव डालता है। इन पंचमहाभूतों के माध्यम से यह भूकंप, बाढ, ज्वालामुखी, चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि करता है।

🚩मूलभूत पृथ्वीतत्त्व प्रभावित होने से उसकी परिणति भूकंप में होती है। मूलभूत आपतत्त्व प्रभावित होने से पानी में वृद्धि (बाढ आना अथवा अतिरिक्त हिमवर्षा होकर हिमयुग आना) अथवा न्यूनता (उदा. अकाल) होती है।


🚩महाभारत के युद्ध समय भी देखा गया था कि कौरव की लाखों सेना मर गई थी पर 5 पांडव और धर्म का साथ देने वाले जीवित रहे थे इससे साफ होता है कि सनातन धर्म के अनुसार और साधु-संतों के बताए अनुसार अपना जीवन बनाया जाए और जीवन मे सत्वगुण बढ़ाया जाए तो इन आपदाओं से उनकी रक्षा होगी।


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Wednesday, April 29, 2020

जानिए रहस्य माँ गंगा की उत्पति कैसे हुई और पृथ्वी पर कैसे आई?

29 अप्रैल 2020

🚩गंगा नदी उत्तर भारत की केवल जीवनरेखा नहीं, अपितु हिंदू धर्म का सर्वोत्तम तीर्थ है। ‘आर्य सनातन वैदिक संस्कृति’ गंगा के तट पर विकसित हुई, इसलिए गंगा हिंदुस्तान की राष्ट्ररूपी अस्मिता है एवं भारतीय संस्कृति का मूलाधार है। इस कलियुग में श्रद्धालुओं के पाप-ताप नष्ट हों, इसलिए ईश्वर ने उन्हें इस धरा पर भेजा है। वे प्रकृति का बहता जल नहीं; अपितु सुरसरिता (देवनदी) हैं। उनके प्रति हिंदुओं की आस्था गौरीशंकर की भांति सर्वोच्च है। गंगाजी मोक्षदायिनी हैं इसीलिए उन्हें गौरवान्वित करते हुए पद्मपुराण में (खण्ड ५, अध्याय ६०, श्लोक ३९) कहा गया है, ‘सहज उपलब्ध एवं मोक्षदायिनी गंगाजी के रहते विपुल धनराशि व्यय (खर्च) करनेवाले यज्ञ एवं कठिन तपस्या का क्या लाभ ?’ नारदपुराण में तो कहा गया है, ‘अष्टांग योग, तप एवं यज्ञ, इन सबकी अपेक्षा गंगाजी का निवास उत्तम है । गंगाजी भारत की पवित्रता का सर्वश्रेष्ठ केंद्र बिंदु हैं, उनकी महिमा अवर्णनीय है।’

मां गंगाजी की ब्रह्मांड में उत्पत्ति:-

🚩‘वामनावतार में श्री विष्णु ने दानवीर बलीराजा से भिक्षा के रूप में तीन पग भूमि का दान मांगा। राजा बलि इस बात से अनभिज्ञ थे कि स्वयं भगवान श्री विष्णु ही वामन के रूप में आए हैं, राजा ने उसी क्षण भगवान वामन को तीन पग भूमि दान की। भगवान वामन ने विराट रूप धारण कर पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी तथा दूसरे पग में अंतरिक्ष व्याप लिया। दूसरा पग उठाते समय वामन के (श्रीविष्णु के) बाएं पैर के अंगूठे के धक्के से ब्रह्मांड का सूक्ष्म-जलीय कवच टूट गया। उस छिद्र से गर्भोदक की भांति ‘ब्रह्मांड के बाहर के सूक्ष्म-जल ने ब्रह्मांड में प्रवेश किया। यह सूक्ष्म-जल ही गंगा है। गंगाजी का यह प्रवाह सर्वप्रथम सत्यलोक में गया।ब्रह्मदेव ने उसे अपने कमंडलु में धारण किया। तदुपरांत सत्यलोक में ब्रह्माजी ने अपने कमंडलु के जल से श्रीविष्णु के चरणकमल धोए। उस जल से गंगाजी की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात गंगाजी की यात्रा सत्यलोक से क्रमशः तपोलोक, जनलोक, महर्लोक, इस मार्ग से स्वर्गलोक तक हुई। जिस दिन गंगाजी की उत्पत्ति हुई वह दिन ‘गंगा जयंती’ (वैशाख शुक्ल सप्तमी है) इन दिनों में गंगाजी में गोता मारने से विशेष सात्विकता, प्रसन्नता और पुण्यलाभ होता है।

पृथ्वी पर गंगाजी की उत्पत्ति:

🚩सूर्यवंश के राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ आरंभ किया। उन्हों ने दिग्विजय के लिए यज्ञीय अश्व भेजा एवं अपने 60 सहस्त्र (हजार) पुत्रों को भी उस अश्व की रक्षा हेतु भेजा। इस यज्ञ से भयभीत इंद्रदेव ने यज्ञीय अश्व को कपिल मुनि के आश्रम के निकट बांध दिया। जब सगर पुत्रों को वह अश्व कपिल मुनि के आश्रम के निकट प्राप्त हुआ, तब उन्हें लगा, ‘कपिलमुनि ने ही अश्व चुराया है’। इसलिए सगर पुत्रों ने ध्यानस्थ कपिल मुनि पर आक्रमण करने की सोची । कपिलमुनि को अंतर्ज्ञान से यह बात ज्ञात हो गई तथा अपने नेत्र खोले। उसी क्षण उनके नेत्रों से प्रक्षेपित तेज से सभी सगर पुत्र भस्म हो गए। कुछ समय पश्चात सगर के प्रपौत्र राजा अंशुमन ने सगर पुत्रों की मृत्यु का कारण खोजा एवं उनके उद्धार का मार्ग पूछा। कपिल मुनि ने अंशुमन से कहा, "गंगाजी को स्वर्ग से भूतल पर लाना होगा। सगर पुत्रों की अस्थियों पर जब गंगाजल प्रवाहित होगा, तभी उनका उद्धार होगा !’’ मुनिवर के बताए अनुसार गंगा को पृथ्वी पर लाने हेतु अंशुमन ने तप आरंभ किया। अंशुमन की मृत्यु के पश्चात उसके सुपुत्र राजा दिलीप ने भी गंगावतरण के लिए तपस्या की। अंशुमन एवं दिलीप के हजार वर्ष तप करने पर भी गंगावतरण नहीं हुआ, परंतु तपस्या के कारण उन दोनों को स्वर्ग लोक प्राप्त हुआ। (वाल्मीकि रामायण, काण्ड १, अध्याय ४१, २०-२१)

🚩‘राजा दिलीप की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर गंगामाता ने राजा भगीरथ से कहा, ‘‘मेरे इस प्रचंड प्रवाह को सहना पृथ्वी के लिए कठिन होगा। अतः तुम भगवान शंकर को प्रसन्न करो।’’ आगे भगीरथ की घोर तपस्या से शंकर प्रसन्न हुए तथा भगवान शंकर ने गंगाजी के प्रवाह को जटा में धारण कर उसे पृथ्वी पर छोडा। इस प्रकार हिमालय में अवतीर्ण गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे हरिद्वार, प्रयाग आदि स्थानों को पवित्र करते हुए बंगाल के उपसागर में (खाडी में) लुप्त हुईं।’

🚩बता दे कि जिस दिन गंगाजी की उत्पत्ति हुई वह दिन ‘गंगा जयंती’ (वैशाख शुक्ल सप्तमी) हैं और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुईं वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी ) के नाम से जाना जाता है।

🚩जगद्गुरु आद्य शंकराचार्यजी, जिन्होंने कहा है : एको ब्रह्म द्वितियोनास्ति । द्वितियाद्वैत भयं भवति ।। उन्होंने भी ‘गंगाष्टक’ लिखा है, गंगा की महिमा गायी है। रामानुजाचार्य, रामानंद स्वामी, चैतन्य महाप्रभु और स्वामी रामतीर्थ ने भी गंगाजी की बड़ी महिमा गायी है। कई साधु-संतों, अवधूत-मंडलेश्वरों और जती-जोगियों ने गंगा माता की कृपा का अनुभव किया है, कर रहे हैं तथा बाद में भी करते रहेंगे।

🚩अब तो विश्व के वैज्ञानिक भी गंगाजल का परीक्षण कर दाँतों तले उँगली दबा रहे हैं! उन्होंने दुनिया की तमाम नदियों के जल का परीक्षण किया परंतु गंगाजल में रोगाणुओं को नष्ट करने तथा आनंद और सात्त्विकता देने का जो अद्भुत गुण है, उसे देखकर वे भी आश्चर्यचकित हो उठे।

🚩हृषिकेश में स्वास्थ्य-अधिकारियों ने पुछवाया कि यहाँ से हैजे की कोई खबर नहीं आती, क्या कारण है ? उनको बताया गया कि यहाँ यदि किसीको हैजा हो जाता है तो उसको गंगाजल पिलाते हैं। इससे उसे दस्त होने लगते हैं तथा हैजे के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और वह स्वस्थ हो जाता है। वैसे तो हैजे के समय घोषणा कर दी जाती है कि पानी उबालकर ही पियें। किंतु गंगाजल के पान से तो यह रोग मिट जाता है और केवल हैजे का रोग ही मिटता है ऐसी बात नहीं है, अन्य कई रोग भी मिट जाते हैं। तीव्र व दृढ़ श्रद्धा-भक्ति हो तो गंगास्नान व गंगाजल के पान से जन्म-मरण का रोग भी मिट सकता है।

🚩सन् 1947 में जलतत्त्व विशेषज्ञ कोहीमान भारत आया था। उसने वाराणसी से गंगाजल लिया। उस पर अनेक परीक्षण करके उसने विस्तृत लेख लिखा, जिसका सार है - ‘इस जल में कीटाणु-रोगाणुनाशक विलक्षण शक्ति है।’

🚩दुनिया की तमाम नदियों के जल का विश्लेषण करनेवाले बर्लिन के डॉ. जे. ओ. लीवर ने सन् 1924 में ही गंगाजल को विश्व का सर्वाधिक स्वच्छ और कीटाणु-रोगाणुनाशक जल घोषित कर दिया था।

🚩‘आइने अकबरी’ में लिखा है कि ‘अकबर गंगाजल मँगवाकर आदर सहित उसका पान करते थे। वे गंगाजल को अमृत मानते थे।’ औरंगजेब और मुहम्मद तुगलक भी गंगाजल का पान करते थे। शाहनवर के नवाब केवल गंगाजल ही पिया करते थे।

🚩कलकत्ता के हुगली जिले में पहुँचते-पहुँचते तो बहुत सारी नदियाँ, झरने और नाले गंगाजी में मिल चुके होते हैं। अंग्रेज यह देखकर हैरान रह गये कि हुगली जिले से भरा हुआ गंगाजल दरियाई मार्ग से यूरोप ले जाया जाता है तो भी कई-कई दिनों तक वह बिगड़ता नहीं है। जबकि यूरोप की कई बर्फीली नदियों का पानी हिन्दुस्तान लेकर आने तक खराब हो जाता है।

🚩अभी रुड़की विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक कहते हैं कि ‘गंगाजल में जीवाणुनाशक और हैजे के कीटाणुनाशक तत्त्व विद्यमान हैं।’

🚩फ्रांसीसी चिकित्सक हेरल ने देखा कि गंगाजल से कई रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। फिर उसने गंगाजल को कीटाणुनाशक औषधि मानकर उसके इंजेक्शन बनाये और जिस रोग में उसे समझ न आता था कि इस रोग का कारण कौन-से कीटाणु हैं, उसमें गंगाजल के वे इंजेक्शन रोगियों को दिये तो उन्हें लाभ होने लगा!

🚩संत तुलसीदासजी कहते हैं : गंग सकल मुद मंगल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला।। (श्रीरामचरित. अयो. कां. : 86.2)

🚩सभी सुखों को देनेवाली और सभी शोक व दुःखों को हरनेवाली माँ गंगा के तट पर स्थित तीर्थों में पाँच तीर्थ विशेष आनंद-उल्लास का अनुभव कराते हैं : गंगोत्री, हर की पौड़ी (हरिद्वार), प्रयागराज त्रिवेणी, काशी और गंगासागर। गंगा दशहरे के दिन गंगा में गोता मारने से सात्त्विकता, प्रसन्नता और विशेष पुण्यलाभ होता है।


🚩गंगाजी की वंदना करते हुए कहा गया है :
संसारविषनाशिन्यै जीवनायै नमोऽस्तु ते । तापत्रितयसंहन्त्र्यै प्राणेश्यै ते नमो नमः ।।
‘देवी गंगे ! आप संसाररूपी विष का नाश करनेवाली हैं। आप जीवनरूपा हैं। आप आधिभौतिक,आधिदैविक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार के तापों का संहार करनेवाली तथा प्राणों की स्वामिनी हैं। आपको बार-बार नमस्कार है।’

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