Sunday, July 5, 2020

भारतीय सेना की वीरता : जब भी विदेशी जमीन पर उतरी है, नया देश बनाया है…

05 जुलाई 2020

🚩कुछ दिनों पहले किसी ने याद दिलाया था कि भौकाल का भी अपना महत्व है। ये कोरोना को लेकर दो देशों की तुलना थी, जिसमें दोनों का काम तो एक ही जैसा था, मगर एक देश ऐसा था जहाँ के लोग अपनी कामयाबी का जोर शोर से ढिंढोरा पीटते थे। दूसरे देश के लोग जरा कम बोलने वाले थे और उतना शोर नहीं मचाते थे। इसका नतीजा ये भी था कि एक देश के लोग अक्सर कंपनियों में सीईओ या ऐसे ऊँचे पदों पर दिखते, मगर जो कम बोलने वाले थे उनका दबदबा उतना नहीं दिखता था। ऐसा भारत के साथ भी होता है। आज जिस देश को इजराइल के नाम से जाना जाता है, उसके बनने में भारत का बड़ा योगदान है।

🚩भारतीय घुड़सवार सैनिकों की मैसूर, हैदराबाद, और जोधपुर के घुड़सवारों की टुकड़ियों ने 1918 में हाइफा पर विजय का परचम फहराया था। उस दौर में ये आखिरी इस्लामिक खलीफा माने जाने वाले ओटोमन साम्राज्य का हिस्सा था। उनसे अगर ये इलाका छुड़ाया नहीं गया होता तो इजराइल कभी बनता ही नहीं। इस युद्ध में शौर्य के लिए कैप्टेन अमन सिंह बहादुर और वफादार जोर सिंह को इंडियन आर्डर ऑफ़ मेरिट, कैप्टेन अनूप सिंह और सेकंड लेफ्टिनेंट सगत सिंह को मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया था। इस युद्ध में मेजर दलपत सिंह को भी उनकी वीरता के लिए मिलिट्री क्रॉस मिला था।

🚩इस एक युद्ध के लिए भारतीय सेना अभी भी 23 सितंबर को हाइफा दिवस मनाती है। सिर्फ इस एक युद्ध में ही नहीं बल्कि शायद जितनी बार भारतीय सैनिक युद्धों में उतरे हैं, करीब-करीब हर बार दुनिया के नक़्शे पर एक नया देश उभरकर सामने आ गया है। अफ़सोस कि इनके बारे में याद दिलाने के बदले हम बताते क्या हैं? भारत तो गाँधी का देश है जी! ये तो बुद्ध की भूमि है जी! इसका नतीजा ये होता है कि जिन्हें भारतीय सेना के युद्ध में उतरने से आतंकित होना चाहिए, वो बेचारे मासूम ये मान लेते हैं कि इन्हें थप्पड़ मार दो तो ये तो दूसरा गाल आगे कर देंगे! जाहिर है ऐसे में बेचारे दुस्साहस कर भी बैठते हैं।

🚩बीते दो चार दिनों में भारत-चीन विवाद के साथ ही कई चीज़ें बदल गई हैं। फ्राँस ने सीधे-सीधे सैन्य समर्थन देने की ही बात कर दी है। ऐसा माना जाता है कि इससे पहले विदेशी जमीन पर लड़ने के लिए वो मक्का पर कब्जे के वक्त उतरे थे। हालाँकि, आधिकारिक स्रोत इसकी पुष्टि नहीं करते लेकिन माना जाता है कि नवंबर 1979 में जब अल कह्ताबी ने मक्का पर कब्ज़ा जमा लिया था तो फ़्राँस की सैन्य मदद से ही उसे छुड़ाया गया था। फ़्राँस के ऐसा करने के साथ ही यूएनएचआरसी में भारत ने चीन को एक देश मानने की नीति में बदलाव दिखाते हुए सीधे-सीधे हांगकांग सेक्योरिटी लॉ की बात करके उसे अलग देश मान लिया है।

🚩भारत को कराची पर हुए किसी आतंकी हमले का दोषी बताने की चीनी कोशिश को UNSC में अमेरिका और जर्मनी ने रोक दिया है। टिक-टॉक और दूसरे एप्प पर भारत के प्रतिबन्ध को जहाँ एक तरफ यूएस ने जायज बताया। वहीं दूसरी तरफ उन्होंने खुद भी चीनी कम्युनिस्टों की कठपुतली होने की वजह से हुवाई कंपनी पर प्रतिबन्ध लागू कर दिए हैं। यूके ने एक कदम और आगे जाकर हॉन्गकॉन्ग के लोगों को अपने यहाँ 5 साल शरण देने (जिसके बाद वो नागरिकता ले सकते हैं), की बात की है। यूके के इस कदम से बौखलाकर चीन के विदेश मंत्रालय ने यूके को नतीजे भुगतने की धमकियाँ देना भी शुरू कर दिया है।

🚩परंपरागत रूप से चीन का करीबी माने जाने वाले रूस ने एस-400 मिसाइल डिफेन्स सिस्टम की आपूर्ति समय से पहले ही कर देने की बात की है। इसपर चीन की आपत्तियों को भी रूस ने दरकिनार कर दिया है। यानी शीत युद्ध के दौर से कहीं आगे निकलकर भारत अब फ्रंट फुट पर खेल रहा है। सिर्फ भारत के कंधे पर रखकर बन्दूक चलाने की कोई मंशा भी नहीं दिखती क्योंकि कई पश्चिमी देश अपने प्रतिबंधों और शरणार्थी प्रस्तावों के साथ खुद ही आगे आ गए हैं। अब इसे प्रधानमंत्री के लगातार के विदेश दौरों (जिनसे टुकड़ाखोरों को बड़ी समस्या थी), का नतीजा माना जाए या ना माना जाए, ये एक अलग बहस का मुद्दा हो सकता है।

🚩इन सबके बीच यूएस ने नेशनल डिफेंस ऑथोराईजेशन एक्ट पास कर दिया है। इससे अब वो गाउम द्वीप पर भारतीय, ऑस्ट्रेलियाई और जापानी पायलटों को प्रशिक्षण दे सकेंगे। ये द्वीप ऐसी जगह है जहाँ से चीन नजदीक होता है। थोड़े दिन पहले जो ऑस्ट्रेलिया के प्रधान भारतीय प्रधान को ‘शाकाहारी’ समोसे खिलाने की बात करते ट्विटर पर नजर आए थे, वो सैन्य क्षेत्र में निवेश को 40 प्रतिशत बढ़ा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के साथ चीन के व्यापारिक रिश्तों में हाल में आई खटास कुछ अख़बारों के कोनों में दिखी थी। वो सीधा माल नहीं खरीद रहे होंगे तो जाहिर है वहाँ भारतीय निर्यातकों के लिए एक नया बाजार भी अपने आप तैयार हो गया है।

🚩इन सारी उठापटक के बीच प्रधानमंत्री का लेह-लद्दाख पहुँच जाना सेना के लिए कैसा होगा इस बारे में कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है। जाहिर सी बात है जहाँ एक ओर इधर की सेना का मनोबल बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर चीन का मारे गए सैनिकों की गिनती ना बताना काफी कुछ कहता है। अगर नुकसान कम हुआ होता तो सिर्फ एक सेना नायक रैंक के मारे जाने को स्वीकारकर वो नहीं छोड़ते। आराम से कहते कि हमारे तो इतने ही मरे, या एक भी नहीं मारा गया? ट्रेनिंग के लिए मार्शल आर्ट्स के प्रशिक्षकों को भेजा जाना भी काफी कुछ बताता है। पुराने दौर में “दिल्ली दूर, बीजिंग पास” कहने वाले तथाकथित नेता पता नहीं किस बिल में हैं। ऐसे मामलों पर उनकी टिप्पणी रोचक होती।

बाकी ये जो बाँके अपनी मूछों के नए स्टाइल के साथ सुबह से लेह-लद्दाख में होने की खबर के साथ टीवी पर नजर आ रहे हैं, उनसे ओनिडा टीवी के पुराने प्रचार जैसा “नेबर्स एनवी, ओनर्स प्राइड” वाली फीलिंग तो आ रही है। “जलने वाले चाहे जल जल मरेंगे” को पंचम सुर में गाइए, मुस्कुराइए, धुँआ उठता देखना मजेदार तो है ही!

🚩सबसे अधिक हिन्दू सैनिक क्यों बचे ?

🚩द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अफ्रीका के सहारा मरूस्थल में खाद्य आपूर्ति बंद हो जाने के कारण मित्र राष्ट्रों की सेनाओं को तीन दिन तक अन्न जल कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका। चारों ओर सुनसान रेगिस्तान तथा धूल-कंकड़ों के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता था। रेगिस्तान पार करते करते कुल सात सौ सैनिकों की उस टुकड़ी में से मात्र 210 व्यक्ति ही जीवित बच पाये। बाकी सभी भूख-प्यास के कारण रास्ते में ही मर गये।

🚩आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन जीवित सैनिकों में से 80 प्रतिशत अर्थात् 186 सैनिक हिन्दू थे। इस आश्चर्यजनक घटना का जब विश्लेषण किया गया तो विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला किः 'वे निश्चय ही ऐसे पूर्वजों की संतानें थीं जिनके रक्त में तप, तितिक्षा, उपवास, सहिष्णुता एवं संयम का प्रभाव रहा होगा। वे अवश्य ही श्रद्धापूर्वक कठिन व्रतों का पालन करते रहे होंगे।'

🚩हिन्दू संस्कृति के वे सपूत रेगिस्तान में अन्न जल के बिना भी इसलिए बच गये क्योंकि उन्होंने, उनके माता-पिता ने अथवा उनके दादा-दादी ने इस प्रकार की तपस्या की होगी। सात पीढ़ियों तक की संतति में अपने संस्कारों का अंश जाता है।

🚩इससे पता चलता है कि भारतीय संस्कृति का पालन करने वाले हमारे वीर जवान किसी भी कठिन से कठिन परिस्थितियों में मुकाबला करने में हमेंशा आगे रहते है, दुश्मन कितना भी शक्तिशाली दिखता हो लेकिन हमारे जांबाज जब वार करते हैं तब जैसे शेर को देखकर गीदड़ भागते है वैसे ही दुश्मन भागते हैं। हमें हमारे वीर सैनिकों पर गर्व है।

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Saturday, July 4, 2020

गुरुपूर्णिमा पर्व करोड़ो लोग क्यो मनाते है? इसकी शुरुआत कहा से हुई?

04 जुलाई 2020

🚩आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा एवं व्यासपूर्णिमा कहते हैं । गुरुपूर्णिमा गुरुपूजन का दिन है । गुरुपूर्णिमा का एक अनोखा महत्त्व भी है । अन्य दिनों की तुलना में इस तिथि पर गुरुतत्त्व सहस्र गुना कार्यरत रहता है । इसलिए इस दिन किसी भी व्यक्ति द्वारा जो कुछ भी अपनी साधना के रूप में किया जाता है, उसका फल भी उसे सहस्र गुना अधिक प्राप्त होता है । इस साल 05 जुलाई को गुरुपूर्णिमा है।

🚩भगवान वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया, 18 पुराणों और उपपुराणों की रचना की । ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाजयोग्य बना कर व्यवस्थित किया । पंचम वेद 'महाभारत' की रचना इसी पूर्णिमा के दिन पूर्ण की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्ष ग्रंथ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरंभ किया । तब देवताओं ने वेदव्यासजी का पूजन किया । तभी से व्यासपूर्णिमा मनायी जा रही है । इस दिन जो शिष्य ब्रह्मवेत्ता सदगुरु के श्रीचरणों में पहुँचकर संयम-श्रद्धा-भक्ति से उनका पूजन करता है उसे वर्षभर के पर्व मनाने का फल मिलता है ।

🚩भारत में अनादिकाल से आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा पर्व के रूप में मनाया जाता रहा है। गुरुपूर्णिमा का त्यौहार तो सभी के लिए है । भौतिक सुख-शांति के साथ-साथ ईश्वरीय आनंद, शांति और ज्ञान प्रदान करनेवाले महाभारत, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद्भागवत आदि महान ग्रंथों के रचयिता महापुरुष वेदव्यास जी जैसे ब्रह्मवेत्ताओं का मानव ऋणी है ।

🚩भारतीय संस्कृति में सद्गुरु का बड़ा ऊँचा स्थान है । भगवान स्वयं भी अवतार लेते हैं तो गुरु की शरण जाते हैं । भगवान श्रीकृष्ण गुरु सांदीपनि जी के आश्रम में सेवा तथा अभ्यास करते थे । भगवान श्रीराम गुरु वसिष्ठजी के चरणों में बैठकर सत्संग सुनते थे । ऐसे महापुरुषों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तथा उनकी शिक्षाओं का स्मरण करके उसे अपने जीवन मे लानेके लिए इस पवित्र पर्व ‘गुरुपूर्णिमा’ को मनाया जाता है ।

🚩गुरु का महत्त्व-

🚩गुरुदेव वे हैं, जो साधना बताते हैं, साधना करवाते हैं एवं आनंद की अनुभूति प्रदान करते हैं । गुरु का ध्यान शिष्य के भौतिक सुख की ओर नहीं, अपितु केवल उसकी आध्यात्मिक उन्नति पर होता है । गुरु ही शिष्य को साधना करने के लिए प्रेरित करते हैं, चरण दर चरण साधना करवाते हैं, साधना में उत्पन्न होनेवाली बाधाओं को दूर करते हैं, साधना में टिकाए रखते हैं एवं पूर्णत्व की ओर ले जाते हैं । गुरु के संकल्प के बिना इतना बडा एवं कठिन शिवधनुष उठा पाना असंभव है । इसके विपरीत गुरुकी प्राप्ति हो जाए, तो यह कर पाना सुलभ हो जाता है । श्री गुरुगीता में ‘गुरु’ संज्ञा की उत्पत्ति का वर्णन इस प्रकार किया गया है-
गुकारस्त्वन्धकारश्च रुकारस्तेज उच्यते ।
अज्ञानग्रासकं ब्रह्म गुरुरेव न संशयः ।। – श्री गुरुगीता
अर्थ : ‘गु’ अर्थात अंधकार अथवा अज्ञान एवं ‘रु’ अर्थात तेज, प्रकाश अथवा ज्ञान । इस बात में कोई संदेह नहीं कि गुरु ही ब्रह्म हैं जो अज्ञान के अंधकार को दूर करते हैं । इससे ज्ञात होगा कि साधक के जीवन में गुरु का महत्त्व अनन्य है । इसलिए गुरुप्राप्ति ही साधक का प्रथम ध्येय है । गुरुप्राप्ति से ही ईश्वरप्राप्ति होती है अथवा यूं कहें कि गुरुप्राप्ति होना ही ईश्वरप्राप्ति है, ईश्वरप्राप्ति अर्थात मोक्षप्राप्ति- मोक्षप्राप्ति अर्थात निरंतर आनंदावस्था । गुरु हमें इस अवस्था तक पहुंचाते हैं । शिष्य को जीवनमुक्त करनेवाले गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए गुरुपूर्णिमा मनाई जाती है ।

🚩गुरुपूर्णिमा का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व-

🚩इस दिन गुरुस्मरण करने पर शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होने में सहायता होती है । इस दिन गुरु का तारक चैतन्य वायुमंडल में कार्यरत रहता है । गुरुपूजन करनेवाले जीव को इस चैतन्य का लाभ मिलता है । गुरुपूर्णिमा को व्यासपूर्णिमा भी कहते हैं, गुरुपूर्णिमा पर सर्वप्रथम व्यासपूजन किया जाता है । एक वचन है – व्यासोच्छिष्टम् जगत् सर्वंम् । इसका अर्थ है, विश्व का ऐसा कोई विषय नहीं, जो महर्षि व्यासजी का उच्छिष्ट अथवा जूठन नहीं है अर्थात कोई भी विषय महर्षि व्यासजी द्वारा अनछुआ नहीं है । महर्षि व्यासजी ने चार वेदों का वर्गीकरण किया । उन्होंने अठारह पुराण, महाभारत इत्यादि ग्रंथों की रचना की है । महर्षि व्यासजी के कारण ही समस्त ज्ञान सर्वप्रथम हमतक पहुंच पाया । इसीलिए महर्षि व्यासजी को ‘आदिगुरु’ कहा जाता है । ऐसी मान्यता है कि उन्हीं से गुरु-परंपरा आरंभ हुई । आद्यशंकराचार्यजी को भी महर्षि व्यासजी का अवतार मानते हैं ।

🚩गुरुपूजन का पर्व-

🚩गुरुपूर्णिमा अर्थात् गुरु के पूजन का पर्व । गुरुपूर्णिमा के दिन छत्रपति शिवाजी भी अपने गुरु का विधि-विधान से पूजन करते थे।

🚩वर्तमान में सब लोग अगर गुरु को नहलाने लग जायें, तिलक करने लग जायें, हार पहनाने लग जायें तो यह संभव नहीं है। लेकिन षोडशोपचार की पूजा से भी अधिक फल देने वाली मानस पूजा करने से तो स्वयं गुरु भी नही रोक सकते। मानस पूजा का अधिकार तो सबके पास है।

🚩"गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर मन-ही-मन हम अपने गुरुदेव की पूजा करते हैं.... मन-ही-मन गुरुदेव को कलश भर-भरकर गंगाजल से स्नान कराते हैं.... मन-ही-मन उनके श्रीचरणों को पखारते हैं.... परब्रह्म परमात्मस्वरूप श्रीसद्गुरुदेव को वस्त्र पहनाते हैं.... सुगंधित चंदन का तिलक करते है.... सुगंधित गुलाब और मोगरे की माला पहनाते हैं.... मनभावन सात्विक प्रसाद का भोग लगाते हैं.... मन-ही-मन धूप-दीप से गुरु की आरती करते हैं....।"

🚩इस प्रकार हर शिष्य मन-ही-मन अपने दिव्य भावों के अनुसार अपने सद्गुरुदेव का पूजन करके गुरुपूर्णिमा का पावन पर्व मना सकता है। करोड़ों जन्मों के माता-पिता, मित्र-सम्बंधी जो न दे सके, सद्गुरुदेव वह हँसते-हँसते दे देते हैं।


🚩आजकल के विद्यार्थी बडे़-बडे़ प्रमाणपत्रों के पीछे पड़ते हैं लेकिन प्राचीन काल में विद्यार्थी संयम-सदाचार का व्रत-नियम पाल कर वर्षों तक गुरु के सान्निध्य में रहकर बहुमुखी विद्या उपार्जित करते थे। भगवान श्रीराम वर्षों तक गुरुवर वशिष्ठजी के आश्रम में रहे थे। वर्त्तमान का विद्यार्थी अपनी पहचान बड़ी-बड़ी डिग्रियों से देता है जबकि पहले के शिष्यों में पहचान की महत्ता वह किसका शिष्य है इससे होती थी। आजकल तो संसार का कचरा खोपडी़ में भरने की आदत हो गयी है। यह कचरा ही मान्यताएँ, कृत्रिमता तथा राग-द्वेषादि बढा़ता है और अंत में ये मान्यताएँ ही दुःख में बढा़वा करती हैं। अतः मनुष्य को चाहिये कि वह सदैव जागृत रहकर सत्पुरुषों के सत्संग, सान्निध्य में रहकर परम तत्त्व परमात्मा को पाने का परम पुरुषार्थ करता रहे।

🚩संत गुलाबराव महाराज जी से किसी पश्चिमी व्यक्ति ने पूछा, ‘भारत की ऐसी कौनसी विशेषता है, जो न्यूनतम शब्दों में बताई जा सकती है ?’ तब महाराजजी ने कहा, ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ । इससे हमें इस परंपरा का महत्त्व समझ में आता है । ऐसी परंपरा के दर्शन करवाने वाला पर्व युग-युग से मनाया जा रहा है, तथा वह है, गुरुपूर्णिमा ! हमारे जीवन में गुरुका क्या स्थान है, गुरुपूर्णिमा हमें इसका स्पष्ट पाठ पढ़ाती है ।

🚩आज भारत देश में देखा जाय तो महान संतों पर आघात किया जा रहा है, अत्याचार किया जा रहा है, जिन संतों ने हमेशा देश का मंगल चाहा है । जो भारत का उज्जवल भविष्य देखना चाहते हैं । लेकिन आज उन्ही संतों को टारगेट किया जा रहा है।

🚩भारत में थोड़ी बहुत जो सुख-शांति, चैन- अमन और सुसंस्कार बचे हुए हैं तो वो संतों के कारण ही है और संतों, गुरुओं को चाहने और मानने वाले शिष्यों के कारण ही है ।

🚩लेकिन उन्ही संतों पर षड़यंत्र करके भारतवासियों की श्रद्धा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है । "भारतवासियों को ही गुमराह करके संतों के प्रति भारतवासियों की आस्था को तोड़ा जा रहा है ।" अतः देशविरोधी तत्वों से सावधान रहें ।

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Friday, July 3, 2020

विदेशियों की विवशता और भारतवासियों की महामूर्खता...

03 जुलाई 2020

🚩विश्व की सबसे प्राचीन और महान संस्कृति अगर है तो "भारतीय सनातन संस्कृति" जिसको "हिंदू संस्कृति" भी कहते हैं। 

विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता भारत में ही मिली है। संसार का सबसे पुराना इतिहास भी यहीं पर उपलब्ध है। हमारे ऋषियों ने उच्छृंखल यूरोपियों के जंगली पूर्वजों को मनुष्यत्व एवं सामाजिक परिवेश प्रदान किया, इस बात के लाखों ऐतिहासिक प्रमाण आज भी उपलब्ध हैं।

🚩यूनान के प्राचीन इतिहास का दावा है कि भारतवासी वहाँ जाकर बसे तथा वहाँ उन्होंने विद्या का खूब प्रचार किया। यूनान के विश्वप्रसिद्ध दर्शनशास्त्र का मूल भारतीय वेदान्त दर्शन ही है।

🚩यूनान के प्रसिद्ध विद्वान एरियन ने लिखा हैः 'जो लोग भारत से आकर यहाँ बसे थे, वे कैसे थे ? वे देवताओं के वंशज थे, उनके पास विपुल सोना था। वे रेशम के दुशाले ओढ़ते थे और बहुमूल्य रत्नों के हार पहनते थे।'

🚩एरियन भारतीयों के ज्ञान, चरित्र एवं उज्ज्वल-तेजस्वी जीवन के कारण उन्हें देवताओं के वंशज कहता है। यहाँ पर उसने भारतीयों के आध्यात्मिक एवं भौतिक विकास को स्पष्ट किया है।

लेकिन महान भारतीय संस्कृति को छोड़कर भारतीय लोग पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करके कितने मूर्ख बन रहे है वे भी जान लीजिये।


🚩1. आठ महीने ठण्ड पड़ने के कारण कोट पेंट पहनना विदेशियों की विवशता और शादी वाले दिन भरी गर्मी में कोट - पेंट डालकर बारात लेकर जाना हमारी मूर्खता ।

🚩2. ठण्ड में नाक बहते रहने के कारण टाई लगाना विदेशियों की विवशता और दूसरों को प्रभावित करने के लिऐ जून महीने में टाई कसकर घर से निकलना हमारी मूर्खता ।

🚩3. ताजा भोजन उपलब्ध ना होने के कारण सड़े आटे से पिज्जा, बर्गर, नूडल्स आदि खाना यूरोप की विवशता और 56 भोग छोड 400/- की सड़ी रोटी (पिज्जा ) खाना हमारी मूर्खता ।

🚩4. ताजे भोजन की कमी के कारण फ्रीज का इस्तेमाल करना यूरोप की विवशता और रोज दो समय ताजी सब्जी बाजार में मिलनें पर भी हफ्ते भर की सब्जी मंडी से लेकर फ्रीज में ठूसकर सड़ा-सड़ा कर खाना हमारी मूर्खता ।

🚩5. जड़ी बूटियों का ज्ञान ना होने के कारण... जीव जंतुओं के हाड़मांस से दवाएं बनाना उनकी विवशता और आयुर्वेद जैसा महान चिकित्सा ग्रंथ होेने के बावजूद हाड़मांस की दवाइयां उपयोग करना हमारी महामूर्खता ।

🚩6. पर्याप्त अनाज ना होने के कारण जानवरों को खाना उनकी विवशता और 1600 किस्मों की फसलें होनें के बाबजूद जीभ के स्वाद के लिए किसी निर्दोष प्राणी को मारकर उसे खाना हमारी मूर्खता ।

🚩7. लस्सी, दूध, जूस आदि ना होने के कारण कोल्ड ड्रिंक को पीना उनकी विवशता और 36 तरह के पेय पदार्थ होते हुए भी कोल्ड ड्रिंक नामक जहर को पीकर खुद को आधुनिक समझ कर इतराना हमारी महा मूर्खता ।

🚩8. टाइट कपड़े पहनने के कारण जमीन की जगह कुर्सी पर बैठ कर भोजन करना उनकी विवशता और हमारी मूर्खता ।

🚩9. न बोल पाने की असमर्थता के कारण उनका संस्कृत ना बोलना और जोड़-तोड़ वाली अंग्रेजी से काम चलाना और दूसरी ओर अपनी महान संस्कृत से विमुख होकर अंग्रेजी बोलने का प्रयास करना हमारी मूर्खता ।

🚩10. असभ्य, लालची और स्वार्थी स्वभाव के कारण अपने माँ बाप से अलग रहना । ये उनका दुर्व्यवहार अपने में लाना हमारी मूर्खता ।

🚩क्या ये भारतीयों को शोभा देता है..???

🚩भारत महान था , महान है ,
किंतु महान तब रहेगा जब देशवासी ऐसी महामूर्खताओं को त्याग कर अपने देश की महानता को समझेंगे ।

🚩15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की बाह्य गुलामी तो दूर हुई लेकिन अंग्रेजी भाषा की, उनके विचारों की गुलामी तो हमारे दिल-दिमाग में घुसी हुई है । अतः अपनी वैदिक संस्कृति, अपने देश की जलवायु और रीति-रिवाजों के अनुसार स्वास्थ्य लाभ, सामाजिक जीवन और आत्मिक उन्नति करानेवाली भारत की महान संस्कृति का आदर करना चाहिये, लाभ लेना चाहिए । अंग्रेजी कल्चर का दिखावटी जीवन भीतर से खोखला कर देता है । संयमी, सदाचारी और साहसी भारतीय संस्कृति के सपूतों को अपनी मिली हुई आजादी को सावधानी से सँभाले रखना चाहिये ।

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