18 जुलाई 2020

लगता है कि भारत के अनेक प्रभावी बुद्धिजीवी और पत्रकार, विदेशी लोग यहाँ की 80 प्रतिशत जनता के हिन्दू होने, उसकी भावना, दुःख और उस पर होते भेद-भाव से निरे अनजान, बेपरवाह हैं। वे भूलकर भी नहीं बताते कि मुस्लिम देशों में रहने वाले हिन्दुओं के साथ क्या बर्ताव होता है। किस तरह पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिन्दू उजड़ गए, करोड़ों की जनसंख्या मानो लुप्त हो गई। जबकि भारत में मुस्लिम आबादी फलती-फूलती, हिन्दुओं से भी अधिक तेजी से बढ़ती गई।
दूसरी ओर, तमाम पड़ोसी देशों से लाखों मुस्लिम यहाँ बेहतर रोजगार और संपत्ति की चाह में अवैध रूप से निरंतर आते गए। इसमें पीड़ित और सुखी समुदायों की जो तस्वीर बनती है, उसे छिपाया गया। बल्कि, उलटा प्रचार हुआ कि भारत में हिन्दू उत्पीड़क और मुस्लिम उत्पीड़ित हैं। जबकि यदि यहाँ मुसलमानों को उत्पीड़न मिला होता तो बाहरी मुसलमान यहाँ आने की नहीं सोच सकते थे। जैसे, कोई ईसाई, हिन्दू या बौद्ध किसी भी मुस्लिम देश में जाकर रहने की कभी नहीं सोचता।
भारत के प्रभावी, विशेषतः अंग्रेजी विमर्श में "हिन्दू" शब्द कभी सकारात्मक रूप में नहीं मिलता। उन बौद्धिकों के विदेशीपने का सब से बड़ा उदाहरण यही है कि जिस मानवीयता, सार्वभौमिक सदभाव और न्याय को वे बाकी दुनिया के नारों और सिद्धांतों में खोजते रहते हैं, वह यहीं हिन्दू परंपरा में मौजूद होने का उन्हें कोई भान नहीं। वे जिन मापदंडों से भारत और विशेषकर हिन्दू धर्म की निंदा करते रहते हैं, उन मापदंडों को सऊदी अरब, इस्लाम या चीन की चर्चा करते हुए साफ छोड़ देते हैं। देश या विदेश, कहीं भी हिन्दुओं का उत्पीड़न, उन पर अन्याय उनके लिए कोई खबर नहीं है, जबकि हर कहीं मुसलमानों की कैसी भी चाह, कष्ट उनके लिए प्रथम चिंता होती है, जिसे बढ़ा-चढ़ा कर छापना, दुहराना, उस पर लंबे-लंबे लेख लिखना, प्रचारित करना मानो उनका धर्म है। ऐसा घोर दोहरापन क्यों है? इस्लामी देशों के संसाधनों, ईनामों का भी इस में योगदान है। मुसलमानों के उग्र दबाव की भी इस में भूमिका है, जिस का डर अनेक बौद्धिकों को चुप रखता है।
वस्तुतः जिसे आधुनिक सेक्यूलर बनाम सांप्रदायिक हिन्दुत्व की लड़ाई बताया जाता है, वह एक भ्रष्ट, जड़ वामपंथी एलीट और पारंपरिक आध्यात्मिक हिन्दू समाज के बीच का संघर्ष है। पर भारत में ही हिन्दुओं को हीन बना देने में इस की भी भूमिका है कि भारत में सरकारों और नेताओं ने दूसरे देशों में हिन्दुओं पर जुल्म, अन्याय का कभी नोटिस नहीं लिया। सरकार द्वारा ऐसी अनदेखी से अंततः देश के अंदर भी हिन्दुओं की स्थिति हीन होते जाना तय था।
सभी मनुष्यों के लिए एक मापदंड़ अपनाए जाने चाहिए। सभी समुदायों, उनके विचारों, धर्मों, संगठनों को समान सिद्धांत से तौलना चाहिए। केवल हिन्दुओं के लिए निष्पक्षता, सदभाव, और सहिष्णुता के ऊँचे मापदंड बनाना अनुचित है। व्यवहारतः यह हिन्दुओं को आक्रामक मतवादों, मिशनरियों और तबलीगियों के हाथों खत्म होने की ओर विवश करना है। नागरिकता कानून का विरोध इसी का उदाहरण है।
पिछले दशकों में बार-बार देखा गया कि बाहर या अंदर, हिन्दू शरणार्थियों के लिए कोई उदारवादी बौद्धिक आवाज नहीं उठी, जबकि बाहर से आते मुस्लिम घुसपैठियों, उग्रवादियों, आतंकवादियों के लिए भी मानवाधिकार, मानवीयता, सम्मान, आदि की पैरोकारी होती रही।
हिन्दुओं ने दूसरे देशों पर कभी हमला नहीं किया, कभी अपने मिशनरियों को भेजकर दूसरों को छल-बल से हिन्दू विचारों को स्वीकार करने के लिए विवश नहीं किया, कभी दूसरों को गुलाम बनाकर आर्थिक शोषण-दोहन नहीं किया, कभी न कहा कि सत्य, ज्ञान या ईश्वर केवल हिन्दुओं के पास है और जो ऐसा नहीं मानते वे नीच और गंदे हैं। 1947 ई. में मुसलमानों द्वारा अलग देश बना लेने के बाद भी करोड़ों मुसलमानों को यहीं रहने दिया। इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा कब्जा किए गए अपने महान तीर्थ-स्थानों तक को खाली नहीं कराया, फिर भी हिन्दुओं को ही असहिष्णु, अत्याचारी कहा जा रहा है! यह हद पार करने जैसा है।
झूठ और जोर-जबर्दस्ती से समझौता करना कोई भलमनसाहत नहीं है। यह आत्म-विनाश का रास्ता है। निश्चय ही यह भारत का धर्म या चाह भी नहीं है कि वह भी इस्लामी या कम्युनिस्ट मतवादियों जैसी मतवादी संकीर्णता अपना ले। परन्तु अपनी धर्म-परंपरा और संस्कृति का बचाव भी न करना, और हर तरह के बाहरी, साम्राज्यवादी मतवादों के सामने हथियार डाल देना भी उसे स्वीकार्य नहीं हो सकता।
समय आ गया है कि भारत की प्रभावी बौद्धिकता में जमे हिन्दू-विरोध को उखाड़ फेंका जाए। यह घोर भेद-भाव है, जिस से सामाजिक वातावरण निस्संदेह बिगड़ता है। ईर्ष्या-द्वेष, संदेह और वैमनस्य बढ़ता है। ऐसा होना किसी भी न्यायप्रिय को स्वीकार नहीं हो सकता। हिन्दू धर्म-समाज को भारत से ही विस्थापित करने की योजनाओं, रणनीतियों को रोकना जरूरी है।
यह खुलकर और दृढ़ता से कहना जरूरी है कि यदि दुनिया में 57 देश अपने को इस्लामी गणतंत्र कहते हैं, ईसाई देश 172 बन चुके है तो एक देश हिन्दुओं का होना सर्वथा उपयुक्त है। वह भी, जिसे हजारों वर्ष से हिन्दू देश जाना ही जाता है। तब भारत की हिन्दू पहचान को कुचलकर ‘सेक्यूलरिज्म’ थोपना भयंकर जुल्म है। किसी मुस्लिम देश में सेक्यूलरिज्म का नामो-निशान नहीं है। यूरोप और अमेरिका में भी विविध ईसाई दलों, समूहों को सहज वरीयता और विशेष सम्मान प्राप्त है। वहाँ सरकार कभी भी ईसाइयों की उपेक्षा या गैर-ईसाइयों को विशेष सुविधा और विशेष अधिकार देकर काम नहीं करती। केवल भारत में ही हिन्दुओं को संवैधानिक और सामाजिक रूप में भी दबा दिया गया है। यहाँ जिन हिन्दू संगठनों को सांप्रदायिक, असहिष्णु कहकर बदनाम किया जाता है, उन्होंने एक भी माँग या काम नहीं किए जो तमाम मुस्लिम देशों में जारी इस्लामी विशेषाधिकारों की बराबरी भी कर सके। तब केवल हिन्दू संगठनों की निंदा, और मुस्लिम संगठनों, गतिविधियों पर चुप्पी रखना हिन्दू-विरोधी कुटिलता ही है।
जो लोग ‘हिन्दू राष्ट्र’ की संभावना को अनिष्टकारी कह कर निंदित करते हैं, वे नहीं बताते कि हिन्दू भारत के पाँच हजार वर्षों के इतिहास में कब ऐसा मजहबी शासन बना जिस का डर दिखाया जा रहा है? क्या किसी हिन्दू राजा का शासन वैसे संकीर्ण, एकाधिकारी मजहबी राज का मॉडल था, जिस की तुलना चर्च के मध्ययुगीन शासन या इस्लामी सत्ताओं से की जा सके? कौन हिन्दू राजा ऐसा मतांध था जिसने दूसरे विश्वासों, विचारों को खत्म करने की कोशिश की? किसने अपने विचार या किताब को तलवार के बल दुनिया भर में फैलाने की कोशिश की? क्या राम, कृष्ण या शिवाजी का भी राज्य ऐसा ‘हिन्दुत्ववादी’ मॉडल है? यदि नहीं, तो हिन्दू राष्ट्र से डराना झूठा प्रपंच मात्र है।
वस्तुतः जिसे हिन्दू सांप्रदायिकता कह कर निंदित किया जाता है, वह इस्लामी उग्रवाद की प्रतिक्रिया भर है। यह विशुद्ध आत्मरक्षात्मक है। अपने धर्म, समाज और देश की रक्षा करने की भावना। भारत दोनों ओर से घोषित ‘इस्लामी गणतंत्र’ देशों से घिरा है। उन की खुली-छिपी मार भी झेल रहा है। उन देशों में हिन्दुओं की दुर्दशा दुनिया के किसी भी समुदाय से बुरी है। फिलीस्तीन, सूडान या तिब्बत के लोगों के लिए बोलने वाले दुनिया भर में मिलते हैं। पर बंगलादेश में अभागे, उत्पीड़ित हिन्दुओं के लिए बोलने वाला, एक तस्लीमा नसरीन को छोड़कर, कोई नहीं सुना गया। भारत के किसी सेक्यूलरवादी, वामपंथी, गाँधीवादी बौद्धिक ने उन के लिए एक शब्द तक नहीं कहा। - डॉ. शंकर शरण
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17 जुलाई 2020

वैसे तो बॉलीवुड में कई अभिनेत्रियों ने और अभिनेताओं ने आत्महत्या की है पर सुशांत राजपूत आत्महत्या का मामला बहुत गरमाया है और काफी लोग इसकी सीबीआई जांच करवाने की मांग कर रहे है और इसमें दिग्गज नेता सुब्रमण्यम स्वामी जैसे भी CBI जांच कराने की मांग कर रहे है, हमने सोशल मीडिया पर देखा कि जनता में काफी आक्रोश है सबका एक ही कहना है कि इसमें सीबीआई जांच होनी चाहिए।
महाराष्ट्र पुलिस के अनुसार तो अभी तक आत्महत्या ही बताई जा रही है लेकिन सीबीआई जांच के पीछे मांग करने की एक ही कारण है कि भले डिप्रेशन में आकर सुशांत ने आत्महत्या की हो लेकिन सुशांत को डिप्रेशन में में लाने में किसका हाथ था ऐसे कौन लोग है जो इनपर इतना प्रेशर बनाया था जिसके कारण सुशांत को आत्महत्या करने में मजबूर होना पड़ा।
आपको बता दें कि बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा, ”आप एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बारे में भलीभाँति जानते होंगे। मेरे सहयोगी ईशकरण भंडारी ने सुशांत सिंह राजपूत की कथित सुसाइड पर कुछ रिसर्च की है। पुलिस मामला दर्ज करने के बाद मामले की जाँच कर रही है। मैंने मुंबई में स्थित अपने सूत्रों से सुना है कि इस मामले में बॉलीवुड के कई बड़े नाम, जिनके दुबई के डॉन से संबंध हैं, इसे पुलिस जाँच के जरिए कवर-अप करना चाहते हैं, ताकि इसे आत्महत्या साबित किया जा सके।”
इससे पहले डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने तीनों खानों की संपत्ति की जाँच की माँग की थी। स्वामी ने सवाल उठाया कि बॉलीवुड के तीन बाहुबली सलमान खान, शाहरुख खान और आमिर खान सुशांत सिंह राजपूत के कथित आत्महत्या मामले पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं? उन्होंने विदेश, खासकर दुबई में उनकी सम्पत्तियों की जाँच के लिए भी आवाज़ उठाई।
बता दें सुब्रमण्यम स्वामी के अलावा कई हस्तियां भी सुशांत सुसाइड मामले में सीबीआई जाँच की माँग की थी।
आत्महत्या करने वाली अभीनेत्री जिया खान की मां राबिया अमीन कहती हैं, 'मेरी संवदेनाएं सुशांत सिंह राजपूत की फैमिली के साथ हैं। सही माइने में यह दिल दहला देने वाला मामला है। यह कोई मजाक नहीं चल रहा रहा। अब बॉलीवुड को बदलना होगा, बॉलीवुड को जागना होगा। बॉलीवुड को पूरी तरह से ऐसा करना बंद करना होगा। बुली (खिंचाई) करना भी एक तरह से किसी की हत्या करना ही है।'
जिया खान की मां ने आगे कहा है कि, 'अभी जो कुछ भी हुआ है, उसने मुझे 2015 की याद दिला दी है। जब मैं जिया के मामले में एक सीबीआई ऑफिसर से मिलने गई थी तो उसने मुझे कहा कि सलमान खान का फोन आया था। वो रोज फोन करते हैं और पैसे की बात करते हैं। वो हमेशा यही कहते हैं कि लड़के से पूछताछ मत करो.. उसे मत छुओ तो हम क्या कर सकते हैं मैडम। इसके बाद राबिया इस मामले में उच्च अधिकारियों तक लेकर भी गईं।'
राबिया का कहना है कि बॉलीवुड के इस जहरीले व्यवहार को रोकना होगा।
अभिनेत्री कंगना रनौत ने भी सवाल उठाए थे कि सुशांत को फ़िल्म इंडस्ट्री से निकालने का भय के कारण काफी मानसिक तनाव में थे लेकिन इसके पीछे कौन है उसकी जांच होनी चाहिए।
ईन खबरों से पता चलता है कि सोशल मीडिया पर आरोप लागये जा रहे है वे तीनों खानों पर जा रहा है बताया जाता है कि फ़िल्म इंडस्ट्री में सलमान खान, आमिर खान, शाहरुख खान इन तीनों का काफी दबदबा चलता है वे किसी की भी फ़िल्म को हिट करते हुए रोकना, किसी का टेलेंट हो तो आगे नही आने देना, उनके केरियर खराब करना, उनको मानसिक प्रताड़ित करना ये सब करते है और ऐसा करने के लिए अंडरवर्ल्ड से पैसे मिलते हैं ऐसा बताया जाता है। इन सब कारणों को देखते हुए सुशांत राजपूत के CBI की जाँच की मांग की जा रही है । और होना भी चाहिए क्योंकि फ़िल्म इंडस्ट्री में तीनों खानों ओर अंडरवर्ल्ड का दबदबा खत्म कर देना चाहिए जिससे आगे ऐसे किसी को तनाव में आकर आत्महत्या करने में मजबूर न हो।
बता दें कि आत्महत्या करना महापाप है इसलिए कोई कितना भी मानसिक तनाव में लाये पर आत्महत्या नही करनी चाहिए क्योंकि आत्महत्या करने वाले कि सद्गति नही होती हैं। ऐसे विचार आये तब भगवान को प्रार्थना करनी चाहिए और संतों की शरण मे जाना चाहिए इससे मानसिक तनाव चला जायेगा और आत्महत्या करने का विचार आना बंद हो जायेंगा।
आपको बता दें कि हम बॉलीवुड का कभी समर्थन नही करते है क्योंकि बॉलीवुड भारतीय संस्कृति के खिलाफ और अश्लीलता फैलाने का काम कर रही है। गुलशन कुमार बॉलीवुड को भक्तिमय बना रहे थे वे भारतीय और हिंदू संस्कृति को बढ़ावा दे रहे थे इसलिए उनकी हत्या कर दी गई थी।
बॉलीवुड ने भारतीय संस्कृति का जितना नुकसान किया है उतना किसी ने नही किया है इस बॉलीवुड में सुधार होने चाहिए हमारे भारतीय इतिहास पर ही फिल्में बननी चाहिए नही तो बॉलीवुड हमारे देश की संस्कृति को खत्म कर देगा। इसलिए बॉलीवुड को सुधार के लिए सरकार, न्यायालय, बुद्धजीवी, संस्कृति प्रेमी, बॉलीवुड में कंगना रनौत जैसे लोग आगे आये और भारतीय संस्कृति का बढ़ावा दे और पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार बन रही फिल्में पर बेन करना चाहिए।
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16 जुलाई 2020

हमारे देश का भविष्य हमारी युवा पीढ़ी पर निर्भर है किन्तु उचित मार्गदर्शन के अभाव में वह आज गुमराह हो रही है। पाश्चात्य भोगवादी सभ्यता के दुष्प्रभाव से उसके यौवन का ह्रास होता जा रहा है। विदेशी चैनल, चलचित्र, अश्लील साहित्य आदि प्रचार माध्यमों के द्वारा युवक-युवतियों को गुमराह किया जा रहा है। विभिन्न सामयिकों और समाचार-पत्रों में भी तथाकथित पाश्चात्य मनोविज्ञान से प्रभावित मनोचिकित्सक और ‘सेक्सोलॉजिस्ट’ युवा छात्र-छात्राओं को चरित्र, संयम और नैतिकता से भ्रष्ट करने पर तुले हुए हैं।
ब्रितानी औपनिवेशिक संस्कृति की देन इस वर्त्तमान शिक्षा-प्रणाली में जीवन के नैतिक मूल्यों के प्रति उदासीनता बरती गई है। फलतः आज के विद्यार्थी का जीवन कौमार्यवस्था से ही विलासी और असंयमी हो जाता है।
पाश्चात्य आचार-व्यवहार के अंधानुकरण से युवानों में जो फैशनपरस्ती, अशुद्ध आहार-विहार के सेवन की प्रवृत्ति कुसंग, अभद्रता, चलचित्र-प्रेम आदि बढ़ रहे हैं उससे दिनोदिन उनका पतन होता जा रहा है। वे निर्बल और कामी बनते जा रहे हैं। उनकी इस अवदशा को देखकर ऐसा लगता है कि वे ब्रह्मचर्य की महिमा से सर्वथा अनभिज्ञ हैं।
लाखों नहीं, करोड़ों-करोड़ों छात्र-छात्राएँ अज्ञानतावश अपने तन-मन के मूल ऊर्जा-स्रोत का व्यर्थ में अपक्षय कर पूरा जीवन दीनता-हीनता-दुर्बलता में तबाह कर देते हैं और सामाजिक अपयश के भय से मन-ही-मन कष्ट झेलते रहते हैं। इससे उनका शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य चौपट हो जाता है, सामान्य शारीरिक-मानसिक विकास भी नहीं हो पाता। ऐसे युवान रक्ताल्पता, विस्मरण तथा दुर्बलता से पीड़ित होते हैं।
यही वजह है कि हमारे देश में औषधालयों, चिकित्सालयों, हजारों प्रकार की एलोपैथिक दवाइयों, इन्जेक्शनों आदि की लगातार वृद्धि होती जा रही है। असंख्य डॉक्टरों ने अपनी-अपनी दुकानें खोल रखी हैं फिर भी रोग एवं रोगियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
इसका मूल कारण क्या है ? दुर्व्यसन तथा अनैतिक, अप्राकृतिक एवं अमर्यादित मैथुन द्वारा वीर्य की क्षति ही इसका मूल कारण है। इसकी कमी से रोगप्रतिकारक शक्ति घटती है, जीवनशक्ति का ह्रास होता है।
इस देश को यदि जगदगुरु के पद पर आसीन होना है, विश्व-सभ्यता एवं विश्व-संस्कृति का सिरमौर बनना है, उन्नत स्थान फिर से प्राप्त करना है तो यहाँ की सन्तानों को चाहिए कि वे ब्रह्मचर्य के महत्व को समझें और सतत सावधान रहकर सख्ती से इसका पालन करें।
ब्रह्मचर्य के द्वारा ही हमारी युवा पीढ़ी अपने व्यक्तित्व का संतुलित एवं श्रेष्ठतर विकास कर सकती है। ब्रह्मचर्य के पालन से बुद्धि कुशाग्र बनती है, रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है तथा महान्-से-महान् लक्ष्य निर्धारित करने एवं उसे सम्पादित करने का उत्साह उभरता है, संकल्प में दृढ़ता आती है, मनोबल पुष्ट होता है।
आध्यात्मिक विकास का मूल भी ब्रह्मचर्य ही है। हमारा देश औद्योगिक, तकनीकी और आर्थिक क्षेत्र में चाहे कितना भी विकास कर ले, समृद्धि प्राप्त कर ले फिर भी यदि युवाधन की सुरक्षा न हो पाई तो यह भौतिक विकास अंत में महाविनाश की ओर ही ले जायेगा क्योंकि संयम, सदाचार आदि के परिपालन से ही कोई भी सामाजिक व्यवस्था सुचारु रूप से चल सकती है। भारत का सर्वांगीण विकास सच्चरित्र एवं संयमी युवाधन पर ही आधारित है।
अतः हमारे युवाधन छात्र-छात्राओं को ब्रह्मचर्य में प्रशिक्षित करने के लिए उन्हें यौन-स्वास्थ्य, आरोग्यशास्त्र, दीर्घायु-प्राप्ति के उपाय तथा कामवासना नियंत्रित करने की विधि का स्पष्ट ज्ञान प्रदान करना हम सबका अनिवार्य कर्त्तव्य है। इसकी अवहेलना करना हमारे देश व समाज के हित में नहीं है। यौवन सुरक्षा से ही सुदृढ़ राष्ट्र का निर्माण हो सकता है। संदर्भ : दिव्य प्रेरणा प्रकाश साहित्य
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15 जुलाई 2020

भारत मे साधु-संत ही सनातन धर्म की रक्षा कर रहे हैं, वे हिंदुओ को सनातन धर्म की महिमा बताकर धर्म के प्रति जागरूक करते हैं, धर्मान्तरण रोकते हैं, समाज को व्यसन मुक्त और दुराचार मुक्त बनानें में योगदान देते हैं, राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं इसलिए वे विधर्मियों के हमेशा निशाने पर रहते हैं।
मीडिया भी हिंदू साधु-संतो के खिलाफ खूब दुष्प्रचार करती है लेकिन जब उनकी हत्या कर दी जाती है तो चुप हो जाती है, जबकि बॉलीवुड के लोग आत्महत्या कर दें, तैमूर का खतना हो अथवा उनका ब्रेकप आदि पर दिन रात खबरें दिखाती है पर किसी साधु-संत पर अत्याचार हो रहा हो अथवा साजिश के तहत हत्या कर दी जाए या जेल भेज दिया जाए तो मीडिया मौन धारण कर लेती है, मीडिया के साथ-साथ वामपंथी, लिबरल, तथाकथित बुद्धिजीवी, सेक्युलर, नेता सब चुप हो जाते हैं।
चोर तबरेज अंसारी की पिटाई कर दी जाए या किसी गौ तस्कर पहलू खान को चार लठ मार दिए जाए तब सारी वामपंथी मीडिया व बॉलीवुड के कुछ कुतर्की बिलबिलाने लगते हैं लेकिन साधु की पीट पीटकर हत्या कर दी फिर भी ये सब चुप हैं।
दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में अब्दुल्लापुर के बाजार में शिव मंदिर के उपाध्यक्ष कांति प्रसाद मंदिर की दुकानों में ही अपनी दुकान करते थे। मंदिर में साफ सफाई से लेकर हर पूजा-पाठ कराने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर थी। वे अक्सर साधू की वेशभूषा में रहते थे। इसी के साथ उनके गले में हमेशा भगवा दुपट्टा होता था।
सोमवार (जुलाई 13, 2020) को वह अपने इसी परिधान में गंगानगर स्थित बिजलीघर में बिजली का बिल जमा कराने गए। लेकिन वापस लौटते समय उन्हें ग्लोबल सिटी के पास अनस कुरैशी मिल गया। उसने कांति प्रसाद का भगवा दुपट्टा देखकर उन पर धार्मिक टिप्पणी की और विरोध करने पर उनकी पिटाई भी कर दी।
कांति प्रसाद ने गाँव लौटकर इस बारे में सबको बताया और उसके परिजनों से भी इस संबंध में शिकायत की। मगर, अनस कुरैशी तभी पीछे से आ गया और उन्हें फिर बेरहमी से मारने लगा। जब कांति प्रसाद के परिवार वालों को इस मामले की खबर हुई तो वह उन्हें भावनपुर थाने ले गए। लेकिन, थाने में कांति प्रसाद की तबीयत बिगड़ने लगी। इसके बाद एंबुलेंस बुलायी गयी और उन्हें मेडिकल कॉलेज में एडमिट करवा दिया गया।
इस दौरान कांति प्रसाद की शिकायत के आधार पर पुलिस ने अनस के खिलाफ धार्मिक टिप्पणी करने, मारपीट और जान से मारने की धमकी देने का मुकदमा दर्ज कर लिया। किंतु मंगलवार को उपचार के दौरान कांति प्रसाद की मौत हो गई।
इससे साफ पता चलता है कि विधर्मियों को साधु संत अथवा भगवाधारी पसन्द नही आते है क्योंकि उल्लू को सूर्य पसंद नहीं आता, चोर को चौकीदार पंसद नही आता, वैसे ही दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों को हिन्दू संस्कृति और साधु-संत पसंद नहीं आते। इसलिए वें हमेशा उनके खिलाफ षड़यंत्र करते रहते हैं ताकि हिन्दुत्व और साधु-संतों को मिटाया जा सके।
इतिहास उठाकर देख लेंगे तो पता चलेगा कि हमारे साधु-संतों ने कितने कष्ट सहन किए हैं, फिर भी वे हँसते-हँसते हुए इन कष्टों को सहन करते गए और सनातन संस्कृति की रक्षा करते हुए हिंदुओं को जगाते रहे हैं। फिर भी हम इन भगवा वीरों का आदर नहीं करतें। बिकाऊ मीडिया जो इनके बारे में झूठी कहानियां बनाकर दिखाने लगती है तो हम उनको ही सच मानकर अपने ही धर्मगुरुओं को गलत समझकर अपने दिमाग में गलत छवि बना लेते हैं और उनसे नफरत करने लगते हैं।
इसलिए समय की मांग है कि हम इन षड़यंत्रों को समझे और इन हिन्दू विरोधी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए एकजुट होकर खड़े हो।
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