Wednesday, July 29, 2020

टीपू सुल्तान का 7वीं के चैप्टर से बाहर किया, कोंग्रेस विरोध कर रही है,जानिए टीपू का इतिहास।

29 जुलाई 2020

🚩कर्नाटक सरकार ने कक्षा 7 के छात्र-छात्राओं के इतिहास के सिलेबस में बदलाव करते हुए इसमें से  मैसूर के शासक टीपू सुल्तान और उसके पिता हैदर अली पर आधारित चेप्टर को हटा दिया है। सरकार ने बच्चों का अकादमिक सिलेबस कम करने के मद्देनजर ये निर्णय लिया है क्योंकि कोरोना वायरस संक्रमण आपदा के बीच क्लासेज नहीं चल रही हैं।

🚩इस फैसले ने कॉन्ग्रेस को नाराज कर दिया है और उसने इसका विरोध किया है। कॉन्ग्रेस का कहना है कि भाजपा सांप्रदायिक राजनीति खेल रही है और इसी क्रम में उसने टीपू सुल्तान पर आधारित चैप्टर को बच्चों के सिलेब्स से हटा दिया है। राज्य की विपक्षी पार्टी ने कहा कि भाजपा अब शिक्षा में सांप्रदायिकता घुसा रही है।

🚩आप टिपू सुल्तान का क्रूर इतिहास जानिए

🚩बदरुज्जमा खान को 19 जनवरी 1790 को लिखे टीपू के पत्र में लिखा है, ‘तुम्हें मालूम नहीं कि हाल ही में मालाबार में मैंने गजब की जीत हासिल की और चार लाख से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाया। मैंने तय कर लिया है कि उस मरदूद ‘रामन नायर’ (त्रावनकोर के राजा, जो धर्मराज के नाम से प्रसिद्ध थे) के खिलाफ जल्द हमला बोलूंगा, चूंकि उसे और उस की प्रजा को मुसलमान बनाने के ख्याल से मैं बेहद खुश हूं, इसलिए मैंने अभी श्रीरंगपट्टनम वापस जाने का विचार खुशी-खुशी छोड़ दिया है।’

🚩दक्षिण भारत के असंख्य लोगों से यह बात छिपी नहीं है कि टीपू का शासन हिन्दू जनता के विनाश और इस्लाम के प्रसार के अलावा कुछ न था यहां तक कि अंग्रेजों से उसके द्वारा किए युद्ध अपना राज और अस्तित्व बचाने के लिए थे । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने फ्रांस को यहां आक्रमण करने का न्यौता दिया तथा भारतीय जनता को रौंद डाला।

🚩टीपू ने केवल फ्रांस ही नहीं, ईरान, अफगानिस्तान को भी हमले के लिए बुलाया था। अत: अंग्रेजों से टीपू की लड़ाई को ‘देशभक्ति’ कहना दुष्टता, धूर्तता या घोर अज्ञान है। 

🚩हिन्दू जनता पर टीपू की अवर्णनीय क्रूरता के विवरण असंख्य स्रोतों से प्रमाणित हैं। पुर्तगाली यात्री बार्थोलोमियो ने सन् 1776 से 1789 के बीच के अपने प्रत्यक्षदर्शी वर्णन लिखे हैं। उसकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘वोएज टू ईस्ट इंडीज’ पहली बार सन् 1800 में ही प्रकाशित हुई थी। अभी भी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से छपी प्रति उपलब्ध है। 

🚩टीपू और फ्रांसीसियों के संयुक्त सैनिक अभियान का वर्णन करते हुए बार्थोलोमियो ने लिखा, ‘टीपू एक हाथी पर था, जिस के पीछे 30,000 सैनिक थे। कालीकट में अधिकांश पुरुषों और स्त्रियों को फांसी पर लटका दिया गया । पहले स्त्रियों को लटकाया गया तथा उनके गले से उनके बच्चे बांध दिए गए थे। उस बर्बर टीपू सुल्तान ने नंगे शरीर हिन्दुओं और ईसाइयों को हाथी के पैरों से बांध दिया और हाथियों को तब तक इधर-उधर चलाता रहा जब तक उनके शरीरों के टुकड़े-टुकड़े नहीं हो गए। मंदिरों और चर्चों को गंदा और तहस-नहस करके आग लगाकर खत्म कर दिया गया।’

🚩भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार सरदार के. एम. पणिक्कर ने ‘भाषा पोषिणी’ (अगस्त, 1923) में टीपू का एक पत्र उद्धृत किया है। सैयद अब्दुल दुलाई को 18 जनवरी 1790 को लिखे पत्र में टीपू के शब्द हैं, ‘नबी मुहम्मद और अल्लाह के फजल से कालीकट के लगभग सभी हिन्दू इस्लाम में ले आए गए। महज कोचीन राज्य की सीमा पर कुछ अभी भी बच गए हैं। उन्हें भी जल्द मुसलमान बना देने का मेरा पक्का इरादा है। उसी इरादे से यह मेरा जिहाद है।’

🚩मेजर अलेक्स डिरोम ने टीपू के खिलाफ मैसूर की लड़ाई में स्वयं हिस्सा लिया था। उन्होंने लंदन में 1793 में ही अपनी पुस्तक ‘थर्ड मैसूर वॉर’ प्रकाशित की। उस में टीपू की शाही मुहर का भी विवरण है, जिस में वह अपने को ‘सच्चे मजहब का संदेशवाहक’ और ‘सच्चाई का हुक्म लाने वाला’ घोषित करता था। 

🚩ऐसे प्रामाणिक विवरणों की संख्या अंतहीन है। टीपू के समय से ही पर्याप्त लिखित सामग्री मौजूद है, जो दिखाती है कि लड़कपन से टीपू का मुख्य लक्ष्य हिन्दू धर्म का नाश तथा हिन्दुओं को इस्लाम में लाना ही रहा था।

🚩सन् 1802 में लिखित मीर हुसैन अली किरमानी की पुस्तक ‘निशाने हैदरी’ में इस का विस्तार से विवरण है. इस के अनुसार, टीपू ने ही श्रीरंगपट्टनम की जामा मस्जिद (मस्जिदे आला) उसी जगह पहले स्थित एक शिव मंदिर को तोड़कर बनवायी थी।

🚩उस ने अपने कब्जे में आयी सभी जगहों के नाम बदल कर भी उन का इस्लामीकरण कर दिया था जैसे, कालीकट को इस्लामाबाद, मंगलापुरी (मैंगलोर) को जलालाबाद, मैसूर को नजाराबाद, धारवाड़ को कुरशैद-सवाद, रत्नागिरि को मुस्तफाबाद, डिंडिगुल को खलीकाबाद, कन्वापुरम को कुसानाबाद, वेपुर को सुल्तानपटनम आदि। टीपू के मरने के बाद इन सब को फिर अपने नामों में पुनर्स्थापित किया गया। 

🚩'केरल मुस्लिम चरित्रम्’ (1951) के ख्याति-प्राप्त इतिहासकार सैयद पी़ ए़ मुहम्मद के अनुसार, केरल में टीपू ने जो किया वह भारतीय इतिहास में चंगेज खान और तैमूर लंग के कारनामों से तुलनीय है।

🚩इतिहासकार राजा राज वर्मा ने अपने ‘केरल साहित्य चरितम्’ (1968) में लिखा है, ‘टीपू के हमलों में नष्ट किए गए मंदिरों की संख्या गिनती से बाहर है। मंदिरों को आग लगाना, देव-प्रतिमाओं को तोड़ना और गायों का सामूहिक संहार करना उस का और उस की सेना का शौक था. तलिप्परमपु और त्रिचम्बरम मंदिरों के विनाश के स्मरण से आज भी हृदय में पीड़ा होती है।’

🚩उक्त पुस्तकों के अलावा विलियम लोगान की ‘मालाबार मैनुअल’ (1887), विलियम किर्कपैट्रिक की ‘सेलेक्टिड लेटर्स ऑफ़ टीपू सुल्तान’ (1811), मैसूर में जन्मे ब्रिटिश इतिहासकार और शिलालेख-विशेषज्ञ बेंजामिन लेविस राइस की ‘मैसूर गजेटियर’ (1897), डॉ़ आई़ एम़ मुथन्ना की ‘टीपू सुल्तान एक्सरेड’(1980) आदि अनगिनत प्रामाणिक पुस्तकें हैं।

🚩संक्षेप में पूरी जानकारी के लिए बॉम्बे मलयाली समाज द्वारा प्रकाशित ‘Tipu Sultan: Villain or Hero?' (वॉयस ऑफ़ इंडिया, दिल्ली, 1993) देखी जा सकती है। सभी के विवरण पढ़कर कोई संदेह नहीं रहता कि यदि एक सौ जनरल डायर मिला दिए जाएं, तब भी निरीह हिन्दुओं को बर्बरतापूर्वक मारने में टीपू का पलड़ा भारी रहेगा। यह तो केवल कत्लेआम की बात हुई।

🚩केरल और कर्नाटक में मुस्लिम आबादी की वर्तमान संख्या का सब से बड़ा मूल कारण टीपू था। हिन्दुओं के समक्ष उस का दिया हुआ कुख्यात विकल्प था, ‘तलवार या टोपी?’ अर्थात, ‘इस्लामी टोपी पहनकर मुसलमान बन जाओ, फिर गौमांस खाओ, वरना तलवार की भेंट चढ़ो!’ टीपू के इस कौल, ‘स्वॉर्ड ऑर कैप’ का उल्लेख कई किताबों में मिलता है। बहरहाल, उसी टीपू को फिल्म अभिनेता संजय खान ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया (18 नवंबर 2015) को दिए साक्षात्कार में ‘देशभक्त’ बताया। साथ ही, उस के द्वारा हिन्दुओं का कत्ल करने, उनका उत्पीड़न, कन्वर्जन कराने आदि को ‘मिथ’ यानी कोरी बातें करार दिया है ।

🚩हमारे देश में इतिहास का मिथ्याकरण और हिन्दू-विरोधी राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । साथ ही यह भी कि देश का वामपंथी मीडिया कट्टर हिन्दू-विद्वेष से ग्रस्त है। इतिहास का यह घोर मिथ्याकरण ही, हमारे देश में सेकुलरवाद, उदारवाद के रूप में बौद्धिक रूप से प्रतिष्ठित है । इससे तनिक भी असहमति रखने को ही ‘असहिष्णुता’ बताकर सीधे-सीधे संपूर्ण हिन्दू जनता को अपमानित किया जाता है ।

🚩लाखों हिंदुओ का कत्ल करने वाला क्रूर टिपू सुल्तान को अच्छा बताकर उसको साहित्य में पढ़ाना ये देशवासियों का अपमान है, इसको तुरंत पाठ्यक्रम से हटा देना चाहिए।

🚩Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Tuesday, July 28, 2020

इंजीनियरिंग की हुई लड़की को नौकरी नहीं मिली, खाद बनाकर कमा रही है हर महीने 2 लाख !!

28 जुलाई 2020

🚩हमारा भारत देश एक कृषि प्रधान देश है जिसके आधे भाग पर खेती की जाती है विश्व में सबसे ज्यादा खेती भारत में ही की जाती है। खेती का नाम आते ही पढ़े लिखे युवा उससे मुह मोड़ लेते है क्योंकि दिमाग मे एकबात भर दिया कि खेती पिछड़े लोगों का व्यवसाय है और उसमें कमाई कुछ नही होती है लेकिन अगर सही तरीके से खेती कर दी जाए तो कम मेहनत में आप करोड़पति भी बन सकते हैं, आज लॉक डाउन में सभी बिजनेस मंदे हैं लेकिन कृषि में कभी मंदी नहीं आ सकती है क्योंकि भोजन के बिना किसी का चलता नहीं है और वे किसान अपनी मेहनत से अनाज पैदा करता है और पूरी दुनिया उसे खाकर आज जिंदा हैं।

🚩कठिन परिस्थितियों में बहुत से लोग टूट जाते हैं वहीं कुछ लोग मजबूत इच्‍छाशक्ति और कड़ी मेहनत से कामयाबी हासिल करते हैं। ऐसी ही मिसाल मेरठ की 27 साल की लड़की पायल अग्रवाल ने पेश की है। अव्‍वल नंबर में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाली पायल अग्रवाल को जब नौकरी नहीं मिली तो उसने लीक से हटकर काम चुना और अपनी लगन से वो आज की तारीख में अपने व्‍यवसाय से न केवल लाखों रुपये कमा रही बल्कि कई राज्यों के लोगों को प्‍लांट लगाने की मुफ्त ट्रेनिंग देकर समाजसेवा भी कर रही हैं।

🚩मेरठ की मूल निवासी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद सरकारी नौकरी के लिए कॉम्पिटिशन एग्जाम की तैयारी कर रहीं थीं। 2016 में बीटेक कम्पलीट करने के बाद अगले दो साल तक कॉम्पीटिटिव एग्जाम की तैयारी में लगी रहीं, लेकिन एग्जाम क्रेक नहीं कर पाई। वहीं एग्‍जाम की तैयारी के चक्कर में मल्‍टी नेशनल कंपनियों में मिली नौकरी का अवसर भी खो दिया। लेकिन नौकरी न मिलने पर पायल अग्रवाल मायूस नहीं हुईं उन्‍होंने कम लागत वाला कोई काम आरंभ करने का निर्णय लिया और ऐसे बिजनेस की ऑनलाइन तलाश शुरु कर दी। यू ट्यूब पर वर्मी-कम्पोस्ट (केंचुआ खाद) बनाने का आइडिया ढूंढ़ा और इस काम में जुट गई।

🚩पायल ने दो लाख रुपये की लागत से ये काम शुरु किया था। पायल को ये काम करते हुए दो साल से ज्यादा हो चुके हैं। महीने में एक से डेढ़ से दो लाख रुपए का प्रॉफिट कमा रहीं हैं।

🚩पायल बताती है कि उनके पास कोई जमीन नहीं थी इसलिए मेरठ के पास दतावली गांव में जमीन लीज पर ली। इस काम के लिए जमीन उपजाऊ हो या बंजर फर्क नहीं पड़ता। अगर बंजर जमीन होती है तो किराया और कम लगता है इसलिए पहले पायल ने डेढ़ एकड़ जमीन किराये पर ली थी, जिसका सालाना किराया 40 हजार रुपए था। उन्‍होंने बताया कि उनके भाई भाभी ने उनकी आर्थिक मदद की और कुछ उन्‍होंने लोगों से उधार लेकर काम शुरु किया। पायल ने इसकी शुरुआत वर्मी कंपोस्‍ट 30 बेड से शुरुआत की। पायल ने काली पॉलीथिन के दो रोल खरीदे , एक की कीमत ढाई हजार रुपए थी। खाद के लिए पानी की भी जरुरत थी बंजर जमीन पर पानी की व्‍यवस्‍था के 20 हजार रुपए का खर्च किया। पुराने जरनेटर को ठीक करवाकर बिजली की व्‍यवस्‍था की और खाद बनाने संबंधी औजार खरीदकर शुरुआत की।

🚩उन्‍होंने बताया शुरुआती साल में जितनी लागत लगाई उतना ही कमाई हुई। नुकसान नहीं हुआ इसलिए हौसला बढ़ा और अब एक से डेढ़ लाख रुपए महीना की बचत कर रही हूं। कई बार दो लाख रुपए तक की भी बचत हो जाती है। पिछले डेढ़ साल से पायल को अपने बिजनेस में इतना प्राफिट हो रहा है कि पायल वर्तमान समय में अभी पायल के बाद 200 बेड हैं औ वो हर महीने 20 से 25 टन खाद बनाती हैं।

●कई राज्यों मे लगवा चुकी हैं वर्मी कम्पोस्ट की यूनिट

🚩इस बिजनेस में पायल अग्रवाल ने ऐसी महारत हासिल कर ली है कि वो हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, अलीगढ़, बरेली, महाराष्ट्र, आगरा, कश्मीर, जामनगर जैसे शहरों में कई किसानों और लोगों के लिए वर्मी कम्पोस्ट की यूनिट लगवा चुकी हैं। पायल ये सेवा लोगों को निशुल्‍क प्रदान कर रही है वो नई यूनिट लगाने के लिए केंचुआ सप्लाई करती हैं। पायल के पास स्किल्ड लेबर हैं, जहां भी यूनिट लगानी होती है, वहां उनका एक ट्रेंड लेबर जाते हैं और व्यक्ति को ट्रेनिंग देकर आ जाते है।पायलऑनलाइन भी वीडियो के जरिए लोगों को कंसल्ट करती हैं।

●अब जैविक खाद बनाने के लिए तीन एकड़ जमीन की कर रही तलाश

🚩पायल अब तीन एकड़ जमीन की तलाश कर रही हैं जहां वो 500 बेड लगाकर खाद तैयार करवा सकें। पायल के मुताबिक, इस बिजनेस के लिए कोई विशेष स्किल की जरूरत नहीं। सामान्य समझ वाला कोई भी व्यक्ति इस काम को शुरू कर सकता है। पायल का कहना हैं आप कोई काम करना चाहते है तो चलना तो शुरु करिए क्योंकि आप जब चलना शुरु करेंगे तभी तो कही पहुंचेगें।

🚩पहले भी आपको बताया था कि गुजरात के पोरबंदर जिले के बेरण गांव के एक नौजवान जोड़ा रामदे खुटी और भारती खुटी का। रामदे और भारती काफी समय से लंदन में रह रहे थे। यहां दोनों पति-पत्नी नौकरी करके शानो-शौकत भरा जीवन जी रहे थे, लेकिन  अब यह युवा कपल लंदन छोड़कर गुजरात के पोरबंदर स्थित अपने गांव वापस आ गया है। और यहां गांव में रहकर दोनों पति-पत्नी खेती तथा पशुपालन कर रहे हैं।

🚩ऐसे तो अनेकों उदाहरण हैं आप भी लॉक डाउन में रोजगार नहीं मिलने पर परेशान हैं तो गूगल पर सर्च करके खेती के फायदे जानेंगे और उसके अनुसार करेंगे तो आप भी अच्छी कमाई कर सकते है, बस उसके लिए लगन होनी चाहिए।

🚩Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Monday, July 27, 2020

एक मुस्लिम कॉन्स्टेबल के सामने भगवान श्रीराम भाइयों संग हो गए प्रकट

27 जुलाई 2020

🚩 कुछ समय पूर्व तत्कालीन सरकार द्वारा भगवान राम अस्तित्व ही स्वीकार नही कर रहे थे और रामसेतु तोड़ने की बात भी कर रहे थे लेकिन रामसेतु तोड़ते के शुरुआती में भी भगवान का अस्तित्व होने का भास हो गया था और उससे पहले भी एक ऐसा चमत्कार हुआ कि सुनकर सभी दंग रह गए।

🚩 अयोध्या में 22 और 23 दिसंबर 1949 की उस दरम्यानी रात तीन गुंबदों के नीचे क्या हुआ था, यकीनी तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है। एक मुस्लिम कॉन्स्टेबल के बयान का हवाला देकर एक पक्ष वहॉं भगवान के प्रकट होने की बातें करता है तो दूसरा पक्ष फैजाबाद के तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह और जिलाधिकारी केकेके नायर की भूमिका को संदिग्ध बताकर दावा करता है कि मूर्तियॉं बाहर से लाकर रखी गई थी।

🚩 वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखते हैं कि उस रात कड़ाके की ठंड थी। अयोध्या घने कोहरे में लिपटा था। घुप्प अँधेरा पसरा था। कुछ दिख नहीं रहा था। राम जन्मभूमि परिसर की सुरक्षा में तैनात कोई दो दर्जन पुलिसवाले (पीएसी) तंबू में सो रहे थे। अंदर दो सिपाहियों की ड्यूटी बारी-बारी से थी।

🚩 पिछले नौ दिन से वहॉं रामचरितमानस का नवाह पाठ चल रहा था। यज्ञ-हवन का दिन होने के कारण वहॉं इतने ज्यादा पुलिस वाले तैनात थे। अमूमन समूचा परिसर तीन-चार पुलिसवालों के हवाले ही रहता था। रात 12 बजे से कॉन्स्टेबल अब्दुल बरकत की ड्यूटी थी। बरकत समय से ड्यूटी पर नहीं पहुॅंचे। रात एक बजे के बाद कॉन्स्टेबल शेर सिंह उन्हें नींद से जगा ड्यूटी पर भेजते हैं। जगमग रोशनी में अष्टधातु की मूर्ति देख सिपाही बरकत को काटो तो खून नहीं। बिल्कुल अवाक! उन्होंने एफआईआर में बतौर गवाह पुलिस को बताया- कोई 12 बजे के आसपास बीच वाले गुंबद के नीचे अलौकिक रोशनी हुई। रोशनी कम होने पर मैंने जो देखा उस पर विश्वास नहीं हुआ। वहाँ अपने तीन भाइयों के साथ भगवान राम की बालमूर्ति विराजमान थी।

🚩 बरकत का बयान अयोध्या में राम जन्मभूमि कार्यशाला के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है। इसमें बरकत के हवाले से कहा गया है- मस्जिद के भीतर से नीली रोशनी आ रही थी, जिसे देख मैं बेहोश हो गया।

🚩 हेमंत शर्मा लिखते हैं कि सुबह चार बजे के आसपास रामजन्मभूमि स्थान में मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई थी। बाहर टेंट में खबर आई कि भगवान प्रकट हो गए हैं। तड़के साढ़े चार बजे के आसपास मंदिर में घंटे-घड़ियाल बजने लगे, साधु शंखनाद करने लगे और वहॉं मौजूद लोग जोर-जोर से गाने लगे,

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥

🚩 ये पंक्तियॉं गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के बालकाण्ड में लिखी है, भगवान के जन्म लेने के मौके पर। कितना दिलचस्प संयोग है कि तुलसीदास ने इन पंक्तियों की रचना उसी कालखण्ड में की थी, जब अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर की जगह बाबरी मस्जिद बनाई गई थी!

🚩 जो नास्तिक लोग भगवान के अस्तित्व को जो नही मानते है उनके लिए एक तमाचा है। कुछ लोग तर्क करते है कि भगवान है ही नही ये दुनिया ऑटोमेटिक चलती है, जैसे घड़ी चलती है वैसे ही दुनिया चल रही है, लेकिन भाई घड़ियाल चल रही है  ऑटोमेटिक ये सही बात है लेकिन उसको बनाने वाला भी तो कोई है वैसे ही इतनी बड़ी दुनिया सुचारू रूप से चल रही है, हम खाते है रोटी लेकिन उसमें से खून, हड्डियां, वीर्य बन जाता है, गाय घास खाती है लेकिन उसका दूध बन जाता है ये सब ऑटोमेटिक होता है लेकिन आटोमेटिक सिस्टम फिट करने वाला तो कोई होगा और ये वही ईश्वर है उनको चाहे राम कहो या कृष्ण अथवा ईश्वर लेकिन सबकुक उन्होंने ही बनाया है और उन ईश्वर की सत्ता से ही सृष्टि चल रही है। इसलिए भगवान पर श्रद्धा करनी चाहिए और उनको प्रार्थना करनी चाहिए वही हमे सच्चा मार्गदर्शन दे सकते है और दुखों, मुसीबतों से बचा सकते है।

🚩Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Sunday, July 26, 2020

आर्य कौन हैं ? क्या भारत में आर्य बाहर से आए थे ? जानिए पूरा सच ।

26 जुलाई 2020

🚩हमारे देश में मैकाले द्वारा जो विषय तय किये गए उनमे से एक था इतिहास विषय। जिसमे मैकाले ने यह कहा की भारतवासियों को उनका सच्चा इतिहास नहीं बताना है क्योंकि उनको गुलाम बनाके रखना है, इसलिए इतिहास को विकृत करके भारत में पढाया जाना चाहिए। तो भारत का इतिहास पूरी तरह से उन्होंने विकृत कर दिया। सबसे बड़ी विकृति जो हमारे इतिहास में अंग्रेजो ने डाली जो आज तक ज़हर बन कर हमारे खून मे घूम रही है, वो विकृति यह है की “हम भारतवासी आर्य कहीं बहार से आयें।” सारी दुनिया मे शोध हो जुका है की आर्य नाम की कोई जाति भारत को छोड़ कर दुनिया मे कहीं नही थी। तो बाहर से कहाँ से आ गए हम ? फिर हम को कहा गया की हम सेंट्रल एशिया से आये माने मध्य एशिया से आये। मध्य एशिया में जो जातियां इस समय निवास करती है उन सभी जातियों के DNA लिए गए, DNA आप समझते है जिसका परिक्षण करके कोई भी आनुवांशिक सुचना ली जा सकती है। तो दक्षिण एशिया में मध्य एशिया में और पूर्व एशिया में तीनो स्थानों पर रहने वाली जातियों के नागरिकों के रक्त इकठ्ठे करके उनका DNA परिक्षण किया गया और भारतवासियों का DNA परिक्षण किया गया। तो पता चला भारतवासियों का DNA दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और पूर्व एशिया के किसी भी जाति समूह से नही मिलता है तो यह कैसे कहा जा सकता है की भारतवासी मध्य एशिया से आये, आर्य मध्य एशिया से आये ?

🚩इसका उल्टा तो मिलता है की भारतवासी मध्य एशिया मे गए, भारत से निकल कर दक्षिण एशिया में गए, पूर्व एशिया में गए और दुनियाभर की सभी स्थानों पर गए और भारतीय संस्कृति, भारतीय सभ्यता और भारतीय धर्म का उन्होंने पूरी ताकत से प्रचार प्रसार किया। तो भारतवासी दूसरी जगह पर जाकर प्रचार प्रसार करते है इसका तो प्रमाण है लेकिन भारत में कोई बाहर से आर्य नाम की जाति आई इसके प्रमाण अभी तक मिले नही और इसकी वैज्ञानिक पुष्टि भी नही हुई। इतना बड़ा झूठ अंग्रेज हमारे इतिहास में लिख गए और भला हो हमारे इतिहासकारों का उस झूठ को अंग्रेजों के जाने के 70 साल बाद भी हमें पढा रहे हैं।

🚩अभी थोड़े दिन पहले दुनिया के जेनेटिक विशेषज्ञ जो DNA, RNA आदि की जांच करनेवाले विशेषज्ञ  है इनकी एक भरी परिषद हुई थी और उस परिषद का जो अंतिम निर्णय है वो यह कहता है की “आर्य भारत में कहीं बाहर से नही आये थे, आर्य सब भारतवासी ही थे, जरुरत और समय आने पर वो भारत से बाहर गए थे।”

🚩अब आर्य हमारे यहाँ कहा जाता है श्रेष्ठ व्यक्ति को, जो भी श्रेष्ठ है वो आर्य है, कोई ऐसा जाति समूह हमारे यहाँ आर्य नही है। हमारे यहाँ तो जो भी जातियों में श्रेष्ठ व्यक्ति है वो सब आर्य माने जाते है, वो कोई भी जाति के हो सकते है, ब्राह्मण हो सकते है, क्षत्रिय हो सकते है, शुद्र हो सकते है, वैश्य हो सकते है। किसी भी वर्ण को कोई भी आदमी अगर वो श्रेष्ठ आचरण करता है हमारे यहां उसको आर्य कहा जाता है, आर्य कोई जाति समूह नही है, वो सभी जाति समूह में से श्रेष्ठ लोगों का प्रतिनिधित्व करनेवाला व्यक्ति है। ऊँचा चरित्र जिसका है, आचरण जिसका दूसरों के लिए उदाहरण के योग्य है, जिसका किया हुआ, बोला हुआ दुसरो के लिए अनुकरणीय है वो सभी आर्य है।

🚩हमारे देश में स्वामी दयानन्द जैसे लोग, भगत सिंह, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, उधम सिंह, चंद्रशेखर,अश्फाकउल्ला खान, तातिया टोपे, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई, कितुर चिन्नम्मा यह जितने भी नाम आप लेंगे यह सभी आर्य हैं, यह सभी श्रेष्ठ हैं क्योंकि इन्होने अपने चरित्र से दूसरों के लिए उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। इसलिए आर्य कोई हमारे यहाँ जाती नहीं है। राजा जो उच्च चरित्र का है उसको आर्य नरेश बोला गया नागरिक जो उच्च चरित्र के थे उनको आर्य नागरिक बोला गया भगवान श्री राम को आर्य नरेश कहा जाता था, श्री कृष्ण को आर्य पुत्र कहा गया, अर्जुन को कई बार आर्यपुत्र का संबोधन दिया गया, युथिष्ठिर, नकुल, सहदेव को कई बार आर्यपुत्र का सम्बोधन दिया गया या द्रौपदी को कई जगह आर्यपुत्री का सम्बोधन है। तो हमारे यहाँ तो आर्य कोई जाति समूह है ही नही, यह तो सभी जातियों मे श्रेष्ठ आचरण धारण करने वाले लोग, धर्म को धारण करने वाले लोग आर्य कहलाये हैं। तो अंग्रेजों ने यह गलत हमारे इतिहास में डाल दिया।

🚩सरकार को चाहिए कि पाठ्यक्रम में सही इतिहास को पढाये जो अंग्रेजों और वामपंथियों ने इतिहास में छेड़छाड़ करके हमारी संस्कृति विरोध में लिखा है वो बदल देना चाहिए।

🚩Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ