Saturday, August 1, 2020

रक्षाबंधन पर्व क्यों मनाया जाता है? वैदिक राखी के अनेक फायदे हैं, जानिए घर पर कैसे बनाएं ?

01 अगस्त 2020

🚩भारतीय संस्कृति में रक्षाबंधन पर्व की बड़ी भारी महिमा है । इतिहास साक्षी है कि इसके द्वारा अनगिनत पुण्यात्मा  लाभान्वित हुए हैं फिर चाहे वह वीर योद्धा अभिमन्यु हो या स्वयं देवराज इंद्र हो । इस पर्व ने अपना एक क्रांतिकारी इतिहास रचा है । रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है । यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प करके बाँधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है ।

🚩रक्षाबंधन पर्व समाज के टूटे हुए मनों को जोड़ने का सुंदर अवसर है । इसके आगमन से कुटुम्ब में आपसी कलह समाप्त होने लगते हैं, दूरी मिटने लगती है, सामूहिक संकल्पशक्ति साकार होने लगती है । रक्षा बंधन का पर्व भाई और बहन का प्रेम प्रकट करने का दिव्य पर्व हैं।


🚩भविष्य पुराण में लिखा है कि
सर्वरोगोपशमनं सर्वाशुभविनाशनम् । सकृत्कृते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत् ।।
‘इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है । इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्ष भर मनुष्य रक्षित हो जाता है ।'

🚩वैदिक राखी का महत्व :

🚩वैदिक राखी का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि सावन के मौसम में यदि रक्षासूत्र को कलाई पर बांधा जाये तो इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है । साथ ही यह रक्षासूत्र हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचरण भी करता है ।

🚩कैसे बनायें वैदिक रक्षासूत्र :

🚩दुर्वा, चावल, केसर, चंदन, सरसों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर एक पीले रंग के रेशमी कपड़े में बांध लें यदि इसकी सिलाई कर दें तो यह और भी अच्छा रहेगा । इन पांच पदार्थों के अलावा कुछ राखियों में हल्दी, कोड़ी व गोमती चक्र भी रखा जाता है । रेशमी कपड़े में लपेट कर बांधने या सिलाई करने के पश्चात इसे कलावे (मौली) में पिरो दें । आपकी राखी तैयार हो जाएगी ।
‘रक्षाबंधन के दिन वैदिक रक्षासूत्र बाँधने से वर्ष भर रोगों से हमारी रक्षा रहे, बुरे भावों से रक्षा रहे, बुरे कर्मों से रक्षा रहे'- ऐसा एक-दूसरे के प्रति सत्संकल्प करते हैं ।

🚩राखी महंगी है या सस्ती, यह महत्त्वपूर्ण नहीं है लेकिन इस धागे के पीछे जितना निर्दोष प्रेम होता है, जितनी अधिक शुद्ध भावना होती है, जितना पवित्र संकल्प होता है, उतनी रक्षा होती है तथा उतना ही लाभ होता है। जो रक्षा की भावनाएँ धागे के साथ जुड़ी होती हैं, वे अवश्य फलदायी होती हैं, रक्षा करती हैं  इसलिए भी इसे रक्षाबंधन कहते होंगे।

🚩राखी का धागा तो 25-50 पैसे का भी हो सकता है किंतु धागे के साथ जो संकल्प किये जाते हैं वे अंतःकरण को तेजस्वी व पावन बनाते हैं। जैसे इन्द्र जब तेजहीन हो गये थे तो शचि ने उनमें प्राणबल मनोबल भरने के भाव का आरोपण कर दिया कि ʹʹजब तक मेरे द्वारा बँधा हुआ धागा आपके हाथ पर रहेगा, आपकी ही विजय होगी, आपकी रक्षा होगी तथा भगवान करेंगे कि आपका बाल तक बाँका न होगा।”

🚩शचि ने इन्द्र को राखी बाँधी तो इन्द्र में प्राणबल का विकास हुआ और इन्द्र ने युद्ध में विजय प्राप्त की। धागा तो छोटा सा होता है लेकिन बाँधने वाले का शुभ संकल्प और बँधवाने वाले का विश्वास काम कर जाता है।

🚩रक्षाबंधन पर बहन का भाई के प्रति ऐसा हो शुभ संकल्प ।

🚩रक्षाबंधन के दिन बहन भैया के ललाट पर तिलक-अक्षत लगाकर संकल्प करती है कि ‘जैसे शिवजी त्रिलोचन हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, वैसे ही मेरे भाई में भी विवेक-वैराग्य बढ़े, मोक्ष का ज्ञान, मोक्षमय प्रेमस्वरूप ईश्वर का प्रकाश आये' ।  ‘मेरे भैया की सूझबूझ, यश, कीर्ति और ओज-तेज अक्षुण्ण रहें ।'
'मेरे भाई का मन अक्षय ज्ञान में, अक्षय शांति में, अक्षय आनंद में प्रवेश पाये । मेरे भाई को अक्षय सुख मिले, उसे अक्षय उपलब्धि प्राप्त हो । वर्षभर का प्रत्येक दिवस मेरे भाई के लिए सुमधुर हो । उसे प्रत्येक कार्य में सफलता मिले ।

🚩‘हमारे भाई भगवत्प्रेमी बनें ।' और भाई सोचें कि ‘हमारी बहन भी चरित्रप्रेमी, भगवत्प्रेमी बने ।' अपनी सगी बहन व पड़ोस की बहन के लिए अथवा अपने सगे भाई व पड़ोसी भाई के प्रति ऐसा सोचें । आप दूसरे के लिए भला सोचते हो तो आपका भी भला हो जाता है । संकल्प में बड़ी शक्ति होती है । अतः आप ऐसा संकल्प करें कि हमारा चरित्र उज्ज्वल हो, आत्मस्वभाव प्रकटे ।

🚩राखी बांधने का मंत्र...
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः । तेन त्वां अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
जिस पतले रक्षासूत्र ने महाशक्तिशाली असुरराज बलि को बाँध दिया, उसीसे मैं आपको बाँधती हूँ । आपकी रक्षा हो । यह धागा टूटे नहीं और आपकी रक्षा सुरक्षित रहे । - यही संकल्प बहन भाई को राखी बाँधते समय करे ।

🚩उपाकर्म संस्कार : इस दिन गृहस्थ ब्राह्मण व ब्रह्मचारी गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गौ-मूत्र को मिलाकर पंचगव्य बनाते हैं और उसे शरीर पर छिड़कते, मर्दन करते व पान करते हैं, फिर जनेऊ बदलकर शास्त्रोक्त विधि से हवन करते हैं । इसे उपाकर्म कहा जाता है । इस दिन ऋषि उपाकर्म कराकर शिष्य को विद्याध्ययन कराना आरम्भ करते थे ।

🚩उत्सर्जन क्रिया : श्रावणी पूर्णिमा को सूर्य को जल चढ़ाकर सूर्य की स्तुति तथा अरुंधती सहित सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है और दही-सत्तू की आहुतियाँ दी जाती हैं । इस क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं ।

🚩आप भी इस पर्व को वैदिक रीति से मनाकर, शुभ संकल्प करके ओजस्वी तेजस्वी और चरित्रवान बन सकते हैं।

🚩स्त्रोत : https://rishiprasad.org/

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Friday, July 31, 2020

आधुनिक शिक्षा पद्धति में गुरुकुल शिक्षा पद्धति का समन्वय-एक नई पहल...

31 जुलाई 2020


🚩आधुनिक समय में प्राचीन गुरुकुलों की पुनःस्थापना कठिन तो है लेकिन साथ ही साथ प्राचीन गुरुकुलों के प्रयोजन आज के विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य निर्माण के लिए अत्यन्त आवश्यक भी महसूस होते हैं ताकि हमारे विद्यार्थी अपने जीवन को उन्नत आदर्शों से पूर्ण करें और स्वावलंबी बनें यानि आर्थिक, सामाजिक, नैतिक रूप से गुलाम न बनें, आत्मनिर्भर तो बनें ही, इसके साथ-साथ बाँटकर खाने के उदारता जैसे सद्गुणों से युक्त हों यानि अपने निजी जीवन के लिए किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति के आधीन न हों।

🚩केंद्र सरकार ने बीते दिन लगभग 34 साल बाद भारत की शिक्षा नीति में बदलाव किया है। सुनने में आ रहा है कि उसमें काफी सुधार किया गया है ये एक अच्छी पहल है क्योंकि शिक्षा ही जीवन का निर्माण करती है इसलिए पूर्व में गुरुकुल में जैसी शिक्षा दी जाती थी उसमे से काफी कुछ लेकर शिक्षा व्यवस्था बनाई जाए तो भारत को विश्व गुरु बनने में देरी नही लगेगी।

🚩अपने आप में पूर्ण मानव का निर्माण हो और अन्त में जीवन के परम लक्ष्य के भी अधिकारी बनें, ऐसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए गुरुकुल शिक्षा पद्धति के सिद्धांतों का आधुनिक शिक्षा पद्धति के साथ समन्वय किया जाए तो कैसा ? आईये इस पर विचार करते हैं ।

🚩मूलभूत योजना:

🚩1) जो माता-पिता अपने होनेवाले बच्चे को गुरुकुल में प्रवेश करवाना चाहते हों, वे गर्भाधान से पहले ही अपना नाम व पता गुरुकुल गर्भ एवं शिशु संस्कार केन्द्र में पंजीकृत करवायें जहाँ भावी शिशु के माता-पिता को संबंधित आवश्यक जानकारियाँ दी जाएं यानि शिशु का इस जगत में कैसे स्वागत करें, आदि-आदि विषयों के बारें में समझाया जाए ताकि उनके घर में दिव्य एवं उत्तम आत्मा ही जन्म लें ।

🚩2) जब शिशु का जन्म हो तब गुरुकुल भावी विद्यार्थी निर्माण केन्द्र में अपना नाम पंजीकृत करवाएं जहाँ शिशु के माता-पिता को शिशु के लालन-पालन के विषय में प्रशिक्षण दिया जाए कि कैसे शिशु के स्वास्थ्य व संस्कार को मजबूत किया जाए आदि-आदि । तो जन्म से लेकर 7 वर्ष की आयु तक माता-पिता बच्चे को स्वस्थ व मजबूत बनायें ।

🚩3) 7 से 9 साल के बच्चों को पूर्व गुरुकुल प्रवेश प्रशिक्षण केन्द्रों में भेजा जाए जहाँ बच्चों को संस्कृत श्लोक उच्चारण, एक आसन पर स्थिर बैठने की एवं चित्त को एकाग्र करने के त्राटक, ध्यान आदि यौगिक प्रयोग करवाए जाएँ । यह कक्षा प्रातः 8 से 10 बजे तक की हो ।

🚩4) 9 वर्ष की उम्र में ‘उपनयन संस्कार’ करवाकर विद्यार्थी को ‘ब्रह्मचर्य आश्रम’ में प्रविष्ट करवाया जाए जिसमें विद्यार्थी को गायत्री मंत्र दिया जाता है, अगर संभव हो तो किसी समर्थ महापुरुष से ‘सारस्वत्य मंत्र’ की दीक्षा दिलवाई जाए ताकि विद्यार्थी की सुषुप्त शक्तियाँ जाग्रत हों ।

🚩5) उपनयन संस्कार के बाद विद्यार्थी को गुरुकुल में प्रवेश करवाया जाए जहाँ वह 12 वर्षों तक यानि 9 साल की उम्र से लेकर 21 साल की उम्र तक संपूर्ण ब्रह्मचर्य आश्रम के नियमों का पालने करते हुए विद्याध्ययन करे । इसका वर्णन गृहसूत्र में भी आता है कि जन्म से आठवें वर्ष में उपनयन होने के पश्चात् वेदों का अध्ययन आरम्भ करे ।

🚩6) विद्यार्थी को तिलक करना अत्यन्त आवश्यक है ताकि उसका तीसरा नेत्र विकसित हो । विशेषरूप से चंदन का तिलक उत्तम है जिसमें हल्दी एवं चुने का परिमित मात्र में मिश्रण हो जो उसके तीसरे नेत्र को विकसित करने में मदद करता है ।

🚩7) पद्मपुराण में आता है कि प्रतिदिन आयु और आरोग्य की सिद्धि के लिये तन्द्रा और आलस्य आदि का परित्याग करके अपने से बड़े पुरुषों को विधिपूर्वक प्रणाम करे और इस प्रकार गुरुजनों को नमस्कार करने का स्वभाव बना ले । नमस्कार करनेवाले ब्रह्मचारी को बदले में – ‘आयुष्मान भव सौम्य’ करके आशीर्वाद देना चाहिए, ऐसा विधान है । अपने दोनों हाथों को विपरीत दिशा में करके गुरु के चरणों का स्पर्श करना उचित है । शिष्य जिनसे लौकिक, वैदिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करता है, उन गुरुदेव को वह पहले प्रणाम करे ।

🚩8) गुरुकुलों की स्थापना शहरी वातावरण से दूर प्राकृतिक वातावरण में हो । गुरुकुल में विद्याध्ययन के लिए कक्षाओं के साथ-साथ प्रार्थना भवन, क्रीड़ा मैदान, पुस्तकालय/वाचनालय, भोजनशाला, गौशाला, औषधालय, विद्यार्थी निवास हेतु विशाल भवन एवं स्नानागार हों।

🚩9) कक्षा में विद्यार्थी जमीन पर आसन बिछाकर बैठे और बैठनेवाली डेस्क रहें क्योंकि जमीन पर अर्थिंग मिल जाएगी तो विद्यार्थी का आंतरिक विकास कुंठित हो जाएगा, इसलिए ।

🚩11) विद्यार्थी प्रातःसंध्या उपरांत सूर्य को अर्घ्य अवश्य दे ताकि विद्यार्थी कुशाग्र-बुद्धि, बलवान-आरोग्यवान बने ।

🚩12) विद्यार्थी शिखा रखे एवं शिखा बंधन का तरीका सीखे, जो वैश्विक सूक्ष्म ज्ञान तरंगों को झेल सकता है । शिखा में निम्न मंत्र कहते हुए तीन गांठ लगाने से मन संयत रहता है और मन में बुरे विचार नहीं आते ।
मन्त्र- ॐ विश्वानीदेव सवितुदुरीतानी परासुव यत् भद्रं तन्न आसुव ।

🚩13) विद्यार्थी हर तीन महीनों में मुंडन करवाएँ जिससे विद्यार्थी में सात्विकता बढ़ती है और धूप में जाते समय सिर खुला न रखे, टोपी आदि पहने अथवा वस्त्र से सिर ढ़के और पैरो में चप्पल पहने, नंगे पैर न धूमे ।

🚩14) विद्यार्थी कौपीन अथवा लंगोटधारी हो ।

🚩15) विद्यार्थी सख्त आसन पर शयन करे ताकि उसका शरीर फुर्तीला व स्वस्थ बना रहे और आलस्य उसे ना घेरे ।

🚩16) गुरुकुल की प्रत्येक छोटे-बड़े सेवाकार्य विद्यार्थियों द्वारा ही करवाए जाएँ जैसे कि,
(अ) गुरुकुल की सफाई ।
(आ) बाग-बगीचों आदि का निर्माण ।
(इ) भोजनशाला में सब्जी काटना, रोटी बनाना, भोजन परोसना आदि आवश्यक कार्य ।
(ई) गौ-शाला में सफाई, गौओं का चारा खिलाना आदि कार्य ।

🚩यानि जो भी जरुरी छोटे-बड़े सेवाकार्य हों वो विद्यार्थियों द्वारा ही संपन्न करवाए जाएँ ताकि विद्यार्थी मेहनती बनें एवं उनमें परस्पर भावयन्तु, स्वनिर्भरता, स्वावलंबन और सेवा-भाव जैसे दैवी गुणों का विकासत हो ।

🚩17) गुरुकुल में विद्यार्थी एक तपस्वी जीवन बिताए । अपना निजी कार्य खुद ही करे, व्यक्तिगत कार्यों जैसे कपड़े धोना आदि में दूसरों का सहारा न ले ।

🚩18) गुरुकुल में प्रथम पाँच वर्ष यानि 9 साल की उम्र से 13 साल की उम्र तक उसे भाषाज्ञान, व्याकरण, संख्याज्ञान एवं गणना आदि मूलभूत विद्या सिखाई जाए जिसमें संस्कृत भाषा सीखना अनिवार्य हो । यानि प्रथम वर्ष से ही संस्कृत सिखाना प्रारंभ करें व दूसरे साल संस्कृत के साथ हिन्दी, तीसरे साल संस्कृत, हिन्दी के साथ स्थानिक भाषा और चौथे साल संस्कृत, हिन्दी, स्थानिक भाषा के साथ अंग्रेजी सिखाना आरंभ करें । तब तक उन विद्यार्थियों का आचार्य एक ही हो और उन विद्यार्थीयों की संपूर्ण जिम्मेदारी उन आचार्य की ही रहेगी ।

🚩तदनन्तर यानि 14 साल की उम्र से 21 साल की उम्र तक एक विशिष्ट विद्या अथवा कला विद्यार्थी की रूचि व योग्यता के अनुसार सिखावें जैसे कि अर्थशास्त्र, भुगोल, आयुर्वेद, संगीत, गणनासंबंधी शास्त्र, कृषि विज्ञान, अस्त्र-शस्त्र विद्या आदि और कोई प्रतिभाशाली विद्यार्थी हो तो एक से ज्यादा विषय में भी अपना गति कर सके । यहाँ पर जिस विषय का विद्यार्थी हो, उस विद्यार्थी की देखभाल की जिम्मेदारी उस विषय को सिखानेवाले आचार्य की होगी ।

🚩19) विद्यार्थियों की परीक्षा प्रायोगिक हो, न कि लिखित यानि विद्यार्थी अपने सीखी हुई विद्या का प्रायोगिक प्रदर्शन करें । ताकि विद्यार्थी गुरुकुल से बाहर आने के बाद सिखी हुई विद्या का सदुपयोग मानव समाज में कर सकें । यानि विद्यार्थी गुरुकुल से निकले तो किस ना किसी विषय का विशेषज्ञ होकर ही बाहर निकलें जिसका दर्जा आजकल के इंजीनीयरों एवं डॉक्टरों से भी कई गुना ऊँचा हो, जो अपनी खुद की एक समाज उपयोगी संस्था खड़ी कर, समाज व राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में भागीदार हो ।

🚩20) 21 वर्ष की आयु के बाद विद्यार्थी यदि गुरुकुल में आचार्य के तौर पर नियुक्ति पाना चाहे तो पा सकता है ।

🚩21) आचार्य वर्ग का निवास स्थान गुरुकुल में ही हो, यानि आचार्य अपने पूरे परिवार के साथ गुरुकुल में ही निवास करें, विद्यार्थियों को अपने पुत्रवत् पालन करें व अपने बच्चों को शिक्षार्थ योग्य आयु होने के पश्चात् अन्यत्र गुरुकुल में भेजे अथवा वह खुद शिक्षा न देकर दूसरे आचार्यों से ही शिक्षा दिलवाएँ ।

🚩22) और आचार्य की पत्नियों का गुरुकुल के विद्यार्थी माता के समान आदर करें और वे भी विद्यार्थियों के पालन पोषण पर अपने पुत्रों के समान सस्नेह करें एवं ध्यान दें अथवा तो गुरुपत्नियाँ अलग से कन्याओं के लिए नगर के पास में गुरुकुल चलाएँ जहाँ कन्याएँ आचार्याओं के देख-रेख में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए संयम व सदाचारपुर्वक विद्याध्यन करें ।

🚩23) गुरुकुल में आचार्यों को नियुक्त करने से पहले गुरुकुल आचार्य प्रशिक्षण केन्द्र में इच्छुक व्यक्ति अपना नाम दर्ज करवाएँ, जहाँ उन्हें गुरुकुल के नीति नियमों के बारे में अच्छी तरह से परिचित करवाया जाए । यह प्रशिक्षण कम से कम 6 माह तक का हो । परंतु यह विधान गुरुकुल में ही पढ़े हुए विद्यार्थियों के लिए लागू नहीं होता । यह तो केवल नवीन व्यक्तियों को ही लागू होता है ।

🚩24) गुरुकुल में पहले 5 वर्ष तक पढ़ानेवाले आचार्य की उम्र 35 वर्ष से अधिक होनी चाहिए और 14 वर्ष से 21 वर्ष तक के विद्यार्थियों को पढ़ानेवाले 45 से 50 वर्ष से अधिक आयु के होने चाहिए ।

🚩25) गुरुकुल में विद्यार्थी पद्मपुराण के स्वर्गखण्ड में बताये गये ब्रह्मचारी शिष्यों के धर्म का यथासंभव पालन करें ।

🚩केन्द्र सरकार चाहे तो यह सभी नियम विद्यालयों में पढ़ते समय करवाये जा सकते है उपरोक्त नियमों का पालन किया जाए तो विद्यार्थी पूर्ण बनेंगे तब वो उन्नति, वो विकास केवल एक विद्यार्थी का ही नहीं होगा बल्कि पूरे राष्ट्र का होगा । उस भारत देश की तस्वीर कुछ अलग ही निराली होगी। हमारा भारत देश सारे विश्व का मार्गदर्शक सिद्ध होगा ।

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Thursday, July 30, 2020

फ्रांसीसी परिवार भगवान शिव के हो गए भक्त, बोले अब भारत से नही जाना है वापिस।

30 जुलाई 2020

🚩सत्य सनातन धर्म की यही वह सुंदरता है की जो इसको जानता है वह इसी का हो जाता है। इसीलिए इस पद्धति को मजहब नहीं बल्कि धर्म कहा गया है। हिंदू धर्म को और इसके देवी देवताओं को जिसने भी जाना वह इसी का हो गया और उसने इस को आत्मसात कर लिया। जरा विचार करिए कि दूर देश यूरोप के एक परिवार को लॉकडाउन में जब फंसना पड़ा तब महादेव शिव के 1 मंदिर के कपाट उनके लिए खुल गए और धीरे-धीरे महादेव का प्रसाद और भजन कीर्तन उस फ्रांसीसी परिवार का एक अंग बन गया। आज वही फ्रांसीसी परिवार सत्य सनातन के रंग में ऐसा रंग गया है कि वह वापस अपने देश जाना ही नहीं चाहता है और भारत सरकार से यह निवेदन कर रहा है कि उसे उस मंदिर में रहने दिया जाए जहां उनके महादेव शिव का वास है।

🚩निश्चित तौर पर कुछ अन्य मत मजहबो के इबादत गाहों की एक सीमा होती है परंतु हिंदुत्व सबके लिए समान है, इसको उस फ्रांसीसी परिवार से बेहतर कोई और नहीं जानता होगा.. एक फ्रांसीसी परिवार भारत घुमने आया था इसी बीच कोरोना के कारण पूरे देश मे लॉक डाउन लगा दिया गया। जिसके बाद यह परिवार यूपी के महराजगंज के एक गांव में फंस गया पर अब यह गांव इस परिवार को इतना भा गया कि उन्होंने वीजा बढाने की अर्जी लगा दी। यह फ्रांसीसी परिवार लॉकडाउन के वक्त से कोल्हुआ उर्फ सिंहोरवां के शिव मंदिर परिसर में रुका था। फ्रांसीसी परिवार सोमवार को दिल्ली स्थित फ्रांस के दूतावास के लिए रवाना हो गया। फ्रांसीसी परिवार के सदस्यों की वीजा अवधि खत्म होने को है और ऑनलाइन अवधि बढ़ाने की प्रक्रिया में पेंडिंग बता रहा है।

🚩जरूरी औपचारिकताएं पूर्ण होने के बाद परिवार के फिर गांव लौटने की संभावना है। फ्रांस के टूलूज शहर निवासी पैट्रीस पैलेरस, उनकी पत्नी वर्गिनी पैलेरस, दो बेटियां ओफिली पैलेरस व लोला पैलेरस और बेटा टाम पैलेरस अपने निजी वाहन से दिल्ली रवाना हो गए। ये लोग 1 मार्च 2020 को पाकिस्तान से बाघा बार्डर होते हुए भारत में आए थे। लॉकडाउन में यहां फंस गए। 22 मार्च से मंदिर परिसर में अपना आशियाना बना लिया। थानाध्यक्ष पुरंदरपुर शाह ने बताया कि फ्रांसीसी परिवार ने वीजा अवधि संबंधी दस्तावेज पूर्ण कराने के लिए दिल्ली स्थित फ्रांस के दूतावास जाने की सूचना दी है। स्त्रोत : सुदर्शन न्यूज

🚩भगवान शंकर के चरित्र बड़े ही उदात्त एवं अनुकम्पापूर्ण हैं। वे ज्ञान, वैराग्य तथा साधुता के परम आदर्श हैं। आप रुद्ररूप हैं तो भोलानाथ भी हैं। दुष्ट दैत्यों के संहार में काल रूप हैं तो दीन दुखियों की सहायता करने में दयालुता के समुद्र हैं। जिसने आपको प्रसन्न कर लिया उसको मनमाना वरदान मिला। रावण को अटूट बल बल दिया। भस्मासुर को सबको भस्म करने की शक्ति दी। यदि भगवान विष्णु मोहिनी रूप धारण करके सामने न आते तो स्वयं भोलानाथ ही संकटग्रस्त हो जाते। आपकी दया का कोई पार नहीं है। मार्कण्डेय जी को अपना कर यमदूतों को भगा दिया। आपका त्याग अनुपम है। अन्य सभी देवता समुद्र मंथन से निकले हुए लक्ष्मी, कामधेनु, कल्पवृक्ष और अमृत ले गये, आप अपने भाग का हलाहल पान करके संसार की रक्षा के लिए नीलकण्ठ बन गये।

🚩सनातन हिंदू संस्कृति इनती महान है कि इसको जिसने भी जाना है वे उसीका हो जाता है क्योंकि विश्व मे भारतीय संस्कृति जैसी महान, उदार संस्कृति कहि नही है, भारतीय संस्कृति में ही विश्व कल्याण की भावना है, सभी को स्वस्थ्य, सुखी और सम्मानित जीवन जीने की कला देती है, भारतीय संस्कृति के अनुसार जीवन जीकर मानव से महेश्वर की यात्रा कर सकता है, अतः आज से ही भारतीय संस्कृति के अनुसार अपना जीवन जीना शुरू करें।

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