Friday, August 7, 2020

नई शिक्षा नीति में प्रारम्भिक शिक्षा मातृभाषा में देने से क्या होगा?

 07 अगस्त 2020


🚩देश की नई शिक्षा नीति को भविष्‍य की मजबूत नींव रखने वाली नीति प्रधानमंत्री ने बताया है। इस दौरान प्रधानमंत्री ने नई‍ शिक्षा नीति में शामिल किए गए 5+3+3+4 स्‍ट्रक्‍चर पर पीएम मोदी ने कहा कि इस नीति का लक्ष्‍य अपनी जड़ों से जोड़ते हुए भारतीय छात्र को ग्‍लोबल सिटीजन बनाना है। इसमें कोई विवाद नहीं है कि स्‍कूल में पढ़ाई की भाषा वही होनी चाहिए जो छात्रों की मातृभाषा हो। ऐसा करने से बच्‍चों के साीखने की गति तेज होगी। पांचवीं क्‍लास तक उनकी भाषा में ही पढ़ाने की जरूरत है। इससे उनकी नींव मजबूत होगी। इससे आगे की पढ़ाई का भी उनका बेस मजबूत होगा।

🚩सच यह है की मातृभाषा में हो पढ़ाई तो बच्चे तेज़ी से सीखते हैं और स्वप्न भी  मातृभाषा में ही आते है लेकिन नइ शिक्षा नीति को लेकर कुछ लिबरल और देश विरोधी लोगो को रास नही आ रही है।

🚩आपको बता दें कि भारतीय संस्कृति की रीढ़ की हड्डी तोड़ने तथा लम्बे समय तक भारत पर राज करने के लिए 1835 में ब्रिटिश संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त करने के लिए मैकाले ने क्या रणनीति सुझायी थी तथा उसी के तहत Indian Education Act- 1858 लागु कर दिया गया।

🚩15 अगस्त 1947, को आज़ादी मिली, क्या बदला ?

🚩रंगमंच से सिर्फ अंग्रेज़ बदले बाकि सब तो वही चला। अंग्रेज़ गए तो सत्ता उन्ही की मानसिकता को पोषित करने वाली कांग्रेस के हाथ में आ गयी। जवाहरलाल नेहरू के कृत्यों पर तो किताबें लिखी जा चुकी हैं पर सार यही है की वो धर्मनिरपेक्ष कम और मुस्लिम हितैषी ज्यादा था। न मैकाले की शिक्षा नीति बदली और न ही शिक्षा प्रणाली। शिक्षा प्रणाली जस की तस चल रही है और इसका श्रेय स्वतंत्र भारत के प्रथम और दस वर्षों (1947-58) तक रहे शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलम आज़ाद को दे ही देना चाहिए बाकि जो कसर बची थी वो इन्दिरा गाँधी ने तो आपातकाल में विद्यालयों में पढ़ाया जाने वाला इतिहास भी बदल कर पूरी कर दी ।

🚩जिस आज़ादी के समय भारत की 18.73% जनता साक्षर थी उस भारत के प्रधानमंत्री ने अपना पहला भाषण "tryst With Destiny" अंग्रेजी में दिया था आज का युवा भी यही मानता है कि यदि अंग्रेजी न होती तो भारत इतनी तरक्की नहीं कर पाता। और हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि पता नहीं जर्मनी, जापान,चीन इजराइल ने अपनी मातृभाषाओं में इतनी तरक्की कैसे कर ली।

🚩1. अफ्रिका महाद्वीप - 46 पिछडे देश। इनमें से कितने देश आगे बढे हैं?
उत्तर : शून्य
उसका मूल कारण 21 देश फ्रांसीसी में,18 देश अंग्रेज़ी में, 5 देश पुर्तगाली में और 2 देश स्पेनिश में सीखते हैं। उन देशों पर शासन करने वालों की भाषाएँ हैं ।

🚩2. पाकिस्तान - 1947 से पहले पाकिस्तान के किसी भी हिस्से की मुख्य भाषा उर्दू नहीं थी। पाकिस्तान की अपनी भाषा क्या है यह आज भी विवाद का विषय है।
सरकारी कामकाज + उच्च शिक्षा - अंग्रेजी
संसद की भाषा + मिडिया की भाषा - उर्दू
घर की भाषा- पंजाबी, सिन्धी, बलोच आदि।

🚩पाकिस्तान के हालत - 60 % पाकिस्तान में पीने लायक पानी नहीं। 25% पाकिस्तान इतना अधिक अशान्त है कि वहां पाकिस्तान का प्रधानमन्त्री भी नहीं जा सकता. 90% दवाई आयात करता है।

🚩3. जापान
दुनिया की 6 भाषाओं से शोधपत्र (रिसर्च पेपर)का अनुवाद जर्मन, फ्रांसीसी, रूसी, अंग्रेज़ी, स्पेनिश और डच भाषाओं से शोधपत्रों का जापानी में अनुवाद करवाते है। जापानी भाषा में मात्र 3 सप्ताह में प्रकाशित किया जाता है। अनुवाद छापकर जापानी विशेषज्ञों को मूल कीमत से भी सस्ते मूल्य पर बेचे जाते हैं।
जापान की उन्नति पूरी दुनिया जानती है उसका कोई प्रमाण देने की जरूरत नहीं।

🚩4. इजरायल देश से आप परिचित ही हैं।  हिब्रू ऐसी भाषा है जो दुनिया के नक़्शे से लगभग गायब ही हो गई थी। इसके बावजूद यदि आज वह जीवित है और एक देश की राजभाषा के प्रतिष्ठित पद पर आसीन है। एक भाषा से एकता का उदाहरण है इजरायल।

🚩दुनिया में प्रति व्यक्ति पेटेंट कराने वालों में इजरायलियों का स्थान पहला है। इजरायल की जनसंख्या न्यूयॉर्क की आधी जनसंख्या के बराबर है। इजराइल का कुल क्षेत्रफल इतना है कि तीन इजराइल मिल कर भी राजस्थान जितना नहीं हो सकते।

🚩इजरायल दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जो समूचा एंटी बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम से लैस है। इजरायल के किसी भी हिस्से में रॉकेट दागने का मतलब है मौत। इजरायल की ओर जाने वाला हर मिसाइल रास्ते में ही दम तोड़ देता है। इजरायल अपने जन्म से अब तक 7 लड़ाइयां लड़ चुका है। जिसमें अधिकतम में उसने जीत हासिल की है। इजरायल दुनिया में जीडीपी के प्रतिशत के मामले में सर्वाधिक खर्च रक्षा क्षेत्र पर करता है। इजरायल के कृषि उत्पादों में 25 साल में सात गुणा बढ़ोतरी हुई है, जबकि पानी का इस्तेमाल जितना किया जाता था, उतना ही अब भी किया जा रहा है। इजरायल अपनी जरुरत का 93 प्रतिशत खाद्य पदार्थ खुद पैदा करता है। खाद्यान्न के मामले में इजरायल लगभग आत्मनिर्भर है।

🚩किसी वृक्ष का, विकास रोकने का, सरल उपाय, क्या है? माना जाता है, कि वह उपाय है, उस के मूल काटकर उसे एक छोटी कुंडी (गमले) में लगा देना। जडे जितनी छोटी होंगी, वृक्ष उतना ही नाटा होगा, ठिंगना होगा। जापानी बॉन्साइ पौधे ऐसे ही उगाए जाते हैं। कटी हुयी, छोटी जडें, छोटे छोटे पौधे पैदा कर देती है। वे पौधे कभी ऊंचे नहीं होते, जीवनभर पौधे नाटे ही रहते हैं। पौधों को पता तक नहीं होता, कि उनकी वास्तव में नियति क्या थी? यही है मातृ भाषा से दूर करना अर्थात जड़े काटना।

🚩तमिलनाडु में परिजनों और स्कूलों की मांग, ‘हमें हिंदी चाहिए’

🚩तमिलनाडु में हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने के खिलाफ 60 के दशक में हिंसक विरोध प्रदर्शन देखने को मिले थे। हालांकि अब यह मामला उल्टा पड़ता दिख रहा, जहां राज्य में कई छात्र, उनके परिजन और स्कूलों ने तमिल के एकाधिकार के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी है। उनका कहना है कि उन्हें हिंदी चाहिए।

🚩स्कूलों और परिजनों के एक समूह ने डीएमके की तत्कालीन सरकार की ओर से साल 2006 में पारित एक आदेश को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि दसवीं कक्षा तक के बच्चों को केवल तमिल पढ़ाई जाएगी (हिन्दी नहीं), इसमे इंग्लिश की अनिवार्यता को नहीं बदला गया था,
संदर्भ -NDTVcom, Last Updated: जून 16, 2014 06:43 PM IST

🚩आजतक जितने भी देश उन्नत हुए वे अपनी मातृभाषा में पढ़कर ही हुए है चाइना आज इतना आगे इसलिए है वहाँ अपनी मातृभाषा में ही सबकुछ होता है इसलिए मातृ भाषा और राष्ट्र भाषा को महत्त्व देना चाहिए, 200 साल हमे गुलाम बनाने वाले अंग्रजो की भाषा को तो तुरंत हटा ही देना चाहिए ये मानसिकता की गुलामी है, अपने देश की संस्कृति, इतिहास , धर्म के बारे में बच्चों को सही जानकरी मिले उस अनुसार पाठ्यक्रम बनना चाहिए और प्राचीन गुरुकुलों के अनुसार शिक्षा नीति बननी चाहिए।

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Thursday, August 6, 2020

सुप्रीम कोर्ट में 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को हटाने की हुई मांग !!


06 अगस्त 2020

🚩संविधान की प्रस्तावना संविधान का परिचय पत्र है। सविधान की प्रस्तावना बताती है कि संविधान के प्राधिकार का स्त्रोत क्या है। वह यह भी बताती है कि संविधान किन उद्देश्यों को संवर्धित या प्राप्त करना चाहता है।

🚩पर देश का दुर्भाग्य है कि सन 1976 में जब कांग्रेस की सरकार थी और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी, तब संविधान में 42वां संशोधन हुआ जिसे इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के दौरान लागू किया वो भी केवल और केवल अपने राजनीतिक हितों के लिए।

🚩वैसे तो 42 वें संशोधन में बहुत कुछ संशोधित किया गया था पर सबसे बड़ी बात थी कि संविधान की मूल प्रस्तावना में भी छेड़छाड़ हुई। संविधान की प्रस्तावना में 2 शब्द जोड़ दिए थे - "समाजवाद" और "धर्मनिरपेक्ष"।

🚩इमरजेंसी के दौरान ऐसे शब्द संविधान की प्रस्तावना में छेड़छाड़ कोई छोटी बात नहीं थी और ये मुद्दा काफी समय तक गर्म भी रहा। अब इसके पीछे तत्कालीन सरकार की क्या मंशा थी, इसके विषय में कुछ साफ साफ तो नहीं कहा जा सकता पर धर्मनिरपेक्षता (सेक्युलर) की आड़ में देश की एकता, अखंडता और हिन्दुत्व को बार बार चोट पहुँचाई गई। राष्ट्र विरोधी तत्वों ने सेक्युलर का चोला पहन लिया और सेक्युलरिज्म की आड़ में देश और हिन्दू धर्म को भारी क्षति पहुंचाई।

🚩और सबसे बड़ा देश का दुर्भाग्य ये है कि 1976 में हुए संशोधन में हुआ ये अन्याय आज भी ज्यों का त्यों है। आजतक ये दो शब्द संविधान की प्रस्तावना में जुड़े हैं और इन्हीं शब्दों की आड़ में लोकतंत्र की हत्या हो रही हैं।

🚩पर अब सर्वोच्च न्यायालय में इन दो शब्दों को संविधान की प्रस्तावना से हटाने की याचिका दायर हो गई है। दायर याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 ए (5) में दिए गए शब्द समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष को भी रद करने की मांग की गई है। यह याचिका तीन लोगों ने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिये दाखिल की है।

🚩याचिका में कहा गया है कि जब ये शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए, उस समय देश में आपातकाल लागू था। संविधान के इस संशोधन पर सदन में बहस ही नहीं हुई थी, और ये बिना बहस के पास हो गया था। 

🚩याचिका में ये भी कहा गया है कि संविधान सभा के सदस्य के टी शाह ने तीन बार धर्मनिरपेक्ष (सेकुलर) शब्द को संविधान में जोड़ने का प्रस्ताव दिया था लेकिन तीनों बार संविधान सभा ने प्रस्ताव खारिज कर दिया था। खुद डॉ बी आर अंबेडकर ने भी प्रस्ताव का विरोध किया था।

🚩के टी शाह ने पहली बार 15 नबंवर 1948 को सेक्युलर शब्द को संविधान में शामिल करने का प्रस्ताव दिया जो कि खारिज हो गया। दूसरी बार 25 नवंबर 1948 और तीसरी बार 03 दिसंबर 1948 को शाह ने प्रस्ताव दिया लेकिन संविधान सभा ने फिर से खारिज कर दिया।

🚩याचिका में कहा गया है कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत सिर्फ सरकार के कामकाज तक सीमित रखा जाए। 

🚩याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 14, 15 और 27 सरकार के धर्मनिरपेक्ष होने की बात करता है यानि सरकार किसी के साथ धर्म, भाषा, जाति, स्थान या वर्ण के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी। लेकिन अनुच्छेद 25 नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें व्यक्ति को अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानने और उसका प्रचार करने की आजादी है। कहा गया है कि लोग धर्मनिरपेक्ष नहीं होते, सरकार धर्मनिरपेक्ष होती है। 

🚩याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में 15 जून 1989 को संशोधन कर जोड़ी गई धारा 29 ए (5) से भी सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्द हटाने की मांग है और कहा गया है कि इसे राजनैतिक दलों और आम जनता पर लागू ना किया जाए।

🚩इसके तहत राजनैतिक दलों को पंजीकरण के समय यह घोषणा करनी होती है कि वे धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत का पालन करेंगे। कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 कहती है कि धर्म के आधार पर वोट नहीं मांगेगे लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि धर्म के आधार पर संगठन नहीं बना सकते।

🚩याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट घोषित करे कि सरकार को लोगों को समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत का पालन करने के लिए बाध्य करने का अधिकार नहीं है।

🚩ये हर्ष का विषय है कि ऐसी याचिका आज सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल हुई है जिसमें दशकों के भेदभाव और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई गई है। सभी देशवासियों से अपील है कि एक आवाज़ से संविधान की प्रस्तावना से "समाजवाद" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्द हटाने वाली इस याचिका का समर्थन करें ताकि इन शब्दों की आड़ में देश की एकता, अखंडता और हिन्दुत्व पर प्रहार करने वाले राष्ट्र विरोधी तत्वों से देश और हिन्दुत्व की रक्षा हो।

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Wednesday, August 5, 2020

श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या किसने बनाई थी ? जानें प्राचीन इतिहास

05 अगस्त 2020

🚩अयोध्या का सबसे पहला वर्णन अथर्ववेद में मिलता है। अथर्ववेद में अयोध्या को 'देवताओं का नगर' बताया गया है, 'अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या'।

🚩भारत की प्राचीन नगरियों में से एक अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र और सबसे प्राचीन सप्त पुरियों में प्रथम माना गया है। सप्त पुरियों में अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका को शामिल किया गया है।

★ कौशल राज्य की राजधानी है अयोध्या

🚩राम के काल में भारत 16 महा जनपदों में बंटा था। महाभारत काल में 18 महाजनपदों में बंटा था। इन महाजनपदों के अंतर्गत कई जनपद होते थे। उन्हीं में से एक था कौशल महाजनपद इसकी राजधानी थी अवध जिसके साकेत और श्रावस्ती दो हिस्से बाद में हुए। अस अवध को ही अयोध्या कहा गया। दोनों का अर्थ एक ही होता है। रामायण और रामचरित मानस के अनुसार राजा दशरथ के राज्य कौशल की राजधानी अयोध्या थी।

★ सरयू के पास है अयोध्या

🚩वाल्‍मीकि रामायण के 5वें सर्ग में अयोध्‍या पुरी का वर्णन विस्‍तार से किया गया है। जिसमें बताया गया है कि सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर की रामायण अनुसार विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा स्थापना की गई थी। सभी शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलेगा कि अयोध्या नगरी सरयु नदी के तट पर बसी थीं जिसके बाद नंदीग्राम नामक एक गांव था। अयोध्या से 16 मील दूर नंदिग्राम हैं जहां रहकर भरत ने राज किया था। यहां पर भरतकुंड सरोवर और भरतजी का मंदिर हैं।

🚩पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा से जब मनु ने अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात कही तो वे उन्हें विष्णुजी के पास ले गए। विष्णुजी ने उन्हें साकेतधाम में एक उपयुक्त स्थान बताया। विष्णुजी ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा तथा मनु के साथ देवशिल्‍पी विश्‍वकर्मा को भेज दिया। इसके अलावा अपने रामावतार के लिए उपयुक्‍त स्‍थान ढूंढने के लिए महर्षि वशिष्‍ठ को भी उनके साथ भेजा। मान्‍यता है कि वशिष्‍ठ द्वारा सरयू नदी के तट पर लीलाभूमि का चयन किया गया, जहां विश्‍वकर्मा ने नगर का निर्माण किया।
★ रघुवंशों की राजधानी थी अयोध्या

🚩अयोध्या रघुवंशी राजाओं की कौशल जनपद की बहुत पुरानी राजधानी थी। वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के वंशजों ने इस नगर पर राज किया था। इस वंश में आगे चलकर राजा हरिशचंद्र, भगिरथ, सगर आदि के बाद राजा दशरथ 63वें शासक थे। इसी वंश के राजा भारत के बाद श्रीराम ने शासन किया था। उनके बाद कुश ने एक इस नगर का पुनर्निर्माण कराया था। कुश के बाद बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इस पर रघुवंश का ही शासन रहा। फिर महाभारत काल में इसी वंश का बृहद्रथ, अभिमन्यु के हाथों महाभारत के युद्ध में मारा गया था। बृहद्रथ के कई काल बाद तक यह नगर मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रहा। अंत में यहां महमूद गजनी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की और उसके बाद से ही अयोध्या के लिए लड़ाइयां शुरु हो गई। उसके बाद तैमूर, तैमूर के महमूद शाह और फिर बाबर ने इस नगर को लूटकर इसे ध्वस्त कर दिया था।
★ अयोध्या का अन्य उल्लेख

🚩वाल्मीकि कृत रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख मिलता है कि अयोध्या 12 योजन-लम्बी और 3 योजन चौड़ी थी। सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसे 'पिकोसिया' संबोधित किया है। उसके अनुसार इसकी परिधि 16ली (एक चीनी 'ली' बराबर है 1/6 मील के) थी। संभवतः उसने बौद्ध अनुयायियों के हिस्से को ही इस आयाम में सम्मिलित किया हो। आईन-ए-अकबरी के अनुसार इस नगर की लंबाई 148 कोस तथा चौड़ाई 32 कोस मानी गई है। नगर की लंबाई, चौड़ाई और सड़कों के बारे में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं- 'यह महापुरी बारह योजन (96 मील) चौड़ी थी। इस नगरी में सुंदर, लंबी और चौड़ी सड़कें थीं।' -(1/5/7)

★ अवध क्यों कहते हैं ?

🚩स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या शब्द 'अ' कार ब्रह्मा, 'य' कार विष्णु है तथा 'ध' कार रुद्र का स्वरूप है। इसका शाब्दिक अर्थ है जहां पर युद्ध न हो। यह अवध का हिस्सा है। अवध अर्थात जहां किसी का वध न होता हो। अयोध्या का अर्थ -जिसे कोई युद्ध से जीत न सके। राम के समय यह नगर अवध नाम की राजधानी से जाना जाता था। बौद्ध ग्रन्थों में इन नगरों के पहले अयोध्या और बाद में साकेत कहा जाने लगा। कालिदास ने उत्तरकोसल की राजधानी साकेत और अयोध्या दोनों ही का नामोल्लेख किया है।

★ राम के जन्म स्थान पर सबसे पहले किसने बनाया था मंदिर

🚩महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी हो गई, मगर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व फिर भी बना रहा। पौराणिख उल्लेख के अनुसार यहां जन्मभूमि पर सबसे पहले राम के पुत्र कुश ने एक मंदिर बनवाया था।
★ विक्रमादित्य ने पुन: निर्माण कराया

🚩इसके बाद यह उल्लेख मिलता है कि ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने इसे राम जन्मभूमि जानकर यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए थे। कहते हैं कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी।
★ पुष्यपित्र शुंग ने कराया पुन: निर्माण

🚩विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। उन्हीं में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है। यहां पर 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3,000 भिक्षु रहते थे और यहां हिन्दुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर भी था, जहां रोज हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते थे।

★ किसने तोड़ा था अयोध्या में राम मंदिर?

🚩विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावातों को झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14वीं शताब्दी तक बचा रहा। कहते हैं कि सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान यहां भव्य मंदिर मौजूद था। 14वीं शताब्दी में हिन्दुस्तान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही श्री राम जन्मभूमि एवं अयोध्या को नष्ट करने के लिए कई अभियान चलाए गए। अंतत: 1528 में इस भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। कहते हैं कि मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के सेनापति मीर बांकी ने बिहार अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन और भव्य मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई थी, जो 1992 तक विद्यमान रही।

★ सप्तपुरियों में से एक अयोध्या

🚩प्राचीन उल्लेखों के अनुसार प्रभु श्रीराम का जन्म सप्तपुरियों में से एक अयोध्या में हुआ था। वर्तमान में सरयू तट पर स्थिति जो अयोध्या है वही सप्तपुरियों में से एक है। यदि अयोध्या कहीं ओर होती तो उसका सप्तपुरियों के वर्णन में कहीं ओर बसे होने का उल्लेख होता और वर्तमान की अयोध्या एक तीर्थ स्थल नहीं बनता जो कि महाभारत काल से ही विद्यमान है। भारत की प्राचीन नगरियों में से एक अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र सप्त पुरियों में अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका में शामिल किया गया है।

★ मिथिला कहां है?

🚩रामायण काल में मिथिला के राजा जनक थे। उनकी राजधानी का नाम जनकपुर है। जनकपुर नेपाल का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह नेपाल की राजधानी काठमांडू से 400 किलोमीटर दक्षिण पूरब में बसा है। यह शहर भगवान राम की ससुराल के रूप में विख्यात है। इस नगर में ही माता सीता ने अपना बचपन बिताया था। कहते हैं कि यहीं पर उनका विवाह भी हुआ। कहते हैं कि भगवान राम ने इसी जगह पर शिव धनुष तोड़ा था। यहां मौजूद एक पत्थर के टुकड़े को उसी धनुष का अवशेष कहा जाता है। यहां धनुषा नाम से विवाह मंडप स्‍थित है इसी में विवाह पंचमी के दिन पूरी रीति-रिवाज से राम-जानकी का विवाह किया जाता है। यहां से 14 किलोमीटर 'उत्तर धनुषा' नाम का स्थान है। राजा जनक विदेही और श्रमणधर्मी थे। विश्वामित्र का आश्रम वाराणसी के आसपास ही कहीं था। वहीं से श्रीराम जनकपुर गए थे। अयोध्या से जनकपुर लगभग 522 किलोमीटर है।

🚩श्रीराम के काल में अयोध्या की विश्व के प्रमुख व्यापारिक केंद्र में गिनती होती थी। वाल्मीकि रामायण के अनुसार यहां विभिन्न देशों के कारबारी आया जाया करते थे। यहां महत्वपूर्ण प्रकार के शिल्प और अस्त्र शस्त्र बनते थे। यह हाथी घोड़े के कारोबार का भी केंद्र था। कम्बोज और बाहित जनपद के सबसे बेहतर नस्ल के घोड़े का यहां कारोबार होता था। यहां विंध्याचल और हिमाचल के गजराज भी होते थे। यह भी कहा जाता है कि यहां हाथियों की हाइब्रिड नस्ल का कारोबार भी होता था।

★ अयोध्या था देश का सबसे संपन्न और वैभवशाली नगर

🚩वाल्मीकि रामायण के अनुसार वह पुरी चारों ओर फैली हुई बड़ी-बड़ी सड़कों से सुशोभित थी। सड़कों पर नित्‍य जल छिड़का जाता था और फूल बिछाए जाते थे। अर्थात इन्द्र की अमरावती की तरह महाराज दशरथ ने उस पुरी को सजाया था। इस पुरी में बड़े-बड़े तोरण द्वार, सुंदर बाजार और नगरी की रक्षा के लिए चतुर शिल्‍पियों द्वारा बनाए हुए सब प्रकार के यंत्र और शस्‍त्र रखे हुए थे। वहां के निवासी अतुल धन संपन्‍न थे, उसमें बड़ी-बड़ी ऊंची अटारियों वाले मकान जो ध्‍वजा-पताकाओं से शोभित थे और परकोटे की दीवालों पर सैकड़ों तोपें चढ़ी हुई थीं।  'स्‍त्रियों की नाट्य समितियों की भी यहां कमी नहीं है और सर्वत्र जगह-जगह उद्यान निर्मित थे। आम के बाग नगरी की शोभा बढ़ाते थे। नगर के चारों ओर साखुओं के लंबे-लंबे वृक्ष लगे हुए थे। यह नगरी दुर्गम किले और खाई से युक्‍त थी तथा उसे किसी प्रकार भी शत्रुजन अपने हाथ नहीं लगा सकते थे। -अनिरुद्ध जोशी

🚩अयोध्या का इतिहास प्राचीन है, और आज करोड़ो भक्तों की पुकार प्रभु श्री राम ने सुन ली और आज भूमि पूजन हुआ और अब मंदिर निर्माण शूर होगा यह रामभक्तो के लिए अत्यंत हर्ष की घड़ी है।

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