Saturday, August 8, 2020

इस्लाम समुदाय के 250 लोगों ने की घरवापसी, बोले हमारा मूल धर्म हिंदू है।

 08 अगस्त 2020


🚩भारत मे पहले सनातन हिन्दू धर्म ही था। जब से भारत मे विदेशी आक्रमणकारी आये तब से उन्होंने अपने धर्म मे लाने के लिए बहुत प्रयत्न किये, उसमे सबसे ज्यादा मुगलों ने क्रूरता दिखाई, उन्होंने यही बोला या तो मुसलमान बन जाओ अथवा मरने के लिए तैयार हो जाओ और उन्होंने किया भी ऐसा ही चारो तरफ मार काट शुरू कर दी। कुछ लोग डर के मुस्लिम समुदाय में चले गए और काफी लोगो ने धर्मपरिवर्तन नही किया, उसमे से काफी हिंदुओं की क्रूरता से हत्या कर दी। कुछ ने भय के कारण मुस्लिम समुदाय अपनाया था उसमे से काफी लोगों ने घर वापसी भी कर ली है।

🚩अभी राजस्थान में एक ओर मामला सामने आया है उन्होंने भी सनातन हिंदू धर्म की महिमा समझकर घर वापसी कर दी।

🚩अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन हो रहा था तो राजस्थान के करीब 50 मुस्लिम परिवारों ने हिंदू धर्म में वापसी की। मामला बाड़मेर जिले के पायला कल्ला पंचायत के मोतीसारा गाँव की है।

🚩मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इन परिवारों के करीब 250 लोगों ने बुधवार को हवन-पूजन किया। पुरुषों ने जनेऊ धारण कर हिंदू धर्म अपनाया। इन लोगों ने कहा है कि ऐसा करने के लिए उन पर किसी ने दबाव नहीं बनाया था।

🚩हिंदू धर्म अपनाने वाले मुस्लिम परिवार के बुजुर्गों का कहना है कि उनके पूर्वज हिंदू थे। उन्हें जैसे ही इतिहास का ज्ञान हुआ इसके बाद उन्होंने यह फैसला लिया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह निर्णय स्वेच्छा से लिया गया है।

🚩हिंदू धर्म स्वीकार करने वाले सुभनराम ने मीडिया वालों से बात करते हुए इस बारे में जानकारी दी। सुभनराम ने कहा मुग़ल शासन में मुस्लिमों ने हमारे पूर्वजों (हिंदुओं) को डरा धमका कर उनका धर्म परिवर्तन करा लिया था।

🚩सुभनराम ने कहा सच यही है कि हम हिंदू धर्म से संबंध रखते थे। शायद इसलिए मुस्लिम हमसे दूरी बना कर रखते हैं। हमने अपने इतिहास के बारे में जानना शुरू किया और तब हमें पता चला कि हम असल में हिंदू हैं। हमें आभास हुआ कि अभी तक हम कितने भ्रम में जी रहे थे। नतीजतन हमें अपने धर्म में वापस लौट आना चाहिए। इतना कुछ पता चलने और समझ आने के बाद हमने अपने धर्म में वापस आने का फैसला लिया।

🚩इसके बाद उन लोगों के घर पर हवन हुआ और परिवार के लगभग 250 सदस्यों ने हिंदू धर्म अपना लिया। हरजीराम ने बताया कि ये परिवार कंचन ढाढ़ी जाति से संबंध रखते हैं। इन परिवारों के सदस्य पिछले कई सालों से हिंदू धर्म के रीति-रिवाज़ों का पालन कर रहे थे।

🚩विंजाराम के मुताबिक़ परिवार का कोई भी व्यक्ति मुस्लिम रीति रिवाज़ों का पालन कभी नहीं करता था। राम मंदिर के शिलान्यास समारोह में भी हम सभी ने पूजा-पाठ का आयोजन कराया था और हमने पूरी स्वेच्छा से हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया।

🚩गाँव में लगभग 50 परिवार ढाढ़ी जाति के हैं जिसमें से लगभग एक दर्जन घरों के आस-पास मंदिर बने हुए हैं। इतना ही नहीं परिवारों में ज़्यादातर लोगों के नाम भी हिंदू धर्म से ही प्रेरित हैं। परिवार के बुजुर्गों का दावा है कि औरंगज़ेब के दौर में उनके पूर्वज हिंदू थे। उन्होंने मुग़ल शासक के डर से हिंदू धर्म अपनाया। लेकिन अब उनके परिवार के शिक्षित लोगों को इस बात का ज्ञान हुआ, जिसके बाद उन्होंने वापस हिंदू धर्म अपनाने का निर्णय लिया।

🚩कोरोना महामारी के चलते परिवार वालों ने राम मंदिर शिलान्यास के मौके पर सरपंच को सूचित करके खुद हवन करवाया। हरुराम ने बताया कि राम मंदिर के शिलान्यास पर उन्हें बहुत खुशी हुई। इसके लिए उन्होंने अपने घर में दीपक जला कर हवन भी करवाया।

🚩वहीं गाँव के पूर्व सरपंच प्रभुराम कलबी ने कहा कि ढाढ़ी जाति के सदस्यों पर ऐसा करने के लिए किसी ने दबाव नहीं बनाया। उन्होंने यह सब अपनी मर्ज़ी से किया है। संविधान भी यही कहता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ धर्म अपना सकता है और इन परिवारों ने वही किया। उनके इस निर्णय से किसी को कोई आपत्ति नहीं है। गाँव का हर व्यक्ति उनके इस फैसले का सम्मान करता है।

🚩प्राणिमात्र में ईश्वरत्व के दर्शन कर, सर्वोत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त कर जीव में से शिवत्व को प्रगट करने की क्षमता अगर किसी संस्कृति में है तो वो है सनातन हिन्दू संस्कृति।

🚩अगर सनातन संस्कृति नही बचेगी तो दुनिया में इंसानियत ही नही बचेगी क्योंकि हिन्दू संस्कृति ही ऐसी है जिसने "वसुधैव कुटुम्बकम्" का वाक्य चरितार्थ करके दिखाया है।

🚩सनातन संस्कृति की महानता समझकर आज विदेश के भी काफी लोग हिंदू धर्म अपना रहे हैं।

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Friday, August 7, 2020

नई शिक्षा नीति में प्रारम्भिक शिक्षा मातृभाषा में देने से क्या होगा?

 07 अगस्त 2020


🚩देश की नई शिक्षा नीति को भविष्‍य की मजबूत नींव रखने वाली नीति प्रधानमंत्री ने बताया है। इस दौरान प्रधानमंत्री ने नई‍ शिक्षा नीति में शामिल किए गए 5+3+3+4 स्‍ट्रक्‍चर पर पीएम मोदी ने कहा कि इस नीति का लक्ष्‍य अपनी जड़ों से जोड़ते हुए भारतीय छात्र को ग्‍लोबल सिटीजन बनाना है। इसमें कोई विवाद नहीं है कि स्‍कूल में पढ़ाई की भाषा वही होनी चाहिए जो छात्रों की मातृभाषा हो। ऐसा करने से बच्‍चों के साीखने की गति तेज होगी। पांचवीं क्‍लास तक उनकी भाषा में ही पढ़ाने की जरूरत है। इससे उनकी नींव मजबूत होगी। इससे आगे की पढ़ाई का भी उनका बेस मजबूत होगा।

🚩सच यह है की मातृभाषा में हो पढ़ाई तो बच्चे तेज़ी से सीखते हैं और स्वप्न भी  मातृभाषा में ही आते है लेकिन नइ शिक्षा नीति को लेकर कुछ लिबरल और देश विरोधी लोगो को रास नही आ रही है।

🚩आपको बता दें कि भारतीय संस्कृति की रीढ़ की हड्डी तोड़ने तथा लम्बे समय तक भारत पर राज करने के लिए 1835 में ब्रिटिश संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त करने के लिए मैकाले ने क्या रणनीति सुझायी थी तथा उसी के तहत Indian Education Act- 1858 लागु कर दिया गया।

🚩15 अगस्त 1947, को आज़ादी मिली, क्या बदला ?

🚩रंगमंच से सिर्फ अंग्रेज़ बदले बाकि सब तो वही चला। अंग्रेज़ गए तो सत्ता उन्ही की मानसिकता को पोषित करने वाली कांग्रेस के हाथ में आ गयी। जवाहरलाल नेहरू के कृत्यों पर तो किताबें लिखी जा चुकी हैं पर सार यही है की वो धर्मनिरपेक्ष कम और मुस्लिम हितैषी ज्यादा था। न मैकाले की शिक्षा नीति बदली और न ही शिक्षा प्रणाली। शिक्षा प्रणाली जस की तस चल रही है और इसका श्रेय स्वतंत्र भारत के प्रथम और दस वर्षों (1947-58) तक रहे शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलम आज़ाद को दे ही देना चाहिए बाकि जो कसर बची थी वो इन्दिरा गाँधी ने तो आपातकाल में विद्यालयों में पढ़ाया जाने वाला इतिहास भी बदल कर पूरी कर दी ।

🚩जिस आज़ादी के समय भारत की 18.73% जनता साक्षर थी उस भारत के प्रधानमंत्री ने अपना पहला भाषण "tryst With Destiny" अंग्रेजी में दिया था आज का युवा भी यही मानता है कि यदि अंग्रेजी न होती तो भारत इतनी तरक्की नहीं कर पाता। और हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि पता नहीं जर्मनी, जापान,चीन इजराइल ने अपनी मातृभाषाओं में इतनी तरक्की कैसे कर ली।

🚩1. अफ्रिका महाद्वीप - 46 पिछडे देश। इनमें से कितने देश आगे बढे हैं?
उत्तर : शून्य
उसका मूल कारण 21 देश फ्रांसीसी में,18 देश अंग्रेज़ी में, 5 देश पुर्तगाली में और 2 देश स्पेनिश में सीखते हैं। उन देशों पर शासन करने वालों की भाषाएँ हैं ।

🚩2. पाकिस्तान - 1947 से पहले पाकिस्तान के किसी भी हिस्से की मुख्य भाषा उर्दू नहीं थी। पाकिस्तान की अपनी भाषा क्या है यह आज भी विवाद का विषय है।
सरकारी कामकाज + उच्च शिक्षा - अंग्रेजी
संसद की भाषा + मिडिया की भाषा - उर्दू
घर की भाषा- पंजाबी, सिन्धी, बलोच आदि।

🚩पाकिस्तान के हालत - 60 % पाकिस्तान में पीने लायक पानी नहीं। 25% पाकिस्तान इतना अधिक अशान्त है कि वहां पाकिस्तान का प्रधानमन्त्री भी नहीं जा सकता. 90% दवाई आयात करता है।

🚩3. जापान
दुनिया की 6 भाषाओं से शोधपत्र (रिसर्च पेपर)का अनुवाद जर्मन, फ्रांसीसी, रूसी, अंग्रेज़ी, स्पेनिश और डच भाषाओं से शोधपत्रों का जापानी में अनुवाद करवाते है। जापानी भाषा में मात्र 3 सप्ताह में प्रकाशित किया जाता है। अनुवाद छापकर जापानी विशेषज्ञों को मूल कीमत से भी सस्ते मूल्य पर बेचे जाते हैं।
जापान की उन्नति पूरी दुनिया जानती है उसका कोई प्रमाण देने की जरूरत नहीं।

🚩4. इजरायल देश से आप परिचित ही हैं।  हिब्रू ऐसी भाषा है जो दुनिया के नक़्शे से लगभग गायब ही हो गई थी। इसके बावजूद यदि आज वह जीवित है और एक देश की राजभाषा के प्रतिष्ठित पद पर आसीन है। एक भाषा से एकता का उदाहरण है इजरायल।

🚩दुनिया में प्रति व्यक्ति पेटेंट कराने वालों में इजरायलियों का स्थान पहला है। इजरायल की जनसंख्या न्यूयॉर्क की आधी जनसंख्या के बराबर है। इजराइल का कुल क्षेत्रफल इतना है कि तीन इजराइल मिल कर भी राजस्थान जितना नहीं हो सकते।

🚩इजरायल दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जो समूचा एंटी बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम से लैस है। इजरायल के किसी भी हिस्से में रॉकेट दागने का मतलब है मौत। इजरायल की ओर जाने वाला हर मिसाइल रास्ते में ही दम तोड़ देता है। इजरायल अपने जन्म से अब तक 7 लड़ाइयां लड़ चुका है। जिसमें अधिकतम में उसने जीत हासिल की है। इजरायल दुनिया में जीडीपी के प्रतिशत के मामले में सर्वाधिक खर्च रक्षा क्षेत्र पर करता है। इजरायल के कृषि उत्पादों में 25 साल में सात गुणा बढ़ोतरी हुई है, जबकि पानी का इस्तेमाल जितना किया जाता था, उतना ही अब भी किया जा रहा है। इजरायल अपनी जरुरत का 93 प्रतिशत खाद्य पदार्थ खुद पैदा करता है। खाद्यान्न के मामले में इजरायल लगभग आत्मनिर्भर है।

🚩किसी वृक्ष का, विकास रोकने का, सरल उपाय, क्या है? माना जाता है, कि वह उपाय है, उस के मूल काटकर उसे एक छोटी कुंडी (गमले) में लगा देना। जडे जितनी छोटी होंगी, वृक्ष उतना ही नाटा होगा, ठिंगना होगा। जापानी बॉन्साइ पौधे ऐसे ही उगाए जाते हैं। कटी हुयी, छोटी जडें, छोटे छोटे पौधे पैदा कर देती है। वे पौधे कभी ऊंचे नहीं होते, जीवनभर पौधे नाटे ही रहते हैं। पौधों को पता तक नहीं होता, कि उनकी वास्तव में नियति क्या थी? यही है मातृ भाषा से दूर करना अर्थात जड़े काटना।

🚩तमिलनाडु में परिजनों और स्कूलों की मांग, ‘हमें हिंदी चाहिए’

🚩तमिलनाडु में हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने के खिलाफ 60 के दशक में हिंसक विरोध प्रदर्शन देखने को मिले थे। हालांकि अब यह मामला उल्टा पड़ता दिख रहा, जहां राज्य में कई छात्र, उनके परिजन और स्कूलों ने तमिल के एकाधिकार के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी है। उनका कहना है कि उन्हें हिंदी चाहिए।

🚩स्कूलों और परिजनों के एक समूह ने डीएमके की तत्कालीन सरकार की ओर से साल 2006 में पारित एक आदेश को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि दसवीं कक्षा तक के बच्चों को केवल तमिल पढ़ाई जाएगी (हिन्दी नहीं), इसमे इंग्लिश की अनिवार्यता को नहीं बदला गया था,
संदर्भ -NDTVcom, Last Updated: जून 16, 2014 06:43 PM IST

🚩आजतक जितने भी देश उन्नत हुए वे अपनी मातृभाषा में पढ़कर ही हुए है चाइना आज इतना आगे इसलिए है वहाँ अपनी मातृभाषा में ही सबकुछ होता है इसलिए मातृ भाषा और राष्ट्र भाषा को महत्त्व देना चाहिए, 200 साल हमे गुलाम बनाने वाले अंग्रजो की भाषा को तो तुरंत हटा ही देना चाहिए ये मानसिकता की गुलामी है, अपने देश की संस्कृति, इतिहास , धर्म के बारे में बच्चों को सही जानकरी मिले उस अनुसार पाठ्यक्रम बनना चाहिए और प्राचीन गुरुकुलों के अनुसार शिक्षा नीति बननी चाहिए।

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Thursday, August 6, 2020

सुप्रीम कोर्ट में 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को हटाने की हुई मांग !!


06 अगस्त 2020

🚩संविधान की प्रस्तावना संविधान का परिचय पत्र है। सविधान की प्रस्तावना बताती है कि संविधान के प्राधिकार का स्त्रोत क्या है। वह यह भी बताती है कि संविधान किन उद्देश्यों को संवर्धित या प्राप्त करना चाहता है।

🚩पर देश का दुर्भाग्य है कि सन 1976 में जब कांग्रेस की सरकार थी और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी, तब संविधान में 42वां संशोधन हुआ जिसे इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के दौरान लागू किया वो भी केवल और केवल अपने राजनीतिक हितों के लिए।

🚩वैसे तो 42 वें संशोधन में बहुत कुछ संशोधित किया गया था पर सबसे बड़ी बात थी कि संविधान की मूल प्रस्तावना में भी छेड़छाड़ हुई। संविधान की प्रस्तावना में 2 शब्द जोड़ दिए थे - "समाजवाद" और "धर्मनिरपेक्ष"।

🚩इमरजेंसी के दौरान ऐसे शब्द संविधान की प्रस्तावना में छेड़छाड़ कोई छोटी बात नहीं थी और ये मुद्दा काफी समय तक गर्म भी रहा। अब इसके पीछे तत्कालीन सरकार की क्या मंशा थी, इसके विषय में कुछ साफ साफ तो नहीं कहा जा सकता पर धर्मनिरपेक्षता (सेक्युलर) की आड़ में देश की एकता, अखंडता और हिन्दुत्व को बार बार चोट पहुँचाई गई। राष्ट्र विरोधी तत्वों ने सेक्युलर का चोला पहन लिया और सेक्युलरिज्म की आड़ में देश और हिन्दू धर्म को भारी क्षति पहुंचाई।

🚩और सबसे बड़ा देश का दुर्भाग्य ये है कि 1976 में हुए संशोधन में हुआ ये अन्याय आज भी ज्यों का त्यों है। आजतक ये दो शब्द संविधान की प्रस्तावना में जुड़े हैं और इन्हीं शब्दों की आड़ में लोकतंत्र की हत्या हो रही हैं।

🚩पर अब सर्वोच्च न्यायालय में इन दो शब्दों को संविधान की प्रस्तावना से हटाने की याचिका दायर हो गई है। दायर याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 ए (5) में दिए गए शब्द समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष को भी रद करने की मांग की गई है। यह याचिका तीन लोगों ने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिये दाखिल की है।

🚩याचिका में कहा गया है कि जब ये शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए, उस समय देश में आपातकाल लागू था। संविधान के इस संशोधन पर सदन में बहस ही नहीं हुई थी, और ये बिना बहस के पास हो गया था। 

🚩याचिका में ये भी कहा गया है कि संविधान सभा के सदस्य के टी शाह ने तीन बार धर्मनिरपेक्ष (सेकुलर) शब्द को संविधान में जोड़ने का प्रस्ताव दिया था लेकिन तीनों बार संविधान सभा ने प्रस्ताव खारिज कर दिया था। खुद डॉ बी आर अंबेडकर ने भी प्रस्ताव का विरोध किया था।

🚩के टी शाह ने पहली बार 15 नबंवर 1948 को सेक्युलर शब्द को संविधान में शामिल करने का प्रस्ताव दिया जो कि खारिज हो गया। दूसरी बार 25 नवंबर 1948 और तीसरी बार 03 दिसंबर 1948 को शाह ने प्रस्ताव दिया लेकिन संविधान सभा ने फिर से खारिज कर दिया।

🚩याचिका में कहा गया है कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत सिर्फ सरकार के कामकाज तक सीमित रखा जाए। 

🚩याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 14, 15 और 27 सरकार के धर्मनिरपेक्ष होने की बात करता है यानि सरकार किसी के साथ धर्म, भाषा, जाति, स्थान या वर्ण के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी। लेकिन अनुच्छेद 25 नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें व्यक्ति को अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानने और उसका प्रचार करने की आजादी है। कहा गया है कि लोग धर्मनिरपेक्ष नहीं होते, सरकार धर्मनिरपेक्ष होती है। 

🚩याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में 15 जून 1989 को संशोधन कर जोड़ी गई धारा 29 ए (5) से भी सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्द हटाने की मांग है और कहा गया है कि इसे राजनैतिक दलों और आम जनता पर लागू ना किया जाए।

🚩इसके तहत राजनैतिक दलों को पंजीकरण के समय यह घोषणा करनी होती है कि वे धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत का पालन करेंगे। कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 कहती है कि धर्म के आधार पर वोट नहीं मांगेगे लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि धर्म के आधार पर संगठन नहीं बना सकते।

🚩याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट घोषित करे कि सरकार को लोगों को समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत का पालन करने के लिए बाध्य करने का अधिकार नहीं है।

🚩ये हर्ष का विषय है कि ऐसी याचिका आज सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल हुई है जिसमें दशकों के भेदभाव और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई गई है। सभी देशवासियों से अपील है कि एक आवाज़ से संविधान की प्रस्तावना से "समाजवाद" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्द हटाने वाली इस याचिका का समर्थन करें ताकि इन शब्दों की आड़ में देश की एकता, अखंडता और हिन्दुत्व पर प्रहार करने वाले राष्ट्र विरोधी तत्वों से देश और हिन्दुत्व की रक्षा हो।

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