Friday, October 9, 2020

मीडिया टेलीविजन और वेबसाइट पर कैसे ज्यादा TRP बना लेती है, जानिए सच्चाई।

09 अक्टूबर 2020


एक मशहूर लेख़क ने कहा था;- “मीडिया एक बाज़ार है, और हम सब ग्राहक“। यह कथन अपने आप में बहुत कुछ कहता है, लेकिन इसके मायने आज बदल गए हैं। टीआरपी की जद्दोजहतों के बीच खबरें शायद बिल्कुल गुम सी हो गई हैं। तड़कते भड़कते ग्राफ़िक्स को लेकर बनाया गया प्रोमो, एंकर-एंकराओं के बदलते हाव भाव, और उन सबके बीच ख़बरों के एक राई जितने छोटे हिस्से को आज के ज़माने में कुछ तथाकथित पढ़े लिखे न्यूज़ चैनल “खबर” कहते हैं। कुछ ऐसा ही वाकया सामने आया है आज..




एक प्राइवेट न्यूज़ चैनल पर TRP से छेड़छाड़ का आरोप लगा है। यह आरोप मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम ने लगाया है। इस आरोप के लगते ही मीडिया जगत में बवाल सा खड़ा हो गया है। फिलहाल मामले में जल्द ही चैनल के मालिकों को समन भेजा जायेगा और उनसे इस बाबत पूछताछ भी की जाएगी। इस मामले को समझने से पहले आपको समझना चाहिए कि टीआरपी आखिर होती क्या चीज़ है !

क्या होती है टीआरपी?

टीआरपी यानी की टेलीविजन रेटिंग पॉइंट एक ऐसा उपकरण है जिसकी मदद से ये पता लगाया जाता है कि कौन सा प्रोग्राम या टीवी चैनल सबसे ज्यादा देखा जा रहा है। साथ ही साथ इसके जरिए किसी भी प्रोग्राम या चैनल की पॉपुलैरिटी को समझने में मदद मिलती है। आसान शब्दों में समझें तो लोग किसी चैनल या प्रोग्राम को कितनी बार और कितने समय के लिए देख रहे हैं, यह पता चलता है। प्रोग्राम की टीआरपी सबसे ज्यादा होना मतलब सबसे ज्यादा दर्शक उस प्रोग्राम को देख रहे हैं। टीआरपी, विज्ञापनदाताओं और इन्वेस्टर्स के लिए बहुत उपयोगी होता है क्योंकि इसी से उन्हें जनता के मूड का पता चलता है। एक चैनल या प्रोग्राम की टीआरपी के जरिए ही विज्ञापनदाता को समझ आएगा कि उसे अपना विज्ञापन कहां देना है और इन्वेस्टर समझेगा कि उसे अपने पैसे कहां लगाने हैं।

कैसे मापा जाता है टीआरपी को ?

टीआरपी को मापने के लिए कुछ जगहों पर (जी हाँ ! सिर्फ कुछ जगहों पर) पीपल्स मीटर लगाए जाते हैं। इसे ऐसे समझ सकते है कि कुछ हजार दर्शकों को न्याय और नमूने के रूप में सर्वे किया जाता हैं और इन्हीं दर्शकों के आधार पर सारे दर्शक मान लिया जाता है जो TV देख रहे होते हैं। अब ये पीपल्स मीटर Specific Frequency के द्वारा ये बताते हैं कि कौन सा प्रोग्राम या चैनल कितने समय में कितनी बार देखा जा रहा है।

इस मीटर के द्वारा एक-एक मिनट की टीवी की जानकारी को Monitoring Team INTAM यानी Indian Television Audience Measurement तक पहुंचा दिया जाता है। ये टीम पीपलस मीटर से मिली जानकारी का विश्लेषण करने के बाद तय करती है कि किस चैनल या प्रोग्राम की टीआरपी कितनी है। इसको गिनने के लिए एक दर्शक के द्वारा नियमित रूप से देखे जाने वाले प्रोग्राम और समय को लगातार रिकॉर्ड किया जाता है और फिर इस डाटा को 30 से गुना करके प्रोग्राम का एवरेज रिकॉर्ड निकाला जाता है। यह पीपल मीटर किसी भी चैनल और उसके प्रोग्राम के बारे में पूरी जानकारी निकाल लेता है। तो ये सब बात तो हो गई टीआरपी की…. चूँकि वर्तमान युग डिजिटल मीडिया का भी है। ठीक इसी प्रकार की एक टीआरपी डिजिटल मीडिया में (ख़ास तौर से न्यूज़ वेबसाइटों में) भी पाई जाती है। जिसका नाम होता है- वेबसाइट ट्रैफिक। इसको मापने गूगल एनालिटिक्स या डिजिटल वेब ट्रैकिंग मीटर नामक सॉफ्टवेयरों का उपयोग किया जाता है। खेल इसमें भी होता है !!!!

डिजिटल वेबसाइट ट्रैफिक मैनुपुलेशन फ़र्ज़ी कीवर्ड्स ड़ालकर वेबसाइट पर ट्रैफिक लाया जाता है। तमाम तरह की दूसरी गतिविधियों जैसे कीवर्ड्स को छुपाना, कंटेंट को छुपाना आदि का भी जमकर इस्तेमाल किया जाता है। टेक्निकली शब्दों में बात करें, तो इसे ब्लैक हैट Seo के नाम से जाना जाता है। मीडिया जगत में शायद ही कोई ऐसी न्यूज़ वेबसाइट हो, जिसने आज तक ब्लैक हैट SEO ना किया या करवाया हो।
जिस प्रकार आज एक टीवी चैनल पर टीआरपी मैनपुलेशन का आरोप लग रहा है। ठीक इसी प्रकार का ट्रैफिक मैनपुलेशन रोज़ मीडिया जगत में देखने को मिलता है। तकनीकी शब्दों में इसे स्पैम इंडेक्सिंग ऑफ़ सर्च इंजन इंडेक्स भी कहा जाता है। ये काम सिर्फ कुशल तकनीक अभियंता या ख़ास तरह के कंप्यूटर एक्सपर्ट ही कर सकते हैं, क्यूंकि इसमें बहुत ज़्यादा कुशलता की ज़रूरत पड़ती है।
तो ये सब बात तो हो गई टीआरपी की…. चूँकि वर्तमान युग डिजिटल मीडिया का भी है। ठीक इसी प्रकार की एक टीआरपी डिजिटल मीडिया में (ख़ास तौर से न्यूज़ वेबसाइटों में) भी पाई जाती है। जिसका नाम होता है- वेबसाइट ट्रैफिक। इसको मापने गूगल एनालिटिक्स या डिजिटल ट्रैकिंग मीटर नामक सॉफ्टवेयरों का उपयोग किया जाता है। खेल इसमें भी होता है। फ़र्ज़ी कीवर्ड्स ड़ालकर वेबसाइट पर ट्रैफिक लाया जाता है। तमाम तरह की दूसरी गतिविधियों जैसे कीवर्ड्स को छुपाना, कंटेंट को छुपाना आदि का भी जमकर इस्तेमाल किया जाता है। टेक्निकली शब्दों में बात करें, तो इसे ब्लैक हैट seo और ग्रे हैट SEO के नाम से जाना जाता है। मीडिया जगत में शायद ही कोई ऐसी न्यूज़ वेबसाइट हो, जिसने आज तक ब्लैक हैट seo ना किया या करवाया हो। जिस प्रकार आज एक टीवी चैनल पर टीआरपी मैनपुलेशन का आरोप लग रहा है। ठीक इसी प्रकार का ट्रैफिक मैनपुलेशन रोज़ मीडिया जगत में देखने को मिलता है। तकनीकी शब्दों में इसे स्पैम इंडेक्सिंग ऑफ़ सर्च इंजन इंडेक्स भी कहा जाता है। ये काम सिर्फ कुशल तकनीक अभियंता या ख़ास तरह के कंप्यूटर एक्सपर्ट ही कर सकते हैं, क्यूंकि इसमें बहुत ज़्यादा कुशलता की ज़रूरत पड़ती है। इसकी मदद से वेबसाइट के पेजों को और ख़बरों को टॉप सर्च में प्रमोट किया जाता है।

क्या होता है ब्लैक हैट और ग्रे हैट SEO?

उदाहरण के लिए मान लीजिये कि आपके या आपके संस्थान के ख़िलाफ़ गूगल पर कोई आर्टिकल या वीडियो पड़ी है। तो उस सम्बंधित ख़बर/आर्टिकल/वीडियो को गूगल के फ्रंट पेज यानी कि पहले पेज पर नीचे रैंक करवाने के लिए उसी विषय से सम्बंधित +VE कंटेंट को दूसरी-दूसरी वेबसाइटों पर डाला या डलवाया जायेगा। उन ख़बरों के टैग में जमकर पॉजिटिव ख़बरों से सम्बंधित कीवर्ड्स को डलवाया जायेगा। इससे क्या होगा, जो नया आर्टिकल/वीडियो/कंटेंट हाल ही में डाला गया है, वो अपने आप ऊपर आ जायेगा, और जो नकारात्मक ख़बर हो, वो गूगल पर नीचे चली जाएगी। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि किसी विशेष व्यक्ति, संस्थान की ऑडियंस उनसे कंनेक्ट रहे और उन्हें वो नकारात्मक ख़बर/कंटेंट/वीडियो टॉप सर्च में दिखाई ना दे। यह थोड़ा सा लम्बा और टाइम टेकिंग प्रोसेस माना जाता है। लेकिन इसमें परिणाम दूरगामी मिलते हैं।

पैसे कैसे कमाये जाते हैं, ब्लैक हैट/ग्रे हैट SEO से ?

उदाहरण के लिए मान लीजिये कि परसो क्रिसमस है, और आप किसी न्यूज़ वेबसाइट में काम करते हैं। तो अब आपको अगले दो दिन तक क्रिसमस QUOTES, IMAGES, WISHES, WALLPAPERS, GIFs इन कीवर्ड्स पर मुख्य रूप से काम करना होगा। अगले दो दिन तक गूगल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इन कीवर्ड्स की बाढ़ सी रहती है। ऐसे में यदि आप चाहते हैं कि आपका आर्टिकल/वीडियो/कंटेंट गूगल में टॉप पर रहे तो आप अपने आर्टिकल के पहले पैराग्राफ से पहले इन्हीं विषयों से सम्बंधित कीवर्ड्स ड़ालकर उन्हें वाइट कलर या ग्रे कलर से रंग कर छुपा देते हैं। तत्पश्चात अपने आर्टिकल के कंटेंट को लिखा जाता है। और यही प्रक्रिया दूसरे पैराग्राफ के शुरू होने से पूर्व की जाती है। रंग से इसलिए छुपाया जाता है, ताकि पाठकों को ख़बर पढ़ते समय यह कीवर्ड्स इत्यादि ना दिखाई दें।

यह करने के बाद जब वेबसाइट के आर्टिकल को गूगल वेबमास्टर(एक सॉफ्टवेयर) पर इंडेक्स करवाया जाता है, तो वह चंद ही मिनटों में गूगल पर टॉप में आ जाता है। जिसके बाद उस आर्टिकल और उस वेबसाइट पर खूब ट्रैफिक आना शुरू हो जाता है। उन दिनों वेबसाइट पर चल रहे विज्ञापनों से कमाई भी अच्छी होती हैं, ऐसे में तमाम मीडिया संस्थान इस तकनीक का इस्तेमाल करके करोड़ो रुपए महज़ 24 से 48 घंटों में ही कमा लेते हैं।

क्या न्यूज़ वेबसाइट्स में ऑडियंस मैनुपुलेशन रोज़ होता है?

जी ! हाँ, बिल्कुल किसी चर्चित ख़बर या वायरल वीडियो इत्यादि में कीवर्ड्स स्टफिंग करके तमाम न्यूज़ वेबसाइट्स इसे शीर्ष पर रखने की कोशिश करती हैं। लेकिन, वे ये भूल जाते हैं, कि जैसे ही गूगल का अल्गोरिथम क्रॉलर उस ख़बर/लेख/आर्टिकल के तकनीकी पहलुओं की जांच करता है, वह उसे तुरंत नेगेटिव रिमार्क देता है और खबर/वीडियो/आर्टिकल को तुरंत गूगल की रैंकिंग में नीचे धकेल देता है। इसी चीज़ के लिए आजकल हर बड़ा मीडिया चैनल कम से कम 50 से 60 वेबसाइट अपने पास रखता है। ताकि समय आने पर व इन वेबसाइटों पर अपनी कंपनियों की अच्छी खबरें लिखवाकर गूगल में शीर्ष पर रैंक करवा सके।
अब इसको दूसरे उदाहरण से समझिये !!!
मान लीजिये अभिषेक एक UPSC कोचिंग संचालक हैं, और 2 महीने बाद उसकी कोचिंग में एड्मिशन शुरू होने वाले हैं। अब अभिषेक, प्रतीक नाम के एक डिजिटल मार्केटिंग एक्सपर्ट या दूसरे शब्दों में कहें तो SEO एक्सपर्ट प्रतीक से मिलता है, और उसको बोलता है कि आप मेरी वेबसाइट को गूगल में कुछ कीवर्ड्स पर टॉप रैंकिंग में ला दीजिए, ताकि जैसे ही कोई व्यक्ति गूगल पर जाके UPSC Coaching से सम्बंधित कोई कीवर्ड डाले, तो उस व्यक्ति को मेरी वेबसाइट ही टॉप पर दिखे।

इसके लिए प्रतीक कुछ तकनीकों का इस्तेमाल करेंगे !!!

1) कीवर्ड्स स्टफ्फिंग

2) ज्यादा से ज्यादा Tags का इस्तेमाल

3) कई दूसरी वेबसाइटों पर अभिषेक की कोचिंग से जुड़े आर्टिकल डलवाएंगे

4) कई अन्य कोचिंगों के कीवर्ड्स को अभिषेक की वेबसाइट पर लिखे गए ब्लॉगों/आर्टिकल/वीडियो टैग में डलवाकर छुपा देंगे, ताकि कोई उन्हें देख ना सके।

5) मेटा टैग में कीवर्ड्स को ओवरलोड करना

इन सब उक्तियों का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ गूगल की अल्गोरिथम को तोड़ने के लिए किया जाता है। इसकी मदद से मीडिया वेबसाइटों को तुरंत परिणाम भी मिलता है। इन सबका इस्तेमाल करने से वेबसाइट को पढ़ने वाले पाठकों की क्षमता में एकदम से बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है। इसी ट्रैफिक का इस्तेमाल करके कुछ मीडिया कंपनियां विज्ञापन झपट लेती हैं, तो कुछ संस्थान इसका इस्तेमाल अपनी कंपनी के PR में करते हैं।

दिल्ली के SEO एक्सपर्ट पंकज कुमार बताते हैं कि कुछ वेबसाइटस पूरी तरह से कंटेंट का मैनपुलेशन करती हैं। ख़बर के शीर्षक में ट्रेंडिंग या वायरल टॉपिक लिखा होता है, और नीचे ख़बर सिर्फ दो लाइन की होती है। ख़बर के ख़त्म होने के बाद 20 से 30 टैग्स का प्रयोग किया जाता है, ताकि किसी न किसी कीवर्ड पर खबर को हिट कराया जा सके। हालाँकि अगर आप गूगल की ख़बर लिखने की पॉलिसी को देखें, तो वह बिल्कुल इसके इतर है। और यही कारण है कि जैसे ही गूगल की बैकएंड क्रॉलर टीम इस आर्टिकल/वीडियो/ख़बर की जांच करती है, तुरंत इसे रैंकिंग में नीचे कर देती है। लेकिन तब तक यह खबर/वीडियो/आर्टिकल अच्छा ख़ासा ट्रैफिक खींच चुके होते हैं, जिस कारण इनका प्रभाव बना रहता है।

हरियाणा के प्रतीक खुटेला एक डिजिटल मार्केटिंग कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट हैं। वे कहते हैं कि इस प्रकार के SEO(ग्रे और ब्लैक हैट) दोनों करना गलत है। आप जनता को कुछ का कुछ बोलकर या दिखाकर बेवक़ूफ़ नहीं बना सकते। हालाँकि यह भी सच है कि इस तकनीक को भारत में बहुत ही कम लोग जानते हैं, और उससे भी कम लोग इसका सही इस्तेमाल करना जानते हैं। इस प्रकार की तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने या PR करने के लिए किया जाता है।

क्या ये सही है?

जिस प्रकार से मीडिया में TRP मैनपुलेशन होता है, ठीक उसी प्रकार से डिजिटल मीडिया में भी खूब ऑडियंस मैनपुलेशन होता है। लेकिन, डिजिटल मीडिया में हुए इस TRP मैनपुलेशन पर हंगामा इसलिए नहीं मच पाता, क्यूंकि आधे से ज़्यादा लोगों को यह बातें पता ही नहीं होती। इसके अलावा इन कामों में सिर्फ तकनीकि रूप से कौशल व्यक्ति ही ज़ोर आज़माइश कर सकता है। इसके साथ सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण मामला तो यह है कि TRP मैनपुलेशन में आपके पास शिकायत करने के लिए MIB और अन्य सरकारी संस्थाएं हैं, लेकिन डिजिटल ट्रैफिक मैनपुलेशन में ऐसा कुछ नहीं है।

इसके दुष्प्रभाव पर बात करते हुए पंकज कुमार कहते हैं,”डिजिटल एक बहुत बड़ा मॉडल है। लोगों को टीवी की न्यूज़ चैनल की TRP तो काफी जल्दी समझ आ सकती है, लेकिन वेबसाइट पर ट्रैफिक कैसे आ रहा है, यह समझना उनके लिए काफी मुश्किल भरा है। किसी न्यूज़ चैनल की वेबसाइट पर ट्रैफिक कैसे आ रहा है, किस तकनीकों का इस्तेमाल करके आ रहा है, यह पब्लिक डोमेन में लोगों को जल्दी समझ नहीं आ सकती। लोगों को किसी न्यूज़ वेबसाइट या एप्लीकेशन पर सिर्फ ख़बर या वीडियो दिखाई देती है, लेकिन उसमें और क्या- क्या छुपा हुआ है, यह समझना काफी मुश्किल है। पेज फैक्टर, बैकलिंक फैक्टर, अथॉरिटी फैक्टर, और ट्रैफिक फैक्टर ये चार चीज़ें किसी भी वेबसाइट को ब्रांड बना देती हैं, फिर चाहे आपने ब्लैक हैट किया हो या ग्रे हैट न्यूज़ चैनलों का नाम ना बताने की शर्त पर प्रतीक बताते हैं कि कई बड़े मीडिया संस्थानों के पास डिजिटल मार्केटिंग की पूरी टीम होती है। जो अन्य सभी न्यूज़ चैनलों के डोमेन (वेबसाइट के नाम) पर नज़र रखती है। जैसे ही किसी दूसरे न्यूज़ चैनल के डोमेन पर अच्छा ट्रैफिक आने लगता है, तो ये लोग उसे पोर्न साइट या अन्य वेबसाइटों पर जाकर लिंकबिल्डिंग के द्वारा नीचे रैंक करने की कोशिश करते हैं। इसका सबसे बड़ा नुक़सान यह है कि बड़े मीडिया संस्थाओं के अलावा कोई और डोमेन या कोई और आर्टिकल कभी टॉप पर तब तक नहीं आ सकता, जब तक वह भी इस युक्ति का प्रयोग ना करे।

मीडिया के ये काला सच है, ये लोग टीआरपी और पैसे के लिए झूठी खबरे दिखाना, हिंदुओं के खिलाफ नफरत भरना, देश की सुरक्षा को उजागर कर देना आदि घिनोने कार्य करते है, आप ऐसे बिकाऊ मीडिया से सावधान रहना।


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Thursday, October 8, 2020

अयोध्या के बाद अब काशी और मथुरा बाकी हैं, जानिए इतिहास...

08 अक्टूबर 2020


भारत देश में केवल सनातन धर्म ही था, भारत सोने की चिड़िया कहलाता था, इसलिए अनेक विदेशी आक्रांताओं की नजर भारत की संपत्ति पर थी, विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत को आकर लुटा तो है साथ में भारतीय सनातन संस्कृति को विकृत भी कर दिया और हिंदुओं का कत्ल भी किया और महिलाओं के साथ बलात्कार भी किये और भारत के मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें भी बनवा दी।




भारत में तो कितने मंदिर तोड़े गए नही बता सकते हैं लेकिन तीन मुख मंदिर थे अयोध्या में श्री राम मंदिर , मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मस्थान एवं काशी के विश्वनाथ मंदिर को इस्लामी आक्रमणकारियों ने तोड़कर कब्जा कर लिया। अपने अयोध्या का इतिहास तो जान लिया होगा और कुछ समय पहले मथुरा का भी इतिहास बताया गया था की कैसे मथुरा पर कब्जा कर लिया है, अब आपको काशी विश्वनाथ के इतिहास के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

काशी में बाबा विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद के सम्बन्ध में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने जिला जज की अदालत में याचिका दायर की है। इस याचिका में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे मुक़दमे को चुनौती दी गई है।

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था।

इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।

डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब 'दान हारावली' में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित 'मासीदे आलमगिरी' में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था। आज उत्तर प्रदेश के 90 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज ब्राह्मण है।

सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया। 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था।

अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।

सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मं‍डप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने 'वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल' को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया।

इतिहास की किताबों में 11 से 15वीं सदी के कालखंड में मंदिरों का जिक्र और उसके विध्वंस की बातें भी सामने आती हैं। मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब 'विविध कल्प तीर्थ' में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ को देव क्षेत्र कहा जाता था। लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर मस्जिद में तब्दील हुए थे। 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक 'तीर्थ चिंतामणि' में वर्णन किया है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही लिंग है।

काशी विश्वनाथ का भी मुक्तिकरण होना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

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Wednesday, October 7, 2020

शोध में सामने आयी भयंकर जानकारी, एनर्जी ड्रिंक का होता है खतरनाक असर

07 अक्टूबर 2020


आज कल बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर व्यक्ति फास्ट फुड, जंक फुड, कोल्ड ड्रिंक्स, एनर्जी ड्रिंक जैसे आधुनिक आहार के आदी हो चुके हैं। ऐसे लोगों की आंखे खोलनेवाला यह शाेध महत्त्वपूर्ण है ।
आजकल यंग जेनरेशन को एनर्जी ड्रिंक पीना बहुत भाता है, उनका मानना है इसे पीने से बॉडी को इंटेन्‍ट एनर्जी मिलती है और वह पढ़ाई या पार्टी बिना थके कर लेते हैं लेकिन ये बात गलत है क्योंकि एनर्जी ड्रिंक्स का सेवन मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, रक्तचाप, मोटापा और गुर्दे की क्षति समेत कई गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है।




लंदन : अगर आप भी एनर्जी ड्रिंक पीते हैं, तो सावधान हो जाइए ! दरअसल, एक नए शोध से पता चलता है कि एनर्जी ड्रिंक से युवाओं में नकारात्मक दुष्प्रभाव हो सकते हैं । कनाडा के ओंटारियो में वाटरलू विश्वविद्यालय में किए गए शोध में कहा गया है कि ऐसे ड्रिंक्स की बिक्री 16 वर्ष से कम उम्र के युवाओं को करने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 12 से 24 वर्ष के 55 प्रतिशत बच्चों को एनर्जी ड्रिंक पीने के बाद स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या मिली थी। इनमें हार्ट रेट तेज होने के साथ ही दिल के दौरे शामिल थे। शोधकर्ताओं ने 2,000 से अधिक युवाओं से पूछा कि वे रेड बुल या मॉन्सटर जैसे एनर्जी ड्रिंक को कितनी बार पीते हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि अन्य कैफीनयुक्त पेय की तुलना में जिस तरह से एनर्जी ड्रिंक का सेवन किया जाता है, उसे देखते हुए एनर्जी ड्रिंक अधिक खतरनाक हो सकते हैं। शोध में पाया गया कि जिन लोगों ने एनर्जी ड्रिंक का सेवन किया था उनमें से 24.7 प्रतिशत लोगों ने महसूस किया कि उनके दिल की धडकन तेज हो गई थी ।

वहीं, 24.1प्रतिशत लोगों ने कहा कि इसे पीने के बाद उन्हें नींद नहीं आ रही थी। इसके अलावा, 18.3 प्रतिशत लोगों ने सिरदर्द, 5.1  प्रतिशत मितली, उल्टी या दस्त और 3.6 प्रतिशत लोगों ने छाती के दर्द का अनुभव किया। हालांकि, शोधकर्ताओं के बीच चिंता का कारण यह था कि इन युवाओं ने एक या दो एनर्जी ड्रिंक ही लिए थे फिर भी उन्हें ऐसे प्रतिकूल प्रभावों का अनुभव हो रहा था ।

अध्ययन के बारे में प्रोफेसर डेविड हैमोंड ने कहा कि फिलहाल ऊर्जा पेय खरीदनेवाले बच्चों पर कोई प्रतिबंध नहीं है। किराने की दुकानों में बिक्री के साथ ही बच्चों को टार्गेट करते हुए इसके विज्ञापन बनाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि इन उत्पादों के स्वास्थ्य प्रभावों की निगरानी बढ़ाने की जरूरत है ! स्त्रोत : नई दुनिया

एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है। अध्ययन में यह जानकारी निकलकर सामने आई है कि अक्सर एनर्जी ड्रिंक्स को शराब के साथ लिया जा रहा है। अधिकांश एनर्जी ड्रिंक्स के अवयवों में पानी, चीनी, कैफीन, कुछ विटामिन, खनिज और गैर-पोषक उत्तेजक पदार्थ जैसे गुआरना, टॉरिन तथा जिन्सेंग आदि शामिल रहते हैं।

एनर्जी ड्रिंक्स में लगभग 100 मिलीग्राम कैफीन प्रति तरल औंस होता है, जो नियमित कॉफी की तुलना में आठ गुना अधिक होता है। कॉफी में 12 मिलीग्राम कैफीन प्रति तरल औंस होता है। एनर्जी ड्रिंक्स में उपरोक्त सभी स्वास्थ्य जोखिम इसमें मौजूद चीनी और कैफीन की उच्च मात्रा के कारण होता है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष पद्म श्री डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, एनर्जी ड्रिंक्स शरीर के लिए नुकसानदेह हैं। उनमें कैफीन की अधिक मात्रा होने से युवाओं एवं बूढ़े लोगों में हृदय ताल, रक्त प्रवाह और रक्तचाप की समस्याएं हो सकती हैं। इन पेय पदार्थो में तौरीन नामक एक तत्व होता है, जो कैफीन के प्रभाव को बढ़ाता है। इसके अलावा, जो लोग शराब के साथ एनर्जी ड्रिंक्स पीते हैं, वे इसके प्रभाव में अधिक शराब पी जाते हैं। एनर्जी ड्रिंक्स लेने से शराब पीने का पता नहीं लग पाता, जिस कारण से लोग अधिक पीने के लिए प्रेरित होते हैं।

18 वर्ष से कम उम्र के लोगों, गर्भवती महिलाओं, कैफीन के प्रति संवेदनशील लोगों, एडीएचडी के लिए निर्धारित दवा जैसे एडर आदि लेने वालों के लिए एनर्जी ड्रिंक्स खास तौर पर अधिक नुकसानदेह होते हैं।

अमेरिका में हुए एनर्जी ड्रिंक से संबंधित एक सर्वेक्षण के अनुसार कैफीन लेने से दौरा पड़ने और सनक की समस्‍या होती है व कई बार तो मौत भी हो जाती है। अगर इसे आप सॉफ्ट ड्रिंक मानते हैं तो ये गलत है। एनर्जी ड्रिंक में मिली कैफीन सीधे दिमाग पर असर करती है, ऐसे में बच्चों का इसे पीने पर पाबंदी होनी चाहिए।

एनर्जी ड्रिंक में 640 मिग्रा कैफीन

विशेषज्ञों के अनुसार, हाई एनर्जी ड्रिंक के एक कैन में अमूमन 13 चम्‍मच चीनी और दो कप कॉफी के बराबर की कैफीन होती है। इस मात्रा से आप खुद अनुमान लगा सकते हैं कि एक बर में इतनी सारी कैलोरी और कैफीन मानव शरीर और दिमाग के लिए खतरा पैदा करने के लिए काफी है। जबकि कई बार तो युवा एक दिन में 3-4 कैन एनर्जी ड्रिंक पी लेते हैं। इसमें लगभग 640 मिग्रा कैफीन की मात्रा होती है, जबकि एक वयस्‍क भी एक दिन में केवल 400 मिग्रा कैफीन ही ऑब्जर्व कर सकता है।

एनर्जी ड्रिंक के दुष्‍प्रभावों को जानना जरूरी है। 

1) कैफीन पर निर्भरता : यह बात सामान्‍य है कि कैफीन की मात्रा, एनर्जी ड्रिंक में मिली हुई होती है। एनर्जी ड्रिंक को पीने से पता नहीं चलता है कि हमारे शरीर में कैफीन की कितनी मात्रा पहुंचती है। एक बार अगर शरीर को कैफीन की लत लग गई तो अन्‍य समस्‍याएं भी खड़ी हो सकती है। इसलिए इसे न पीना ही बेहतर विकल्‍प है।

2) नींद न आना : एनर्जी ड्रिंक को पीने से ज्‍यादा एनर्जी आने के कारण रात में भी नींद न आने की समस्‍या पैदा हो सकती है। शरीर और दिमाग थक जाते है लेकिन नींद नहीं आती है जिसके चलते उलझन होती है। जो लोग प्रतिदिन एनर्जी ड्रिंक का सेवन करते है, उन्हें ऐसी समस्‍या का सामना अक्‍सर झेलना पड़ता है। 

3) मूड पर प्रभाव : अध्‍ययनों से यह बात स्‍पष्‍ट हो चुकी है कि एनर्जी ड्रिंक पीने से व्‍यक्ति के मूड पर प्रभाव पड़ता है और उसका मूड स्‍वींग होता रहता है। इसके सेवन से शरीर में फील गुड कराने वाना सेरोटोनिन घट जाता है जिससे व्‍यक्ति को अवसाद हो जाता है या उसका मूड उखड़ा-उखड़ा रहता है। 

4) शुगर बढ़ना : एनर्जी ड्रिंक में भरपूर मात्रा में शुगर मिली होती है। एक ड्रिंक में लगभग 13 चम्‍मच चीनी होती है जो शरीर में शुगर लेवल को बढा देती है जिससे कई प्रकार की गंभीर समस्‍याएं होने का खतरा रहता है। इसके सेवन से डिहाईड्रेशन, प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रभाव, खराब दांत आदि पर भी असर पड़ता है। 

5) अंगो पर तनाव : एनर्जी ड्रिंक के सेवन से शरीर के सभी अंगो पर स्‍ट्रेस पड़ता है क्‍योंकि वह थक जाते हैं और उन्‍हे आराम नहीं मिल पाता है। अगर आप शरीर को स्‍वस्‍थ और खुशहाल बनाना चाहते हैं तो एनर्जी ड्रिंक का सेवन न करें। 

एनर्जी ड्रिंक को हेल्‍दी ड्रिंक का विकल्‍प कभी न बनायें और न ही इसे अपनी आदत बनायें। इसकी जगह ताजे फल और फलों का जूस पीने से अधिक एनर्जी बढ़ती है और शरीर स्वस्थ्य रहता है।

आज कल टीवी अखबारों, चलचित्रों, फिल्मों द्वारा पश्चिमी संस्कृति का महिमामंडन हो रहा है जिसके कारण आज बचपन से ही उनसे प्रभावित हो जाते है और अपने जीवन को निस्तेज कर देते हैं अतः आप ऐसी पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण नही करें । ताजा फलों का रस, देशी गाय का दूध, घी, गौझरन आदि का उपयोग करके स्वस्थ्य सुखी और सम्मानित जीवन जीये ।

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Tuesday, October 6, 2020

उत्तर प्रदेश को भी भीमा कोरेगांव और शाहीन बाग बनाने की साजिश?

06 अक्टूबर 2020


हाथरस कांड (Hathras Case) की आड़ में उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में जातीय हिंसा (Caste Based Violence) की कोशिश चल रही थी। 'जस्टिस फॉर हाथरस' नाम से वेबसाइट बनाई गई थी जिसमे मास्क लगाकर ही हमला करने और प्रशासनिक अधिकारियों को प्रदर्शन के दौरान निशाना बनाने की बात कही गई थी।




इस साजिश में PFI, SDPI और यूपी के माफिया के हाथ होने का अनुमान है। मुख्यमंत्री योगी के नाम से नकली समाचार के स्क्रीनशॉट बनाए गए थे। भीम मीम की आड़ मे दूसरा शाहीन बाग, दूसरा भीमा कोरेगांव या दूसरा बैंगलोर बनाने की साजिश थी। साजिश रचने में 100 करोड़ की फडिंग भी हुई है ऐसा खुफिया एजेंसियों से पता चला है।

दंगे का सबसे बड़ा नुकसान गरीबों को ही होता है। कोरोना के कारण जो दैनिक मजदूरी वाले बेरोजगार हैं वह दंगे के कारण ओर बर्बाद हो जाएंगे। यही तो दंगाई चाहते हैं। इन दंगे वालों का प्रेम बंग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए है। दलित भी इनके लिए काफिर हैं।

जब भी 3 तलाक की बात आए तो यह हमारा निजी मामला है। कोर्ट को या संसद को इन पर बोलने का हक़ नहीं है। संविधान ने हमें मुस्लिम पर्सनल लॉ दिया है। आज का मुस्लिम युवा कहता है कि इस्लाम की मान्यताओं पर कोई बहस नहीं हो सकती। औरतों के क्या हक हैं इस पर बात नहीं करनी चाहिए। हर बात पर कहा जाता है कि इस पर मत बोलो।

जब मेवात मे दलित अत्याचार पर प्रश्न उठता है तो वहाँ का विधायक मुख्यमंत्री को पत्र लिखता है कि मेवात में भाईचारा है। इसलिए सभी को चुप रहना चाहिए। जौनपुर में दलित बस्ती जलाने का मामला हो या आजमगढ़ में दलित युवतियों के साथ छेड़खानी का मामला सब पर चुप रहने की सलाह दी जाती है।

तब्लीगी जमात के व्यवहार पर प्रश्न उठाया जाता है तो टेलीविज़न पर धमकी दी जाती है। हर स्वतंत्र विचार को इस्लाम पर हमला माना जाता है।

अयोध्या विवाद हो या 3 तलाक या तलाक़शुदा को गुजरभत्ता। कभी भी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को स्वीकार नहीं किया जाता।

मुस्लिम और गैर मुस्लिम के व्यवहार हो तो हमेशा यही कहा जाता है कि गैर मुस्लिम खुद को बदलें। फिलिस्तीनी और रोहींग्या मुस्लिम पर बोलेंगे पर चीन के ऊईगर मुस्लिमो पर चुप। लोकतांत्रिक देशों में विशेष अधिकार चाहिए परन्तु इस्लामिक देशों में गैर मुस्लिमों को कोई अधिकार नहीं है। क्या यह भारत में पहला केस है जहां दलित बेटी पर अत्याचार हुआ है? नहीं। ना तो यह पहला केस है और ना ही अन्तिम। परन्तु शोर का कारण राजनीति है ना कि न्याय। मेवात में दलितों को धीरे धीरे समाप्त कर दिया गया। कश्मीर में 1957 से 2019 तक लाखों वाल्मीकि परिवारों को वोट देने का अधिकार ही नहीं था।

भारत जैसी आजादी और कहाँ?

क्या अमेरिका में कोई ओसामा बिन लादेन का महिमामंडन कर सकता है? क्या इजरायल में कोई भी हिटलर की जय बोल सकता है? क्या पाकिस्तान में कोई सार्वजनिक तौर पर जय हिन्द बोल सकता है? भारत में कुछ भी करें आप आजाद हैं. जय भीम, जय मीम का नारा देकर हम बंगाल में दलित अत्याचार पर चुप रह सकते हैं। आज 1947 और 1971 में पाकिस्तान से जान बचा कर आए हिन्दूओं के 95% युवा वंशजों को नहीं पता कि पाकिस्तान से उन्हें क्यों निकाला गया था? उन्हें नहीं पता कि इस्लाम सहस्तित्व को स्वीकार नहीं करता.आज भी हम जाति को देश धर्म से अधिक महत्त्व देते हैं।

दलित तो दूर इन्हे तो गैर मुस्लिम मूर्तियाँ भी स्वीकार नहीं हैं। पाकिस्तान में खुदाई में महात्मा बुद्ध की मूर्ति को तोड़ दिया गया। बैंगलोर में दलित कांग्रेस विधायक के भतीजे/ भांजे के विरुद्ध फतवा दिया गया।

बामियान इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यहां भगवान बुद्ध की दो विशाल प्रतिमाएं हुआ करती थी। इन में से बड़ी प्रतिमां की ऊँचाई लगभग 58 मीटर और छोटी की ऊँचाई 37 मीटर थी।। 1999 में अफ़गानिस्तान में तालिबान की सरकार थी  अफ़गानिस्तान में मुस्लिम धर्मगुरूओं ने इन मूर्तियों को इस्लाम के ख़िलाफ करार दे दिया।  तालिबान सरकार ने इन मूर्तियों को नष्ट करने का आदेश जारी कर दिया।

मुल्ला मुहम्मद ओमार ने एक इंटरव्यु में कहा – “मुसलमानों को इन प्रतिमाओं के नष्ट होने पर गर्व करना चाहिए, इन्हें नष्ट करके हमनें अल्लाह की इबादत की है।” 1221 ईसवी में चंगेज़ ख़ान ने इन मूर्तियों को नष्ट करने की कोशिश की पर असफल रहा, औरंगज़ेब ने भारी तोपखाने से इन मूर्तियों पर हमले करावाए पर पूरी तरह नष्ट नही कर सका। इसके बाद 18वीं सदी में नादिर शाह और अहमद शाह अबदाली ने भी इन मूर्तियों को काफी नुकसान पहुँचाया।

भारत में बहुत सारे NGO's धर्म परिवर्तन के काम में लगे हुए हैं। विदेशी पैसों से चलने वालें NGO's धर्मपरिवर्तन ही करा रहे हैं ऐसा ही नहीं है बल्कि छोटी-छोटी घटनाओं को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश करके भारत देश का माहोल भी खराब कर रहें हैं। इनसे सावधान रहना।

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Monday, October 5, 2020

पूरा इतिहास जान लीजिए हिंदुस्तान में बलात्कार का आरंभ किसने किया?

 

05 अक्टूबर 2020


आखिर क्या बात है कि जब प्राचीन भारत के रामायण, महाभारत आदि लगभग सभी हिन्दू-ग्रंथों के उल्लेख में अनेकों लड़ाईयाँ लड़ी और जीती गयीं, परन्तु विजेता सेना द्वारा किसी भी स्त्री का बलात्कार होने का जिक्र नहीं है। तब आखिर ऐसा क्या हो गया कि आज के आधुनिक भारत में बलात्कार रोज की सामान्य बात बन कर रह गयी है ??




भगवान श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त की पर न ही उन्होंने और न उनकी सेना ने पराजित लंका की स्त्रियों को हाथ लगाया ।

महाभारत में पांडवों की जीत हुई, लाखों की संख्या में योद्धा मारे गए। पर किसी भी पांडव सैनिक ने किसी भी कौरव सेना की विधवा स्त्रियों को हाथ तक न लगाया ।

अब आते हैं ईसापूर्व इतिहास में-

★ 220-175 ईसापूर्व में यूनान के शासक “डेमेट्रियस प्रथम” ने भारत पर आक्रमण किया। 183 ईसापूर्व के लगभग उसने पंजाब को जीतकर साकल को अपनी राजधानी बनाया और पंजाब सहित सिन्ध पर भी राज किया। लेकिन उसके पूरे शासनकाल में बलात्कार का कोई जिक्र नहीं है।

★ इसके बाद “युक्रेटीदस” भी भारत की ओर बढ़ा और कुछ भागों को जीतकर उसने “तक्षशिला” को अपनी राजधानी बनाया। बलात्कार का कोई जिक्र नहीं।

★ ”डेमेट्रियस” के वंश के मीनेंडर (ईपू 160-120) ने नौवें बौद्ध शासक “वृहद्रथ” को पराजित कर सिन्धु के पार पंजाब और स्वात घाटी से लेकर मथुरा तक राज किया परन्तु उसके शासनकाल में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं मिलता।

★ ”सिकंदर” ने भारत पर लगभग 326-327 ई .पू आक्रमण किया जिसमें हजारों सैनिक मारे गए । इसमें युद्ध जीतने के बाद भी राजा “पुरु” की बहादुरी से प्रभावित होकर सिकंदर ने जीता हुआ राज्य पुरु को वापस दे दिया और “बेबिलोन” वापस चला गया । विजेता होने के बाद भी “यूनानियों” (यवनों) की सेनाओं ने किसी भी भारतीय महिला के साथ बलात्कार नहीं किया और न ही “धर्म परिवर्तन” करवाया ।

★ इसके बाद “शकों” ने भारत पर आक्रमण किया (जिन्होंने ई.78 से शक संवत शुरू किया था)। “सिन्ध” नदी के तट पर स्थित “मीननगर” को उन्होंने अपनी राजधानी बनाकर गुजरात क्षेत्र के सौराष्ट्र , अवंतिका, उज्जयिनी, गंधार, सिन्ध, मथुरा समेत महाराष्ट्र के बहुत बड़े भू भाग पर 130 ईस्वी से 188 ईस्वी तक शासन किया। परन्तु इनके राज्य में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं।

★ इसके बाद तिब्बत के “युइशि” (यूची) कबीले की लड़ाकू प्रजाति “कुषाणों” ने “काबुल” और “कंधार” पर अपना अधिकार कायम कर लिया। जिसमें “कनिष्क प्रथम” (127-140ई.) नाम का सबसे शक्तिशाली सम्राट हुआ। जिसका राज्य “कश्मीर से उत्तरी सिन्ध” तथा “पेशावर से सारनाथ” के आगे तक फैला था। कुषाणों ने भी भारत पर लम्बे समय तक विभिन्न क्षेत्रों में शासन किया। परन्तु इतिहास में कहीं नहीं लिखा कि इन्होंने भारतीय स्त्रियों का बलात्कार किया हो ।

★ इसके बाद “अफगानिस्तान” से होते हुए भारत तक आये “हूणों” ने 520 AD के समयकाल में भारत पर अधिसंख्य बड़े आक्रमण किए और यहाँ पर राज भी किया। ये क्रूर तो थे परन्तु बलात्कारी होने का कलंक इन पर भी नहीं लगा।

★ इन सबके अलावा भारतीय इतिहास के हजारों साल के इतिहास में और भी कई आक्रमणकारी आये जिन्होंने भारत में बहुत मार काट मचाई जैसे “नेपालवंशी” “शक्य” आदि। पर बलात्कार शब्द भारत में तब तक शायद ही किसी को पता था।

अब आते हैं मध्यकालीन भारत में, जहाँ से शुरू होता है इस्लामी आक्रमण और यहीं से शुरू होता है भारत में बलात्कार का प्रचलन ।

★ सबसे पहले 711 ईस्वी में “मुहम्मद बिन कासिम” ने सिंध पर हमला करके राजा “दाहिर” को हराने के बाद उसकी दोनों “बेटियों” को “यौनदासियों” के रूप में “खलीफा” को तोहफा भेज दिया। तब शायद भारत की स्त्रियों का पहली बार बलात्कार जैसे कुकर्म से सामना हुआ जिसमें “हारे हुए राजा की बेटियों” और “साधारण भारतीय स्त्रियों” का “जीती हुयी इस्लामी सेना” द्वारा बुरी तरह से बलात्कार और अपहरण किया गया ।

★ फिर आया 1001 इस्वी में “गजनवी”। इसके बारे में ये कहा जाता है कि इसने “इस्लाम को फ़ैलाने” के उद्देश्य से ही आक्रमण किया था। “सोमनाथ के मंदिर” को तोड़ने के बाद इसकी सेना ने हजारों “काफिर औरतों” का बलात्कार किया फिर उनको अफगानिस्तान ले जाकर “बाजारों में बोलियाँ” लगाकर “जानवरों” की तरह “बेच” दिया ।

★ फिर “गौरी” ने 1192 में “पृथ्वीराज चौहान” को हराने के बाद भारत में “इस्लाम का प्रकाश” फैलाने के लिए “हजारों काफिरों” को मौत के घाट उतर दिया और उसकी “फौज” ने “अनगिनत हिन्दू स्त्रियों” के साथ बलात्कार कर उनका “धर्म-परिवर्तन” करवाया। ये विदेशी मुस्लिम अपने साथ औरतों को लेकर नहीं आए थे।

★ मुहम्मद बिन कासिम से लेकर सुबुक्तगीन, बख्तियार खिलजी, जूना खाँ उर्फ अलाउद्दीन खिलजी, फिरोजशाह, तैमूरलंग, आरामशाह, इल्तुतमिश, रुकुनुद्दीन फिरोजशाह, मुइजुद्दीन बहरामशाह, अलाउद्दीन मसूद, नसीरुद्दीन महमूद, गयासुद्दीन बलबन, जलालुद्दीन खिलजी, शिहाबुद्दीन उमर खिलजी, कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी, नसरत शाह तुगलक, महमूद तुगलक, खिज्र खां, मुबारक शाह, मुहम्मद शाह, अलाउद्दीन आलम शाह, बहलोल लोदी, सिकंदर शाह लोदी, बाबर, नूरुद्दीन सलीम जहांगीर, ~अपने हरम में “8000 रखैलें रखने वाला शाहजहाँ”।

इसके आगे अपने ही दरबारियों और कमजोर मुसलमानों की औरतों से अय्याशी करने के लिए “मीना बाजार” लगवाने वाला “जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर”।

मुहीउद्दीन मुहम्मद से लेकर औरंगजेब तक बलात्कारियों की ये सूची बहुत लम्बी है। जिनकी फौजों ने हारे हुए राज्य की लाखों “काफिर महिलाओं” “(माल-ए-गनीमत)” का बेरहमी से बलात्कार किया और “जेहाद के इनाम” के तौर पर कभी वस्तुओं की तरह “सिपहसालारों” में बांटा तो कभी बाजारों में “जानवरों की तरह उनकी कीमत लगायी” गई।

ये असहाय और बेबस महिलाएं “हरमों” से लेकर “वेश्यालयों” तक में पहुँची। इनकी संतानें भी हुईं पर वो अपने मूलधर्म में कभी वापस नहीं पहुँच पायीं।

एकबार फिर से बता दूँ कि मुस्लिम “आक्रमणकारी” अपने साथ “औरतों” को लेकर नहीं आए थे। वास्तव में मध्यकालीन भारत में मुगलों द्वारा “पराजित काफिर स्त्रियों का बलात्कार” करना एक आम बात थी क्योंकि वो इसे “अपनी जीत” या “जिहाद का ) इनाम” (माल-ए-गनीमत) मानते थे। केवल यही नहीं इन सुल्तानों द्वारा किये अत्याचारों और असंख्य बलात्कारों के बारे में आज के किसी इतिहासकार ने नहीं लिखा।

बल्कि खुद इन्हीं सुल्तानों के साथ रहने वाले लेखकों ने बड़े ही शान से अपनी कलम चलायीं और बड़े घमण्ड से अपने मालिकों द्वारा काफिरों को सबक सिखाने का विस्तृत वर्णन किया।

गूगल के कुछ लिंक्स पर क्लिक करके हिन्दुओं और हिन्दू महिलाओं पर हुए “दिल दहला” देने वाले अत्याचारों के बारे में विस्तार से जान पाएँगे। वो भी पूरे सबूतों के साथ।

इनके सैकड़ों वर्षों के खूनी शासनकाल में भारत की हिन्दू जनता अपनी महिलाओं का सम्मान बचाने के लिए देश के एक कोने से दूसरे कोने तक भागती और बसती रहीं।

इन मुस्लिम बलात्कारियों से सम्मान-रक्षा के लिए हजारों की संख्या में हिन्दू महिलाओं ने स्वयं को जौहर की ज्वाला में जलाकर भस्म कर लिया।

ठीक इसी काल में कभी स्वच्छंद विचरण करने वाली भारतवर्ष की हिन्दू महिलाओं को भी मुस्लिम सैनिकों की दृष्टि से बचाने के लिए पर्दा-प्रथा की शुरूआत हुई।

महिलाओं पर अत्याचार और बलात्कार का इतना घिनौना स्वरूप तो 17वीं शताब्दी के प्रारंभ से लेकर 1947 तक अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में भी नहीं दिखीं।

1946 में मुहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्टर एक्शन प्लान, 1947 विभाजन के दंगों से लेकर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम तक तो लाखों काफिर महिलाओं का बलात्कार हुआ या फिर उनका अपहरण हो गया। फिर वो कभी नहीं मिलीं।

इस दौरान स्थिति ऐसी हो गयी थी कि “पाकिस्तान समर्थित मुस्लिम बहुल इलाकों” से “बलात्कार” किये बिना एक भी “काफिर स्त्री” वहां से वापस नहीं आ सकती थी।

जो स्त्रियाँ वहां से जिन्दा वापस आ भी गयीं वो अपनी जांच करवाने से डरती थी।

जब डॉक्टर पूछते क्यों तब ज्यादातर महिलाओं का एक ही जवाब होता था कि “हम पर कितने लोगों ने बलात्कार किये हैं ये हमें भी पता नहीं”।

विभाजन के समय पाकिस्तान के कई स्थानों में सड़कों पर काफिर (हिंदू) स्त्रियों की “नग्न यात्राएं (धिंड) “निकाली गयीं, “बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं” और 10 लाख से ज्यादा की संख्या में उनको दासियों की तरह खरीदा बेचा गया।

20 लाख से ज्यादा महिलाओं को जबरन मुस्लिम बना कर अपने घरों में रखा गया। (देखें फिल्म “पिंजर” और पढ़ें पूरा सच्चा इतिहास गूगल पर)।

इस विभाजन के दौर में हिन्दुओं को मारने वाले सबके सब विदेशी नहीं थे। इन्हें मारने वाले स्थानीय मुस्लिम भी थे। वे समूहों में कत्ल से पहले हिन्दुओं के अंग-भंग करना, आंखें निकालना, नाखुन खींचना, बाल नोचना, जिंदा जलाना, चमड़ी खींचना खासकर महिलाओं का बलात्कार करने के बाद उनके “स्तनों को काटकर” तड़पा-तड़पा कर मारना आम बात थी।

अंत में कश्मीर की बात~19 जनवरी 1990 सारे कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया जिसमें लिखा था “या तो मुस्लिम बन जाओ या मरने के लिए तैयार हो जाओ या फिर कश्मीर छोड़कर भाग जाओ लेकिन अपनी औरतों को यहीं छोड़कर “। लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी पण्डित संजय बहादुर उस मंजर को याद करते हुए आज भी सिहर जाते हैं। वह कहते हैं कि “मस्जिदों के लाउडस्पीकर” लगातार तीन दिन तक यही आवाज दे रहे थे कि यहां क्या चलेगा, “निजाम-ए-मुस्तफा”, ‘आजादी का मतलब क्या “ला इलाहा इलल्लाह”, ‘कश्मीर में अगर रहना है, “अल्लाह-ओ-अकबर” कहना है। और ‘असि गच्ची पाकिस्तान, बताओ “रोअस ते बतानेव सान” जिसका मतलब था कि हमें यहां अपना पाकिस्तान बनाना है, कश्मीरी पंडितों के बिना मगर कश्मीरी पंडित महिलाओं के साथ।

सदियों का भाईचारा कुछ ही समय में समाप्त हो गया जहाँ पंडितों से ही तालीम हासिल किए लोग उनकी ही महिलाओं की अस्मत लूटने को तैयार हो गए थे।

सारे कश्मीर की मस्जिदों में एक टेप चलाया गया। जिसमें मुस्लिमों को कहा गया की वो हिन्दुओं को कश्मीर से निकाल बाहर करें। उसके बाद कश्मीरी मुस्लिम सड़कों पर उतर आये।

उन्होंने कश्मीरी पंडितों के घरों को जला दिया, कश्मीर पंडित महिलाओ का बलात्कार करके, फिर उनकी हत्या करके उनके “नग्न शरीर को पेड़ पर लटका दिया गया”।

कुछ महिलाओं को बलात्कार कर जिन्दा जला दिया गया और बाकियों को लोहे के गरम सलाखों से मार दिया गया।

कश्मीरी पंडित नर्स जो श्रीनगर के सौर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में काम करती थी, का सामूहिक बलात्कार किया गया और मार मार कर उसकी हत्या कर दी गयी।

बच्चों को उनकी माँओं के सामने स्टील के तार से गला घोंटकर मार दिया गया।

कश्मीरी काफिर महिलाएँ पहाड़ों की गहरी घाटियों और भागने का रास्ता न मिलने पर ऊंचे मकानों की छतों से कूद कूद कर जान देने लगी।

घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। हालात और बदतर हो गए थे।

कुल मिलाकर हजारों की संख्या में काफिर महिलाओं का बलात्कार किया गया।

आज आप धरती के जन्नत कश्मीर घूमकर मजे लेने जाते हैं और वहाँ के लोगों को रोजगार देने जाते हैं। उसी कश्मीर की हसीन वादियों में आज भी सैकड़ों कश्मीरी हिन्दू बेटियों की बेबस कराहें गूंजती हैं, जिन्हें केवल काफिर होने की सजा मिली।

अभी हाल में ही आपलोगों ने टीवी पर “अबू बकर अल बगदादी” के जेहादियों को काफिर “यजीदी महिलाओं” को रस्सियों से बाँधकर कौड़ियों के भाव बेचते देखा होगा।

पाकिस्तान में खुलेआम हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर सार्वजनिक रूप से मौलवियों की टीम द्वारा धर्मपरिवर्तन कर निकाह कराते देखा होगा।

बांग्लादेश से भारत भागकर आये हिन्दुओं के मुँह से महिलाओं के बलात्कार की हजारों मार्मिक घटनाएँ सुनी होंगी।

यहाँ तक कि म्यांमार में भी एक काफिर बौद्ध महिला के बलात्कार और हत्या के बाद शुरू हुई हिंसा के भीषण दौर को देखा होगा।

केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनियाँ में इस सोच ने मोरक्को से ले कर हिन्दुस्तान तक सभी देशों पर आक्रमण कर वहाँ के निवासियों को धर्मान्तरित किया, संपत्तियों को लूटा तथा इन देशों में पहले से फल फूल रही हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता का विनाश कर दिया।

परन्तु पूरी दुनियाँ में इसकी सबसे ज्यादा सजा महिलाओं को ही भुगतनी पड़ी… बलात्कार के रूप में ।

आज सैकड़ों साल की गुलामी के बाद समय बीतने के साथ धीरे-धीरे ये बलात्कार करने की मानसिक बीमारी भारत के पुरुषों में भी फैलने लगी।

जिस देश में कभी नारी जाति शासन करती थीं, सार्वजनिक रूप से शास्त्रार्थ करती थीं, स्वयंवर द्वारा स्वयं अपना वर चुनती थीं, जिन्हें भारत में देवियों के रूप में श्रद्धा से पूजा जाता था आज उसी देश में छोटी-छोटी बच्चियों तक का बलात्कार होने लगा और आज इस मानसिक रोग का ये भयानक रूप देखने को मिल रहा है।

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Sunday, October 4, 2020

भारत में बलात्कार कब से शुरू हुआ? आज रेप बढ़ने का कारण सरकार है?

04 अक्टूबर 2020


भारतीय संस्कृति में नारी को नारायणी का दर्जा दिया गया है और उसको पूज्य भाव से देखते हैं और अपनी पत्नी के अलावा परस्त्री को माता समान माना जाता हैं। प्राचीन भारत मे बच्चों को गुरुकुल में भेजते थे उसमे 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। किसी भी बहन बेटी के सामने बुरी नजर से भी नही देखते थे बलात्कार की तो बात ही नहीं लेकिन भारत में विदेशी मुगल आक्रमणकारियों ने आकर भारत की बहू-बेटियो, माताओं के साथ बलात्कार किया उसके बाद अंग्रेजों ने भी यही सिलसिला जारी रखा, प्राचीन भारत मे कभी बलात्कार शब्द ही नही था।




आज विदेशी चैनल, बॉलीबुड, चलचित्र, अश्लील साहित्य आदि प्रचार माध्यमों के द्वारा युवक-युवतियों को अश्लीलता परोसी जा रही है। विभिन्न सामयिकों और समाचार-पत्रों में भी तथाकथित पाश्चात्य मनोविज्ञान से प्रभावित मनोचिकित्सक और ‘सेक्सोलॉजिस्ट’ युवा छात्र-छात्राओं को चरित्र, संयम और नैतिकता से भ्रष्ट करने पर तुले हुए हैं। पाठयक्रम में भी संयम की कही भी शिक्षा नही दी जा रही है, बॉलीबुड, विज्ञापनों और इंटरनेट पर भरपूर तरीके से अश्लीलता परोसी जा रही है जिसके कारण आज मासूम बच्चियां भी बलात्कार की शिकार हो रही हैं, कुवारी लड़कियां गर्भवती बन जाती हैं और हर दिन खबरें आती रहती हैं कि आज फलानी बच्ची, लड़कीं अथवा महिला के साथ बलात्कार हुआ। कड़े कानून भी बनाये फिर भी नही रुक रहा है, इसके पीछे यही सब कारण हैं।

बलात्कार रोकने में अगर सबसे अहम भूमिका कोई निभा सकता है तो वो सरकार है, सरकार अगर पाठ्यक्रम में संयम की शिक्षा दे, अश्लीलता वाली फिल्में सेंसर बोर्ड पास ही न करे, अश्लीलता के विज्ञापन, सीरियल, वेबसाइट, इंटरनेट, साहित्य आदि सभी पर रोक लगा दें तो आज देश मे 80% बलात्कार रुक जाएंगे।
 
आज चारों तरफ बॉलीवुड, हॉलीवुड आदि भिन्न-भिन्न तरह के चलचित्रों की होड़ लगी हुई है। हमारे देश में ही नहीं अपितु प्रत्येक देश में फ़िल्म-जगत ने बच्चों, युवाओं, महिलाओं, वृद्धों आदि सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। प्रायः लोग यह समझते हैं कि फ़िल्म देखना कोई बुरी बात नहीं क्योंकि यह तो सिर्फ एक मनोरंजन है और इससे हमारे देश का नाम ऊंचा होता है, किसी देश के देशवासियों को सम्मानित किया जाता है, इस देश में रहने वाले व्यक्ति उच्च श्रेणी के कलाकार हैं, इन्हें 'बेस्ट-फ़िल्म' का अवार्ड मिलना चाहिए इत्यादि लेकिन इस बात पर ध्यान कोई नहीं देता कि "हमारे देश की संस्कृति को बिगाड़ने में सबसे बड़ा हाथ इन फ़िल्म-जगत वालों का है।" आज के समय तरह-तरह की फिल्मों में अश्लील/कॉमेडी/रोमांस/एक्शन आदि के चलते अधिकांश व्यक्तियों को उनके जीवन का उद्देश्य तक पता नहीं होता। यहां तक की बच्चों को भी एक "कैरियर काउन्सलर" की आवश्यकता पड़ती है। प्राचीन संस्कृति और परम्परा तो खत्म हो चुकी है। अध्यात्म तो विलुप्त ही हो चुका है। व्यक्ति अध्यात्म के मार्ग को छोड़कर भौतिक मार्ग को अपना रहा है। आज व्यभिचार तेजी से बढ़ रहे हैं, अपशब्द ११-१२ वर्ष के बच्चों को कंठस्थ होते हैं। फिल्मी-दुनिया को देखकर आज कोई बच्चा अथवा व्यक्ति शिखा और यज्ञोपवीत का ग्रहण नहीं करता।

प्राचीन काल में ऐसा नहीं था। उस समय बच्चों को गुरुकुल भेजा जाता था और वहां उन्हें वैदिक शिक्षाएं दी जाती थीं। इससे वह अध्यात्म की ओर उन्नति करते थे और अपने जीवन का लक्ष्य स्वयं से निर्धारित करते थे। आर्यसमाज इन्हीं वैदिक शिक्षाओं पर जोर देता रहा है तथा फ़िल्म-जगत का विरोध भी करता रहा है। हमारा मत है कि "हमें अपने बच्चों को फिल्म-जगत से दूर रखना चाहिए व स्वयं भी दूर रहना चाहिए" क्योंकि अपनी संस्कृति को बिगाड़ने में सबसे बड़ा हाथ फिल्मी-दुनिया का ही है। इसके स्थान पर वैदिक पुस्तकें बच्चों को पढ़ाई जाए तो वह अपने जीवन का लक्ष्य स्वयं निर्धारित कर सकेंगे व अध्यात्म पथ पर उन्नति कर सकेंगे।

मेरे एक मित्र है, जो कि फ़िल्म जगत के समर्थक है। उनका मानना है कि हमें अपने बच्चों के साथ सिनेमाघरों में जाकर फ़िल्म देखना चाहिए। उन्होंने मुझे भी फिल्मी दुनिया का समर्थन करने हेतु इस तरह से कहा- "इससे हम अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत कर पाते हैं, उन्हें समय देते हैं। जिसमें उन्हें खुशी मिलती है वह हम करते हैं।"

उन्होंने अपनी शंका व्यक्त करते हुए पूछा- अब बताइये इसमें गलत क्या है? हम तो अपने बच्चों की खुशी के लिए यह कर रहे हैं।

मेरा उत्तर- बच्चों की खुशी के लिए थोड़ा बहुत उनके मन का करना अच्छी बात है; जैसे पढ़ाई में उनकी सहायता करना, घुमाना-फिराना, खेलना आदि। इससे वह खुश भी होते हैं लेकिन "यदि बच्चा कहे कि- मुझे गाली देने में बड़ा मजा आता है, लड़कियों के साथ घूमने में सुख की अनुभूति होती है, मेरे मित्र मादक पदार्थ का सेवन करते हैं- उनको देखकर मुझे भी इच्छा होती है और कभी-कभी मैं भी कर लिया करता हूँ" तो क्या आप उसे रोकेंगे नहीं? क्या तब भी आप यही कहेंगे कि जिसमें उसकी खुशी है हम वही करेंगे? अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने यही उदाहरण क्यों दिया? यह उदाहरण मैंने इसलिए दिया ताकि हम इन कुकर्मों के जड़ तक पहुंचे।

उच्श्रृंखलता क्यों बढ़ रही है?

सन् २०१७ में फ़िल्म जुड़वा 2 में वरुन धवन पर फिल्माया गाना 'सुन गणपति बप्पा मोरिया परेशान करें मुझे छोरियां' यह गीत हिन्दू समाज में बड़ी तेजी से प्रचलित हुआ था। यहां तक कि मन्दिर के कार्यक्रमों, विवाह-समारोह आदि में यही गीत बजाया जा रहा था। आप बताइये क्या भगवान् से यही प्रार्थना या विनती करनी चाहिए कि "हमें छोरियों से बचाओ"? सन् २०१५ में फ़िल्म "मैं तेरा हीरो" में वरुण धवन पर फिल्माया एक और गाना 'भोले मेरा दिल माने ना', सन् २०१२ में फ़िल्म रेडी में सलमान खान पर फिल्माया गाना 'इश्क के नाम पे करते सभी अब रासलीला है मैं करूं तो साला करैक्टर ढीला है' आदि। यह गीत उद्दंडता नहीं फैला रहे तो क्या कर रहे हैं?

अश्लीलता/व्यभिचार को बढ़ावा-

व्यभिचार बढ़ने का कारण भी फिल्मी-दुनिया ही है। जब बॉलीवुड में सब तरह के मनोरंजन समाप्त होने लगे तब पाश्चात्य सभ्यता ने नग्नता/अश्लीलता को जन्म दिया। अश्लील फिल्में दिखाकर खुलेआम नग्नता का प्रचार किया। इसमें मुख्य योगदान पॉर्नस्टार "सनी लियॉनी" का है। परिणामस्वरूप आज यह हो रहा है कि अखबारों में यह खबर पढ़ने को मिलती है कि "एक बाप ने अपनी बेटी का बलात्कार किया"।

अपशब्द तथा मादक पदार्थ का खुलेआम प्रचार-आजकल तो सभी फिल्मों में अपशब्द का प्रयोग हो रहा है। इसका प्रभाव बच्चों और युवाओं पर इतनी तेजी से पड़ रहा है कि उन्हें अपशब्द का पूरा शब्दकोश कंठस्थ रहता है। प्रत्येक फ़िल्म में शुरू होने से पूर्व यह लिखा होता है "धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है..."। अब इतना लिखने के बावजूद भी उसी फ़िल्म में मादक-पदार्थों का सेवन करना दिखलाया जाता है। इन फिल्मों से प्रभावित हो १८-२० के युवा तम्बाकू/धूम्रपान का शिकार हो रहे हैं।

दरअसल हम अपनी तुलना अपने आस-पास के लोगों अथवा समाज से करते हैं। यदि किसी से पूछो कि क्या आप झूठ बोलते हो? तो वह कहता है कि "मेरा पड़ोसी तो प्रतिदिन झूठ बोलता है, मैं तो कभी-कभी बोल लेता हूँ।" हम अपनी तुलना समाज के उन व्यक्तियों से करते हैं जो अपनी परम्पराओं, संस्कृतियों को समाप्त करने में लगे हैं, जिनका कोई लक्ष्य नहीं होता या होता भी है तो सिर्फ अपनी उन्नति और वह भी भौतिक रूप से। अच्छा यह बताइये, जो अध्यात्म मार्ग त्याग कर भौतिक मार्ग पर उन्नति कर रहे हैं क्या वह ऐश्वर्य के स्वामी हैं? क्या वह सुख की जिंदगी जी रहे हैं? नहीं। तो फिर हम अपनी तुलना उनसे क्यों करें? तुलना करनी है तो ऋषियों से करो, ऋषियों के ग्रन्थों से करो, महापुरुषों से करो। उनसे तुलना करने से क्या लाभ "जिन्होंने अपने जीवन में एक भी सिद्धान्त नहीं बनाया हो?" अब मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या फिल्म जगत वाले अपने संस्कृति की रक्षा कर रहे या संस्कृति बिगाड़ रहे हैं? आपके बच्चे का भविष्य बना रहे या बिगाड़ रहे हैं? अपने भगवान पर अश्लील गीत बनाकर उनका सम्मान कर रहे या उन्हें कलंकित कर रहे?

"इतना जानने के बावजूद लोग अपने बच्चों को सिनेमाघरों में ले जाकर यही अश्लीलता भरे गाने और पिक्चर दिखाकर बहुत खुश होते हैं कि आज हमने अपने बच्चों के साथ 'सिनेमाघरों' में समय बिताया। बच्चों के साथ समय बिताना ही है तो उन्हें प्रेरणादायी पुस्तकें, क्रांतिकारियों को जीवनी, सामान्य ज्ञान, वीर रस से भरी कविताएं इत्यादि पढ़ाओ, वैदिक पुस्तक लाकर पढ़ो-पढ़ाओ और उसका महत्व बताओ। यदि फ़िल्मी-दुनिया से अपने बच्चों की रक्षा न कर सके तो यह स्पष्ट है कि "अपने बच्चों का भविष्य बर्बाद करने में आपका भी उतना ही योगदान है जितना कि फिल्मजगत वालों का।" -प्रियांशु सेठ

इस पर सरकार चाहे तो तुंरत रोक लगा सकती है और देश मे फिर से महिलाओं को वास्तविक सम्मान मिलने लगेगा।

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