Monday, October 12, 2020

अमेरिकन प्रोफेसर : हिन्दू धर्म से बड़ा कोई धर्म नही, हिंदुत्व से बेहतर और कुछ नहीं

12 अक्टूबर 2020


अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना स्थित ऐलोन यूनिवर्सिटी में धार्मिक इतिहास विभाग के सीनियर प्रोफेसर ब्राइन के.पेनिंग्टन इन दिनों में भारत आये है और हिंदुत्व पर गहन खोज कर रहे हैं।




प्रोफेसर ब्राइन ने कहा कि बीते ढाई दशक में मैंने हिंदुत्व को जितना पढ़ा और समझा, उसका सार यही है कि जीवन को संचालित करने की हिंदुत्व से बेहतर कोई और व्यवस्था नहीं। दुनिया के किसी भी धर्म का उद्भव व उद्देश्य मानव सभ्यता के विकास क्रम में और मानवीय जीवनशैली को बेहतर बनाने पर केंद्रित रहा है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के उस मत से मैं पूरी तरह सहमत हूं, जिसमें हिंदुत्व को 'वे ऑफ लाइफ' (जीवन पद्धति) माना गया है। मेरे जीवन में भी हिंदुत्व का बड़ा महत्व है और यह मेरे लिए गर्व की बात है कि मैं हिंदुत्व पर शोध कर रहा हूं...।

54 वर्षीय प्रो. ब्राइन हिंदुत्व एवं हिंदू मान्यताओं पर अब तक तीन पुस्तकें लिख चुके हैं। इन दिनों शोध के सिलसिले में वे भारत आए हुए हैं।

माघ मेले में शामिल होने आया हूं-
माघ मेले में शामिल होने और हिंदू धर्म, दर्शन व मान्यताओं पर अपने शोध को आगे बढ़ाने के लिए भारत आए प्रो. ब्राइन ने यहां दैनिक जागरण से चर्चा में कहा, हिंदुत्व पर लंबे शोध में मैंने अब तक यही पाया कि सांस्कृतिक मूल्यों और मान्यताओं के रूप में हिंदुत्व का इतिहास मानव सभ्यता के विकास जितना ही पुराना है। लेकिन एक धर्म के रूप में इसके सभी सांस्कृतिक मूल्यों और समान मान्यताओं का एकीकरण क्रमिक चरण में हुआ।

प्रोफेसर ने बताया कि हिंदू धर्म के इतिहास पर शोध करने के लिए वे वर्ष 1993 में पहली बार भारत आए थे। हिंदुत्व को लेकर अब तक उनकी तीन पुस्तकें 'वास हिंदुइज्म इनवेंटेड', 'रीचिंग रिलीजियन एंड वाइलेंस' और 'रिचुअल इनोवेशन' प्रकाशित हो चुकी हैं।

हिंदुत्व पर अब शोध की थीम क्या है? इस पर उन्होंने कहा, आज भी वही है, जो पहले थी- हिंदुत्व को समझना। इस समय शोध का विषय देवी-देवताओं और हिंदुत्व के बीच संबंध पर केंद्रित है। माघ मेले में सम्मिलित होने के अलावा मुझे कुछ पौराणिक स्थलों और देवी-देवताओं से संबंधित जानकारियों का संकलन करना है।

अमेरिकी विवि का पाठ्यक्रम-
प्रो. ब्राइन के अनुसार अमेरिकी विवि में रिलीजियस स्टडीज में हिंदुत्व के बारे में सबसे पहले हिंदुत्व का इतिहास पढ़ाया जाता है। हिंदू दर्शन को समझा सकने वाले वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, रामायण, महाभारत सहित अन्य रचनाएं पाठ्क्रम में शामिल हैं। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी व माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर जैसी शख्सियतें भी पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं। प्रोफेसर ने स्पष्ट किया कि हिंदुत्व के बारे में जो भी पढ़ाया जाता है, वह प्रमाणों और तथ्यों पर आधारित होता है। इसके लिए शोध भी किया जाता है।

16 साल का था तब पहली बार पढ़ी गीता-

इस अमेरिकी प्रोफेसर ने कहा, जब मैं 16 वर्ष का था, तब पहली बार गीता पढ़ी। इसी के बाद मेरी हिंदुत्व के प्रति रुचि जागृत हुई। फिर तो मैंने वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत सहित सभी धर्मशास्त्रों, 15वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक के सभी संतों और विवेकानंद, गोलवलकर व गांधी जैसे महापुरुषों के बारे में भी अध्ययन किया। महाभारत ग्रंथ को पढ़कर मैं खासा प्रभावित हुआ। महाभारत में जो किरदार हैं, उनका अपना अलग महत्व है। खासकर युधिष्ठिर से मैं सबसे अधिक प्रभावित हुआ। जबकि, रामायण समझने में अति सरल है।

सकारात्मक आस्था के मामले में हिंदू धर्म सर्वश्रेष्ठ-

प्रो. ब्राइन का मानना है कि सकारात्मक आस्था के मामले में हिंदू धर्म सभी धर्मों में श्रेष्ठ है। उन्होंने कहा, इसका उदाहरण गंगा नदी के रूप में देखा सकता है। गंगा को माता का दर्जा दिया गया है, लेकिन उसका जल सभी के लिए बराबर है। हिंदुत्व में मानव सभ्यता के उच्चतम आदर्शों व मूल्यों का समावेश है और प्रकृति पूजा इसके मूल में है।

डॉ. डेविड फ्रॉली कहते हैं : हिंदुत्व बहुत पावरफुल कल्चर है, ‘‘भारत को अपने लक्ष्य तक पहुँचना है और वह लक्ष्य है अपनी आध्यात्मिक संस्कृति का #पुनरुद्धार । इसमें न केवल भारत का अपितु मानवता का कल्याण निहित है । यह तभी सम्भव है जब भारत के बुद्धिजीवी आधुनिकता का मोह त्यागकर अपने हिन्दू धर्म और अध्यात्म की कटु आलोचना से विरत होंगे ।

अमेरिका के प्रोफेसर भी खुलकर हिन्दू धर्म को महान बता रहे हैं लेकिन भारत मे सेक्युलर के नाम पर हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने की भारी कोशिश की जा रही है और मीडिया, सेक्युलर नेता आदि हिन्दू विरोधी बातें #करते हैं यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट भी हिन्दू धर्म के खिलाफ कई बार जजमेंट दे चुका है, सरकार भी सेक्युलर एजेंडे में ही चल रही है हिन्दू धर्म पर भारी खतरा मंडार रहा है।

हिन्दू धर्म की महिमा अमेरिका के प्रोफेसर समझ रहे हैं तो भारत के हिन्दू कब समझेंगे ? गीता पढ़कर हिन्दू धर्म की महत्ता समझ गये तो भारत में हिन्दू गीता, उपनिषद आदि हिन्दू धर्मग्रंथों को क्यों नही पढ़ रहे हैं? हिंदुओं ने अपने धर्म की उपेक्षा करने लगे है और पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकर्षित होने लगे हैं इसलिए आज हिंदुत्व पर प्रहार होने लगा है और विदेशी ताकतें हिन्दुओं का धर्मान्तरण करवा रहे हैं ।

अभी भी हिन्दू जगा नही और अपने धर्म की महिमा समझकर लौटा नही तो आगे जाकर बहुत भुगतना पड़ेगा। अतः हिन्दू धर्म की महिमा समझकर उस अनुसार आचरण करें और अन्य लोगों को भी प्रेरित करें ।

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Sunday, October 11, 2020

अशोक सिंघल के थे दो लक्ष्य एक हुआ साकार, अब दूसरे की बारी

11 अक्टूबर 2020


यह तो सब जानते ही हैं कि श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर-निर्माण में विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल तथा बीजेपी सांसद डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी का बड़ा योगदान रहा है। पर क्या आप यह भी जानते हैं कि इन्हीं दो नेताओं ने एक और मुद्दे पर जमकर पैरवी की है और वह है आशाराम बापू की रिहाई । दोनों ने खुलकर हर मंच पर कहा है कि आशाराम बापू निर्दोष हैं, उन्हें फँसाया गया है और उन्हें जल्द-से-जल्द ससम्मान रिहा किया जाना चाहिए। अशोक सिंघल और सुब्रमण्यम स्वामी दोनों ही आशाराम बापू से मिलने जोधपुर जेल भी गये थे।




क्या कहते थे सिंघल आशाराम बापू के बारे में ? जोधपुर जेल में बापू से मुलाकात के बाद पत्रकारों से बातचीत में सिंघल ने कहा था कि ‘‘आशारामजी बापू को इस उम्र में इतना कष्ट दिया गया है ! कानून में किसीको भी फँसाया जा सकता है । बापू पर लगाया गया आरोप, केस - सारा कुछ बनावटी है । हिन्दू धर्म के खिलाफ देश के भीतर वातावरण पैदा हो इसके लिए भारी मात्रा में फंड्स देते हैं विदेशी लोग। आशारामजी बापू हमारी संस्कृति को समाज में प्रतिष्ठित करने में लगे हुए हैं। समाज उनका ऋणी रहेगा और कभी उस ऋण को चुका नहीं पायेगा। उन्होंने अनेक प्रकार के सेवाकार्य वनवासी क्षेत्रों में खड़े किये। यह जिनके लिए बरदाश्त से बाहर की चीज थी उन्होंने ही महाराजजी को ऐसे बदनाम करना चाहा है जैसे शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वतीजी को किया गया था।’’

क्या कहते आये है सुब्रमण्यम स्वामी ?
डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी यह पहले ही कह चुके है कि ‘‘लड़की के फोन रिकॉर्ड्स से पता लगा कि जिस समय पर वह कहती है कि वह कुटिया में थी, उस समय वह वहाँ थी ही नहीं ! उसी समय बापू सत्संग में थे और आखिर में एक मँगनी के कार्यक्रम में व्यस्त थे। वे भी वहाँ कुटिया में नहीं थे। बापू पर ‘पॉक्सो एक्ट’ लगवाने हेतु एक झूठा सर्टिफिकेट निकाल के दिखा दिया गया। संत आशारामजी बापू के खिलाफ किया गया केस पूरी तरह बोगस है।’’

अयोध्या में शिलान्यास पर संतों ने किया याद गौर करियेगा कि केवल सिंघल या स्वामी ही बापू को निर्दोष मानते हैं ऐसा नहीं है। अयोध्या के दिग्गज महंत एवं श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष नृत्यगोपालदासजी का भी यही मानना है। वे साफ तौर पर कह चुके हैं कि ‘‘संत आशारामजी बापू के प्रति जनता में बहुत भारी श्रद्धा है अतः दोष लगाने के लिए षड्यंत्रकारियों को कोई-न-कोई सहारा चाहिए। इसलिए इस प्रकार से सहारा लेकर उन्होंने चारित्रिक दोष की कल्पना की है लेकिन आशारामजी बापू महात्मा हैं। ।’’https://youtu.be/YegncME19aU

भारतीय जनक्रांति दल, अयोध्या के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. श्री राकेशशरणजी महाराज ने अशोक सिंघलजी के जीवन को याद करते हुए बताया कि ‘‘श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के प्रणेता अशोक सिंघलजी के दो लक्ष्य थे। एक था श्रीराम मंदिर निर्माण और दूसरा हमारे निर्दोष संत आशाराम बापू की रिहाई। एक लक्ष्य तो पूरा हुआ, दूसरा सरकार कब पूरा करेगी ?’’

महाराज जी ने बापू को महान संत बताया और कहा कि उनका तो समाज के प्रति ऐसा योगदान है कि उन्हें तो श्रीराम मंदिर शिलान्यास के कार्यक्रम में होना चाहिए था।

राम मंदिर की तरह बापू की रिहाई के लिए भी हो सामूहिक प्रयास
अयोध्या के स्वामी अवधकिशोर शरणजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ‘‘बापूजी को मिशनरियों ने जबरदस्ती फँसाया है। सभी धर्मप्रेमियों, भक्तों, समाज व सभी संत-महापुरुषों से अनुरोध करूँगा कि जैसे राम मंदिर के लिए सभी ने इतना किया इसी तरह बापूजी के लिए भी आवाज उठानी चाहिए।’’

अयोध्या संत समिति के महामंत्री महंत पवनकुमारदास शास्त्रीजी, राष्ट्रीय संत सुरक्षा परिषद के सम्पूर्ण दक्षिण भारत प्रभारी डॉ. श्रीकृष्ण पुरीजी, अयोध्या के महंत चिन्मयदासजी एवं श्री सतेन्द्रदासजी वेदांती ने भी इसी प्रकार की बात दोहरायी।

निश्चित ही अशोक सिंघल, वी.एच.पी. व संस्कृतिप्रेमियों का राम मंदिर निर्माण का एक सपना तो साकार हो ही गया है और अब उनका संत आशाराम बापू की निर्दोष रिहाई का दूसरा सपना भी जल्द ही साकार होगा ऐसा सबका मानना है।


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Saturday, October 10, 2020

असम में मदरसों को बंद करने का फरमान जारी।

10 अक्टूबर 2020


कट्टरपंथी और आतंकवादी बढ़ रहे हैं उसका मूल कारण मदरसों में कट्टरपंथ की शिक्षा देना, जिस तरह लव जिहाद चलाया जा रहा है और आतंकवादी संगठनों में जो मुस्लिम युवक- युवतियां भर्ती होने जाते हैं उसका कारण मदरसों में दी जा रही कट्टरपंथी शिक्षा ही है।




उत्तर प्रदेश सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी ने बताया था कि "मदरसों में बच्चों को बाकियों से अलग कर कट्टरपंथी सोच के तहत तैयार किया जाता है। यदि प्राथमिक मदरसे बंद ना हुए तो 15 साल में देश का आधे से ज्यादा मुसलमान आईएसआईएस का समर्थक हो जाएगा। उन्‍होंने इसके बजाय हाई स्कूल के बाद धार्मिक तालीम के लिए मदरसे जाने के विकल्प का सुझाव दिया। कोई भी मिशन आगे बढ़ाने के लिए बच्चों का सहारा लिया जाता है और हमारे यहां भी ऐसा ही हो रहा है ! ये देश के लिए भी खतरा है।

आपको बता दें कि असम की बीजेपी सरकार नवंबर में सरकारी मदरसों को बंद करने को लेकर नोटिफिकेशन जारी करेगी। राज्य के शिक्षा मंत्री हिमांत विश्व शर्मा ने बृहस्पतिवार (8 अक्टूबर 2020) को यह साफ़ करते हुए कहा कि मजहबी शिक्षा का खर्च जनता के रुपए से नहीं उठाया जा सकता है।

शर्मा ने कहा, “राज्य में कोई भी धार्मिक शैक्षणिक संस्थान सरकारी खर्च पर नहीं चलाया जा सकता है। हम इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए आगामी नवंबर में ही एक अधिसूचना जारी करेंगे।

हिमांत शर्मा ने ग्रीष्मकालीन विधानसभा सत्र के दौरान मदरसों से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि सरकारी मदरसे नवंबर से बंद हो रहे हैं। उनका कहना था कि अब से सरकार केवल धर्म निरपेक्ष और आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देगी। उन्होंने कहा था कि अब और अरबी शिक्षकों की नियुक्ति की कोई योजना नहीं है। मदरसा बोर्ड को भंग कर संस्थानों के शिक्षाविद माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को सौंप दिए जाएँगे।

संस्कृत के बारे में बात करते हुए शर्मा ने कहा कि संस्कृत सभी आधुनिक भाषाओं की जननी है। असम सरकार ने सभी संस्कृत टोल्स को कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत और प्राचीन अध्ययन विश्वविद्यालय (नलबाड़ी में) के तहत लाने का फैसला किया है। वह एक नए रूप में कार्य करेंगे। फरवरी 2020 के दौरान एक अहम निर्णय में असल सरकार ने घोषणा की थी कि सरकार सभी राज्य संचालित मदरसों और संकृत टोल्स को बंद करने वाली है। उनके मुताबिक़ धार्मिक उद्देश्यों के लिए धार्मिक शास्त्र, अरबी और अन्य भाषाओं को पढ़ाना सरकार का काम नहीं है।

असम में कुल 614 सरकारी और 900 निजी मदरसे हैं। इनमें अधिकांश जमीयत उलामा के तहत चलाए जाते हैं। सरकार प्रतिवर्ष मदरसों पर लगभग 3 से 4 करोड़ रुपए खर्च करती है ।

बता दें कि पाकिस्तानी समाचार पत्र डॉन के स्तंभकार नाजिहा सईद अली ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें बताया कि, राजस्थान से लगती सीमा पर 2000 में जहां इक्का-दुक्का मदरसे थे, वे 2015 से अचानक 20 तक पहुंच गए हैं । ये मदरसे धर्म परिवर्तन कर नए मुस्लिमों के बच्चों की तालीम के लिए खुले हैं ।

आपको बता दें कि जाकिर नाईक ने कई मदरसे खोले थे उन मदरसों में वह कट्टरता की ट्रेनिंग देता था ।

पाकिस्तान में जिहाद में झोंके जाने वाले बच्चे गरीब घरों के तथा मदरसों से निकले बच्चे हैं । इनकी शिक्षा पद्धति ही इन्‍हें आतंकवाद के रास्ते पर प्रेरित करती है ।

कुछ समय पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रिपोर्ट भेजी है जिसमें कहा गया था कि कश्मीर में मस्जिदों, मदरसों और मीडिया पर नियंत्रण रखना होगा ।

फ़्रांस ने तो कई मस्जिदें बन्द कर दी वहाँ के गृहमंत्री बर्नार्ड कैजनूव ने कहा था कि  “फ्रांस में मस्जिदों या प्रेयर हॉल में नफरत भड़काने वाली शिक्षा दी जाती है, इसलिए मस्जिदों को बंद कर दिया हैं, इन मस्जिदों में धार्मिक विचारों के प्रचार के नाम पर कट्टरवादी (देश विरोधी) शिक्षा दी जाती थी । कई मस्जिदों पर छापे के दौरान जेहादी दस्तावेज बरामद किए गए थे । इन मस्जिदों में सऊदी अरब से फंडिग होती थी ।

फ्रांस ने तो समझ लिया कि देश को तोड़ने के लिये विदेशी फण्ड से चलने वाली मस्जिदों में आतंकवादी बनने की ट्रेंनिग दी जाती है और देश विरोधी बातें सिखाई जाती हैं ।

देश में हिन्दुओं पर मुस्लिमों के बढ़ते आतंक की हालत देखकर भारत सरकार को फ्रांस से सीख लेनी चाहिए मुस्लिमों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण करना चाहिये ।

मदरसों में जब कट्टरपंथी की शिक्षा दी जाती है और कई मदरसों में बच्चों का मौलवी यौन शोषण कर रहे है तो ऐसे मदरसों पर बेन तो लगना ही चाहिए ।

सरकार को तो मदरसों पर बैन लगाना चाहिए किंतु उसके विपरित सरकार मदरसों को अनुदान देती है। जबकि ‘मदरसों को अनुदान देना अर्थात सरकारी (जनता के टैक्स ) पैसों से आतंकवादियों का निर्माण करना है ।

देश को बाहरी आतंकवादियों से इतना खतरा नही जितना इन कट्टरपंथियों से है इसलिए सरकार को जांच करवानी चाहिए और विदेशी फंड से जितनी भी मस्जिदें चल रही हैं उसमें अगर देश विरोधी बातें सिखाई जाती हैं तो ऐसे मदरसों और मस्जिदों को बंद कर देना चाहिए जिससे देश सुरक्षित रहे और सुख शांति बनी रहे ।


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Friday, October 9, 2020

मीडिया टेलीविजन और वेबसाइट पर कैसे ज्यादा TRP बना लेती है, जानिए सच्चाई।

09 अक्टूबर 2020


एक मशहूर लेख़क ने कहा था;- “मीडिया एक बाज़ार है, और हम सब ग्राहक“। यह कथन अपने आप में बहुत कुछ कहता है, लेकिन इसके मायने आज बदल गए हैं। टीआरपी की जद्दोजहतों के बीच खबरें शायद बिल्कुल गुम सी हो गई हैं। तड़कते भड़कते ग्राफ़िक्स को लेकर बनाया गया प्रोमो, एंकर-एंकराओं के बदलते हाव भाव, और उन सबके बीच ख़बरों के एक राई जितने छोटे हिस्से को आज के ज़माने में कुछ तथाकथित पढ़े लिखे न्यूज़ चैनल “खबर” कहते हैं। कुछ ऐसा ही वाकया सामने आया है आज..




एक प्राइवेट न्यूज़ चैनल पर TRP से छेड़छाड़ का आरोप लगा है। यह आरोप मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम ने लगाया है। इस आरोप के लगते ही मीडिया जगत में बवाल सा खड़ा हो गया है। फिलहाल मामले में जल्द ही चैनल के मालिकों को समन भेजा जायेगा और उनसे इस बाबत पूछताछ भी की जाएगी। इस मामले को समझने से पहले आपको समझना चाहिए कि टीआरपी आखिर होती क्या चीज़ है !

क्या होती है टीआरपी?

टीआरपी यानी की टेलीविजन रेटिंग पॉइंट एक ऐसा उपकरण है जिसकी मदद से ये पता लगाया जाता है कि कौन सा प्रोग्राम या टीवी चैनल सबसे ज्यादा देखा जा रहा है। साथ ही साथ इसके जरिए किसी भी प्रोग्राम या चैनल की पॉपुलैरिटी को समझने में मदद मिलती है। आसान शब्दों में समझें तो लोग किसी चैनल या प्रोग्राम को कितनी बार और कितने समय के लिए देख रहे हैं, यह पता चलता है। प्रोग्राम की टीआरपी सबसे ज्यादा होना मतलब सबसे ज्यादा दर्शक उस प्रोग्राम को देख रहे हैं। टीआरपी, विज्ञापनदाताओं और इन्वेस्टर्स के लिए बहुत उपयोगी होता है क्योंकि इसी से उन्हें जनता के मूड का पता चलता है। एक चैनल या प्रोग्राम की टीआरपी के जरिए ही विज्ञापनदाता को समझ आएगा कि उसे अपना विज्ञापन कहां देना है और इन्वेस्टर समझेगा कि उसे अपने पैसे कहां लगाने हैं।

कैसे मापा जाता है टीआरपी को ?

टीआरपी को मापने के लिए कुछ जगहों पर (जी हाँ ! सिर्फ कुछ जगहों पर) पीपल्स मीटर लगाए जाते हैं। इसे ऐसे समझ सकते है कि कुछ हजार दर्शकों को न्याय और नमूने के रूप में सर्वे किया जाता हैं और इन्हीं दर्शकों के आधार पर सारे दर्शक मान लिया जाता है जो TV देख रहे होते हैं। अब ये पीपल्स मीटर Specific Frequency के द्वारा ये बताते हैं कि कौन सा प्रोग्राम या चैनल कितने समय में कितनी बार देखा जा रहा है।

इस मीटर के द्वारा एक-एक मिनट की टीवी की जानकारी को Monitoring Team INTAM यानी Indian Television Audience Measurement तक पहुंचा दिया जाता है। ये टीम पीपलस मीटर से मिली जानकारी का विश्लेषण करने के बाद तय करती है कि किस चैनल या प्रोग्राम की टीआरपी कितनी है। इसको गिनने के लिए एक दर्शक के द्वारा नियमित रूप से देखे जाने वाले प्रोग्राम और समय को लगातार रिकॉर्ड किया जाता है और फिर इस डाटा को 30 से गुना करके प्रोग्राम का एवरेज रिकॉर्ड निकाला जाता है। यह पीपल मीटर किसी भी चैनल और उसके प्रोग्राम के बारे में पूरी जानकारी निकाल लेता है। तो ये सब बात तो हो गई टीआरपी की…. चूँकि वर्तमान युग डिजिटल मीडिया का भी है। ठीक इसी प्रकार की एक टीआरपी डिजिटल मीडिया में (ख़ास तौर से न्यूज़ वेबसाइटों में) भी पाई जाती है। जिसका नाम होता है- वेबसाइट ट्रैफिक। इसको मापने गूगल एनालिटिक्स या डिजिटल वेब ट्रैकिंग मीटर नामक सॉफ्टवेयरों का उपयोग किया जाता है। खेल इसमें भी होता है !!!!

डिजिटल वेबसाइट ट्रैफिक मैनुपुलेशन फ़र्ज़ी कीवर्ड्स ड़ालकर वेबसाइट पर ट्रैफिक लाया जाता है। तमाम तरह की दूसरी गतिविधियों जैसे कीवर्ड्स को छुपाना, कंटेंट को छुपाना आदि का भी जमकर इस्तेमाल किया जाता है। टेक्निकली शब्दों में बात करें, तो इसे ब्लैक हैट Seo के नाम से जाना जाता है। मीडिया जगत में शायद ही कोई ऐसी न्यूज़ वेबसाइट हो, जिसने आज तक ब्लैक हैट SEO ना किया या करवाया हो।
जिस प्रकार आज एक टीवी चैनल पर टीआरपी मैनपुलेशन का आरोप लग रहा है। ठीक इसी प्रकार का ट्रैफिक मैनपुलेशन रोज़ मीडिया जगत में देखने को मिलता है। तकनीकी शब्दों में इसे स्पैम इंडेक्सिंग ऑफ़ सर्च इंजन इंडेक्स भी कहा जाता है। ये काम सिर्फ कुशल तकनीक अभियंता या ख़ास तरह के कंप्यूटर एक्सपर्ट ही कर सकते हैं, क्यूंकि इसमें बहुत ज़्यादा कुशलता की ज़रूरत पड़ती है।
तो ये सब बात तो हो गई टीआरपी की…. चूँकि वर्तमान युग डिजिटल मीडिया का भी है। ठीक इसी प्रकार की एक टीआरपी डिजिटल मीडिया में (ख़ास तौर से न्यूज़ वेबसाइटों में) भी पाई जाती है। जिसका नाम होता है- वेबसाइट ट्रैफिक। इसको मापने गूगल एनालिटिक्स या डिजिटल ट्रैकिंग मीटर नामक सॉफ्टवेयरों का उपयोग किया जाता है। खेल इसमें भी होता है। फ़र्ज़ी कीवर्ड्स ड़ालकर वेबसाइट पर ट्रैफिक लाया जाता है। तमाम तरह की दूसरी गतिविधियों जैसे कीवर्ड्स को छुपाना, कंटेंट को छुपाना आदि का भी जमकर इस्तेमाल किया जाता है। टेक्निकली शब्दों में बात करें, तो इसे ब्लैक हैट seo और ग्रे हैट SEO के नाम से जाना जाता है। मीडिया जगत में शायद ही कोई ऐसी न्यूज़ वेबसाइट हो, जिसने आज तक ब्लैक हैट seo ना किया या करवाया हो। जिस प्रकार आज एक टीवी चैनल पर टीआरपी मैनपुलेशन का आरोप लग रहा है। ठीक इसी प्रकार का ट्रैफिक मैनपुलेशन रोज़ मीडिया जगत में देखने को मिलता है। तकनीकी शब्दों में इसे स्पैम इंडेक्सिंग ऑफ़ सर्च इंजन इंडेक्स भी कहा जाता है। ये काम सिर्फ कुशल तकनीक अभियंता या ख़ास तरह के कंप्यूटर एक्सपर्ट ही कर सकते हैं, क्यूंकि इसमें बहुत ज़्यादा कुशलता की ज़रूरत पड़ती है। इसकी मदद से वेबसाइट के पेजों को और ख़बरों को टॉप सर्च में प्रमोट किया जाता है।

क्या होता है ब्लैक हैट और ग्रे हैट SEO?

उदाहरण के लिए मान लीजिये कि आपके या आपके संस्थान के ख़िलाफ़ गूगल पर कोई आर्टिकल या वीडियो पड़ी है। तो उस सम्बंधित ख़बर/आर्टिकल/वीडियो को गूगल के फ्रंट पेज यानी कि पहले पेज पर नीचे रैंक करवाने के लिए उसी विषय से सम्बंधित +VE कंटेंट को दूसरी-दूसरी वेबसाइटों पर डाला या डलवाया जायेगा। उन ख़बरों के टैग में जमकर पॉजिटिव ख़बरों से सम्बंधित कीवर्ड्स को डलवाया जायेगा। इससे क्या होगा, जो नया आर्टिकल/वीडियो/कंटेंट हाल ही में डाला गया है, वो अपने आप ऊपर आ जायेगा, और जो नकारात्मक ख़बर हो, वो गूगल पर नीचे चली जाएगी। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि किसी विशेष व्यक्ति, संस्थान की ऑडियंस उनसे कंनेक्ट रहे और उन्हें वो नकारात्मक ख़बर/कंटेंट/वीडियो टॉप सर्च में दिखाई ना दे। यह थोड़ा सा लम्बा और टाइम टेकिंग प्रोसेस माना जाता है। लेकिन इसमें परिणाम दूरगामी मिलते हैं।

पैसे कैसे कमाये जाते हैं, ब्लैक हैट/ग्रे हैट SEO से ?

उदाहरण के लिए मान लीजिये कि परसो क्रिसमस है, और आप किसी न्यूज़ वेबसाइट में काम करते हैं। तो अब आपको अगले दो दिन तक क्रिसमस QUOTES, IMAGES, WISHES, WALLPAPERS, GIFs इन कीवर्ड्स पर मुख्य रूप से काम करना होगा। अगले दो दिन तक गूगल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इन कीवर्ड्स की बाढ़ सी रहती है। ऐसे में यदि आप चाहते हैं कि आपका आर्टिकल/वीडियो/कंटेंट गूगल में टॉप पर रहे तो आप अपने आर्टिकल के पहले पैराग्राफ से पहले इन्हीं विषयों से सम्बंधित कीवर्ड्स ड़ालकर उन्हें वाइट कलर या ग्रे कलर से रंग कर छुपा देते हैं। तत्पश्चात अपने आर्टिकल के कंटेंट को लिखा जाता है। और यही प्रक्रिया दूसरे पैराग्राफ के शुरू होने से पूर्व की जाती है। रंग से इसलिए छुपाया जाता है, ताकि पाठकों को ख़बर पढ़ते समय यह कीवर्ड्स इत्यादि ना दिखाई दें।

यह करने के बाद जब वेबसाइट के आर्टिकल को गूगल वेबमास्टर(एक सॉफ्टवेयर) पर इंडेक्स करवाया जाता है, तो वह चंद ही मिनटों में गूगल पर टॉप में आ जाता है। जिसके बाद उस आर्टिकल और उस वेबसाइट पर खूब ट्रैफिक आना शुरू हो जाता है। उन दिनों वेबसाइट पर चल रहे विज्ञापनों से कमाई भी अच्छी होती हैं, ऐसे में तमाम मीडिया संस्थान इस तकनीक का इस्तेमाल करके करोड़ो रुपए महज़ 24 से 48 घंटों में ही कमा लेते हैं।

क्या न्यूज़ वेबसाइट्स में ऑडियंस मैनुपुलेशन रोज़ होता है?

जी ! हाँ, बिल्कुल किसी चर्चित ख़बर या वायरल वीडियो इत्यादि में कीवर्ड्स स्टफिंग करके तमाम न्यूज़ वेबसाइट्स इसे शीर्ष पर रखने की कोशिश करती हैं। लेकिन, वे ये भूल जाते हैं, कि जैसे ही गूगल का अल्गोरिथम क्रॉलर उस ख़बर/लेख/आर्टिकल के तकनीकी पहलुओं की जांच करता है, वह उसे तुरंत नेगेटिव रिमार्क देता है और खबर/वीडियो/आर्टिकल को तुरंत गूगल की रैंकिंग में नीचे धकेल देता है। इसी चीज़ के लिए आजकल हर बड़ा मीडिया चैनल कम से कम 50 से 60 वेबसाइट अपने पास रखता है। ताकि समय आने पर व इन वेबसाइटों पर अपनी कंपनियों की अच्छी खबरें लिखवाकर गूगल में शीर्ष पर रैंक करवा सके।
अब इसको दूसरे उदाहरण से समझिये !!!
मान लीजिये अभिषेक एक UPSC कोचिंग संचालक हैं, और 2 महीने बाद उसकी कोचिंग में एड्मिशन शुरू होने वाले हैं। अब अभिषेक, प्रतीक नाम के एक डिजिटल मार्केटिंग एक्सपर्ट या दूसरे शब्दों में कहें तो SEO एक्सपर्ट प्रतीक से मिलता है, और उसको बोलता है कि आप मेरी वेबसाइट को गूगल में कुछ कीवर्ड्स पर टॉप रैंकिंग में ला दीजिए, ताकि जैसे ही कोई व्यक्ति गूगल पर जाके UPSC Coaching से सम्बंधित कोई कीवर्ड डाले, तो उस व्यक्ति को मेरी वेबसाइट ही टॉप पर दिखे।

इसके लिए प्रतीक कुछ तकनीकों का इस्तेमाल करेंगे !!!

1) कीवर्ड्स स्टफ्फिंग

2) ज्यादा से ज्यादा Tags का इस्तेमाल

3) कई दूसरी वेबसाइटों पर अभिषेक की कोचिंग से जुड़े आर्टिकल डलवाएंगे

4) कई अन्य कोचिंगों के कीवर्ड्स को अभिषेक की वेबसाइट पर लिखे गए ब्लॉगों/आर्टिकल/वीडियो टैग में डलवाकर छुपा देंगे, ताकि कोई उन्हें देख ना सके।

5) मेटा टैग में कीवर्ड्स को ओवरलोड करना

इन सब उक्तियों का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ गूगल की अल्गोरिथम को तोड़ने के लिए किया जाता है। इसकी मदद से मीडिया वेबसाइटों को तुरंत परिणाम भी मिलता है। इन सबका इस्तेमाल करने से वेबसाइट को पढ़ने वाले पाठकों की क्षमता में एकदम से बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है। इसी ट्रैफिक का इस्तेमाल करके कुछ मीडिया कंपनियां विज्ञापन झपट लेती हैं, तो कुछ संस्थान इसका इस्तेमाल अपनी कंपनी के PR में करते हैं।

दिल्ली के SEO एक्सपर्ट पंकज कुमार बताते हैं कि कुछ वेबसाइटस पूरी तरह से कंटेंट का मैनपुलेशन करती हैं। ख़बर के शीर्षक में ट्रेंडिंग या वायरल टॉपिक लिखा होता है, और नीचे ख़बर सिर्फ दो लाइन की होती है। ख़बर के ख़त्म होने के बाद 20 से 30 टैग्स का प्रयोग किया जाता है, ताकि किसी न किसी कीवर्ड पर खबर को हिट कराया जा सके। हालाँकि अगर आप गूगल की ख़बर लिखने की पॉलिसी को देखें, तो वह बिल्कुल इसके इतर है। और यही कारण है कि जैसे ही गूगल की बैकएंड क्रॉलर टीम इस आर्टिकल/वीडियो/ख़बर की जांच करती है, तुरंत इसे रैंकिंग में नीचे कर देती है। लेकिन तब तक यह खबर/वीडियो/आर्टिकल अच्छा ख़ासा ट्रैफिक खींच चुके होते हैं, जिस कारण इनका प्रभाव बना रहता है।

हरियाणा के प्रतीक खुटेला एक डिजिटल मार्केटिंग कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट हैं। वे कहते हैं कि इस प्रकार के SEO(ग्रे और ब्लैक हैट) दोनों करना गलत है। आप जनता को कुछ का कुछ बोलकर या दिखाकर बेवक़ूफ़ नहीं बना सकते। हालाँकि यह भी सच है कि इस तकनीक को भारत में बहुत ही कम लोग जानते हैं, और उससे भी कम लोग इसका सही इस्तेमाल करना जानते हैं। इस प्रकार की तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने या PR करने के लिए किया जाता है।

क्या ये सही है?

जिस प्रकार से मीडिया में TRP मैनपुलेशन होता है, ठीक उसी प्रकार से डिजिटल मीडिया में भी खूब ऑडियंस मैनपुलेशन होता है। लेकिन, डिजिटल मीडिया में हुए इस TRP मैनपुलेशन पर हंगामा इसलिए नहीं मच पाता, क्यूंकि आधे से ज़्यादा लोगों को यह बातें पता ही नहीं होती। इसके अलावा इन कामों में सिर्फ तकनीकि रूप से कौशल व्यक्ति ही ज़ोर आज़माइश कर सकता है। इसके साथ सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण मामला तो यह है कि TRP मैनपुलेशन में आपके पास शिकायत करने के लिए MIB और अन्य सरकारी संस्थाएं हैं, लेकिन डिजिटल ट्रैफिक मैनपुलेशन में ऐसा कुछ नहीं है।

इसके दुष्प्रभाव पर बात करते हुए पंकज कुमार कहते हैं,”डिजिटल एक बहुत बड़ा मॉडल है। लोगों को टीवी की न्यूज़ चैनल की TRP तो काफी जल्दी समझ आ सकती है, लेकिन वेबसाइट पर ट्रैफिक कैसे आ रहा है, यह समझना उनके लिए काफी मुश्किल भरा है। किसी न्यूज़ चैनल की वेबसाइट पर ट्रैफिक कैसे आ रहा है, किस तकनीकों का इस्तेमाल करके आ रहा है, यह पब्लिक डोमेन में लोगों को जल्दी समझ नहीं आ सकती। लोगों को किसी न्यूज़ वेबसाइट या एप्लीकेशन पर सिर्फ ख़बर या वीडियो दिखाई देती है, लेकिन उसमें और क्या- क्या छुपा हुआ है, यह समझना काफी मुश्किल है। पेज फैक्टर, बैकलिंक फैक्टर, अथॉरिटी फैक्टर, और ट्रैफिक फैक्टर ये चार चीज़ें किसी भी वेबसाइट को ब्रांड बना देती हैं, फिर चाहे आपने ब्लैक हैट किया हो या ग्रे हैट न्यूज़ चैनलों का नाम ना बताने की शर्त पर प्रतीक बताते हैं कि कई बड़े मीडिया संस्थानों के पास डिजिटल मार्केटिंग की पूरी टीम होती है। जो अन्य सभी न्यूज़ चैनलों के डोमेन (वेबसाइट के नाम) पर नज़र रखती है। जैसे ही किसी दूसरे न्यूज़ चैनल के डोमेन पर अच्छा ट्रैफिक आने लगता है, तो ये लोग उसे पोर्न साइट या अन्य वेबसाइटों पर जाकर लिंकबिल्डिंग के द्वारा नीचे रैंक करने की कोशिश करते हैं। इसका सबसे बड़ा नुक़सान यह है कि बड़े मीडिया संस्थाओं के अलावा कोई और डोमेन या कोई और आर्टिकल कभी टॉप पर तब तक नहीं आ सकता, जब तक वह भी इस युक्ति का प्रयोग ना करे।

मीडिया के ये काला सच है, ये लोग टीआरपी और पैसे के लिए झूठी खबरे दिखाना, हिंदुओं के खिलाफ नफरत भरना, देश की सुरक्षा को उजागर कर देना आदि घिनोने कार्य करते है, आप ऐसे बिकाऊ मीडिया से सावधान रहना।


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Thursday, October 8, 2020

अयोध्या के बाद अब काशी और मथुरा बाकी हैं, जानिए इतिहास...

08 अक्टूबर 2020


भारत देश में केवल सनातन धर्म ही था, भारत सोने की चिड़िया कहलाता था, इसलिए अनेक विदेशी आक्रांताओं की नजर भारत की संपत्ति पर थी, विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत को आकर लुटा तो है साथ में भारतीय सनातन संस्कृति को विकृत भी कर दिया और हिंदुओं का कत्ल भी किया और महिलाओं के साथ बलात्कार भी किये और भारत के मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें भी बनवा दी।




भारत में तो कितने मंदिर तोड़े गए नही बता सकते हैं लेकिन तीन मुख मंदिर थे अयोध्या में श्री राम मंदिर , मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मस्थान एवं काशी के विश्वनाथ मंदिर को इस्लामी आक्रमणकारियों ने तोड़कर कब्जा कर लिया। अपने अयोध्या का इतिहास तो जान लिया होगा और कुछ समय पहले मथुरा का भी इतिहास बताया गया था की कैसे मथुरा पर कब्जा कर लिया है, अब आपको काशी विश्वनाथ के इतिहास के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

काशी में बाबा विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद के सम्बन्ध में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने जिला जज की अदालत में याचिका दायर की है। इस याचिका में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे मुक़दमे को चुनौती दी गई है।

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था।

इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।

डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब 'दान हारावली' में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित 'मासीदे आलमगिरी' में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था। आज उत्तर प्रदेश के 90 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज ब्राह्मण है।

सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया। 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था।

अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।

सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मं‍डप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने 'वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल' को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया।

इतिहास की किताबों में 11 से 15वीं सदी के कालखंड में मंदिरों का जिक्र और उसके विध्वंस की बातें भी सामने आती हैं। मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब 'विविध कल्प तीर्थ' में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ को देव क्षेत्र कहा जाता था। लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर मस्जिद में तब्दील हुए थे। 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक 'तीर्थ चिंतामणि' में वर्णन किया है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही लिंग है।

काशी विश्वनाथ का भी मुक्तिकरण होना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

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Wednesday, October 7, 2020

शोध में सामने आयी भयंकर जानकारी, एनर्जी ड्रिंक का होता है खतरनाक असर

07 अक्टूबर 2020


आज कल बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर व्यक्ति फास्ट फुड, जंक फुड, कोल्ड ड्रिंक्स, एनर्जी ड्रिंक जैसे आधुनिक आहार के आदी हो चुके हैं। ऐसे लोगों की आंखे खोलनेवाला यह शाेध महत्त्वपूर्ण है ।
आजकल यंग जेनरेशन को एनर्जी ड्रिंक पीना बहुत भाता है, उनका मानना है इसे पीने से बॉडी को इंटेन्‍ट एनर्जी मिलती है और वह पढ़ाई या पार्टी बिना थके कर लेते हैं लेकिन ये बात गलत है क्योंकि एनर्जी ड्रिंक्स का सेवन मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, रक्तचाप, मोटापा और गुर्दे की क्षति समेत कई गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है।




लंदन : अगर आप भी एनर्जी ड्रिंक पीते हैं, तो सावधान हो जाइए ! दरअसल, एक नए शोध से पता चलता है कि एनर्जी ड्रिंक से युवाओं में नकारात्मक दुष्प्रभाव हो सकते हैं । कनाडा के ओंटारियो में वाटरलू विश्वविद्यालय में किए गए शोध में कहा गया है कि ऐसे ड्रिंक्स की बिक्री 16 वर्ष से कम उम्र के युवाओं को करने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 12 से 24 वर्ष के 55 प्रतिशत बच्चों को एनर्जी ड्रिंक पीने के बाद स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या मिली थी। इनमें हार्ट रेट तेज होने के साथ ही दिल के दौरे शामिल थे। शोधकर्ताओं ने 2,000 से अधिक युवाओं से पूछा कि वे रेड बुल या मॉन्सटर जैसे एनर्जी ड्रिंक को कितनी बार पीते हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि अन्य कैफीनयुक्त पेय की तुलना में जिस तरह से एनर्जी ड्रिंक का सेवन किया जाता है, उसे देखते हुए एनर्जी ड्रिंक अधिक खतरनाक हो सकते हैं। शोध में पाया गया कि जिन लोगों ने एनर्जी ड्रिंक का सेवन किया था उनमें से 24.7 प्रतिशत लोगों ने महसूस किया कि उनके दिल की धडकन तेज हो गई थी ।

वहीं, 24.1प्रतिशत लोगों ने कहा कि इसे पीने के बाद उन्हें नींद नहीं आ रही थी। इसके अलावा, 18.3 प्रतिशत लोगों ने सिरदर्द, 5.1  प्रतिशत मितली, उल्टी या दस्त और 3.6 प्रतिशत लोगों ने छाती के दर्द का अनुभव किया। हालांकि, शोधकर्ताओं के बीच चिंता का कारण यह था कि इन युवाओं ने एक या दो एनर्जी ड्रिंक ही लिए थे फिर भी उन्हें ऐसे प्रतिकूल प्रभावों का अनुभव हो रहा था ।

अध्ययन के बारे में प्रोफेसर डेविड हैमोंड ने कहा कि फिलहाल ऊर्जा पेय खरीदनेवाले बच्चों पर कोई प्रतिबंध नहीं है। किराने की दुकानों में बिक्री के साथ ही बच्चों को टार्गेट करते हुए इसके विज्ञापन बनाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि इन उत्पादों के स्वास्थ्य प्रभावों की निगरानी बढ़ाने की जरूरत है ! स्त्रोत : नई दुनिया

एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है। अध्ययन में यह जानकारी निकलकर सामने आई है कि अक्सर एनर्जी ड्रिंक्स को शराब के साथ लिया जा रहा है। अधिकांश एनर्जी ड्रिंक्स के अवयवों में पानी, चीनी, कैफीन, कुछ विटामिन, खनिज और गैर-पोषक उत्तेजक पदार्थ जैसे गुआरना, टॉरिन तथा जिन्सेंग आदि शामिल रहते हैं।

एनर्जी ड्रिंक्स में लगभग 100 मिलीग्राम कैफीन प्रति तरल औंस होता है, जो नियमित कॉफी की तुलना में आठ गुना अधिक होता है। कॉफी में 12 मिलीग्राम कैफीन प्रति तरल औंस होता है। एनर्जी ड्रिंक्स में उपरोक्त सभी स्वास्थ्य जोखिम इसमें मौजूद चीनी और कैफीन की उच्च मात्रा के कारण होता है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष पद्म श्री डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, एनर्जी ड्रिंक्स शरीर के लिए नुकसानदेह हैं। उनमें कैफीन की अधिक मात्रा होने से युवाओं एवं बूढ़े लोगों में हृदय ताल, रक्त प्रवाह और रक्तचाप की समस्याएं हो सकती हैं। इन पेय पदार्थो में तौरीन नामक एक तत्व होता है, जो कैफीन के प्रभाव को बढ़ाता है। इसके अलावा, जो लोग शराब के साथ एनर्जी ड्रिंक्स पीते हैं, वे इसके प्रभाव में अधिक शराब पी जाते हैं। एनर्जी ड्रिंक्स लेने से शराब पीने का पता नहीं लग पाता, जिस कारण से लोग अधिक पीने के लिए प्रेरित होते हैं।

18 वर्ष से कम उम्र के लोगों, गर्भवती महिलाओं, कैफीन के प्रति संवेदनशील लोगों, एडीएचडी के लिए निर्धारित दवा जैसे एडर आदि लेने वालों के लिए एनर्जी ड्रिंक्स खास तौर पर अधिक नुकसानदेह होते हैं।

अमेरिका में हुए एनर्जी ड्रिंक से संबंधित एक सर्वेक्षण के अनुसार कैफीन लेने से दौरा पड़ने और सनक की समस्‍या होती है व कई बार तो मौत भी हो जाती है। अगर इसे आप सॉफ्ट ड्रिंक मानते हैं तो ये गलत है। एनर्जी ड्रिंक में मिली कैफीन सीधे दिमाग पर असर करती है, ऐसे में बच्चों का इसे पीने पर पाबंदी होनी चाहिए।

एनर्जी ड्रिंक में 640 मिग्रा कैफीन

विशेषज्ञों के अनुसार, हाई एनर्जी ड्रिंक के एक कैन में अमूमन 13 चम्‍मच चीनी और दो कप कॉफी के बराबर की कैफीन होती है। इस मात्रा से आप खुद अनुमान लगा सकते हैं कि एक बर में इतनी सारी कैलोरी और कैफीन मानव शरीर और दिमाग के लिए खतरा पैदा करने के लिए काफी है। जबकि कई बार तो युवा एक दिन में 3-4 कैन एनर्जी ड्रिंक पी लेते हैं। इसमें लगभग 640 मिग्रा कैफीन की मात्रा होती है, जबकि एक वयस्‍क भी एक दिन में केवल 400 मिग्रा कैफीन ही ऑब्जर्व कर सकता है।

एनर्जी ड्रिंक के दुष्‍प्रभावों को जानना जरूरी है। 

1) कैफीन पर निर्भरता : यह बात सामान्‍य है कि कैफीन की मात्रा, एनर्जी ड्रिंक में मिली हुई होती है। एनर्जी ड्रिंक को पीने से पता नहीं चलता है कि हमारे शरीर में कैफीन की कितनी मात्रा पहुंचती है। एक बार अगर शरीर को कैफीन की लत लग गई तो अन्‍य समस्‍याएं भी खड़ी हो सकती है। इसलिए इसे न पीना ही बेहतर विकल्‍प है।

2) नींद न आना : एनर्जी ड्रिंक को पीने से ज्‍यादा एनर्जी आने के कारण रात में भी नींद न आने की समस्‍या पैदा हो सकती है। शरीर और दिमाग थक जाते है लेकिन नींद नहीं आती है जिसके चलते उलझन होती है। जो लोग प्रतिदिन एनर्जी ड्रिंक का सेवन करते है, उन्हें ऐसी समस्‍या का सामना अक्‍सर झेलना पड़ता है। 

3) मूड पर प्रभाव : अध्‍ययनों से यह बात स्‍पष्‍ट हो चुकी है कि एनर्जी ड्रिंक पीने से व्‍यक्ति के मूड पर प्रभाव पड़ता है और उसका मूड स्‍वींग होता रहता है। इसके सेवन से शरीर में फील गुड कराने वाना सेरोटोनिन घट जाता है जिससे व्‍यक्ति को अवसाद हो जाता है या उसका मूड उखड़ा-उखड़ा रहता है। 

4) शुगर बढ़ना : एनर्जी ड्रिंक में भरपूर मात्रा में शुगर मिली होती है। एक ड्रिंक में लगभग 13 चम्‍मच चीनी होती है जो शरीर में शुगर लेवल को बढा देती है जिससे कई प्रकार की गंभीर समस्‍याएं होने का खतरा रहता है। इसके सेवन से डिहाईड्रेशन, प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रभाव, खराब दांत आदि पर भी असर पड़ता है। 

5) अंगो पर तनाव : एनर्जी ड्रिंक के सेवन से शरीर के सभी अंगो पर स्‍ट्रेस पड़ता है क्‍योंकि वह थक जाते हैं और उन्‍हे आराम नहीं मिल पाता है। अगर आप शरीर को स्‍वस्‍थ और खुशहाल बनाना चाहते हैं तो एनर्जी ड्रिंक का सेवन न करें। 

एनर्जी ड्रिंक को हेल्‍दी ड्रिंक का विकल्‍प कभी न बनायें और न ही इसे अपनी आदत बनायें। इसकी जगह ताजे फल और फलों का जूस पीने से अधिक एनर्जी बढ़ती है और शरीर स्वस्थ्य रहता है।

आज कल टीवी अखबारों, चलचित्रों, फिल्मों द्वारा पश्चिमी संस्कृति का महिमामंडन हो रहा है जिसके कारण आज बचपन से ही उनसे प्रभावित हो जाते है और अपने जीवन को निस्तेज कर देते हैं अतः आप ऐसी पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण नही करें । ताजा फलों का रस, देशी गाय का दूध, घी, गौझरन आदि का उपयोग करके स्वस्थ्य सुखी और सम्मानित जीवन जीये ।

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Tuesday, October 6, 2020

उत्तर प्रदेश को भी भीमा कोरेगांव और शाहीन बाग बनाने की साजिश?

06 अक्टूबर 2020


हाथरस कांड (Hathras Case) की आड़ में उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में जातीय हिंसा (Caste Based Violence) की कोशिश चल रही थी। 'जस्टिस फॉर हाथरस' नाम से वेबसाइट बनाई गई थी जिसमे मास्क लगाकर ही हमला करने और प्रशासनिक अधिकारियों को प्रदर्शन के दौरान निशाना बनाने की बात कही गई थी।




इस साजिश में PFI, SDPI और यूपी के माफिया के हाथ होने का अनुमान है। मुख्यमंत्री योगी के नाम से नकली समाचार के स्क्रीनशॉट बनाए गए थे। भीम मीम की आड़ मे दूसरा शाहीन बाग, दूसरा भीमा कोरेगांव या दूसरा बैंगलोर बनाने की साजिश थी। साजिश रचने में 100 करोड़ की फडिंग भी हुई है ऐसा खुफिया एजेंसियों से पता चला है।

दंगे का सबसे बड़ा नुकसान गरीबों को ही होता है। कोरोना के कारण जो दैनिक मजदूरी वाले बेरोजगार हैं वह दंगे के कारण ओर बर्बाद हो जाएंगे। यही तो दंगाई चाहते हैं। इन दंगे वालों का प्रेम बंग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए है। दलित भी इनके लिए काफिर हैं।

जब भी 3 तलाक की बात आए तो यह हमारा निजी मामला है। कोर्ट को या संसद को इन पर बोलने का हक़ नहीं है। संविधान ने हमें मुस्लिम पर्सनल लॉ दिया है। आज का मुस्लिम युवा कहता है कि इस्लाम की मान्यताओं पर कोई बहस नहीं हो सकती। औरतों के क्या हक हैं इस पर बात नहीं करनी चाहिए। हर बात पर कहा जाता है कि इस पर मत बोलो।

जब मेवात मे दलित अत्याचार पर प्रश्न उठता है तो वहाँ का विधायक मुख्यमंत्री को पत्र लिखता है कि मेवात में भाईचारा है। इसलिए सभी को चुप रहना चाहिए। जौनपुर में दलित बस्ती जलाने का मामला हो या आजमगढ़ में दलित युवतियों के साथ छेड़खानी का मामला सब पर चुप रहने की सलाह दी जाती है।

तब्लीगी जमात के व्यवहार पर प्रश्न उठाया जाता है तो टेलीविज़न पर धमकी दी जाती है। हर स्वतंत्र विचार को इस्लाम पर हमला माना जाता है।

अयोध्या विवाद हो या 3 तलाक या तलाक़शुदा को गुजरभत्ता। कभी भी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को स्वीकार नहीं किया जाता।

मुस्लिम और गैर मुस्लिम के व्यवहार हो तो हमेशा यही कहा जाता है कि गैर मुस्लिम खुद को बदलें। फिलिस्तीनी और रोहींग्या मुस्लिम पर बोलेंगे पर चीन के ऊईगर मुस्लिमो पर चुप। लोकतांत्रिक देशों में विशेष अधिकार चाहिए परन्तु इस्लामिक देशों में गैर मुस्लिमों को कोई अधिकार नहीं है। क्या यह भारत में पहला केस है जहां दलित बेटी पर अत्याचार हुआ है? नहीं। ना तो यह पहला केस है और ना ही अन्तिम। परन्तु शोर का कारण राजनीति है ना कि न्याय। मेवात में दलितों को धीरे धीरे समाप्त कर दिया गया। कश्मीर में 1957 से 2019 तक लाखों वाल्मीकि परिवारों को वोट देने का अधिकार ही नहीं था।

भारत जैसी आजादी और कहाँ?

क्या अमेरिका में कोई ओसामा बिन लादेन का महिमामंडन कर सकता है? क्या इजरायल में कोई भी हिटलर की जय बोल सकता है? क्या पाकिस्तान में कोई सार्वजनिक तौर पर जय हिन्द बोल सकता है? भारत में कुछ भी करें आप आजाद हैं. जय भीम, जय मीम का नारा देकर हम बंगाल में दलित अत्याचार पर चुप रह सकते हैं। आज 1947 और 1971 में पाकिस्तान से जान बचा कर आए हिन्दूओं के 95% युवा वंशजों को नहीं पता कि पाकिस्तान से उन्हें क्यों निकाला गया था? उन्हें नहीं पता कि इस्लाम सहस्तित्व को स्वीकार नहीं करता.आज भी हम जाति को देश धर्म से अधिक महत्त्व देते हैं।

दलित तो दूर इन्हे तो गैर मुस्लिम मूर्तियाँ भी स्वीकार नहीं हैं। पाकिस्तान में खुदाई में महात्मा बुद्ध की मूर्ति को तोड़ दिया गया। बैंगलोर में दलित कांग्रेस विधायक के भतीजे/ भांजे के विरुद्ध फतवा दिया गया।

बामियान इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यहां भगवान बुद्ध की दो विशाल प्रतिमाएं हुआ करती थी। इन में से बड़ी प्रतिमां की ऊँचाई लगभग 58 मीटर और छोटी की ऊँचाई 37 मीटर थी।। 1999 में अफ़गानिस्तान में तालिबान की सरकार थी  अफ़गानिस्तान में मुस्लिम धर्मगुरूओं ने इन मूर्तियों को इस्लाम के ख़िलाफ करार दे दिया।  तालिबान सरकार ने इन मूर्तियों को नष्ट करने का आदेश जारी कर दिया।

मुल्ला मुहम्मद ओमार ने एक इंटरव्यु में कहा – “मुसलमानों को इन प्रतिमाओं के नष्ट होने पर गर्व करना चाहिए, इन्हें नष्ट करके हमनें अल्लाह की इबादत की है।” 1221 ईसवी में चंगेज़ ख़ान ने इन मूर्तियों को नष्ट करने की कोशिश की पर असफल रहा, औरंगज़ेब ने भारी तोपखाने से इन मूर्तियों पर हमले करावाए पर पूरी तरह नष्ट नही कर सका। इसके बाद 18वीं सदी में नादिर शाह और अहमद शाह अबदाली ने भी इन मूर्तियों को काफी नुकसान पहुँचाया।

भारत में बहुत सारे NGO's धर्म परिवर्तन के काम में लगे हुए हैं। विदेशी पैसों से चलने वालें NGO's धर्मपरिवर्तन ही करा रहे हैं ऐसा ही नहीं है बल्कि छोटी-छोटी घटनाओं को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश करके भारत देश का माहोल भी खराब कर रहें हैं। इनसे सावधान रहना।

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