Wednesday, October 28, 2020

गोहत्या: रंगेहाथ पकड़े गए 87 गौ-तस्कर, जिनसे मिले कुल 2604 गौवंश अवशेष

28 अक्टूबर 2020


इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार (अक्टूबर 26, 2020) को निर्दोष व्यक्तियों को फँसाने के लिए उत्तर प्रदेश गोहत्या निरोधक कानून,1955 के प्रावधानों के लगातार दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की।




उक्त अधिनियम की धारा 3, 5 और 8 के तहत गोहत्या और गोमांस की बिक्री के आरोपित रहमुद्दीन की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकल पीठ ने कहा, “कानून का निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ दुरुपयोग किया जा रहा है। जब भी कोई मांस बरामद किया जाता है, तो इसे सामान्य रूप से गाय के मांस (गोमांस) के रूप में दिखाया जाता है, बिना इसकी जाँच या फॉरेंसिक प्रयोगशाला द्वारा विश्लेषण किए बगैर। अधिकांश मामलों में, मांस को विश्लेषण के लिए नहीं भेजा जाता है। व्यक्तियों को ऐसे अपराध के लिए जेल में रखा गया है, जो शायद किए नहीं गए थे और जो कि 7 साल तक की अधिकतम सजा होने के चलते प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा ट्रायल किए जाते हैं।”

पर जज साहब ने इन 18 घटनाओं की सूची शायद नहीं देखी होगी जहाँ गौ-तस्कर रंगे-हाथों पकड़ाए।

1. सोमवार (अक्टूबर 5, 2020) को जारचा थाना क्षेत्र के चोना नहर की पटरी पर पुलिस और गोकशी करने वाले बदमाशों के बीच मुठभेड़ हुई, जिसमें फुरकान अली नामक अपराधी अपने पाँव में गोली लगने से घायल हो गया। पैर में गोली लगने से घायल अपराधी फुरकान अली को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उक्त अपराधी के पिता का नाम महमूद था, जो मेरठ के भावनपुर थाना क्षेत्र स्थित नंगला साहू का निवासी है। फिलहाल वो हापुड़ के हाफिजपुर थाना क्षेत्र स्थित बड़ोदा में रह रहा था। वहीं उसका साथी बदमाश मौके से फरार हो गया, जिसकी तलाश के लिए पुलिस कॉम्बिंग ऑपरेशन चला रही है। उसकी भी गिरफ़्तारी जल्द हो सकती है।

2. जनवरी 2019 को मकसूद खान को राजस्थान की पुलिस ने गो-तस्करी के जुर्म में गिरफ़्तार किया। गो-तस्करी के आरोप में मकसूद के अलावा 6 अन्य लोगों की भी गिरफ़्तारी हुई थी। पुलिस ने मकसूद खान पर यह आरोप लगाया था कि वह ट्रक के पीछे टैंकर में भर कर गायों की तस्करी करता था।

3. रविवार (26 अप्रैल 2020) को गो-तस्करी के एक गिरोह को महाराष्ट्र से गिरफ्तार किया गया। इस गिरोह में पाँच पशु तस्कर थे। इन पशु तस्करों के नाम नईम फारूक कुरैशी (28), शाहरुख सलीम कुरैशी (23) अल्तमस सलीम कुरैशी (21) सलीम सुलेमान कुरैशी (50) और मुन्ना बशीर सैयद (35) थे। इन पाँचों को महाराष्ट्र के नासिक में पशुओं के अवैध ट्रांसपोर्टिंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया। महाराष्ट्र में जिस गाड़ी पर लेकर ये मवेशियों का गो-तस्करी करते थे, उस पर ‘जय बजरंग’ लिखा हुआ था।

4. जून 2020 में असम के दक्षिण सलमार मनकचर जिले से सीमा सुरक्षा बल ने नौ मवेशी तस्करों को पकड़ा। उनके पास से आठ पशुओं के सिर बरामद किए गए। गिरफ्तार किए गए मवेशी तस्करों की पहचान मेहर सैफुल हक, रफीकुल इस्लाम, रफीकुल इस्लाम, सफीदुर इस्लाम, मोहम्मद आफ्टर अली और नूरुद्दीन के रूप में की गई थी और वे सभी दक्षिण सलमारा कंकड़धार जिले के निवासी थे।

5. जून 2020 में हरियाणा के नूंह जिले में छापेमारी के दौरान जब पुलिस आसिफ नाम के एक शख्स के घर पहुँची तो पाया कि 9 लोग टाटा 407 वाहन पर गाय की खाल लोड कर रहे थे। पुलिस को देखते ही सभी आरोपित कार को छोड़ कर भाग गए। आरोपितों की पहचान निन्ना उर्फ निज़ाम, सलामू, दीनू, अहमद हुसैन, बाबुदीन, असर, इलियास और मामन के रूप में हुई। इन सभी के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया।

पुलिस ने वाहन से तकरीबन 414 गायों की खाल बरामद की। इसके बाद उन्होंने असर के घर में बने एक गोदाम पर छापा मारा, जहाँ से 620 गायों की खालें मिलीं। निज़ामू, फ़ारुख, हसीम के घरों में बने गोदामों पर छापे से कुल 1060 गायों की खालें बरामद हुई। इसके बाद दीनू, अहमद हुसैन, इलियास और मामन के घरों में बने गोदामों पर छापे मारे गए। जहाँ से कुल 478 गायों की खाल मिली। अभियुक्त निन्नह उर्फ निजाम, फारूक, हासिम, दीनू, अल्ली, आसिफ, निजाम, मुस्तकीम, नियाजू कुल 2572 गाय की खाल और एक टाटा 407 के साथ पाए गए थे।

6. हरियाणा के पलवल में सोमवार (जुलाई 28, 2019) की शाम करीब 7:30 बजे कुछ गो तस्करों ने गोपाल नाम के गो रक्षक की गोली मारकर हत्या कर दी। उन्हें सोमवार (जुलाई 29, 2019) को किसी ने सूचना दी थी कि कुछ लोग गाय की तस्करी कर रहे हैं। जिसके बाद अपनी बाइक लेकर निहत्थे ही वे गायों को बचाने के लिए तस्करों का पीछा करने लगे। परिणाम स्वरुप रास्ते का रोड़ा बनता देख गो तस्करों ने उन्हें गोली मार दी और वहीं उनकी मौत हो गई।

7. जुलाई 2019 में राजस्थान के अलवर जिले में गो तस्करों ने ग्रामीणों पर फायरिंग की। तस्कर की पहचान सलीम खान के रूप में हुई। मंगलवार (जुलाई 30, 2019) की रात 3 तस्कर कच्चे रास्ते से 10-15 गायों को ले जा रहे थे। आस-पास के ग्रामीणों ने पूछताछ की तो गो तस्करों ने फायरिंग शुरू कर दी।

8. राजस्थान के अलवर जिले में रविवार (सितंबर 22, 2019) देर रात गौ तस्करी के आरोप में मुनफेद खान नामक शख्स की पिटाई की घटना सामने आई। पुलिस ने बताया कि देर रात खुसा की ढाणी में भीड़ ने मुनफेद खान को घेरा और उसकी गाड़ी से 7 गोवंश बरामद किए। इस दौरान लोगों का गुस्सा उस पर फूट पड़ा और उन्होंने मुनफेद की जमकर पिटाई कर दी।

9. उत्तर प्रदेश के बागपत में पुलिस ने गोवंश का कटान और तस्करी करने के आरोप में 6 लोगों को पकड़ा था। आरोपितों के पास से चार बेसहारा गोवंश, एक महिंद्रा पिकअप, एक सेंट्रो, दो तमंचे, नशे के इंजेक्शन, 2 चॉपर, दो छुरे बरामद किए गए हैं। गिरफ्तारी रविवार (नवंबर 3, 2019) शाम को हुई थी। पकड़े गए आरोपितों की पहचान शाहिद, महफूज, हनीफ, शाहरुख, आरिफ और शानू के रूप में हुई। वहीं, फरार हुए आरोपितों में वसीम, मोमिन, जुल्फिकार,नौशाद और शहजाद का नाम शमिल था।

10. उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद में सिंघावली अहीर थाना और बागपत कोतवाली पुलिस ने रविवार (फरवरी 23, 2020) की रात हुई एक मुठभेड़ के बाद 3 गौ तस्करों को धर दबोचा। पुलिस ने इन तस्करों के पास से बिना नंबर की मारुति स्विफ्ट डिजायर कार, एक बछिया, एक सांड़ के अलावा इंजेक्शन, दो तमँचे, दो कारतूस बरामद किए। इनकी पहचान आदिल और मोहम्मद फिरोज के रूप में हुई थी। जबकि पीछा कर पकड़े गए तीसरे तस्कर का नाम सलमान था।

11. सहारनपुर के नानौता में गुरुवार (29 मार्च, 2019) तड़के हुई गोलीबारी में एक कांस्टेबल और दो गाय तस्कर घायल हो गए। जिन्हें प्राथमिक चिकित्सा दिए जाने के बाद ज़िला चिकित्सालय रेफर किया गया। इसके अलावा पुलिस को चकमा देकर रियासत और अरशद वहाँ से भागने में क़ामयाब हो गए। पकड़े गए घायल तस्करों में एक इरफ़ान है और दूसरा असरफ़ था।

12. नोएडा थाना सेक्टर-20 की पुलिस और स्वाट-1 व स्वाट-2 की संयुक्त टीमों ने नोएडा सेक्टर-8 की रेड लाइट से तीन गौ तस्करों की गिरफ़्तारी की। इनके पास से 10 ज़िंदा कारतूस समेत तीन तमंचे भी बरामद किए।इनकी पहचान आरिफ़, क़ासिम और यासीन के रूप में हुई थी।

13. जुलाई 2019 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में पुलिस ने गोकशी में लिप्त एक गैंग के 14 सदस्यों को रंगे हाथ गिरफ्तार किया था। इनमें गैंग का सरगना महबूब आलम और एक महिला भी थी। उसने घर में हथियार बनाने की फैक्ट्री भी खोल रखी थी।

14. उत्तर प्रदेश पुलिस ने बुधवार (फरवरी 05, 2020) को कार में गौमांस (बीफ़) ले जाते हुए दो लोगों को गिरफ्तार किया। रिपोर्ट्स के अनुसार, थाना प्रभारी सुशील कुमार दुबे ने बताया कि पुलिस ने गंगेरू रोड पर जब एक ऐसी कार को रोका, जिसमें गौमांस को मीट की दुकान ले जाया जा रहा था। जिसके बाद कार सवार दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद पूछताछ के दौरान आरोपितों ने दुकान के मालिक इमरान के लावारिस पशुओं की हत्या में शामिल होने का खुलासा किया।

15. उत्तर प्रदेश नोएडा के गौतम बुद्ध नगर जिले के दनकौर थाना क्षेत्र में पुलिस ने बुधवार (जुलाई 18, 2019) को खेत में घुसी गाय की हत्या के मामले में तीन आरोपितों को गिरफ्तार किया है। अकबर, जाफर, जुल्फिकार और फरियाद पर आरोप था कि इन्होंने मंदिर के सामने एक गाय को भाला मारा, जिसके कारण उस गाय की मौत हो गई।

16. उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में सेना के जवान रामनरेश उर्फ फौजी की कुछ मुस्लिम युवकों ने पिटाई कर दी। जवान ने गाय को काटने पर आपत्ति जताई थी। साथ ही जय श्री राम का नारा लगाया था। औरैया पुलिस ने इस पर कार्रवाई करते हुए 11 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। साथ ही रामनरेश उर्फ फौजी के साथ हुए विवाद में वांछित मुख्य अभियुक्त संकरा उर्फ नफीस को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।

17. उत्तर प्रदेश के बागपत में गोहत्या के मामले में शाहरुख़, इनाम, और कल्लू नाम के 3 आरोपितों को गिरफ्तार किया गया था। इन तीनों को सोमवार (जून 3, 2019) को बागपत जिले के सिटी कोतवाली थाना अंतर्गत पुराण कस्बा इलाके से गिरफ्तार किया गया। इन पर गोहत्या का शक और पशुओं का अवशेष रखने का आरोप था।

18. मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार आने के बाद पहली बार गोहत्या के मामले में 3 आरोपितों, नदीम, शकील और आजम पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत कार्रवाई की गई। गिरफ्तार हुए आरोपितों पर कुछ दिन पहले खंडवा जिले में गोहत्या करने का आरोप था।

गौरतलब है कि 9 जून, 2020 को उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने गोहत्या पर पूर्ण लगाम लगाने के लिए ‘Cow-Slaughter Prevention (Amendment) Ordinance, 2020’ को पास किया। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में ‘उत्तर प्रदेश गो वध निवारण (संशोधन) अध्यादेश, 2020’ को मंजूरी दे दी गई।

जहाँ गोहत्या के आरोपित 7 साल के कारावास की सज़ा के प्रावधान को बढ़ा कर 10 साल कर दिया गया। साथ ही गोहत्या पर लगने वाले जुर्माने को भी 3 लाख रुपए से बढ़ा कर 5 लाख रुपए कर दिया गया। उत्तर प्रदेश में अब जो भी गोहत्या या जो-तस्करी में संलिप्त होगा, उसके फोटो भी सार्वजनिक रूप से चस्पाए जाएँगे। मंगलवार (जून 9, 2020) को यूपी कैबिनेट ने ये फ़ैसला लिया।

भारत मे गौ हत्या पूर्णतः बंद होनी चाहिये। जो गौ हत्या करता है उसको कड़ी सजा मिलनी चाहिए ऐसी जनता की मांग है।

Official  Links:👇🏻
🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Tuesday, October 27, 2020

बंदा बैरागी का इतिहास जानकर आपकी भी कांप उठेगी रूहें

27 अक्टूबर 2020


 भारतवासी आज जो चैन कि श्वास ले रहे हैं और स्वतंत्रता में जी रहे हैं ये हमारे देश के वीर सपूतों और महापुरुषों के बलिदान के कारण ही संभव हुआ है। उनमें से एक महापुरुष थे बन्दा बैरागी, जिन्होंने अनेक अत्याचार सहकर भी संस्कृति को जीवित रखा पर हम उनके बलिदान दिवस को ही भुल गये हैं।




बाबा बन्दा सिंह बहादुर का जन्म कश्मीर स्थित पुंछ जिले के राजौरी क्षेत्र में विक्रम संवत् 1727, कार्तिक शुक्ल 13 (27 अक्टूबर 1670) को हुआ था। वह राजपूतों के (मिन्हास) भारद्वाज गोत्र से सम्बन्धित थे और उनका वास्तविक नाम लक्ष्मणदेव था। इनके पिता का नाम रामदेव मिन्हास था।

लक्ष्मणदास ने युवावस्था में शिकार खेलते समय एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया। इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।

इसी दौरान गुरु गोविन्द सिंह जी माधोदास कि कुटिया में आये। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त इस्लामिक आतंक से जूझने को कहा। इस भेंट से माधोदास का जीवन बदल गया। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पाँच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा। बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब कि ओर चल दिये। उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया। जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गयी।

बन्दासिंह को पंजाब पहुँचने में लगभग चार माह लग गये। बन्दा सिंह महाराष्ट्र से राजस्थान होते हुए नारनौल, हिसार और पानीपत पहुंचे और पत्र भेजकर पंजाब के सभी सिक्खों से सहयोग माँगा। सभी सिखों में यह प्रचार हो गया कि गुरु जी ने बन्दा को उनका जत्थेदार यानी सेनानायक बनाकर भेजा है। बंदा के नेतृत्व में वीर राजपूतो ने पंजाब के किसानो विशेषकर जाटों को अस्त्र शस्त्र चलाना सिखाया, उससे पहले जाट खेती बाड़ी किया करते थे और मुस्लिम जमींदार इनका खूब शोषण करते थे देखते ही देखते सेना गठित हो गयी।

इसके बाद बंदा सिंह का मुगल सत्ता और पंजाब हरियाणा के मुस्लिम जमींदारों पर जोरदार हमला शुरू हो गया। सबसे पहले कैथल के पास मुगल कोषागार लूटकर सेना में बाँट दिया गया, उसके बाद समाना, कुंजुपुरा, सढ़ौरा के मुस्लिम जमींदारों को धूल में मिला दिया।

बन्दा ने पहला फरमान यह जारी किया कि जागीरदारी व्यवस्था का खात्मा करके सारी भूमि का मालिक खेतिहर किसानों को बना दिया जाए।

लगातार बंदा सिंह कि विजय यात्रा से मुगल सत्ता कांप उठी और लगने लगा कि भारत से मुस्लिम शासन को बंदा सिंह उखाड़ फेकेंगे। अब मुगलों ने सिखों के बीच ही फूट डालने कि नीति पर काम किया, उसके विरुद्ध अफवाह उड़ाई गई कि बंदा सिंह गुरु बनना चाहता है और वो सिख पंथ कि शिक्षाओं का पालन नहीं करता। खुद गुरु गोविन्द सिंह जी कि दूसरी पत्नी माता सुंदरी जो कि मुगलो के संरक्षण/नजरबन्दी में दिल्ली में ही रह रही थी, से भी बंदा सिंह के विरुद्ध शिकायते कि गई । माता सुंदरी ने बन्दा सिंह से रक्तपात बन्द करने को कहा जिसे बन्दा सिंह ने ठुकरा दिया।

जिसका परिणाम यह हुआ कि ज्यादातर सिख सेना ने उनका साथ छोड़ दिया जिससे उनकी ताकत कमजोर हो गयी तब बंदा सिंह ने मुगलों का सामना करने के लिए छोटी जातियों और ब्राह्मणों को भी सैन्य प्रशिक्षण दिया।

1715 ई. के प्रारम्भ में बादशाह फर्रुखसियर की शाही फौज ने अब्दुल समद खाँ के नेतृत्व में उसे गुरुदासपुर जिले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरुदास नंगल गाँव में कई मास तक घेरे रखा। पर मुगल सेना अभी भी बन्दा सिंह से डरी हुई थी।

अब माता सुंदरी के प्रभाव में बाबा विनोद सिंह ने बन्दा सिंह का विरोध किया और अपने सैंकड़ो समर्थको के साथ किला छोड़कर चले गए, मुगलों से समझोते और षड्यंत्र के कारण विनोद सिंह और उसके 500 समर्थको को निकल जाने का सुरक्षित रास्ता दिया गया। अब किले में विनोद सिंह के पुत्र बाबा कहन सिंह किसी रणनीति से रुक गए इससे बन्दा सिंह कि सिक्ख सेना कि शक्ति अत्यधिक कम हो गयी।

खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उसने 7 दिसम्बर को आत्मसमर्पण कर दिया। कुछ साक्ष्य दावा करते हैं कि गुरु गोविन्द सिंह जी कि माता गूजरी और दो साहबजादो को धोखे से पकड़वाने वाले गंगू कश्मीरी ब्राह्मण रसोइये के पुत्र राज कौल ने बन्दा सिंह को धोखे से किले से बाहर आने को राजी किया।

मुगलों ने गुरदास नंगल के किले में रहने वाले 40 हजार से अधिक बेगुनाह मर्द, औरतों और बच्चों की निर्मम हत्या कर दी।

मुगल सम्राट के आदेश पर पंजाब के गर्वनर अब्दुल समन्द खां ने अपने पुत्र जाकरिया खां और 21 हजार सशस्त्र सैनिकों कि निगरानी में बाबा बन्दा बहादुर को दिल्ली भेजा। बन्दा को एक पिंजरे में बंद किया गया था और उनके गले और हाथ-पांव कि जंजीरों को इस पिंजरे के चारो ओर नंगी तलवारें लिए मुगल सेनापतियों ने थाम रखा था। इस जुलुस में 101 बैलगाड़ियों पर सात हजार सिखों के कटे हुए सिर रखे हुए थे जबकि 11 सौ सिख बन्दा के सैनिक कैदियों के रुप में इस जुलूस में शामिल थे।

युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले कि नोक पर टाँगकर दिल्ली लाया गया। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी का माँस नोचा जाता रहा।

मुगल इतिहासकार मिर्जा मोहम्मद हर्सी ने अपनी पुस्तक इबरतनामा में लिखा है कि हर शुक्रवार को नमाज के बाद 101 कैदियों को जत्थों के रुप में दिल्ली कि कोतवाली के बाहर कत्लगाह के मैदान में लाया जाता था। काजी उन्हें इस्लाम कबूल करने या हत्या का फतवा सुनाते। इसके बाद उन्हें जल्लाद तलवारों से निर्ममतापूर्वक कत्ल कर देते। यह सिलसिला डेढ़ महीने तक चलता रहा। अपने सहयोगियों कि हत्याओं को देखने के लिए बन्दा को एक पिंजरे में बंद करके कत्लगाह तक लाया जाता ताकि वह अपनी आंखों से इस दर्दनाक दृश्य को देख सकें।

बादशाह के आदेश पर तीन महीने तक बंदा और उसके 27 सेनापतियों को लालकिला में कैद रखा गया। इस्लाम कबूल करवाने के लिए कई हथकंडों का इस्तेमाल किया गया। जब सभी प्रयास विफल रहे तो जून माह में बन्दा कि आंखों के सामने उसके एक-एक सेनापति कि हत्या की जाने लगी। जब यह प्रयास भी विफल रहा तो बन्दा बहादुर को पिंजरे में बंद करके महरौली ले जाया गया। काजी ने इस्लाम कबूल करने का फतवा जारी किया जिसे बन्दा ने ठुकरा दिया।

बन्दा के मनोबल को तोड़ने के लिए उनके चार वर्षीय अबोध पुत्र अजय सिंह को उसके पास लाया गया और काजी ने बन्दा को निर्देश दिया कि वह अपने पुत्र को अपने हाथों से हत्या करे। जब बन्दा इसके लिए तैयार नहीं हुआ तो जल्लादों ने इस अबोध बालक का एक-एक अंग निर्ममतापूर्वक बन्दा कि आंखों के सामने काट डाला। इस मासूम के धड़कते हुए दिल को सीना चीरकर बाहर निकाला गया और बन्दा के मुंह में जबरन ठूंस दिया गया। वीर बन्दा तब भी निर्विकार और शांत बने रहे।

अगले दिन जल्लाद ने उनकी दोनों आंखों को तलवार से बाहर निकाल दिया। जब बन्दा टस से मस न हुआ तो उनका एक-एक अंग हर रोज काटा जाने लगा। अंत में उनका सिर काट कर उनकी हत्या कर दी गई। बन्दा न तो गिड़गिड़ाये और न उन्होंने चीख पुकार मचाई। मुगलों कि हर प्रताड़ना और जुल्म का उसने शांति से सामना किया और धर्म कि रक्षा के लिए बलिदान हो गया।

देश और धर्म के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने और इतनी यातनाएं सहन करने के बाद प्राणों कि आहुति दे दी लेकिन न धर्म बदला और नही अन्याय के सामने कभी झुके। इन वीर महापुरुषों को आज हिंदुस्तानी भूल रहे है और देश को तोड़ने में सहायक हीरो-हीरोइन, क्रिकेटरों का जन्म दिन याद होता है लेकिन आज हम जिनकी वजह से स्वतंत्र है उनका जन्म दिवस याद नही कितने दुर्भाग्य की बात है ।

इतिहास से हिन्दू आज सबक नही लेगा, संगठित होकर कार्य नही करेगा और हिंदू राष्ट्र कि स्थापना नही होगी तो फिर से विदेशी ताकते हावी होगी और हमें प्रताड़ित करेंगी।

Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Monday, October 26, 2020

जानिए रावण कैसा था ? क्यों रावण का पुतला जलाया जाता है ?

26 अक्टूबर 2020


समाचार पत्रों से मालूम चला जहाँ देश में सभी स्थानों पर दशहरा को रावण का दहन किया जायेगा वहीं कुछ अपने आपको मूल निवासी कहने वाले लोग यह कहते दिखाई दिए कि रावण का पुतला दहन नहीं होना चाहिए क्यूंकि रावण उनके पूर्वज थे। ये बयान निश्चित रूप से सुर्खियां बटोरने के लिए दिए जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों से कभी अम्बेडकरवादी, साम्यवादी, आदिवासी आदि संगठन भी रावण को अपना पूर्वज बताकर ऐसा भ्रम फैला रहे हैं। सत्य यह है कि इन्होंने कभी वाल्मीकि रामायण को ही नहीं पढ़ा। उसमें रावण का कैसा चरित्र वर्णित है यह भी नहीं जाना। अन्यथा ऐसा अज्ञानता भरी बात ये लोग कभी नहीं करते।




रावण एक विलासी था। अनेक देश - विदेश की सुन्दरियां उसके महल में थीं। हनुमान अर्धरात्रि के समय माता सीता को खोजने के लिए महल के उन कमरों में घूमें जहाँ रावण की अनेक स्त्रियां सोई हुई थीं। नशा कर सोई हुई स्त्रियों के उथले वस्त्र देखकर हनुमान जी कहते हैं~

कामं दृष्टा मया सर्वा विवस्त्रा रावणस्त्रियः ।
न तु मे मनसा किञ्चद् वैकृत्यमुपपद्यते ।।

अर्थात - मैंने रावण की प्रसुप्तावस्था में शिथिलावस्त्रा स्त्रियों को देखा है, किन्तु इससे मेरे मन में किञ्चन्मात्र भी विकार उत्पन्न नहीं हुआ। जब सब कमरों में घूमकर विशेष-विशेष लक्षणों से उन्होंने यह निश्चिय किया कि इनमें से सीता माता कोई नहीं हो सकतीं।
ऐसा निश्चय हनुमान जी ने इसलिए किया क्यूंकि वे जानते थे कि माता सीता चरित्रवान स्त्री हैं। न की रावण और उसकी स्त्रियों के समान भोगवादी हैं । अंत में सीता उन्हें अशोक वाटिका में निरीह अवस्था में मिली।

सीता माता से रावण कहता है -
"बह्वीनामुत्तमस्त्रीणामाहृतानामितस्तत: ।
सर्वासामेव भद्रं ते ममाग्रमहिषी भव ।।(वाल्मीकि रामायण ३/४७/२८)

"मैं इधर-उधर से बहुत सी सुन्दरी स्त्रियों को हर लाया हूँ । उन सब में तुम मेरी पटरानी बनोगी । तुम्हारा भला हो ।"

इसका स्पष्ट अर्थ है रावण जिस सुन्दर स्त्री को देखता था , मुग़लों की तरह हरण करके अपनी हरम (रनिवास) में डाल देता था , पर माँ सीता को पटरानी बनाना चाहता था । अनेक ऋषि-मुनि-देवताओं और राजाओं की पत्नी-पुत्री और बहनों का हरण करके अपने रनिवास में रावण ने डाल दिया था , जिससे कुपित होकर साध्वी स्त्रियों ने रावण को श्राप दिया था ।

यह तो रहा रावण का चरित्र और स्त्रियों के प्रति उसका दृष्टिकोण , जो कि संकेतमात्र ही किया है, क्या रावण ने श्रीराम से बहन का प्रतिशोध लेने के लिये हरण किया था ? उत्तर है नहीं , शूपर्णखा ने न तो श्रीराम की निन्दा की न रावण ने शूपर्णखा का प्रतिशोध ही लिया । शूपर्णखा ने तो रावण से कहा - 'श्रीराम अकेले और पैदल थे , तो भी उन्होंने डेढ़ मुहूर्त के भीतर ही खर-दूषण सहित चौदह हजार भयंकर शक्तिशाली राक्षसों का तीखे बाणों से संहार कर डाला , ऋषियों को अभय दे दिया और समस्त दण्डकवन को राक्षसों की विघ्न से रहित कर दिया ।' (रा०अ०३४/९-११)

"एका कथंचिन्मुक्ताहं परिभूय महात्मना ।
स्त्रीवधं शङ्कमानेन रामेण विदितात्मना ।।(वा०रा०३/३४/१२)

आत्मज्ञानी महात्मा श्रीराम ने स्त्री का वध हो जाने के भय से एकमात्र मुझे किसी तरह केवल अपमानित करके ही छोड़ दिया ।"

शूर्पणखा के वचन से दो बात सिद्ध हैं , पहली वह रावण से स्पष्ट कह रही है उसका अपराध वध के योग्य था । दूसरी वह आत्मज्ञानी महात्मा कहकर श्रीराम की प्रशंसा भी कर रही है और यह राम ने उसे कोई दण्ड नहीं दिया , उदारता दिखाते हुए केवल अपमानित करके ही छोड़ दिया । इसलिये बहन का बदला लिया रावण ने ,तो किस बात का बदला लिया ? जब श्रीराम ने शूर्पणखा का कोई अपराध नहीं किया ।

विभीषण जी ने सीता हरण का कारण रावण से पूछा था , तो उसमें बहन का बदला नहीं , खर-दूषण की मृत्यु का बदला कहा था ( क्योंकि रावण के साम्राज्य को दण्डकारण्य सहित सम्पूर्ण भारत से समाप्त कर दिया था- ज्यादा जानकारी के अरण्यकाण्ड का ३३ वां सर्ग पढ़ें , जिसमें शूपर्णखा ने रावण को उसके सिकुड़ते साम्राज्य पर फटकार लगाई थी , न कि अपना रोना रोया था )

विभीषणजी रावण से कहते हैं -
"किं च राक्षसराजस्य रामेणापकृतं पुरा ।
आजहार जनस्थानाद् यस्य भार्यां यशस्विनः।।
खरो यद्यतिवृत्तस्तु स रामेण हतो रणे ।
अवश्यं प्राणिनां प्राणा रक्षितव्या यथाबलम् ।।(वा०रा०६/९/१३-१४)

श्रीरामचन्द्रजी ने पहले राक्षसराज रावण का कौन -सा अपराध किया था ,जिससे उन यशस्वी महात्मा श्रीराम की पत्नी को जनस्थान से हर लाये ? 
यदि कहें कि उन्होंने खर को मारा था तो यह ठीक नहीं है ; क्योंकि खर अत्याचारी था । उसने स्वयं ही उन्हें मार डालने के लिये उन पर आक्रमण किया था । इसलिए श्रीराम ने रणभूमि में उसका वध किया ; क्योंकि प्रत्येक प्राणी यथाशक्ति अपने प्राणों की रक्षा अवश्य करनी चाहिये । "

अगर आपका पूर्वज शराबी, व्यभिचारी, भोग-विलासी, अपहरणकर्ता, कामी, चरित्रहीन, अत्याचारी हो तो आप उसके गुण-गान करेंगे अथवा उस निंदा करेंगे ?
स्पष्ट है उसकी निंदा करेंगे। बस हम यही तो कर रहे हैं। यही सदियों से दशहरे पर होता आया है। रावण का पुतला जलाने का भी यही सन्देश है कि पापी का सर्वदा नाश होना चाहिए।
एक ओर वात्सलय के सागर, सदाचारी, आज्ञाकारी, पत्निव्रता, शूरवीर, मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम हैं।
दूसरी ओर शराबी, व्यभिचारी, भोग-विलासी, अपहरणकर्ता, कामी, चरित्रहीन, अत्याचारी रावण है।
किसकी जय होनी चाहिए। किसकी निंदा होनी चाहिए। इतना तो साधारण बुद्धि वाले भी समझ जाते हैं।

आप क्यों नहीं समझना चाहते ? इसलिए यह घमासान बंद कीजिये और पक्षपात छोड़कर सत्य को स्वीकार कीजिये। -डॉ.विवेक आर्य

Official  Links:👇🏻
🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Sunday, October 25, 2020

विदेशी महिला की हमले में कटी नाक को महर्षि सुश्रुत के शल्य चिकित्सा किया ठीक

25 अक्टूबर


कॉन्वेंट स्कूल में पढ़े हुए बच्चें भले अपनी प्राचीन संस्कृति को न माने पर आज भी ऋषि-मुनियों द्वारा बताई गई युक्तियां काम कर रही हैं । 




शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत की लिखी सुश्रुत संहिता आज 2500 वर्षों बाद भी चिकित्सा क्षेत्र में मार्गदर्शक बनी हुई है । यह है भारत का वह सनातनी ज्ञान जिसके कारण भारत विश्वगुरु कहलाता था ।

चार सालों से एक विदेशी महिला की नाक की सर्जरी अटकी हुई थी । कोई भी दवाई काम में नहीं आ रही थी। लाख कोशिशों के बाद वह इलाज के लिए भारत आई। डॉक्टरों ने यहां शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत के तकरीबन ढाई हजार साल पुराने तरीके अपनाए और उसकी सफल सर्जरी कर नई नाक तैयार की । डॉक्टरों ने महिला के गाल की खाल की मदद से यह नई नाक बनाई ।

एक न्यूज एजेंसी के अनुसार, शम्सा खान (24) मूलरूप से अफगानिस्तान की रहनेवाली हैं । आतंकी हमले में चार साल पहले उन्हें गोली लग गई थी । वह उस हमले में बाल-बाल बचीं, पर कुछ जख्मों ने उनकी नाक का हुलिया बुरी तरह बिगाड दिया था। वह इसके चलते ठीक से सांस भी नहीं ले पाती थीं। यहां तक कि उनकी सूंघने की क्षमता भी चली गई थी ।

इलाज की आस में उन्होंने अफगानिस्तान में कई डॉक्टरों के चक्कर लगाए, परंतु उनके हाथ केवल निराशा ही आई । उन्होंने वहां पर सर्जरी भी कराई, परंतु वह सफल न हो पाई । ऐसे में उन्होंने बेहतर इलाज के लिए भारत का रुख किया । राजधानी नई देहली स्थित केएएस मेडिकल सेंटर एंड मेडस्पा में उन्हें भर्ती कराया गया । प्लास्टिक सर्जन अजय कश्यप ने एजेंसी से कहा, “यह जटिल मामला था । आधुनिक तरीकों से बात नहीं बनी, तो हमने शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत की तकनीक से नाक बनाने के लिए गाल से खाल ली ।"

उधर, इलाज के बाद शम्सा खास खुश हैं । वह बोलीं, “हमारे यहां गोली चलना व हमले होना आम है। उनमें कुछ मरते हैं तो कुछ बच जाते हैं, जबकि कुछ हालात के कारण मानसिक व शारीरिक ट्रॉमा का शिकार हो बैठते हैं । अंग बेकार हो जाए, जो जिंदगी भयावह हो जाती है। पर अब मुझे खुशी है कि सामान्य जीवन जी सकूंगी ।” स्त्रोत : जनसत्ता

कौन थे सुश्रुत ?

प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक थे । उन्हें शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है ।

शल्य चिकित्सा (Surgery) के पितामह और 'सुश्रुत संहिता' के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म काशी में हुआ था । इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की । सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है ।

सुश्रुत संहिता में सुश्रुत को विश्वामित्र का पुत्र कहा है । 'विश्वामित्र' से कौन से विश्वामित्र से अभिप्राय है, यह स्पष्ट नहीं । सुश्रुत ने काशीपति दिवोदास से शल्यतंत्र का उपदेश प्राप्त किया था । काशीपति दिवोदास का समय ईसा पूर्व की दूसरी या तीसरी शती संभावित है । सुश्रुत के सहपाठी औपधेनव, वैतरणी आदि अनेक छात्र थे । सुश्रुत का नाम नावनी तक में भी आता है ।

सुश्रुत के नाम पर आयुर्वेद भी प्रसिद्ध हैं । यह सुश्रुत राजर्षि शालिहोत्र के पुत्र कहे जाते हैं (शालिहोत्रेण गर्गेण सुश्रुतेन च भाषितम् - सिद्धोपदेशसंग्रह)। सुश्रुत के उत्तरतंत्र को दूसरे का बनाया मानकर कुछ लोग प्रथम भाग को सुश्रुत के नाम से कहते हैं; जो विचारणीय है। वास्तव में सुश्रुत संहिता एक ही व्यक्ति की रचना है ।

सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है। शल्य क्रिया के लिए सुश्रुत 125 तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे । ये उपकरण शल्य क्रिया की जटिलता को देखते हुए खोजे गए थे । इन उपकरणों में विशेष प्रकार के चाकू, सुइयां, चिमटियां आदि हैं । सुश्रुत ने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की । सुश्रुत ने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी । सुश्रुत नेत्र शल्य चिकित्सा भी करते थे । सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद के ओपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया गया है। उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था। सुश्रुत को टूटी हुई हड्डियों का पता लगाने और उनको जोड़ने में विशेषज्ञता प्राप्त थी ।

शल्य क्रिया के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए वे विशेष औषधियां देते थे । इसलिए सुश्रुत को संज्ञाहरण का पितामह भी कहा जाता है । इसके अतिरिक्त सुश्रुत को मधुमेह व मोटापे के रोग की भी विशेष जानकारी थी । सुश्रुत श्रेष्ठ शल्य चिकित्सक होने के साथ-साथ श्रेष्ठ शिक्षक भी थे । उन्होंने अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा के सिद्धांत बताये और शल्य क्रिया का अभ्यास कराया । प्रारंभिक अवस्था में शल्य क्रिया के अभ्यास के लिए फलों, सब्जियों और मोम के पुतलों का उपयोग करते थे । मानव शारीर की अंदरूनी रचना को समझाने के लिए सुश्रुत शव के ऊपर शल्य क्रिया करके अपने शिष्यों को समझाते थे । सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा में अद्भुत कौशल अर्जित किया तथा इसका ज्ञान अन्य लोगों को कराया । इन्होंने शल्य चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेद के अन्य पक्षों जैसे शरीर संरचना, काय चिकित्सा, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग आदि की जानकारी भी दी ।

महर्षि सुश्रुत को विश्व का पहला शल्य चिकित्सक (सर्जन) माना जाता है। 2500 साल पहले सुझाए उनके सर्जरी के तरीके आज भी सबसे सटीक माने जाते हैं । 184 अध्यायवाली सुश्रुत संहिता में आठ तरीके की सर्जरी और 1120 प्रकार के रोगों के बारे में बताया गया है। वह, चरक और धन्वंतरि जैसे चिकित्सकों जैसे ही मशहूर रहे हैं म

ये है भारत देश की ऋषि-मुनियों की महिमा लेकिन हम उनके लिखे हुए शास्त्र की बाते भूलते जा रहे है इसलिए दुःखी, परेशान, बेचैन, बीमार, अशांत रहते हैं, अगर ऋषि-मुनियों द्वारा बताई गई बातों अनुसार कार्य किया जाए तो हर व्यक्ति सुखी, स्वस्थ्य, सम्मानित जीवन जी सकता है ।

Official  Links:👇🏻
🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Saturday, October 24, 2020

इतिहास : महिषासुर कौन था, मां दुर्गा ने महिषासुर का वध क्यों किया था?

24 अक्टूबर 2020


 वामपंथी और नकली इतिहासकारों ने हमेशा भारत के सही इतिहास को तोड मरोड़ करके गलत इतिहास बताया है। उनका मुख्य उद्देश्य यह है कि भारतवासी अपनी असली पहचान भूल जाए, अपनी महान संस्कृति, परमपराओं की जगह पाश्चात्य संस्कृति की तरफ मुड़ जाए और दूसरा उनका उद्देश्य यह है कि "फुट डालो और राज करो" इसलिए ये लोग हिंदुओं को गलत इतिहास बताकर जातिवादी में बांट रहे है और कुछ दलित व आदिवाशी भोले भाले हिंदू उनके बहकावें में आ भी जाते हैं।




भारत में कुछ आदिवासियों को वामपंथियों ने इतिहास गलत बताया इसलिए कुछ आदिवासी महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी वामपंथियों द्वारा महिषासुर का महिमा मंडन किया जा रहा है उसका शहादत दिवस मनाते हैं इसलिए आपको यह जानना जरूरी है कि महिषासुर कौन था और दुर्गा माता ने उसका वध क्यों किया था।

महिषासुर का जन्म:

महिषासुर एक असुर (राक्षस) था। महिषासुर के पिता रंभ, असुरों का राजा था जो एक बार जल में रहने वाले एक भैंस से प्रेम कर बैठा और इन्हीं के योग से असुर महिषासुर का जन्म हुआ। इस वजह से महिषासुर इच्छानुसार जब चाहे भैंस और जब चाहे मनुष्य का रूप धारण कर सकता था।

महिषासुर को मिला था वरदान:

महिषासुर ने सृष्टिकर्ता ब्रम्हा जी की आराधना की थी जिससे ब्रम्हा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि कोई भी देवता या दानव उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकता। महिषासुर बाद में स्वर्ग लोक के देवताओं को सताने लगा और पृथ्वी पर भी उत्पात मचाने लगा। उसने स्वर्ग पर एक बार अचानक आक्रमण कर दिया और इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और सभी देवताओं को वहां से खदेड़ दिया। देवगण परेशान होकर त्रिमूर्ति ब्रम्हा, विष्णु और महेश के पास सहायता के लिए पहुंचे। सारे देवताओं ने फिर मिलकर उसे परास्त करने के लिए युद्ध किया परंतु वे फिर हार गए।

महिषासुर मर्दिनी:

देवता सर्वशक्तिमान होते हैं, लेकिन उनकी शक्ति को समय-समय पर दानवों ने चुनौती दी है। कथा के अनुसार, दैत्यराज महिषासुर ने तो देवताओं को पराजित करके स्वर्ग पर अधिकार भी कर लिया था। उसने इतना अत्याचार फैलाया कि देवी भगवती को जन्म लेना पड़ा। उनका यह रूप 'महिषासुर मर्दिनी' कहलाया।

देवताओं का तेज:

देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा था। भगवान विष्णु और भगवान शिव अत्यधिक क्रोध से भर गए। इसी समय ब्रह्मा, विष्णु और शिव के मुंह से क्रोध के कारण एक महान तेज प्रकट हुआ। अन्य देवताओं के शरीर से भी एक तेजोमय शक्ति मिलकर उस तेज से एकाकार हो गई। यह तेजोमय शक्ति एक पहाड़ के समान थी। उसकी ज्वालायें दसों-दिशाओं में व्याप्त होने लगीं। यह तेजपुंज सभी देवताओं के शरीर से प्रकट होने के कारण एक अलग ही स्वरूप लिए हुए था।

महिषासुर के अंत के लिए हुई उत्पत्ति:

इन देवी की उत्पत्ति महिषासुर के अंत के लिए हुई थी, इसलिए इन्हें 'महिषासुर मर्दिनी' कहा गया। समस्त देवताओं के तेज पुंज से प्रकट हुई देवी को देखकर पीड़ित देवताओं की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। भगवान शिव ने त्रिशूल देवी को दिया। भगवान विष्णु ने भी चक्र देवी को प्रदान किया। इसी प्रकार, सभी देवी-देवताओं ने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र देवी के हाथों में सजा दिये। इंद्र ने अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घंटा देवी को दिया। सूर्य ने अपने रोम कूपों और किरणों का तेज भरकर ढाल, तलवार और दिव्य सिंह यानि शेर को सवारी के लिए उस देवी को अर्पित कर दिया। विश्वकर्मा ने कई अभेद्य कवच और अस्त्र देकर महिषासुर मर्दिनी को सभी प्रकार के बड़े-छोटे अस्त्रों से शोभित किया।

महिषासुर से युद्ध:

थोड़ी देर बाद महिषासुर ने देखा कि एक विशालकाय रूपवान स्त्री अनेक भुजाओं वालीं और अस्त्र शस्त्र से सज्जित होकर शेर पर बैठकर अट्टहास कर रही हैं। महिषासुर की सेना का सेनापति आगे बढ़कर देवी के साथ युद्ध करने लगा। उदग्र नामक महादैत्य भी 60 हजार राक्षसों को लेकर इस युद्ध में कूद पड़ा। महानु नामक दैत्य एक करोड़ सैनिकों के साथ, अशीलोमा दैत्य पांच करोड़ और वास्कल नामक राक्षस 60 लाख सैनिकों के साथ युद्ध में कूद पड़े। सारे देवता इस महायुद्ध को बड़े कौतूहल से देख रहे थे। दानवों के सभी अचूक अस्त्र-शस्त्र देवी के सामने बौने साबित हो रहे थे, लेकिन देवी भगवती अपने शस्त्रों से राक्षसों की सेना को बींधने बनाने लगी।

इस युद्ध में महिषासुर का वध तो हो ही गया, साथ में अनेक अन्य दैत्य भी मारे गए। इन सभी ने तीनों लोकों में आतंक फैला रखा था।  देवी दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और नवमी के दिन उसका वध किया। इसी उपलक्ष्य में हिंदू भक्तगण दस दिनों का त्यौहार दुर्गा पूजा मनाते हैं और दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। जो बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय वाले कुछ वामपंथी व्यभिचारी, दुराचारी, राक्षस  महिषासुर का महिमामंडन करते हैं, उनकी पूजा करते है क्योंकि उनको भी यही करना होता है ये लोग भोले भाले आदिवासियों व दलित हिंदुओं को भी भ्रमित करते हैं जिससे वे अपनी भारतीय हिंदू संस्कृति से दूर हो जाएं और देश एवं धर्म के खिलाफ खड़े हो जाएं, जिससे उनको देश को तोड़ने में आसानी रहे ।

आपने जान लिया कि महिषासुर एक असुर था और आतंक फैलाकर रखा था इसलिए उसका वध करना जरूरी था, लेकिन JNU वाले वामपंथी जिस तरह उसका महिमामंडन कर रहे हैं उससे सावधान रहें और अपनी देश व संस्कृति की महानता को टूटने न दे।

Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Friday, October 23, 2020

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मज़हबी उन्माद... सभी हिंदुओं को इसका इतिहास पता होना चाहिये

23 अक्टूबर 2020


पेरिस में एक ईसाई शिक्षक की सिर काटकर हत्या कर दी गई। हत्यारा चेचन्या मूल का 18 वर्षीय युवक था जिसे पुलिस ने गोली मारकर दोज़ख पंहुचा दिया। सारा फ्रांस शिक्षक के समर्थन में सड़कों पर उतर आया। कुछ दिनों पहले चार्ली हेब्दों के दफ्तर के समीप कुछ पत्रकारों को चाकू मारकर घायल कर दिया गया था। यह प्रकरण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा था। फ्रांस की सरकार ने तत्काल कार्यवाही करते हुए इस्लाम के कट्टरपंथी मौलानाओं को देश से निर्वासन और मस्जिदों को बंद करने की कार्यवाही की हैं।




संयोग से जिस दिन उक्त शिक्षक की हत्या हुई उस दिन से ठीक एक वर्ष पहले भारत में कमलेश तिवारी की भी गला काटकर हत्या हुई। भारत के लोग कमलेश तिवारी के लिए न सड़कों पर आये और न ही उनकी हत्या पर देशव्यापी जनाक्रोश देखने को मिला। उसके विपरीत भारत में गौहत्या में शामिल दादरी के अख़लाक़ और अलवर के पहलु खान के लिए अपने आपको सेक्युलर और लिबरल कहने वाला मीडिया, NGO, मनावाधिकार कार्यकर्ता, राजनेता पुरजोर समर्थन में खड़े हो गए। प्रश्न उठता है हम हिन्दू हितों के लिए कब खड़े होंगें। पिछले 1200 वर्षों में हम अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश को खो चुके हैं। कश्मीर, केरल, असम, उत्तर प्रदेश से लेकर देश के 100 से अधिक जिलों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। बंगलादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को विधिवत रूप से बसाया गया हैं। राजा दाहिर, पृथ्वीराज चौहान, गुरु गोविन्द सिंह, वीर शिवाजी, वीर शम्भाजी, वीर हकीकत राय जैसे हमारें कुछ महान पूर्वजों के नाम है जिनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

आधुनिक काल में तलवार का स्थान कलम ने ले लिया। अभिव्यक्ति के नाम पर मुसलमान हिन्दू देवी देवताओं और मान्यताओं पर अनेक आघात करते। जिनके उत्तर हिन्दुओं के वीर शिरोमणि देते थे। अंग्रेजी राज के काल में मुसलमानों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का फायदा उठाते हुए सबसे पहले 1845 ई में हिन्दू धर्म की आलोचना करते हुए रद्दे हनूद (हिन्दू मत का खंडन) नामक किताब लिखी जिसका प्रतिउत्तर चौबे बद्रीदास ने रद्दे मुसलमान (मुस्लिम मत का खंडन) नामक पुस्तक लिख कर दिया। इसके बाद अब्दुल्लाह नामक व्यक्ति ने 1856 ई में हिन्दू देवी-देवताओं की कठोर आलोचना और निंदा करते हुए तोहफतुल-हिन्द (भारत की सौगात) के नाम से उर्दू में प्रकाशित की। पंडित लेखराम जी के अनुसार इस पुस्तक से अनेक अज्ञानी हिन्दू मुसलमान बने। ऐसी विकट स्थिति में मुरादाबाद निवासी मुंशी इन्द्रमणि हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए तोहफतुल-इस्लाम (इस्लाम का उपहार) के नाम से फारसी में दिया। सैय्यद महमूद हुसैन ने इसके खंडन में खिलअत-अल-हनूद नामक पुस्तक छापी। उसके प्रतिउत्तर में मुंशी जी ने पादाशे इस्लाम नामक पुस्तक 1866 में छापी।इसके तीन वर्ष पश्चात मुंशी जी ने एक मुसलमान द्वारा लिखी पुस्तक असूले दीने हिन्दू (हिन्दू धर्म के सिद्धांत) नामक पुस्तक का उत्तर देने के लिए असूले दीने अहमद (इस्लाम के सिद्धांत) के नाम से लिखी।

इस पर मुसलमानों ने अत्यंत अश्लील पुस्तक 'तेगे फकीर बर गर्दने शरीर' (दुष्ट व्यक्तियों की गर्दन पर फकीर की तलवार) और हदिया उल असलाम नामक पुस्तक छापी। इसके जवाब में मुंशी जी ने हमलये हिन्द(1863), समसामे हिन्द और सौलते हिन्द (1868) नामक तीन पुस्तकें मेरठ से छपवायीं। इसके स्वरुप मुसलमानों में तीव्र प्रतिक्रिया हुई और एक मुस्लिम पत्र जामे जमशीद ने 16 मई 1881 के अंक में मुंशी जी के विरुद्ध मुसलमानों को उत्तेजित किया जिसके कारण सरकार ने मुंशी जी के खिलाफ़ वारंट निकाल दिया एवं कचहरी में मुकदमा चलाया गया। यद्यपि मुंशी जी द्वारा वकीलों द्वारा पूछे गए सभी प्रश्नों का सप्रमाण उत्तर दिया गया मगर फिर भी निचली अदालत ने 500 रुपये जुर्माना किया एवं उनकी पुस्तकों को फड़वा दिया। मुंशी जी ने उपरतली अदालत में अपील की। तत्कालीन आर्य समाचार मेरठ, आर्यदर्पण शाहजहाँपुर आदि में लेख लिखें। भारत सरकार, गवर्नर जनरल शिमला आदि को आवेदनपत्र भेजे। गवर्नर ने मुक़दमे की कार्यवाही शिमला मंगवाई मगर मामला विचाराधीन है कहकर जुर्माने की रकम को घटाकर 100 रुपये कर दिया गया और मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं के विरुद्ध लिखी गई पुस्तकों को नजरअंदाज कर दिया गया। मामला हाई कोर्ट में गया मगर जुर्माना बहाल रखा गया। अंत में तीव्र आंदोलन होने पर मुंशी जी का जुर्माना भी क्षमा कर दिया गया। स्वामी दयानंद ने आर्यसमाज के पत्रों के माध्यम से मुंशी जी की धन से सहायता करने की अपील भी निकाली थी। मुंशी जी ने मेला चाँदपुर शास्त्रार्थ में स्वामी जी के साथ आर्यसमाज के पक्ष को प्रस्तुत किया था और आर्यसमाज मुरादाबाद के प्रधान पद पर भी रहे थे। स्वामी दयानंद पर इस मुक़दमे के कारण अंग्रेज सरकार की न्यायप्रियता एवं पक्षपात रहित सोच पर अनेक संशय उत्पन्न हो गए। सही पक्ष होते हुए भी मुंशी जी को तंग किया गया, उनकी पुस्तकें नष्ट की गई एवं मुसलमानों की पुस्तकों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। स्वामी जी शांत बैठने वालों में से नहीं थे। अपने लंदन में पढ़ रहे अपने शिष्य पंडित श्याम जी कृष्ण को लंदन की पार्लियामेंट में इस मामले को उठाने की सलाह अपने पत्र व्यवहार में दी जिससे की अंग्रेज सरकार द्वारा भारत में सामान्य जनता के विरुद्ध कैसा व्यवहार होता है इससे लंदन निवासी परिचित हो सकें। अंग्रेजों द्वारा पक्षपात करने के कारण स्वामी दयानंद का चिंतन निश्चित रूप से स्वदेशी राजा एवं स्वतंत्रता की ओर पहले से अधिक प्रेरित होना कोई अतिश्योक्ति नहीं है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर स्वामी दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश की रचना कर चिर काल से सो रही मानव जाति को जगाया। सत्यार्थ प्रकाश आरम्भ के दस समुल्लासों की बजाय अंत के चार समुल्लासों के कारण अधिक चर्चा में रहा है। सत्यार्थ प्रकाश के विपक्ष में इतना अधिक साहित्य लिखा गया कि एक वृहद पुस्तकालय ही बन जाये। इसका मूल कारण स्वामी जी के उद्देश्य को ठीक प्रकार से समझना नहीं था। स्वामी जी का उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं अपितु सत्य का मंडन एवं असत्य का खंडन था और मनुष्य के जीवन का उद्देश्य भी यही है। स्वामी जी का कहना था कि मत-मतान्तर के आपसी मतभेद के चलते धर्म का ह्रास हुआ है एवं मानव जाति की व्यापक हानि हुई है और जब तक यह मतभेद नहीं छूटेगा तब तक आनंद नहीं होगा। पंडित गंगाप्रसाद उपाध्याय जी के अनुसार सत्यार्थ प्रकाश के माध्यम से स्वामी दयानंद ने रूढ़िवादी एवं असत्य मान्यताओं पर जो कुठाराघात किया वह सैद्धांतिक, पक्षपात रहित एवं तर्कसंगत था जबकि उससे पहले लिखी गई पुस्तकों में प्राय: भद्दी गलियां एवं अश्लील भाषा की भरमार अधिक होती थी। स्वामी जी सामाजिक चेतना के पक्षधर थे।

स्वामी दयानंद के पश्चात पंडित लेखराम द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आर्यमर्यादा का पालन करते हुए वैदिक धर्म के विरुद्ध प्रकाशित हो रही पुस्तकों का प्रत्युत्तर दिया। पंडित जी द्वारा रचित रिसाला जिहाद के विरुद्ध मुसलमानों ने 1892 में कोर्ट में केस किया था जिसकी पैरवी लाला लाजपत राय जी द्वारा बखूबी की गई थी। अंततः विजय आर्यसमाज की हुई थी। अहमदिया जमात के मिर्जा गुलाम अहमद ने बरहीन अहमदिया नामक पुस्तक चंदा मांग कर छपवाई। पंडित जी ने उसका उत्तर तकजीब ए बरहीन अहमदिया लिखकर दिया। मिर्जा ने सुरमाये चश्मे आर्या (आर्यों की आंख का सुरमा) लिखा जिसका पंडित जी ने उत्तर नुस्खाये खब्ते अहमदिया (अहमदी खब्त का ईलाज) लिख कर दिया। अंत में धोखे से पंडित जी को पेट में छुरा मारकर क़त्ल कर दिया गया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए पंडित लेखराम जी का अमर बलिदान हुआ।

सन १९२३ में मुसलमानों की ओर से दो पुस्तकें "१९ वीं सदी का महर्षि" और “कृष्ण,तेरी गीता जलानी पड़ेगी ” प्रकाशित हुई थी। पहली पुस्तक में आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद का सत्यार्थ प्रकाश के १४ सम्मुलास में कुरान की समीक्षा से खीज कर उनके विरुद्ध आपतिजनक एवं घिनोना चित्रण प्रकाशित किया था जबकि दूसरी पुस्तक में श्री कृष्ण जी महाराज के पवित्र चरित्र पर कीचड़ उछाला गया था। उस दौर में विधर्मियों की ऐसी शरारतें चलती ही रहती थी पर धर्म प्रेमी सज्जन उनका प्रतिकार उन्ही के तरीके से करते थे। महाशय राजपाल ने स्वामी दयानंद और श्री कृष्ण जी महाराज के अपमान का प्रति उत्तर १९२४ में "रंगीला रसूल" के नाम से पुस्तक छाप कर दिया, जिसमे मुहम्मद साहिब की जीवनी व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत की गयी थी। यह पुस्तक उर्दू में थी और इसमें सभी घटनाएँ इतिहास सम्मत और प्रमाणिक थी। पुस्तक में लेखक के नाम के स्थान पर “दूध का दूध और पानी का पानी "छपा था। वास्तव में इस पुस्तक के लेखक पंडित चमूपति जी थे जो की आर्यसमाज के श्रेष्ठ विद्वान् थे। वे महाशय राजपाल के अभिन्न मित्र थे। मुसलमानों के ओर से संभावित प्रतिक्रिया के कारण चमूपति जी इस पुस्तक में अपना नाम नहीं देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने महाशय राजपाल से वचन ले लिया की चाहे कुछ भी हो जाये, कितनी भी विकट स्थिति क्यूँ न आ जाये वे किसी को भी पुस्तक के लेखक का नाम नहीं बतायेगे। महाशय राजपाल ने अपने वचन की रक्षा अपने प्राणों की बलि देकर की पर पंडित चमूपति सरीखे विद्वान् पर आंच तक न आने दी। १९२४ में छपी रंगीला रसूल बिकती रही पर किसी ने उसके विरुद्ध शोर न मचाया फिर महात्मा गाँधी ने अपनी मुस्लिमपरस्त नीति में इस पुस्तक के विरुद्ध एक लेख लिखा। इस पर कट्टरवादी मुसलमानों ने महाशय राजपाल के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया। सरकार ने उनके विरुद्ध १५३ए धारा के अधीन अभियोग चला दिया। अभियोग चार वर्ष तक चला। राजपाल जी को छोटे न्यायालय ने डेढ़ वर्ष का कारावास तथा १००० रूपये का दंड सुनाया गया। इस फैसले के विरुद्ध अपील करने पर सजा एक वर्ष तक कम कर दी गई। इसके बाद मामला हाई कोर्ट में गया। कँवर दिलीप सिंह की अदालत ने महाशय राजपाल को दोषमुक्त करार दे दिया। मुसलमान इस निर्णय से भड़क उठे। खुदाबख्स नामक एक पहलवान मुसलमान ने महाशय जी पर हमला कर दिया जब वे अपनी दुकान पर बैठे थे पर संयोग से आर्य सन्यासी स्वतंत्रानंद जी महाराज एवं स्वामी वेदानन्द जी महाराज वह उपस्थित थे। उन्होंने घातक को ऐसा कसकर दबोचा की वह छुट न सका। उसे पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया गया, उसे सात साल की सजा हुई। रविवार ८ अक्टूबर १९२७ को स्वामी सत्यानन्द जी महाराज को महाशय राजपाल समझ कर अब्दुल अज़ीज़ नमक एक मतान्ध मुसलमान ने एक हाथ में चाकू, एक हाथ में उस्तरा लेकर हमला कर दिया। स्वामी जी घायल कर वह भागना ही चाह रहा था की पड़ोस के दुकानदार महाशय नानकचंद जी कपूर ने उसे पकड़ने का प्रयास किया। इस प्रयास में वे भी घायल हो गए तो उनके छोटे भाई लाला चुन्नीलाल जी उसकी ओर लपके। उन्हें भी घायल करते हुए हत्यारा भाग निकला पर उसे चौक अनारकली, लाहौर पर पकड़ लिया गया। उसे चौदह वर्ष की सज़ा हुई ओर तदन्तर तीन वर्ष के लिए शांति की गारंटी का दंड सुनाया गया। स्वामी सत्यानन्द जी के घाव ठीक होने में करीब डेढ़ महीना लगा। ६ अप्रैल १९२९ को महाशय राजपाल अपनी दुकान पर आराम कर रहे थे। तभी इल्मदीन नामक एक मतान्ध मुसलमान ने महाशय जी की छाती में छुरा घोप दिया जिससे महाशय जी का तत्काल प्राणांत हो गया। हत्यारा अपने जान बचाने के लिए भागा ओर महाशय सीताराम जी के लकड़ी के टाल में घुस गया। महाशय जी के सुपुत्र विद्यारतन जी ने उसे कस कर पकड़ लिया। पुलिस हत्यारे को पकड़ कर ले गई और बाद में मुसलमानों द्वारा पूरा जोर लगाने पर भी इल्मदीन को फाँसी की सजा हुई। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में यह निराला बलिदान था।

लाहौर में आर्यसमाज के पुस्तक विक्रेता वीर परमानन्द जी को जेठ की दोपहरी में उस समय मार दिया गया जब वह उर्दू सत्यार्थ प्रकाश की प्रतियोँ को लेने अपनी दुकान पर गए थे। मुसलमानों के लिए सत्यार्थ प्रकाश के १४ वे समुल्लास में कुरान की समीक्षा के उद्देश्य को मजहबी आक्रोश में हिंसा का रास्ता अपनाना दुर्भाग्यपूर्ण फैसला था।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की पंक्ति में वीर नाथूराम जी का बलिदान स्मरणीय है। वीर नाथूराम का जन्म 1 अप्रैल 1904 को हैदराबाद सिंध प्रान्त में हुआ था। पंजाब में उठे आर्य समाज के क्रांतिकारी आन्दोलन से आप प्रभावित होकर 1927 में आप आर्यसमाज में सदस्य बनकर कार्य करने लगे। उन दिनों इस्लाम और ईसाइयत को मानने वाले हिन्दुओं को अधिक से अधिक धर्म परिवर्तन कर अपने मत में सम्मिलित करने की फिराक में रहते थे। 1931 में अहमदिया (मिर्जाई) मत की अंजूमन ने सिंध में कुछ विज्ञापन निकल कर हिन्दू धर्म और हिन्दू वीरों पर गलत आक्षेप करने शुरू कर दिए। जिसे पढ़कर आर्यवीर नाथूराम से रहा न गया और उन्होंने ईसाईयों द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘तारीखे इस्लाम’ का उर्दू से सिन्धी में अनुवाद कर उसे प्रकाशित किया और एक ट्रैक लिखा जिसमे मुसलमान मौलवियों से इस्लाम के विषय में शंका पूछी गई थी। ये दोनों साहित्य नाथूराम जी ने निशुल्क वितरित की थी । इससे मुसलमानों में खलबली मच गई। उन्होंने भिन्न भिन्न स्थानों में उनके विरुद्ध आन्दोलन शुरू कर दिया। इन हलचलों और विरोध का परिणाम हुआ की सरकार ने नाथूराम जी पर अभियोग आरंभ कर दिया। नाथूराम जी ने कोर्ट में यह सिद्ध किया की प्रथम तो ये पुस्तक मात्र अनुवाद है इसके अलावा इसमें जो तर्क दिए गए है वे सब इस्लाम की पुस्तकों में दिए गए प्रमाणों से सिद्ध होते है। जज ने उनकी दलीलों को अस्वीकार करते हुए उन्हें 1000 रूपये दंड और कारावास की सजा सुनाई। इस पक्षपात पूर्ण निर्णय से सारे सिंध में तीखी प्रतिक्रिया हुई। इस निर्णय के विरुद्ध चीफ़ कोर्ट में अपील करी गई। 20 सितम्बर 1934 को कोर्ट में जज के सामने नाथूराम जी ने अपनी दलीले पेश करी। अब जज को अपना फैसला देना था। तभी एक चीख से पूरी अदालत की शांति भंग हो गई। अब्दुल कय्यूम नामक मतान्ध मुस्लमान ने नाथूराम जी पर चाकू से वार कर उन्हें घायल कर दिया जिससे वे शहिद हो गए। चीफ जज ने वीर नाथूराम के मृत देह को सलाम किया। बड़ी धूम धाम से वीर नाथूराम की अर्थी निकली। हजारो की संख्या में हिन्दुओ ने वीर नाथूराम को विदाई दी। अब्दुल कय्यूम को पकड़ लिया गया। उसे बचाने की पूरजोर कोशिश की गयी मगर उसे फांसी की सजा हुई।

इतिहास से कुछ उदहारण यह दर्शाने के लिए दिए है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हमारे यहाँ कितने महान आत्माओं ने अपने बलिदान दिए। हमारे देश में बिलकुल विपरीत हो रहा है।
 
अभिव्यक्ति के नाम पर हिन्दू समाज की मान्यताओं और सिद्धांतों को निशाना बनाया जाता हैं। उनका प्रत्युत्तर देने वालों को कट्टरपंथी और दक्षिणपंथी कहा जाता हैं। आज देश को तोड़ने वाली शक्तियाँ अभिव्यक्ति के नाम पर उलटे सीधे प्रपंच कर समाज का अहित कर रही है। अभिव्यक्ति पर अंकुश होना दकियानूसी सोच है मगर अभिव्यक्ति का अनियंत्रित होना मीठे जहर के समान है। सदाचारी, पुरुषार्थी, धर्मात्मा मनुष्यों के हाथों में समाज का मार्गदर्शन होना चाहिए जिससे कि धर्मविरोधी, नास्तिक, भोग-विलासी, देशद्रोही ताकतों को अवसर न मिले। अंत में उन सभी महान आत्माओं को श्रद्धांजलि जिन्होंने समाज सुधार के लक्ष्य से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की आहुति दी। डॉ. विवेक आर्य

Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ