Wednesday, November 11, 2020

शिक्षा दिवस पर विशेष लेख : भारतीय शिक्षा का विकृतीकरण किसने किया?

11 नवंबर 2020


स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की याद में देश 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाते है। लेकिन ये कोई नही जानता है कि मौलाना आज़ाद ने शिक्षा को कितना विकृत कर दिया जिसके कारण आज भी भारतवासियों को नुकसान झेलना पड़ रहा हैं।




11 नवम्बर 1888 को पैदा हुए मक्का में, वालिद का नाम था " मोहम्मद खैरुद्दीन" और अम्मी मदीना (अरब) की थीं। नाना शेख मोहम्मद ज़ैर वत्री ,मदीना के बहुत बड़े विद्वान थे। मौलाना आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आए थे। ये सज्जन जब दो साल के थे तो इनके वालिद कलकत्ता आ गए। सब कुछ घर में पढ़ा और कभी स्कूल कॉलेज नहीं गए। बहुत ज़हीन मुसलमान थे। इतने ज़हीन कि इन्हे मृत्युपर्यन्त "भारत रत्न " से भी नवाज़ा गया। इतने काबिल कि कभी स्कूल कॉलेज का मुंह नहीं देखा और बना दिए गए भारत के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री। इस शख्स का नाम था "मौलाना अबुल कलम आज़ाद ।"
इन्होने इस बात का ध्यान रखा कि विद्यालय हो या विश्वविद्यालय कहीं भी इस्लामिक अत्याचार को ना पढ़ाया जाए. इन्होने भारत के इतिहास को ही नहीं अन्य पुस्तकों को भी इस तरह लिखवाया कि उनमे भारत के गौरवशाली अतीत की कोई बात ना आए। आज भी इतिहास का विद्यार्थी भारत के अतीत को गलत ढंग से समझता है।

हमारे विश्वविद्यालयों में - गुरु तेग बहादुर, गुरु गोबिंद सिंह, बन्दा बैरागी, हरी सिंह नलवा, राजा सुहेल देव पासी, दुर्गा दास राठौर के बारे में कुछ नहीं बताया जाता..
आज की तारीख में इतिहास हैं। 1 ) हिन्दू सदैव असहिष्णु थे 2) मुस्लिम इतिहास की साम्प्रदायिकता को सहानुभूति की नज़र से देखा जाये।

भारतीय संस्कृति की रीढ़ की हड्डी तोड़ने तथा लम्बे समय तक भारत पर राज करने के लिए 1835 में ब्रिटिश संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त करने के लिए मैकाले ने क्या रणनीति सुझायी थी तथा उसी के तहत Indian Education Act- 1858 लागु कर दिया गया।
अंग्रेज़ों ने " Aryan Invasion Theory" द्वारा भारतीय इतिहास को इसलिए इतना तोडा मरोड़ा कि भारतियों कि नज़र में उनकी संस्कृति निकृष्ट नज़र आये और आने वाली पीढ़ियां यही समझें कि अंग्रेज बहुत उत्कृष्ट प्रशासक थे।  आज जो पढाया जा रहा है उसका सार है -

1) हिन्दू आर्यों की संतान हैं और वे भारत के रहने वाले नहीं हैं। वे कहीं बाहर से आये हैं और यहाँ के आदिवासियों को मार मार कर तथा उनको जंगलों में भगाकर उनके नगरों और सुन्दर हरे-भरे मैदानों में स्वयं रहते हैं।

2) हिन्दुओं के देवी देवता राम, कृष्ण आदि की बातें झूठे किस्से कहानियां हैं। हिन्दू महामूर्ख और अनपढ़ हैं।
 
3) हिन्दुओं का कोई इतिहास नहीं है और यह इतिहास अशोक के काल से आरम्भ होता है।

4) हमारे पूर्वज जातिवादी थे. मानवता तो उनमे थी ही नहीं..

5) वेद, जो हिन्दुओं की सर्व मान्य पूज्य पुस्तकें हैं ,गड़रियों के गीतों से भरी पड़ी हैं।

6) हिन्दू सदा से दास रहे हैं --कभी शकों के, कभी हूणों के, कभी कुषाणों के और कभी पठानों तुर्कों और मुगलों के।

7) रामायण तथा महाभारत काल्पनिक किस्से कहानियां हैं-

15 अगस्त 1947, को आज़ादी मिली, क्या बदला ????? रंगमंच से सिर्फ अंग्रेज़ बदले बाकि सब तो वही चला। अंग्रेज़ गए तो सत्ता उन्ही की मानसिकता को पोषित करने वाली कांग्रेस और नेहरू के हाथ में आ गयी। नेहरू के कृत्यों पर तो किताबें लिखी जा चुकी हैं पर सार यही है की वो धर्मनिरपेक्ष कम और मुस्लिम हितैषी ज्यादा था। न मैकाले की शिक्षा नीति बदली और न ही शिक्षा प्रणाली। शिक्षा प्रणाली जस की तस चल रही है और इसका श्रेय स्वतंत्र भारत के प्रथम और दस वर्षों (1947-58) तक रहे शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलम आज़ाद को दे ही देना चाहिए बाकि जो कसर बची थी वो नेहरू की बिटिया इन्दिरा गाँधी ने तो आपातकाल में विद्यालयों में पढ़ाया जाने वाला इतिहास भी बदल कर पूरी कर दी। जिस आज़ादी के समय भारत की 18.73% जनता साक्षर थी उस भारत के प्रधानमंत्री ने अपना पहला भाषण "tryst With Destiny" अंग्रेजी में दिया था आज का युवा भी यही मानता है कि यदि अंग्रेजी न होती तो भारत इतनी तरक्की नहीं कर पाता। और हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि पता नहीं जर्मनी, जापान,चीन इजराइल ने अपनी मातृभाषाओं में इतनी तरक्की कैसे कर ली।

आज तक हम इससे उबर नहीं सके हैं... 2018 में NCERT की वे किताबें हैं जो 2005 का संस्करण हैं.--
यह पढाया जा रहा है विद्यार्थियों को --
ICSE एक सरकारी परीक्षा संस्थान है जो CBSE की तरह पूरे भारत में मान्य है. संयोग से इसकी 2016 की इतिहास की पुस्तकें देखी...
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नमूना देखें --

कक्षा 6 -
1● इतिहास की घटनाओं के समय का माप केवल ईसा के जन्म से पूर्व (BC बिफोर क्राईस्ट) या ईसा के बाद (AC आफ्टर क्राईस्ट) ! जैसे भारत का तो कोई समय था ही नहीं ?

2● सिंधु घाटी में एक महान सभ्यता अस्तित्व में थी, जिसे आक्रान्ता आर्यों ने तहस नहस कर दिया।

३● आक्रमण के बाद आर्य भ्रमित थे कि वे अपने वेदों के साथ यहाँ बसें या यहाँ से चले जाएँ ।
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4● उसके बाद सम्राट अशोक आते हैं !! हर जगह बौद्ध धर्म का उल्लेख । उस समय तक मानो हिन्दू थे ही नहीं !

5● गुप्तकाल। मानो समुद्रगुप्त पहला हिंदू शासक हो । क्योंकि वह सहिष्णु था और वह भी अपवादस्वरुप ।
पल्लव, चोल, चेर या तो वैष्णव थे अथवा शैव, हिन्दू नहीं । पूरी किताब में हिंदुओं का उल्लेख सिर्फ तीन बार ।

6● मुखपृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक छठवीं क्लास के आईसीएसई के इतिहास में हिन्दू कहीं मौजूद ही नहीं है।

कुछ है तो आर्यों द्वारा किया गया सभ्यताओं का सफाया तथा बौद्धों पर जाति थोपने का उल्लेख ।

इन 40 पृष्ठों में 5000 से अधिक वर्षों पुरानी धार्मिक सभ्यता का उल्लेख तक नहीं है । पूरे 300 वर्ष के राजवंशों का इतिहास एक पैरा में निबटा दिया गया ।
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कक्षा 7 संक्षेप में --

कक्षा 7 की इतिहास की पुस्तक में ईसामसीह का प्रचार है और वह केवल इसी के लिए ही लिखी गई है ।

दुनिया भर में इस्लाम का खूनी विजय अभियान, अरबों द्वारा किया गया "एकीकरण" का प्रयास था, जिसने अनेक लेखक, विचारक और वैज्ञानिक दिए ।

तुर्की के आक्रमण से पहले भारत क्या था, इसका उल्लेख केवल दो पृष्ठों में हैं । जबकि हर क्रूर मुग़ल बादशाह पर पूरा अध्याय है

भारत पर अरब आक्रमण एक अच्छी बात थी, उन्होंने हमें सांस्कृतिक पहचान दी । महमूद लूटने इसलिए आया क्योंकि उसे पैसे की जरूरत थी !

जिस कट्टरपंथी कुतबुद्दीन ऐबक ने 27 मंदिरों को नष्ट कर कुतुब मीनार बनवाई वह एक दयालु और उदार आदमी था !

बाबर ने अपने शासनकाल में धार्मिक सहिष्णुता की प्रवृत्ति शुरू की !

औरंगजेब एक रूढ़िवादी और भगवान से डरने वाला मुस्लिम संत था जो अपने जीवन यापन के लिए टोपियां सिलता था। वह अदूरदर्शी शासक अवश्य था ।

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कक्षा 8 से 10 तक*
संक्षेप में बताया जाता है कि मराठा साम्राज्य अस्तित्व में आने के पूर्व ही समाप्त हो गया ।

यहाँ भी ईसाई उत्पीड़न घुसाने का प्रयास, बाइबल पढ़ने वाले गुलामों को निर्दयतापूर्वक दंडित किया जाता था !
सिखाया जाता है कि गोरों का राष्ट्रवाद एक अच्छी बात है, किन्तु जब भारतीय राष्ट्रवादी हों तो वे अतिवादी हैं ।

जाटों का उल्लेख महज सात लाइनों में, और राजपूतों का 12 में मिलता है ! पंजाब का उल्लेख सीधे गुरु गोबिंद सिंह से शुरू होता है ।

उम्मीद के मुताबिक़ हैदर अली और टीपू सुल्तान को बेहतर दिखाया गया है । मैसूर किंगडम की शुरूआत हैदर अली से !
मराठाओं को बस एक पेज में लपेट दिया, शिवाजी को महज एक पंक्ति में । संभाजी कौन ? तो बस एक कमजोर उत्तराधिकारी!
मराठों सिर्फ एक क्षेत्रीय शक्ति थे, जबकि मुगलों और ब्रिटिश साम्राज्य थे।

मुगल साम्राज्य के पतन से अराजकता और अव्यवस्था फैली !
जिन महाराजा रणजीत सिंह का साम्राज्य पंजाब, कश्मीर और पार तक था, उनका उल्लेख केवल 4 लाइनों में हो गया ।
कसाई टीपू को मैसूर का टाइगर बताया गया गया । एक प्रबुद्ध शासक जो अपने समय से आगे का विचार करता था!
तो औरंगजेब एक संत था और कुतबुद्दीन ऐबक एक दयालु, उदार व्यक्ति ! और टीपू तो निश्चित रूप से धर्मनिरपेक्ष, उदार और सहिष्णु था ही !!
मुरदान खान और खलील जैसे ठग देवी काली के उपासक थे जिन्होंने 2 लाख से अधिक लोगों की हत्याएं कीं !!

भारतीय समाज गड्ढे में पड़ा हुआ था इसलिए दमनकारी था। 1843 में अंग्रेजों ने यहाँ गुलामी को अवैध घोषित किया ! (है ना हैरत की बात ?उन्होंने भारत में गुलामी को अवैध घोषित किया अफ्रीका में नहीं !!

भारतीय शिक्षा ??

मिशनरियों के आने के पूर्व केवल कुछ गिने चुने शिक्षक अपने घर में ही पढाया करते थे ।
जबकि सच्चाई यह है कि अकेले बिहार में ब्रिटेन से कहीं ज्यादा स्कूल और विश्वविद्यालय थे । बिटिश ने अपनी स्वयं की शिक्षा प्रणाली भारत के अनुसार बनाई ।

हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने वाली सुधारक केवल एनी बेसेंट थीं !!

संयोग से एक सच्चाई जरूर सामने आ गई, वह यह कि ह्यूम ने कांग्रेस का गठन 1857 जैसी घटनाएँ रोकने के लिए किया था, और यह काम कांग्रेस ने बहुत अच्छी तरह से किया भी !

युवाओं ने अभिनव भारत जैसी गुप्त गतिविधियों का संचालन किया, जिन्होंने भारत के बाहर काम किया, यहाँ भी वीर सावरकर का उल्लेख नहीं।
क्रांतिकारी आंदोलन का उल्लेख केवल एक पेज से भी कम में किया गया है। क्योंकि असली नायकों (नेहरू) को ज्यादा स्थान की जरूरत है ।

नेताजी और आजाद हिंद फौज का उल्लेख मात्र एक चौथाई पृष्ठ में मिलता है !
तो यह है हमारी आज की इतिहास शिक्षा का कच्चा चिट्ठा !

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और उनकी सेना को एक चौथाई पेज, शिवाजी को एक लाइन, लेकिन चाचा जी का स्तवन भरपूर ।


और हाँ क्रिकेट तो भूल ही गए । इस औपनिवेशिक खेल को पूरे दो पृष्ठ, आखिर बोस, भगत सिंह और मराठा साम्राज्य की तुलना में यह अधिक महत्वपूर्ण जो है।

केंद्र सरकार को भारत में अब गीता, रामायण और राष्ट्र भक्त जैसे कि चंद्रशेखर आज़ाद, शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप आदि का पाठ्यक्रम पढ़ाया जाए और मौलाना आजाद की शिक्षा को दूर करना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

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Tuesday, November 10, 2020

इस दीपावली पर भारतीय इस बात का खास ध्यान रखें...

10 नवंबर 2020


 दीप आनंद का प्रतीक है। व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र का जीवन आनंदमय हो, साथ ही सभी का जीवन आनंद से परिपूर्ण हो जाए। इसलिए हम आकाशदीप लगाते हैं । दीप लगाने से अंधकार का नाश होता है। ‘दीपावली के त्योहार द्वारा अन्यों को आनंद प्राप्त हो, क्या ऐसे कार्य हम करते हैं’, हमें इसका चिंतन करना चाहिए । दुर्भाग्यवश इसका उत्तर ‘नहीं’ ही है । दीपावली के निमित्त हमारे किसी कृत्य द्वारा अन्यों को दुःख होगा, तो हम पाप के भागी होंगे। अतएव ये सब रोक कर देवता की कृपा संपादन करें ।




 पटाखों के माध्यम से होनेवाला देवता का अनादर रोकने का निश्चय करें !

दीपावली में कुछ लोग देवताओं के छायाचित्र वाले पटाखे फोडते हैं । देवता का छायाचित्र प्रत्यक्ष देवता ही हैं । जिस समय हम पटाखे फोडते हैं, उस समय उस छायाचित्र के टुकडे होते हैं, अर्थात हम उस देवता का अनादर ही करते हैं । श्रीलक्ष्मी के छायाचित्र वाले, साथ ही राष्ट्रभक्तों के छायाचित्र वाले पटाखे फोडना, इससे हमें पाप लगता है । इस दीपावली को हम ऐसे पटाखे खरीदेंगे ही नहीं। साथ ही ऐसे पटाखे खरीदने वालों का प्रतिरोध कर उनका प्रबोधन करेंगे, वास्तव में यह देवता की भक्ति है । ऐसा करने से हम पर देवता की कृपा होगी । बच्चो, क्या हमारे माता-पिता के छायाचित्र वाले पटाखे हम फोडेंगे ? नहीं न ! देवता हम सभी की रक्षा करते हैं । हमें शक्ति एवं बुद्धि प्रदान करते हैं। अतएव इस दीपावली को हम यह अनादर रोकने का निश्चय करें।

चीनी पटाखों के कारण होने वाला वायुप्रदूषण एवं भारत के पैसे चीन में नही जाए और चीन की घुसपैठ को ध्यान में लेकर प्रशासन को स्वयं ही इन पटाखों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए !

बता दें कि दीवाली को पटाखे फोडने के पीछे कोई भी शास्त्रीय आधार नहीं है । यह एक अनुचित किंतु प्रचलित प्रथा है । इसके विषय में हम चिंतन करेंगे । क्या पटाखे फोडने से अन्यों को आनंद की प्राप्ति होती है ? ऐसा बिल्कुल नहीं । तो ऐसी प्रथाओं का हम अनुकरण क्यों करें ? इसके विपरीत ऐसी प्रथाओं के कारण लोग अपने त्योहारों से त्रस्त हो गए हैं तथा त्योहार के विषय में भ्रांत धारणा बन गई है । उसे दूर करना, वास्तव में यही खरी दीपावली है । इसी कारण लोगों को धर्मशिक्षा प्रदान करनी चाहिए ।

 चित्रविचित्र रंगोली बनाने की अपेक्षा शास्त्रानुसार रंगोली बनाएं !

दीपावली में हम घरों के सामने रंगोली बनाते हैं । रंगोली के माध्यम से हम देवता का आवाहन करते हैं । शास्त्रानुसार रंगोली किस प्रकार बना सकते हैं, यह सनातन के `सात्त्विक रंगोलियां’ नामक ग्रंथ में उल्लेखित है । हम शास्त्र से अपरिचित हैं, अतएव आधुनिक प्रथा अथवा परिवर्तित रूप में लडकियां चित्रविचित्र रंगोली बनाती हैं, इसे हमें रोकना ही चाहिए । लडकियों, हम इस दीपावली में शास्त्रानुसार रंगोली बनाने का निश्चय करेंगे ।

दीपावली में बिजली का प्रकाश अथवा तमोगुणी मोमबत्ती का उपयोग करने की अपेक्षा तेल के दिये का उपयोग करेंगे !

दीपावली में वातावरण में ईश्वरीय चैतन्य अधिक मात्रा में होता है । तेल के दीए के माध्यम से हमारे घरों में उस चैतन्य का प्रक्षेपण होता है एवं हमारे घर का वातावरण आनंदी होता है । तेल का दीया रज-तम का नाश करता है एवं सत्त्वगुण की वृद्धि करता है, तो बिजली के प्रकाश एवं मोमबत्ती द्वारा वातावरण में रज-तम की वृद्धि होती है । ऐसा नहीं हो। अतः बच्चो, दीवाली में तेल का दीया जलाएं तथा बिजली के प्रकाश से घर को प्रकाशित ना करें !

भैयादूज के दिन बहन को हिंदु संस्कृतिनुसार वस्त्रालंकार प्रदान करें !

भैयादूज के दिन बहन भाई का औक्षण करती है, तब बहन को वस्त्रालंकार प्रदान करते समय भाई जीन्स पैंट एवं टी-शर्ट ऐसे ईसाईयों की वेशभूषावाले वस्त्र देते हैं । ऐसी भेंट देना, अर्थात अपनी बहन को हिंदु संस्कृति से दूर लेकर जाने के समान ही है । अतः हम अपनी बहन को घाघरा-चोली(परकर पोलके), सलवार-कमीज, साडी जैसे सात्त्विक वस्त्र प्रदान कर हिंदु संस्कृति की रक्षा करेंगे !

मित्रो, अब हमें हर त्योहार के पीछे क्या शास्त्र है, यह ज्ञात करना आवश्यक है । हमें प्रत्येक त्योहार शास्त्रानुसार मनाना चाहिए । साथ ही हम धर्म एवं संस्कृति के विषय में जानकारी प्राप्त कर राष्ट्र एवं संस्कृति की रक्षा हेतु तत्पर रहें ! – श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी), पनवेल

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Monday, November 9, 2020

भाई मतिदास और दो भाइयों ने धर्म के लिए प्राण दिए पर धर्मपरिवर्तन नहीं किया

09 नवम्बर 2020


औरंगज़ेब के शासनकाल में उसकी इतनी हठधर्मिता थी कि उसे इस्लाम के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा तक सहन नहीं थी। मुग़ल आक्रांता औरंगजेब ने मंदिर, गुरुद्वारों को तोड़ने और मूर्ति पूजा बंद करवाने के फरमान जारी कर दिए थे, उसके आदेश के अनुसार कितने ही मंदिर और गुरूद्वारे तोड़े गए, मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ कर टुकड़े कर दिए गए और मंदिरों में गायें काटीं गयीं, औरंगज़ेब ने सबको इस्लाम अपनाने का आदेश दिया, संबंधित अधिकारी को यह कार्य सख्ती और तत्परता से करने हेतु सौंप दिया।




औरंगजेब ने हुक्म दिया कि किसी हिन्दू को राज्य के कार्य में किसी उच्च स्थान पर नियुक्त न किया जाये तथा हिन्दुओं पर जजिया कर लगा दिया जाये। उस समय अनेकों कर केवल हिन्दुओं पर लगाये गये। इस भय से असंख्य हिन्दू मुसलमान हो गये। हिन्दुओं के पूजा आरती आदि सभी धार्मिक कार्य बंद होने लगें। मंदिर गिराये गये, मस्जिदें बनवायी गयीं और अनेकों धर्मात्मा व्यक्ति मरवा दिये गये। उसी समय की उक्ति है -
"सवा मन यज्ञोपवीत रोजाना उतरवा कर औरंगजेब रोटी खाता था।"

औरंगज़ेब ने कहा - "सबसे कह दो या तो इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत को गले लगा लें।"

इस प्रकार की ज़बर्दस्ती शुरू हो जाने से अन्य धर्म के लोगों का जीवन कठिन हो गया। हिंदू और सिखों को इस्लाम अपनाने के लिए सभी उपायों, लोभ लालच, भय दंड से मजबूर किया गया। जब गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से मना कर दिया तो उनको औरंगजेब के हुक्म से गिरफ्तार कर लिया गया था। गुरुजी के साथ तीन सिख वीर दयाला, भाई मतीदास और सतीदास भी दिल्ली में कैद थे।

क्रूर औरंगजेब चाहता था कि गुरुजी मुसलमान बन जायें, उन्हें डराने के लिए इन तीनों वीरो को तड़पा तड़पा कर मारा गया, पर गुरुजी विचलित नहीं हुए।

मतान्ध औरंगजेब ने सबसे पहले 9 नवम्बर सन 1675 ई. को भाई मतिदास को आरे से दो भागों में चीरने को कहा, लकड़ी के दो बड़े तख्तों में जकड़कर उनके सिर पर आरा चलाया जाने लगा, जब आरा दो तीन इंच तक सिर में धंस गया, तो काजी ने उनसे कहा -

"मतिदास अब भी इस्लाम स्वीकार कर ले, शाही जर्राह तेरे घाव ठीक कर देगा, तुझे दरबार में ऊँचा पद दिया जाएगा और तेरी पाँच शादियाँ कर दी जायेंगी।

भाई मतिदास ने व्यंग्यपूर्वक पूछा - "काजी, यदि मैं इस्लाम मान लूँ, तो क्या मेरी कभी मृत्यु नहीं होगी." काजी ने कहा कि - "यह कैसे सम्भव है, जो धरती पर आया है उसे मरना तो है ही।"

भाई मतिदास ने हँसकर कहा - "यदि तुम्हारा इस्लाम मजहब मुझे मौत से नहीं बचा सकता, तो फिर मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म में रहकर ही मृत्यु का वरण क्यों न करूँ।"

उन्होंने जल्लाद से कहा कि - "अपना आरा तेज चलाओ, जिससे मैं शीघ्र अपने प्रभु के धाम पहुँच सकूँ।"

यह कहकर वे ठहाका मार कर हँसने लगे, काजी ने कहा कि - "यह मृत्यु के भय से पागल हो गया है।"

भाई मतिदास ने कहा - " मैं डरा नहीं हूँ, मुझे प्रसन्नता है कि मैं धर्म पर स्थिर हूँ। जो धर्म पर अडिग रहता है, उसके मुख पर लाली रहती है, पर जो धर्म से विमुख हो जाता है, उसका मुँह काला हो जाता है।"

कुछ ही देर में उनके शरीर के दो टुकड़े हो गये। अगले दिन 10 नवम्बर को उनके छोटे भाई सतिदास को रुई में लपेटकर जला दिया गया। भाई दयाला को पानी में उबालकर मारा गया।

ग्राम करयाला, जिला झेलम वर्तमान पाकिस्तान तत्कालीन अविभाजित भारत निवासी भाई मतिदास एवं सतिदास के पूर्वजों का सिख इतिहास में विशेष स्थान है। उनके परदादा भाई परागा छठे गुरु हरगोविन्द के सेनापति थे। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध युद्ध में ही अपने प्राण त्यागे थे। उनके समर्पण को देखकर गुरुओं ने उनके परिवार को ‘भाई’ की उपाधि दी थी।

भाई मतिदास के एकमात्र पुत्र मुकुन्द राय का भी चमकौर के युद्ध में बलिदान हुआ था। भाई मतिदास के भतीजे साहबचन्द और धर्मचन्द गुरु गोविन्दसिंह के दीवान थे। साहबचन्द ने व्यास नदी पर हुए युद्ध में तथा उनके पुत्र गुरुबख्श सिंह ने अहमदशाह अब्दाली के अमृतसर में हरमन्दिर साहिब पर हुए हमले के समय उसकी रक्षार्थ प्राण दिये थे।

इसी वंश के क्रान्तिकारी भाई बालमुकुन्द ने 8 मई सन 1915 ई. को केवल 26 वर्ष की आयु में फाँसी पायी थी। उनकी पत्नी रामरखी ने पति की फाँसी के समय घर पर ही देह त्याग दी। लाहौर में भगतसिंह आदि सैकड़ों क्रान्तिकारियों को प्रेरणा देने वाले भाई परमानन्द भी इसी वंश के तेजस्वी नक्षत्र थे।

किसी ने ठीक ही कहा है –
सूरा सो पहचानिये, जो लड़े दीन के हेत
पुरजा-पुरजा कट मरे, तऊँ न छाड़त खेत।।

अफ़सोस की बात ये है कि इसके बाद भी इतिहास में भाई मतिदास, भाई सतिदास तथा भाई दयाला को जगह नहीं दी गई तथा उनके बलिदान की गौरवगाथा को हिंदुस्तान के लोगों से छिपाकर रखा गया। बहुत कम लोग होंगे जो इनके बलिदान तथा त्याग के बारे में जानते होंगे।

हिंदुस्तान में आज जो हिन्दू बचे हैं वे भी ऐसे महापुरुषों के कारण ही है क्योंकि उन्होंने अपने धर्म के लिए प्राण दिए पर लालच में आकर धर्मपरिवर्तन नहीं किया, नही तो वे भी बड़ा ऊंचा पद लेकर अपनी आराम से जिंदगी जी सकते थे पर उन्होंने ऐशो आराम को ठुकरा कर धर्म के लिए शरीर को तड़पाकर प्राण त्याग दिए इन महापुरुषों के कारण आज हिन्दू धर्म जीवित है। आज जो लालच में आकर धर्म परिवर्तन कर लेते है उनको भाई मतिदास से सिख लेनी चाहिए।

ऐसे महापुरुषों के बलिदान दिवस पर शत-शत नमन।

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Sunday, November 8, 2020

मद्रास हाईकोर्ट : मंदिर की जमीन का केवल धार्मिक कार्यों में उपयोग होना चाहिए

08 नवंबर 2020


वर्तमान में देश भर में 4 लाख से अधिक मंदिरों पर सरकारी कब्जा है। एक भी चर्च या मस्जिद पर नहीं। कम से कम 15 राज्य सरकारें उन लाखों मंदिरों पर नियंत्रण रखती हैं। मंदिरों के प्रशासक नियुक्त करती है। वे जैसे ठीक समझें व्यवस्था चलाते हैं। राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार अलग। इस बीच, जैसा सरकारी विभागों में प्रायः होता है, मंदिरों के कोष और संपत्ति के मनमाने उपयोग, दुरूपयोग के समाचार आते रहते हैं।




आपको बता दें कि मद्रास उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि राज्य सरकार धार्मिक कार्यों के अलावा किसी भी अन्य उद्देश्य के लिए मंदिर की भूमि का उपयोग नहीं कर सकती है। तमिलनाडु में दो मंदिरों की भूमि को अलग करने के संबंध में भक्तों द्वारा की गई शिकायतों का जवाब देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि मंदिर की भूमि का उपयोग केवल मंदिर के लाभकारी उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

उच्च न्यायालय ने यह भी माना कि तमिलनाडु में मंदिर न केवल प्राचीन संस्कृति की पहचान का स्रोत हैं बल्कि यह कला, विज्ञान और मूर्तिकला के क्षेत्र में प्रतिभा के गौरव और ज्ञान का प्रमाण भी है।

अदालत ने हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्त विभाग को निर्देश दिया कि वह समय-समय पर रिपोर्ट दर्ज करने के लिए एक अधिकारी की नियुक्ति कर सभी मंदिर भूमि की पहचान और अतिक्रमणकारियों से उनकी सुरक्षा करे।

हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग तमिलनाडु सरकार के विभागों में से एक है जो राज्य के भीतर मंदिर प्रशासन के प्रबंधन और विनियमन के लिए जिम्मेदार है।

बता दें यह मामला नीलकंरई के पास श्री शक्ति मुथम्मन मंदिर और सलेम में कोट्टई मरियम्मन मंदिर की भूमि के अतिक्रमण से संबंधित है। अदालत ने मंदिर के भूमि के अतिक्रमण के खिलाफ भक्तों द्वारा दायर कई याचिकाओं के जवाब में अपने आदेशों की घोषणा की।

गौरतलब है कि यह याचिका राज्य के मत्स्य विभाग द्वारा श्री शक्ति मुथम्मन मंदिर से संबंधित कुछ भूमि पर एक आधुनिक मछली बाजार, मछली भोजनालय और कार्यालय भवन विकसित करने के बाद दायर की गई थी। विभाग ने भक्तों द्वारा की गई आपत्तियों की अवहेलना की थी।

इसी तरह, अरुलमिघु कोट्टई मरियम्मन थिरुकोइल से संबंधित कुछ जमीन बिना किसी लिखा पढ़ी के क्षेत्रीय परिवहन विभाग को हस्तांतरित कर दी गई। साथ ही पुल बनाने के लिए मंदिर की कुछ जमीनों को राजमार्ग विभाग ने भी अपने कब्जे में ले लिया था।

धार्मिक संस्थानों को ठीक से बनाए रखा जाना चाहिए : मद्रास HC

न्यायमूर्ति आर महादेवन ने अपने आदेश में निर्देश दिया कि धार्मिक संस्थानों, विशेष रूप से मंदिरों की संपत्तियों का रखरखाव ठीक से किया जाना चाहिए। अदालत ने तमिलनाडु सरकार को फटकार लगाते हुए कहा, एचआर एंड सीई डिपार्टमेंट, जो मंदिर की संपत्तियों का संरक्षक है, ने मंदिर की संपत्तियों का रखरखाव ठीक से नहीं किया, यह विषय इस विभाग के दायरे में आता है। इस तरह का रवैया बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

न्यायाधीशों ने मंदिर की भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया, उन्होंने मत्स्य विभाग को भी बुलाया, जिसने एचआर और सीई विभाग के साथ एक समझौते के तहत नीलकंरई के पास एक इमारत का निर्माण किया है, जिसके लिए किराया एकत्र किया जाएगा।

इसके अलावा न्यायमूर्ति आर महादेवन ने एचआर एंड सीई डिपार्टमेंट के आयुक्त को सभी अतिक्रमणों को वापस से हटाने और भूमि पुनः प्राप्त करने के लिए कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “एचआर और सीई विभाग भूमि की सुरक्षा के लिए एक दीवार लगाकर निर्माण शुरू करने के लिए कदम उठाएगा। मंदिर संबंधी उद्देश्यों को छोड़कर भूमि का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा। एचआर और सीई विभाग के कमिश्नर द्वारा प्राधिकृत अधिकारी मंदिरों और इसके गुणों के वित्तीय पहलुओं के संबंध में एक उचित रजिस्टर बनाए रखेगा और नियमित अंतराल पर संबंधित प्राधिकरण के समक्ष उसे दाखिल करेगा।”

किसी चर्च अथवा मस्जिद को सरकार कभी नहीं छूती। क्या इस से बड़ा धार्मिक अन्याय और संविधान में मौजूद ‘नागरिक समानता’ का मजाक संभव है? जो दलीलें हिन्दू मंदिरों पर सरकारी कब्जा रखने के पक्ष में दी जाती हैं, वह सब मस्जिदों, चर्चों पर भी लागू हैं। किन्तु केवल हिन्दू मंदिरों पर कब्जा है, शेष सभी समुदाय अपने-अपने धर्म-स्थान स्वयं चलाने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हैं। हिंदू मंदिरों को भी सरकारी नियंत्रण मुक्त करना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

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Saturday, November 7, 2020

दीपावली पर खरीदारी कर रहे हैं तो इन बातों का ध्यान रखें, इस बारे एक ट्रेंड भी टॉप में चला..

07 नवंबर 2020


उल्लास, आनंद, प्रसन्नता बढ़ाने वाले हमारे पर्वों में पर्वों का पुंज दीपावली अग्रणी स्थान पर है। भारतीय संस्कृति के ऋषि-मुनियों, संतों की यह दूरदृष्टि रही है, जो ऐसे पर्वों के माध्यम से वे समाज को वास्तविक आत्मिक आनंद, शाश्वत सुख के मार्ग पर ले जाते थे।




दीपावली पर हम खुश होते हैं व खुशियां बाँटते हैं, दीपावली पर हम घर में नया सामान, पटाखें, मिठाई आदि की खरीदारी करते है। यह सामान खरीदने में एक सावधानी जरूर रखें शनिवार को इस पर ट्रेंड चला था #हिंदू_दीपावली_हिंदू_सामान जो दिनभर टॉप में रहा और करीब एक लाख से ऊपर ट्वीट हुई थी दूसरा भी शनिवार शाम को टॉप में #चीन_मुक्त_दीपावली ट्रेंड चला।

ट्वीटर पर इस ट्रेंड के माध्यम से जनता बता रही थी कि दीपावली त्योहार हिंदुओ का है इसलिए हिंदुओं की दुकानों से ही सामान खरीदें क्योंकि जो दीपावली मनाते है उन्हीं से ही सामान खरीदें अर्थात हिंदुओं की दुकान से ही सामान खरीदें एवं चीन का भी सामान नहीं खरीदें क्योंकि भारतवासियों के पैसे से ही चीन समृद्ध हो रहा है और भारत के खिलाफ ही साजिश करता है।

ट्वीट के माध्यम से बताया गया था कि विदेशी कंपनियों की हिन्दू धर्म के प्रति कोई आस्था नहीं होती है इसलिए हिन्दुओं के सबसे बड़े त्योहार पर सिर्फ देश के बने हुए सामान और वो भी दिपावली मनाने वालों से ही खरीदने का संकल्प लें।

बताया गया कि हमें चीनी सामान का बहिष्कार करना चाहिए इससे हम उससे बिना लड़े जीत सकते हैं। बिजली का सामान हो या सजावटी सामान हो, या फिर अन्य सामान, राष्ट्र निर्मित ही होना चाहिए। ऐसा देश हित में होगा।

एक यूजर ने बताया कि इस वर्ष की दीपावली देश में निर्मित सामान से ही मनानी है यही सच्ची दिवाली होगी। देश का पैसा देश के कार्यों में लगे ऐसा शुभ संकल्प होना चाहिए। ये दीपावली आपकी आध्यात्मिक दीपावली हो।
#हिन्दू_दीपावली_हिन्दू_सामान #चीन_मुक्त_दीपावली

इस तरीके से अपील करती हुई लाखों ट्वीट हुई जिसके जरिये बताया गया कि हिंदुओ से ही सामान खरीदें एवं चीन का नहीं बल्कि भारतीय स्वदेशी ही सामान खरीदें।

दूसरी बात की दीपावली में कुछ लोग देवी-देवताओं के छायाचित्र वाले पटाखें फोडते हैं । देवता का छायाचित्र प्रत्यक्ष देवता ही हैं। जिस समय हम पटाखें फोडते हैं, उस समय उस छायाचित्र के टुकडे होते हैं, अर्थात हम उस देवता का अनादर ही करते हैं। श्रीलक्ष्मी के छायाचित्र वाले, साथ ही राष्ट्रभक्तों के छायाचित्र वाले पटाखें फोडना, इससे हमें पाप लगता है । इस दीपावली को हम ऐसे पटाखें खरीदेंगे ही नहीं। साथ ही ऐसे पटाखे खरीदने वालों का प्रतिरोध कर उनका प्रबोधन करेंगे, वास्तव में यह देवता की भक्ति है । ऐसा करने से हम पर देवता की कृपा होगी । बच्चो, क्या हमारे माता-पिता के छायाचित्र वाले पटाखे हम फोडेंगे ? नहीं न ! देवता हम सभी की रक्षा करते हैं । हमें शक्ति एवं बुदि्ध प्रदान करते हैं; अतएव इस दीपावली को हम यह अनादर रोकने का निश्चय करें ।

तीसरी बात यह है कि दीपावली पर मिठाई तो खरीदते ही है तो क्यो न इस बार गाय के दूध से बनी मिठाई खरीदे जिससे हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा, गौशालाओं में आमदनी भी अच्छी होगी और गौरक्षा भी होगी इसलिए इस बार जितना हो सके देशी गाय के दूध की मिठाई को खरीदें, खाएं एवं बांटे।

चौथी बात है कि आपके पास कोई हिंदू गरीब परिवार है तो आसपास के सभी हिंदू मिलकर उसकी सहायता जरुर करें जिससे वे भी अपनी दीपावली अच्छे से मना सकें।

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Friday, November 6, 2020

हिन्दू दुर्दशा : हिन्दुओं की समानता के लिए पेश हुए विधेयक पर कोई चर्चा नहीं

06 नवंबर 2020


लोकसभा में एक अनोखा बिल विचार के लिए पड़ा हुआ है। ये बिल 226/2016 है। संविधान के अनुच्छेद 25-30 की सही व्याख्या तथा अनुच्छेद 15 में गलत संशोधन को रद्द करने से संबंधित है। इसे भाजपा सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह ने निजी विधेयक के रूप में प्रस्तुत किया था। यह मार्च 2017 से लोकसभा में विचार के लिए लंबित है।




ठीक ऐसा ही विधेयक सैयद शहाबुद्दीन ने दसवीं लोक सभा में अप्रैल 1995 में रखा था। ये बिल 36/1995 था। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 30 के उपबन्धों में जहाँ-जहाँ ‘सभी अल्पसंख्यक’ लिखा हुआ था, उसे बदल कर ‘भारतीय नागरिकों का कोई भी वर्ग’ करने का प्रस्ताव दिया था। उनके विधेयक का मूल पाठ (नं 36/1995) पढ़ कर उसका महत्व समझा जा सकता है।

शहाबुद्दीन ने अपने विधेयक के उद्देश्य में भी स्पष्ट किया था कि वर्तमान रूप में अनुच्छेद 30 केवल अल्पसंख्यकों पर लागू होती है। जबकि एक विशाल और विविधता भरे समाज में लगभग सभी समूह चाहे जिनकी पहचान धर्म, संप्रदाय, फिरका, भाषा और बोली किसी आधार पर होती हो, व्यवहारिक स्तर पर कहीं ना कहीं अल्पसंख्यक ही होता है, चाहे किसी खास स्तर पर वह बहुसंख्यक ही क्यों ना हो। आज विश्व में सांस्कृतिक पहचान के उभार के दौर में हर समूह अपनी पहचान बनाने के प्रति समान रूप से चिंतित है और अपनी पसंद की शैक्षिक संस्था बनाने की सुविधा चाहता है। इसीलिए, यह उचित होगा कि संविधान के अनुच्छेद 30 के दायरे में देश के सभी समुदाय और हिस्से सम्मिलित किये जाए।

शहाबुद्दीन ने यह भी लिखा था कि जो बहुसंख्यकों को प्राप्त नहीं, वैसी विशेष सुविधा अल्पसंख्यक समूहों को देने के लिए अनुच्छेद 30 की निंदा होती रही है। अतः बहुसंख्यकों को भी अपनी शैक्षिक संस्थाएं बनाने, चलाने का समान अधिकार मिलना चाहिए।

यह हिन्दू समाज विशेषकर इसके नेताओं की अचेतावस्था का प्रमाण है कि वह विधेयक यूँ ही पड़ा-पड़ा खत्म हो जाने दिया गया। उसे पारित करना आसान था, जिसे तब सबसे प्रखर मुस्लिम नेता ने पेश किया था। उसे पारित कर अल्पसंख्यकवाद की जड़ खत्म हो सकती थी क्योंकि उसी धारा के विकृत पाठ ने हिन्दुओं को अनेक सुविधाओं से वंचित किया है। यद्यपि संविधान-निर्माताओं का आशय वह नहीं था। संविधान सभा की बहस दिखाती है कि उनकी चिंता मात्र यह थी कि किसी अल्पसंख्यक को अपनी सांस्कृतिक, शैक्षिक विरासत से वंचित ना रहना पड़े। लेकिन समय के साथ उस अनुच्छेद का विकृत अर्थ कर डाला गया कि वह अधिकार केवल अल्पसंख्यकों को है। इस तरह अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकारी वर्ग बनाकर नेहरू नेतृत्व वाली कांग्रेस ने हिन्दू-विरोध को संवैधानिक रूप दे दिया। फिर अन्य दल भी वोटबैंक की राजनीति के लोभ में गिर गए। इसीलिए आश्चर्य से अधिक यह लज्जा की बात है कि 1995 में सैयद शहाबुद्दीन द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण अवसर को तमाम हिन्दू नेताओं ने गँवा दिया।

वैसा ही एक और विधेयक 226/2016 विधेयक लोकसभा में 2017 से लंबित है। उसमें अनुच्छेद 26-30 के बारे में वहीं मांग है कि इन अनुच्छेदों को देश के सभी लोगों पर समान रूप से लागू माना जाए ताकि केवल विशेष समूहों को वित्तीय सहायता, केवल हिन्दू मंदिरों पर सरकारी कब्जा, हिन्दू ज्ञान-ग्रंथों को स्कूल-कॉलेज की शिक्षा से बहिष्कृत किए रखने तथा अपने शैक्षिक संस्थान चलाने में भेदभाव जैसी गड़बड़ियाँ दूर हों। अन्यथा भारत में ही हिन्दू दूसरे दर्जे के नागरिक बने रहने के लिए अभिशप्त रहेंगे।

भारतीय संविधान के अनुसार देश का कोई धर्म नहीं होता। देश को हर धर्म का बराबर सम्मान करना चाहिए। देश को किसी भी धार्मिक स्वतंत्रता, आस्था और श्रद्धा में दखल नहीं करना चाहिए। साक्ष्यों से पता चलता है आज़ादी के बाद कि बहुसंख्यकों (हिन्दू) के अधिकारों का हनन कर अल्पसंख्यकों को फायदा पहुँचाया गया। इस भेदभाव से बहुसंख्यक वर्ग में भारी रोष है। ये देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है। हिन्दुओं को समानता दिलाने के लिए विधेयक 226/2016 में ये मुख्य संशोधन सुझाए हैं 👇🏻

(1) अनुच्छेद 15 के खंड 5 को रद्द किया जाए जो 2005 में संविधान के 93वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया। इसके अनुसार राज्य को सामाजिक एवं अशैक्षिणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिये शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश से में सहायता प्रदान करने का प्रावधान है जो अल्पसंख्यक वर्ग की शिक्षा संस्थाओं से भिन्न हो। तो इससे बस हिन्दुओं के शिक्षा संस्थानों का शोषण हो रहा है और मुस्लिमों के शिक्षण संस्थानों की तरफ कोई उंगली भी नहीं उठाता।

(2) अनुच्छेद 26 अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के भेदभाव बिना धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों को स्थापित करने और बनाए रखने के लिए, अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने और संपत्ति का स्वामित्व रखने और प्रबंधन करने का अधिकार देता है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों में भी यहीं मिलता है। संविधान के मौजूदा अनुच्छेद 26 को खंड (1) को फिर से वर्गीकृत किया जाए और निम्न खंड क्रमशः डाले जाए 👇🏻

(a) अनुच्छेद 25 में निहित कुछ भी होने के बावजूद, राज्य किसी भी धार्मिक संप्रदाय द्वारा धार्मिक या धर्मार्थ प्रयोजनों पर नियंत्रण, प्रतिबंध और प्रबंधित नहीं करेगा।

(b) राज्य कोई भी कानून नहीं बनाएगा जो धार्मिक सम्प्रदाय को नियंत्रित करने, प्रशासन या प्रबंधन करने में सक्षम बनाता है।  अगर कोई भी कानून इस खंड के उल्लंघन में बनाया गया, इस तरह के उल्लंघन की सीमा तक शून्य हो जाएगा।

(3) संविधान के मौजूदा अनुच्छेद 27 के खंड (1) को फिर से इस रूप में वर्गीकृत किया जाए जिससे भारत के किसी भी कोष का देश या देश के बाहर विशेष धर्म पर खर्च ना किया जा सके।

(4) संविधान के अनुच्छेद 28 में, खंड (3) के बाद, निम्नलिखित खंड डाला जाए जिससे किसी भी शिक्षण संस्थान में पारंपरिक भारतीय ज्ञान या प्राचीन ग्रंथों को पढ़ाने से पूरी तरह से या आंशिक रूप से कोई बाधा ना रहे।

(5) संविधान के अनुच्छेद 29 में सीमांत शीर्षकों में, "अल्पसंख्यकों के हितों" शब्दों की जगह "सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार" शब्दों को प्रतिस्थापित किया जाए।

(6) संविधान के अनुच्छेद 30 में👇🏻

(a) "अल्पसंख्यकों" शब्द की जगह सीमांत शीर्षक में "नागरिकों के सभी वर्गों, चाहे धर्म या भाषा पर आधारित हों" शब्द प्रतिस्थापित किए जाए।

(b) खंड (1) में "अल्पसंख्यकों" शब्द की जगह "नागरिकों के वर्गों" शब्द को प्रतिस्थापित किया जाए।

(c) "अल्पसंख्यक" शब्द की जगह क्लॉज (1 ए) में "नागरिकों का एक वर्ग" शब्द को प्रतिस्थापित किया जाए।

(d) खंड (2) में "अल्पसंख्यक" शब्द की जगह "नागरिकों का एक वर्ग" शब्द को प्रतिस्थापित किया जाए।

क्या विडंबना है कि हिन्दुओं की यह दुर्दशा ब्रिटिश राज में नहीं, कांग्रेस राज में शुरू की गई।

डॉ. सत्यपाल सिंह का विधेयक पूरी तरह समानता-परक है। यह किसी समुदाय को मिले हुए किसी अधिकार से वंचित नहीं करता, बल्कि सबको वही अधिकार देने की माँग करता है। स्वभाविक है कि इससे भारत में सांप्रदायिक भेदभाव की राजनीति कमजोर होगी और लोगों में सामंजस्य बढ़ेगा।

अभी तक अनुच्छेद 26-30 की विकृत व्याख्या ने सब कुछ बिगाड़ रखा है। अनुच्छेद 28 का विकृत अर्थ करके स्कूलों में रामायण, महाभारत पढाना प्रतिबंधित रखा गया है। जबकि ईसाई और मुस्लिम अपने-अपने शैक्षिक संस्थाओं में बाइबिल और कुरान जमकर पढ़ाते हैं। इस भेदभाव के कितने गंभीर दुष्परिणाम हुए, इसका भान भी पार्टी-ग्रस्त हिन्दुत्ववादियों को नहीं है। दिनो-दिन हिन्दू परिवारों के बच्चे धर्महीन, विचारहीन और हिन्दू-द्वेषी बनते जा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि आरंभ से ही उन्हें हिन्दू ज्ञान से वंचित रखा जाता है। इसलिए वे समय के साथ ईसाई, कम्युनिस्ट, इस्लामी, भोगवादी, पश्चिम-परस्त विचारों से भर जाते हैं। वे उन्हीं बातों को ‘शिक्षा’ समझते हैं क्योंकि तमाम औपचारिक-अनौपचारिक माध्यमों से उन्हें वहीं सब जानने, सुनने को मिलता रहा।

आखिर क्या कारण कि जेएनयू, एनडीटीवी, फ्रंटलाइन, ईपीडब्ल्यू, आदि नामी बौद्धिक अड्डों से हिन्दू-द्वेषी प्रचार चलाने वाले लगभग सभी जन हिन्दू परिवारों से हैं? वैसे ही इस्लाम-द्वेषी मुस्लिम या चर्च-द्वेषी ईसाई प्रोफेसर, पत्रकार, बुद्धिजीवी क्यों नहीं मिलते? सारे प्रभावशाली बुद्धिजीवी केवल हिन्दू-निंदक हैं। इसका सबसे बड़ा कारण हिन्दू ज्ञान को शिक्षा से बाहर रखना ही है। मुस्लिम और ईसाई बुद्धिजीवी इस्लामी और ईसाई साहित्य या परंपरा के विरुद्ध कुछ नहीं बोलते। उनकी शिक्षा में उन जड़-मतवादों के प्रति भी सम्मान रखना सिखाया गया है। जबकि हिन्दुओं की शिक्षा उलटी कर दी गई है।

उसी तरह अनुच्छेद 26 सभी धार्मिक समूहों को अपने धार्मिक संस्थान बनाने, चलाने का अधिकार देती है। सुप्रीम कोर्ट ने अनेक फैसलों में स्पष्ट कहा है कि यह अधिकार निरपवाद रूप से सभी समुदायों को है। जैसे, ‘रत्तीलाल पनाचंद गाँधी बनाम बंबई राज्य’ (1952) मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि किसी धार्मिक संस्था के संचालन का अधिकार उसी धर्म-संप्रदाय के व्यक्तियों का है। उनसे छीनकर किसी भी अन्य या सेक्यूलर प्राधिकरण को देना उस अधिकार का उल्लंघन है, जो संविधान ने दिया है। ‘पन्नालाल बंसीलाल पित्ती बनाम आंध्र प्रदेश राज्य’ (1996) में भी सुप्रीम कोर्ट ने वहीं कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 जो अधिकार इस्लाम, ईसाई धर्मावलंबियों को देती है, उससे हिन्दुओं को वंचित नहीं करती है। ऐसे कई न्यायिक निर्णय और हैं।

किन्तु व्यवहार में क्या होता रहा? यही कि हमारी सरकारें, जब चाहे हिन्दू मंदिरों, मठों, संस्थाओं की संपत्ति पर कब्जा कर लेती हैं। फिर उसे ‘सेक्यूलर’ ढंग से चलाती और उसकी आय का दुरूपयोग करती है। कहीं-कहीं सरकार हिन्दू मंदिरों की आय से हिन्दू-विरोधियों की सहायता करती है। जैसे, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में। बहाना मंदिरों में कुव्यवस्था का होता है, किन्तु घातक गड़बड़ी कर रहे चर्च, मस्जिदों, मदरसों, आदि पर भी सरकार कभी हाथ नहीं डालती। जबकि गैर-कानूनी कामों में लिप्त चर्च, मस्जिदों, मदरसों के समाचार आते रहे हैं।

फिर अनुच्छेद 27 के अनुसार भारतीय नागरिकों को किसी विशेष धर्म को बढ़ावा देने के लिए टैक्स नहीं देना है। लेकिन यहाँ कई प्रधानमंत्री ‘देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला अधिकार’ होने जैसी बातें करते रहे हैं। कोई नेता हज सब्सिडी बढ़ाता है, कोई हज हाऊस बनवाता है, कोई हज का विमान-भाड़ा घटाता है। साथ ही, अल्पंसख्यक मंत्रालय, आयोग, शिक्षा संस्थान, कोचिंग संस्थान, विशेष छात्रवृत्तियाँ आदि बनती गई जो व्यवहारतः केवल विशेष धर्म-मतावलंबियों के लिए होती हैं। अर्थात् एक मजहब विशेष को बढ़ावा देने के लिए टैक्स धन का दुरुपयोग।

इस प्रकार अनुच्छेद 25 से 30 तक का पाठ और व्यवहार हिन्दू-विरोधी हो गया है। कितनी विचित्र बात है कि राम-मंदिर और गंगा जी की सफाई की चिन्ता करने वाले हिन्दूवादी इन धाराओं पर एक मामूली विधेयक पास करने की जरूरत महसूस नहीं करते। जबकि ये धाराएं देश में सारी हिन्दू विरोधी गड़बड़ियों को संस्थागत रूप देने का बहाना बन गई है। इस विधेयक को पास करने में विशेष बहुमत की जरूरत भी नहीं। वर्तमान राजनीतिक वातावरण में हरेक दल इसका विरोध करने में संकोच करेगा। क्योंकि इस विधेयक को पास करने में जबरदस्त हिन्दू गोलबंदी की संभावना है। फिर भी क्या डॉ. सत्यपाल सिंह के विधेयक का हश्र वही होगा जो शहाबुद्दीन के विधेयक का हुआ था? -डॉ. शंकर शरण

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Thursday, November 5, 2020

अर्णब गिरफ्तारी मामला : क्या अंग्रेजों व मुग़लों का सपना साकार हो रहा है?

05 नवंबर 2020


रिपब्लिक भारत चैनल के चीफ एडीटर अर्णब गौस्वामी की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थन में कई लोग सड़कों पर आ गए। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी गिरफ्तारी की निंदा की और ज़ी न्यूज़ के पत्रकार सुधीर चौधरी भी उनके समर्थन में आये सभी का एक ही कहना है कि अर्नब गौस्वामी के पालघर के साधुओं की हत्या, सुशांत सिंह राजपूत की हत्या आदि हिंदुत्व के मुद्दे उठाने पर पुराने केस का आधार बनाकर बदले की भावना से महाराष्ट्र सरकार कार्यवाही कर रही है।




आपने महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई आदि का इतिहास पढ़ा होगा उसमें अंग्रेज और मुग़ल हिंदुओं को आपस मे कैसे भिड़ाते हैं। उस समय हिंदू आपस में नहीं बंटते तो मुगल और अंग्रेज भारत में राज कर ही नहीं सकते थे। कुछ सत्ता लोलुप हिंदू मुग़लो और अंग्रेजो के हाथ बिक जाते थे जिसके कारण देशभक्त हिंदू हार जाते थे। आज भी वही स्थिति है।

महाराष्ट्र में शिवसेना के मुख्यमंत्री है और कार्यवाही की जा रही है हिंदुत्व के मुद्दे उठाने वाले पत्रकार अर्णब गौस्वामी की। इसके मूल में जायेगे तो पता चलेगा कि इसके पीछे हाथ होगा राष्ट्र विरोधी ताकतों का क्योंकि उनको भारत में अपना राज कायम करना है, इसलिए वे लोग "फुट डालो और राज करो" का रूल्स अपना रहे हैं जिसके कारण हम लड़ते रहे और उनकी सत्ता कायम बनी रहे।

केवल एक अर्नब की ही बात नही है, चलो अर्णब पहले हिंदू विरोधी थे वे भी सब जानते ही है लेकिन अब हिंदू जागरूक हुए तो वे हिंदुओं के मुद्दे उठाने लगे उसके लिए उनको धन्यवाद है लेकिन सुदर्शन न्यूज़ के मुख्य संपादक श्री सुरेश चव्हाणके करीब 15 साल से सतत हिंदुओं के लिए आवाज उठा रहे है। उनको लव जिहाद का मुद्दा लेकर 1 नवम्बर को दिल्ली में धरना देने पर गिरफ्तार कर लिया पर उनके समर्थन में कोई आया नहीं और न ही कोई बड़े नेताओँ ने निंदा की ।

यह तो पत्रकारों की बात हो गई लेकिन 50 वर्ष से समाज, हिंदू संस्कृति व राष्ट्र के उत्थान के लिए कार्य करने व धर्मान्तरण की कमर तोड़ने वाले, लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाने वाले, राहुल गांधी का पप्पू नाम रखने वाले ओर सोनिया मेडम भारत छोड़ो का नारा देने वाले, 14 फ़रवरी को वेलेंटाइन डे को खत्म करके मातृ-पितृ पूजन लाने वाले, करोड़ों लोगों को व्यभिचार और व्यसनों को छुड़ाकर विदेशी कम्पनियों को अरबो-खबरों का घाटा करवाने वाले और विदेशो में भारतीय संस्कृति का परचम लहराने वाले और करोड़ो हिंदुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक करने वाले 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू पर झूठे केस लगाकर आधी रात को जब गिरफ्तार किया जाता है तब पूरी मीडिया उनके खिलाफ हल्ला बोलती है केवल सुदर्शन न्यूज़ को छोड़कर क्योंकि उन सभी चैनलों को विदर्शों से भारी फंडिग मिलती है तब बापू आशारामजी के पक्ष में डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, श्री अशोक सिंघल जैसे कुछ नेता आये बाकी सब चुपचाप बैठ गए इससे राष्ट्र विरोधी ताकतों को बल मिल गया ओर धर्मांतरण वालो की फिर से दुकानें चालू हो गई, विदेशी कंपनियों का घाटा अब नहीं होने लगा फिर से वे अपना साम्राज्य बढ़ाने लगी क्योंकि मिशनरी चाहती है की जितना ज्यादा धर्मांतरण होगा उतना ही उनकी वोटबैंक बढ़ेगी ओर विदेशी कंपनियों को भी भारत मे काफी मुनाफ़ा होगा इन सबको भोले भारतवासी नहीं समझने के कारण हिंदू संत आशारामजी बापू को मीडिया की झूठी खबरे देखकर उनको गलत बोलने लगे जबकि वास्तविकता कोई जानने के प्रयास नहीं किया।

शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, डीजी वंजारा, स्वामी असीमानंद आदि आदि सभी एक एक करके निशाने पर लिया गया और सालो भर जेल में भेजा गया लेकिन उनके समर्थन में हिंदू नहीं आये।

हमारा कहने का तात्पर्य इतना है कि राष्ट्र विरोधी ताकते हमारे हिंदू योद्धाओं को एक एक करके खत्म कर रहे है उनका मुख्य उद्देश्य यही है कि भारत मे उनका साम्राज्य स्थापना करना है उसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकते है पैसे फेक कर मीडिया में बदनामी कवाएग, जेल में ठूस देंगे, हत्या करवा देंगे इसलिए अभी भी समय है किसी भी हिंदुनिष्ठ पर षडयंत्र तरह अत्याचार किया जाए तो सभी को एकजुट होकर उसका विरोध करना चाहिए तभी अपना देश व अस्तित्व बचा पाएंगे।

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