Tuesday, February 23, 2021

होली के लिए अभी तक ये दो कार्य नहीं किया हो तो शीघ्र करें

23 फरवरी 2021


होली का नाम आते ही दो बातें तुरंत ध्यान में आती हैं... एक तो रात में होलिका दहन करना और दूसरा धुलेंडी खेलना ..।

इसके पीछे बड़ा वैज्ञानिक महत्व छुपा है, हमारे ऋषि-मुनियों ने ऐसे ही कोई त्यौहार नहीं बनाया है।




होली राष्ट्रीय, सामाजिक और आध्यात्मिक पर्व है पर कुछ नासमझ लोग इस पवित्र त्यौहार को विकृत करने में लगे हैं और होलिका दहन लकड़ियों से करने लगे जिससे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने लगा दूसरा कि धुलेंडी खेलते समय केमिकल रंगों का उपयोग करने लगे जिसके कारण होली में स्वास्थ्य लाभ होने की बजाय बीमारियां होने लगी।

होली पर पर्यावरण को शुद्ध करने एवं आपका स्वास्थ्य बढ़िया रहे इसलिए हम आपको दो अच्छे उपाय बता रहे है उसके लिए अभी आप तैयारी करें।

1. देशी गाय के गोबर के कंडों से होलिका दहन

एक गाय करीब रोज 10 किलो गोबर देती है । 10.. किलो गोबर को सुखाकर 5 कंडे बनाए जा सकते हैं ।

एक कंडे की कीमत करीब 10 रुपए रख सकते हैं । इसमें 2 रुपए कंडे बनाने वाले को, 2 रुपए ट्रांसपोर्टर को और 6 रुपए गौशाला को मिल सकते है । यदि किसी एक शहर में होली पर 10 लाख कंडे भी जलाए जाते हैं तो 1 करोड़ रुपए कमाए जा सकते हैं । औसतन एक गौशाला के हिस्से में बगैर किसी अनुदान के करीब 60 लाख रुपए तक आ जाएंगे । लकड़ी की तुलना में हमें कंडे सस्ते भी पड़ेंगे ।

केवल 2 किलो सूखा गोबर जलाने से 60 फीसदी यानी 300 ग्राम ऑक्सीजन निकलती है । वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि गाय के एक कंडे में गाय का घी डालकर धुंआ करते हैं तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।

गाय के गोबर के कण्डों से होली जलाने पर गौशालाओं को स्वाबलंबी बनाया जा सकता है, जिससे गौहत्या कम हो सकती है, कंडे बनाने वाले गरीबों को रोजी-रोटी मिलेगी, और वातावरण में शुद्धि होने से हर व्यक्ति स्वस्थ रहेगा ।

दूसरा कि वृक्षों को काटना नही पड़ेगा जिससे वातावरण में संतुलन बना रहेगा।

वातावरण अशुद्ध होने पर कोरोना जैसे भयंकर वायरस आ जाते हैं, अगर देशी गाय के गोबर के कंडे से होली जलाई जाए तो कोरोना जैसे एक भी वायरस वातावरण में नही रहेगा और हमारा स्वास्थ्य उत्तम हो जायेगा जिससे देश के करोड़ो रूपये बच जाएंगे।

2. पलाश के रंग से खेलें होली

पलाश को हिंदी में ढाक, टेसू, बंगाली में पलाश, मराठी में पळस, गुजराती में केसूड़ा कहते हैं ।

केमिकल रंगों से होली खेलने से उसके पैसे चीन देश में जायेंगे और बीमारियां भी होंगी लेकिन पलाश के फूलों से होली खेलने से कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, वायु तथा रक्तदोष का नाश होता है। साथ ही रक्तसंचार में वृद्धि करता है एवं मांसपेशियों का स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाता है ।

रासायनिक रंगों से होली खेलने में प्रति व्यक्ति लगभग 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामूहिक प्राकृतिक-वैदिक होली में प्रति व्यक्ति लगभग 30 से 60 मि.ली. से कम पानी लगता है ।

इस प्रकार देश की जल-सम्पदा की हजारों गुना बचत होती है । पलाश के फूलों का रंग बनाने के लिए उन्हें इकट्ठे करनेवाले आदिवासियों को रोजी-रोटी मिल जाती है ।पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है ।

इतना ही नहीं, पलाश के फूलों का रंग रक्त-संचार में वृद्धि करता है, मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ-साथ मानसिक शक्ति व इच्छाशक्ति को बढ़ाता है । शरीर की सप्तधातुओं एवं सप्तरंगों का संतुलन करता है ।  (स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ऋषि प्रसाद पत्रिका)

आपने देशी गाय के गोबर के कंडों से होलिका दहन और पलाश के रंगों से होली खेलने का फायदे देखें। अब आप गाय के गोबर के कंडे के लिए नजदीकी गौशाला में संपर्क करें एवं पलाश के फूलों के लिए नजदीकी में कोई आदिवासी भाई हो उनसे संपर्क जरूर करें।

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Monday, February 22, 2021

अंग्रेजों के विरुद्ध सबसे पहले युद्ध का आरंभ करने वाली रानी चेन्नम्मा

22 फरवरी 2021


देश में वामपंथियों ने जो इतिहास लिखा है उसमें से अधिकतर असली इतिहास गायब कर दिया है और क्रूर आक्रमणकारी, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों का और देश की संपत्ति लूट ले जाने वाले अंग्रेजो का महिमामण्डन किया है लेकिन देश की आज़ादी में उनके खिलाफ लड़कर अपने प्राणों का बलिदान देने वालों का इतिहास लिखा ही नहीं गया ।




रानी चेन्नम्मा भारत की स्वतंत्रता हेतु सक्रिय होने वाली पहली महिला थी । सर्वथा अकेली होते हुए भी उसने ब्रिटिश साम्राज्य पर कड़ा धाक जमाए रखा । अंग्रेंजों को भगाने में रानी चेन्नम्मा को सफलता तो नहीं मिली, किंतु ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध खड़ा होने हेतु रानी चेन्नम्मा ने अनेक स्त्रियों को प्रेरित किया । कर्नाटक के कित्तूर संस्थान की वह चेन्नम्मा रानी थी । आज वह कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के नाम से जानी जाती है । आइए, इतिहास में थोड़ा झांककर उनके विषय में अधिक जान लेते हैं ।

रानी चेन्नम्मा का बचपन

रानी चेन्नम्मा का जन्म ककती गांव में (कर्नाटक के उत्तर बेलगांव के एक देहात में ) 1778 में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लगभग 56 वर्ष पूर्व हुआ । बचपन से ही उसे घोडे पर बैठना, तलवार चलाना तथा तीर चलाना इत्यादि का प्रशिक्षण प्राप्त हुआ । पूरे गांव में अपने वीरतापूर्ण कृत्यों के कारण से वह परिचित थी ।

रानी चेन्नम्मा का विवाह कित्तूर के शासक मल्लसारजा देसाई से 15 वर्ष की आयु में हुआ । उनका विवाहोत्तर जीवन 1816 में उनके पति की मृत्यु के पश्चात एक दुखभरी कहानी बनकर रह गया । उनका एक पुत्र  था, किंतु दुर्भाग्य उनका पीछा कर रहा था । 1824 में उनके पुत्र ने अंतिम सांस ली, तथा उस अकेली को ब्रिटिश सत्ता से लडने हेतु छोडकर चला गया ।

रानी चेन्नम्मा एवं ब्रिटिश सत्ता

ब्रिटिशों ने स्थानिक संस्थानों पर ‘व्यय समाप्ति का नियम’ (डॉक्ट्रीन ऑफ लैप्स) लगाया । इस घोषणानुसार, स्थानिक शासनकर्ताओं को यदि अपनी संतान न हो तो, बच्चा गोद लेने की अनुमति नहीं थी । इससे उनका संस्थान ब्रिटिश साम्राज्य में अपने आप समाविष्ट हो जाता था ।

अब कित्तूर संस्थान धारवाड जिलाधिकारी श्री. ठाकरे के प्रशासन में आ गया । श्री. चॅपलीन उस क्षेत्र के कमिश्नर थे । दोनों ने नए शासनकर्ता को नहीं माना, तथा सूचित किया कि कित्तूर को ब्रिटिशों का शासन स्वीकार करना होगा ।

ब्रिटिशों के विरुद्ध युद्ध

ब्रिटिशों के मनमाने व्यवहार का रानी चेन्नम्मा तथा स्थानीय लोगों ने कड़ा विरोध किया । ठाकरे ने कित्तूर पर आक्रमण किया । इस युद्ध में सैंकडों ब्रिटिश सैनिकों के साथ ठाकरे मारा गया । एक छोटे शासक के हाथों अवमानजनक हार स्वीकार करना ब्रिटिशों के लिए बडा कठिन था । मैसूर तथा सोलापुर से प्रचंड सेना लाकर उन्होंने कित्तूर को घेर लिया ।

रानी चेन्नम्मा ने युद्ध टालने का अंत तक प्रयास  किया, उसने चॅपलीन तथा बॉम्बे प्रेसिडेन्सी के गवर्नर से बातचीत की, जिनके प्रशासन में कित्तूर था । उसका कुछ परिणाम नहीं निकला । युद्ध घोषित करना चेन्नम्मा को अनिवार्य किया गया । 12 दिनों तक पराक्रमी रानी तथा उनके सैनिकों ने उनके किले की रक्षा की, किंतु अपनी आदत के अनुसार इस बार भी देशद्रोहियों ने तोपों के बारुद में कीचड एवं गोबर भर दिया । 1824 में रानी की हार हुई ।

उन्हे बंदी बनाकर जीवनभर के लिए बैलहोंगल के किले में रखा गया । रानी चेन्नम्मा ने अपने बचे हुए दिन पवित्र ग्रंथ पढने में तथा पूजा-पाठ करने में बिताए । 1829 में उनकी मृत्यु हुई ।

कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ब्रिटिशों के विरुद्ध युद्ध भले ही न जीत सकी, किंतु विश्व के इतिहास में कई शताब्दियों तक उसका नाम अजरामर हो गया । ओंके ओबवा, अब्बक्का रानी तथा केलदी चेन्नम्मा के साथ कर्नाटक में उसका नाम शौर्य की देवी के रुप में बडे आदरपूर्वक लिया जाता है ।

रानी चेन्नम्मा एक दिव्य चरित्र बन गई है । स्वतंत्रता आंदोलन में, जिस धैर्य से उसने ब्रिटिशों का विरोध किया, वह कई नाटक, लंबी कहानियां तथा गानों के लिए एक विषय बन गया । लोकगीत एवं लावनी गान वाले कवि, शाहीर जो पूरे क्षेत्र में घूमते थे, स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में जोश भर देते थे ।

एक आनंद की बात है कि, कित्तूर की चेन्नम्मा का पुतला नई देहली के संसद भवन के परिसर में 11 सितंबर 2007 को स्थापित किया गया । एक पराक्रमी रानी को यही खरी श्रद्धांजलि है । भारत में ब्रिटिशों के विरुद्ध सबसे पहले युद्ध का आरंभ करने वाले शासकों में से वह एक थी । स्तोत्र : हिन्दू जन जागृति

आपने पराक्रमी हिन्दू रानी चेन्नम्मा के बारे में पढ़ा, पति और पुत्र का स्वर्गवास हो गया, सामने अंग्रेजो की बड़ी सेना थी उसके बाद भी वो अंग्रेजो से लडी भले किसी ने गद्दारी की और वो हार गई लेकिन वे मन से कभी नहीं हारी आखिरी समय जेल में बिताना पड़ा फिर भी दुःखी नही हुई और सनातन हिन्दू धर्मग्रंथों का पठन करती रही । यही भारतीय संस्कृति है कि सामने कितनी भी विकट परिस्थिति आ जाये लेकिन हारना नहीं है धैर्य पूर्वक सामना करते रहना चाहिए ।

रानी चेन्नम्मा से हर भारतवासी को प्रेरणा लेनी चाहिए "अत्याचार करना तो पाप है लेकिन अत्याचार सहन करना दुगना पाप है" इस सूत्र को ध्यान में लेकर जहां भी देश, संस्कृति के खिलाफ कोई कार्य हो रहा है उसका विरोध करना चाहिए। और महिलाओं को अपने आप को अबला नहीं मानना चाहिए और पाश्चात्य संस्कृति की ओर नही जाना चाहिए भारतीय नारी में अथाह सामर्थ्य है वे अपने आपको पहचाने भारतीय संस्कृति का अनुसरण करके।

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Sunday, February 21, 2021

अल्लाह-हू-अकबर नारे के साथ PFI ने RSS को हथकड़ी लगाकर निकाली रैली

21 फरवरी 2021


कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने केरल में एक रैली निकाली। इस रैली में कुछ लोगों ने RSS की यूनिफॉर्म पहनी थी। परेड में आरएसएस की यूनिफार्म में शामिल लोगों को जंजीर से भी बाँधा गया था। इस रैली के कई वीडियो और फोटो सामने आए हैं, जिसमें देखा जा सकता है कि इस दौरान अल्लाह-हू-अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह जैसे कई अन्य इस्लामी नारे लगाए गए।




रैली केरल के मलप्पुरम जिले के तेनियापलम शहर में आयोजित की गई थी और वीडियो में शहर के मुख्य वाणिज्यिक केंद्र चेलारी से गुजरने वाले जुलूस को दिखाया गया है।

जुलूस के दौरान कुछ नारे काफी भड़काऊ और उत्तेजक थे। इसमें आरएसएस के यूनिफार्म वाले सदस्यों को जंजीर में बँधा हुआ दिखाना भी शामिल है। रैली में आरएसएस की यूनिफार्म में लोगों के साथ कुछ लोग ब्रिटिश अधिकारियों की भी भेष-भूषा में थे। इन लोगों के हाथ में भी रस्सी बँधी और इसका दूसरा छोर लूँगी और जालीदार टोपी (skullcaps) पहने लोगों के हाथ में थी। आरएसएस और ब्रिटिश अधिकारियों का कपड़ा पहने लोग जालीदार टोपी और लूँगी पहने लोगों का अनुसरण कर रहे थे। उनके हाथ में लाठियाँ भी थी।

कुछ सूत्रों का कहना है कि पीएफआई की रैली आज ‘1921 मालाबार हिंदू नरसंहार’ या मोपला नरसंहार की शताब्दी को ‘मनाने’ के लिए की गई थी, जिसे इतिहास में 1921 के मालाबार विद्रोह के रूप में जाना जाता है। मोपला नरसंहार में तकरीबन 10,000 हिंदुओं को मौत के घाट उतारा गया। यह माना जाता है कि दंगों के मद्देनजर 1,00,000 हिंदुओं को केरल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। इस दौरान हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया। जबरन धर्मांतरण हुए और कई प्रकार के ऐसे अत्याचार हिंदुओं पर किए गए, जिन्हें शब्दों में बयान कर पाना लगभग नामुमकिन है।

जंजीरों मे कौन हैं?

गजवा ए हिन्द की इस्लामिक भविष्यवाणी के अनुसार पूरी दुनिया में इस्लाम का शासन तभी सफल होगा जब हिन्द का शासक बेड़ियों मे जकड़ कर मुस्लिम खलीफा के सामने होगा। इसलिए भारत के शासक के प्रतीक RSS के गणवेश धारी व यूरोप (ब्रिटेन/फ्रांस) के शासक के प्रतीक लाल टोपी व लाल सफेद कपड़ों वालों बेड़ियों मे जकड़े दिखाया गया है। तुर्की का टेलीविज़न नाटक अरतुगरुल गाजी से प्रभावित होकर यह खलीफ़ा को दोबारा खड़ा करना चाहते हैं।  

मोपला द्वारा हिन्दू नरसंहार की स्मृतियाँ

1981 में डॉ मैरी विठ्ठिल Dr. Mary Vithithil केरल की मलयालम पत्रिका शब्दधाम नामक पत्रिका की सम्पादिका मालाबार गई और 1921 के हिंदू नरसंहार में भाग लेने वाले कई लोगों का साक्षात्कार लिया। उन्होंने श्रृंखला का शीर्षक दिया, "मोपला लाहला का एक उदासीन स्मरण। "... (“A nostalgic remembrance of the Mopallah Lahala”).

उन्ही दंगाइयों में से एक साक्षात्कार उन्होंने 81 साल के अब्दुल्ला कुट्टी के साथ किया था। ये उसके शब्द हैं ...।

“जब दंगे शुरू हुए तो हमारे बीच बहुत उत्साह था। रोज हम सड़कों पर खड़े होकर दंगाइयों के आने और उनके साथ आने का इंतजार करते। हम उनके साथ गए लेकिन हमने किसी को नहीं मारा दंगाइयों ने करिपथ इलम (ब्राह्मण घर) Karipath Illam( Brahmin House) पर हमला किया और सभी निवासियों को मार डाला। उन्होंने सारी दौलत ले ली और फिर उस इल्म को एक ऐसी जगह में बदल दिया, जहां असहाय हिंदुओं को लाया जाता था और जबरदस्ती धर्मांतरण या हत्या कर दी जाती थी।

हमने मांस पकाया और उन्हें बलपूर्वक खिलाया .. इस की गंध के कारण उनको कई दिन तक उल्टी हुई । इस तरह के लोगों को हमने लात मारकर गिरा दिया गया। कईयों ने कई दिन तक कुछ भी खाने से मना कर दिया।

जब हमने 25 हिंदुओं को इकट्ठा किया ... उन्हें कुएं के किनारे ले जाया गया। तब दीनवालों ने उनसे पूछा ... ईस्लाम कबूल करेंगे या आप इंग्लैंड जाना चाहते हैं (मतलब मौत)।

अधिकांश ने मौत चुनी और इसलिए उनकी गर्दन काटकर उन्हे कुएं में फेंक दिया । कई लोग तुरंत नहीं मरे, लेकिन घंटों और कभी-कभी दिनों तक तड़पते रहे।

हर रोज हम पालतू पशुओं को लाते और चावल के साथ पकाते ... हम अच्छी तरह से खाते थे और इसने हमें और अधिक और दंगों में सक्रिय कर दिया।

पकड़े गए इन हिंदुओं में से हमें एक आदिवासी लड़का मिला जिसने तीर और धनुष बनाया। वह परिवर्तित हो गया और जल्द ही दंगों में शामिल हो गया। उनके दीन का नाम अली रख दिया। ...

एक और शख्स जो हमसे जुड़ गया वो था बिरन कुट्टी। वह ब्रिटिश सेना से सेवानिवृत्त हुए थे और इसलिए उनके पास एक बंदूक थी। उन्होंने दंगों में इस बंदूक का इस्तेमाल किया।

जैसे-जैसे दंगे अधिक से अधिक हिंसक होते गए ... क्षेत्र के कुएं शवों से भर गए ... "

अब्दुल्ला कुट्टी ने इन सभी गंभीर घटनाओं को बहुत याद किया और उन्होंने कहा कि यह गोरखा रेजिमेंट के अंदर आने के बाद ही रुका है।

अधिकतम संख्या में हिंदुओं को टुकड़े टुकड़े करके या उनकी गर्दन काट कर कुएं मे फेंक दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि इस तरह मारे गए हिंदुओं के कंकाल गर्मियों में आने पर कुएं में देखे जा सकते हैं और कुएं सूख जाते हैं।

यह याद रखना अच्छा होगा कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट सरकारों ने बाद में इन दंगाइयों को 1980 के दशक में इन नरसंहार करने वाले मोपला मुस्लिमों को स्वतंत्रता सेनानी पेंशन दी। दूसरी तरफ जो हिंदू सब कुछ खो चुके थे जीवन, सम्मान, परिवार, स्थिति, घर, संपत्ति और धन ऐसी किसी भी पेंशन से इनकार कर दिया गया था।
यह लेख मूलतः मलयालम पत्रिका के विवरण के आधार पर इंग्लिश मे था। अनुवाद किया है इंग्लिश से हिन्दी में अनुवादित।

अभी भी हिन्दू आपस में एकजुट नहीं  हुए तो क्या हाल होगा देख लीजिए।

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Saturday, February 20, 2021

राष्ट्र-संस्कृति के हित में और खिलाफ कार्य करने वालों का कैसा हाल है?

20 फरवरी 2021


जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमला हुआ और हमारे 40 जवान शहीद हो गये , क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि इतने बड़े कारनामे को अंजाम बिना किसी खुफिया जानकारी के नहीं दिया जा सकता ? इस साजिश को अंजाम तक पहुंचाने में अपने ही देश के लोगों का हाथ होने के कारण ही आतंकवादी सफल हो गए होंगे और देश में कुछ गद्दार लोग उनका समर्थन भी करते पाए गए। इसका मतलब साफ है कि वे देश विरोध में खड़े हैं ।




देश में ऐसा क्यों हो रहा है इसके पीछे का कारण आपको जानना जरूरी है...

आपने देखा होगा कि JNU में देश को टुकड़े करने के नारे लगे थे उसमें मुख्य आरोपी हैं उमर खालिद और कन्हैया कुमार, लेकिन वे आज भी बाहर आराम से घुम रहे हैं ।

दिल्ली के इमाम बुखारी पर देशद्रोह और बलात्कार जैसे संगीन आरोप हैं और 65 गैर जमानती वारंट निकले हैं पर उनकी गिरफ्तारी नहीं की जा रही है  और इसका कारण बताया जा रहा है कि देश में दंगा हो जाएगा, क्या ये बचकानी बात नहीं है?

संजय दत्त को आतंकवादियों के हथियार घर में रखने के जुर्म में सजा हुई फिर भी बार-बार पेरोल मिलती रही और जल्दी जेल से बाहर कर दिया ।

सोनिया गांधी और राहुल गांधी आदि पर अरबों रुपयों के घोटाले के आरोप हैं पर उनकी गिरफ्तारी नहीं हो रही है ।

पत्रकार तरुण तेजपाल ने एक लड़की का बलात्कार किया पुख्ता सबूत होते हुए भी बाहर घूम रहा है ।

ईसाई धर्मगुरु बिशप फ्रैंको पर 13 बार बलात्कार का आरोप लगा, नन चीख-चीख के कह रही है फिर भी सबूत होते हुए भी उसे जमानत मिल गई ।

आतंकवादी अफजल को फांसी की सजा हुई, वो आतंकवादी है ये जानते हुए भी उसकी सजा रोकने के लिए आधी रात को न्यायालय खुलता है, क्या ये हास्यास्पद नहीं है ?

अब आपको तो पता चल ही गया होगा कि इन अपराधियों को कौन बढ़ावा दे रहा है । इस अपराधियों को खुली छूट देने के पीछे  सरकार, न्यायालय और मीडिया का हाथ ही आएगा, क्योंकि सरकार और न्यायालय का काम है उनको जेल भेजना और मीडिया का काम है इनके खिलाफ बोलना, लेकिन कलयुग का प्रभाव देखिए यहां सब इसके विपरीत हो रहा है ।

अब एक नज़र डालते हैं देशभक्तों की हालत पर..

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को 9 साल
डीजी वंजारा जी को 8 साल
स्वामी असीमानंद को 8 साल
कर्नल पुरोहित को 7 साल
बिना सबूत जेल में प्रताड़ित किया गया।
उड़ीसा के स्वामी लक्ष्मणानंद की तो हत्या तक कर दी गई ।

अभी वर्तमान में 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू को 7+ सालों के कारावास में 1 दिन भी जमानत नहीं दी गई क्योंकि वे 50 साल से सतत हिन्दू संस्कृति और देश हित कार्यों में लगे थे।

इतनी उम्र होने के कारण उनका स्वास्थ्य भी खराब होता जा रहा है और उनकी धर्मपत्नी लक्ष्मीदेवी को हार्ट अटैक आया था फिर भी जमानत नहीं दी गई । इससे तो साफ सिद्ध होता है कि सरकार, न्यायालय और मीडिया चाहती है कि आप देश के खिलाफ कार्य करो आपको जमानत मिल जायेगी, लेकिन आप हिन्दू संस्कृति और समाज व देश हित का कार्य करोगे तो आपको जेल भेजा जायेगा या हत्या कर दी जायेगी।

आइये जानते हैं क्या था आशारामजी बापू का अपराध ?

1). ईसाई मिशनरियों को खुली चुनौती दिया, लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया ।

2) . कत्लखाने में जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया ।

3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।

4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया ।

5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा देकर, तेजस्वी बनाया ।

6). पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया ।

7). वैलेंटाइन डे का विरोध करके "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया ।

8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय, तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया ।

9). लाखों-करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया ।

10). नशा मुक्ति अभियान के द्वारा लाखों लोगों को व्यसन-मुक्त करया ।

11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाए ।

12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोठी पीठ के "शंकराचार्य श्री #जयेंद्र सरस्वतीजी" बाबा रामदेव, मोरारी बापूजी, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया ।

कहीं इन महान कार्यों को करने के कारण तो उनको अंदर नहीं रखा गया है ? क्योंकि राष्ट्र विरोधी शक्तियां नहीं चाहती होंगी कि वे बाहर आये, अगर वे बाहर आएंगे तो उनकी दुकानें बंद होने लगेगी ।

सरकार और न्यायलय को चाहिए कि देश के गद्दारों को जेल भेजें और देशभक्तों को जेल से बाहर करें और मीडिया भी देशभक्तों का समर्थन करें विदेश का फंड लेकर उनके खिलाफ अभियान न चलायें ।

हिंदुस्तानियों को भी सावधान होना पड़ेगा, ऐसे महापुरुषों पर हो रहे अन्याय को रोकना होगा नहीं तो विधर्मी एक के बाद एक निर्दोष हिंदुनिष्ठ को जेल भिजवाकर हमारी संस्कृति को खत्म करके देश को  फिर से गुलाम बनाने की साज़िश में सफल हो जाएंगे ।

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Friday, February 19, 2021

वे चेहरे जिनकी लिंचिंग पर मीडिया शांत रहा क्योंकि ये शांतिप्रिय समुदाय से नहीं थे ।

19 फरवरी 2021


अखलाक की मौत पर राजनेताओं की भीड़ आपको याद है? परंतु निकिता तोमर, रचित चौधरी और रिंकू शर्मा के लिए किसी राजनेता के पास समय नहीं है। पालघर के सन्यासियों के लोमहर्षक हत्याकांड पर रविश कुमार 33 सेकण्ड तक बोला पर चोर तबरेज आलम के लिए 33 घंटे से अधिक। 'प्रेस्टीच्यूट' चुप है क्योंकि निकिता तोमर, रचित चौधरी और रिंकू शर्मा के हत्यारे सेक्युलर हैं और इनकी हत्या गंगा जमनी तहजीब को मजबूती देती है। मोमबत्ती और तख्ती गैंग भी पता नहीं कहाँ गायब है? 


  

कुछ दिन पहले कोर्ट ने पालघर के संतों के सभी हत्यारोपियों को छोड़ दिया। जिस घटना के वीडियो हैं उसमें सबूतों के अभाव के कारण सभी अपराधी छोड़ दिए जाएँ तो जाँच और न्याय व्यवस्था पर प्रश्न उठता ही है। 

जरा सोचिए, पालघर में संतों की लिंचिंग जैसी घटना अगर किसी समुदाय विशेष के या इसी गिरोह के किसी व्यक्ति के साथ घटी होती तो आज कितना हंगामा होता। इस हैवानियत के शिकार भगवा धारण किए साधु थे। तो फिर उनकी अंतरात्मा क्यों ही जागृत हो?

महाराष्ट्र के पालघर जिले के यह ऐसे कुछ इलाके हैं, जहाँ प्रायः कोंकणा, वारली और ठाकुर जनजाति के लोग रहते हैं। आधुनिक विकास से वंचित इन दूरदराज के गांवों में कई वर्षों से क्रिश्चियन मिशनरी और वामपंथियों ने अपना प्रभाव क्षेत्र बनाया हुआ है।

कुछ वर्षों में वामपंथी और मिशनरी प्रभावित जनजाति प्रदेशों में, जनजाति समुदाय के मतांतरित व्यक्तियों द्वारा अलग धार्मिक संहिता की माँग हो रही है। उन्हें बार-बार यह कह कर उकसाया जाता रहा है कि उनकी पहचान हिन्दुओं से अलग है।
लगभग 2 सप्ताह पहले बिजनौर के रचित की निर्मम हत्या हो या पिछले सप्ताह दिल्ली के रिंकू शर्मा की चाकूओं से की हत्या। सभी बता रहे हैं कि अपराधी कानून पुलिस और न्याय व्यवस्था से नहीं डरते। 

कुछ नाम देखिए --

1• विष्णु गोस्वामी– 16 मई 2019 को यूपी के गोंडा जिले में इमरान, तुफैल, रमज़ान और निज़ामुद्दीन ने विष्णु गोस्वामी को पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिया। विष्णु की गलती बस ये थी कि वे अपने पिता के साथ लौटते हुए सड़क के किनारे लगे नल पर पानी पीने लगा था। बस इसी दौरान इन्होंने विष्णु व उसके पिता से विवाद बढ़ाया और बात खींचने पर उसे पेट्रोल डालकर आग के हवाले झोंक दिया।

2• वी.रामलिंगम– तमिलनाडु में दलितों के इलाके में धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया को चलता देख वी राम लिंगम ने पीएफआई के कुछ लोगों का विरोध किया था। जिसके बाद 7 फरवरी को पट्टाली मक्कल काची के नेता की घर से खींचकर हत्या कर दी गई । इस मामले में पुलिस ने पाँच लोगों को हिरासत में लिया था- निजाम अली, सरबुद्दीन, रिज़वान, मोहम्मद अज़रुद्दीन और मोहम्मद रैयाज़।

3• ध्रुव त्यागी– बेटी के साथ छेड़खानी का विरोध करने पर 51 वर्षीय ध्रुव त्यागी को सरेआम सबके सामने मोहम्मद आलम और जहाँगीर खान ने धारधार हथियारों से राष्ट्रीय राजधानी के मोती नगर में मौत के घाट उतारा था। इसके बाद इन हत्यारों ने ध्रुव त्यागी के बेटे पर भी हमला किया था। हालाँकि, उस समय पुलिस ने दोनों आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया था। मगर बाद में पुलिस को पड़ताल से पता चला कि उस दिन उन्हें 11 लोगों ने घेर कर मारा था।

4• भरत यादव - मथुरा मे लस्सी बेचने वाले भरत यादव ने लस्सी के पैसे मांगे तो हानिफ, फहीम व 14 लोगों ने मिलकर इतना मारा कि 2 दिन बाद हॉस्पिटल मे मृत्यु हो गई। 

5• निकिता तोमर -बल्लभगढ़ की निकिता तोमर को सरे आम तौसीफ ने इसलिए गोलियों से भून दिया क्योंकि वह तौसीफ से निकाह नहीं करना चाहती थी। 

6• रतन लाल– 24-25 फरवरी को उत्तरपूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में वीरगति को प्राप्त हुए रतन लाल का नाम शायद ही आने वाले समय में कोई भूल पाए। एक ऐसा वीर जिसने दिल्ली को जलने से रोकने के लिए खुद को इस्लामिक भीड़ का बलि बना दिया। उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स से पता चला था कि पत्थरबाजी के कारण नहीं बल्कि रतन लाल की मौत गोली लगने के कारण हुई थी।

7• प्रीति रेड्डी– हैदराबाद का वो मामला जिसने 2019 साल नवंबर महीने के खत्म होते-होते सबको झकझोर दिया। शमसाबाद के टोल प्लाजा के पास घटी घटना में मुख्य आरोपित मोहम्मद पाशा था। जिसने अपने अन्य तीन साथियों के साथ मिलकर उस महिला डॉक्टर का गैंगरेप किया। फिर उसे पेट्रोल डालकर जलने को छोड़ दिया।

ऐसी तो एक बहुत बड़ी लिस्ट है यहाँ तो आपको कुछ ही उदाहरण दिए हैं बस, इतना समझ लो कि यह लोग सनातन धर्म को मिटाने में लगे हैं। अगर नहीं संभले जाति -पाति में बंटते रहे, अपने धर्मगुरुओं की खिल्ली उड़ाते रहे तो ये गिद्ध आपको स्वाहा कर देंगे इसलिए सतर्क रहें।

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Thursday, February 18, 2021

भारत का कानून ऐसा की सुप्रीम कोर्ट के जज को करनी पड़ी टिप्पणी...

18 फरवरी 2021


हाल ही में भारत के भूतपूर्व मुख्य न्यायमूर्ती श्री रंजन गोगोई ने भारतीय न्यायव्यवस्था के संदर्भ में दयनीय किन्तु सत्य और सटिक टीप्पणी की है और इस बात का अनुभव हर वो व्यक्ति कर सकता है जिसका पाला भारत के न्यायालयों से पडा है । भारतीय नागरीक होने के नाते हमे अपने देश के संविधान पर गर्व है और इसके अंतर्गत बनाई गई व्यवस्था का हम सम्मान करते हैं । पर इसके साथ ही इस व्यवस्था में सुधार लाने एवं अधीक लोकोपयोगी बनाने के लिए इसका विश्लेषण करना और उचित सुधारात्मक कदम उठाना भी हम सभी नागरीकों का राष्ट्रीय कर्तव्य भी है ।




कानून में समानता का आदर्श कि कानून सबके लिए समान है चाहे गरीब हो चाहे अमीर , चाहे सामान्य व्यक्ती हो, चाहे राजनेता । पर अक्सर व्यवहार में न्यायालयों के अनेक निर्णयों में असमानता स्पष्टरुप से दिखाई देती है ।

बहु चर्चीत संत श्री आशारामजी बापू का केस ही देखा जाए तो सन् 2013 जिस समय उन पर आरोप लगा तो इतना तेजी से और विकृतरुप से मीडिया ट्रायल हुआ कि कानून की नजरों में जब सब समान हैं तो आशाराम बापू जैसे संत ही क्यों न हो उनकी भी तुरन्त गिरफ्तारी होनी चाहिए ।मीडिया ट्रायल के दबाव में या अन्य कोई भी राजनैतिक कारण रहे हों पुलीस ने भी उनकी गिरफ्तारी में पुरी तत्परता दिखाई । वर्षों तक ट्रायल चलता रहा पर इस दौरान ना ही उन्हे किसी भी तरह की जमानत तक नहीं मिली और कारागृह में रहते हुए ही सजा सुनाई गई । माननीय जोधपुर उच्च न्यायालय में सह आरोपियों की सजा पर स्थगन का आदेश पारित हो गया पर आशाराम बापूजी के केस में आशारामजी बापू की सजा स्थगित करने का कोई आदेश पारित नहीं हो पाया । यहाँ तक कि उनके अति निकटवर्ती परीजन के देहांत पर या उनकी धर्म पत्नी की गंभीर बिमारी के बावजूद भी उन्हें कुछ दिन के लिए अंतरिम जमानत/पेरोल भी नहीं मिली । इन परिस्थितियों में एक प्रश्न सहसा मन में उठता है कि यदि कानून की नजरों में सब समान है, यदि बापू आशारामजी जैसे संत की गिरफ्तारी के समय में एक सामान्य व्यक्ती और एक अंतराष्ट्रीय ख्याती प्राप्त संत के बीच में कोई भेदभाव नहीं रखा गया तो फिर जमानत देते समय, यहाँ तक कि सजा के बाद कानूनी रुप से एक गुनहगार कैदी को मिलनेवाले लाभों से भी उन्हें वंचित क्यों किया जा रहा है ।

ऐसे अनेक उदाहरण है कि चाहे कोई प्रसिद्ध फिल्म अभिनेतओं हो कोई राजनेता हो जिन्हें राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध किये गये अपराधों में सजा सुनाई गई हो हजारो निर्दोष लोगों की हत्या में शामिल होने का जिनके ऊपर आरोप हो उन्हे भी एक सजायाफता कैदी के रुप में कानून में दिये गये लाभ या सुविधा उपलब्ध काराई गयी तो बापू आशारामजी जैसे संत जिन्होंने अपना पूरा जीवन भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के उत्थान में न्योछावर कर दिया देश के हर वर्ग, धर्म, मत, पंथ, मजहब के करोडो लोग बिना किसी भेदभाव के उनके सत्संग-प्रवचनों और सेवाकार्यों से वर्षों तक लाभान्वित होते रहें तो उन्हें उन लाभों से वंचित क्यों किया जा रहा है ।

आतंकवादियों, भ्रष्टाचारीयों, हत्यारों और देशद्रोहीयों के मानवाधिकारों की चिंता करने वाले इस देश में ऐसे महान संत के मानवाधिकारों की रक्षा यदि समय रहते न्यायपालिका, शासन-प्रशासन और ये जागरुक समाज नहीं कर पाया तो आनेवाली पीढी हमें कभी माफ नहीं करेगी । आदरणीय श्री रंजन गोगोई की टीप्पणी को गंभीरता से लेते हुए अब समय है सत्तारुढ दलों एवं न्यायपालिका में बैठे सत्यप्रेमी न्यायाधीशों द्वारा आत्ममंथन करने का कि समानता के सिद्धांत का आदर्श बतानेवाली हमारी न्याय व्यवस्था में ऐसी असमानता क्यों दिखाई दे रही है ?
-विकास खेमका

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Wednesday, February 17, 2021

इतना प्रताड़ित तो किसी आतंकवादी को भी नहीं किया होगा...

17 फरवरी 2021


आपने देखा होगा कि किसी आतंकवादी की गिरफ्तारी होती है तो तथाकथित बुद्धिजीवी व मानवाधिकार वाले उसकी रिहाई की मांग करने लग जाते हैं, सरकार भी उनको दामाद की तरह रखती है बिरयानी खिलाने आदि वीआईपी ट्रीटमेंट देती है, अच्छे हॉस्पिटल में इलाज करवाती है, न्यायालय जमानत भी दे देती हैं। लेकिन वही राष्ट्रवादी , हिंदूनिष्ठ झूठे केस में जेल में जाते हैं तो न मानवाधिकार वाले आते हैं और ना ही सरकार कोई राहत देती है और नही न्यायालय जमानत देती है।




आपको बता दें कि 85 वर्षीय बुजुर्ग संत आशारामजी बापू को 16 फरवरी की रात को तबियत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती करवाया गया लेकिन भर्ती कराते समय एक व्हीलचेयर भी उनको नहीं दी गई दूसरी तरफ इतनी उम्र हो गई है फिर भी इलाज के लिए उनको जमानत तक नहीं मिल रही है जबकि उनके पास निर्दोष होने और उनके खिलाफ साजिस के तहत झूठे केस में फंसाने के कई पुख्ता प्रमाण हैं फिर भी जमानत नहीं मिलना कितना बड़ा अन्याय है।

दूसरी और ड्रग्स मामले में रिया चक्रवर्ती को जमानत दे दी, नाबालिग रेप केस में सपा नेता गायत्री प्रजापति को जमानत मिल गई थी, करोड़ों रूपये के घोटाले करने वाले लालू प्रसाद यादव को जमानत मिल गई थी, देशभर में कोरोना फैलाने वाले मौलाना साद को जमानत मिल गई, देश के 'टुकड़े' करने का नारा लगाने वाले उमर खालिद और कन्हैया कुमार को जमानत मिल गई, बलात्कार आरोपी बिशप फ्रेंको व तरुण तेजपाल को जमानत मिल गई , 65 गैर जमानती वारंट होने के बाद भी दिल्ली के इमाम बुखारी को आज तक गिरफ्तार नहीं कर पाए और यही न्यायालय राष्ट्र और भारतीय संस्कृति के उत्थान कार्य करने वाले 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू को 7 साल से आज तक जमानत नहीं दे पाई ।

क्योंकि आशाराम बापू ने बड़े बड़े अपराध किये हैं और वे अपराध हैं जैसे कि

1). लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया  ।

2). कत्लखाने में जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया।

3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।

4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया ।

5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र देकर और योग व उच्च संस्कार का प्रशिक्षण देकर ओजस्वी- तेजस्वी बनाया ।

6). लंदन, पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया  ।

7). वैलेंटाइन डे का विरोध करके "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया  ।

8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय, तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया  ।

9). करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया  ।

10). नशा मुक्ति अभियान के द्वारा करोड़ो लोगों को व्यसन-मुक्त कराया  ।

11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाए  ।

12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोठी पीठ के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी" बाबा रामदेव, मोरारी बापू, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया  ।

अब आप ही सोचिए कि ये अपराध है कि समाज, राष्ट्र , संस्कृति व सनातन धर्म की सेवा है? फिर भी उनको जमानत नहीं मिलना एक बड़ा प्रश्न हो रहा है।

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