Thursday, February 10, 2022

ऐसे खेले होली मिल जाएगा कालसर्पदोष से मुक्ति, होंगे ढेरों फायदे

14 मार्च 2021

azaadbharat.org

होली का त्यौहार हास्य-विनोद करके छुपे हुए आनंद-स्वभाव को जगाने के लिए है, लेकिन आजकल केमिकल रंगों से होली खेलने का जो प्रचलन चल रहा है वो बहुत नुकसानदायक है । अगर पलाश के रंगों से होली खेलेंगे तो इतने फायदे होंगे कि आपको डॉक्टर की ज्यादा आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी ।



पलाश को हिंदी में ढाक, टेसू, बंगाली में पलाश, मराठी में पळस, गुजराती में केसूड़ा कहते हैं ।

इसके पत्त्तों से बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी – पात्र में किये भोजन के तुल्य लाभ मिलते हैं ।

कालसर्प दोष से मुक्ति

कालसर्प दोष बहुत भयंकर माना जाता है और ये करो, वो करो, इतना खर्चा करो, इतना जप करो, कई लोग इनको ठग लेते हैं । फिर भी कालसर्प दोष से उनका पीछा नहीं छूटता, लेकिन ज्योतिष के अनुसार उनका कालसर्प योग नहीं रहता जो पलाश के रंग अपने पर डालते हैं ।  कालसर्प दोष के भय से पैसा खर्चना नहीं और अपने को ग्रह दोष है, कालसर्प है ऐसा मानकर डरना नहीं पलाश के रंग शरीर पर लगाओ जिससे काल कालसर्प दोष चला जायेगा ।

पलाश से पाएं अनेक रोगों से मुक्ति

‘लिंग पुराण’ में आता है कि पलाश की समिधा से ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र द्वारा 10 हजार आहुतियाँ दें तो सभी रोगों का शमन होता है ।

पलाश के फूल : प्रेमह (मूत्रसंबंधी विकारों) में: पलाश-पुष्प का काढ़ा (50 मि.ली.) मिश्री मिलाकर पिलायें ।

रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में : फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है । आँखे आने पर (Conjunctivitis) फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में आँजे ।

वीर्यवान बालक की प्राप्ति : एक पलाश-पुष्प पीसकर, उसे दूध में मिला के गर्भवती माता को रोज पिलाने से बल-वीर्यवान संतान की प्राप्ति होती है ।

पलाश के बीज : 3 से 6 ग्राम बीज-चूर्ण सुबह दूध के साथ तीन दिन तक दें | चौथे दिन सुबह 10 से 15 मि.ली. अरंडी का तेल गर्म दूध में मिलाकर पिलाने से कृमि निकल जायेंगे ।


🚩पत्ते : पलाश व बेल के सूखे पत्ते, गाय का घी व मिश्री समभाग मिला के धूप करने से बुद्धि की शुद्धि व वृद्धि होती है ।

बवासीर में : पलाश के पत्तों की सब्जी घी व तेल में बनाकर दही के साथ खायें ।

छाल : नाक, मल-मूत्र मार्ग या योनि द्वारा रक्तस्त्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (50 मि.ली.) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिला के पिलायें ।

पलाश का गोंद : पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध या आँवला रस के साथ लेने से बल-वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं । यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है ।

पलाश के फूलों से होली खेलने की परम्परा का फायदा बताते हुए हिन्दू संत आसाराम बापू कहते हैं कि ‘‘पलाश कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है। साथ ही रक्तसंचार में वृद्धि करता है एवं मांसपेशियों का स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाता है ।

रासायनिक रंगों से होली खेलने में प्रति व्यक्ति लगभग 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामूहिक प्राकृतिक-वैदिक होली में प्रति व्यक्ति लगभग 30 से 60 मि.ली. से कम पानी लगता है ।

इस प्रकार देश की जल-सम्पदा की हजारों गुना बचत होती है । पलाश के फूलों का रंग बनाने के लिए उन्हें इकट्ठे करनेवाले आदिवासियों को रोजी-रोटी मिल जाती है ।पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है ।

इतना ही नहीं, पलाश के फूलों का रंग रक्त-संचार में वृद्धि करता है, मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ-साथ मानसिक शक्ति व इच्छाशक्ति को बढ़ाता है । शरीर की सप्तधातुओं एवं सप्तरंगों का संतुलन करता है ।  (स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ऋषि प्रसाद पत्रिका)

आपको बता दें कि पलाश से वैदिक होली खेलने का अभियान हिन्दू संत आशाराम बापू ने शुरू किया था जिसके कारण केमिकल रंगों का और उससे फलने-फूलनेवाला अरबों रुपयों का दवाइयों का व्यापार प्रभावित हो रहा था ।

बापू आसारामजी के सामूहिक प्राकृतिक होली अभियान से शारीरिक मानसिक अनेक बीमारियों में लाभ होकर देश के अरबो रुपयों का स्वास्थ्य-खर्च बच रहा है । जिससे विदेशी कंपनियों को अरबों का घाटा हो रहा था इसलिए एक ये भी कारण है उनको फंसाने का । साथ ही उनके कार्यक्रमों में पानी की भी बचत हो रही है ।


पर मीडिया ने तो ठेका लिया है समाज को गुमराह करने का।  5-6 हजार लीटर प्राकृतिक रंग (जो कि लाखों रुपयों का स्वास्थ्य व्यय बचाता है) के ऊपर बवाल मचाने वाली मीडिया को शराब, कोल्डड्रिंक्स उत्पादन तथा कत्लखानों में गोमांस के लिए प्रतिदिन हो रहे अरबों-खरबों लीटर पानी की बर्बादी जरा भी समस्या नही लगती। ऐसा क्यों ???

कछ सालों से अगर गौर करें तो जब भी

हिन्दू त्यौहार नजदीक आता है तो दलाल मीडिया और भारत का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग हमारे हिन्दू त्यौहारों में खोट निकालने लग जाता है ।

जसे दीपावली नजदीक आते ही छाती कूट कूट कर पटाखों से होने वाले प्रदूषण का रोना रोने वाली मीडिया को 31 दिसम्बर को आतिशबाजियों का प्रदूषण नही दिखता ।आतिशबाजियों से क्या ऑक्सीजन पैदा होती है?

जन्माष्टमी पर दही हांडी कार्यक्रम नहीं हो लेकिन खून-खराबा वाला ताजिया पर आपत्ति नही है।

ऐसे ही शिवरात्रि के पावन पर्व पर दूध की बर्बादी की दलीलें देने वाली मीडिया हजारों दुधारू गायों की हत्या पर मौन क्यों हो जाती है?

अब होली आई है तो बिकाऊ मीडिया पानी बचत की दलीलें लेकर फिर उपस्थित होंगी । लेकिन पानी बचाना है तो साल में 364 दिन बचाओ पर पलाश की वैदिक होली अवश्य मनाओ । क्योंकि बदलना है तो अपना व्यवहार बदलो....त्यौहार नहीं ।

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नटफ्लिक्स की वेब सीरिज ने फिर से हिन्दू धर्मग्रंथ व बच्चों पर चोट किया...

13 मार्च 2021

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अमेरिकन कंपनी नेटफ्लिक्स ने हिन्दू भावनाओं से साथ कई बार खिलवाड़ किया है। उनकी छवि को नकारात्मक तरीके से पेश किया गया हो। एंटी हिन्दू नैरेटिव को स्थापित करने का प्रयास नेटफिक्स लगातार कर रहा है। ‘Ghoul' ,  ‘Sacred Games’ और ‘लैला’ इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।



वब सीरिज के माध्यम से लगातार एंटी-हिन्दू सामग्री दिखाने पर लोगों ने Netflix को Boycott करना शुरू किया है। सोशल मीडिया के जरिए कई बार लोगों ने नेटफ्लिक्स को देश में बैन करने की मांग की हैं।

नटफ्लिक्स की एक वेब सीरिज "मैंगो ड्रीम्स" में भारत के नक्शे को गलत दिखाया गया था। जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से को पाकिस्तान का हिस्सा दिखाया गया है।  इसलिए नेटफ्लिक्स धर्म के साथ देशविरोधी भी बन गया है।

आपको बता दे कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स (Netflix) से वेब सीरिज ‘बॉम्बे बेगम्स (Bombay Begums)’ की स्ट्रीमिंग बंद करने को कहा। ऐसा नहीं होने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। दो ट्विटर हैंडल की तरफ से इस वेब सीरिज में बच्चों के गलत चित्रण को लेकर शिकायत मिलने पर यह कार्रवाई की गई है। साथ ही यूजर्स ने सीरिज के हिंदूफोबिक कंटेट को लेकर भी नाराजगी जताई है।

शीर्ष बाल अधिकार संस्था ने गुरुवार (11 मार्च 2021) को वेब सीरिज में बच्चों के अनुचित चित्रण का हवाला देते हुए नेटफ्लिक्स से इसकी स्ट्रीमिंग तुरंत बंद करने को कहा। साथ ही 24 घंटे के भीतर एक विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट भी पेश करने को कहा है। NCPCR ने कहा है कि यदि ओटीटी प्लेटफॉर्म ऐसा नहीं करती है तो वह कानूनी कार्रवाई को विवश होगी।

एनसीपीसीआर ने नोटिस में कहा है कि नाबालिगों के कैजुअल सेक्स को सामान्य बताने के बाद अब वेब सीरिज बच्चों के बीच ड्रग्स के सेवन को सामान्य दिखा रही है। आयोग ने कहा है कि वह बच्चों का इस तरह से चित्रण करने की अनुमति नहीं दे सकती। नोटिस में कहा गया है, “इस प्रकार की सामग्री के साथ सीरीज न केवल बच्चों के युवा दिमाग को दूषित करेगी, बल्कि इसका परिणाम अपराधियों के हाथों बच्चों के साथ दुर्व्यवहार और शोषण भी हो सकता है।”

आयोग को इस संबंध में दो ट्विटर हैंडल से शिकायत मिली थी। @DeepikaBhardwaj नामक हैंडल ने ‘बॉम्बे बेगम्स’ में बच्चों के चित्रण पर कड़ा एतराज जताया है। खासकर, जिस तरीके से बच्चों के बीच ड्रग्स के सेवन को दिखाया गया है।

एक अन्य लोकप्रिय ट्विटर हैंडल @GemsOfBollywood ने भी शिकायत की थी। उसने बताया था कि इस वेब सीरिज में लड़कियों के अपने शरीर के अंगों की तस्वीरें खींचकर सहपाठियों को भेजते दिखाया गया है। यह ट्विटर हैंडल फिल्म उद्योग के हिंदूफोबिक एजेंडे को बेनकाब करने के लिए जाना जाता है।

वेब सीरिज में एक तिलकधारी नेता को भगवद्गीता के हवाले से यह बताते दिखाया गया है कि पुरुष के भावना की तृप्ति ही स्त्री का सर्वोच्च धर्म है।

एनसीपीसीआर को किए गए इन ट्वीट्स सीपीसीआर (बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए आयोग) अधिनियम 2005 की धारा 13(1)(जे) के तहत कार्रवाई करने की मांग की गई थी। एनसीपीसीआर की नोटिस में कहा गया है, “नेटफ्लिक्स को बच्चों के संबंध में या बच्चों के लिए किसी भी सामग्री को स्ट्रीम करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। इसलिए, इस मामले को देखने के लिए आपको निर्देशित किया जाता है और तुरंत इस सीरीज की स्ट्रीमिंग रोकने के लिए कहा जाता है।”

‘बॉम्बे बेगम्स’ की स्क्रिप्ट अलंकृता श्रीवास्तव ने लिखी है और पूजा भट्ट मुख्य भूमिका में है। यह सीरिज मुंबई में विभिन्न क्षेत्रों की 5 महिलाओं के जीवन पर आधारित है। गौरतलब है कि यह पहला मौका नहीं है जब कोई वेब सीरिज अपने कंटेंट को लेकर विवादों में है। हाल ही में अमेजन प्राइम वीडियो की वेब सीरिज ‘तांडव’ हिंदूफोबिक कंटेट को लेकर विवादों में थी। इससे जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी (OTT) प्लेटफॉर्म पर रिलीज से पहले कंटेंट की स्क्रीनिंग पर जोर दिया था।

आपको बता दें कि हिन्दू नॅशनलिस्ट शिवसेना के आई टी सेल के सदस्य समेश सोलंकी ने 4 सितंबर को नेटफ्लिक्स के विरोध में एलटी मार्ग पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी। अपनी शिकायत में उन्होने कहा है कि अमेरिका की कंपनी नेटफ्लिक्स हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचा रही है। वेब सीरीज सेक्रेड गेम्स, लैला और घुल का उदाहरण देते हुए कहा है कि इन सीरियल्स में हिन्दुओं और भारत का गलत चित्रण किया गया है। 

नटफ्लिक्स हिंदू विरोधी तो है साथ में देशविरोधी भी है। देशवासियों को इसका बहिष्कार करना चाहिए और भारत सरकार को इसपर तुरंत प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

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इकलौता ऐसा शासक, जिसका खौफ अंग्रेजी सेना में साफ-साफ दिखता था !!

12 मार्च 2021

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एक ऐसा भारतीय शासक जिसने अकेले दम पर ब्रिटिश हुकूमत को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। इकलौता ऐसा शासक, जिसका खौफ अंग्रेजी सेना में साफ-साफ दिखता था। एकमात्र ऐसा शासक जिसके साथ ब्रिटिश सेनापति हर हाल में बिना शर्त समझौता करने को तैयार थे। एक ऐसा शासक, जिसे अपनों ने ही बार-बार धोखा दिया, फिर भी उन्होंने जंग के मैदान में कभी हिम्मत नहीं हारी।



इतना महान था वो भारतीय शासक, फिर भी इतिहास के पन्नों में वो कहीं खोया हुआ है। उसके बारे में आज भी बहुत लोगों को जानकारी नहीं है। उसका नाम आज भी लोगों के लिए अनजान है। उस महान शासक का नाम है - यशवंतराव होलकर। यह उस महान वीरयोद्धा का नाम है, जिसकी तुलना विख्यात इतिहास शास्त्री एन एस इनामदार ने 'नेपोलियन' से की है।

पश्चिम मध्यप्रदेश की मालवा रियासत के महाराज यशवंतराव होलकर का भारत की आजादी के लिए किया गया योगदान महाराणा प्रताप और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से कहीं कम नहीं है। यशवतंराव होलकर का जन्म 1776 ई. में हुआ। इनके पिता थे - तुकोजीराव होलकर। होलकर साम्राज्य के बढ़ते प्रभाव के कारण ग्वालियर के शासक दौलतराव सिंधिया ने यशवंतराव के बड़े भाई मल्हारराव को मौत की नींद सुला दिया।

इस घटना ने यशवंतराव को पूरी तरह से तोड़ दिया था। उनका अपनों पर से विश्वास उठ गया। इसके बाद उन्होंने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया। ये अपने काम में काफी होशियार और बहादुर थे। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1802 ई. में इन्होंने पुणे के पेशवा बाजीराव द्वितीय व सिंधिया की मिलीजुली सेना को मात दी और इंदौर वापस आ गए।

इस दौरान अंग्रेज भारत में तेजी से अपने पांव पसार रहे थे। यशवंत राव के सामने एक नई चुनौती सामने आ चुकी थी। भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराना। इसके लिए उन्हें अन्य भारतीय शासकों की सहायता की जरूरत थी। वे अंग्रेजों के बढ़ते साम्राज्य को रोक देना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने नागपुर के भोंसले और ग्वालियर के सिंधिया से एकबार फिर हाथ मिलाया और अंग्रेजों को खदेड़ने की ठानी। लेकिन पुरानी दुश्मनी के कारण भोंसले और सिंधिया गद्दार ने उन्हें फिर धोखा दिया( इसी शाही परिवार का वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया आज भी भारत की संसद में मौजूद है) और यशवंतराव पुनः अकेले पड़ गए।

उन्होंने अन्य शासकों से फिर एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का आग्रह किया, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं मानी। इसके बावजूद उन्होंने अकेले दम पर अंग्रेजों को छठी का दूध याद दिलाया। 8 जून 1804 ई. को उन्होंने अंग्रेजों की सेना को धूल चटाई। फिर 8 जुलाई 1804 ई. में कोटा से उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ दिया।

◆ श्रीमंत चक्रवर्ती महाराजा यशवंतराव होळकर

11 सितंबर 1804 ई. को अंग्रेज जनरल वेलेस्ले ने लॉर्ड ल्युक को लिखा कि यदि यशवंतराव पर जल्दी काबू नहीं पाया गया तो वे अन्य शासकों के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ देंगे। इसी मद्देनजर नवंबर, 1804 ई. में अंग्रेजों ने दिग पर हमला कर दिया। इस युद्ध में भरतपुर के महाराज रंजित सिंह के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों को पुनः धूल चटाई। एक ब्रिटिश इतिहासकर के अनुसार उन्होंने 300 अंग्रेजों के नाक काट डाली थी।

अचानक रंजित सिंह ने भी यशवंतराव का साथ छोड़ दिया और अंग्रजों से हाथ मिला लिया। इसके बाद सिंधिया ने यशवंतराव के विजयी अभियान व बहादुरी देखते हुए उनसे हाथ मिलाया जिससे अंग्रेजों की चिंता बढ़ गई। लॉर्ड ल्युक ने लिखा कि यशवंतराव की सेना अंग्रेजों को मारने में बहुत आनंद लेती है। ततपश्चात अंग्रेजों ने यह फैसला किया कि यशवंतराव के साथ संधि से ही बात संभल सकती है। इसलिए उनके साथ बिना शर्त संधि की जाए। उन्हें जो चाहिए, दे दिया जाए। उनका जितना साम्राज्य है, सब लौटा दिया जाए। परन्तु यशवंतराव ने संधि से इंकार कर दिया।

व सभी शासकों को एकजुट करने में जुटे हुए थे। अंत में जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने दूसरी चाल से अंग्रेजों को मात देने की सोची। इस मद्देनजर उन्होंने 1805 ई. में अंग्रेजों के साथ संधि कर ली। अंग्रेजों ने उन्हें स्वतंत्र शासक माना और उनके सारे क्षेत्र लौटा दिए। इसके बाद उन्होंने सिंधिया के साथ मिलकर अंग्रेजों को खदेड़ने का एक और प्लान बनाया। उन्होंने सिंधिया को खत लिखा, लेकिन सिंधिया दगेबाज निकले और वह खत अंग्रेजों को दिखा दिया।

ततपश्चात पूरा मामला फिर से बिगड़ गया। यशवंतराव ने हल्ला बोल दिया और अंग्रेजों को अकेले दम पर मात देने की पूरी तैयारी में जुट गए। इसके लिए उन्होंने भानपुर में गोला बारूद का कारखाना खोला। इसबार उन्होंने अंग्रेजों को जड़ से उखाड़ने की शपथ उठा ली, इसलिए दिन-रात मेहनत करने में जुट गए थे। लगातार मेहनत करने के कारण उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा। लेकिनने इस ओर ध्यान नहीं दिया और 28 अक्टूबर 1811 ई. में सिर्फ 35 साल की उम्र में वे स्वर्ग सिधार गए।

इस तरह से एक महान शासक का अंत हो गया। एक ऐसे शासक का जिसपर अंग्रेज कभी अधिकार नहीं जमा सके। एक ऐसे शासक का जिन्होंने अपनी छोटी उम्र को जंग के मैदान में झोंक दिया। यदि भारतीय शासकों ने उनका साथ दिया होता तो शायद तस्वीर कुछ और होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और एक महान शासक यशवंतराव होलकर इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया और खो गई उनकी बहादुरी, जो आज अनजान बनी हुई है।

आपसे निवेदन है कि उनके वीरत्व को बच्चों को बताए और प्रयास करें कि इतिहास के पन्नो पर भी उन्हें वह सम्मानजनक स्थान मिले जिसके वो हकदार है।

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भगवान शिवजी के 'तांडव नृत्य' को यूरोप ने माना ब्रह्मांडीय शक्ति

11 मार्च 2021

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यरोपीय देश हिन्दू धर्म की महानता को उजागर कर रहे हैं, पर यदि हमारे भारत देश में ऐसे होता, तो सेक्युलरवादी इस पर बवाल खड़ा कर इसका विरोध करते !



भगवान शिव की पूजा धार्मिक नजरिए से महत्वपूर्ण तो है ही, विज्ञान में भी इसकी अहमियत है। ऑस्ट्रियन मूल के अमेरिकन भौतिकी वैज्ञानिक और दार्शनिक फ्रिटजॉफ कैपरा ने शिवजी के स्वरूप नटराज के तांडव नृत्य को परमाणु की उत्पत्ति और विनाश से जोड़ा है। कैपरा ने 1972 में प्रकाशित अपनी किताब ‘मेन करेंट्स ऑफ मॉडर्न थॉट’ में ‘द डांस ऑफ शिव’ लेख में शिवजी के नृत्य और परमाणु के बीच समानता की चर्चा की थी। इसके बाद 8 जून 2004 को जेनेवा स्थित सर्न के यूरोपियन सेंटर फॉर रिसर्च इन पार्टिकल फिजिक्स में तांडव नृत्य करती नटराज की 2 मीटर ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया गया। इस मूर्ति को सर्न के साथ भारत के लंबे सहयोग का जश्न मनाने के लिए दिया गया था।

1●) शिव के तांडव में विज्ञान

शिवजी के नृत्य के दो रूप हैं। एक है लास्य, जिसे नृत्य का कोमल रूप कहा जाता है। दूसरा तांडव है, जो विनाश को दर्शाता है। भगवान शिव के नृत्य की अवस्थाएं सृजन और विनाश, दोनों को समझाती हैं। शिव का तांडव नृत्य ब्रह्मांड में हो रहे मूल कणों के उतार-चढ़ाव की क्रियाओं का प्रतीक है।

यरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्‍यूक्‍लियर रिसर्च यानी सर्न लेबोरेटरी के बाहर नटराज की मूर्ति रखी हुई है। नटराज की मूर्ति और ब्रह्मांडीय नृत्य के बारे में कैपरा ने बताया है कि वैज्ञानिक उन्‍नत तकनीकों का उपयोग करते हुए कॉस्‍मिक डांस का प्रारूप तैयार कर रहे हैं। कॉस्मिक डांस यानी भगवान शिव का तांडव नृत्य, जो विनाश और सृजन दोनों का प्रतीक है।

तांडव करते हुए नटराज के पीछे बना चक्र ब्रह्मांड का प्रतीक है। उनके दाएं हाथ का डमरू नए परमाणु की उत्पत्ति और बाएं हाथ में अग्नि पुराने परमाणुओं के विनाश की ओर संकेत करती है। इससे ये समझा जा सकता है कि, अभय मुद्रा में भगवान का दूसरा दायां हाथ हमारी सुरक्षा, जबकि वरद मुद्रा में उठा दूसरा बायां हाथ हमारी जरूरतों की पूर्ति सुनिश्चित करता है।

2●) पूजन सामग्री : जल, दूध, दही, शहद और फूल

उज्जैन के धर्म विज्ञान शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाली पूजन सामग्री पर शोध किया है। शोध में दावा किया है कि न्यूक्लियर रिएक्टर और शिवलिंग में समानता होती है। ज्योतिर्लिंग से ज्यादा मात्रा में ऊर्जा निकलती है। उस ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाया जाता है।

सस्थान के वरिष्ठ धर्म वैज्ञानिक डॉ. जगदीशचंद्र जोशी के अनुसार न्यूक्लियर में आग के पदार्थ कार्डिएक ग्लाएकोसाइट्स कैल्शियम ऑक्सीलेट, फैटी एसिड, यूरेकिन, टॉक्सिन पाए जाते हैं। इनसे पैदा होने वाली गर्मी को संतुलित करने के लिए ही शिव पूजा में मदार के फूल और बिल्व पत्र चढ़ाए जाते हैं, जो कि न्यूक्लियर ऊर्जा को संतुलित रखते हैं।

धर्म विज्ञान शोध संस्थान के वैभव जोशी के अनुसार दूध में फैट, प्रोटीन, लैक्टिक एसिड, दही में विटामिन्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस और शहद में फ्रक्टोस, ग्लूकोज जैसे डाईसेक्राइड, ट्राईसेक्राइड, प्रोटीन, एंजाइम्स होते हैं वही दूध, दही और शहद शिवलिंग पर कवच बनाए रखते हैं। इसके साथ ही शिव मंत्रों से निकलने वाली ध्वनि सकारात्मक ऊर्जा को ब्रह्मांड में बढ़ाने का काम करती है। धर्म और विज्ञान पर अध्ययन करने वाली इस संस्था ने शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाली चीजों की प्रकृति और उनमें पाए जाने वाले तत्वों की वैज्ञानिक व्याख्या के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है।

3●) बिल्वपत्र से नियंत्रित होती है गर्मी

बिल्वपत्र से गर्मी नियंत्रित होती है। इसमें टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम जैसे रसायन होते हैं। इससे बिल्वपत्र की तासीर बहुत शीतल होती है। तपिश से बचने के लिए इसका उपयोग फायदेमंद होता है। बिल्वपत्र का औषधीय उपयोग करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। पेट के कीड़े खत्म होते हैं और शरीर की गर्मी नियंत्रित होती है।

4●) शिव के रूद्राक्ष में छुपा विज्ञान

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्रा के अनुसार शिवपुराण की विद्येश्वर संहिता में बताया गया है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिवजी के आंसुओं से हुई है। वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार रूद्राक्ष में पाए जाने वाले गुण मनुष्य के नर्वस सिस्टम को दुरुस्त रखते हैं।

रद्राक्ष में केमो फॉर्मेकोलॉजिकल नाम का गुण पाया जाता है। इस गुण से ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है। इससे दिल की बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। रुद्राक्ष में आयरन, फॉस्फोरस, एल्युमीनियम, कैल्शियम, सोडियम और पोटैशियम गुण पर्याप्त मात्रा में होते हैं। रुद्राक्ष के ये गुण शरीर के नर्वस सिस्टम को

रखते हैं। स्त्रोत : दैनिक भास्कर

हमारी भारतीय संस्कृति की कितनी महिमा है और हमारे भगवान कितने महान हैं, वे विदेश के लोग भी जानने लगे हैं। लेकिन कुछ भारतवासी अभीतक समझ नहीं पा रहे हैं, अभी समय आ गया है कि हमारी संस्कृति की महिमा समझकर उसका अनुसरण एवं प्रचार-प्रसार करें।

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दुनिया मे जिसका इलाज नही था वो खतरनाक रोग मिटा शिव मंत्र से

10 मार्च 2021

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चिकित्सा वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि कुछ आंतरिक बीमारियाँ जिनका इलाज आज तक मेडीकल साइंस में उपलब्ध नहीं है, उनमें केवल ૐ मंत्र के नियमित जप से आश्चर्यजनक रूप से कमी देखी गयी है। खासकर पेट, मस्तिष्क और हृदय सम्बन्धी बीमारियों में ૐ का जप रामबाण औषधि की तरह काम करता है।



आज आपको एक ऐसा अनुभव बतायेंगे जिससे आप भी चौक जायेंगे, स्वयं उस रोग के विशेषज्ञ होते हुए भी वे खुद का रोग  नही मिटा पाए लेकिन शिव मंत्र जप करने से मिट गया।

स्किन रोग विशेषज्ञ डा .जगदीप सिंह ओबराय ने बताया कि मैं स्वयं ऑल इंडिया इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल साइंस व पीजीआई से एमडी डरमैटोलॉजिस्ट हूं । 

मैं स्वयं इसी रोग का विशेषज्ञ हूं । हम सभी डाक्टर मानते हैं कि इस बीमारी का पूरी दुनिया में कोई इलाज नहीं है । मैंने भारत और विश्व के अनेक डाक्टरों से अपना इलाज कराया लेकिन मेरा रोग ठीक नहीं हुआ क्योंकि इसका इलाज हो ही नहीं सकता । 10 वर्ष पहले जब मैंने पूज्य गुरुजी से भगवान शिव की अभिमंत्रित औषधि ग्रहण की तो मेरा असाध्य सिबोरिक डरमोटाइटिस व उससे होने वाले सभी रोग भी सदा के लिए समाप्त हो गए । 

जो डाक्टर भगवान शिव की अभिमंत्रित औषधि का मजाक उड़ा रहे थे वे मुझे पूर्णतः स्वस्थ देखकर अचंभित रह गए । हम डाक्टरों को कभी सिखाया ही नहीं गया कि मेडिकल साइंस के पार भी एक शक्तिशाली विज्ञान कार्य करता है । यह महाआश्चर्य की बात है कि जिस गंभीर रोग का इलाज पूरी दुनिया में नहीं है और जिससे मैं 25 वर्षों से पीड़ित था वह जड़ से समाप्त हो गया है ।

इस्लाम-ईसाई धर्म में भी मुक्ति का मार्ग नहीं है - एंड्रेयु ब्रिजेन

एंड्रेयु ब्रिजेन जोकि इंग्लैंड के पश्चिमी लेस्टर के सांसद हैं उनका कहना है कि सनातन धर्म में जिस मुक्ति की बात की गई है वह इस्लाम और ईसाई धर्म में भी नहीं है।  भगवान शिव एवं माँ दुर्गा के मंत्रों में सचमुच अकल्पनीय शक्ति है ।

सनातन धर्म के बीज मंत्रों से वे रोग और कष्ट भी पूर्णतः समाप्त हो जाते हैं जिनका पूरी दुनिया के धर्मों और मेडिकल साइंस में भी कोई समाधान नहीं है ।

मंत्रविज्ञान में थोड़ा सा ही प्रवेश पाकर वैज्ञानिक दंग रह गये हैं। मंत्रों में गुप्त अर्थ और उनकी शक्ति होती है। एक छोटे से सिम से जुड़कर विदेश में आराम से बात कर सकते है। जब फोन के बटन दबाते हो तो वह कृत्रिम उपग्रह से जुड़कर अमेरिका में घंटी बजा देता है, यंत्र में इतनी शक्ति है तो मंत्र में तो इससे कई गुना ज्यादा शक्ति है। क्योंकि यंत्र तो मानव के मन ने बनाया है, जबकि मंत्र की रचना किसी ऋषि ने भी नहीं की है। मंत्र तो ऋषियों से भी पहले के हैं। उन्होंने मंत्र की अनुभूतियाँ की हैं।

भारतवासी अपनी संस्कृति की महानता समजे उसमे मंत्रों की महिमा जानकर जीवन स्वस्थ, सुखी व सम्मानित जीवन जी सकते हैं।

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महाशिवरात्रि का ऐसा है इतिहास, इसदिन शिवजी को ऐसे करें प्रसन्न

महाशिवरात्रि का ऐसा है इतिहास, इसदिन शिवजी को ऐसे करें प्रसन्न

09 मार्च 2021

azaadbharat.org

तीनों लोकों के मालिक भगवान शिव का सबसे बड़ा त्यौहार महाशिवरात्रि है ।महाशिवरात्रि भारत के साथ कई अन्य देशों में भी धूम-धाम से मनाई जाती है ।



‘स्कंद पुराण के ब्रह्मोत्तर खंड में शिवरात्रि के उपवास तथा जागरण की महिमा का वर्णन है : ‘शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है । उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और भी दुर्लभ है । लोक में ब्रह्मा आदि देवता और वशिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं । इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य होता है ।

शिवलिंग का प्रागट्य!

पराणों में आता है कि ब्रह्मा जी जब सृष्टि का निर्माण करने के बाद घूमते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो देखा कि भगवान विष्णु आराम कर रहे हैं। ब्रह्मा जी को यह अपमान लगा ‘संसार का स्वामी कौन?’ इस बात पर दोनों में युद्ध की स्थिति बन गई तो देवताओं ने इसकी जानकारी देवाधिदेव भगवान शंकर को दी।

भगवान शिव युद्ध रोकने के लिए दोनों के बीच प्रकाशमान शिवलिंग के रूप में प्रकट हो गए। दोनों ने उस शिवलिंग की पूजा की। यह विराट शिवलिंग ब्रह्मा जी की विनती पर बारह ज्योतिर्लिंगों में विभक्त हुआ। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को  शिवलिंग का पृथ्वी पर प्राकट्य दिवस महाशिवरात्रि कहलाया।

बारह ज्योतिर्लिंग (प्रकाश के लिंग) जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र हैं। वे स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है "स्वयं उत्पन्न"।

1. सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के सौराष्ट्र में स्थापित है।

2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है।

3. महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।

4. ॐकारेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदान देने हेतु यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।

5. नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।

6. बैजनाथ बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।

7. भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।

8. त्र्यंम्बकेश्वर (महाराष्ट्र) नासिक से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।

9. घुश्मेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग।

10. केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मील दूरी पर स्थित है।

11. काशी विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।

12. रामेश्वरम्‌ त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।

दसरी पुराणों में ये कथा आती है कि सागर मंथन के समय कालकेतु विष निकला था उस समय भगवान शिव ने संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा करने के लिये स्वयं ही सारा विषपान कर लिया था। विष पीने से भोलेनाथ का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ के नाम से पुकारे जाने लगे। पुराणों के अनुसार विषपान के दिन को ही महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा।

कई जगहों पर ऐसा भी वर्णन आता है कि शिव पार्वती का उस दिन विवाह हुआ था इसलिए भी इस दिन को शिवरात्रि  के रूप में मनाने की परंपरा रही है।

पराणों अनुसार ये भी माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया।

शिवरात्रि वैसे तो प्रत्येक मास की चतुर्दशी (कृष्ण पक्ष) को होती है परन्तु फाल्गुन (कृष्ण पक्ष) की शिवरात्रि (महाशिवरात्रि) नाम से ही प्रसिद्ध है।

महाशिवरात्रि से संबधित पौराणिक कथा!!

एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?

उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था  । पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया

ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरी। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।

शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।

मगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।

मग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'।

परंपरा के अनुसार, इस रात को ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है जिससे मानव प्रणाली में ऊर्जा की एक शक्तिशाली प्राकृतिक लहर बहती है। इसे भौतिक और आध्यात्मिक रूप से लाभकारी माना जाता है इसलिए इस रात जागरण की सलाह भी दी गयी है ।

शिवरात्रि व्रत की महिमा!!

इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो जन करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है ।

महाशिवरात्रि व्रत की विधि!!

इस व्रत में चारों पहर में पूजन किया जाता है। प्रत्येक पहर की पूजा में "ॐ नम: शिवाय" का जप करते रहना चाहिए। अगर शिव मंदिर में यह जप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर जाकर इस मंत्र का जप किया जा सकता है । चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जपों से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उपवास की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी अर्थात् महाशिवरात्रि पृथ्वी पर शिवलिंग के प्राकट्य का दिवस है और प्राकृतिक नियम के अनुसार जीव-शिव के एकत्व में मदद करनेवाले ग्रह-नक्षत्रों के योग का दिवस है ।  इस दिन रात्रि-जागरण कर ईश्वर की आराधना-उपासना की जाती है । ‘शिव से तात्पर्य है ‘कल्याणङ्क अर्थात् यह रात्रि बडी कल्याणकारी रात्रि है ।

महाशिवरात्रि का पर्व अपने अहं को मिटाकर लोकेश्वर से मिलने के लिए है । आत्मकल्याण के लिए पांडवों ने भी शिवरात्रि महोत्सव का आयोजन किया था, जिसमें सम्मिलित होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारिका से हस्तिनापुर आये थे । जिन्हें संसार से सुख-वैभव लेने की इच्छा होती है वे भी शिवजी की आराधना करते हैं और जिन्हें सद्गति प्राप्त करनी होती है अथवा आत्मकल्याण में रुचि है वे भी शिवजी की आराधना करते हैं ।

शिवपूजा में वस्तु का मूल्य नहीं, भाव का मूल्य है । भावो हि विद्यते देवः । आराधना का एक तरीका यह है कि उपवास रखकर पुष्प, पंचामृत, बिल्वपत्रादि से चार प्रहर पूजा की जाये । दूसरा तरीका यह है कि मानसिक पूजा की जाये ।

 हम मन-ही-मन भावना करें :          

ज्योतिर्मात्रस्वरूपाय  निर्मलज्ञानचक्षुषे । नमः शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे लिंगमूर्तये ।।

‘ज्योतिमात्र (ज्ञानज्योति अर्थात् सच्चिदानंद, साक्षी) जिनका स्वरूप है, निर्मल ज्ञान ही जिनके नेत्र है, जो लिंगस्वरूप ब्रह्म हैं, उन परम शांत कल्याणमय भगवान शिव को नमस्कार है ।

‘ईशान संहिता में भगवान शिव पार्वतीजी से कहते हैं : फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथिः स्याच्चतुर्दशी । तस्या या तामसी रात्रि सोच्यते शिवरात्रिका ।।तत्रोपवासं कुर्वाणः प्रसादयति मां ध्रुवम् । न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया । तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः ।।

‘फाल्गुन के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को आश्रय करके जिस अंधकारमयी रात्रि का उदय होता है, उसीको ‘शिवरात्रि' कहते हैं । उस दिन जो उपवास करता है वह निश्चय ही मुझे संतुष्ट करता है । उस दिन उपवास करने पर मैं जैसा प्रसन्न होता हूँ, वैसा स्नान कराने से तथा वस्त्र, धूप और पुष्प के अर्पण से भी नहीं होता ।

शिवरात्रि व्रत सभी पापों का नाश करनेवाला है और यह योग एवं मोक्ष की प्रधानतावाला व्रत है ।

महाशिवरात्रि बड़ी कल्याणकारी रात्रि है । इस रात्रि में किये जानेवाले जप, तप और व्रत हजारों गुणा पुण्य प्रदान करते हैं ।

सकंद पुराण में आता है : ‘शिवरात्रि व्रत परात्पर (सर्वश्रेष्ठ) है, इससे बढकर श्रेष्ठ कुछ नहीं है । जो जीव इस रात्रि में त्रिभुवनपति भगवान महादेव की भक्तिपूर्वक पूजा नहीं करता, वह अवश्य सहस्रों वर्षों तक जन्म-चक्रों में घूमता रहता है ।

यदि महाशिवरात्रि के दिन ‘बं' बीजमंत्र का सवा लाख जप किया जाय तो जोड़ों के दर्द एवं वायु-सम्बंधी रोगों में विशेष लाभ होता है ।

वरत में श्रद्धा, उपवास एवं प्रार्थना की प्रधानता होती है । व्रत नास्तिक को आस्तिक, भोगी को योगी, स्वार्थी को परमार्थी, कृपण को उदार, अधीर को धीर, असहिष्णु को सहिष्णु बनाता है । जिनके जीवन में व्रत और नियमनिष्ठा है, उनके जीवन में निखार आ जाता है । स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित "ऋषि प्रसाद पत्रिका"

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महिला दिवस पर देशभर में क्यों रैलियां निकाली गई और क्यों ज्ञापन दिए गए ?

08 मार्च 2021

azaadbharat.org

 अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर जगह-जगह पर महिलाओं के सम्मान में समारोह हो रहा था लेकिन नारी उत्तम संस्कार देनेवाले संगठन "महिला उत्थान मंडल" ने आज कुछ अलग ही अंदाज में महिला दिवस मनाया ।

आज ट्वीटर, फेसबुक, वेबसाइट आदि पर देखा गया तो महिला उत्थान मंडल द्वारा देशभर में बापू आशारामजी की शीघ्र रिहाई की मांग करते हुए विभिन्न स्थानों पर रैलियां निकाली गई, धरने दिए गए तथा कलेक्टर को राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम से ज्ञापन दिए गए ।



महिला मंडल के सदस्यों ने बातचीत के दौरान बताया कि निर्भया कांड के बाद नारियों की सुरक्षा हेतु बलात्कार-निरोधक नये कानून बनाये गये । परंतु दहेज विरोधी कानून की तरह इनका भी भयंकर दुरुपयोग हो रहा है ।

जसे दहेज विरोधी अधिनियम में संशोधन किया गया ऐसे ही POCSO कानून में भी संशोधन की सख्त आवश्यकता है।

 कलेक्टर को ज्ञापन देते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दू संत आशारामजी बापू सदा हर वर्ग, हर प्राणी को ईश्वरीय सुख-शांति, आत्मिक निर्विकारी आनंद पहुँचाने का अथक प्रयास करते रहे हैं । समाज, संस्कृति और विश्वसेवा के दैवीकार्य में बापू आशारामजी का योगदान अद्वितीय रहा है ।

 बापू आसारामजी के ओजस्वी जीवन एवं उपदेशों से असंख्य लोगों ने व्यसन, मांस आदि बड़ी सहजता से छोड़कर संयम-सदाचार का रास्ता अपनाया है ।


 85 वर्षीय वयोवृद्ध संत, जिनको करोड़ों लोगों के जीवन में संयम-सदाचार लाने व उन्हें सत्मार्ग के रास्ते चलाने तथा करोड़ों दुःखियों के चेहरों पर मुस्कान लाने का श्रेय जाता है, उनको सह-सम्मान रिहा किया जाना चाहिये ।

सम्पादक, राजनेता, फिल्म स्टार, आतंकवादी आदि को भी न्यायालय द्वारा जमानत मिल जाती है लेकिन संत आशारामजी बापू को न आजतक एक दिन की भी पैरोल दी गई न जमानत जबकि उनके जोधपुर केस में आये जजमेंट में साफ लिखा है कि बापू के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य ( Direct Evidence) नहीं है और POCSO कानून के अंतर्गत चल रहे इस केस में लड़की के उम्र संबंधी अलग-अलग सरकारी दस्तावेजों में भी विवधता पाई गई है।

एक आतंकवादी के साथ भी उदारता का व्यवहार करने वाला हमारा कानून सिर्फ आरोप के आधार पर एक सच्चे संत को कबतक जेल में रखेगा ??

आज महिला दिवस पर महिला उत्थान मंडल की करोडों महिलाओं न्यायालय एवं सरकार से निवेदन करती है कि विश्व में भारतीय संस्कृति की ध्वजा फहरानेवाले, आध्यात्मिक क्रांति के प्रणेता, संयममूर्ति संत आसारामजी बापू की समाज को अत्यंत आवश्यकता है । उनको जल्द रिहा किया जाए ।

 मडल ने आगे बताया कि आज भी देश की असंख्य महिलाएँ उनकी निर्दोषता के समर्थन में सड़कों पर आकर उनकी रिहाई की माँग कर रही हैं तो आपको इस बात पर अवश्य विचार करना चाहिए कि आरोप लगानेवाली दो महिलाएँ सच्ची हैं या हम करोड़ों महिलाओं का अनेक वर्षों का अनुभव सच्चा है ।

उन्होंने आगे कहा कि हिन्दू संत आसाराम बापू केस में आज तक न कोई ठोस सबूत मिला है और न ही कोई मेडिकल आधार है...!! बल्कि उन्हें षड़यंत्र करके फंसाने के सैकड़ों प्रमाण सामने आये हैं ।

 आरोप लगानेवाली लड़की की मेडिकल जाँच करनेवाली डॉ. शैलजा वर्मा ने अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा कि “लड़की के शरीर पर जरा सा भी खरोंच का निशान नहीं था और न ही प्रतिरोध के कोई निशान थे ।”

 परसिद्ध न्यायविद् डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने केस अध्ययन कर बताया कि ‘‘लड़की के फोन रिकॉर्ड्स से पता लगा कि जिस समय पर वह कहती है कि वह कुटिया में थी, उस समय वह वहाँ थी ही नहीं और बापू आसारामजी भी उस समय अपनी कुटिया में न होकर अपने भक्तों के बीच सत्संग कर रहे थे।

 ‘अखिल भारतीय नारी रक्षा मंच’ की अध्यक्षा श्रीमती रुपाली दुबे ने कहा : ‘‘ हिन्दू संत आसाराम बापू से लाभान्वित हुए लोगों में महिलाओं की संख्या भी करोड़ों में है लेकिन विडम्बना है कि जिन बापू आसारामजी ने नारी सशक्तिकरण एवं महिला जागृति के लिए महिला उत्थान मंडलों की स्थापना की, गर्भपात रोको अभियान चलवाया, नारियों के शोषण के खिलाफ हमेशा आवाज उठायी, उन्हीं साजिशकर्ताओं का मोहरा बनी एक-दो महिलाओं के झूठे आरोपों के आधार पर सालों से एक निर्दोष संत को जेल में रखा गया है ।

 हिन्दू संत आसारामजी बापू पर लगे आरोपों में से एक भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ और न ही किसी जाँच में ऐसा कुछ सामने आया कि जिसके आधार पर 83 वर्ष की उम्र में ‘ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया’ की भयंकर बीमारी होने के बावजूद उनको जेल में रखा जाये। पिछले सात वर्षों से उन्हें जमानत और पैरोल ना देना उनके संवैधानिक मौलिक अधिकारों का हनन है, जोकि बड़ा अपवाद और आपत्तिकारक है ।

गौरतलब है कि जब से हिन्दू संत आसाराम बापू जेल में गए हैं तबसे उनके करोड़ों भक्त समय-समय पर न्यायालय और सरकार से उनकी रिहाई की माँग कर रहे हैं । कभी POCSO  कानून के विरुद्ध रैली निकाल कर तो कभी सोशल मीडिया का सहारा लेकर ट्विटर पर ट्रेंड चलाकर।

अब देखना ये है कि एक लड़की के कहने पर विश्वविख्यात् हिन्दू संत आसारामजी बापू को जेल में रखने वाली सरकार इन लाखों लड़कियों की गुहार कब सुनेगी ?

जिनकी सिर्फ एक ही मांग है कि.. ‘निर्दोष हिन्दू संत आसारामजी बापू की शीघ्र रिहाई हो सह-सम्मान।'


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