Thursday, February 10, 2022

झूठे केस में फंसाए लोगों को मुआवजा की याचिका पर सुप्रीम ने मांगा केंद्र से जवाब

 

24 मार्च 2021

azaadbharat.org

महिलाओं की सुरक्षा के लिये दहेज और बलात्कार निरोधक में सख्ती बनाकर कानून बने हैं पर कुछ लड़कियों द्वारा उस कानून का पैसा ऐठने, बदला लेने की भावना अथवा साजिस के तहत इस कानून का अंधाधुंध दुरुपयोग किया जा रहा है। वैसे ही SC/ST एक्ट आदि कानूनों में भी निर्दोषों को फंसाने के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है।



आपको बता दे कि गलत तरीके से कानूनी मामलों में फंसाए गए लोगों के लिए मुआवजे की गाइडलाइन बनाने की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने एग्जामिन करने का फैसला किया है। बीजेपी के एक अन्य नेता कपिल मिश्रा की ओर से भी अर्जी दाखिल की गई थी,जिसे अश्विनी उपाध्याय की याचिका के साथ टैग कर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को एग्जामिन करने का फैसला किया है, जिसमें गलत तरीके से केस में फंसाए गए लोगों को मुआवजा के लिए गाइडलाइंस बनाए जाने का निर्देश की मांग की गई है। अश्विनी उपाध्याय ने यह याचिका दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी पर सुनवाई के दौरान जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली बेंच ने मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है।

इस मामले में बीजेपी के एक अन्य नेता कपिल मिश्रा की ओर से भी अर्जी दाखिल की गई थी,जिसे अश्विनी उपाध्याय की पेंडिंग याचिका के साथ टैग कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी उपाध्याय की ओर से 11 मार्च को अर्जी दाखिल कर फर्जी केस में फंसाने के मामले में ऐसे विक्टिम को मुआवजा दिए जाने के लिए गाइडलाइंस के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई थी।

सुप्रीम कोर्ट में यूपी के विष्णु तिवारी केस का हवाला दिया गया जिन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरी करते हुए कहा कि उन्हें आपसी झगड़े के कारण रेप और एससीएसटी केस में फंसाया गया वह 20 साल जेल में रहा था। सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई थी कि केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि वह ऐसे विक्टिम को मुआवजा देने के लिए गाइडलाइंस तैयार करें और इस बाबत लॉ कमिशन की रिपोर्ट को लागू करें।

हाई कोर्ट की डबल बेंच ने अपने फैसले में कहा कि विष्णु तिवारी को जमीन विवाद के कारण रेप और जातिसूचक शब्द कहने के मामले में फंसाया गया था। अपनी अर्जी में याचिकाकर्ता ने कहा कि विष्णु तिवारी जैसे विक्टिम को मुआवजा दिए जाने के लिए गाइडलाइंस की जरूरत है। इसके लिए लॉ कमिशन की 277 रिपोर्ट को लागू किया जाए। ऐसे विक्टिम जिन्हें फर्जी केस में फंसाया जाता है ,उनको मुआवजा देने के लिए गाइडलाइंस बनाए जाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए और राज्यों को निर्देश दिया जाए कि वह गाइडलाइंस का पालन करें। बाद में कपिल मिश्रा ने भी अर्जी दाखिल की है दोनों याचिका को साथ में जोड़ दिया गया है। स्त्रोत : नवभारत टाइम्स

आपको बता दे कि केवल विष्णु तिवारी को ही फर्जी केस में फंसाकर सालों से जेल में रखा गया था ऐसा नही है ऐसे तो हजारों केस होंगे हो निर्दोष होते हुए भी उनको निचली अदालत से सजा हुई और ऊपरी कोर्ट ने निर्दोष बरी किया लेकिन उनको इतने साल प्रताड़ना जेलनि पड़ी, परिवार बिखर गया, उनका पैसे, समय व इज्जत गई उसकी भरपाई कौन करेगा?

आपको बता दे कि आम जनता की तरह हिंदू धर्म के मुख्य साधु-संतों को बदनाम करने के लिए भी झूठे आरोप लगाए जाते हैं जैसे कि सौराष्ट्र (गुजरात) के श्री केशवानन्द स्वामी ऊपर यौन शोषण का झूठा आरोप थोप कर बारह साल की जेल की सजा दी। सात साल जेल भोगने के बाद ऊपरी कोर्ट से निर्दोष साबित हुए।

शंकराचार्य अमृतानन्द को झूठे केस में जेल भेज दिया और भयंकर यातनाएं दी और 9 साल तक जेल में रखा गया। स्वामी असीमानंद, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर आदि को सालों तक जेल में रखने के बाद बरी किया गया।

ऐसे ही 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू पर बलात्कार के झूठे आरोप लगाकर जेल भेजा गया है क्योंकि उन्होंने धर्मांतरण विरोध में कार्य किया, देश समाज और संस्कृति की सेवा 50 साल तक सेवा की जो राष्ट्र विरोधी ताकतों को सहन नही हुआ और उनके खिलाफ षडयंत्र करके मीडिया में बदनाम करवाया और जेल भिजवाया और 7 साल में एक दिन भी जमानत नही दी गई।

बलात्कार कानून की आड़ में महिलाएं आम नागरिक से लेकर सुप्रसिद्ध हस्तियों, संत-महापुरुषों को भी ब्लैकमेल कर झूठे बलात्कार के आरोप लगाकर जेल में डलवा रही हैं । फर्जी केस करने वालों पर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए, निर्दोष को मुआवजा मिलना चाहिए और इन कानूनों में संशोधन होना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।


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टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था भगत सिंह का वामपंथ

23 मार्च 2021

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अमर क्रांतिकारी भगत सिंह को वामपंथी अक्सर अपने गुट का दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उन्हें ऐसे चित्रित किया जाता है, जैसे वो वामपंथ के अनुयायी रहे हों और वो वही वामपंथ है, जो आज जेएनयू में कुछ ‘छात्रों’ द्वारा और देश के कई हिस्सों में नक्सलियों द्वारा फॉलो किया जाता है। देश के लिए बलिदान देने वाले एक राष्ट्रवादी को इस तरह से एक संकीर्ण विचारधारा के भीतर बाँधना वामपंथियों की एक चाल है।



जैसा कि हम जानते हैं, भगत सिंह मात्र 23 वर्ष की उम्र में भारत माता के लिए शूली पर चढ़ गए थे। इतने कम उम्र में क्रांतिकारी, विद्वान और चिंतक होने का अर्थ है कि उन्होंने काफी कम समय में देश-दुनिया की कई विचारधाराओं को पढ़ा और कई क्रांतिकारियों का अध्ययन किया।

भगत सिंह के नास्तिक होने की बात को ऐसे प्रचारित किया जाता है, जैसे वे हिन्दू धर्म से और देवी-देवताओं से घृणा करते हों। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। वामपंथी स्वतंत्रता सेनानियों में भी विचाधारा के हिसाब से बँटवारा करते हैं। वीर सावरकर उनके लिए मजाक का विषय हैं और उन्हें ‘माफ़ी माँगने वाला’ बताया जाता है। यहाँ हम इस प्रपंच पर बात करेंगे, लेकिन उससे पहले कुछेक घटनाओं को देखते हैं।

शुरुआत उसी संगठन के मैनिफेस्टो से क्यों न करें, जिसके भगत सिंह अहम सदस्य थे? हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के मैनिफेस्टो में ही लिखा हुआ था कि वे भारत के समृद्ध इतिहास के महान ऋषियों के नक्शेकदम पर चलेंगे। इसमें कहा गया था कि कमजोर, डरपोक और शक्तिहीन व्यक्ति न तो अपने लिए और न ही देश के लिए कुछ कर सकता है। क्या वामपंथी इस संगठन को भी गाली देंगे, जिसके तहत भगत सिंह काम करते थे?


वीर सावरकर से काफी प्रभावित थे भगत सिंह

अंग्रेजों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को ‘सिपाही विद्रोह’ साबित करने की भरसक कोशिश की, लेकिन वीर सावरकर ने ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक पुस्तक के जरिए इस धारणा को तोड़ दिया। क्या आपको पता है कि इस पुस्तक का एक संस्करण भगत सिंह के क्रांतिकारी दल ने भी प्रकाशित किया था?

उनके सहयोगी राजाराम शास्त्री ने कहा था कि वीर सावरकर की इस पुस्तक ने भगत सिंह को काफी प्रभावित किया था। उन्होंने राजाराम शास्त्री को भी ये पुस्तक पढ़ने के लिए दी और फिर प्रकाशन के लिए योजना बनाई। उन्होंने ही प्रेस का प्रबंध किया और रात को प्रूफ रीडिंग के लिए शास्त्री के पास वो पन्ने भेजते और सुबह ले जाते। सुखदेव ने भी इस काम में बखूबी साथ दिया था। राजर्षि टंडन ने इसकी पहली प्रति खरीदी।

यहाँ तक कि 1929-30 में भगत सिंह और उनके साथियों की गिरफ़्तारी के समय भी अंग्रेजों को उनके पास से वीर सावरकर की पुस्तक की काफी प्रतियाँ मिलीं। लेकिन, आज के वामपंथी भगत सिंह को तो गले लगाते हैं, लेकिन वीर सावरकर के बारे में क्या सोचते हैं, ये किसी से छिपा नहीं है। जब भाजपा ने महाराष्ट्र चुनाव से पहले उन्हें भारत रत्न देने का वादा किया तो सीपीआई इसका विरोध करने वाली पहली पार्टी थी।

सीपीआई ने कहा था कि एक मिथक बना दिया गया है कि सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और राष्ट्रवादी थे। पार्टी ने आरोप लगाया था कि एक साजिश के तहत सावरकर जैसे ‘सांप्रदायिक व्यक्ति’ को आइकॉन बनाया जा रहा है। उन्हें ‘डरपोक’ लिखा गया। कॉन्ग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने जब सावरकर के योगदानों पर चर्चा की तो सीपीआई ने उन पर भी निशाना साधा। अब जब यही वामपंथी भगत सिंह को गले लगाने का नाटक करें तो इसे क्या कहा जाए?

अर्थात, वामपंथी कहते हैं कि सावरकर ‘सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी’ हैं, लेकिन भगत सिंह ने वीर सावरकर की पुस्तकों को न सिर्फ छपवाया बल्कि वो इससे काफी प्रभावित भी थे- इस पर वो कन्नी काट जाते हैं। ड्रामेबाज वामपंथियों का ये दोहरा रवैया बताता है कि भगत सिंह को ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग का हिस्सा बताने के लिए वो पागल हो रहे हैं। जिनकी श्रद्धा भारत से ज्यादा चीन के लिए है, वो देश के बलिदानियों पर भला क्यों गर्व करें?

लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं वामपंथी?

भगत सिंह ने ब्रिटिश एएसपी जॉन सॉन्डर्स का वध क्यों किया था? भारत की राजनीतिक स्थिति की समीक्षा के लिए लंदन से साइमन कमीशन को भेजा गया। भारत में ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय ने इसका प्रचंड विरोध किया। लाहौर में इसके विरोध के दौरान उन्हें लाठी लगी। इसके कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। इसने भगत सिंह सहित ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के सभी क्रांतिकारियों को आक्रोशित कर दिया।

लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही भगत सिंह और उनके साथियों ने अपनी जान को दाँव पर लगाया था। लाला लाजपत राय की मृत्यु के ठीक 1 महीने बाद भगत सिंह ने अपना बदला पूरा किया और आर्य समाज के नेता रहे लालाजी को अपनी तरफ से श्रद्धांजलि दी। दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने

पुस्तक ‘शहीद भगत सिंह- क्रांति में एक प्रयोग’ में लिखा है कि भगत सिंह, लाला लाजपत राय के समर्पण और देशसेवा के सामने अपना सिर झुकाते थे।

उन्होंने लिखा है कि कैसे जब भगत सिंह ने उस प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय को अंग्रेजों की लाठी खा कर जमीन पर गिरता हुआ देखा तो उनके अंदर जालियाँवाला बाग़ नरसंहार के बाद जो गुस्सा भर गया था वो और धधक उठा। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि गोरे एक भलेमानुष के साथ ऐसा व्यवहार कर सकते हैं। उनकी मृत्यु के बाद इन क्रांतिकारियों की जो बैठक हुई, उसमें ऐसा गम का माहौल था जैसे उनके घर के किसी बुजुर्ग की हत्या कर दी गई हो।

अब वापस उन वामपंथियों पर आते हैं, जो भगत सिंह को तो अपना मानने का नाटक करते हैं, लेकिन उन्होंने किसके लिए बलिदान दिया- इससे वो अनजान बन कर रहना चाहते हैं और लोगों को भी अनजान रखना चाहते हैं। लेकिन, वो लोग लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं, जरा वो देखिए। इतिहासकार विपिन चंद्रा ने अपनी पुस्तक ‘India’s Struggle for Independence, 1857-1947‘ में उन्हें लिबरल और मॉडरेट कम्युनिस्ट साबित करने का प्रयास किया है।

लाला लाजपत राय एक राष्ट्रवादी थे और हिंदुत्व को लेकर उनकी श्रद्धा अगाध थी। वो आर्य समाजी थे। भारत में हिंदुत्व भावना को पुनर्जीवित कर लोगों में अपने प्राचीन इतिहास के प्रति गौरव जगाने वालों में तिलक और लाला लाजपत राय का नाम आता है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और छत्रपति शिवाजी का चरित्र लिखा। लाला लाजपत राय वेदों को हिन्दू धर्म की रीढ़ मानते थे। वो कहते थे कि विश्व के सभी धर्मों में हिन्दू धर्म सबसे ज्यादा सहिष्णु है।

जबकि आज के वामपंथी असहिष्णुता की ढपली बजाते हैं। भगत सिंह के गुरु लाला लाजपत राय जिस हिन्दू धर्म को विश्व को सबसे ज्यादा सहिष्णु बताते थे, वामपंथी उसे गाली देते हैं। जिन वेदों को भी हिंदू धर्म की रीढ़ मानते थे, उन्हें वामपंथी ब्राह्मणों का ‘प्रोपेगेंडा’ कहते हैं। जब गुरु के लिए वामपंथियों के मन में कोई सम्मान नहीं है तो उसके शिष्य के लिए कैसे हो सकता है? क्यों न इसे ड्रामा माना जाए?

जनेऊधारी आजाद और भगत सिंह

महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की तस्वीरों में आपने उन्हें नंगे बदन मूँछों पर ताव देते हुए और जनेऊ व धोती पहने हुए देखा होगा। वो ब्राह्मण थे। वो वाराणसी में संस्कृत के छात्र थे और उन्होंने इस भाषा के ज्ञान के कारण हिन्दू ग्रंथों का भी अध्ययन किया। भगत सिंह का उनके साथ अच्छा सम्बन्ध था। देश के लिए दोनों ने साथ मिल कर काम भी किया। लेकिन कभी भगत सिंह को इससे दिक्कत नहीं हुई।

वहीं आज के वामपंथी जनेऊ के बारे में क्या सोचते हैं? आज यही वामपंथी यज्ञोपवीत को अत्याचार का प्रतीक मानते हैं। वो कहते हैं कि ये ब्राह्मणों के खुद को श्रेष्ठ दिखाने की निशानी है। क्या भगत सिंह ने कभी चंद्रशेखर आजाद से ऐसा कहा होगा? बिलकुल नहीं। फिर किस मुँह से ये वामपंथी खुद की विचारधारा के भीतर भगत सिंह को बाँधने की कोशिश करते हैं? वीर सावरकर, लाला लाजपत राय और चंद्रशेखर आजाद के विचारों का ये सम्मान क्यों नहीं करते?

जबकि इन तीनों के प्रति ही भगत सिंह की अपार श्रद्धा थी। भगत सिंह के पार्थिव शरीर को जलाने की अंग्रेजों ने कोशिश की थी, गुपचुप तरीके थे। लेकिन, बाद में परिवार ने पूरे वैदिक तौर-तरीके से रावी नदी के किनारे उनके शरीर को मुखाग्नि दी। क्या ये वामपंथी भगत सिंह के परिवार को भी कोसेंगे? उनका परिवार को स्वामी दयानन्द सरस्वती के आर्य समाज आंदोलन से काफी ज्यादा प्रभावित था।

आज वाले वामपंथी नहीं थे भगत सिंह, उनके कुछ सवाल थे

भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह ने दयानन्द सरस्वती को सुना था और वो उनसे खासे प्रभावित थे। वो माँस-शराब का सेवन नहीं करते थे, संध्या वंदन करते थे और यज्ञोपवीत धारण करते थे। उन्होंने एक पुस्तक लिख कर दिखाया कि कैसे सिख गुरु भी वेदों की शिक्षाओं को मानते थे। ‘ईश्वर की उपस्थिति’ और भारत के बड़े-बड़े संतों ने चर्चा की है और इसका मतलब ये नहीं हो जाता कि वे सारे वामपंथी हैं।

भगत सिंह का वामपंथ टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था। 1962 के युद्ध में चीन का समर्थन करने वाले और हालिया भारत-चीन तनाव के दौरान चीन की निंदा तो दूर, अपनी ही सरकार के स्टैंड का विरोध करने वाले वामपंथियों को समझना चाहिए कि भगत सिंह ने ईश्वर के अस्तित्व पर चिंतन किया था और अपने अध्ययन और विचारों के हिसाब से लेख लिखे, जिनके आधार पर उन्हें वामपंथी ठहराना सही नहीं है।

भगत सिंह ने कभी ऐसा नहीं लिखा कि वो हिन्दू धर्म को नहीं मानते या फिर वो हिन्दू देवी-देवताओं से घृणा करते हैं। उनके पास बस कुछ सवाल थे, जो उनके लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ में सामने आता है। उनके विचार था कि फाँसी के बाद उनकी ज़िंदगी जब समाप्त होगी, उसके बाद कुछ नहीं है। वो पूर्ण विराम होगा। वे पुनर्जन्म को नहीं मानते थे। वो प्राचीन काल में ईश्वर पर उठाने वाले चार्वाक की भी चर्चा करते थे। उन्होंने लिखा है:

“मेरे बाबा, जिनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ, एक रूढ़िवादी आर्य समाजी हैं। एक आर्य समाजी और कुछ भी हो, नास्तिक नहीं होता। अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने डीएवी स्कूल, लाहौर में प्रवेश लिया और पूरे एक साल उसके छात्रावास में रहा। वहाँ सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्त मैं घण्टों गायत्री मंत्र जपा करता था। उन दिनों मैं पूरा भक्त था। बाद में मैंने अपने पिता के साथ रहना शुरू किया। जहाँ तक धार्मिक रूढ़िवादिता का प्रश्न है, वह एक उदारवादी व्यक्ति हैं। उन्हीं की शिक्षा से मुझे स्वतन्त्रता के ध्येय के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली। किन्तु वे नास्तिक नहीं हैं। उनका ईश्वर में दृढ़ विश्वास है। वे मुझे प्रतिदिन पूजा-प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। इस प्रकार से मेरा पालन-पोषण हुआ।”

ऊपर की पंक्तियों को देख कर और भगत सिंह के इस लेख को पढ़ कर स्पष्ट होता है कि कुछ रूढ़िवादी चीजें थीं, जिनसे उन्हें दिक्कतें थीं। वो ये मानने को तैयार नहीं थे कि मनुष्य अपने पुनर्जन्म के पापों की सज़ा इस जन्म में भोग रहा है। उनके सवाल थे कि राजा के विरुद्ध जाना हर धर्म में पाप क्यों है? उनके सारे धर्मों के बारे में एक ही विचार थे। वे दो समुदाय के लोगों के बीच धर्म को लेकर होने वाले तनाव के खिलाफ थे।


आज का वामपंथ, आज के वामपंथी, और भगत सिंह

स्वतंत्रता सेनानियों में सिर्फ बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय ही नहीं थे, जो हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान में विश्व रखते हुए धर्म और राष्ट्र को एक साथ देखते थे, बल्कि क्रांतिकारियों में भी कई ऐसे थे जो कर्मकांड करते थे, प्रखर हिंदूवादी थे। ‘बिस्मिल’ खुद आर्यसमाजी थे। बटुकेश्वर दत्त पूजन-वंदन किया करते थे। पंडित मदन मोहन मालवीय हिन्दू धर्म की शिक्षा को महत्ता देते थे। इन सबके बारे में भगत सिंह के क्या ख्याल हैं?

असल में आज का वामपंथ देश को खंडित करने वाला, चिकेन्स नेक को काट कर चीन को भारत पर हमला करने का मौके देने वाला और ‘नरेंद्र मोदी भ@वा है’ का नारा लगाने वाला है। जबकि भगत सिंह की विचारधारा क्रांति की थी। वो रूस के क्रांतिकारियों से इसीलिए प्रभावित थे, क्योंकि उन्हें उनलोगों से क्रान्ति के तौर-तरीकों की सीख मिलती थी। वो उन्हें अध्ययन कर के भारत के परिप्रेक्ष्य में आजमाने के तरीके ढूँढ़ते थे।

आज वामपंथियों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे अपने देश की सेना का सम्मान कर सकें, तो फिर वो देश के लिए बलिदान देने वाले को अपनी विचारधारा का व्यक्ति कैसे बता सकते हैं? अरुंधति रॉय जैसे लोग तो विदेश में जाकर भारतीय सेना को अपने ही लोगों पर ‘अत्याचार करने वाला’ बताते हैं, क्या भगत सिंह किसी भी कीमत पर इस चीज को बर्दाश्त करते? देश के खिलाफ बोलने वालों के लिए क्रांति सिर्फ अपने ही देश के लोगों को मारना है।

आज नक्सली झारखण्ड से लेकर महाराष्ट्र तक सरकारी कर्मचारियों को मारते हैं, अपने ही देश के लोगों का खून बहाते हैं और संविधान को नहीं मानते हैं। क्या भगत सिंह को अपना बनाने का नाटक करने वाले वामपंथी वामपंथ के इस हिस्से की निंदा करने का भी साहस जुटा पाते हैं? नहीं। आज का वामपंथ चीनपरस्ती का वामपंथ है, जो अपने ही देश के इतिहास और संस्कृति से घृणा करता है, भगत सिंह का नाम भी लेने का इन्हें कोई अधिकार नहीं।

और हाँ, यज्ञोपवीत को ब्राह्मणों का आडम्बर और अत्याचार का प्रतीक बताने वाले वामपंथियों को ये बात भी पसंद नहीं आएगी कि भगत सिंह का भी यज्ञोपवीत संस्कार हुआ था। एक पत्र में उन्होंने अपने पिता को याद दिलाया है कि वे जब बहुत छोटे थे, तभी बापू जी (दादाजी) ने उनके जनेऊ संस्कार के समय ऐलान किया था कि उन्हें वतन की सेवा के लिए वक़्फ़ (दान) कर दिया गया है।

https://twitter.com/OpIndia_in/status/1374190412810743809?s=19


आज के वामपंथी ये जान कर अच्छा महसूस नहीं करेंगे कि भगत सिंह ने देशसेवा का जो वचन निभाया, वो उनके यज्ञोपवीत संस्कार से उनके ही पूर्वजों ने दिया था। वामपंथ ने नहीं। किसी एक बलिदानी स्वतंत्रता सेनानी का नाम अपने निहित स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना कर उसके प्रेरकों को गाली देना, ये भगत सिंह का अपमान नहीं तो और क्या है? अखंड भारत के लिए लड़ने वाला ‘टुकड़े-टुकड़े’ के नारे लगाने वालों का आइडल कैसे हो सकता है?


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माता-पिता सावधान : ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले बच्चे ने बहन से कर दिया रेप

 

22 मार्च 2021

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मोबाइल और इंटरनेट मनुष्य को बहुत नुकसान पहुँचाती है। फिर बच्चों को मोबाइल देना तो ओर भयंकर हानि करता है। मोबाइल फोन से निकलने वाले विकिरण आपकी सेहत को कई तरह से नुकसान पहुंचाने में सक्षम है । इतना ही नहीं यह आपको कई तरह की बीमारियों को शि‍कार बना सकता है ।



जानी-मानी एिडक्शन थैरेपिस्ट मैंडी सालगिरी ने बताया कि बच्चों को मोबाइल देना एक ग्राम कोकेन देने के बराबर हैं।

बात दे कि कोरोना का सबसे ज्यादा बुरा असर बच्‍चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। ऐसे में ऑनलाइन एजुकेशन ही एक मात्र विकल्प बचा है। मोबाइल पर चल रहीं क्लासेस कई तरह का खतरा भी हैं। राजस्थान से एक ऐसी ही चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जो माता पिता को बड़ी चिंता में डालने वाली वाली है। यहाँ एक 12 साल के बच्चे ने पोर्न वीडियो देखकर अपनी 6 साल की बहन का रेप कर दिया। इस घटना के बाद लाखों पेरेंट्स के लिए सावधान हो जाना चाहिए।

पढ़ाई के बाद अश्लील वीडियो देखने लगा

दरअसल, हैरान कर देने वाला यह मामला श्रीगंगानगर जिले का है, जहाँ रायसिंह नगर में रहने वाले बच्चे ने इस घटना को 4 दिन पहले अंजाम दिया है। माता-पिता ने बच्चे की पढ़ाई के लिए मोबाइल फोन खरीद कर उसे दिया था। लेकिन वह पढ़ाई के बाद अश्लील वीडियो देखने लगा। वह ना तो बाहर खेलने जाता और ना ही अपने दोस्तों से बात करता था। जब माता-पिता कुछ कहते तो जवाब देता कि मैं पढ़ाई कर रहा हूँ।

आधी रात को देखता था पोर्न वीडियो

ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान पोर्न वीडियो देखने के बाद उसके दिमाग में निगेटिविटी आती गईं। इतना ही नहीं वह घरवालों के सोने के बाद नींद से जागकर चुपके से देर रात तक अश्लील वीडियो देखा करता था। जिसका परिणाम यह हुआ है कि उसने इस छोटी से उम्र में अपनी ही 6 साल की बहन का रेप कर दिया।

ऐसे गंदी वीडियो का आदी बना बच्चा

पुलिस ने बच्चे को गिरफ्तार कर बाल सुधार केंद्र भेज दिया है। जाँच के दौरान सामने आया है कि आरोपित बच्चा 6ठी क्लास में पढ़ता है। वह पिछले एक साल से स्कूल नहीं जा रहा है। पूछताछ में बताया कि ऑनलाइन पढ़ाई करने के दौरान उसे पोर्न वीडियो की लिंक आई थी। जिसे उसने गलती से क्लिक कर दिया। इसके बाद वह इसे रोज देखने लगा और इस शर्मनाक घटना को अंजाम दे दिया।


माता-पिता रहें ऐसे सावाधान


पेरेंट्स जो भी मोबाइल बच्चे को ऑनलाइन पढ़ाई के लिए दें रहे हैं उसमें सारे ऐप डिलीट कर दें। जूम समेत किसी भी ऐप में जब तक जरूरत न हो तब तक कैमरा ऑन न करें। बच्चा जिस भी डिवाइस में ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं उसमें एंटीवायरस जरूर एक्टिव रखें। बच्चों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान माता-पिता उनके साथ रहें।

https://twitter.com/OpIndia_in/status/1373763852270067713?s=19


बता दें कि दुनिया का एक सबसे अमीर शख्स, पर बच्चों के लिए मोबाइल नहीं खरीदा । और दूसरा वो व्यक्ति जिसने दुनिया को आईफोन दिया, लेकिन कभी अपने बच्चों को हाथ तक भी नहीं लगाने दिया ।

दनिया के सबसे अमीर शख्सियतों में शुमार बिल गेट्स ने अपने बच्चों को 14 साल की उम्र तक मोबाइल नहीं दिया था ।

इसी तरह ऐप्पल कम्पनी के मालिक स्टीव जॉब्स ने 2011 में न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने अपने बच्चों को कभी भी आईपैड इस्तेमाल नहीं करने दिया था ।

य दो उदाहरण सिर्फ इसलिए हैं ताकि आप यह जान सकें कि मोबाइल बच्चों को देने जैसी चीज नही हैं । दुनिया में मोबाइल के इस्तेमाल को लेकर भी कई रिसर्च  हुए हैं, जिनके परिणाम चौंकाने वाले हैं । जो बच्चे स्मार्टफोन किसी भी रूप में इस्तेमाल करते हैं (वीडियो देखने-गाना सुनने।) वे अन्य बच्चों की तुलना में देर से बोलना शुरू करते हैं । छह माह से दो साल तक 900 बच्चों पर किए गए सर्वे में यह चौंकाने वाली स्थिति सामने आई है । हर 30 मिनट के स्क्रीन टाइम (मोबाइल इस्तेमाल) से ही 49% आसार बढ़ जाते हैं कि बच्चा देरी से बोलना शुरू करेगा। वहीं दुनिया की जानी-मानी एडिक्शन थैरेपिस्ट मैंडी सालगिरी ने तो यहां तक कहा है कि बच्चों को स्मार्टफोन देना उन्हें एक ग्राम कोकेन देने के बराबर है।

मोबाइल के उपयोग से फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है, अतः मोबाइल का कम से कम उपयोग करें और बच्चों को भूलकर भी न दें ।


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इस तरीके से बनाये अपने घर में होली का रंग, सालभर रहे स्वस्थ

21 मार्च 2021

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होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता है । वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव भी कहा गया है।



यह वैदिक उत्सव है । लाखों वर्ष पहले भगवान रामजी हो गये । उनसे पहले उनके पिता, पितामह, पितामह के पितामह दिलीप राजा और उनके बाद रघु राजा... रघु राजा के राज्य में भी यह महोत्सव मनाया जाता था ।

होली रंगों का त्यौहार है, हँसी-खुशी का त्यौहार है, लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते हैं। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, ठंडाई की जगह नशेबाजी और लोक संगीत की जगह फ़िल्मी गानों का प्रचलन.... इस आधुनिक रूप से होली मनाने से बहुत नुकसान होता है ।

आपको हम रासायनिक रंगों से होने वाली हानियां और अपने घर में ही सस्ते में प्राकृतिक रंग किस प्रकार बना सकते हैं, उसके बारे में बताते है।

रासायनिक रंगों से होने वाली हानि...

1 - काले रंग में लेड ऑक्साइड पड़ता है जो गुर्दे की बीमारी, दिमाग की कमजोरी करता है ।

2 - हरे रंग में कॉपर सल्फेट होता है जो आँखों में जलन, सूजन, अस्थायी अंधत्व लाता है ।

3 - सिल्वर रंग में एल्युमीनियम ब्रोमाइड होता है जो कैंसर का कारक होता है ।

4- नीले रंग में प्रूशियन ब्लू (कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस) होता है जिससे भयंकर त्वचारोग होता है ।

5 - लाल रंग में मरक्युरी सल्फाइड होता है जिससे त्वचा का कैंसर होता है ।

6- बैंगनी रंग में क्रोमियम आयोडाइड होता है जिससे दमा, एलर्जी होती है ।

अब आपको घर में ही प्राकृतिक रंग बनाने की सरल विधियाँ बता रहे हैं जो आसानी से बनाकर उपयोग कर सकते हैं और मना सकते हैं एक स्वस्थ होली ।

कसरिया रंग - पलाश के फूलों से यह रंग सरलता से तैयार किया जा सकता है। पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें । सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लाएं अथवा उबालकर होली का आनंद उठायें ।

यह रंग होली खेलने के लिए सबसे बढ़िया है। शास्त्रों में भी पलाश के फूलों से होली खेलने का वर्णन आता है । इसमें औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है । रक्तसंचार को नियमित व मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ ही यह मानसिक शक्ति तथा इच्छाशक्ति में भी वृद्धि करता है ।

सखा हरा रंग - मेंहदी का पाउडर तथा गेहूँ या अन्य अनाज के आटे को समान मात्रा में मिलाकर सूखा हरा रंग बनायें । आँवला चूर्ण व मेंहदी को मिलाने से भूरा रंग बनता है, जो त्वचा व बालों के लिए लाभदायी है ।


🚩सखा पीला रंग - हल्दी व बेसन मिला के अथवा अमलतास व गेंदे के फूलों को छांव में सुखाकर पीस के पीला रंग प्राप्त कर सकते हैं।

गीला पीला रंग - एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़ने वाले रंग जो खाने के काम आते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं । अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी में भिगोकर रखें, सुबह उबालें ।

लाल रंगः लाल चंदन (रक्त चंदन) पाउडर को सूखे लाल रंग के रूप में प्रयोग कर सकते हैं । यह त्वचा के लिए लाभदायक व सौंदर्यवर्धक है । दो चम्मच लाल चंदन एक लीटर पानी में डालकर उबालने से लाल रंग प्राप्त होता है, जिसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलायें ।

पीला गुलाल : (१) ४ चम्मच बेसन में २ चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें | (२) अमलतास या गेंदा के फूलों के चूर्ण के साथ कोई भी आटा या मुलतानी मिट्टी मिला लें ।

पीला रंग : (1) 2 चम्मच हल्दी चूर्ण 2 लीटर पानी में उबालें | (2) अमलतास, गेंदा के फूलों को रातभर भिगोकर उबाल लें ।

जामुनी रंग : चुकंदर उबालकर पीस के पानी में मिला लें।

काला रंग : आँवले के चूर्ण को लोहे के बर्तन में रातभर भिगोयें ।

लाल रंग : (1) आधे कप पानी में दो चम्मच हल्दी चूर्ण व चुटकीभर चूना मिलाकर 10 लीटर पानी में डाल दें | (2) 2 चम्मच लाल चंदन चूर्ण 1 लीटर पानी में उबालें ।

लाल गुलाल : सूखे लाल गुड़हल के फूलों का चूर्ण उपयोग करें ।

हरा रंग : (1) पालक, धनिया या पुदीने की पत्तियों के पेस्ट को पानी में भिगोकर उपयोग करें | (2) गेहूँ की हरी बालियों को पीस लें ।

हरा गुलाल : गुलमोहर अथवा रातरानी की पत्तियों को सुखाकर पीस लें ।

भरा हरा गुलाल : मेहँदी चूर्ण के साथ आँवला चूर्ण मिला लें ।  स्त्रोत : संत श्री आसारामजी आश्रम से प्रकाशित ऋषि प्रसाद

सभी देशवासियों से अनुरोध है कि आप केमिकल रंगों से होली न खेलें और न ही जानवरों जैसे कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैस आदि पर कोई रंग डाले क्योंकि रंग में केमिकल होता है। वो अपने आप को साफ़ करने के लिए अपने को जीभ से चाटते हैं और वो केमिकल उनके पेट में है और बीमार पड़ जाते हैं या मर जाते हैं ।

होली पर गाए-बजाए जाने वाले ढोल, मंजीरों, फाग, धमार, चैती और ठुमरी, वैदिक गानों से ही करनी चाहिए । फिल्मो के गानों से करने से हानि होती है । उससे भी बचें ।

परे साल स्वस्थ्य रहने के लिए क्या करें होली पर..??

1- होली के बाद 15-20 दिन तक बिना नमक का अथवा कम नमकवाला भोजन करना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है ।

2- इन दिनों में भुने हुए चने - ‘होला का सेवन शरीर से वात, कफ आदि दोषों का शमन करता है ।

3- एक महीना इन दिनों सुबह नीम के 20-25 कोमल पत्ते और एक काली मिर्च चबा के खाने से व्यक्ति वर्षभर निरोग रहता है ।

4- होली के दिन चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य हुआ था । इन दिनों में हरिनाम कीर्तन करना-कराना चाहिए । नाचना, कूदना-फाँदना चाहिए जिससे जमे हुए कफ की छोटी-मोटी गाँठें भी पिघल जायें और वे ट्यूमर कैंसर का रूप न ले पाएं और कोई दिमाग या कमर का ट्यूमर भी न हो । होली पर नाचने, कूदने-फाँदने से मनुष्य स्वस्थ रहता है। ( स्त्रोत्र : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ऋषि प्रसाद पत्रिका से)


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गीता में जीवन के हर सवाल का जवाब है, स्कूल में पढ़ाई जानी चाहिए: मौनी रॉय

20 मार्च 2021

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इग्लैंड के विद्वान एफ.एच.मोलेम ने लिखा की बाईबल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है। उसमें जो दिव्यज्ञान लिखा है वह केवल गीता के उद्धरण के रूप में है। मैं ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतना सारा आदरभाव इसलिए रखता हूँ कि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका समाधान गीता ग्रंथ ने शुद्ध और सरल रीति से दिया है। उसमें कई सूत्र अलौकिक उपदेशों से भरूपूर लगे इसीलिए गीता जी मेरे लिए साक्षात् योगेश्वरी माता बन रही हैं। वह तो विश्व के तमाम धन से भी नहीं खरीदा जा सके ऐसा भारतवर्ष का अमूल्य खजाना है।



आपको बता दे कि टीवी सीरियल ‘नागिन’ से प्रसिद्ध हुईं अभिनेत्री मौनी रॉय का कहना है कि स्कूलों में बच्चों को श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ाई जानी चाहिए। एक इंटरव्यू में मौनी ने कहा कि उन्हें लगता है कि गीता, स्कूल सिलेबस का हिस्सा होना चाहिए क्योंकि उसमें जीवन से जुड़े हर सवाल के जवाब हैं। मौनी यह भी मानती हैं कि मात्र गीता के अध्य्यन से भारतीय परिवारों में पल रही रूढ़िवादी सोच खत्म हो सकती है।

मौनी रॉय के मन में गीता के प्रति इतनी आस्था है कि उन्हें लगता है केवल देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में गीता का पाठ करवाया जाना चाहिए। उनके मुताबिक इसमें निहित ज्ञान की पूरी दुनिया को जरूरत है। IANS से बात करते हुए टीवी एक्ट्रेस ने कहा, “मैंने श्रीमद्भगवदगीता का सार बचपन में पढ़ा था, लेकिन वो मुझे समझ नहीं आया। लॉकडाउन से पहले जब मेरे एक दोस्त ने गीता पढ़ना शुरू किया तो मैंने भी क्लास ली। व्यस्त रहने के कारण मैं कई बार वो क्लास नहीं भी ले सकी। लेकिन लॉकडाउन में मैं बहुत धार्मिक हो गई।"

वह कहती हैं, “मुझे लगता है कि ये अपने विद्यालयों का हिस्सा होनी चाहिए। मुझे सच में लगता है कि ये किताब एक धार्मिक पुस्तक से बहुत ऊपर हैं। इसमें जीवन सार है। अनन्त ज्ञान और मूल जानकारियाँ। अगर आपके दिमाग में कोई भी प्रश्न है तो गीता के पास उसका जवाब है।"

"मौनी के अनुसार, हम अज्ञानता में जीवन जी रहे हैं। हम हकीकत में वेदों और उपनिषद् वाले देश से आते है, तब भी हमें कुछ नहीं पता। हम सोने की खान पर बैठे हैं और हमें उसके बारे में पता ही नहीं है। मनोरंजन उद्योग में बहुत तनाव है। आपके पास शनिवार और रविवार का कॉन्सेप्ट नहीं होता। 9 से 5 की जॉब में हम अपने दिमाग और विचारों में पिस जाते हैं। ऐसे में निश्चित रूप से गीता की हमें आवश्यकता है। मुझे लगता है कि ग्रामीण, शहरी और सभी महानगरों में भगवद्गीता के उपदेशों की सख्त जरूरत है।"

बता दें कि टीवी एक्ट्रेस मौनी रॉय टीवी के साथ-साथ ओटीटी और बॉलीवुड में भी काम कर रही हैं। जल्द ही वह रणबीर कपूर और आलिया भट्ट के साथ वह फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ में दिखाई देंगी। सोशल मीडिया पर भी उनकी आए दिन तस्वीरें देखने को मिलती रहती हैं। हाल में महाशिवरात्रि पर उन्होंने पूजा करती अपनी फोटो इंस्टाग्राम पर डाली थी।

https://twitter.com/OpIndia_in/status/1373195826940416001?s=19


शरीमद्भगवद्गीता की इतनी महिमा है फिर भी हिंदू लोग नहीं पढ़ते हैं, जिसके कारण हिंदू जितनी अपनी उन्नति करनी है उतनी नहीं कर पाते हैं। गीता में अपने जीवनशैली का पूरा ज्ञान है उससे हर व्यक्ति स्वस्थ, सुखी और सम्मानित जी सकता है, मदरसों में अगर कुरान पढ़ाई जाती है, मिशनरियों स्कूलों में बाइबल पढ़ाई जाती है तो फिर विद्यालयों में गीता क्यो नही पढ़ाई जाती है !? इसमें तो सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी बातें  लिखी हैं। अतः सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।


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हजारों की मुस्लिम भीड़ का हिन्दू गाँव पर हमला: 88 घर, 9 मंदिर क्षतिग्रस्त

19 मार्च 2021

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परोफेसर बरकत ने ढाका यूनिवर्सिटी में किताब के विमोचन के दौरान बताया कि 1964 से 2013 के बीच लगभग 1 करोड़ 13 लाख हिंदुओं ने धार्मिक भेदभाव और उत्पीड़न के कारण से बांग्लादेश छोड़ा । ये आंकड़ा औसतन हर दिन 632 का बैठता है । इसका अर्थ ये भी है कि हर वर्ष 2, 30, 612 हिंदू बांग्लादेश छोड़ रहे हैं । इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि मुस्लिम देशों में हिंदुओं को रहना कितना मुश्किल है, वहाँ उनको कितना प्रताड़ित किया जाता हैं।



आपको बता दे कि बांग्लादेश में बुधवार (मार्च 17, 2021) को हजारों की मुस्लिम भीड़ ने एक हिन्दू गाँव पर हमला बोल दिया। इस्लामी संगठन ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ के बैनर तले भीड़ ने हिन्दू गाँव पर हमला बोला। ये घटना सुनामगंज जिले के ‘शल्ला उपजिला’ इलाके में हुई।

हिन्दू गाँव पर हमले के पीछे मामला बस इतना था कि एक हिन्दू व्यक्ति ने संगठन के जॉइंट सेक्रेटरी जनरल मौलाना मुफ़्ती मामुनुल द्वारा दिए गए कट्टरवादी भाषण की आलोचना की थी।

नवागाँव के एक हिन्दू युवक ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए मामुनुल की आलोचना की थी। मौलाना ने अपने भाषण में बंगबंधु मुजीबुर रहमान की मूर्ति लगाने का विरोध किया था। जैसे ही इस सोशल मीडिया पोस्ट के बारे में खबर फैली, हजारों की मुस्लिम भीड़ ने धारदार हथियारों के साथ हिन्दू गाँव पर हमला बोल दिया।

इस मामले में मंगलवार की रात से ही ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ के नेता लोगों को भड़काने में लगे हुए थे और उसी समय से विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया गया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि इस सोशल मीडिया पोस्ट से सांप्रदायिक शांति भंग हो सकती है।

पलिस ने इस्लामी भीड़ के दबाव में आकर उसी रात उस हिन्दू युवक को गिरफ्तार भी कर लिया था। लेकिन, काशीपुर, चंड़ी और नाचीपुर के हजारों मुस्लिम उग्र होकर निकल पड़े।

आसपास के मुस्लिम बहुल इलाकों से ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ के समर्थक वहाँ हथियारों के साथ आ धमके। बुधवार को सुबह 9 बजे से ही हिन्दुओं के घरों पर हमले शुरू कर दिए गए। इस घटना में 80 से अधिक हिन्दू परिवारों के घरों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया है।

हबीबपुर यूनियन चेयरमैन विवेकानंद मजूमदार बकुल ने बताया कि कई हिन्दुओं के घरों को ध्वस्त किया गया है। भीड़ से बचने के लिए स्थानीय हिन्दू वहाँ से भाग खड़े हुए। बांग्लादेश के हिन्दू एक्टिविस्ट राजू दास ने बताया कि इस दौरान 88 घरों व 8 पारिवारिक मंदिरों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया।

न सिर्फ घरों को क्षतिग्रस्त किया गया, बल्कि अंदर रखे समान भी लूट लिए गए। ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ कई मुल्ला-मौलवियों का संगठन है, जिसकी स्थापना 2010 में सत्ताधारी अवामी लीग से कथित रूप से बंगलादेश को ‘बचाने’ के लिए हुई थी।

चिट्टागोंग के ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ संगठन ने बांग्लादेश की सरकार द्वारा महिलाओं को बराबर के अधिकार देने के फैसले का विरोध करते हुए ‘इस्लाम विरोधी नीतियों’ को बदल कर मुल्क को सेक्युलर बनने से रोकने की कसम ली है।

शल्ला पुलिस थाने के इंचार्ज नजमुल हक़ ने बताया कि पुलिस के साथ-साथ RAB (रैपिड एक्शन बटालियन) को भी मौके पर लगाया गया है। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों और उपजिला चेयरमैन अल अमीन से बातचीत कर के माहौल को नियंत्रित किया गया है।

डिप्टी कमिश्नर और एसपी ने घटनास्थल का दौरा किया। अधिकारियों ने बताया कि हिन्दू युवक के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है और उसे जाँच एजेंसियों को सौंप दिया गया है।

◆ मंदिर पर हमला, माँ काली की मूर्ति में आग लगाई

बांग्लादेशी मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, रानीसंकल उपजिला के उत्तरगांव गाँव की है। कुछ उपद्रवियों ने गुरुवार (मार्च 18,2021) रात एक मंदिर में हिंदू देवी काली की मूर्ति को आग लगा दी। पुलिस ने कहा कि हमलावरों ने मंदिर में तोड़फोड़ की और देवी काली की मूर्ति को जला दिया।

बांग्लादेश में हिन्दुओं की हत्या और मंदिरों पर हमले कोई नई बात नहीं है। ऐसी घटनाएँ हर कुछ दिन पर सामने आती हैं। सितम्बर 2020 में गाजीपुर, ढाका, बांग्लादेश के दक्खिन सलाना इलाके में स्थित काली मंदिर में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को खंडित कर दिया गया था।

https://twitter.com/OpIndia_in/status/1372443357260091394?s=19


बांग्लादेश माइनॉरिटी वॉच के अध्यक्ष अधिवक्ता श्री रवींद्र घोष ने कहा कि बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए हिन्दू लड़े । उसके बदले में उन्हें क्या मिला? यह प्रश्‍न उपस्थित हो रहा है । बांग्लादेश जब से स्वतंत्र हुआ है, तब से आज तक वहां 15 लाख से अधिक हिंदुओं की हत्या की गई है । स्वतंत्रता के पश्‍चात वहां के शासन ने संविधान में इस्लाम धर्मानुसार आचरण करने की धारा घुसाई । तब से निरंतर वहां के हिंदुओं की धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार नकारा जा रहा है। वहां के हिंदुओं को

प्रकार का न्याय अथवा अधिकार नहीं मिलता, अपितु हिंदुओं की भूमि बलपूर्वक दबा ली गई । हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर अत्याचार किए जाते हैं । अभी तक बांग्लादेश के 3 सहस्र 336 मंदिर तोड़े गए हैं । ऐसे विविध प्रकार से हिंदुओं पर अत्याचार और अन्याय किया जाता है ।

भारत में अल्पसंख्यक समुदाय को एक थप्पड़ भी लगा दे तो तो मीडिया दिन-रात खबरें दिखाती रहती है और सेक्युलर लोग उनके बचाव में टूट पड़ते है, लेकिन बांग्लादेश में हररोज इतना हिन्दुओं का पलायन होना व उनके ऊपर इतना अत्याचार होने पर मीडिया और  सेक्युलर लोगों ने चुप्पी क्यों साधी है ???


भारत सरकार को पाकिस्तान व बांग्लादेश के हिंदुओं की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए।


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साधुओं की हत्या का सिलसिला जारी है, आगरा में साधु की बेहरमी से की हत्या

18 मार्च 2021

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गाज़ियाबाद के एक मंदिर में शांतिप्रिय समुदाय के एक लड़के को क्या एक थप्पड़ लगी,चारों तरफ हल्ला होने लगा लेकिन अभी तक देश में सैंकड़ों साधुओं की हत्या हो गई और अभी भी जारी है लेकिन एक भी वामपंथी मीडिया, तथाकथित बुद्धिजीवी इसपर बात नहीं कर रहे हैं।



आजकल साधु-संतों की हत्या व उनके ऊपर झूठे केस दायर करना, उनको मीडिया द्वारा बदनाम करना, उनके खिलाफ झूठी कहानियां बनाकर फिल्में बनाना ये कार्य जोरों से चल रहा है पर सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है, जनता की तीव्र मांग है कि साधु-संतों के हत्यारों को फाँसी का प्रावधान होना चाहिए जिसके कारण आगे कोई भी किसी साधु की हत्या न करें और साधुओं की सुरक्षा के लिए भी व्यवस्था करनी चाहिए, साधु-संतो पर जो झुठे केस दायर किये जा रहे हैं उनके खिलाफ भी कार्यवाही करनी चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के आगरा में एक साधु की धारदार हथियार से बेहरमी से हत्या कर दी गई है। जिसके कारण इलाके में हड़कंप मचा हुआ है। स्थानीय लोगों ने मंदिर परिसर में शव को देखा जिसके बाद यूपी पुलिस को इस घटना की सूचना दी गई। फिलहाल पुलिस शव को अपने कब्जे में लेकर मामले की जाँच करने में जुटी हुई है।

★ मंदिर परिसर में लहूलुहान मिला शव

यह पूरा मामला उत्तर प्रदेश के न्यू आगरा जिले में स्थित मऊ गाँव का है। जहाँ पर यमुना नदी के किनारे जंगलो में हनुमान जी का मंदिर है। इसी मंदिर में ‘शिव गिरि’ नाम के साधु पूजा-अर्चना किया करते थे और मंदिर में ही रहते भी थे। सुबह हुई तो वहाँ पर रहने वाले लोगों ने मंदिर परिसर में खून से लथपथ साधु के शव को देखा। जिसके बाद लोगों ने इस घटना की सूचना पुलिस को दी। पुलिस मौके पर पहुँच कर शव को कब्जे में लेकर मामले की जाँच शुरू कर दी है। ग्रामीणों ने बताया कि शिव गिरी पिछले 30 साल से मंदिर में पुजारी थे। मूलत: फतेहपुर सीकरी के गाँव खेड़ा भोपुर के निवासी थे।

★ SP सिटी का बयान

आगरा के SP सिटी ने बताया कि न्यू आगरा थाना क्षेत्र के मऊ गाँव में एक साधू की हत्या की खबर मिली थी। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा जा रहा है। मौके से कुल्हाड़ी भी बरामद हुई है जिससे हत्या की बात सामने आ रही है। मुकदमा दर्ज करके जाँच की जाएगी। अभी कोई कारण सामने नहीं आया है।

आगरा के SP सिटी रोहन पी बोत्रे ने बताया कि साधु की हत्या कुल्हाड़ी से काटकर की गई है। शव को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया है। एसपी ने बताया कि आरोपितों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की टीम गठित कर दी गई है और जल्द ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।

गौरतलब है कि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के गोवर्धन इलाके में दो साधुओं की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। दोनों साधु गोवर्धन मार्ग पर मौजूद गिरिराज बगीचा के पीछे बने आश्रम में रहते थे। आश्रम में रामायण का पाठ कर रहे दोनों साधुओं ने अपने एक और साथी के साथ सुबह की चाय पी थी। जिसके बाद तीनों के ही मुँह से झाग निकलता हुआ देखा गया। बताया गया कि आश्रम में ही मौजूद गाय के दूध से चाय बनाकर इन लोगों ने पी थी, जिसके बाद यह घटना हुई।

https://twitter.com/OpIndia_in/status/1372276557633454092?s=19


साधुओं की जिस तरह बेरहमी से हत्यायें हो रही है और उनको जिस तरह मीडिया में बदनाम किया जा रहा है और जिस तरह से उनके खिलाफ जूठे रेप केस बनाकर जेल भिजवाया जा रहा है उससे तो लग रहा है कि जल्दी साधु-संत की संख्या नहीं के बराबर रह जायेगी क्योंकि साधु-संतों ने ही राष्ट्र और धर्म की असली सेवा करते है वही समाज को सही रास्ते ले जाते है जो राष्ट्र विरोधी ताकतों को पसंद नही है इसलिए उनके खिलाफ ऐसे षडयंत्र चल रहे हैं, जनता की मांग है कि साधुओं की सुरक्षा के लिए कड़े प्रावधान बनाने चाहिए।

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