Friday, February 11, 2022

आ रहा है आपका नूतन वर्ष, कैसे मनाएं ? जानिए अत्यंत उपयोगी बातें

11 अप्रैल 2021

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चैत्र नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती है । चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं । भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है । इस साल 13 अप्रैल 2021 को नूतनवर्ष प्रारंभ होगा ।



अग्रेजी नूतन वर्ष में शराब-कबाब, व्यसन, दुराचार करते हैं लेकिन भारतीय नूतन वर्ष संयम, हर्षोल्लास से मनाया जाता है । जिससे देश में सुख, सौहार्द्र, स्वास्थ्य, शांति से जन-समाज का जीवन मंगलमय हो जाता है ।


इस साल 13 अप्रैल को नूतन वर्ष मनाना है, भारतीय संस्कृति की दिव्यता को घर-घर पहुँचाना है ।


हम भारतीय नूतन वर्ष व्यक्तिगतरूप और सामूहिक रूप से भी मना सकते हैं ।


कसे मनाएं नववर्ष ?


1 - भारतीय नूतनवर्ष के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें । संभव हो तो चर्मरोगों से बचने के लिए तिल का तेल लगाकर स्नान करें ।


2 - नववर्षारंभ पर पुरुष धोती-कुर्ता / पजामा, तथा स्त्रियां नौ गज/छह गज की साड़ी पहनें ।


3 - मस्तक पर तिलक करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


4 - सूर्योदय के समय भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


5 - सुबह सूर्योदय के समय शंखध्वनि करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


6 - हिन्दू नववर्षारंभ दिन की शुभकामनाएं हस्तांदोलन (हैंडशेक) कर नहीं, नमस्कार कर स्वभाषा में दें ।


7 -  भारतीय नूतनवर्ष के प्रथम दिन ऋतु संबंधित रोगों से बचने के लिए नीम, कालीमिर्च, मिश्री या नमक से युक्त चटनी बनाकर खुद खाएं और दूसरों को खिलाएं ।


8 - मठ-मंदिरों, आश्रमों आदि धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कॉलेज, सोसायटी, अपने दुकान, कार्यालयों तथा शहर के मुख्य प्रवेश द्वारों पर भगवा ध्वजा फहराकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें  और बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भारतीय नववर्ष का स्वागत करें । हमारे ऋषि-मुनियों का कहना है कि बंदनवार के नीचे से जो व्यक्ति गुजरता है उसकी  ऋतु-परिवर्तन से होनेवाले संबंधित रोगों से रक्षा होती है ।  पहले राजा लोग अपनी प्रजाओं के साथ सामूहिक रूप से गुजरते थे ।


9 - भारतीय नूतन वर्ष के दिन सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें ।


10 - भारतीय संस्कृति तथा गुरु-ज्ञान से, महापुरुषों के ज्ञान से सभी का जीवन उन्नत हो ।’ – इस प्रकार एक-दूसरे को बधाई संदेश देकर नववर्ष का स्वागत करें । एस.एम.एस. भी भेजें ।


11 - अपनी गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हेतु अपने मित्रों-संबंधियों को इस पावन अवसर की स्मृति दिलाने के लिए आप बधाई-पत्र भेज सकते हैं । दूरभाष करते समय उपरोक्त सत्संकल्प दोहराएं ।


12 - ई-मेल, ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम आदि सोशल मीडिया के माध्यम से भी बधाई देकर लोगों को प्रोत्साहित करें ।


13 - नूतन वर्ष से जुड़े एतिहासिक प्रसंगों की झाकियाँ, फ्लैक्स लगाकर भी प्रचार कर सकते हैं ।


14  - सभी तरह के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक संगठनों से संपर्क करके सामूहिक रुप से सभा आदि के द्वारा भी नववर्ष का स्वागत कर सकते हैं । इस साल कोरोना वायरस का कहर देखकर सामुहिक रूप से न मनायें।


15 - नववर्ष संबंधित पेम्पलेट बाँटकर, न्यूज पेपरों में डालकर भी समाज तक संदेश पहुँचा सकते हैं ।


सभी भारतवासियों से प्रार्थना हैं कि कलेक्टर, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति को भी भारतीय नववर्ष को सरकार के द्वारा सामूहिक रूप में मनाने हेतु ज्ञापन दें और व्यक्तिगत रूप में भी पत्र लिखें ।


सकड़ों वर्षों के विदेशी आक्रमणों के बावजूद अपनी सनातन संस्कृति आज भी विश्व के लिए आदर्श बनी है । परंतु पश्चिमी कल्चर के प्रभाव से भारतीय पर्वों का विकृतिकरण होते देखा जा रहा है । भारतीय संस्कृति की रक्षा एवं संवर्धन के लिए भारतीय पर्वों को बड़ी विशालता से जरूर मनाएँ।


चत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि । -ब्रम्हपुराण

अर्थात ब्रम्हाजी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया । इसी दिन से सतयुग का आरंभ हुआ । यहीं से हिन्दू संस्कृति के अनुसार कालगणना भी आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है ।


मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस, मत्स्यावतार दिवस, वरुणावतार संत झुलेलालजी का अवतरण दिवस, सिक्खों के द्वितीय गुरु अंगददेवजी का जन्मदिवस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का जन्मदिवस, चैत्री नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियाँ वर्ष-प्रतिपदा से जुड़कर और अधिक महान बन गयी ।


यश, कीर्ति ,विजय, सुख समृद्धि हेतु घर के ऊपर झंडा या ध्वज पताका लगाएं ।


हमारे शास्त्रों में झंडा या पताका लगाने का विधान है । पताका यश, कीर्ति, विजय , घर में सुख समृद्धि , शान्ति एवं पराक्रम का प्रतीक है । जिस जगह पताका या झंडा फहरता है उसके वेग से नकरात्मक उर्जा दूर चली जाती है ।


हिन्दू समाज में अगर सभी घरों में स्वास्तिक या ॐ लगा हुआ झंडा फहरेगा तो हिन्दू समाज का यश, कीर्ति, विजय एवं पराक्रम दूर-दूर तक फैलेगा ।


सभी हिन्दू घरों में वायव्य कोण यानि उत्तर पश्चिम दिशा में झंडा या ध्वजा जरूर लगाना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उत्तर-पश्चिम कोण यानि वायव्य कोण में राहु का निवास माना गया है । ध्वजा या झंडा लगाने से घर में रहने वाले सदस्यों के रोग, शोक व दोष का नाश होता है और घर में सुख व समृद्धि बढ़ती है।


अतः सभी हिन्दू घरों में पीले, सिंदूरी, लाल या केसरिया रंग के कपड़े पर स्वास्तिक या ॐ लगा हुआ झंडा अवश्य लगाना चाहिए । मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति मंदिर के ऊपर लहराता हुआ झंडा देखे तो कई प्रकार के रोग का शमन हो जाता है ।


‘नववर्षारंभ’ त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाएँ और अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे ऐसा प्रण करें।


आप सभी भारतवासियों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.!!


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दिनभर ट्वीटर पर टॉप ट्रेड रहा '13 अप्रैल नववर्ष' जानिए लोगो ने क्या कहा?

10 अप्रैल 2021

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बरह्म पुराण में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र सुदी प्रतिपदा रविवार था । 



चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था। हिन्दुओं का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है । इस दिन ग्रह और नक्षत्र में परिवर्तन होता है । हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है ।

इस वर्ष में 13 अप्रैल 2021 से हिंदू नुतन वर्ष प्रारंभ होगा इसको लेकर शनिवार को टॉप ट्रेड चल रहा था हैशटैग था "#13अप्रैल_नववर्ष" इस हैशटैग को लेकर लाखों ट्वीट भी हुई, आइए आज आपको बताते हैं क्या बता रही थी जनता...।


1◆ इंदिरा भार्गव लिखती है कि चैत्र माह न शीत न ग्रीष्म ! ये माह पूरा पावन काल माना गया है ऐसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं श्रीराम रूप धारण कर उतर आए।

हिन्दु धर्म पृथ्वी के उद्गम से ही है 

और सबसे सर्वश्रेष्ठ धर्म है

#13अप्रैल_नववर्ष https://t.co/fZdmAtcaPE


2◆ महेश ने लिखा कि हिन्दू धर्म का नूतन वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाया जाता है क्योंकि

(१)उस दिन ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना हुई

(२)सतयुग का प्रारंभ

(३)भगवान श्री राम का राज्याभिषेक

(४)नवरात्र का शुभारंभ

(५)युधिष्ठिर संवत का प्रारंभ

#13अप्रैल_नववर्ष

https://twitter.com/maheshsahni35/status/1380837889085382659?s=19


3◆ मीनू लिखती है कि

#13अप्रैल_नववर्ष

हमारा नववर्ष आने वाला है ,हिंदू राष्ट्र की जय ,सभी हिंदुओं संगठित हो देश की रक्षा करें https://t.co/ciD4o84cPa


4◆ संत श्री आशारामजी बापू हैन्डल से लिखा गया कि "चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि की रचना हुई, भगवान श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस,  झुलेलालजी का अवतरण दिवस, चैत्री नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियाँ वर्ष-प्रतिपदा से जुड़कर और अधिक महान बन गयीं"

#13अप्रैल_नववर्ष

 https://t.co/v2WSF4GW5u


5◆ अमित सोनी ने लिखा कि 

'इस साल सभी भारतीयों को चैत्री शुक्ल प्रतिपदा को अपने घर पर भगवा ध्वज फहराये, सूर्य भगवान को अर्घ्य दें, शंख ध्वनि और भजन-कीर्तन करें।'

#13अप्रैल_नववर्ष https://t.co/Y8oRKtZenn


6◆ संत श्री आशारामजी आश्रम हैन्डल से ट्वीट करके बताया कि 'जिस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ किया था वह था चैत्र मास के शुक्ल पक्ष का प्रथम दिन । जहाँ देशी संवत् का स्वागत सात्त्विक भावना , व्रत , पूजन आदि से होता है। चैत्री नूतन वर्ष के दिन कोई भी शुभ कार्य करने हेतु मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती ।'

#13अप्रैल_नववर्ष https://t.co/8Ci448tY4w


7◆ मुकेश ने लिखा कि चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को सृष्टि का आरंभ हुआ था॥

हिन्दुओं का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शुरु होता है।

इस दिन ग्रह और नक्षत्र में परिवर्तन होता है।

जिसमें हिन्दू उपवास एवं पवित्र रहकर नववर्ष की शुरूआत करते हैं॥

#13अप्रैल_नववर्ष

https://twitter.com/MuskanChhutlan1/status/1380837555856412674?s=19



8◆ सुरेश डाभी ने लिखा कि

जी हाँ, विश्व वंदनीय पूज्य Sant Shri Asharamji Bapu बताते हैं कि "हिंदू संस्कृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नव वर्ष मनाने से मन प्रसन्न व शरीर स्वस्थ रहता है।" आओ मिलकर हिंदू संस्कृति की रक्षा हेतु #13अप्रैल_नववर्ष मनाए। https://t.co/XN1Q59itok


इस तरीके से लाखों ट्वीट हुई थी 13अप्रैल_नववर्ष हैशटेग को लेकर, सभी ने एक ही अपील की कि इस वर्ष 13 अप्रैल 2021 को अपना चैत्री हिंदू नववर्ष जरुर मनाएं।


हिन्दू धर्म पृथ्वी के उद्गम से ही है और सबसे सर्वश्रेष्ठ धर्म है; परंतु दुर्भाग्य की बात है कि हिन्दू ही इसे समझ नहीं पाते । पाश्चात्य कल्चर को योग्य और अधर्मी कृत्यों का अंधानुकरण करने में ही अपने आप को धन्य समझते हैं । 31 दिसंबर की रात में नववर्ष का स्वागत और 1 जनवरी को नववर्षारंभ दिन मनाने लगे हैं ।


सभी हिन्दू चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाने का संकल्प लें | इस वर्ष 13 अप्रैल 2021 को हिन्दू नववर्ष आ रहा है । सभी हिन्दू तैयारी शुरू कर दें । 


आज से ही अपने सभी सगे-संबंधी, परिचित और मित्रों को पत्र एवं सोशल मीडिया आदि द्वारा शुभ संदेश भेजना शुरू करें । 


सस्कृति रक्षा के लिए गांव-शहरों में नववर्ष निमित्त प्रभात फेरियां, झांकियों की सजावट वाली यात्राएं, पोस्टर लगाकर, स्थानिक केबल पर प्रसारण करवाकर नववर्ष का प्रचार-प्रसार जरूर करें ।


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गर्दन काटने की धमकी देने वाला अमानुल्ला खान, जरा कुरान में झाँकें

09 अप्रैल 2021

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आम आदमी पार्टी के नेता अमानुल्ला खान ने 3 अप्रैल 2021 को एक ट्वीट किया। उन के शब्द हैं, “हमारे नबी की शान में गुस्ताखी हमें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं, इस नफरती कीड़े की जुबान और गर्दन दोनों काटकर इसे सख़्त से सख़्त सजा देनी चाहिए। लेकिन हिन्दुस्तान का कानून हमें इसकी इजाजत नहीं देता, हमें देश के संविधान पर भरोसा है और मैं चाहता हूँ कि दिल्ली पुलिस इसका संज्ञान ले।” उन्होंने किसी का नाम नहीं लिखा, पर उनके ट्वीट के साथ किसी कार्यक्रम की तस्वीर थी। जिस से लगता है कि वे कहीं किसी के द्वारा कही बात पर नाराज थे।



अच्छा हो कि दिल्ली पुलिस ही नहीं, देश के सभी लोग यह भी संज्ञान लें कि भारतीय कानून न केवल किसी की गर्दन काटने, बल्कि सार्वजनिक रूप से ऐसी बातें कहना भी अनुचित मानता है। अमानुल्ला हिंसक धमकियाँ देते हुए भी कानून-पाबंद बन रहे हैं।


लकिन अधिक महत्व का विचारणीय बिन्दु अन्य है। जिस पर हमारी न्यायपालिका, संसद, तमाम राजनीतिक दलों को भी ध्यान देना चाहिए कि क्या इस्लाम और उन के प्रोफेट का ही सम्मान होना चाहिए? खुद इस्लाम दूसरे धर्मों, उन के देवी-देवताओं, अवतारों, पैगम्बरों, श्रद्धा-स्थलों, श्रद्धा-प्रतीकों के प्रति क्या रुख रखता है? वह मुसलमानों को सिखाता क्या है?


निस्संदेह, इस्लाम दूसरे धर्मों को ‘कुफ्र’, और उन्हें मानने वालों को ‘काफिर’ कहकर अंतहीन घृणा और हिंसा सिखाता है। यह केवल किताबी हुक्म नहीं, बल्कि उस के अनुयायी व्यवहार में गत चौदह सौ सालों से यही कर भी रहे हैं। मक्का से लेकर ढाका तक, और कौंस्टेंटीनोपुल से लेकर कोलंबो, और बाली तक यही उन का इतिहास और वर्तमान है।


अमानुल्ला खान नोट करें –  धर्मों, विश्वासों, श्रद्धा-प्रतीकों, श्रद्धा-स्थलों का सम्मान बराबरी से ही हो सकता है! क्या मथुरा, काशी, भोजशाला में जाकर उन्होंने देखा है कि हिन्दू सभ्यता के सब से महान श्रद्धा प्रतीकों भगवान शिव, भगवान कृष्ण, और देवी सरस्वती के सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ इस्लाम के अनुयायियों ने क्या किया – और आज भी क्या कर रहे हैं? क्या अमानुल्ला को मालूम नहीं कि नाइजीरिया, सूडान से लेकर पाकिस्तान, बँगलादेश तक गैर-मुसलमानों के साथ इस्लाम के आम अनुयायी क्या कर रहे हैं?


विविध धर्मों का सम्मान केवल बराबरी से हो सकता है। इसलिए, अमानुल्ला खान को सबसे पहले अपने मजहब के गिरहबान में झाँक कर देखना चाहिए कि वह दूसरे धर्मों, देवी-देवताओं, मंदिरों, चर्च, सिनागॉग, गुरुद्वारे, मठ, और अनुयायियों के प्रति क्या सीख देता और व्यवहार रखता है?


ताकि वे किसी ‘भटके हुए’, ‘मुट्ठी भर मुसलमानों’ वाला बहाना न बनाएं, इसलिए मूल स्त्रोत कुरान को ही उलट कर देखें। सब से प्रमाणिक अंग्रेजी पाठ (मुहम्मद पिकथॉल) या हिन्दी पाठ (मकतबा अल-हसनात) से ही मिलान कर के देखें कि कुरान गैर-मुसलमानों या काफिरों और उन के देवी-देवताओं को क्या कहता है।


वस्तुतः कुरान ही काफिर को परिभाषित करता है कि जो अल्लाह और उन के प्रोफेट मुहम्मद को स्वीकार न करे, वह काफिर है। जिस के प्रति कुरान अत्यंत नकारात्मक भाव रखता एवं प्रेरित करता है। कुरान (2:216) ने मूर्तिपूजा को हत्या से भी गर्हित पाप बताया है। कुरान में मूर्तिपूजकों को ‘जानवर’, ‘अंधे’, ‘बहरे’, ‘गूँगे’, (2:171) और ‘गंदे’ (22:30), ‘बंदर’, ‘सुअर’ (5:60) आदि  की संज्ञा दी गई है। इस प्रकार, हिन्दू, बौद्ध, जैन, आदि लोगों को सर्वाधिक घृणित मानना सिखाता है। विश्व के सबसे प्राचीन, सम्मानित और लगभग पौने 2 अरब लोगों के धर्मों के प्रति यह कैसा सम्मान है? इस के बदले अमानुल्ला खान किस आधार पर इस्लाम के लिए सम्मान की माँग करते हैं?


नोट करें, कुरान में वे बातें कोई अपवाद या इक्की-दुक्की नहीं। उसमें आधी से अधिक सामग्री काफिरों पर ही केंद्रित है। जिसमें काफिरों के प्रति एक भी अच्छी बात नहीं। काफिर से घृणा की जाती है (98:6, 40:35);  काफिर का गला काटा जा सकता है (47:4); मार डाला जा सकता है (9:5); काफिर को भरमाया जा सकता है (6:25); काफिर के खिलाफ षड्यंत्र किया जा सकता है (86:15); काफिर को आतंकित किया जा सकता है (8:12); काफिर को अपमानित किया जा सकता है (9:29); काफिर को दोस्त नहीं बनाया जा सकता (3:28); काफिरों से दोस्ती करने पर मुसलमान को अल्लाह दंड देगा (4-144); जब मुसलमान मजबूत हों तो काफिरों से कदापि शान्ति-सुलह न करें (47: 35); आदि।


करान में दूसरे धर्मों, उन के देवी-देवताओं को झूठा कहा गया है। उस के शब्दों में, “एकमात्र अल्लाह सच है, और दूसरे पुकारे जाने वाले देवी-देवता झूठ हैं।” (22:62) इसी प्रकार, “मुसलमान सत्य पर चल रहे हैं और काफिर झूठ पर।” (47:3) यही नहीं, अल्लाह के सिवा अन्य देवी-देवताओं को ताना दिया गया है कि उन्हें बुला कर देख लो,े क्या कर सकते हैं तुम्हारे लिए (7: 194-195)


करान अन्य धर्मों के देवी-देवताओं को निकृष्ट, व्यर्थ बताता है, “जो न किसी को लाभ पहुँचा सकते हैं, न हानि” (25:55) कुरान के अनुसार जो अल्लाह को न मानकर झूठे ईश्वर मानते हैं, वे झूठे ईश्वर अपने अनुयायियों को प्रकाश से अँधेरे की ओर ले जाते हैं (2:257) वे जहन्नुम की आग में जाएंगे और वही रहेंगे। आगे, “मुसलमानों का संरक्षक अल्लाह है, काफिरों का कोई संरक्षक नहीं है।” (47:11)


वस्तुतः, कुरान दूसरे धर्म मानने वालों को भी हर तरह की कटु बातें और अपशब्द कहता है। जैसे, “अल्लाह काफिरों का दुश्मन है” (2:98) कुरान के अनुसार, “जो हमारी आयतों को नहीं मानते, वे बहरे, गूँगे और अँधे हैं।” (6:39) इस बात को दुहराया भी गया है। कुरान में अल्लाह कहते हैं, कि “हम ने बिलकुल साफ संकेत (आयतें) भेजी हैं, और केवल बदमाश ही उस से इंकार करेंगे।” (2:99) उनकी खुली घोषणा है कि “काफिरों के लिए दुःखदायी यातना तय है।” (2:104) साथ ही, “अल्लाह का संदेशवाहक सभी रिलीजनों पर भारी पड़ेगा, चाहे मूर्तिपूजक इसे कितना भी नापसंद क्यों न करें।” (9:33) दरअसल, काफिरों के प्रति घृणा और हिंसा के आवाहन कुरान और प्रोफेट मुहम्मद की जीवनी (सीरा) में निरंतर दुहराई गई बात, सिग्नेचर-ट्यून जैसी है। अल्लाह खुद कहता है कि कुरान ‘चेतावनी’ और ‘मेरी धमकी’ है (50:45)


तो जनाब अमानुल्ला खान, इसे देखते हुए काफिरों का क्या कर्तव्य बनता है? अपने को कोसने वालों को, अपने घोषित दुश्मन को कोई कैसे सम्मान दे सकता है? यदि सीरा और हदीस को मिलाकर पूरा आंकलन किया जाए, तो इस्लाम का एकमात्र लक्ष्य है – जैसे भी हो काफिरों का खात्मा। इतने तीखेपन से कि मुसलमानों को अपने सगे-संबंधियों तक से दुराव रखने के लिए कहा गया है। धमकी के साथ।


करान में साफ निर्देश है, ‘‘ओ मुसलमानों! अपने पिता या भाई को भी गैर समझो, अगर वे अल्लाह पर ईमान के बजाए कुफ्र पसंद करते हों। तुम्हारे पिता, भाई, पत्नी, सगे-संबंधी, संपत्ति, व्यापार, घर – अगर ये तुम्हें अल्लाह और उन के प्रोफेट, तथा अल्लाह के लिए लड़ने (जिहाद) से ज्यादा प्यारे हों, तो बस इन्तजार करो अल्लाह तुम्हारा हिसाब करेगा।’’ (9: 23,24)


सो, अमानुल्ला खान अच्छी तरह सोचें, कि धर्मों का मान-सम्मान एकतरफा नहीं हो सकता। आज नहीं तो कल, तमाम ईमामों, अयातुल्लाओं, और उलेमा को दुनिया भर की मस्जिदों से खुली घोषणा करनी होगी कि कुरान में दूसरे धर्मों, देवी-देवताओं, और उन्हें पूजने वालों को जो अपशब्द कहे गए हैं, वे अब खारिज, कैंसिल हैं। मुसलमानों को उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते, तो एकतरफा इस्लाम को आदर की माँग करने का हक नहीं रखते! - डॉ. शंकर शरण 

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चैत्र नूतनवर्ष का इतिहास जानकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करेंगे

08 अप्रैल 2021

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चैत्रमास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पाड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है । इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है । 'गुड़ी' का अर्थ 'विजय पताका' होता है । इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है ।



चैत्रमास की शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि की उत्पति हुई थी और इस दिन कुछ ऐसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैं जिसके कारण इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।


आइये आपको इस दिन के इतिहास से जुड़ी कुछ घटनाएं बताते हैं...।


इतिहास में इस प्रकार वर्णित है चैत्री वर्ष प्रतिपदा...


1. भगवान ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि का सर्जन...


2. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्‍याभिषेक...


3. माँ दुर्गा के नवरात्र व्रत का शुभारम्भ...


4. प्रारम्‍भयुगाब्‍द (युधिष्‍ठिर संवत्) का आरम्‍भ..


5. उज्जैनी सम्राट विक्रमादित्‍य द्वारा विक्रमी संवत्प्रारम्‍भ..


6. शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्‍ट्रीय पंचांग) का प्रारंभ...


7. महर्षि दयानन्द जी द्वारा आर्य समाज का स्‍थापना दिवस..


8. भगवान झूलेलाल का अवतरण दिन..


9. मत्स्यावतार दिवस..


10 - डॉ॰केशवराव बलिरामराव हेडगेवार जन्मदिन  ।


नतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती हैं...!!! इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है ।  चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं ।


शक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है । ‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है । महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक...दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की थी  ।


वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में गुड़ीपड़वा की गिनती होती है ।  इसी दिन भगवान श्री राम ने बालि के अत्याचारी शासन से प्रजा को मुक्ति दिलाई थी ।


नव वर्ष का प्रारंभ प्रतिपदा से ही क्यों...???


भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है ।


आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यवहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है । इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है ।


विक्रमी संवत किसी की संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है । हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं । यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं, ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है ।


भारतीय गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थों में प्रकृति के शास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है ।


परतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है । ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की । यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं ।


आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं । यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है ।  प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है । मानव, पशु-पक्षी यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है ।


इसी प्रतिपदा के दिन आज से उज्जैनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की । उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा ।


महाराज विक्रमादित्य ने चैत्री प्रतिपदा के दिन से राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की । साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई । उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी  ।


महाराजा विक्रमादित्य ने भारत की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की । सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया । इसी दिन को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक के रूप में मनाया गया ।


यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है । इसी दिन महाराज युधिष्ठर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया ।


आज भी यह दिन सामाजिक और धर्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है । यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है । हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में शक्ति संचय करते हैं ।


कसे मनाएं नूतन वर्ष...???


1- मस्तक पर तिलक, भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य , शंखध्वनि, धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कालेज आदि सभी  मुख्य प्रवेश द्वारों पर बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भगवा ध्वजा फहराकर सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।


अब से सभी भारतीय संकल्प लें कि अंग्रेजों द्वारा चलाया गया नववर्ष(1 जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष) न मनाकर अपना महान हिन्दू धर्म वाला नववर्ष (इस साल 13 अप्रैल ) को मनाएंगे ।


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विश्व स्वास्थ्य दिवस पर जान लीजिए आजीवन स्वस्थ रहने के नियम

07 अप्रैल 2021

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आजकल पाये जाने वाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है। हम अपनी दिनचर्या शरीर की जैविक घड़ी के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगों की सक्रियता का हमें अनायास ही लाभ मिलेगा। इस प्रकार थोड़ी-सी सजगता हमें स्वस्थ जीवन की प्राप्ति करा देगी।



जविक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या ऐसे बनाएं...


★ प्रातः 3 से 5 – इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से फेफड़ो में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना चाहिए । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु ( ऑक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहनेवालो का जीवन निस्तेज हो जाता है ।


★ प्रातः 5 से 7 – इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से आंत में होती है। प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल-त्याग एवं स्नान कर लेना चाहिए । सुबह 7 के बाद जो मल – त्याग करते हैं, उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।


★ सुबह 7 से 9 – इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से आमाशय में होती है। यह समय भोजन के लिए उपर्युक्त है । इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं। भोजन के बीच –बीच में गुनगुना पानी (अनुकूलता अनुसार ) घूँट-घूँट पिये।


★ सुबह 11 से 1 – इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से हृदय में होती है। दोपहर 12 बजे के आस–पास मध्याह्न – संध्या (आराम ) करने की हमारी संस्कृति में विधान है। इसीलिए भोजन वर्जित है । इस समय तरल पदार्थ ले सकते हैं। जैसे मट्ठा पी सकते हैं।  दही खा सकते हैं।


★ दोपहर 1 से 3 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से छोटी आंत में होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्त्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर धकेलना है। भोजन के बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए । इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो जाता है ।


★ दोपहर 3 से 5 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से मूत्राशय में होती है । 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृति होती है।


★ शाम 5 से 7 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से गुर्दे में होती है । इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए । शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल) भोजन नही करना चाहिए। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते हैं । देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है।


★ रात्रि 7 से 9 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से मस्तिष्क में होती है । इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है । अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है । आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टि हुई है।


★ रात्रि 9 से 11 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु में होती है। इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है । इस समय का जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है । यदि इस समय भोजन किया जाय तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।


★ रात्री 11 से 1 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से पित्ताशय में होती है । इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा , नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है । इस समय नई कोशिकाएं बनती हैं ।


★ रात्रि 1 से 3 - इस समय जीवनीशक्ति विशेष रूप से लीवर में होती है । अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है। इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन-तंत्र को बिगाड़ देता है । इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता हैं, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएं मंद होती हैं। अतः इस समय सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती हैं।


नोट :-- ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखे, जिससे ऊपर बताए भोजन के समय में खुलकर भूख लगे। जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें। इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। कुर्सी पर बैठकर भोजन करने में पाचनशक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो बिल्कुल नहींवत् हो जाती है। इसलिए ʹबुफे डिनरʹ से बचना चाहिए।


पथ्वी चुम्बकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही सोयें, अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती हैं।


शरीर की जैविक घड़ी को ठीक ढंग से चलाने हेतु रात्रि को बत्ती बंद करके सोयें। इस संदर्भ में हुए शोध चौंकाने वाले हैं। देर रात तक कार्य या अध्ययन करने से और बत्ती चालू रख के सोने से जैविक घड़ी निष्क्रिय होकर भयंकर स्वास्थ्य-संबंधी हानियाँ होती हैं। अँधेरे में अथवा कम प्रकाश में सोने से यह जैविक घड़ी ठीक ढंग से चलती है।


आप अपना जीवन नियमित बनाएं और स्वस्थ रहें।


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अमेरिका जो करोड़ो डॉलर खर्च के नही समज पाया वह एक संत ने चुटकी में बता दिया

06 अप्रैल 2021

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किसी भी देश की सच्ची संपत्ति संतजन ही होते हैं। वे जिस समय प्रगट होते हैं उस समय के जन-समुदाय के लिए उनका जीवन ही सच्चा मार्गदर्शक होता है। उत्तर भारत में तपस्यामय जीवन बिताकर पूज्य श्री लीलाशाहजी बापू नयी शक्ति, नयी ज्योति एवं अंतर की दिव्य प्रेरणा प्राप्त कर, लोगों को सच्चा मार्ग बताने, गरीब एवं दुःखी लोगों को ऊँचा उठाने तथा सतशिष्यों एवं जिज्ञासुओं को ज्ञानामृत पिलाने के लिए कई वर्षों के बाद सिंध देश में आये।



पज्य संत श्री लीलाशाहजी बापू ने धार्मिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक हर क्षेत्र में उन्होंने कार्य शुरू किया। वे मानो स्वयं एक चलती-फिरती संस्था थे, जिनके द्वारा अनेक कार्य होते थे।


चन्द्र लोक में कुछ नही बनेगा


एक बार गुजरात के मेहसाणा से पाटन ट्रेन में लीलाशाहजी के साथ डॉ. शोभसिंह नामक एक सज्जन 'टाइम्स आफ इन्डिया' अखबार पढ़कर खुश होते-होते लीलाशाहजी बापू से कहने लगेः 'बापू ! बापू ! देखो, आज वैज्ञानिकों ने कितनी सारी प्रगति कर ली है ! वैज्ञानिक रॉकेट में बैठकर चन्द्रलोक तक घूम आये, वहाँ से मिट्टी भी ले आये। अब वे लोग एक वर्ष में वहाँ हॉटल बनानेवाले हैं, जिससे धनवान लोग वहाँ छुट्टियों में रह सकेंगे।"


लीलाशाहजी बापू ने एक मिनट अन्तरात्मा के ध्यान में डुबकी लगाकर कहाः *"अभी कुछ नहीं होने वाला है। होटल-वोटल कुछ नहीं बनेगा। सब चुप होकर बैठ जायेंगे।"


 आज उस बात को लगभग सैकंडो वर्ष हो गये हैं। करोड़ों डॉलर खर्च हो गये, फिर भी आज तक चन्द्रलोक पर कोई हॉटल नहीं बना, दुनिया जानती है।


उस समय विश्व के तमाम समाचारपत्रों में पहले पृष्ठ पर समाचार छपे थे कि "वैज्ञानिक चन्द्रलोक तक पहुँच गये हैं। वहाँ जीवन की संभावना है और अब एकाध वर्ष में वहाँ होटल बनेगा।' परन्तु वहाँ चन्द्रलोक पर होटल तो क्या आज तक कुछ भी नहीं बना, यह आप सभी जानते ही हो।


कसा होगा उन महापुरुषों का चित्त ! चलती ट्रेन में ही अन्तर्मुख होकर ऐसा सत्य संदेश सुना दिया कि जो आज तक सत्य साबित हो रहा है। धन्य है भारत और धन्य है भारत के आत्मारामी संत!


नीम का पेड चला


सिंध में किसी जमीन की बात में हिन्दू और मुसलमानों का झगड़ा चल रहा था। उस जमीन पर नीम का एक पेड़ खड़ा था, जिससे उस जमीन की सीमा-निर्धारण के बारे में कुछ विवाद था। हिन्दू और मुसलमान कोर्ट-कचहरी के धक्के खा-खाकर थके। आखिर दोनों पक्षों ने यह तय किया कि यह धार्मिक स्थान है। दोनों पक्षों में से जिस पक्ष का कोई पीर-फकीर उस स्थान पर अपना कोई विशेष तेज, बल या चमत्कार दिखा दे, वह जमीन उसी पक्ष की हो जायेगी।

 

पज्य लीलाशाहजी बापू का नाम पहले ‘लीलाराम’ था। हिंदू लोग पूज्य लीलारामजी के पास पहुँचे और बोले: “हमारे तो आप ही एकमात्र संत हैं। हमसे जो हो सकता था वह हमने किया, परन्तु असफल रहे। अब समग्र हिन्दू समाज की प्रतिष्ठा आपश्री के चरणों में है ।


पज्य लीलारामजी उनकी बात मानकर उस स्थान पर जाकर भूमि पर दोनों घुटनों के बीच सिर नीचा किये हुए शांत भाव से बैठ गये।

 

मसलमान लोगों ने उन्हें ऐसी सरल और सहज अवस्था में बैठे हुए देखा तो समझ लिया कि ये लोग इस साधु को व्यर्थ में ही लाये हैं। यह साधु क्या करेगा …? जीत हमारी होगी।

 

पहले मुस्लिम लोगों द्वारा आमंत्रित पीर-फकीरों ने जादू-मंत्र, टोने-टोटके आदि किये। ‘अला बाँधूँ बला बाँधूँ… पृथ्वी बाँधूँ…तेज बाँधूँ… वायू बाँधूँ… आकाश बाँधूँ… फूऽऽऽ‘ आदि-आदि किया पर कुछ हुआ नही फिर पूज्य लीलाराम जी की बारी आई।

 

जब लोगों ने पूज्य लीलारामजी से आग्रह किया तो उन्होंने धीरे से अपना सिर ऊपर की ओर उठाया। सामने ही नीम का पेड़ खड़ा था। उस पर दृष्टि डालकर गर्जना करते हुए आदेशात्मक भाव से बोल उठे : “ऐ नीम ! इधर क्या खड़ा है ? जा उधर हटकर खड़ा रह।”

 

बस उनका कहना ही था कि नीम का पेड ‘सर्रर्र… सर्रर्र…’ करता हुआ दूर जाकर पूर्ववत् खड़ा हो गया।

 

लोग तो यह देखकर आवाक रह गये ! आज तक किसी ने ऐसा चमत्कार नहीं देखा था। अब विपक्षी लोग भी उनके पैरों पड़ने लगे। वे भी समझ गये कि ये कोई सिद्ध महापुरुष हैं।

 

व हिन्दुओं से बोले : “ये आपके  ही पीर नहीं हैं बल्कि आपके और हमारे सबके पीर हैं। अब से ये ‘लीलाराम’ नहीं किंतु ‘लीलाशाह’ हैं। तब से लोग उनका ‘लीलाराम’ नाम भूल ही गये और उन्हें ‘लीलाशाह’ नाम से ही पुकारने लगे। लोगों ने उनके जीवन में ऐसे-ऐसे और भी कई चमत्कार देखे।


ऐसे उनके द्वारा अनेकों चमत्कार हुआ, लीलाशाहजी महाराज ने अपना सम्पूर्ण जीवन देश, धर्म व समाज की सेवा में लगा दिया।


हमारे भारत देश मे ऐसे अनेकों महान संत हो गए और अभी है पर हमें उनकी महत्ता पता नही है इसलिए आज हम दुःखी, चिंतित, परेशान हैं। जिस दिन हम सच्चे संतों के मार्गदर्शन के अनुसार जीवनं गे उसदिन हम विश्व मे सबसे उन्नत होंगे।


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एक ऐसे संत जिन्होंने देश विभाजन के समय किये ऐसे कार्य जो सोच से परे है

05 अप्रैल 2021

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15 अगस्त 1947 के दिन संत-महात्माओं के शुभ संकल्पों क्रांतिकारियों के बलिदान 

एवं भारतवासियों के पुरुषार्थ से, भारत अंग्रेजों की दासता से मुक्त हुआ। देशभक्तों का स्वप्न साकार हुआ। देश में चारों ओर प्रसन्नता की लहर छा गयी.... परन्तु दूसरी ओर इसी के साथ दुःखद घटना भी बनी।



भारत छोड़ते समय अंग्रेज भारत एवं पाकिस्तान ये दो भाग करके, देश के टुकड़े करके भारत के लिए अशांति, दुःख एवं मुसीबतों की आग जलाते गये। मलिन वृत्ति वाले मुसलमान हिन्दुओं पर खूब जुल्म ढाने लगे। वे लोग हिन्दू एवं सिक्खों को लूटते, बेईज्जती करते, मारपीट करते, खून-खराबा करते, बच्चियों एवं स्त्रियों की इज्जत लूटते, उन्हें उठा ले जाते।


हिन्दुओं की माल-मिल्कियत, इज्जत एवं धर्म की रक्षा का कोई उपाय न रहा। ऐसी खराब हालत में हिन्दुओं को पाकिस्तान छोड़कर भारत में आना पड़ा। पूर्व बंगाल के हिन्दू लोगों ने पश्चिम बंगाल एवं पश्चिम पंजाब के हिन्दुओं ने पूर्व पंजाब में आकर फिर से नयी जिंदगी शुरू की। उत्तर एवं दक्षिण की सीमा में रहने वाले लोग भी पूर्व पंजाब एवं दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में आकर रहने लगे। खास करके बलूचिस्तान एवं सिंध के हिन्दुओं को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। पूर्व पंजाब, बिहार एवं दूसरे शहरों में से मुसलमानों ने सिंध एवं बलूचिस्तान पर चढ़ाई करके हिन्दुओं की जमीन-जायदाद पर कब्जा कर लिया। इसलिए विवश होकर ये लोग भी निराश्रित बन कर भारत में आश्रय लेने के लिए आये।


इन लोगों के रहने के लिए भारत सरकार ने अलग-अलग जगहों पर केम्प बना दिये जिससे  वे निश्चिंतता की साँस ले सकें। अपनी जान बचाने के लिये, डर के मारे एक ही कुटुंब के व्यक्ति अलग-अलग जगह बँटकर दूर हो गये। अनजान भारत में भागकर आये हुए हिन्दुओं के पास रहने के लिए मकान नहीं, खाने के लिए अन्न का दाना नहीं, कमाने के लिए नौकरी-धंधा नहीं.... ऐसी स्थिति में इन लोगों को प्रेम, स्नेह, हमदर्दी एवं सहारे की सख्त जरूरत थी।


ऐसी विकट परिस्थिति में पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज उन लोगों के रक्षणहार, तारणहार एवं दिव्य प्रकाश के स्तंभरूप बने। पूज्यश्री लीलाशाहजी महाराज उन लोगों को समझाते कि 'दुःख एवं मुसीबत कसौटी करने के लिए ही आते हैं। ऐसे समय में धैर्य एवं शान्ति से काम लेना चाहिए।'


लोगों की दया जनक स्थिति देखकर, उन्होंने रात-दिन देखे बिना तत्परता से लोकसेवा शुरू कर दी। कभी दिल्ली, जयपुर, अलवर, खेड़थल, जोधपुर तो कभी अजमेर, अमदावाद, मुंबई, बड़ौदा, पाटण वगैरह स्थलों पर जाकर वे निःसहाय, दुःखी लोगों के मददगार बने। दुःखियों के दुःख दूर करने, उन्हें नये सिरे से जिंदगी शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने एवं उन्हें जीवनोपयोगी वस्तुएँ दिलाने में उन्होंने अपनी जरा भी परवाह नहीं की।


महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, राजस्थान के राजाओं एवं काँग्रेस के आगेवानों के साथ उनका खूब अच्छा संबंध था। पहले से ही पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज उन लोगों के पूजनीय एवं आदरणीय बन गये थे अतः वे लोग भी सिंध से आये हुए हिन्दुओं के लिए सहायक बने। पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज राजस्थान, गुजरात, उत्तर भारत एवं जहाँ-जहाँ सिंध तथा बलूचिस्तान के हिन्दू सिक्ख बसे थे वहाँ-वहाँ जाकर उन लोगों के साथ बैठकर सारी जानकारी लेते थे एवं जरूरत के मुताबिक उन लोगों को मकान, कपड़े, पैसे, नौकरी एवं अन्य जीवनोपयोगी वस्तओं की व्यवस्था करवा देते थे।

 

शायद सिंधी अपना धर्म न भूल बैठें एवं अपनी संस्कृति को न छोड़ दें, इसलिए पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज बारंबार धर्म के अनुसार जीवन जीने का उपदेश देते। आलस्य छोड़कर, पुरुषार्थी बनने का, अपनी अक्ल-होशियारी से स्वावलंबी बनने का एवं उन्नत जीवन बनाने का मार्गदर्शन देते। भीख माँगकर रहने या सरकार के भरोसे रहने की जगह पर स्वाश्रयी बनकर लोगों को नौकरी-धंधा करने की सलाह देते। किसी को नौकरी, किसी को खेती-बाड़ी तो किसी को धंधा करने का प्रोत्साहन देते। कई जगहों पर बच्चों के लिए स्कूल भी बनवा देते। लोगों के जीवन को उन्नत बनाने के लिए केवल सत्संग की भाषा ही नहीं, वरन् वीरता, सदाचार, संयम, निर्भयता जैसे सदगुणों को बढ़ाने का भी संकेत करते। इस विषय की धार्मिक पुस्तकें सिंधी लोगों में बाँटते। उस समय उन्होंने स्वामी श्री रामतीर्थ के प्रमुख शिष्य नारायण स्वामी की लिखी हुई पुस्तक 'उन्नति के लिए दुःख की जरूरत' को सिंधी भाषा में छपवाकर, उसे सिंधी लोगों में बाँटकर लोगों के मनोबल एवं आत्मबल को जागृत करते।


इस प्रकार पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज के अथक परिश्रम एवं करूणा-कृपा के फलस्वरूप सिंधी लोग पुरुषार्थी बनकर, अपने पैरों पर खड़े रहकर, प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए, इज्जत एवं स्वाभिमान से रहने लगे। आज सिंधी लोग भारत एवं विदेशों के


ने-कोने में रहकर मान-प्रतिष्ठा एवं समाज में उच्च स्थान रखते हैं। यह पूरा शानदार गौरव, प्रेम एवं करूणा की साक्षात् प्रतिमास्वरूप पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज को जाता है ऐसा कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं है।


पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज को हमेशा यही फिक्र रहती कि अपने देशवासियों को किस प्रकार सुखी एवं उन्नत बनाऊँ? इसके लिए उन्होंने बहुत मेहनत करके मकानों के साथ स्कूलें, रात्रि पाठशालाएँ, पुस्तकालय एवं व्यायामशालाएँ स्थापित करवायीं। जहाँ-जहाँ वे जाते वहाँ-वहाँ कसरत सिखाते। शरीर स्वस्थ रखने के लिए यौगिक क्रियाओं के साथ प्राकृतिक उपचार बताते। यदि कोई बीमार व्यक्ति उनके पास जाता तो उसे दवा तो नाममात्र की देते, बाकी तो उनके आशीर्वाद से ही सब अच्छे हो जाते। जब राह भूले नवयुवान अपने यौवन का नाश करके उनके पास मदद माँगते तब वे उन्हें सत्संग सुनाते, प्राचीन भक्तों एवं वीर पुरुषों का वार्ताएँ कहते। उन लोगों को कसरत एवं यौगिक क्रियाओं के साथ प्राकृतिक इलाज बताते। सदाचारी बनने के लिए पुस्तकें भी देते। उन्होंने ऐसे हजारों नवयुवानों का जीवन स्नेह की छाया एवं उच्च मार्गदर्शन देकर सुधारा था।


सिंध से अपना घर-बार, जमीन-जागीर खोकर जो लोग भारत में स्थायी हुए थे उनके लिए पूज्य श्री लीलाशाहजी महाराज का उद्देश्य था उन लोगों के धर्म, संस्कृति, संस्कार एवं इज्जत की रक्षा करें।


आपको ये भी बता दें कि ऐसे महान संत के शिष्य संत आशारामजी बापू थे, पूज्य लीलाशाहजी बापू ने देश, धर्म व संस्कृति और समाज उत्थान के कार्य करने के लिए आज्ञा दी और वे उसी अनुसार पुरजोर से कार्य कर रहे थे पर राष्ट्र विरोधी ताकते ने उनको झूठे केस में फंसाकर जेल भेज दिया, अब देखते हैं उनको न्याय कब मिलता हैं।


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