Saturday, February 12, 2022

दो दिन से ट्वीटर पर टॉप में कौन-से ट्रेंड चल रहे हैं और क्यों चल रहे हैं?

09 मई 2021

azaadbharat.org


शनिवार और रविवार दो दिन से ट्वीटर पर खास टॉप ट्रेंड चल रहे हैं। दरअसल बात यह है कि 85 वर्षीय हिंदू संत आशाराम बापू का स्वास्थ्य बिगड़ने पर जनता उनकी रिहाई की सतत मांग कर रही है। शनिवार को ट्रेंड चल रहा था- #जनता_मांगे_बापू_की_रिहाई

और रविवार को ट्रेंड चल रहा था- 

#ReleaseAsharamBapu



🚩आईए जानते हैं उसमें जनता ने क्या कहा ट्वीट करके...।


★अश्विनी जायसवाल ने लिखा कि कहते हैं कानून सबके लिए समान है, पर Sant Shri Asharamji Bapu के केस में तो अन्याय की सारी हदें पार हुईं... पिछले 8 सालों से एक झूठे केस में जेल में बंद #Bapuji को आज इतनी गम्भीर बीमारी में भी जमानत नहीं... और अभी भी तारिख पे तारिख...

We demand justice for Bapuji

 #ReleaseAsharamBapu https://t.co/6tAc0mksyf


★ जनार्दन मिश्रा ने लिखा कि इमाम बुखारी और मौलाना साद धड़ल्ले से बाहर घूम रहे हैं तो हिन्दू संत #आसारामजी को जमानत भी क्यों नहीं?

@narendramodi जी आसारामजी की आयु 85 वर्ष है, अब उन्हें जेल में कैद रखना कितना उचित है?? और कुछ नहीं तो कम से कम उनकी 85 वर्ष की आयु का लिहाज करके उन्हें जेल से मुक्त करना चाहिए...

https://twitter.com/janardanmis/status/1390570060121395204?s=19


★ धैर्य कुमार ने लिखा कि धर्म की रक्षा के लिए जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को समर्पित कर दिया, उन्हें आज इतनी प्रताड़ना दी जा रही! क्या यही भारत का संविधान है कि जो देश की सेवा करे उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है? निर्दोष को प्रताड़ना और दोषी को जमानत!

#ReleaseAsharamBapu  https://t.co/H697Pl5Nxi


★ मनीषा पटेल ने लिखा कि Sant Shri Asharamji Bapu केस में जो भी तथ्य मिले उनके आधार पर वे निर्दोष हैं, उनकी Medical Report के अनुसार वे Corona positive हैं औऱ उनकी सेहत बेहद खराब है इस वक्त। करोड़ों देशवासियों की मांग है 

#ReleaseAsharamBapu

https://twitter.com/manishapatel342/status/1391348640128536584?s=19


★ नेति लिखती है कि 

Sant Shri Asharamji Bapu को क्यों बनाया जा रहा है निशाना❓कयोंकि बापूजी हिंदुत्व की रक्षा के लिए और धर्मांतरण को रोकने में सबसे आगे हैं। जो ईसाई मिशनरियों के आँख को नहीं भाया। इसलिए आज उन्हें झूठे आरोप में जेल भेज दिया।

#ReleaseAsharamBapu https://t.co/UVxac8X4i6


★ रविंद्र ने लिखा कि इस घातक बीमारी की चपेट में जोधपुर जेल के कई कैदी आ चुके हैं और वहीं करोड़ों लोगों की आस्था के केन्द्र निर्दोष #Bapuji भी कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। जबकि एक भी सबूत नहीं, सिर्फ POCSO एक्ट के दुरुपयोग के कारण Sant Shri Asharamji Bapu जेल में हैं।

Justice for Bapuji

#ReleaseAsharamBapu

https://twitter.com/RvQuotes/status/1391348244450480133?s=19


★आँचल ने लिखा है कि Sant Shri Asharamji Bapu को देश, धर्म उत्थान सेवाकार्यों से हटाने हेतु उन्हें रेप केस में फंसा कर जेल दी गई, अब उनकी सेहत बेहद खराब है वे Corona Positive हैं। कोने-कोने से देशवासियों की मांग है, #ReleaseAsharamBapu तुरन्त।

https://twitter.com/AnchalJagga/status/1391348209037897729?s=19


★ लवीना ने लिखा कि नेताओं अभिनेताओं को आरोप सिद्ध होने के बाद भी बेल/पैरोल मिल जाती है।

पर लोकसेवक संत Sant Shri Asharamji Bapu के लिए ना बेल है, ना पैरोल

8 वर्षों से वे न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं...! #ReleaseAsharamBapu

https://twitter.com/LavinaMulchand4/status/1391348110195138563?s=19


★दिव्या शर्मा ने लिखा कि अपने दम पर Sant Shri Asharamji Bapu ने धर्मान्तरणकारियों से लोहा लिया, उन्हें ही फर्जी केस में जेल? गम्भीर स्वास्थ्य दिक्कतें जिनमे उन्हें कोविड भी है, तब भी सरकार बेल क्यों नहीं दे रही उन्हें? करोड़ों लोगों की एक ही मांग है !!

#ReleaseAsharamBapu https://t.co/Aliq64YmRC


★असावरी पाटिल ने लिखा कि Sant Shri Asharamji Bapu वर्षों से BOGUS CASE में सताए जा रहे हैं भयानक बीमारियों के चलते भी उन्हें न सही इलाज और न ही BAIL दी जा रही है। लाखों लोगों की एक ही मांग है अब BAPUJI को BAIL दो जल्दी।

#ReleaseAsharamBapu

https://twitter.com/AsavariPatil8/status/1391347969853587459?s=19


★पार्थ चौहान ने लिखा कि सत्य न कभी दबाया जा सकता है, न छुपाया जा सकता है, आज समाज के बड़े पदाधिकारी, आर्मी officers, बड़े बड़े संत व सनातन सभाओं के अध्यक्ष सभी Sant Shri Asharamji Bapu की निर्दोषता के समर्थन में हैं व उनकी मांग है संत को रिहाई दे सरकार।

#ReleaseAsharamBapu https://t.co/NmczNO8PcV


★ कृष्णा ने लिखा कि भारत हित में Sant Shri Asharamji Bapu ने अनेकों देशसेवाएँ चलाईं, बाल संस्कार केंद्र खुलवाए, व्यसनमुक्ति अभियान चलाए; बदले में मिला कटुफल, फर्जी


में आजीवन जेल, एक दिन बेल नहीं दी गई उन्हें, हमारी मांग बीमार वयोवृद्ध संत को रिहाई दो।

#ReleaseAsharamBapu

https://t.co/lBGbUH3ETB


★ अश्विनी ने लिखा कि संत जिन्हें भारतीय संस्कृति का नींव कहा गया है पर देश की दुर्भाग्यता तो देखो कैसे निर्दोष Sant Shri Asharamji Bapu को षड्यंत्रकारियों ने एक झूठे केस में आजीवन कारावास करवा दिया जिन्हें आज गम्भीर बीमारी में भी बेल नहीं मिल रही जबकि कई कैदियों को तुरंत जमानत मिली।

#ReleaseAsharamBapu https://t.co/OitI5ddweX


★ श्रद्धा ने लिखा कि जो कानून बने हौसला बढ़ाने के लिए उन्हींको हथियार बनाकर आज निर्दोषों को फंसाया जा रहा है। कानून के दुरुपयोग का प्रत्यक्ष उदाहरण Sant Shri Asharamji Bapu पर किया गया फर्जी केस  #जनता_मांगे_बापू_की_रिहाई

#मानवाधिकार_से_वंचित_निर्दोष_संत https://t.co/Jl0mHQeV71


★ नवीन ने लिखा कि Sant Shri Asharamji Bapu गलत तरीके से दोषी करार दिए गए हैं उनके केस में आज तक उनके विरुद्ध 1 भी प्रूफ नहीं मिल सका, उनकी Serious Health Conditions को सरकार नजरअंदाज क्यों कर रही है❓ Bapuji को न्याय दो BAIL दो।

#जनता_मांगे_बापू_की_रिहाई

https://twitter.com/navingujrati/status/1391292516960333829?s=19


★ विश्वकर्मा ने लिखा कि यौन शोषण का आरोप तो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर भी लगा था पर साजिश है कहकर उनकी केस खारिज कर दी गई। ठीक वही साजिश Sant Shri Asharamji Bapu पर हुई है तो उनका केस खारिज क्यों नहीं? 

बापूजी को रिहा करो #जनता_मांगे_बापू_की_रिहाई


★ सोनू साहू ने लिखा कि क्या सरकार को संत के कार्य दिखाई नहीं देते🤔 जो बिना सबूत के समाज हितैषी Sant Shri Asharamji Bapu को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। आज पूज्यश्री का स्वास्थ्य corona संक्रमण से बिगड़ गया है। क्या सरकार एक संत के कार्य को देखते हुए उन्हें रिहा नहीं कर सकती❓

#जनता_मांगे_बापू_की_रिहाई

https://twitter.com/SonuSah29330189/status/1391268618973847554?s=19


गौरतलब है कि हिंदू संत आशाराम बापू पिछले 8 साल से जोधपुर जेल में बंद हैं, उनकी रिहाई की सतत मांग उठती रही है, अब देखते हैं- न्यायालय और सरकार उनको कब रिहा करती है?


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वास्तव में वैज्ञानिक ऋषि-मुनि ही थे.. जानिए उनके दिव्य आविष्कार !!

08 मई 2021 

azaadbharat.org


भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि के नाम से पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से पटी पड़ी है। सनातन धर्म वेदों को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेदों में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किये व युक्तियां बताई। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।



कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।


★ भास्कराचार्य :- आधुनिक युग में धरती की #गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने #‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।


★ आचार्य कणाद :- कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी #जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।

उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।


★ ऋषि विश्वामित्र :- ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।

ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग करना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।


★ ऋषि भारद्वाज :- आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।


★ गर्ग मुनि :- गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार।

ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ।  कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।


★ महर्षि सुश्रुत :- ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।

जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।


★ आचार्य चरक :- ‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी।


★ पतंजलि :- आधुनिक दौर में

बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।


★ बौद्धयन :- भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोर के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’₹ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।


★ महर्षि दधीचि :- महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान कर महर्षि दधीचि पूजनीय व स्मरणीय हैं।इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए।देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया।

विश्वरूप, त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।


ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए अस्थियों का वज्र बनाने का उपाय बताकर देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी अस्थियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।


★ महर्षि अगस्त्य :- वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।


★ कपिल मुनि :- भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की चाहत की। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाता है।

इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर के द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।


★ शौनक ऋषि :- वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों की तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।


★ ऋषि वशिष्ठ :- वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।


★ कण्व ऋषि :- प्राचीन ऋषियों-मुनियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।

(स्त्रोत : हिन्दू जन जागृति)


विश्व में जितनी भी खोजे हुई हैं वो हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान की गहराई में जाकर खोजी हैं जिनकी आज के वैज्ञानिक कल्पना भी नही करते हैं ।


आज ऋषि-मुनियों की परम्परा अनुसार साधु-संत चला रहे हैं । उनको राष्ट्र विरोधी तत्वों द्वारा षडयंत्र के तहत बदनाम किया जा रहा है और जेल भिजवाया जा रहा है । अतः देशवासी षडयंत्र को समझें और उसका विरोध करें।


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कोरोना महामारी में सरकार व न्यायालय को इसपर ध्यान देना जरूरी है

07 मई 2021

azaadbharat.org


कोरोना वायरस ने भयंकर तांडव मचाया है। कोरोना वायरस सबसे ज्यादा 60 साल से ऊपर के उम्रवालों पर जल्दी हमला करता है और अभी तक जितनी भी मौतें हुई हैं उनमें अधिकतर 60 साल से ऊपर की उम्रवाले हैं, फिर सुप्रीम कोर्ट और सरकारें उन बुजर्गों को जेल से क्यों रिहा नहीं कर रही हैं? और सबसे बड़ी बात है कि अधिक उम्रवाले रिहा करने पर बाहर आकर कोई अपराध भी नहीं करेंगे इसलिए सरकार को चाहिए कि जिनकी 60 साल से ऊपर की उम्र है और जो गर्भवती महिलाएं हैं उनको शीघ्र रिहा करने की व्यवस्था करनी चाहिए- ऐसी जनता की मांग है।



आपको ये भी बता दें कि बापू आशारामजी की उम्र 85 वर्ष की है, उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है और उनके निर्दोष होने के प्रमाण होते हुए भी 8 साल से जेल में हैं लेकिन आजतक एक दिन भी जमानत नहीं दी गई।

जब मौलाना साद, ईमाम बुखारी, बिशप फ्रेंको, सलमान खान, तरुण तेजपाल, लालू प्रसाद यादव आदि को भी जमानत मिल सकती है तो 85 वर्षीय हिंदू संत आशाराम बापू को क्यों नहीं मिल सकती?


वर्तमान में हिंदू संत आशाराम बापू की उम्र 85 साल की हो गई है और उन्होंने 57 साल से अधिक समाज, देश और संस्कृति की सेवा में अतुल्य योगदान दिया है तो क्यों न सरकार पहले उनको रिहा करे!


आपको बता दें कि उनके निर्दोष होने और उन्हें षड्यंत्र के तहत फ़ंसाने के पुख्ता सबूत भी हैं। आरोप लगाने वाली लड़की की मेडिकल में एक खरोंच भी नहीं आया है। लड़की की कॉल डिटेल से स्पष्ट हुआ कि घटना की रात लड़की किसी संदिग्ध व्यक्ति से फोन द्वारा संपर्क में थी। तथाकथित घटना के समय बापू आशारामजी मँगनी कार्यक्रम में व्यस्त थे, लड़की कुटिया में गई ही नहीं।


आपको बता दें कि बापू आशारामजी के अहमदाबाद आश्रम में एक Fax आया था जिसमें 50 करोड़ की फिरौती की मांग की गई थी और न देने पर धमकी दी गई थी कि अगर बापू ने 50 करोड़ नहीं दिए तो झूठी लड़कियां तैयार करके झूठे केस में फंसा देंगे और वे कभी बाहर नहीं आ पाएंगे पर कोर्ट ने इनके ऊपर कोई एक्शन नहीं लिया।


आशारामजी बापू द्वारा किए गए कार्य:



1). लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर धर्म के संस्कार, मकान, जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया।


2). कत्लखाने जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया।


3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।


4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया।


5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र देकर और योग व उच्च संस्कार का प्रशिक्षण देकर ओजस्वी- तेजस्वी बनाया।


6). लंदन, पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया।


7). वैलेंटाइन डे का कुप्रभाव रोकने हेतु "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया।


8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया।


9). करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया।


10). नशामुक्ति अभियान के द्वारा लाखों लोगों को व्यसनमुक्त कराया।


11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाए।


12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोटि पीठ के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी", बाबा रामदेव, मोरारी बापू, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया।


13. बच्चों के लिए "बाल संस्कार केंद्र", युवाओं के लिए "युवा सेवा संघ", महिलाओं के लिए "महिला उत्थान मंडल" खोलकर उनका जीवन धर्ममय व उन्नत बनाया।


ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं।


हिंदू संत आशाराम बापू पर जिस तरह से षड्यंत्र हुआ है उसको देखते हुए और उनके द्वारा किए गये राष्ट्र-संस्कृति व समाज उत्थान के सेवाकार्य तथा उनकी उम्र का ध्यान रखते हुए न्यायालय और सरकार को शीघ्र रिहा करना चाहिए।


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हिन्दू युवा वाहिनी और जनता ने आशाराम बापू को लेकर ये कहा...

06 मई 2021

azaadbharat.org


हिंदू संत आशाराम बापू की उम्र 85 वर्ष की है, वे 8 साल से जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। बुधवार को उनका अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने पर जोधपुर में महात्मा गांधी अस्पताल में भर्ती करवाया गया उसके बाद काफी नागरिक और संगठन उनकी तुरंत रिहाई की मांग करने लगे हैं।



जनता का कहना है कि सेशन कोर्ट का निर्णय अंतिम निर्णय नहीं होता है, निचली अदालत का फैसला ही अंतिम मानकर किसी व्यक्ति को अपराधी नहीं मान सकते हैं। निचली कोर्ट के निर्णय माननीय हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ने कई बार बदले हैं और आरोपियों को निर्दोष बरी किये हैं। सेशन कोर्ट का ही सही निर्णय माना जाता तो फिर हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था ही क्यों की गयी?


सशन कोर्ट के फैसले को सही मानकर पिछले 8 साल से ऐसे महान संत को कारावास में रखा है। किसी न किसी कारणवश हाईकोर्ट में सुनवाई नहीं हो रही। इस दौरान इस भीषण महामारी में एक ऐसे संत जिनमें करोड़ों लोगों की आस्था और विश्वास है, अगर उनको कुछ हो जाएगा तो क्या न्यायालय अथवा सरकार जवाब दे पाएगी? और क्या ऐसे महान संत की कमी पूरी कर पाएगी?  जब ऊपरी कोर्ट उन्हें निर्दोष रिहा करेगी तो उनका अनमोल समय वापस लौटा पाएगी?


अगर हिंदू संत आशाराम बापू के तथाकथित अपराध को सही माना जा रहा है तो उनके द्वारा पिछले 57 सालों से समाज, देश, व धर्म और संस्कृति के उत्थान के लिए किये जा रहे सेवाकार्यों पर नजर डाली जाए तो उसका पलड़ा कई गुना भारी है। उसको कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है?


मकेश खन्ना के नामवाले ट्वीटर हैन्डल से एक ट्वीट किया गया- उसमें पूछा गया कि क्या सरकारें और न्यायालय केवल हिन्दू साधू संतों पर ही कानून की सख्ती की हेकड़ी झाड़ते फिरते हैं?

जैसी सख्ती आशाराम बापू पर दिखाई, क्या कभी किसी मौलाना या पादरी पर दिखाई? नहीं न, जबकि आशाराम बापू के निर्दोषता के कई सबूत हैं।

पर अल्पसंख्यकों को खुश रखने के लिए हिन्दू हमेशा बली का बकरा बना है।

https://twitter.com/TheMukeshK_/status/1389535875281743879?s=19


हिन्दू युवा वाहिनी ने भी आवाज उठाई


हिन्दू युवा वाहिनी ने अपना एक पत्र जारी करके बताया कि वृद्ध हिन्दू संत श्री आशारामजी बापू को बुधवार देर रात कोरोना संक्रमण के चलते जेल प्रशासन ने जोधपुर के निचले स्तर के महात्मा गांधी अस्पताल में भर्ती करवाया है, जबकि वहाँ AIIMS अस्पताल भी सुचारु रूप से चल रहा है, जो कि हर प्रकार के आधुनिक उपकरणों एवं सुविधाओं से युक्त है। क्या AIIMS अस्पताल सिर्फ राजनेताओं, उनके परिवार और उनकी सिफ़ारिश से आने वाले मरीज़ों के लिए ही बनाए गये हैं? एक मामूली अस्पताल में जोधपुर प्रशासन द्वारा विश्व विख्यात हिन्दू संत को इलाज के लिए रखा जाना किसी षड्यंत्र की ओर इशारा कर रहा है।

हिन्दू युवा वाहिनी एक सामाजिक एवं धार्मिक संगठन होने के नाते अनुरोध करता है कि इस विकट परिस्थिति में मरीज़ के साथ प्रशासन ज़ोर ज़बरदस्ती ना करे एवं उनके अनुरूप ही उपचार कुशल डॉक्टरों की देख-रेख में AIIMS या उसके समकक्ष आयुर्वेदिक अस्पताल में करवाया जाए। 


यदि चिकित्सकों को लगता है कि उनके अंदर कोरोना के गंभीर लक्षण नहीं हैं, तो वयोवृद्ध हिन्दू संत को उनके निजी आश्रम में क्वारंटाइन की व्यवस्था कर के स्वास्थ्य लाभ लेने दिया जाए। इस महामारी के समय में मानवता को सर्वोपरि रखते हुए लाखों लोगों के संत के स्वस्थ होने के लिए जिस भी व्यवस्था की ज़रूरत हो उनको पूरा किया जाए। जैसा कि हिन्दू युवा वाहिनी के संज्ञान में है, हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में भी कहा है कि वृद्ध हिन्दू संत का उपचार AIIMS के माध्यम से ही करवाया जाए। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पूर्णत : पालन होना चाहिए अन्यथा यह सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना होगी।


आपको बता दें कि बापू आशारामजी को साजिश के तहत फंसाने के कई प्रमाण भी मिले हैं और उनके राष्ट्र, संस्कृति व समाज उत्थान के कार्य को देखते हुए तथा उनकी उम्र का ख्याल रखते हुए उनको जमानत तो मिलनी ही चाहिए- ऐसी जनता की मांग है। 


जनता ने ये भी बताया कि भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को न्याय लेने का हक है। 85 वर्षीय वयोवृद्ध भारतीय संत हैं, उनको भी न्याय लेने का हक है। कोरोना की दूसरी कातिल लहर चल रही है। बापू आशारामजी का स्वास्थ्य भी बिगड़ता रहता है तो उचित इलाज के लिए उनको पेरोल अथवा जमानत मिलनी चाहिए, उसके लिए सरकार और न्यायालय को उचित व्यवस्था करनी चाहिए- यही समय की मांग है।


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बगाल में महाभयंकर आतंक क्यों? उसके पीछे के असली कारण क्या हैं?

05 मई 2021

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असम में घुसपैठ के खिलाफ चले आंदोलन के कारण 1981 के बाद घुसपैठिये असम की बजाय प.बंगाल और उत्तर प्रदेश में जाकर बसने लगे। 1981 से 1991 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम जनसंख्या वृद्धिदर 32.90 प्रतिशत थी पर प. बंगाल के जलपाईगुड़ी जिला में यह 45.12 प्रतिशत, दार्जिलिंग जिला में 58.55 प्रतिशत, कोलकाता जिला में 53.75 प्रतिशत तथा मेदनीपुर जिला में 53.17 प्रतिशत थी। पश्चिम बंगाल की ही तरह उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिला में यह 46.77 प्रतिशत, मुजफ्फरनगर जिला में 50.14 प्रतिशत, गाजियाबाद जिला में 46.68, अलीगढ़ में 45.61, बरेली में 50.13 प्रतिशत तथा हरदोई जिला में 40.14 प्रतिशत थी। सबसे आश्चर्यजनक उप्र के सीतापुर जिले का हाल है, जहां मुस्लिम जनसंख्या वृद्धिदर 129.66 प्रतिशत था।



1991 से 2011 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या वृद्धि दर 44.39 प्रतिशत, हिंदू वृद्धि दर 40.51 प्रतिशत तो मुस्लिम जनसंख्या वृद्धिदर 69.53 प्रतिशत थी, पर अरुणाचल में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर 126.84 प्रतिशत, मेघालय में 112.06, मिजोरम में 226.84, सिक्किम में 156.35, दिल्ली में 142.64, चण्डीगढ़ में 194.36 तथा हरियाणा में 133.22 प्रतिशत थी। मुस्लिम जनसंख्या में हुई यह अप्रत्याशित वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि बांग्लादेश और म्यांमार से मुस्लिम घुसपैठिये भारतीय राज्यों में बस रहे हैं। 


1961 में देश की जनसंख्या में मुस्लिम जनसंख्या 10.7 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 14.22 प्रतिशत हो गई है। यानी 50 वर्ष में मुस्लिम जनसंख्या में 3.52 प्रतिशत की वृद्धि तब हुई है जबकि इसमें घुसपैठियों को भी शामिल किया गया है। इसी दौर में प. बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 20 प्रतिशत से बढ़कर 27.01 प्रतिशत, तो बिहार के पूर्णिया, किशनगंज, अररिया और कटिहार जिला में 37.61 प्रतिशत से बढ़कर 45.93 प्रतिशत हो गई है।


जसे ही यह मुद्दा उठता है- वामदल, तृणमूल कांग्रेस से लेकर शहरी नक्सली आदि यथासंभव शोर मचाने लगते हैं। उन्हें लगता है कि अवैध शरणार्थी उनके वोट बैंक हैं। यह सत्य है कि अनेक नेताओं ने अवैध शरणार्थियों के राशन कार्ड ,आधार कार्ड एवं वोटर कार्ड बनवाकर उन्हें देश में बसाने के लिए पुरजोर प्रयास किये हैं। इन लोगों ने देश को सराय बना डाला है क्यूंकि ये लोग अपनी कुर्सी के लिए केवल तात्कालिक लाभ देखते हैं। भविष्य में यही अवैध शरणार्थी एकमुश्त वोट-बैंक बनकर इन्हीं नेताओं की नाक में दम कर देंगे। इससे भी विकट समस्या यह है कि बढ़ती मुस्लिम जनसँख्या भारत के गैर मुसलमानों के भविष्य को लेकर भी एक बड़ी चुनौती उपस्थित करेगी। क्यूंकि इस्लामिक सामाज्यवाद की मुहीम के तहत जनसँख्या समीकरण के साथ मुसलमानों का गैर मुसलमानों के साथ व्यवहार में व्यापक परिवर्तन हो जाता है।

https://bit.ly/3nMSQQ4


जिस तरह पांच राज्यों में हुए चुनाव का परिणाम आया उससे समझ जाना चाहिए कि देश में किस तरह हिन्दू अल्पसंख्यक बन रहे हैं? भारत के 8 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक बन चुके हैं, दूसरे राज्यों में भी काफी कम होते जा रहे हैं, इसमें मुख्य कारण है- हिंदू बच्चे कम पैदा कर रहे हैं, दूसरा जाति में बंट रहे हैं, इसके कारण तेजी से हिंदू कम हो रहे हैं और मुस्लिम अनेक शादियां कर रहे हैं, 12-12 बच्चे पैदा कर रहे हैं, दूसरी ओर बांग्लादेश आदि से घुसपैठ कर रहे हैं- इसके कारण मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। बाद में क्या होगा- कश्मीरी पंडितों का इतिहास पढ़ लेना, सब समझ में आ जायेगा। इसलिए अभी भी समय है- एक बनो, बच्चे अधिक पैदा करो और एक दूसरे के मददगार बनो, बच्चों को धर्म का संस्कार दो तभी अस्तित्व बच पायेगा और सुरक्षित रह पाएंगे।


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पहले भी आई थी भयंकर महामारी, स्वामी विवेकानंद ने ऐसे की थी रोकथाम...

04 मई 2021

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महामारी और संक्रमणों ने सम्पूर्ण इतिहास में अनेकों बार मानव जाति को बर्बाद किया है। प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान के आधुनिक दिनों तक हमने इतिहास के माध्यम से कई महामारियों और चिकित्सा आपात स्थितियों का अनुभव किया है। कुछ ने तो ऐसा भयावह रूप लिया था कि चारों ओर सिर्फ विनाश ही विनाश दिखाई दिया था, जैसे- ‘बुबोनिक प्लेग’ जो चौदहवीं शताब्दी में आया था और उसे ब्लैक डेथ के रूप में भी जाना जाता है।



जिसमें लाखों मनुष्यों की मृत्यु हुई थी और इसे मानव इतिहास के सबसे घातक महामारियों में से एक माना जाता है। 


पिछले एक साल में और विशेष रूप से पिछले एक महीने में कुछ इसी तरह की स्थितियाँ विकसित हुई हैं- चीन के वुहान में पैदा हुई महामारी कोविड-19 के कारण।

खासकर जब दुनिया भर में मरनेवालों की संख्या तीस लाख से अधिक हो गई है और एक नए संस्करण जिसे हम अभी ”डबल म्यूटेंट वेरिएंट” के नाम से जानते हैं उसका भारी प्रकोप दिखने को मिल रहा है। भारत में भी जहाँ एक तरफ टीकाकरण अभियान को 100 दिन पूर्ण हो गए हैं और अब 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए यह अभियान 1 मई से शुरू हो चुका है वहीं दूसरी तरफ नागरिकों और सरकारों के लिए अभी चुनौतियाँ कम नहीं हुई है।


इस दौर में हमें मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से मजबूत करने के लिए कुछ ऐसा चाहिए जिसे हम इन परिस्थितयों से जोड़कर भी देख सकें और वह हमें हर रूप से मजबूत भी करे।

1898 के बंगाल में आई प्लेग महामारी के दौरान योद्धा संन्यासी स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित 122 वर्ष पुराने 'प्लेग मैनिफेस्टो' पर हमारी खोज रूक सकती है।


यह मार्च 1898 का समय था, स्वामी विवेकानंद कलकत्ता प्रवास पर थे और वह नीलांबर मुखर्जी के बाग घर बेलूर में एक मठ में रुके हुए थे। उन्हें स्वास्थ्य संबंधी अनेकों समस्याएं हो रही थीं और सुधार के कोई संकेत नहीं थे, बल्कि यह लगातार बिगड़ रहा था। जिसको देखते हुए उनके गुरु भाइयों ने उन्हें दार्जिलिंग में प्रवास करने के लिए कहा क्योंकि वहाँ की पिछली यात्रा में हुए जलवायु परिवर्तन से स्वामी विवेकानंद को शारीरिक लाभ हुआ था।

स्वामी विवेकानंद 30 मार्च 1898 को दार्जिलिंग के लिए रवाना हुए और लगभग एक महीना वहाँ बिताया। हालाँकि वहाँ तक पहुँचने के लिए उन्हें पहाड़ पर अत्यधिक चढ़ाई करनी पड़ी और उस वर्ष जल्दी बारिश होने के कारण उन्हें बुखार हो गया और बाद में खाँसी और जुकाम भी रहा।

अप्रैल के अंत में स्वामी विवेकानंद ने वापस कलकत्ता लौटने की योजना बनाई लेकिन वह ऐसा नहीं कर सके क्योंकि उन्हें फिर से बुखार और फिर इन्फ्लुएंजा का संक्रमण हो गया था। इस बीच 29 अप्रैल को उनके गुरुभाई स्वामी ब्रह्मानंद ने उन्हें सूचित किया कि कलकत्ता में प्लेग महामारी फैल गई है, कलकत्ता से बहुत से लोग पलायन कर रहे हैं और यदि आपका स्वास्थ्य अभी ठीक नहीं है तो डॉक्टर से सलाह लें और कुछ दिनों के बाद ही वापसी करें।

जैसे ही स्वामी विवेकानंद को खबर मिली, वे बीच में किसी भी स्थान पर रुके बिना कलकत्ता जाने के लिए तैयार हो गए। कलकत्ता पहुँचते ही वह राहत उपायों को आयोजित करके प्लेग और भगदड़ दोनों से निपटने के मिशन में खुद को झोंक दिया। विवेकानंद ने सबसे पहले कलकत्ता के लोगों को एक पत्र लिखा, जिसको हम सब ‘प्लेग मैनिफेस्टो’ के नाम से जानते हैं।


स्वामी विवेकानंद ने मूल रूप से अंग्रेजी में प्रारूपित तथा हिंदी और बंगाली में अनुवादित अपने पत्र ‘प्लेग मैनिफेस्टो’ में बंगाल के लोगों को ‘डर से मुक्त रहने के लिए कहा क्योंकि भय सबसे बड़ा पाप है।’ स्वामी को पता था कि महामारी के वातावरण ने मानव को कमजोर कर दिया है। इसीलिए उन्होंने लोगों से आह्वान किया- ‘मन को हमेशा खुश रखो। एक दिन तो मृत्यु होती ही है सबकी। कायरों को बार-बार मौत की वेदना का सामना करना पड़ता है, केवल अपने मन में भय के कारण।’

उन्होंने इस डर को दूर करने का आग्रह किया, ”आओ, हम इस झूठे भय को छोड़ दें और भगवान की असीम करुणा पर विश्वास रखें, कमर कस लो और कार्रवाई के क्षेत्र में प्रवेश करो। हमें शुद्ध और स्वच्छ जीवन जीना चाहिए। रोग, महामारी का डर आदि, ईश्वर की कृपा से समाप्त हो जाएगा।”


अपने प्रेरणादायक शब्दों के बाद वह इन परिस्थितियों में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए- इन बिंदुओं पर प्रकाश डालते हैं। वह स्वच्छ रहने के लिए घर और उसके परिसर, कमरे, कपड़े, बिस्तर, नाली आदि को हमेशा साफ रखने के लिए कहते हैं। वह आगे लिखते हैं कि बासी, खराब भोजन न करें; इसके बजाय ताजा और पौष्टिक भोजन लें। कमजोर शरीर में बीमारी की आशंका अधिक होती है। यह सुनिश्चित किया गया था कि कलकत्ता के हर घर में प्लेग मैनिफेस्टो की प्रतियाँ पहुँचे।


परभावितों के लिए स्वामी विवेकानंद राहत अभियान शुरू करने के लिए

यार थे। जब उनके गुरुभाई ने उनसे पैसे के स्रोत के बारे में पूछा तो स्वामी जी ने कहा, “क्यों, यदि आवश्यक हो, तो हम नए खरीदे गए मठ-मैदानों को बेच देंगे। हम संन्यासी हैं और भिक्षा पर रहते हैं तथा पहले की तरह फिर से पेड़ के नीचे सोना शुरू कर देंगे।”

ऐसी नौबत नहीं आई और उन्हें काम के लिए पर्याप्त धन मिल गया था। भूमि का एक व्यापक भूखंड सरकारी अधिकारियों के साथ समन्वय करके किराए पर लिया गया था जहाँ आइसोलेशन सेंटर स्थापित किए गए थे। राहत कार्य युद्ध स्तर पर किया गया और स्वामी विवेकानंद द्वारा अपनाए गए उपायों ने लोगों को विश्वास दिलाया कि वे महामारी से लड़ सकते हैं। लोगों ने देखा कि संन्यासियों का काम केवल वेदांत का प्रचार करना नहीं है, बल्कि अपने देशवासियों के लिए वेदांत की शिक्षाओं को मूर्त रूप में लाना है।


अगले वर्ष मार्च महीने में कलकत्ता में दूसरी बार प्लेग ने दस्तक दी। स्वामी विवेकानंद ने बिना समय गँवाते हुए राहत कार्य के लिए एक समिति का गठन किया जिसमें भगिनी निवेदिता को सचिव और उनके गुरुभाई स्वामी सदानंद को पर्यवेक्षक और स्वामी शिवानंद, नित्यानंद, और आत्मानंद को सदस्य बनाया गया। सभी ने कलकत्ता के लोगों को सेवा देने के लिए दिन-रात कार्य किया।


विवेकानंद ने आग्रह किया, “भाई, अगर आपकी मदद करने वाला कोई नहीं है, तो बेलूर मठ में श्री भगवान रामकृष्ण के सेवकों को तुरंत सूचना भेजें। हर संभव मदद पहुँचाई जाएगी। माता की कृपा से मौद्रिक सहायता भी संभव हो जाएगी।” शामबाजार, बागबाजार और अन्य पड़ोसी इलाकों में मलिन बस्तियों की सफाई के साथ मार्च 1899 में राहत कार्य शुरू हुआ, वित्तीय सहायता के लिए समाचार पत्रों के माध्यम से गुहार भी लगाई गई।


भगिनी निवेदिता ने स्वामी विवेकानंद के साथ प्लेग पर अनेकों व्याख्यान दिए। 21 अप्रैल को उन्होंने ‘द प्लेग एंड द ड्यूटी ऑफ स्टूडेंट्स’ पर क्लासिक थिएटर में छात्रों से बात की। सिस्टर निवेदिता ने पूछा, “आपमें से कितने लोग स्वेच्छा से आगे आएँगे और झोपड़ियों की सफाई में मदद करेंगे?” भगिनी और स्वामी के शक्तिशाली शब्दों को सुनने के बाद लगभग पंद्रह छात्रों का एक समूह प्लेग सेवा के कार्य के लिए सामने आया।


एक दिन जब सिस्टर निवेदिता ने देखा कि स्वयंसेवकों की कमी है, तो उन्होंने स्वयं गलियों की सफाई शुरू कर दी। गोरी चमड़ी की महिला को अपनी गलियों में सफाई करते देखकर इलाके के युवकों को शर्म महसूस हुई और उन्होंने झाड़ू उठाकर उनका समर्थन किया।


भगिनी निवेदिता ने खुद को अस्थायी रूप से एक ऐसी बस्ती में स्थानांतरित कर लिया था जो प्लेग महामारी से सबसे अधिक प्रभावित थी, जहाँ वह दिन-रात दीवारों को सफ़ेद रंग करने में लगी रहती थी और उन बच्चों की देखभाल करती थी जिनकी माताओं का महामारी से देहांत हो चुका था। संभावित खतरे को नजरअंदाज करते हुए भी वह अपने कार्य में संलग्न रही। उन्होंने अपनी एक अंग्रेजी मित्र, मिसेज कूलस्टन को लिखा, “अंतहीन काम है। केवल यहाँ रहना ही अपने आप में काम है।” अंततः रामकृष्ण मिशन की टोली ने इस बीमारी को नियंत्रित करने में कामयाबी हासिल की।


इसलिए एक जागरूक नागरिक के रूप में हमें आस-पास की अफवाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए और कोरोना महामारी के बचाव के अनुकूल व्यवहार का पालन करते हुए अपने आस-पास के लोगों के लिए अधिक से अधिक मदद करने का और वातावरण को सकारात्मक बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि सरकार बहुत कुछ कर सकती है लेकिन सब कुछ नहीं कर सकती।



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राष्ट्रपति के नाम पर महिलाओं ने दिया ज्ञापन; आशाराम बापू का मामला...

3 मई 2021

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आशाराम बापू जोधपुर जेल में करीब 8 साल से बंद हैं। देशभर में काफी महिलाओं ने राष्ट्रपति को उनके नाम पर ज्ञापन दिया। जानिए उस ज्ञापन में क्या लिखा था?



माननीय महामहिम राष्ट्रपति महोदय,

         भारत सरकार, नई दिल्ली 

     मा.जिलाधीश महोदय, 

मान्यवर, जय हिन्द... वन्दे मातरम् ...

हमारी भारतीय संस्कृति की महानता को पूरे विश्व के मनीषियों ने स्वीकार किया है और इस संस्कृति के आधारस्तम्भ हैं- ब्रह्मज्ञानी संत-महापुरुष ।

ब्रह्मज्ञानी संत कबीरजी ने ठीक ही कहा है : 

आग लगी आकाश में झर-झर गिरे अंगार।

 संत न होते जगत में तो जल मरता संसार।।


चराचर जगत में व्याप्त परात्पर ब्रह्म परमात्मा को आत्मरुप में जाननेवाले संत ब्रह्मज्ञानी कहलाते हैं। ऐसे महापुरुषों के द्वारा ही प्राणी मात्र का वास्तविक कल्याण होता है। धर्म का अभ्युदय करने, अलौकिक ईश्वरीय ज्ञान, आनंद और शांति का प्रसाद बाँटने के लिए ऐसे ब्रह्मज्ञानी संतों का धरती पर अवतरण होता है। जात-पात-मजहब-देश की संकीर्णता से ऊपर उठाकर मानवमात्र को एकसूत्र में बाँधने का सामर्थ्य ऐसे ब्रह्मज्ञानी संतों में होता है। ब्रह्मज्ञानी संत श्री आशारामजी बापू से जुड़े हुए करोड़ों लोगों का अनुभव इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। 

पिछले 55 वर्षों से इन दूरदर्शी महापुरुष ने देश में करोड़ों की संख्या में संयम-सदाचार प्रेरक सत्साहित्य पहुँचाया, देश की जनता को ओजस्वी-तेजस्वी, बहुप्रतिभा-सम्पन्न बनाने हेतु योग व ब्रह्मविद्या का प्रशिक्षण दिया, मानवता, परदुःखकातरता, ईश्वरीय शांति व निर्विकारी सुख की गंगा बहायी, हजारों “बाल संस्कार केन्द्रों” और “युवा सेवा संघों” के माध्यम से बाल और युवा पीढ़ी में सच्चरित्रता व नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना कर राष्ट्र की रीढ़ मजबूत की, ‘महिला उत्थान मंडल’ की स्थापना की एवं महिलाओं के सर्वांगीण विकास हेतु विभिन्न प्रकल्प चलाये, अनगिनत लोगों को ईश्वर-भक्ति व जनसेवा के रास्ते लगाकर आध्यात्मिक क्रांति का उद्घोष किया; इनके मार्गदर्शन से कई सामाजिक व राष्ट्रीय समस्याओं का असरकारक समाधान मिला है; इनके उपदेशों व समाजोत्थान के सेवाकार्यों से विभिन्न मत-पंथ-सम्प्रदायों के देश-विदेश के करोड़ों लोग लाभान्वित हुए हैं; इन्होंने देशवासियों के हृदय में देश व संस्कृति के प्रति निष्ठा सुदृढ़ की है, देश की एकता और अखंडता को मजबूत किया है, लोगों में प्राणिमात्र के लिए सद्भाव जगाया है, नशामुक्ति अभियान चलाकर एवं समाज से कुरीतियाँ दूर करके आपसी सौहार्द व भाईचारे को बढ़ावा देते हुए स्वस्थ व सुंदर समाज का निर्माण किया है; इन्होंने कर्तव्यपालन, ईमानदारी, मितव्ययिता की बहुमूल्य शिक्षा देकर, पर्यावरण सुरक्षा, आयुर्वेदिक, प्राकृतिक आदि स्वदेशी चिकित्सा-पद्धतियों को बढ़ावा देकर तथा स्वदेशी उत्पादों व गौ संरक्षण-संवर्धन की ओर लोगों को मोड़कर देश के अर्थतंत्र को मजबूती दी है। 


यह हमारा बड़ा दुर्भाग्य है कि जिन ब्रह्मज्ञानी संतों ने देश के सभी धर्मों, मतों, पंथों व संप्रदायों के बीच प्रेम, शांति, सद्भाव एवं अध्यात्म-ज्ञान का संचार किया, उन्हें राष्ट्र व मानवता विरोधी ताकतों द्वारा षड्यंत्र का शिकार बनाया जा रहा है। भारत के जिस ब्रह्मज्ञानी संत ने निःस्वार्थ भाव से अपना पूरा जीवन विश्व मानवता को ऊँचा उठाने में समर्पित कर दिया, आज उनको ही झूठे आरोप लगाकर कानूनी जटिलताओं एवं त्रुटियों का दुरुपयोग कर जेल में डाल दिया गया है। ऐसे भारतीय संस्कृति के संरक्षक व निष्काम कर्मयोग के प्रेरणापुंज ब्रह्मनिष्ठ पूज्य संत श्री आशारामजी बापू पिछले 7.5 वर्षों से कारावास में हैं। 


जब समाज-विघातक कार्य करनेवालों, आतंकवादियों के भी मानवाधिकारों का ख्याल हमारे देश में व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रखा जाता है तो 85 वर्षीय ऐसे महान ब्रह्मज्ञानी संत, जिन्होंने स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद सन् 1993 में शिकागो की ‘विश्व धर्म संसद’ में सनातन धर्म का सुसफल एवं बहुप्रशंसित प्रतिनिधित्व करके अपने देश-धर्म की शान बुलंद की तथा समाज में मानवीय संवेदना, परोपकार, संस्कृति-प्रेम, अनेकता में एकता के सुसंस्कारों का सिंचन किया और समाजहितकारी सत्प्रवृत्तियों में अथकरूप से लगकर अपने जीवन की होली करके भी जरूरतमंदों को जीवनोपयोगी चीज-वस्तुएँ एवं सभीको भगवद्भक्ति, ज्ञान, शांति का प्रसाद बाँटकर उनके जीवन में दिवाली कर दी, उन लोकमांगल्यकारी महान विभूति के मानवाधिकारों का ख्याल तो अवश्य ही रखा जाना चाहिए।


नारियों की सुरक्षा के लिए बनाये गये सख्त कानूनों के बड़े स्तर पर हो रहे दुरुपयोग से आज वे नारियों के लिए ही कष्टप्रद बन रहे हैं। आज राष्ट्र व समाज विरोधी ताकतें स्त्रियों को मोहरा बनाकर समाजहित में लगे प्रतिष्ठित लोगों के खिलाफ इन कानूनों का दुरुपयोग


रही हैं। जब किसी स्त्री द्वारा मिथ्या आरोप लगाया जाता है तो इससे न सिर्फ एक पुरुष प्रताड़ित होता है बल्कि उस पुरुष से जुड़ी उसकी माँ, बहन, बेटी आदि कई महिलाएँ भी उसका शिकार बन जाती हैं। उनका पारिवारिक, सामाजिक जीवन तहस-नहस हो जाता है। पूज्य बापूजी को जेल में रखे जाने से पूज्य बापूजी से जुड़ी लाखों-लाखों महिलाएँ भी व्यथित हैं, पीड़ित हैं। 


आदरणीय भूतपूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री अटल विहारी वाजपेयीजी ने पूज्य बापूजी के बारे में लखनऊ के सत्संग कार्यक्रम में कहा था, “देशभर की परिक्रमा करते हुए जन-जन के मन में अच्छे संस्कार जगाना, यह एक ऐसा परम राष्ट्रीय कर्तव्य है, जिसने हमारे देश को आज तक जीवित रखा है और इसके बल पर हम उज्ज्वल भविष्य का सपना देख रहे हैं। उस सपने को साकार करने की शक्ति-भक्ति एकत्र कर रहे हैं। पूज्य बापूजी सारे देश में भ्रमण करके जागरण का शंखनाद कर रहे हैं, सर्वधर्म-समभाव की शिक्षा दे रहे हैं,  संस्कार दे रहे हैं तथा अच्छे और बुरे में भेद करना सिखा रहे हैं। हमारी जो प्राचीन धरोहर थी और हम जिसे लगभग भूलने का पाप कर बैठे थे, बापूजी हमारी आँखों में ज्ञान का अंजन लगाकर उसको फिर से हमारे सामने रख रहे हैं।"

इसके अलावा अनेक धर्माचार्यों, संतों-महंतों, केन्द्र-राज्य सरकारों, धार्मिक-राष्ट्रीय संगठनों, उच्च पदस्थ लोकप्रिय जनप्रतिनिधियों, शिक्षाविदों, समाजसेवकों आदि ने भी राष्ट्र निर्माण में पूज्य बापूजी के अमूल्य योगदान की बहुत सराहना की है। ऐसे महान ब्रह्मज्ञानी संत की रिहाई की मांग सब ओर से उठ रही है। 

 

राष्ट्रोत्थान चाहनेवाले आप जैसे महानुभाव निश्चय ही इस बात पर गौर करेंगे कि राष्ट्र के गरीब, आदिवासी, पिछड़े एवं सुदूर क्षेत्रों के उपेक्षित जातियों के लोगों में भी जात-पात-धर्म-सम्प्रदाय किसी भी भेद को देखे बगैर सबमें छुपी एक आत्मचेतना का दर्शन करते हुए उन सबका हित चाहने व सक्रिय रूप से करनेवाले इन महापुरुष का समाज में होना राष्ट्रोत्थान में कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। उनका जेल में होना समाजहित के कार्यों में एक बड़ी भारी क्षति है। 


आज पूरा विश्व जिन आपदाओं का सामना कर रहा है उससे विश्वमानव की रक्षा करने का सामर्थ्य ब्रह्मज्ञानी संत श्री आशारामजी बापू में है। इतिहास साक्षी है कि समाज ब्रह्मज्ञानी संत-महापुरुषों की महानता को उनके जीवन काल में समझ नहीं पाता और जब उनका साकार श्रीविग्रह नहीं रहता तब पश्चाताप करता है। पर ऐसे महापुरुषों के सान्निध्य लाभ से वंचित रहने से समाज को हुए गंभीर नुकसान की क्षतिपूर्ति कोई नहीं कर पाता। आज पूज्य बापूजी के 85 वें अवतरण दिन चैत्र वद 6 (गुजरात-महाराष्ट्र के अनुसार) तदनुसार 2 मई  के अवसर पर ऐसे महान ब्रह्मज्ञानी संत के प्रत्यक्ष सांन्निध्य लाभ से वंचित करोडों हृदयों की वेदना आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं ।  

यह मुद्दा देश के लाखों-करोड़ों नागरिकों के जीवन से, हितों से जुड़ा है, अतः श्री योग वेदांत सेवा समिति के माध्यम से सभी नागरिक महामहिमजी से करबद्ध प्रार्थना करते हैं कि ऐसी आपातकालीन परिस्थितियों में आप संविधान प्रदत्त अपने विशेषाधिकारों का सदुपयोग करके राष्ट्रहित में ब्रह्मज्ञानी संत श्री आशारामजी बापू की रिहाई हेतु शीघ्रातिशीघ्र उचित कार्यवाही करवायें। 

जय हिन्द... भारत माता की जय... धन्यवाद...


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