Saturday, February 12, 2022

आशाराम बापू कौन हैं, कैसे बने संत? उनकी संस्था क्या कार्य करती है?

आशाराम बापू कौन हैं, कैसे बने संत? उनकी संस्था क्या कार्य करती है?

02 मई 2021

azaadbharat.org


रविवार को हिन्दू संत आशारामजी बापू का जन्मदिन था, शनिवार को ट्वीटर पर टॉप ट्रेंड कर रहा था #2May_विश्व_सेवा_दिवस क्योंकि उनके  अनुयायी उनका जन्मदिन विश्व सेवा दिवस के रूप में मनाते हैं।



बापू आशारामजी के बचपन का नाम आसुमल था। उनका जन्म अखंड भारत के सिंध प्रांत के बेराणी गाँव में चैत्र कृष्ण षष्ठी विक्रम संवत् 1994 के दिन हुआ था। उनकी माता महँगीबा व पिताजी थाऊमल नगरसेठ थे।

https://youtu.be/oMmfhuvLQzM


बालक आसुमल को देखते ही उनके कुलगुरु ने भविष्यवाणी की थी, "आगे चलकर यह बालक एक महान संत बनेगा, लोगों का उद्धार करेगा।"


बापू आशारामजी का बाल्यकाल संघर्षों की एक लंबी कहानी है। 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के कारण अथाह सम्पत्ति को छोड़कर बालक आसुमल का परिवार गुजरात, अहमदाबाद शहर में आ बसा। उनके पिताजी द्वारा लकड़ी और कोयले का व्यवसाय आरम्भ करने से आर्थिक परिस्थिति में सुधार होने लगा। तत्पश्चात् शक्कर का व्यवसाय भी आरम्भ हो गया।


माता-पिता के अतिरिक्त बालक आसुमल के परिवार में एक बड़े भाई तथा दो छोटी बहनें थीं।

     

बालक आसुमल को बचपन से ही प्रगाढ़ भक्ति प्राप्त थी। प्रतिदिन सुबह 4 बजे उठकर ठाकुरजी की पूजा में लग जाना उनका नित्य नियम था।


दस वर्ष की नन्हीं आयु में बालक आसुमल के पिताजी थाऊमलजी देहत्याग कर स्वधाम चले गये।


पिता के देहत्यागोपरांत आसुमल को पढ़ाई (तीसरी कक्षा) छोड़कर छोटी-सी उम्र में ही कुटुम्ब को सहारा देने के लिये सिद्धपुर में एक परिजन के यहाँ नौकरी करनी पड़ी। 3 साल तक नौकरी के साथ-साथ साधना में भी प्रगति करते रहे। 3 साल बाद वे वापिस अहमदाबाद आ गए और भाई के साथ शक्कर की दुकान पर बैठने लगे।


लकिन उनका मन सांसारिक कार्यों में नहीं लगता था, ज्यादातर जप-ध्यान में ही समय निकालते थे। 21 साल की उम्र में घर वाले आसुमल जी की शादी करना चाहते थे लेकिन उनका मन संसार से विरक्त और भगवान में तल्लीन रहता था। इसलिए वे घर छोड़कर भरुच के अशोक आश्रम चले गए; पर घरवालों ने उन्हें ढूंढकर जबरदस्ती उनकी शादी करवा दी।


लकिन मोह-ममता का त्याग कर ईश्वर प्राप्ति की लगन मन में लिए शादी के बाद भी तुरंत पुनः घर छोड़ दिया और आत्म-पद की प्राप्ति हेतु जंगलों-बीहड़ों में घूमते और साधना करते हुए ईश्वर प्राप्ति के लिए तड़पते रहे। नैनीताल के जंगल में योगी ब्रह्मनिष्ठ संत साईं लीलाशाहजी बापू को उन्होंने सद्गुरु के रूप में स्वीकार किया।


 ईश्वरप्राप्ति की तीव्र तड़प देखकर सद्गुरु लीलाशाहजी बापू का हृदय छलक उठा और उन्हें 23 वर्ष की उम्र में सद्गुरु की कृपा से आत्म-साक्षात्कार हो गया। तब सद्गुरु लीलाशाहजी ने उनका नाम आसुमल से आशारामजी रखा ।


अपने गुरु लीलाशाहजी बापू की आज्ञा शिरोधार्य कर संत आसारामजी बापू समाधि-अवस्था का सुख छोड़कर तप्त लोगों के हृदय में शांति का संचार करने हेतु समाज के बीच आ गये।


सन् 1972 में अहमदाबाद में साबरमती के तट पर आश्रम स्थापित किया।

उसके बाद देश-विदेश में बढ़ते गए आश्रम।आज उनके आश्रम करीब 450 हैं और समितियां 1400 से अधिक हैं जो देश-समाज और संस्कृति के उत्थान कार्य कर रही हैं। भारत की राष्ट्रीय एकता, अखंडता और विश्व शांति के लिए हिन्दू संत आशारामजी बापू ने राष्ट्र के कल्याणार्थ अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।


आशारामजी बापू द्वारा किए गए कार्य:



1). लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर धर्म के संस्कार, मकान, जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया  ।


2). कत्लखाने में जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया।


3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।

https://youtu.be/fQ7DtN1dc0Q


4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया ।


5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र देकर और योग व उच्च संस्कार का प्रशिक्षण देकर ओजस्वी- तेजस्वी बनाया ।


6). लंदन, पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया  ।


7). वैलेंटाइन डे का कुप्रभाव रोकने हेतु "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया।


8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया।


9). करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया।


10). नशामुक्ति अभियान के द्वारा लाखों लोगों को व्यसनमुक्त कराया।


11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल वाए।


12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोटि पीठ के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी" बाबा रामदेव, मोरारी बापूजी, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया।


13. बच्चों के लिए "बाल संस्कार केंद्र", युवाओं के लिए "युवा सेवा संघ", महिलाओं के लिए "महिला उत्थान मंडल" खोलकर उनका जीवन धर्ममय व उन्नत बनाया।


कहा जाता है कि हिन्दू संत आशारामजी बापू का बहुत बड़ा साधक-समुदाय है। लगभग करीब 8 करोड़ लोग देश-विदेश में हैं और इतने सालों से जेल में होते हुए भी उनके अनुयायियों की श्रद्धा टस से मस नहीं हुई है। उन करोड़ों भक्तों का एक ही कहना है कि हमारे गुरुदेव (संत आशारामजी बापू) निर्दोष हैं उन्हें षड़यंत्र के तहत फंसाया गया है। वे जल्द से जल्द निर्दोष छूटकर हमारे बीच शीघ्र ही आयेंगे।

http://ashram.org/Pujya-Bapuji


गौरतलब है- संत आशारामजी बापू का जन्म दिवस गत वर्ष 13 अप्रैल को था। अभी उनका 85वाँ साल चल रहा है, पिछले 8 साल से जेल में बन्द होने पर भी उनके करोड़ों अनुयायियों द्वारा देश-विदेश में एक अनोखे अंदाज में मनाया जाता है- ये दिन "विश्व सेवा दिवस" के नाम पर।


वसे तो हर साल इस दिन देशभर में जगह-जगह पर निकाली जाती हैं- भगवन्नाम संकीर्तन यात्रायें और वृद्धाश्रमों,अनाथालयों व अस्पतालों में निशुल्क औषधि, फल व मिठाई वितरित की जाती है। गरीब व अभावग्रस्त क्षेत्रों में होता है- विशाल भंडारा जिसमें वस्त्र,अनाज व जीवन उपयोगी वस्तुओं का वितरण किया जाता है। उस दिन जगह जगह पर छाछ, पलाश व गुलाब के शरबत के प्याऊ लगाये जाते हैं एवं सत्साहित्य आदि का वितरण किया जाता है।

www.ashram.org/seva


कोरोना महामारी में लॉकडाउन होने के कारण इसबार देशभर में अनेक स्थानों पर ज़रूरतमंद लोगों में भोजन प्रसादी, राशनकिट, जीवनुपयोगी सामग्री आदि का वितरण किया जा रहा है।


मीडिया ने दिन-रात हिन्दू संत आशारामजी बापू के खिलाफ समाज को भ्रमित करने और उनकी छवि को धूमिल करने का भरसक प्रयास किया लेकिन उनको मानने वाले करोड़ों अनुयायियों की आज भी अटल श्रद्धा है उनमें। जनता भी प्रश्न कर रही है कि बापू निर्दोष हैं तो उनकी रिहाई क्यों नहीं की जा रही है? सरकार को उसपर ध्यान देना चाहिए।


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बापू आशारामजी के जन्मदिवस पर देश की लाखों महिलाओं की माँग

01 मई 2021

AzaadBharat.Org


विश्व में प्रतिदिन अनगिनत क्रियाकलाप होते हैं लेकिन उनमें से गिने-चुने ही जन, समाज के मांगल्य और परोपकार की भावना से भरे होते हैं। हमारे ही बीच समाज का एक ऐसा बड़ा तबका है जो दुनियाभर में ऐसी अनेक वार्षिक परियोजनाओं को चलाता तो है ही, साथ ही हर साल उसका नूतनीकरण दिन भी मनाता है! इस दिन आनेवाले साल के लिए विश्वसेवा का नया संकल्प लिया जाता है। आप न जानते हों तो आपको बता दें कि वह दिन कोई और नहीं बल्कि संत आशारामजी बापू का अवतरण दिन है ।



बापू का अवतरण दिन, जो कि दुनियाभर में ‘विश्व सेवा-सत्संग दिवस’ के नाम से मशहूर है, वह इस साल 2 मई को मनाया जायेगा। बापू के शिष्यों, भक्तों, सत्संगियों और समाजसेवी लोगों में इस निमित्त उत्साह का ऐसा तूफान देखने को मिलता है कि वे महीनाभर पहले ही आयोजनों में जोर-शोर से लग जाते हैं।

इस साल अवतरण दिन के निमित्त किये जानेवाले विभिन्न आयोजन 2 अप्रैल से ही शुरू हो गये हैं। अभी के इस कोरोना काल में चिकित्साकर्मियों को आयुर्वेदिक चाय प्रदान करने, जनता में संक्रमण से सुरक्षा हेतु मास्क वितरण करने तथा मरीजों को फल, बिस्कुट व औषधि वितरण करने से लेकर इस विकट समय में भुखमरी व अभावग्रस्तता का शिकार हो रहे लोगों की अनाज व रोजमर्रा की वस्तुओं की आपूर्ति करने तक की विभिन्न सेवाएँ की जा रही हैं। 


इनके अलावा जरूरतमंदों, अनाथों, लाचारों को भोजन-प्रसाद, वस्त्र, बर्तन आदि जीवनोपयोगी वस्तुएँ व ‘राशन किट’ देने के साथ आर्थिक सहायता प्रदान करना, हर महीने राशन कार्ड द्वारा अनाज वितरण, जगह-जगह निःशुल्क शीतल शरबत, विशेषकर रोगप्रतिरोधक क्षमतावर्द्धक आँवला-चुकंदर शरबत व छाछ वितरण, सत्साहित्य वितरण, विद्यार्थियों में नोटबुक वितरण, गायों को हरा चारा और गुड़ खिलाने जैसे कई सेवाकार्य सम्पन्न हो रहे हैं।


85 वर्षीय बापू के जेल में होने से आहत हुए उनके अनुयायी एवं उन्हें जानने-माननेवाले देश के नागरिक, विशेषकर महिलाएँ अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं। महिला कल्याण के क्षेत्र में काम करनेवाले ‘महिला उत्थान मंडल’, जिसकी शाखाएँ एवं स्वयंसेविकाएं देश-विदेश में फैली हुई हैं, उसके सदस्यों का कहना है कि यह सदी का सबसे बड़ा अन्‍याय है कि महाराजश्री को उनके जीवन और जीवनकार्यों के सर्वथा विपरीत, आधारहीन, अनर्गल मामला खड़ा करके पिछले करीब 8 वर्षों से समाज से दूर रखा गया है। ऐसी स्थितियों में भी हम बापूजी के द्वारा धरोहर के रूप में मिले समाजसेवा के कार्यों में लगे हुए हैं पर यदि बापूजी बाहर होते तो देश और विश्व में अनेक गुना लोकहितकारी कार्य होते। इन लोकसेवी संत की अनुपस्थिति समाजसेवा की वृद्धि में बड़ा भारी अवरोध बन रही है।


मडल के प्रवक्ता ने बताया कि बापूजी के सत्संग-मार्गदर्शन से जिन्हें लाभ हुआ है एवं जिन्होंने बापू के देश, धर्म व संस्कृति की रक्षा एवं सेवा हेतु किये जानेवाले कार्यों से प्रेरणा एवं बल प्राप्त किया है ऐसे विश्वभर में फैले धर्म व संस्कृति प्रेमी नारी-वर्ग का कहना है कि इन वयोवृद्ध, परदुःखकातर संत को झूठे आरोपों के चलते करीब 8 वर्षों से समाज से दूर रखा जाना समाज के साथ घोर अन्याय है। उनको शीघ्र रिहा किया जाना चाहिए। इस मुद्दे को लेकर महिलाएँ एकजुट होती जा रही हैं।



महिलाओं का कहना है कि बापू ने नारियों को अपनी दिव्यता में जगने की राह दिखायी, नारी-उत्थान के लिए महिला आश्रमों एवं महिला उत्थान मंडलों की स्थापना की और इनके माध्यम से अनेक लोक-उत्थान के सेवाकार्य चलाये हैं।  


पाश्चात्य विचारधारा नारी को मात्र भोग की एक वस्तु मानती है और पाश्चात्य शिक्षा-पद्धति भी नारियों को ऐसी ही शिक्षा देती है जिससे उन्हें भोग्या होने में ही गौरव महसूस हो। पाश्चात्य देशों से यह विचारधारा भारत में भी प्रवेश कर जड़ें जमाती जा रही हैं। उसे रोकने और महिला-वर्ग को फिर से अपनी पवित्र संस्कृति की ओर मोड़ने का महान कार्य बापू ने किया है। नारी के बारे में भारतीय संस्कृति के संरक्षक-पोषक आशारामजी बापू की ज्ञानधारा यह उद्घोष करती है- ‘‘नारी ! तू नारायणी... जाग हे कल्याणी!’’ बापू की प्रेरणा से संचालित महिला उत्थान मंडल महिलाओं को भारतीय संस्कृतिरूपी वह आईना दिखा रहा है जो उन्हें अपनी उज्ज्वल, तेजोमयी गरिमा दिखाने में सक्षम है।


2 मई को बापू का जन्मदिवस है। उम्र के 85वें वर्ष में पदार्पण कर रहे बापू आशारामजी को न्याय दिलाने की मुहिम उनकी उम्र के इस पड़ाव पर और तेज हो गयी है। बापू की रिहाई की माँग को लेकर ‘महिला उत्थान मंडल’ के तत्त्वावधान में इन महिलाओं द्वारा देशभर में अनेकानेक स्थानों पर राष्ट्रपति के नाम संबंधित अधिकारियों को ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं । कई स्थानों पर धरना-प्रदर्शन, ‘संत एवं संस्कृति रक्षा यात्राओं’ और जगह-जगह ‘संत व संस्कृति रक्षा संकल्प


र्यक्रमों’ के आयोजन प्रारम्भ हो गये हैं। देश के कई महिला संगठन ‘महिला उत्थान मंडल’ की माँग के समर्थन में उतरते जा रहे हैं एवं बापू आशारामजी की रिहाई की माँग को बुलंद कर रहे हैं।


गौरतलब है कि ये महिलाएँ अब सोशल मीडिया पर भी अपना ‘सत्याग्रह आंदोलन’ विश्वव्यापी बनाने में पीछे नहीं रह रही हैं। बापू की निर्दोषता और महानता का बयान करते हुए और बापू जल्द-से-जल्द जेल से बाहर होने चाहिए- इस संकल्प को लेकर महिलाओं के असंख्य सेल्फी विडियोज- यूट्यूब, वॉट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक, टेलीग्राम आदि माध्यमों पर साझा किये जा रहे हैं। सोशल मीडिया में भी देखने में यह आ रहा है कि ‘निर्दोष बापूजी को रिहा करो !’ की आवाज जनता में जोर पकड़ने लगी है।


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अपनी मृत्यु डरावनी लगती है, बाकी की मौत का उत्सव मनाता है मनुष्य...

30 अप्रैल 2021

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मौत के स्वाद के चटखारे लेता मनुष्य कहता है कि मुझे बकरे का, भैंसे का, तीतर का, मुर्गे का, हलाल का, बिना हलाल का, ताजे बच्चे का, भुना हुआ, छोटी मछली, बड़ी मछली, हल्की आंच पर सींका हुआ आदि-आदि दीजिये। न जाने कितने, बल्कि अनगिनत स्वाद हैं- मौत के!



क्योंकि मौत पशु-पक्षी की और स्वाद हमारा।


सवाद का कारोबार बन गई मौत। 


मर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पॉल्ट्री फार्म्स। 

नाम "पालन" और मक़सद "हत्या"। स्लॉटर हाऊस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली-गली में खुले नॉनवेज रेस्टॉरेंट मौत के कारोबार नहीं तो और क्या हैं? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नहीं है।


जो हमारी तरह बोल नहीं सकते, अभिव्यक्त नहीं कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं, उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया?

कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं?

या उनकी आहें नहीं निकलतीं?


डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते हैं- बेटा कभी किसी का दिल नहीं दुखाना! किसी की आहें मत लेना! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आने चाहिए!


बच्चों में झूठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ में वो हड्डी दिखाई नहीं देती, जो इससे पहले एक शरीर थी जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...!!

जिसे काटा गया होगा! 

जो कराहा होगा! 

जो तड़पा होगा!

जिसकी आहें निकली होंगी!

जिसने बद्दुआ भी दी होगी!


 कसे मान लिया कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे?


क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं? क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है?


आज कोरोना वायरस उन जानवरों के लिए ईश्वर के अवतार से कम नहीं है। 


जब से इस वायरस का कहर बरपा है, जानवर स्वच्छंद घूम रहे हैं। पक्षी चहचहा रहे हैं। उन्हें पहली बार इस धरती पर अपना भी कुछ अधिकार-सा नज़र आया है। पेड़-पौधे ऐसे लहलहा रहे हैं, जैसे उन्हें नई जिंदगी मिली हो! धरती को भी जैसे सांस लेना आसान हो गया हो।


सष्टि के निर्माता द्वारा रचित करोड़-करोड़ योनियों में से एक कोरोना ने हमें हमारी औकात बता दी। घर में घुसके मारा है और मार रहा है। और उसका हमसब कुछ नहीं बिगाड़ सकते। अब घंटियां बजा रहे हो, इबादत कर रहे हो, प्रेयर कर रहे हो और भीख मांग रहे हो उससे कि हमें बचा ले।


धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, क्रिसमस पर पशुओं की हत्या करते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो। कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो। 


किसे ठग रहे हो? अल्लाह को?  जीसस को? भगवान को? या खुद को?


मंगलवार को नानवेज नहीं खाता ...!!!

आज शनिवार है इसलिए नहीं...!!!

अभी रोज़े चल रहे हैं ...!!!

नवरात्रि में तो सवाल ही नहीं उठता...!!!


झूठ पर झूठ...फिर कुतर्क सुनो...फल सब्जियों में भी तो जान होती है ...? ...तो सुनो, फल सब्जियाँ संसर्ग नहीं करतीं, ना ही वो किसी प्राणी को जन्म देती हैं। 

इसीलिए उनका भोजन उचित है जो ईश्वर ने मनुष्य के लिए बनाया है।


ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हें दी ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको! लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया।


आज कोरोना के रूप में मौत हमारे सामने खड़ी है। तुम्हीं कहते थे कि हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमें लौटायेगी। मौतें दी हैं प्रकृति को, तो मौतें ही लौट रही हैं।

बढो...!!! आलिंगन करो मौत का....!!!


यह संकेत है- ईश्वर का। 

प्रकृति के साथ रहो।

प्रकृति के होकर रहो।

वर्ना... ईश्वर अपनी ही बनाई कई योनियों को धरती से हमेशा के लिए विलुप्त कर चुके हैं। उन्हें एक क्षण भी नहीं लगेगा।


ईश्वर के बनाये हुए वेद के सिद्धांतों पर चलो, अन्यथा इससे भी भयंकर सजा के लिए तैयार रहना। ईश्वर सर्वसमर्थ है प्राण दे सकता है तो ले भी सकता है; इसलिए उनकी शरण जाओ और उनके अनुसार चलो- यही आखिरी उपाय है।


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वायरस को रोकने का रामबाण इलाज- "अग्निहोत्र"; अमेरिका जैसे अनेक देशों ने स्वीकारा👍

 29 अप्रैल 2021

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वदकाल से भारत में यज्ञकर्म किए जाते हैं। भारतीय संस्कृति में यज्ञ-यागों का आध्यात्मिक लाभ तो है ही, परंतु वैज्ञानिक स्तर पर भी अनेक लाभ होते हैं- यह अब विज्ञान द्वारा सिद्ध हो रहा है।



इसमें एक सहज सरल और प्रतिदिन किया जानेवाला यज्ञ है- ‘अग्निहोत्र’! हिन्दू धर्म द्वारा मानवजाति को दी हुई यह एक अमूल्य देन है। अग्निहोत्र नियमित करने से वातावरण की बड़ी मात्रा में शुद्धि होती है। इतना ही नहीं, उसे करनेवाले व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि भी होती है। साथ ही वास्तु और पर्यावरण की भी रक्षा होती है।


अग्निहोत्र प्राचीन वेद-पुराणों में वर्णित एक साधारण धार्मिक संस्कार है, जो प्रदूषण को अल्प करने तथा वायुमंडल को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने हेतु किया जाता है।


अग्निहोत्र के कारण निर्मित होनेवाले औषधियुक्त वातावरण के कारण रोगकारक कीटाणुओं के बढ़ने पर प्रतिबंध लगता है तथा उनका अस्तित्व नष्ट करने में सहायता होती है। इसलिए वर्तमान में जगभर में उत्पात मचानेवाले ‘कोरोना वायरस’ के संकट पर ‘अग्निहोत्र’ एक रामबाण उपाय हो सकता है। इस पार्श्‍वभूमि पर सभी हिन्दू बंधु सभी प्रकार की वैद्यकीय जांच, उपचार, प्रतिबंधात्मक उपाय इत्यादि करते हुए देश में ‘कोरोना’ का प्रादुर्भाव रोकने के लिए तथा समाज को अच्छा आरोग्य और सुरक्षित जीवन देने के लिए सूर्यादय और सूर्यास्त के समय ‘अग्निहोत्र’ करें।


अग्निहोत्र करने के लिए किसी भी पुरोहित को बुलाने की, दानधर्म करने की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए कोई भी बंधन नहीं है। सामान्य व्यक्ति यह विधि घर, खेत, कार्यालय में मात्र 10 मिनट में कहीं भी कर सकता है। इसका खर्च भी अत्यल्प है। अग्निहोत्र नित्य करने से धर्माचरण तो होगा ही, प्रत्युत पर्यावरण के साथ ही समाज की भी रक्षा होगी।


‘अग्निहोत्र’ के संदर्भ में अनेक वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं । उसकी विपुल जानकारी इंटरनेट के माध्यम से हम प्राप्त कर सकते हैं ।


फ्रान्स के ट्रेले नाम के वैज्ञानिक द्वारा हवन पर किए अनुसंधान में हवन करने से वातावरण में 96 प्रतिशत घातक विषाणु और कीटाणु कम होना दिखाई दिया है; उस विषय में ‘एथ्नोफार्माकोलॉजी 2007’ के जर्नल में शोध-निबंध प्रकाशित हुआ था।

‘नेशनल केमिकल लेबोरेटरी’ नामक संस्था के निवृत्त वरिष्ठ शास्त्रज्ञ डॉ. प्रमोद मोघे द्वारा किए गए अनुसंधान के अनुसार अग्निहोत्र के कारण वातावरण में सूक्ष्म कीटाणुओं की वृद्धि 90 प्रतिशत से कम हुई है; प्रदूषित हवा के घातक सल्फर डाईऑक्साईड का परिमाण दस गुना कम होता है; पौधों की वृद्धि नियमित की अपेक्षा अधिक होती है; अग्निहोत्र की भभूति (भस्म) कीटाणुनाशक होने से घाव, त्वचारोग इत्यादि के लिए अत्यंत उपयुक्त है; पानी के कीटाणु और क्षार का परिमाण 80 से 90 प्रतिशत कम करती है। 

इसलिए अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रान्स जैसे 70 देशों ने अग्निहोत्र को स्वीकार किया है ।उन्होंने विविध विज्ञान मासिकों में उसका निष्कर्ष प्रकाशित किया है। स्त्रोत : हिंदु जन जागृति


अपनी संस्कृति को हम भूल गए हैं इसलिए आज हमें घरों में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है, नहीं तो आज अगर घर-घर हवन होता, तुलसी, पीपल आदि होते, देशी गाय होती, महापुरुषों के अनुसार अपना रहन-सहन बनाया होता तो कोरोना जैसे भयंकर वायरस हमें छू भी नहीं सकते थे!!

हमारी संस्कृति इतनी महान है, बस! अब शीघ्र उसपर लौटने की आवश्यकता है, नहीं तो इससे भी अधिक भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।


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Friday, February 11, 2022

वायरस का महासंकट क्यों आया और इससे निपटने के क्या उपाय हैं?

28 अप्रैल 2021

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आज हम सभी जन ‘कोरोना’ नामक एक महासंकट का सामना कर रहे हैं। गत सदी में चेचक, हैजा, प्लेग, मलेरिया जैसी भयंकर महामारी के कारण लाखों लोगों की मृत्यु हुई थी, ऐसा हमने केवल सुना था। उसके उपरांत शास्त्रज्ञों ने विभिन्न शोध कर उनपर टीका, दवाईयां खोज कर निकालीं। इससे इन महामारियों का उपाय भी मिला। विज्ञान की प्रगति की ये कहानियां सुनने के पश्‍चात सभी की ऐसी मानसिकता ही बन गई थी कि अब भविष्य में ऐसी स्थिति का निर्माण ही नहीं हो सकता। उसके साथ मानवी बुद्धि और प्रभुत्व के अहंकार के कारण हमें देवता-धर्म जैसी संकल्पना पिछड़ी, अंधश्रद्धा लगने लगी। ऐसे समय ही प्रकृति मानव को उसकी मर्यादा का भान करवाती है।



अनेक संत-महापुरुष सतत स्वार्थ त्यागकर धर्म के मार्ग पर चलने का आह्वान कर रहे हैं, अन्यथा आगामी काल में नैसर्गिक आपत्तियां तथा महामारी जैसा संकट आने की पूर्वसूचना वो दे रहे थे। हम सभी ने उनकी ओर ध्यान ही नहीं दिया। आज प्रत्यक्ष में ‘कोरोना’ (कोविड-19) नामक एक वायरस के कारण मानव द्वारा की हुई प्रगति, विज्ञान की आधुनिकता के अहंकार के चिथड़े उड़ गए हैं।


मानव अपने द्वारा ही निर्मित इस आपत्ति के कारण अपने ही घर में कैद हो बैठा है। इस वायरस का संसर्ग न हो इसलिए वह सारे प्रयास कर रहा है, क्योंकि आज के दिन तक तो इस भयंकर महामारी पर आधुनिक विज्ञान के पास भी कोई दवाई उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रकृति में विद्यमान दैवी शक्ति की शरण में जाने के सिवाय हम मानवों के पास अन्य कोई उपाय भी तो नहीं है।


यह प्रकृति ईश्‍वर निर्मित माया है तथा उसका निर्माता ईश्‍वर, विश्‍व का चालक है। यद्यपि हम ईश्‍वर और प्रकृति को भिन्न मानते हैं, पर धर्म के अनुसार ईश्‍वर और प्रकृति एक ही है। इसलिए विश्‍व का यह संकट दूर करने के लिए हम सामान्य जन उस सर्वशक्तिमान ईश्‍वर की शरण तो निश्‍चितरूप से जा सकते हैं। ईश्‍वर के सूक्ष्म अर्थात आखों से दिखाई न पड़नेवाला होने के कारण उसे हमसे नारियल, फूल, मिठाई, धन ऐसे किसी चीज की अपेक्षा नहीं होती। वह तो चाहता है कि हम अपने जीवन को जन्म-मृत्यु के फेर से मुक्त करने के लिए प्रयास करें।


मनुष्य के स्वभाव में छुपा है, आपत्तियों का कारण !


आज विश्‍व की आपत्तियों का कारण कहीं न कहीं हमारे अनुचित व्यवहार ही हैं। लोग पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों का बिना सोचे-समझे दुरुपयोग करते हैं। अनेकों को पता होते हुए भी वो अनुचित व्यवहार करते हैं, इसलिए कि उनका अहंकार और स्वार्थ उनको समाज का विचार नहीं करने देता। तीव्र अहंकार तथा स्वार्थी वृत्ति होने से, वे प्रकृति, मनुष्य तथा अन्य जीवों को कष्ट देकर अधिकतर समय केवल अपने लिए ही सुख जुटाने में लगे रहते हैं। सरकार कितना भी प्रयास करे, कानून बना ले, परंतु जब तक वह स्वयं अपने सामाजिक ऋण को नहीं पहचानेगा, तब तक परिवर्तन असंभव है।


समाज में चुनिंदा लोग ही प्रकृति और समाज का विचार करते हैं। यदि उनके जीवन में हम झांककर देखें, तो वे धर्माचरण करनेवाले, दयालु स्वभाव के और सभी के प्रति प्रेम रखनवाले हैं। उनके व्यवहार में व्यापकता है। उनका आचरण हम सबको लोककल्याण करने की प्रेरणा देता है। उन्हें अधर्म का परिणाम पता है। 


कानून के दंड से भी अधिक प्रभावी है, व्यक्ति का आत्मसंयम! जो केवल धर्म को समझने से और उसको जीवन में उतारने से आ सकता है।


https://www.sanatan.org/hindi/how-to-deal-with-coronavirus-spiritually


कोरोना महामारी से हम बच जाएं और आगे ऐसी आपदाएं न आयें इसलिए हमें महापुरुषों द्वारा बताये गये सनातन धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए और ईश्वर की उपासना करनी चाहिए तभी हम ऐसी आपदाओं से बच सकते है नहीं तो आने वाले समय में भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।


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कोरोना महामारी से भयभीत नहीं होना है, बल्कि ये उपाय करने होंगे...

27 अप्रैल 2021

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भारत में एक कालखंड में आयुर्वेद के साथ ही भारतीय ज्ञान-परंपरा की बहुत उपेक्षा की गई; परंतु भारतीय समाज में आज भी धर्माचरण से जुड़ीं कुछ पारंपरिक आदतें और पद्धतियां देखने को मिलती हैं। यदि सनातन हिन्दू धर्म द्वारा निर्देशित पद्धतियों के अनुसार तनिक भी आचरण करने से लाभ मिलता हो, तो संपूर्ण जीवनशैली को ही धर्माधिष्ठित बनाने का प्रयास किया जाए, तो उससे कितना लाभ मिलेगा?



हिन्दू धर्म में वातावरण शुद्धि हेतु अग्निहोत्र बताया गया है। इस अग्निहोत्र में परमाणु विकिरण के संकट को भी टालने का सामर्थ्य है। हिन्दू धर्म द्वारा बताई गई सभी बातें अनुभवजन्य हैं। उनका श्रद्धापूर्वक आचरण करनेवालों को उसका फल तो मिलता ही है। आजतक करोड़ों लोगों ने इसकी अनुभूति की है। भारतीय संस्कृति का प्रसार करने की, साथ ही विश्‍व को उसका महत्त्व विशद करने का यह एक अवसर भर है। कोरोना को एक हितकारी संकट मानकर भारत को इसका लाभ उठाना चाहिए।


विकट स्थिति में क्या करें?


ऐसी स्थिति में साधना ही तारणहार 


अनेक भविष्यदृष्टा संतों ने आगामी काल में अनेक प्राकृतिक, साथ ही मनुष्यनिर्मित आपत्तियों का पहाड़ टूटने की भविष्यवाणी की है। ‘कोरोना’ का संक्रमण इसीकी एक झलक है। इस संकटकाल का आरंभ होते ही सभी उपलब्ध तंत्रों के वेंटिलेटर पर जाने की स्थिति बनी है। इसलिए आगे भी जब इससे अधिक संकट आएंगे, तब क्या स्थिति होगी- इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। किसे स्वीकार हो अथवा न हो; परंतु इस संकटकाल से पार होने हेतु केवल साधना ही तारणहार सिद्ध होगी, यह निश्‍चित है ! आजकल समाज में दिखाई देनेवाले संक्रामक रोग, महंगाई, युद्धजन्य स्थिति, बढ़ता अपराधीकरण- इनके तात्कालिक कारण प्रत्येक बार मिलेंगे ही; परंतु ‘कालचक्र’ ही इन सभी समस्याओं का वास्तविक मूल और उत्तर भी है ! स्थिर रहकर स्थिति का सामना करना संभव कर पाने हेतु, साथ ही मन की स्थिरता को अखंडित बनाए रखने हेतु साधना ही महत्त्वपूर्ण होती है। साधना का बल हो, तो उससे व्यक्ति का आत्मिक बल तो बढ़ता ही है; किंतु उसके साथ-साथ ईश्‍वर अथवा गुरु के प्रति श्रद्धा किसी भी संकट का सामना करने का बल प्रदान कर व्यक्ति को निर्भय बनाती है। हिन्दुओं के पुराणों में दी गई कथाएं भी यही संदेश देती हैं। हिरण्यकशिपु द्वारा भक्त प्रह्लाद को बिना किसी कारण उबलते तेल में डाला जाना, ऊंची पहाड़ी से फेंका जाना तो प्रह्लाद के लिए भयावह स्थिति ही थी; परंतु भक्त प्रह्लाद के ईश्‍वरस्मरण में संलिप्त रहने से उन्हें इस संकट का दंश नहीं झेलना पड़ा। अतः इसी प्रकार से हमारे लिए भी ईश्‍वरभक्ति बढ़ाना ही सभी समस्याओं का समाधान है।


कोरोना काल में अपनी इम्युनिटी कैसे स्ट्रॉंग करें?


1. साइट्रिक एसिड का लेवल maintain रखें। इसके लिए मौसमी, संतरा, नींबू, आंवला, कच्चे टमाटर का सेवन प्रतिदिन करें। प्वॉइंट 2 ग्राम साइट्रिक एसिड आपके शरीर में प्रतिदिन जाना चाहिए।


2.) घर से बाहर जाने से पहले और घर पर वापिस आने के बाद गर्म पानी में हल्दी, अजवाइन डालकर 8 से 10 मिनट तक भाप (स्टीम) लें।


3.) बाजारू ठंडे पेय पदार्थों का सेवन न करें। फ्रिज का पानी न पिएं। room temperature के अनुकूल पानी पियें। गर्म पानी में नींबू, अदरक व कच्ची हल्दी कूटकर डालें (अगर कच्ची हल्दी न हो तो आधा चम्मच हल्दी पाउडर लें)- ये पानी दिन में 2 बार सुबह-शाम पियें।


4.) दो से तीन दिन तक 2 कली लहसुन, छोटा अदरक का टुकड़ा दिन में 2 बार चबाचबा कर उसका रस लें।


5.) कच्ची हल्दी का टुकड़ा दिन में दो बार चबाचबा कर खाएं।


6.)  दिन में एक बार नींबू का रस नाक में 4 से 5 बूंद जरूर डालें।


7.) अगर साँस लेने में दिक्कत आ रही है तो हल्दी, अजवाइन और कपूर गर्म पानी में डालकर दिन में 1 से सवा घण्टे के अंतराल से भाप (स्टीम) लेते रहें।


आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें...


देशी गाय के गोबर के कंडे पर घी, कपूर आदि डालकर धूप करें जिससे वातावरण की शुद्धि होगी और हानिकारक बैक्टीरिया पनप नहीं पाएंगे।


तुलसी, नीम और गिलोय आदि का काढा भी जरूर पियें जिससे रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी और कोरोना जैसे वायरस आप पर जल्दी से हमला नहीं कर पाएंगे।


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जानिए भगवान शिवजी ने हनुमानजी का अवतार क्यों लिया था ?

26 अप्रैल 2021

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हनुमानजी का अवतार त्रेतायुग में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6:03 बजे हुआ था। हनुमानजी भगवान शिवजी के 11वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान हैं।



इस दिन हनुमानजी का तारक एवं मारक तत्त्व अत्यधिक मात्रा में अर्थात अन्य दिनों की तुलना में एक हजार गुना अधिक कार्यरत होता है। इससे वातावरण की सात्त्विकता बढती है एवं रज-तम कणों का विघटन होता है। विघटन का अर्थ है- 'रज-तम की मात्रा अल्प होना।' इस दिन हनुमानजी की उपासना करनेवाले भक्तों को हनुमानजी के तत्त्व का अधिक लाभ होता है।


हनुमानजी के पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी तथा माता अंजना हैं। हनुमान जी को पवनपुत्र के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि पवन देवता ने हनुमानजी को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।


हनुमानजी को बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि हनुमानजी का शरीर वज्र की तरह है।


पथ्वी पर सात मनीषियों को अमरत्व (चिरंजीवी होने) का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमानजी आज भी पृथ्वी पर विचरण करते हैं।


हनुमानजी नाम कैसे रखा गया?


एक दिन हनुमानजी को आश्रम में छोड़कर अंजनी माता फल लाने के लिये  चली गईं। जब शिशु हनुमानजी को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने के लिए आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवनदेव भी बहुत तेजी से चले। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से जलने नहीं दिया। जिस समय हनुमानजी सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की, "देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने गया तब देखा कि दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।"


राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्र से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई।


हनुमानजी की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दी। जिससे संसार का कोई भी प्राणी साँस न ले सका और सब पीड़ा से तड़पने लगे। तब सारे सुर,असुर, यक्ष,  किन्नर आदि ब्रह्माजी की शरण में गये। ब्रह्माजी उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छित हनुमानजी को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्माजी ने उन्हें जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सभी प्राणियों की पीड़ा दूर की। फिर ब्रह्माजी ने उन्हें वरदान दिया कि कोई भी शस्त्र इनके अंग को हानि नहीं कर सकता। इन्द्र ने भी वरदान दिया कि इनका  शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि वे उसे अपने तेज का शतांश प्रदान करेंगे तथा शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा कि मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये।


इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत में हनु) टूट गई थी, जो पुनः जोड़ी गई। इसलिये उनको "हनुमान" नाम दिया गया। 


इसके अलावा ये अनेक नामों से प्रसिद्ध हैं, जैसे- बजरंगबली, मारुति, अंजनीसुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, बालाजी महाराज आदि। इस प्रकार हनुमानजी के 108 नाम हैं और हर नाम का मतलब उनके जीवन के अध्यायों का सार बताता है ।



हनुमानजी के ध्यान का मंत्र:

मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।

वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।


‘मन और वायु के समान जिनकी गति है, जो जितेन्द्रिय हैं, बुद्धिमानों में जो अग्रगण्य हैं, पवनपुत्र हैं, वानरों के नायक हैं, ऐसे श्रीरामभक्त हनुमान की शरण में मैं हूँ।


जिसको घर में कलह, क्लेश मिटाना हो, रोग या शारीरिक दुर्बलता मिटानी हो, वह नीचे की चौपाई की पुनरावृत्ति किया करे...

 

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ||


चौपाई - अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ।।  (31)


यह हनुमान चालीसा की एक चौपाई है जिसमें तुलसीदासजी लिखते हैं कि हनुमानजी अपने भक्तों को आठ प्रकार की सिद्धियाँ तथा नौ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते हैं- ऐसा सीता माता ने उन्हें वरदान दिया है।

ये अष्ट सिद्धियां बड़ी ही चमत्कारिक होती हैं जिनकी बदौलत हनुमानजी ने असंभव से लगनेवाले काम आसानी से सम्पन्न ये थे।


आइये अब हम आपको इन अष्ट सिद्धियों व नौ निधियों के बारे में विस्तार से बताते हैं।


आठ सिद्धियाँ :

हनुमानजी को जिन आठ सिद्धियों का स्वामी तथा दाता बताया गया है वे सिद्धियां इस प्रकार हैं-


1.अणिमा:  इस सिद्धि के बल पर हनुमानजी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकते हैं।


इस सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने तब किया जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे। हनुमानजी ने अणिमा सिद्धि का उपयोग करके अति सूक्ष्म रूप धारण किया और पूरी लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला।


2. महिमा:  इस सिद्धि के बल पर हनुमान ने कई बार विशाल रूप धारण किया है।


जब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे, तब बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया था। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था।


इसके अलावा माता सीता को श्रीराम की वानर सेना पर विश्वास दिलाने के लिए महिमा सिद्धि का प्रयोग करते हुए स्वयं का रूप अत्यंत विशाल कर लिया था।


3. गरिमा:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी स्वयं का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर सकते हैं।


गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमानजी एक वृद्ध वानर रूप धारण करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने देखा कि एक वानर की पूंछ रास्ते में पड़ी हुई है, तब भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ रास्ते से हटा लें। तब वृद्ध वानर ने कहा कि मैं वृद्धावस्था के कारण अपनी पूंछ हटा नहीं सकता, आप स्वयं हटा दीजिए। इसके बाद भीम वानर की पूंछ हटाने लगे, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस प्रकार भीम का घमंड टूट गया। पवनपुत्र हनुमानजी के भाई थे भीम क्योंक‍ि वह भी पवनपुत्र के बेटे थे ।


4. लघिमा:  इस सिद्धि से हनुमानजी स्वयं का भार बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ-जा सकते हैं।


जब हनुमानजी अशोक वाटिका में पहुंचे, तब वे अणिमा और लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों में छिपे थे। इन पत्तों पर बैठे-बैठे ही सीता माता को अपना परिचय दिया था।


5. प्राप्ति:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी किसी भी वस्तु को तुरंत ही प्राप्त कर लेते हैं। पशु-पक्षियों की भाषा को समझ लेते हैं, आने वाले समय को देख सकते हैं।


रामायण में इस सिद्धि के उपयोग से हनुमानजी ने सीता माता की खोज करते समय कई पशु-पक्षियों से चर्चा की थी। माता सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।


6. प्राकाम्य:  इसी सिद्धि की मदद से हनुमानजी पृथ्वी की गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं। इस सिद्धि से हनुमानजी चिरकाल तक युवा ही रहेंगे। साथ ही, वे अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को प्राप्त कर सकते हैं। इस सिद्धि से वे किसी भी वस्तु को चिरकाल तक प्राप्त कर सकते हैं।


इस सिद्धि की मदद से ही हनुमानजी ने श्रीराम की भक्ति को चिरकाल तक प्राप्त कर लिया है।


7. ईशित्व:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं।


ईशित्व के प्रभाव से हनुमानजी ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया था। इस सिद्धि के कारण ही उन्होंने सभी वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा। साथ ही, इस सिद्धि से हनुमानजी किसी मृत प्राणी को भी फिर से जीवित कर सकते हैं।


8. वशित्व:  इस सिद्धि के प्रभाव से हनुमानजी जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं।


वशित्व के कारण हनुमानजी किसी भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर लेते हैं। हनुमान के वश में आने के बाद प्राणी उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता है। इसी के प्रभाव से हनुमानजी अतुलित बल के धाम हैं।


नौ निधियां  :

हनुमानजी प्रसन्न होने पर जो नौ निधियां भक्तों को देते है वो इस प्रकार हैं :-


1. पद्म निधि : पद्मनिधि लक्षणों से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है तथा स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है ।


2. महापद्म निधि : महापद्म निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता है ।


3. नील निधि : नील निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेज से संयुक्त होता है। उसकी संपत्ति तीन पीढ़ी तक रहती है।


4. मुकुंद निधि : मुकुन्द निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है और वह राज्यसंग्रह में लगा रहता है।


5. नन्द निधि : नन्द निधि युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है और वही कुल का आधार होता है।


6. मकर निधि : मकर निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है ।


7. कच्छप निधि : कच्छप निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है; वह अपनी संपत्तिा स्वयं उपभोग करता है ।


8. शंख निधि : शंख निधि एक पीढ़ी के लिए होती है।


9. खर्व निधि : खर्व निधिवाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रित फल दिखाई देते हैं।



हनुमानजी का पराक्रम अवर्णनीय है। आज के आधुनिक युग में ईसाई मिशनरियां अपने स्कूलों में पढ़ाती हैं कि हनुमानजी भगवान नहीं थे, एक बंदर थे। बन्दर कहनेवाले पहले अपनी बुद्धि का इलाज कराएं। हनुुमानजी शिवजी का अवतार हैं। भगवान श्रीराम के कार्य में साथ देने (राक्षसों का नाश और धर्म की स्थापना करने) के लिए भगवान शिवजी ने हनुमानजी का अवतार धारण किया था।


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