Tuesday, February 22, 2022

भारत के इस इतिहास को छुपा दिया, हर भारतीय को यह पढ़ना चाहिए

06 जून 2021

azaadbharat.org


वीर छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक

6 जून 1674 को हुआ था। शिवाजी के सिंहासन आरोहण का प्रभाव अगली एक शताब्दी तक हम पूरे भारत में देखते हैं जब मराठा शक्ति पूरे भारत पर छा गई। 



भारतीय इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में औरंगजेब और शिवाजी के संघर्ष के पश्चात चुनिन्दा घटनाओं को ही प्राथमिकता से बताया जाता है जैसे कि नादिर शाह और अहमद शाह अब्दाली द्वारा भारत पर आक्रमण करना, पलासी की लड़ाई में सिराज-उद-दौलाह की हार और अंग्रेजों का बंगाल पर राज होना और मराठों की पानीपत के युद्ध में हार होना। उसके पश्चात टीपू सुल्तान की हार, सिखों का उदय और अस्त से 1857 के संघर्ष तक वर्णन मिलता है। एक प्रश्न उठता है कि इतिहास के इस लंबे 100 वर्ष के समय में भारत के असली शासक कौन थे? शक्तिहीन मुग़ल तो दिल्ली के नाममात्र के शासक थे परन्तु उस काल का अगर कोई असली शासक था, तो वह थे मराठे। शिवाजी महाराज द्वारा देश, धर्म और जाति की रक्षा के लिए जो अग्नि महाराष्ट्र से प्रज्वलित हुई थी उसकी सीमाएँ महाराष्ट्र के बाहर फैल कर देश की सीमाओं तक पहुँच गई थी। इतिहास के सबसे रोचक इस स्वर्णिम सत्य को देखिये कि जो मतान्ध औरंगजेब, वीर शिवाजी महाराज को पहाड़ी चूहा कहता था उन्हीं शिवाजी के वंशजों को उसी औरंगजेब के वंशजों ने "महाराजाधिराज "और "वज़ीरे मुतालिक" के पद से सुशोभित किया था। जिस सिंध नदी के तट पर आखिरी हिन्दू राजा पृथ्वीराज चौहान के घोड़े पहुँचे थे उसी सिंध नदी पर कई शताब्दियों के बाद अगर भगवा ध्वज लेकर कोई पहुँचा तो वह मराठा घोड़ा था। सिंध के किनारों से लेकर मदुरै तक, कोंकण से लेकर बंगाल तक मराठा सरदार सभी प्रान्तों से चौथ के रूप में कर वसूल करते थे, स्थान स्थान पर अपने विरुद्ध उठ रहे विद्रोहों को दबाते थे, जंजीरा के सिद्दियों को हिन्दू मंदिरों को भ्रष्ट करने का दंड देते थे, पुर्तगालियों द्वारा हिन्दुओं को जबरदस्ती ईसाई बनाने पर उन्हें यथायोग्य दंड देते थे, अंग्रेज सरकार जो अपने आपको अजेय और विश्व विजेता समझती थी उनसे मराठे समुद्री व्यापार करने के लिए टैक्स लेते थे, देश में स्थान स्थान पर हिन्दू तीर्थों और मन्दिरों का पुनरुद्धार करते थे जिन्हें मुसलमानों ने नष्ट कर दिया था, जबरन मुसलमान बनाये गए हिन्दुओं को फिर से शुद्ध कर हिन्दू बनाते थे। मराठों के राज में सम्पूर्ण आर्यावर्त राष्ट्र में फिर से भगवा झन्डा लहराता था और वेद, गौ और ब्राह्मण की रक्षा होती थी।


अग्रेज लेखकों और उनके मानसिक गुलाम साम्यवादी लेखकों द्वारा एक शताब्दी से भी अधिक के हिंद के इस स्वर्णिम राज को पाठ्य पुस्तकों में न लिखा जाना इतिहास के साथ खिलवाड़ नहीं तो और क्या है।

हम न भूलें कि "जो राष्ट्र अपने प्राचीन गौरव को भुला देता है, वह अपनी राष्ट्रीयता के आधार स्तम्भ को खो देता है।"


उलटी गंगा बहा दी


वीर शिवाजी का जन्म 1627 में हुआ था। उनके काल में देश के हर भाग में मुसलमानों का ही राज्य था। यदा कदा कोई हिन्दू राजा संघर्ष करता तो उसकी हार, उसीकी कौम के किसी विश्वासघाती के कारण हो जाती, हिन्दू मंदिरों को भ्रष्ट कर दिया जाता, उनमें गाय की क़ुरबानी देकर हिन्दुओं को नीचा दिखाया जाता था। हिन्दुओं की लड़कियों को उठा कर अपने हरम की शोभा बढ़ाना अपने आपको धार्मिक सिद्ध करने के समान था। ऐसे अत्याचारी परिवेश में वीर शिवाजी का संघर्ष हिन्दुओं के लिए एक वरदान से कम नहीं था। हिन्दू जनता के कान सदियों से यह सुनने के लिए थक गए थे कि किसी हिन्दू ने मुसलमान पर विजय प्राप्त की। 


1642 से शिवाजी ने बीजापुर सल्तनत के किलों पर अधिकार करना आरंभ कर दिया। कुछ ही वर्षों में उन्होंने मुग़ल किलों को अपनी तलवार का निशाना बनाया। औरंगजेब ने शिवाजी को परास्त करने के लिए अपने बड़े बड़े सरदार भेजे पर सभी नाकामयाब रहे। आखिर में धोखे से शिवाजी को आगरा बुलाकर कैद कर लिया जहाँ पर अपनी चतुराई से शिवाजी बच निकले। औरंगजेब पछताने के सिवाय कुछ न कर सका। शिवाजी ने मराठा हिन्दू राज्य की स्थापना की और अपने आपको छत्रपति से सुशोभित किया। शिवाजी की अकाल मृत्यु से उनका राज्य महाराष्ट्र तक ही फैल सका था। उनके पुत्र शम्भाजी में चाहे कितनी भी कमियां हों पर अपने बलिदान से शम्भाजी ने अपने सभी पाप धो डाले। औरंगजेब ने शम्भाजी के आगे दो ही विकल्प रखे थे या तो मृत्यु का वरण कर ले अथवा इस्लाम को ग्रहण कर ले। वीर शिवाजी के पुत्र ने भयंकर अत्याचार सह कर मृत्यु का वरण कर लिया पर इस्लाम को ग्रहण कर अपनी आत्मा से दगाबाजी नहीं की और हिन्दू स्वतंत्रतारुपी वृक्ष को अपने रुधिर से सींच कर और हरा भरा कर दिया।

शिवाजी की मृत्यु के पश्चात औरंगजेब ने सोचा कि मराठों के राज्य को नष्ट कर दे परन्तु मराठों ने वह आदर्श प्रस्तुत किया जिसे हिन्दू जाति को सख्त आवश्यकता थी। उन्होंने किले आदि त्याग कराड़ों और जंगलों की राह ली। संसार में पहली बार मराठों ने छापामार युद्ध को आरंभ किया। जंगलों में से मराठे वीर गति से आते और भयंकर मारकाट कर, मुगलों के शिविर को लूटकर वापिस जंगलों में भाग जाते। शराब-शबाब की शौकीन आरामपस्त मुग़ल सेना इस प्रकार के युद्ध के लिए कही से भी तैयार नहीं थी। दक्कन में मराठों से 20 वर्षों के युद्ध में औरंगजेब बुढ़ा होकर निराश हो गया, करीब ३ लाख की उसकी सेना काल की ग्रास बन गई। उसके सभी विश्वासपात्र सरदार या तो मर गए अथवा बूढ़े हो गए। पर वह मराठों के छापामार युद्ध से पार न पा सका। पाठक मराठों की विजय का इसीसे अंदाजा लगा सकते हैं कि औरंगजेब ने जितनी संगठित फौज शिवाजी के छोटे से असंगठित राज्य को जितने में लगा दी थी उतनी फौज में तो उससे 10 गुना बड़े संगठित राज्य को जीता जा सकता था। अंत में औरंगजेब की भी 1705 में मृत्यु हो गई परन्तु तब तक पंजाब में सिख, राजस्थान में राजपूत, बुंदेलखंड में छत्रसाल, मथुरा, भरतपुर में जाटों आदि ने मुगलिया सल्तनत की ईंट से ईंट बजा दी थी। मराठों द्वारा औरंगजेब को दक्कन में उलझाने से मुगलिया सल्तनत इतनी कमजोर हो गई कि बाद में उसके उत्तराधिकारियों की आपसी लड़ाई के कारण ताश के पत्तों के समान वह ढह गई। इस उलटी गंगा बहाने का सारा श्रेय वीर शिवाजी को जाता है।


सवार्थ से बड़ा जाति अभिमान


इतिहास इस बात का गवाह है कि मुगलों का भारत में राज हिन्दुओं की एकता में कमी होने के कारण ही स्थापित हो सका था।

अकबर के काल से ही हिन्दू राजपूत एक ओर अपने ही देशवासियों से, अपनी ही कौम से अकबर के लिए लड़ रहे थे वहीं दूसरी ओर अपनी बेटियों की डोलियों को मुगल हरमों में भेज रहे थे। औरंगजेब ने जीवन की सबसे बड़ी गलती यही की कि उसने काफ़िर समझ कर राजपूतों का अपमान करना आरंभ कर दिया जिससे न केवल उसकी शक्ति कम हो गई अपितु उसकी सल्तनत में चारों ओर से विरोध आरंभ हो गया। भातृत्व की भावना को पनपने का मौका मिला और भाई ने भाई को अपने स्वार्थ और परस्पर मतभेद को त्याग कर गले से लगाया। शिवाजी के पुत्र राजाराम के नेतृत्व में मराठों ने जिनजी के किले से संघर्ष आरंभ कर दिया था। मराठों के सेनापति खान्डोबलाल ने उन मराठा सरदारों को जो कभी जिनजी के किले को घेरने में मुगलों का साथ दे रहे थे अपनी ओर मिलाना आरंभ कर दिया। नागोजी राणे को पत्र लिख कर समझाया गया कि वे मुगलों का साथ न देकर अपनों का साथ दें जिससे देश, धर्म और जाति का कल्याण हो सके। नागोजी ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार किया और अपने 5000 आदमियों को साथ लेकर वे मराठा खेमे में आ मिले।

अगला लक्ष्य शिरका था जो अभी भी मुगलों की चाकरी कर रहा था। शिरका ने अपने अतीत को याद करते हुए राजाराम के उस फैसले को याद दिलाया जब राजाराम ने यह आदेश जारी किया था कि जहाँ भी कोई शिरका मिले उसे मार डालो। शिरका ने यह भी कहा कि राजाराम क्या वह तो उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा है जब पूरा भोंसले खानदान मृत्यु को प्राप्त होगा तभी उसे शांति मिलेगी। खान्डोबलाल शिरका के उत्तर को पाकर तनिक भी हतोत्साहित नहीं हुआ। उन्होंने शिरका को पत्र लिखकर कहा कि यह समय परस्पर मतभेदों को प्रदर्शित करने का नहीं है। मेरे भी परिवार के तीन सदस्यों को राजाराम ने हाथी के तले कुचलवा दिया था। मैं राजाराम के लिए नहीं अपितु हिन्दू स्वराज्य के लिए संघर्ष कर रहा हूँ। इस पत्र से शिरका का हृदय द्रवित हो गया और उसके भीतर हिन्दू स्वाभिमान जाग उठा। उसने मराठों का हरसंभव साथ दिया और मुगलों के घेरे से राजाराम को छुड़वा कर सुरक्षित महाराष्ट्र पहुँचा दिया।


काश अगर जयचंद ने यही शिक्षा मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय ले ली होती तो भारत से पृथ्वीराज चौहान के हिन्दू राज्य का कभी अस्त न होता।


🚩महाराष्ट्र से भारत के कोने कोने तक


मराठों ने मराठा संघ की स्थापना कर महाराष्ट्र के सभी सरदारों को एक तार में बांध कर, अपने सभी मतभेदों को भुला कर, संगठित हो अपनी शक्ति का पुन: निर्माण किया जो शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद लुप्त सी हो गई थी। इसी शक्ति से मराठा वीर सम्पूर्ण भारत पर छाने लगे। महाराष्ट्र से तो मुगलों को पहले ही उखाड़ दिया गया था। अब शेष भारत की बारी थी। सबसे पहले निज़ाम के होश ठिकाने लगाकर मराठा वीरों ने बची हुई चौथ और सरदेशमुखी की राशि को वसूला गया। दिल्ली में अधिकार को लेकर छिड़े संघर्ष में मराठों ने सैयद बंधुओं का साथ दिया। 70,000 की मराठा फौज को लेकर हिन्दू वीर दिल्ली पहुँच गये। इससे दिल्ली के मुसलमान क्रोध में आ गये। इस मदद के बदले मराठों को सम्पूर्ण दक्षिण भारत से चौथ और सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार मिल गया।


मालवा के हिन्दू वीरों ने जय सिंह के नेतृत्व में मराठों को मुगलों के राज से छुड़वाने के लिए प्रार्थना भेजी क्यूंकि उस काल में केवल मराठा शक्ति ही मुगलों के आतंक से देश को स्वतंत्र करवा सकती थी। मराठा वीरों की 70,000 की फौज ने मुगलों को हरा कर गवा झंडे से पूरे प्रान्त को रंग दिया।


बुंदेलखंड में वीर छत्रसाल ने अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी। शिवाजी और उनके गुरु रामदास को वे अपना आदर्श मानते थे। वृद्धावस्था में उनके छोटे से राज्य पर मुगलों ने हमला कर दिया जिससे उन्हें राजधानी त्याग कर जंगलों की शरण लेनी पड़ी। इस विपत्ति काल में वीर छत्रसाल ने मराठों को सहयोग के लिए आमंत्रित किया। मराठों ने वर्षा ऋतु होते हुए भी आराम कर रही मुग़ल सेना पर धावा बोल दिया और उन्हें मार भगाया। वीर छत्रसाल ने अपनी राजधानी में फिर से प्रवेश किया। मराठों के सहयोग से आप इतने प्रसन्न हुए कि आपने बाजीराव को अपना तीसरा पुत्र बना लिया और उनकी मृत्यु के पश्चात उनके राज्य का तीसरा भाग बाजीराव को मिला।


इसके पश्चात गुजरात की ओर मराठा सेना पहुँच गई। मुगलों ने अभय सिंह को मराठों से युद्ध लड़ने के लिये भेजा। उसने एक स्थान पर धोखे से मराठा सरदार की हत्या तक कर दी पर मराठा कहाँ मानने वाले थे। उन्होंने युद्ध में जो जौहर दिखाए कि मराठा तलवार की धाक सभी ओर जम गई। इधर दामाजी गायकवाड़ ने अभय सिंह के जोधपुर पर हमला कर दिया जिसके कारण उसे वापिस लौटना पड़ा। मराठों ने बरोडा और अहमदाबाद पर कब्ज़ा कर लिया।

 

दक्षिण में अरकाट में हिन्दू राजा को गद्दी से उतार कर एक मुस्लिम वहां का नवाब बन गया था। हिन्दू राजा के मदद मांगने पर मराठों ने वहाँ पर आक्रमण कर दिया और मुस्लिम नवाब पर विजय प्राप्त की। मराठों को वहाँ से एक करोड़ रुपया प्राप्त हुआ। इससे मराठों का कार्य क्षेत्र दक्षिण तक फैल गया। इसी प्रकार बंगाल में भी गंगा के पश्चिमी तट तक मराठों का विजय अभियान जारी रहा एवं बंगाल से भी उचित राशि वसूल कर मराठे अपने घर लौटे। मैसूर में भी पहले हैदर अली और बाद में टीपू सुल्तान से मराठों ने चौथ वसूली की थी।

दिल्ली के कागज़ी बादशाह ने फिर से मराठों का विरोध करना आरंभ कर दिया। बाजीराव ने मराठों की फौज को जैसे ही दिल्ली भेजा उनके किलों की नीवें मराठा सैनिकों की पदचाप से हिलने लगी। आखिर में अपनी भूल का प्रायश्चित करके मराठा क्षत्रियों से उन्होंने पीछा छुड़ाया। अहमद शाह अब्दाली से युद्ध के काल में ही मराठा उसका पीछा करते हुए सिंध नदी तक पहुँच गये थे। पंजाब की सीमा पर कई शताब्दियों के मुस्लिम शासन के पश्चात मराठा घोड़े सिंध नदी तक पहुँच पाए थे। मराठों के इस प्रयास से एवं पंजाब में मुस्लिम शासन के कमजोर होने से सिख सत्ता को अपनी उन्नति करने का यथोचित अवसर मिला जिसका परिणाम आगे महाराजा रणजीत सिंह का राज्य था। इस प्रकार सिंध के किनारों से लेकर मदुरै तक, कोंकण से लेकर बंगाल तक मराठा सरदार सभी प्रान्तों से चौथ के रूप में कर वसूल करते थे, स्थान स्थान पर अपने विरुद्ध उठ रहे विद्रोहों को दबाते थे और भगवा पताका को फहरा कर हिन्दू पद पादशाही को स्थिर कर रहे थे। इन सब प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि करीब एक शताब्दी तक मराठों का भारत देश पर राज रहा जो कि विशुद्ध हिन्दू राज्य था।


थल से जल तक


वीर शिवाजी के समय से ही मराठा फौज अपनी जल सेना को मजबूत करने में लगी हुई थी। इस कार्य का नेतृत्व कान्होजी आंग्रे के कुशल हाथों में था। कान्होजी को जंजिरा के मुस्लिम सिद्दी, गोआ के पुर्तगाली, बम्बई के अंग्रेज और डच लोगों का सामना करना पड़ता था जिसके लिए उन्होंने बड़ी फौज की भर्ती की थी। इस फौज के रखरखाव के लिये आप उस रास्ते से आने जानेवाले सभी व्यापारी जहाजों से कर लेते थे। अंग्रेज यही काम सदा से करते आये थे इसलिए उन्हें यह कैसे सहन होता। बम्बई के समुद्र तट से 16 मील की दूरी पर खाण्डेरी द्वीप पर मराठों का सशक्त किला था। इतिहासकार कान्होजी आंग्रे को समुद्री डाकू के रूप में लिखते हैं जबकि वे कुशल सेनानायक थे। 1717 में बून चार्ल्स बम्बई का गवर्नर बन कर आया। उसने मराठों से टक्कर लेने की सोची। उसने जहाजों का बड़ा बेड़ा और पैदल सेना तैयार कर मराठों के समुद्री दुर्ग पर हमला कर दिया। अंग्रेजों ने अपने जहाजों के नाम भी रिवेंज, विक्ट्री, हॉक और हंटर आदि रखे थे। पूरी तैयारी के साथ अंग्रेजों ने मराठों के दुर्ग पर हमला किया पर मराठों के दुर्ग कोई मोम के थोड़े ही बने थे। अंग्रेजों को मुँह की खानी पड़ी। अगले साल फिर हमला किया फिर मुँह की खानी पड़ी। तंग आकर इंग्लैंड के महाराजा ने कोमोडोर मैथयू के नेतृत्व में एक बड़ा बेड़ा मराठों से लड़ने के लिए भेजा। इस बार पुर्तगाल की सेना को भी साथ में ले लिया गया। बड़ा भयानक युद्ध हुआ। कोमोडोर मैथयू स्वयं आगे बढ़ बढ़ कर नेतृत्व कर रहा था। मराठा सैनिक ने उसकी जांघ में संगीन घुसेड़ दी, उसने दो गोलियाँ भी चलाई पर वह खाली गई क्यूंकि मराठों के आतंक और जल्दबाजी में वह उसमें बारूद ही भरना भूल गया। अंत में अंग्रेजों और पुर्तगालियों की संयुक्त सेना की हार हुई। दोनों एक दूसरे को कोसते हुए वापिस चले गए। डच लोगों के साथ युद्ध में भी उनकी यही गति बनी। मराठे थल से कर जल तक के राजा थे।


बरह्मेन्द्र स्वामी और सिद्दी मुसलमानों का अत्याचार


ब्रह्मेन्द्र स्वामी को महाराष्ट्र में वही स्थान प्राप्त था जो स्थान शिवाजी के काल में समर्थ गुरु रामदास को प्राप्त था। सिद्दी कोंकण में राज करते थे मराठों के विरुद्ध पुर्तगालियों, अंग्रेजों और डच आदि की सहायता से उनके इलाकों पर हमले करते थे। इसके अलावा उनका एक पेशा निर्दयता से हिन्दू लड़के और लड़कियों को उठा कर ले जाना और मुसलमान बनाना भी था। इसी सन्दर्भ में सिद्दी लोगों ने भगवान परशुराम के मंदिर को तोड़ डाला। यह मंदिर ब्रह्मेन्द्र स्वामी को बहुत प्रिय था। उन्होंने निश्चय किया कि वह कोंकण देश में जब तक वापिस नहीं आयेंगे जब तक उनके पीछे अत्याचारी मलेच्छ को दंड देनेवाली हिन्दू सेना नहीं होगी क्यूंकि सिद्दी लोगों ने मंदिर और ब्राह्मण का अपमान किया है। स्वामीजी वहाँ से सतारा चले गए और अपने शिष्यों शाहूजी और बाजीराव को पत्र लिख कर अपने संकल्प की याद दिलवाते रहे। मराठे उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। सिद्दी लोगों का आपसी युद्ध छिड़ गया, बस मराठे तो इसी की प्रतीक्षा में थे। उन्होंने उसी समय सिद्दियों पर आक्रमण कर दिया। जल में जंजिरा के समीप सिद्दियों के बेड़े पर आक्रमण किया गया और थल पर उनकी सेना पर आक्रमण किया गया। मराठों की शानदार विजय हुई और कोंकण प्रदेश मराठा गणराज्य का भाग बन गया। ब्रह्मेन्द्र स्वामी ने प्राचीन ब्राह्मणों के समान क्षत्रियों की पीठ थप-थपा कर अपने कर्तव्य का निर्वहन किया था।


वैदिक संस्कृति ऐसे ही ब्राह्मणों की त्याग और तपस्या के कारण प्राचीन काल से सुरक्षित रही है।


गोआ में पुर्तगाली अत्याचार


गोआ में पुर्तगाली सत्ता ने भी धार्मिक मतान्धता में कोई कसर न छोड़ी थी। हिन्दू जनता को ईसाई बनाने के लिए दमन की नीति का प्रयोग किया गया था। हिन्दू जनता को अपने उत्सव मनाने की मनाही थी। हिन्दुओं के गाँव के गाँव ईसाई न बनने के कारण नष्ट कर दिए गये थे। सबसे अधिक अत्याचार ब्राह्मणों पर किया गया था। सैकड़ों मंदिरों को तोड़ कर गिरिजाघर बना दिया गया था। कोंकण प्रदेश में भी पुर्तगाली ऐसे ही अत्याचार करने लगे थे।ऐसे में वहां की हिन्दू जनता ने तंग आकर बाजीराव से गुप्त पत्र व्यवहार आरंभ किया और गोवा के हालात से उन्हें अवगत करवाया। मराठों ने कोंकण में बड़ी सेना एकत्र कर ली और समय पाकर पुर्तगालियों पर आक्रमण कर दिया। उनके एक एक कर कई किलों पर मराठों का अधिकार हो गया। पुर्तगाल से अंटोनियो के नेतृत्व में बेड़ा लड़ने आया पर मराठों के सामने उसकी एक न चली। वसीन के किले के चारों और मराठों ने चिम्मा जी अप्पा के नेतृत्व में घेरा डाल दिया था। वह घेरा कई दिनों तक पड़ा रहा था। अंत में आवेश में आकार अप्पाजी ने कहा कि तुम लोग अगर मुझे किले में जीते जी नहीं ले जा सकते तो कल मेरे सर को तोप से बांध कर उसे किले की दिवार पर फेंक देना कम से कम मरने के बाद तो मैं किले में प्रवेश कर सकूँगा। वीर सेनापति के इस आवाहन से सेना में अद्वितीय जोश भर गया और अगले दिन अपनी जान की परवाह न कर मराठों ने जो हमला बोला कि पुर्तगाल की सेना के पाँव ही उखड़ गए और किला मराठों के हाथ में आ गया। यह आक्रमण गोवा तक फैल जाता पर तभी उत्तर भारत पर नादिर शाह के आक्रमण की खबर मिली। उस काल में केवल मराठा संघ ही ऐसी शक्ति थी जो इस प्रकार की राष्ट्रीय विपदा का प्रति उत्तर दे सकती थी। नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण कर 15,000 मुसलमानों को अपनी तलवार का शिकार बनाया। उसका मराठा पेशवा बाजीराव से पत्र व्यवहार आरंभ हुआ। जैसे ही उसे सुचना मिली कि मराठा सरदार बड़ी फौज लेकर उससे मिलने आ रहे हैं वह दिल्ली को लूटकर मुगलों के सिंहासन को उठा कर अपने देश वापिस चला गया।


पहाड़ी चूहे से महाराजाधिराज तक


दिल्ली में अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण के काल में रोहिल्ला सरदार नजीब खान ने दिल्ली में बाबरवंशी शाह आलम पर हमला कर उसकी आँखें फोड़ दी और उस पर भयानक अत्याचार किये। मराठा सरदार महाजी सिंधिया ने दिल्ली पर हमला बोल कर नजीब खान को उसके किये की सजा दी। इतिहास गवाह है कि जिस औरंगजेब ने वीर शिवाजी की वीरता से चिढ़कर अपमानजनक रूप से उन्हें पहाड़ी चूहा कहा था उसी औरंगजेब के वंशज ने मराठा सरदार को पूना के पेशवा के लिए "वकिले मुतालिक" अर्थात् "महाराजाधिराज" से सुशोभित किया। औरंगजेब जिसे आलमगीर भी कहा जाता है, ने अपनी ही धर्मान्ध नीतियों से अपने जीवन में इतने शत्रु एकत्र कर लिए थे जिसका प्रबंध करने में ही उसकी सारी शक्ति, उसकी आयु ख़त्म हो गई।


पहले पानीपत के मैदान में मराठों को हार का सामना करना पड़ा पर इससे अब्दाली की शक्ति भी क्षीण हो गई और अब्दाली वहीं से वापिस अपने देश चला गया। 


कालांतर में मराठों के आपसी टकराव ने मराठा संघ की शक्ति को सीमित कर दिया जिससे उनकी 1818 में अंग्रेजों से युद्ध में हार हो गई और हिन्दू पद पादशाही का मराठा स्वराज्य का सूर्य सदा सदा के लिए अस्त हो गया।


इतिहास इस बात का भी साक्षी है कि जब भी किसी जाति पर अत्याचार होते हैं, उनका अन्यायपूर्वक दमन किया जाता है तब तब उसी जाति से अनेक शिवाजी, अनेक प्रताप, अनेक गुरु गोबिंद सिंह उठ खड़े होते हैं जो अत्याचारी का समूल नष्ट कर देते हैं। केवल इस्लामिक आक्रान्ता और मुग़ल शासन से इतिहास की पूर्ति कर देना इतिहास से साथ खिलवाड़ के समान है जिसके दुष्परिणाम अत्यंत दूरगामी होंगे। - डॉ विवेक आर्य


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शुद्ध हवा (ऑक्सीजन) लेकर स्वस्थ रहना है तो इतना जरूर करें...

05 जून 2021

azaadbharat.org


*धरती पर से पेड़-पौधे काटने पर पर्यावरण प्रदूषण की समस्या हुई जिस पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्टॉक होम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया गया।*



*इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया तथा इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए राजनैतिक चेतना जाग्रत करना और आम जनता को प्रेरित करना था। तभी से 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा।*


*प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भरता की बात की है और हमारे देश को अगर आत्म निर्भर करना है तो सबसे पहले हमें स्वदेशी पारम्परिक जड़ी बूटियों की पहचान करनी होगी और तुलसी, पीपल, निम, गिलोय आदि कुदरती वृक्षों और पौधों को लगाना होगा और उसकी औषधियां लगानी होगी जिससे हमारे देश मे आ रही अरबो-खरबो रुपये की दवाई लाना बंद होगा और हमारी दवाइयां विदेशों में निर्यात होगी तो आमदनी बढ़ेगी जिससे देश आत्मनिर्भर बनेगा।*


*मनुष्य सोचता था कि हमारा ही अधिकार है पृथ्वी पर और जल तथा वायु को प्रदूषित कर दिया इसका परिणाम खुद मनुष्य ही भुगत रहा है कई शहरों में जहरीली हवा हो गई और भयंकर बीमारियां आई कोरोना काल मे ऑक्सीजन की कमी पड़ गई, ऑक्सीजन की कमी के कारण कइयों की मृत्यु भी हो गई। अब हमें वैचारिक प्रदूषण मिटाना होगा और "जिओ ओर जीने दो" ये मंत्र साकार करना होगा, अब हमें अधिक से अधिक वृक्षों को लगाना होगा।*


*सरकार द्वारा पिछले 70 सालों में पीपल, बरगद (वटवृक्ष) आंवला और नीम के पेडों को सरकारी स्तर पर लगाना लगभग बंद कर दिया गया है! सरकार ने इन पेड़ो से दूरी बना ली तथा इसके बदले विदेशी यूकेलिप्टस को लगाना शुरू कर दिया जो जमीन को जल विहीन और वातावरण को प्रदूषित कर देता है।*


*आज हर जगह यूकेलिप्टस, गुलमोहर और अन्य सजावटी पेड़ों ने ले ली है। अब जब वायुमण्डल में रिफ्रेशर ही नही रहेगा तो गर्मी तो बढ़ेगी ही और जब गर्मी बढ़ेगी तो जल भाप बनकर उड़ेगा ही और इनकी हवा से हवामान भी प्रदूषित होगा।*


*नीलगिरी के वृक्ष भूल से भी न लगायें, ये जमीन को बंजर बना देते हैं। जिस भूमि पर ये लगाये जाते हैं उसकी शुद्धि 12 वर्ष बाद होती है, ऐसा माना जाता है। इसकी शाखाओं पर ज्यादातर पक्षी घोंसला नहीं बनातें, इसके मूल में प्रायः कोई प्राणी बिल नहीं बनातें, यह इतना हानिकारक, जीवन-विघातक वृक्ष है।*


*जबकि पीपल कार्बन डाई ऑक्साइड का 100% अवशोषण करता है, बरगद 80% और नीम 75 % करता हैं।*


*बता दें कि पीपल के पत्ते का फलक बड़ा और डंठल पतला होता है जिसकी वजह से शांत मौसम में भी पत्ते हिलते रहते हैं और स्वच्छ ऑक्सीजन देते रहते हैं। पीपल को वृक्षों का राजा कहते है, श्री कृष्ण ने इसे अपनी विभूति भी बताया है में। "अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां" (गीता १०.२६ )*


*पीपल का वृक्ष दमानाशक, हृदयपोषक, ऋण-आयनों का खजाना, रोगनाशक, आह्लाद व मानसिक  प्रसन्नता का खजाना तथा रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ानेवाला है। बुद्धू बालकों तथा हताश-निराश लोगों को भी पीपल के स्पर्श एवं उसकी छाया में बैठने से अमिट स्वास्थ्य-लाभ व पुण्य-लाभ होता है। पीपल की जितनी महिमा गाएं, उतनी कम है।*


*इन जीवनदायी पेड़ों को ज्यादा से ज्यादा लगायें तथा यूकेलिप्टस आदि सजावटी पेड़ों को न लगाएं व सरकार द्वारा भी इन पर प्रतिबंध लगाया जाये।*


*दूसरी बात की केमिकल युक्त खेती हो रही है उसकी जगह परम्परागत जैविक खेती करनी होगी इससे पर्यावरण भी शुद्ध होगा और शुद्ध अन्न मिलने पर लोगों का स्वास्थ्य भी शुद्ध होगा और लोग बीमार भी कम होंगे।*


*हर 500 मीटर की दूरी पर एक पीपल का पेड़ लगाये तो आने वाले कुछ साल भर बाद प्रदूषण मुक्त हिंदुस्तान होगा, ऑक्सीजन के प्लांट लगाने की आवश्यकता नही पड़ेगी।*


🚩 *एक उपाय ये भी है कि बड़, पीपल, नीम आदि के बीज मिट्टी में लपेट कर छोटी-छोटी बहुत सारी बॉल बना कर सूखा लें जब बारिश के दिनों में ट्रेन यात्रा करें तो खिड़की में से पटरी से दूर 20-30 फिट की दूरी पर जगह-जगह खाली स्थानों पर फेंकते जाए। बारिश में ये बीज अंकुरित हो जाएंगे आपकी और से बहुत बड़ी पर्यावरण शुद्धि की सेवा हो जाएगी।*


*कुछ लोग सिर्फ दिखावा करने के लिए पेड लगाते हैं और कोई भी पेड़ लगा देते है लेकिन वास्तविकता में बदलाव लाना है तो इस बार हमें कम से कम 5 पेड़ लगाने होंगे और वो भी पीपल, बरगद, निम अथवा तुलसी के ही लगाने होंगें और उसकी देखभाल भी करनी होगी तभी पर्यावरण प्रदूषण मुक्त होगा।*


*ध्यान दें बारिश का समय आने वाला हैं भी पर्यवरण प्रेमी कम से कम 5 पेड़ पीपल, बड़ या नीम के अवश्य लगाए, उसकी देखभाल भी करें।*


*"अपना सिंगार तो किया कई बार, आओं करे मां भारती का सिंगार।*

*धरती मां को पहनाये वृक्षों का सुंदर हार।।"*



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एक और तारीख मिली आशाराम बापू को, इसके पीछे का कारण क्या है?

04 जून 2021

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हिंदू संत आशाराम बापू की उम्र 85 वर्ष है, वे पिछले 8 सालों से जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं, कुछ समय से उनका स्वास्थ्य काफी गिर गया है, उनको आयुर्वेदिक चिकित्सा की आवश्यकता लग रही है। उन्होंने जोधपुर हाईकोर्ट में अर्जी लगाई थी पर अफसोस कि जो न्यायालय आतंकवादी को अपना मनपसंद भोजन बिरयानी देता है और फाँसी रोकने की सुनवाई में आधी रात को अपना दरवाजा खोलता है उस न्यायालय ने 85 वर्षीय बुजर्ग संत आशाराम बापू को जमानत देने से मना कर दिया और जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुक्रवार को हुई तो उसमें भी अगली तारीख दे दी।



अभी हमें ये जानना होगा कि बापू आशारामजी के कौन-से दोष हैं जिसके कारण उनको सजा मिल रही है?


पहला दोष: वे एक हिन्दू संत हैं। अगर किसी अन्य धर्म के कोई बड़े गुरु होते तो शायद कोई उन्हें छू भी न पाता।


दसरा दोष: वे खरी बात कहते हैं। जिसमें लोगों का भला होता है वह बात स्पष्ट रूप से कह देते हैं जो नेता लोगों को पसंद नहीं आती है।


तीसरा दोष: करोड़ों लोगों के सिगरेट, शराब आदि व्यसन छुड़वाये हैं।


चौथा दोष: करोड़ों लोगों को सनातन धर्म की महिमा समझाकर ईश्वर के मार्ग पर लगाया।


पाँचवाँ दोष: किसीकी चमचागिरी नहीं करते। किसी मीडियावाले को घूस नहीं देते।


छठा दोष: करोड़ों हिन्दुओं को धर्मांतरित होने से बचाया है। लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई। 


सातवाँ दोष: जो विधर्मी या विदेशी भारतविरोधी ताकतें हैं, उनके आगे हार मानने को तैयार नहीं हैं। 


आठवाँ दोष: करोड़ों युवाओं व विद्यार्थियों को पतन से बचाकर तेजस्वी-ओजस्वी बनाया है। बाल-संस्कार केंद्र और वैदिक गरुकुल खोले।


नौवाँ दोष: पाश्चात्य अंधानुकरण से भोग्या बन रही नारी को उसकी निज महिमा में जगाया है, नारी सशक्तीकरण के लिए कई अभियान चलाये हैं।


दसवाँ दोष: भारतवासियों को आयुर्वेदिक चिकित्सा-पद्धति की श्रेष्ठता-महत्ता समझाकर स्वस्थ-सुखी जीवन की कुंजियाँ प्रदान की हैं।


गयारहवां दोष: आदिवासियों में जाकर जीवनोपयोगी सामग्री, मकान, पैसे आदि देकर मिशनरियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया।


बारहवां दोष: कत्लखाने जाती हजारों गायों को छुड़ाकर, गौशाले बनाकर पालन किया।


ऐसे और भी बहुत सारे दोष हैं बापू आशारामजी में लेकिन हमें ये सोचना होगा कि वास्तव में ये उनके दोष हैं या उनकी महानता? 


बापू आशारामजी के कई करोड़ साधक हैं और सत्संगी तो उनसे भी ज्यादा हैं। एक-एक नशे के उत्पाद तथा वेलेंटाइन डे गिफ्ट्स एवं देश को लूटनेवाले अन्य उत्पादों से सालभर में कई लाख करोड़ रुपये का नुकसान कम्पनियों को हो रहा है। इस बड़े नुकसान से बचने के लिए बापूजी जैसे संत की प्रतिष्ठा को नष्ट करने के लिए अगर 1000-2000 करोड़ रुपये लगा दिये जायें तो इसमें क्या आश्चर्य है!


ईसाई मिशनरियाँ भारत में भोले-भाले लोगों, गरीबों-आदिवासियों को बहला-फुसलाकर तथा लालच दे के उनका धर्मांतरण कराती हैं। बापू आशारामजी ने उन लोगों को हिन्दू धर्म की महिमा समझायी और उन्हें अपने धर्म में वापस लाने का कार्य किया। इससे बापूजी मिशनरियों की आँख की किरकिरी बन गये।

और भी ऐसी बहुत-सी बातें हैं, जिनके कारण यह षड्यंत्र हुआ । 


आज हिन्दुओं की हालत ऐसी है जैसे पड़ोसी के घर में आग लगी है और सोच रहे हैं कि ‘हम क्यों जायें मदद करने? हम क्यों चिंता करें?’ लेकिन जब यह आग फैलते-फैलते उनके घर को घेर लेगी तो उन्हें पछतावा होगा कि ‘काश ! हमने पड़ोसी की मदद की होती तो आज हमारा घर नहीं जलता।’ आज संत आशाराम बापू पर आरोप लगाये जा रहे हैं, कल किसी और हिन्दू संत को निशाना बनाया जायेगा। फिर अफसोस होगा कि समय रहते ही अगर सब लोग हिन्दुत्व के नाते एक हो गये होते तो मुट्ठीभर षड्यंत्रकारियों की ताकत नहीं थी कि वे 100 करोड़ हिन्दुओं की ओर आँख भी उठा पायें।


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आसाराम बापू के केस में सच्चाई क्या है? जमानत नही मिलने के कारण?

03 जून 2021

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85 वर्षीय हिन्दू संत आशाराम बापू के पक्ष की तरफ से कई चौंकाने वाले तथ्य न्यायालय के सामने आये  हुए हैं। जिनमें से कुछ मीडिया द्वारा भी प्रकाशित-प्रसारित हुए हैं । इससे बापू आशारामजी के खिलाफ विभिन्न स्तरों पर रचे गए षड्यंत्र की परतें स्पष्ट तौर पर उजागर हुई हैं।



वरिष्ठ अधिवक्ता सज्जनराज सुराणा द्वारा बापू आशारामजी को एक सुनियोजित षड़यंत्र के तहत फंसाए जाने की पुष्टि करने वाले एक से बढ़कर एक ऐसे आश्चर्यकारक तथ्य सामने आ रहे हैं कि जिसका अभियोजन पक्ष के पास कोई जवाब नहीं है ।


सबसे बड़ा सनसनीखेज खुलासा जो सामने आया वो ये है कि लड़की कमरे में गई ही नहीं..

https://youtu.be/HV6fEw5yq8Q


अधिवक्ता सुराणा जी ने बताया था कि लड़की ने रात 10:30 बजे का बापू आशारामजी पर छेड़छाड़ी का आरोप लगाया है लेकिन न्यायालय में गवाह पेश हुए जिन्होंने बताया कि बापू आशारामजी रात को 9:00 बजे से 11:45 तक नीम के पेड़ के नीचे बैठे थे, उनके सामने 50-60 लोग और भी बैठे थे, वहां सत्संग के बाद पूना व सुमेरपुर के परिवार के बीच हुई सगाई के निमित्त झुलेलालजी की झाँकी निकाली गयी थी, जिसमें बापू आसारामजी भी उपस्थित थे और दोनों परिवारवालों को रात को 11:30 बजे आशीर्वाद दे रहे थे । उस सत्संग के समय के कई फोटोज भी हैं जो न्यायालय के सामने सन 2014 से हैं तथा उसमें उपस्थित परिवारवालों की गवाही भी न्यायालय में हो चुकी है । वहाँ पर जो सिक्योरिटी गार्ड था वो भी इस बात का गवाह है ।


दसरी ओर कॉल रिकॉर्ड से पता चला कि रातभर लड़की अपने मित्र (पुरुष) को मैसेज करती रही, न्यायालय में मनीषा नाम की महिला के बयान हुए, उसने बताया कि मैं उसके (लड़की)पास ही सोई थी और उसको बोला भी था कि सो जा लेकिन वो सो नही रही थी और अपने मित्र से मैसेज पर देर रात तक बातें करती रही ।


सदिग्ध तरीके से दर्ज हुई एफ.आई.आर...

https://youtu.be/FmVcGKwEE30


अभियोजन पक्ष द्वारा तथाकथित घटना 14 व 15 अगस्त 2013 की दरमियानी रात्रि की बतायी गयी । जोधपुर की इस तथाकथित घटना के संबंध में एफ.आई.आर. न जोधपुर, न शाहजहाँपुर और न ही छिंदवाडा बल्कि 600 कि.मी. दूर कमला नेहरु मार्केट पुलिस थाना, नई दिल्ली में करवाई गई ।


🚩 एफ.आई.आर. की विडियो रिकॉर्डिंग गायब की गयी


एफ.आई.आर. लिखते समय की गयी विडियोग्राफी की रिकॉर्डिंग, सी.डी. एवं अन्य संबंधित दस्तावेज न्यायालय में पेश नहीं किये गये तथा संबंधित गवाहों थाना प्रभारी प्रमोद जोशी व कान्स्टेबल पंकज को भी न्यायालय में पेश नहीं किया गया । संदेहास्पद तरीके से उस विडियोग्राफी को गायब कर दिया गया । ए.एस.आई. पुष्पलता ने न्यायालय में इस बात को स्वीकार भी किया है कि एफ.आई.आर. लिखते समय विडियोग्राफी की गयी थी किंतु उन्होंने उसे न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत नहीं किया ।


ओरिजिनल एफ.आई.आर. को बदल डाला


अधिवक्ता सुराणा ने बताया कि ओरिजिनल एफ.आई.आर.को बदल दिया गया, यहाँ तक कि एफ.आई.आर. पर लड़की के दस्तखत भी नहीं करवाये गए जो धारा 154 में अनिवार्य प्रावधान है । रजिस्टर के ऊपर लिखा रहता है कि ‘यह पढ़ लिया है और सही है’ (read over and accepted to be correct) । जब ऐसा कॉलम है तो फिर हस्ताक्षर क्यों नहीं करवाये गए ?


FIR व FIR की कार्बन कॉपी में भी अंतर पाया गया है । जिसका स्पष्टीकरण सम्बन्धित पुलिस कर्मी न्यायालय के सामने हुई अपनी गवाही में नहीं दे पाया है ।


मडिकल जाँच में मिली क्लीनचिट


लोकनायक अस्पताल, दिल्ली की डॉ. शैलजा वर्मा एवं डॉ. राजेन्द्र कुमार ने लड़की की मेडिकल जाँच की थी । मेडिकल रिपोर्ट पूर्णतया नॉर्मल है । दोनों ही डॉक्टरों ने स्पष्ट किया है कि किसी भी प्रकार का सेक्सुअल असॉल्ट (यौन-उत्पीड़न) अथवा फिजिकल असॉल्ट (शारीरिक उत्पीड़न) नहीं पाया गया । चोट का कोई निशान भी नहीं था । अनुसंधान अधिकारी चंचल मिश्रा से जिरह के दौरान जब यह पूछा गया कि चोट का निशान नहीं था तो मामला कैसे बना ? तो इसका उसके पास कोई जवाब नहीं था ।


अनुसंधान अधिकारी भी नहीं थी निष्पक्ष


न्यायालय में ऐसे कई तथ्य उजागर हुए थे जिन्हें पुलिस द्वारा दबाया गया था । अनुसंधान पक्षपातपूर्ण किया गया तथा बापू आसारामजी पर नाजायज धाराएँ लगायी गयी । अनुसंधान के दौरान जिन व्यक्तियों ने सत्य को उजागर किया उनके महत्त्वपूर्ण बयान अनुसंधान अधिकारी चंचल मिश्रा ने चार्जशीट में लगाये ही नहीं । चंचल मिश्रा ने अपनी गवाही में इस बात को स्वीकार किया है कि उन्होंने केस से संबंधित कई गवाहों के बयान आरोप-पत्र के साथ पेश नहीं किये हैं ।


पोक्सो एक्ट किस आधार पर


 जिस पोक्सो एक्ट के कारण पिछले साढ़े चार सालों से आसारामजी बापू को बेल तक नहीं मिल पाई,उस तथाकथित घटना के समय लड़की नाबालिग नहीं, बालिग थी । अधिवक्ता सज्जनराज सुराणा


आजाद भारत, [03/06/2021 7:58 PM]

अपनी दलीलों को कोर्ट के सामने जारी रखते हुए कहा कि LIC policy फॉर्म को लड़की की माँ ने खुद स्वीकार किया है और उसने उसके पैसे भी उठाए हैं | LIC Policy के संबंध में लड़की की माँ ने उक्त दस्तावेजों में भरे गए सभी तथ्यों को सही होने का स्वीकार करते हुए उस पर तीन जगह हस्ताक्षर किये हैं जिसमें लड़की की उम्र 1.7.94 भरी गई है जिसके हिसाब से लड़की कथित घटना के समय 19 साल से अधिक की हो जाती है ।


50 करोड़ की फिरौती के लिए रचा गया षड्यंत्र..

https://youtu.be/6O15CnZfwZQ


2008 में योग वेदान्त सेवा समिति अहमदाबाद आश्रम को एक फैक्स भेजा गया था जिसमें अमृत प्रजापति व उसके साथियों के द्वारा ये कहा गया था कि 50 करोड़ रुपये दो वर्ना उसके परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो जाओ । हम झूठी लड़कियां तैयार करेंगे, प्लांट करेंगे जिसके कारण तुम जिंदगी भर जेल में रहोगे कभी बाहर नहीं आ सकोगे ।


इस बात के लिए conspiracy वडोदरा (गुजरात) में की गई थी । जिसमें दीपक चौरसिया (इंडिया न्यूज़) भी शामिल था जो #मीडिया के ऊपर प्रचार प्रसार कर रहा था, कर्मवीर (परिवादिया का पिता) भी शामिल था । इन सबका जो एक motive था, वो 50 करोड़ की ब्लैकमेलिंग का था । 50 करोड़ नहीं देने के कारण से मणाई गाँव का पूरा घटनाक्रम बनाया गया है ।


उत्तर प्रदेश के पूर्व महानिदेशक सुव्रत त्रिपाठी जी ने ट्वीटर के माध्यम से बताया कि संत आशारामजी बापू केस में...

- FIR की वीडियो रिकॉर्डिंग को गायब कर दिया

- FIR और उसकी कार्बन कॉपी में अंतर पाया गया

- रजिस्टर के कई पन्ने फाड़े गए

- बर्थ सर्टिफिकेट में लड़की की अलग-अलग उम्र

- मेडिकल में नहीं मिला एक भी खरोंच का निशान

क्या ये उनको फंसाने की साजिश नहीं..??

https://twitter.com/ips_suvrat/status/1298288653404266498?s=19


दसरी ट्वीट के माध्यम से बताया कि संत आशारामजी बापू ने लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई।

करोड़ों लोगों को सनातन धर्म के प्रति आस्थावान बनाया।

वैदिक गुरुकुल और बाल संस्कार केंद्र खोलकर बच्चों को दिव्य संस्कार दिए।

कत्लखाने जाती हजारों गायों को बचाकर गौशालाएं खोल दी।

वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन शुरू करवाया।

https://twitter.com/ips_suvrat/status/1307723330707841024?s=19


इन सब बातों से स्पस्ट होता है कि हिंदू संत आशाराम बापू को षड्यंत्र के तहत फसाया गया हैं, आतंकवादियों को भी जमानत मिल जाती है पर 8 साल से 85 वर्षीय हिंदू संत आशाराम बापू को जमानत नही मिलना क्या ये बड़ी साजिस नही हैं?


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देश, धर्म और संस्कृति बचाने के लिए हिन्दूराष्ट्र की आवश्यकता है

02 जून 2021

azaadbharat.org


वर्ष 1947 में विभाजन के उपरांत देश स्वतंत्र हुआ। तदुपरांत वर्ष 1950 में संविधान लागू हुआ। उस समय कहा गया कि सभी को समान न्याय मिलेगा। इस कारण सब अत्याचार भूलकर हिन्दू उसे स्वीकारने के लिए तैयार हो गए परंतु प्रत्यक्ष में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अल्पसंख्यकों को सुविधा देकर हिंदुओं का दमन किया जा रहा है। आज मुसलमान अपने धर्म के लिए ‘फिदायीन’ बनकर समय पड़ने पर अपने प्राण देने को तैयार हो जाते हैं। ऐसे समय हम हिन्दू अधिवक्ताओं को भी कानून का अध्ययन कर, न्यायालय में ‘फिदायीन’ बनकर हिन्दू को न्याय दिलाने के लिए निःस्वार्थ वृत्ति के साथ प्राणपण से प्रयास करने चाहिए । देश में बडी संख्या में हिन्दुओं का धर्मांतरण हो रहा है, इसे रोकना आवश्यक है। इस पृष्ठभूमि पर धर्मांतरण-विरोधी कानून बनाने के लिए अधिवक्ता प्रयास करें। हमें अपना भविष्य सुरक्षित करना है तो हिन्दूराष्ट्र स्थापना के प्रयास करने चाहिए- ऐसा प्रतिपादन लक्ष्मणपुरी (लखनऊ) के ‘हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस’ के अध्यक्ष अधिवक्ता हरि शंकर जैन ने किया। 



अधिवक्ता हरि शंकर जैन द्वारा प्रस्तुत किए गए कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्र . . .


1. 'हिन्दुओं के विरोध में निर्णय हो जाए, तो न्याय और निर्णय हिन्दुओं के पक्ष में हो जाए तो वह अन्याय’, ऐसी चिंताजनक स्थिति आज निर्मित हो गई है । 


अब ‘हिन्दू प्रथम’ (Hindu First) यह नारा देना चाहिए । जो कानून हिन्दुओं को न्याय नहीं दे सकता उसे बदलने की आज आवश्यकता है।


2. ‘हिन्दू अप्रसन्न (नाराज) हुए, तो सत्ता नहीं मिलेगी’, ऐसी कड़ी चेतावनी राजनीतिक दलों को देने की आवश्यकता है।


3. ‘धर्मनिरपेक्षता’- यह देश में स्थित एक राक्षस है। इसे गाड़ देना चाहिए!


4. सच्चर आयोग के अनुसार यदि मुसलमान गरीब हैं तो गली-गली में मस्जिद बनवाने के लिए पैसा कहां से आता है?


5. धर्मरक्षा के लिए सक्रिय होने पर कोई हिन्दुओं को सांप्रदायिक कहे तो अभिमान से कहें, हां ! हिन्दू सांप्रदायिक हैं !


6. आजकल सभी जगह मुसलमानी मानसिकता देखने को मिलती है। उसमें परिवर्तन लाकर हमें ‘हिन्दू विचार’ सामने रखने हैं।


7. हिन्दुओं का धर्मशास्त्र छोटे बच्चों तक पहुंचाना चाहिए। अंग्रेजी में कविता सुनाने पर माता-पिता अपने छोटे बच्चों की प्रशंसा करते हैं परंतु अपने बच्चों को गायत्रीमंत्र, हनुमानचालिसा का भी पठन करना चाहिए- ऐसा माता-पिता को लगता है?


8. कैराना (उत्तरप्रदेश) में हुए लोकसभा चुनाव के निर्णय के उपरांत ‘अल्लाह जीत गया, राम हार गया’, ऐसे नारे दिए गए। यदि ऐसे नारे नहीं सुनना चाहते हो तो हिन्दूराष्ट्र की स्थापना के लिए कार्य करना आवश्यक है।


हिन्दूराष्ट्र के लिए आवश्यकता पड़ने पर बलिदान देंगे! – अधिवक्ता हरि शंकर जैन


दश, धर्म और संस्कृति बचाने के लिए हिन्दूराष्ट्र की आवश्यकता है। हिन्दूराष्ट्र के लिए आवश्यकता पड़ने पर बलिदान भी देंगे परंतु हिन्दूराष्ट्र की मांग से पीछे नहीं हटेंगे। स्रोत : हिन्दू जन जागृति समिति


दनिया में ईसाइयों के 157 देश हैं और मुसलमानों के 57 देश हैं जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दू ही सनातन धर्म है जबसे सृष्टि का उद्गम हुआ तब से है फिर भी एक भी हिन्दू देश नहीं है।


बता दें कि ईसाई धर्म की स्थापना 2000 साल पहले और मुसलमान धर्म की स्थापना 1400 साल पहले हुई फिर भी उनके इतने देश हो गये और सनातन हिन्दू धर्म सिमटता गया बड़ी दुःखद बात है। अब एक भारत ऐसा देश है जिसमें 80 प्रतिशत हिन्दू हैं लेकिन उन हिन्दुओं का धर्मान्तरण करवाया जा रहा है, जातियों में बांटकर लड़वाया जा रहा है, हिन्दूनिष्ठों व हिन्दू धर्मगुरुओं को झूठे केस में जेल में भिजवाया जा रहा है इससे साफ पता चलता है कि भारत में भी हिन्दू अपना अस्तित्व खो देंगे।


अब हिन्दुओं को जागना होगा और किसी भी हिन्दू पर अत्याचार हुआ हो तो उसके लिए एक होकर लड़ना होगा और भारत को हिन्दूराष्ट्र बनाने के लिए पुरजोश से प्रयत्न करना होगा तभी हिन्दू बच पायेगें नहीं तो खुद का धर्म भी खो देंगे।



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Monday, February 21, 2022

पटा पूरी तरह से हिंदुत्व व मानवता विरोधी बन चुकी है?

01 जून 2021

azaadbharat.org


भारत मे बिना मांगे सलाह देनेवालों की भरमार है। इसी तरह के बेकार सलाह देनेवालों मे मानवाधिकार और पशु अधिकार संबंधी संस्थाएं हैं। मानवाधिकारवालों को केवल आतंकवादियों और नक्सलियों के अधिकार की चिंता है तो पशु अधिकारवालों को गाय से दूध लेना अत्याचार दिखाई देता है।

इसी तरह की एक विदेशी संस्था है PETA (People for the Ethical Treatment of Animals ) जो पशुओं के नाम पर मोटा पैसा बनाती है। यह मूलतः अमेरिका की संस्था है जो भारत में सनातनधर्म-विरोधी एजेंडा चलाती है। 



दश की सबसे बड़ी डेयरी कंपनी अमूल (Amul) ने जानवरों के अधिकारों की रक्षा करनेवाले संगठन पेटा (PETA) के सुझाव पर सवाल उठाए हैं। PETA ने अमूल (Amul) को सुझाव दिया था कि उसे प्लांट बेस्ड डेयरी प्रोडक्ट पर स्विच कर जाना चाहिए।

अभी PETA ने भारत की प्रसिद्ध दूध उत्पाद बेचनेवाली कम्पनी अमूल को लिखा है कि वह गाय/ भैंस के दूध के स्थान पर VEGAN MILK ( सोयाबीन आदि से बना दूध जैसा द्रव) को बेचे।


ऐसी संस्थाएँ, भारत के संदर्भ में, हिन्दू लोगों की आस्था पर हमले करने, कृषकों की आय खत्म करने और बनावटी ज्ञान देने की साजिश करती ही नजर आती हैं। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा कोई भी ढंग का कार्य नहीं किया जा रहा। त्योहारों पर इनके हर कैम्पेन में हिन्दूघृणा टपकती दिखती है। इनका एजेंडा वेटिकनपोषित संस्थाओं के एजेंडे से बिलकुल भी भिन्न नहीं है। 


🚩दध लग्जरी नहीं, आवश्यकता है। ऐसे में पेटा जब ‘वीगन दूध’ की बातें कर रही है तो वो यह भूल जाता है कि करोड़ों किसानों के रोजगार के साथ-साथ गरीबों के जीवन से खेलने की बातें कर रही है। सवाल यह है कि पेटावालों को ‘वीगन दूध’ की याद क्यों आती है? 


आप अगर वीगन मिल्क का मूल्य देखने जाएँगे तो आपको पता चलेगा कि एक लीटर ‘वीगन मिल्क’ का दाम 290 से लेकर ₹400 तक है। अब कोई यह समझाए कि गाँव में ₹30-35/लीटर और शहरों में ₹45-60/लीटर खरीदनेवाले लोग लगभग दस-गुणा मूल्य चुका कर किस बजट के हिसाब से दूध खरीदेंगे? भारत में हर व्यक्ति को वैसे भी दूध नहीं मिल पाता; जिनको मिल रहा है, उनमें से भी एक बहुत बड़ा हिस्सा उसे बच्चों के पोषण हेतु उपयोग में लाते हैं। 


दसरा कि शास्त्रों ने व वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है कि देशी गाय का दूध अमृत के समान है व अनेक रोगों का स्वतः सिद्ध उपचार है । देशी गाय का दूध सेवन करने से किशोर-किशोरियों की शरीर की लम्बाई व पुष्टता उचित मात्रा में विकसित होती है, हड्डियाँ भी मजबूत बनती हैं एवं बुद्धि का विलक्षण विकास होता है। तो इस दूध से वंचित करना मानवता के खिलाफ है।


कवल प्रोपगेंडा 

PETA को 2020 में लगभग 66.3 मिलियन डॉलर मिले जो भारतीय रुपयों में ₹4,77,36,00,000 (477 करोड़ से अधिक) होते हैं। इसमें से ₹459 करोड़ ($63.8 मिलियन) इन्हें दान से मिले। 

जुलाई 2020 में रक्षाबंधन पर PETA ने चमड़ामुक्त राखी के प्रचार पर करोड़ों खर्च किए। ध्यान रखें- बकरीद पर ये कुछ नहीं बोलती है। 

सूचना स्रोत -

https://dopolitics.in/peta-budget-propaganda-salary-expenses-animal-rights-fake-ngo/


आपको जानकर हैरानी होगी कि इस संस्था पर अमेरिका में मासूम जानवरों की जान लेने के आरोप लगते रहे हैं। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि यह संस्था पशुओं को बचाने के नाम पर खुद इन पशुओं की हत्या कर देती है।


वर्जीनिया डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर एंड कंज्यूमर सर्विसेज (VDACS) की रिपोर्ट के मुताबिक PETA ने पिछले 2019 में 1,593 कुत्तों, बिल्लियों और अन्य पालतू जानवरों को मार दिया था। वहीं 2018 में 1771 जानवरों की हत्या कर दी गई। इसी तरह 2017 में 1809, 2016 में 1411 और 2015 में 1456 जानवरों को मार दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार 1998 से लेकर 2019 तक PETA ने 41539 जानवरों की हत्या कर दी।


PETA यानी पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स। यह संस्था खुद को पशुओं के अधिकार का संरक्षक कहती है। लेकिन इस मुखौटे के पीछे कई चेहरे छिपे हैं। हिंदुओं से घृणा करनेवाली यह संस्था जानवरों की निर्ममता से हत्या भी करती है। दीपावली पर ज्ञान देती है कि पटाखे नहीं फोड़ें नहीं तो पशु-पक्षी डर जाते हैं, लेकिन यही पेटा बकरीद पर पूरी विधि बताती है कि पशु हत्या कैसे करनी चाहिए।


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अहल्याबाई से नारियों को सीखना चाहिए- कितनी महानता छुपी है नारी में

31 मई 2021

azaadbharat.org


महिलाओं में अथाह सामर्थ्य छुपा है। जितने भी बड़े-बड़े संस्कृति व राष्ट्रप्रेमी योद्धा, महापुरुष, ऋषि-मुनि, वैज्ञानिक, नेता आदि जो भी महान हुए हैं उनके पीछे माँ का सबसे बड़ा हाथ है; माँ के अच्छे संस्कार के कारण ही बच्चे महान बन पाते हैं। इसलिए शास्त्रों में नारी को नारायणी भी कहा गया है लेकिन आज की नारी पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने के कारण दुर्व्यसनों में फंसकर अपनी महिमा भूल गई है और उसे एक भोग्या के रूप में लोग देखने लगे हैं; इतिहास भी सही नहीं पढ़ाया जाता है जिसके कारण महिला अपनी महिमा भूल गई है।



अहल्याबाई होल्कर 


भारत में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है, उनमें रानी अहल्याबाई होल्कर का नाम प्रमुख है।

उनका जन्म 31 मई, 1725 को ग्राम छौंदी (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री मनकोजी राव शिन्दे परम शिवभक्त थे। अतः यही संस्कार बालिका अहल्या पर भी पड़े। 


एक बार इन्दौर के राजा मल्हारराव होल्कर ने वहां से जाते हुए मन्दिर में हो रही आरती का मधुर स्वर सुना। वहां पुजारी के साथ एक बालिका भी पूर्ण मनोयोग से आरती कर रही थी। उन्होंने उसके पिता को बुलवाकर उस बालिका को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव रखा। मनकोजी राव भला क्या कहते, उन्होंने सिर झुका दिया। इस प्रकार वह आठ वर्षीय बालिका इन्दौर के राजकुंवर खांडेराव की पत्नी बनकर राजमहलों में आ गयी।


इन्दौर में आकर भी अहल्या पूजा एवं आराधना में रत रहती। कालान्तर में उन्हें दो पुत्री तथा एक पुत्र की प्राप्ति हुई। 1754 में उनके पति खांडेराव एक युद्ध में मारे गये। 1766 में उनके ससुर मल्हारराव का भी देहांत हो गया। इस संकटकाल में रानी ने तपस्वी की भांति श्वेत वस्त्र धारण कर राजकाज चलाया; पर कुछ समय बाद उनके पुत्र, पुत्री तथा पुत्रवधू भी चल बसे। इस वज्राघात के बाद भी रानी अविचलित रहते हुए अपने कर्तव्यमार्ग पर डटी रहीं। 


ऐसे में पड़ोसी राजा पेशवा राघोबा ने इन्दौर के दीवान गंगाधर यशवन्त चन्द्रचूड़ से मिलकर अचानक हमला बोल दिया। रानी ने धैर्य न खोते हुए पेशवा को एक मार्मिक पत्र लिखा। रानी ने लिखा कि यदि युद्ध में आप जीतते हैं, तो एक विधवा को जीतकर आपकी कीर्ति नहीं बढ़ेगी। और यदि हार गये, तो आपके मुख पर सदा को कालिख पुत जाएगी। मैं मृत्यु या युद्ध से नहीं डरती। मुझे राज्य का लोभ नहीं है, फिर भी मैं अन्तिम क्षण तक युद्ध करूंगी।


इस पत्र को पाकर पेशवा राघोबा चकित रह गया। इसमें जहां एक ओर रानी अहल्याबाई ने उस पर कूटनीतिक चोट की थी, वहीं दूसरी ओर अपनी कठोर संकल्पशक्ति का परिचय भी दिया था। रानी ने देशभक्ति का परिचय देते हुए उसे अंग्रेजों के षड्यन्त्र से भी सावधान किया था। अतः उसका मस्तक रानी के प्रति श्रद्धा से झुक गया और वह बिना युद्ध किये ही पीछे हट गया।


रानी के जीवन का लक्ष्य राज्यभोग नहीं था। वे प्रजा को अपनी सन्तान समझती थीं। वे घोड़े पर सवार होकर स्वयं जनता से मिलती थीं। उन्होंने जीवन का प्रत्येक क्षण राज्य और धर्म के उत्थान में लगाया। एक बार गलती करने पर उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र को भी हाथी के पैरों से कुचलने का आदेश दे दिया था; पर फिर जनता के अनुरोध पर उसे कोड़े मार कर ही छोड़ दिया। 


धर्मप्रेमी होने के कारण रानी ने अपने राज्य के साथ-साथ देश के अन्य तीर्थों में भी मंदिर, कुएं, बावड़ी, धर्मशालाएं आदि बनवाईं। काशी का वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर 1780 में उन्होंने ही बनवाया था। उनके राज्य में कला, संस्कृति, शिक्षा, व्यापार, कृषि आदि सभी क्षेत्रों का विकास हुआ।


13 अगस्त, 1795 ई0 को 70 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ। उनका जीवन धैर्य, साहस, सेवा, त्याग और कर्तव्यपालन का प्रेरक उदाहरण है। इसीलिए एकात्मता स्तोत्र के 11वें श्लोक में उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, चेन्नम्मा, रुद्रमाम्बा जैसी वीर नारियों के साथ याद किया जाता है।

(संदर्भ : राष्ट्रधर्म मासिक, मई 2011)


लज्जावासो भूषणं शुद्धशीलं पादक्षेपो धर्ममार्गे च यस्या।

नित्यं पत्युः सेवनं मिष्टवाणी धन्या सा स्त्री पूतयत्येव पृथ्वीम्।।

'जिस स्त्री का लज्जा ही वस्त्र तथा विशुद्ध भाव ही भूषण हो, धर्ममार्ग में जिसका प्रवेश हो, मधुर वाणी बोलने का जिसमें गुण हो वह पतिसेवा-परायण श्रेष्ठ नारी इस पृथ्वी को पवित्र करती है।'

भगवान शंकर महर्षि गर्ग से कहते हैं:

'जिस घर में सर्वगुणसंपन्ना नारी सुखपूर्वक निवास करती है, उस घर में लक्ष्मी निवास करती है। हे वत्स ! कोटि देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते।'


🚩अब समय आ गया है नारी पाश्चात्य संस्कृति को छोड़कर भारतीय संस्कृति को अपनाकर अपनी महानता पहचाने।


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