Tuesday, February 22, 2022

एक और तारीख मिली आशाराम बापू को, इसके पीछे का कारण क्या है?

04 जून 2021

azaadbharat.org


हिंदू संत आशाराम बापू की उम्र 85 वर्ष है, वे पिछले 8 सालों से जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं, कुछ समय से उनका स्वास्थ्य काफी गिर गया है, उनको आयुर्वेदिक चिकित्सा की आवश्यकता लग रही है। उन्होंने जोधपुर हाईकोर्ट में अर्जी लगाई थी पर अफसोस कि जो न्यायालय आतंकवादी को अपना मनपसंद भोजन बिरयानी देता है और फाँसी रोकने की सुनवाई में आधी रात को अपना दरवाजा खोलता है उस न्यायालय ने 85 वर्षीय बुजर्ग संत आशाराम बापू को जमानत देने से मना कर दिया और जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुक्रवार को हुई तो उसमें भी अगली तारीख दे दी।



अभी हमें ये जानना होगा कि बापू आशारामजी के कौन-से दोष हैं जिसके कारण उनको सजा मिल रही है?


पहला दोष: वे एक हिन्दू संत हैं। अगर किसी अन्य धर्म के कोई बड़े गुरु होते तो शायद कोई उन्हें छू भी न पाता।


दसरा दोष: वे खरी बात कहते हैं। जिसमें लोगों का भला होता है वह बात स्पष्ट रूप से कह देते हैं जो नेता लोगों को पसंद नहीं आती है।


तीसरा दोष: करोड़ों लोगों के सिगरेट, शराब आदि व्यसन छुड़वाये हैं।


चौथा दोष: करोड़ों लोगों को सनातन धर्म की महिमा समझाकर ईश्वर के मार्ग पर लगाया।


पाँचवाँ दोष: किसीकी चमचागिरी नहीं करते। किसी मीडियावाले को घूस नहीं देते।


छठा दोष: करोड़ों हिन्दुओं को धर्मांतरित होने से बचाया है। लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई। 


सातवाँ दोष: जो विधर्मी या विदेशी भारतविरोधी ताकतें हैं, उनके आगे हार मानने को तैयार नहीं हैं। 


आठवाँ दोष: करोड़ों युवाओं व विद्यार्थियों को पतन से बचाकर तेजस्वी-ओजस्वी बनाया है। बाल-संस्कार केंद्र और वैदिक गरुकुल खोले।


नौवाँ दोष: पाश्चात्य अंधानुकरण से भोग्या बन रही नारी को उसकी निज महिमा में जगाया है, नारी सशक्तीकरण के लिए कई अभियान चलाये हैं।


दसवाँ दोष: भारतवासियों को आयुर्वेदिक चिकित्सा-पद्धति की श्रेष्ठता-महत्ता समझाकर स्वस्थ-सुखी जीवन की कुंजियाँ प्रदान की हैं।


गयारहवां दोष: आदिवासियों में जाकर जीवनोपयोगी सामग्री, मकान, पैसे आदि देकर मिशनरियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया।


बारहवां दोष: कत्लखाने जाती हजारों गायों को छुड़ाकर, गौशाले बनाकर पालन किया।


ऐसे और भी बहुत सारे दोष हैं बापू आशारामजी में लेकिन हमें ये सोचना होगा कि वास्तव में ये उनके दोष हैं या उनकी महानता? 


बापू आशारामजी के कई करोड़ साधक हैं और सत्संगी तो उनसे भी ज्यादा हैं। एक-एक नशे के उत्पाद तथा वेलेंटाइन डे गिफ्ट्स एवं देश को लूटनेवाले अन्य उत्पादों से सालभर में कई लाख करोड़ रुपये का नुकसान कम्पनियों को हो रहा है। इस बड़े नुकसान से बचने के लिए बापूजी जैसे संत की प्रतिष्ठा को नष्ट करने के लिए अगर 1000-2000 करोड़ रुपये लगा दिये जायें तो इसमें क्या आश्चर्य है!


ईसाई मिशनरियाँ भारत में भोले-भाले लोगों, गरीबों-आदिवासियों को बहला-फुसलाकर तथा लालच दे के उनका धर्मांतरण कराती हैं। बापू आशारामजी ने उन लोगों को हिन्दू धर्म की महिमा समझायी और उन्हें अपने धर्म में वापस लाने का कार्य किया। इससे बापूजी मिशनरियों की आँख की किरकिरी बन गये।

और भी ऐसी बहुत-सी बातें हैं, जिनके कारण यह षड्यंत्र हुआ । 


आज हिन्दुओं की हालत ऐसी है जैसे पड़ोसी के घर में आग लगी है और सोच रहे हैं कि ‘हम क्यों जायें मदद करने? हम क्यों चिंता करें?’ लेकिन जब यह आग फैलते-फैलते उनके घर को घेर लेगी तो उन्हें पछतावा होगा कि ‘काश ! हमने पड़ोसी की मदद की होती तो आज हमारा घर नहीं जलता।’ आज संत आशाराम बापू पर आरोप लगाये जा रहे हैं, कल किसी और हिन्दू संत को निशाना बनाया जायेगा। फिर अफसोस होगा कि समय रहते ही अगर सब लोग हिन्दुत्व के नाते एक हो गये होते तो मुट्ठीभर षड्यंत्रकारियों की ताकत नहीं थी कि वे 100 करोड़ हिन्दुओं की ओर आँख भी उठा पायें।


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आसाराम बापू के केस में सच्चाई क्या है? जमानत नही मिलने के कारण?

03 जून 2021

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85 वर्षीय हिन्दू संत आशाराम बापू के पक्ष की तरफ से कई चौंकाने वाले तथ्य न्यायालय के सामने आये  हुए हैं। जिनमें से कुछ मीडिया द्वारा भी प्रकाशित-प्रसारित हुए हैं । इससे बापू आशारामजी के खिलाफ विभिन्न स्तरों पर रचे गए षड्यंत्र की परतें स्पष्ट तौर पर उजागर हुई हैं।



वरिष्ठ अधिवक्ता सज्जनराज सुराणा द्वारा बापू आशारामजी को एक सुनियोजित षड़यंत्र के तहत फंसाए जाने की पुष्टि करने वाले एक से बढ़कर एक ऐसे आश्चर्यकारक तथ्य सामने आ रहे हैं कि जिसका अभियोजन पक्ष के पास कोई जवाब नहीं है ।


सबसे बड़ा सनसनीखेज खुलासा जो सामने आया वो ये है कि लड़की कमरे में गई ही नहीं..

https://youtu.be/HV6fEw5yq8Q


अधिवक्ता सुराणा जी ने बताया था कि लड़की ने रात 10:30 बजे का बापू आशारामजी पर छेड़छाड़ी का आरोप लगाया है लेकिन न्यायालय में गवाह पेश हुए जिन्होंने बताया कि बापू आशारामजी रात को 9:00 बजे से 11:45 तक नीम के पेड़ के नीचे बैठे थे, उनके सामने 50-60 लोग और भी बैठे थे, वहां सत्संग के बाद पूना व सुमेरपुर के परिवार के बीच हुई सगाई के निमित्त झुलेलालजी की झाँकी निकाली गयी थी, जिसमें बापू आसारामजी भी उपस्थित थे और दोनों परिवारवालों को रात को 11:30 बजे आशीर्वाद दे रहे थे । उस सत्संग के समय के कई फोटोज भी हैं जो न्यायालय के सामने सन 2014 से हैं तथा उसमें उपस्थित परिवारवालों की गवाही भी न्यायालय में हो चुकी है । वहाँ पर जो सिक्योरिटी गार्ड था वो भी इस बात का गवाह है ।


दसरी ओर कॉल रिकॉर्ड से पता चला कि रातभर लड़की अपने मित्र (पुरुष) को मैसेज करती रही, न्यायालय में मनीषा नाम की महिला के बयान हुए, उसने बताया कि मैं उसके (लड़की)पास ही सोई थी और उसको बोला भी था कि सो जा लेकिन वो सो नही रही थी और अपने मित्र से मैसेज पर देर रात तक बातें करती रही ।


सदिग्ध तरीके से दर्ज हुई एफ.आई.आर...

https://youtu.be/FmVcGKwEE30


अभियोजन पक्ष द्वारा तथाकथित घटना 14 व 15 अगस्त 2013 की दरमियानी रात्रि की बतायी गयी । जोधपुर की इस तथाकथित घटना के संबंध में एफ.आई.आर. न जोधपुर, न शाहजहाँपुर और न ही छिंदवाडा बल्कि 600 कि.मी. दूर कमला नेहरु मार्केट पुलिस थाना, नई दिल्ली में करवाई गई ।


🚩 एफ.आई.आर. की विडियो रिकॉर्डिंग गायब की गयी


एफ.आई.आर. लिखते समय की गयी विडियोग्राफी की रिकॉर्डिंग, सी.डी. एवं अन्य संबंधित दस्तावेज न्यायालय में पेश नहीं किये गये तथा संबंधित गवाहों थाना प्रभारी प्रमोद जोशी व कान्स्टेबल पंकज को भी न्यायालय में पेश नहीं किया गया । संदेहास्पद तरीके से उस विडियोग्राफी को गायब कर दिया गया । ए.एस.आई. पुष्पलता ने न्यायालय में इस बात को स्वीकार भी किया है कि एफ.आई.आर. लिखते समय विडियोग्राफी की गयी थी किंतु उन्होंने उसे न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत नहीं किया ।


ओरिजिनल एफ.आई.आर. को बदल डाला


अधिवक्ता सुराणा ने बताया कि ओरिजिनल एफ.आई.आर.को बदल दिया गया, यहाँ तक कि एफ.आई.आर. पर लड़की के दस्तखत भी नहीं करवाये गए जो धारा 154 में अनिवार्य प्रावधान है । रजिस्टर के ऊपर लिखा रहता है कि ‘यह पढ़ लिया है और सही है’ (read over and accepted to be correct) । जब ऐसा कॉलम है तो फिर हस्ताक्षर क्यों नहीं करवाये गए ?


FIR व FIR की कार्बन कॉपी में भी अंतर पाया गया है । जिसका स्पष्टीकरण सम्बन्धित पुलिस कर्मी न्यायालय के सामने हुई अपनी गवाही में नहीं दे पाया है ।


मडिकल जाँच में मिली क्लीनचिट


लोकनायक अस्पताल, दिल्ली की डॉ. शैलजा वर्मा एवं डॉ. राजेन्द्र कुमार ने लड़की की मेडिकल जाँच की थी । मेडिकल रिपोर्ट पूर्णतया नॉर्मल है । दोनों ही डॉक्टरों ने स्पष्ट किया है कि किसी भी प्रकार का सेक्सुअल असॉल्ट (यौन-उत्पीड़न) अथवा फिजिकल असॉल्ट (शारीरिक उत्पीड़न) नहीं पाया गया । चोट का कोई निशान भी नहीं था । अनुसंधान अधिकारी चंचल मिश्रा से जिरह के दौरान जब यह पूछा गया कि चोट का निशान नहीं था तो मामला कैसे बना ? तो इसका उसके पास कोई जवाब नहीं था ।


अनुसंधान अधिकारी भी नहीं थी निष्पक्ष


न्यायालय में ऐसे कई तथ्य उजागर हुए थे जिन्हें पुलिस द्वारा दबाया गया था । अनुसंधान पक्षपातपूर्ण किया गया तथा बापू आसारामजी पर नाजायज धाराएँ लगायी गयी । अनुसंधान के दौरान जिन व्यक्तियों ने सत्य को उजागर किया उनके महत्त्वपूर्ण बयान अनुसंधान अधिकारी चंचल मिश्रा ने चार्जशीट में लगाये ही नहीं । चंचल मिश्रा ने अपनी गवाही में इस बात को स्वीकार किया है कि उन्होंने केस से संबंधित कई गवाहों के बयान आरोप-पत्र के साथ पेश नहीं किये हैं ।


पोक्सो एक्ट किस आधार पर


 जिस पोक्सो एक्ट के कारण पिछले साढ़े चार सालों से आसारामजी बापू को बेल तक नहीं मिल पाई,उस तथाकथित घटना के समय लड़की नाबालिग नहीं, बालिग थी । अधिवक्ता सज्जनराज सुराणा


आजाद भारत, [03/06/2021 7:58 PM]

अपनी दलीलों को कोर्ट के सामने जारी रखते हुए कहा कि LIC policy फॉर्म को लड़की की माँ ने खुद स्वीकार किया है और उसने उसके पैसे भी उठाए हैं | LIC Policy के संबंध में लड़की की माँ ने उक्त दस्तावेजों में भरे गए सभी तथ्यों को सही होने का स्वीकार करते हुए उस पर तीन जगह हस्ताक्षर किये हैं जिसमें लड़की की उम्र 1.7.94 भरी गई है जिसके हिसाब से लड़की कथित घटना के समय 19 साल से अधिक की हो जाती है ।


50 करोड़ की फिरौती के लिए रचा गया षड्यंत्र..

https://youtu.be/6O15CnZfwZQ


2008 में योग वेदान्त सेवा समिति अहमदाबाद आश्रम को एक फैक्स भेजा गया था जिसमें अमृत प्रजापति व उसके साथियों के द्वारा ये कहा गया था कि 50 करोड़ रुपये दो वर्ना उसके परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो जाओ । हम झूठी लड़कियां तैयार करेंगे, प्लांट करेंगे जिसके कारण तुम जिंदगी भर जेल में रहोगे कभी बाहर नहीं आ सकोगे ।


इस बात के लिए conspiracy वडोदरा (गुजरात) में की गई थी । जिसमें दीपक चौरसिया (इंडिया न्यूज़) भी शामिल था जो #मीडिया के ऊपर प्रचार प्रसार कर रहा था, कर्मवीर (परिवादिया का पिता) भी शामिल था । इन सबका जो एक motive था, वो 50 करोड़ की ब्लैकमेलिंग का था । 50 करोड़ नहीं देने के कारण से मणाई गाँव का पूरा घटनाक्रम बनाया गया है ।


उत्तर प्रदेश के पूर्व महानिदेशक सुव्रत त्रिपाठी जी ने ट्वीटर के माध्यम से बताया कि संत आशारामजी बापू केस में...

- FIR की वीडियो रिकॉर्डिंग को गायब कर दिया

- FIR और उसकी कार्बन कॉपी में अंतर पाया गया

- रजिस्टर के कई पन्ने फाड़े गए

- बर्थ सर्टिफिकेट में लड़की की अलग-अलग उम्र

- मेडिकल में नहीं मिला एक भी खरोंच का निशान

क्या ये उनको फंसाने की साजिश नहीं..??

https://twitter.com/ips_suvrat/status/1298288653404266498?s=19


दसरी ट्वीट के माध्यम से बताया कि संत आशारामजी बापू ने लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई।

करोड़ों लोगों को सनातन धर्म के प्रति आस्थावान बनाया।

वैदिक गुरुकुल और बाल संस्कार केंद्र खोलकर बच्चों को दिव्य संस्कार दिए।

कत्लखाने जाती हजारों गायों को बचाकर गौशालाएं खोल दी।

वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन शुरू करवाया।

https://twitter.com/ips_suvrat/status/1307723330707841024?s=19


इन सब बातों से स्पस्ट होता है कि हिंदू संत आशाराम बापू को षड्यंत्र के तहत फसाया गया हैं, आतंकवादियों को भी जमानत मिल जाती है पर 8 साल से 85 वर्षीय हिंदू संत आशाराम बापू को जमानत नही मिलना क्या ये बड़ी साजिस नही हैं?


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देश, धर्म और संस्कृति बचाने के लिए हिन्दूराष्ट्र की आवश्यकता है

02 जून 2021

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वर्ष 1947 में विभाजन के उपरांत देश स्वतंत्र हुआ। तदुपरांत वर्ष 1950 में संविधान लागू हुआ। उस समय कहा गया कि सभी को समान न्याय मिलेगा। इस कारण सब अत्याचार भूलकर हिन्दू उसे स्वीकारने के लिए तैयार हो गए परंतु प्रत्यक्ष में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अल्पसंख्यकों को सुविधा देकर हिंदुओं का दमन किया जा रहा है। आज मुसलमान अपने धर्म के लिए ‘फिदायीन’ बनकर समय पड़ने पर अपने प्राण देने को तैयार हो जाते हैं। ऐसे समय हम हिन्दू अधिवक्ताओं को भी कानून का अध्ययन कर, न्यायालय में ‘फिदायीन’ बनकर हिन्दू को न्याय दिलाने के लिए निःस्वार्थ वृत्ति के साथ प्राणपण से प्रयास करने चाहिए । देश में बडी संख्या में हिन्दुओं का धर्मांतरण हो रहा है, इसे रोकना आवश्यक है। इस पृष्ठभूमि पर धर्मांतरण-विरोधी कानून बनाने के लिए अधिवक्ता प्रयास करें। हमें अपना भविष्य सुरक्षित करना है तो हिन्दूराष्ट्र स्थापना के प्रयास करने चाहिए- ऐसा प्रतिपादन लक्ष्मणपुरी (लखनऊ) के ‘हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस’ के अध्यक्ष अधिवक्ता हरि शंकर जैन ने किया। 



अधिवक्ता हरि शंकर जैन द्वारा प्रस्तुत किए गए कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्र . . .


1. 'हिन्दुओं के विरोध में निर्णय हो जाए, तो न्याय और निर्णय हिन्दुओं के पक्ष में हो जाए तो वह अन्याय’, ऐसी चिंताजनक स्थिति आज निर्मित हो गई है । 


अब ‘हिन्दू प्रथम’ (Hindu First) यह नारा देना चाहिए । जो कानून हिन्दुओं को न्याय नहीं दे सकता उसे बदलने की आज आवश्यकता है।


2. ‘हिन्दू अप्रसन्न (नाराज) हुए, तो सत्ता नहीं मिलेगी’, ऐसी कड़ी चेतावनी राजनीतिक दलों को देने की आवश्यकता है।


3. ‘धर्मनिरपेक्षता’- यह देश में स्थित एक राक्षस है। इसे गाड़ देना चाहिए!


4. सच्चर आयोग के अनुसार यदि मुसलमान गरीब हैं तो गली-गली में मस्जिद बनवाने के लिए पैसा कहां से आता है?


5. धर्मरक्षा के लिए सक्रिय होने पर कोई हिन्दुओं को सांप्रदायिक कहे तो अभिमान से कहें, हां ! हिन्दू सांप्रदायिक हैं !


6. आजकल सभी जगह मुसलमानी मानसिकता देखने को मिलती है। उसमें परिवर्तन लाकर हमें ‘हिन्दू विचार’ सामने रखने हैं।


7. हिन्दुओं का धर्मशास्त्र छोटे बच्चों तक पहुंचाना चाहिए। अंग्रेजी में कविता सुनाने पर माता-पिता अपने छोटे बच्चों की प्रशंसा करते हैं परंतु अपने बच्चों को गायत्रीमंत्र, हनुमानचालिसा का भी पठन करना चाहिए- ऐसा माता-पिता को लगता है?


8. कैराना (उत्तरप्रदेश) में हुए लोकसभा चुनाव के निर्णय के उपरांत ‘अल्लाह जीत गया, राम हार गया’, ऐसे नारे दिए गए। यदि ऐसे नारे नहीं सुनना चाहते हो तो हिन्दूराष्ट्र की स्थापना के लिए कार्य करना आवश्यक है।


हिन्दूराष्ट्र के लिए आवश्यकता पड़ने पर बलिदान देंगे! – अधिवक्ता हरि शंकर जैन


दश, धर्म और संस्कृति बचाने के लिए हिन्दूराष्ट्र की आवश्यकता है। हिन्दूराष्ट्र के लिए आवश्यकता पड़ने पर बलिदान भी देंगे परंतु हिन्दूराष्ट्र की मांग से पीछे नहीं हटेंगे। स्रोत : हिन्दू जन जागृति समिति


दनिया में ईसाइयों के 157 देश हैं और मुसलमानों के 57 देश हैं जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दू ही सनातन धर्म है जबसे सृष्टि का उद्गम हुआ तब से है फिर भी एक भी हिन्दू देश नहीं है।


बता दें कि ईसाई धर्म की स्थापना 2000 साल पहले और मुसलमान धर्म की स्थापना 1400 साल पहले हुई फिर भी उनके इतने देश हो गये और सनातन हिन्दू धर्म सिमटता गया बड़ी दुःखद बात है। अब एक भारत ऐसा देश है जिसमें 80 प्रतिशत हिन्दू हैं लेकिन उन हिन्दुओं का धर्मान्तरण करवाया जा रहा है, जातियों में बांटकर लड़वाया जा रहा है, हिन्दूनिष्ठों व हिन्दू धर्मगुरुओं को झूठे केस में जेल में भिजवाया जा रहा है इससे साफ पता चलता है कि भारत में भी हिन्दू अपना अस्तित्व खो देंगे।


अब हिन्दुओं को जागना होगा और किसी भी हिन्दू पर अत्याचार हुआ हो तो उसके लिए एक होकर लड़ना होगा और भारत को हिन्दूराष्ट्र बनाने के लिए पुरजोश से प्रयत्न करना होगा तभी हिन्दू बच पायेगें नहीं तो खुद का धर्म भी खो देंगे।



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Monday, February 21, 2022

पटा पूरी तरह से हिंदुत्व व मानवता विरोधी बन चुकी है?

01 जून 2021

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भारत मे बिना मांगे सलाह देनेवालों की भरमार है। इसी तरह के बेकार सलाह देनेवालों मे मानवाधिकार और पशु अधिकार संबंधी संस्थाएं हैं। मानवाधिकारवालों को केवल आतंकवादियों और नक्सलियों के अधिकार की चिंता है तो पशु अधिकारवालों को गाय से दूध लेना अत्याचार दिखाई देता है।

इसी तरह की एक विदेशी संस्था है PETA (People for the Ethical Treatment of Animals ) जो पशुओं के नाम पर मोटा पैसा बनाती है। यह मूलतः अमेरिका की संस्था है जो भारत में सनातनधर्म-विरोधी एजेंडा चलाती है। 



दश की सबसे बड़ी डेयरी कंपनी अमूल (Amul) ने जानवरों के अधिकारों की रक्षा करनेवाले संगठन पेटा (PETA) के सुझाव पर सवाल उठाए हैं। PETA ने अमूल (Amul) को सुझाव दिया था कि उसे प्लांट बेस्ड डेयरी प्रोडक्ट पर स्विच कर जाना चाहिए।

अभी PETA ने भारत की प्रसिद्ध दूध उत्पाद बेचनेवाली कम्पनी अमूल को लिखा है कि वह गाय/ भैंस के दूध के स्थान पर VEGAN MILK ( सोयाबीन आदि से बना दूध जैसा द्रव) को बेचे।


ऐसी संस्थाएँ, भारत के संदर्भ में, हिन्दू लोगों की आस्था पर हमले करने, कृषकों की आय खत्म करने और बनावटी ज्ञान देने की साजिश करती ही नजर आती हैं। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा कोई भी ढंग का कार्य नहीं किया जा रहा। त्योहारों पर इनके हर कैम्पेन में हिन्दूघृणा टपकती दिखती है। इनका एजेंडा वेटिकनपोषित संस्थाओं के एजेंडे से बिलकुल भी भिन्न नहीं है। 


🚩दध लग्जरी नहीं, आवश्यकता है। ऐसे में पेटा जब ‘वीगन दूध’ की बातें कर रही है तो वो यह भूल जाता है कि करोड़ों किसानों के रोजगार के साथ-साथ गरीबों के जीवन से खेलने की बातें कर रही है। सवाल यह है कि पेटावालों को ‘वीगन दूध’ की याद क्यों आती है? 


आप अगर वीगन मिल्क का मूल्य देखने जाएँगे तो आपको पता चलेगा कि एक लीटर ‘वीगन मिल्क’ का दाम 290 से लेकर ₹400 तक है। अब कोई यह समझाए कि गाँव में ₹30-35/लीटर और शहरों में ₹45-60/लीटर खरीदनेवाले लोग लगभग दस-गुणा मूल्य चुका कर किस बजट के हिसाब से दूध खरीदेंगे? भारत में हर व्यक्ति को वैसे भी दूध नहीं मिल पाता; जिनको मिल रहा है, उनमें से भी एक बहुत बड़ा हिस्सा उसे बच्चों के पोषण हेतु उपयोग में लाते हैं। 


दसरा कि शास्त्रों ने व वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है कि देशी गाय का दूध अमृत के समान है व अनेक रोगों का स्वतः सिद्ध उपचार है । देशी गाय का दूध सेवन करने से किशोर-किशोरियों की शरीर की लम्बाई व पुष्टता उचित मात्रा में विकसित होती है, हड्डियाँ भी मजबूत बनती हैं एवं बुद्धि का विलक्षण विकास होता है। तो इस दूध से वंचित करना मानवता के खिलाफ है।


कवल प्रोपगेंडा 

PETA को 2020 में लगभग 66.3 मिलियन डॉलर मिले जो भारतीय रुपयों में ₹4,77,36,00,000 (477 करोड़ से अधिक) होते हैं। इसमें से ₹459 करोड़ ($63.8 मिलियन) इन्हें दान से मिले। 

जुलाई 2020 में रक्षाबंधन पर PETA ने चमड़ामुक्त राखी के प्रचार पर करोड़ों खर्च किए। ध्यान रखें- बकरीद पर ये कुछ नहीं बोलती है। 

सूचना स्रोत -

https://dopolitics.in/peta-budget-propaganda-salary-expenses-animal-rights-fake-ngo/


आपको जानकर हैरानी होगी कि इस संस्था पर अमेरिका में मासूम जानवरों की जान लेने के आरोप लगते रहे हैं। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि यह संस्था पशुओं को बचाने के नाम पर खुद इन पशुओं की हत्या कर देती है।


वर्जीनिया डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर एंड कंज्यूमर सर्विसेज (VDACS) की रिपोर्ट के मुताबिक PETA ने पिछले 2019 में 1,593 कुत्तों, बिल्लियों और अन्य पालतू जानवरों को मार दिया था। वहीं 2018 में 1771 जानवरों की हत्या कर दी गई। इसी तरह 2017 में 1809, 2016 में 1411 और 2015 में 1456 जानवरों को मार दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार 1998 से लेकर 2019 तक PETA ने 41539 जानवरों की हत्या कर दी।


PETA यानी पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स। यह संस्था खुद को पशुओं के अधिकार का संरक्षक कहती है। लेकिन इस मुखौटे के पीछे कई चेहरे छिपे हैं। हिंदुओं से घृणा करनेवाली यह संस्था जानवरों की निर्ममता से हत्या भी करती है। दीपावली पर ज्ञान देती है कि पटाखे नहीं फोड़ें नहीं तो पशु-पक्षी डर जाते हैं, लेकिन यही पेटा बकरीद पर पूरी विधि बताती है कि पशु हत्या कैसे करनी चाहिए।


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अहल्याबाई से नारियों को सीखना चाहिए- कितनी महानता छुपी है नारी में

31 मई 2021

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महिलाओं में अथाह सामर्थ्य छुपा है। जितने भी बड़े-बड़े संस्कृति व राष्ट्रप्रेमी योद्धा, महापुरुष, ऋषि-मुनि, वैज्ञानिक, नेता आदि जो भी महान हुए हैं उनके पीछे माँ का सबसे बड़ा हाथ है; माँ के अच्छे संस्कार के कारण ही बच्चे महान बन पाते हैं। इसलिए शास्त्रों में नारी को नारायणी भी कहा गया है लेकिन आज की नारी पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने के कारण दुर्व्यसनों में फंसकर अपनी महिमा भूल गई है और उसे एक भोग्या के रूप में लोग देखने लगे हैं; इतिहास भी सही नहीं पढ़ाया जाता है जिसके कारण महिला अपनी महिमा भूल गई है।



अहल्याबाई होल्कर 


भारत में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है, उनमें रानी अहल्याबाई होल्कर का नाम प्रमुख है।

उनका जन्म 31 मई, 1725 को ग्राम छौंदी (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री मनकोजी राव शिन्दे परम शिवभक्त थे। अतः यही संस्कार बालिका अहल्या पर भी पड़े। 


एक बार इन्दौर के राजा मल्हारराव होल्कर ने वहां से जाते हुए मन्दिर में हो रही आरती का मधुर स्वर सुना। वहां पुजारी के साथ एक बालिका भी पूर्ण मनोयोग से आरती कर रही थी। उन्होंने उसके पिता को बुलवाकर उस बालिका को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव रखा। मनकोजी राव भला क्या कहते, उन्होंने सिर झुका दिया। इस प्रकार वह आठ वर्षीय बालिका इन्दौर के राजकुंवर खांडेराव की पत्नी बनकर राजमहलों में आ गयी।


इन्दौर में आकर भी अहल्या पूजा एवं आराधना में रत रहती। कालान्तर में उन्हें दो पुत्री तथा एक पुत्र की प्राप्ति हुई। 1754 में उनके पति खांडेराव एक युद्ध में मारे गये। 1766 में उनके ससुर मल्हारराव का भी देहांत हो गया। इस संकटकाल में रानी ने तपस्वी की भांति श्वेत वस्त्र धारण कर राजकाज चलाया; पर कुछ समय बाद उनके पुत्र, पुत्री तथा पुत्रवधू भी चल बसे। इस वज्राघात के बाद भी रानी अविचलित रहते हुए अपने कर्तव्यमार्ग पर डटी रहीं। 


ऐसे में पड़ोसी राजा पेशवा राघोबा ने इन्दौर के दीवान गंगाधर यशवन्त चन्द्रचूड़ से मिलकर अचानक हमला बोल दिया। रानी ने धैर्य न खोते हुए पेशवा को एक मार्मिक पत्र लिखा। रानी ने लिखा कि यदि युद्ध में आप जीतते हैं, तो एक विधवा को जीतकर आपकी कीर्ति नहीं बढ़ेगी। और यदि हार गये, तो आपके मुख पर सदा को कालिख पुत जाएगी। मैं मृत्यु या युद्ध से नहीं डरती। मुझे राज्य का लोभ नहीं है, फिर भी मैं अन्तिम क्षण तक युद्ध करूंगी।


इस पत्र को पाकर पेशवा राघोबा चकित रह गया। इसमें जहां एक ओर रानी अहल्याबाई ने उस पर कूटनीतिक चोट की थी, वहीं दूसरी ओर अपनी कठोर संकल्पशक्ति का परिचय भी दिया था। रानी ने देशभक्ति का परिचय देते हुए उसे अंग्रेजों के षड्यन्त्र से भी सावधान किया था। अतः उसका मस्तक रानी के प्रति श्रद्धा से झुक गया और वह बिना युद्ध किये ही पीछे हट गया।


रानी के जीवन का लक्ष्य राज्यभोग नहीं था। वे प्रजा को अपनी सन्तान समझती थीं। वे घोड़े पर सवार होकर स्वयं जनता से मिलती थीं। उन्होंने जीवन का प्रत्येक क्षण राज्य और धर्म के उत्थान में लगाया। एक बार गलती करने पर उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र को भी हाथी के पैरों से कुचलने का आदेश दे दिया था; पर फिर जनता के अनुरोध पर उसे कोड़े मार कर ही छोड़ दिया। 


धर्मप्रेमी होने के कारण रानी ने अपने राज्य के साथ-साथ देश के अन्य तीर्थों में भी मंदिर, कुएं, बावड़ी, धर्मशालाएं आदि बनवाईं। काशी का वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर 1780 में उन्होंने ही बनवाया था। उनके राज्य में कला, संस्कृति, शिक्षा, व्यापार, कृषि आदि सभी क्षेत्रों का विकास हुआ।


13 अगस्त, 1795 ई0 को 70 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ। उनका जीवन धैर्य, साहस, सेवा, त्याग और कर्तव्यपालन का प्रेरक उदाहरण है। इसीलिए एकात्मता स्तोत्र के 11वें श्लोक में उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, चेन्नम्मा, रुद्रमाम्बा जैसी वीर नारियों के साथ याद किया जाता है।

(संदर्भ : राष्ट्रधर्म मासिक, मई 2011)


लज्जावासो भूषणं शुद्धशीलं पादक्षेपो धर्ममार्गे च यस्या।

नित्यं पत्युः सेवनं मिष्टवाणी धन्या सा स्त्री पूतयत्येव पृथ्वीम्।।

'जिस स्त्री का लज्जा ही वस्त्र तथा विशुद्ध भाव ही भूषण हो, धर्ममार्ग में जिसका प्रवेश हो, मधुर वाणी बोलने का जिसमें गुण हो वह पतिसेवा-परायण श्रेष्ठ नारी इस पृथ्वी को पवित्र करती है।'

भगवान शंकर महर्षि गर्ग से कहते हैं:

'जिस घर में सर्वगुणसंपन्ना नारी सुखपूर्वक निवास करती है, उस घर में लक्ष्मी निवास करती है। हे वत्स ! कोटि देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते।'


🚩अब समय आ गया है नारी पाश्चात्य संस्कृति को छोड़कर भारतीय संस्कृति को अपनाकर अपनी महानता पहचाने।


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आयुर्वेद का पतन कब और कैसे शुरू हुआ?

30 मई 2021

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सर्वप्रथम हम आयुर्वेद को लेकर उत्पन्न भ्रांतियों के काल को 3 भागों में बाँटते हैं और उस पर चर्चा करते हैं:


1. मुग़ल काल।

2. ब्रिटिश काल।

3. मल्टीनेशनल कंपनियों का काल।



1. मुग़ल काल


मुग़लों के शासन काल में यूनानी हकीमों ने मुस्लिम रोगियों को आयुर्वेद से दूर कर यूनानी की तरफ लाने के लिए यह प्रचारित किया कि इसमें गौमूत्र मिला होता है, जबकि आयुर्वेद की 100 में से मात्र 2 या 3 दवाओं में ही गौमूत्र का प्रयोग किया जाता है तथा चूर्ण तो सभी उससे मुक्त होते हैं। इस भ्रांति का अब भी अधिकांश मुस्लिमों पर प्रभाव है तथा इसी कारण वे आयुर्वेद से दूरी बनाए हुए हैं।


2. ब्रिटिश काल


इस काल में अंग्रेज़ों ने कई भ्रांतियाँ हम भारतीयों में रोपीं। बहुत सी राजनैतिक थीं, लेकिन आयुर्वेद के बारे में एक भ्रांति बनाई गई कि ये दवाएँ बेअसर होती हैं तथा यदि असर भी करती हैं तो काफी समय के बाद। इन भ्रांतियों को फैलाकर वे त्वरित असरकारक अंग्रेज़ी दवाओं को भारत में स्थापित कर गए।


3. मल्टीनेशनल कम्पनियों का काल


जैसे-जैसे लोगों में शिक्षा का स्तर बढ़ा, आयुर्वेद को लेकर लोगों की विचारधारा बदली और बहुत बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़ने लगे। इससे भारत की अर्थव्यवस्था में उछाल आया तथा अंग्रेज़ी दवाओं से लोग दूर होने लगे। ऐसे में मल्टीनेशनल कम्पनियों ने मीडिया के साथ मिलकर आयुर्वेद को बदनाम करना शुरू किया तथा इन्होंने वे भ्रम फैलाए जो कि इनकी कमज़ोरियाँ थीं जैसे ‘ये दवाएँ किडनी खराब करती हैं’, इन्होंने आयुर्वेद के साथ भी जोड़ दिया। लोग तब भी आयुर्वेद से जुड़ते रहे तो फिर इन्होंने यह शगूफ़ा छोड़ा कि आयुर्वेद की दवाओं में एलोपैथिक दवाएँ मिली होती हैं, विशेषतः ‘स्टेरॉइड्स’।


दष्प्रचार फैलने के कारण


1. एलोपैथिक चिकित्सकों की आयुर्वेद को लेकर अज्ञानता।


एलोपैथी के चिकित्सकों को आयुर्वेद की जड़ी-बूटियों के बारे में कुछ ज्ञान नहीं होता। उन्हें केवल अदरक, हल्दी, दूध या शहद के बारे में ही दादी माँ के नुस्खेवाला ज्ञान होता है। उन्हें आयुर्वेद की दिव्यता का कदापि अनुमान नहीं है। यदि उन्हें हम विशल्यकर्णी के बारे में बताएँ कि कैसे यह युद्ध में सैनिकों के तीर निकालने में काम आती थी और एक ही दिन में घाव भर देती थी, तो उन्हें इस पर बिल्कुल यकीन नहीं होगा। उन्हें दांत के कीड़ों को नष्ट करने के लिए उपयोग में ली जानेवाली जड़ी-बूटियों को हाथ के अंगूठे पर लेप कर नष्ट करनेवाली औषधियों के बारे में रत्तीभर भी ज्ञान नहीं। उन्हें तो वायुगोला या नाभि टलने जैसी किसी बीमारी के बारे में कोई ज्ञान ही नहीं तो इसके लिए दी जानेवाली दवाओं और उनका चमत्कारी असर कहाँ पता होगा? उन्हें तो यह भी पता नहीं कि आयुर्वेदिक दवाओं से गाँठ अथवा गठान को बिना ऑपरेशन के केवल बाह्य प्रयोग द्वारा ठीक किया जा सकता है। उन्हें तो इस पर भी यकीन नहीं कि आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से हृदय के ब्लॉकेज हटाए जा सकते हैं। तो क्या उन्हें इस बात पर विश्वास होगा कि आयुर्वेद जड़ी-बूटियों से सायनोवियल फ्ल्यूड को पुनः उत्पन्न किया जा सकता है? अस्थमा के रोगी को हरिद्रा, कनक आदि औषधियों से एलर्जी के प्रभाव से मुक्त किया जा सकता है। वह रसमाणिक्य, टंकण, गंधक रसायन के बारे में क्या जानें कि यह चर्म रोगों को किस प्रकार नष्ट कर देते हैं?


अतिम 3 उदाहरणों का वर्णन इसलिए किया है कि इन तीनों रोगों (जोड़ों का दर्द, अस्थमा और चर्मरोग) में एलोपैथिक चिकित्सक स्टेरॉइड्स का बहुतायत से प्रयोग करते है। उन्हें ऐसा लगता है कि बिना स्टेरॉइड्स के इन रोगों में लाभ नहीं पाया जा सकता, लेकिन उन्हें कौन बताए की कनक, अर्क, वातगजाकुंश रस, रसराज रस, वृहदवात चिंतामणि, कुमारी आदि स्टेरॉइड्स से भी ज़्यादा असरकारक हैं तथा बिना किसी दुष्प्रभाव के इन रोगों में लाभ पहुँचा सकते हैं।


आयुर्वेदः निर्दोष एवं उत्कृष्ट चिकित्सा-पद्धति


आयुर्वेद एक निर्दोष चिकित्सा पद्धति है। इस चिकित्सा पद्धति से रोगों का पूर्ण उन्मूलन होता है और इसकी कोई भी औषधि दुष्प्रभाव (साईड इफेक्ट) उत्पन्न नहीं करती। आयुर्वेद में अंतरात्मा में बैठकर समाधिदशा में खोजी हुई स्वास्थ्य की कुंजियाँ हैं। एलोपैथी में रोग की खोज के विकसित साधन तो उपलब्ध हैं लेकिन दवाइयों की प्रतिक्रिया (रिएक्शन) तथा दुष्प्रभाव (साईड इफेक्टस) बहुत हैं। अर्थात् दवाइयाँ निर्दोष नहीं हैं क्योंकि वे दवाइयाँ बाह्य प्रयोगों एवं बहिरंग साधनों द्वारा खोजी गई हैं। आयुर्वेद में अर्थाभाव, रूचि का अभाव तथा वर्षों की गुलामी के कारण भारतीय खोजों और शास्त्रों के प्रति उपेक्षा और हीनदृष्टि के कारण चरक जैसे ऋषियों और भगवान अग्निवेष जैसे महापुरुषों की खोजों का फायदा उठानेवाले उन्नत मस्तिष्कवाले वैद्य भी उतने नहीं रहे और तत्परता से फायदा उठानेवाले लोग भी कम होते गये। इसका परिणामी दिखायी दे रहा है।


हम अपने दिव्य और सम्पूर्ण निर्दोष औषधीय उपचारों की उपेक्षा करके अपने साथ अन्याय कर रहे हैं। सभी भारतवासियों को चाहिए कि आयुर्वेद को विशेष महत्त्व दें और उसके अध्ययन में सुयोग्य रूचि लें। आप विश्वभर के डॉक्टरों का सर्वे करके देखें तो एलोपैथी का शायद ही कोई ऐसा डॉक्टर मिले जो 80 साल की उम्र में पूर्ण स्वस्थ, प्रसन्न, निर्लोभी हो। लेकिन आयुर्वेद के कई वैद्य 80 साल की उम्र में भी निःशुल्क उपचार करके दरिद्रनारायणों की सेवा करनेवाले, भारतीय संस्कृति की सेवा करनेवाले स्वस्थ सपूत हैं।


कछ वर्ष पहले न्यायाधीश हाथी साहब की अध्यक्षता में यह जाँच करने के लिए एक कमीशन बनाया गया था कि इस देश में कितनी दवाइयाँ जरूरी हैं और कितनी बिनजरूरी हैं जिन्हें कि विदेशी कम्पनियाँ केवल मुनाफा कमाने के लिए ही बेच रही हैं। फिर उन्होंने सरकार को जो रिपोर्ट दी, उसमें केवल 117 दवाइयाँ ही जरूरी थीं और 8400 दवाइयाँ बिल्कुल बिनजरूरी थीं। उन्हें विदेशी कम्पनियाँ भारत में मुनाफा कमाने के लिए ही बेच रही थीं और अपने ही देश के कुछ डॉक्टर लोभवश इस षडयंत्र में सहयोग कर रहे थे।


अतः हे भारतवासियों! हानिकारक रसायनों से और कई विकृतियों से भरी हुई एलोपैथी दवाइयों को अपने शरीर में डालकर अपने भविष्य को अंधकारमय न बनायें।


शुद्ध आयुर्वेदिक उपचार-पद्धति और भगवान के नाम का आश्रय लेकर अपना शरीर स्वस्थ व मन प्रसन्न रखिये।


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कनाडा के मेयर ने आशाराम बापू के मामले पर भारत सरकार को लिखा पत्र

29 मई 2021

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हिंदू संत आशाराम बापू की उम्र 84 वर्ष है। वे 2013 से जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। जेल में असुविधाओं के बीच रहने के कारण और अधिक उम्र होने के कारण उनका स्वास्थ्य काफी गिर गया है। कई समाजसेवी संगठन, महिलाएं व उनके करोड़ों अनुयायी लगातार उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं पर आजतक उनको एक दिन की भी जमानत अथवा पेरोल नहीं मिल पाई है।



ऐसी परिस्थिति को देखते हुए कनाडा की सिटी ऑफ़ ब्रैम्पटन के मेयर पैट्रिक ब्राउन ने 25 मई को भारत सरकार को एक पत्र लिखा है।


मेयर पैट्रिक ब्राउन ने लिखा है कि मेरे संज्ञान में आया है कि 84 वर्षीय संत श्री आशारामजी बापू कोरोना वायरस से प्रभावित हुए हैं। अतः कनाडा में रह रहे उनके शिष्यों द्वारा उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है।


सिटी ऑफ़ ब्रैम्पटन के मेयर के रूप में मैं औपचारिक अनुरोध कर रहा हूं। कृपया संत श्री आशारामजी बापू को मानवीय आधार पर राहत प्रदान करें।


कनाडा के मेयर पैट्रिक ब्राउन ने भारत सरकार को पत्र लिखकर बताया- "संत आशारामजी बापू ने अपने पूरे जीवनकाल में पूर्ण भारतवर्ष में निस्वार्थ सेवाएं दी हैं और उनके कई अनुयायी यहां कनाडा में भी हैं, उन्होंने जरूरतमंदों को सहारा दिया है। बापू आशारामजी की आध्यात्मिकता और विशालता ने भारत में युवाओं, बच्चे और महिला सशक्तिकरण व आदिवासी लोगों के कल्याण के लिए कई कार्य किये हैं।

कृपया संत आसारामजी बापू को मानवीय आधार पर तत्काल न्यायिक राहत प्रदान करें।"

https://twitter.com/Asharamjiashrm/status/1398625148039663616?s=19


आपको बता दें कि राष्ट्र व सनातन धर्म के लिए कार्य करने व धर्मांतरण पर रोक लगाने वाले 84 वर्षीय संत आशारामजी बापू को साजिश के तहत फंसाने के कई प्रमाण भी हैं फिर भी उनको 8 साल से जमानत नहीं मिलना कितना बड़ा अन्याय है। जब वे ऊपरी कोर्ट से निर्दोष बरी होंगे तब उनका कीमती समय कौन लौटाएगा?


आपको बता दें कि बापू आशारामजी के अहमदाबाद आश्रम में एक Fax आया था जिसमें 50 करोड़ की फिरौती की मांग की गई थी और न देने पर धमकी दी गई थी कि अगर बापू ने 50 करोड़ नहीं दिए तो झूठी लड़कियां तैयार करके झूठे केस में फंसा देंगे और कभी बाहर नहीं आ पाएंगे, पर कोर्ट ने इसके ऊपर कोई एक्शन नहीं लिया।

https://youtu.be/YegncME19aU


डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने भी कई बार खुलासा किया है कि बापू आशारामजी को धर्मपरिवर्तन पर रोक लगाने और लाखों हिन्दुओं की घरवापसी कराने के कारण षडयंत्र के तहत जेल भिजवाया गया है ।


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