Monday, May 1, 2023

अब शिक्षा व्यवसाय बन गई है ???

30 Apirl 2023

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🚩शिक्षा का अधिकार अधिनियम 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाता है। अब शिक्षा व्यवसाय बन गई है। अपने बच्चों के लिए अच्छी नौकरी पाने के बहाने मध्य वर्ग के पास भारी शुल्क और विशेष दुकानों से महंगी किताबें देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि सरकारी स्कूलों में कर्मचारियों और बुनियादी सुविधाओं की कमी है। शिक्षा को आम आदमी तक पहुंचाने के लिए मन मर्जी से फीस और खर्च में बढ़ोतरी पर रोक लगाने के लिए अध्यादेश पारित किया जाना चाहिए। इससे स्कूलों द्वारा मांगे जाने वाले मन माने खर्चों पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी और एनसीईआरटी (NCERT) को अनिवार्य किया जाना चाहिए। 


🚩अधिकारियों को अत्यधिक फीस वसूलने वाले और विशेष दुकानों से किताबें खरीदने के लिए मजबूर करने वाले स्कूलों के खिलाफ शिकंजा कसना चाहिए। किफायती और एक समान शुल्क संरचना होनी चाहिए।



🚩केवी में पांचवीं की पुस्तकों का सेट 600 रुपए का तो निजी स्कूल में 3000  का ।


🚩नवीन शिक्षा सत्र शुरू होते ही (CBSE) सीबीएसई स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं का अभिभावकों को लूटने का खेल शुरू हो गया है। पहले यह खेल स्कूलों से ही होता था, लेकिन अब स्कूल संचालकों ने अपनी दुकानें तय कर दी है। शासन के आदेश स्कूलों में (NCERT) एनसीइआरटी की पुस्तकें चलाने के बावजूद निजी प्रकाशकों की महंगे दामों की पुस्तकें अपने कोर्स में शामिल की गई है। इन पुस्तकों की कीमत अभिभावकों को चुकाना पड़ रही है।हालत यह है कि केंद्रीय विद्यालय में जहां पांचवी की पुस्तकों का पूरा सेट 600 रुपए में मिलता हैं तो वहीं सीबीएसई (CBSE) स्कूलों में यह पूरा सेट 3000 के लगभग पहुंच रहा हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि किस तरह से अभिभावकों की जेब हल्की हो रही है। पुस्तक विक्रेता इन पुस्तकों के साथ साल भर की कापियां और स्टेशनरी आदि थमा रहे हैं। कोई अभिभावक अकेले पुस्तक खरीदना चाहे तो उसके लिए मुश्किल होगा।


🚩 दुकानदार अकेले पुस्तक नहीं देते हैं। वहीं जिम्मेदार अधिकारी इन स्कूल संचालकों और पुस्तक विक्रेताओं पर लगाम कसने पर नाकाम नजर आ रहे हैं।


🚩हर साल बदल जाती है किताबें

निजी स्कूलों में हर साल किताबें बदल दी जाती है। किताबों में बदलाव सिर्फ चैप्टर भर में किया जाता है। 1- 2 चैप्टर पुस्तक में घटा या बड़ा दिए जाते हैं। पुस्तक पर नया कवर कर उसे पुन: बाजार में उतार दिया जाता है। इस स्थिति के चलते पुरानी पुस्तकों का उपयोग अन्य विद्यार्थी नहीं कर पाते हैं। इससे अभिभावकों पर भी आर्थिक बोझ बढ़ता है। जबकि एनसीइआरटी (NCERT) के पुस्तकों के साथ ऐसा नहीं होता है। इन पुस्तकों का आने वाले 3-4 सालों तक विद्यार्थी उपयोग कर सकते हैं। वहीं स्कूलों से बच्चों पर पुस्तकें खरीदने के लिए दबाव बनाया जाता हैं। मजबूरी में अभिभावक पुस्तक खरीदते हैं।


🚩NCERT (एनसीइआरटी) की पुस्तकें पढऩे के निर्देश

केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में प्रदेश के सभी निजी स्कूलों को एनसीइआरटी से संबंद्ध पाठ्यक्रमों की पुस्तकों से अध्ययन कराए जाने के निर्देश जारी किए थे, लेकिन इसका परिपालन कोई भी निजी स्कूल नहीं कर रहा है। निजी प्रकाशकों से कमीशन की सांठगाठ के चलते ज्यादातर प्रायवेट स्कूल निजी प्रकाशकों की पुस्तकें ही संचालित कर रहे हैं। जिसके कारण निजी प्रकाशकों और स्कूलों को मोटा मुनाफा मिल रहा है। यहां तक की कान्वेंट जैसे स्कूलों में भी निजी प्रकाशकों की पुस्तकें चलाई जा रही है।


🚩पुस्तकों के साथ स्टेशनरी भी थमा रहे

पुस्तक विक्रेता अभिभावकों को पुस्तकों के साथ कॉपियां और स्टेशनरी भी थमा देते हैं। जिसके कारण कॉपियों और स्टेशनरी का खर्चा पुस्तकों के साथ अलग से जुड़ जाता है। यदि स्टेशनरी या काफियां लेने से अभिभावक इनकार करते हैं तो पुस्तकें नहीं दी जाती है। बताया गया कि पुस्तकों के सेट छात्रों की दर्ज संख्या के आधार पर स्कूलों से ही बनते हैं। चूंकि स्कूलों में पुस्तक -कापियां बेचने पर प्रतिबंध हैं इसलिए दुकानदारों के माध्यम से पुस्तकें कमिशन के आधार पर बेची जाती है। इसमें दुकानदार अपनी तरफ से कॉपियां और स्टेशनरी की सामग्री भी अलग से जोड़कर बेच देते हैं।


🚩पुस्तकों की कीमतों में जमीन आसमान का अंतर

एनसीइआरटी और निजी प्रकाशको के पुस्तकों की कीमतों में जमीन आसमान का अंतर देखा जा सकता है। निजी स्कूलों में जहां कक्षा पहली की पुस्तकों की कीमत 1800 से 2100 रुपए तक में आ रही हैं। वहीं केंद्रीय विद्यालय में कक्षा पहली की पुस्तकें महज 500 रुपए में आती है।ऐसे में पुस्तकों की कीमत को लेकर यह अंतर ही अभिभावकों की जेबे हल्की कर रहा है। अभिभावकों का कहना था कि जब स्कूलों में एनसीइआरटी की पुस्तकें संचालित करने के निर्देश हैं तो फिर वे निजी प्रकाशकों की इतनी महंगी पुस्तकें क्यों खरीदवा

रहे हैं जिसका एक साल बाद कोई और बच्चा उपयोग ही नहीं कर पाए। पुस्तकें एक साल बाद किलो के रेट में रद्दी में बिक जाएंगी।


🚩पुस्तकों को लेकर सीबीएसई की क्या गाइड लाइन हैं इसे निकालकर नियमानुसार ही पुस्तकों की बिक्री कराई जाएगी। यदि कोई नियम का पालन नहीं कर रहा हैं तो कार्रवाई की जाएगी-डॉ अनिल कुशवाह, जिला शिक्षा अधिकारी


🚩सरकार को सस्ती शिक्षा देनी चाहिए


🚩सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य की जानी चाहिए। ये किताबें सस्ती हैं और खुले बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं। अगर सरकार ने सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य कर दी हैं, तो इससे भ्रष्टाचार को कम करने में मदद मिलती है। सरकार का प्राथमिक उद्देश्य निजी और सरकारी स्कूलों में सभी के लिए सस्ती शिक्षा होना चाहिए। हर स्कूल में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य कर यह समान नागरिक संहिता की दिशा में उचित कदम है।


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सभी माता पिता अपनी बेटियों को 'द केरल स्टोरी' फिल्म ज़रूर दिखाए, जिससे उन्हें कल पछताना न पड़े...

1  May 2023

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🚩'द केरल स्टोरी' फिल्म ट्रेलर को देखकर ऐसा लगता है कि यह फिल्म काफी दिलचस्प होने वाली है। 5 मई को रिलीज होने वाली फ़िल्म 'द केरल स्टोरी' का अभी से ही लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। फिल्म की ट्रेलर की शुरुआत में एक हंसता-खेलता परिवार नजर आ रहा है, जिसमें एक मां अपनी बेटी पर प्यार लुटाती नजर आ रही हैं लेकिन ये खुशी ज्यादा देर तक नहीं रहती है आगे ऐसे ऐसे सीन्स दिखाए गए हैं कि आप दंग रह जाएंगे। शालिनी उन्नीकृष्णन नामक लड़की जिसका धर्मांतरण हो जाता है और उसे इस्माल कुबूल करवाया जाता है बाद में वो आतंकवाद की दुनिया में एंट्री कर लेती है। इस मूवी के ट्रेलर को देखकर ऐसा लगता है कि मानों ये आज के केरल की असल कहानी बयां कर रहा है।


🚩द केरल स्टोरी में 32 हजार हिन्दू और ईसाई लड़कियों को ब्रेनवाश कर धर्मांतरित कराने, ISIS के लिए सेक्स स्लेव बनाकर जेहादी पैदा करने की मशीन बनाने के खतरनाक मॉड्यूल को दिखाया गया है। फिल्म से इतर बात करें तो केरल की कहानियां बहुत हद तक सच्ची हैं। केरल के कई मामले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोर चुके हैं। ट्रेलर में भी मेकर्स ने केरल, लव जिहाद और इस्लामिक आतंकवाद के आसपास पूरे मॉड्यूल को दिखाया गया है। मेकर्स का दावा है कि तथ्य सही हैं। 





🚩केरल में लंबे वक्त से लव जिहाद बना हुआ है सामाजिक-राजनीतिक मुद्दा 

लव जिहाद का मसला भारतीय समाज में बहस का विषय है। खासकर केरल में यह एक बहुत बड़ा सामाजिक मुद्दा बन चुका है। केरल PFI का गढ़ भी है। आइए ट्रेलर के 4 सीन्स के बारे में बात करते हैं जो किसी को भी हिलाकर रखने के लिए पर्याप्त हैं। 


🚩1. कट्टरपंथी मौलाना कैसे गैर मुस्लिम लड़कियों को बनाते हैं शिकार'

द केरल स्टोरी का ट्रेलर वीडियो देखेंगे तो उसमें एक मौलाना ये कहता नजर आ रहा है कि उन्हें (गैर मुस्लिम लड़कियों को) करीब लाओ, जिस्मानी रिश्ते बनाओ, जरूरत पड़े तो उन्हें प्रेग्नेंट कर दो।  


🚩2. दूसरे धर्म को नीचा दिखाकर उठाते हैं फायदा

ट्रेलर में नजर या रहा कि तीन हिन्दू लड़कियां अपनी मुस्लिम दोस्त के साथ खाना खा रही हैं। मुस्लिम लड़की तीनों से पूछती है कि तुम लोग कौन से गॉड को मानते हो। तीनों में से एक लड़की कहती है कि शिव बड़े भगवान हैं। इसपर मुस्लिम लड़की कहती है कि जो भगवान अपनी पत्नी के मरने पर आम इंसान की तरह रोता हो भला वो भगवान कैसे हो सकता है'


🚩3. ब्रेनवाश के लिए तरह-तरह की फॉल्टलाइन का इस्तेमाल 

ट्रेलर के एक सीन में नजर या रहा है कि लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार होता है। इसके बाद मुस्लिम लड़की तीनों का ये कहकर ब्रेनवॉश करती है कि हिजाब पहनने वाली किसी भी लड़की के साथ ना तो कभी रेप होता है ना ही कोई छेड़ता है। क्योंकि अल्लाह उनकी सुरक्षा करता है।

 

4. 🚩 20 साल में केरल बन जाएगा इस्लामिक स्टेट


🚩ट्रेलर के एक सीन में दिखाया गया है कि एक किरदार कहती है कि हमारे एक्स सीएम ने भी बोला है कि अगले 20 सालों में केरल इस्लामिक स्टेट बन जाएगा।


🚩द केरल स्टोरी में अदा शर्मा ने शालिनी उन्नीकृष्णन का किरदार निभाया है। शालिनी का ब्रेनवाश कर उसे फातिमा बना दिया जाता है और धर्मांतरण और निकाह के बाद वह ISIS के कैंप पहुंच जाती है। फिल्म की कहानी में दिखाया गया है कि कैसे लव जिहाद का खतरनाक मॉड्यूल काम करता है।  


🚩एक्ट्रेस ने बताया कि फिल्म की कहानी सुनने के बाद वह कई रात तक सो नहीं सकी थीं।


🚩अदा शर्मा ने कहा था, जब मुझे कहानी सुनाई गई तो यह इतना डरावना था कि मैं इसके बारे में सोचते हुए कई रातों तक सो नहीं पाई। मैं आभारी हूं कि मुझे इस तरह की फिल्म में शामिल होने का मौका मिला, इस दिल दहला देने वाली कहानी को बताने का मौका मिला।


🚩फिल्म को लेकर चल रहे विवाद पर एक्ट्रेस ने कहा था कि निर्माता विपुल शाह और सुदीप्तो सेन ने कई प्रतिष्ठित फिल्में बनाई हैं और वे सभी आंकड़े पेश करेंगे। जब लोग फिल्म देखेंगे तो उनके सभी सवालों का जवाब दिया जाएगा और उनकी शंकाएं दूर हो जाएंगी।

 

🚩फिल्‍ममेकर Vipul Shah ने बताया की हमारी फिल्‍म पीड़‍ित लड़कियों की सच्‍ची कहानी है'वह कहते हैं, 'The Kerala Story एक लड़की की सच्ची कहानी पर आधारित है, जो धर्म परिवर्तन कर सीरिया जा रही थी। रास्ते में, उसे एहसास हुआ कि यह एक गलती थी और वह भाग निकली। आज, वह अफगानिस्तान की जेल में है। अफगानिस्तान की जेलों में कई लड़कियां हैं। कम से कम चार रिकॉर्ड में हैं। तो, इस तरह हमें इस कहानी के बारे में पता चला और फिर हमने अपनी र‍िसर्च शुरू की। अंत में हमने फिल्‍म में तीन ऐसी लड़कियों की कहानी ली है, जो चालाकी से धर्मांतरण की शिकार हो गईं और उनका जीवन व्यावहारिक रूप से बर्बाद हो गया। यह एक ऐसी कहानी है, जो कि सभी

Saturday, April 29, 2023

भोजन बनाने के लिए कौनसे बर्तनों का उपयोग करना चाहिए ? जिससे आप रहेंगे स्वस्थ..

29 Apirl 2023

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🚩सभी मनुष्य की चाहत होती है कि वो जीवनभर स्वस्थ रहे। सेहत को बनाए रखने के लिए लोग योग, एक्सरसाइज और कई तरह की फिजिकल एक्टिविटी पर ध्यान देते हैं। इसके अलावा लोग अपने खानपान को भी हेल्दी रखने की कोशिश करते हैं। इसके लिए तरह तरह की हेल्दी चीजें सुबह से रात तक बनाते-खाते हैं। लेकिन एक चीज जिस पर लोगों का ध्यान नहीं जाता है, वो है खाना बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बर्तन। जी हां, हेल्दी खाना बनाने के लिए जितना सब्जियों और मसाले का ध्यान रखना जरूरी है, उतना ही सही धातु का बर्तन सेलेक्ट करना भी है। ज्यादातर लोग इस बात से अनजान हैं कि किस धातु के बर्तन में खाना पकाने से भोजन की गुणवत्ता लंबे समय तक बनी रहती है।


🚩भोजन को शुद्ध, पौष्टिक, हितकर व सात्त्विक बनाने के लिए हम जितना ध्यान देते हैं उतना ही ध्यान हमें भोजन बनाने के बर्तनों पर देना भी आवश्यक है। भोजन जिन बर्तनों में पकाया जाता है उन बर्तनों के गुण अथवा दोष भी उसमें समाविष्ट हो जाते हैं। अतः भोजन किस प्रकार के बर्तनों में बनाना चाहिए अथवा किस प्रकार के बर्तनों में भोजन करना चाहिए, इसके लिए भी शास्त्रों ने निर्देश दिये हैं।



🚩भोजन करने का पात्र सुवर्ण का हो तो आयुष्य को टिकाये रखता है, आँखों का तेज बढ़ता है। चाँदी के बर्तन में भोजन करने से आँखों की शक्ति बढ़ती है, पित्त, वायु तथा कफ नियंत्रित रहते हैं। काँसे के बर्तन में भोजन करने से बुद्धि बढ़ती है, रक्त शुद्ध होता है। पत्थर या मिट्टी के बर्तनों में भोजन करने से लक्ष्मी का क्षय होता है। लकड़ी के बर्तन में भोजन करने से भोजन के प्रति रूचि बढ़ती है तथा कफ का नाश होता है। पत्तों से बनी पत्तल में किया हुआ भोजन, भोजन में रूचि उत्पन्न करता है, जठराग्नि को प्रज्जवलित करता है, जहर तथा पाप का नाश करता है। पानी पीने के लिए ताम्र पात्र उत्तम है। यह उपलब्ध न हों तो मिट्टी का पात्र भी हितकारी है। पेय पदार्थ चाँदी के बर्तन में लेना हितकारी है लेकिन लस्सी आदि खट्टे पदार्थ न लें।


🚩लोहे के बर्तन में भोजन पकाने से शरीर में सूजन तथा पीलापन नहीं रहता, शक्ति बढ़ती है और पीलिया के रोग में फायदा होता है। लोहे की कढ़ाई में सब्जी बनाना तथा लोहे के तवे पर रोटी सेंकना हितकारी है परंतु लोहे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए इससे बुद्धि का नाश होता है। स्टेनलेस स्टील के बर्तन में बुद्धिनाश का दोष नहीं माना जाता है। सुवर्ण, काँसा, कलई किया हुआ पीतल का बर्तन हितकारी है। एल्यूमीनियम के बर्तनों का उपयोग कदापि न करें।


🚩केला, पलाश, तथा बड़ के पत्र रूचि उद्दीपक, विषदोषनाशक तथा अग्निप्रदीपक होते हैं। अतः इनका उपयोग भी हितावह है।


🚩पानी पीने के पात्र के विषय में 'भावप्रकाश ग्रंथ' में लिखा है।


🚩जलपात्रं तु ताम्रस्य तदभावे मृदो हितम्।

पवित्रं शीतलं पात्रं रचितं स्फटिकेन यत्।

काचेन रचितं तद्वत् वैङूर्यसम्भवम्।


🚩अर्थात् पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक अथवा काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। सम्भव हो तो वैङूर्यरत्नजड़ित पात्र का उपयोग करें। इनके अभाव में मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए।


🚩 एल्युमिनियम के बने बर्तन में खाना बनाने के नुकसान


🚩कुछ मामलों में शरीर में एल्युमिनियम की मात्रा अधिक होने की वजह से किडनी फेल की समस्या हो सकती है।

एल्युमिनियम के बर्तन में बना खाना खाने से लिवर सिस्टम को भी नुकसान पहुंच सकता है।


🚩अगर हमारे शरीर में ज्यादा मात्रा में एल्युमिनियम जाता है, तो ये मांसपेशियों, किडनी और हड्डियों की कोशिकाओं में जमा हो जाती है, जो दर्द समेत कई बीमारियों का कारण बन सकता है।


🚩इसलिए एल्युमिनियम के बर्तन कभी भी उपयोग नहीं करे।


🚩हमेशा स्टील, लोहे,ताम्बा, पित्तल के बर्तन उपयोग करना स्वस्थ जीवन का आधार हैं।


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Friday, April 28, 2023

रसोई में भोजन बनाना छोड़ने का दुष्परिणाम

 *रसोई में भोजन बनाना छोड़ने का दुष्परिणाम*


अमेरिका में क्या हुआ जब घर में खाना बनाना बंद हो गया ? 

1980 के दशक के प्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्रियों ने अमेरिकी लोगों को चेतावनी कि यदि वे परिवार में आर्डर देकर बाहर से भोजन मंगवाऐंगे तो देश मे परिवार व्यवस्था धीरे धीरे समाप्त हो जाएगी। 

साथ ही दूसरी चेतावनी दी कि यदि उन्होंने बच्चों का पालन पोषण घर के सदस्यो के स्थान पर बाहर से पालन पोषण की व्यवस्था की तो यह भी बच्चो के मानसिक विकास व परिवार के लिए घातक होगा।

 लेकिन बहुत कम लोगों ने उनकी सलाह मानी। घर में खाना बनाना लगभग बंद हो गया है, और बाहर से खाना मंगवाने की आदत (यह अब नॉर्मल है), अमेरिकी परिवारों के विलुप्त होने का कारण बनी है जैसा कि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी।

घर मे खाना बनाना मतलब परिवार के सदस्यों के साथ प्यार से जुड़ना।

*पाक कला मात्र अकेले खाना बनाना नहीं है। बल्कि केंद्र बिंदु है, पारिवारिक संस्कृति का।*

घर मे अगर कोई किचन नहीं है , बस एक बेडरूम है, तो यह घर नहीं है, यह एक हॉस्टल है।


*अब उन अमेरिकी परिवारों के बारे में जाने जिन्होंने अपनी रसोई बंद कर दी और सोचा कि अकेले बेडरूम ही काफी है?*

1-1971 में, लगभग 72% अमेरिकी परिवारों में एक पति और पत्नी थे, जो अपने बच्चों के साथ रह रहे थे।

2020 तक, यह आंकडा 22% पर आ गया है।

2-पहले साथ रहने वाले परिवार अब नर्सिंग होम (वृद्धाश्रम) में रहने लगे हैं।

3-अमेरिका में, 15% महिलाएं एकल महिला परिवार के रुप में रहती हैं।

4-12% पुरुष भी एकल परिवार के रूप में रहते हैं।

5-अमेरिका में 19% घर या तो अकेले रहने वाले पिता या माता के स्वामित्व में हैं।

6-अमेरिका में आज पैदा होने वाले सभी बच्चों में से 38% अविवाहित महिलाओं से पैदा होते हैं।उनमें से आधी लड़कियां हैं,  जो बिना परिवारिक संरक्षण के अबोध उम्र मे ही शारीरिक शोषण का शिकार हो जाती है ।

7-संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 52% पहली शादियां  तलाक में परिवर्तित होती हैं।

8- 67% दूसरी शादियां भी  समस्याग्रस्त हैं।


 अगर किचन नहीं है और सिर्फ बेडरूम है तो वह पूरा घर नहीं है।

संयुक्त राज्य अमेरिका विवाह की संस्था के टूटने का एक उदाहरण है।

*हमारे आधुनिकतावादी भी अमेरिका की तरह दुकानों से या आनलाईन भोजन ख़रीदने की वकालत कर रहे हैं और खुश हो रहे हैं कि भोजन बनाने की समस्या से हम मुक्त हो गए हैं। इस कारण भारत में भी परिवार धीरे-धीरे अमेरिकी परिवारों की तरह नष्ट हो रहे हैं।*

जब परिवार नष्ट होते हैं तो मानसिक और शारीरिक दोनों ही स्वास्थ्य बिगड़ते हैं। बाहर का खाना खाने से अनावश्यक खर्च के अलावा शरीर मोटा और संक्रमण के प्रति संवेदनशील और बिमारीयों का घर  हो जाता है।

शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है।


*इसलिए हमारे घर के बड़े-बूढ़े लोग, हमें बाहर के खाने से बचने की सलाह देते थे*

लेकिन आज हम अपने परिवार के साथ रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं...",

Online hotel delivery के माध्यम से अजनबियों द्वारा पकाए गए( विभिन्न कैमिकल युक्त) भोजन को ऑनलाइन ऑर्डर करना और खाना, उच्च शिक्षित, मध्यवर्गीय लोगों के बीच भी फैशन बनता जा रहा है।

दीर्घकालिक आपदा होगी ये आदत...

*आज हमारा खाना हम तय नही कर रहे उलटे ऑनलाइन कंपनियां विज्ञापन के माध्यम से मनोवैज्ञानिक रूप से तय करती हैं कि हमें क्या खाना चाहिए...*

हमारे पूर्वज निरोगी और दिर्घायु इस लिए थे कि वो घर क्या ...यात्रा पर जाने से पहले भी घर का बना ताजा खाना बनाकर ही ले जाते थे ।

*इसलिए घर में ही बनाएं और मिल-जुलकर खाएं । पौष्टिक भोजन के अलावा, इसमें प्रेम और स्नेह निहित है।*

Thursday, April 27, 2023

ईद पर प्रसारित हुआ लव जिहाद प्रोपेगेंडा फैलाने वाला वीडियो पोस्ट :: हिंदू सगठनों में आक्रोश

 27  Apirl 2023

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🚩स्क्रीन पर हिन्दुओं के प्रति घृणा परोसने और पोसने का काम पहले फिल्मों के जरिए धड़ल्लले से होता था। मगर पिछले कुछ समय से हिंदू जागरूक हुए और उन्होंने सवाल उठाकर फिल्मों का बॉयकॉट शुरू किया तो ज़ाहिर है जिहादियों में चिंता बढ़ गई कि अब कैसे हिन्दुत्व को नीचा दिखाया और मिटाया जाए। ऐसे में इन्होंने ये नया तरीका खोजा - विज्ञापनों का।


🚩केरल में ईद पर सोशल मीडिया में एक विवादित वीडियो वायरल हुआ है। वीडियो में लव जिहाद को बढ़ावा दिया गया है। इसके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। ये पूरा मामला केरल के कोट्टयम जिले का है।


🚩VIP Luggage का लिखा नाम ::



🚩दरअसल, वी.आई.पी. लगेज कंपनी ने पुलिस में शिकायत की है। क्योंकि वीडियो के नीचे कंपनी का नाम लिखा गया है, ताकि वीडियो देखने वालों को ऐसा लगे , कि ये विज्ञापन वी.आई.पी. लगेज का है।


🚩बता दें कि , इससे पहले भी लव जिहाद को बढ़ावा देने वाले कई विज्ञापन जारी किये जा चुके हैं। जिस पर कड़ी आपत्ति जताई गई थी। सोशल मीडिया में कंपनी को बॉयकट करने की मांग उठी। इसके बाद विज्ञापन को हटाना पड़ा।


🚩क्या है वीडियो...!?


🚩वीडियो में एक मुस्लिम युवक हल्की दाढ़ी और टोपी पहने दिख रहा है। वहीं एक हिन्दू लड़की उस युवक से प्रेम करती है। युवक उसे नए ( मुस्लिम महिलाओं की पोशाक) कपड़े देता है ।अब अगले दृश्य में वह लकड़ी युवक के सामने नई (मुस्लिम महिला के पहनावे में ) ड्रेस में आती है , लेकिन अबतक वह माथे के बिंदी नहीं हटाई थी। इसके बाद युवक उसके बिंदी को निकाल देता है , फिर सिर पर चुनरी ओढ़ाता है।


🚩हिंदूवादी संगठनों ने यह आरोप लगाया है , कि ये वीडियो पूरी तरह से लव जिहाद को प्रोत्साहन देने वाला और साफ तौर पर हिन्दुत्व विरोधी है। सभी ने इस वीडियो पर कड़ी आपत्ति जताई है।


🚩VIP Luggage कंपनी ने मामले को संज्ञान में लिया...

वी.आई.पी. लगेज के अध्यक्ष 'दिलीप पीरामल' ने कहा , " यह मेरे संज्ञान में आया है, कि एक लव जिहाद वीडियो प्रसारित किया जा रहा है और इस वीडियो के अंत में एक वी.आई.पी. स्लाइड डाली गई है, जो यह दिखाने के लिए है , कि हम इस संदेश के प्रायोजक हैं । यह वी.आई.पी. के साथ धोखाधड़ी है। हम इस मामले की जांच कर रहे हैं और कानून के तहत हमारे पास उपलब्ध सबसे सख्त कार्यवाही करेंगे।"


🚩महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण ::

"यह एक नकली विज्ञापन है, जो वी.आई.पी. और स्काईबैग्स नामक ब्रांड्स का अवैध रूप से उपयोग कर रहा है। हमारी छवि को खराब कर रहा है। वी.आई.पी. इंडस्ट्रीज का विडियो निर्माता से कोई संबंध नहीं है और हमने पुलिस शिकायत भी दर्ज करवाई है। हम अखंडता और विविधता के सम्मान के लिए खड़े हैं। आपके समर्थन के लिए धन्यवाद ।"


🚩विज्ञापन का उद्देश्य वैसे तो अपने दर्शकों को अपने उत्पादों का उपभोक्ता बनाना ही होता है, लेकिन उसमें भी हिन्दुत्व विरोधी प्रोपेगेंडा का तड़का मिले तो जिहादियों को और क्या चाहिए, फिर उनके लिए वही सबसे बेस्ट ऐड हो जाता है।


🚩दुखद पर खास गौरतलब है , कि आजकल विज्ञापन बनाते हुए ध्यान रखा जाता है , कि कैसे भी मुस्लिम समुदाय कहीं नेगेटिव शेड में न दिखा दिया जाए और गलती से भी हिन्दू सरल, शांत या महान न नजर आ जाए।


🚩रेड लेबल की हिंदू घृणा ::

नहीं यकीन...!?  तो याद कीजिए रेड लेबल के कुछ पुराने विज्ञापनों को। चायपत्ती की इतनी बड़ी कंपनी ने एक नहीं दो-दो बार अपने विज्ञापनों में हिंदू विरोधी कंटेंट दिखाया था।


🚩एक ऐड में दिखाया गया , कैसे एक हिंदू गणेश मूर्ति लेने आता है, लेकिन दुकानदार मुस्लिम होता है। मुस्लिम जैसे ही अपनी टोपी सिर पर पहनता, हिन्दू उससे भागने लगता है। फिर मुस्लिम व्यक्ति इतना अच्छा होता है , कि उसे बुलाकर चाय पिलाता है और हिन्दू की बुद्धि बदलती है,फिर वो उसी से मूर्ति खरीदता है।


🚩ऐसे ही दूसरे ऐड में , एक हिंदू दंपती नजर आते हैं , जो अपने घर की चाबी भूल गए हैं। उनके पड़ोस में मुस्लिम महिला उन्हें अपने घर बैठकर प्रतीक्षा करने की सलाह देती है। पर हिन्दू अपनी सोच के कारण उसके घर में जाने से मना करते हैं। फिर चाय की खुशबू आती है, जो उन्हें एहसास कराती है कि हिंदू-मुस्लिम कुछ नहीं होता..। हास्यास्पद और कट्टर हिन्दुत्व विरोधी विज्ञापन ।


🚩इतना ही नहीं , आजकल तो विज्ञापनों में आए दिन बच्चों का इस्तेमाल भी धड़ल्ले से हिन्दू रीति-रिवाजों पर हमला करने ,हिन्दू मान्यताओं को ठेस पहुँचाने ,हिन्दू त्योहारों पर सवाल उठाने के लिए किया जा रहा है…! और यह तरीका न सिर्फ असरदार बल्कि बेहद आम होता जा रहा है। अपने प्रोपेगेंडे के लिए, ये लोग बच्चों को भी नहीं बक्शते हैं।

🚩सर्फ एक्सेल के एड में दिखाया जाता है , कि हिन्दू लड़की मुस्लिम लड़के को रंगों से बचाते हुए मस्जिद ले जाती है। वहीं एक दूसरे विज्ञापन में संदेश दिया जाता है कि श्राद्ध में खाना ब्रह्माण को खिलाओ या फिर मौलवी को बात एक ही है।


🚩ऐसे तमाम विज्ञापनों के उदाहरण आज इंटरनेट पर मौजूद हैं, जिनका उद्देश्य केवल और केवल हिंदू घृणा का प्रचार-प्रसार करना है। बच्चों से बुजुर्गों तक का उपयोग विज्ञापन में करते हुए दिखाया जा रहा है, कि हिन्दू हमेशा गलत ही रहता है और गैर-हिन्दू कितने समझदार , सीधे सच्चे , सज्जन व सरल स्वभाव के होते हैं ।


🚩ऐसा लगता है कि आज के समय में विज्ञापन बनाने का मानक ही यह रह गया हो कि या तो हिन्दू परंपराओं पर सवाल उठाकर उन्हें बदलने का संदेश दो, वरना ये दिखाओ की कैसे देश के हिन्दुओं की सोच मुस्लिमों के प्रति बदली जानी चाहिए।


🚩तमाम हिन्दू संगठनों व प्रत्येक जागरुक नागरिक की मांग है , कि ऐसे घृणा फैलाने वाले विज्ञापनों पर सरकार को प्रतिबंध लगाना ही चाहिए।


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Wednesday, April 26, 2023

गंगा जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं.....

26  Apirl 2023

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🚩रहस्य : माँ गंगा पृथ्वी पर क्यों और कैसे आयी ? जानिए:-


🚩गंगा नदी उत्तर भारत की केवल जीवनरेखा नहीं, अपितु हिंदू धर्म का सर्वोत्तम तीर्थ है। ‘आर्य सनातन वैदिक संस्कृति’ गंगा के तट पर विकसित हुई, इसलिए गंगा हिंदुस्तान की राष्ट्ररूपी अस्मिता है एवं भारतीय संस्कृति का मूलाधार है। इस कलियुग में श्रद्धालुओं के पाप-ताप नष्ट हों, इसलिए ईश्वर ने उन्हें इस धरा पर भेजा है। वे प्रकृति का बहता जल नहीं; अपितु सुरसरिता (देवनदी) हैं। उनके प्रति हिंदुओं की आस्था गौरीशंकर की भांति सर्वोच्च है। गंगाजी मोक्षदायिनी हैं इसीलिए उन्हें गौरवान्वित करते हुए पद्मपुराण में (खण्ड ५, अध्याय ६०, श्लोक ३९) कहा गया है, ‘सहज उपलब्ध एवं मोक्षदायिनी गंगाजी के रहते विपुल धनराशि व्यय (खर्च) करनेवाले यज्ञ एवं कठिन तपस्या का क्या लाभ ?’ नारदपुराण में तो कहा गया है, ‘अष्टांग योग, तप एवं यज्ञ, इन सबकी अपेक्षा गंगाजी का निवास उत्तम है । गंगाजी भारत की पवित्रता का सर्वश्रेष्ठ केंद्र बिंदु हैं, उनकी महिमा अवर्णनीय है।’


🚩मां गंगाजी की ब्रह्मांड में उत्पत्ति:-




🚩‘वामनावतार में श्री विष्णु ने दानवीर बलीराजा से भिक्षा के रूप में तीन पग भूमि का दान मांगा। राजा बलि इस बात से अनभिज्ञ थे कि स्वयं भगवान श्री विष्णु ही वामन के रूप में आए हैं, राजा ने उसी क्षण भगवान वामन को तीन पग भूमि दान की। भगवान वामन ने विराट रूप धारण कर पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी तथा दूसरे पग में अंतरिक्ष व्याप लिया। दूसरा पग उठाते समय वामन के (श्रीविष्णु के) बाएं पैर के अंगूठे के धक्के से ब्रह्मांड का सूक्ष्म-जलीय कवच टूट गया। उस छिद्र से गर्भोदक की भांति ‘ब्रह्मांड के बाहर के सूक्ष्म-जल ने ब्रह्मांड में प्रवेश किया। यह सूक्ष्म-जल ही गंगा है। गंगाजी का यह प्रवाह सर्वप्रथम सत्यलोक में गया।ब्रह्मदेव ने उसे अपने कमंडलु में धारण किया। तदुपरांत सत्यलोक में ब्रह्माजी ने अपने कमंडलु के जल से श्रीविष्णु के चरणकमल धोए। उस जल से गंगाजी की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात गंगाजी की यात्रा सत्यलोक से क्रमशः तपोलोक, जनलोक, महर्लोक, इस मार्ग से स्वर्गलोक तक हुई। जिस दिन गंगाजी की उत्पत्ति हुई वह दिन ‘गंगा जयंती’ (वैशाख शुक्ल सप्तमी है) इन दिनों में गंगाजी में गोता मारने से विशेष सात्विकता, प्रसन्नता और पुण्यलाभ होता है।


🚩पृथ्वी पर गंगाजी की उत्पत्ति:

सूर्यवंश के राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ आरंभ किया। उन्हों ने दिग्विजय के लिए यज्ञीय अश्व भेजा एवं अपने 60 सहस्त्र (हजार) पुत्रों को भी उस अश्व की रक्षा हेतु भेजा। इस यज्ञ से भयभीत इंद्रदेव ने यज्ञीय अश्व को कपिल मुनि के आश्रम के निकट बांध दिया। जब सगर पुत्रों को वह अश्व कपिल मुनि के आश्रम के निकट प्राप्त हुआ, तब उन्हें लगा, ‘कपिलमुनि ने ही अश्व चुराया है’। इसलिए सगर पुत्रों ने ध्यानस्थ कपिल मुनि पर आक्रमण करने की सोची । कपिलमुनि को अंतर्ज्ञान से यह बात ज्ञात हो गई तथा अपने नेत्र खोले। उसी क्षण उनके नेत्रों से प्रक्षेपित तेज से सभी सगर पुत्र भस्म हो गए। कुछ समय पश्चात सगर के प्रपौत्र राजा अंशुमन ने सगर पुत्रों की मृत्यु का कारण खोजा एवं उनके उद्धार का मार्ग पूछा। कपिल मुनि ने अंशुमन से कहा, “गंगाजी को स्वर्ग से भूतल पर लाना होगा। सगर पुत्रों की अस्थियों पर जब गंगाजल प्रवाहित होगा, तभी उनका उद्धार होगा !’’ मुनिवर के बताए अनुसार गंगा को पृथ्वी पर लाने हेतु अंशुमन ने तप आरंभ किया। अंशुमन की मृत्यु के पश्चात उसके सुपुत्र राजा दिलीप ने भी गंगावतरण के लिए तपस्या की। अंशुमन एवं दिलीप के हजार वर्ष तप करने पर भी गंगावतरण नहीं हुआ, परंतु तपस्या के कारण उन दोनों को स्वर्ग लोक प्राप्त हुआ। (वाल्मीकि रामायण, काण्ड १, अध्याय ४१, २०-२१)


🚩‘राजा दिलीप की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर गंगामाता ने राजा भगीरथ से कहा, ‘‘मेरे इस प्रचंड प्रवाह को सहना पृथ्वी के लिए कठिन होगा। अतः तुम भगवान शंकर को प्रसन्न करो।’’ आगे भगीरथ की घोर तपस्या से शंकर प्रसन्न हुए तथा भगवान शंकर ने गंगाजी के प्रवाह को जटा में धारण कर उसे पृथ्वी पर छोडा। इस प्रकार हिमालय में अवतीर्ण गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे हरिद्वार, प्रयाग आदि स्थानों को पवित्र करते हुए बंगाल के उपसागर में (खाडी में) लुप्त हुईं।’


🚩बता दे कि जिस दिन गंगाजी की उत्पत्ति हुई वह दिन ‘गंगा जयंती’ (वैशाख शुक्ल सप्तमी) हैं और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुईं वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी ) के नाम से जाना जाता है।


🚩जगद्गुरु आद्य शंकराचार्यजी, जिन्होंने कहा है : एको ब्रह्म द्वितियोनास्ति । द्वितियाद्वैत भयं भवति ।। उन्होंने भी ‘गंगाष्टक’ लिखा है, गंगा की महिमा गायी है। रामानुजाचार्य, रामानंद स्वामी, चैतन्य महाप्रभु और स्वामी रामतीर्थ ने भी गंगाजी की बड़ी महिमा गायी है। कई साधु-संतों, अवधूत-मंडलेश्वरों और जती-जोगियों ने गंगा माता की कृपा का अनुभव किया है, कर रहे हैं तथा बाद में भी करते रहेंगे।


🚩अब तो विश्व के वैज्ञानिक भी गंगाजल का परीक्षण कर दाँतों तले उँगली दबा रहे हैं! उन्होंने दुनिया की तमाम नदियों के जल का परीक्षण किया परंतु गंगाजल में रोगाणुओं को नष्ट करने तथा आनंद और सात्त्विकता देने का जो अद्भुत गुण है, उसे देखकर वे भी आश्चर्यचकित हो उठे।


🚩ऋषिकेश  में स्वास्थ्य-अधिकारियों ने पुछवाया कि यहाँ से हैजे की कोई खबर नहीं आती, क्या कारण है ? उनको बताया गया कि यहाँ यदि किसीको हैजा हो जाता है तो उसको गंगाजल पिलाते हैं। इससे उसे दस्त होने लगते हैं तथा हैजे के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और वह स्वस्थ हो जाता है। वैसे तो हैजे के समय घोषणा कर दी जाती है कि पानी उबालकर ही पियें। किंतु गंगाजल के पान से तो यह रोग मिट जाता है और केवल हैजे का रोग ही मिटता है ऐसी बात नहीं है, अन्य कई रोग भी मिट जाते हैं। तीव्र व दृढ़ श्रद्धा-भक्ति हो तो गंगास्नान व गंगाजल के पान से जन्म-मरण का रोग भी मिट सकता है।


🚩सन् 1947 में जलतत्त्व विशेषज्ञ कोहीमान भारत आया था। उसने वाराणसी से गंगाजल लिया। उस पर अनेक परीक्षण करके उसने विस्तृत लेख लिखा, जिसका सार है – ‘इस जल में कीटाणु-रोगाणुनाशक विलक्षण शक्ति है।’


🚩दुनिया की तमाम नदियों के जल का विश्लेषण करनेवाले बर्लिन के डॉ. जे. ओ. लीवर ने सन् 1924 में ही गंगाजल को विश्व का सर्वाधिक स्वच्छ और कीटाणु-रोगाणुनाशक जल घोषित कर दिया था।


🚩‘आइने अकबरी’ में लिखा है कि ‘अकबर गंगाजल मँगवाकर आदर सहित उसका पान करते थे। वे गंगाजल को अमृत मानते थे।’ औरंगजेब और मुहम्मद तुगलक भी गंगाजल का पान करते थे। शाहनवर के नवाब केवल गंगाजल ही पिया करते थे।


🚩कलकत्ता के हुगली जिले में पहुँचते-पहुँचते तो बहुत सारी नदियाँ, झरने और नाले गंगाजी में मिल चुके होते हैं। अंग्रेज यह देखकर हैरान रह गये कि हुगली जिले से भरा हुआ गंगाजल दरियाई मार्ग से यूरोप ले जाया जाता है तो भी कई-कई दिनों तक वह बिगड़ता नहीं है। जबकि यूरोप की कई बर्फीली नदियों का पानी हिन्दुस्तान लेकर आने तक खराब हो जाता है।


🚩रुड़की विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक कहते हैं कि ‘गंगाजल में जीवाणुनाशक और हैजे के कीटाणुनाशक तत्त्व विद्यमान हैं।’


🚩फ्रांसीसी चिकित्सक हेरल ने देखा कि गंगाजल से कई रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। फिर उसने गंगाजल को कीटाणुनाशक औषधि मानकर उसके इंजेक्शन बनाये और जिस रोग में उसे समझ न आता था कि इस रोग का कारण कौन-से कीटाणु हैं, उसमें गंगाजल के वे इंजेक्शन रोगियों को दिये तो उन्हें लाभ होने लगा!


🚩संत तुलसीदासजी कहते हैं : गंग सकल मुद मंगल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला।। (श्रीरामचरित. अयो. कां. : 86.2)


🚩सभी सुखों को देनेवाली और सभी शोक व दुःखों को हरनेवाली माँ गंगा के तट पर स्थित तीर्थों में पाँच तीर्थ विशेष आनंद-उल्लास का अनुभव कराते हैं : गंगोत्री, हर की पौड़ी (हरिद्वार), प्रयागराज त्रिवेणी, काशी और गंगासागर। गंगा दशहरे के दिन गंगा में गोता मारने से सात्त्विकता, प्रसन्नता और विशेष पुण्यलाभ होता है।


🚩गंगाजी की वंदना करते हुए कहा गया है :

संसारविषनाशिन्यै जीवनायै नमोऽस्तु ते । तापत्रितयसंहन्त्र्यै प्राणेश्यै ते नमो नमः ।।

‘देवी गंगे ! आप संसाररूपी विष का नाश करनेवाली हैं। आप जीवनरूपा हैं। आप आधिभौतिक,आधिदैविक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार के तापों का संहार करनेवाली तथा प्राणों की स्वामिनी हैं। आपको बार-बार नमस्कार है।’


🚩यमुना नदी में कुछ सालों से इतना गन्दा किया जा रहा है कि उसे अब स्वच्छ करने की अत्यधिक आवश्यकता हैं। ये जवाबदारी सरकार के साथ साथ हम आप सभी की हैं। हमें ध्यान रखना होगा कि हम यमुना नदी में कूड़ा करकट न डाले ओर नही ही किसी को डालने दे।


🚩जनता की मांग है की माँ गंगाजी की सफाई शीघ्रता से होनी चाहिए।


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Tuesday, April 25, 2023

सदियों पहले आद्य शंकराचार्य पर भी किये थे अनेक प्रहार जो आप नही जानते होंगे

25  Apirl 2023

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🚩इस संसार में सज्जनों, सत्पुरुषों और संतों को जितना सहन करना पड़ता है उतना दुष्टों को नहीं। ऐसा मालूम होता है कि इस संसार ने सत्य और सत्त्व को संघर्ष में लाने का मानो ठेका ले रखा है। यदि ऐसा न होता तो मीरा को जहर नही दिया जाता, उड़िया बाबा की हत्या नही की जाती, स्वामी दयानन्द जी को जहर न दिया जाता और लिंकन व कैनेडी की हत्या न होती।

 

🚩आज भी कई सच्चे महापुरुष है जिन्होनें सनातन संस्कृति की रक्षा करके समाज को जगाने का कार्य किया, लेकिन उनके ऊपर षडयंत्र करके जेल भिजवा दिया गया या हत्या करवा दी।

 

🚩इस संसार का यह कोई विचित्र रवैया है कि इसका अज्ञान-अँधकार मिटाने के लिए जो अपने आपको जलाकर प्रकाश देता है, संसार की आँधियाँ उस प्रकाश को बुझाने के लिए दौड़ पड़ती हैं। टीका, टिप्पणी, निन्दा, गलत चर्चाएँ और अन्यायी व्यवहार की आँधी चारों ओर से उस पर टूट पड़ती है।


 

🚩आद्य शंकराचार्यजी के खिलाफ साजिस 

 

🚩श्रीमद आदि गुरू शंकराचार्य का जन्म केरल के कालडी़ नामक ग्राम में हुआ था। वह अपने ब्राह्मण माता-पिता की एकमात्र सन्तान थे। बचपन में ही उनके पिता का देहान्त हो गया। बचपन का नाम शंकर था,  उनकी रुचि आरम्भ से ही संन्यास की तरफ थी।

 

🚩जिस समय इस देश में आद्य शंकराचार्यजी का आविर्भाव हुआ था उस समय असामाजिक तत्त्व अनीति, शोषण, भ्रम तथा अनाचार के द्वारा समाज को गलत दिशा में ले जा रहे थें। समाज में फैली इस अव्यवस्था को देखकर बालक शंकर का हृदय काँप उठा। उसने प्रतिज्ञा की कि ‘मैं राष्ट्र के धर्मोद्धार के लिए अपने सुख की तिलांजलि देता हूँ। अपने श्रम और ज्ञान की शक्ति से राष्ट्र की आध्यात्मिक शक्तियों को जागृत करूँगा। चाहे उसके लिए मुझे सारा जीवन साधना में लगाना पड़े, घर छोड़ना पड़े अथवा घोर-से-घोर कष्ट सहने पड़ें, मैं सदैव तैयार रहूँगा।’

 

🚩बालक शंकर माँ से आज्ञा लेकर चल पड़े अपने संकल्प को साधने। उन्होंने सद्गुरु स्वामी गोविंदपादाचार्यजी से दीक्षा ली। इसके बाद वे साधना एवं वेद-शास्त्रों के गहन अध्ययन से अपने ज्ञान को परिपक्व कर बालक शंकर से जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य बन गये। शंकराचार्यजी अपने गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्त कर देश में वेदांत का प्रचार करने चल पड़े। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण जैसों को भी दुष्टों के उत्पीड़न सहने पड़े तो आचार्य उससे कैसे बच पाते ? शंकराचार्यजी के धर्मकार्य में विधर्मी हर प्रकार से रुकावट डालने का प्रयास करने लगे, कई बार उन पर मर्मांतक प्रहार भी किये गयें।

 

🚩कपटवेशधारी उग्रभैरव नामक एक दुष्ट व्यक्ति ने आचार्य की हत्या के लिए शिष्यत्व ग्रहण किया। आचार्य को मारने की उसकी साजिश विफल हुई और अंततः वह भगवान नृसिंह के प्रवेश अवतार द्वारा मारा गया।

 

🚩कर्नाटक में बसनेवाली कापालिक जाति का मुखिया था क्रकच। वह मांस-शराब आदि अनेक दुराचारों में लिप्त था। कर्नाटक की जनता उसके अत्याचारों से त्रस्त थी। आचार्य शंकर के दर्शन, सत्संग एवं सान्निध्य के प्रभाव से लोग कापालिकों द्वारा प्रसारित दुर्गुणों को छोड़ने लगें और शुद्ध, सात्त्विक जीवन की ओर आकृष्ट होने लगें। सैकड़ों कापालिक भी मांस-शराब को छोड़कर शंकराचार्यजी के शिष्य बन गये। इस पर क्रकच घबराया। उसने शंकराचार्यजी का अपमान किया, गालियाँ दीं और वहाँ से भाग जाने को कहा। शंकराचार्यजी ने उसके विरोध की कोई परवाह नहीं की और अपनी संस्कृति का, अपने धर्म का प्रचार-प्रसार निष्ठापूर्वक करते रहे। इस पर क्रकच ने उन्हें मार डालने की धमकी दी। उसने बहुत-से दुष्ट शिष्यों को शराब पिलाकर शंकराचार्यजी को मारने हेतु भेजा। धर्मनिष्ठ राजा सुधन्वा को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी सेना को भेजा और युद्ध में सारे कापालिकों को मार गिराया।

 

🚩अभिनव गुप्त भी एक ऐसा ही महामूर्ख था जो आचार्य के लोक-जागरण के कार्यों को बंद कराना चाहता था। वह भी अपने शिष्यों सहित आचार्य से पराजित हुआ। वह दुराभिमानी, प्रतिक्रियावादी, ईर्ष्यालु स्वभाव का था। वह आचार्य के प्रति षड्यंत्र करने लगा। दैवयोग से उसे भगंदर का रोग हो गया और कुछ ही दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गयी।

 

🚩आद्य शंकराचार्यजी का इतना कुप्रचार किया गया कि उनकी माँ के अंतिम संस्कार के लिए उन्हें लकड़ियाँ तक नहीं मिल रही थीं।

 

🚩आद्य शंकराचार्य जी ने तत्कालीन भारत में व्याप्त धार्मिक कुरीतियों को दूर कर अद्वैत वेदान्त की ज्योति से देश को आलोकित किया। सनातन धर्म की रक्षा हेतु उन्होंने भारत में चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उस पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया।

🚩उन्होंने उत्तर में ज्योतिर्मठ, दक्षिण में श्रृंगेरी, पूर्व में गोवर्धन तथा पश्चिम में शारदा मठ नाम से देश में चार धामों की स्थापना की। 32 साल की अल्पायु में पवित्र केदार नाथ धाम में शरीर त्याग दिया। सारे देश में शंकराचा‍र्य को सम्मान सहित आदि गुरु के नाम से जाना जाता है।

 

🚩शंकराचार्य के विषय में कहा गया है-

अष्टवर्षेचतुर्वेदी, द्वादशेसर्वशास्त्रवित् षोडशेकृतवान्भाष्यम्द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात्

 

🚩अर्थात् आठ वर्ष की आयु में चारों वेदों में निष्णात हो गए, बारह वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों में पारंगत, सोलह वर्ष की आयु में शांकरभाष्य लिखा तथा बत्तीस वर्ष की आयु में शरीर त्याग दिया। ब्रह्मसूत्र के ऊपर शांकरभाष्य की रचना कर विश्व को एक सूत्र में बांधने का प्रयास भी शंकराचार्य के द्वारा किया गया है।

 

🚩इस संसार में ईर्ष्या और द्वेषवश जिसने भी महापुरुषों का अनिष्ट करना चाहा, देर-सवेर दैवी विधान से उन्हीं का अनिष्ट हो जाता है। संतों-महापुरुषों की निंदा करना, उनके दैवी कार्य में विघ्न डालना यानी खुद ही अपने अनिष्ट को आमंत्रित करना है। उग्रभैरव, क्रकच व अभिनव गुप्त का जीवन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

 

🚩समाज जब किसी ज्ञानी संतपुरुष की शरण तथा सहारा लेने लगता है तब राष्ट्र, धर्म व संस्कृति को नष्ट करने के कुत्सित कार्यों में संलग्न असामाजिक तत्त्वों को अपने षडयन्त्रों का भंडाफोड़ हो जाने का एवं अपना अस्तित्व खतरे में पड़ने का भय होने लगता है, परिणामस्वरूप अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए वे उस दीये को ही बुझाने के लिए नफरत, निन्दा, कुप्रचार, असत्य, अमर्यादित व अनर्गल आक्षेपों व टीका-टिप्पणियों की आँधियों को अपने हाथों में लेकर दौड़ पड़ते हैं, जो समाज में व्याप्त अज्ञानांधकार को नष्ट करने के लिए महापुरुषों द्वारा प्रज्जवलित हुआ था।

 

🚩ये असामाजिक तत्त्व अपने विभिन्न षडयन्त्रों द्वारा संतों व महापुरुषों के भक्तों व सेवकों को भी गुमराह करने की कुचेष्टा करते हैं। समझदार लोग उनके षडयंत्रजाल में नहीं फँसते, महापुरुषों के दिव्य जीवन के प्रतिपल से परिचित उनके अनुयायी कभी भटकते नहीं, पथ से विचलित होते नहीं अपितु सश्रद्ध होकर उनके निष्काम सेवाकार्यों में अत्यधिक सक्रिय व गतिशील होकर सहभागी हो जाते हैं।


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