Thursday, May 25, 2023

देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अद्भूत वीरांगना, शक्तिस्वरूपा, रानी लक्ष्मीबाई

 ब्राह्मण कुल में जन्मी और महलों में पलने वाली भारत माता की सिंहनी " वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई " ने अपनी वीरता, साहस, संयम, धैर्य तथा देशभक्ति के कारण सन् 1857 के महान क्रांतिकारियों की शृृंखला में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा दिया ।


आज जिन्हें दुनिया झांसी की रानी के नाम से याद करती है,वह रणबांकुरी ऐसा रणकौशल दिखलाती थी , कि अंग्रेज अफसरों के छक्के छूट जाते थे।  


नारी जाति के लिए रानी झांसी एक अविस्मरणीय प्रेरणास्त्रोत हैं

कोटिशः नमन है ऐसी महान विभूति को💐🙏


25  May 2023

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🚩भारतीय नारी ने समग्र विश्व में अपनी एक विशेष पहचान बनायी है । अपने श्रेष्ठ चरित्र, वीरता तथा बुद्धिमत्ता के बल पर उसने मात्र भारत ही नहीं अपितु समस्त विश्व की नारी जाति को गौरवान्वित किया है । भारत के इतिहास में ऐसी अनेक नारियों का वर्णन पढ़ने-सुनने को मिलता है ।

झाँसी कि रानी लक्ष्मीबाई का नाम भी ऐसी ही महान नारियों में आता है । रा


नी लक्ष्मीबाई का जीवन बड़े-बड़े विघ्नों में भी अपने धर्म को बनाये रखने तथा परोपकार के लिए बड़ी-से-बड़ी सुविधाओं को भी तृण कि भाँति त्याग देने की प्रेरणा देता है ।


🚩सन् 1835 में महाराष्ट्र के एक ब्राह्मण कुल में जन्मी “मनुबाई” जिसे लोग प्यार से ‘छबीली’ भी कहते थे अपनी वीरता एवं बुद्धिमत्ता के प्रभाव से झाँसी की रानी बनी । झाँसी के राजा गंगाधर राव से विवाह के पश्चात् वे ‘रानी लक्ष्मीबाई’ के नाम से पुकारी जाने लगीं ।


🚩गंगाधर राव वृद्ध तथा निःसन्तान थे । उनकी पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी । राज्य का उत्तराधिकारी न होने के कारण उन्होंने वृद्धावस्था में भी विवाह किया । अपने धर्म को निभाते हुए लक्ष्मीबाई ने पति कि सेवा के साथ-साथ राजनीति में भी रुचि दिखाना प्रारम्भ कर दिया ।


🚩समय पाकर गंगाधर राव को पुत्ररत्न कि प्राप्ति हुई परंतु एक गंभीर बीमारी ने राजकुमार के प्राण ले लिए । गंगाधर राव पर मानो वज्रपात हो गया और उन्होंने चारपाई पकड़ ली । श्वास फूलने लगा । रोगाधीन हो गए । उस समय देश में ब्रिटिश शासन था । सभी राज्य अंग्रेजी सरकार के नियमों के अनुसार ही चलते थे । राजा नाममात्र का शासक होता था । महाराज गंगाधर राव ने ब्रिटिश सरकार को इस आशय का एक पत्र लिखा : ‘‘रानी को अपने परिवार से किसी पुत्र को गोद लेने कि अनुमति दी जाय तथा भविष्य में उसी दत्तक पुत्र को झाँसी का शासक बनाया जाय ।’’


🚩ब्रिटिश सरकार ने गंगाधर राव के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया । उसने आदेश पारित किया कि : ‘‘यदि रानी को कोई संतान नहीं है तो झाँसी राज्य को सरकार के आधीन कर लिया जाय ।’’ फिर झाँसी को अंग्रेजों ने हस्तगत कर लिया । गंगाधर राव को एक और चोट लगी और उनकी मृत्यु हो गई ।


🚩एकलौते पुत्र के बाद अपने पति की मृत्यु तथा अंग्रेजों के प्रतिबन्धों के बावजूद भी भारत की इस वीरांगना ने अपना धैर्य नहीं खोया । उसने राज्य के शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली तथा अपने पति की अंतिम इच्छा को पूरी करने के लिए दामोदर राव को अपना दत्तक पुत्र बना लिया ।


🚩रानी का यह साहसिक कदम अंग्रेजों की चिंता का विषय बन गया । उन्हें लक्ष्मीबाई के रूप में सुलगती क्रांति कि चिंगारी साफ-साफ दिखाई देने लगी । अंग्रेजी सरकार ने झाँसी के राज्य को तुरंत अपने अधीन कर लिया तथा गंगाधर राव के नाम पर रानी को मिलनेवाली पेन्शन भी बन्द कर दी । इसके साथ ही सरकार ने झाँसी में गोवध को बंद करने के रानी के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया । चारों ओर से विपरीत परिस्थितियों से घिरे होने तथा सैन्य-शक्ति न होने के बावजूद भी रानी लक्ष्मीबाई के मन मेें झाँसी को स्वतंत्र कराने के ही विचार आते थे ।


🚩इसी समय भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों द्वारा कारतूस में गाय तथा सूअर की चर्बी मिलाये जाने कि घटना के कारण अनेक स्थानों पर विद्रोह कर दिया । वीर मंगल पाण्डेय के बलिदान ने देशभर में क्रांति की आग फैला दी तथा 10 मई, सन् 1857 को इस विद्रोह ने भयंकर रूप ले लिया । देशभर में विद्रोह कि आँधी चल पड़ी जिससे अंग्रेजों को अपने प्राण बचाने भारी पड़ गये ।


🚩झाँसी में क्रांति कि आग न लगे इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने अपनी कूटनीति का सहारा लिया । सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई से प्रार्थना की कि : ‘‘जगह-जगह युद्ध छिड़ रहे हैं और इसके पहले कि झाँसी भी इसकी चपेट में आये, आप राज्य कि रक्षा का दायित्व अपने हाथ में ले लें और हम सबकी रक्षा करें । झाँसी कि जनता आपसे अत्यधिक प्रेम करती है अतः आपकी इच्छा के विपरीत वह विद्रोह नहीं करेगी ।’’


🚩रानी के लिए राज्य-प्राप्ति का यह एक सुंदर अवसर था जब अंग्रेज स्वयं उन्हें झाँसी राज्य का शासन सौंप रहे थे । रानी के एक ओर झाँसी का सिंहासन था तथा दूसरी ओर स्वतंत्रता कि वह क्रांति जो देशभर में फैल रही थी । रानी चाहती तो सरकार कि सहायता करके तथा झाँसी की क्रांति को रोककर अपने खोये हुए राज्य कोप्राप्त कर सकती थी । परंतु धन्य है भारत की यह निर्भीक वीरांगना जिसने देश कि स्वतंत्रता के लिए सिंहासन को भी ठुकरा दिया ।


🚩रानी ने स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे देशभक्तों कि सहायता करने का निश्चय किया । उन्होंने सरकार को जवाब देते हुए कहा : ‘‘जब मेरे सामने राज्य-प्राप्ति कि समस्या थी तब तो मुझे राज्य नहीं दिया गया । आज आप लोगों के हाथों से वही राज्य छिन जाने का समय आ गया है तो राज्य की रक्षा का दायित्व मुझे दे रहे हैं ।’’


🚩रानी के ये शब्द अंग्रेजी सरकार को तीर की भाँति चुभे । रानी ने अंग्रेजी सेना को अपने यहाँ शरण नहीं दी अतः उन्हें निराश होकर जाना पड़ा । सैनिक विद्रोह ने जोर पकड़ा तथा झाँसी में भी क्रांति की लहर चल पड़ी । अंग्रेजों की छावनियाँ तहस-नहस कर दी गईं तथा अंग्रेजों को झाँसी छोड़कर भागना पड़ा । झाँसी का राज्य क्रांतिकारियों के हाथों में आ गया । वहाँ उन्होंने लक्ष्मीबाई को रानी के रूप में स्वीकार कर लिया ।


🚩रानी ने झाँसी में लगभग एक वर्ष तक शांतिपूर्वक शासन किया परंतु कुछ समय बाद झाँसी के राज्य पर फिर से अंग्रेजों कि काली दृष्टि पड़ी । जनरल ह्यू रोज के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया ।


🚩रानी लक्ष्मीबाई के पास सैन्य-शक्ति अधिक नहीं थी । उधर उनकी सहायता के लिए आ रहे नाना साहब तथा तात्या टोपे की सेना को अंग्रेजों कि विशाल सेना ने रास्ते में ही रोक लिया । रानी के कई वफादार एवं वीर सिपाही युद्ध में शहीद हो गये । ऐसी परिस्थिति में भी लक्ष्मीबाई के साहस में कोई कमी नहीं आयी तथा परतंत्रता के जीवन कि अपेक्षा स्वतंत्रता के लिए मर-मिट जाना उन्हें अधिक अच्छा लगा । उन्होंने मर्दों की पोशाक पहनी तथा अपने दत्तक पुत्र को अपनी पीठ पर बाँध लिया । महलों में पलनेवाली रानी लक्ष्मीबाई हाथ में चमकती हुई तलवार लिये घोड़े पर सवार होकर रण भूमि में उतर पड़ीं ।


🚩मुशर नदी के किनारे रानी लक्ष्मीबाई एवं जनरल ह्यू रोज की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ तथा रानी की लपलपाती तलवार अंग्रेजी सेना को गाजर-मूली कि तरह काटने लगी । पर हाऽऽऽ कठिन कठोर नियति... रानी की छोटी-सी सेना अंग्रेजों की विशाल सेना के आगे अधिक देर तक नहीं टिक सकी ।


🚩तभी दुर्भाग्यवश रानी के मार्ग में एक नाला आ गया जिसे उनका घोड़ा पार नहीं कर सका । फलतः चारों ओर से ब्रिटिश सेना ने उन्हें घेर लिया । अंततः अपने देश कि स्वतंत्रता के लिए लड़ते-लड़ते रानी वीरगति को प्राप्त हुईं जिसकी गाथा सुनकर आज भी उनके प्रति मन में अहोभाव उभर आता है । छोटे-से ब्राह्मण कुल में जन्मी इस बालिका ने अपनी वीरता, साहस, संयम, धैर्य तथा देशभक्ति के कारण सन् 1857 के महान क्रांतिकारियों की शृृंखला में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा दिया ।


🚩वर्तमान में भी जो राष्ट्र और संस्कृति की सेवा करने के लिए तन मन धन से सेवा करते है उन साधु संतों पर झूठे आरोप लगाकर जेल भिजवाया जाता है। मीडिया द्वारा बदनाम किया जाता है, उनके ऊपर झूठी कहानियां बनाकर फिल्में बनाई जाती हैं। उनकी हत्या तक कर दी जाती है।


🚩आज भी राष्ट्र विरोधी ताकतें देश को तोड़ने के लिए सक्रिय है और देश व धर्म रक्षार्थ हमारे साधु संत रात दिन अनवरत कार्य कर रहे हैं । इसलिए उनके खिलाफ़ षडयंत्र भी तेजी से बढते जा रहे हैं ।


🚩इसलिए हमारा भी कर्तव्य बनता है, कि हम उनका साथ दें और राष्ट्र विरोधी ताकतों को परास्त कर के देश को पुनरूत्थान की डगर पर चला कर भारत को विश्व गुरुपद पर आसीन करवाने के उनके दैवीय सेवा कार्य में अपनी भी सहभागिता दें ।


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Wednesday, May 24, 2023

समाज को सबसे ज्यादा अगर गुमराह किया है , तो बॉलीबुड ने ही किया है

 देश के लिए यह सबसे बड़े दुख और चिन्ता का विषय है, कि पिछले कई दशकों से बॉलीवुड द्वारा हिन्दू साधु-संतों , मठ, मंदिर और आश्रमों को टार्गेट करते हुए हिन्दू विरोधी झूठी कहानियों पर फ़िल्में और वेब सीरीज बनाने का सिलसिला चल रहा है। 

 

24  May 2023

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🚩आज के समय में जब कि सिनेमा और टीवी हर वर्ग की जनता पर अपना प्रभाव जमाए हुए हैं , ध्यान देने योग्य बात यह है , कि...

समाज को सबसे ज्यादा अगर गुमराह किया है तो बॉलीबुड ने ही किया है। 


🚩 बॉलीवुड की सौग़ातें ...


🚩बॉलीवुड ने समाज को यही शिक्षा दी, कि शादी करती हुई लड़की को मंडप से उठा लेना कोई गलत बात नहीं है।

बलात्कार, चोरी, डकैती के दृश्य दिखाकर दर्शकों को कब और कैसे ये लोग अपने उत्पादों का आदी बना लेते हैं , पता भी नहीं चलता ...!!


🚩दृश्यों को भड़कीला बनाने हेतु स्त्रियों को अधनंगे कपड़े पहना कर अपने शोज़ को बड़ी आसानी से प्रमोट करवा लेते हैं। और युवावर्ग में संदेश जाता है कि ऐसे पहनावे में कोई आपत्ति नहीं ।

मां-बाप को वृद्धाश्रम छोड़ देना तो इनके लिए फैशन है। फिर वहीं एक हीरो या हिरोइन वृद्धाश्रम में जाकर कुछ देर उनसे सहानुभूति दिखाकर बड़ी सहजता से जनता का विश्वास हासिल कर लेते हैं ।



🚩लव जिहाद को बढ़ावा देना, भारतीय संस्कृति को हीन बताना, साधु-संतों, देवी देवताओं मदिरों और पंडितों का मजाक उड़ाना इनके मुख्य मुख्य पसंदीदा काम होते हैं ।

और खासतौर से हिन्दुत्व विरोधी अन्य संस्कृतियों (पाश्चात्य संस्कृति व इस्लाम ) को महान बताना यही तो ये लोग करते आये हैं।

 

🚩हिंदू विरोधी वेब सीरीज व फिल्मों को जिस तरह आए दिन प्रमोट किया जा रहा है इससे बिल्कुल स्पष्ट है, कि ऐसा करने में अरबों-खरबों रुपये खर्च होते होंगे...! तो जाहिर सी बात है कि इसके पीछे कही न कही भारतीय सनातन संस्कृति को तोड़ने की मंशा रखने वाली बड़ी-बड़ी ताकतें लगी हुई हैं।


🚩क्योंकि “मंदिर, आश्रम, साधू संत” ये सभी अतिपवित्र शब्द हैं, जो हिन्दुओं की श्रद्धा का केंद्र हैं। लोग वहाँ पर जाकर शांति पाते हैं...

और यही कारण है कि धर्मांतरण कराने वाली मिशनरीज़ और विदेशी प्रोडक्ट बेचने वाली कंपनियां देश के भीतर के कुछ स्वार्थी विधर्मियों के साथ सांठ-गांठ करके हिन्दुओ की श्रद्धा तोडने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।



🚩साधु-संतों के प्रति श्रद्धा रखने वाले मंदिरों, आश्रमो में जाते हैं और वहाँ उनको भारतीय संस्कृति के अनुसार जीने का सही तरीका मिलता है फिर वे अपने धर्म के प्रति आस्थावान हो जाते हैं जिसके कारण वे ईसाई मिशनरियों के चुंगल में नहीं आते , विदेशी प्रोडक्ट भी नहीं खरीदते ।

...फलतः " ईसाई मिशनरियों का जो लक्ष्य है भारत को पुनः गुलाम बनाना और धर्मांतरण करके अपनी वोटबैंक बढ़ाकर सत्ता हासिल करना " इसमें बहुत रुकावट खड़ी हो जाती है ।


🚩जिन विदेशी कंपनियों के सामान नहीं बिकने पर उनको अरबो-खबरों रूपये का घाटा होता है । मिशनरीज को धर्मांतरण में बाधा आती है , तभी तो ये लोग अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचकर हिंदुओं की मंदिरों, आश्रमों व साधु-संतों के प्रति आस्था को नष्ट करने के लिए साज़िशें रचते रहते हैं...

...और प्रकाश झा, मनोज बाजपेई जैसे जयचंद गद्दारी करके अपने ही धर्म के खिलाफ फिल्में बनाते हैं असली कारण यही है।

 

🚩देखा जाए तो चर्चों में पादरियों द्वारा बलात्कार के हजारों केसेज़ सामने आ चुके हैं । मदरसों में भी यौन शोषण और बलात्कार आदि के कई केसेज़ आए दिन सुनाई देते हैं । पर अभी तक इन विषयों पर फ़िल्म बनाने की हिम्मत कोई न जुटा सका...और न ही कोई बनाएगा ही...

क्योंकि उसके लिए न फंडिंग मिलेगी और उपर से कमलेश तिवारी की तरह हत्या हो जाएगी इसलिए वास्तव में जहाँ पर सचमुच गड़बड़ी हो रही है उस पर ये फिल्म उद्योग वाले ध्यान नहीं देते हैं ।

पर हिन्दू सहिष्णु है और उनके खिलाफ षड्यंत्र रचने के लिए भारी फंडिंग मिलती है इस कारण राष्ट्र विरोधी ताकतों के कठपुतली बने डायरेक्टरों रूपी जयचंद हिंदू विरोधी फिल्में बना कर मालामाल होते जा रहे हैं।


🚩सृष्टि के प्रारंभ से ही साधु-संतों ने घोर तपस्या करके जो ज्ञान प्राप्त किया उससे मानवमात्र को स्वस्थ, सुखी व सम्मानित जीवन जीने की कला सिखाते रहे हैं। समाज को व्यसनमुक्त बनाने का प्रयास करते हैं, संयमी और सदाचारी समाज को बनाते हैं, गरीबों-आदिवासियों को सहायता करते हैं। गौ माता की रक्षा करते हैं। बच्चों, युवाओं व महिलाओं के उत्थान के लिए केंद्र खोलते हैं। धर्मान्तरण पर रोक लगाते हैं। चिंता, टेंशन में रह रहे लोगों को शांति देते हैं, स्वदेशी का प्रचार करते हैं, सभी को स्वस्थ, सुखी और सम्मानित जीवन जीने की कला सिखाते हैं।

इस प्रकार संतजन राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं।

 

🚩वैसे हिन्दू विरोधी फिल्मों या अन्य किसी भी हथकण्डे से दृढ़ श्रद्धालुओं में तो तनिक भी फर्क नहीं पड़ा है लेकीन आने वाली पीढ़ी को नुकसान हो रहा है । इस हानि को रोकने के लिए हिन्दू विरोधी फिल्मे बंद करवा सरकार की प्रार्थमिकता होनी चाहिए। 


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Tuesday, May 23, 2023

मॉल में खरीदारी के समय दो लड़कियों के टकराने पर आशारामजी बापू पर बन गई फिल्म

23  May 2023

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आइये जानें कि कैसे और क्यों इस टकराव की शुरुआत हुई…


🚩मॉल में खरीदारी के समय एक छोटी बच्ची एक लड़की से टकरा गई । उस लड़की ने उस बच्ची का अपमान करना शुरू किया । जो बच्ची की बड़ी बहन से देखा न गया और उसने स्पष्ट प्रत्युत्तर देना शुरू किया। जिसके कारण बड़ी बहन और सामने वाली लड़की का आपस में टकराव पैदा हो गया और पूरा मॉल उन दोनों लड़कियों को देखने लगा...

https://youtu.be/qF-d7eWY9-s




🚩फिल्म की शुरूआत कुछ ऐसे होती है...एक छोटी बच्ची और एक अन्य लड़की मॉल में चलते हुए आपस में टकरा जाती हैं और बच्ची के हाथ से सामान जमीन पर गिर जाता है । अब बच्ची से सॉरी बोलना तो दूर उल्टे वह सामने वाली लड़की बोल उठती है , " ए लड़की अंधी है क्या , दिखता नहीं ? " और भी ऐसी ही बातें बोलकर बच्ची को अपमानित करने लगी । 

बच्ची और उसके साथ आई हुई उसकी माँ व बड़ी बहन कोई उत्तर नहीं देते हैं , शान्त रहते हैं


🚩तभी बच्ची और उसकी बड़ी बहन सामान उठाने लगते हैं , जिसमें से बापू आशारामजी का जो साहित्य था वो बड़ी बहन मस्तक से लगाती है। यह देखते ही सामने वाली लड़की और बोल उठी... कि अच्छा इनको मानते हो तुम लोग और उपेक्षापूर्ण हंसी हंसती है । आगे बोलती है कि ये क्या अंश्रद्धा है… !!?



🚩अब छोटी बच्ची की बड़ी बहन को अपने गुरुदेव का अपमान सहन नहीं होता और माँ के रोकने पर भी वह उस अकड़ू लडकी को सटीक जवाब देने लगती है और बहस शुरू हो जाती है।


🚩छोटी बच्ची की बड़ी बहन सामने वाली लड़की से पूछती है – तुमने अपने पिता को कैसे माना… !?


🚩लड़की बोली - माँ ने कहा, इसलिए ।


🚩बड़ी बहन – ये भी तो माँ पर श्रद्धा या विश्वास है !! तो क्यों करती हो !?

फिर जिनके मार्गदर्शन से हमारा जीवन उन्नत हुआ उनको मानना क्या अंधश्रद्धा है... !!?

अंधे तो तुम्हारे जैसे लोग हैं जो सच को जाने बगैर ही झूठ को सच और सच को झूठ मान लेते हैं।


🚩लड़की – मीडिया में इतना सब कुछ दिखाया जा रहा है वो सब झूठ है क्या..??


🚩बड़ी बहन –  मीडिया सिर्फ एक तरफ दिखाता है दूसरी तरफ की सच्चाई क्यों नहीं दिखाता... !??

इतने कुप्रचार के बाबजूद आज भी हमारे बापूजी की करोड़ों महिला Followers क्यों हैं... !?


🚩लड़की – लेकिन आरोप भी तो एक लड़की ने लगाया है और तुम एक लड़की होकर उनका समर्थन करती हो... ??


🚩बड़ी बहन – 1.) मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार लड़की के शरीर पर एक भी खरोंच नहीं था फिर रेप की Baseless खबर आखिर उछाली क्यों गई... !!?


2.) लड़की जिस समय की घटना बता रही है। उस समय वो खुद फोन पर बात कर रही थी और बापूजी एक फंक्शन में व्यस्त थे। क्या ये बात तुम जानती हो... !?


3.) बर्थ सर्टिफिकेट के आधार पर लड़की बालिग है फिर पोक्सो की धारा क्यों लगाई गयी..??? क्या इसके बारे में कभी सोचा... !?


(इतना ही नहीं, ऐसे ही कितने ठोस सबूत और गावह हैं, जो बापूजी की बेगुनाही साबित करते हैं। पर उन सब को नज़रंदाज किया गया कोर्ट द्वारा)


🚩लड़की – मीडिया में इतना सब कुछ दिखाया जा रहा है, कुछ सच्चाई तो होगी ही न !?


🚩बड़ी बहन –  मैडम, जिन मीडिया वालों पर तुम विश्वास करती हो उनमें से maximum मीडिया हाउस तो फॉरेन Funded हैं। अश्लील विज्ञापन, ब्लैकमेलिंग , आदि के जरिये समाज में भ्रष्टाचार, रेप आदि को बढ़ावा दे रहे हैं । ऐसे चैनेल्स पर तुम विश्वास करती हो !!

पर भारतीय संस्कृति की निस्वार्थ सेवा करने वाले संतों पर तुम्हें विश्वास नहीं है। क्या बुद्धि है तुम्हारी…!!!


हिन्दू धर्म वाले जब सताए जाते हैं तब तो मिडिया मौन हो जाती है और कहीं दूसरा धर्म हो तो जनता के सामने Secularism का विधवा विलाप करती है ।


🚩लड़की – पर कुछ तो दोष होगा तुम्हारे बापू का..???


🚩बड़ी बहन – दोष तो है। क्योंकि बापूजी एक हिन्दू संत हैं। उन्होंने लाखों लोगों को धर्मान्तरित होने से बचाया है । सत्संग के द्वारा देश, समाज , संस्कृति को नोचने – तोड़ने वाली ताकतों से देशवासियों को बचाने का प्रयत्न किया।

क्या यही उनका दोष है... !?


🚩लड़की – पर हमने तो सुना है कि करोड़ों की संपत्ति है तुम्हारे बापू के पास । इसमें तुम्हारा क्या कहना है..???


🚩बड़ी बहन – जो भी संपत्ति है सब ट्रस्ट की है बापू की व्यक्तिगत नहीं है और इसके द्वारा समाज उत्थान के कई सेवाकार्य चलाये जाते हैं ।


🚩लड़की – तो क्या सेवा की है तुम्हारे बापू ने समाज के लिए..!!?


🚩बड़ी बहन – आश्रम द्वारा देश भर में कई सेवाकार्य चलाये जाते हैं ।

जैसे – आदिवासी इलाकों में ‘भजन करो,भोजन करो और दक्षिणा पाओ’ योजना , गरीब लोगों में राशन कार्ड के द्वारा अनाज का वितरण , कपड़े , बर्तन , जीवन उपयोगी सामग्री और मकान आदि का वितरण किया जाता है । प्राकृतिक आपदाओं में जहाँ शासन भी न पहुँच सके, वहां आश्रम की ओर से कई सेवाकार्य चलाये जाते हैं । क्या मिडिया ने कभीयह सब दिखाया... !!?



🚩क्या तुम जानती हो पूज्य बापूजी ने महिला सुरक्षा के लिए भी कई अभियान चलाये। आज की युवा पीढ़ी को माता-पिता का आदर , सम्मान सिखाकर वैलेंटाइन डे के बदले में " मातृ-पितृ पूजन दिवस " मनाने की परंपरा चलायी ।


🚩25 दिसम्बर को संस्कृति की रक्षा के लिए तुलसी पूजन दिवस अभियान की शुरुआत किसने की..???

क्या तुम जानती हो..???


🚩केमिकल रंगों से बचाकर प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की पहल किसने की..??? जानती हो वो कौन हैं… !!?

संत श्री आशाराम जी बापू…!!

हजारों गायों को कटने से बचाया , कई गौशालाओं की व्यवस्था की। व्यसन मुक्ति अभियान चलाकर करोड़ों लोगों को व्यसन मुक्त कराया। बच्चों , युवाओं व महिलाओं में अच्छे संस्कार के लिए ढेरों अभियान चलाये।


🚩World Religious Parliament Chicago अमेरिका में 1993 में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किसने किया था , जानती हो वो कौन हैं... !!!??

…पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू ने …!!


अरे ! मीडिया देश का इतना ही भला चाहता और सच दिखाता तो उनके इतने वर्षों के सेवाकार्य को आज तक क्यों नहीं दिखाया... !!!??


🚩सच दिखाना होता तो मीडिया सिर्फ़ एक लड़की या एक महिला का ढोल नहीं पीटती , बल्कि हम जैसी करोड़ो नारियों की गवाही को जनमानस तक पहुंचाती ।

हमेशा झूठ को सच और सच को झूठ दिखाकर जनता को गुमराह क्यों कर रही है ये मीडिया जानती हो...!? सिर्फ़ अपने स्वार्थ के लिए  !!

आख़िर विदेशी फंड से चलने वाली और TRP की भूखी मीडिया से और क्या उम्मीद की जा सकती है !!



🚩और क्या तुम जानती हो , सिर्फ बापूजी ही नहीं उनसे पहले भी कई महापुरुषों पर झूठे आरोप लगाकर समाज द्रोहियों ने उनका खूब दुष्प्रचार किया !?

तो क्या वे महापुरुष झूठे हो गए..???

नहीं…आज भी उनका उतना ही सम्मान हो रहा है। इतना होने के बाबजूद भी ।


🚩“करोड़ों Educated लोग बापूजी से जुड़े हुए हैं। क्योंकि उन्हें बापूजी से जो मिला है उसे झुठलाया नहीं जा सकता। “


🚩मैं अपने बापूजी को अपना भगवान मानती थी , मानती हूँ और मानती रहूंगी। ” मुझे तुम्हारे जैसे लोगों के सर्टिफिकेट की जरुरत नहीं है।”


🚩ये तो आश्चर्य है , कि कई गुनहगार लोगों को बेल मिल जाती है। यहाँ तक कि दोषी तक छूट जाते हैं और वहीं दूसरी ओर एक आरोप भी सिद्ध न होने पर उनके लड़खड़ाते स्वास्थ्य के बाबजूद उन्हें बेल तक नहीं दी जा रही है। क्या तुम्हे लगता है कि इतने लोगों के प्रेरणास्त्रोत संत श्री आशाराम जी बापू ऐसा गलत काम कर सकते हैं... !!? क्या तुम्हे लगता है कि मिडिया सब सच दिखाता है…???


🚩लड़की –  Yes , if we are talking about the media then we all know that , मिडिया अपनी TRP बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जाती है। अपनी TRP बढ़ाने के लिए वह किसी भी बात को बहुत बढा-चढ़ाकर और मसाला लगाकर बताती है। पर इस बार तो इन्होंने हद ही कर दी निर्दोष बापूजी को भी नहीं छोड़ा ।


🚩Anyways Thnx अगर तुम मुझे नहीं बताती तो मुझे कभी पता ही नहीं चलता कि बापूजी ने समाज में इतने सारे सेवाकार्य किए हैं ।


🚩तो देखा आपने…मीडिया और सिनेमा वाले कैसे समाज को गुमराह कर रहे है । वो लड़की तो समझ गई…आप कब समझेंगे..??? कि हमारे हिंदुस्तान में हमारे रक्षक और सनातन धर्म पोषक निर्दोष संत ही आज सबसे ज्यादा पीड़ित हैं ।


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Monday, May 22, 2023

कड़वा है पर सच यही है, जितने भी महान साधु संत हुए हैं उन्हें उनके हयातिकाल में झूठे और घृणित आरोप लगाए गए , कष्ट दिए गए , प्रताड़ित किया गया और बाद में जब वे महापुरुष चले जाते हैं तो यही लोग उनकी पूजा करते हैं !!

 कड़वा है पर सच यही है , कि प्राचीनकाल से अब तक जितने भी दयालु , सेवाभावी और परहित-परायण महान साधु संत हुए हैं उन्हें उनके हयातिकाल में तो तरह-तरह के झूठे और घृणित आरोप लगाए गए , कष्ट दिए गए , अपमानित और प्रताड़ित किया गया और बाद में... बाद में जब वे महापुरुष चले जाते हैं तो यही लोग उनकी पूजा करते हैं !!


22  May 2023

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🚩भारत देश ऋषि-मुनियों, साधु-संतों का देश रहा है।

इतिहास गवाह है कि जिस भी राज्य में संतजनों के मार्गदर्शन में राजसत्ता चलती थी, वह राज्य खूब फलता फूलता था।

भगवान श्रीकृष्ण भी अपने गुरुदेव संदीपनी ऋषि व अन्य संतों की चरणरज लेने उनके पास जाते थे। भगवान श्री राम भी उनके गुरु वशिष्ठ के पास से सलाह लेने के बाद ही कुछ निर्यण लेते थे।

वर्तमान में भी साधु-संतों के कारण ही देश में सुख-शांति है और सनातन संस्कृति की सुवास चहुंओर फैल रही है।


🚩वर्तमान समय में विदेशी फंडिंग चलने वाली बिकाऊ मीडिया द्वारा एक कुचक्र चलाया जा रहा है...जिसमें सभी हिन्दू साधु-संतों को बदनाम किया जा रहा है।

और दुख की बात यह है कि , भारत की भोली जनता भी उन्हीं की बातों को सच मानकर अपने ही धर्मगुरुओं की निंदा करने लगती है।

कुछ लोग तो यहाँ तक बोलते हैं कि , पहले जैसे साधु-संत नहीं हैं।

भगवान श्री रामजी के गुरु महर्षि वशिष्ठ जी स्वयं श्रीयोगवाशिष्ठ महारामायण में उनसे कहते हैं कि , " हे रामजी ! मैं बाजार से गुजरता हूँ तो मूर्ख लोग मेरे लिए क्या-क्या बोलते हैं मैं सब जानता हूँ...पर मेरा दयालु स्वभाव है , इससे मैं सबको क्षमा कर देता हूँ । "

अब इस पर वे लोग क्या कहेंगे  !!? 



🚩त्रेतायुग में भी भगवान रामजी जिनको पूजते थे उनको भी जनता ने नही छोड़ा... तो आज तो कलियुग है । लोगों की मति-गति छोटी है । इसलिए साधु-संतों की निंदा करेंगे और उनके भक्तों को अंधभक्त ही बोलेंगे ।


🚩आइये आपको कुछ उदाहरण सहित बताते हैं कि पहले जो महापुरुष हो गए उनकी कैसी निंदा हुई और उनके स्वधाम गमन के बाद उन्हें कैसे लोग पूजते गए…


🚩स्वामी विवेकानंदजी पर अत्याचार :  ईसाई मिशनरियों तथा उनकी कठपुतली बने प्रताप मजूमदार द्वारा दुश्चरित्रता, स्त्री-लम्पटता, ठगी, जालसाजी, धोखेबाजी आदि आरोप लगाकर अखबारों आदि के द्वारा बहुत बदनामी की गई ।


🚩परिणाम : काफी समय तक उनकी जो निंदाएँ चल रही थी उनका प्रतिकार उनके अनुयायियों ने भारत में सार्वजनिक सभाएँ आयोजित करके किया और अंत में स्वामी विवेकानंदजी के पक्ष की ही विजय हुई । (संदर्भ : युगनायक विवेकानंद, लेखक – स्वामी गम्भीरानंद, पृष्ठ 109, 112, 121, 122)


🚩महात्मा बुद्ध पर अत्याचार : सुंदरी नामक बौद्ध भिक्षुणी के साथ अवैध संबंध एवं उसकी हत्या के आरोप लगाये गये और सर्वत्र घोर दुष्प्रचार हुआ ।


🚩परिणाम : उनके शिष्यों ने सुप्रचार किया । कुछ समय बाद महात्मा बुद्ध निर्दोष साबित हुए । लोग आज भी उनका आदर-सम्मान करते हैं । (संदर्भ : लोक कल्याण के व्रती महात्मा बुद्ध, लेखक – पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, पृष्ठ 25)


🚩संत कबीरजी पर अत्याचार : अधर्मी, शराबी, वेश्यागामी आदि कई घृणित आरोप लगाये गये और बादशाह सिकंदर के आदेश से कबीरजी को गिरफ्तार किया गया और कई प्रकार से सताया गया ।


🚩परिणाम : अंत में बादशाह ने माफी माँगी और शिष्य बन गया ।(संदर्भ : कबीर दर्शन, लेखक – डॉ. किशोरदास स्वामी, पृष्ठ 92 से 96)


🚩संत नरसिंह मेहताजी पर अत्याचार : जादू के बल पर स्त्रियों को आकर्षित कर उनके साथ स्वेच्छा से विहार करने के आरोप लगाकर खूब बदनाम व प्रताड़ित किया गया ।


🚩परिणाम : नरसिंह मेहताजी निर्दोष साबित हुए । आज भी लाखों-करोड़ों लोग उनके भजन गाकर पवित्र हो रहे हैं । (संदर्भ : भक्त नरसिंह मेहता, पृष्ठ 129, प्रकाशन – गीताप्रेस)


🚩स्वामी रामतीर्थ पर अत्याचार : पादरियों और मिशनरियों ने लड़कियों को भेजकर दुश्चरित्र सिद्ध करने के षड्यंत्र रचे और खूब बदनामी की । जान से मार डालने की धमकी एवं अन्य कई प्रताड़नाएँ दी गई ।


🚩परिणाम : स्वामी रामतीर्थजी के सामने बड़ी-बड़ी मिशनरी निरुत्तर हो गई। उनके द्वारा प्रचारित वैदिक संस्कृति के ज्ञान-प्रकाश से अनेकों का जीवन आलोकित हुआ । (संदर्भ : राम जीवन चित्रावली, रामतीर्थ प्रतिष्ठान, पृष्ठ 67 से 72)



🚩संत ज्ञानेश्वर महाराज पर अत्याचार : कई वर्षों तक समाज से बहिष्कृत करके बहुत अपमान व निंदा की गयी । इनके माता-पिता को 22 वर्षों तक कभी तृण-पत्ते खाकर और कभी केवल जल या वायु पीके जीवन-निर्वाह करना पड़ा । ऐसी यातनाएँ ज्ञानेश्वरजी को भी सहनी पड़ी ।


🚩परिणाम : लाखों-करोड़ों लोग आज भी संत ज्ञानेश्वर जी द्वारा रचित ‘ज्ञानेश्वरी गीता’ को श्रद्धा से पढ़-सुन के अपने हृदय में ज्ञान-भक्ति की ज्योति जगाते हैं और उनका आदर-पूजन करते हैं । (संदर्भ : श्री ज्ञानेश्वर चरित्र और ग्रंथ विवेचन, लेखक – ल.रा. पांगारकर, पृष्ठ 32, 33, 38)

🚩भक्तिमती मीराबाई पर अत्याचार : चरित्रभ्रष्टता का आरोप लगाया गया । कभी नाग भेजकर तो कभी विष पिला के, कभी भूखे शेर के सामने भेजकर तो कभी तलवार चला के जान से मारने के घृणित कुत्सित प्रयास हुए ।


🚩परिणाम : जान से मारने के सभी प्रयास विफल हुए । मीराबाई के प्रति लोगों की सहानुभूति बढ़ती गई । उनके गाए पदोें को पढ़-सुनकर एवं गा कर आज भी लोगों के विकार मिटते हैं, भक्ति बढ़ती है ।


🚩वर्तमान में भी शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वतीजी, स्वामी नित्यानंदजी, स्वामी केशवानंदजी, श्री कृपालुजी महाराज, संत आशारामजी बापू, साध्वी प्रज्ञा सिंह, फलहारी बाबा आदि हमारे संतों को षड्यंत्र में फँसाकर झूठे आरोप लगा के गिरफ्तार किया गया, प्रताड़ित किया गया, अधिकांश मीडिया द्वारा झूठे आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया परंतु जीत हमेशा सत्य की ही होती रही है और होगी ।


🚩इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा , कि सच्चे संतों व महापुरुषों की जय-जयकार होती रही है और आगे भी होती रहेगी । दूसरी ओर निंदकों की दुर्गति होती है और समाज उन्हें घृणा की दृष्टि से ही देखता है । अतएव समझदारी इसी में है कि हम संतों का आदर करके या उनके आदर्शों को अपनाकर लाभ न ले सकें तो कोई बात नहीं...

अरे कम-से-कम उनकी निंदा कर / सुन कर या उनके प्रति लोगों की श्रद्धा-विश्वास को तोड़कर समाज का अहित और अपने पुण्य व शांति का नाश करके अपनी 21 पीढ़ियों को नर्क में धकेलने से तो बचें ।


🚩सनातन धर्म के संतों ने जब-जब व्यापकरूप से समाज को जगाने का प्रयास किया है, तब-तब उनको विधर्मी ताकतों के द्वारा बदनाम करने के लिए षड्यंत्र किये गये हैं । जिनमें वे हिन्दू समाज और कुछ पथभ्रष्ट व तथाकथित हिन्दू धर्म गुरुओं को भी मोहरा बनाकर हिन्दू संतों के खिलाफ दुष्प्रचार करने में सफल हो जाते हैं ।


🚩यह हिन्दुओं की दुर्बलता है , कि वे विधर्मियों के चक्कर में आकर अपने ही संतों की निंदा सुनकर विधर्मियों की हाँ में हाँ करने लग जाते हैं और उनकी हिन्दू धर्म को नष्ट करने की गहरी साजिश को समझ नहीं पाते...या शायद समझना चाहते ही नहीं  !!!


🚩अब हम इसे हिन्दुओं का भोलापन तो बिल्कुल भी नहीं सकते हैं।

निश्चित रूप से यह अपने धर्म के प्रति अपने उत्तरदायित्व से कन्नी काटना और पलायनवादी स्वभाव है। ऐसे अकर्मण्य हिन्दू ऐसे ही मामलों में अक्सर सहिष्णुता की चादर ओढ़कर खुद की जान छुड़ाने की कोशिश करते देखे जाते हैं और खुद के हितैषी महापुरुषों और संतजनों पर आरोप मढ़कर विधर्मियों द्वारा महिमामंडित होकर आराम से बच निकलते हैं।



🚩आज के समय में तो यह एक बेहद संवेदनशील और गंभीर विषय है।

क्योंकि गीतकार ने स्वयं कहा है..." यतो धर्मः ततो जयः..."

हमें उसी डाल को तो कम से कम नहीं काटना चाहिए, कि जिसपर खुद बैठे हों। हमें हमारे शास्त्र में वर्णित यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि,... " धर्मो रक्षति रक्षितः "


🚩अतः अब भी समय है...हिन्दू सावधान हो जाएं !!



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Sunday, May 21, 2023

इतिहास में मुगलों को पढ़ाया गया,लेकिन उनको पराजित करने वाले वीर योद्धाओं को भुला दिया गया...

21  May 2023

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🚩भारत माता के सपूत महान वीर योद्धा भारत के महान स्वाधीनता सेनानी महाराणा प्रताप और महावीर छत्रसाल की जयंती तिथि अनुसार 22 मई 2023 को हैं।


🚩महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया विक्रम संवत 1597 में हुआ था।


🚩महावीर छत्रसाल का जन्म बुंदेला क्षत्रिय परिवार में हुआ था और वे ओरछा के रुद्र प्रताप सिंह के वंशज थे। छत्रसाल के पिता चम्पतराय बुन्देला जब समर भूमि में जीवन-मरण का संघर्ष झेल रहे थे,उन्हीं दिनों ज्येष्ठ शुक्ल 3 संवत 1707 को ककर कचनाए ग्राम के पास स्थित विन्ध्य-वनों की मोर पहाड़ियों में वीर छत्रसाल का जन्म हुआ था।



🚩महाराणा प्रताप वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया और हिंदुस्थान के पुरे मुगल  साम्राज्य को घुटनो पर ला दिया था।


🚩महाराणा प्रताप वीर,प्रतापी,देशभक्त और शत्रुओं के छक्के छुड़ाने वाले थे।


🚩महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो था और लंबाई 7 ‘5” फिट थी,वे दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे।


🚩हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप  के 20,000 सैनिकों ने अकबर के 80,000 सैनिकों को भगा दिया था।


🚩महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन को काट डालते थे।


🚩अकबर महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल से इतना घबरा गया था, कि वह सपने में भी महाराणा प्रताप का नाम लेकर कांपने लगता था।


🚩महाराणा प्रताप आज भी अमरता के गौरव तथा मानवता के विजय सूर्य है। एक सच्चे शूरवीर ,महान पराक्रमी, देशभक्त ,वीर योद्धा ,मातृ भूमि के रखवाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदैव के लिए अमर हो गए।


🚩महाराणा प्रताप ने मुगलों को कईं बार युद्ध में हराया और हिंदुस्थान के पुरे मुगल साम्राज्य को घुटनो पर ला दिया था।


🚩महाराजा छत्रसाल भारत के मध्ययुग के एक महान प्रतापी योद्धा थे, जिन्होने मुगल शासक औरंगज़ेब को युद्ध में पराजित करके बुन्देलखण्ड में अपना राज्य स्थापित किया था।


🚩महावीर छत्रसाल को 5 वर्ष की आयु में ही युद्ध कौशल की शिक्षा हेतु अपने मामा साहेबसिंह धंधेरे के पास देलवारा भेज दिया गया था। अपने पराक्रमी पिता चंपतराय बुन्देला की मृत्यु के समय वे मात्र 12 वर्ष के ही थे। माता-पिता के निधन के कुछ समय पश्चात ही वे बड़े भाई अंगद बुन्देला के साथ देवगढ़ चले गये। बाद में अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए छत्रसाल बुन्देला ने परमार वंश की कन्या देवकुंअरि से विवाह किया।


🚩औरंगजेब छत्रसाल को पराजित करने में सफल नहीं हो पाया। उसने रणदूलह के नेतृत्व में 30 हजार सैनिकों की टुकडी मुगल सरदारों के साथ छत्रसाल का पीछा करने के लिए भेजी थी। छत्रसाल अपने रणकौशल व छापामार युद्ध नीति के बल पर मुगलों के छक्के छुड़ाते रहे। छत्रसाल को मालूम था कि मुगल छलपूर्ण घेराबंदी में सिद्धहस्त हैं। उनके पिता चंपतराय मुग़लों से धोखा खा चुके थे। छत्रसाल ने मुगल सेना से इटावा, खिमलासा, गढ़ाकोटा, धामौनी, रामगढ़, कंजिया, मडियादो, रहली, मोहली, रानगिरि, शाहगढ़, वांसाकला सहित अनेक स्थानों पर लड़ाई लड़ी। छत्रसाल की शक्ति बढ़ती गयी। बन्दी बनाये गये मुगल सरदारों से छत्रसाल ने दंड वसूला और उन्हें मुक्त कर दिया। बुन्देलखंड से मुगलों का शासन छत्रसाल ने समाप्त कर दिया।


🚩ऐसे महान वीरों से भरी पड़ी है भारत भूमि , जब जब भी भारत में विधर्मियों ने आतंक फैलाया तब तब महाराणा प्रताप और महावीर छत्रसाल जैसे महान देशभक्तों ने देश की रक्षा की।


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Saturday, May 20, 2023

रूस के मनोचिकित्सक बने हिंदू, 80 देशों के 15 हजार लोग ले चुके हैं दीक्षा

20  May 2023

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🚩हिंदू धर्म विश्व का सबसे पुराना धर्म है। इसको सनातन धर्म भी कहते हैं। इसके विचारों और संस्कृति से दुनिया में कई लोग बहुत प्रभावित रहे हैं। इसकी शांति और अहिंसा जैसे तत्वों को दुनिया भर में अपनाने वाले लोगों की संख्या लाखों में है। लेकिन कई ऐसे लोग भी हैं जो बाकायदा इस धर्म से प्रभावित होकर इसकी दीक्षा ले लेते हैं। हर साल हिंदू धर्म अपनाने वाले लोगों में बहुत से बुद्धिजीवी भी शामिल होते हैं। 


🚩रूस के मनोचिकित्सक (Psychiatrist) एंटोन एंड्रीव (Anton Andreev) हिंदू बन गए हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में तंत्र दीक्षा लेकर हिंदू धर्म अपनाया है। कई वर्षों की कोशिशों के बाद एंड्रीव तंत्र दीक्षा पूरी कर पाए हैं। काशी के शिवाला स्थित वाग्योग चेतना पीठम में गुरुवार (18 मई 2023) को खास अनुष्ठान आयोजित किया गया। इस दौरान एंटोन को गुरु मंत्र के साथ नया नाम ‘अनंतानंद नाथ’ मिला। उन्हें कश्यप गोत्र मिला है।


🚩सेंटपीट्सबर्ग में रहने वाले मनोचिकित्सक एंटोन एंड्रीव को शुरुआत से ही हिंदू संस्कृति से लगाव था। उन्होंने तंत्र विद्या की अदृश्य शक्तियों के बारे में पढ़ा था। उन्हें भी कुंडलिनी जागृत कर तंत्र विद्या प्राप्त करने की इच्छा हुई। काफी रिसर्च के बाद एंटोन को वाराणसी के वागीश शास्त्री के बारे में जानकारी मिली। जनवरी 2015 में एंटोन भारत आए और वागीश शास्त्री से तंत्र विद्या की शिक्षा लेने की इच्छा जताई। एंटोन इस दौरान जरूरी मानकों को पूरा नहीं कर पाए और कुंडलिनी जागृत नहीं हो सकी। इसके बाद वे रूस लौट गए।



🚩एंटोन साल 2016 में दोबारा भारत पहुँचे। उनकी कक्षाएँ पूरी नहीं हो सकीं। साल 2022 में गुरु वागीश शास्त्री का निधन हो गया। 25 अप्रैल 2023 को एंटोन अपनी इच्छा लिए पंडित आशापति शास्त्री के पास पहुँचे। यहाँ उन्होंने कुंडलिनी जागृत करने की शिक्षा ली। 10 दिनों के अभ्यास और 5 दिनों के स्वतंत्र ध्यान के दौरान एंड्रीव ने माँ तारा शक्ति (माता काली का एक रूप) का ध्यान किया।


🚩मीडिया रिपोर्टों के अनुसार एंटोन एंड्रीव ने पंडित आशापति से आगे की शिक्षा लेने की इच्छा जाहिर की। पंडित आशापति ने उन्हें अपने इष्ट देव का ध्यान करने के लिए कहा। कई घंटों के ध्यान के बाद तारापीठ में उन्हें देवी की छाया का आभास हुआ। पंडित आशापति ने आगे की गोपनीय बातों की जानकारी नहीं दी। पंडित आशापति के अनुसार आध्यात्मिक रूप से तैयार होने के बाद रूस के मनोचिकित्सक को गुरु दीक्षा दी गई।


🚩पंडित आशापति बताते हैं कि तंत्र विद्या प्राप्त करने के लिए कुंडलिनी जागृत करना आवश्यक है। अलग-अलग लोगों को कुंडलिनी जागृत करने में अलग-अलग समय लगता है। कुछ लोग इसे 10 दिन में जागृत कर लेते हैं तो कुछ को सालों का अभ्यास करना पड़ता है। कुंडलिनी जागृत करने का अर्थ यह नहीं है कि अब वह व्यक्ति सर्वशक्तिमान हो गया है। इसका अर्थ है कि अब वह व्यक्ति तंत्र साधना के लिए तैयार है।


🚩पंडित आशापति शास्त्री की मानें तो दीक्षा लेने वालों में रूस और यूक्रेन के लोगों की संख्या सबसे अधिक है। मुस्लिम और अन्य क्रिश्चियन देशों के भी लोग गुरुदीक्षा लेते रहते हैं। उन्होंने बताया कि मठ से अब तक 80 देशों के 15 हजार विदेशी शिष्य दीक्षा ले चुके हैं।


🚩हिंदू संस्कृति के प्रति विश्वभर के महान विद्वान की अगाध श्रद्धा अकारण नहीं रही है। इस संस्कृति की उस आदर्श आचार संहिता ने समस्त वसुधा को आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति से पूर्ण किया, जिसे हिन्दुत्व के नाम से जाना जाता है।


🚩हिन्दू धर्म का यह पूरा वर्णन नही है इससे भी कई गुणा ज्यादा महिमा है क्योंकि हिन्दू धर्म सनातन धर्म है इसके बारे में संसार की कोई कलम पूरा वर्णन नही कर सकती । आखिर में हिन्दू धर्म का श्लोक लिखकर विराम देते हैं।


🚩सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः


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Friday, May 19, 2023

सिनेमा, वेब सीरीज आदि में मनोरंजन द्वारा हिंदू धर्म पर किया जा रहा है कुठाराघात

19  May 2023

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🚩सनातनी चेतना को खंडित करने के षड्यंत्र के अंतर्गत घात लगाकर हिन्दू समाज पर प्रहार किया जा रहा है। सनातनी वंशजों के मन मस्तिष्क को प्रभावित किया जा रहा है। आधुनिक युग के विस्मयकारी मोहित करने वाले वस्त्र में छुपा कर सनातनी संस्कृति की चेतना में विषयुक्त सुई निरंतर चुभोई जा रही है। जिससे धीमा-धीमा विष सारी सनातनी चेतना को जड़वत कर दे एवं घाव कभी न भर सके। अंततः प्रहार का प्रतिकार करने की योग्यता ही समाप्त कर दी जाए।

 

🚩इस षड्यंत्र में प्रहार के भिन्न-भिन्न रूप हैं। सबसे प्रमुख मनोरंजन जगत का घात है। सिनेमा आधुनिक जगत का विलासितापूर्ण उपभोग का साधन है। यह हमारे नाट्य कला एवं मंचन विधा से पूर्णता भिन्न है। आधुनिक सिनेमा भारतीय नाट्य कला एवं मंचन विधा का विकल्प कदापि नहीं हो सकता, क्योकि भारतीय कला एवं मंचन विधा के उद्देश्य, गुणसूत्र, नियम, आचार विहार, सैद्धांतिक मूल्य सभी कुछ भिन्न हैं।

 

🚩सिनेमा प्रमुख रूप से चार प्रकार के उत्पादों से जनमानस के विचार को प्रभावित करता है। 1. चलचित्र 2. धारावाहिक 3. विज्ञापन 4. आभासी लोक के मकड़जाल से निकले: यूट्यूब, प्राइम चैनल्स, नेटफिल्क्स आदि। सिनेमा के इन सभी माध्यमों का अपना अपना बड़ा दर्शक वर्ग है। बारम्बार एक ही प्रकार के विचार का दृश्यांकन हमारे मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालते हैं। हमारी दैनिक दिनचर्या, अचार-विचार में वह विशेष विचार प्रतिबिम्बित होने लगता है।

 


🚩एक प्रचलित कहावत है कि सिनेमा समाज का आइना होता है। सामान्य समझ से कहे तो समाज में जो होता है सिनेमा वो ही दिखाता है। परन्तु इस कहावत का प्रभाव ठीक इसके उल्टा है। यहाँ हमे यह समझने की आवश्कयता है कि प्रतिबिम्ब आभासी होता है न की वास्तविक। यह कहावत कुशलता के साथ प्रचारित की गई, जिससे आप विरोधियों द्वारा दिए गए झूठे विचार को सच्चाई समझकर, उसे ही सत्य समझे। आभास एवं वास्तविकता के मध्य दूरी सुप्त दृष्टि से देखने पर अदृश्य लगती है, परन्तु जागृत दृष्टि से देखने पर दोनों का भेद स्पष्ट रूप से समझ आता है।

 

🚩सिनेमा एक माध्यम मात्र है उसे संचालित एवं प्रभावित करने वाली शक्तियों में हिन्दू विरोधी, देश विरोधी तत्व बैठे हैं। वे सिनेमा के दर्पण को झूठे प्रतिबिम्ब खड़े करने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। उन्ही झूठे प्रतिबिम्बों को हम हमारे समाज का प्रतिबिम्ब बता रहे हैं। यह अत्यंत जटिल षड्यंत्र है, जो हिन्दू समाज के मूल्यों को नष्ट करने के लिए रचा जा रहा है।

 

🚩चलचित्र में कथा, नायक, नायिका एवं खलनायक मूल स्तंभ होते हैं। आप स्वयं निरीक्षण कीजिए सिनेमा के प्रारंभिक काल से वर्तमान समय तक आए परिवर्तन का, तब से अब तक आधुनिकता के आवरण में छुपा कर किस प्रकार सनातनी मूल्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया है।


🚩सिनेमा जगत में हिंदुओ को भ्र्ष्टाचार में लिप्त ओर विधर्मियों को सेवाभावी बताया है,विदेशियों की फंडिंग से भारत में हिन्दू विरोधी फिल्मों को बनाया जाता रहा है कभी PK,तो कभी काली तो कभी पठान जैसी हिन्दू धर्म विरोधी फिल्में बनाई जाती आ रही है,ऐसी फिल्मों को सनातनी हिंदुओ को पुरजोर विरोध करते रहना चाहिए।

 

🚩परिवर्तन प्रकृति का नियम है। लेकिन परिवर्तन के नाम पर अपनी मूल पहचान एवं मूल्यों से समझौता कैसे किया जा सकता है। मूल पहचान एवं सनातनी मूल्यों को उसके मूल स्वरुप में ही अगली पीढ़ी को सौंपना हमारा दायित्व है। लिहाजा, कुछ उदाहरणों से समझते हैं कि कैसे मनोरजंन के नाम पर हमारे मूल्यों को निशाना बनाया जा रहा है।

 

🚩धारावाहिक: ये जादू है जिन्न का

 

🚩दृश्यांकन: शर्मा जी के लड़के का मित्र बंटी नायिका को छेड़ता है। हिंसा करने के उद्देश्य से उस पर धावा करता है। उसका पीछा करता है। परन्तु नायक आकर उससे बचा लेता है।

 

🚩सवाल: जब पूरा धारावाहिक एक विशेष पंथ की पृष्ठभूमि (जो की हिन्दू नहीं है) पर आधारित है, जिसमें हिन्दू का दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं। उसमें ‘शर्मा जी का लड़का’ चरित्र क्यों लेना पड़ा, वह भी नकारात्मक भूमिका से बंधा हुआ।

 

🚩साजिश: ब्राह्मण जाति को नकारात्मक दिखाना, एक विशेष पंथ को सकारात्मक दिखाना।

 

🚩धारावाहिक: कहाँ तुम, कहाँ हम

 

🚩दृश्यांकन: एक पागल प्रेमी विवाहित नायिका को अपना बनाने के लिए षड्यंत्र करता है। उस पागल प्रेमी का नाम ‘महेश’ है। उसके कंठ में रुद्राक्ष एवं हाथ पर ॐ का गोदना है। नायिका का मैनेजर जिसका नाम ‘अखिल खान’ है, वह स्त्रियों के साथ सभ्य आचरण करता हुआ दिखाया जाता है। वह एक वाक्य बोलता है “क्या करे अब पंजाबी मॉम को मुस्लिम डैड से प्यार हो गया तो इसलिए ऐसा नाम “अखिल खान”। एक हिन्दू अविवाहित युवती, एक विवाहित युवक के साथ अनैतिक सम्बन्ध रखती है।


🚩सवाल: पागल प्रेमी का नाम हिन्दुओं के देव महादेव के नाम पर ही क्यों रखा गया? उसे हिन्दू चिह्नों से चित्रित क्यों किया गया? अंतरपंथीय विवाह के रूप में, पागल प्रेमी की साधारण कहानी में लव जिहाद को प्रचारित क्यों किया गया? जौहर एवं सतीत्व वाली पतिव्रता स्त्री शक्ति के राष्ट्र में, एक हिन्दू युवती को ही क्यों अनैतिक सम्बन्ध में दिखाया गया? अगर आप इतने ही पंथनिरपेक्ष हैं तो वह लड़की “ग़ैर” हिन्दू क्यों नहीं हो सकती, जबकि एक समुदाय में एक साथ 4-4 बीबी रखने का रिवाज है।

 

🚩साजिश: लव जिहाद को प्रसारित करना। महादेव के प्रति हिन्दू आस्था पर प्रहार करना। हिन्दू कन्याओं के सनातनी मूल्यों पर प्रहार करना।

 

🚩धारावाहिक: बेहद

 

🚩दृश्यांकन: एक बड़ा हिन्दू व्यवसायी जो माँ दुर्गा का भक्त है, कम से कम 4-5 लड़कियों का शारीरिक शोषण करता है। एक श्री कृष्ण की भक्त, हिन्दू व्यवसायी द्वारा शोषित हिन्दू नायिका प्रतिशोध लेने के लिए षड्यंत्र करती है। नायिका हर अपराध का षडयंत्र रचते समय, गीता के श्लोक बोल कर स्वयं को सही जताने की कोशिश करती है। श्री कृष्ण की शनि देव जैसी काली प्रतिमा का पूजन मोमबत्ती से करती है। उस बड़े हिन्दू व्यवसायी से प्रतिशोध लेने के लिए, नायिका उसी के बड़े बेटे के साथ षड्यंत्र के अंतर्गत विवाह करती है और सच्चे प्रेम को दर्शाती है। बाद में उस हिन्दू व्यवसायी और नायिका के दृश्य, बहु एवं ससुर की भॉंति तो सहज नहीं होते। नायिका अपने देवर को भी प्रेम पाश में बाँधती है, उसे आत्महत्या पर विवश करती है। हिन्दू व्यवसायी की पत्नी सब कुछ जानती है, लेकिन उसके लिए मात्र पैसा और रुतबा मायने रखता है। हिन्दू व्यवसायी का सबसे विश्वासपात्र एक “ग़ैर” हिन्दू नाम वाला “आमिर” है।

 

🚩सवाल: हलाला जैसे प्रथा की पृष्ठभूमि वाली कहानी को हिन्दू आवरण क्यों पहनाया गया? गैर हिन्दू नाम “आमिर” ही विश्वासपात्र क्यों लिया गया? सतीत्व वाली पतिव्रता स्त्री एवं यशोदा माँ जैसे स्त्री शक्ति के राष्ट्र में, एक हिन्दू माँ एवं स्त्री को क्यों इतना “रुतबा” प्रेमी दिखाया गया, जो अनैतिक सम्बन्ध भी स्वीकार कर लेती है? श्री कृष्णा का पूजन दीपक के स्थान पर मोमबत्ती से कब से होने लगा, ये तो ग़ैर हिन्दू, जो क्रॉस को मानते हैं उनकी रीति है। यौन शोषक माँ दुर्गा का भक्त क्यों?

 

🚩साजिश: हलाला प्रथा की स्वीकारोक्ति बढ़ाना, हिन्दू मूल्यों के प्रति झूठ प्रचारित करना। माँ दुर्गा, श्री कृष्णा के प्रति हिन्दू आस्था पर प्रहार करना। हिन्दू स्त्रियों के सनातनी मूल्यों पर प्रहार करना। “आमिर” के समुदाय को सकारात्मक दिखाना।

 

🚩धारावाहिक: गुड्डन तुमसे ना हो पायेगा

 

🚩दृश्यांकन: फिल्म का अधेड़ नायक 18 वर्ष की एक कन्या का पिता है, लेकिन एक 21 वर्ष की नायिका से विवाह करता है। एक और अधेड़ हिन्दू चरित्र कलवा और रुद्राक्ष माला हाथ में पहन मदिरा पान करता है। नायक की 18 वर्षीया बेटी अपने ही परिवार के विरोध षड्यंत्र करती है। पिता के अधेड़ मित्र पर रेप का आरोप लगाकर उससे विवाह रचाती है। घर पर पत्रकार बुला कर परिवार का तिरस्कार करती है।

 

🚩सवाल: अपवाद को छोड़े तो सामान्य परिस्थिति में इतनी आयु अंतर का विवाह हिन्दू धर्मानुसार कदापि नहीं है। एक “ग़ैर” हिन्दू समुदाय विशेष में 12-13 वर्ष की बच्ची के साथ निकाह का प्रचलन जरूर है। हिन्दू चिह्नों के साथ नकारात्मक किरदार क्यों, जबकि हिन्दू नायक कभी ऐसे चिह्नों के साथ नहीं दिखता।

 

🚩साजिश: हिन्दू समाज और मूल्यों पर प्रहार करना। अतार्किक अनुपयुक्त अस्वीकार्य आयुभेद के विवाह का हिन्दू समाज में प्रचार करना।

 

🚩धारावाहिक: पटियाला बेब्स

 

🚩दृश्यांकन: पंजाबी पृष्ठभूमि की कहानी है। एक स्त्री को उसका पति धोखा देता है। विदेश में दूसरा विवाह कर लेता है। सम्बन्ध विच्छेद होता है, वो फिर स्वाभिमान से खड़ी होती है। इसमें एक नइबी नामक “ग़ैर” हिन्दू पड़ोसी दादी का चरित्र है। वह स्वभाव से बहुत अच्छी है और हरसंभव सहायता करती है। जबकि अपनी हिंदू सास पुत्र मोह में साथ देने में विलंब करती है। मोहल्ले की अन्य हिन्दू स्त्रियॉं भी नायिका पर ताने मारती रहती हैं।

 

🚩सवाल: जब पंजाबी पृष्ठभूमि की कहानी है, तो उसमे नइबी नामक “ग़ैर” हिन्दू चरित्र क्यों गढ़ा गया?

 

🚩साजिश: हिन्दू अवचेतन मस्तिष्क में “ग़ैर” हिन्दू चरित्र को सकारात्मकता के साथ जोड़ना।

 

🚩धारावाहिक: नाटी पिंकी की लम्बी लव स्टोरी

 

🚩दृश्यांकन: एक ब्राह्मण समाज का अध्यक्ष जो हर क्षण मर्यादा सम्मान की बात करता है, अपने परिवार की किसी भी स्त्री को अधिकार नहीं देता। यहाँ तक की अपनी माँ को भी नहीं। परिवार की स्त्रियों से अपेक्षा रखता है कि वो हमेशा एक प्रकार के बॅंधे हुए आचरण में ही जिए। अपनी बेटी का विवाह अपनी जाति के एक अवैध सम्बन्ध रखने वाले लालची परिवार के लड़के से करता है। अपनी बड़ी स्वर्गवासी बेटी को घर से निकालदेता है, जब वो एक दूसरी जाति के मद्रासी लड़के से प्रेम विवाह कर लेती है, कभी नहीं अपनाता।

 

🚩सवाल: इसकी पृष्ठभूमि ब्राह्मण ही क्यों चुनी गई। क्या सामाजिक सम्मान “ग़ैर” ब्राह्मण या “ग़ैर” हिन्दू समुदाय में प्रतिष्ठा विषय नहीं होता। मद्रास में ब्राह्मण नहीं होते हैं क्या। “ग़ैर” हिन्दू पंथ में जहाँ फ़ोन पर सन्देश से ही तलाक दे दिया जाता है, उस पर चुप्पी क्यों। यहाँ तक की बहु बेगम धारवाहिक में दो निकाह को भावुकता के आवरण से सिद्ध किया गया है।

 

🚩साजिश: ब्राह्मण समाज को नकारात्मक रूप में दिखाना। उत्तर भारत–दक्षिण भारत में जाति के नाम पर द्वेष बढ़ाना। पितृसत्ता का भ्रम बनाना।

 

🚩धारावाहिक: दिल जैसे धड़के धड़कने दो

 

🚩दृश्यांकन: देवगुरु नामक चरित्र देवी को तलाश रहा। उसे अपनी देवी एक छोटी बच्ची में मिलती है। वह देवी मंत्र का छाती पर गोदना बनाकर घूमता है। एक चालाक स्त्री उसकी अनुयायी है, जो दान का दुरुपयोग करती है। उसके अधिकतर भक्त पढ़े लिखे उच्च पद के लोग हैं। देवगुरु मासिकस्त्राव वाली स्त्री को पारम्परिक नियमों को तोड़ने के लिए बढ़ावा देता है। एक मित्र उस देवगुरु को मानसिक बीमार मानता हैं। देवगुरु छोटी बच्ची को सन्यांसी देवी बनाने को आतुर है। छोटे बच्चों का एक जोड़ा ऐसे दर्शाया जा रहा है जैसे बचपन से प्रेम का अंकुर फूट रहा है।

 

🚩सवाल: देवगुरु का चरित्र सद्गुरु से मिलता जुलता ही क्यों लिया गया। हमारे तप साधना के नियम, अचार विहार आदि को इतने निम्न स्तर पर चालाकी से दिखाया गया कि ज्ञान के आभाव में दर्शक उन्हें ही सत्य मान ले। बालरूप में देवी बनाने की प्रथा जो अब समाप्त हो चुकी है उसे क्यों दिखाया जा रहा है, उस परंपरा के मूल सिद्धांत को समझे बिना ही। बच्चों के जोड़े में भाई बहन का प्रेम क्यों नहीं दिखाया जा सकता? हिन्दू मंत्रों के उच्चारण का नियम तरीका होता है, उन्हें “पॉप” गीत की भॉंति क्यों बजाना?

 

🚩साजिश: हिन्दू संत गुरुजन को मानसिक बीमार दिखाना। चालक चोर या राजनीति करनेवाला बता कर हिन्दू समाज में भ्रम बढ़ाना। भारतीय मूल्यों–परम्पराओं को उल्टा-सीधा प्रस्तुत कर उनका महत्व कम करना।

 

🚩ये तो महज कुछ उदाहरण हैं सनातनी समाज की चेतना पर घात करने के। इस मानसिक युद्ध का प्रतिकार बेहद जरूरी है, क्योंकि हमारे हिन्दू समाज के एक अत्यंत छोटे धड़े में इसके लक्षण स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं। नासूर बनने से पूर्व ही समय पर इसकी चिकित्सा अत्यंत आवश्यक है। लेखक : चैतन्य हिन्दू


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