Saturday, June 17, 2023

बॉलीवुड के दूषित गर्भ से एक और अपमानजनक फ़िल्म का जन्म हुआ है, जिसका नाम आदिपुरूष है....

17 June 2023

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🚩भारत देश की सिनेमा इंडस्ट्री अर्थात बॉलीवुड के दोगलेपन से हम सब काफी समय से वाकिफ हैं। कला के नाम पे, ये अनगिनत अपमानजनक सामग्री बना कर बेच चुके हैं, ठीक वैसे ही जैसे किसी ने अपनी मर्यादा बेच दी हो। दूर से चमचमाता हुआ,ये कालसर्पी गटर बड़ा ही आकर्षक लगता है। बहुत ही गिने चुने व्यक्ति हैं, जो सामाजिक दृश्य की सही प्रस्तुति करते हैं, अपनी सिनेमा में । बॉलीवुड के दूषित गर्भ से एक और अपमानजनक फ़िल्म का जन्म हुआ है, जिसका नाम आदिपुरूष है।



🚩जी हाँँ, हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के शौर्य और शिक्षा को अमर्यादित रूप से प्रस्तुत करने की कोशिश हैं । माता सीता की झलक ऐसी दिखाई गई है जैसे पुराने फिल्मों की मधुबाला । राम भक्त श्री हनुमान जी की भक्ति और तप का उपहास और शिव भक्त प्रकांड पंडित रावण की भी भर्त्सना की गई है।


🚩हनुमान चालीसा में ही अंजनीपुत्र के स्वरूप का वर्णन श्री तुलसीदास जी ने किया है। वो पंक्तियाँ हैं:

कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥ अर्थ- आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।हाथबज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥5॥अर्थ- आपके हाथ में बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।


🚩इस फ़िल्म में दर्शाए गए हनुमान जी के चरित्र का इससे दूर-दूर तक कोई सामंजस्य नहीं दिखता। विपरीत रूप में उन्हें चमड़े के वस्त्र और बिना गदा के दिखाया गया है।


🚩ये फ़िल्म अभी सिनेमाघरों में रिलीज हुई है, इसने सनातनी भावनाओं को आघात किया है। कला का सही मूल्य तभी है, जब वो जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए सच प्रदर्शित करे । इस फ़िल्म में ना ही श्रीराम की स्वर्णिम व्यक्तित्व की झलक मिलती है, ना हनुमान जी की प्रेमपूर्ण भक्ति। सात्विक स्वभाव के हमारे देवगणों को चमड़े के वस्त्रों में दिखाया गया हैं।


🚩वहीं पंडित रावण की वेशभूषा ऐसी प्रतीत होती है, जैसे कोई मध्यकालीन क्रूर शासक ओरंगजेब हो, जो भारत पे आक्रमण करने आया हो। रावण की स्वर्णरूपी नगरी लंका को भी एक काले खंडहर के रूप में दिखाया गया है। पुष्कप विमान की जगह किसी काले चमगादड़ को रावण की सवारी बना दी गई है। जैसा हमें ज्ञात है की शिव भक्त रावण को चारो वेद कंठस्त्य थे। शिवतांडव स्त्रोत की रचना रावण ने ही की थी। रावण अहंकारी जरूरी था, पर उतना ही ज्ञानी भी। रावण का वध तय था श्रीराम के हाथों, पर श्रीराम ने भी उसकी विद्वत्ता की सराहना की थी। रावण को तो फिल्म निर्माताओं ने छपरी हेयरकट और औरंगजेबी वेशभूषा दे दी है।


🚩ये पहली बार नहीं है,कि बॉलीवुड ने हिंदू विरोधी फिल्म कला या यह कहूँ की कलंक के नाम पर पेश की है। पिछले वर्ष ही तांडव नाम की कुप्रस्तुति की गई थी। इस फिल्म में सैफ अली खान था और इस पर बहुत बहस हुई थी। आज से कुछ वर्षो पहले आमिर खान की फिल्म पीके (PK) ने भी हिंदू समाज के गुरु की नकारात्मक छवि दिखाई थी। इसी पीके (PK) फिल्म में शिवजी के रूप का उपहास किया गया था, कहीं उन्हें मोबाइल फ़ोन पर बात करते भी दिखाया गया, सिर्फ हिंदू रीति रिवाजों का मजाक उड़ाया गया। अन्य कई फिल्में हैं, जो की लव जिहाद और हिंदू फोबिया को नॉर्मलाइज करती हैं।


🚩बॉलीवुड के गटर से निकले कुछ निर्देशक अब वेब सीरीज़ भी बनाते हैं। अलग-अलग ऑनलाइन प्लेटफार्म पे,ये गंदी वेब सीरीज़ का अंबार लगा रहे है। ठीक वैसे ही जैसे कूड़े का पहाड़ हो । ऐसी ही वेब सिरीज़ जो भारतीय संस्कृति के वार पे इस सुसंस्कृति को वासना से भर रही है। कला के नाम पे बस अश्लीतला बेची जा रही ही जाती है। नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई सुटेबल ब्वॉय में अगर एक मंदिर की मर्यादा को चोट पहुँचाने की कोशिश की गई तो वहीं नेटफ्लिक्स पर ही रिलीज़ हुई एक और फिल्म लुडो को लेकर भी सवाल उठे।


🚩इस फिल्म में चार कहानियों को एक में पिरोया गया,लेकिन अनुराग बासु अपनी एंटी हिंदू सोच का गटर यहाँ भी खोल गए। एक रिसर्च के मुताबिक:-

बॉलीवुड की फिल्मों में 58% भ्रष्ट नेताओं को ब्राह्मण दिखाया गया है। 62% फिल्मों में बेइमान कारोबारी को वैश्य सरनेम वाला दिखाया गया है। फिल्मों में 74% फीसदी सिख किरदार मज़ाक का पात्र बनाया गया। जब किसी महिला को बदचलन दिखाने की बात आती है तो 78 फीसदी बार उनके नाम ईसाई वाले होते हैं। 84 प्रतिशत फिल्मों में मुस्लिम किरदारों को मजहब में पक्का यकीन रखने वाला, बेहद ईमानदार दिखाया गया है, यहाँ तक कि अगर कोई मुसलमान खलनायक हो तो वो भी उसूलों का पक्का होता है।

🚩कट्टरपंथियों के कब्जे में फिल्म इंडस्ट्री:-कुल मिलाकर बॉलीवुड में एक खास धड़ा इसी पर काम कर रहा है, उन्हें पक्का यकीन है कि वो अगर हिंदू संस्कृति पर सवाल उठाएँगे तो ज़ाहिर है लिबरल सनातन समाज उन्हें कठघरे में नहीं खड़ा करेगा, जबकि मुस्लिम समुदाय कार्टून/कैरिकेचर बनने पर ही बवाल खड़े कर देता है। यही वजह है कि कुछ फिल्मों में हिंदू धर्म के प्रति पक्षपाती रवैया देखा गया।


🚩एक फिल्म निर्देशक का काम है सही रिसर्च करना अगर वो एक महाकाव्य पर फ़िल्म बनाने की इच्छा रखते हैं और सवाल यह है कि बॉलीवुड में सिर्फ हिंदू भावनाओं के साथ क्यों खिलवाड़ किया जाता आ रहा है। ख़ैर हमारी उम्मीद ही शायद गलत है। जिन लोगों की ख़ुद की ज़मीर ही नहीं न खुद की इज़्ज़त, वो दूसरो के धार्मिक भावनाओं का क्या ध्यान रखेंगे। समय आ गया है खुद के लिए आवाज़ उठाने का। अपनी आवाज़ बुलंद करे और पूर्ण रूप से इस अपमानजनक फिल्म का बहिष्कार करें। जब बॉलीवुड हमारे इतिहास और भावनाओं का सम्मान नही कर सकता तो उसे भी सम्मान नही मिलेगा।


🚩आदिपुरुष रिलीज होते ही दPIL दायर


🚩हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर ओम राउत की फिल्म आदिपुरुष से रावण, भगवान राम, हनुमान, माता सीता से संबंधित कुछ ‘आपत्तिजनक दृश्यों’ को हटाने की माँग की है।


🚩विष्णु गुप्त द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि फिल्म में धार्मिक चरित्रों का फिल्मांकन रामायण में किए गए चित्रण के विपरीत हैं। फिल्म के दृश्यों में हिंदू सभ्यता, हिंदू धार्मिक शख्सियतों और मूर्तियों का अपमान करते हुए धार्मिक चरित्रों को खराब स्वाद में दिखाया गया है।


🚩याचिका में कहा गया है, “हिंदुओं का भगवान राम, सीता और हनुमान की छवि के बारे में एक विशेष दृष्टिकोण है और फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों और अभिनेताओं द्वारा उनकी दिव्य छवि में किया गया बदलाव/छेड़छाड़ उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।” याचिकाकर्ता का कहना है कि इस फिल्म की वजह से देश की संस्कृति का मजाक बन रहा है।


🚩आगे कहा गया है, “महाकाव्यों में बनाई गई छवि के अनुसार हेयर स्टाइल, दाढ़ी और ड्रेसिंग को अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है। फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों और अभिनेताओं द्वारा कोई भी बदलाव निश्चित रूप से उपासकों, भक्तों और धार्मिक विश्वासियों की भावनाओं को ठेस पहुँचाएगा।”


🚩रावण को ब्राह्मण बताते हुए कहा गया है, “फिल्म में सैफ अली खान द्वारा निभाए गए रावण के किरदार का दाढ़ी वाला लुक हिंदू समुदाय की भावनाओं को आहत कर रहा है, क्योंकि ब्राह्मण रावण को गलत तरीके से भयानक चेहरा बनाते हुए दिखाया गया है, जो हिंदू सभ्यता, हिंदू धार्मिक हस्तियों एवं आदर्शों का घोर अपमान है।”


🚩याचिकाकर्ता ने कहा है कि फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों से फिल्म में ‘सुधारात्मक उपाय’ करने की माँग की गई है। इसमें कहा गया है, “आदिपुरुष फिल्म द्वारा हिंदू धार्मिक शख्सियतों का विकृत सार्वजनिक प्रदर्शन अंतरात्मा और अभ्यास की स्वतंत्रता का स्पष्ट उल्लंघन है। यह अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता का भी उल्लंघन है।”


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Friday, June 16, 2023

समान नागरिक संहिता के लिए विधि आयोग ने माँगी जनता की राय , ऐसे भेजें अपने सुझाव

16 June 2023

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🚩समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code- UCC) को लेकर विधि आयोग (Law Commission) ने एक बार फिर से लोगों सेे रायशुमारी शुरू कर दी है। इसको लेकर देश के प्रबुद्ध लोगों तथा सभी धर्मों के मान्यता प्राप्त प्रमुख धार्मिक संगठनों से उनकी राय माँगी है।


🚩विधि आयोग ने बुधवार (14 जून 2023) को कहा कि 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के बारे में मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के विचारों को जानने के लिए फिर से निर्णय लिया। आयोग ने कहा , कि जिन लोगों को इसमें रुचि है और अपनी राय देना चाहते हैं, वे राय दे सकते हैं।


🚩विधि आयोग ने कहा कि जो लोग अपनी राय रखना चाहते हैं , वे नोटिस जारी करने की तारीख के 30 दिनों के भीतर इससे संबंधित लिंक पर अपनी राय भेज सकते हैं। इसके अलावा, भारत सरकार के विधि आयोग को Membersecretary-lci@gov.in  पर ईमेल द्वारा भी राय भेज सकते हैं।


🚩कानूनी पैनल ने आगे कहा, “शुरुआत में भारत के 21वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर विषय की जाँच की थी और 7 अक्टूबर 2016 को एक प्रश्नावली दी थी। इसके साथ ही, 19 मार्च 2018 एवं 27 मार्च 2018 और 10 अप्रैल 2018 की सार्वजनिक अपील/नोटिस देकर सभी हितधारकों को अपने विचार रखने का अनुरोध किया था।”


🚩विधि आयोग ने अपने बयान में कहा , कि इस अपील पर लोगों से उन्हें भारी प्रतिक्रिया मिली थी। इसके बाद 21वें विधि आयोग ने 31 अगस्त 2018 को ‘पारिवारिक कानून में सुधार’ पर परामर्श पत्र जारी किया थी।


🚩पैनल ने कहा कि चूंकि परामर्श पत्र जारी किए हुए तीन साल से अधिक समय बीत चुका है। ऐसे में विषय की प्रासंगिकता और महत्व को ध्यान में रखते हुए तथा इस विषय पर विभिन्न अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए भारत के 22वें विधि आयोग ने इस पर पहल करना जरूरी समझा।


🚩क्या है समान नागरिक संहिता


🚩समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है, जो देश के हर समुदाय पर समान रूप लागू होता है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या पंथ का हो, सबके लिए एक ही कानून होगा। अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से जुड़े कानूनों को भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम (ICA) 1872, विशिष्ट राहत अधिनियम 1877 आदि के माध्यम से सारे समुदायों पर लागू किया, लेकिन शादी-विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति, गोद लेने आदि से जुड़े मसलों को धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया।


🚩आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुओं के पर्सनल लॉ को खत्म कर दिया, लेकिन मुस्लिमों के कानून को ज्यों का त्यों बनाए रखा। हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को निरस्त कर हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 लागू कर दिया गया। ये कानून हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख आदि पर समान रूप से लागू होते हैं।


🚩मुस्लिमों का कानून , पर्सनल कानून (शरिया), 1937 के तहत संचालित होता है। इसमें मुस्लिमों के निकाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार, संपत्ति का अधिकार, बच्चा गोद लेना आदि आता है, जो इस्लामी शरिया कानून के तहत संचालित होते हैं। अगर समान नागरिक संहिता लागू होता है तो मुस्लिमों के निम्नलिखित कानून बदल जाएँगे।


🚩गोवा में लागू है UCC


🚩देश भर में समान नागरिक संहिता को लागू करने की माँग दशकों से हो रही है, लेकिन देश में गोवा अकेला ऐसा राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है। गोवा में वर्ष 1962 में यह कानून लागू किया गया था।


🚩साल 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भारतीय संसद ने गोवा में ‘पुर्तगाल सिविल कोड 1867’ को लागू करने का प्रावधान किया था। इसके तहत गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गई और तब से राज्य में यह कानून लागू है।


🚩पिछले दिनों गोवा में लागू यूनिफॉर्म सिविल कोड की तारीफ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. ए. बोबड़े ने भी की थी। सी.जे.आई. ने कहा था कि गोवा के पास पहले से ही वह है, जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने पूरे देश के लिए की थी।


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Thursday, June 15, 2023

हिंदू बच्चों के धर्मांतरण वाला गेम, क्या ये है आबादी का खेल ?

15 June 2023

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🚩केरल स्टोरी में हम सबने देखा है कि हिंदू लड़कियों को ट्रैप करने के लिए कैसे एक जाल बिछाया गया। मॉल में खरीदारी कर रही लड़कियों के साथ छेड़खानी और फिर उन्हें बचाने का ड्रामा। यानि एक सिचुएशन क्रिएट करो और फिर उस सिचुएशन का हल बनकर सामने आओ। बाद में फिल्म में ऐसी ही साजिश का शिकार हुई लड़की, आतंकी संगठन इस्लामिक इस्टेट की सदस्य तक बन जाती है। फिल्म के डायरेक्टर इसे मैन्यूप्लेटिव कनवर्जन बोलते हैं, लेकिन क्या मैन्यूप्लेटिव कनवर्जन सिर्फ फिल्मी दुनिया की बात है, सिर्फ एक फिल्म की बात है? इसलिए रील लाइफ से आगे बढ़कर अब आते हैं रियल लाइफ पर।



🚩कुछ हिंदू बच्चें ऑनलाइन गेम खेल रहें हैं। वो गेम हार जाते हैं तो सामने कोई चैट पर कहता है कि आयतें पढ़ो तो जीत जाओगे, यानि बच्चों के माइंड को मैन्यूप्लेट करने की साजिश। ऐसे ही ऑनलाइन रहते हुए ये लोग धीरे-धीरे चैटिंप ऐप में जाकिर नायक और तारिक जमील के वीडियो दिखाते थे। ऑनलाइन गेम में धर्मांतरण का गेम कुछ ऐसे खेला गया कि बच्चा पांच वक्त का नमाजी हो गया और मस्जिद जाना शुरू कर देता है। माता पिता पुलिस में शिकायत करते हैं, गाजियाबाद से एक मौलवी अब्दुल रहमान पकड़ा जाता है। मालूम चलता है ऑनलाइन गेमिंग का ट्रैप बिछाकर बच्चों का ब्रेनवॉश कर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है, वो भी अबोध बच्चों का ब्रेन वॉश करके।


🚩अभी तो लव जिहाद की बहस और उसकी शिकार हुई बेटियों की आत्मा इंसाफ मांग रही हैं। उसके बाद धर्मानन्तरण के इस गेम ने उन सभी पेरेंट्स को दहशत में डाल दिया है जिनके बच्चे ऑनलाइन गेम खेलते हैं। ये ऑनलाइन गेम का नशा होना, कोरोना और लॉकडाउन का एक और साइड इफेक्ट है। उस समय बच्चे बड़े सभी ने तमाम ऐसे गेम ऑनलाइन खेले होंगे जिसमें सामने वाले का नाम असली भी है या नहीं, हमें नहीं पता होता। वो किस देश किस धर्म से ताल्लुक रखते हैं हमें नहीं पता होता, लेकिन गेम खेलते खेलते कोई आपके साथ ही धर्म परिवर्तन का गेम खेलने लगे ऐसे भला किसने सोचा होगा...!!


🚩हिंदुओं की अगली पीढ़ियों के ब्रेनवॉश करने की कोशिश?


🚩पुलिस बता रही है कोविड के दौरान ही ये बच्चे ऐसे धर्मपरिवर्तन के गेम प्लानर के संपर्क में आए थे। सावधान हो जाइए " फोर्ट नाइट " नाम वाले इस गेम से और किसीभी* ऐसे गेम से जिसमें आपको सामने वाले की पहचान और नीयत का अहसास ही ना हो पाए। इस सहिष्णु देश में मां बाप अब इस हद तक विनम्र हो गए हैं कि ना तो बच्चों को पढ़ाई या करियर में तुमको यही बनना है कहकर फोर्स कर रहें हैं और ना ही धार्मिक आस्थाओं मान्यताओं के लिए बाध्य करते हैं।


🚩अटल बिहारी बाजपेयी की एक बात याद आती है। अटल जी ने कहा था... " भारत इसलिए धर्मनिरपेक्ष है, क्योंकि यहां 80 प्रतिशत हिंदू हैं। "

तो क्या ये कोशिश हो रही है , कि हिंदुओं की अगली पीढ़ियों को ब्रेनवॉश कर दिया जाए। ये सवाल इसलिए उठता है , क्योंकि कुछ तथ्य हमारे सामने भविष्य की भयावह तस्वीर बना रहे हैं। आइए समझें , कैसे...?


🚩बंटवारे के बाद से ही पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदु आबादी तुलनात्मक रूप से लगातार कम हुई है। 1947 में पाकिस्तान में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं की आबादी दो प्रतिशत थी और अब भी पाकिस्तान में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं की आबादी करीब दो ही प्रतिशत है।


🚩1971 में बांग्लादेश में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं की आबादी करीब 13 प्रतिशत थी। अब बांग्लादेश में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं की आबादी महज छह फीसदी है। इस तस्वीर का एक और पहलू है। भारत में विभाजन के समय जो मुस्लिम आबादी दस प्रतिशत थी वह आज बढ़कर 15 प्रतिशत हो गई है। लगातार आती लव जिहाद या जबरन धर्मांतरण की खबरें संदेह पैदा करती हैं कि क्या ये आबादी का खेल है, क्या कोई प्रायोजित तरीके से हिंदुस्तान में हिंदुओं की अगली पीढ़ी का ब्रेनवॉश कर देना चाहता है?


🚩ऑनलाइन गेम, कलावा बांधकर प्यार का छलावा...

मध्य प्रदेश के दमोह में गंगा जमुना हायर सेकेंडरी स्कूल से आई खबर इसी डर को बढ़ाती है। बवाल तब मचा जब हिंदू बच्चियों की तस्वीरें हिजाब में वायरल हुईं। मालूम चला बच्चों को श्लोक नहीं याद लेकिन कुरान की आयतें रटाई गई हैं। होमवर्क उर्दू में मिलता था और याद ना करने पर टीचर मारती थी। टीचर भी कौन वो जो खुद धर्म परिवर्तन कर हिंदू से मुस्लिम बनी। इस स्कूल में तीन टीचरों ने धर्म परिवर्तन करा है. ज़ाहिर है पढ़ाई के नाम पर क्या चल रहा है ! तो उस पर सवाल उठेंगे ही।


🚩ज़रा सोचिए...

ऑनलाइन गेम, कलावा बांधकर प्यार का छलावा या स्कूल से इस तरह की खबरें, इन सबके मूल में आखिर धर्म क्यूं है?🚩स्वयं विचार कीजिए...

क्यूं इतनी तेजी से बच्चों , खासकर लड़कियों को धर्म परिवर्तन के लिए बरलगाया , फुसलाया और या मजबूर तक किया जा रहा है। धर्म के नाम पर चल रहे इस अधर्म को कब तक हम सब धार्मिक एंगल से ना देखकर महज आपराधिक मामला कहकर नजरें चुराते फिरेंगे...!?



🚩यह मुद्दा गम्भीर है...

समय है, सचेत रहने का...

समय है सरकारों के जागने और समाज को जागने का...

वर्ना कहीं बहुत देर न हो जाए !!!


जय हिंद ! जय सत्य सनातन धर्म !


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Wednesday, June 14, 2023

देवरहा बाबा ,एक ऐसे संत जिसके पैरो के नीचे अपना सिर रखने नेता व अंग्रेज तक आते थे।

 देवरहा बाबा ,एक ऐसे संत जिसके पैरो के नीचे अपना सिर रखने नेता व अंग्रेज तक आते थे।

 14 June 2023

🚩देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। यहाँ तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है। वह यूपी के देवरिया जिले के रहने वाले थे। मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपनी नश्वर देह त्याग कर व्यापने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है। कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं )

🚩भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद के योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष थे देवरहा बाबा । डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था। बाबा पूज्य महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत थे।

🚩श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे। प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी।

🚩श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है। जनश्रूति के मुताबिक, वह खेचरी मुद्रा सिद्धी की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे। लोग बोलते हैं , उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होता था।

🚩लोगों में विश्वास है , कि बाबा जल पर चलते भी थे और अपने किसी भी गंतव्य स्थान पर जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया। बाबा हर साल कुंभ के समय प्रयाग जाते थे।

🚩मार्कण्डेय सिंह के मुताबिक, वह किसी महिला के गर्भ से नहीं बल्कि पानी से अवतरित हुए थे। कहते हैं कि , वह 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवारों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।

🚩लोगों का मानना है कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई। वह अवतारी महापुरुष थे। उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था। वह फोटो कैमरे और टीवी जैसी चीजों को देख अचंभित रह जाते थे। वह उनसे अपनी फोटो लेने के लिए कहते थे, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि उनका फोटो नहीं बनता था। लोग तो यहा तक बोलते हैं कि वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी। उनका निर्जीव वस्तुओं पर भी नियंत्रण था।

🚩अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ऐसी भी रही जो हमेशा उनमें चमत्कार खोजते देखी गई।अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था।

🚩देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधू-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था। उनसे जुड़ीं कई घटनाएं इस सिद्ध संत को मानवता, ज्ञान, तप और योग के लिए विख्यात बनाती हैं।.....

कोई 1987 की बात होगी, जून का ही महीना था,वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। अधिकारियों में अफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था। प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई।

🚩आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है। बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा!

🚩वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि यह ऑर्डर दिल्ली से आए अफसरों का है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा कि यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता।

🚩इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी, आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं। आश्चर्य कि दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा।... इसे क्या कहेंगे चमत्कार या संयोग !?

🚩बाबा की शरण में आने वाले कई विशिष्ट लोग थे। उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं। उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे। योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। कई बड़े सिद्ध सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाता, तो वह संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते।

🚩लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना सब कब और कैसे जान लिया। ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वो सिद्ध थे ही। धर्माचार्य, पंडित और वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे। उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था।

🚩देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी हार गईं तो वह भी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गईं। उन्होंने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया। वहां से वापस आने के बाद इंदिरा ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा निर्धारित कर दिया। इसके बाद 1980 में इंदिरा के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वह देश की प्रधानमंत्री बनीं।

🚩वहीं, यह भी मान्यता है कि इन्दिरा गांधी आपातकाल के समय कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती से आर्शीवाद लेने गयीं थी। वहां उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आर्शीवाद दिया और हाथ का पंजा पार्टी का चुनाव निशान बनाने को कहा।

🚩बाबा महान योगी और सिद्ध संत थे। उनके चमत्कार हज़ारों लोगों को झंकृत करते रहे। आशीर्वाद देने का उनका ढंग निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो गया। पेड़-पौधे भी उनसे बातें करते थे। उनके आश्रम में बबूल तो थे, मगर कांटेविहीन। इतना ही नहीं , बल्कि वो वृक्ष खुशबू भी बिखेरते थे।

🚩उनके दर्शनों को प्रतिदिन विशाल जनसमूह उमड़ता था। बाबा भक्तों के मन की बात भी बिना बताए जान लेते थे। उन्होंने पूरा जीवन अन्न नहीं खाया। दूध व शहद पीकर जीवन गुजार दिया। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था।

🚩देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे।

🚩ख्याति इतनी कि जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लाव लश्कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव तक उनके आश्रम तक पहुंच गया । दरअसल, इंग्लैंड से रवाना होते समय उसने अपने भाई से पूछा था , कि क्या वास्तव में इंडिया के साधु संत महान होते हैं।

🚩प्रिंस फिलिप ने जवाब दिया- हां, कम से कम देवरहा बाबा से जरूर मिलना। जार्ज पंचम की यह यात्रा सन 1911 की बात है , तब विश्वयुद्ध के बादल मंडरा रहे थे । इसी माहौल में वह भारत को बरतानिया हुकूमत के पक्ष में युद्ध करने को राजी करने की मंशा से आया था । उससे हुई बातचीत बाबा ने अपने कुछ शिष्यों को बतायी भी थी, लेकिन कोई भी उस बारे में बातचीत करने को आज भी तैयार नहीं।

🚩डाक्टर राजेंद्र प्रसाद तब रहे होंगे कोई दो-तीन साल के, जब अपने माता-पिता के साथ वे बाबा के यहां गये थे। बाबा देखते ही बोल पड़े-यह बच्चा तो राजा बनेगा। बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन् 1954 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया।

🚩बाबा देवरहा 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।

🚩भक्त उन्हें दया का महासमुंदर बताते हैं और अपनी यह सम्पत्ति बाबा ने मुक्त हस्त लुटाई। जो भी आया बाबा की भरपूर दया लेकर गया। वितरण में कोई विभेद नहीं। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा। मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है।

🚩कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है ...! दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्प्युटर से कहीं ज्यादा तेज़...

🚩बलिष्ठ कदकाठी भी थी उनकी । लेकिन देह त्याहगने के समय तक वे कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। उनका पूरा जीवन मचान में ही बीता। लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे। जल में वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे।

🚩खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्तनगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा-मखाना हासिल करने के लिए सैकडों लोगों की भीड़ हर जगह जुटती थी और फिर अचानक 11 जून 1990 को उन्होंने दर्शन देना बंद कर दिया ।

🚩लगा जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है। मौसम तक का मिज़ाज बदल गया। यमुना की लहरें तक बेचैन होने लगीं। मचान पर बाबा त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे ही रहे। डॉक्टरों की टीम ने थर्मामीटर पर देखा कि पारा अंतिम सीमा को तोड निकलने पर आमादा है। 19तारीख को मंगलवार के दिन योगिनी एकादशी थी।

 🚩आकाश में काले बादल छा गये, तेज आंधियां तूफान ले आयीं । यमुना जैसे समुंदर को मात करने पर उतावली थी। लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा की पूण्यमई देह स्पंदनरहित हो गई । भक्तों की अपार भीड भी प्रकृति के साथ हाहाकार करने लगी।

🚩भारत में कई महान संत हो गए , आज भी हैं... लेकिन बस हमें पहचान करने की जरूरत है। यदि हम संतों के मार्गदर्शन में चलें तो व्यक्ति, समाज और देश की कई गुना उन्नति होगी।

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Tuesday, June 13, 2023

मेघालय हाइकोर्ट ने क्यों कहा , कि " भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करें एवं इस्लामिक देश बनने से बचाएं...?

 मेघालय हाइकोर्ट ने क्यों कहा , कि " भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करें एवं इस्लामिक देश बनने से बचाएं...?

13June 2023

🚩पूरे विश्व में एकमात्र भारत ही ऐसा राष्ट्र है जहाँ हिन्दुओं की बहुलता है, इसे ध्यान में रखा जाए तो भारत को तुरंत हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए। यदि इसका दूसरा पक्ष देखें तो अब से 77 साल पहले 1947 में जब भारत आजाद हुआ था तो साथ ही उसका विभाजन भी किया गया था और एक नया देश पाकिस्तान बनाया गया। भारत के विभाजन की शर्त पर ही तो स्वतंत्रता मिली थी हमें... और यह विभाजन धर्म के आधार पर ही हुआ था ।


🚩चूँकि पाकिस्तान मुस्लिमों की मांग के कारण बनाया गया था, इसलिए इसे तुरंत ही इस्लामिक देश घोषित कर दिया गया, लेकिन भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित न कर उसे धर्म निरपेक्ष ही बना रहने दिया गया ।


🚩दुनिया में इसाइयों के 157 देश हैं और मुसलमानों के 52 देश हैं,परन्तु हिन्दुओं का 1 देश भी नहीं । जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दू धर्म ही सनातन धर्म है , जबसे सृष्टि का उद्गम हुआ प्रत्येक जन्मने वाला मनुष्य पहले तो वह सनातन का अंश है और बाद में ये थोपे हुए जाति , मत , पंथ व मजहब...जैसे इसाई, मुस्लिम, पारसी, यहूदी आदि-आदि ।





🚩भारत की धर्म निरपेक्षता उसके लिए ही गले की फांस बन जाएगी ये किसे मालूम था !!!


🚩आज भारत में अल्पसंख्यकों के नाम पर मुसलमानों,इसाइयों आदि को तो खूब सारी सुविधाएं दी जा रही हैं, लेकिन अपने ही देश में हिन्दू बेगाना हो गया है । आज हिन्दू बाहुल्य राष्ट्र में ही हिन्दू सबसे अधिक शोषित है...!

ऐसे में एक बात तो तय है , कि यदि हिन्दुओं की रक्षा करनी है तो यथाशीघ्र भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए ।


🚩पहले इस बात को सिर्फ हिन्दू संगठन ही कहा करते थे । आज बड़े-बड़े पदों पर आसीन बुद्धिजीवी भी इसका समर्थन करते हैं। मेघालय उच्च न्यायलय के न्यायधीश श्री एस.आर. सेन ने हिन्दुओं तथा गैर मुस्लिम समुदाय की गंभीर हालत को देखते हुए भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करने की अपील केंद्र सरकार से की थी ।


🚩आपको बता दें कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आने वाले हिन्दू, पारसी, सिख आदि समुदायों को भारत की नागरिकता पाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है ।


🚩आश्चर्य की बात है , भारत एक ऐसा देश है जहाँ गैर हिन्दू या हिंदुस्तान को गालियां देने वाले और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले लोग तो काफी ऐशो आराम की ज़िन्दगी जीते हैं । लेकिन बहुसंख्यक समुदाय यानि की हिन्दुओं ( सिख तथा अन्य गैर मुस्लिम समेत सभी हिन्दू ) को अपने ही देश में रहने के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।


🚩प्रधानमंत्री जी से मेघालय हाइकोर्ट की शीघ्र कानून बनाने की अपील 


🚩मेघालय हाईकोर्ट ने देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री व संसद से ऐसा कानून लाने की सिफारिश की थी, जिससे पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान से आने वाले हिंदुओं , जैनो , सिखों व बौद्धों आदि को किसी बेवजह के सवालों के बिना सिर्फ़ आवश्यक दस्तावेजों के आधार पर भारत की नागरिकता मिल सके ।

गौरतलब है...कोर्ट ने फैसले में यह भी लिखा है कि " विभाजन के समय भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित कर दिया जाना चाहिए था, लेकिन हम धर्मनिरपेक्ष देश बने रहे ।

 

🚩दरअसल हुआ ये कि , अमन राणा नामक एक व्यक्ति ने एक याचिका दायर की थी । जिसमें उन्होंने बताया कि , उन्हें निवास प्रमाण-पत्र देने से मना कर दिया गया है । इसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फैसला दिया । कोर्ट के फैसले में जस्टिस एस.आर. सेन ने कहा कि , " उक्त तीनों पड़ोसी देशों में उपरोक्त लोग आज भी प्रताड़ित हो रहे हैं और उन्हें सामाजिक सम्मान भी प्राप्त नहीं हो रहा है । कोर्ट ने कहा कि इन लोगों को कभी भी देश में आने की अनुमति दी जाए । सरकार इन्हें पुनर्वासित कर सकती है और भारत का नागरिक घोषित कर सकती है । "


🚩भारतीय इतिहास का किया उल्लेख :- 

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भारतीय इतिहास को उल्लेखित करते हुए कहा , कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश था । पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान का कोई वजूद नहीं था । ये सब भारत में शामिल थे और इन पर हिन्दू साम्राज्य का शासन था । कोर्ट ने कहा कि मुगल जब यहां आए तो उन्होंने भारत के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया । इसी दौरान बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन हुए । इसके बाद अंग्रेज यहां आए और शासन करने लगे । 


🚩भारत-पाक विभाजन के इतिहास के बारे में कोर्ट ने फैसले में लिखा...  " यह एक अविवादित तथ्य है , कि विभाजन के वक्त लाखों की संख्या में हिन्दू व सिख मारे गए थे । उन्हें प्रताड़ित किया गया था , उनकी सम्पत्ति पर जबरन कब्जे किए गए और महिलाओं का बलात्कार किया गया था ।

🚩कोर्ट ने लिखा कि , भारत का विभाजन ही धर्म के आधार पर हुआ था । विभाजन के साथ ही पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित कर दिया था । ऐसे में भारत को भी हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए था , लेकिन इसे धर्मनिरपेक्ष बनाए रखा गया । जिसका दण्ड हमें अभी तक भुगतना पड़ रहा है ।


🚩पीएम मोदी पर जताया भरोसा :-


🚩इतना कहने के पश्चात जज सेन ने मोदी सरकार को संबोधित करते हुए कहा , कि हमें विश्वास है , वो ( प्रधानमंत्री जी ) भारत को मुस्लिम राष्ट्र नहीं बनने देंगे । उन्होंने लिखा कि किसी भी व्यक्ति को भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने का प्रयास नहीं करना चाहिए । जज ने उच्च न्यायालय में केंद्र की सहायक सॉलिसीटर जनरल ए. पॉल को फैसले की प्रति प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री व विधि मंत्री को शीघ्रता से अवलोकन करने के लिए सौंपने व समुदायों के हितों की रक्षा का कानून लाने को लेकर जरूरी कदम उठाने की बात कही है । 


🚩न्यायाधीश एस.आर. सेन की बात से यह तो साफ़ हो ही गया कि भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करना कितना आवश्यक है।


🚩भारत एक हिन्दू बाहुल्य देश है । एक हिन्दू कभी किसी अन्य धर्म के लोगों के लिए खतरे का विषय नहीं बन सकता है और ना ही हिन्दुओं से किसी अन्य धर्म के लोगों को कोई खतरा ही हो सकता है । किन्तु यदि भारत को हिन्दू राष्ट्र न घोषित किया गया , तो इससे हिन्दुओं को जरुर खतरा हो सकता है ।


🚩 न्यायमूर्ति एस.आर. सेन जी की बात विचारणीय है । यदि हिन्दू बाहुल्य देश में हिन्दुओं का भरोसा जीतना हो तो मोदी सरकार को शीघ्र ही भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए । 


🚩आज भारत का हिन्दू राष्ट्र घोषित होना ही अनेकों सामाजिक समस्याओं का एकमात्र हल है ।

...जिन्हें इस देश में हिन्दू राष्ट्र नहीं चाहिए, वे स्वेच्छा से पाकिस्तान जा सकते हैं ।


🚩हिन्दुस्तान का अर्थ ही है , ऐसा स्थान जहाँ हिन्दुओं का निवास हो... तो कायदे से देखा जाए तो हिन्दुस्तान में रहने वाला हर शख्स हिन्दू ही है । फिर इस देश को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करने में इतनी देर क्यों ?

हम माननीय श्री नरेद्र मोदी जी से अपील करते हैं कि , " अल्पसंख्यकों के हक में तो बहुत फैसले ले लिए... अब कुछ फैसले हिन्दुओं के हक में भी ले लीजिए । ताकि 2024 में आपको वापस हम सब प्रधानमंत्री के पद पर देख पाएं ।


🚩देश, धर्म और संस्कृति बचाने के लिए हिन्दू-राष्ट्र की ही आवश्यकता है ।


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Monday, June 12, 2023

अपने बच्चों को कैसे महान बनाए यह राजमाता माता जीजाबाई सीखिए


12 June 2023

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🚩जननी जने तो भक्त जने या दाता या शूर । नहीं तो जननी बांझ रहे, काहे व्यर्थ गंवाए नूर । अर्थात : हे जननी, या तो भक्त को जन्म दे या फिर दानवीर या शूरवीर संतान को जन्म दे ! माँ तेरी कोख से जन्म लेने वाले बच्चे को ऐसे संस्कारों से ओतप्रोत कर दे कि वह भक्त, दानी और शूरवीरता से कुल और देश का नाम रोशन कर दे ! माता जीजा बाई ने अपने बेटे वीर शिवाजी को जन्म से ही ऐसे संस्कार दिए जिससे वह हिन्दू साम्राज्य का सम्राट बना, माँ की मार्गदिशा में उन्होंने हिन्दू साम्राज्य स्थापित करने की शुरुआत छोटी उम्र में ही कर दी थी । आज उस पवित्र संकल्प वाली  वीरांगना राजमाता जीजा बाई का पुण्यतिथि है।


🚩भारत के गौरव क्षत्रपति शिवाजी की माता जीजाबाई का जन्म सन् 1597 ई. में सिन्दखेड़ के अधिपति जाघवराव के यहां हुआ । जीजाबाई बाल्यकाल से ही धार्मिक तथा साहसी स्वभाव की थी । सहिष्णुता का गुण तो उनमें कूट-कूटकर भरा हुआ था । इनका विवाह मालोजी के पुत्र शाहजी भोंसले से हुआ । प्रारंभ में इन दोनों परिवारों में मित्रता थी, किंतु बाद में यह मित्रता कटुता में बदल गई; क्योंकि जीजाबाई के पिता मुगलों के पक्षधर थे।


🚩एक बार जाधवराव मुगलों की ओर से लड़ते हुए शाहजी का पीछा कर रहे थे । उस समय जीजाबाई गर्भवती थी । शाहजी अपने एक मित्र की सहायता से जीजाबाई को शिवनेर के किले में सुरक्षित कर आगे बढ़ गये । जब जाधवराव शाहजी का पीछा करते हुए शिवनेर पहुंचे तो उन्हें देख जीजाबाई ने पिता से कहा- "मैं आपकी दुश्मन हूं, क्योंकि मेरा पति आपका शत्रु है । दामाद के बदले कन्या ही हाथ लगी है, जो कुछ करना चाहो, कर लो ।"


🚩इस पर पिता ने उसे अपने साथ मायके चलने को कहा, किंतु जीजाबाई का उत्तर था- "आर्य नारी का धर्म पति के आदेश का पालन करना है ।"


🚩10 अप्रैल सन् 1627 को इसी शिवनेर दुर्ग में जीजाबाई ने शिवाजी को जन्म दिया । पति की उपेक्षा के कारण जीजाबाई ने अनेक असहनीय कष्टों को सहते हुए बालक शिवा का लालन-पालन किया । उसके लिए क्षत्रिय वेशानुरूप शास्त्रीय-शिक्षा के साथ शस्त्र-शिक्षा की व्यवस्था की । उन्होंने शिवाजी की शिक्षा के लिए दादाजी कोंडदेव जैसे व्यक्ति को नियुक्त किया । स्वयं भी रामायण, महाभारत तथा वीर बहादुरों की गौरव गाथाएं सुनाकर शिवाजी के मन में हिन्दू-भावना के साथ वीर-भावना की प्रतिष्ठा की । 


🚩वह प्राय: कहा करती- 

'यदि तुम संसार में आदर्श बनकर रहना चाहते हो स्वराज की स्थापना करो । देश से यवनों और विधर्मियों को निकालकर भारत की रक्षा करो।'


🚩शाहजी ने दूसरा विवाह कर लिया था । कई वर्षों बाद शाहजी ने जीजाबाई को शिवाजी सहित बीजापुर बुलवा लिया था, किंतु उन्हें पति का सहज स्वाभाविक प्रेम कभी प्राप्त नहीं हुआ । जीजाबाई ने अपने मान,अपमान को भुलाकर सारा ध्यान अपने पुत्र शिवाजी पर केन्द्रित कर दिया । शाह जी की मृत्यु पर पति-परायणा जीजाबाई सती होना चाहती थी, किंतु शिवाजी के यह कहने पर कि “माता! तुम्हारे पवित्र आदर्शों और प्रेरणा के बिना स्वराज्य की स्थापना संभव नहीं होगी । धर्म पर विधर्मियों का दबाव बढ़ जायेगा ।" माता ने पुत्र की भावना तथा भविष्य के प्रति जागरूक दृष्टि का परिचय देते हुए सती होने का विचार त्याग दिया ।


🚩औरंगजेब ने जब धोखे से शिवाजी को उनके पुत्र सहित बंदी बना लिया था, तब शिवाजी ने भी कूटनीति से मुक्ति पाई और वे जब संन्यासी के वेश में अपनी मां के सामने भिक्षा लेने पहुंचे तो मां ने उन्हें पहचान लिया और प्रसन्नचित होकर कहा- 'अब मुझे विश्वास हो गया है कि मेरा पुत्र स्वराज्य की स्थापना अवश्य करेगा । पद-पादशाही आने में अब कुछ भी विलंब नहीं है।'


🚩अंत में जीजाबाई की साधना सफल हुई । शिवाजी ने महाराष्ट्र के साथ भारत के एक बड़े भाग पर स्वराज्य की स्वतंत्र पताका फहराई, जिसे देखकर जीजाबाई ने शांतिपूर्वक परलोक प्रस्थान किया । 

वस्तुत: जीजाबाई स्वराज्य की ही देवी थीं ।


🚩बालक के निर्माण में माता-पिता दोनों का ही महत्त्व है परन्तु माता का महत्त्व पिता से बहुत अधिक है। माता के जैसे विचार होते हैं बालक पर निश्चित रुप से वैसा ही प्रभाव पड़ता है।


🚩आज माता और पिता दोनों ही गर्भ में बच्चे का निर्माण करनेवाली बात को भूल गये हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने बालकों के निर्माण के लिए सोलह संस्कारों का विधान किया था। इनमें से तीन तो बालक के उत्पन्न होने से पूर्व ही हो जाते थे। आज संस्कार समाप्त हो गये। विवाह का उद्देश्य कीड़े-मकोड़े उत्पन्न करना नहीं है। वैदिक धर्म में विवाह विलास के लिए भी नहीं होता था। परन्तु आज विवाह विलास और केवल विलास की वस्तु बन गई है। विवाह को उद्दाम भोग का 'पासपोर्ट' और नारी को बच्चा उत्पन्न करनेवाली मशीन समझ लिया गया है। इसका परिणाम आज खेल-खेल में बच्चे उत्पन्न हो रहे हैं। आज केबच्चे बिना बुलाये अतिथि (Uninvited guests) हैं। जब आदर्श सन्तान को बुलाने के लिए कोई तैयारी नहीं, कोई संकल्प नहीं कि कैसी सन्तान उत्पन्न करनी है तब श्रेष्ठ सन्तान उत्पन्न कैसे हो सकती है? सन्तान का निर्माण माता-पिता के हाथ में है। 


🚩निष्कर्ष यह है कि सन्तान को श्रेष्ठ बनाने के लिए गर्भाधान से पूर्व ही बहुत सावधानी और ध्यान देने की आवश्यकता है अन्यथा सन्तान सुसन्तान नहीं बन सकेगी।


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Sunday, June 11, 2023

अमरनाथ शिवलिंग की खोज किसने की ??? जानिए

11 June 2023

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🚩जम्मू कश्मीर के अनंतनाग में स्थित है अमरनाथ मंदिर, जो हिन्दुओं की श्रद्धा का एक बड़ा प्रतीक है। अमरनाथ शिवलिंग को ‘बाबा बर्फानी’ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि भगवान शिव का रूप बर्फ से ही यहाँ प्रकट होता है। ये एक स्वयंभू शिवलिंग है, अर्थात स्वयं प्रकट होने वाला। लिद्दर घाटी में स्थित इस गुफा के बारे में मान्यता है कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का ज्ञान दिया था। भगवान अमरनाथ की पूजा हिन्दू धर्म में सदियों से होती आ रही है।


🚩लेकिन, कुछ लोगों ने हिन्दुओं के ऊपर इस्लाम के अहसान गिनने के लिए ये कहना शुरू कर दिया कि अमरनाथ शिवलिंग की खोज बूटा मलिक नाम के एक चरवाहे ने की, उससे पहले इसके बारे में किसी को पता नहीं था। ये सरासर झूठ है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में अमरनाथ धाम का जिक्र है। कहानी कुछ यूँ कही जाती है कि गड़रिया बूटा मलिक एक बार इधर अपनी भेड़ें चराते हुए फँस गया था, तभी उसकी मुलाकात एक साधु से हुई।


🚩साधु ने उसे कोयले से भरा एक थैला दिया, लेकिन जब घर जाकर उसने थैले को खोला तो उसमें से हीरे निकले। इस चमत्कार को देख कर वो वापस इस गुफा में आया। लेकिन, जिस साधु को धन्यवाद देने को आया था वो नदारद था और वहाँ उसे एक शिवलिंग दिखाई दिया। इस कहानी के सामने आने के बाद अमरनाथ गुफा में चढ़ने वाले चढ़ावे का एक अंश बूटा मलिक के परिवार को दिए जाने की परंपरा चल पड़ी। हालाँकि, इस कहानी का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है।


🚩लेकिन, कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने बार-बार इसे इस तरह से दिखाना शुरू कर दिया कि ये सेकुलरिज्म का बहुत बड़ा उदाहरण है और मुस्लिमों ने हिन्दुओं पर एहसान किया। ‘हमारे बूटा मलिक ने तुम्हारे अमरनाथ मंदिर को खोजा’ – उनका मुख्य उद्देश्य हिन्दुओं को ये एहसास दिलाने का रहता है। जुलाई 1898 में स्वामी विवेकानंद ने भी अमरनाथ की यात्रा की थी। उन्होंने बताया था कि कैसे विभिन्न वेशभूषा वाले देश भर के लोग इस यात्रा में शामिल रहते थे।


🚩आपको सबसे पहले तो ये जानना चाहिए कि कल्हण द्वारा रचित ‘राजतरंगिणी’, जिसमें जम्मू कश्मीर के राजाओं का हजारों वर्षों का इतिहास वर्णित है, उसमें भी अमरनाथ मंदिर के बारे में बताया गया है। ‘राजतरंगिणी’ 12वीं शताब्दी में लिखी गई थी। इसमें कहीं बूटा मलिक की कहानी का जिक्र नहीं मिलता। इस पुस्तक में राजाओं के बारे में क्रमवार विवरण दिया गया है। इस पुस्तक में अमरनाथ की पथयात्रा का भी जिक्र है, जिसका अर्थ है कि गुफा के लिए यात्रा की परंपरा अति प्राचीन है।


🚩इस क्रम में शेषनाग झील के बारे में भी ‘राजतरंगिणी’ में बताया गया है। कहा जाता है कि इस झील का सीधा कनेक्शन पाताल लोक से है। अगर आप कल्हण द्वारा रचित श्लोक को देखेंगे तो पता चलेगा कि अमरनाथ शिवलिंग को ‘अमरेश्वर’ भी कहा जाता था। कल्हण बताते हैं कि सुस्रवास नामक नाग ने दूर पर्वत के नीचे एक झील का निर्माण कराया, जिसका जल दूध के समान सफ़ेद था। उन्होंने जो श्लोक था, वो इस प्रकार है:

दुग्धाब्धि धवकं तेन सरो दूरगिरौ कृतम्।

अमरेश्वरयात्रायां जनैरद्यापि दृश्यते।।

कल्हण बताते हैं कि इस अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले लोग इस झील का भी दर्शन करते हैं। इतना ही नहीं, इस पुस्तक में कश्मीर में शिवत्व की महिमा के बारे में भी बताया गया है। आज भले ही जम्मू कश्मीर को लोग आतंकवादी घटनाओं और इस्लामी कट्टरवाद के कारण जानते हों, लेकिन पहले ये ब्राह्मणों की भूमि हुआ करती थी। कल्हण लिखते हैं – ‘कश्मीर पार्वती तत्र राजा ज्ञेयः शिवांशकः’, अर्थात कश्मीर माँ पार्वती का स्वरूप है और शिव का अंश इस स्थान के शासक हैं।


🚩इससे साफ़ है कि कश्मीर को भगवान शिव की भूमि के रूप में प्राचीन काल से जाना जाता था। ‘राजतरंगिणी’ में ही कश्मीर के एक अन्य शासक सामदीमत का भी जिक्र है, जिसके बारे में बताया गया है कि वो वन में जाकर बर्फ के शिवलिंग की पूजा करता था। वो शिवभक्त था। बर्फ का शिवलिंग भारत में कहीं अन्यत्र नहीं मिलता, अर्थात साफ़ है कि कश्मीर के राजाओं के लिए अमरनाथ भगवान का महत्व पहले से रहा है। वामपंथियों ने बड़ी चालाकी से ये कोशिश की है कि हमें हमारा इतिहास ही न याद रहे और हम खुद को मुस्लिमों का एहसानमंद मानते रहे।


🚩इतना ही नहीं, कई विदेशी घुमंतुओं ने भी अमरनाथ यात्रा का जिक्र किया है, जिनमें दो प्रमुख हैं – बैरन चार्ल्स हुगेल और गॉडफ्रे विग्ने। जम्मू कश्मीर में 14वीं शताब्दी में मुस्लिम शासन आया और इसी शताब्दी के अंत में जबरन धर्मांतरण का दौर भी शुरू हो गया। सिकंदर बुतशिकन ने उस समय कश्मीर में हिन्दू प्रतिमाओं की तोड़फोड़ शुरू कर दी। फ्रेंच डॉक्टर फ्रांसिस बेर्नियर औरंगजेब के साथ कश्मीर गया था और उस दौरान उसने एक सुंदर गुफा और वहाँ जमे बर्फ के बारे में बताया था, जो अमरनाथ का ही विवरण है।

🚩वहीं विग्ने ने अपनी पुस्तक ‘रवेल्स इन कश्मीर, लद्दाख एन्ड इस्कार्डू’ में लिखा है कि श्रावण महीने की 15वीं तारीख़ को अमरनाथ यात्रा शुरू होती है। उन्होंने लिखा है कि कई जाति-संप्रदायों के लोग इसमें शामिल रहते हैं। वो 1840-41 के समय अमरनाथ गए थे, लेकिन खराब मौसम के कारण वो नहीं जा पाए थे। इससे पता चलता है कि यात्रा वर्षों से अनवरत चली आ रही थी। ये भी जान लीजिए कि प्राचीन ग्रन्थ ‘नीलमत पुराण’ में बह अमरनाथ यात्रा का जिक्र मिलता है।


🚩‘नीलमत पुराण’ में जो इसका विवरण है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि छठी-सातवीं शताब्दी के लोगों को इसकी जानकारी थी। तब तक इस्लाम भारत में आया ही नहीं था। छठी शताब्दी के अंत में इस्लाम की स्थापना ही हुई थी, ऐसे में कोई बूटा मलिक इसके बहुत बाद में ही हुआ होगा। गुफा के बगल से सिंधु की एक सहायक नदी अमरगंगा भी गुजरती थी। शिव श्रद्धालु इसकी मिट्टी को अपने शरीर में लगाते थे। इसी तरह, बर्नियर ने भी इस यात्रा का जिक्र किया है।


🚩अमित कुछ सिंह अपनी पुस्तक ‘अमरनाथ यात्रा’ में लिखते हैं कि ‘बर्नियर ट्रेवल्स’ पुस्तक की पृष्ठ संख्या 418 में अमरनाथ यात्रा का जिक्र है। भारत के ऑक्सफ़ोर्ड इतिहास के लेखक विंसेट ए स्मिथ ने ‘बर्नियर ट्रेवल्स’ का संपादन किया है, जिसमें लिखा है कि अमरनाथ गुफा आश्चर्यजनक है जहाँ छत से बूँद-बूँद पानी गिरता है और जम कर बर्फ के खंड का आकर लेता है और हिन्दू इसकी पूजा करते हैं। इतना ही नहीं, डॉक्टर स्टेन ने आकर का जिक्र भी किया है।


🚩उन्होंने बताया है कि शिवलिंग की ऊँचाई 2 फ़ीट और चौड़ाई 7-8 फ़ीट की होती है। इतना ही नहीं, अकबर का इतिहासकार अबुल फजल भी ‘आईने अकबरी’ में अमरनाथ को एक पवित्र स्थल बताता है। उसने लिखा है कि 15 दिन तक बढ़ते रहने वाला ये शिवलिंग 2 गज का हो जाता है। सन् 1866 में प्रकाशित ‘द इंडियन इनसाइक्लोपीडिया’ में भी कश्मीरी राजाओं के अमरनाथ यात्रा का विवरण है। वामपंथी इतिहासकारों ने झूठ बोल कर अमरनाथ यात्रा के बूटा मलिक की खोज के बाद शुरू होने की धारणा फैलाई।


🚩अब अंत में इस ‘मलिक’ सरनेम के पीछे की सच्चाई भी जान लीजिए। हुगेल लिखते हैं कि मलिक परिवार को वहाँ अकबर ने नियुक्त किया था। इससे पता चलता है कि ये उस समय सरनेम की जगह अकबर द्वारा नवाजा गया टाइटल हुआ करता था। इसका मतलब है कि सीमा की रखवाली करने वालों को अमरनाथ की खोज करने वाला और गुफा का रक्षक बता दिया गया। वो अकबर के कहने पर इस्लामी साम्राज्य की सीमा की रक्षा करता था, न कि अमरनाथ गुफा की।


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