Monday, June 26, 2023

इतना समझ लिया तो कभी आपकी बेटी लव जिहाद में नही फसेगी.....

26 June 2023

http://azaadbharat.org



🚩हिन्दू समाज के साथ 1200 वर्षों से मजहब के नाम पर अत्याचार होता आया है। सबसे खेदजनक बात यह है कि कोई इस अत्याचार के बारे में हिन्दुओं को बताये तो हिन्दू खुद ही उसे ही गंभीरता से नहीं लेते क्यूंकि उन्हें सेकुलरता के नशे में रहने की आदत पड़ गई है। रही सही कसर हमारे पाठ्यक्रम ने पूरी कर दी जिसमें अकबर महान, टीपू सुलतान देशभक्त आदि पढ़ा पढ़ा इस्लामिक शासकों के अत्याचारों को छुपा दिया गया। अब भी कुछ बचा था तो संविधान में ऐसी धारा डाल दी गई। जिसके अनुसार सार्वजनिक मंच अथवा मीडिया में इस्लामिक अत्याचारों पर विचार करना धार्मिक भावनाओं को भड़काने जैसा करार दिया गया। इस सुनियोजित षड़यंत्र का परिणाम यह हुआ कि हिन्दू समाज अपना सत्य इतिहास ही भूल गया।


🚩ऐसी हज़ारों दास्तानों में से एक है सिरोंज के महेश्वरी समाज की दास्तान। सिरोंज यह स्थान विदिशा से 50 मील की दूरी पर एक तहसील है। मध्यकाल में इस स्थान का विशेष महत्व था। कई इमारतें व उनसे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएँ इस बात का प्रमाण है। सिरोंज के दक्षिण में स्थित पहाड़ी पर एक प्राचीन मंदिर है। इसे उषा का मंदिर कहा जाता है। इसी नाम के कारण कुछ लोग इसे बाणासुर की राजधानी श्रोणित नगर के नाम से जानते थे। संभवतः यही शब्द बिगड़कर कालांतर में "सिरोंज' हो गया। नगर के बीच में पहले एक बड़ी हवेली हुआ करती थी, जो अब ध्वस्त हो चुकी है, इसे रावजी की हवेली के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण संभवतः मराठा- आधिपत्य के बाद ही हुआ होगा। ऐसी मान्यता है कि यह मल्हाराव होल्कर के प्रतिनिधि का आवास था।


🚩200 साल पहले सिरोंज टोंक के एक नवाब के आधिपत्य में था। एक बार नवाब ने इस क्षेत्र का दौरा किया। उसी रात की यहाँ के माहेश्वरी सेठ की पुत्री का विवाह था। संयोग से रास्ते में डोली में से पुत्री की कीमती चप्पल गिर गई। किसी व्यक्ति ने उसे नवाब के खेमे तक पहुँचा दिया। नवाब को यह भी कहा गया कि चप्पल से भी अधिक सुंदर इसको पहनने वाली है। यह जानने के बाद नवाब द्वारा सेठ की पुत्री की माँग की गई। यह समाचार सुनते ही माहेश्वरी समाज में खलबली मच गई। बेटी देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। अब किया क्या जाये? माहेश्वरी समाज के प्रतिनिधियों ने कूटनीति से काम किया। नवाब को यह सूचना दे दिया गया कि प्रातः होते ही डोला दे दिया जाएगा। इससे नवाब प्रसन्न हो गया। इधर माहेश्वरियों ने रातों- रात पुत्री सहित शहर से पलायन कर दिया तथा। उनके पूरे समाज में यह निर्णय लिया गया कि कोई भी माहेश्वरी समाज में न तो इस स्थान का पानी पिएगा, न ही निवास करेगा। एक रात में अपने स्थान को उजाड़ कर महेश्वरी समाज के लोग दूसरे राज्य चले गए। मगर अपनी इज्जत, अपनी अस्मिता से कोई समझौता नहीं किया। आज भी एक परम्परा माहेश्वरी समाज में अविरल चल रही है। आज भी माहेश्वरी समाज का कोई भी व्यक्ति सिरोंज जाता है। तो वहाँ का न पानी पीता है और न ही रात को कभी रुकता हैं। यह त्याग वह अपने पूर्वजों द्वारा लिए गए संकल्प को निभाने एवं मुसलमानों के अत्याचार के विरोध को प्रदर्शित करने के लिए करता हैं।


🚩दरअसल मुस्लिम शासकों में हिंदुओं की लड़कियों को उठाने, उन्हें अपनी हवस बनाने, अपने हरम में भरने की होड़ थी। उनके इस व्यसन के चलते हिन्दू प्रजा सदा आशंकित और भयभीत रहती थी। ध्यान दीजिये किस प्रकार हिन्दू समाज ने अपना देश, धन, सम्पति आदि सब त्याग कर दर दर की ठोकरें खाना स्वीकार किया। मगर अपने धर्म से कोई समझौता नहीं किया। अगर ऐसी शिक्षा, ऐसे त्याग और ऐसे प्रेरणादायक इतिहास को हिन्दू समाज आज अपनी लड़कियों को दूध में घुटी के रूप में दे। तो कोई हिन्दू लड़की कभी लव जिहाद का शिकार न बने।


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लव जिहाद में नही फसेगी कभी आपकी बेटी इतना समझ लिया तो

 इतना समझ लिया तो कभी आपकी बेटी लव जिहाद में नही फसेगी.....

26 June 2023

🚩हिन्दू समाज के साथ 1200 वर्षों से मजहब के नाम पर अत्याचार होता आया है। सबसे खेदजनक बात यह है कि कोई इस अत्याचार के बारे में हिन्दुओं को बताये तो हिन्दू खुद ही उसे ही गंभीरता से नहीं लेते क्यूंकि उन्हें सेकुलरता के नशे में रहने की आदत पड़ गई है। रही सही कसर हमारे पाठ्यक्रम ने पूरी कर दी जिसमें अकबर महान, टीपू सुलतान देशभक्त आदि पढ़ा पढ़ा इस्लामिक शासकों के अत्याचारों को छुपा दिया गया। अब भी कुछ बचा था तो संविधान में ऐसी धारा डाल दी गई। जिसके अनुसार सार्वजनिक मंच अथवा मीडिया में इस्लामिक अत्याचारों पर विचार करना धार्मिक भावनाओं को भड़काने जैसा करार दिया गया। इस सुनियोजित षड़यंत्र का परिणाम यह हुआ कि हिन्दू समाज अपना सत्य इतिहास ही भूल गया।

🚩ऐसी हज़ारों दास्तानों में से एक है सिरोंज के महेश्वरी समाज की दास्तान। सिरोंज यह स्थान विदिशा से 50 मील की दूरी पर एक तहसील है। मध्यकाल में इस स्थान का विशेष महत्व था। कई इमारतें व उनसे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएँ इस बात का प्रमाण है। सिरोंज के दक्षिण में स्थित पहाड़ी पर एक प्राचीन मंदिर है। इसे उषा का मंदिर कहा जाता है। इसी नाम के कारण कुछ लोग इसे बाणासुर की राजधानी श्रोणित नगर के नाम से जानते थे। संभवतः यही शब्द बिगड़कर कालांतर में "सिरोंज' हो गया। नगर के बीच में पहले एक बड़ी हवेली हुआ करती थी, जो अब ध्वस्त हो चुकी है, इसे रावजी की हवेली के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण संभवतः मराठा- आधिपत्य के बाद ही हुआ होगा। ऐसी मान्यता है कि यह मल्हाराव होल्कर के प्रतिनिधि का आवास था।




🚩200 साल पहले सिरोंज टोंक के एक नवाब के आधिपत्य में था। एक बार नवाब ने इस क्षेत्र का दौरा किया। उसी रात की यहाँ के माहेश्वरी सेठ की पुत्री का विवाह था। संयोग से रास्ते में डोली में से पुत्री की कीमती चप्पल गिर गई। किसी व्यक्ति ने उसे नवाब के खेमे तक पहुँचा दिया। नवाब को यह भी कहा गया कि चप्पल से भी अधिक सुंदर इसको पहनने वाली है। यह जानने के बाद नवाब द्वारा सेठ की पुत्री की माँग की गई। यह समाचार सुनते ही माहेश्वरी समाज में खलबली मच गई। बेटी देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। अब किया क्या जाये? माहेश्वरी समाज के प्रतिनिधियों ने कूटनीति से काम किया। नवाब को यह सूचना दे दिया गया कि प्रातः होते ही डोला दे दिया जाएगा। इससे नवाब प्रसन्न हो गया। इधर माहेश्वरियों ने रातों- रात पुत्री सहित शहर से पलायन कर दिया तथा। उनके पूरे समाज में यह निर्णय लिया गया कि कोई भी माहेश्वरी समाज में न तो इस स्थान का पानी पिएगा, न ही निवास करेगा। एक रात में अपने स्थान को उजाड़ कर महेश्वरी समाज के लोग दूसरे राज्य चले गए। मगर अपनी इज्जत, अपनी अस्मिता से कोई समझौता नहीं किया। आज भी एक परम्परा माहेश्वरी समाज में अविरल चल रही है। आज भी माहेश्वरी समाज का कोई भी व्यक्ति सिरोंज जाता है। तो वहाँ का न पानी पीता है और न ही रात को कभी रुकता हैं। यह त्याग वह अपने पूर्वजों द्वारा लिए गए संकल्प को निभाने एवं मुसलमानों के अत्याचार के विरोध को प्रदर्शित करने के लिए करता हैं।


🚩दरअसल मुस्लिम शासकों में हिंदुओं की लड़कियों को उठाने, उन्हें अपनी हवस बनाने, अपने हरम में भरने की होड़ थी। उनके इस व्यसन के चलते हिन्दू प्रजा सदा आशंकित और भयभीत रहती थी। ध्यान दीजिये किस प्रकार हिन्दू समाज ने अपना देश, धन, सम्पति आदि सब त्याग कर दर दर की ठोकरें खाना स्वीकार किया। मगर अपने धर्म से कोई समझौता नहीं किया। अगर ऐसी शिक्षा, ऐसे त्याग और ऐसे प्रेरणादायक इतिहास को हिन्दू समाज आज अपनी लड़कियों को दूध में घुटी के रूप में दे। तो कोई हिन्दू लड़की कभी लव जिहाद का शिकार न बने।


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Sunday, June 25, 2023

अब बच्चें बनेंगे होनहार क्यूँकि पढ़ेगे सही इतिहास सुन्दर बदलाव...

 अब बच्चें बनेंगे होनहार क्यूँकि पढ़ेंगे सही इतिहास...

यूपी बोर्ड सिलेबस में हुआ बड़ा प्रभावी और सुन्दर बदलाव...




24 June 2023

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🚩हिन्दुस्थान में अनेकों शूरवीर, बुद्धिमान और साहसी महापुरुष पैदा हुए , जिन्होंने हवाई जहाज से लेकर परमाणु तक की खोजें की , मानव से महेश्वर बनाने की युक्तियां दीं । गृहस्थियों को भी स्वस्थ्य, सुखी और सम्मानित जीवन जीने की कला सिखाने के साथ-साथ ईश्वर प्राप्ति ही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है यह बताया ।


🚩पर दुर्भाग्य की बात यह है , कि भारत के इतिहास में उन सनातनी महापुरुषों को आजतक कहीं स्थान नहीं दिया गया था । इसके विपरीत क्रूर, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों और भारत को गुलामी की ज़जीरों में जकड़ने वाले अंग्रेजों का ही इतिहास पढ़ाया जाता रहा है । 


🚩अब खुशी की बात है , कि उत्तर प्रदेश सरकार ने बच्चों के सिलेबस में बड़ा बदलवा करने का निर्णय लिया है । अब हमारे बच्चों को सही इतिहास पढ़ाया जाएगा । जिससे भारत के बच्चे अपने देश की महिमा और अपने पूर्वजों की महानता से अवगत होंगे और निश्चित रूप से होनहार बनेंगे । ज़ाहिर है अपना गौरवशाली इतिहास पढ़ने और जानने के बाद बच्चे विदेशी संस्कृति के आकर्षण और विधर्मियों की कूटनीतिक चालों में कदापि नहीं फंसेंगे...

भारत फिर से विश्वगुरु पद पर आसीन हो यही संतों का संकल्प रहा है और उत्तर प्रदेश सरकार का यह निर्णय उसी ओर बढ़ता हुआ एक ठोस कदम है ।


🚩उत्तर प्रदेश सरकार का सही निर्णय 


🚩उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपी बोर्ड के सिलेबस में बड़ा बदलाव किया है। कक्षा 9-12 के छात्रों को अब विद्यालयों में नियमित और अनिवार्य रूप से देश की 50 महान हस्तियों की जीवनगाथा पढ़ाई जाएगी। इसमें महर्षि पतंजलि से लेकर श्रीमद् आद्यशंकराचार्य, महावीर , गुरुनानक देव, छत्रपति शिवाजी महाराज, मंगल पांडेय, बिरसा मुंडा, रानी लक्ष्मीबाई, चन्द्रशेखर आजाद, वीर सावरकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल और ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आदि तक के नाम शामिल हैं।


🚩मीडिया रिपोर्ट के अनुसार... इन तमाम हस्तियों की जीवनी को नैतिक शिक्षा, शारीरिक शिक्षा और योग के विषयों में शामिल किया जाएगा। ये विषय सभी छात्रों के लिए अनिवार्य होंगे। यही नहीं, छात्रों के लिए इन विषयों में पास होना भी जरूरी होगा। हालाँकि बोर्ड परीक्षा यानी 10वीं और 12वीं के छात्रों की मार्कशीट में इन विषयों के नंबर नहीं जोड़े जाएँगे। ग़ौरतलब है, जुलाई 2023 से स्कूल खुलने के बाद नए सिलेबस के तहत पढ़ाई होगी।


🚩बता दें कि , इन 50 हस्तियों के नामों की सूची पहले ही सरकार को भेजी जा चुकी थी। सरकार की मंजूरी के बाद अब ये हस्तियाँ सिलेबस का भी हिस्सा होंगी। यूपी बोर्ड के 27 हजार से अधिक सरकारी तथा सरकार द्वारा सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 9-12 तक के 1 करोड़ से अधिक छात्र इन महापुरुषों की जीवनी पढ़ेंगे।


🚩किस कक्षा में क्या पढ़ेंगे छात्र


🚩यूपी बोर्ड की कक्षा 9 के छात्र गौतम बुद्ध, छत्रपति शिवाजी महाराज, चंद्रशेखर आजाद, बिरसा मुंडा, बेगम हजरत महल, वीर कुंवर सिंह, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फुले, विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर), विनोबा भावे, श्रीनिवास रामानुजन और जगदीश चंद्र बसु की जीवन गाथा पढ़ेंगे।


🚩वहीं कक्षा 10 के सिलेबस में स्वामी विवेकानंद, मंगल पांडे, रोशन सिंह, सुखदेव, खुदी राम बोस, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, मोहन दास करमचंद गाँधी की जीवनी को जोड़ा गया है।


🚩कक्षा 11वीं के छात्रों के लिए महर्षि पतंजलि, सुश्रुत, महावीर जैन, राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, भीमराव अंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, पंडित दीन दयाल उपाध्याय, महामना मदन मोहन मालवीय, अरविंद घोष, राजा राम मोहन रॉय, सरोजिनी नायडू, नाना साहिब और डॉ होमी जहाँगीर भाभा को सिलेबस में शामिल किया गया।


🚩इसके अलावा, कक्षा 12वीं के सिलेबस में श्रीमद् आद्यशंकराचार्य जी , गुरु नानक देव जी , श्री रामकृष्ण परमहंस, गणेश शंकर विद्यार्थी जी , श्री राजगुरु, रवींद्रनाथ टैगोर जी , लाल बहादुर शास्त्री जी , महारानी लक्ष्मी बाई, महाराणा प्रताप जी , बंकिम चंद्र चटर्जी,  डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम , रामानुजाचार्य, पाणिनी, आर्यभट्ट और सी.वी. रमन की जीवन गाथा शामिल की गई।


🚩साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में पाठ्यक्रम में बदलाव करने का वादा किया था। साथ ही कहा था , कि चन्द्रशेखर आजाद, रामकृष्ण परमहंस समेत अन्य महापुरुषों की जीवनी को सिलेबस में शामिल किया जाएगा। इस वादे को पूरा करते हुए योगी आदित्यनाथ सरकार ने यूपी बोर्ड के सिलेबस में बदलाव किया है।


🚩भारत का इतिहास – हैरान करने वाली बातें🚩कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है, कि भारत की सभ्यता कुछ 8000 साल पुरानी है। लेकिन सत्य यह है , कि भारतीय संस्कृति सनातन संस्कृति है । और इससे भी खास बात यह है कि , इतनी पुरानी सभ्यता आजतक अपना वजूद सुदृढ बनाए हुए है , तो निसंदेह इसमें जरूर कुछ खास बात है और वह खासियत है हमारे महान पूर्वज ( साधु-संत, ऋषि-मुनि और वीर,साहसी महान हस्तियां )


🚩सनातनी सभ्यता ने विश्व का मार्गदर्शन किया है । हमारे शास्त्रों से ही विश्व ने चलना सीखा है । भारत माता के वेद अपौरुषेय और सनातन हैं और पूरे विश्व ने इन्हीं वेदों का किसी न किसी रूप में अनुसरण किया ही है । विज्ञान हो या फिर ब्रह्माण्डीय ज्ञान, तकनीक हो या फिर धर्म, सभी बातें आपको भारत माता के इतिहास में सबसे पहले मिल जायेंगी ।


🚩विज्ञान की बात करें , तो अत्यंत उत्कृष्ट वायुयानों और जलयानों का वर्णन रामायण व महाभारत में मिलता है । परमाणु अस्त्र-शस्त्रों का भी वर्णन हमारे शास्त्रों में मिलता है । परंतु निराशाजनक बात यह थी , कि हमारे बच्चों को स्कूल की किताबों में अबतक भारत माता को गरीब और अनपढ़ बताया जाता था । भारत माता का झूठा इतिहास ही हमसब स्कूलों की किताबों में आजतक  पढ़ते आए हैं ।



🚩अबतक के भारत का इतिहास – यानि की...वामपंथियों द्वारा रचा गया झूठा इतिहास


🚩भारत को इतिहास में वामपंथियों ने सांपों-सपेरों और नट-जादूगरों का देश बताया है । परंतु असल में भारत माता का सच्चा इतिहास चाणक्य, मनु और कौटिल्य पर आधारित है । यहां सपेरों का इतिहास नहीं बल्कि मंगल, सूरज और चांद तारों की हैरान करनेवाली रहस्यमयी बातें बताई गयी हैं । भारत ने ही ‘शुन्य’ का आविष्कार किया है । सौर-ऊर्जा की बातें हजारों सालों पहले भारत में ही बताई गयी हैं ।


🚩उत्तर प्रदेश सरकार की ही भाँति आज आवश्यकता है , कि सम्पूर्ण भारत के बच्चों को विद्यालयों में हमारे देश का सही इतिहास पढ़ाया जाए...

ताकि हमारे आज के नौनिहाल और आनेवाली पीढ़ियां अपने भारतीय होने का गर्व अनुभव कर सकें...

यदि ऐसा हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब भारत एक बार फिर से विश्वगुरु पद पर आसीन होगा ।



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गाँव की आबादी 5000 पर हिंदू एक भी नहीं....

25 June 2023

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🚩इस्लामिक जगत पूरे विश्व में अन्य समुदायों की तुलना में 150% ज्यादा प्रजनन कर रहा है। यह हम नहीं, दुनिया के सबसे ‘लिबरल’ देश अमेरिका का fact-tank प्यू रिसर्च सेंटर कह रहा है। अपनी इस रिपोर्ट में उसने चेतावनी दी है कि जहाँ दुनिया के बाकी बड़े मज़हब महज 11% (स्थानीय उपासना पद्धतियाँ) से लेकर 34-35% (ईसाई और हिंदुत्व) तक की दर से बढ़ रहे हैं, और बौद्ध मतावलंबी तो 0.3% से घट रहे हैं, वहीं इस्लाम 73% से ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है- वह भी ज्यादा बच्चे पैदा करके। दुनिया की जरूरतों के लिए वैसे ही कम पड़ रहे संसाधनों के बीच यह खबर अत्यंत निराशाजनक है।


🚩नेपाल बॉर्डर पर बुरी हालत


🚩गाँव का नाम बिचपटा। आबादी 3500 के करीब। पर इनमें कोई भी हिंदू नहीं है। गाँव का नाम रामगढ़। 550 के करीब वोटर। इनमें 500 से अधिक मुस्लिम हैं। ये गाँव उत्तर प्रदेश से सटे नेपाल बाॅर्डर के करीब हैं। लखीमपुर के चंदन चौकी से बिचपटा करीब एक किलोमीटर दूर है। इसी गाँव से सटा हुआ है रामगढ़। नेपाल की सीमा से सटे इलाकों में हुए डेमोग्राफी चेंज को आप इन गाँवों में आकर समझ सकते हैं। महसूस कर सकते हैं।


🚩ये केवल दो गाँवों तक ही सीमित नहीं है। बहराइच में बाॅर्डर का आखिरी गाँव सीतापुरवा है। यहाँ भी सिर्फ मुस्लिम आबादी है। कोई हिंदू परिवार इस गाँव में नहीं रहता। श्रावस्ती में बाॅर्डर से लगा गाँव है- भरथा रोशनपुरवा। करीब 5 हजार की आबाद वाला ये गाँव नो मेंस लैंड में भी आबाद है। एक छोर भारत में तो दूसरा छोर नेपाल में। बाॅर्डर बताने वाले पिलर तक नजर नहीं आते। नो मेंस लैंड उस भूमि को कहते हैं जिसे दो देशों की सीमाओं के बीच छोड़ दिया जाता है। इस जमीन पर किसी देश का अधिकार नहीं होता। इसमें पिलर या बाड़ लगाकर देश अपनी सीमा का निर्धारण कर लेते हैं।


🚩दैनिक भास्कर के रिपोर्टर रवि श्रीवास्तव नेपाल बाॅर्डर से लगे यूपी के लखीमपुर, बहराइच और श्रावस्ती जिलों के इन गाँवों की पड़ताल की है। वे जानना चाहते थे कि बाॅर्डर के इलाकों में डेमोग्राफी चेंज को लेकर किए जा रहे दावे कितने सही हैं। यूपी सरकार बिना मान्यता के चल रहे मदरसों पर कार्रवाई की तैयारी कर रही है। इन इलाकों के मदरसों की वास्तविक स्थिति क्या है। इस दौरान उन्होंने वह सब कुछ पाया जिन तथ्यों से ऑपइंडिया ने बीते साल अपने सिलसिलेवार ग्राउंड रिपोर्ट में आपको परिचित कराया था।


🚩रवि श्रीवास्तव ने अपनी रिपोर्ट में विस्तार से इन गाँवों की आबादी, मस्जिद-मदरसे, यहाँ रहने वाले लोगों की स्थिति के बारे में बताया है। उन्होंने पाया कि ज्यादा बच्चे पैदा करना और दामाद कल्चर डेमोग्राफी चेंज के मुख्य कारणों में से हैं। चंदन चौकी के शौकत ने उन्हें बताया, “निकाह के बाद बेटियों के शौहर यहीं आकर बसने लगे। कहाँ से आकर बसे ये नहीं पता पर उन्हें घर दामाद कहा जाता है।” रामगढ़ के पूर्व प्रधान मोहम्मद उमर के हवाले दैनिक भास्कर ने कहा है, “एक परिवार में कई बच्चे होने से आबादी लगातार बढ़ रही है। हमने होश सँभाला तब यहाँ 24 से 25 परिवार थे। हमारे तीन बेटे हैं। अभी ताे एक ही परिवार में हैं। लेकिन मेरे बाद अलग होकर तीन परिवार बन जाएँगे। गाँव में कुछ लोग बाहर से आए हैं। उन्हें घर दामाद कहते हैं।”


🚩ऑपइंडिया ने अपनी पड़ताल के पाया था कि बाॅर्डर इलाकों में घरों और दुकानों पर इस्लामी झंडों का लहराना सामान्य है। बलरामपुर जिले में बॉर्डर के 15 किलोमीटर के दायरे में 150 मदरसे चल रहे थे। मस्जिदों की संख्या 200 से अधिक थी। बलरामपुर जिले के ग्राम पंचायत अहलादडीह के ग्राम प्रधान हरीश चंद्र शर्मा ने बताया था कि 10 किमी के दायरे में 20 गाँव मुस्लिम बहुल हैं। डेमोग्राफी चेंज के कारण हिन्दू दब कर त्योहार मनाते हैं।


🚩हिंदुओं के लिए ये चेतावनी है अगर नहीं संभले तो क्या हाल होगा इन आंकड़ों से देख सकते हैं, हर हिंदू को कम से कम 4 बच्चे तो पैदा करना चाहिए नहीं तो आगे जाकर अस्तित्व बचाना ही मुश्किल हो जायेगा।


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Friday, June 23, 2023

नारी तू है महान : रानी दुर्गावती ने देश व सनातन धर्म रक्षार्थ लड़े गए 52 युद्धों में से 51 युद्ध में विजय प्राप्त की

23 June 2023

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🚩हिंदुस्तान में जब-जब भी महान और वीरांगना नारियों की वीरगाथा का जिक्र होता है,तो सबसे पहला नाम वीरांगना रानी दुर्गावती का आता है। रानी दुर्गावती वह वीर और साहसी महिला थी, जो राज्य और प्रजा की रक्षा के लिए मुगलों से युद्ध करते करते वीरगति को प्राप्त हो गई । वे बहुत ही बहादुर और साहसी महिला थीं। जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद न केवल उनका राज्य संभाला बल्कि राज्य की रक्षा के लिए कई लड़ाईयां भी लड़ी। रानी दुर्गावती ने 52 युद्धों में से 51 युद्ध में विजय प्राप्त की थी।


🚩गढ़मंडला की वीर तेजस्वी रानी दुर्गावती का नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है । क्योंकि पति की मृत्यु के पश्चात भी रानी दुर्गावती ने अपने राज्य को बहुत ही अच्छे से संभाला था। इतना ही नहीं रानी दुर्गावती ने मुगल शासक अकबर के आगे कभी भी घुटने नहीं टेके थे। इस वीर महिला योद्धा ने तीन बार मुगल सेना को हराया और अपने अंतिम समय में मुगलों के सामने घुटने टेकने के जगह इन्होंने अपनी कटार से ही अपने जीवन का अन्त कर प्राण त्याग दिए । उनके इस वीरतापूर्ण बलिदान के कारण लोगों के हृदय में उनके प्रति सम्मान अमिट हो गया है।


🚩भारत में शूरवीर, बुद्धिमान और साहसी कई वीरांगनाएँ पैदा हुई । जिनके नाम से ही मुगल सल्तनत काँपने लगती थी पर दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत के इतिहास में उनको कहीं स्थान नहीं दिया गया इसके विपरीत क्रूर, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों व अंग्रेजो का इतिहास पढ़ाया जाता है । आज अगर सही इतिहास पढ़ाया जाए तो हमारी भावी पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति की तरफ मुड़कर भी नही देखेगी इतना महान इतिहास है अपना।

 

🚩भारत की नारियों में अथाह सामर्थ्य है, अथाह शक्ति है। प्रत्येक नारी भारतीय संस्कृति के बताये हुए मार्ग के अनुसार अपनी छुपी हुई शक्ति को जाग्रत करके अवश्य महान बन सकती है ।


🚩 विडम्बना यह है कि आज स्वतन्त्रता और फैशन के नाम पर नारियों का शोषण किया जा रहा है। आज की पीढ़ी को ज्ञात ही नहीं कि , नारी अबला नहीं बल्कि सबला है। भारत की महान नारियों में से एक अद्भुत और अदम्य साहस सम्पंन नारी रत्न थीं , महारानी दुर्गावती देवी ।

 

🚩रानी दुर्गावती का जन्म 10 जून, 1525 को तथा हिंदु कालगणनानुसार आषाढ शुक्ल द्वितीया को चंदेल राजा कीर्ति सिंह की पुत्री के रूप में रानी कमलावती के गर्भ से हुआ । वे बाल्यावस्था से ही शूर, बुद्धिमान और साहसी थीं । उन्होंने युद्धकला का प्रशिक्षण भी बचपन से ही लिया । प्रचाप (बंदूक)   भाला, तलवार और धनुष-बाण चलाने में वह प्रवीण थी । गोंड राज्य के शिल्पकार राजा संग्राम सिंह बहुत शूरवीर तथा पराक्रमी थे । उनके सुपुत्र वीर दलपति सिंह का विवाह रानी दुर्गावती के साथ वर्ष 1542 में हुआ । वर्ष 1541 में राजा संग्राम सिंह का निधन होने से राज्य का कार्यभार वीरदलपति सिंह ही देखते थे । रानी का वैवाहिक जीवन 7-8 वर्ष अच्छे से चला और इसी कालावधि में उन्हें एक सुपुत्र भी हुआ , जिसका नाम उन्होंने वीरनारायण सिंह रखा ।

 

🚩रानी दुर्गावती ने राजवंश की बागडोर थाम ली

 

🚩राजा दलपित सिंह की मृत्यु लगभग 1550 ईसवी सदी में हुई । उस समय वीर नारायण की आयु बहुत छोटी होने के कारण, रानी दुर्गावती ने गोंड राज्य की बागडोर (लगाम) अपने हाथों में थाम ली । अधर कायस्थ एवं मन ठाकुर, इन दो मंत्रियों ने सफलतापूर्वक तथा प्रभावी रूप से राज्य का प्रशासन चलाने में रानी की मदद की । रानी ने सिंगौरगढ से अपनी राजधानी चौरागढ स्थानांतरित की । सातपुडा पर्वत से घिरे इस दुर्ग का (किले का) रणनीति की दृष्टि से बडा महत्त्व था।

 

🚩कहा जाता है , कि इस कालावधि में व्यापार बडा फूला-फला । प्रजा संपन्न एवं समृद्ध थी । अपने पति के पूर्वजों की तरह रानी ने भी राज्य की सीमा बढाई तथा बडी कुशलता, उदारता एवं साहस के साथ गोंडवन का राजनैतिक एकीकरण प्रस्थापित किया ।


🚩राज्य के 23000 गांवों में से 12000 गांवों का व्यवस्थापन उनकी सरकार करती थी । अच्छी तरह से सुसज्जित सेना में 20,000 घुडसवार तथा 1000 हाथीदल के साध बडी संख्या में पैदल सेना भी अंतर्भूत थी । रानी दुर्गावती में सौंदर्य एवं उदारता , धैर्य एवं बुद्धिमत्ता का सुंदर संगम था । अपनी प्रजा के सुख के लिए उन्होंने राज्य में कई काम करवाए तथा अपनी प्रजा का हृदय जीत लिया ।


🚩जबलपुर के निकट ‘रानीताल’ नाम का भव्य जलाशय बनवाया । उनकी पहल से प्रेरित होकर उनके अनुयायियों ने चेरीताल का निर्माण किया तथा अधर कायस्थ ने जबलपुर से तीन मील की दूरी पर अधरताल का निर्माण किया । रानी ने अपने राज्य में अध्ययन को भी बढ़ावा दिया ।


🚩शक्तिशाली राजाओं को भी युद्ध में हराया...🚩राजा दलपति सिंह के निधन के उपरांत कुछ शत्रुओं की कुदृष्टि इस समृद्धशाली राज्य पर पड़ी । मालवा के मांडलिक राजा बाजबहादुर ने विचार किया, हम एक दिन में गोंडवाना अपने अधिकार में लेंगे । उसने बडी आशा से गोंडवाना पर आक्रमण किया; परंतु रानी ने उसे पराजित किया । उसका कारण था रानी का संगठन चातुर्य । रानी दुर्गावती द्वारा बाजबहादुर जैसे शक्तिशाली राजा को युद्ध में हराने से उनकी कीर्ति सुदूर फैल गई । सम्राट अकबर के कानों तक जब बात पहुंची , तो वह चकित हो गया । रानी का साहस और पराक्रम देख उनके प्रति आदर व्यक्त करने के लिए अपनी राजसभा के विद्वान 'गोमहापात्र तथा नरहरिमहापात्र’ को रानी की राजसभा में भेज दिया । रानी ने भी उन्हें आदर तथा पुरस्कार देकर सम्मानित किया ।


🚩अकबर ने वीर नारायण सिंह को राज्य का शासक मानकर स्वीकार किया । इस प्रकार से शक्तिशाली राज्य से मित्रता बढने लगी । रानी तलवार की अपेक्षा बंदूक का प्रयोग अधिक करती थी । बंदूक से लक्ष साधने में वह अधिक दक्ष थी । ‘एक गोली एक बली’, ऐसी उनकी आखेट की पद्धति थी । रानी दुर्गावती राज्यकार्य संभालने में बहुत चतुर, पराक्रमी और दूरदर्शी थी।

 

🚩अकबर का सेनानी तीन बार रानी से पराजित

 

🚩अकबर ने वर्ष 1563 में आसफ खान नामक बलशाली सेनानी को गोंडवाना पर आक्रमण करने भेज दिया । यह समाचार मिलते ही रानी ने अपनी व्यूहरचना आरंभ कर दी । सर्वप्रथम अपने विश्वसनीय दूतों द्वारा अपने मांडलिक राजाओं तथा सेनानायकों को सावधान हो जाने की सूचनाएं भेज दीं । अपनी सेना की कुछ टुकडियों को घने जंगल में छिपा रखा और शेष को अपने साथ लेकर रानी निकल पडी । रानी ने सैनिकों को मार्गदर्शन किया । एक पर्वत की तलहटी पर आसफ खान और रानी दुर्गावती का सामना हुआ । बडे आवेश से युद्ध हुआ । मुगल सेना विशाल थी । उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे । इस कारण रानी के सैनिक मरने लगे; परंतु इतने में जंगल में छिपी सेना ने अचानक धनुष-बाण से आक्रमण कर, बाणों की वर्षा की । इससे मुगल सेना को भारी क्षति पहुंची और रानी दुर्गावती ने आसफ खान को पराजित किया । आसफ खान ने एक वर्ष की अवधि में 3 बार आक्रमण किया और तीनों ही बार वह पराजित हुआ।

 

🚩स्वतंत्रता के लिए आत्मबलिदान

 

🚩अंत में वर्ष 1564 में आसफखान ने सिंगारगढ पर घेरा डाला; परंतु रानी वहां से भागने में सफल हुई । यह समाचार पाते ही आसफ खान ने रानी का पीछा किया । पुनः युद्ध आरंभ हो गया । दोनो ओर से सैनिकों को भारी क्षति पहुंची । रानी प्राणों पर खेलकर युद्ध कर रही थीं । इतने में रानी के पुत्र वीरनारायण सिंह के अत्यंत घायल होने का समाचार सुनकर सेना में भगदड मच गई । सैनिक भागने लगे ।


🚩रानी के पास केवल 300 सैनिक थे । उन्हीं सैनिकों के साथ रानी स्वयं घायल होनेपर भी आसफ खान से शौर्य से लड रही थी । उसकी अवस्था और परिस्थिति देखकर सैनिकों ने उसे सुरक्षित स्थान पर चलने की विनती की; परंतु रानी ने कहा, ‘‘मैं युद्ध भूमि छोडकर नहीं जाऊंगी, इस युद्ध में मुझे विजय अथवा मृत्यु में से एक चाहिए ।”


🚩अंतमें घायल तथा थकी हुई अवस्था में उसने एक सैनिक को पास बुलाकर कहा, “अब हमसे तलवार घुमाना असंभव है; परंतु हमारे शरीर का नख भी शत्रु के हाथ न लगे, यही हमारी अंतिम इच्छा है । इसलिए आप भाले से हमें मार दीजिए । हमें वीरमृत्यु चाहिए और वह आप हमें दीजिए।" परंतु सैनिक यह साहस न कर सका, तो रानी ने स्वयं ही अपनी तलवार गले पर चला दी।

 

🚩वह दिन था 24 जून 1564 का । इस प्रकार युद्ध भूमि पर गोंडवाना की स्वतंत्रता के लिए अंतिम क्षण तक वो झूझती रहीं । गोंडवाना पर वर्ष 1549 से 1564 अर्थात् 15 वर्ष तक रानी दुर्गावती का अधिराज्य था, जो मुगलों ने नष्ट किया । इस प्रकार महान पराक्रमी रानी दुर्गावती की नश्वर देह का तो अंत हुआ पर उनकी महानता सदैव स्मरणीय और अनुकरणीय रहेगी । इस महान वीरांगना को हमारा कोटिशः नमन💐🙏 !


🚩आज की भारतीय नारियाँ इन आदर्श नारियों से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ें, ऐसी हमारे देश में शिक्षा दीक्षा की रूपरेखा होनी चाहिए ।

भारत की नारियां अपने बच्चों में सदाचार, संयम आदि उत्तम संस्कारों का सिंचन करें तो वह दिन दूर नहीं,जब पूरे विश्व में सनातन धर्म की दिव्य पताका पुनः लहरायेगी।


🚩भारत की नारियों आपमें बहुत महानता छुपी है । आप चाहे तो शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह जैसे महान पुत्रों को जन्म देकर अपनी कोख को पावन कर सकती हैं। आप पाश्चात्य संस्कृति अपनाकर अपने को दिन-हीन नहीं बनाना।बल्कि ऋषि-मुनियों के बनाए नियमों को पालन कर लाभ लेना एंव परिवार को भी स्वस्थ, सुखी और सम्मानित जीवन की ओर अग्रसर करना । किन्हीं ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु की शरण लेना एवं भगवद्गीता का ज्ञान पचाकर अपने को महान बनाना।


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Thursday, June 22, 2023

समलैंगिकता को प्रोत्साहन देना क्यों गलत है ? जानिए....


22 June 2023

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🚩हमें इस तथ्य पर विचार करने की आवश्यकता है कि अप्राकृतिक सम्बन्ध समाज के लिए क्यों अहितकारक है। अपने आपको आधुनिक बनाने की हौड़ में स्वछन्द सम्बन्ध की पैरवी भी आधुनिकता का परिचायक बन गया है। सत्य यह है कि इसका समर्थन करने वाले इसके दूरगामी परिणामों की अनदेखी कर देते हैं। प्रकृति ने मानव को केवल और केवल स्त्री-पुरुष के मध्य सम्बन्ध बनाने के लिए बनाया है। इससे अलग किसी भी प्रकार का सम्बन्ध अप्राकृतिक एवं निरर्थक है। चाहे वह पुरुष-पुरुष के मध्य हो या स्त्री-स्त्री के मध्य हो। वह विकृत मानसिकता को जन्म देता है। उस विकृत मानसिकता कि कोई सीमा नहीं है। उसके परिणाम आगे चलकर बलात्कार (Rape) , सरेआम नग्न होना (Exhibitionism), पशु सम्भोग (Bestiality), छोटे बच्चों और बच्चियों से दुष्कर्म (Pedophilia), हत्या कर लाश से दुष्कर्म (Necrophilia), मार पीट करने के बाद दुष्कर्म (Sadomasochism) , मनुष्य के शौच से प्रेम (Coprophilia) और न जाने किस-किस रूप में निकलता हैं। अप्राकृतिक सम्बन्ध से संतान न उत्पन्न हो सकना क्या दर्शाता है? सत्य यह है कि प्रकृति ने पुरुष और नारी के मध्य सम्बन्ध का नियम केवल और केवल संतान की उत्पत्ति के लिए बनाया था। आज मनुष्य अपने आपको उन नियमों से ऊपर समझने लगा है। जिसे वह स्वछंदता समझ रहा है। वह दरअसल अज्ञानता है। 


🚩भोगवाद मनुष्य के मस्तिष्क पर ताला लगाने के समान है। भोगी व्यक्ति कभी भी सदाचारी नहीं हो सकता। वह तो केवल और केवल स्वार्थी होता है। इसीलिए कहा गया है कि मनुष्य को सामाजिक हितकारक नियम पालन का करने के लिए बाध्य होना चाहिए। जैसे आप अगर सड़क पर गाड़ी चलाते हैं तब आप उसे अपनी इच्छा से नहीं अपितु ट्रैफिक के नियमों को ध्यान में रखकर चलाते हैं। वहाँ पर क्यों स्वछंदता के मौलिक अधिकार का प्रयोग नहीं करते? अगर करेंगे तो दुर्घटना हो जायेगी। जब सड़क पर चलने में स्वेच्छा की स्वतंत्रता नहीं है। तब स्त्री पुरुष के मध्य संतान उत्पत्ति करने के लिए विवाह व्यवस्था जैसी उच्च सोच को नकारने में कैसी बुद्धिमत्ता है?


🚩कुछ लोगो द्वारा समलैंगिकता के समर्थन में खजुराहो की नग्न मूर्तियाँ अथवा वात्सायन के कामसूत्र को भारतीय संस्कृति और परम्परा का नाम दिया जा रहा है। जबकि सत्य यह है कि भारतीय संस्कृति का मूल सन्देश वेदों में वर्णित संयम विज्ञान पर आधारित शुद्ध आस्तिक विचारधारा हैं।


🚩भौतिकवाद अर्थ और काम पर ज्यादा बल देता हैं। जबकि अध्यातम धर्म और मुक्ति पर ज्यादा बल देता हैं । वैदिक  जीवन में दोनों का समन्वय हैं। एक ओर वेदों में पवित्र धनार्जन करने का उपदेश है। दूसरी ओर उसे श्रेष्ठ कार्यों में दान देने का उपदेश है। एक ओर वेद में सम्बन्ध केवल और केवल संतान उत्पत्ति के लिए है। दूसरी तरफ संयम से जीवन को पवित्र बनाये रखने की कामना है। एक ओर वेद में बुद्धि की शांति के लिए धर्म की और दूसरी ओर आत्मा की शांति के लिए मोक्ष (मुक्ति) की कामना है। धर्म का मूल सदाचार है। अत: कहां गया है कि आचार परमो धर्म: अर्थात सदाचार परम धर्म है। आचारहीन न पुनन्ति वेदा: अर्थात दुराचारी व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। अत: वेदों में सदाचार, पाप से बचने, चरित्र निर्माण, ब्रह्मचर्य आदि पर बहुत बल दिया गया है।


🚩जैसे-

★ यजुर्वेद ४/२८ – हे ज्ञान स्वरुप प्रभु! मुझे दुश्चरित्र या पाप के आचरण से सर्वथा दूर करो तथा मुझे पूर्ण सदाचार में स्थिर करो।

★ ऋग्वेद ८/४८/५-६ – वे मुझे चरित्र से भ्रष्ट न होने दे।

★ यजुर्वेद ३/४५ – ग्राम, वन, सभा और वैयक्तिक इन्द्रिय व्यवहार में हमने जो पाप किया हैं उसको हम अपने से अब सर्वथा दूर कर देते हैं।

★ यजुर्वेद २०/१५-१६ – दिन, रात्रि, जागृत और स्वप्न में हमारें अपराध और दुष्ट व्यसन से हमारे अध्यापक, आप्त विद्वान, धार्मिक उपदेशक और परमात्मा हमें बचाए।

★ ऋग्वेद १०/५/६ – ऋषियों ने सात मर्यादाएं बनाई हैं। उनमें से जो एक को भी प्राप्त होता हैं, वह पापी है। चोरी, व्यभिचार, श्रेष्ठ जनों की हत्या, भ्रूण हत्या, सुरापान, दुष्ट कर्म को बार बार करना और पाप करने के बाद छिपाने के लिए झूठ बोलना।

★ अथर्ववेद ६/४५/१ – हे मेरे मन के पाप! मुझसे बुरी बातें क्यों करते हो? दूर हटों। मैं तुझे नहीं चाहता।

★ अथर्ववेद ११/५/१० – ब्रह्मचर्य और तप से राजा राष्ट्र की विशेष रक्षा कर सकता है।

★ अथर्ववेद११/५/१९ – देवताओं (श्रेष्ठ पुरुषों) ने ब्रह्मचर्य और तप से मृत्यु (दुःख) का नष्ट कर दिया है।

★ ऋग्वेद ७/२१/५ – दुराचारी व्यक्ति कभी भी प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता।

 

🚩इस प्रकार अनेक वेद मन्त्रों में संयम और सदाचार का उपदेश हैं।

🚩खजुराहो आदि की व्यभिचार को प्रदर्शित करने वाली मूर्तियाँ , वात्सायन आदि के अश्लील ग्रन्थ एक समय में भारत वर्ष में प्रचलित हुए वाममार्ग का परिणाम हैं। जिसके अनुसार मांसाहार, मदिरा एवं व्यभिचार से ईश्वर प्राप्ति है। कालांतर में वेदों का फिर से प्रचार होने से यह मत समाप्त हो गया पर अभी भी भोगवाद के रूप में हमारे सामने आता रहता है।

 

🚩मनु स्मृति में समलैंगिकता के लिए दंड एवं प्रायश्चित का विधान होना स्पष्ट रूप से यही दिखाता है कि हमारे प्राचीन समाज में समलैंगिकता किसी भी रूप में मान्य नहीं थी। कुछ कुतर्की यह भी कह रहे हैं कि मनुस्मृति में अत्यंत थोड़ा सा दंड है। उनके लिए मेरी सलाह है कि उसी मनुस्मृति में ब्रह्मचर्य व्रत का नाश करने वाले के लिए मनु स्मृति में दंड का क्या विधान है, जरा देख लें।

 

🚩इसके अतिरिक्त बाइबिल, क़ुरान दोनों में इस सम्बन्ध को अनैतिक, अवांछनीय, अवमूल्यन का प्रतीक बताया गया हैं।


🚩जो लोग यह कुतर्क देते हैं कि समलैंगिकता पर रोक से AIDS कि रोकथाम होती है। उनके लिए विशेष रूप से यह कहना चाहूँगा कि समाज में जितना सदाचार बढ़ेगा, उतना समाज में अनैतिक सम्बन्धों पर रोकथाम होगी। आप लोगों का तर्क कुछ ऐसा है कि आग लगने पर पानी कि व्यवस्था करने में रोक लगने के कारण दिक्कत होगी, हम कह रहे हैं कि आग को लगने ही क्यूँ देते हो? भोग रूपी आग लगेगी तो नुकसान तो होगा ही होगा। कहीं पर बलात्कार होंगे, कहीं पर पशुओं के समान व्यभिचार होगा, कहीं पर बच्चों को भी नहीं बक्शा जायेगा। इसलिए सदाचारी बनो, ना कि व्यभिचारी।

 

🚩एक कुतर्क यह भी दिया जा रहा है कि समलैंगिक समुदाय अल्पसंख्यक है, उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए। मेरा इस कुतर्क को देने वाले सज्जन से प्रश्न है कि भारत भूमि में तो अब अखंड ब्रह्मचारी भी अल्प संख्यक हो चले हैं। उनकी भावनाओं का सम्मान रखने के लिए मीडिया द्वारा जो अश्लीलता फैलाई जा रही हैं उस पर लगाम लगाना भी तो अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा के समान है।

 

🚩एक अन्य कुतर्की ने कहा कि पशुओं में भी समलैंगिकता देखने को मिलती हैं। मेरा उस बंधू से एक ही प्रश्न हैं कि अनेक पशु बिना हाथों के केवल जिव्हा से खाते हैं, आप उनका अनुसरण क्यूँ नहीं करते? अनेक पशु केवल धरती पर रेंग कर चलते हैं आप उनका अनुसरण क्यूँ नहीं करते ? चकवा चकवी नामक पक्षी अपने साथी कि मृत्यु होने पर होने प्राण त्याग देता हैं, आप उसका अनुसरण क्यों नहीं करते?

 

🚩ऐसे अनेक कुतर्क हमारे समक्ष आ रहे हैं जो केवल भ्रामक सोच का परिणाम हैं।

 

🚩जो लोग भारतीय संस्कृति और प्राचीन परम्पराओं को दकियानूसी और पुराने ज़माने कि बात कहते हैं वे वैदिक विवाह व्यवस्था के आदर्शों और मूलभूत सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं। चारों वेदों में वर-वधु को महान वचनों द्वारा व्यभिचार से परे पवित्र सम्बन्ध स्थापित करने का आदेश है। ऋग्वेद के मंत्र के स्वामी दयानंद कृत भाष्य में वर वधु से कहता है- हे स्त्री! मैं सौभाग्य अर्थात् गृहाश्रम में सुख के लिए तेरा हस्त ग्रहण करता हूँ और इस बात की प्रतिज्ञा करता हूँ कि जो काम तुझको अप्रिय होगा उसको मैं कभी ना करूँगा। ऐसे ही स्त्री भी पुरुष से कहती है कि जो कार्य आपको अप्रिय होगा वो मैं कभी न करूँगी और हम दोनों व्यभिचारआदि दोषरहित हो के वृद्ध अवस्था पर्यन्त परस्पर आनंद के व्यवहार करेंगे। परमेश्वर और विद्वानों ने मुझको तेरे लिए और तुझको मेरे लिए दिया हैं, हम दोनों परस्पर प्रीति करेंगे तथा उद्योगी हो कर घर का काम अच्छी तरह और मिथ्याभाषण से बचकर सदा धर्म में ही वर्तेंगे। सब जगत का उपकार करने के लिए सत्यविद्या का प्रचार करेंगे और धर्म से संतान को उत्पन्न करके उनको सुशिक्षित करेंगे। हम दूसरे स्त्री और दूसरे पुरुष के साथ मन से भी व्यभिचार ना करेंगे।

 

🚩एक और गृहस्थ आश्रम में इतने उच्च आचार और विचार का पालन करने का मर्यादित उपदेश हैं , दूसरी ओर पशु के समान स्वछन्द अमर्यादित सोच हैं। पाठक स्वयं विचार करें कि मनुष्य जाति कि उन्नति उत्तम गृहस्थी बनकर समाज को संस्कारवान संतान देने में हैं अथवा पशुओं के समान कभी इधर कभी उधर मुँह मारने में हैं।


🚩समलैंगिकता एक विकृत सोच है, मनोरोग है, बीमारी है। इसका समाधान इसका विधिवत उपचार है। ना कि इसे प्रोत्साहन देकर सामाजिक व्यवस्था को भंग करना है। इसका समर्थन करने वाले स्वयं अंधेरे में हैं, ओरो को भला क्या प्रकाश दिखायेंगे। कभी समलैंगिकता का समर्थन करने वालो ने भला यह सोचा है कि अगर सभी समलैंगिक बन जायेंगे तो अगली पीढ़ी कहाँ से आयेगी? सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को दंड की श्रेणी से बाहर निकालने का हम पुरजोर असमर्थन करते हैं। – डॉ विवेक आर्य


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Wednesday, June 21, 2023

कुछ स्वार्थी लोग गीता प्रेस को करते रहे बदनाम जबकि गीताप्रेस ने 41 करोड़ किताबें छापकर घर-घर में बनाई अपनी जगह.....

 


कुछ स्वार्थी लोग गीता प्रेस को करते रहे बदनाम जबकि गीताप्रेस ने 41 करोड़ किताबें छापकर घर-घर में बनाई अपनी जगह.....


21 June 2023

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🚩100 वर्ष से धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन कर उन्हें देश-विदेश तक पहुँचाने का माध्यम बनने वाली गीता प्रेस को साल 2021 के लिए गाँधी शांति पुरस्कार मिला। लेकिन कॉन्ग्रेसी नेता जयराम रमेश समेत कई अन्य इससे किलस गए और उन्होंने गीता प्रेस को अवार्ड मिलने को कहा कि ये बिलकुल ऐसा है जैसे सावरकर या गोडसे को सम्मान मिला हो।


🚩जयराम रमेश के ट्वीट पर उन्हें सोशल मीडिया यूजर्स खूब लताड़ लगा रहे हैं। भाजपा नेता शहजाद जय हिंद ने कहा कि हैरानी नहीं हो रही कि कॉन्ग्रेसियों को गीता प्रेस से दिक्कत है। अगर ये कोई और प्रेस होती तो इसकी प्रशंसा होती है लेकिन गीता प्रेस के कारण इन्हें समस्या है। कॉन्ग्रेस को मुस्लिम लीग सेकुलर लगती है मगर गीता प्रेस कम्युनल है। जाकिर नाइक शांति का मसीहा है पर गीता प्रेस सांप्रदायिक है। कॉन्ग्रेस को चाहिए कर्नाटक में गाय कटे। ये गीता को जिहाद से जोड़ते हैं। प्रभु श्रीराम और राम मंदिर का विरोध करते हैं।


🚩इसी तरह राजद प्रवक्ता मनोज झा ने भी गीता प्रेस को गाँधी पीस प्राइज दिए जाने पर सवाल खड़े किए और कहा कि सरकार पूर्ण रूम से गाँधी विरोधी है। सरकार को चाहिए कि वो गीता प्रेस को जितना मन हो उतना पैसा दें। लेकिन गाँधी के नाम पर न दें। राजद प्रवक्ता का ऐसा भ्रामक बयान तब आया है जब गीता प्रेस ये बात स्पष्ट कर चुका है कि उन्हें गाँधी शांति पुरस्कार-2021 स्वीकार है लेकिन वो इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपए की राशि नहीं लेंगे


🚩बता दें कि गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गाँधी शांति पुरस्कार दिया गया है। यहाँ धार्मिक किताबें प्रकाशित होती हैं और एक बार इनपर जिल्द चढ़ने के बाद इन्हें कभी जमीन पर नहीं रखा जाता। इन्हें रखने के लिए लकड़ी के फट्टे हैं। इसके अलावा इन्हें मशीन से नहीं हाथों से चिपकाया जाता है,क्योंकि बाजार में बिकने वाली गोंद में जानवरों से जुड़ी चीजें मिली होती हैं। गीताप्रेस सालाना 2 करोड़ से ज्यादा पुस्तक छापकर देश विदेश भेजती है। 100 सालों में प्रेस ने 41 करोड़ से ज्यादा पुस्तकें छापी हैं।


🚩घर-घर गीता प्रेस पहुँचाने वाले श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार

उल्लेखनीय है कि आज गीता प्रेस द्वारा करोड़ों की तादाद में प्रकाशित की जा रही किताबें हर साल बिकती हैं। लोग केवल गीता प्रेस लिखा होने भर से उसे खरीद लेते हैं। मगर इसके प्रति इतना विश्वास लोगों में यूँ ही नहीं बना। साल 1923 में इसकी शुरुआत होने के बाद ये धीरे-धीरे लोगों तक पहुँची और इसे घर-घर तक पहुँचाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो हनुमान प्रसाद पोद्दार हैं। जिन्होंने अलीपुर जेल में श्री ऑरोबिंदो (उस समय बाबू ऑरोबिंदो घोष) के साथ बंद रहते हुए जेल में ही गीता का अध्ययन शुरू कर दिया था।


🚩वहीं से छूटने के बाद उनका ध्यान इस बात पर गया कि कैसे कलकत्ता ईसाई मिशनरी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ था, जहाँ बाइबिल के अलावा ईसाईयों की अन्य किताबें भी, जिनमें हिन्दुओं की धार्मिक परम्पराओं के लिए अनादर से लेकर झूठ तक भरा होता था, सहज उपलब्ध थीं। लेकिन गीता- जो हिन्दुओं का सर्वाधिक जाना-माना ग्रन्थ था, उसकी तक ढंग की प्रतियाँ उपलब्ध नहीं थीं। इसीलिए बंगाली तेज़ी से हिन्दू से ईसाई बनते जा रहे थे।


🚩1926 में हुए मारवाड़ी अग्रवाल महासभा के दिल्ली अधिवेशन में पोद्दार की मुलाकात सेठ घनश्यामदास बिड़ला से हुई, जिन्होंने आध्यात्म में पहले ही गहरी रुचि रखने वाले पोद्दार को सलाह दी कि जन-सामान्य तक आध्यात्मिक विचारों और धर्म के मर्म को पहुँचाने के लिए आम भाषा (आज हिंदी, उस समय की ‘हिन्दुस्तानी’) में एक सम्पूर्ण पत्रिका प्रकाशित होनी चाहिए। पोद्दार ने उनके इस विचार की चर्चा जयदयाल गोयनका से की, जो उस समय तक गोबिंद भवन कार्यालय के अंतर्गत गीता प्रेस नामक प्रकाशन का रजिस्ट्रेशन करा चुके थे।


🚩गोयनका ने पोद्दार को अपनी प्रेस से यह पत्रिका निकालने की ज़िम्मेदारी दे दी, और इस तरह ‘कल्याण’ पत्रिका का उद्भव हुआ, जो तेज़ी से हिन्दू घरों में प्रचारित-प्रसारित होने लगी। आज कल्याण के मासिक अंक लगभग हर प्रचलित भारतीय भाषा और इंग्लिश में आने के अलावा पत्रिका का एक वार्षिक अंक भी प्रकाशित होता है, जो अमूमन किसी-न-किसी एक पुराण या अन्य धर्मशास्त्र पर आधारित होता है।


🚩गीता प्रेस की स्थापना के पीछे का दर्शन स्पष्ट था- प्रकाशन और सामग्री/जानकारी की गुणवत्ता के साथ समझौता किए बिना न्यूनतम मूल्य और सरलतम भाषा में धर्मशास्त्रों को जन-जन की पहुँच तक ले जाना। हालाँकि गीता प्रेस की स्थापना गैर-लाभकारी संस्था के रूप में हुई, लेकिन गोयनका-पोद्दार ने इसके लिए चंदा लेने से भी इंकार कर दिया, और न्यूनतम लाभ के सिद्धांत पर ही इसे चलाने का निर्णय न केवललिया, बल्कि उसे सही भी साबित करके दिखाया। 5 साल के भीतर गीता प्रेस देश भर में फ़ैल चुकी थी, और विभिन्न धर्मग्रंथों का अनुवाद और प्रकाशन कर रही थी। गरुड़पुराण, कूर्मपुराण, विष्णुपुराण जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों का प्रकाशन ही नहीं, पहला शुद्ध और सही अनुवाद भी गीता प्रेस ने ही किया।


🚩बम्बई से आई गोरखपुर, गोरखधाम बना संरक्षक

गीता प्रेस ने श्रीमद्भागवत गीता और रामचरितमानस की करोड़ों प्रतियाँ प्रकाशित और वितरित की हैं। इसका पहला अंक वेंकटेश्वर प्रेस बम्बई से प्रकाशित हुआ, और एक साल बाद इसे गोरखपुर से ही प्रकाशित किया जाने लगा। उसी समय गोरखधाम मन्दिर के प्रमुख और नाथ सम्प्रदाय के सिरमौर की पदवी को प्रेस का मानद संरक्षक भी नामित किया गया- यानी आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और नाथ सम्प्रदाय के मुखिया योगी आदित्यनाथ गीता प्रेस के संरक्षक हैं।


🚩गीता प्रेस की सबसे खास बात है कि इतने वर्षों में कभी भी उस पर न ही सामग्री (‘content’) की गुणवत्ता के साथ समझौते का इलज़ाम लगा, न ही प्रकाशन के पहलुओं के साथ- वह भी तब जब 60 करोड़ से अधिक प्रतियाँ प्रेस से प्रकाशित हो चुकीं हैं। 96 वर्षों से अधिक समय से इसका प्रकाशन उच्च गुणवत्ता के कागज़ पर ही होता है, छपाई साफ़ और स्पष्ट, अनुवाद या मुद्रण (printing) में शायद ही कभी कोई त्रुटि रही हो, और subscription लिए हुए ग्राहकों को यह अमूमन समय पर पहुँच ही जाती है- और यह सब तब, जबकि पोद्दार ने इसे न्यूनतम ज़रूरी मुनाफे के सिद्धांत पर चलाया, और यही सिद्धांत आज तक गीता प्रेस गोरखपुर में पालित होता है। न ही गीता प्रेस पाठकों से बहुत अधिक मुनाफ़ा लेती है, न ही चंदा- और उसके बावजूद गुणवत्ता में कोई कमी नहीं।


🚩‘भाई जी’ कहलाने वाले पोद्दार ने ऐसा सिस्टम बना और चला कर यह मिथक तोड़ दिया कि धर्म का काम करने में या तो धन की हानि होती है (क्योंकि मुनाफ़ा कमाया जा नहीं सकता), या फिर गुणवत्ता की (क्योंकि बिना ‘पैसा पीटे’ उच्च गुणवत्ता वाला काम होता नहीं है)। उन्होंने मुनाफ़ाखोरी और फकीरी के दोनों चरम छोरों पर जाने से गीता प्रेस को रोककर, ethical business और धर्म-आधारित entrepreneurship का उदाहरण प्रस्तुत किया।



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