Monday, July 24, 2023

मूताबिक खालिद बोला हिंदू लड़कियों का धर्मांतरण कराने के बदले में मिलते हैं पैसे...


24 July 2023

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🚩सोशल मीडिया में लव जिहाद की भयंकर घटनाओं को देखकर जागरूकता आई और लव जिहाद में हिंदू युवतियां फसने में कमी आने लगी अब मुस्लिम लड़के अपना नाम हिंदू बताकर हिंदू युवतियों को लव जिहाद में फसाने लगे है। इसलिए हिन्दू युवतियों को सावधान रहना चाहिए अपने माता पिता के अनुसार ही शादी करके अपना सुखमय जीवन बिताए नही तो समाज में झूठे प्रेमजाल में फसाने के लिए कई गिद्ध बैठे , प्रेम में फसाने के बाद ये गिद्ध आपकी जिंदगी नरकमय बना देंगे फिर आपकी समाज में कोई इज्जत नही रहेगी आपके माता पिता सर ऊंचा करके नही बोल पाएंगे और आपका कैरियर भी नही बन पाएगा इसलिए सावधान रहे।


🚩गाजीबाद की घटना से सबक लेना चाहिए 


🚩गाजियाबाद अब धर्मांतरण के खेल का अड्डा जैसा बन गया है। कविनगर और खोड़ा में धर्मांतरण कराने वाले गिरोहों के खुलासे के बाद अब विजयनगर में एक युवती के धर्मांतरण का मामला सामने आया है। युवती का आरोप है कि खालिद चौधरी ने न सिर्फ उसे दिल्ली की मस्जिद में ले जाकर उसका धर्मांतरण कराया, बल्कि उसे गोमांस खाने के लिए भी मजबूर किया था। विजयनगर पुलिस ने आरोपी खालिद चौधरी के खिलाफ धर्मांतरण, रेप, और ब्लैकमेलिंग का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।


🚩दिल्ली की रहने वाली पीड़ित युवती ने बताया कि वर्ष 2020 में फेसबुक पर दीपक चौधरी नाम के एक युवक से उसकी मुलाकात और दोस्ती हुई थी, और फिर दोनों एक दूसरे से मोबाइल पर बातें करने लगे। दीपक ने अपना परिचय पत्रकार के रूप में दिया था। युवती के मुताबिक, दीपक चौधरी ने उसे प्रेम जाल में फंसाकर उसके साथ रेप किया और इस दौरान उसकी अश्लील वीडियो बनाने के साथ और फोटो भी खींच लिए। कुछ समय बाद जब युवती को पता चला कि दीपक का असली नाम खालिद चौधरी है और वह मुसलमान है, तो दूसरे धर्म का होने के चलते युवती ने उसे संबंध खत्म करना चाहा। इस पर खालिद चौधरी ने युवती के अश्लील फोटो और वीडियो वायरल करने की धमकी देकर उसे ब्लैकमेल करने लगा और खुद के पत्रकार होने का रौब झाड़ते हुए उस अंजाम भुगतने की धमकी देने लगा।


🚩प्रेग्नेंसी में बार-बार जबरन शारीरिक संबंध बनाकर किया गर्भपात

पीड़िता का कहना है कि खालिद चौधरी विजय नगर थाना क्षेत्र के मिर्जापुर का रहने वाला है। आरोपी के साथ रिलेशन से जब वह गर्भवती हो गई तो खालिद चौधरी उस पर गर्भपात कराने का दबाव डाला। आरोप है कि युवती द्वारा गर्भपात से इनकार करने पर खालिद चौधरी ने उसके साथ बार-बार लगातार शारीरिक संबंध बनाए, जिससे उसका गर्भपात हो गया। युवती के मुताबिक, खालिद चौधरी ने उसके शरीर पर अपने नाम का टैटू भी गुदवा दिया था।


🚩दिल्ली की मस्जिद में ले जाकर धर्मांतरण कराया 

युवती का कहना है कि उसने खालिद चौधरी के परिजनों को इस बारे में बताया तो उन्होंने भी उस पर धर्मांतरण का दबाव डाला। इसके बाद खालिद उसे निजामुद्दीन की एक मस्जिद में ले गया और वहां जबरन उसका धर्मांतरण करा दिया। इसके बाद खालिद ने उसे गोमांस खाने के लिए भी मजबूर किया।


🚩आरोपी बोला -हिंदू लड़कियों का धर्मांतरण कराने के बदले में मिलते हैं पैसे

युवती के मुताबिक, खालिद चौधरी ने उसका नाम बदलकर मुस्लिम नाम रखवा दिया था। इतना ही नहीं उसने यह भी कहा कि हिंदू लड़कियों का धर्मांतरण कराने के लिए उन्हें ऊपर से हुक्म दिया जाता है और इसके बदले में उन्हें पैसे भी मिलते हैं। खालिद चौधरी का सच सामने आने पर युवती ने पुलिस अधिकारियों से मदद और इंसाफ की गुहार लगाई है, जिसके बाद विजयनगर थाना पुलिस ने उसके खिलाफ धर्मांतरण, रेप और अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया है। डीसीपी सिटी निपुण अग्रवाल का कहना है कि केस दर्ज कर आगामी कार्रवाई की जा रही है।


🚩हिन्दू समाज के साथ 1200 वर्षों से मजहब के नाम पर अत्याचार होता आया है। सबसे खेदजनक बात यह है कि कोई इस अत्याचार के बारे में हिन्दुओं को बताये तो हिन्दू खुद ही उसे गंभीरता से नहीं लेते क्यूंकि उन्हें सेकुलरिज्म के नशे में रहने की आदत पड़ गई है। रही सही कसर हमारे पाठ्यक्रम ने पूरी कर दी जिसमें अकबर महान, टीपू सुल्तान देशभक्त आदि पढ़ा-पढ़ा कर इस्लामिक शासकों के अत्याचारों को छुपा दिया गया। अब भी कुछ बचा था तो संविधान में ऐसी धारा डाल दी गई जिसके अनुसार सार्वजनिक मंच अथवा मीडिया में इस्लामिक अत्याचारों पर विचार करना धार्मिक भावनाओं को भड़काने जैसा करार दिया गया। इस सुनियोजित षड़यंत्र का परिणाम यह हुआ कि हिन्दू समाज अपना सत्य इतिहास ही भूल गया और लव जिहाद जैसे में फसकर अपना जीवन बर्बाद कर लेते है।


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Sunday, July 23, 2023

काशी विश्‍वनाथ मंदिर का निर्माण कब हुआ ?

 काशी विश्‍वनाथ मंदिर का निर्माण कब हुआ?

कितनी बार विधर्मियों द्वारा ध्वस्त किया गया? 

और फिर कितनी बार पुनर्निर्मित हुआ...???

जानिए विस्तार से...


23 July 2023

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🚩अखंड भारत सोने की चिड़िया कहलाता था, इसलिए अनेक विदेशी आक्रांताओं की नजर भारत की संपत्ति पर थी। विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत को आकर लुटा लेकिन साथ में भारतीय सनातन संस्कृति को विकृत भी कर दिया और हिंदुओं का कत्ल भी किया,महिलाओं के साथ बलात्कार भी किये और भारत के मंदिरों को तोड़कर वहां मस्जिदें भी बनवा दी।

 

🚩भारत में कितने लाखों या अधिक मंदिर तोड़े गए कोई नहीं बता सकता !

लेकिन तीन मुख्य मंदिर,जो अधिक चर्चित रहे...

अयोध्या में श्री रामजन्मभूमि मंदिर , मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान एवं काशी में बाबा विश्वनाथ धाम मंदिर

इन तीर्थ धामों को भी इस्लामी आक्रमणकारियों ने तोड़कर कब्जा कर लिया। आपने गत वर्षों में अयोध्या का इतिहास तो भली-भांति जान लिया होगा। फिर कभी किसी पोस्ट में हम मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर भी चर्चा अवश्य करेंगे।

तो अब आज आपके साथ काशी विश्वनाथ के इतिहास के बारे में कुछ जानकारी साझा कर रहे हैं।

 

🚩द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है, इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था,कालान्तर में उसी का सम्राट विक्रमादित्य ने भी जीर्णोद्धार करवाया था। उसी हिन्दुओ के पवित्रतम पुण्य तीर्थ, ज्योतिर्लिंग धाम को 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तोड़वा दिया था।

 

🚩इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को प्रथम बार सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनवाया गया ।

लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया।

फिर कालान्तर में इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर तोड़ने के लिए सेना भेज दी। हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण वह सेना विश्वनाथ मंदिर परिसर के मुख्य केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के अन्य 63 मंदिर तोड़ दिए ।


🚩डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब 'दान हारावली' में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित 'मासीदे आलमगिरी' में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां विश्वनाथ ( ज्ञानवापी कूए के समीप स्थित होने से स्थान का नाम आज भी ज्ञानवापी ही है ) मंदिर तोड़कर एक मस्जिद (नाम दिया ज्ञानवापी मस्जिद) बनाई गई। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था।तभी तो आज के उत्तर प्रदेश के 90 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज ब्राह्मण हैं।

 

🚩सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होल्कर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए। 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया। 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार करवाया गया था।

 

🚩अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया और जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।

 

🚩सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मं‍डप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने 'वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल' को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया।


🚩मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फिट का गहरा कुआं है,जिसे ज्ञानवापी कुआं कहा जाता है। मुस्लिम आक्रांताओं ने कब्जा कर , इस कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम कर दिया।🚩स्कंद पुराण में कहा गया है, कि भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था। ज्ञानवापी मंदिर भगवान शिव का प्राचीन मंदिर था। मुस्लिम आक्रांता औरंगजेब ने 1669 में मंदिर तोड़कर वहां पर मस्जिद बनवाई।

वैसे तो ऐसे अनगिनत जगह है जहां मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई हुई हैं। इस घटना का वर्णन इसिहास में मिलता है तथा सर्वे के दौरान मस्जिद में मूर्तियों के अवशेष भी मिले हैं।


🚩अब सत्य को कोई कितना ही दबाए छुपाए , पर वह उजागर होकर ही रहता है। ज्ञानवापी परिसर के अंदर ही बाबा नंदी की प्रतिमा मौजूद है,यह प्रतिमा मस्जिद या ढांचे की तरफ देख रही है । इतिहासकारों ने दावा किया है कि, उस ढाँचे के अंदर हनुमान जी और गणेश जी की भी प्रतिमाएं हैं। ......और जिसे ज्ञानवापी का तहखाना कहा जा रहा है , दरअसल वो पुराने तोड़े गए विश्वनाथ मंदिर का गर्भगृह है । विश्वनाथ मंदिर के पक्षकार विजय शंकर रस्तोगी जी ने दावा किया है, कि मस्जिद में एक तहखाना है और तहखाने में अत्यंत विशाल शिवलिंग आज भी विद्यमान है।

अभी भी यहां देवी देवताओं के मूर्ति के चिन्ह व सनातन धर्म संबंधी अनेको चिन्ह(जैसे कमल , कलश आदि) मिलते हैं । इससे साफ होता है, कि ज्ञानवापी मस्जिद नहीं मंदिर है।

 

🚩इतिहास की किताबों में 11 से 15वीं सदी के कालखंड में मंदिरों का जिक्र और उसके विध्वंस की बातें भी सामने आती हैं। मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब 'विविध कल्प तीर्थ' में लिखा है कि "बाबा विश्वनाथ धाम" को "देव क्षेत्र" कहा जाता था। लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है, कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर मस्जिदों में तब्दील हुए थे। 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक 'तीर्थ चिंतामणि' में वर्णन किया है, कि अविमुक्तेश्वर और विश्वेश्वर एक ही लिंग हैं ।


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Saturday, July 22, 2023

सुभाष चन्द्र बोस ने अपने मित्र को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी के बारे में जो लिखा,वो हर नागरिक को पढ़ना चाहिए...

22 July 2023

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🚩नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को जब बरहमपुर जेल से मांडले जेल के लिए स्थानांतरित करने का आदेश मिला तब उन्होंने अपने मित्र केलकर को माँ भारती के सपूत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी बारे में पत्र लिखकर जो कुछ बताया...वो प्रत्येक भारतीय नागरिक को पढ़ना चाहिए । आज जो हम आजादी की,चैन की सांसे ले रहे हैं, उसके पीछे महापुरुषों ने कितने बलिदान दिए हैं...इसकी भी हमें जानकारी होना जरूरी है।


🚩 तिलक जी के बारे में उक्त पत्र में लिखे गए नेता जी के विचार पढ़े...


🚩प्रिय श्री केलकर


🚩मैं पिछले कई महीनों से आपको पत्र लिखने की सोच रहा था। जिसका कारण केवल यह रहा हैं, कि आप तक ऐसी जानकारी पहुंचा दूँ, जिसमें आपको रुचि होगी। मैं नहीं जानता आपको मालूम हैं या नहीं कि मैं यहाँ गत जनवरी से कारावास में हूँ। जब बरहमपुर जेल से मुझे मांडले जेल के लिए स्थानांतरित करने का आदेश मिला , तब मुझे यह स्मरण नहीं आया कि लोकमान्य तिलक ने अपने कारावास का अधिकतर समय मांडले जेल में ही गुजारा था। इस चार- दीवारी में, यहाँ के बहुत हतोत्साहित कर देने वाले परिवेश में, स्वर्गीय लोकमान्य तिलक ने सुप्रसिद्ध ‘गीता भाष्य ग्रन्थ’ लिखा था। जिसने मेरी नम्र राय में उन्हें शंकर और रामानुजन जैसे प्रकांड भाष्यकारों की श्रेणी में स्थापित कर दिया है। 


🚩जेल के जिस वार्ड में लोकमान्य तिलक रहते थे, वह आज तक सुरक्षित है। यद्यपि उसमें फेरबदल किया गया है और उसे बड़ा बनाया गया है। हमारे अपने जेल वार्ड की तरह, वह लकड़ी के तख्तों से बना हुआ है।  जिससे गर्मी में लूँ और धुप से, वर्षा में पानी से, शीत में सर्दी तथा सभी मौसम में धूल-भरी आंधियों से बचाव नहीं हो पाता था। मेरे यहाँ पहुँचने के कुछ ही क्षण बाद मुझे वार्ड का परिचय दिया गया।  मुझे यह बात बहुत अच्छी नहीं लग रही थी कि मुझे भारत से निष्कासित किया था। लेकिन मैंने भगवान को धन्यवाद दिया कि मांडले में अपनी मातृभूमि और स्वदेश से बलात अनुपस्थिति के बावजूद मुझे तिलक जी की वह पवित्र स्मृतियाँ राहत व प्रेरणा देगी। मथुरा की जेल की तरह यह भी एक ऐसा तीर्थ स्थल हैं, क्योकि वहां श्रीकृष्ण अवतरित हुए थे और यहां भारत का एक महानतम सपूत छ: वर्षों तक रहा था। 


🚩हम सिर्फ इतना ही जानते हैं, कि लोकमान्य ने कारावास में छ वर्ष बिताए हैं।  मुझे विश्वास है, कि बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि उस अवधि में उन्हें किस हद तक शारीरिक और मानसिक यातनाओं से गुजरना पड़ा था।  वे वहां एकदम अकेले रहे उन्हें उनके बौद्धिक स्तर का कोई साथी नहीं मिला था।  मुझे विश्वास हैं, कि उनको किसी अन्य बंदी से भी मिलने-जुलने नहीं दिया जाता था।  उनको सांत्वना देने वाली एकमात्र वस्तु किताबें थी।  और वे एक कमरे में बिलकुल एकांकी रहते थे।  यहाँ रहते हुए उन्हें दो या तीन से अधिक मुलाकात का भी अवसर नहीं दिया गया था।  ये भेट भी जेल और पुलिस अधिकारियों के साथ हुआ करती थी। जिससे वे कभी खुलकर हार्दिकता से बात नहीं कर पाए होंगे।  उन तक कोई भी अख़बार नहीं पहुँचने दिया जाता था। उनकी जैसे प्रतिष्ठित नेता को बाहरी दुनिया के घटनाचक्र से एकदम अलग कर देना ,एक तरह की घोर यातना ही है और इस यंत्रणा को जिसने भुगता है,  वही जान सकता है। इसके अलावा उनके कारावास की अधिकांश अवधि में देश का राजनैतिक जीवन मंद गति से खिसक रहा था और इस विचार ने उन्हें कोई संतोष नहीं दिया होगा कि जिस उद्देश्य को उन्होंने अपनाया था ,वह उनकी अनुपस्थिति में किस गति से आगे बढ़ रहा है। उनकी शारीरिक यंत्रणा के बारे में जितना ही कम कहा जाए, बेहतर होगा। 


🚩वे दंड संहिता के अंतर्गत बंदी थे और इस प्रकार आज के राजबंदियो की अपेक्षा कुछ मायनों में उनकी दिनचर्या कही अधिक कठोर रही होगी| इसके अलावा उन्हें मधुमेह की बीमारी थी | जब लोकमान्य यहाँ थे ,मांडले का मौसम तब भी प्रायः ऐसा रहा होगा जैसा वह आजकल है और अगर आज नौजवानों को शिकायत है कि वहां की जलवायु शिथिल कर देने वाली और मन्दाग्नि तथा गठिया को जन्म देने वाली है और धीरे -धीरे वह व्यक्ति की जीवनी शक्ति को सोख लेती है । तो लोकमान्य ने ,जो वयोवृद्ध थे ,कितना कष्ट झोला होगा...!!

लेकिन इस कारागार की चहारदीवारियों में उन्होंने क्या यातनाएँ सही ,इसके विषय में लोगों को बहुत कम जानकारी है ।


🚩कितने लोगों को पता होता है, उन अनेक छोटी -छोटी बातों का ,जो किसी बंदी के जीवन में सुइयों की-सी चुभन बन जाती है और जीवन को दुर्भर बना देती है। वे गीता की भावना में मग्न रहते थे और शायद इसलिए दुःख और यंत्रणाओं से ऊपर रहते थे । यहीं कारण है , कि उन्होंने उन यंत्रणाओं के बारे में किसी से कभी एक शब्द भी नहीं कहा । समय -समय पर मैं इस सोच में डूबता रहा हूँ, कि कैसे लोकमान्य को अपनेबहुमूल्य जीवन के छह लंबे वर्ष इन परिस्थितियों में बिताने के लिए विवश होना पड़ा होगा।


🚩हर बार मैंने अपने आपसे पूछा ‘अगर नौजवानों को इतना कष्ट महसूस होता है, तो महान लोकमान्य को अपने समय में कितनी पीड़ा सहनी पड़ी होगी । जिसके विषय में उनके देशवासियों को कुछ भी पता नहीं !?

यह विश्व भगवान की कृति है , लेकिन जेलें मानव के कृतित्व की निशानी हैं। उनकी अपनी एक अलग दुनिया है और सभ्य समाज ने जिन विचारो और संस्कारों को प्रतिबद्ध होकर स्वीकार किया है। वे जेलों पर लागू नहीं होते हैं। अपनी आत्मा के हास्य के बिना, बंदी जीवन के प्रति अपने आपको अनुकूल बना पाना आसान नहीं है। इसके लिए हमें पिछली आदतें छोड़नी होती हैं और फिर भी स्वास्थ्य और स्फूर्ति बनाए रखनी पड़ती है। सभी नियमों के आगे नत होना होता है और फिर भी आंतरिक प्रफुल्लता अक्षुण्ण रखनी होती है। केवल लोकमान्य जैसा दार्शनिक ही, उस यन्त्रणा और दासता के बीच मानसिक संतुलन बनाए रख सकता था और भाष्य जैसे विशाल एवं युग निर्माणकारी ग्रन्थ का प्रणयन कर सकता था। मैं जितना ही इस विषय पर चिन्तन करता हूँ। उतना ही उनके प्रति आस्था और श्रद्धा में डूब जाता हूँ। आशा करता हूँ, कि मेरे देशवासी लोकमान्य की महत्ता को आंकते हुए इन सभी तथ्यों को भी दृष्टि पथ में रखेंगे...💐🙏 


🚩जो महापुरुष मधुमेह से पीड़ित होने के बावजूद इतने सुदीर्घ कारावास को झेलता गया और जिसने उन अन्धकारमय दिनों में अपनी मातृभूमि के लिए ऐसी अमूल्य भेंट तैयार की, उसे विश्व के महापुरुषों की श्रेणी में प्रथम पंक्ति में स्थान मिलना चाहिए...


🚩लोकमान्य ने प्रकृति के जिन अटल नियमों से अपने बंदी जीवन के दौरान टक्कर ली थी।  उनको अपना बदला लेना ही था। अगर मैं कहूँ तो मेरा विश्वास है,कि लोकमान्य ने जब मांडले को अंतिम नमस्कार किया था। तो उनके जीवन के दिन गिने चुने ही रह गये थे। निःसंदेह यह एक गंभीर दुःख का विषय है,कि हम अपने महानतम पुरुषों को इस प्रकार खोते रहे। लेकिन मैं यह भी सोचता हूँ,कि क्या वह दुखद दुर्भाग्य किसी न किसी प्रकार टाला नहीं जा सकता था !?


🚩आपको बता दें, कि लोकमान्य तिलक जी ने हिन्दी भाषा को खूब प्रोत्साहित किया ।

वे कहते थे : ‘‘ अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए बच्चों को सात-आठ वर्ष तक अंग्रेजी पढ़नी पड़ती है । जीवन के ये आठ वर्ष कम नहीं होते । ऐसी स्थिति विश्व के किसी और देश में नहीं है । ऐसी शिक्षा-प्रणाली किसी भी सभ्य देश में नहीं पायी जाती ।’’


🚩जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, उसी प्रकार समाज में कोई भी बड़ा परिवर्तन लाना हो तो किसी-न-किसी को तो पहला कदम उठाना ही पड़ता है और फिर धीरे-धीरे एक कारवां बन जाता है व उसके पीछे-पीछे पूरा समाज चल पड़ता है ।


🚩हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा को उसका खोया हुआ सम्मान और गौरव दिलाने के लिए व्यक्तिगत स्तर से पहल चालू करनी चाहिए ।एक-एक मति के मेल से ही बहुमति और फिर सर्वजनमति बनती है । हमें अपने दैनिक जीवन में से अंग्रेजी को तिलांजलि देकर विशुद्ध रूप से मातृभाषा अर्थात् हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए । राष्ट्रीय अभियानों, राष्ट्रीय नीतियों व अंतराष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु अंग्रेजी नहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी ही साधन बननी चाहिए ।


🚩बात दें, कि सन् 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत की। 


🚩तिलकजी ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे महज धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने, समाज को संगठित करने के साथ ही उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया, जिसका ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा...!!


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Friday, July 21, 2023

रामभक्तों को ज़िंदा जलाने वालों को न्यायलय ने दी पैरोल, राष्ट्र व सनातन धर्म की सेवा करने वाले जेल में....

21 July 2023

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🚩उड़ीसा में धर्मान्तरण का विरोध करने वाले और गौ तस्करों को सबक सिखाने वाले दारा सिंह को 22 साल जेल में रखा गया है। अपनी मां की अंतेष्टि करने के लिए भी पैरोल नही दी गई । वही दूसरी ओर गुजरात हाईकोर्ट ने गोधरा में ट्रेन में हिन्दुओं को जिन्दा जलाने के दोषी एक शख्स को पैरोल देते हुए कहा , कि इसे सज़ा की अवधि के भीतर गिना जाना चाहिए। पेरोल देने का ये अर्थ नहीं है कि सज़ा को निलंबित कर दी गई है। जस्टिस निशा एम ठाकोर ने हसन अहमद चरखा को 15 दिनों की पैरोल देते हुए ये टिप्पणी की। वो फ़िलहाल साबरमती एक्सप्रेस में महिलाओं-बच्चों समेत 59 रामभक्तों को ज़िंदा जलाए जाने के मामले में उम्रकैद की सज़ा काट रहा है।


🚩मार्च 2011 में सेशन कोर्ट द्वारा उसे सज़ा सुनाए जाते समय इसकी पुष्टि की गई थी, कि वो एक पूर्व-नियोजित आपराधिक साजिश का हिस्सा था।जिसके तहत खतरनाक हथियारों और विस्फोटक रसायनों से लैस भीड़ ने ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’, ‘हिंदुस्तान मुर्दाबाद’ और ‘हिन्दू काफिरों को जला दो’ जैसे नारे लगाते सांप्रदायिक दुर्भावना से भरकर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन पर पत्थरबाजी की और पेट्रोल डाल कर उसे आग के हवाले कर दिया।


🚩59 मौतों के आल्वा 48 लोग इस घटना में घायल भी हुए थे। गुजरात सरकार ने कहा , कि दोषी की जमानत याचिका पेंडिंग है।ऐसे में उसे पैरोल नहीं दी जा सकती। लेकिन, हाईकोर्ट ने इसे मानने से इनकार कर दिया। उसने अपनी बीवी के जरिए 60 दिनों की पैरोल की माँग की थी। उसने दावा किया, कि उसकी बहनों के बेटे और बेटी की शादी है, ऐसे में मामा के रूप में उसका इसमें मौजूद रहा ज़रूरी है। उसकी जमानत याचिका फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।


🚩हालाँकि, गुजरात हाईकोर्ट ने कहा , कि पैरोल की अवधि भी सज़ा के तहत ही गिनी जाएगी। 2011 में स्पेशल SIT कोर्ट ने हसन के अलावा 19 अन्य को भी इस मामले में सज़ा सुनाई थी। साथ ही 11 अन्य को भी इस मामले में फाँसी की सज़ा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सज़ा को बरक़रार रखा था, जिसके खिलाफ दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। गोधरा में रामभक्तों को जलाए जाने के बाद गुजरात भर में हिंसा भड़क गई थी।


🚩राम भक्तों को जलाने वाले को आसानी से पेरोल मिल गई, लेकिन कोई व्यक्ति देशभक्ति, भारतीय संस्कृति या सनातन धर्म की बात करे और राष्ट्र विरोधी लोगों का विरोध करे... तो उसे बहुत कुछ सहना पड़ता है, यहाँ तक की उसकी हत्या भी हो सकती है !!


🚩आपको बता दे की जिन आदिवासियों को ईसाई बना दिया गया था, उन लाखों हिंदुओं की घर वापसी हिन्दू संत आशारामजी बापू ने करवा दी थी। करोड़ों लोगों को सनातन धर्म के प्रति आस्थावान बना दिया। सैंकड़ों गुरुकुल और 17000 से अधिक बाल संस्कार केंद्र खोलकर बच्चों को भारतीय संस्कृति के अनुसार जीवन जीने की कला बताई। कत्लखाने जाती हजारों गायों को बचाकर अनेकों गौशालाएं खोल दी। विदेशियों की देन वेलेंटाइन डे के बदले मातृ-पितृ पूजन दिवस शुरू करवा दिया। क्रिसमस ट्री के बदले तुलसी पूजन दिवस शुरू करवाया।


🚩विदेशों में भी बापू आशारामजी के लाखों अनुयायी बन चुके हैं और वे भारतीय संस्कृति का वहाँ प्रचार करने लगे हैं। करोड़ो लोगों को व्यभिचारी से सदाचारी बना दिया,उसके बाद उन करोडों लोगो ने व्यसन छोड़ दिये। सिनेमा में जाना छोड़ दिया, क्लबों में जाना छोड़ दिया, ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे, स्वदेशी अपनाने लगें। इसके कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अरबो-खरबों रुपये का घाटा हुआ और ईसाई मिशनरियों के धर्मान्तरण की दुकानें बंद होने लगीं।


🚩फिर तो षड़यंत्रकारियों के पास यही एक रास्ता था , उन्हें रास्ते से हटाने का ... उनको सुनियोजित ढंग से षड्यंत्र रचकर जेल भेज दिया गया और अभी भी वे 10 साल से जेल में बंद है। 86 वर्ष की उम्र है ,लेकिन पिछले 10 सालों में बापूजी को 1 दिन की भी जमानत नही दी गई।


🚩भारत में दोगला न्याय कब तक चलेगा?


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Thursday, July 20, 2023

मासूम बच्चे ने थाने में जाकर बताया : मौलाना 2 महीने से मेरे साथ कर रहा दुष्कर्म

20 July 2023

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🚩भारत में जब-जब भी किन्हीं निर्दोष, निर्मल व पवित्र हिन्दू साधु-संतों पर षडयंत्र के तहत कोई झूठे आरोप लगते हैं , तो इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया कैसे 24 घण्टे उसी खबर को बार-बार...लगातार, तोड़-मरोड़ कर ,मिर्च-मसाले के साथ चलाने में कितनी ज्यादा व्यस्त हो जाती हैं । तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवी भी जोरों से चिल्लाने लगते हैं...


🚩वहीं दूसरी ओर किसी मौलवी या ईसाई पादरी पर आरोप सिद्ध भी हो जाये, तो भी न तो मीडिया ही खबर दिखाने में रुचि रखती है और ना ही तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवी कुछ बोलने की उत्सुकता,आतुरता दिखाते हैं। बल्कि तब तो इन दोनों ही वर्गों को जैसे सांप सूंघ जाता है।


🚩आपको बता दें , कि दीनी तालीम लेने आए 8साल के बच्चे से कुकर्म करने के आरोप में एक मदरसे के मौलाना और उसके भतीजे को गिरफ्तार किया गया है। घटना उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की है। आरोपितों की पहचान 40 वर्षीय मौलाना अफज़ाल और उसके भतीजे सलमान के तौर पर हुई है। पीड़ित जिस मदरसे का छात्र है, मौलाना अफज़ाल भी वहीं का हाफ़िज़ है।


🚩आरोप है कि , बच्चे के साथ दो महीने से अप्राकृतिक दुष्कर्म हो रहा था। 17जुलाई 2023 को पुलिस ने आरोपितों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। खबर मिली है , कि बुलंदशहर के जहांगीराबाद थाना क्षेत्र स्थित उक्त मदरसे का पीड़ित छात्र ख़ुद 16 जुलाई को पुलिस चौकी पहुँचा और पुलिस को अपने साथ हुई दरिंदगी के बारे में बताया। दोनों आरोपी बुलंदशहर के डिबाई थानाक्षेत्र के गाँव दानपुर के रहने वाले हैं।


🚩पीड़ित छात्र ने पुलिस को बताया कि , शनिवार (15 जुलाई 2023) को भी हाफ़िज़ और उसके रिश्तेदार ने कुकर्म किया था। पुलिस ने 16जुलाई को FIR दर्ज करने के बाद बच्चे का मेडिकल परीक्षण करवाया। इसके बाद से ही दोनों आरोपी फरार हो गए थे। 17 जुलाई 2023 को दोनों पकड़े गए।


🚩यहां विचार करने वाली बात यह है , कि अगर यही खबर किसी भी हिन्दू धर्म गुरु से जुड़ी होती.....तो मीडिया में इतनी खबरें दिखाई जाती...इतनी खबरें दिखाई जाती... कि भारत के अलावा अन्य देशों तक भी तेजी से खबर फैल जाती । अब भले ही वह खबर आधारहीन, झूठी,कल्पित और बोगस होती , पर उसे कवरेज खूब मिलता ।


🚩यह पहली बार की बात नहीं है...आए दिन मौलवियों और पादरियों के ऐसे सैकडों कुकर्म के खुलासे होते ही रहते हैं । ....और हमारे कर्मनिष्ठ भारतीय इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया के मीडियाकर्मी कान में तेल डालकर कर मज़े से सोए रहते हैं।



🚩मीडिया को पवित्र , निर्दोष हिन्दू साधु-संतों को बदनाम करने हाइलाइट करने ... और इसाई पादरियों एवं मौलवियों के दुष्कर्म की खबरों को छुपाने के लिए भारी भरकम फंडिग जो मिलती रहती है ।


🚩हमारी भारतीय संस्कृति इतनी महान है और आज भी हमारा प्यारा भारतदेश इतना समृद्ध है , कि भारत को लूटने और उसकी सांस्कृतिक विरासत को छिन्न-भिन्न करके हमारी हमारे देश व सनातन धर्म के प्रति अपार और सुदृढ़ आस्था को तोड़ने के प्रयास हजारों सालों से चलते चले आ रहे हैं। पर...

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ।

यूँ तो रहा है दुश्मन... अहले-जहाँ  हमारा ।।


🚩मुगल से लेकर अंग्रेज तक देश को लूटते ही रहे और अभी भी उनकी ललचाई नज़रें भारत देश पर टिकी हुई हैं ।


🚩अब एक तो भारत में 96.63 करोड़ से ज्यादा हिंदू हैं, जो कुल आबादी का 79.8% है। अब उनमें से लगभग 50% हिन्दुओ की श्रद्धा टिकी है अपने धर्मगुरुओं पर , साधु-संतों पर। ये श्रद्धालु हिन्दू उनके गुरुओं के बताये हुए मार्ग पर चलते हैं और ये महापुरुष,  संतजन उनके भीतर सत्य सनातन हिन्दू संस्कृति की महिमा भरते हैं ।साथ ही स्वदेशी खान-पान व रहन-सहन अपनाने को कहते हैं । उनको दारू , सिगरेट-बीड़ी, तम्बाकू , चाय-कॉफ़ी आदि दुर्व्यसनों को छुड़ा देते हैं और आसान-प्राणायाम आदि सिखाकर साथ ही घरेलू , सरल व सस्ती स्वास्थ्य की कुंजियां बता कर हिन्दू संस्कृति के अनुसार जीवन जीना सिखाते हैं । जिससे विदेशी कम्पनियों को अरबों-खरबों का नुकसान होता है ।



🚩दूसरा , कि इसाई मिशनरियां और मुस्लिम संघटन भारत में हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन इन्हीं हिन्दू साधु-संतों के कारण नहीं करा पाते ।

...इसीलिए तो हिन्दुओ की अपने धर्म गुरुओं , साधु-संतों पर जो आस्था टिकी हुई है उसको खत्म करने के लिए मीडिया में ईसाई मिशनरियां और मुस्लिम संस्थाएं पैसा डालकर यह सब करवा रहे हैं ।


🚩हिंदुस्तानियों को एक महत्वपूर्ण बात खूब भली-भांति समझ लेनी चाहिए, कि जब भी कीसी इसाई पादरी या मौलवी पर आरोप सिद्ध होते हैं तो उनके धर्म के लोग, उनके अनुयाई उनके खिलाफ कभी भी नहीं बोलते हैं। लेकिन जब षडयंत्र के तहत किसी हिन्दू साधु-संत पर कोई आरोप लगते हैं तो सबसे पहले हम मूर्ख हिन्दू ही उनके खिलाफ बोलना शुरू कर देते हैं , वहभी बिना सच जाने , चाहे वह आरोप बोगस ही क्यो ना हो।

और यही हिन्दू समुदाय की सबसे बड़ी कमी रही है ।


🚩जिन संतों ने अपना पूरा जीवन देश और सनातन संस्कृति की रक्षा एवं समाज कल्याण के लिए लगा दिया , ऐसे संत पर कोई झूठा आरोप लगा दे और मीडिया विदेशी ताकतों के इशारे पर उनको बदनाम करने लग जाए , तो यही हिन्दू समाज उनको गलत समझ लेता है ।


🚩अतः हिंदुस्तानी सावधान रहें, विदेशी ताकतों के इशारे पर चलने वाली मीडिया से... !!!

मीडिया में अधिकतर खबरें सत्य तथ्यों पर आधारित नहीं होती हैं, बल्कि बनाई जाती हैं । इसलिए आंख बंद करके मीडिया पर भरोसा करने से पहले एक बार सच को जानने की चेष्टा अवश्य करें ।


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Wednesday, July 19, 2023

हिंदू परम्पराओं में विज्ञान कैसे जुड़ा है ??? जानिए


19 July 2023

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🚩एक दिन डिस्कवरी पर जेनेटिक बीमारियों से सम्बन्धित एक ज्ञानवर्धक कार्यक्रम चल रहा था। उस प्रोग्राम में एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा की जेनेटिक बीमारी न हो इसका एक ही इलाज है और वो है "सेपरेशन ऑफ़ जींस".. मतलब अपने नजदीकी रिश्तेदारो में विवाह नही करना चाहिए ..क्योकि नजदीकी रिश्तेदारों में जींस सेपरेट (विभाजन) नही हो पाता और जींस लिंकेज्ड बीमारियाँ जैसे हिमोफिलिया, कलर ब्लाईंडनेस, और एल्बोनिज्म होने की 100% चांस होती है।


🚩फिर उसी कार्यक्रम में ये दिखाया गया कि आखिर हिन्दूधर्म में हजारों सालों पहले जींस और डीएनए के बारे में कैसे लिखा गया है?


🚩हिंदुत्व में कुल सात गोत्र होते है और एक गोत्र के लोग आपस में शादी नही कर सकते ताकि जींस सेपरेट (विभाजित) रहे.. उस वैज्ञानिक ने कहा की आज पूरे विश्व को मानना पड़ेगा की हिन्दूधर्म ही विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जो "विज्ञान पर आधारित" है !


🚩हिंदू परम्पराओं से जुड़े ये वैज्ञानिक तर्क:


🚩1- कान छिदवाने की परम्परा:


🚩भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क-

दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचार नियंत्रित रहता है।


🚩2-: माथे पर कुमकुम/तिलक


🚩महिलाएं एवं पुरुष माथे पर कुमकुम या तिलक लगाते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस जगह की ऊर्जा बनी रहती है। माथे पर तिलक लगाते वक्त जब अंगूठे या उंगली से प्रेशर पड़ता है, तब चेहरे की त्वचा को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशी सक्रिय हो जाती है। इससे चेहरे की कोश‍िकाओं तक अच्छी तरह रक्त पहुंचता


🚩3- : जमीन पर बैठकर भोजन


🚩भारतीय संस्कृति के अनुसार जमीन पर बैठकर भोजन करना अच्छी बात होती है।

वैज्ञानिक तर्क- पाल्थी मारकर बैठना एक प्रकार का योग आसन है। इस पोजीशन में बैठने से मस्त‍िष्क शांत रहता है और भोजन करते वक्त अगर दिमाग शांत हो तो पाचन क्रिया अच्छी रहती है। इस पोजीशन में बैठते ही खुद-ब-खुद दिमाग से एक सिगनल पेट तक जाता है, कि वह भोजन के लिये तैयार हो जाये।


🚩4- : हाथ जोड़कर नमस्ते करना


🚩जब किसी से मिलते हैं तो हाथ जोड़कर नमस्ते अथवा नमस्कार करते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और उन पर दबाव पड़ता है। एक्यूप्रेशर के कारण उसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है, ताकि सामने वाले व्यक्त‍ि को हम लंबे समय तक याद रख सकें। दूसरा तर्क यह कि हाथ मिलाने (पश्च‍िमी सभ्यता) के बजाये अगर आप नमस्ते करते हैं तो सामने वाले के शरीर के कीटाणु आप तक नहीं पहुंच सकते। अगर सामने वाले को स्वाइन फ्लू भी है तो भी वह वायरस आप तक नहीं पहुंचेगा।


🚩5-: भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से


🚩जब भी कोई धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान होता है तो भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है।

वैज्ञानिक तर्क- तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है।


🚩6-: पीपल की पूजा

तमाम लोग सोचते हैं कि पीपल की पूजा करने से भूत-प्रेत दूर भागते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- इसकी पूजा इसलिये की जाती है, ताकि इस पेड़ के प्रति लोगों का सम्मान बढ़े और उसे काटें नहीं। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है, जो रात में भी ऑक्सीजन प्रवाहित करता है।


🚩7-: दक्ष‍िण की तरफ सिर करके सोना


🚩दक्ष‍िण की तरफ कोई पैर करके सोता है, तो लोग कहते हैं कि बुरे सपने आयेंगे, भूत प्रेत का साया आ जायेगा, आदि। इसलिये उत्तर की ओर पैर करके सोयें।

वैज्ञानिक तर्क- जब हम उत्तर की ओर सिर करके सोते हैं, तब हमारा शरीर पृथ्वी की चुंबकीय तरंगों की सीध में आ जाता है। शरीर में मौजूद आयरन यानी लोहा दिमाग की ओर संचारित होने लगता है। इससे अलजाइमर, परकिंसन, या दिमाग संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं रक्तचाप भी बढ़ जाता है।


🚩8-सूर्य नमस्कार

हिंदुओं में सुबह उठकर सूर्य को जल चढ़ाते हुए नमस्कार करने की परम्परा है।

वैज्ञानिक तर्क- पानी के बीच से आने वाली सूर्य की किरणें जब आंखों में पहुंचती हैं, तब हमारी आंखों की रौशनी अच्छी होती है।


🚩9-सिर पर चोटी


🚩हिंदू धर्म में ऋषि मुनी सिर पर चुटिया रखते थे। आज भी लोग रखते हैं।

वैज्ञानिक तर्क- जिस जगह पर चुटिया रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं। इससे दिमाग स्थ‍िर रहता है और इंसान को क्रोध नहीं आता, सोचने की क्षमता बढ़ती है।


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Tuesday, July 18, 2023

परमाणु बम के जनक को अंततः हिन्दू धर्मग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता की ली शरण..

18 July 2023

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🚩क्या आपने 'रॉबर्ट ओपेनहाइमर' का नाम सुना है? वही रॉबर्ट ओपेनहाइमर,जिन पर हॉलीवुड के दिग्गज 'निर्देशक क्रिस्टोफर नोलन' फिल्म लेकर आए हैं। ‘Oppenheimer’ नाम की ये फिल्म रॉबर्ट ओपेनहाइमर के जीवन पर ही आधारित है।असल में ये वही शख्स थे, जिन्हें ‘परमाणु बम का जनक’ कहा जाता है। अमेरिका के फिजिसिस्ट रॉबर्ट ओपेनहाइमर परमाणु बम बनाने के लिए बनाई गई ‘लॉस एलामोस लेबोरेटरी’ के डायरेक्टर थे। उन्होंने हारवर्ड, कैम्ब्रिज, गोटेंगेन और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी।


🚩द्वितीय विश्वयुद्ध के समय उक्त लैब को ‘मैनहटन प्रोजेक्ट’ के तहत विकसित किया गया था। पहले न्यूक्लियर टेस्ट को ‘ट्रिनिटी’ नाम दिया गया था। वो 16 जुलाई, 1945 का दिन था जब ये कराया गया था।

बताया जाता है कि इस परियोजना, जिसे ‘Project Y’ नाम दिया गया था, पर काम करने के दौरान रॉबर्ट का वजन काफी घट गया था और वो पतले हो गए थे।इस प्रोजेक्ट के लिए उन्होंने 3 साल लगातार जो मेहनत की थी, उस कारण ऐसा हुआ था। टेस्ट वाले दिन वो ठीक से सो भी नहीं पाए थे।



🚩J. Robert Oppenheimer, परमाणु परीक्षण और भगवद्गीता का एक श्लोक


🚩 जब ये टेस्ट हुआ, उस समय रॉबर्ट ओपेनहाइमर एक बंकर में बैठे हुए थे। जबकि वहाँ से 10 किलोमीटर दूर न्यू मैक्सिको स्थित जोर्नाडा डेल मुर्टो के रेगिस्तान में ये परीक्षण हुआ था।

बताया जाता है कि जब पहला परमाणु ब्लास्ट हुआ, तब उसने सूरज की रोशनी को भी फीका कर दिया। 21 किलोटन TNT के साथ किया गया ये ब्लास्ट उस समय तक कहीं देखा-सुना नहीं गया था।ब्लास्ट के बाद मशरूम के आकर का घना धुआँ आकाश में उठा । 160 किलोमीटर दूर तक ब्लास्ट का कंपन सुनाई दिया। रॉबर्ट ने इसकी तुलना दोपहर के सूर्य से की थी ।


🚩इस परिक्षण के बाद उनके एक दोस्त इसीडोर रबी ने बताया था, कि उसके बाद उन्होंने कुछ दूरी से रॉबर्ट ओपेनहाइमर को देखा था, उनके शब्दों में कहें , तो "वो जब कार से निकले तो उनकी चाल कुछ अकड़ वाली थी, उसमें एक एहसास था...कि उन्होंने कर दिखाया।"

"हालांकि बाद में वो अपने इसी आविष्कार को लेकर गहन अवसाद में डूब गए थे।"



🚩 क्या आपको पता है , कि इस पहले परमाणु बम ब्लास्ट के बाद रॉबर्ट ओपेनहाइमर के दिमाग में क्या गूँजा था। 1960 के दशक में उन्होंने इसका खुलासा किया था। वो भगवद्गीता से प्रेरित थे। उन्हें इस हिन्दू धर्मग्रन्थ से प्रेम था।  उन्होंने कहा था , कि जब दुनिया का पहला परमाणु ब्लास्ट सफल रहा, तब उनके मन में "भगवान श्रीकृष्ण" के ये शब्द गूँजे – “अब मैं मृत्यु बन गया हूँ, संसारों का विध्वंस करने वाला।” 



🚩भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रिय भक्त अर्जुन की शंकाओं का समाधान करके , उन्हें धर्म रक्षार्थ युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हैं और कर्तव्यनिष्ठा की शिक्षा देते हैं । वो अपना विराट रूप प्रकट करते हैं और विश्वरूप में प्रकट होकर बताते हैं , कि वो कौन हैं।

उक्त श्लोक इस प्रकार है:


🚩कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।

ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥॥ (11.32)


🚩इसका हिंदी अर्थ कुछ इस प्रकार होगा,

“मैं प्रलय का मूल कारण और महाकाल हूँ , जो इस क्षण में जगत का संहार करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूँ। तुम्हारे युद्ध में भाग लिए बिना भी युद्ध की व्यूह रचना में खड़े विरोधी पक्ष के योद्धा मारे जाएँगे।”

और इसी अर्थ को रॉबर्ट ने गलत अर्थ घटन कर लिया था।


🚩श्रीकृष्ण ने इसमें खुद को काल बताया है। साधारणतया तो जो गीताजी के इन ज्ञान सम्पन्न वचनों से अनभिज्ञ हैं , वो लोग इस श्लोक का मर्म नहीं समझ सकते और भ्रमित हो जाएंगे। असल में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को इसके माध्यम से समझाते हैं, कि नष्ट हुआ सा दिखता हुआ भी कुछ नष्ट नहीं होता ... क्योंकि सबकुछ मुझमें और मैं सबमें भरपूर हूँ। इसलिए तू शोक न कर , युद्ध कर... धर्म के लिए युद्ध कर...


🚩यहाँ श्रीकृष्ण ने परमेश्वर का वो रूप दिखाया है, जो सज्जनों की रक्षा हेतु दुष्टों का संहार करने वाला है और... जो हर एक जीव और वस्तु को नष्ट करने में सक्षम है,क्योंकि अंततः प्रकृति में बनी हुई सभी रचनाएं उसी में (परमात्मा ) में ही विलीन हो जाती हैं।


🚩भगवद्गीता का यही श्लोक रॉबर्ट ओपेनहाइमर को याद आया था, जब उनका परमाणु परीक्षण सफल रहा। बड़ी बात ये , कि इस परीक्षण के बाद काफी दिनों तक वो अवसादग्रस्त रहे थे। उन्हें पता था , कि आगे इस परमाणु बम का क्या इस्तेमाल होने वाला है। एक दिन तो वो जापानी लोगों को लेकर चिंतित भी थे। उन्होंने कहा था, “ये बेचारे लोग…”🚩आपके मन में एक सवाल ज़रूर आ रहा होगा कि रॉबर्ट ओपेनहाइमर को भगवद्गीता से इतना लगाव क्यों था। ये सब शुरू हुआ 1930 के दशक में, जब वो Humanities के क्षेत्र में भी थोड़ा-बहुत अलग से काम कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों से लगाव हुआ और इनसे वो खासे प्रभावित हुए।


🚩परमाणु बम से होती तबाही देख बदला मन ! हिन्दू धर्मग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता की ली शरण...


🚩इस दौरान उन्होंने निश्चय किया कि वो भगवद्गीता को उनके मूल स्वरूप में मतलब अनुवाद किए बिना इसे पढ़ेंगे। चूँकि मूल स्वरूप में ये ग्रन्थ संस्कृत में है, इसलिए उन्होंने संस्कृत सीखनी शुरू कर दी। रॉबर्ट ओपेनहाइमर के भीतर मनोविज्ञान की समझ भगवद्गीता पढ़ने के बाद ही अच्छी तरह से विकसित हुई। यही कारण है कि ‘प्रोजेक्ट वाई’ के दौरान वो नैतिकता को सोच-विचार कर जिस कश्मकश में रहे, उससे उन्हें बहुत अधिक आत्मग्लानि हुई।



🚩उनकी आत्मग्लानि का कारण था ,कि उन्होंने गीताजी के इस श्लोक को पहली बार में पूरी तरह समझा नहीं और गलत अर्थ घटन किया , कि... कर्तव्य, नियति और फल की परवाह किए बिना कर्म करना ... यहां तक तो ठीक था पर उन्हों दुष्परिणामों के बारे में सोचना बंद कर दिया। हालाँकि, भगवद्गीता का ये सन्देश बिलकुल भी नहीं है कि निर्दोषों की हत्या की जाए या इतने बड़े-बड़े नरसंहार किये जाएं ।


🚩 रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने उस दौरान कहा था , कि युद्ध ऐसी परिस्थिति है, जिसमें इस दर्शन को लागू किया जा सकता है। लेकिन, युद्ध के बाद उनमें बदलाव आया और वो परमाणु हथियारों को आक्रामकता, अप्रत्याशित आक्रमण और आतंक के औजार बताने लगे। उन्होंने हथियारों की इंडस्ट्री को ही शैतानी करार दिया। उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन से कहा , कि मेरे हाथ पर खून लगे हैं।


🚩उन्हें ढाँढस बँधाने के लिए ट्रूमैन ने कह दिया कि खून आपके नहीं, मेरे हाथों में लगे हैं।

एक बार इस कश्मकश से पल्ला झाड़ते हुए रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने वैज्ञानिकों से कहा था , वैज्ञानिक तो सिर्फ अपना कर्तव्य कर रहे हैं, हत्याओं की जिम्मेदारी तो राजनेताओं की होगी।

एक तरह से ऐसा भी हो सकता है कि परमाणु बम बनाने और इसके दुष्परिणामों के बारे में सोच कर उन्होंने भगवद्गीता की शरण ली और अपने काम को सही ठहराने का प्रयास किया, लेकिन अंत में उन्हें समझ आया कि उन्होंने क्या कर दिया है।


🚩वो सन् 1933 का समय था, जब प्रत्येक गुरुवार को रॉबर्ट ओपेनहाइमर भगवद्गीता पढ़ने जाते थे। बर्कली में उन दिनों आर्थर राइडर नाम के एक संस्कृत शिक्षक हुआ करते थे, जिनसे वो पढ़ने जाते थे। उनका कहना था , कि राइडर से ही उन्हें नीतिशास्त्र का ज्ञान मिला । उन्होंने सीखा कि जो लोग कठिन कार्य करते हैं , उन्हें सम्मान प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म से उन्होंने दुनियादारी से खुद को अलग कर के देखने की भावना सीखी। एक बार उन्होंने अपने एक मित्र से कहा था, “मैंने ग्रीक को भी पढ़ा है। लेकिन हिन्दुओं के धर्म ग्रन्थों में गहराई है। ”


             - अनुपम कुमार सिंह


🚩इंग्लैंड के एफ.एच.मोलेम ने लिखा कि बाईबल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है। उसमें जो दिव्यज्ञान लिखा है वह केवल गीता के उद्धरण के रूप में है। मैं ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतना सारा आदरभाव इसलिए रखता हूँ कि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका समाधान गीता ग्रंथ ने शुद्ध और सरल रीति से दिया है। उसमें कई सूत्र अलौकिक उपदेशों से भरूपूर लगे इसीलिए गीता जी मेरे लिए साक्षात् योगेश्वरी माता बन गई हैं। यह तो विश्व के तमाम धन से भी नहीं खरीदा जा सके ऐसा भारतवर्ष का अनमोल खजाना है।


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